खुंबरी अपने कमरे में पहुंची और पांव पटकने वाले अंदाज में टहलने लगी। चेहरे पर पूरे सदूर की सख्ती आ ठहरी थी। उसका हाल देखते ही बनता था। एकाएक वो शब्दों को चबाकर कह उठी।

“एक सेवक की ये हिम्मत कि वो मेरे साथ सोने के लिए मुझे कह दे। दोलाम की इतनी हिम्मत। सेवक सिर्फ सेवक ही होता है। उसका काम सिर  झुकाकर सिर्फ हुक्म सुनना और उसे पूरा करना होता है। लेकिन दोलाम तो-दोलाम तो मेरे साथ शादी करके सदूर का राजा बनना चाहता है। मैं उसे उसकी गलती की सजा दूंगी, मैं...पागल धरा को अचानक क्या हो गया। उसने किस सहज स्वर में कह दिया कि दोलाम ठीक कहता है। उसने ऐसा कहकर दोलाम की हिम्मत बढ़ा दी। धरा तो मेरा ही रूप है। वो भी तो मैं हूं, फिर धरा मेरे खिलाफ कैसे जा सकती है, परंतु उसने दोलाम का साथ दिया।” खुंबरी कई पलों तक चुप-सी टहलती रही। क्रोध चेहरे पर नाच रहा था-“धरा ने ऐसा क्यों किया?”

खुंबरी के पास अपने ही सवाल का कोई जवाब नहीं था।

कुछ वक्त बीता कि धरा ने कमरे में प्रवेश किया।

खुंबरी उसे देखकर ठिठकी और नाराजगी भरे स्वर में कह उठी।

“अब मैं तुझसे पूछूं कि तू क्या करती फिर रही है। क्या तू चाहती है कि मैं दोलाम के साथ सोना शुरू कर दूं।”

“मैंने ऐसा कभी नहीं चाहा।” धरा गम्भीर थी।

“तूने ऐसा ही कहा दोलाम से। मेरे सामने कहा कि...”

“दोलाम से कहा, तेरे से तो नहीं कहा...”

“पर तूने कहा।”

धरा ने गहरी सांस ली।

“क्या तेरे को पता नहीं कि मैं जगमोहन से सच्चा प्यार करती हूँ।” खुंबरी तीखे स्वर में बोली।

“मेरे से ज्यादा, इस बारे में दूसरा कौन जानता होगा।”

“फिर तूने...”

“क्रोध अपने सिर से हटा तो मैं कुछ कहूं।” धरा ने कहा।

खुंबरी होंठ भींचकर रह गई। सामने मौजूद कुर्सी पर बैठ गई।

“क्या कहना चाहती है?”

“दोलाम ने कभी तेरे को सिर उठाकर नहीं देखा। उसका सिर हमेशा झुका रहा। पांच सौ साल तेरे शरीर की देखभाल की लेकिन कभी भी तेरे शरीर से छेड़छाड़ नहीं की और अब अचानक ही वो तेरे साथ सोने के कहने लगा।”

“ये ही तो मैं जानना चाहती हूं क्यों वो...”

“दोलाम कहता है कि उसने तेरी इतनी सेवा की है कि उसे ये इनाम मिलना चाहिए।”

“सेवक का काम सिर्फ सेवा करना होता...”

“पर वो ऐसा नहीं सोचता। वो अपनी की सेवा की कीमत मांगता है तेरे शरीर से।”

“मैं उसकी जान ले लूंगी।”

“ऐसे वक्त में क्रोध से काम लेना ठीक नहीं।”

“तूने भी तो उसकी हां में हां मिलाई।”

“मैं ऐसा न करती तो बात बिगड़ जाती। तू क्रोध में दोलाम के साथ कुछ भी बुरा कर देती।”

खुंबरी ने गहरी निगाहों से धरा को देखा और आंखें सिकोड़े कह उठी।

“क्या है तेरे मन में?”

“दोलाम हमारे लिए नया नहीं है। वो बहुत पुराना सेवक है और अच्छी तरह जानता है कि खुंबरी के सामने क्या मांग रख रहा है। इस पर भी उसने हिम्मत से काम लिया और सब कुछ कह दिया। मुझे पूरा विश्वास है कि दोलाम के मन के भीतर कुछ चल रहा है।”

खुंबरी के चेहरे पर सोच के भाव दिखने लगे।

“मैंने अच्छा किया ये कहकर कि दोलाम ठीक कहता है, उसे मन चाहा इनाम मिलना चाहिए।” धरा बोली।

“तो दोलाम के मन में कुछ और भी है?”

“हाँ।”

“तेरा मतलब कि उसकी बात न मानी गई तो वो कोई बड़ी बात करेगा।”

“ये ही बात है।”

“और वो बड़ी बात क्या है?”

“ये ही तो जानना है कि दोलाम इरादा क्या रखता है।”

“कैसे जानेगी?” खुंबरी गम्भीर दिखने लगी।

“सबसे पहले तो ये बात मन में रख कि दोलाम मात्र सेवक नहीं रहा अब। वो हमारा राजदार बन चुका है। पुराना हो चुका है। ताकतें जानती हैं कि दोलाम वफादार है, उसने खुंबरी की सेवा में कोई कमी नहीं रखी। बेशक ताकतों की मालकिन तू है पर दोलाम भी ताकतों के लिए महत्व रखता है। ऐसा कोई काम मत करना कि ताकतों की तरफ से विद्रोह उठे।”

“ताकतें मेरी गुलाम हैं। वो विद्रोह नहीं कर सकतीं।” खुंबरी कह उठी।

“ऐसा मत कह। दोलाम भी ताकतों के लिए महत्व रखता है। मेरी बात समझ।”

“क्या समझूं? समझा मुझे।”

“दोलाम की मांग गलत नहीं है।” धरा ने कहा-“उसने सच में तेरी बहुत सेवा की है।”

“तेरा मतलब है कि सेवा के बदले अपना शरीर उसके हवाले कर दूं। जबकि अब जगमोहन ही मेरा...”

“मैं तेरे को ऐसा करने को नहीं कह रही।”

“तो?”

“पर दोलाम को समझना है कि आखिर तुम्हारे इंकार की स्थिति में वो क्या करने का इरादा रखता है। इतना सीधा भी नहीं है दोलाम कि तुम उसे इंकार करो और वो चुप बैठ जाए। पर मेरे दिमाग में एक रास्ता आया है।”

“कह...”

“मैं सशरीर दोलाम की सेवा करने को तैयार हूं।”

“तू?”

“तेरे मेरे में फर्क ही क्या है। तेरा ही तो रूप हूं मैं। फिर तेरे को जगमोहन के साथ देखकर मेरे मन में भी मर्द को पाने की ख्वाहिश उठने लगी है। हालांकि दोलाम जैसे मर्द की मैंने कभी कल्पना नहीं की थी। परंतु कुछ वक्त के लिए दोलाम ही सही। उसके मन से निकालना है कि तुम्हारे इंकार पर वो क्या करेगा।”

“ये बात तू कैसे जानेगी?”

“मेरा शरीर पाने की चाहत में वो सब कुछ कह देगा।”

“लेकिन मेरा मन नहीं कि तू दोलाम से प्यार करे। मैं दोलाम की ये बात नहीं मानना चाहती। वो सिर्फ सेवक...”

“मैंने तेरे से पहले ही कहा है कि उसे सेवक मत समझ। वो इतना पुराना हो गया है कि अब वो राजदार बन चुका है।”

“मेरे ख्याल में हम दोलाम को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।” खुंबरी ने कहा।

“क्या मतलब?”

“बेहतर होगा कि दोलाम को खत्म कर दिया जाए। वो...”

“मैं ये राय नहीं दूंगी।” धरा गम्भीर हो गई।

“मुझे तेरी राय की जरूरत भी नहीं है।” कहते हुए खुंबरी ने गले में पड़ा बटाका छुआ-“ढोला।” उसने पुकारा।

अगले ही पल कानों के पास ढोला की आवाज उभरी।

खुंबरी धरा की सिकुड़ी आंखें पर जा टिकी थीं।

“दोलाम ने अब मुझ पर अपना हक जताना शुरू कर दिया है। वो भूल गया कि वो सिर्फ मेरा सेवक है।” खुंबरी की आवाज में क्रोध भरा हुआ था-“मैं दोलाम को अब देखना नहीं चाहती।”

“स्पष्ट कह खुंबरी।”

“दोलाम को मार दो।”

“उसने क्या कसूर कर दिया है जो तुम ऐसा कह रही हो।” ढोला की आवाज उभरी।

“तू नहीं जानता क्या?”

“मैं उलझन में हूं तू ही बता।”

“वो जगमोहन की जगह लेना चाहता है। मुझसे प्यार करना चाहता है।”

“उसकी मांग गलत तो नहीं।”

“ढोला।” खुंबरी गुर्रा उठी।

“दोलाम ने क्या बहुत सेवा की है। वो ताकतों के काम भी आता रहा है। ऐसे में दोलाम की इच्छा पूरी करना तुम्हारा काम है। वो अगर तुम्हें पाना चाहता है तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं।”

“मैं जगमोहन से प्यार करती हूं।”

“एक औरत एक वक्त में कइयों से प्यार कर सकती है। इसमें तो कोई समस्या नहीं।”

“मैंने पहली बार जगमोहन नाम के मर्द को चाहा है। कोई दूसरा मर्द मेरे शरीर को हाथ लगाए, ये मुझे पसंद नहीं।”

“ये तो तुम्हारी व्यक्तिगत समस्या है। इसमें हमारा क्या काम खुंबरी।”

“तो तुम दोलाम की जान लेने को इंकार कर रहे हो।” खुंबरी का चेहरा लाल होने लगा।

“मुझे दोलाम का कसूर नजर नहीं आता।”

“कसूर देखना मेरा काम है। तुम वो करो जो मैंने कहा है।” खुंबरी गुर्रा उठी।

“मैं दोलाम को मारना पसंद नहीं करूंगा। वो तुम्हारा वफादार रहा है हमेशा।”

“तुम मेरा हुक्म मानने से इंकार कर रहे हो ढोला।”

“मेरी राय है कि दोलाम की बात खुशी से मान लो। उसे भी जगमोहन जैसा...”

“ढोला।” खुंबरी गुर्रा उठी।

“मेरे ख्याल में तो दोलाम तुम्हें जगमोहन से ज्यादा प्यारा होना चाहिए।” ढोला की आवाज कानों में पड़ी।

खुंबरी कुछ कहने लगी कि गम्भीर-सी धरा कह उठी।

“तू जा ढोला।”

फिर ढोला की आवाज नहीं आई।

खुंबरी का खूबसूरत चेहरा गुस्से से तप रहा था।

“ढोला की ये हिम्मत कि मेरा हुक्म मानने से इंकार करे। इसकी सजा उसे भुगतनी होगी। मैं...”

“मैंने तो तेरे को पहले ही कहा था कि दोलाम की सेवक मत समझ। वो पुराना हो गया है। राजदार बन गया है। ढोला भी जानता है कि दोलाम तुम्हारा वफादार है। ऐसे में वो दोलाम की जान क्यों लेगा?” धरा बोली।

“मेरा हुक्म मानने से ढोला कैसे इंकार कर सकता है।” खुंबरी पागल हो रही थी।

“क्योंकि दोलाम भी ताकतों के लिए महत्व रखता है।”

“पर मेरा हुक्म...”

तभी गोमात की आवाज कानों के पास उभरी।

“महान खुंबरी को परेशान देखकर मुझे आना पड़ा।”

“गोमात।” खुंबरी गुस्से से कह उठी-“ढोला ने मेरा हुक्म मानने से इंकार कर दिया।”

“मैं जान चुका हूँ कि ढोला से तुम्हारी क्या बात हुई है। इसमें ढोला का कोई कसूर नहीं है। मैं भी तुम्हारी बात नहीं मानूंगा। दोलाम हमारा वफादार है। तुम्हारी गैर मौजूदगी में उसने सबका ही बहुत ध्यान रखा। फिर उसने ऐसा कोई कसूर भी नहीं किया कि उसकी जान ली जाए। तुम बिना वजह परेशान हो रही हो। बात कुछ भी नहीं है। दोलाम तुमसे प्यार ही तो करना चाहता है। जैसे जगमोहन से प्यार करती हो वैसे ही उससे...”

“ये नहीं हो सकता।”

“क्यों?”

“मुझे सिर्फ जगमोहन ही पसंद है।”

“ये मत भूलो कि दोलाम हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। जगमोहन महत्वपूर्ण नहीं है। दोलाम को मारने के लिए तुम्हें बड़ी ताकत से बात करनी होगी।” गोमात की आवाज सुनाई दी।

“ठोरा से?” खुंबरी के होंठ भिंच गए।

“हां। दोलाम की जिंदगी या मौत का फैसला ठोरा ही करेगा। क्योंकि दोलाम ने कोई कसूर नहीं किया है।”

“चला जा यहां से।” खुंबरी गुस्से से कह उठी।

गोमात की आवाज दोबारा नहीं आई।

खुंबरी का चेहरा दहक रहा था।

धरा गम्भीर दिखी।

“अब ठोरा से बात करेगी?” धरा ने कहा।

“समझ में नहीं आता कि ये सब अचानक क्या होने लगा है।” खुंबरी होंठ भींचे कह उठी।

“मेरी मान लो। वो ही कर, जो मैंने कहा है।” धरा बोली।

खुंबरी ने सुलगती नजरों से धरा को देखा।

“मैं, दोलाम से प्यार करने को तैयार हूं और उसके दिल की बातें बाहर निकालूंगी। तूने देख ही लिया है कि ढोला के साथ-साथ गोमात भी दोलाम के हक में बोल रहा है। ताकतें दोलाम पर वार नहीं करेंगी। ढोला सही कहता है कि ये तेरा व्यक्तिगत मामला है। सब कुछ हमें ही संभालना है। हमें ही ठीक करना है।”

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दोलाम व्याकुल अंदाज में खाने वाले कमरे में टहल रहा था। टेबल से उठाकर लाए बर्तनों को वो साफ करके उन्हें पुन: उस छोटे-से चबूतरे पर रख चुका था। जाने क्यों दोलाम को लग रहा था कि उसने खुंबरी के सामने जरूरत से बड़ी पेशकश रख दी है जिसे कि खुंबरी नहीं मानेगी। अगले ही पल उसके मन में ये विचार आ जाता कि उसने अपना हक मांगा है। खुंबरी को पाने का हकदार है वो। सैंकड़ों सालों से वो खुंबरी की देखरेख कर रहा है। ताकतों का भी ध्यान रखता आया है। जब-जब ताकतों को जरूरत पड़ी, वो आगे आया। ऐसे में खुंबरी पर उसका पूरा हक है। पृथ्वी से आए जगमोहन का हक पर जरा भी नहीं बनता। खुंबरी जाने क्यों उसे चाह रही है। दोलाम ने अपने चेहरे पर हाथ फेरकर सोचा बेशक उसकी उम्र सैंकड़ों साल है, परंतु ताकतों ने उसे अभी भी जवान रखा हुआ है। वो किसी भी हाल में से कम नहीं।

अगर खुंबरी न मानी तो?

