रात को लगभग नौ बजे सुनील चायना क्लब पहुंच गया । चायना क्लब एक बहुत बड़ी इमारत में स्थित थी जिसके बाहर एक शानदार स्वीमिंग पूल भी था ।
सुनील मेन हाल में जाकर कोने की एक मेज पर बैठ गया । क्लब में लड़कियों की भरमार थी । अतिथियों के मनोरंजन के लिये संसार की सबसे अधिक सुन्दर लड़कियां वहां एकत्रित की गई थीं । क्या होस्टेस, क्या वेट्रेस, सब सुन्दर थीं, सब जवान थीं, सब कमउम्र थीं । जिस ढंग का रंगीनीभरा वातावरण चायना क्लब में उत्पन्न किया गया था, उससे कोई स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि वह एक रंगीन नाइट क्लब होने के स्थान पर विदेशी जासूसों का अड्डा भी हो सकता था ।
सुनील एक घन्टे तक वहां बैठा स्काच पीता रहा ।
जो लड़की सुनील को सर्व कर रही थी, वह केवल पैंटी और पतली सी चोली पहने हुए थी । चोली पर लिखा था - सिल्विया ।
“सुनो ।” - सुनील ने उसे बुलाया ।
“यस, सर ।” - वह समीप आकर बड़े उत्तेजक स्वर में बोली ।
“तुम अमेरिकन हो ?”
“यस, सर ।”
“मिस चिन ली का कैब्रे डांस कब शुरू होता है ?”
“रात के बारह बजे ।”
“क्या ?” - सुनील हैरान होकर बोला - “इतना लेट ?”
“यह लेट नहीं है, सर । चायना क्लब का प्रोग्राम तो आरम्भ में जिस चिन ली के कैब्रे डांस से होता है ।”
“और यह सिलसिला कब तक चलता है ?”
“सुबह चार बजे तक ।”
“इसका अर्थ तो यह हुआ कि मैं बहुत जल्दी आ गया हूं । मैं बारह बजे तक क्या करूं ?”
“मनोरंजन ।” - वह मुस्कराकर बोली ।
“कैसे ?”
“मेरे साथ ।”
“कहां ?”
“बाहर लान में ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ । सिल्विया उसे क्लब के लम्बे-चौड़े लान में ले आई जिसके दूसरे सिरे पर स्वीमिंग पूल था ।
सुनील ने देखा, लान में कई जोड़े और भी थे । सब बिना किसी शर्म या झिझक के शारीरिक सुखों की प्राप्ति कर रहे थे ।
लान के कोने में आकर सिल्विया ने उसे अपने बांहों में भर लिया । सुनील ने कोई विरोध नहीं किया । सिल्विया का पारे की तरह थरथराता हुआ शरीर सुनील के साथ चिपका हुआ था और उसके लाल-लाल उत्तेजक अधर सुनील के अधरों पर टिके हुए थे ।
सुनील को अपनी सांस रुकती सी महसूस हुई ।
सिल्विया ने उसे बुरी तरह दबोच रखा था । सुनील के घुटने मुड़ने लगे । सिल्विया का एक हाथ उसकी गरदन से हटकर उसकी पीठ पर आ टिका । उसी हाथ के सहारे वह सुनील का शरीर धीरे-धीरे पीछे की ओर मोड़ने लगी ।
सुनील पर मदहोशी छा रही थी ।
अगले ही क्षण सुनील पीठ के बल जमीन पर पड़ा था और सिल्विया का सारा भार उसके शरीर पर था ।
सुनील बड़ी मुश्किल से स्वयं को उसके आलिगंन से मुक्त कर पाया । वह उठकर बैठ गया और लम्बी-लम्बी सांसें भरने लगा ।
“यू डू नाट लाइक दिस ?” - सिल्विया ने आश्चर्य चकित स्वर से पूछा ।
“वैरी मच, मैडम, आई लाइक इट वैरी मच ।” - सुनील हांफता हुआ बोला ।
“तो फिर ?” - सिल्विया फिर उसकी ओर बढी ।
“प्लीज ।” - सुनील हाथ उठाकर बोला ।
“कैसा आदमी है तुम ?” - सिल्विया बोली और चुपचाप उसकी बगल में बैठ गई ।
सुनील अपनी सांस व्यवस्थित करने की चेष्टा करता रहा ।
सिल्विया उसके चेहरे को देखती रही ।
“ऊपर की मंजिल में क्या है ?” - सुनील क्लब की इमारत की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“लग्जरी रूम्स ।”
“क्या मतलब ?”
“ऊपर क्लब की होस्टेसों के कमरे हैं जहां वे क्लब के मेहमानों का मनोरंजन करती हैं ।”
“लार्ड गोल्डस्मिथ का कमरा कहां है ?”
“तुम लार्ड को जानते हो ?” - सिल्विया के स्वर में हल्का सा जवाब का पुट था ।
“बहुत अच्छी तरह, डियरी ।” - सुनील उसकी कमर में हाथ डालता हुआ बोला । वह सिल्विया के मस्तिष्क को सैक्स के अतिरिक्त कोई और बात सोचने नहीं देना चाहता था ।
“ऊपर की मंजिल में जो राहदारी है” - सिल्विया उसके उपर चिपकती हुई बोली - “उसके दोनों और होस्टेसों के कमरे तक के आखिरी सिरे पर लार्ड का सूइट है ।”
सुनील चुप रहा ।
“और मेरा कमरा दांई ओर से आठवां है ।” - वह उत्तेजक स्वर में बोली ।
सुनील ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया और उसके होठों को चूमने लगा ।
“सिल्विया” - पांच मिनट बाद वह उसे अपने से अलग होता हुआ बोला - “यह देखो ।”
“क्या ?”
“सुनील ने जेब से सिगरेट लाइटर और सलामत अली का चित्र निकाला और लाइटर के प्रकाश में उसे सलामत अली का चित्र दिखाता हुआ बोला - “इसे पहचानती हो ?”
सिल्विया चित्र देखने लगी ।
“इसे कभी तुमने चायना क्लब में देखा है ?”
सिल्विया यूं सुनील से छिटक कर दूर हटी जैसे सुनील के शरीर में कांटे निकल आये हों ।
“मिस्टर !” - वह भयभीत स्वर से बोली - “कौन हो तुम ?”
“यह तो मेरे स्वाल का जवाब नहीं है ।”
“अपने सवाल को भूल जाओ । यह तो गनीमत समझो कि इस समय तुम्हारे साथ मैं हूं । अगर मेरे स्थान पर कोई और होस्टेस होती तो अभी तक तुम्हारी लाश जमीन पर पड़ी तड़प रही होती । यह देखो ।”
सिल्विया ने अपना बांया पांव सुनील की ओर बढाया । उसने अपने उस पांव के अंगूठे पर से नाखून उतार लिया । वह नाखून प्लास्टिक का बना हुआ था और वास्तविक नाखून पर इस ढंग से चढाया हुआ था कि अन्तर प्रकट नहीं होता था । नकली नाखून हटाते ही नीचे एक छोटी सी सूई दिखाई दी ।
“यह सूई ।” - सिल्विया बोली - “देख रहे हो न ? इस सूई की नोक भी अगर शरीर में प्रवेश कर जाए तो तत्काल मृत्यु हो जाती है और अगले दिन मृत की लाश अबरदीन हार्बर की गन्दगी में तैरती दिखाई देती है ।”
सिल्विया ने नाखून को फिर अपने स्थान पर लगा लिया ।
“तुमसे पहले भी एक आदमी ने एक होस्टेस से ऐसे प्रश्न किये थे । वह चायना क्लब से तो बचकर चला गया था लेकिन बाद में वह अपने होटल के कमरे में गला घोंट कर मार दिया गया था ।” - सिल्विया फिर बोली ।
“लेकिन यह सब कुछ होता किसके संकेत पर है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“लार्ड गोल्डस्मिथ ?”
“नहीं । असली बात कोई और ही है । लार्ड गोल्डस्मिथ को भी कोई और निर्देश देता है ।”
“तुमने मुझ पर इतनी कृपा क्यों की ?” - सुनील ने प्रश्नों का रुख बदलते हुये पूछा ।
“क्या मतलब ?”
“तुमने अभी कहा था कि अगर तुम्हारे स्थान पर कोई और होस्टेस होती तो मेरा शरीर अभी तक ठण्डा हो चुका होता । तुमने मुझे क्यों नहीं मारा ?”
“क्योंकि” - वह भर्राये स्वर से बोली । - “उन लोगों की आत्मा मर चुकी है लेकिन मैं अब भी एक प्यार करने वाली औरत पहले हूं, और कुछ बाद में । किसी की हत्या कर डालने जैसा नृषंस काम करने का साहस मुझमें नहीं है ।”
“तो फिर तुम यहां रहती क्यों हो ? यह काम क्यों करती हो ?”
“क्योंकि इसके अतिरिक्त कोई और चारा नहीं है ।” - वह रो पड़ी - “मुझे स्क्रीन एक्ट्रेस बनाने का शौक था । इसी लालच के कारण मैं इन लोगों के चंगुल में फंस गई । ये लोग मुझे कैलीफोर्निया से एक्ट्रेस बना देने के लालच में फुसला कर लाये थे । स्क्रीन एक्ट्रेस तो मैं बन नहीं पाई लेकिन अब मैं इन लोगों के संकेत पर हर रात किसी नये दरिन्दे की भेंट अपना शरीर यह प्रकट करते हुये चढाती हूं कि वह इस संसार का सबसे शानदार आदमी है और उसके संसर्ग में आकर मेरा जीवन धन्य हो गया है । यह सुनकर वह मुझे और भी नोचता-खसोटता है, मेरे मालिक खुश होते हैं और मेरा स्त्री जीवन धन्य हो जाता है ।”
उसने घुटनों में मुंह छिपा दिया ।
सुनील का भी दिल भर आया । अब से थोड़ी देर से पहले वह उस औरत को वेश्या से भी गई बीती औरत समझ रहा था लेकिन अब उसके मन में उसका स्थान देवी से भी ऊंचा हो गया था ।
क्षण भर के लिये वह अपना मिशन भी भूल गया ।
उसी समय सिल्विया उठ खड़ी हुई । अब वह फिर चायना क्लब की होस्टेस बन गई थी ।
“मिस्टर” - वह उत्तेजक स्वर से बोली - “मिस चिन ली के कैब्रे डांस का समय हो गया है । चायना क्लब में आकर मिस चिन ली का डांस नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा ।”
सुनील उठकर उसके साथ चल दिया और वापिस क्लब के मेन हाल में पहुंच गया ।
सुनील हाल में पहुंच गया ।
चिनी ली अपने अप्सराओं जैसे सुन्दर शरीर को झटके देती हुई महारानी की सी शान से हाल में प्रविष्ट हुई ।
आर्केस्ट्रा ओरियन्टल म्यूजिक के मदमाते स्वर वातावरण में प्रवाहित कर रहा था ।
हाल की सारी बत्तियां बुझा दी गईं और एक तेज स्पाट लाइट एक दायरे की शक्ल में चिन ली पर पड़ने लगी ।
डांस आरम्भ हुआ ।
कैब्रे डांस वास्तव में कितना उत्तेजक होता है वह सुनील को पहली बार अनुभव हुआ । तब तक उसने हालीवुड की सस्ती फिल्मों के भारत में बुरी तरह सैंसर किये गये कैब्रे डांस या ऐसे डांस ही देखे थे जिनमें डांसर की भाव भंगिमायें तो बड़ी उत्तेजक होती थीं लेकिन भारत में ऐसी बातों की कानूनी मनाही होने के कारण वे सारे कपड़े नहीं उतारती थीं ।
लेकिन चिन ली तो हर प्रकार के बन्धन से मुक्त थी । ओरियन्टरल म्यूजिक की स्वर लहरियों की ताल पर वह सारे हाल में पर तैरती सी फिर रही थी और धीरे-धीरे अपने वस्त्र शरीर से अलग करती जा रही थी ।
अन्त में उसने अपने शरीर का आखिरी वस्त्र भी उतार कर दर्शकों की ओर फेंक दिया और उसका भरपूर नग्न शरीर सैंकड़ों वासना से छलकती निगाहों का शिकार बनने लगा । लोग सांस रोके हुए उसके स्पर्धा की हद तक सन्तुलित शरीर को निहार रहे थे और मन ही मन उसके सहवास की कल्पना कर रहे थे । चिन ली अपने लम्बे ऊंचे शरीर के एक-एक अंग को झटके देती हुई सारे हाल में नाचती फिर रही थी । क्षण भर के लिये वह स्पाट लाइट के फोकस में से निकल जाती थी और हाल में बैठे लोगों में से किसी एक की गोद में जा बैठती थी लेकिन अभी उस आदमी को चिन ली के नग्न शरीर की ऊष्णता का अनुभव ही हुआ होता था और वह उसे दबोच लेने के लिये हाथ बढाने ही वाला होता था कि चिन ली बिजली की तरह तड़प कर उसकी गोद में से उठ जाती थी और फिर स्पाट लाइट के फोकस में आ जाती थी ।
उस आदमी के मुंह से निराशा की इतनी लम्बी हाय निकल जाती थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो क्योंकि, जैसा कि सुनील को बाद में मालूम हुआ, चायना क्लब की सारी लड़कियों में से केवल चिन ली ही ऐसी थी जिसकी प्राप्ति मेहमानों के लिए असम्भव थी । चायना क्लब की पहली मन्जिल में और होस्टेसों की तरह उसका बैडरूम नहीं था ।
चिन ली की वह नई शरारत आरम्भ होते ही हाल में शोर सा मच गया था । सब ये ही आशा लगाये बैठे थे कि इस बार चिन ली उनकी गोद में आकर बैठेगी और ऐसा हो भी जाता था लेकिन उससे पहले कि कोई उसे पकड़ सके उसका नग्न शरीर पारे की तरह विलासी हाथों से फिसल कर हाल के बीच में पहुंचा जाता था ।
सुनील चुपचाप अपनी सीट से उठा और चिन ली के कैब्रे में लोगों को मग्न छोड़ कर हाल से बाहर निकल आया ।
किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया था ।
वह ऊपर जाने की सीढियां तलाश करने लगा । एक अंधेरी सी राहदारी के सिरे पर उसे सीढियां दिखाई दीं ।
सुनील उस ओर बढा ।
सीढियों के पास पहुच कर वह ठिठक गया । पहली सीढी पर एक घुटे हुये सिर वाला चीनी बैठा हुआ था । उसके हाथ में एक भारी सी लोहे की छड़ थी ।
सुनील को देखते ही वह उठ खड़ा हुआ और जल्दी-जल्दी कैन्टोनीज में कुछ कहने लगा ।
“नो कैन्टोनीज ।” - सुनील हाथ उठा कर उसे रोकते हुए बोला - “स्पीक इंगलिश ।”
“मास्टर” - चीनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में बोला - “नो अप ।”
“क्यों ?”
