वो चार फीट चौड़ी और छः फीट लम्बी खिड़की थी। जिसमें प्लाई ठोक कर ए.सी. लगा रखा था। देवराज चौहान के कहने पर प्रताप कोली ने, किचन से चाकू लाकर, प्लाई को एक तरफ से छः इंच चौड़ाई और एक फीट लम्बाई में काटा तो वहां से बाहर का नजारा दिखने लगा ।

प्रताप कोली कुछ पल बाहर देखता रहा, फिर पलट कर बोला-

"तुमने बढ़िया जगह चुनी। जहां रतनचंद की कार खड़ी होनी है, वो जगह यहां से स्पष्ट नजर आ रही है।"

ये बेडरूम था और देवराज चौहान गिटार केस में रखी गन निकाल कर बैड पर बैठा उस पर टेलीस्कोप सेट कर रहा था। कोली पुनः कह उठा-

"यहां से आसानी से रतनचंद का निशाना लिया जा सकता है।"

"तो अब तुम्हें एहसास होगा हो गया होगा कि ये काम आसान था और तुम कर सकते थे।" देवराज चौहान मुस्कुराया।

"शायद।"

"गन लो और रतनचंद का निशाना लेना। तुम कामयाब रहे तो तीन करोड़ तुम्हें दे दूंगा।"

"मजाक कर रहे हो ।"

"सच कह रहा हूं ।"

"लेकिन तुम-तुम ऐसा क्यों करोगे ?" प्रताप कोली उलझन भरे स्वर में कह उठा ।

"तुम्हें ये समझाने के लिए कि कोई भी काम इतना आसान नहीं होता। खासतौर से निशाना लेना। इस बात को समझने के लिए आज तुम्हारे पास बहुत अच्छा मौका है, गन हाथ में लो और-।"

"मैं जरूरत नहीं समझता। तुम काम खत्म करो और चलो...।"

"तुम क्यों नहीं निशाना ले लेते ?"

"निशाना चूक गया तो शोरी साहब मेरी गर्दन तोड़ देंगे।" प्रताप कोली ने मुस्कुराकर गहरी सांस ली- "ये काम तुम्हारा है और तुम ही करोगे। मैं इस काम में सिर्फ तुम्हारे साथ हूं।"

गन तैयार थी ।

टेलिस्कोप फिट हो चुका था।

देवराज चौहान उठा और गन का मुंह उसने कटी हुई प्लाई पर टिका दिया और टेलिस्कोप पर आंख लगाई। पार्किंग की वो जगह, जहां रतनचंद की कार खड़ी होनी थी, टेलीस्कोप की वजह से इतने करीब महसूस होने लगी कि जैसे हाथ बढ़ाकर उस जगह को छुआ जा सकता हो।

"ठीक है ?" प्रताप कोली ने पूछा ।

"हां।"

"उड़ा दोगे रतनचंद को ?"

"लगता तो है। वक्त क्या हुआ है ?" टेलीस्कोप लगाये, देवराज चौहान ने पूछा।

"नौ चालीस।"

"रतनचंद कब आयेगा ?"

"दस, सवा-दस या फिर साढ़े दस बजे तक ।"

■■■

रतनचंद कालिया तैयार हो रहा था। साढ़े नौ हो रहे थे। तैयारी के अंतिम चरण पर था। इसके बाद उसने नाश्ता करना था और निकल जाना था। ठीक तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। टाई को ठीक करते हुए आगे बढ़कर टेबल पर रखा मोबाइल उठाया और कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया ।

"हैलो।"

"कैसे हो रतनचंद कालिया ?"

"केकड़ा ?"

रतनचंद कालिया की आंखें सिकुड़ती चली गईं।

"तुम कैसे हो केकड़ा ?"

"खूब पहचाना।" दूसरी तरफ से केकड़ा की मुस्कुराहट भरी  आवाज कानों में पड़ी- "यूं तो मैं सुबह-सुबह किसी को परेशान नहीं करता, लेकिन जब बात भले की हो तो परेशान कर भी देता हूं।"

"क्या कहना चाहते हो ?"

"आज तुम्हारा निशाना लिया जायेगा ।"

"निशाना ?" रतनचंद कालिया के चेहरे पर सख्ती आ गई ।

"हां। हो सकता है कि आज का दिन तुम्हारी जिन्दगी का आखिरी दिन बन जाये।"

"तुम सब जानते हो।"

"हां, सब जानता हूं।"

"कहीं तुम ही तो मेरी जान नहीं लेना चाहते ?"

"बच्चों जैसी बातें कर रहे हो। समझदार बनो रतनचंद, क्या हो गया तुम्हें ?"

"सामने क्यों नहीं आते तुम ?"

"क्या जरूरत है। मेरे को क्या पड़ी है सामने आने की। फोन पर ही मैं तुम्हारा भला कर रहा हूं।"

"तुम मुझे बताओ कि किसने मेरी सुपारी दी है और कौन मेरी जान लेना चाहता है।"

"तब तो तुम्हें, मुझे मेरी रकम देनी पड़ेगी।

"मैं दूंगा ।"

"कितनी ?"

"क्या चाहते हो तुम ?"

"ये तो सोचने वाली बात हो गई।"

"मैं तुम्हें मुंह मांगी दौलत दूंगा, तुम मुझे...।"

"सुन लिया...सुन लिया ।" केकड़ा की आवाज आई- "लेकिन आज तो बच के दिखाओ।"

रतनचंद कालिया के दांत भिंच गये।

"ये पक्का है कि आज मुझ पर गोली चलाई जायेगी?"

"पक्का है रतनचंद। बच सको तो बच के दिखा दो। तुम जिन्दा रहे तो मैं तुम्हें फोन जरूर करूंगा।"

"तुम हो कौन ?"

तब तक दूसरी तरफ से फोन बंद कर दिया गया। ।

रतनचंद कालिया के चेहरे पर गंभीरता और परेशानी नजर आ रही थी। उसने फोन रखा और कुर्सी पर जा बैठा। आंखों में सोच के गहरे भाव दिखाई दे रहे थे।

तभी सुंदर ने भीतर प्रवेश किया।

"चलने की तैयारी हो चुकी है सर।" सुन्दर ने कहा

रतनचंद कालिया ने सुन्दर को देखा ।

"क्या हुआ सर?" रतनचंद के चेहरे के भावों को देखकर, सुंदर कह उठा ।

"मैंने तुम्हें कल समझाया था कि ऐसी बातों को गंभीरता से लेना जरूरी है मेरे लिए। क्योंकि पता नहीं कब कौन-सी बात सच हो और मारने वाला अपने इरादे में सफल हो जाये।"

"जी ।"

"इस मामले पर गंभीर रहो।"

"जी। उसने बताया कि गोली कहां चलाई जायेगी ?" सुन्दर ने सोच भरे स्वर में पूछा।

"नहीं ।"

"मुझे समझ नहीं आता कि आखिर केकड़ा है कौन! उसके पास जानकारी है, उसे सौदेबाजी करके जानकारी बेच देनी चाहिये। इस तरह जरा-जरा खबरें देकर उसे मिल क्या रहा है ? वो आप में क्यों दिलचस्पी ले रहा है ?"

"वो अब जल्दी ही सारी जानकारी बेंचने का सौदा करेगा।"

"उसने ऐसा कहा?"

"हां। कहा तो है। बात ये है कि आज मुझे मारने के लिए मुझ पर गोली चलाई जायेगी।"

"सर । मेरी बात मानें तो आप बाहर ही ना जायें ।"

"आज तो मैं बाहर जरूर जाऊंगा।"

"क्यों?" सुंदर की निगाह रतनचंद कालिया के चेहरे पर  जा  टिकी ।

"ताकि मालूम हो कि केकड़ा की बात कितनी सच निकलती है।" रतनचंद ने सख्त स्वर में कहा।

"सर, अपनी बात को सच साबित करने के लिए केकड़ा खुद भी गोली चला सकता है। मुझे तो केकड़ा कोई फर्जी या चालबाज लगता है। वो शायद आपको डरा कर मोटी रकम ऐंठ लेना चाहता है।"

"जल्दी पता लग जायेगा कि वो कोई चालबाज है या सही कहने वाला व्यक्ति है।"

"मेरी मानें तो आज आप बाहर मत जाइये। बेकार में रिस्क लेने का कोई फायदा नहीं।"

रतनचंद कालिया के चेहरे पर गहरी सोच के भाव उभरे रहे ।

कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।

"सुन्दर !" रतनचंद कालिया ने सिर उठाकर उसे देखा-

"अब एक ही रास्ता बचा है।"

"क्या?"

"आर-डी-एक्स-।"

"आर-डी-एक्स ?" सुन्दर चौंका- "आप...आप...।"

"आर-डी-एक्स को इस मामले में लेना जरूरी हो गया है। क्योंकि मेरी जिंदगी का सवाल है।"

"वो तीनों खतरनाक हैं और-।"

"मेरे लिए नहीं- वो पहले भी मुझे बचा चुके हैं।"

"सर, आप भूल गए कि पिछली बार काम खत्म करके, उन्होंने काफी बड़ी रकम की मांग रखी थी और आपने वो रकम देने से मना कर दिया था तो उन्होंने आप पर ही रिवाल्वर रख दी थी।"

"कोई बात नहीं ।" रतनचंद मुस्कुरा पड़ा- "फिर भी वे मेरे काम के हैं।"

सुन्दर ने गहरी सांस लेकर कहा-

"मेरे ख्याल में तो इस मामले में अभी उनकी जरूरत नहीं।"

"मुझे आर-डी-एक्स की जरूरत महसूस हो रही है। वो ही इस मामले को देखेंगे। अगर किसी ने मेरी मौत की सुपारी किसी को दी है और कोई मुझे मारना चाहता है तो उससे वो ही निपटेंगे।"

सुन्दर रतनचंद कालिया को देखता रहा।

"आर-डी-एक्स को फोन लगाओ।" रतनचंद कालिया ने कहा।

"सोच लीजिए सर-।"

रतन चंद कालिया ने कठोर नजरों से सुन्दर देखा ।

सुन्दर सिर झटक कर आगे बढ़ा और मोबाइल फोन उठाकर  मिलाने लगा।

रतनचंद कालिया फोन पर थिरकती उसकी उंगलियों को देख रहा था ।

दूसरी तरफ बेल हुई तो सुन्दर ने फोन उसकी तरफ बढ़ाया ।

"बेल हो रही है सर।"

रतनचंद कालिया ने फोन कान से लगाया । चेहरा सख्त हुआ पड़ा था ।

"हैलो।" दूसरी ओर से मर्द की आवाज कानों में पड़ी ।

"राघव-।"

कुछ पल चुप्पी के पश्चात वो ही आवाज पुनः कानों में पड़ी-

"रतनचंद हो तुम ?"

"हां ।"

"कहो ।"

"मैं मुसीबत में हूं।"

"हमें जो याद करता है वो मुसीबत में ही करता है। खुशी में हम किसी को याद नहीं रहते।"

"कोई मेरी जान लेना चाहता है।"

"कैसे पता ?"

" 'केकड़ा' नाम का आदमी मुझे फोन करके बताता है कि मेरे नाम की सुपारी दी गई है। कल की बात है। और आज उसने मुझे फोन करके बताया कि आज मुझे शूट करने की चेष्टा की जायेगी ।" रतनचंद ने स्थिर स्वर में कहा ।

"केकड़ा कौन है ?"

"मैं नहीं जानता। वो अपने बारे में नहीं बताता और जिसने मेरी सुपारी दी है, उसके बारे में भी नहीं बताता। उसके बारे में भी नहीं बताता जो मुझे मारना चाहता है, लेकिन साथ ही वो ये भी कहता है कि वो उन दोनों को जानता है।"

"चाहता क्या है केकड़ा ?"