इस विचार के साथ ही दोलाम ठिठक गया। तो फिर वो ही करेगा जो सोचा है। खुंबरी को खत्म कर देगा। खुंबरी की जगह ले लेगा। उसके ऐसा करने पर ताकतें कुछ नाराज तो जरूर होंगी पर शांत हो जाएंगी। क्योंकि वो भी बिना मालिक के ज्यादा देर तक अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकतीं। उन्हें इंसानी मालिक भी तो चाहिए और उससे बेहतर ताकतों का मालिक दूसरा नहीं मिलेगा। ताकतें उसके साथ खुश रहेंगी। ताकतों को संभाले रखने वाले मंत्र ठोरा उसे जरूर बता देगा। वो ताकतों का मालिक बन जाएगा। सदूर का सबसे ज्यादा ताकतवर इंसान बन जाएगा।

क्या पता खुंबरी मान ही जाए?

दोलाम सोचने लगा कि उसे का सुख चाहिए या ताकतों का मालिक बनना चाहता है वो? देर तक वह इसी उधेड़बुन में लगा रहा फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि ताकतों का मालिक बन जाना ज्यादा अहम होगा। औरत तो सब एक-सी होती हैं। सदूर से खुंबरी से भी खूबसूरत स्त्री ढूंढ लेगा। खुंबरी उसके साथ सोने को रजामंद हो गई तो तब क्या होगा?

अपनी ही सोचों में उलझ गया दोलाम। परंतु मन में ताकतों का मालिक बनने की इच्छा जोर मारने लगी कि ये विचार उसके मन में पहले क्यों न आया?

उसी पल आहटें सुनकर उसकी सोचें भंग हुईं। कोई इसी तरफ आ रहा था। दोलाम की निगाह भीतर आने वाले रास्ते पर जा टिकीं कि उसके देखते-ही-देखते बबूसा ने भीतर प्रवेश किया।

बबूसा को देखते ही दोलाम का मस्तिष्क तेजी से चलने लगा।

बबूसा जैसा ताकतवर इंसान उसका साथ देने को तैयार है। खुंबरी की जान लेने में बबूसा का भरपूर इस्तेमाल किया जा सकता है। बबूसा भी तो खुंबरी की जान ले लेना चाहता है। दोलाम को लगा सारे पत्ते उसके हक में चल रहे हैं। उसे हिम्मत से काम लेना होगा। कहीं भी चूकना नहीं है। वो ताकतों का मालिक बनके रहेगा। खुंबरी उसके साथ सोने को रजामंद हो गई तो उस स्थिति में खुंबरी की जान लेना और भी आसान हो जाएगा। जहां विश्वास कायम हो, वहां विश्वासघात करना और भी आसान हो जाता है। दोलाम की सोचों की उड़ान थम गई।

बबूसा करीब आ पहुंचा था और उसके चेहरे को देखता कह उठा।

“लगता है, बात बनी नहीं दोलाम ।”

“तू तो ये ही चाहता है कि बात न बने।”

“मेरे चाहने से क्या होता है। मैंने तो तेरे से पहले ही कहा था कि सेवक के साथ खुंबरी कभी भी सोना पसंद नहीं करेगी।”

“अभी महान खुंबरी ने इंकार नहीं किया।” दोलाम ने चुभते स्वर में कहा।

“अच्छा।” बबूसा मुस्कराया-“उसने इंकार करने के लिए समय माँगा है।”

“वो मेरी बात का सोच कर जवाब देगी।”

“तुममें बहुत हिम्मत है जो खुंबरी से इतनी बड़ी बात कह दी।”

“इसमें हिम्मत की जरूरत नहीं। मैंने बहुत सेवा की है। खुंबरी को पाने का हक मेरा बनता है, जगमोहन का नहीं।”

“कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है। पर मैंने तेरे को पहले ही कह दिया था कि तेरे को इंकार ही मिलेगा।”

दोलाम का चेहरा कठोर हो गया।

“किसी भी मौके पर हिम्मत मत हारना। मैं तुम्हारा दोस्त हूं। हमेशा तुम्हारे काम आऊंगा।”

“खुंबरी की जान लेने के काम?”

“हां, क्योंकि राजा देव भी की मौत चाहते हैं। मैं वो ही काम करूंगा, जो राजा देव को पसंद हो। हम दोनों मिल जाएं तो सरलता से खुंबरी की जान ले सकते हैं।” बबूसा ने सामान्य स्वर में कहा।

“इतना आसान मत समझो इस काम को।”

“कठिन भी क्या है?”

“खुंबरी ताकतों की मालिक है। खुंबरी की जान ली तो ताकतें नाराज हो सकती हैं। वो हमारी जान ले लेंगी।”

“तुम तो ताकतों को जानते होंगे।”

“हां।”

“फिर तो ताकतों को तुम ही संभाल लोगे।”

“बोला तो, ये काम आसान नहीं है।” दोलाम होंठ भींचकर बोला-“ताकतों से लम्बी बातचीत करनी होगी।”

“तुम कर सकते हो?”

“मैं सिर्फ ठोरा से ही बात कर सकता हूं जो सबसे बड़ी ताकत है और उसे बार-बार बुलाया जाना पसंद नहीं। कल रात ठोरा से बात की तो तुमने बातचीत सुन ली थी। वो ही बड़ी ताकत है।”

“पर तुम तो उस बडी ताकत से बहुत सहज भाव से बात कर रहे थे।”

“मैं बहुत डर रहा था। तुमने तब मेरे भीतर का डर नहीं देखा। ठोरा से बात करना मामूली बात नहीं है।” दोलाम का स्वर सख्त ही था-“ठोरा ने कहा मेरी मांग जायज है।”

“खुंबरी के साथ प्यार करने की मांग।”

“हाँ।”

“ठोरा मान गया तो फिर क्या सोचना। खुंबरी न माने तो उसे...”

“चुप रहो।” दोलाम कह उठा-“अभी इन बातों का समय नहीं आया। खुंबरी की जान लेने की बात को तुम मामूली न समझो बबूसा। आखिर वो बे-पनाह ताकतों की मालिक है। बटाका छूते ही उसके पास ताकतें हाजिर हो जाती हैं। बड़े-से-बड़ा काम भी वो चुटकियों में पूरा कर लेती है। ताकतों को खुंबरी की चिंता है। ऐसे में जो भी खुंबरी की जान लेगा, ताकतें उसी पल उस पर वार कर देंगी। वो जीवित नहीं रह पाएगा। वो तो...”

तभी खुंबरी की आवाज उनके कानों में पड़ी।

“तुम कहां हो दोलाम?”

दोनों की नजरें मिलीं।

अगले ही पल दोलाम बाहर की तरफ बढ़ गया।

बबूसा वहीं रहा और बाहर होने वाली बातचीत पर कान लगा लिए।

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“हुक्म महान खुंबरी।” दोलाम, धरा और खुंबरी के सामने जा पहुंचा।

धरा शांत रही। परंतु खुंबरी चेहरे पर हल्की मुस्कान समेटे कह उठी।

“हमने तुम्हारी बात पर सोचा। तुमने सच में बहुत सेवा की है मेरी।”

दोलाम शांत खड़ा रहा।

“और तो और, पांच सौ सालों तक तुमने मेरे शरीर की भरपूर देखभाल की। शरीर को खराब नहीं होने दिया। अगर मेरा शरीर खराब हो जाता तो मुझे अपने ही रूप, धरा का शरीर इस्तेमाल करना पड़ता।” खुंबरी बोली।

“मैंने दिल से तुम्हारी सेवा की महान खुंबरी।” दोलाम बोला।

“बदले में कभी कुछ मांगा भी नहीं। धरा कहती है कि तुम इतने पुराने हो गए हो कि अब सेवक नहीं, राजदार बन गए हो। तुम्हारा ओहदा बड़ा हो चुका है। इस बात का एहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ।”

“मैं आज भी वही हूं जो हर पल तुम्हारा भला चाहता है।”

“मुझे तुम पर पूरा भरोसा है दोलाम। ठीक बात तो ये होती कि मैंने तुम्हें पसंद कर लिया होता। परंतु मैंने जगमोहन को पसंद किया। उस वक्त तक मैंने तुम्हारे बारे में सोचा तक नहीं था।

“इस बात को तुम अभी भी ठीक कर सकती हो।” दोलाम बोला।

“कैसे?”

“जगमोहन को छोड़कर और मुझे पसंद करके।”

“हाँ।” खुंबरी मुस्कराई-“मैं ऐसा ही सोच रही हूं। मैं तुम्हें खुश देखना चाहती हूं दोलाम।”

“तब तो मैं भाग्यशाली हूं।”

“तुम भाग्यशाली हो, तभी तो सैंकड़ों सालों से मेरे साथ हो। मेरा रूप धरा तुम्हें पाने को बेताब है। तुम धरा के साथ अपना जोड़ा बना सकते हो। इस तरह तुम खुंबरी को पा लोगे।”

दोलाम ने धरा को देखा।

धरा चेहरे पर मधुर मुस्कान समेटे दोलाम को देख रही थी।

“मैं खुंबरी का साथ चाहता हूं।” दोलाम दृढ़ स्वर में कह उठा-“ खुंबरी के रूप को नहीं चाहता।”

“तुम जानते हो दोलाम मेरे और धरा में कोई फर्क नहीं है।”

“बहुत बड़ा फर्क है महान खुंबरी।”

“समझाओ तो?”

“मैं उस शरीर को पाना चाहता हूं जिस शरीर की पांच सौ सालों तक मैंनै देखरेख की है।”

“जिद न करो दोलाम। तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए।” खुंबरी के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।

“ये जिद नहीं, मेरा हक है।”

“दोलाम।”

“मुझे महान खुंबरी का ही शरीर चाहिए।”

“वो जगमोहन का हो चुका है।” खुंबरी का स्वर सख्त हुआ।

“सब कुछ तुम्हारे हाथ में है। तुम चाहो तो जगमोहन से आसानी से पीछा छुड़ा सकती हो।”

“तुम हद से ज्यादा आगे बढ रहे हो दोलाम।” खुंबरी के होंठ भिंच गए-“ये मत भूलो कि मेरे एक इशारे पर ताकतें तुम्हें मिट्टी में मिल देंगी। पर मैं ऐसा नहीं करना चाहती, क्योंकि तुमने दिल से मेरी सेवा की तैयार है। मैं भी तुम्हें खुश कर देना चाहती हूं। मेरा रूप तुम्हारी सेवा के लिए तैयार है।”

“मुझे अपनी जान देने में परहेज नहीं है। परंतु मुझे महान खुंबरी का ही शरीर चाहिए, पूरे जीवन के लिए। मैं तुम्हारे संग, तुम्हारा मर्द बनकर रहना चाहता हूं। इसका हक है मुझे।”

खुंबरी और धरा की नजरें मिलीं।

खुंबरी अपने गुस्से को दबाने का प्रयत्न कर रही थी।

तभी धरा आगे बढ़ी और उसने दोलाम का हाथ अपने दोनों हाथों में ले लिया।

“दोलाम।” धरा प्यार से बोली-“क्या मैं खुंबरी नहीं हूं?”

“हो।”

“फिर मुझे पाने को इंकार क्यों कर रहे हो?”

“तुम्हारी शरीर पृथ्वी ग्रह पर बना है। जबकि मैं खुंबरी का शरीर चाहता हूं। वो ही मेरे लिए...”

“मैं खुंबरी हूं दोलाम। पहचानो मुझे। मेरे और खुंबरी के शरीर में कोई अंतर नहीं है। मैंने तो आज तक किसी मर्द का स्वाद भी नहीं चखा। तुम मेरे लिए पहले मर्द बनने जा रहे हो। मैं तुम्हें खुश रखूंगी।”

दोलाम ने धरा के हाथों से अपना हाथ पीछे खींच लिया।

धरा की आंखें सिकुड़ी।

“तो तुम्हारा इंकार है?” धरा ने पूछा।

“पूरी तरह। मुझे सिर्फ खुंबरी का साथ चाहिए। तुम्हारा नहीं।”

खुंबरी ने सब्र का घूंट पीते हुए कहा।

“मुझे खुशी होती अगर तुम, धरा का हाथ थाम लेते। वो मैं ही हूँ-मैं...”

“महान खुंबरी मैंने तुम्हारे शरीर की सेवा की है, तुम्हारा ही शरीर पाऊंगा। नहीं तो नहीं।”

“अगर मैं कहूं कि तुम्हारे लिए इससे ज्यादा गुंजाइश नहीं निकल सकती तो तब तुम क्या करोगे?”