“अकेला नहीं । ऊपर जाना । साथ में लड़की होनी जरूरी । अकेला ऊपर नहीं । नो अप । नाऊ गो ।”
लेकिन वापिस जाने के स्थान पर सुनील उसके और पास पहुंचा और अपने पर्स में से एक दस डालर का नोट निकालकर उसकी ओर बढाता हुआ बोला - “अब ?”
“नो ।” - चीनी कठोर स्वर से बोला ।
“और अब ?” - सुनील ने एक सौ डालर का नोट उसकी ओर बढाया ।
“नो, मास्टर, नो ।” - वह बोला - “नाट फार आल दि मनी यू हैव ।”
“ओके ।” - सुनील ने लापरवाही से नोट अपनी जेब में ठूंसे और वापिसी के लिये मुड़ा ।
एकाएक वह अपनी एड़ियों पर घूमा और उसके दायें हाथ का भरपूर घूंसा चीनी के जबड़े पर पड़ा ।
लोहे की छड़ उसके हाथ से छूट कर एक झनझनाहट की आवाज के साथ फर्श पर आ गिरी और वह एक लम्बी हाय के साथ सीढियों में लोट गया ।
सुनील ने झुक कर उसे गर्दन से पकड़कर सीधा किया और ताबड़-तोड़ तीन-चार घूंसे उसके पेट में जमा दिये ।
चीनी का चेतनाहीन शरीर उसके हाथों में झूल गया ।
सुनील ने एक-दो बार उसके गालों को थपथपाया लेकिन उसकी आंखें नहीं खुलीं । उसने एक नजर सुनसान गलियारे पर डाली और फिर उसने चीनी के शरीर को बांहों से पकड़ा और उसे गलियारे के दूसरे सिरे की ओर घसीटने लगा ।
उसे एक द्वार पर क्लाक रूम लिखा दिखाई दिया ।
उसने चीनी के चेतनाहीन शरीर को घसीट कर क्लाक रूम में डाल दिया और बाहर से द्वार बन्द कर दिया ।
वह दो-दो सीढियां फलांगता हुआ ऊपर की मन्जिल पर पहुंच गया ।
सीढियां उस लम्बे गलियारे के सिरे पर समाप्त होती थीं जिसका जिक्र सिल्विया ने किया था । गलियारे के आखिरी सिरे पर वह सूइट था जिसके द्वार गलियारे की लम्बाई में खुलते थे और सिल्विया के कथनानुसार वह सूइट लार्ड गोल्डस्मिथ का था ।
सुनील उस ओर बढा ।
अभी वह दूसरे सिरे से तीन-चार कमरे दूर ही था कि एक कमरे में से एक चीनी निकला और उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“यस सर ?” - वह शुद्ध इंगलिश में बोला ।
“क्या यस सर ?” - सुनील भोलेपन से बोला ।
“आप ऊपर कैसे आये ?” - चीनी ने पूछा ।
“सीढियां चढ कर ।”
“मेरा मतलब है, आप ऊपर आये क्या करने हैं ?”
“और लोग ऊपर क्या करने आते हैं ?” - सुनील ने फिर गोलमोल सा उत्तर दे दिया ।
चीनी कई क्षण संदिग्ध नेत्रों से उसे घूरता रहा ।
“आपकी किसी होस्टेस से एप्वायंटमैंट है ?” - फिर उसने पूछा ।
“और मैं क्या यहां झक मारने के लिये आया हूं ।”
“किससे ?”
“सिल्विया से ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“वह आप के साथ क्यों नहीं आई ?”
“वाट ?” - सुनील चिल्ला पड़ा - “अब हर बात की जिम्मेदारी मेरी ही...”
“धीरे बोलिये, सर ।”
“क्या हर बात की जिम्मेदारी मेरी ही है । सिल्विया मेरे साथ क्यों नहीं आई, यह तुम उससे पूछो । मुझे उसने कमरे में जा कर बैठने को लिये कहा था ।”
“आपको सिल्विया का कमरा मालूम है ?”
“नम्बर नहीं मालूम । उसने कहा था, गलियारे में दांयी ओर से आठवां कमरा उसका है ।”
चीनी के चेहरे से सन्देह के चिन्ह विलीन होने लगे । वह किसी हद तक सन्तुष्ट दिखाई देने लगा ।
“आई एम सारी, सर” - वह बोला - “लेकिन ऐसा पहले कभी हुआ नहीं ।”
“क्या मतलब ?”
“जब भी कोई होस्टेस किसी मेहमान को ऊपर लाने वाली होती है, पहले मुझे सूचना दी जाती है । लेकिन आपके विषय में मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया था । होस्टेसों द्वारा मनोरंजन के लिये लाये गये आदमियों को छोड़कर और कोई ऊपर नहीं आ सकता । नीचे सीढियों पर जो आदमी खड़ा होता है वह...”
एकाएक वह रुक गया । वह एक बार फिर सन्दिग्ध हो उठा ।
“सर” - वह तनिक कठोर स्वर से बोला - “नीचे सीढियों पर आपको किसी ने नहीं रोका ?”
सुनील हड़बड़ा गया लेकिन फिर सुसंसयत स्वर से बोला - “उस समय सिल्विया मेरे साथ थी ।”
“ओह !” - वह शांत स्वर से बोला - “आप सिल्विया के कमरे में बैठिये, मैं उसे तलाश करके लाता हूं ।”
उसने सुनील को सिल्विया का कमरा दिखा दिया । सुनील भीतर चला गया ।
“मैं सिल्विया को भेजता हूं ।” - वह बोला ।
“ओके ।”
चीनी ने बाहर से द्वार बन्द कर दिया और फिर बाहर ताले में चाबी घूमने की हल्की सी आवाज सुनाई दी ।
सुनील ने जल्दी से द्वार के पास पहुंच कर उसे अपनी ओर खींचा ।
द्वार टस से मस नहीं हुआ ।
सुनील फंस गया था ।
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा । फिर उसने मन ही मन एक योजना बनाई और उस पर कार्य करने लगा ।
उसने कमरे का सारा फरनीचर और बाकी भारी सामान द्वार के सामने अड़ा दिया ।
अभी तक बाहर से काई आहट नहीं हुई थी । शायद उस चीनी को अभी तक सिल्विया मिली नहीं थी ।
कमरे के दूसरी ओर का द्वार पीछे बालकनी में खुलता था । सुनील ने बालकनी में आकर नीचे झांका ।
बालकनी की ऊंचाई बहुत अधिक थी और दीवार के साथ-साथ कोई पाइप या ऐसी कोई चीज नहीं थी जिसे पकड़ कर नीचे उतर पाना सम्भव होता । और वहां से छलांग लगा देना आत्महत्या के समान था ।
सुनील परेशान हो उठा ।
उसने आस-पास दृष्टि दौड़ाई ।
बगल के कमरों की बालकनियों में पांच-पांच फुट का फासला था ।
सुनील आंखों ही आंखों में फासला नापता रहा ।
उसी समय गलियारे में कई कदमों की आहट गूंज उठी । सुनील ने मन ही मन फैसला किया और फिर बालकनी की मुंडेर पर चढ गया । उसने दांत भींच कर बगल वाले कमरे की बालकनी की ओर छलांग लगा दी । उस बालकनी की मुंडेर उसके हाथ में आ गई । वह जल्दी से ऊपर उठा और बालकनी में कूद गया ।
उसने बालकनी में पड़ने वाले उस कमरे के द्वार को धीरे से धक्का दिया ।
द्वार भीतर से बन्द था ।
धत तेरे की । - वह निराशपूर्ण स्वर में बड़बड़ाया ।
“मिस्टर, द्वार खोलिये ।” - कोई सिल्विया वाले कमरे का द्वार खटखटा रहा था ।
सुनील जल्दी से साथ वाले कमरे की बालकनी में कूद गया लेकिन उस कमरे का भी बालकनी की ओर वाला द्वार बन्द था ।
उससे अगले कमरे का द्वार भी बन्द था ।
“हे भगवान, यह सिलसिला कब तक चलेगा !” - वह बड़बड़ाया ।
अब सामने केवल एक बालकनी और बाकी थी, उसके बाद इमारत का कोना आ जाता था ।
सुनील ने अपने माथे से पसीना पोंछा और उस बालकनी की ओर छलांग लगा दी ।
बालकनी में पहुंच कर सुनील ने बड़ी आशा से द्वार को धक्का दिया । वह द्वार खुला था ।
अभी उसके नक्षत्र अच्छे थे ।
अब सिल्विया वाले द्वार पर चोटें पड़ने का स्वर सुनाई दे रहा था । सुनील कमरे में घुस गया ।
कमरा खाली था । भीतर जीरो वाट का नीला बल्ब जल रहा था ।
सुनील ने पहला काम यह किया कि उस कमरे के गलियारे की ओर खुलने वाले द्वार को भीतर से बन्द कर दिया और फिर सतर्क नेत्रों से कमरे का निरीक्षण करने लगा ।
वह ड्राइंग रूम था ।
फिर उसकी नजर दीवार पर लगे एक चित्र पर पड़ी ।
वह चित्र लार्ड गोल्डस्मिथ का था ।
उस संकट की स्थिति में भी सुनील के चेहरे पर मुस्कराहट फूट पड़ी । जिस कमरे तक पहुंचने की खातिर वह उस मुसीबत में फंस गया था वहां वह अनजाने में ही पहुंच गया था ।
क्षण भर के लिये सुनील के मस्तिष्क में से भाग निकलने का ख्याल उड़ गया । वह गोल्डस्मिथ के कमरे की तलाशी लेने का लोभ संवरण न कर सका ।
उसने ड्राइंग रूम की एक-एक चीज टटोलनी शुरू कर दी ।
“मिस्टर, द्वार खोल दो” - बाहर से सिल्विया के कमरे पर पड़ रही चोटों के साथ एक आवाज सुनाई दी - “तुम भाग नहीं सकते ।”
ड्राईंग रूम में सुनील को कोई सन्दिग्ध वस्तु नहीं मिली ।
वह बैडरूम में घुस गया ।
एक कोने में मेज पर एक छोटा सा रेडियो रखा था ।
“साले ने दो रेडियो क्यों रखे हुये हैं ?” - सुनील बड़बड़ाया । एक रेडियो उसने ड्राईंग रूम में भी देखा था ।
सुनील ने समीप जाकर रेडियो को देखा । उसे यह रेडियो कुछ असाधारण सा लगा । न तो उसमें एरियल था और न ही उसका कहीं बिजली के स्विच से कनेक्शन था ।
सुनील ने अनजाने में ही उस की नॉब को छेड़ दिया ।
रेडियो में सीटियां सी बजने लगीं ।
उसने फौरन स्विच आफ कर दिया । वह उत्तेजित हो उठा । वह ट्रांसमीटर था ।
सुनील ने जल्दी-जल्दी बैडरूम की बाकी चीजें टटोलनी आरम्भ कर दीं । उस ने हर जगह छान मारी लेकिन वे टैक्नीकल पेपर कहीं दिखाई नहीं दिये जिनकी खातिर वह यहां आया था ।
एक मेज की दराज में से उसे एक पत्र मिला । उस पर इंगलिश में लिखा था:
सलामत अली को वापिस भारत भेज दो । लेकिन वह नक्शे अपने साथ नहीं ले जायेगा । कथित ड्राईंग के लिये उसकी पांच दिन तक प्रतीक्षा करो । उसके बाद टैक्नीकल पेपर पेकिंग पहुंचा दो ।
नीचे किसी के हस्ताक्षर नहीं थे ।
सुनील ने वह कागज जेब में ठूंस लिया ।
“ब्लडी फूल्ज !” - उसी समय गलियारे में लार्ड गोल्डस्मिथ का स्वर गूंज उठा - “क्या कर रहे हो ?”