"जानकारी के बदले मोटी रकम लेना चाहता है।"

"तो उसे रकम दे दो । तुम्हारे पास दौलत बहुत है।"

"अभी वो सौदा करने को तैयार नहीं है। टाल रहा है। कहता है, आज बच जाओ तो शाम को बात करेंगे।"

"हरामी लगता है ये केकड़ा !"

"मुझे तुम तीनों की जरूरत है।"

"आज तो हम नहीं आ सकते।"

"प्लीज राघव, मैं खतरे में हूं- तुम-।"

"आज नहीं आ सकते। मुफ्त की सलाह देता हूं कि आज घर पर ही रहो।"

"नहीं, मेरा जाना जरूरी है और मैं ये भी देखना चाहता हूं कि केकड़ा की बात कितनी सच निकलती है।"

"देखने-देखने में मर जाओगे।"

"तभी तो तुम तीनों को बुला रहा हूं।"

"कल से पहले हम नहीं आ सकते।"

"तो मुझे बताओ मैं क्या करूं? मैंने बाहर जाना है और मैं मरना भी नहीं चाहता।"

"इस बारे में तुम्हें एक्स्ट्रा ही सलाह  दे सकता है, होल्ड करो।"

रतनचंद कान से फोन लगाए रहा।

करीब दो मिनट बाद एक्स्ट्रा की आवाज कानों में पड़ी।

"सुना है तुम मरने जा रहे हो।"

"तुम लोग ना आये तो शायद मैं जिन्दा ना रहूं।"

"आज हम बहुत व्यस्त हैं। देर रात बाद फुर्सत मिलेगी। कल आयेंगे। राघव ने बताया सारा मामला ।"

"बताओ मैं क्या करूं ?"

"तुम बाहर कैसे जाते हो, सुरक्षा के क्या इंतजाम है, मुझे बताओ।"

रतनचंद कालिया सब इंतजामों के बारे में बताने लगा ।

सब कुछ बता कर रतनचंद चुप हुआ।

"तुम्हारा वो सुन्दर भी तो है।"

"सुन्दर क्या करेगा?" ये मामला अभी तक पूरे अंधेरे में है।" रतनचंद कालिया ने कहा- "अगर आज किसी ने मुझ पर हमला नहीं किया तो मैं समझूंगा कि केकड़ा बोकस व्यक्ति है। यूं ही डरा रहा है।"

"हूं। कार में तुम दो आदमियों के बीच फंसकर बैठते हो?" एक्स्ट्रा की आवाज आई ।

"हां।"

"कार पर काले शीशे हैं और बाहर से भीतर नहीं देखा जा सकता ?"

"नहीं देखा जा सकता।"

"ऐसे में अगर कोई तुम पर गोली चलाता है तो वो कार के बीचों-बीच में बैठ आदमी को मारना चाहेगा। तुम बीच में ना बैठ कर दायें या बायें ही बैठना। कोशिश करना ड्राइवर के पीछे वाली जगह पर बैठना। वहां ज्यादा सुरक्षा मिलेगी, अगर बाहर से गोलियां चलाई जाती हैं।" एक्स्ट्रा की आवाज कानों में पड़ी ।

"ठीक है। मैं ऐसा ही करूंगा ।"

"मेरी बात सुरक्षा की गारंटी नहीं है, सिर्फ एक चांस है बच निकलने का ।"

"तुम कब आओगे।"

"हमें  बुलाने की जल्दी मत करो। खर्चे का सौदा हैं हम। पहले अपनी तसल्ली कर लो कि वास्तव में हमारी जरूरत है। थोड़ा बहुत काम तो सुन्दर भी देख लेगा। जब बहुत ज्यादा जरूरत लगे तो फोन करना। अभी तो तुम्हारे सामने स्पष्ट नहीं कि  कोई तुम्हें मारना भी चाहता है या नहीं। तुम सिर्फ केकड़ा की बात सुन रहे हो।"

"ठीक है। मैं देखता हूं।"

उधर से एक्स्ट्रा ने फोन बंद कर दिया था।

"क्या बात हुई सर ।"

"देखते है कि आज क्या होता है। कुछ हुआ तो तब आर-डी-एक्स को फाइनल फोन करूंगा ।"

"मैं अब भी कहता हूं कि आप बाहर ही मत निकलें।

रतनचंद कालिया ने सुन्दर को देखा और शांत स्वर में कहा-

"बार-बार ये बात मत कहो। मैं कार के भीतर उसी तरह बैठूंगा, जैसे रोज बैठता हूं, परंतु दरवाजा बंद करते ही में ड्राइवर के पीछे वाली जगह में बैठूंगा । बीच में नहीं-।"

"ऐसा क्यों?"

"हर कोई जानता है कि मैं बीच में ही बैठूंगा। ऐसे में वे लोग बीच में बैठे आदमी का निशाना लेने की चेष्टा करेंगे।"

"ओह।"

"ये बात एक्स्ट्रा ने बताई मुझे।"

"जो भी हो आर-डी-एक्स काबिल लोग हैं। यूं ही खतरनाक नहीं कहे जाते। इकट्ठे हो जायें तो सच में आर-डी-एक्स बारूद से कम नहीं। वक्त आने पर बारूद से भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं।" सुन्दर मुस्कुराकर कह उठा ।

■■■

नौ पचास हुए थे।

देवराज चौहान ने गन खिड़की से हटाई और पलटकर प्रताप कोली से बोला-

"उन लोगों को पता चल जाएगा की गोली यहां से चलाई गई है।"

"पक्का ?"

"हां, गोली चलते ही वे सीधे इधर दौड़े चले आयेंगे।"

"लेकिन गन में तो साइलेंसर लगा है।"

"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वो गोली आने की दिशा को फौरन पकड़ लेंगे । उसके साथ कितने आदमी होते हैं ?"

"चार तो होते ही हैं, ज्यादा हों तो पता नहीं ।"

"गोली चलाने के बाद हमें यहां से निकलने का वक्त नहीं मिलेगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"ये तो गड़बड़ वाली बात है।"

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर कटी प्लाई से बाहर झांका ।

सड़क पार पार्किंग में अभी वो जगह खाली थी, जहां रतनचंद कालिया की कार आकर लगनी थी।

आस-पास की अधिकतर जगह कारों से भर गई थी ।

वक़्त आगे सरकता जा रहा था।

"वक्त हो रहा है।" प्रताप कोली ने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारी- "कहीं तुम ये तो नहीं सोच रहे कि यहां को छोड़कर, किसी और जगह रतनचंद कालिया को घेरोगे ?"

"अगर मैं सोचूं तो तुम्हें क्या समस्या है ?"

"कुछ नहीं, मैं तुम्हारे पीछे हूं, जो तुम कहोगे, वो ही मुझे मंजूर होगा। आखिर काम तो तुमने करना है।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया। चेहरे पर सोच के भाव थे ।

"इस बारे में कुछ सोच रहे हो क्या ?"

"हां। तुम दूसरे कमरे में जाओ और उन चारों लोगों के हाथ-पांव बांधकर, दिनेश के साथ यहां आओ ।"

प्रताप कोली बिना कुछ कहे दूसरे कमरे में चला गया ।

देवराज चौहान रह-रह कर बाहर देख रहा था।

पांच-छः मिनट बाद कोली, दिनेश के साथ वहां आया ।

"उन चारों के हाथ बांध दिये हैं। पांव भी। मुंह खुला है और उन्हें समझा दिया है कि आवाज निकली तो गोली मिलेगी ।" कोली बोला ।

"तुम करना क्या चाहते हो ?" दिनेश चुरु बोला ।

"इस मंजिल पर आस-पास छोटे-छोटे ऑफिस हैं।" देवराज चौहान बोला ।

"हां ।" प्रताप कोली ने सिर हिलाया ।

"किसी एक जगह पर कब्जा जमा लो, ताकि जो यहां हमें पकड़ने आयें, तो उनसे बचा जा सके।"

"गुड आईडिया ।"

वो दोनों जाने लगे तो देवराज चौहान बोला-

"दरवाजा बाहर से बंद करते जाना ।"

दोनों तुरंत कमरे से बाहर निकल गये।

देवराज चौहान को दरवाजा बंद होने की आवाज आई। उसके बाद उसने कटी प्लाई के सामने देखा। अभी तक वहां कार नहीं लगी थी। देवराज चौहान दूसरे कमरे में पहुंचा ।

मियां-बीवी, बहू और बेटे, चारों के हाथ-पांव बंधे हुए थे। वो फर्श पर पड़े थे।

"ये कुछ ही देर की तकलीफ है।" देवराज चौहान बोला -"मजबूरी है वरना ये तकलीफ ना दी जाती। मुझे पूरी आशा है कि आपमें से कोई मुंह से तेज आवाज निकाल कर मरना पसंद नहीं करेगा।"

"ह-हम कुछ नहीं कहेंगे।" साठ  वर्षीय व्यक्ति घबराहट से कह उठा ।

"यही अच्छा है।" देवराज चौहान ने कहा और बेडरूम में वापस आ गया ।

साढ़े दस बजने जा रहे थे ।

रतनचंद कालिया की कार कभी भी आ सकती थी ।

देवराज चौहान ने गन की नाल को कटी हुई प्लाई पर सैट किया और टेलीस्कोप पर आंख लगा दी ।

■■■

10.40।

देवराज चौहान ने मेहरून कलर की कोरोला कार ठीक उसी जगह पर पार्क होती देखी, इसके शीशे स्याह कलर के थे। यहां तक कि ड्राइवर वाले, यानि कि सामने वाले शीशे पर भी काली फिल्म लगी हुई थी। ऐसे में कार के भीतर क्या हो रहा है, बाहर से नहीं देखा जा सकता था ।

टेलीस्कोप पर आंख लगाये, देवराज चौहान सारा नजारा इस तरह स्पष्ट देख रहा था, जैसे कार के पास ही खड़ा हो। गन के ट्रिगर पर उसकी तर्जनी उंगली जा चुकी थी। तभी चार लोग और आये और उन्होंने कार को घेर लिया ।

उसी पल ड्राइवर वाला दरवाजा खुला और सुन्दर बाहर निकला। जिसने कमीज-पैंट पहन रखी थी। टेलिस्कोप की वजह से देवराज चौहान ने जाना कि उसकी जेब में रिवाल्वर रखी हुई है। उसने फौरन आगे बढ़कर पीछे वाला दरवाजा खोला और जेब में हाथ डाले, यानि की रिवाल्वर पर हाथ रखे सावधानी से खड़ा हो गया।

कार से एक व्यक्ति निकला।

देवराज चौहान ने महसूस किया कि इस आदमी की तस्वीर उसने अखबार में नहीं देखी थी। बाहर निकलकर वो दरवाजे के पास ही खड़ा हो गया था। जो चार लोग कार के आस-पास आ खड़े हुए थे । वो भी अब खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गये थे। सब काम खामोशी के साथ हो रहे थे।

आस-पास से सामान्य ढंग से लोग आ-जा रहे थे ।

तभी दूसरा व्यक्ति कार से बाहर निकला।

वो रतनचंद कालिया था ।

टेलिस्कोप के जरिए देवराज चौहान ने उसे आसानी से पहचान लिया कि वो ही उसका शिकार है। देवराज चौहान ने उसे निशाने पर रखने की चेष्टा की ।

फिर तीसरा आदमी भी पीछे वाले खुले दरवाजे से बाहर निकला ।

एकाएक देवराज चौहान को ऐसा लगा जैसे रतनचंद कालिया को भीड़ ने घेर लिया हो। उसके आस-पास छः आदमी थे, जिनके भीतर रतनचंद कालिया फंसा पड़ा था ।

देवराज चौहान ने उसे निशाने पर लेने की चेष्टा की ।

परंतु वो इस तरह घिरा पड़ा था कि उसे निशाने पर नहीं लिया जा रहा था।

फिर वे सब सामने आ रहे दरवाजे की तरफ चल पड़े। पन्द्रह कदम का फासला था। लेकिन वो सब इतने सतर्क थे कि रतन चंद को घेरे में पूरी तरह आड़ दे रखी थी।