“जैसा तुम्हारी सेवा करता रहा हूं आगे भी उसी तरह तुम्हारी सेवा करूंगा।”

“ये बात तो मुझे समझ में नहीं आती कि मेरे इंकार के बाद भी तुम सेवा कर सकोगे।”

“दोलाम, तुम्हारा सेवक रहा है महान खुंबरी और आगे भी तुम्हारी सेवा में रहेगा।” दोलाम का स्वर शांत था।

“फिर तो मुझे अफसोस है कि मेरे रूप को पाने का मौका तुम खो रहे हो।”

दोलाम कुछ नहीं बोला।

“चल।” खुंबरी ने पलटते हुए धरा से कहा-“दोलाम नहीं मान रहा तो इसकी इच्छा।”

देखते-ही-देखते खुंबरी और धरा वहां से चली गईं।

दोलाम शांत-सा खडा रहा, परंतु उसका चेहरा कठोर हो चुका थीं।

कई पल बीत गए कि पीछे सरसराहट पाकर दोलाम तुरंत पलटा।

तीन कदमों पर बबूसा खड़ा मुस्कान के साथ उसे देख रहा था।

“ओह तुम-तुमने सारी बात सुन ली?” दोलाम के होंठों से निकला।

बबूसा सिर हिलाकर कह उठा।

“मैंने तो पहले ही कहा था कि खुंबरी नहीं मानेगी। वो ही हुआ।”

दोलाम ने कठोर नजरों से बबूसा को देखा।

“पर तुम भी तो जिद पर अड़े हो कि तुम्हें खुंबरी चाहिए। धरा, खुंबरी का ही तो रूप है। उस जैसी ही दिखती है।”

“मैं भीख नहीं मांग रहा, अपना हक मांग रहा हूं।”

“हक?”

“मैंने खुंबरी के शरीर की पांच सौ साल सेवा की है। खुंबरी पर मेरा हक बनता है। खुंबरी के रूप में...”

“पर खुंबरी तो स्पष्ट मना कर गई।” बबूसा मुस्करा पड़ा।

दोलाम के होंठों से गुर्राहट निकली।

“हम दोस्ती का हाथ मिला लें।” बबूसा बोला-“एक ही मंजिल है हमारी और शिकार भी एक ही है।”

“बहुत जल्दी हो रही है तुम्हें शिकार करने की।” दोलाम ने तीखे स्वर में कहा।

“खाली बैठने की आदत नहीं है।”

“मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि ये राह आसान नहीं है।” दोलाम धीमे किंतु सख्त स्वर में कह उठा-“ताकतों की मालिक खुंबरी को हाथ भी लगाया तो ताकतें उसी पल हमारी जान ले लेंगी।”

“अब इसका रास्ता तो तुम ही निकालोगे दोलाम।”

दोलाम होंठ बबूसा को देखने लगा।

“मुझे तो इस पर भी हैरानी है कि खुंबरी ने अपने रूप को तुम्हारे सामने पेश करने की कोशिश की।”

“इसमें हैरानी क्यों?”

“मेरा तो विचार था कि तुम्हारी बात सुनकर बहुत भड़क जाएगी। पर एक बात तो उसने सही कही।”

“क्या?”

“खुंबरी के एक इशारे पर ताकतें तुम्हारी जान ले लेंगी। बल्कि अब तक तो को ऐसा कर देना चाहिए था।”

“तुम मेरी मौत के बारे में सोच रहे हो।”

“मैं तुम्हें सतर्क कर रहा हूं कि अगर तुमने फौरन कोई कदम न उठाया तो खुंबरी ऐसा कुछ कर देगी।”

दोलाम एकाएक मुस्कराया और कह उठा।

“बबूसा। मेरे दोस्त। मुझे तुम्हारा बहुत सहारा है। जब तक तुम मेरे साथ हो मेरी हिम्मत दुगनी रहेगी। परंतु इतनी जल्दी भी अच्छी नहीं होती। मुझे सोचने का वक्त दो। ये काम इतना भी आसान नहीं है।”

“खुंबरी के इशारे पर ताकतों ने तुम्हें खत्म कर दिया तो?”

“ये काम भी इतनी जल्दी नहीं हो सकेगा। ताकतें दोलाम को जानती हैं कि मैं खुंबरी का वफादार हूं। मेरी जान लेने से पहले ताकतों की भी दस बार सोचना पड़ेगा कि दोलाम का कसूर क्या है। सैंकड़ों सालों की सेवा के बदले मैंने खुंबरी का साथ मांग लिया तो कुछ भी गलत नहीं किया। ये तो मेरा हक बनता है। ताकतें खुंबरी के अधीन अवश्य हैं परंतु वो अपने फैसले भी करती हैं। सबसे बड़ी ताकत ठोरा, मेरी बात से सहमत है कि मेरी मांग सही है।”

बबूसा कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला।

“अब तुम क्या करोगे?”

“थोड़ा इंतजार करूंगा कि शायद खुंबरी के विचार बदल जाएं। वो थोड़ा मेरा हाथ थाम ले।”

“ऐसा नहीं होगा। खुंबरी जगमोहन के प्यार में पूरी तरह डूब चुकी है।”

“पर मैं अभी एक-दो दिन का इंतजार करूंगा।” दोलाम ने कहा-“उसके बाद ही कुछ करने की सोचूंगा। अगर खुंबरी जगमोहन की छोड़कर मेरा हाथ नहीं थामती तो समझ ले बबूसा, खुंबरी का बुरा वक्त शुरू हो गया है।”

“मैं तेरे साथ हूं दोलाम। हम दोस्त हैं।”

“मैं तो अकेला हूं। ऐसे में तेरा ही तो सहारा है बबूसा।” दोलाम मुस्कराकर कह उठा।

“अगर तुम राजा देव को कैद से आजाद करा दो तो सारी समस्या राजा देव हल कर देंगे।”

“ये मेरे ‘बस’ के बाहर की बात है। वो सब ताकतों के पहरे में हैं।”

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“मुझे तो पहले ही लग रहा था कि दोलाम कह कुछ रहा है और चाहता कुछ और है। अब तो मुझे इस बात का विश्वास हो गया है। वो तेरा साथ पाने को अड़ा हुआ है, जबकि वो भी जानता है कि और धरा दोनों एक ही हैं।” कमरे में पहुंचते ही धरा कह उठी थी-“दोलाम के मन में कुछ और ही चल रहा है।”

खुंबरी के चेहरे पर सख्ती थी।

“मुझे बहुत हैरानी हुई कि जब दोलाम ने तेरा हाथ थामने से मना कर दिया।”

“तेरे से ज्यादा हैरानी तो मुझे हुई थी।”

“मुझे लगता है दोलाम अब मुसीबत खड़ी करने वाला है।” खुंबरी ने भींचकर कहा।

“मेरे ख्याल में तो मुसीबत खड़ी कर चुका है। हमें परेशान कर दिया उसने अपनी हरकत से।”

“वो मुसीबतें और बढ़ाएगा...”

“मैं तो इसलिए उसका हाथ थामने को तैयार हो गई थी कि उसके दिल को बात जान सकूं। परंतु बात नहीं बन पाई। जो भी हो दोलाम तेरे सामने बहुत हिम्मत से खड़ा है। उसने कुछ गहरा सोच रखा है, वरना दोलाम ऐसी हरकत कभी भी न करता। मुझे तो लगता है उसे किसी की शह शामिल है।”

“शह? किसकी?”

धरा कुछ न बोली।

“तेरा मतलब कि किसी ताकत का साथ हासिल है उसे?”

“सम्भव है।” धरा ने गम्भीरता से कहा।

“असम्भव।” खुंबरी दृढ़ स्वर में कह उठी-“ताकतें मेरे खिलाफ काम नहीं कर सकतीं, मैं उनकी मालकिन हूं।”

धरा ने कुछ नहीं कहा।

“मुझे दोलाम का कोई इंतजाम करना होगा। उस पर से मेरा भरोसा उठ गया है।” खुंबरी कह उठी।

“ढोला और गोमात तो तेरी बात मानने से इंकार कर चुके हैं।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

खुंबरी ने ‘बटाका’ छुआ और टोमाथ को पुकारा।

“हुक्म महान खुंबरी।” टोमाथ की आवाज फौरन कानों के पास उभरी।

“तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।”

“मैं तैयार हूं।”

“दोलाम की जान लेनी है।”

“मुझे सब मालूम हो चुका है खुंबरी। गोमात ने बताया था। तुम क्यों उसकी जान लेना चाहती हो?”

“क्या तुम्हें मालूम नहीं?” खुंबरी का स्वर तीखा हो गया है।

“गोमात ने बताया कि वो अपनी सेवाओं के बदले तुम्हें पाना चाहता है। मेरे ख्याल में तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। दोलाम तो आपका पुराना सेवक है और अब वो सेवक से ज्यादा हो चुका है, क्योंकि वो अपनी हर परीक्षा में खरा उतरा है। उसने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। ताकतें उसकी इज्जत करती हैं।” टोमाथ का स्वर उभरा।

“तुम सबकी मालकिन मैं हूं।”

“अवश्य खुंबरी।”

“मेरी बात को पूरा करना तुम लोगों का काम है।”

“मुझे मालूम है।”

“दोलाम की जान ले लो।”

“ये सम्भव नहीं हो पाएगा।”

“क्यों-नहीं ये...”

“दोलाम हमारे परिवार का हिस्सा बन चुका है और उसने ऐसी कोई गलती नहीं की कि उसे खत्म कर दिया जाए।”

“टोमाथ।”

“क्रोध में न आओ खुंबरी।”

तभी धरा कह उठी।

“मैं दोलाम का हाथ थामने को तैयार हूं परंतु दोलाम जिद पर है कि उसे ये चाहिए।”

“मेरे ख्याल में ये खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। इन बातों में हमारे आने की जरूरत नहीं है। इस समस्या का हल तुम्हें ही निकालना होगा। अगर चाहो तो मैं अपनी राय दे सकता हूं।”

“क्या?”

“जगमोहन हमारे किसी काम का नहीं है उसका साथ छोड़ दो, दोलाम हमारे परिवार का हिस्सा है। उसका हाथ थाम लेना ही ज्यादा बेहतर होगा। तुम्हें हर कदम पर दोलाम का सहारा रहेगा और दोलाम को तुम्हारा सहारा रहेगा।”

खुंबरी गुस्से से कांप उठी।

तभी धरा ने सख्त स्वर में कहा।

“तुम्हारी सलाह मुझे बहुत बुरी लगी टोमाथ। चले जाओ यहां से।”

फिर टोमाथ की आवाज नहीं आईं।

“ये कितना अजीब है कि ताकतें मेरा हुक्म नहीं मान रहीं।” खुंबरी का स्वर गुस्से से कांप रहा था।

“ताकतें दोलाम को परिवार का हिस्सा मान रही हैं।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा-“उनका कहना है कि दोलाम ने आज तक पूरी तरह परिवार के हक में काम किया है। कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। ताकतें दोलाम की जान लेने को तैयार नहीं।”

“दोलाम मुझे परेशान कर रहा है।”

“ताकतों का कहना है कि जगमोहन को छोड़कर, दोलाम का हाथ थामा और परेशानी से मुक्ति पा लो।”

“मैं जगमोहन को प्यार करती हूं और दोलाम की बात नहीं मान सकती।” खुंबरी ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मुझे ताकतों से बात करनी पड़ेगी।” धरा बोली-“वो हमारी बात मानने से इंकार नहीं कर सकतीं।”

“ताकतें सही कहती हैं कि दोलाम अपनी ईमानदारी से काम करते हुए परिवार का हिस्सा बन गया है।” खुंबरी ने हाथ हिलाकर कहा-“तुमने भी ठीक कहा था कि दोलाम अब सेवक नहीं रहा, राजदार बन गया है। दोलाम के बारे में हमें गम्भीरता से सोचना होगा। अभी तक मैं उसे यूं ही ले रही थी।”

“कहीं तुम उसका हाथ थाम लेने की तो नहीं सोच रही?”

“कभी नहीं।” खुंबरी दृढ़ स्वर में कह उठी।

“हमें ठोरा से बात करनी होगी।”

“तुम क्या समझती हो कि क्या ठोरा नहीं जानता होगा कि यहां क्या हो रहा है। वो बड़ी ताकत है, सब जानता है। फिर भी उसने इन बातों में दखल देने की चेष्टा नहीं की।” खुंबरी बोली।

“वो क्यों दखल देगा। उसने पहले भी कभी इस तरह किसी बात में दखल दिया है?”

“नहीं।”

“तो अब क्यों देगा। तुमने ठोरा से कब बात की थी?”

“एक बार। जब नागेश्वर ने मुझे सारी ताकतें सौंपकर ताकतों की मालकिन बनाया था तो ठोरा खुद मेरे से मिलने आया था। परंतु उसके बाद ठोरा से बात करने का कभी मौका नहीं आया। मेरी जरूरत अन्य ताकतें ही पूरा कर देती रही हैं।”

“तो अब ठोरा से बात करने का वक्त आ गया है।” धरा बोली।

“इतनी जल्दी ठोरा से बात करना ठीक नहीं। हमें इस मामले में सोचना होगा। कुछ वक्त बीतने दो, सम्भव है दोलाम को अक्ल आ जाए और वो तेरा हाथ थामने को तैयार हो जाए।” खुंबरी ने सोच भरे स्वर में कहा।

“दोलाम को अक्ल नहीं आएगी । उसके मन में कुछ और बात है। तभी तो वो मेरा हाथ नहीं थाम रहा।”

खुंबरी लम्बी खामोशी के बाद कह उठी।

“तेरा ख्याल ठीक लगता है। कोई ताकत अवश्य दोलाम का साथ दे रही है, वरना वो इतनी बड़ी बात कहने की हिम्मत नहीं करता। इधर ताकतें उसे परिवार का सदस्य मानते हुए उसकी जान लेने से इंकार कर रही है।”

“ये बात गम्भीर रुख लेती जा रही है।” धरा चिंता में दिखी।

“सोचने की बात तो ये है कि ताकतें मेरे खिलाफ कैसे दोलाम का साथ दे सकती हैं। मैं ताकतों की मालकिन हूं।”

धरा की निगाह खुंबरी के चेहरे पर जा टिकी।

“हमें इन बातों पर विचार करना होगा। जल्दी नहीं करनी है।” खुंबरी ने बेहद संयत स्वर में कहा।

“खोनम की जरूरत है?” धरा ने पूछा।

“हां, सच में खोनम की जरूरत है।”

धरा बाहर निकली और रास्ते पर आगे बढ़ गई। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं। रास्तों को पार करके वो उस जगह पर पहुंची जहां खाने का टेबल था। वहीं एक कुर्सी पर बबूसा को बैठे देखा।

आहटों को सुनकर बबूसा की निगाह भी धरा पर गई।

“ओह बबूसा।” धरा कह उठी-“कैसे हो तुम?”