“सर” - उस चीनी का स्वर सुनाई दिया जो सुनील को भीतर बन्द कर के गया था - “भीतर कोई आदमी है...”
और उसने जल्दी-जल्दी सारी स्थिति बयान कर दी ।
“और तुम क्या कर रहे हो ?” - गोल्डस्मिथ ने पूछा ।
“कमरे में घुसने के लिये द्वार तोड़ रहे हैं ।”
“गधे ! अभी तक वह भीतर बैठा होगा ?”
“लेकिन, सर, वह पिछली ओर से नहीं भाग सकता । उधर ऊंचाई बहुत है और नीचे उतरने का कोई साधन नहीं है ।”
“बेवकूफ !” - गोल्डस्मिथ चिल्लाया - “मेरी बैडरूम की खिड़की के साथ पाइप है । अगर वह पीछे से बालकनियां फांद कर वहां पहुंच गया तो...”
सुनील ने बाकी बात सुनने की परवाह नहीं की ।
“किसी को नीचे भेजो ।” - कोई चिल्लाया और उसे समीप आगे कदमों की आहट सुनाई दी ।
सुनील ने जल्दी से बड़े बैडरूम की खिड़की खोली और पाइप के सहारे नीचे उतरने लगा ।
एक चीनी उसी ओर भागता हुआ आ रहा था ।
सुनील ने अपने पांव धरती पर टिकाये और सम्भल कर खड़ा हो गया ।
क्योंकि चीनी प्रकाश से अन्धकार में आया था इसलिये वह अभी तक सुनील को देख नहीं पाया था ।
जब वह सुनील से केवल तीन गज दूर रह गया तो सुनील एकाएक गोल्डस्मिथ जैसे भारी स्वर से अंग्रेजी में चिल्ला कर बोला - “डैम फूल ! यहां नहीं । वह सिल्विया के कमरे में है । उसकी बालकनी पर नजर रखो ।”
चीनी उल्टे पांव सिल्विया के कमरे के पिछवाड़े की ओर भागा ।
सुनील ने वहां से चलने के लिये कदम बढाया ही था कि कोई ऊपर गोल्डस्मिथ के कमरे में से चिल्लाया - “वह भागा जा रहा है ।”
“शूट !” - किसी ने आदेश दिया ।
अगले ही क्षण एक फायर हुआ और भागता हुआ चीनी लड़खड़ाकर गिर पड़ा । फिर दो फायर हुआ और हुये और चीनी का निश्चेष्ट शरीर जमीन पर लोट गया ।
अन्धकार होने के कारण शायद वे लोग भागते हुये चीनी को सुनील समझ बैठे थे ।
“नीचे चलो ।” - गोल्डस्मिथ का स्वर सुनाई दिया - “देखो, कौन है वह !”
जिस ओर चीनी की काश पड़ी थी, उधर से ही निकल भागने का एक रास्ता था और उसी रास्ते से गोल्डस्मिथ के आदमी कभी भी प्रकट हो सकते थे ।
जब ऊपर से आवाजें आनी बन्द हो गईं तो सुनील बड़ी फुर्ती से पाइप के सहारे ऊपर चढने लगा ।
कुछ ही क्षण बाद वह फिर गोल्डस्मिथ के सूइट में था ।
दोनों कमरे अब भी खाली थे ।
सुनील ने ड्रेसिंग टेबल से ब्रुश उठाकर अपना सूट झाड़ा, टाई की नाट ठीक की, बालों में कंघी की और फिर धीरे से द्वार खोल कर बाहर झांका ।
गलियारा खाली था ।
सुनील बाहर निकल आया और फिर अपनी पैंट की जेबों में हाथ ठूंस कर लापरवाही से सीटी बजाता हुआ सीढियों की ओर बढ चला ।
सुनील ने सीढियों में नीचे झांका । वहां भी कोई नहीं था ।
सुनील जल्दी से सीढियां उतरा और मेन हाल की ओर जाने वाले गलियारे में चलने लगा ।
उसी समय गलियारे में कैब्रे डांसर चिन ली दिखाई दी ।
सुनील जल्दी से बगल का एक द्वार खोल कर भीतर घुस गया ।
उस कमरे में एक बड़ी सी मेज के पीछे एक चीनी बैठा था ।
“यस !” - वह भवें चढ़ा कर बोला ।
“क्लाक रूम ?” - सुनील ने पूछा ।
“ओह !” - चीनी मुस्कराया - “नेक्सट डोर ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील सिर झुका कर बोला - “थैंक्यू वैरी मच ।”
वह बाहर निकल गया ।
रास्ता साफ था ।
वह एक बार फिर लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ मेन हाल में पहुंच गया ।
हाल में रंगीनियों की महफिल जवानी पर थी । मेहमान जनाब और शबाब का यहां भरपूर आनन्द ले रहे थे । ऊपर हो चुके इतने बड़े हंगामे का वहां लेशमात्र भी प्रभाव नहीं था ।
सुनील चुपचाप अपनी सीट पर जा बैठा ।
उसी समय सिल्विया सुनील के पास पहुंची । उस समय यह एक शानदार गाउन पहने हुए थी ।
“हल्लो !” - सुनील बोला ।
“तुम कहां थे ?” - सिल्विया ने पूछा ।
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने एक नजर नाचते हुए जोड़े पर डाली और फिर अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “डांस ?”
सिल्विया चुपचाप उसकी बांहो में आ गई ।
वे लोग भी नाचते हुए जोड़ों की भीड़ में मिल गये ।
“तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ।” - वह सुनील के कान के पास मुंह ले जाकर बोली ।
“क्या जवाब देना जरूरी है ?”
“हां । जानते हो यह होस्टेस की जिम्मदारी होती है कि वह अतिथियों को इधर-उधर भटकने न दे । पिछले एक घन्टे से तुम कहां थे, मुझे कुछ भी नहीं मालूम ।”
“मैं तुम्हारे साथ था ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन...”
उसी समय आक्रेस्ट्रा बजना बन्द हो गया । सुनील ने सिल्विया का हाथ थामा और वापिस अपनी टेबिल पर लौट आया ।
समीप आकर वह ठिठक कर खड़ा हो गया ।
टेबल के पास लार्ड गोल्डस्मिथ खड़ा था और सन्दिग्ध नेत्रों से उसे घूर रहा था ।
“हल्लो लार्ड” - सुनील आगे बढ कर बोला - “रिमेम्बर मी ? मैं आपको हाउसबोट पर मिला था ।”
“यस, मिस्टर कमाल” - वह बोला - “आई रिमेम्बर यू ।”
फिर वह सिल्विया से बोला - “जस्ट ए मूमेन्ट ।”
“एक्सक्यूज अस, मिस्टर कमाल ।” - वह सुनील से बोला और सिल्विया को एक ओर ले गया ।
कुछ क्षण वह छुपी आंखो से सुनील को देखता हुआ सिल्विया से कुछ पूछता रह फिर सिल्विया लौट आई और सुनील के सामने आकर बैठ गई ।
“एन्जाय यूअरसैल्फ, मिस्टर कमाल ।” - गोल्डस्मिथ बोला और वहां से हट गया ।
“तुम्हारी तकदीर बड़ी अच्छी है ।” - सिल्विया गहरी सांस लेकर बोली ।
“क्या पूछ रहा था ?”
“तुम्हारे बारे में ।”
“क्या ?”
“कि पिछले एक घन्टे से तुम कहां थे ।”
“तुमने क्या बताया ?”
“मैंने कहा, तुम मेरे साथ थे । लान में ।”
“उसने यह नहीं पूछा कि मेन हाल की रंगीनियां छोड़कर हम एक घन्टे लान में क्या करते रहे थे ?”
“नहीं । क्योंकि वह जानता है कि लान के अन्धेरे में यहां आये हुए लोग होस्टेसों के साथ जो कुछ करते हैं, उसके मुकाबले में मेन हाल का प्रोग्राम आधा भी रंगीन नहीं होता ।”
“लेकिन तुमने मेरी खातिर झूठ क्यों बोला ?”
“क्योंकि मुझे इन लोगों से घृणा है । इनका कोई अहित करके मेरी आत्मा को बड़ी शान्ति मिलती है ।”
सुनील ने फिर कोई प्रश्न नहीं किया ।
उसी समय कोई माईक पर बोला - “लेडीज एण्ड जन्टलमैन, अब आपके सामने प्रस्तुत है आज की रंगीन रात का आखिरी नृत्य । प्रस्तुत कर रही हैं मिस चिन ली ।”
हाल तालियों से गड़गड़ा उठा । अब तक चिन ली के नृत्य का सबको अच्छा खासा अनुभव हो चुका था ।
चिन ली मेल हाल में प्रकट हुई । उसके सारे शरीर पर वस्त्रों के स्थान पर रंग-बिरंगे गुब्बारे बंधे हुए थे । नृत्य आरम्भ करने से पहले वह मुस्कराहटें बिखेरती हुई हाल में लगी मेजों के बीच में घूम गई ।
सुनील की मेज के पास पहुंचकर वह क्षण भर के लिये ठिठकी ।
“हल्लो ।” - वह मीठे स्वर से बोली - “मिस्टर कमाल, आप कब से बैठे हैं यहां ?”
“ग्यारह बजे से ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि आप मेरे पहले नृत्य के समय भी यहां मौजूद थे ?”
“हां ।”
“मैंने नहीं देखा आपको !”
“आप मेरे से अधिक महत्वपूर्ण आदमियों के मनोरंजन में व्यस्त थीं ।”
“खैर, इस बार आपका खास ख्याल रखूंगी ।” - वह बोली और वहां से हट गई । लोग ईर्ष्यापूर्ण नेत्रों से सुनील को घूर रहे थे ।
“इसके शरीर पर कपड़ों के स्थान पर गुब्बारे पहनने का क्या अर्थ है ?” - सुनील ने सिल्विया से पूछा ।
“अभी खुद देख लोगे ।” - सिल्विया बोली ।
चिन ली वापिस हाल के बीच में पहुंच गई ।
आर्केस्ट्रा बजना आरम्भ हो गया ।
संगीत की ताल पर चिन ली अतिथियों के सामने थिरकने लगी ।
नाचती-गाती हुई वह एक मेज के समीप पहुंची । वहां बैठे हुए मोटे अमेरिकन ने अपने सिगरेट का जलता हुआ भाग चिन ली के उन्नत वक्ष पर बंधे एक गुब्बारे को छुआ दिया ।
गुब्बारा भड़ाक की आवाज से फट गया और चिन ली के शरीर का कुछ भाग नंगा हो गया । चिन ली तड़पकर वहां से हट गई ।
“गुब्बारों का मतलब समझ में आया ?” - सिल्विया ने सुनील से पूछा ।
सुनील चुप रहा ।
“यही चिन ली का आर्ट है जिसके कारण वे लोग भी यहां खिंचे चले आते हैं जिन्होंने ऐसे नृत्य के बाद इसके नग्न शरीर को सैकड़ों बार देखा होता है । अपने शरीर को निर्वसन करने के लिये यह हर स्ट्रिपटीज परफारमैंस में एक नया टैक्नीक इस्तेमाल करती है और दर्शक पागल हो उठते हैं । अब लोग गुब्बारे फाड़-फाड़ कर चिन ली के सैकड़ों बार देखे हुए अंगों को फिर से देखने के लिए पागल हो उठेंगे ।”
लोग शोर मचा रहे थे और अपने जलते हुए सिगार और सिगरेट चिन ली के शरीर पर बचे हुए गुब्बारों तक पहुंचाने के लिये उतावले हो रहे थे । लेकिन चिन ली जानबूझ कर क्लाईमेक्स को लेट किये जा रही थी ।
संगीत का स्वर तेज होता जा रहा था ।
चिन ली के नृत्य की गति बढती जा रही थी ।
गुब्बारों की संख्या घटती जा रही थी ।
अन्त में चिन ली के शरीर पर केवल एक गुब्बारा रह गया ।
लोगों के हाथ आतुरता से उस गुब्बारे तक पहुंचने की चेष्टा करने लगे लेकिन चिन ली सुनील के सामने आ खड़ी हुई ।
सुनील कृत्रित प्रकाश में चमकते हुए उसके अनावृत शरीर को देखते रहने की ताब न ला सका । उसके नेत्र झुक गये ।
“मिस्टर कमाल” - चिन ली मधुर स्वर से बोली - “इस क्लब में चिन ली के शरीर से अन्तिम आवरण हटाने वाला हीरो समझा जाता है और स्पर्धा की दृष्टि से देखा जाता है ।”
सुनील पसीने से भीग गया । चिन ली निमंत्रणभरे नेत्रों से उसकी ओर देख रही थी । हर आदमी के नेत्र सुनील और चिन ली पर टिके हुए थे ।
सुनील स्वयं को बेवकूफ बनता महसूस कर रहा था । मेज के नीचे सिल्विया ने उसके पांव पर ठोकर मारी ।
सुनील ने कांपते हाथों से अपना सिगरेट गुब्बारे से छुआ दिया ।
चिन ली का पूर्णरूपेण अनावृत शरीर एक बार उसके सामने लहराया । फिर चिन ली ने एकाएक उसे अपने आलिंगन में भर लिया और अगले ही क्षण सुनील ने यूं अनूभव किया जैसे उसके गाल पर अंगारा रख दिया गया हो ।
चिन ली फिर हाल में पहुंच गई थी ।
“हे भगवान !” - सुनील बड़बड़ाया - “कहां फंस गया मैं !”