देवराज चौहान निशाना ढूंढता रह गया और वो सब उस दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गये।

देवराज चौहान की निगाह कार के आस-पास जा टिकी।

सुन्दर अभी भी वहीं खड़ा आस-पास नजरें घुमा रहा था। एक आदमी उसके पास पहुंचा। दोनों में कुछ बात हुई। वो आदमी कार के पास खड़ा रहा और सुन्दर उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान उसके बाद भी टेलीस्कोप पर नजरें टिकाये रहा।  फिर उसने वहां से आंख हटाई ऑर्गन को बैड पर रखा उसके बाद वो दूसरे कमरे में गया।

चारों उसी तरह बंधे हुए थे।

"आप लोगों को कोई तकलीफ तो नहीं है ।"

"नहीं। हम ठीक हैं।" उसी बूढ़े व्यक्ति ने कहा।

"कुछ चाहिए तो बता दीजिये।"

उनके इंकार के पश्चात देवराज चौहान वापस बेडरूम में आ गया। कटी प्लाई से सामने देखा। मैहरून कलर की कोरोला कार के पास एक व्यक्ति टहल रहा था।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गये। वो बाहर ही देखता रहा।

उसी पल दूसरे कमरे का दरवाजा खोले जाने की आवाज उभरी। फिर बंद होने की आवाजें, उसके बाद कदमों की आवाजें, तब प्रताप कोली ने भीतर कदम रखा ।

देवराज चौहान ने वहां से नजरें हटाकर कोली को देखा ।

"किसी ऑफिस का कब्जा किया?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"हां, एडवरटाइजिंग का एक ऑफिस है। एक युवती और चपरासी था वहां।  दिनेश चुरू ने उन्हें संभाल रखा है।" कहने के साथ ही उसने कटी प्लाई से बाहर झांका- "वो अभी तक नहीं आया क्या?"

"वो आ गया है। उसकी कार खड़ी है।"

प्रताप कोली ने पलटकर उसे देखा।

"तुमने बाहर ध्यान नहीं दिया।"

"बाहर ही देख रहा था, रतनचंद को देखा मैंने।"

"फिर?"

"वो अपने आदमियों से घिरा हुआ था। छः आदमियों ने उसे इस तरह घेर रखा था कि उसके पास हवा के अलावा कोई दूसरा ना पहुंच सके। ऐसी घेराबंदी तभी होती है जब उसे मालूम हो कि उसका निशाना लिया जाने वाला हो।"

"तुम्हारा मतलब कि उसे पता है कि तुम उसे गोली मारने वाले हो।"

"मैं नहीं, कोई भी। उसे ये पता है कि उस पर गोली चलेगी। तभी तो ऐसी घेराबंदी की गई।"

"मैं नहीं जानता।"

"मानोगे तो आगे सोच सकोगे। कोई उसे खबरें पहुंचा रहा है।"

"असंभव।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।

"सीधी तरह क्यों नहीं कहते कि तुम उसका निशाना नहीं ले सके।" प्रताप कोहली ने उसे घूरा ।

"क्योंकि वो घेरे में था। लेकिन मौका अभी गया नहीं है।"

"वो कैसे ?"

"वो वापस भी तो आयेगा ।"

"तब भी घेरे में हुआ तो ?"

"ऐसा हुआ तो फिर दूसरा मौका देखेंगे।" देवराज चौहान ने कश लिया।

"मेरे ख्याल से तुम्हें रतनचंद के घेरे में होने की परवाह नहीं करनी चाहिये।"

"यानि तुम चाहते हो कि एक को मारने के लिए मैं साथ में दो और को मार दूं ?"

"क्या हर्ज है ! हम उनकी परवाह क्यों करें ?"

"मुझे परवाह है। मैंने सिर्फ रतन का निशाना लेना है।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला- "यह काम मेरा है, तुम इस बात की परवाह मत करो कि वो कब मरेगा ये सोचो कि उसे खबरें कौन दे रहा है ?"

"कोई भी नहीं।"

"तुम, दिनेश चुरू, हरीश मोगा या अवतार सिंह ?"

"हम चारों में से कोई गद्दार नहीं। इस तरह सोचना छोड़ दो।"

"रतनचंद कालिया क्या पहले भी घेरे में इसी तरह रहता था ?"

"नहीं, ये मैंने अभी तुम्हारे मुंह से सुनना है। देखा नहीं ।"

"देख लेना, जब वो बाहर निकले।"

प्रताप कोली के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। वो बोला-

"हो सकता है उसे किसी और दुश्मन के बारे में खबर मिली हो कि वो उस पर हमला कर सकता है। ऐसे में सतर्क रहने लगा हो।"

"ऐसे इत्तेफाक को मैं नहीं मानता।"

देवराज चौहान कश लेता बैड पर बैठ गया ।

"बाहर नजर रखो। रतनचंद एक घंटे से पहले भी बाहर आ सकता है।" देवराज चौहान ने कहा।

प्रताप कोली कटी प्लाई के पास पहुंचकर बाहर देखने लगा ।

तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।

"हैलो।"

"मेरे ख्याल में अभी रतनचंद आया था।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।

"हां, लेकिन उसका निशाना लेना आसान नहीं था।"

"उसके आदमियों ने उसे घेर रखा था। क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि उसे शक है कि उसे गोली मारी जायेगी ?"

"मुझे ऐसा लगता है। लेकिन प्रताप कोली नहीं मान रहा।"

"उसकी बात छोड़ो, काम हमने पूरा करना है, उसने नहीं। तीन करोड़ हमने लिए हैं, उसने नहीं।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा- "सवाल ये पैदा होता है कि उसे कैसे शक हो गया कि वो खतरे में है ? क्या किसी ने उसे बताया ?"

"अवश्य बताया होगा।"

"रतनचंद सतर्क हो चुका है। ऐसे में उस पर हाथ डालना कठिन हो सकता है।"

"कहीं पर तो लापरवाह होगा ही। कब तक सतर्क रहेगा।"

"क्या मतलब ?"

"अभी वो बाहर भी निकलेगा, शायद तब मौका मिले उसे उड़ाने का। बाकी सब ठीक है?"

"हां। इधर सब ठीक है। उसकी कार के पास फिर एक आदमी खड़ा है।"

"उसे देख रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।

■■■

12:30 हुए थे ।

तब रतनचंद कालिया उसी तरह अपने आदमियों से घिरा बाहर निकलता दिखा। उन्हें छः आदमियों से घेरा हुआ था। और सुन्दर दो कदम आगे चल रहा था। परंतु उसकी निगाह हर तरफ फिर रही थी। वो कार के पास पहुंचकर ठिठका और पीछे का दरवाजा खोला और खड़ा हो गया।

रतनचंद ने भीतर प्रवेश किया उस सीट पर जा बैठा।

उसी तरफ से एक आदमी और भीतर प्रवेश करके बैठ गया। दूसरी तरफ का दरवाजा खोला गया और एक अन्य आदमी भीतर जा बैठा। यानी कि रतनचंद कालिया बीच में और एक-एक आदमी दायें-बायें।

दरवाजे बंद कर दिये गये।

काले शीशों की वजह से भीतर का हाल जरा भी ना दिख रहा था।

दरवाजे बंद होते ही रतनचंद ने दांई तरफ बैठे व्यक्ति से जगह बदल ली। थोड़ा सा ऊपर होता, सरक के रतनचंद ड्राइविंग सीट के पीछे वाली सीट पर आ बैठा और वहां बैठा व्यक्ति बीच में खिसक गया।

सुंदर ने वहां खड़े आदमियों से कहा-

"तुम लोग कार के पीछे आओ, कार चलाना है ।"

"लेकिन वहां का रास्ता तो खराब है। हमें रास्ता बदल कर जाना होगा।" एक आदमी बोला ।

"क्या खराब है ?"

"उधर सड़क की मरम्मत हो रही है...।"

सुन्दर को क्या पता था कि बातें करके इस वक्त वो अपना कीमती वक्त बर्बाद कर रहा है।

■■■

गन के ऊपर लगे टैलीस्कोप से देवराज चौहान की आंखें लगी थीं।

रतनचंद कालिया के बाहर आने से लेकर अब तक का सब कुछ  देखा था उसने। इस वक्त सुन्दर अपने आदमियों से बात कर रहा था। देवराज चौहान के ठीक पीछे खड़ा प्रताप कोली भी बची-खुची झिरी से बाहर देखने की चेष्टा कर रहा था। तभी देवराज चौहान कह उठा-

"मैं रतनचंद को शूट करने जा रहा हूं।"

"पागल हो क्या ? वो नजर नहीं आ रहा।"

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कार के भीतर बैठा है।"

"शीशे काले हैं। वो दिखाई कहां से दे रहा है, जो तुम उसका निशाना ले लोगे।"

"पीछे वाली सीट पर वो कहां बैठा है कोली ?" देवराज चौहान गन की नाल को प्लाई पर टिकाये, टैलिस्कोप पर आंख लगाए हुए था और ट्रेगर पर उंगली कस चुकी थी ।

"बीच में । दायें-बायें उसके दो आदमी बैठे...।"

"और मैं बीच वाले का सिर उड़ाने जा रहा हूं।"

कार का पिछला हिस्सा इसी तरफ था ।

प्रताप कोली ने सूखे होठों पर जीभ फेरी, कहा कुछ नहीं ।

ठीक इसी पल डिश की आवाज उभरी।

देवराज चौहान ने टैलिस्कोप से देखा, कार के पीछे वाले शीशे के ठीक बीचो-बीच छेद हो गया  है।"

"कर दिया काम।" प्रताप कोली के होठों से निकला ।

■■■

रतनचंद कालिया के चेहरे पर खून के गर्म-गर्म छींटे पड़े। उसने चौंक कर गर्दन घुमाई, तभी बगल में (बीच में बैठे) गनमैन को उसने आगे लुढ़कते देखा। आगे की दोनों सीटों के बीच उसका सिर जा फंसा। उसकी गर्दन के ऊपर, सिर के पीछे वाले हिस्से में गोली लगी थी और वहां से खून तेजी से बहने लगा था।

रतनचंद ने चौंक कर पीछे गर्दन घुमाई ।

शीशे में छेद दिखा ।

"सर गोली-।" तभी  दूसरी तरफ बैठा गनमैन हड़बड़ा कर कह उठा-"प्रकाश को लगी है।"

रतनचंद का दिल जोरों से धड़क रहा था ।

अगर एक्स्ट्रा (X-TRA) की बात ना मानी होती तो इस वक्त उसकी लाश पड़ी होती।

सब कुछ सैकिण्डों में हो गया था ।

गनमैन ने बाहर निकलना चाहा ।

"बैठे रहो ।" रतनचंद ने सख्त स्वर में कहा- "नीचे झुक जाओ। और गोलियां आ सकती हैं।"

तभी सुन्दर ने ड्राइविंग डोर खोला भीतर बैठने के लिये- परंतु भीतर बैठते-बैठते ठिठक गया।

निगाह पीछे के हालातों पर टिकी। उसकी आंखें फैल गई।

"सर, आप ठीक तो हैं ?" उसके होंठों से निकला।

"हां, केकड़ा ने सही कहा था कि मुझ पर हमला होगा ।

गोली चलाई जायेगी। अगर मैं बीच में बैठा होता तो...।"

सुन्दर ने पूरी बात नहीं सुनी और बाहर निकल कर कार के पीछे वाले हिस्से में गया। शीशे में हुए गोली के छेद का पीछा करती उसकी निगाह सामने-सड़क पार पहली मंजिल पर खिड़की पर स्थित ए. सी. पर जा टिकी। उसकी कटी प्लाई भी उसने देखी।

सुन्दर को समझते देर न लगी कि गोली वहां से चलाई गई है।

कार के पास अभी भी उसके आदमी खड़े थे ।

"वहां से गोली चलाई गई है दो यहीं रहो और बाकी मेरे पीछे आओ।" कहने के साथ ही सुन्दर उस तरफ भागा और रिवाल्वर निकाल कर हाथों में ले ली ।

बाकी सब उसके पीछे दौड़े ।

दो ने कार को घेर लिया ।

■■■

"वो इधर ही आ रहे हैं।" देवराज चौहान खिड़की से हटता कह उठा ।

"इसका मतलब रतनचंद गया ।"

"शायद । निकलो यहां से, ये गन हमें यही छोड़नी होगी।"

"परवाह नहीं ।"

"जल्दी करो। वो पहुंचते ही होंगे।"

उसके बाद दोनों आनन-फानन में बाहर निकले। परिवार के लोग भीतर ही बंदे पड़े थे। उन्होंने दरवाजा बाहर से बंद किया। वो दो फुट की गैलरी इस वक्त खाली पड़ी थी।

"इधर आओ।" प्रताप कोली धीमे से बोला और गैलरी में आगे बढ़ गया ।

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तूफानी रफ्तार से सुन्दर सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचा।  उसके पीछे पांच गनमैन थे और इस वक्त सब हथियारबंद नजर आ रहे थे। सुन्दर के चेहरे पर मौत के भाव नाच रहे थे।

सुन्दर दरवाजे पर ठिठका, जो कि बंद था ।

पांचो गनमैन भी उसके पास आकर रुक गये।

सबकी निगाहें मिलीं। खूंखारता के भाव थे हर एक के चेहरे पर।

"वो यहीं है, जिसने गोली चलाई।" सुन्दर सरसराते स्वर में बोल-

"तुम्हें गलती तो नहीं लगी ?"