बबूसा, धरा को देखकर मुस्कराया और कह उठा।

“तुम्हें देखता हूं तो पृथ्वी ग्रह का वो वक्त याद आ जाता है, जब तुम पहली बार मुझे मिली थीं। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़े पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’) तब कितनी डरी हुई थी। जान बचाती भाग रही थी। मैंने तुम्हें सहारा दिया। डोबू जाति को योद्धाओं से तुम्हें बचाता रहा।”

“हां। तुम ये ही सोचते रहे।” धरा के चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई-“परंतु ऐसा कुछ नहीं था। मैं डरी हुई नहीं थी। मेरी ताकतों ने मुझे पहले ही एहसास करा दिया था ये सब करके ही मेरे लिए सदूर ग्रह पर पहुंचने का रास्ता बनेगा और ऐसा ही हुआ। कोई मुझ पर शक भी नहीं कर सका और मैं सदूर ग्रह पर आ गई।”

“पोपा में तुम मेरे हाथों से बच गईं।”

“तुमने तो बहुत कोशिश की थी मुझे मारने की। पर मेरी ताकतों ने तुम्हें रोके रखा।” धरा मुस्कराती रही थी।

बबूसा गहरी सांस लेकर रह गया।

“यहां पर तुम्हें कैसा लग रहा है?” धरा ने पूछा।

“ठीक है। कम-से-कम दूसरे लोगों की तरह कैद में तो नहीं हूं।” बबूसा ने कहा।

“तुम्हारे दिमाग की तारीफ करनी होगी। तुमने किस खूबसूरती से सोमाथ को पोपा (अंतरिक्ष यान) से बाहर धकेल दिया। तुमने जो सोचा था कर दिखाया।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़े ‘बबूसा और सोमाथ’)

“तुम बच गईं।” कहते हुए बबूसा मुस्कराया।

“मैंने बचना ही था। ताकतें हर कदम पर मेरी सहायता कर रही थीं।”

“तुम सदूर ग्रह पर न पहुंचती तो खुंबरी जीवित न हो पाती।”

“हां। पर मैं क्यों न पहुंचती । ताकतें ढाई सौ सालों से मेरे लिए रास्ता बनाने में लगी थीं कि सदूर पर पहुंचकर सब कुछ पहले की तरह ठीक कर मैंने सब ठीक भी कर दिया।”

“राजा देव और बाकी सब लोग कब तक कैद में रहेंगे?” बबूसा ने पूछा।

“वो आजाद नहीं हो सकते। तुम लोगों ने डुमरा की बातों में आकर गलती की जो इधर आ गए।”

“डुमरा कहां है?” बबूसा ने एकाएक पूछा।

“बाहर जंगल में।” धरा बोली-“लेकिन आज वो बचेगा नहीं। ओहारा उस पर जबर्दस्त वार करने वाला है।”

“ओहारा?”

“वो बड़ी ताकत माना जाता है।”

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता आ ठहरी।

“जगमोहन कहां है?”

“वो देवराज चौहान से मिलने गया है।”

“मैं जगमोहन से बात करना चाहता हूं।”

“जब वो आएगा तो उसे बता दूंगी। यहां पर कोई शरारत मत करना, वरना बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

“मैं तो पछता रहा हूं कि डुमरा की बातों में क्यों आ गया...”

“तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं बबूसा कि तुम कितने भोले हो। दोलाम कहां है?”

“दोलाम? वो खाने वाले कमरे में है। उसे क्या हुआ है, वो कुछ परेशान-सा लग रहा है।” बबूसा बोला।

धरा आगे बढ़ी और दरवाजे जैसी खाली जगह से भीतर झांका।

दोलाम को कमरे में टहलते पाया।

“दोलाम हमें खोनम नहीं पिलाओगे?” धरा ने दोस्ताना अंदाज में कहा।

“दोलाम तुम्हारी पूरी सेवा करेगा महान खुंबरी।” दोलाम ने फौरन ठिठककर कहा।

धरा कुछ पल दोलाम को देखने के बाद बोली।

“तुम्हें मेरा हाथ थाम लेना चाहिए था। हम दोनों में अच्छी जमती।”

दोलाम ने कुछ नहीं कहा।

“सोच लो। मैं अभी भी तैयार हूं। मैं ही हूं। तुम तो सब जानते ही हो।”

“मैं उसी महान खुंबरी से प्यार करना चाहता हूं जिस शरीर की मैंने देखभाल की थी पांच सी बरस तक।”

“मुझे यकीन है कि तुम मेरा हाथ थामने के लिए मान जाओगे।” कहने के साथ धरा वापस पलटी और बबूसा के पास से निकलते हुए कहा-“जगमोहन से कह दूंगी कि तुमसे बात कर ले।”

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जगमोहन, जमीन के भीतर-ही-भीतर दस-बारह मिनट का रास्ता तय करके वहां पहुंचा जहां देवराज चौहान, नगीना, मोना चौधरी, सोमारा और रानी ताशा कैद थे। वहां तक पहुंचने में उसे कोई भी रुकावट नहीं आई। उस जगह के भीतर प्रवेश करके जगमोहन ने ठिठककर सबको देखा।

वो सब नीचे जमीन पर बैठे हुए थे।

“तुम बहुत गलत कर रहे हो जगमोहन।” रानी ताशा उसे देखते ही गुस्से से भरे स्वर में कह उठी।

“क्या गलत किया है मैंने?” जगमोहन कुछ आगे बढ़ा। शांत स्वर में बोला।

“खुंबरी हमारी दुश्मन है। हम उसकी जान लेने आए हैं। उसने हमें कैद कर लिया और तुम उससे प्यार कर बैठे।”

“रानी ताशा ठीक कह रही है।” मोना चौधरी ने कहा-“तुम्हें खुंबरी से प्यार नहीं करना चाहिए था। बात तो तब बनती जब तुम पहला मिलते ही खुंबरी को मार देते।”

“खुंबरी की जान लेने के बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम्हें सोचना चाहिए जगमोहन।” नगीना कह उठी।

जगमोहन ने नगीना को देखा।

सबकी निगाह उस पर थी। तभी सोमारा बोली।

“बबूसा कैसा है?”

“ठीक है।” जगमोहन ने कहा-“हमने कुछ देर पहले एक साथ खाना खाया था।”

“वो मुझसे मिलने नहीं आया?”

“पता नहीं। कह दूंगा उससे।”

“क्या तुम हमारे साथ नहीं हो?” रानी ताशा ने चुभते स्वर में पूछा।

“खुंबरी में मैंने कोई बुराई नहीं देखी अब तक। वो अच्छी है। हम सबको तरह।”

“ये तुम नहीं, उसके प्यार का नशा बोल रहा है।” मोना चौधरी ने कहा।

“वो सच में बहुत अच्छी है। साफ दिल से उससे मिलो तो ये बात खुद...”

“खुंबरी ने मुझे और राजा देव को, अपने मतलब की खातिर, ढाई सौ साल पहले अलग कर दिया था। मैं सिर्फ इसी बात का बदला लेना चाहती हूं उससे और वो बचने वाली नहीं।” रानी ताशा ने बेहद कठोर स्वर में कहा।

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

“तो अब तुम खुंबरी की तरफ हो।” मोना चौधरी तीखी नजरों से जगमोहन को देख रही थी।

“मेरा भरोसा करो, खुंबरी वास्तव में बहुत अच्छी बहुत मासूम है-वो...”

“वो बुरी ताकतों की मालिक है।” नगीना कह उठी।

“सब खुंबरी के खिलाफ हैं तो मेरी बात किसी की समझ में नहीं आने वाली।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा फिर देवराज चौहान को देखकर कहा-“मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं।”

“कहो।” देवराज चौहान बोला।

“अकेले में।”

देवराज चौहान खामोशी से उठा और सबसे हटकर जा खड़ा हुआ।

जगमोहन उसके पास पहुंचा।

दोनों की नजरें मिलीं।

“मैं खुंबरी से सच्चा प्यार करने लगा हूं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं समझ रहा हूं।” देवराज चौहान बोला।

“खुंबरी तुम्हें आजाद करने को तैयार है।”

देवराज जगमोहन को देखता रहा।

“खुंबरी कहती है कि अगर देवराज चौहान उसे मारने का इरादा नहीं रखता तो उसे आजाद कर देगी। सिर्फ तुम्हारी हां पर वो तुम्हें आजाद करने को तैयार है। अगर तुम्हें खुंबरी से मेरे प्यार करने पर एतराज नहीं तो खुंबरी को तुम नहीं मारने वाले।”

देवराज चौहान खामोश रहा।

“जवाब दो, क्या तुम मेरे साथ हो?” जगमोहन के चेहरे पर बेचैनी उभरी।

“मैं ताशा के साथ हूं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“क्या?” दो पल के लिए जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।

देवराज चौहान मुस्कराया।

“इसका मतलब?” जगमोहन गहरी सांस लेकर बोला-“तुम खुश नहीं हो कि खुंबरी से मुझे प्यार हो गया है।”

“मैं खुश हूं। तुम्हारी बात पर मुझे जरा भी एतराज नहीं।”

“तो फिर मेरा साथ क्यों नहीं दे...”

“मुझे वो जन्म अच्छी तरह याद है, जब मैं ताशा के साथ इस ग्रह पर रहा करता था। हम दोनों बहुत प्यार से अपना जीवन बिता रहे थे। खुंबरी ने हमें अलग करके बहुत गलत किया। ऐसे में ताशा का अब साथ देना मेरा पहला फर्ज बनता है। उसकी चाहत गलत नहीं है खुंबरी से बदला लेने की।”

“वो पुरानी बात है। ढाई सौ साल पुरानी बात। मेरा और खुंबरी का प्यार तो नया...”

“तुम्हारे लिए पुरानी बात हो सकती है। मेरे लिए तो जैसे कल ही की बातें हैं...”

“तुम-तुम रानी ताशा की खातिर, मेरा साथ देने से पीछे हट रहे हो।” जगमोहन कह उठा।

“तुम भी तो खुंबरी की खातिर, मेरा साथ नहीं दे रहे जबकि खुंबरी की जान लेने का तुम्हारे पास मौका है।”

जगमोहन और देवराज चौहान एक-दूसरे को देखते रहे।

“तुम ठीक कहते हो।” जगमोहन गहरी सांस लेकर कह उठा।

“इस वक्त हम दोनों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं। मुझे रानी ताशा का साथ देना है और तुम्हें खुंबरी से प्यार हो गया है। हो सकता है कि हमें खुंबरी को मारने का मौका मिले और उसे बचाने के लिए तुम हमारे सामने आ जाओ।”

जगमोहन ने चौंककर देवराज चौहान को देखा।

“ऐसा हुआ तो तुम क्या करोगे?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“कम-से-कम तुम पर तो वार नहीं करूंगा।” देवराज चौहान मुस्कराया।

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“हम दोनों अपनी-अपनी स्थिति में फंसे पड़े हैं।” देवराज चौहान ने कहा-“मैं तुम्हें ये नहीं कह रहा कि तुम हमारा साथ दो। ऐसे में तुम भी मत सोचो कि मैं तुम्हारा साथ दूंगा। मुझे ताशा से ज्यादा तुमसे लगाव है परंतु खुंबरी ने कभी जो हमारे साथ किया था, वो मैं नहीं भूल सकता।”

“तुम्हारा फैसला गलत है।” जगमोहन ने परेशान स्वर में कहा।

“क्या मतलब?”

“खुंबरी के पास बेपनाह ताकतें हैं। देख ही रहे हो कि तुम लोग यहां कैद हो और न दिखाई देने वाली ताकतें पहरे पर हैं, सामने रास्ता खुला है, परंतु ताकतें तुम्हें बाहर नहीं निकलने दे रहीं। कैद में इसी तरह बैठे रह जाओगे। कभी भी आजाद नहीं हो सकोगे या फिर-कहीं खुंबरी तुम सबकी जान न ले ले। कब तक वो रखेगी तुम सबको कैद में, एक दिन तो...”

“तुम्हें इस बात की चिंता है।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“चिंता क्यों न होगी।”

“तो खुंबरी को मार दो।”

“ये क्या कह रहे हो?” जगमोहन चौंका।

“मैं तो तुम्हारी चिंता खत्म करने की चेष्टा कर रहा हूं।” देवराज चौहान का स्वर शांत था-मैं खुंबरी से बदला लेकर रहूंगा, जो कभी उसने मुझे और ताशा को अलग किया था। तुम तो हर बात से वाकिफ हो।”

“मैंने तो सोचा था कि तुम मेरा साथ दोगे।”

“और तुम मेरा साथ देते-देते से खुंबरी प्यार कर बैठे।” देवराज चौहान मुस्कराया-“तुम्हें खुंबरी से प्यार करने से पहले ये सोच लेना चाहिए था कि हम किस इरादे से यहाँ आए हैं।”

“मैं-मैं- खुंबरी को देखते ही, मुझे जाने क्या हो गया जो खुंबरी से प्यार कर...”

“तुम अपनी मनमानी करने को आजाद हो और हम भी...”