“तुमने कहा कुछ ?” - सिल्विया ने पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बोला ।
लोगों का ध्यान फिर चिन ली की ओर आकृष्ट होते ही वह उठ खड़ा हुआ ।
“कहां ?” - सिल्विया ने पूछा ।
“बैक टू पैविलियन ।” - सुनील बोला - “मेरे संस्कार ऐसे नहीं है कि मैं ये सब सहन कर सकूं ।”
सिल्विया भी उठ खड़ी हुई ।
सुनील ने बिल चुकाया और बाहर निकल आया ।
“मुझे तुमसे हमदर्दी है ।” - वह सिल्विया का हाथ दबाता हुआ बोला ।
“थैंक्यू ।” - वह डबडबाई आंखों से सुनील को देखती हुई बोली - “मैं तुम्हें याद रखूंगी, अपने जीवन में आये पहले व्यक्ति के रूप में जिसने मुझसे घृणा करने के स्थान पर हमदर्दी दिखाई ।”
“बाई ।” - सुनील बोला ।
“बाई ।” - सिल्विया बोली ।
सुनील ने घड़ी देखी । चार बज चुके थे । अन्धकार अब भी घना था ।
***
अपने होटल में सुनील दोपहर के बाद लगभग तीन बजे सो कर उठा । उसने स्नान किया, नया सूट पहना, नीचे डाईनिंग हाल में जाकर खाना खाया और होटल से बाहर निकल आया ।
वह पैदल ही यामाती एंकरेज पहुंच गया ।
मुहम्मद किनारे से दूर हट कर एक पत्थर पर बैठा हुआ था ।
“हल्लो, मास्टर !” - मुहम्मद उसे देखकर बोला ।
“तुम कल से ही यहां हो ?”
“यस, मास्टर ।”
“एक क्षण के लिये भी कहीं नहीं गये ?”
“नो ।”
“आई एम सारी, ब्वाय ।” - सुनील उसका कन्धा थपथपा कर बोला ।
“नैवर माइन्ड, मास्टर ।” - मुहम्मद बोला - “मुझे आदत है ।”
“मुहम्मद” - वह बात बदलता हुआ बोला - “तुम जानते हो कल रायल होटल में एक चीनी ने गौतम नाम के एक आदमी की हत्या कर दी थी और बाद में वो भी होटल से छलांग लगा कर मर गया था ?”
“यस, मैं खूब जानता हूं । उसका नाम मिंग था । वह पेशेवर हत्यारा था । दूसरों से धन लेकर हत्यायें करना ही उसका पेशा था ।”
“क्या तुम पता लगा सकते हो कि गौतम की हत्या उसने किसके संकेत पर की थी ?”
“मैं पता लगा सकता हूं ।” - मुहम्मद पूर्ण विश्वास से बोला - “मिंग का एक भाई है । दोनों एक-दूसरे की राय के बिना कोई काम नहीं करते थे । जो बात मिंग को मालूम होती थी, उसके भाई को भी मालूम होती थी । उसका भाई सब कुछ बता देगा लेकिन...”
और मुहम्मद ने अपने बांये हाथ से अपने दांये हाथ की हथेली खुजलाई ।
सुनील उसका अर्थ समझ कर जेब से बटुआ निकालता हुआ बोला - “सौ डालर काफी होंगे ?”
“पचास ही बहुत हैं, मास्टर । पचास डालर में तो वे एक हत्या करने के लिए तैयार हो जाते हैं ।”
“ठीक है । अब हाउसबोट के विषय में बताओ ।”
“हाउसबोट पर लोगों का आवागमन तो होता ही रहा है लेकिन इस समय वहां एक नकटा चीनी पहरेदार और चायना क्लब की डांसर चिन ली के अतिरिक्त कोई नहीं है ।”
“लार्ड गोल्डस्मिथ नहीं है वहां ?”
“नहीं ।”
“देखो, मुहम्मद” - सुनील बोला - “तुम अपना काम करो । मैं हाउसबोट के भीतर जा रहा हूं । मैं गोल्डस्मिथ के केबिन की तलाशी लेना चाहता हूं ।”
“मास्टर, सावधान रहना । हांगकांग में समुन्दर में हत्या करना बहुत सुविधाजनक होता है ।”
“चिन्ता मत करो, प्यारे” - सुनील लापरवाही से बोला - “अब तुम फूट जाओ यहां से । मुझे मेरे होटल में मिलना ।”
“ओके, मास्टर ।”
और मुहम्मद वहां से चला गया ।
सुनील कुछ क्षण किनारे पर खड़ा हाउसबोट को देखता रहा । हाउसबोट में सन्नाटा था ।
सुनील चुपचाप भीतर कूद गया ।
सीढियां उतर कर वह उस गलियारे में पहुंच गया जिसके दोनों और लकड़ी के केबिन बने हुये थे और जहां उसने पहली बार गोल्डस्मिथ और चिन ली को देखा था ।
सुनील हैरान था कि अभी तक उसका पहरेदार से सामना क्यों नहीं हुआ था ?
सुनील सबसे पहले उस केबिन में घुसा जिसमें से कल उसने गोल्डस्मिथ को निकलते देखा था ।
केबिन खाली था । सुनील ने द्वार भीतर से बन्द कर लिया और केबिन की तलाशी लेनी आरम्भ कर दी ।
टैक्नीकल पेपर उसे कहीं दिखाई नहीं दिये । लेकिन सुनील को वहां भी एक वैसा ही ट्रांसमीटर रखा दिखाई दिया जैसा उसने चायना क्लब में गोल्डस्मिथ के सूइट में रखा देखा था ।
टैक्नीकल पेपर वहां न मिलने पर सुनील को अधिक निराशा नहीं हुई क्योंकि यह बात अब तक स्पष्ट हो चुकी थी कि गोल्डस्मिथ बॉस नहीं था और ऐसी सूरत में इतने महत्वपूर्ण पेपर उसके अधिकार में हों, यह युक्तिसंगत नहीं लगता था लेकिन फिर भी सम्भावना तो थी ही इसलिये तलाश कर लेने में कोई हर्ज नहीं था ।
लेकिन प्रश्न तो यह था कि वास्तविक बॉस कौन था ।
सुनील ने धीरे से केबिन का द्वार खोला और गलियारे में झांका ।
बाहर कोई नहीं था ।
वह फुर्ती से गलियारे में आया और साथ वाले केबिन में घुस गया । उसने द्वार भीतर से बन्द कर लिया लेकिन घूमते ही उसे अपने पेट की सीध में रिवाल्बर की नाल दिखाई दी । वो रिवाल्वर नकटे चीनी के हाथ में थीं और वह कठोर नेत्रों से उसकी और देख रहा था ।
उसके साथ एक और चीनी खड़ा था ।
“अपने स्थान से हिलना मत ।” - नकटा बोला ।
“बेवकूफ” - सुनील बोला - “मैं लार्ड लार्ड गोल्डस्मिथ के निमन्त्रण पर यहां आया हूं ।”
“अच्छा !” - नकटा बोला - “तो फिर कमरों की तलाशी क्यों लेते फिर रहे थे ?”
“मैं गोल्डस्मिथ को ढूंढ रहा था ।” - सुनील लापरवाही का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
“आप साहब को अलमारियों में, मेज के दराजों में और बिस्तरों के नीचें ढूंढ रहे थे ?” - नकटा व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील चुप रहा । शायद उसकी हर गतिविधि पर नकटे की पहले से ही नजर थी ।
“इसे कुर्सी से बांध दो ।” - नकटा अपने साथी से बोला ।
सुनील को सिल्क की एक रस्सी की रस्सी की सहायता से कुर्सी के साथ इतनी मजबूती से बांधा गया कि रस्सी सुनील के शरीर में गड़ने लगी ।
फिर नकटे ने दूसरे चीनी को कैन्टोनीज में कुछ कहा जिसमें से सुनील की समझ में दो ही शब्द आये - चायना क्लब और लार्ड गोल्डस्मिथ । दूसरा चीनी सिर हिला कर बाहर निकल गया ।
शायद वह चायना क्लब में गोल्डस्मिथ को उस घटना की सूचना देने जा रहा था - सुनील ने सोचा ।
“मैं बाहर गलियारे में बैठा हूं ।” - नकटा उसके मुंह के सामने रिवाल्वर हिलाता हुआ बोला - “अगर रस्सी तुड़ा कर भाग सको तो भाग जाओ, मुझे कोई एतराज नहीं है । लेकिन अगर शोर मचाया तो शूट कर दूंगा ।”
चीनी बाहर निकल गया । केबिन का द्वार बन्द हो गया ।
सुनील जोर लगाकर अपने बन्धन खोलने की चेष्टा करने लगा लेकिन ज्यों-ज्यों वह जोर लगाता था सिल्क की रस्सी खुलने के स्थान पर और कसती जाती थी ।
सुनील ने अपने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिये । सिल्क की रस्सी को खोल पाना असम्भव था । शायद इसीलिये नकटा उसे भाग जाने के लिये चैलेंज कर गया था ।
लगभग आधे घन्टे बाद केबिन का द्वार खुला ।
“मौत आ गई ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
लेकिन द्वार पर चिन ली खड़ी थी ।
उसने भीतर से द्वार बन्द किया और समीप आकर जल्दी-जल्दी सुनील के बन्धन खोलने लगी ।
सिल्क की रस्सी खुलते ही सुनील उठ खड़ा हुआ और शरीर से रक्त का संचार व्यवस्थित करने के लिये अपने हाथ-पांव मसलने लगा । उसके शरीर में सूईयां सी चुभ रही थीं ।
“थैंक्यू ।” - वह चिन ली से बोला - “यह कृपा क्यों की तुमने मुझ पर ?”
“ये बात बाद में” - वह बोली - “पहले यह बताओ तुम्हारे पास कुछ नोट हैं ?”
“कितने ?” - सुनील ने पूछा ।
“सौ डालर ।”
सुनील ने अपने पर्स में से सौ डालर के नोट निकाल कर उसे थमा दिये ।
“यह किस लिये ?” - उसने पूछा ।
“तुम्हारी मुक्ति के लिये ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हारा क्या ख्याल है नकटे ने मुझे यूं ही भीतर आ जाने दिया ? तुम्हें छोड़ देने के लिये उससे सौ डालर में सौदा हुआ है ।”
“लेकिन जब गोल्डस्मिथ को यह पता लगेगा कि नकटे ने रिश्वत लेकर मुझे छोड़ दिया तो क्या वह नकटे की गरदन नहीं उड़ा देगा ?”
“ऐसी नौबत नहीं आयेगी । गोल्डस्मिथ के लौटने से पहले ही नकटा यहां से कूच कर जायेगा । वह हांगकांग छोड़ रहा है । उसका परिवार पेकिंग में रहता है । वह वर्षों से यह आस लगाये बैठा है कि उसके पास धन हो और वह पेकिंग लौट जाये ।”
“लेकिन क्या वह सौ डालर में पेकिंग पहुंच जायेगा ?”
“कुछ धन उसके पास है और उसकी रही-सही कसर मैंने पूरी कर दी है ।”
सुनील चुप रहा ।
चिन ली ने द्वार खोला और बाहर खड़े नकटे को सौ डालर थमा दिये ।
“भाग जाओ यहां से ।” - वह बोली ।
नकटे ने नोट और रिवाल्वर जेब में रखी और चिन ली का अभिवादन करके वहां से भाग खड़ा हुआ ।
“तुम्हें तैरना आता है ?” - चिन ली ने पूछा ।
“यह क्या सवाल हुआ ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“माई डियर, सर” - वह बोली - “हाउसबोट इस समय किनारे से एक हजार मीटर दूर खड़ी है । हाउसबोट पर एक ही छोटी नाव थी, उसे अब तक नकटा ले जा चुका होगा ।”
“ओह ।”
“किनारे तक तैर सकोगे ?”