"वो यहीं है कमीने, जो मैंने कहा है, सुन वो।" सुन्दर मौत भरे स्वर में गुर्रा उठा ।

सुन्दर ने बाहर लगी कुंडी और दरवाजे को धक्का दे दिया।

दोनों पल्ले खुलते चले गये।

वे सब गोलियां बरसाने को तैयार थे।

परंतु भीतर निगाह पड़ते ही ठिठक गये ।

वे चारों बंधे पड़े थे ।

"ये क्या कर रहे हो। हमें मत मारना।" बंधा युवक घबराकर चीखा।

शांति छाई हुई थी वहां ।

"गोली मत चलाना।" बूढ़ा कह उठा- "हमने कुछ नहीं किया ।"

"वो कहां है ?" सुंदर ने वहीं खड़े, शब्दों को चबाकर सतर्क स्वर में पूछा।

"पीछे वाले कमरे में थे। आते ही हाथ-पांव बांध दिए। अभी-अभी वे बाहर गये हैं ।"

"अब भीतर कोई नहीं है ?"

"नहीं ।"

"दो अन्दर जाओ।" सुन्दर ने खूंखारता भरे स्वर मैं कहा ।

दो हथियारबंद आदमी भीतर गये।

उस बैडरूम का का फेरा लगा आये।

"कमरे में टैलिस्कोप गन पड़ी थी है। साइलेंसर भी लगा है उस पर।"

"वो गन छोड़कर भाग गये।" दूसरा बोला ।

"इतनी जल्दी वो जा नहीं सकते।" सुन्दर बोला ।

"क्यों नहीं जा सकते।" दूसरा बोला- "गोली लगने के बाद उनके पास निकल जाने का पूरा वक्त था ।

सुन्दर की निगाह उस गैलरी में दोनों तरफ घूमी ।

"वो यहां भी छिपे हो सकते हैं। यहां जितने ऑफिस हैं, सब चैक करो।" सुन्दर कह उठा और खुद आगे बढ़ गया।

सुन्दर ने एक आदमी के साथ एडवरटाइजिंग के ऑफिस में प्रवेश किया। चेहरे पर खूंखारता, हाथ में रिवाल्वर। भीतर बाईं तरफ रिसेप्शन पर युवती बैठी थी। एक तरफ चपरासी बैठा था विजिटर्स चेयर पर देवराज चौहान बैठा था। सामने एक केबिन का बंद दरवाजा नजर आ रहा था।

उसके हाथ में रिवाल्वर देखकर, रिसेप्शन पर बैठी युवती घबराकर कह उठी-

"हमें मत मारना। तुम जो चाहो ले जाओ।"

"खामोश रहो !" सुन्दर दांत भींच कर गुर्राया।

युवती सूखे होंठों पर जीभ फेर कर रह गई ।

सुन्दर ने चपरासी और देवराज चौहान को देखा।

"यहां पर अभी-अभी कौन आया था ?"

"कोई नहीं ।" देवराज सिंह चौहान ने स्वर में घबराहट लाकर कहा- "बीस मिनट से मैं बैठा हूं।"

"भीतर कौन है ?"

"सर हैं। एक कस्टमर है।" युवती घबराये स्वर में कह उठी ।

सुन्दर ने आगे बढ़कर केबिन का दरवाजा खोला।

भीतर टेबल के पीछे प्रताप कोली और इस तरफ दिनेश चुरु बैठा था। कोली उसे कागज दिखाकर कुछ कह रहा था परंतु सुन्दर को दरवाजा खोलते पाया तो कोली फौरन बोला-

"पांच मिनट इंतजार कर लीजिये। इनके बाद मैं आपसे ही बात करूंगा। इंतजार के लिए मैं माफी चाहता हूं।"

सुन्दर वहां से हटा और अपने साथी के साथ वहां से बाहर निकल गया।

"मेरे ख्याल से वो जो भी लोग थे, यहां से निकल गए हैं।" सुन्दर दांत भींचकर बोला ।

"शायद।"

सामने से आते बाकि आदमी दिखे।

"कोई संदिग्ध नहीं मिला ।"

"निकल गये वो।"

"पकड़े जाते तो सब ठीक हो जाता।"

"सर को गोली लगी क्या ?"

"गोली सर के लिये ही चली थी परंतु जगह बदल लेने की वजह से सर बच गए और प्रकाश मारा गया।"

■■■

रतनचंद कालिया वहां से वापस अपने बंगले पर पहुंचा ।

साफ बात तो यह थी कि प्रकाश की हालत देखकर वह कुछ डर गया था। मन ही मन यह भी सोच रहा था कि अगर एक्स्ट्रा (X-TRA) के कहने पर जगह ना बदली होती तो इस वक्त वो जिन्दा ना होता ।

ये अच्छी बात थी कि वो बच गया था।

अपने कमरे में पहुंचकर टाई की नॉट ढीली की और पीठ पर हाथ बांधे कमरे में टहलने लगा।

कई मिनट इसी तरह बीत गये। गुस्सा-परेशानी-व्याकुलता उसके चेहरे पर रह-रहकर आ रही थी।

तभी सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया ।

रतनचंद कुर्सी पर जा बैठा ।

दोनों की नजरें मिलीं।

"तुम गोली चलाने वाले को नहीं पकड़ पाये ?"

"हमारे वहां पहुंचने से पहले ही वहां से निकल गये।" सुन्दर ने अपना स्वर शांत रखने की चेष्टा की।

"यानि कि शातिर लोग हैं।"

"यकीनन।"

"केकड़ा ने मुझे बताया था कि जिसने मुझे मारने का ठेका तीन करोड़ में लिया है, वो अंडरवर्ल्ड का नामी बंदा है। ऐसे लोग कभी लापरवाह नहीं हो सकते। निकलने का रास्ता उन्होंने पहले ही सोच रखा होगा।"

"मुझे अफसोस है सर ।"

"तुमने कोई लापरवाही नहीं की, जिसका तुम्हें अफसोस हो ।"

सुन्दर खामोश रहा।

"जिसने मुझे मारने की चेष्टा की, वो जबरदस्त निशानेबाज है।"

"वो कैसे सर ?"

"उसने काले शीशे होने के बावजूद भी सिर्फ एक ही गोली चलाई, वह भी अंदाज से कि मैं बीच वाली सीट पर बैठा हूं। दूसरी गोली नहीं चलाई। क्योंकि वो जानता था कि उसका निशाना नहीं चूकेगा।"

"हां सर, यही बात है ।"

"ऐसे लोग खतरनाक होते हैं और अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। इन्हें हार पसंद नहीं होती। जब वो जानेगा कि मैं बच गया हूं तो फिर से मुझे निशाना बनाने की कोशिश में जुट जायेगा।" रतनचंद का स्वर गंभीर था।

सुन्दर ने कुछ नहीं कहा ।

"प्रकाश की लाश का क्या किया ?"

"उसके घर भेजी जा रही है।"

"साथ में पच्चीस लाख रुपए भी ?"

"यस सर, वो भी।"

"अब तो तुम केकड़ा की बात को बकवास नहीं कह सकते।"

"केकड़ा ने आपसे जो कहा, ठीक कहा सर।" सुन्दर गंभीर स्वर में बोला।

"अगर मैंने आर-डी-एक्स से बात न की होती तो शायद मैं इस वक्त तक जिन्दा ना होता। जबकि तुम इस बात का विरोध कर रहे थे कि इस मामले में आर-डी-एक्स को लाने की क्या जरूरत है।"

"तब मैं मामले को गंभीरता से नहीं समझा था।"

"एक्स्ट्रा की सलाह से मैं बच पाया। मैं उसे धन्यवाद देता हूं।"

"अब क्या करें सर, आपका क्या हुक्म है ?"

"सुरक्षा मजबूत कर दो । मैं आर-डी-एक्स को बुला रहा हूं, जब तक नहीं आते जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये। मैं ना तो बाहर जाऊंगा और ना किसी से मिलूंगा। क्योंकि अब ये बात स्पष्ट हो चुकी है कि मेरी जान को खतरा है। मैं ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहता कि मेरी जान चली जाये।"

"जी सर ।"

"जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो ।"

सुन्दर चला गया ।

तभी फोन बजा।

दूसरी तरफ उसकी पत्नी सोनिया थी ।

"कहो, आज तो तुमने आना है।"

"आना तो था, लेकिन मेरे मायके वाले और मुझे और बच्चों को आने नहीं दे रहे, रुकने की जिद कर रहे हैं।"

"कोई बात नहीं । जब तक ठीक लगे, रुक जाओ।"

"ठीक है। मैंने इसी बात के लिए फोन किया था।"

रतनचंद ने फोन बंद किया और R.D.X का फोन नंबर मिलाने लगा ।

नम्बर लगा, फिर डी-यानिकी धर्मा की आवाज कानों में पड़ी।

"हैलो।"

"धर्मा।"

"रतनचंद बोल रहा है। जिन्दा हो अभी तक?"

"मुझ पर अभी बहुत ही अच्छे ढंग से हमला किया गया।" रतनचंद ने शांत स्वर में कहा।

"बचे कैसे ?"

"एक्स्ट्रा (X-TRA)  की सलाह से। मेरा गनमैन मारा गया।"

"तो कार में जगह बदल चुके थे जब गोलियां चलीं ?"

"हां, लेकिन गोली एक ही चली, जो मेरा निशाना लेना चाहता है, वो आत्मविश्वास से भरा इंसान है।"

"समझदार लोग गोलियां खराब नहीं करते।"

"मुझे तुम तीनों की जरूरत है। क्योंकि मैं अभी मरना नहीं चाहता।"

"पिछली बार तुमने रकम को लेकर झगड़ा किया था।"

"तुम लोगों ने ज्यादा रकम मांगी थी।"

"तुम्हें बचाने में हमने खतरा भी बहुत उठाया था। ये क्यों भूलते हो कि हम भी अपनी जान खतरे में डालते हैं। पैसा इस बार भी उतना ही लेंगे जितना पहली बार लिया था । सोच कर फोन कर देना।"

"सोचने की क्या जरूरत है।" रतनचंद कालिया ने गहरी सांस ली- "आ जाओ।"

"ठीक है, हम कल आयेंगे।"

"आज आते तो-"

"आज वक्त नहीं है।"

"तुम में से कोई एक ही आ जाये तो मुझे हौसला मिलेगा।"

"हम तीनों ही व्यस्त हैं। एक बात को बार-बार क्यों कहते हो।"

"कल कब आओगे ?"