“बात को समझो, तुम लोग खुंबरी का मुकाबला नहीं कर सकते।” जगमोहन व्याकुल स्वर में कह उठा।

देवराज चौहान पलटा और वापस सबकी तरफ बढ़ गया।

जगमोहन आहत भाव से उसे जाते देखता रहा। उसने देवराज चौहान को नगीना के पास बैठते देखा। जगमोहन ने गहरी सांस ली और परेशानी भरे अंदाज में पलटकर बाहर निकलता गया।

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सोचों में डूबा जगमोहन वापस पहुंचा। मन खराब होने के कारण, कमरे में जाने की अपेक्षा वो उस जगह पर आ पहुंचा, जहां खाना खाया था। वहां कोई भी नहीं था। वह एक कुर्सी पर बैठ गया। वह देवराज चौहान के बारे में ही सोच रहा था कि इन हालातों में वो कितना सही है और स्वयं वो कितना सही है?”

जाने कब तक वो इसी प्रकार गुमसुम-सा बैठा रहा कि आवाज सुनकर वो सोचों से बाहर निकला।

पास ही बबूसा खड़ा था।

“कैसे हो जगमोहन?” बबूसा कुर्सी पर बैठता कह उठा-“मैंने धरा से कहा था कि मैं तुमसे बात करना चाहता हूं।”

जगमोहन कुछ नहीं बोला।

बबूसा ने गहरी निगाहों से उसे देखा।

“कुछ उलझन में लग रहे हो। खुंबरी से कोई बात हो गई क्या?” बबूसा ने पूछा।

“नहीं।”

“तुम तो राजा देव से मिलने गए थे।”

“हाँ।”

“क्या बात हुई राजा देव से?”

“तुम्हें बताने के लिए कुछ भी नहीं है।” जगमोहन ने कहा।

“राजा देव ठीक हैं न?”

जगमोहन ने सहमति से सिर हिला दिया।

“और सोमारा, वो कुछ कह रही थी?”

“तुमसे मिलने की बात कर रही थी।”

“जाऊंगा।” बबूसा ने सिर हिलाया-“मैं तुमसे बात करना चाहता था।”

“कहो।”

“खुंबरी से प्यार-व्यार बहुत हो गया अब अपना काम कब करोगे?” बबूसा ने धीमे स्वर में कहा।

“कैसा काम?”

“खुंबरी को मार देने का काम।”

“मैंने कब कहा कि खुंबरी की जान लूंगा मैं।” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

“क्या मतलब? हम खुंबरी को मारने के लिए ही तो यहां आए हैं। भूल गए क्या?”

जगमोहन बबूसा को देखने लगा।

“ये तो अच्छा है कि तुम खुंबरी के करीब पहुंच गए। तुम्हारे पास तो मौका है खुंबरी को मारने का।”

“बबूसा।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला।”

“क्या?” बबूसा ने अजीब-सी नजरों से जगमोहन को देखा-“मतलब कि तुम खुंबरी को नहीं मारने वाले?”

“सही समझे तुम। मैं खुंबरी से प्यार करने लगा।”

“दिमाग तो खराब नहीं हो गया तुम्हारा। वो बुरी ताकतों की मालिक...”

“बेशक वो बुरी ताकतों की मालकिन है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वो अच्छी है। वो मुझे पसंद आई।”

“तुम्हारे दिमाग में उसकी खूबसूरती का भूत घुस गया हैं जो ऐसा कह रहे हो।”

“खुंबरी भी मुझसे प्यार करती है। वो...”

“मन में वहम मत पालो। खुंबरी जैसी शय किसी से प्यार नहीं कर सकती। वो बुरी बन चुकी है। उसने राजा देव और रानी ताशा को कभी अपने मतलब की खातिर जुदा कर दिया था। राजा देव को सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था। वो बुरी है और बुरी ही रहेगी।”

“तुम खुंबरी को दुनिया की निगाहों से देख रहे हो बबूसा।” जगमोहन मुस्कराया।

“तो?”

“उसे मेरी निगाहों से देखो तो उसका असली रूप देख सकोगे।”

बबूसा जगमोहन को देखता रह गया।

“वो चेहरे और शरीर की ही नहीं, मन की भी सुंदर है। वो सच में बहुत अच्छी है।”

“तो तुम्हें सच में खुंबरी से प्यार हो गया है।” बबूसा गम्भीर हो गया।

“हां। हम दोनों एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं।”

“मैं तो सोचता था कि तुम खुंबरी को मार देने के लिए मौका तलाश कर रहे होंगे।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

“राजा देव से कही ये बात?” बबूसा ने कहा।

“हां।” जगमोहन के होंठ गए।

“तो उन्होंने क्या कहा?”

जगमोहन उठ खड़ा हुआ।

बबूसा ने गम्भीर निगाहों से उसे देखा और पुन: कहा।

“राजा देव ने क्या कहा तुम्हारी बात सुनकर?”

जगमोहन पलटा और वहां से आगे बढ़ता चला गया।

बबूसा का गम्भीर चेहरा सोचों में डूबा, वो बड़बड़ाया।

“इसका मतलब राजा देव और जगमोहन में अच्छी बात नहीं हुई। राजा देव अपनी जगह ठीक तो हैं। सब मिलकर खुंबरी से इस बात का बदला लेने आए थे कि उसने कभी राजा देव और रानी ताशा की अलग कर दिया था। परंतु जगमोहन तो खुंबरी से प्यार करने लगा। बाकी सब कैद में डाल दिए गए। इसमें तो जगमोहन की ही गलती है। उसे खुंबरी से प्यार नहीं करना चाहिए था। जिस काम के लिए आए है, वो पूरा करने की जरूरत थी।”

“अपने से क्या बातें कर रहे हो बबूसा।” दोलाम की आवाज कानों पड़ी।

बबूसा ने चौंककर गर्दन घुमाई तो पास में दोलाम को खड़े देखा।

दोलाम आगे बढ़ा और कुर्सी पर आ बैठा।

“तुम्हें खुद से बात करने की आदत है?”

“मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा था दोलाम।” बबूसा ने कहा-“मेरे पास तुम्हारे अलावा सोचने को कुछ है ही नहीं। मुझे इस बात की चिंता हो रही है कि खुंबरी ने तुम्हारा दिल तोड़ दिया।”

“दिल?”

“और नहीं तो क्या? तुम खुंबरी की चाहत रखते हो और वो जगमोहन से प्यार करती है।”

“कुछ पहले तुम जगमोहन से बात कर रहे थे।” दोलाम ने तीखे स्वर में कहा।

“हां। उसे टटोल रहा था कि वो खुंबरी को सच में चाहता है या उसकी जान लेने के इरादे से उसके पास है।”

“तो क्या जाना?”

“वो बेवकूफ सच में खुंबरी से प्यार करता है।”

“ये उसने कहा?”

“हां। मैंने तो उसे याद दिलाया कि हम की जान लेने आए थे और तुम उसे मार नहीं रहे। वो खुंबरी से प्यार करने के दावे करने लगा। दोलाम मुझे तो लगता है तुम्हें नहीं मिल सकेगी।”

दोलाम के होंठ भिंच गए।

“खुंबरी भी जगमोहन से भरपूर प्यार करती है, ये एहसास मुझे जगमोहन की बातों से हुआ। मुझे नहीं लगता कि वो जगमोहन को छोड़कर तुम्हारा हाथ थामेगी। तुम्हें भ्रम हो रहा है कि वो तुम्हारा हाथ थाम लेगी।”

दोलाम के चेहरे पर कठोरता नाचती रही।

“तुम वक्त खराब कर रहे हो। जल्दी से मेरे दोस्त क्यों नहीं बन जाते। हम खुंबरी को मारने के बारे में विचार करेंगे।”

“मैं खुंबरी को वक्त दे रहा हूं कि वो सोच-समझकर फैसला कर ले।” दोलाम शब्दों को चबाकर बोला।

“वो अपना फैसला तुम्हें सुना चुकी है।”

“फिर भी मुझे इंतजार है कि वो अपना फैसला बदल ले।”

“तुम्हें गलती लग रही है कि खुंबरी तुम्हारे बारे में कुछ सोचेगी।”

दोलाम ने बबूसा को देखकर कहा।

“तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है?”

“मैं वक्त खराब नहीं करना चाहता। मैं...”

“मैं तुम्हें पहले भी समझा चुका हूं कि ये काम आसान नहीं है। ताकतों की मालकिन है खुंबरी। उसकी जान लेना बहुत बड़ी बात है। ऐसा न हो कि हम खुंबरी की जान लें और ताकतें हमारी जान ले लें। ये गम्भीर मसला है। तुम इन ताकतों के बारे में कुछ भी नहीं जानते। इस मामले में हमें बहुत सब्र के साथ चलना है। परंतु अभी मुझे खुंबरी के जवाब का इंतजार है।”

“मान लो खुंबरी ने तुम्हारा हाथ थाम लिया तो तब क्या होगा?” एकाएक बबूसा बोला।

“तब?” दोलाम ने करीबी निगाहों से बबूसा को देखा-“तब सबसे पहले मैं तुम्हें खत्म करूंगा, फिर...”

“मुझे?” बबूसा के माथे पर बल पड़े।

“हां। क्योंकि तुम खुंबरी की जान लेने का इरादा रखते हो। उसके बाद अन्य कैदियों को मार दूंगा।”

“बेवकूफ हो तुम। बबूसा बोला-“ खुंबरी को मारकर तुम अकेले ही ताकतों के मालिक क्यों नहीं बनते?”

“मैं खुंबरी के साथ रहकर भी ताकतों का मालिक बना रहूंगा। खुंबरी सदूर की रानी बनेगी तो दोलाम राजा बन जाएगा। फिर सब कुछ मुझे ही तो संभालना है। मेरा हुक्म ही चलेगा हर तरफ।”

“और खुंबरी?”

“उसे बच्चे पैदा करने से फुर्सत ही नहीं मिलेगी।” दोलाम कहर-भरे स्वर में कह उठा।

बबूसा ने दोलाम की जहर भरी आंखों में देखकर शांत स्वर में कहा।

“तुम सपने बुन रहे हो। ऐसा कुछ नहीं होने वाला। तुम्हें सिर्फ सेवक मानती है। वो जगमोहन से प्यार करती है और ये बात भूलो कि तुम्हारे मन की बात जानकर, खुंबरी भी तुम्हारी जान लेने का प्रयत्न कर सकती है।”

“ये खतरा तो है।” दोलाम ने मुस्कराकर कहा-“इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा। पर मेरी जान लेने से पहले ताकतें भी मुझे तौलेगी कि दोलाम ने ऐसा क्या कसूर कर दिया कि उसकी जान लें। मैंने खुंबरी की और ताकतों की हमेशा दिल से सेवा की है। मुझमें कमी निकालना ताकतों के लिए भी आसान नहीं होगा।”

“तुम भ्रम में रहे और ताकतों ने तुम्हारी जान ले ली तो?

“मुझे विश्वास है कि ताकतें मेरे साथ ऐसा नहीं करेंगी।”

“खुंबरी ताकतों की मालकिन है। उसके इशारे को ताकतें इंकार कैसे कर सकती हैं?”

“ताकतें अपना निर्णय भी तो ले सकती हैं। ठोरा कभी भी गलत फैसला नहीं लेगा। वो बड़ी ताकत है।”

“तुम ठोरा की इस बात पर यकीन करते हो कि तुम्हारा हक बनता है खुंबरी पर?”

“हां। ठोरा का इतना कह देना ही बहुत बड़ी बात है।”

“तुम्हारा मतलब कि ठोरा चाहे तो खुंबरी के हुक्म को इंकार कर सकता है।”

“बेशक कर सकता है अगर ठोरा के पास मुनासिब वजह हो तो। ताकतें खुंबरी की गुलाम अवश्य हैं परन्तु मजबूर नहीं हैं। वो ऐसे किसी इंसान की जान नहीं लेंगी जो उनके हक में बेहतर काम कर रहा हो। जैसे कि मैं...”

“मुझे तो लगता है तुम्हें गलतफहमी हो रही है।”

“ताकतों के नियम मैं जानता हूं तुम नहीं। यूं तो ताकतों के नियम होते ही नहीं, फिर भी मुझे मारने से पहले ताकतों को सोचना पड़ेगा। दोलाम ने हमेशा सच्चे मन से उनकी सेवा की है।” दोलाम ने दृढ़ स्वर में कहा।

“मेरी मानो तो फौरन खुंबरी का गला काट दो।”

“तुम बेवकूफ हो, जो इतनी जल्दी करने को मुझे कह रहे हो।” दोलाम मुस्कराकर कह उठा-“ऐसा करके मैं बेवकूफी नहीं करना चाहता। अभी मुझे के जवाब का इंतजार है।”

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“जगमोहन ने कमरे में प्रवेश किया तो खुंबरी को कुर्सी पर बैठे देखा। कुछ देर पहले ही उसने धरा के साथ खोनम पिया था और धरा खोनम के दोनों बर्तन ले गई थी।

“आ गए जगमोहन।” खुंबरी एकाएक मुस्कराकर कह उठी-“देवराज चौहान से मिल आए?”

जगमोहन बेड पर जा बैठा।

“क्या हुआ?” खुंबरी उसके गम्भीर चेहरे को देखकर बोली-“क्या बात हुई देवराज चौहान से?”

“अच्छी बात नहीं हुई।”

“बोलो तो।”

“देवराज चौहान कहता है कि हम यहां की जान लेने आए थे और तुम खुंबरी से प्यार कर बैठे।”

खुंबरी के चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई।

“तुमने क्या कहा?”