“तैर तो सकता हूं लेकिन पहले मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूं ।”
“सब बाद में । इस समय तुम्हारा जीवन खतरे में है । अगर गोल्डस्मिथ लौट आया तो वह तुम्हारे टुकड़े करके रख देगा । अपने पहले जासूस की मौत से कुछ सबक लो ।”
“मैंने यह कब कहा कि मैं जासूस हूं ?” - सुनील चौंक कर बोला ।
“तुमने कहा या नहीं, मुझे नहीं मालूम लेकिन गोल्डस्मिथ को तुम पर पूरा सन्देह है । कल चायना क्लब में हुए हंगामे के बाद से वह तुम पर भरपूर सन्देह करने लगा है । अगर अब उसने तुम्हें हाउसबोट पर देख लिया तो... परिणाम तुम जानते हो ।”
“लेकिन तुमने मुझ पर यह अहसान क्यों किया ?”
“अभी कोई प्रश्न मत पूछो । फिर कभी ।”
“कब ? कहां ?”
“मैं चायना क्लब रात बारह बजे जाती हूं । विक्टोरिया पीक पर मेरा फ्लैट है । आज रात नौ बजे मैं अपने फ्लैट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी ।”
चिन ली ने उसे फ्लैट का नम्बर वगैरह बता दिया ।
“अब ऊपर चलो ।”
सुनील चिन ली के साथ मोटरबोट के डैक पर आ गया ।
दिन ढल चुका था । डैक से यामाती एंकरेज के किनारे की बत्तियां जुगनुओं की तरह चमकती दिखाई दे रही थीं ।
“विश यू गुड लक ।” - चिन ली उसका हाथ दबाती हुई बोली ।
“थैंक्स ।” - सुनील बोला और पानी में कूद गया ।
पानी बहुत ठण्डा था और सूट पहने हुए तैरने में उसे काफी दिक्कत महसूस हो रही थी ।
लगभग बीस मीटर दूर पहुंच कर उसने एक बार वापिस मोटरबोट के डैक की ओर घूम कर देखा ।
चिन ली अब भी डैक पर खड़ी थी । उसका गाउन हवा में उड़ रहा था ।
लेकिन चिन ली के साथ एक और व्यक्ति भी खड़ा था जिसका चेहरा अन्धकार में स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । उसी समय उस व्यक्ति ने अपने मुंह में दबा सिगरेट सुलगाने के लिये लाइटर जलाया और उसके बुलडाग जैसे चेहरे पर दाईं आंख से लेकर ठोडी तक खिंचा हुआ लम्बा चोट का निशान चमक उठा ।
सुनील के मुंह से एक आश्चर्यभरा स्वर निकला और वह पूरी शक्ति से किनारे से किनारे की ओर तैरने लगा ।
जिस समय वह किनारे पर पहुंचा, उस समय उसकी ऐसी हालत थी जैसे अगर उसे बीस मीटर भी और तैरना पड़ता तो उसके प्राण निकल जाते । वह कितनी ही देर वहीं किनारे पर लेटा रहा ।
जब उसकी सांस किसी हद तक व्यवस्थित रूप से चलने लगी तो वह उठ खड़ा हुआ । उसके कपड़े अब भी गीले थे और वह ठण्ड के कारण ठिठुर रहा था ।
वह लड़खड़ाता हुआ रायल होटल की ओर चल दिया । वह होटल के पिछवाड़े की ओर गया और सरविस डोर से होटल के भीतर घुस गया । होटल की लॉबी से भीतर घुसने योग्य उसकी हालत नहीं थी ।
वह चुपचाप अपने कमरे के समीप पहुंचा ।
द्वार पर मुहम्मद खड़ा था ।
सुनील ने द्वार खोला और मुहम्मद के साथ भीतर घुस गया ।
मुहम्मद ने सुनील की हालत देखी । उसने चुपचाप टेलीफोन उठाया और बोला - “ब्रांडी फार मिस्टर सुनील ।”
“थैंक्यू, मुहम्मद ।” - सुनील बोला ।
उसने गीले कपड़े उतार कर शरीर पोंछा, एक गर्म गाउन पहना और अपना प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राईक सुलगा कर एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“काम बना ?” - उसने मुहम्मद से पूछा ।
“नहीं, मास्टर ।” - मुहम्मद सिर झुकाये बोला ।
“क्यों ?” - सुनील के माथे पर बल पड़ गये ।
“मेरे वहां पहुंचने से पहले ही मिंग के भाई की हत्या कर दी गई थी । अबरदीन हार्बर में खड़ी उसकी नाव पर मैं शायद हत्यारे से केवल दस मिनट लेट पहुंचा था । मिंग के भाई को गोली मार दी गई थी । जब मैं वहां पहुंचा था, उसके शरीर से तब भी रक्त बह रहा था ।”
और उसने पचास डालर के नोट निकाल कर सुनील ने सामने रख दिये ।
“तुम रख लो ।” - सुनील बोला ।
उसी समय वेटर ब्रांडी की एक फ्लास्क के साथ प्रकट हुआ ।
सुनील ने एक बड़ा सा पैग गिलास में डाला और उसे नीट ही पी गया । क्षण भर के लिये तो उसे यूं लगा जैसे उसके गले से लेकर पेट तक आग की लकीर खिंच गई हो लेकिन फिर उसके शरीर में स्फूर्ति का संचार होने लगा ।
सुनील वैसा ही एक पैग और पी गया ।
मुहम्मद चुपचाप एक स्टूल पर बैठ गया था । नोट फिर उसने अपनी जेब में रख लिये थे ।
पांच-छ: सिगरेट पी चुकने के बाद सुनील उठा और कपड़े बदलने लगा ।
मुहम्मद ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखा ।
“मुहम्मद” - सुनील टाई की नाट ठीक करता हुआ बोला - “एक रिवाल्वर दिला सकते हो ?”
“बाई आल मींस, मास्टर ।” - मुहम्मद उत्साहपूर्ण स्वर से बोला - “हांगकांग में ऐसी क्या चीज है जो जेब में माल होने पर नहीं मिल सकती !”
“तो फिर एक रिवाल्वर लाकर दो मुझे ।” - सुनील उसकी ओर कुछ नोट उछलता हुआ बोला ।
मुहम्मद ने नोट उठाये और कमरे से बाहर निकल गया ।
आधे घन्टे बाद वह 45 कैलिबर की एक रिवाल्वर और कुछ कारतूस लेकर लौट आया ।
सुनील ने रिवाल्वर को अपने हाथ में लेकर परखा, फिर उसका चैम्बर कारतूसों से भरा और रिवाल्वर को अपनी जेब में रख लिया । बचे हुए कारतूसों को उसने वहीं मेज की दराज में डाल दिया ।
“चलो ।” - सुनील बोला ।
विक्टोरिया पीक पर चिन ली के फ्लैट वाली इमारत के सामने पहुंच कर सुनील बोला - “मुहम्मद, तुम यहीं ठहरो, मैं भीतर जाता हूं ।”
“ओके, मास्टर ।”
“यहां से सारी पोटिंगर स्ट्रीट दिखाई देती है । अगर वह बुलडाग जैसे चेहरे वाला लार्ड का बच्चा चिन ली के फ्लैट की ओर आता दिखाई दे तो मुझे फोन कर देना । सामने टेलीफोन बूथ है ।”
“ओके ।”
सुनील मुहम्मद को वहीं छोड़ कर इमारत में घुस गया । वह लिफ्ट द्वार चिन ली के फ्लैट के सामने पहुंचा और उसने काल बैल पर उंगली रख दी ।
द्वार खोलने वाली लड़की चिन ली नहीं थी ।
“चिन ली...” - सुनील ने कहना आरम्भ किया ।
“प्लीज कम इन” - वह द्वार से हटती हुई बोली - “मदाम बाथरूम में है ।”
सुनील भीतर घुस गया । वह एक बेहद सजा हुआ ड्राइंग रूम था । सुनील ने एक सोफे पर बैठने का उपक्रम किया ।
“प्लीज, सर” - लड़की जल्दी से बोली - “यहां नहीं ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील ने तेज स्वर से पूछा ।
“आप मिस्टर कमाल हैं न ?”
“हां । फिर ?”
“मादाम ने आपको बैडरूम में बैठाने का निर्देश दिया है ।”
“आई सी ।”
“दिस वे, सर ।”
लड़की सुनील को बैडरूम में छोड़ कर बाहर निकल गई ।
सुनील बैडरूम का निरीक्षण करने लगा । उतना शानदार बैडरूम उसने हालीवुड की ऊंचे पैमाने पर बनाई गई ऐतिहासिक और पौराणिक फिल्मों के अलावा और कहीं नहीं देखा था । सुनील को यूं अनुभव हुआ जैसे वह स्ट्रिपटीज डांसर चिन ली से नहीं, महारानी शीबा से मिलने आया था ।
सुनील पर नशा सा छाने लगा ।
सुनील ने आस-पास देखा । बैठने के लिये पलंग से अधिक उपयुक्त कोई स्थान दिखाई नहीं दिया उसे । सुनील पलंग पर बैठ गया ।
उसी समय चिन ली ने बैडरूम में प्रवेश किया ।
उसे देख कर सुनील की आंखें खुली की खुली रह गईं ।
चिन ली आसमान से उतरी हुई अप्सरा सी लग रही थी । उसके शरीर पर केवल झीना सा गाउन था जिसमें से उसका हर अंग स्पष्ट झलक रहा था ।
“क्या देख रहे हो, मिस्टर ?” - चिन ली मादक स्वर से बोली ।
“मैं नहीं मानता ।” - सुनील बोला ।
“क्या नहीं मानते ?”
“जो मैं देख रहा हूं ।”
“क्या देख रहे हो ?”
“कोई चीनी लड़की इतनी खूबसूरत नहीं हो सकती ?”
“मैंने कब कहा है, मैं चीनी हूं ?”
“तुमने तो नहीं कहा लेकिन तुम्हारा नाम, तुम्हारे ओरियन्टल नाक-नकश...”
“बस यहीं तक । मेरी मां चीनी थी, बाप अंग्रेज था । मैंने अपने जीवन के सतरह बरस इंगलैंड में गुजारे हैं और मुझ पर मेरे बाप का ज्यादा असर है । खैर छोड़ो, कौन सा नीरस विषय ले बैठे !”
चिन ली उठी । उसने अलमारी में से एक लम्बा गिलास और एक विचित्र से आकर की बोतल निकाली ।
“ऐसी शराब तुमने अपनी जिन्दगी में नहीं पी होगी, मिस्टर ।” - चिन ली गिलास में शराब डालती हुई बोली ।
“विशेष रूप से इतने खूबसूरत हाथों से ।” - सुनील बोला ।
चिन ली पलंग पर उसके साथ सट कर बैठ गई और उसने गिलास सुनील के होंठों से लगा दिया ।
“तुम नहीं पियोगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“आज नहीं ।” - वह बोली - “अभी मुझे चायना क्लब जाना है । अगर मैं जरा भी अपना होश खो बैठी तो चायना क्लब में डांस के क्लाईमैक्स पर कोई न कोई मुझे दबोच लेगा ।”
“ओके ।” - और सुनील एक ही सांस में गिलास खाली कर गया ।
चिन ली ने गिलास नीचे रख दिया और सुनील के गले में बांहें डाल दीं ।
“तुमने हाउसबोट में से मुझे क्यों निकल जाने दिया ?” - सुनील ने उसकी कमर में हाथ डालते हुए पूछा ।
“क्योंकि अगर तुम गोल्डस्मिथ के चंगुल में आ जाते तो वह तुम्हें जान से मार देता ।”
“तो तुम्हें क्या फर्क पड़ता इससे ?”
“मिस्टर कमाल ।” - चिन ली उत्तेजक स्वर से बोली - “जब पहली बार मैंने तुम्हें हाउसबोट पर देखा था तभी मुझे तुमसे कुछ मोह सा हो गया था । मिस्टर, गोल्डस्मिथ की गिद्ध की नजर है । कोई जासूस हांगकांग का रुख भी करता है तो उसे मालूम हो जाता है । जिस तरकीब से पहले दिन तुम हाउसबोट में घुसे थे उससे न तो गोल्डस्मिथ बेवकूफ बन पाया था और न मैं । वह तो कभी भी बड़ी आसानी से तुम्हारा काम तमाम करवा देता लेकिन वह जानना चाहता था कि वास्तव में तुम चाहते क्या थे ? तुमने उस दिन चायना क्लब में गोल्डस्मिथ के कमरे में घुस कर अपनी मौत को दावत दी थी । अब तो हांगकांग में गुजरा तुम्हारा हर एक क्षण मौत का क्षण हो सकता है । वह तुम्हें मरवा देगा । मिस्टर, अक्लमंदी इसी में है कि तुम फौरन हांगकांग से निकल जाओ ।”
“लेकिन तुम मेरे पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हो ?”
“मिस्टर, तुम मुझे इसलिये गलत समझ रहे हो, क्योंकि तुम मेरी स्थिति को गलत समझ रहे हो । मैं गोल्डस्मिथ की सहायक नहीं हूं । मैं तो केवल एक डांसर हूं और गोल्डस्मिथ की संचालित क्लब में मेहमानों का मनोरंजन करने के बदले उससे भारी रकम पाती हूं । मुझे उस आदमी से क्या दिलचस्पी हो सकती है ? और किसी हद तक देखा जाये तो विशेष रूप से मुझे तुम से भी दिलचस्पी नहीं है । तुम्हारी जगह कोई और युवक होता तो मैं उसे भी यही सलाह देती कि वह गोल्डस्मिथ की परछाई से भी दूर रहे । मैं हत्या पसन्द नहीं करती ।”
“जिस आदमी की रायल होटल में हत्या की गई थी, तुमने उसे यह सलाह क्यों नहीं दी ?”