"तुम्हारे मरने से पहले पहुंचेंगे । R.D.X. वक्त पर तुम्हारे पास पहुंचेंगा। तब तक बाहर मत निकलना। बाहर हो तो वापस घर में पहुंचकर बंद हो जाओ। बहादुरी दिखाना छोड़ दो।" कहकर दूसरी तरफ से धर्मा ने फोन बंद कर दिया था। रतनचंद ने भी फोन बंद किया और उसे बैड की तरफ उछाल दिया ।

■■■

देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, प्रताप कोली और दिनेश चुरु होटल में मौजूद थे ।

"तुम्हारा काम हो गया।" जगमोहन बोला- "अब खिसकते नजर आओ ।"

"काम होने की खबर नहीं आई।" दिनेश चुरू बोला।

"कौन खबर देगा ?"

"अवतार या हरीश मोगा।"

"उन्हें मालूम है कि हम क्या-क्या कर रहे हैं ?"

"सब मालूम है।" प्रताप कोली बोला- "हम खबरें दे रहे हैं उन्हें । ताकि शोरी साहब को पता चलता रहे कि क्या हो रहा है ?"

"किसी को बताने की क्या जरूरत है कि हम...।"

"शोरी साहब के तीन करोड़ रुपया खर्च किया है ।" प्रताप कोली मुस्कुराया- "उन्हें जानने का पूरा हक है कि क्या हो रहा है।"

"ऐसी कोई बात हममें तय नहीं हुई थी।"

"कहने की जरूरत नहीं होती, ये बात तय ही होती है।" दिनेश चुरू ने कहा ।

"अब पता करो, अपनी तसल्ली करो और...।"

तभी दिनेश चुरू का मोबाइल बजा।

"कहो ।" दिनेश चुरू ने फोन कान पर से लगाया । दूसरी तरफ हरीश मोगा था ।

"बहुत घटिया निशानेबाज है देवराज चौहान ।"

"क्या हुआ ?" दिनेश चुरू के माथे पर बल पड़े।

देवराज चौहान ने गोली रतनचंद के साथ बैठे गनमैन को मारी है। उसका नाम प्रकाश है।"

"ये नहीं हो सकता।" उसके होंठों से निकला।

"ये ही हुआ है।" हरीश मोगा की आवाज कानों में पड़ी ।

दिनेश चुरू ने होंठ भींच लिये।

सबकी निगाह उस पर थी ।

"क्या बात है ?" प्रताप कोली पूछ बैठा ।

"रतनचंद कार में कहां बैठा था ?"

"ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर ।"

"ओह, फिर ऐसा हो सकता है। क्योंकि गोली तो बीच वाले पर चलाई गई थी।"

"तुम...।"

"तेरे से बाद में बात करता हूं मोगा ।" दिनेश चुरू ने कहकर फोन बंद किया और देवराज चौहान से बोला- "तुम्हारा निशाना चूक गया देवराज चौहान। रतनचंद नहीं, उसका गनमैन प्रकाश मारा गया है।"

"रतनचंद कहां बैठा था ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"ड्राइवर की पीछे वाली सीट पर।"

"बीच में नहीं ?"

"नहीं । तभी तो वो बच गया ।"

देवराज चौहान और प्रताप कोली की नजरें मिली।

"वो कहां  बैठा था ?" देवराज चौहान के होंठ हिले ।

"पीछे, बीच वाली जगह में।" प्रताप कोली हक्का-बक्का सा बोला- "उसके भीतर जाने के बाद एक गनमैन ने भीतर प्रवेश किया था ।"

"तो फिर उसकी जगह कैसे बदल गई ?"

प्रताप कोली, देवराज चौहान को देखता रहा ।

"बोलो, रतनचंद के बैठने की जगह कैसे बदल गई, जबकि वो पीछे, बीच में बैठा था ?"

"तुम ठीक कहते हो।" प्रताप कोली के होंठों से निकला ।

"उस तक हमारी खबरें पहुंच रही हैं। वो जानता है कि हम या कोई उसे मारना चाहता है।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।

"बाहरी लोगों को दिखाने के लिए वो कार के भीतर इस तरह बैठा कि देखने वाले को लगे कि वो बीच में ही बैठेगा। हम भी यही समझे, जबकि कार के दरवाजे बंद होने के पश्चात उसने अपनी जगह बदल ली की अगर उसे कोई  मारना चाहे तो वो धोखा खा जाये और यही हुआ।" प्रताप कोली ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी- "कोई हमारी खबरें उसे दे रहा था।"

"पहले तुमने बात नहीं मानी।"

"तब...तब मैंने सोचा तुम यूं ही कह रहे हो।" प्रताप कोली ने गहरी सांस ली।

"हमारी बातें बाहर जा रही हैं, ये तो बहुत गलत बात है ।" दिनेश चुरु बोला ।

देवराज चौहान ने कश लेकर प्रताप कोली और दिनेश को देखा।

"तुम्हें कुछ तो अन्दाजा होगा कि कैसे खबरें बाहर जा रही हैं ?"

दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

"हमारे द्वारा तो बाहर नहीं जा रहीं बातें।"

"तो किसके द्वारा हो रहा है ये सब ?" देवराज चौहान बोला ।

"हम।" प्रताप कोली को देखते हुए दिनेश चुरू ने कहा- "हरीश मोगा-अवतार सिंह या फिर शोरी साहब को बताते हैं कि यहां क्या होने जा रहा है। इसके अलावा और किसी को कुछ नहीं बताते।"

"तुम्हारा मतलब कि उन तीनों से ही बातें बाहर जा रही हैं और फिर रतनचंद को सब कुछ मालूम हो जाता है।"

दिनेश चुरू ने बेचैनी से प्रताप कोली को  देखा ।

"पर जो भी हो गड़बड़ तो है ही, प्रताप कोली ने कहा ।

"मैं तुम्हें सलाह देता हूं।" दिनेश चुरु बोला ।

"जरूर दो।"

"तुम हमें इस मामले से अलग कर दो, उसके बाद तुम ये काम करो। मेरे ख्याल में ठीक रहेगा ।"

"ये ठीक नहीं रहेगा।"

"क्यों ?"

"जो भी रतनचंद तक हमारी खबरें पहुंचा रहा है, उसका पता चल जायेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"कैसे ?"

"वो कभी तो कोई गलती करेगा ।"

प्रताप कोली देवराज चौहान को देखने लगा ।

देवराज चौहान ने कश लिया ।

"उसका पता जाने कब मिले ! उसकी वजह से हमें नुकसान भी पहुंचा सकता हैं।"

"वो हमें ऐसा ही नुकसान पहुंचा सकता है, जैसा आज हुआ है, यानि कि रतनचंद बच गया।

"मेरे ख्याल में।" जगमोहन ने पूछा- "कोली ठीक कह रहा है, हमें इन्हें अपने से अलग कर देना चाहिये।"

"मैं सहमत हूं जगमोहन की बात से।" सोहनलाल बोला ।

"जो जैसा चल रहा है, वैसा ही चलेगा, कोई बदलाव नहीं होगा।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा ।

कोई कुछ नहीं बोला ।

"रतनचंद कालिया इस वक्त कहां है ?"

"क्या पता !" कोली ने दिनेश चुरू से कहा- "तुम पता करो ।"

दिनेश चुरू ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।

नम्बर लगा, फिर उधर से आवाज कानों में पड़ी-

"हैलो ।"

"मैं बोल रहा हूं।"

"तुम फंसवाओगे मुझे। कितनी बार कहा है कि जब ड्यूटी पर होऊं तो फोन मत किया करो।"

"रतनचंद कहां है?"

"अपने बंगले पर। यहां पर सुन्दर ने तगड़ा पहरा लगवा दिया है।"

"वहां से वो सीधा बंगले पर आया ?"

"हां।"

"वो बचा कैसे ?"

"तुम्हें पता ही है ।"

"वो तो बीच में बैठा था। फिर वो साइड में कैसे हो गया?" दिनेश चुरू ने पूछा ।

आवाज नहीं आई ।

"बोलो ।"

"तुमने बहुत दिनों से नोट नहीं दिए।" दिनेश चुरू के कानों में आवाज पड़ी ।

"आज ले लेना । सतीश के पास जाना, वो तुम्हें दस हजार दे देगा। मैं उसे फोन कर देता हूं ।"

"सिर्फ दस हजार ?"

"और क्या चाहते हो  ?"

"बीस तो हो।"

"ठीक है, बीस ले लेना। ये बताओ रतनचंद ने जगह कैसे बदली ?" दिनेश चुरु ने पूछा ।

"R.D.X. की वजह से ।"

"R.D.X. दिनेश चुरू के माथे पर बल पड़े ।

"रतनचंद  R.D.X. की सहायता लेने जा रहा है। आज सुबह उसकी R.D.X. से बात भी हुई थी। उन्होंने ही कहा कि कार में बैठने के पश्चात वो जगह बदल लिया करें ।" उधर से आते शब्द दिनेश के कानों में पड़े ।

"ओह, R.D.X. के बारे में नई खबर ?"

"वो कल यहां पहुंच रहे हैं ।"

"रतनचंद को बचाने ?"

"हां।"

"हूं-ठीक है। मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा। सतीश से बीस हजार ले लेना।" दिनेश चुरू ने कहा और फोन बंद करके देवराज चौहान से कह उठा- "R.D.X.  से रतनचंद बात करता है ।  R.D.X. ने उसे कहा था कि कार में बैठने के पश्चात जगह बदल लिया करो।"

"खूब ।" देवराज चौहान अजीब से अंदाज में कह उठा ।

"अब ये मामला गंभीर होने जा रहा है ।" दिनेश चुरू ने कहा ।

"क्यों ?" प्रताप कोली ने पूछा ।

"कल सुबह  R.D.X. की तिकड़ी रतनचंद कालिया के पास पहुंच रही है।"

"ओह, तो रतनचंद ने उन्हें बुला लिया ?" प्रताप खोली कह उठा।

"सालों को देख लेंगे, वे तीनों तोप है क्या?" जगमोहन मुंह बनाकर बोला।

"तोप नहीं, बारूद हैं वे तीनों। R.D.X. यूं ही नहीं कहते उन्हें।" दिनेश चुरू ने गंभीर स्वर में कहा ।

"देखेंगे।" जगमोहन का स्वर भी जिद से भर गया।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े पड़े थे। गालों पर मुस्कान के भाव थे।

"पहले कभी सुना नहीं इस R.D.X. तिकड़ी के बारे में।" सोहनलाल ने कहा ।

"बेकार की हेकड़ी बना रखी होगी-।"

"वे तीनों बहुत खतरनाक हैं। किसी वहम मत रहना ।" प्रताप कोली ने चेताया ।

जगमोहन ने उसे घूरा, फिर कह उठा-

"R से राघव, D से धर्मा और X से एक्स्ट्रा। मुझे तो ये नमूने महसूस हो रहे हैं।"

"अगर तुम्हारे यही ख्याल रहे तो जल्दी मरोगे।" दिनेश चुरू ने कहा ।

"तुमने उन्हें देखा है ?" सोहनलाल ने पूछा ।

"एक बार ।"

देवराज चौहान ने टांगे फैलाई और सोफा चेयर पर पसरते कह उठा-

"रतनचंद के बारे में हमें हर खबर मिलती रहे और R.D.X.के बारे में भी ।"

"ये बात हम वहां स्थित अपने आदमी से कह देंगे । दिनेश, चल हम अपने कमरे में थोड़ा आराम कर लें।"

वे दोनों बाहर निकल गये ।

"आज रतनचंद निपट गया होता, अगर उसने जगह न बदली होती।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला ।

"और ये सलाह उसे R.D.X. ने दी थी।" देवराज चौहान बोला ।

जगमोहन और सोहनलाल ने उसे देखा ।

"साधारण आदमी फोन पर सतकर्ता भरी सलाह नहीं दे सकता।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम कहना क्या चाहते हो ?"