“मुझे खुंबरी से प्यार हुआ है तो हुआ है।” जगमोहन गम्भीर था-“ये बात टल नहीं सकती।”

“तो देवराज चौहान तुम्हारे साथ नहीं, रानी ताशा के साथ है।” खुंबरी बोली।

“वो कहता है कि सदूर के जन्म की उसे याद आ चुकी है। खुंबरी ने उन्हें अलग करके गलत किया।”

“फिर तो तुम और देवराज चौहान अब अलग हो गए।”

“हम कभी भी अलग नहीं हो सकते।” जगमोहन ने गम्भीर नजरों से को देखा-“तुम मेरी हो। मैं तुमसे प्यार करूंगा और देवराज चौहान, रानी ताशा का साथ देते हुए तुम्हारी जान लेने की कोशिश करेगा।”

“वो लोग कुछ भी नहीं कर सकते। ताकतों ने उन्हें कैद में रखा हुआ है, वे उन्हें वहां से बाहर भी नहीं आने देंगी। मुझ तक आ पहुंचना तो बहुत बड़ी बात है। हमारी जिंदगी मजे से कटेगी।”

जगमोहन ने खुंबरी को देखकर कहा।

“मैं ये नहीं चाहता कि वो सब लम्बे समय तक कैद में रहें।”

“वो लम्बे समय तक कैद में नहीं रहेंगे।” खुंबरी बोली-“जल्दी ही ताकतें उनका जीवन समाप्त कर देंगी।”

“नहीं।” जगमोहन के होंठों से निकला-“ऐसा सोचना भी मत।”

खुंबरी ने हैरानी से जगमोहन को देखा।

जगमोहन के चेहरे पर व्याकुलता थी।

“मैं उनमें से किसी की भी मौत नहीं चाहता।”

“क्यों?”

“मुझे उनसे लगाव है। देवराज चौहान मेरा सब कुछ है। नगीना भाभी, मोना चौधरी, रानी ताशा, सोमारा...”

“देवराज चौहान को तो तुमसे लगाव नहीं है। वो रानी ताशा का साथ दे रहा...”

“इसमें देवराज चौहान की नहीं, मेरी ही गलती है।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“तुम्हारी गलती? वो कैसे जगमोहन?”

“हम सब तुम्हें मारने, तुमसे बदला लेने आए थे और मैं तुमसे प्यार कर बैठा।”

“ये तो गलत बात नहीं हुई। तुम्हारी-मेरी दुश्मनी ही कहां थी। हम तो एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे। ऐसे में हममें प्यार हो जाना साधारण का बात है। देवराज चौहान और रानी ताशा अपने मन में मेरे लिए बैर रखे हुए...”

“उनका बैर गलत भी तो नहीं है।”

खुंबरी ने गहरी नजरों से जगमोहन को देखा।

“तुमने भी तो उन दोनों को अलग कर दिया...”

“मैंने नहीं, मेरी ताकतों ने...”

“बात तो एक ही है खुंबरी।” जगमोहन गम्भीर दिख रहा था-“ताकतें तुम्हारी ही तो हिस्सा हैं। अब वो उस बात का बदला लेना चाहते हैं तुमसे। उन्हें गलत भी नहीं कहा जा सकता।”

“तब उन दोनों को जुदा करना पड़ा, तभी तो आज मैं वापस सदूर पर पहुंच सकी। ये करना मेरी मजबूरी थी।”

“और आज देवराज चौहान और रानी ताशा की मजबूरी है तुमसे बदला लेना।”

“तुम कुछ बदले से दिख रहे हो मुझे।”

“मुझे गलत मत समझो। मैं इस वक्त जो भी बात कर रहा हूं साफ दिल से कर रहा हूं।”

“मुझे गलत मत कहो कि राजा देव और रानी ताशा को जुदा करके मैंने गलत काम किया है। वो मेरी तब की मजबूरी थी।”-

“मुझे यकीन है जरूर मजबूरी होगी, तभी तुमने ऐसा किया। मैं तुम्हें भी गलत नहीं कह रहा। बिना वजह तुम उन दोनों को क्यों अलग करने लगी। हम सब ही अपनी-अपनी जगह ठीक हैं।”

“देवराज चौहान अगर तुम्हारा सच्चा साथी होता तो मेरे प्रति अपने क्रोध को भूल जाता। भूल जाता कि खुंबरी ने कभी उनके साथ गलत किया था। ये ही याद रखता कि अब जगमोहन और खुंबरी में प्यार हो चुका है।”

“देवराज चौहान मेरा सच्चा साथी है। वो गलत नहीं है। हम सब अपने-अपने हालातों में जकड़े पड़े हैं। हर कोई अपनी जगह पर ठीक है। हमें अपना प्यार जरूरी लगता है तो उन्हें अपना बदला।”

“वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।” खुंबरी ने दृढ़ स्वर में कहा-“उनकी ही जान मेरे हाथों में है।”

“मेरी खातिर उन्हें कुछ मत कहना।”

“मैं उन्हें ज्यादा देर कैद में भी नहीं रख सकती। पांच सौ सालों से, जब तक मैं पृथ्वी पर जीवन जीती रही, ताकतों को खून बहते देखना नहीं मिला, जिसकी कि वो शौकीन हैं। जल्दी ही वो खून बहते देखना चाहेंगी। खून को देखकर उन्हें खुशी मिलती है। ताकतों की इच्छा को पूरा करना मेरा फर्ज है।”

“नहीं खुंबरी नहीं। उन्हें मारना नहीं।” जगमोहन तड़प उठा।

खुंबरी गम्भीर दिखी।

“मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हारी दुनिया मेरे साथ है। तुम उनके लिए चिंतित क्यों हो?”

“तुम्हारी दुनिया भी तो मेरे साथ है फिर तुम ताकतों को खून दिखाने के बारे में क्यों सोचती हो?” जगमोहन कह उठा।

“वो ताकतें मेरे अधीन हैं। उनकी जरूरत पूरी करना मेरा ही काम है।”

“इसी तरह देवराज चौहान और बाकी लोग मेरे साथी हैं। उनका ध्यान रखना भी मेरा ही काम है।”

“वो तुम्हारी खुंबरी की जान लेने आए हैं।”

“परंतु ले नहीं सकते। वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।” जगमोहन परेशान-सा कह उठा।

खुंबरी ने हौले-से सिर हिलाया फिर बोली।

“मैं कोशिश करूंगी कि उन सबको कुछ न हो।”

“तुम जो चाहोगी, वो ही होगा। यहाँ तुम्हारे इशारे के बिना कुछ नहीं होता।”

“बहुत कुछ हो जाता है।” खुंबरी एकाएक मुस्कराई-“जानना चाहोगे?”

जगमोहन ने खुंबरी को देखा।

“दोलाम मेरा बहुत पुराना सेवक है। डुमरा ने पांच सौ सालों का श्राप दिया। वो पांच सौ साल मैंने पूरे कर लिए। उससे भी पुराना है दोलाम। उसने मेरी और ताकतों की बहुत सेवा की। मन से सेवा की। कभी कुछ नहीं मांगा। लेकिन अब मांगता है।”

“तो उसे दे दो।” जगमोहन ने सहज भाव में कहा।

“क्या दे दूं?”

“जो भी वो चाहता है।”

“वो अपनी सेवा के बदले मुझे मांगता है।”

“क्या?” जगमोहन के चेहरे पर हैरानी उभरी-“उसकी इतनी हिम्मत।”

“और तुम कहते हो कि यहां मेरे इशारे के बिना कुछ नहीं होता। लगता है अब खुंबरी का इशारा भी काम का नहीं रहा।”

“क्या मतलब?”

“दोलाम की मांग पर मैं क्रोधित हो उठी। मैंने ताकतों से कहा कि दोलाम की जान ले ली जाए।”

“ठीक किया।”

“परंतु ताकतों ने मेरी बात नहीं मानी। दोलाम सेवा करते-करते कब राजदार बन गया, इसका पता ही नहीं चला। परिवार का हिस्सा बन गया दोलाम। ताकतों ने जवाब दिया कि ये मेरा और दोलाम का व्यक्तिगत मामला है।”

“तुम्हारा हुक्म नहीं माना ताकतों ने?”

“ताकतों ने कहा कि दोलाम ने कोई गलती नहीं की कि उसकी जान ली जाए।”

“ताकतें तुम्हारी बात से इंकार कैसे कर सकती हैं?”

“कर सकती हैं, अगर मेरी कोई बात पूरे तौर पर उन्हें गलत लगे और दोलाम की जान लेना उन्हें गलत लग रहा है। एक मामूली सेवक के लिए ताकतों ने मेरी बात नहीं मानी।”

“तुम ताकतों को छोड़ दो।”

“नहीं। ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती। ताकतों की मेहरबानी से मेरा जीवन बहुत आसानी से बीत रहा है। मेरे बिना ताकतें नहीं और ताकतों के बिना खुंबरी नहीं।” खुंबरी ने मुस्कराकर कहा- “ताकतों को मेरी जरूरत है तो मुझे भी ताकतों की जरूरत है। ताकतों ने हमेशा मेरा भला चाहा, नहीं तो आज खुंबरी मिट चुकी होती।”

“लेकिन दोलाम...?”

“मैंने दोलाम के साथ नर्मी इस्तेमाल की। उससे कहा कि वो धरा का हाथ थाम ले।”

“फिर?”

“दोलाम ने इंकार कर दिया। कहता है उसे वो ही शरीर चाहिए, जिसकी देखभाल उसने पांच सौ सालों तक की है। मेरे कंधों पर पांव रखकर वो सदूर के राजा बनने तक का सफर तय करना चाहता है। मेरा भी मालिक बनने की इच्छा रखता है।”

जगमोहन के चेहरे पर कठोरता नाच उठी-“दोलाम को यहां से निकाल दो।”

“क्या?”

“दोलाम को बाहर निकाल दो कि दोबारा वो यहां न आए।” जगमोहन के स्वर में क्रोध था।

“ये सम्भव नहीं। ताकतों के साथ जो जुड़ जाता है फिर वो अलग नहीं हो सकता। ताकतें पसंद नहीं करतीं कि उनके राज बाहर जाएं। मैं तो ताकतों से अलग हो सकती हूं परंतु दोलाम को ऐसी इजाजत नहीं है।” खुंबरी ने कहा।

“तुमने दोलाम को क्या जवाब दिया?”

“यही कि मैं जगमोहन को नहीं छोड़ सकती। जगमोहन से मुझे प्यार हो चुका है। लेकिन अभी भी वो आशा रखता है कि मैं तुम्हें छोड़कर उससे प्यार करने लगूंगी। दोलाम बेवकूफ है। उसने बहुत भारी मेहनताना मांग लिया है। खुंबरी को मांगा। अक्ल खराब हो गई उसकी परंतु धरा का ख्याल है कि इस आड़ में दोलाम कुछ और चाहता है।”

“कुछ और-मैं समझा नहीं?”

“मतलब कि दोलाम जानता है कि उसकी ये बात पूरी नहीं होगी, फिर भी उसने मुझे पाने की ये मांग रखी। धरा का ख्याल है कि मेरे इंकार के बाद, दोलाम अपनी नाराजगी की आड़ में कुछ और करने की इच्छा रखता है।”

“कुछ और क्या?”

“ये ही तो पता नहीं।”

“ताकतें तुम्हें बता सकती हैं कि दोलाम की असल इच्छा क्या है।” जगमोहन बोला।

“जो परिवार का सदस्य बन जाता है, ताकतें उस पर नजर नहीं रखतीं और उसकी बात दूसरे को नहीं बताती। इसलिए इस मामले में ताकतें दखल नहीं देंगी। दोलाम का मामला मुझे ही देखना पड़ेगा।”

“ये गलत है। तुम ताकतों की मालकिन हो और दोलाम मामूली-सा सेवक...”

“अब वो मामूली नहीं रहा। ये एहसास मुझे तब हुआ जब ताकतों ने दोलाम की जान लेने से मना कर दिया।” खुंबरी का चेहरा सख्त हो गया...“मजबूरन मुझे इस बारे में ठोरा से बात करनी होगी।”

“ठोरा?”

“सबसे बड़ी ताकत।” खुंबरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“उसका फैसला ही अंतिम होता है। वो ताकतों को कंट्रोल में रखता है और उन्हें समूह में रखता है। ठोरा ताकतों के बीच राजा जैसा है।”

“क्या बात करोगी ठोरा से?”

खुंबरी ने सोच भरी निगाहों से जगमोहन को देखा।

जगमोहन की निगाह खुंबरी पर थी।

कुछ लम्बी खामोशी के बाद खुंबरी ने कहा।

“ठोरा से कभी भी मुझे बात करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि मेरी जरूरतें अन्य ताकतें ही पूरा कर देती हैं। लेकिन अब ठोरा से बात होगी कि उसके लिए मैं महत्वपूर्ण हूं या दोलाम?”

“वो तुम्हारी बात गम्भीरता से सुनेगा?”

“जरूरी है उसके लिए मेरी बात को गम्भीरता से लेना। मैं ताकतों की मालिक हूं।”

“वो न माना दोलाम को मारने के लिए तो?”

“उसे ठोस वजह बतानी होगी इंकार की।” खुंबरी के स्वर में तीखापन आ गया।

“वो न माना तो तुम क्या करोगी?”