“क्योंकि मैं उसके सम्पर्क में नहीं आ पाई । मैं गोल्डस्मिथ के जाल में फंसे हर आदमी के विषय में कैसे जान सकती हूं ?”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा । शराब और यौवनपूर्ण शरीर की ऊष्णता उसकी चेतना पर छाये जा रही थी ।
“तुमने यह नहीं पूछा” - सुनील उसे अपने शरीर के साथ भींचता हुआ बोला - “कि मैं हांगकांग में क्या करने आया हूं ?”
“मुझे जरूरत ही क्या है ? तुम कुछ भी करने आये हो, मुझे इससे मतलब नहीं है । मैं तो केवल तुम्हें गोल्डस्मिथ से सावधान करना चाहती हूं । मिस्टर, तुम खूबसूरत हो, जवान हो आजकल की दुनिया में जीवित रह पाना बहुत बड़ा वरदान है । अभी जिन्दगी में तुमने बहुत कुछ देखना है । लेकिन गोल्डस्मिथ के मुकाबले में तुम्हारी आज की भी गारन्टी नहीं है, तुम्हारे अगले क्षण की भी गारन्टी नहीं है ।”
“गोल्डस्मिथ किसके इशारे पर काम करता है ?”
“मुझे नहीं मालूम । लेकिन मेरा अपना ख्याल यह है कि जो कुछ है, गोल्डस्मिथ ही है । वही असली और अकेला बॉस है लेकिन वह जाहिर यही करता है कि उससे भी बड़ा कोई है और उस अनदेखे और अनजाने बड़े का रोब खामखाह ही लोगों पर पड़ जाता है ।”
सुनील चुप रहा ।
“एक बात बताओ ।” - चिन ली सहज स्वर से बोली - “तुम यहां अकेले ही आये हो ?”
“और क्या फौज लेकर आता ?” - सुनील बोला ।
“फिर भी तुम अक्ल से काम नहीं लेते हो । यह जानते हुए भी कि एक बार गोल्डस्मिथ के हाथों फंस गये तो कोई लाश उठाने भी नहीं आयेगा ।”
“देखा जायेगा ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
“मुझे यकीन नहीं होता ।” - चिन ली सुनील के गालों पर अपने उत्तेजित होंठ फिराती हुई बोली ।
“किस बात का ?” - सुनील उसे और अधिक अपने साथ लिपटाता हुआ बोला ।
“कि हांगकांग में तुम अकेले हो ।”
“क्यों ?”
“कोई अकेला आदमी गोल्डस्मिथ के मुकाबले में इतनी लापरवाही नहीं दिखा सकता चाहे वह हरक्युलिस ही क्यों न हो ।”
“माई डियर” - सुनील उसे बिस्तर पर खींचता हुआ बोला - “मैं वाकई अकेला हूं और अकेला ही उसके लिये काफी हूं ।”
“सच कह रहे हो ?” - चिन ली अपना शरीर सुनील के हाथों में ढीला छोड़ती हुई बोली ।
“बिल्कुल सच ।” - सुनील झूम कर बोला - “तुम्हारी जान की कसम ।”
और वह चिन ली के शरीर से उसका पारदर्शक गाउन हटाने की चेष्टा करने लगा ।
“जस्ट एक मिनट ।” - चिन ली एकाएक उठने की चेष्टा करती हुई बोली ।
“नो ।” - सुनील ने उसे और दबोच लिया ।
“मिस्टर, प्लीज ।” - चिन ली फिर बोली - “छोड़ो तो ।”
“क्यों ?”
“मैं चायना क्लब फोन तो कर दूं कि मैं एक घन्टा लेट आऊंगी नहीं तो मुझे कोई बुलाने पहुंच जायेगा और फिर...”
“ओके, ओके ।” - सुनील उसे बन्धन मुक्त करता हुआ बोला ।
चिन ली उठकर बाहर चली गई ।
कुछ क्षण बाद उसके फोन पर किसी से बात करने का स्वर सुनाई देता रहा । फिर रिसीवर क्रेडल पर रखे जाने की आवाज आई और फिर चिन ली वापिस लौट आई ।
“आई एम सारी मिस्टर ।” - वह बोली - “गोल्डस्मिथ बहुत नाराज हो रहा है । मुझे जाना ही पड़ेगा ।”
“ओह, नो ।” - सुनील उसकी ओर बांहें फैलाता हुआ बोला ।
“नो यूज, मिस्टर ।” - चिन ली बोली - “अगर मैं पन्द्रह मिनट तक वहां न पहुंची तो गोल्डस्मिथ यहां आ जायेगा । तुम कल आना ।”
“आई से...”
उसी समय बाहर फोन की घन्टी घनघना उठी ।
“मैं देखती हूं ।”
चिन ली ड्राइंगरूम की ओर लपकी ।
“मिस्टर ।” - कुछ क्षण बाद बाहर से चिन ली आवाज आई - “तुम्हारा फोन है ।”
सुनील झूमता हुआ बाहर निकला । उसने चिन ली के हाथ से फोन ले लिया ।
चिन ली वहां से हट गई ।
“हल्लो !” - सुनील बोला ।
“मास्टर ।” - फोन में से मुहम्मद का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “फौरन निकलो वहां से ।”
“क्यों, क्या हो गया ?”
“मैंने बाहर काफी हाउस में चार चीनी गुन्डों को कुछ बातें करते सुना है । मुझे बच्चा समय कर उन्होंने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया था । वे विदेशी चिन ली के फ्लैट से निकलने वाले किसी विदेशी की हत्या करने वाले हैं । इस समय चिन ली के फ्लैट से तुम निकल पड़ो तो भाग निकलने का मौका है ।”
“मैं आ रहा हूं ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर क्रेडल पर पटक दिया ।
उसका नशा किसी हद तक हिरण हो चुका था ।
“चिन ली !” - चिन ली को अपने समीप न पाकर उसने आवाज दी ।
“यस, मिस्टर ?” - भीतर कमरे में से चिन ली का खनकता हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“मैं जा रहा हूं । कल फिर आऊंगा ।”
“ओके । यू आर आलवेज वैलकम ।”
“गुड नाइट, डियर ।”
“वैरी गुड नाइट, मिस्टर ।”
सुनील फ्लैट से बाहर निकल आया ।
इमारत से बाहर निकलकर सुनील ने बड़ी सतर्कता से आसपास देखा ।
आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था ।
लेकिन अगले ही क्षण साये की तरह मुहम्मद उसे सामने आ खड़ा हुआ ।
“क्या ?” - सुनील ने पूछा । शराब का नशा उस पर तब भी छाया हुआ था ।
“अभी तो रास्ता साफ है, मास्टर ।” - मुहम्मद धीमे स्वर में बोला - “वे लोग सामने काफी हाउस में हैं । अभी निकल चलिये ।”
“चलो ।” - सुनील ने बाजार के नीचे की ओर उतरती हुई सीढियों की ओर कदम बढाया ।
“उधर नहीं, मास्टर ।” - मुहम्मद ने उसे रोका - “पौटिंगर स्ट्रीट में तो हम हजार मीटर नीचे उतर जायेंगे तो भी ये लोग वहां से हमें देख लेंगे ।”
“तो ?”
“मेरे साथ आइये ।”
मुहम्मद उसे बगल में जाती हुई गली में ले गया । वह गली आगे जाकर और भी तंग होती जा रही थी । वहां भी पौटिंगर स्ट्रीट जैसी सीढियां थीं लेकिन वह पौटिंगर स्ट्रीट की तरह सीधी नहीं थी । वह गली थोड़े-थोड़े फासले पर ही मोड़ काट जाती थी ।
“इस रास्ते से हम सीधे हार्बर पर पहुंचेंगे ।” - मुहम्मद ने बताया ।
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप मुहम्मद के साथ चलता रहा । उसका दिमाग अब किसी हद तक उसके काबू में था लेकिन उसका शरीर उसके दिमाग का साथ नहीं दे रहा था । वह कई बार लड़खड़ा गया ।
“क्या बात है, मास्टर ?” - मुहम्मद उसकी यह दशा देखकर बोला ।
“मुहम्मद” - सुनील बोला - “आज मैं अपने आपको दुनिया का सबसे बेवकूफ आदमी समय रहा हूं और इसका श्रेय एक औरत को है ।”
“क्या हुआ, मास्टर ?”
“जब चिन ली ने मुझे शराब दी थी तो मैं उसे यह सोच कर पी गया था कि एक पैग से क्या फर्क पड़ने वाला है लेकिन शराब हलक से नीचे उतरने के एक मिनट बाद ही मुझे यूं लगा जैसे मैंने एक पैग नहीं एक बोतल शराब पी हो । भगवान जाने उस औरत ने मुझे क्या पिला दिया था । मैं आपा खो बैठा । मुझे हर बात भूल गई, यहां तक कि मुझे अपना वह ध्येय भूल गया जिसके कारण मैं हांगकांग आया हूं । बस, याद रहा तो केवल यह है कि मैं हूं, मेरे साथ एक जवान औरत है और एक बैडरूम है । मैंने वहां वो शैतानी हरकतें की हैं, मुहम्मद, कि मुझे अपने उस समय के व्यवहार के विषय में सोचकर भी शर्म आती है । मैंने उस औरत के साथ... लेकिन तुम क्या समझोगे ? तुम तो बच्चे हो ।”
लेकिन मुहम्मद यह सब नहीं सुन रहा था ।
“मास्टर !” - उसने जोर से सुनील की बांह झंझोड़ी ।
“क्या है ?” - सुनील तनिक सतर्क स्वर से बोला ।
“सामने देखो ।”
एक क्षण तो सुनील को कुछ भी नहीं दिखाई दिया । फिर उसे तीन घुटे सिरों वाले चीनी अपने सामने खड़े दिखाई दिये ।
सुनील ने घूम कर पीछे देखा ।
पीछे भी दो चीनी थे ।
पांचों के हाथ में मोटे-मोटे डंडे थे ।
“मुहम्मद” - सुनील जल्दी से बोला - “मैं इन्हें रोकता हूं । तुम निकल भागो । अगर आसपास कही पुलिस स्टेशन हो तो जल्दी-से-जल्दी मदद लेकर यहां पहुंचो । अगर मौका लगे तो मैं भी भाग निकलूंगा । तैयार हो जाओ ।”
मुहम्मद एकदम सुनील के पीछे था । मौत सिर पर आई देखकर सुनील का नशा हिरन हो गया था ।
सुनील ने देखा सामने वाले चीनी अभी उससे दूर थे लेकिन पीछे वाले दो एकदम सिर पर पहुंचे चुके थे ।
सुनील एकदम घूमा और उसने पीछे वाले दोनों चीनियों पर छलांग लगी दी और उन्हें लिये-दिये जमीन पर आ गिरा ।
“मुहम्मद, भाग ।” - सुनील चिल्लाया ।
मुहम्मद उनके शरीरों के ऊपर से कूदता हुआ वापिस पौटिंगर स्ट्रीट की ओर भागा ।
सुनील और एक चीनी साथ-साथ ही जमीन पर से उठे । चीनी से उठकर अपना डंडा सुनील की ओर घुमाया । सुनील एकदम नीचे बैठ गया । डंडे का वार हवा को चीरता हुआ उसके सिर से निकल गया । सुनील ने लपक कर चीनी को कमर से पकड़ लिया । उसने उसके शरीर को एक जोर का चक्कर दिया और उसे उस दूसरे चीनी की ओर उछाल दिया जो उठकर मुहम्मद के पीछे भागने का उपक्रम कर रहा था ।
दोनों एक-दूसरे से उलझे हुए फिर जमीन पर लोट गये । वो सब दो ही सैकंड में हो गया ।
लेकिन तब तक दूसरी ओर के तीनों चीनी उसके सिर पर पहुंच चुके थे ।
वे तीनों सुनील पर टूटने ही वाले थे कि सुनील एकदम सिर नीचा किये झुंड में घुस गया । उसके दूसरी ओर पहुंचते ही सुनील ने पूरी शक्ति से अपने दायें हाथ का घूंसा अंधाधुंध उनकी ओर चला दिया ।
घूंसा एक चीनी की कनपटी पर पड़ा । उसके मुंह से हाय भी नहीं निकली और वह यूं जमीन पर ढेर हो गया जैसे रायफल की गोली उसके दिल में से गुजर गई हो ।
सुनील उनसे चार-पांच गज दूर जाकर दीवार से लग कर खड़ा हो गया ताकि कोई पीछे से आक्रमण न कर सकता । वह किसी भी मूल्य पर उनमें से किसी की पकड़ में नहीं आना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि अगर किसी एक ने उसे पकड़ लिया तो बाकी डंडे मार कर उसका भुर्ता बना देंगे ।
दो चीनी धराशायी हो चुके थे और तीन आंखों में खून लिये उसकी ओर बढ रहे थे ।
सुनील सतर्क खड़ा था ।
एकाएक एक चीनी ने अपना डंडा पूरे जोर से घुमाकर सुनील की ओर फेंका । सुनील ने बचने की पूरी चेष्टा की लेकिन डंडा भड़ाक से उसकी छाती से आकर टकराया । एक क्षण तो सुनील को यूं लगा जैसे उसकी छाती से हजार मन का पत्थर आ टकराया हो । अभी वह उस चोट में सम्भल भी नहीं पाया था कि दो चीनी डंडे लिये उसके सिर पर आ पहुंचे । एक के डंडे का भरपूर वार सुनील की कनपटी पर पड़ा । उसकी आंखों के आगे सितारे नाच गये ।