R.D.X. को कम मत समझो।" मेरे ख्याल से  वे तीनों परले दर्जे के खतरनाक लोग हैं। इतनी दूर रहकर, बातें सुनकर, ऐसी ठोस सलाह देने का मतलब है कि वो तीनों खेले खाये हैं।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा- "मैं उन्हें गंभीरता से ले रहा हूं और तुम दोनों भी उन्हें सतर्कता से लो। यूं भी दुश्मन कभी कमजोर नहीं होता- वो सिर्फ दुश्मन होता है ।"

"अगर वो सच में खतरनाक है तो फिर ये मामला लम्बा खिंच जायेगा ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।

"तो तुमने कैसे सोच लिया कि तीन करोड़ के काम को तीन घंटों में कर लोगे? तीन करोड़ एक मर्डर के लिये देने वाला बेवकूफ नहीं है। मेरे ख्याल से ये उसने पहले ही सोच लिया होगा कि इस काम को करने में परेशानियां आ सकती हैं।"

"मैंने तो सोचा था कि एक मर्डर ही करना है, एक-दो दिन में सब निपट जायेगा।"

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई और कश लिया, फिर जगमोहन से बोला-

"कल R.D.X. रतनचंद कालिया के पास पहुंच रहे हैं, उसे बचाने के मकसद से ।"

"यह तो नया पंगा ही खड़ा हो गया।" जगमोहन बड़बड़ा उठा ।

■■■

रतनचंद कालिया अपने कमरे में ही था। शाम के सात बज रहे थे।

फोन बजा। रतनचंद ने बात की। दूसरी तरफ उसकी पत्नी सोनिया थी ।

"मैंने आपको खुशखबरी देने के लिए फोन किया है।" सोनिया ने कहा ।

"क्या ?"

"मेरे भाई की शादी भी तय हो गई है । सप्ताह बाद का दिन निकला है । आपको हर हाल में आना है।"

"जरूर आऊंगा।"

"मैं सोचती हूं कि अब शादी में कुछ ही दिन बचे हैं। इधर तैयारियां भी करने हैं। बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं तो क्यों ना मैं शादी तक यहीं रह लूं, कामों में इनका हाथ भी बंटा दूंगी। ये भी यहीं रहने को कह रहे हैं।"

"तो रह लो।"

"ठीक है, आपको शादी पर वक्त में पहुंचना है, मैं आपको बीच-बीच में याद दिलाती रहूंगी।"

रतनचंद कालिया ने फोन बंद किया और कमरे के कोने में जा पहुंचा। जहां छोटा सा बाथरूम बना हुआ था ।

जिसमें पन्द्रह-बीस बोतले विदेशी ब्रांडों की सजी हुई थी। उसने गिलास उठाया और एक बोतल में पैग बना कर घूंट भरा और वापस कुर्सी पर आ बैठा। चेहरे पर शांत भाव थे। परंतु आंखों में बेचैनी भरी थी। दिल-दिमाग में सिर्फ एक ही बात बार-बार आ रही थी कि उसकी समस्या का हल केकड़ा के पास है। सिर्फ केकड़ा ही बता सकता है कि कौन उसे मारना चाहता है और कौन उसका निशाना लेने की चेष्टा में है ।

आज वो मर ही गया होता अगर एक्स्ट्रा (X-TRA) की बात मानकर जगह न बदली होती ।

फिर भी रतनचंद के लिए यह राहत की बात है कि कल R.D.X. उसके पास पहुंच रहे हैं।

उसी पल कदमों की आहट गूंजी और सुंदर ने भीतर प्रवेश किया ।

"सब ठीक है सर?"

रतनचंद ने सिर हिलाया । घूंट भरा । फिर कहा-

"कल R.D.X. आ आने से मैं कुछ निश्चिंत हो सकूंगा।"

"जी । मेरा तो ख्याल है कि अभी दो-चार दिन देख लेते हालातों को, तभी उन्हें बुलाते।"

"मैं मौत के कगार पर खड़ा हूं और तुम अभी भी देख लेने को कह रहे हो सुन्दर ?"

"सर, मैं भी तो हूं, आपको बचाने वाला ।"

"हर काम हर किसी के बस का नहीं होता। मेरे ख्याल में इस बार मामला ज्यादा खराब है।" रतन चंद ने घूंट भरा। जिस तरह मेरी जान लेने की कोशिश की गई, वो कीन्हीं मंजे हुए हाथों का कमाल था।"

"मेरा भी यही ख्याल है।"

"काले शीशों में से कुछ भी भीतर नहीं दिखता, परंतु गोली चलाने वाले ने, फिर भी सही निशाना ले लिया। सिर्फ एक ही गोली चलाई , दोबारा उसने फायर भी नहीं किया, क्योंकि उसे अपने पर भरोसा था कि गोली निशाने पर लगी है ।" रतनचंद कालिया ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- "मेरा दावा है कि मेरे पीछे खतरनाक लोग पड़े हैं।"

"वो जो भी है, बच नहीं सकेगा।"

"अभी कुछ भी कहना कठिन है।" रतनचंद के चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी- "क्योंकि हमारे सामने खतरनाक लोग हैं।"

"डिनर कर लेंगे आप ?"

"तुम क्यों पूछ रहे हो ?"

"डिनर मैं आप तक पहुंचाऊंगा। मैं नहीं चाहता कि कोई आप तक आ सके ।"

"मेरे नौकर सब वफादार हैं- तुम जानते हो सुन्दर।"

"जी, लेकिन मैं कोई लापरवाही ना बरत कर अपनी ड्यूटी पूरी करना चाहता हूं।" सुन्दर ने कहा ।

"जो मन में आये, करो। आठ बजे खाना ले आना । मैं जल्दी सो जाना चाहता हूं ।"

सुन्दर चला गया।

रतनचंद ने पैग समाप्त किया और दूसरा बना लाया ।

तभी पुनः फोन बजा ।

रतनचंद ने मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर देखा तो वहां कोई नम्बर ना आ रहा था, सिर्फ टेलीफोन का चिन्ह बना हुआ था ।

वो समझ गया कि फोन किसी पब्लिक से या प्राइवेट फोन से किया जा रहा है।

"हैलो ।" रतनचंद ने कालिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगा कर कहा ।

"कैसे हो रतनचंद?" केकड़ा की आवाज कानों में पड़ी ।

"तुम-।" रतनचंद ने खुद को संभाला ।

"किस्मत वाले हो, आज अपनी मौत दूसरे के गले में डाल दी।" केकड़ा की आवाज में गंभीरता थी ।

"तुमने-तुमने ही मुझे बताया था कि आज मुझ पर गोली चलाई जा सकती है । तभी तो बच पाया ।"

"ये तुम्हारी समझदारी रही कि तुम खुद को बचा गये।

"तुम सामने क्यों नहीं आते ?"

"क्या करूंगा सामने आकर?" बात करनी है तो फोन पर हो जाती है। खुद को बचाकर आज कैसा महसूस कर रहे हो ?"

"तुम जानकारी का इकट्ठा सौदा क्यों नहीं कर लेते? मुझे बताओ, कौन लोग मेरे पीछे हैं?"

"जब वक्त आयेगा तो सौदा भी करूंगा।"

"मैं तुम्हें दौलत देना चाहता हूं केकड़ा, दौलत के लिए कोई वक्त नहीं होता। जब भी आ जाये तभी बेहतर ।"

"मैं ऐसा नहीं सोचता। फिर अभी मुझे सोचना भी है ।

"क्या ?"

"तुम्हें जानकारी दूं, या उससे सौदा करूं जो तुम्हारी जान की सुपारी दे चुका है।"

"उससे क्या सौदा करोगे ?"

"मुंह बंद रखने का ।"

रतनचंद ने बेचैनी से पहलू बदला। घूंट भरा ।

"मैं तुम्हें उससे ज्यादा दौलत दूंगा ।"

"तुम्हें क्या पता कि वो मुझे क्या देगा ?"

"तुम जो कहोगे, मैं मान लूंगा।"

"छोड़ो इन बातों को, इस बारे में फिर बात करेंगे । सुना है तुम R.D.X. को अपनी सुरक्षा के लिए बुला रहे हो। मैंने तो ये नाम ही पहली बार सुना, फिर पता किया कि ये R.D.X. हैं कौन। पता चला कि खतरनाक तिकड़ी हैं।" केकड़ा की आवाज में हंसी के भाव आ गये- "लेकिन जो तुम्हारा निशाना लेना चाहता है वो भी धुरंधर है। खेल में मजा आयेगा रतनचंद ।"

"तुम उसका नाम क्यों नहीं बता देते ?"

"उससे क्या होगा ?"

"R.D.X. उसे खत्म करेंगे या उससे सौदा कर लेंगे कि वो मेरा निशाना ना ले ।"

"वो नहीं लेगा तो कोई दूसरा आ जायेगा । क्योंकि तुम्हें मरवाने वाला तो कोई और है ।"

"ठीक है, एक बात का जवाब तो दे सकते हो ।" रतनचंद ने घूंट भरकर पूछा ।

""पूछो ।"

"वो क्यों मुझे करवाना चाहता है ?"

"ये बता दिया तो शायद तुम उसे पहचान जाओ। इसलिए नहीं बताऊंगा।" केकड़ा की आवाज कानों में पड़ी ।

"आखिर तुम क्या चाहते हो ?"

"तुम्हारा भला कर रहा हूं कि तुम अपनी जान बचाओ। जैसे कि तुमने आज बचाई, वैसे ही आगे भी बचाना।"

"मेरे मरने या ना मरने में तुम्हारी क्या दिलचस्पी है ?"

"न लूं दिलचस्पी। खबर ना दूं तुम्हें ?"

"मैंने ये तो नहीं कहा ।"

"फिर बेकार के सवाल ना पूछो ।"

"अब मुझ पर कब हमला होगा ?"

"बताऊंगा-जरूर बताऊंगा। लेकिन मेरे भरोसे मत रहना। क्या पता मुझे भी खबर ना लगे और तुम पर हमला हो जाये। बेहतर होगा कि तुम अपनी नींद हराम करो और खुद को बचाओ। मौत का कोई पता नहीं चलता कि कौन से रास्ते से आ धमके।"

रतनचंद का चेहरा कठोर हो गया ।

"तुम मुझसे मिलो। मैं तुम्हें खुश कर दूंगा, ढेर सारी दौलत देकर।"

"जरूर मिलूंगा । अभी तुम कम दौलत दोगे, जब ज्यादा फंस जाओगे तो तब मिलूंगा, तब तुम मुहमांगी दौलत दोगे।"

"मैं अभी भी-।" रतन चंद ने कहना चाहा ।

परंतु दूसरी तरफ से केकड़ा में फोन बंद कर दिया था। रतनचंद ने गहरी सांस लेकर फोन बंद किया और एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया ।

"पता नहीं कौन हरामजादा है केकड़ा ।" बड़बड़ाता उठा रतनचंद कालिया- "सब कुछ जानता है लेकिन सामने नहीं आता । यहां मेरी जान पर बनी हुई है और ये हरामी अपने नोटों की रोटियां सेंकने में लगा है ।"

■■■

R.D.X. क्या है, आइये हम भी उन्हें देखें ।

इसी शाम R.D.X. की तिकड़ी समुद्र तट पर मौजूद थी। अंधेरा हो चुका था। समंदर से टकराकर आती ठंडी हवा दिनभर की गर्मी समंदर में मोटरबोटों की हैडलाइट चमक रही थी। एक बोट अभी-अभी यहीं से गई थी, उसकी आवाज अभी भी कानों में पड़ रही थी। ये बीच का सूनसान किनारा था ।