“चुप तो बैठने से रही।”

तभी धरा ने भीतर प्रवेश किया और उनकी बातें सुनने लगी।

“तुम्हें ये पहले से तय कर लेना चाहिए कि ठोरा के इंकार पर तुम क्या करोगी?” जगमोहन बोला।

जवाब में खुंबरी सिर हिलाकर रह गई।

जगमोहन के चेहरे को देखकर स्पष्ट लग रहा था कि उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा है।

“ताकतें दोलाम की जान लेने को तैयार नहीं तो ये समस्या वाली बात नहीं है।” जगमोहन ने कहा।

“क्या मतलब?” खुंबरी के होंठों से निकला।

“दोलाम की मांग बहुत गलत है। मैं उसकी जान ले सकता हूं।”

“तुम?” खुंबरी की आंखें सिकुड़ी।

“आसानी से।”

“नहीं। तुम्हारे द्वारा ऐसा करना ठीक नहीं होगा। ताकतों को बुरा लगेगा। वो तुम पर वार कर देंगी।”

“तुम मुझे प्यार करती हो। ऐसे में ताकतें मेरी जान कैसे ले सकती हैं।”

“ले लेंगी। ताकतें परिवार के बाहर के लोगों को पसंद नहीं करती। वो इस बात को भी अच्छा नहीं समझ रही होंगी कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ। तुमने दोलाम को मारा तो ताकतें तुम्हें नहीं छोड़ेंगी।”

“पर ताकतें तो तुम्हें कहती हैं कि ये तुम्हारा और दोलाम का व्यक्तिगत मामला है।”

“हां। मेरा और दोलाम का व्यक्तिगत मामला। इसमें तुम्हारे दखल देने की गुंजाईश नहीं है।”

जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।

“दोलाम मुझे पाने की इच्छा रखता है। ऐसे में अब वो ठीक से मेरी सेवा नहीं कर सकता। मेरे मन में उसके लिए फर्क आ चुका है। अब वो मुझे अच्छा नहीं लगता। परंतु ताकतें उसके खिलाफ नहीं हैं।”

“तुम दोलाम की जान ले सकती हो। ऐसे में ताकतें तुम्हें कुछ नहीं कह सकेंगी।”

“मैं मन-ही-मन इसी बात पर विचार कर रही हूं। शायद दोलाम की जान मुझे ही लेनी पड़े।”

खामोशी खड़ी धरा कह उठी।

“ऐसा करने की जरूरत नहीं है। दोलाम की जान लेने का आसान रास्ता हमारे पास है।”

खुंबरी और जगमोहन ने धरा को देखा।

“कैसा रास्ता?”

“बबूसा।” धरा के चेहरे पर मुस्कान उभरी-“बबूसा ये काम करेगा।”

“बबूसा?”

“जरूर करेगा।” धरा ने उसी अंदाज में कहा।

“मतलब कि तुम बबूसा को इस काम के लिए तैयार कर लोगी।” खुंबरी ने सोच भरे स्वर में कहा।

धरा ने सहमति से सिर हिला दिया।

“लेकिन इसमें बबूसा को खतरा है।” जगमोहन बोला-“उसने दोलाम को मारा तो ताकतें उसे मार देंगी।”

“हमारा काम तो हो जाएगा।” खुंबरी ने कहा।

“बबूसा की जान खतरे में डाल कर।”

“क्या फर्क पड़ता...”

“मुझे फर्क पड़ता है।” जगमोहन ने तेज स्वर में कहा-“मैं बबूसा की मौत नहीं चाहता।”

“बबूसा को कुछ नहीं होगा। उसे बचा लिया जाएगा।” धरा के सामान्य स्वर में कहा।

“कैसे?”

“ये जानना तुम्हारा काम नहीं है। मुझ पर भरोसा रखो।” धरा बोली-“बबूसा सुरक्षित रहेगा।”

“इस तरह मैं तुम पर भरोसा नहीं कर सकता। ये बबूसा के जीवन का सवाल है।”

“जगमोहन।” धरा ने शांत स्वर में कहा-“बबूसा बिना वजह दोलाम को नहीं मारेगा। इसकी वजह होगी बबूसा के पास। दोलाम और बबूसा में मैं झगड़ा खड़ा कर दूंगी। तब दोनों एक-दूसरे को मार देना चाहेंगे। ताकतें सब कुछ देख रही होंगी। ऐसे में बबूसा, दोलाम की जान ले लेता है तो ताकतें इसे दोलाम और बबूसा का व्यक्तिगत मामला मानेंगी। बीच में नहीं आएगी।”

“तब भी ताकतों ने बबूसा की जान ले ली तो...?”

“ऐसा नहीं होगा। मुझ पर भरोसा रखो।”

“दोलाम के साथ मैं भी झगड़ा खड़ा कर सकता...”

“तुम्हारे लिए ये ठीक नहीं होगा। तुम खुंबरी के प्रेमी हो। तुम्हारा दोलाम से झगड़ना ठीक नहीं। बबूसा दोलाम से झगड़ेगा तो ताकतों को सब कुछ सामान्य लगेगा।” धरा ने कहा।

“ये बातें बाद में देखेंगे।” खुंबरी बोली-“पहले मैं ठोरा से बात करूंगी। शायद बात यूं ही बन जाए।”

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खुंबरी तेज-तेज कदम उठाती आगे चल रही थी, जैसे जल्दी से पहुंच जाना चाहती हो जहां जाना है उसे। उसके पीछे धरा कदम बढ़ाती आ रही थी। खुंबरी के चेहरे पर दृढ़ता थी और धरा के चेहरे पर सोचें नाच रही थीं। दोनों में कोई बात नहीं हो रही थी। उनके कदमों की मध्यम-सी आवाजें उठ रही थीं। उस जगह के भीतर के कई रास्तों को दोनों पार कर रही थीं कि धरा कह उठी।

“बटाका द्वारा भी तो तू ठोरा से बात कर सकती थी।”

“मैं ठोरा को तकलीफ नहीं देना चाहती। बटाका छूकर ठोरा को बुलाती तो ठोरा को उठकर आना पड़ता।”

“बहुत चिंता है तुझे ठोरा की।”

“वो बड़ी ताकत है। उसे ज्यादा इज्जत देनी चाहिए।”

दोनों ने उस कमरे में प्रवेश किया जहां मंत्रों वाले पानी का कटोरा रखा था।”

खुंबरी बिना रुके आगे बढ़ी और मंत्रों वाले कटोरे के पानी में हाथ डाल दिया।

“किसने मेरे सिर पर हाथ मारा।” उसी पल ठोरा को गुर्राती आवाज वहां गूंजी।

“मैं हूं ठोरा। खुंबरी।” खुंबरी ने शांत स्वर में कहा।

“ओह, महान खुंबरी।” ठोरा का स्वर एकाएक नर्म पड़ गया-“तुमने क्यों तकलीफ की। मुझे पुकार लेती।”

“मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है।”

“महान खुंबरी की सेवा के लिए ठोरा हमेशा हाजिर है। हुक्म करो।”

“दोलाम ने मेरे लिए समस्या खड़ी कर दी है।” खुंबरी के स्वर में गुस्सा आ गया।

ठोरा की आवाज नहीं आईं।

“वो मेरे साथ सम्बंध बनाना चाहता है। जबकि उसे याद रखना चाहिए कि वो सिर्फ सेवक है महान खुंबरी का। वो...”

“दोलाम मामूली-सा सेवक जरूर था परंतु उसने इतने तन-मन से तुम्हारी और हम ताकतों की सेवा की कि खुश होकर हमने उसे आए अपने परिवार में शामिल कर लिया है। दो सौ साल से वो परिवार का सदस्य है।”

“मेरी नजरों में वो सिर्फ सेवक है।” खुंबरी गुस्से से कह उठी।

“दोलाम हमारे परिवार का सदस्य बन चुका है महान खुंबरी। उसने खुद को हम सबकी सेवा में समर्पित कर दिया है। हमने कभी भी उसके कर्मों में कोताही नहीं देखी। वो बहुत ईमानदार...”

“वो मेरे साथ सोना चाहता है ठोरा।” खुंबरी गुस्से से चीख उठी।

“महान खुंबरी।” ठोरा की शांत आवाज कमरे में उभरी-“इसमें तो कोई परेशान होने वाली बात नहीं है। दोलाम का हक बनता है ये। उसने पांच सौ सालों तक तुम्हारे शरीर की देखभाल...”

“ठोरा।” खुंबरी गुर्रा उठी-“मैं जगमोहन से प्यार करती हूं।”

“तो दोलाम से भी प्यार कर लो।”

“ये सम्भव नहीं। जगमोहन से मुझे प्यार है, दोलाम से नहीं।” खुंबरी के चेहरे पर गुस्सा चमक रहा था।

“तुम्हें सोचना है कि तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण कौन है पृथ्वी से आया वो इंसान या दोलाम?”

“जगमोहन मेरे लिए महत्वपूर्ण है।”

“मैं तुमसे सहमत नहीं हूँ। वो इंसान हमारे लिए अंजान है और सदूर से दूर पृथ्वी का है। तुम्हारे व्यक्तिगत मामले में दखल देने का हक नहीं है ताकतों को, परंतु अब बात चली है तो कह देना बेहतर होगा कि उस इंसान के साथ तुम्हारा सम्बंध कायम रहे, ये बात ताकतों को पसंद नहीं। परंतु हम तुम्हारे काम में दखल भी नहीं देंगे। दोलाम हमारे परिवार का सदस्य है। अगर तुम उससे प्यार करो तो ताकतें खुश होंगी।”

“ये मेरे बस में नहीं है। मैं जगमोहन को प्यार...”

“शरीर की भूख का ये दूसरा नाम है प्यार। हम ताकतें तुमसे बेहतर जानती हैं कि प्यार कुछ नहीं होता। दिमाग पर पर्दा छा जाता है जिसे कि इंसान प्यार का नाम दे देता है। ऐसा ही पर्दा इस वक्त तुम्हारे दिमाग पर बिछ चुका है। उस इंसान को अभी कुछ हो जाए, उसके हाथ कट जाएं, टांग कट जाएं। मुंह टेढ़ा हो जाए। किसी वजह से वो चलने के काबिल न रहे तो तुम्हारा प्यार अचानक ही खत्म हो जाएगा और तुम उससे पीछा छुड़ाने की सोचोगी।”

“वो स्वस्थ इंसान है, वो...”

“जब वो अचानक अस्वथ हो जाएगा तो तबकी बात बता रहा हूँ।”

“मैं जगमोहन से प्यार करती हूं-मैं...”

“दोलाम से प्यार कर लो। ये मेरी राय है महान खुंबरी।” ठोरा की आवाज आई।”

तभी चुप खड़ी धरा कह उठी।

“ठोरा। हम तेरी राय सुनने नहीं आईं। तेरे पास अपनी समस्या लेकर आए हैं।”

“समस्या बताओ।”

“दोलाम से पीछा कैसे छूट सकता है?”

“ये विचार ही गलत है। वो परिवार का सदस्य है।” ठोरा का स्वर सुनाई दिया।

“मुझे दोलाम से पीछा छुड़ाना है।” धरा ने शांत स्वर में कहा।

“अगर ऐसा कुछ किया गया तो ताकतों को पसंद नहीं आएगा।”

“दोलाम के मन में ईमानदारी होती तो वो मेरा हाथ थाम लेता। मैं भी तो खुंबरी हूं।”

“ये दोलाम की मर्जी पर है।”

“दोलाम की जगह बहुत छोटी है ठोरा। बेशक वो परिवार का सदस्य बन गया है, पर खुंबरी का मुकाबला नहीं कर सकता। वो इतना बड़ा नहीं हुआ कि खुंबरी का शरीर पा ले। खुंबरी तुम सबकी मालिक है।”

“हां। महान खुंबरी हमारी मालकिन है।” ठोरा के शब्द कानों में पड़े।

“दोलाम की वजह से खुंबरी परेशान हो रही है।”

“दोलाम की वजह से नहीं। उस इंसान की वजह से जो पृथ्वी से आया है। दोलाम हमारे परिवार का सदस्य है। तुम्हारे दिमाग पर बिछे प्यार के पर्दे ने दोलाम को पीछे धकेल दिया है। तुम...”

“तुम दोलाम के हक में बोल रहे हो।” धरा की आंखें सिकुड़ी।

“क्योंकि वो सही है। उसके पास हक है तुम्हें पाने का।”

“मुझे दोलाम की मांग पसंद नहीं।” धरा ने सख्त स्वर में कहा।

ठोरा की जवाब में आवाज नहीं आई।

“जवाब दे ठोरा। मुझे दोलाम से प्यार करना पसंद नहीं।” धरा पुन: बोली।

“अब मैं क्या कह सकता हूं ये महान खुंबरी का व्यक्तिगत मामला है। मैं तो सिर्फ राय ही दे सकता हूं।”

“मेरे इंकार पर दोलाम क्या करेगा?” धरा ने पूछा।

“मैं नहीं बता सकता।”

“क्यों?”

“तुम तो जानती हो कि परिवार के सदस्यों की बातें एक-दूसरे को नहीं बताई जातीं।”

“ये कहकर तू दोलाम की बातों को छिपा रहा है।”

“तुम बेहतर जानती हो कि ताकतें किस नियम से काम करती हैं।” ठोरा की आवाज आई।

“मेरा विश्वास है कि मेरे इंकार पर दोलाम जरूर कोई कदम

उठाएगा।”

ठोरा की आवाज नहीं आई।

उसी पल कठोर स्वर में कह उठी।

“ठोरा। मैं तुझे हुक्म देती हूं कि दोलाम की जान ले ले।”

“मैं हुक्म मानने से इंकार करता हूं।”

“क्यों?”