अगला वार होने से पहले ही वह एकदम झपट कर दोनों चीनियों से गुथ गया । उनमें से एक का डंडे वाला हाथ सुनील के हाथ में आ गया । सुनील से पूरी शक्ति से उस हाथ को एक धक्का दिया । वह स्वयं पीठ के बल नीचे गिर गया और उसने अपना एक पांव उठा कर चीनी के पेट में अड़ा दिया । वह चीनी उसके सिर पर से होता हुआ पीठ के बल अपने उस साथी पर गिरा जिसने सुनील को डंडा फेंक कर मारा था ।
सुनील एकदम उठ उठा हुआ । चीनी का हाथ अब भी उसकी पकड़ में था । सुनील ने उसके कन्धे के नीचे अपना पांव जमाया और उसकी बांह को एक जोरदार झटका दिया । एक कड़ाक की आवाज हुई और उस चीनी की बांह कन्धे से उतर गई । सुनील ने उसका हाथ छोड़ दिया । वह बेहोश हो चुका था ।
निहत्था चीनी उसके शरीर के नीचे दबा हुआ था और वहां से निकलने की चेष्टा कर रहा था ।
तभी तीसरे चीनी के डंडे का वार सुनील की खोपड़ी पर पड़ा । सुनील अभी सम्भलने भी नहीं पाया था कि दूसरा डंडा उसके मुंह पर पड़ा और उसका होंठ फट गया ।
तीसरा वार होने से पहले ही सुनील जमीन पर लेट गया और बड़ी तेजी से लुढकता हुआ गली की सात-आठ सीढियां नीचे पहुंच गया ।
चीनी उसकी ओर लपका ।
सुनील के शरीर से कई स्थानों से खून बह रहा था और उस पर बेहोशी सी छाई जा रही थी लेकिन उस समय जिन्दगी और मौत का सवाल था ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
चीनी उसके सामने पहुंच चुका था । उसका डंडा हवा में घूमा और सुनील के सिर की ओर लपका । सुनील एकदम पीछे हट गया । डंडा उसकी नाक से एक इंच दूर घूमता हुआ निकल गया । सुनील ने चीनी को दूसरा वार करने का मौका नहीं दिया । उसके बायें हाथ का घूंसा बिजली की तरह चीनी के जबड़े पर पड़ा । चीनी एकदम पीछे उलट गया लेकिन डंडा उसके हाथ से नहीं छूटा । उसके उठ जाने जाने से पहले ही सुनील उसके सिर पर पहुंच गया और उसने अपने नोकीले जूते की एक ठोकर चीनी के सिर पर जमाई । चीनी एक लम्बी हाय के साथ जमीन पर लोट गया । सुनील ने अपने पूरे बल से जूते की तीन-चार भरपूर ठोकरें चीनी के शरीर के विभिन्न किन्तु कोमल भागों पर जमाईं ।
फिर उस चीनी के शरीर में हरकत नहीं हुई ।
सुनील गहरी सांस लेने लगा ।
अभी वह स्वयं को व्यवस्थित भी नहीं कर पाया था कि वह चीनी जो अब तक टूटी हुई बांह वाले चीनी के शरीर के नीचे दबा हुआ था, उसकी ओर झपटा ।
सुनील ने उसे अपनी ओर आते देखा तो वह पूरी शक्ति से गली की दूसरी ओर भागा । अब और लड़ने योग्य दम उसमें बाकी नहीं रहा था ।
लेकिन अभी वह कुछ दूर भागा था कि चीनी ने उसे पकड़ लिया और उसके पहले से ही घायल चेहरे पर एक घूंसा जमा दिया ।
सुनील कलाबाजी खाता हुआ गली की दूसरी ओर लुढक गया ।
उसके उठ पाने से पहले ही चीनी उस पर चढ बैठा और फिर उसने अपने हाथों से सुनील का गला दबोच लिया ।
सुनील ने चीनी के हाथ पकड़ लिये और अपनी सारी शक्तियों का संचार करके उसके हाथ अपनी गर्दन से हटाने की चेष्टा करने लगा । लेकिन चीनी के हाथ तो जैसे उसके गले पर चिपक कर रह गये ।
सुनील का दम घुटता जा रहा था । चीनी अपनी पूरी शक्ति से उसका गला दबा रहा था । सुनील बुरी तरह छटपटा रहा था ।
एकाएक एक विचार उसके मस्तिष्क में बिजली की तरह कौंध गया ।
रिवाल्वर !
उसकी जेब में तो रिवाल्वर थी जिसका नशे की झोंक में अभी तक उसे ख्याल ही नहीं आया था ।
उसने अपना एक हाथ चीनी की कलाई से हटाया और अपने जेब की ओर बढाया लेकिन वहां से रिवाल्वर निकाल पाना असम्भव था क्योंकि जेब का रिवाल्वर वाला भाग उसके शरीर के नीचे दबा हुआ था ।
सुनील को अपनी मौत निश्चित दिखाई देने लगी ।
तभी उसे ऐसा अनुभव हुआ जैसे उसके गले से चीनी के हाथों की पकड़ ढीली पड़ती जा रही हो । फिर उसके फेफड़ों में ताजी हवा का प्रवेश होने लगा और उसे अपने में जान सी पड़ती महसूस होने लगी ।
सुनील ने यह जानने का उपक्रम किये बिना कि चीनी की पड़क ढीली क्यों पड़ गई थी, उसे अपने ऊपर से एक ओर धकेला अपना पैंट की जेब से रिवाल्वर निकाली और तीन गोलियां चीनी के शरीर में ठण्डी कर दीं ।
फिर उसने चीनी के सिर पर खड़े उस लम्बे-चौड़े आदमी को देखा जिसके हाथ में एक मोटा सा डण्डा था और जिसकी बगल में उत्कंठापूर्ण मुद्रा बनाये मुहम्मद खड़ा था ।
कई क्षण सुनील के मुंह से बोल नहीं फूटा । वह उसी प्रकार जमीन पर पड़ा लम्बी-लम्बी सांसें लेता रहा ।
मुहम्मद जल्दी-जल्दी कुछ कह रहा था लेकिन सुनील का मस्तिष्क उसकी कही हुई एक भी बात को नहीं पकड़ पा रहा था ।
काफी सम्भल चुकने के बाद उसने मुहम्मद की ओर देखा ।
लम्बे-चौड़े आदमी ने सुनील को सम्भाल कर उठाया और उसे उसके पैरों पर खड़ा कर दिया ।
“चल सकते हैं आप ?” - उसने सुनील को सहारा देकर चलने में सहायता करते हुए इंगलिश में पूछा ।
“हां, लेकिन आप...”
“यह मेरा भाई अब्दुल है ।” - मुहम्मद जल्दी से बोला - “यह पौटिंगर स्ट्रीट के एक होटल में काम करता है । पुलिस स्टेशन यहां से बहुत दूर था इसलिये मैं इसे बुला लाया । लेकिन फिर भी हम देर से पहुंचे ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील अब्दुल से बोला ।
धन्यवाद की परवाह किये बिना अब्दुल ने अपनी जेब से एक छोटी सी बोतल निकाली और उसे सुनील के मुंह से लगाकर बोला - “इसे पी जाइये ।”
सुनील उस बकबके से पेय के तीन घूंट पी गया । सुनील को यूं लगा जैसे उसके हलक में आग लग गई हो । लेकिन उस तरल पदार्थ के पेट में पहुंचने की देर थी कि वह स्वयं में नई शक्ति का संचार होता अनुभव करने लगा ।
“यह क्या बला थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“जिबीब ।” - अब्दुल बोला - “अरब की देशी शराब ।”
अब्दुल और मोहम्मद सुनील को दोनों ओर से सहारा दिये पौटिंगर स्ट्रीट की ओर चल दिये ।
“मास्टर” - अब्दुल बोला - “तुम्हारे पास तो रिवाल्वर थी !”
“यही तो ट्रेजिडी थी, प्यारे ।” - सुनील बोला - “चिन ली की पिलाई शराब ने सबसे बड़ा मजाक तो मेरे साथ यही किया था । उस रिवाल्वर का ख्याल मुझे तब आया जब उसकी जरूरत ही नहीं रही थी ।”
सुनील ने आंखें मूंद लीं और स्वयं को अब्दुल और मुहम्मद के सहारे छोड़ दिया ।
रायल होटल के सामने पहुंचने तक सुनील को केवल इतना याद था कि वे मोटरबोट पर बैठकर विक्टोरिया हार्बर की कोलून वाली साइड पर और वहां से टैक्सी पर रायल होटल की लॉबी में पहुंचे थे ।
अब तक सुनील की दशा काफी सम्भल चुकी थी । अब वह स्वयं को बिना सहारे के चल पाने में समर्थ पा रहा था ।
लॉबी में घुसते ही एक पुलिस इन्सपेक्टर और दो सिपाहियों ने उसे रोक लिया ।
“जस्ट ए मिनट” - इन्स्पेक्टर बोला - “आपका नाम कमाल है ? आप पाकिस्तानी हैं ?”
“जी हां ।” - सुनील चौकन्ने स्वर से बोला ।
“आपको हमारे साथ चलना पड़ेगा । अभी ।”
“लेकिन, आफिसर, तुम मेरी हालत देख रहे हो । मैं बुरी तरह घायल हूं । मुझे फौरन डाक्टर की जरूरत है ।”
“मुझे अफसोस है” - इन्स्पेक्टर बोला - “हमें यही आर्डर मिला है कि आपको फौरन हैडक्वार्टर लाया जाये ।”
“लेकिन आप मुझ पर इलजाम क्या लग रहे हैं ?”
“यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास एक रिवाल्वर है या नहीं । अगर आपके पास रिवाल्वर निकलती है तो आप पर बिना लायसेंस फायरआर्म रखने का इलजाम लगाया जायेगा । हमारे यहां यह बहुत बड़ा अपराध है । सजा के तौर पर आप कम से कम पांच सौ डालर का जुर्माना होगा और आपको फौरन हांगकांग से निकाल कर आपके देश की ओर रवाना कर दिया जायेगा । अब के बाद आप अपनी जेबों को हाथ नहीं लगायेंगे । अब तशरीफ ले चलिये ।”
उसी समय मुहम्मद सुनील के समीप पहुंचा और जल्दी से बोला - “मेरे लिये क्या आर्डर है ?”
“तुम मोटरबोट पर नजर रखना ।”
“ओके !” - मुहम्मद ने कहा और सुनील के पास से होता हुआ दूसरी ओर खड़े होकर भाई के पास जा पहुंचा ।
सुनील एकदम घबरा उठा । डिपोर्टेशन आर्डर (किसी देश से निकल आने का हुक्म) का मतलब था भारी असफलता । अभी तक तो सुनील केवल गोल-गोल चक्कर ही काट रहा था । टैकनीकल पेपर किसके पास थे, इसका तो उसे आभास भी नहीं मिला था । और हांगकांग से निकाला जाना तो निश्चित हो ही गया था क्योंकि रिवाल्वर तो उसके कोट की जेब में थी ही । दो सिपाही मजबूती से उसकी दोनों बांहें पकड़े हुए थे इसलिये रिवाल्वर को निकाल फेंकना भी संभव नहीं था ।
हांगकांग पहुंचने के बाद पहली बार सुनील को राम सिंह की याद आई । उसने तो कहा था कि वह सुनील के हांगकांग पहुंचने के छत्तीस घन्टे बाद ही स्वयं भी वहां पहुंच जायेगा और इन्टरनेशनल पुलिस की सहायता की भी व्यवस्था कर लेगा लेकिन छत्तीस के स्थान पर बहत्तर घन्टे से भी अधिक समय हो चुका था और राम सिंह की अभी सूरत भी दिखाई नहीं दी थी ।
सुनील हैरान था कि पुलिस को पता कैसे लगा कि उसके पास रिवाल्वर थी ।
सुनील को हैडक्वार्टर के विदेशी सैक्शन में ले जाया गया । वहां एक अन्य आफिसर ने इतनी सावधानी से सुनील की तलाशी ली जैसे वह रिवाल्वर नहीं सूई खोज रहा हो ।
रिवाल्वर नहीं निकली ।
आफिसर से अधिक हैरानी स्वयं सुनील को हुई । आखिर रिवाल्वर गई कहां - उसने सोचा । रिवाल्वर निश्चित रूप से उसकी जेब में थी । रायल होटल की लॉबी में घुसने तक रिवाल्वर उसके कोट की दाईं जेब में थी ।
फिर एकाएक रिवाल्वर गायब हो जाने का रहस्य उसकी समझ में आ गया ।
मुहम्मद को उसने लैडर स्ट्रीट में अपनी जेब काटते हुये जरूर पकड़ लिया था लेकिन इस बार रिवाल्वर निकालते की उसको भनक भी नहीं पड़ी थी ।
रिवाल्वर न मिलने पर वह आफिसर हत्थे से उखड़ गया । उसने तलाशी लेनी बन्द कर दी और परेशान स्वर से बोला - “तुम्हारे पास रिवाल्वर थी, हमें पूरा विश्वास है ।”
“मैंने कब इन्कार किया है ?” - सुनील जल कर बोला ।
“तो फिर कहां है वह ?” - आफिसर फिर आशांवित हो उठा ।
“मेरे पास है ।”
“अब भी ?” - आफिसर हैरान होकर बोला ।
“हां ।”
“तुमने उसे छुपा रखा है कहीं ?”