R - राघव ।

D - धर्मा ।

X - एक्स्ट्रा  (X-TRA) ।

तीनों खड़े समुंदर पर नजरें टिकाये हुए थे ।

एक्स्ट्रा ने कलाई पर बंधी घड़ी में नजर मारी, शाम के 7:45 हो रहे थे ।

अंधेरे में वे स्पष्ट नजर आ रहे थे।

तभी मोबाइल फोन की बेल बजने लगी ।

राघव का फोन था ये।

"हैलो।" उनसे बात की ।

"काम हो रहा है?" उधर से आवाज आई ।

"हां।"

"कब तक हो जायेगा ।"

"रात के भीतर ही होगा। तेरे को अब हमें फोन नहीं करना चाहिये, हमारे फोन का इंतजार कर ।"

"जब तक काम नहीं होगा, मुझे नींद नहीं आयेगी ।"

"तो सोने को किसने कहा है, जागता रहे।"

"फोन इधर दे।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

राघव ने फोन एक्स्ट्रा की तरफ बढ़ा दिया ।

"जब तक तू जागता रहेगा, हम काम नहीं करेंगे।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"ये तू कह रहा है एक्स्ट्रा...मैं...।"

"सो जा । तेरे को नींद आ रही है, अगर तू हमें जागता मिला तो तेरा काम खराब हो जायेगा ।"

"नहीं, काम खराब नहीं होना चाहिये, वरना मैं बर्बाद हो जाऊंगा।"

"तो सो जा ।"

"ठीक है, मैं... मैं...।"

एक्स्ट्रा ने फोन बंद करके राघव की तरफ उछाल दिया ।

राघव ने फोन थामा और जेब में रख लिया ।

तीनों के बीच खामोशी रही। नजरे समंदर पर दौड़ रही थी, जो अंधेरे में डूबा था।

राघव का फोन पुनः बजा ।

"बोल।" राघव ने बात की।

"जहाज का लंगर उठ रहा है। अगले पन्द्रह मिनट में छोड़ देगा।"

"बढ़िया । तेरे को अपना काम याद है न ?"

"हां ।"

"दस लाख दिया है तेरे को इस काम का। अगर काम नहीं हुआ तो तेरी लाश समंदर में पड़ी मिलेगी ।"

"मैंने रस्सा  तैयार कर रखा है, ठीक वक्त पर नीचे लटका दूंगा।"

"वर्दियां ?"

"वो भी तैयार हैं ।"

"हमारा शिकार कहां है ?"

"जहाज में चढ़ चुका है  वो। उसके साथ एक खूबसूरत लड़की भी...।"

"तू लड़की को देखता रहा, या शिकार को ?"

"मेरे लिए दोनों ही महत्वहीन हैं। तुम कब तक आ रहे हो।"

"जो वक्त तय हुआ है हम तभी पहुंचेंगे, तब जहाज की रफ्तार कुछ पलों के लिए शून्य हो जानी चाहिये। ताकि हम जहाज से लटकता रस्सा थाम सकें।" राघव ने सामान्य स्वर में कहा ।

"मैंने सब इंतजाम कर दिया है।"

"मिलते हैं।" राघव ने कहा और फोन बंद करके जेब में रखा ।

धर्मा ने जेब से फोन निकाला। नम्बर मिलाया ।

"हैलो।"

"बोट ले आ।" धर्मा ने कहा और फोन बंद करके बोला-

"ये काम खतरनाक है। हमें हर कदम सावधानी से उठाना होगा। जरा सी लापरवाही हमें फंसा सकती है या हमारे जानें भी जा सकती हैं।"

"हमारा हर काम ही खतरनाक होता है।" एक्स्ट्रा बोला ।

"लेकिन इस बार काम ज्यादा खतरनाक है ।"

"जहाज के भीतर जैसे हालात हमारे सामने आते हैं, सब कुछ इसी बात पर निर्भर है।" राघव ने कहा ।

तभी उसके कानों में बोट की आवाज पड़ने लगी।

तीनों आगे बढ़े और बोट के भीतर जा पहुंचे।

बोट के स्टेयरिंग पर बैठे व्यक्ति ने बोट आगे बढ़ा दी।

"तू रात भर हमारे साथ रहेगा डिसूजा।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"चौगुने पैसे लिए हैं तो क्यों ना रहूंगा।" बोट चलाने वाला डिशूजा मुस्कुराकर ऊंचे स्वर में कहा उठा ।

"क्या काम कैसे करना है, तेरे को बताएंगे। अभी तो सीधा ले तू बोट को। तट से रंगून के लिए जहां चल रहा है वो...।"

"7:55 वाला जहाज?" डिसूजा बोला ।

"जानता है तू ?"

"समंदर की हर हलचल को जानता हूं।" डिसूजा का स्वर ऊंचा था। क्योंकि बोट के इंजन की तेज आवाज गूंज रही थी।

"उस जहाज के समंदरी तट का पता है मुझे ?"

"पता है, वो किस रास्ते से जायेगा ।"

"उधर ही उसे पकड़ना है।"

■■■

8:35 का वक्त हो रहा था ।

डिसूजा को समन्दर की सतह पर बोट रोके पांच मिनट ही हुए थे कि दूर जहाज के सर्चलाइट जैसे तीव्र रोशनी, समन्दर की छाती पर पड़ती दिखाई दे रही थी। पीछे जहाज के भीतर जलने वाली लाइटें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। वो जहाज इसी तरह बढ़ रहा था, करीब पांच-सात मिनट के बाद वो सामने से मिलने वाला था।

"वो ही है धर्मा बोला ?"

"हां।" डिसूजा ऊंचे स्वर में बोला- "वो ही है। लेकिन तुम लोग करना क्या चाहते हो ?"

"दिमाग को कम इस्तेमाल कर। जो हमने कहा है, वो याद है ?"

"याद है। खतरे वाला काम है मेरे लिये। समन्दर में पुलिस भी गश्त लगाती है, वो मुझे देख सकते हैं।"

"तेरे को मुंह-मांगे पैसे दिये हैं।"

"तभी तो साथ हूं।"

"बोट में तेल है ?"

"टनाटन है। तेल आसानी से खत्म नहीं होगा।" डिसूजा ने कहा।

"मेरे ख्याल में वक्त हो चुका है धर्मा।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"मैं बात करता हूं।" राघव ने कहा और फोन निकालकर नंबर मिलाया। बात हो गई ।

"तेज जहाज आ रहा है।"

"मेरा नहीं, कम्पनी का है। मैं रस्सा लटका चुका हूं।" उधर से आवाज आई।

"मुझे जहाज की रफ्तार तेज लग रही है।" राघव ने कहा ।

"कब कम करनी है ?"

"हम तीन मिनट में जहाज के पास पहुंच जायेंगे। तू रफ्तार कैसे कम करेगा? इंजन रूम में तेरी पहुंच है ?"

"नहीं, लेकिन चालक दल के सदस्यों को पचास हजार देकर पटा लिया था। वो दो मिनट के लिए रफ्तार कम कर देगा।"

"तो कम करवा, हम पहुंच रहे हैं ।"

"जहाज पर ज्यादा गड़बड़ तो नहीं होगी? कहीं मैं फंस ना जाऊं?" उधर से आवाज आई ।

"क्या बच्चों जैसी बात करता है। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि बाहर से कोई जहाज में आया और चला गया। फिर तेरे बारे में तो किसी को भी पता नहीं चलेगा कि तूने कोई गड़बड़ की है, मस्त रहे।" राघव ने मीठे स्वर में कहा।

"ठीक है। फोन बंद कर। मैं इंजन रूम में अपने आदमी को फोन करके स्पीड कम करने को कहूं।"

"याद रख, रस्सा पश्चिम दिशा की तरफ लटकाना है। हम उधर ही हैं ।"

"पता है मुझे ।"

राघव ने फोन बंद किया और बोला-

"डिसूजा, बोट जहाज की तरफ ले। स्पीड कम होने वाली है जहाज की ।"

डिसूजा ने बोट स्टार्ट की ।

"लाइट मत जलाना।" एक्स्ट्रा कह उठा ।

डिसूजा ने बोट आगे बढ़ा दी।

सब की निगाहें जहाज पर ही टिकी थीं, जो इसी तरफ आ रहा था ।

दो मिनट बाद डिसूजा ने बोट की रफ्तार कम की और कह उठा-

"इससे आगे नहीं पहुंचेगा। जहाज के निकलने का रास्ता सामने ही है।"

जहाज अब करीब आ चुका था और काफी विशाल लग रहा था।

एकाएक उसे लगा जैसे जहाज की रफ्तार कम हो रही है। और पहाड़ जैसा जहाज उसके करीब आ पहुंचा था ।

"डिसूजा।" एक्स्ट्रा बोला- "बोट को आगे ले ।"

"बोट आगे लेने में खतरा है।"

"आगे ले।"

"डिसूजा ने बोट को आगे बढ़ाया ।

जहाज अब करीब आ चुका था। वो तीन सौ फीट की दूरी पर ही था। ये रास्ता भी बोट धीरे-धीरे तय करने लगी।

"वो उधर।" राघव बोला- "वहां शायद रस्सा लटक रहा है।"

"चल डिसूजा उधर ।"

"जहाज चल रहा है। जरा सा भी बोट को लगा कि बोट गई।" डिसूजा बड़बड़ा उठा।

बोट पास पहुंची ।

इस समय उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पहाड़ पानी में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा हो।

अब रस्सा उन्हें स्पष्ट नजर आने लगा था, जो कि समन्दर की सतह तक को छू रहा था।

सब कुछ सामने था ।

अब हरकत में आ जाने का वक्त था ।

जहाज धीरे-धीरे आगे बढ़ता नजर जा रहा था।

"राघव...चल।" एक्स्ट्रा का स्वर एकाएक सख्त हो गया ।

राघव ने फोन निकाला और डिसूजा को देते बोला-

"इसे अपने पास रख। कोई फोन बजे तो सुनना मत।" कहने के साथ ही राघव ने पानी में छलांग लगा दी ।

धर्मा और एक्स्ट्रा ने भी फोन डिसूजा को थमाए।

"अब तेरी बारी धर्मा।"

एक्स्ट्रा के शब्द पूरे हुए ही थे कि धर्मा फौरन पानी में कूद गया।

एक्स्ट्रा ने देखा, राघव ने रस्सा थाम लिया है और तेजी से ऊपर चढ़ने लगा है। धर्मा भी अब पास आ पहुंचा था। उसके देखते ही देखते धर्मा ने भी नीचे लटकते रस्से का सिरा थाम लिया। तभी धर्मा चौंका।

जहाज की रफ्तार एकाएक तेज होनी शुरू हो गई थी ।

"डिसूजा, बोट को आगे बढ़ा, जल्दी।" एक्स्ट्रा ने सख्त स्वर में कहा ।

डिसूजा ने ऐसा ही किया और बोला-

"खतरा है, तू मत जा। जहाज की बॉडी तेरे से टकरा सकती है। रस्सा पकड़ में नहीं आयेगा।"

एक्स्ट्रा की नजरें रस्से पर लटकते राघव और धर्मा पर थीं, जो हर पल ऊपर भी चढ़ते जा रहे थे।

"तेरे को पता है मुझे एक्स्ट्रा क्यों कहते हैं ?"