“परिवार के सदस्य की जान हम बिना वजह नहीं ले सकते। ताकतों की नजरों में दोलाम की मांग सही है।”

खुंबरी दांत पीसकर रह गई। जबकि धरा मुस्कराकर बोली।

“फिर तो तेरे पास आना बेकार रहा ठोरा।”

ठोरा की आवाज नहीं आई।

“तेरे को इस बात का डर नहीं कि इस इंकार पर खुंबरी ताकतों को अकेला भी छोड़ सकती है।” खुंबरी बोली।

“हमें विश्वास है कि खुंबरी कभी भी ऐसा नहीं करेगी।” ठोरा की आवाज वहां उभरी।

खुंबरी ने उसी पल मंत्रों वाले पानी के कटोरे से हाथ बाहर निकाल लिया।

धरा ने खुंबरी को देखा।

“जो करना है अब हमें ही करना होगा।” खुंबरी सख्त स्वर में कह उठी।

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दोलाम अपने सोने वाले कमरे में कुर्सी पर बैठा था। आंखें बंद थीं। चेहरे से स्पष्ट लग रहा था कि वो गहरी सोचों में है। ये साधारण-सा कमरा था जहां तख्त जैसा बेड था। उस पर बिस्तरा बिछा था। अंदर-बाहर कहीं से भी कोई आवाज नहीं उठ रही थी। वहां शांति का माहौल था। सांस लेने की रफ्तार से, मध्यम अंदाज में दोलाम का सीना उठ-बैठ रहा था। कभी उसका चेहरा सामान्य हो जाता तो कभी तनाव से भरा दिखने लगता।

इसी प्रकार कुछ लम्बा वक्त गुजरा कि दोलाम के कानों ने कदमों की आहटें महसूस कीं। आहटें हर पल समीप आतीं जा रही थीं। दोलाम को आहटों की, कदमों की पहचान हो चुकी थी। वो धरा के कदमों की आवाजें थीं। परंतु दोलाम ने आंखें न खोलीं। मन में विद्रोह की लहर उठी।

तभी कदमों की आहटें कमरे के भीतर प्रवेश कर आईं और थम गईं।

कई पलों तक शांति बनी रही।

फिर आहटें आगे बढ़ी और उसके समीप आ ठिठक गईं। अगले ही पल उसने सिर के बालों में उंगलियां फिरती महसूस हुईं। साथ ही धरा का मध्यम-सा स्वर कानों में पड़ा।

“मेरे प्यारे दोलाम। आंखें खोलो। मैं आ गई हूं।”

दोलाम ने आंखें खोल दी और कुर्सी से उठकर धरा की तरफ पलटा।

धरा मुस्कराती-सी उसे ही देख रही थी। वो आगे बढ़ी और दोलाम का हाथ थाम लिया।

“ये तुम क्या कर रही हो।” दोलाम ने अपना हाथ पीछे खींच लिया।

“मैं तुम्हारे पास आ गई हूं दोलाम। अपने को तुम्हारे हवाले करना चाहती...”

“मैंने तुम्हारे बारे में ऐसी इच्छा कभी नहीं रखी।”

“मैं तुम्हें बहुत खुश रखूंगी।” धरा ने मदमस्त स्वर में कहा।

“मैं बता चुका हूं कि मुझे सिर्फ महान खुंबरी चाहिए।” दोलाम ने आँखें सिकोड़कर कहा।

“मैं महान खुंबरी ही तो हूं।”

“मुझे दूसरे शरीर वाली महान खुंबरी चाहिए।”

“नादान मत बनो दोलाम। मेरा शरीर ज्यादा अच्छा है। आज तक किसी मर्द ने इसे छुआ तक नहीं। मेरा यकीन करो मैं तुम्हें बहुत आराम दूंगी। एक बार मुझे आजमा कर तो देखो।” धरा ने प्यार से कहा।

“तुम मुझसे ऐसी बातें न करो।”

“मुझमें ऐसी क्या बुराई तुम्हें दिखती है?”

“तुम अच्छी हो। परंतु मैं दूसरे शरीर वाली महान खुंबरी को चाहता हूँ।” दोलाम ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वो खुंबरी तुम्हें नहीं मिल सकती।” धरा गम्भीर हो उठी-“वो जगमोहन को नहीं छोड़ सकती।”

दोलाम के दांत भिंच गए।

“मुझे बांहों में ले लो दोलाम।”

“तुम मेरे पास से चली जाओ।”

“अपने मन में भ्रम मत रखो।” धरा ने कहा-“उस खुंबरी ने तुम्हारे लिए इंकार भेजा है।”

दोलाम की नजरें उसी पल धरा के चेहरे पर जा टिकी।

“इंकार भेजा है।” दोलाम ने शब्द दोहराए।

“हां। तभी तो कह रही हूं कि मेरे संग जोड़ी बना लो। हम दोनों बहुत खुश रहेंगे।” धरा मुस्कराई।

“तो महान खुंबरी को दोलाम से ज्यादा जगमोहन पसंद है।” दोलाम एकाएक शांत-सा दिखने लगा।

“जगमोहन से पहले तुम उसकी जिंदगी में आ जाते तो जुदा बात थी। अब वो तुम्हारी बात नहीं मान सकती।”

“ठीक है।” दोलाम ने सिर हिलाया-“मैं समझ गया।”

“मैं हूं न तुम्हारी सेवा के...”

“मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं।” दोलाम ने कठोर स्वर में स्पष्ट कहा।

धरा दोलाम के चेहरे को कुछ पल देखती फिर बोली।

“उस खुंबरी ने तुम्हें मना कर दिया। मुझे तुम इंकार कर रहे हो। अब तुम क्या करोगे?”

दोलाम ने धरा को शांत-कठोर नजरों से देखा।

“मैं समझा नहीं?” एकाएक दोलाम मुस्करा पड़ा।

“खुंबरी ने तुमसे प्यार करने को इंकार कर दिया है।” धरा पुन: बोली-“अब तुम क्या करोगे?”

“कुछ भी नहीं।” दोलाम के होंठों पर मुस्कान छाई थी-“जैसे मैं रह रहा था, वैसे ही रहूंगा।”

“तुम्हारी बात गले से नीचे नहीं उतर रही।” धरा बेहद शांत थी।

दोलाम, धरा को मुस्कराते हुए देखता रहा।

“तुमने अचानक ही के सामने इतनी बड़ी मांग रख दी। खुंबरी ने स्पष्ट इंकार कर दिया है तुम्हें। इस पर तुम कहते हो कि पहले की तरह सेवा करते रहोगे। ये बात मानने लायक तो है नहीं।”

“तुम्हारे ख्याल से मैं कुछ करूंगा।”

“बेशक।” धरा का शांत स्वर दृढ़ता से भर गया।

“क्या?”

“ये तो तुम ही जानते हो कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है।”

“तुम गलत सोच रही हो। मैं ऐसा कोई इरादा नहीं रखता। ताकतों के खिलाफ तो मैं कुछ भी नहीं कर...”

“ताकतों के खिलाफ तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते। परंतु खुंबरी के खिलाफ तो कर सकते हो।”

दोलाम के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। वो धरा को देखने लगा।

“खुंबरी के खिलाफ कुछ न भी करो, जगमोहन के खिलाफ तो कर सकते हो।” धरा ने पुन: कहा।

“तो तुम ऐसा सोचती हो।”

“अब तो तुम्हारे द्वारा आगे के ये ही हालात बनते हैं। मुझे लगता है कि तुम ऐसा कुछ जरूर करोगे।”

“मैंने ऐसा कुछ भी नहीं सोचा।”

धरा ने होंठ सिकोड़े।

“परंतु इतना जरूर कहूंगा कि महान खुंबरी का पहला हक मेरा बनता था। अगर उसे प्यार करना ही था तो मेरे से करती। मैंने पांच सौ बरस तक खुंबरी के शरीर का ध्यान रखा। शरीर को खराब नहीं होने दिया। मैं शरीर का ध्यान नहीं रखता और वो खराब हो जाता तो आज जगमोहन खुंबरी के खराब शरीर से प्यार न करता। दूर भागता। आज खुंबरी सुंदर है तो मेरी वजह से। मेरी ईमानदारी की वजह से। उसे चाहिए था कि ईनाम में वो खुद को मेरे सामने पेश करती। ऐसा नहीं किया तो कोई बात नहीं। वो मेरी न बनती तो तब भी चल जाता। खराब बात तो ये हुई कि उसने अपना शरीर जगमोहन को सौंप दिया। महान खुंबरी को अगर प्यार की जरूरत थी तो मुझे इशारा कर सकती थी। मैं इतना बुरा तो नहीं।”

“तुमने ईमानदारी से खुंबरी की सेवा की। तभी तो इतना लम्बा जीवन पाया है तुमने। ताकतों ने तुम्हें स्वस्थ रखा और तुम्हारी उम्र भी बढ़ाती जा रही हैं। तुम्हें मरने नहीं दिया...”

“क्योंकि मैंने दिल से हर तरह की सेवा की है। मेरी सेवा में कमी रहती तो ताकतें मुझमें दिलचस्पी नहीं लेतीं।”

“सच में तुमने ताकतों का दिल जीत लिया है।” धरा ने सोच-भरे स्वर में कहा।

“ये बात कैसे पता चली?”

धरा चुप रही।

“महान खुंबरी ने मेरे बारे में ताकतों से जरूर बात की होगी।” दोलाम अर्थपूर्ण स्वर में कह उठा-“कहा होगा कि दोलाम ऐसा कहता है, वैसा कहता है। तो तब ताकतों ने क्या कहा?”

धरा, दोलाम को देखती रही।

दोलाम के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई।

“मैं तो तुमसे बात बनाने आई थी दोलाम।” धरा ने बेहद शांत स्वर में कहा।

“मुझे महान खुंबरी के रूप का साथ नहीं, महान खुंबरी का साथ चाहिए। इसलिए बात नहीं बन सकती।”

“खुंबरी का स्पष्ट इंकार मैंने तुम्हारे पास पहुंचा दिया है।” धरा ने सामान्य स्वर में कहा और बाहर निकल गई।

दोलाम के चेहरे पर ढेर सारी कठोरता बिछती चली गई।

‘अब तुम्हें दोलाम की सेवा बहुत महंगी पड़ेगी महान खुंबरी।’ दोलाम बड़बड़ा उठा। फिर एक गिलास कारू (शराब) का भरा और उसे थामे कुर्सी पर बैठा क्रोध भरे अंदाज में घूंट भरने लगा। उसके अंग-अंग में गुस्सा भरा दिख रहा था।

गिलास अभी आधा ही खाली हुआ था कि बबूसा ने भीतर प्रवेश किया।

दोलाम की कठोर निगाह बबूसा की तरफ उठी।

बबूसा मुस्कराकर कह उठा।

“बहुत गुस्से में लग रहे हो।”

दोलाम ने बिना कुछ कहे कारू का घूंट भरा।

“धरा अभी तुम्हारे पास से गई है। मैं बातें न सुन सका। लगता है वो कोई बुरी बात कह गई है।”

दोलाम के चेहरे पर सख्ती उभरी रही।

“कहीं वो तुम्हें स्पष्ट इंकार तो नहीं कर गई?” बबूसा के चेहरे मुस्कान थी।

“ऐसा ही समझो।” दोलाम गुर्राया।

“क्या कहा धरा ने?”

“महान खुंबरी को मेरे से ज्यादा जगमोहन प्यारा है।”

“वो तो मैंने पहले ही कहा था कि खुंबरी तेरा हाथ नहीं थामने वाली। उसकी नजरों में तू मामूली-सा सेवक है।”

“मैं मामूली नहीं हूं।”

“तेरे सोचने से क्या होता है दोलाम।”

“मैं अगर मामूली होता तो खुंबरी ने ताकतों के द्वारा मेरी जान ले ली होती।”

“क्या मतलब?”

“मेरा ख्याल है कि ताकतों ने मेरी जान लेने से खुंबरी को मना कर दिया है।”

“ऐसा धरा ने कहा?”

“कहा तो नहीं, पर उसकी बातों से मुझे ही आभास हुआ।”

“अगर ये बात सच है तो तेरे हक में अच्छा ही हुआ। परंतु मुझे जरा भी दुख नहीं कि खुंबरी ने तेरा हाथ थामने से इंकार कर दिया। मैं तो पहले ही जानता था कि ऐसा ही होगा। पर तू मन में भ्रम पाले हुए था कि खुंबरी तेरा हाथ थामने को तैयार हो जाएगी। अब बोल मेरा दोस्त बनता है दोलाम?” बबूसा गम्भीर था।

दोलाम की निगाह बबूसा की तरफ उठी।

“हम दोनों मिलकर खुंबरी को खत्म कर देंगे। तब तू ताकतों मालिक बन जाना।”

दोलाम ने कारू का गिलास एक ही सांस में खाली किया और उसे नीचे रखकर बोला।

“मैं खुद ही चाहता था कि खुंबरी मेरी बात न माने।” दोलाम ने दांत भींचकर कहा।

“ताकि तू ताकतों का मालिक बन सके। ये ही बात है न?”

“ठीक कहा तूने बबूसा। ये ही मेरे मन में था।”

“तो अब से हम दोस्त हुए।” बबूसा मुस्कराया।

दोलाम ने हौले-से सिर हिलाया।

“हां। हम दोनों मिलकर महान खुंबरी की जान लेंगे। पर ये काम इतना आसान नहीं है जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं। खुंबरी साधारण युवती नहीं है, ताकतों की मालिक है। उसे नुकसान हुआ तो ताकतें नाराज हो सकती हैं। इसलिए ताकतों को भरोसे में लेना होगा। उन्हें हालातों को समझना होगा।” दोलाम ने सोच भरे स्वर में कहा।

“ताकतों ने अगर तुझे समझा दिया तो?”

“क्या?”

“ये ही कि खुंबरी को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए, तो तब तू क्या करेगा। सब कुछ रुक जाएगा। हम खुंबरी को नहीं मार सकते।” बबूसा बोला-“मेरे ख्याल में तो हमें सीधे-सीधे की खुंबरी जान ले लेनी चाहिए।”

दोलाम कुर्सी से उठा और बबूसा को देखने के बाद टहलते हुए कह उठा।

“तेरी बात में कोई दम नहीं।”

“क्यों?”

“ताकतों को अपना मालिक भी चाहिए जो उनकी जरूरतें पूरी करता रहे। बिना मालिक के वो अंधेरे में खो जाएंगी। वो खत्म हो जाएंगी। पांच सौ सालों का श्राप पाकर सदूर ग्रह से पृथ्वी पर चली गई। इन पांच सौ सालों में अगर मैं ताकतों का ध्यान न रखता तो आज वो अंधेरे में खो चुकी होतीं। बिना मालिक के ताकतों का जीवन समाप्त हो जाता है। ताकतों का रख-रखाव इंसान ही कर सकता है।”

“तुमने किस प्रकार ताकतों का ध्यान रखा?” बबूसा ने पूछा।

“ये बातें तुम्हें नहीं बता सकता। ये रहस्य की बात है।”

बबूसा ने अपना गम्भीर चेहरा हिलाकर पूछा।

“अब क्या करोगे?”

“ठोरा से बात करूंगा। उसे अपने मन की बात बतानी होगी। फैसला तो उसी ने करना है।” दोलाम सख्त स्वर में बोला।

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