"क्यों?" डिसूजा बोट को फुल स्पीड पर जहाज के समान्तर दौड़ाये जा रहा था।

"मैं एक्स्ट्रा ही हूं । मेरा बाप मुझे एक्स्ट्रा कहते-कहते मर गया, लेकिन मेरी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। बाकी बात तेरे को आकर बताऊंगा। तेरे को जो समझाया है, वो याद रखना, वरना तेरी खैर नहीं।" इसके साथ ही एक्स्ट्रा समुंदर में कूदा और गोली की रफ्तार से, सीधे जाकर जहाज की तरफ बढ़ा।

जहाज की जरा सी टक्कर उसके शरीर के, पलक झपकते ही चिथड़े उड़ा सकती थी।

परंतु एक्स्ट्रा की निगाह तो जहाज की साइड से लटकते मोटे रस्से पर थी, जो कि जहाज की बढ़ती रफ्तार की वजह से हवा में झूलना आरंभ हो गया था।

तभी जहाज का वो हिस्सा लटक रहा था, उसके सामने से निकला ।

एक्स्ट्रा तैयार था ।

वो किसी डॉलफिन की भांति उछला और रस्से का हवा में लहराता किनारा थाम लिया। इसके साथ ही वो रस्से के साथ गोल-गोल घूमता चला गया। जहाज की बॉडी से, रस्से पर झूलता उसका शरीर टकराने लगा तो दोनो टांगें जहाज की तरफ करके खुद को बचाया और ऊपर देखा।

राघव रस्से पर नहीं था ।

यानि कि जहाज पर पहुंच चुका था।

धर्मा आधे से ज्यादा रस्सा तय कर चुका था ।

एक्स्ट्रा ने डिसूजा की बोट की तरफ देखा।

वो कहीं भी नजर ना आई और अंधेरे का हिस्सा बनकर, पीछे छूट चुकी थी ।

अगले ही पल एक्स्ट्रा, बंदरों की सी फुर्ती के साथ रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ता चला गया।

■■■

9.05 हुए थे, जब एक्स्ट्रा ने जहाज में कदम रखा ।

राघव कपड़े बदल चुका था और जहाज के स्टाफ की वर्दी में खड़ा धर्मा कपड़े पहन रहा था। पास ही में एक पैंतीस बरस का व्यक्ति खड़ा था जिसके शरीर पर जहाज के कर्मचारियों की वर्दी थी। वो एक्स्ट्रा से बोला-

"लो।" उसने हाथ में पकड़े कपड़े उसकी तरफ बढ़ाये- "जल्दी से पहन लो ।"

एक्स्ट्रा ने कपड़े थमाते हुए कहा-

"बहुत घबरा रहा है।"

"किसी ने मुझे तुम लोगों के साथ देख लिया तो नौकरी गई और जेल भी होगी।"

"वो लड़का और लड़की कहां पर हैं ?"

"इस वक्त डायनिंग हॉल नंबर दो में हैं, दूसरी मंजिल पर। कुछ देर पहले ही उन्हें वहां देख कर आया था। अब अगर वे वहां नहीं हैं तो मैं कुछ नहीं कर सकता।" उसने बेचैनी से कहा।

"तेरे को एक फालतू का फोन रखने को कहा था।" राघव बोला।

उसने तुरंत फोन निकालकर राघव की तरफ बढ़ाया ।

"गुड।" राघव ने उससे फोन लेकर जेब में डाला- "ये फोन तेरे से बात करने के लिए है।"

"अब तो मेरा पीछा छोड़ दो।"

एक्स्ट्रा कपड़े बदल रहा था।

"छोड़ दिया। यहां से निकलते समय तेरी जरूरत पड़ी तो तेरे को फोन किया जायेगा।"

"तुम लोगों ने जहाज पर पहुंचने को कहा था- "वो मैंने पहुंचा दिया।"

"तो हमें निकालोगे कि नहीं? अगर पकड़े गये तो तेरा नाम ले देंगे।"

"ऐसा मत करना।" वो हड़बड़ा करके उठा- "तुमने कहा था कि  पकड़े जाने पर मेरा नाम नहीं लोगे।"

"ठीक है, ठीक है।" धर्मा बोला- "ये मजाक कर रहा था। इस रस्से को इसी तरह लटकते रहने देना।"

"मैं तो लटकते रहने दूंगा। किसी और ने देखा और रस्सा ऊपर खींच लिया तो ?"

"ठीक है, तू जा।" एक्स्ट्रा कमीज के बटन बंद करता बोला- "अपने रास्ते लग। हमारा वो पैकेट दे दे, जो तेरे को शाम को दिया था।"

"वो उसी पल वहां से एक तरफ गया और फौरन लौट आया । हाथ में पैकेट था ।

"ये लो । इसमें क्या है?" देते हुए बोला।

"हमारे खाने-पीने का सामान है।" धर्मा पैकेट लेते बोला-

"अब तू खिसक ले।"

वो सच में खिसक गया ।

धर्मा ने पैकेट खोला ।

भीतर तीन रिवॉल्वर और फालतू मैग्जीन थीं।

तीनों ने एक-एक रिवाल्वर और मैग्जीन जेब में रख लीं।

"जहाज पर गोली न चलाई जाये तो बेहतर होगा।" धर्मा बोला- "हर जहाज पर अपना सिक्योरिटी सिस्टम होता है और तगड़ा होता है। हमें किसी की निगाहों में नहीं आना है। अपना काम करके जैसे खामोशी से आये हैं वैसे ही निकल चलना है।"

"हमें उस लड़की को वापस ले जाना है और साथ में उस दौलत को जो वो घर से ले भागी है।" राघव ने कहा ।

"मैं उसके हरामी आशिक को सबक सिखाऊंगा। वो आठ बार जेल जा चुका है। हत्या, बलात्कार और जबरन वसूली के उस पर पैंतीस मुकदमे चल रहे हैं। इस वक्त जमानत पर है और लड़की को भगाकर देश से खिसक रहा है।"

"उसके बारे में खबर कर दें तो वो यूं ही पकड़ा जायेगा।" धर्मा ने कहा ।

"तो हमारा काम क्या बचा? तब तो सब कुछ पुलिस ही कर लेगी।  लड़की के बाप से हमने मोटी रकम का सौदा किया है, लड़की को उस तक वापस पहुंचाने के लिए। इसलिए उस तक लड़की को हम ही पहुंचायेंगे और दौलत के हकदार बनेंगे।"

"राघव उससे यह नहीं पूछा कि दोनों किस केबिन में ठहरे हुए हैं ?" धर्मा बोला।

"अभी लो ।" राघव ने जेब से फोन निकाला और नंबर मिलाने लगा ।

बात हो गई।

"हैलो।"

"वो दोनों किस केबिन में ठहरे हैं ?" राघव ने पूछा ।

"पहली मंजिल के सात नम्बर केबिन में ।"

राघव फोन बंद करके जेब में रखता कह उठा-

"पहली मंजिल, सात नम्बर केबिन। और इस वक्त दोनों दूसरी मंजिल पर डायनिंग हॉल में हैं।"

"चलो।"

वे उस तरफ बढ़ गये, जिधर नीचे जाने की सीढ़ियां थीं ।

"पहले मैं किसी केबिन में जाकर दूसरे कपड़े हासिल करूंगा, उन्हें पहन कर ही वहां पहुंचूंगा। तुम चलो, मैं आता हूं ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

■■■

तीन-मंजिला जहाज था ।

राघव और धर्मा, जहाज के स्टाफ की वर्दी पहने उस तरफ बनी सीढ़ियां उतरने लगे। एक्स्ट्रा भी उनके पीछे था, परंतु तीसरी मंजिल आते ही सीढ़ियां छोड़कर गैलरी में आगे बढ़ गया। जबकि वो दोनों दूसरी मंजिल की गैलरी में आगे बढ़ने लगे। वहां लोग आ जा रहे थे, परंतु सब अपने काम में मस्त थे।

चलते-चलते राघव ने जेब से युवती की तस्वीर निकाली ।

वो एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर थी। जिसकी उम्र बाईस-तेईस बरस के करीब रही होगी।

"पहचान ले।" राघव ने कहा ।

धर्मा ने तस्वीर पर निगाह मारी ।

"ठीक है ।" धर्मा बोला ।

राघव ने तस्वीर जेब में रख ली ।

गैलरी अभी सीधी जा रही थी । बीच में मोड़ आया तो वे ठिठके। दो पल सोचने में लगाये कि इधर जायें या उधर जायें। तभी सामने से एक जोड़ा आता दिखा ।

"गुड ईवनिंग सर।" उनके पास पहुंचने पर राघव ने मुस्कुरा कर कहा ।

"गुड ईवनिंग।" दोनों ने मुस्कुराकर सिर हिलाया ।

"आपने डिनर ले लिया ?"

"अभी जल्दी क्या है।" उस व्यक्ति ने हंसकर कहा- "बारह बजे तक डिनर मिलता है नियम के मुताबिक ।"

"डायनिंग हॉल किस तरफ है ?"

"कमाल है ।" औरत ने दोनों के कपड़ों पर नजर मारी- "आप तो शिप के स्टाफ हैं और आपको पता नहीं कि डायनिंग हॉल किधर है।

"हम नये भर्ती हुए हैं ।" धर्मा बोला ।

"ओह। गैलरी में सीधे आगे चले जाइये। आगे भी ऐसा आयेगा। उसी मोड़ पर डाइनिंग हॉल है।" आदमी बोला ।

"मैं इससे कह रहा था कि आगे है डायनिंग हॉल, लेकिन ये माना नहीं।" धर्मा ने कहा, राघव के साथ आगे बढ़ गया ।

कुछ ही देर में दोनों डायनिंग हॉल के दरवाजे पर खड़े थे ।

तभी दरवाजा खुला और एक युवक बाहर निकला। इससे पहले कि दरवाजा बंद होता, राघव और धर्मा भीतर प्रवेश कर गये। ये पांच सौ गज में फैला, विशाल शानदार डायनिंग हॉल था, जिसकी सजावट देखते ही बनती थी। एक तरफ बॉर भी था कि जो डिनर के साथ ड्रिंक का मजा लेना चाहते हों, वो ले सकें।

पूरे हॉल में टेबल-कुर्सियां सजावट से लगा रखी थीं। कोई टेबल आठ चेयर वाली थी, कोई छः, और चार वाली थी। छत पर फानूस लगा था। एक इधर, एक कुछ हटकर।

इस समय आधे से ज्यादा टेबलें भरी हुई थीं।

मौजूदा लोगों का शोर, भिनभिनाहट जैसा लग रहा था।

"तू देख वो किधर हैं।" धर्मा ने कहा और उस तरफ बढ़ गया, जिधर बॉर था ।

राघव वहां बैठे लोगों पर नजरें दौड़ाता आगे बढ़ा ।

धर्मा बॉर काउंटर पर पहुंचा। वहां चार लोग मौजूद थे। एक साठ बरस का व्यक्ति जो की रैट में लगी बोतलों पर निगाह दौड़ा रहा था और बाकी के तीन युवक कस्टमर के लिए ड्रिंक तैयार करने में लगे थे। धर्मा के वहां पहुंचने तक, पहले से ही दो लोग वहां खड़े थे।

"गुड ईवनिंग सर।" युवक धर्मा को देखते ही बोला ।

"ठीक है यार। एक बढ़िया सा पैग बना। थोड़ा मोटा पैग बनाना। पूरा भीग गया ।

"भीग गये, वो कैसे सर ?"

"समन्दर में तैरा था ।"

"अच्छा-कब ?"

धर्मा ने मुस्कुराकर उसे देखा, फिर बोला-

"सप्ताह पहले ।"

"ओह, तो तब की सर्दी को एक सप्ताह बाद मिटा रहे हैं ?" युवक मुस्कुरा पड़ा ।

"वो बात नहीं। जब भी भीगने की बात याद आती है, सर्दी महसूस होने लगती है।"

"आप मजाक अच्छा कर लेते हैं।" युवक ने कहा और धर्मा के लिए पैग बनाने लगा।

धर्मा की निगाह पूरे हॉल में दौड़ रही थी ।

उसे राघव दिखा जो की कुर्सियों पर बैठे लोगों के बीच टहल रहा था ।

"सर-आपका गिलास।"

धर्मा ने गिलास उठाया और घूंट भरने लगा, नजरे हॉल में थी ।

तभी म्यूजिक का धमाका हुआ और सामने का स्टेज रोशन हुआ। धर्मा ने वहां नजर मारी । स्टेज पर चार म्यूजिशियन दिखे, देखते-ही-देखते जिन्होंने मधुर धुन बजानी शुरू कर दी थी । तभी पीछे से, स्टेज पर एक युवती प्रकट हुई और धुन की लहर पर डांस करने लगी । समां और भी रंगीन होने लगा ।

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