“हां ।”
“कहां ?”
“बताना जरूरी है ?”
“हां, बहुत जरूरी है ।”
“यहां है ।” - सुनील अपना पेट थपथपाता हुआ बोला ।
“क्या ?” - आफिसर चिल्लाया ।
“पुलिस जीप में बैठा-बैठा मैं रिवाल्वर निगल गया था । अभी रिवाल्वर हज्म नहीं हुई होगी । सम्भव हो तो निकाल लो ।”
आफिसर सिर से पांव तक जल उठा ।
“ठीक है, मिस्टर ।” - आफिसर जल कर बोला - “मैं तुम्हें छोड़ने वाला था लेकिन अब मैं तुम्हें सन्देह के आधार पर हिरासत में रखूंगा ।”
मजाक सुनील को बहुत महंगा पड़ने वाला था ।
उसी समय भीतर के कमरे का एक द्वार खुला और उसमें से एक अंग्रेज के साथ एक लम्बे चौड़े डील डौल वाला आदमी निकला जिसके होंठों में एक असाधारण लम्बाई का सिगार लगा हुआ था ।
“अबे ओ राम सिंह के घोड़े !” - सुनील एकदम चिल्ला उठा ।
“कीप क्वाइट, मिस्टर ।” - आफिसर बोला ।
“चुप बे, चुप बे ।” - सुनील हिन्दुस्तानी में बोला और सिगार वाले की ओर लपका ।
सिगार वाला, जो वास्तव में राम सिंह था, घूमा । सुनील को देखते ही सिगार उसने मुंह में से निकाल कर एक ओर फेंका और सुनील की ओर लपका ।
“सुनील ! सोनू डियर ।” - राम सिंह बोला - “तुम थे कहां ? ...लेकिन ...लेकिन ...तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ है ?”
“भुर्ता बन गया है ? लेकिन तुम कहां मरे हुए थे ?” - सुनील ने पूछा ।
“सुनील” - राम सिंह उत्तर देने के स्थान पर अंग्रेज की ओर हाथ उठाकर बोला - “ये मेरे परम मित्र चीफ इन्स्पेक्टर मिस्टर टर्नर हैं । और मिस्टर टर्नर, यह वो आदमी है जिसे मैं हांगकांग में तलाश करता फिर रहा हूं ।”
सुनील और टर्नर ने हाथ मिलाया ।
“कहां थे तुम ?” - राम सिंह ने सुनील से हिन्दुस्तानी में पूछा ।
“रायल होटल में ।”
“गलत । रायल होटल में सुनील नाम का कोई आदमी नहीं ठहरा हुआ ।”
“बस, यही थोड़ी सी गड़बड़ हो गई ।” - सुनील बोला - “गौतम की हत्या के चक्कर में मैंने थोड़ी सावधानी बरती थी इसलिये होटल में मैंने अपना नाम कमाल बताया था और राष्ट्रीयता पाकिस्तानी ।”
“खैर छोड़ो ।” - राम सिंह धीरे से बोला - “काम हुआ ?”
“अभी वहीं ।” - सुनील ने उत्तर दिया - “कल आखिरी दिन है और कल तक मैं कुछ न कुछ कर ही डालूंगा ।”
“खैर” - राम सिंह तनिक निराशपूर्ण स्वर से बोला - “लेकिन तुम यहां कैसे पहुंचे ?”
उत्तर में सुनील ने सारी घटना कह सुनाई ।
“लेकिन राम सिंह” - बात समाप्त कर सुनील उस आफिसर की ओर, जिसने उसकी तलाशी ली थी, संकेत करके बोला - “इस शुतरमुर्ग के बच्चे से यह तो पूछो कि इसे पता कैसे लगा कि मेरे पास रिवाल्वर थी ।”
राम सिंह कुछ क्षण टर्नर से बातें करता रहा और फिर सुनील से बोला - “इधर किसी ने फोन करके बताया था कि रायल होटल के मिस्टर कमाल नाम के आदमी के पास बिना लायसेंस की रिवाल्वर थी और वह किसी की हत्या करने की फिराक में था ।”
“फोन करने वाले ने अपना नाम या यह नहीं बताया कि उसे ये सब कैसे मालूम था ?”
“नहीं । लेकिन वे कहते हैं कि आवाज किसी औरत की थी ।”
“खैर, अब बताओ कि रात के दो बजे तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“टर्नर की नाइट ड्यूटी थी । मैं यह सोच कर चला आया था कि आज रात तुम्हें फिर चायना क्लब में तलाश करूंगा ।”
“तुम ठहरे कहां हो ?”
“टर्नर के साथ ।”
“इन्हें मालूम है कि हम यहां क्या करने आये हैं !”
“नहीं । टर्नर तो हमें केवल सिविल प्रोटेक्शन दे सकता है लेकिन उसका भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ ।”
“क्यों ?”
“तुम मिले ही इतनी देर से । वरना इस समय तुम्हारे चेहरे की यह मरम्मत न हुई होती ।”
“मरम्मत तो हो चुकी । अब बाद की बात करो ।”
“क्या ?”
“कहीं से मेरी ड्रेसिंग करवाओ और मुझे मेरे होटल में छोड़ो ।”
“ओके ।”
सुनील ने मिस्टर टर्नर का अभिवादन किया और राम सिंह के साथ बाहर की ओर चल दिया ।
जिस आफिसर ने सुनील की तलाशी ली थी, वह मुंह बाये उसे देख रहा था ।
***
अगले दिन लगभग ग्यारह बजे सुनील को मुहम्मद ने जगाया ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” - सुनील हैरानी से उसका मुंह देखता हुआ बोला - “मैंने तो तुम्हें हाउसबोट पर नजर रखने के लिये कहा था ?”
“लेकिन, मास्टर दैट ब्लडी बास्टर्ड, दैटसन आफ ए गन...”
“गालियां छोड़ो और मतलब की बात करो ।” - सुनील ने उसे टोका ।
“हाउसबोट पर एक नकटा चीनी है । वह मुझे यामाती एंकरेज के किनारे से सौ-सौ मीटर दूर तक फटकने नहीं देता । आखिरी बार तो नकटे के बच्चे ने पीट दिया मुझे ।”
“क्या !” - सुनील हैरान हो उठा - “हाउसबोट पर नकटा चीनी अभी भी है ?”
“हां ।”
“हाउसबोट पर उसके अलावा कोई और नकटा है ?”
“नहीं । वह अकेला ही है ।”
“जरा उसका हुलिया बयान करना ।”
मुहम्मद ने जिस नकटे चीनी का हुलिया बयान किया वह निश्चय ही वही था जिसे रिश्वत देकर चिन ली मोटरबोट से सुनील को मुक्त करा पाई थी ।
“लेकिन उस नकटू को तो अभी तक पेकिंग में होना चाहिये था ।”
मुहम्मद ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
सुनील विचार मग्न हो गया ।
दो बातें उसके मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज रही थीं ।
नकटा चीनी अभी भी मोटरबोट पर क्यों था ?
उस रात जब वह किनारे की ओर तैर रहा था, उस समय चिन ली की बगल में लार्ड गोल्डस्मिथ भी खड़ा था ।
इसका अर्थ यह हुआ कि मोटरबोट से सुनील की मुक्ति केवल एक ड्रामा था और वह ड्रामा गोल्डस्मिथ की जानकारी में हुआ था ।
एकाएक वह पलंग से उठ खड़ा हुआ ।
उसने चुपचाप कपड़े बदले और मुहम्मद से बोला - “चलो ।”
“कहां ?”
“पौटिंगर स्ट्रीट”
सुनील ने अपने कमरे को ताला लगाया और लिफ्ट द्वारा ग्राउंड फ्लोर पर जा पहुंचा ।
“गुड डे, मिस्टर कमाल !” - रिसेप्शनिस्ट उसे देखकर चेहरे पर व्यवसायिक मुस्कान लाती हुई बोली ।
सुनील ने बिना कोई उत्तर दिये कमरे की चाबी काउन्टर पर उछाली और बोला - “एक कागज और पैन दो ।”
रिसेप्शनिस्ट ने उसकी ओर कागज और पैन सरका दिया ।
सुनील ने जल्दी से कागज पर हिन्दी में लिखा :
राम सिंह, बारह बजे तक यहां तुम्हारी प्रतीक्षा कर पाने की स्थिति नहीं थी । मैं फौरन पौटिंगर स्ट्रीट में चायना क्लब की डांसर चिन ली के फ्लैट पर जा रहा हूं ।
सुनील ने कागज पर फ्लैट का नम्बर लिखा और कागज को रिसेप्शनिस्ट की ओर सरकाता हुआ बोला - “बारह बजे यहां मेरा एक मित्र आयेगा । उसे यह मैसेज दे देना ।”
“वैरी वैल, सर ।” - वह बोली ।
उसका वाक्य समाप्त होने तक सुनील मुहम्मद के साथ होटल में बाहर निकल चुका था ।
मुहम्मद ने पिछले रोज वाली रिवाल्वर फिर सुनील को दे दी ।
“मुहम्मद” - चिन ली के फ्लैट वाली इमारत के सामने पहुंच कर सुनील बोला - “तुम यहीं ठहरो । अगर गोल्डस्मिथ का कोई व्यक्ति चिन ली के फ्लैट की ओर आता दिखाई दे, तो मुझे सतर्क कर देना ।”
“ओके, मास्टर ।” - मुहम्मद बोला ।
सुनील लिफ्ट द्वारा ऊपर पहुंचा और उसने धीरे से काल बैल का बटन दबा दिया ।
द्वार उसी लड़की ने खोला जिसने पहली बार सुनील को बैडरूम में बिठाया था ।
“मादाम हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“हैं ।” - वह बोली - “लेकिन मिल नहीं सकतीं । वे सो रही हैं ।”
“मेरे से मिल लेंगी वे ।” - सुनील बोला - “चिन ली ने मुझे स्वयं आज यहां आने के लिये कहा था ।”
“नो, मिस्टर । मादाम किसी को दिन के समय फ्लैट पर आने के लिये नहीं कहतीं ।”
और वह द्वार बन्द करने लगी ।
“अच्छा, एक बात सुनो ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?” - लड़की क्षण भर के लिये रुक गई ।
“मैं रात को आऊंगा । मैं मादाम के लिये कुछ सामान लाया हूं, तुम अन्दर रख लो ।”
“ओके ।” - लड़की बोली और छोड़कर बाहर निकल आई ।
उसके बाहर निकलते ही सुनील ने उसे दबोच लिया और अपनी हथेली से उसका मुंह भींच दिया ताकि वह शोर न मचा सकती । फिर उसने अपने दूसरे हाथ से लड़की की गरदन के पिछले भाग में एक नपी-तुली चोट की ।
लड़की का शरीर उसके हाथों में लहरा गया ।
सुनील ने उसे घसीट कर जल्दी से उस लिफ्ट में डाल दिया जिसका सहायता से वह ऊपर पहुंचा था । लिफ्ट में एक लकड़ी की तख्ती रखी थी जिस पर आउट आफ आर्डर लिखा हुआ था । उसने वह तख्ती बाहर निकाल ली ।
फिर सुनील ने अपनी जेब से रुमाल और सिगरेट लाइटर निकाला । उसने लाइटर को रूमाल में लपेट कर एक गोला-सा बना लिया । फिर उसने लिफ्ट का ओटोमैटिक द्वार बन्द करने के लिये बाहर लगा बटन दबा दिया । इससे पहले कि दोनों द्वार बन्द होने के लिये एक-दूसरे से मिल पाते, उसने वह गोला-सा उन द्वारों के बीच फंसा दिया । दोनों द्वारों के बीच लगभग आधे इंच की एक झिरी रह गई थी । अब लिफ्ट उस फ्लोर से ऊपर या नीचे नहीं जा सकती थी क्योंकि आटोमैटिक लिफ्ट का बिजली का सरकट तभी कम्पलीट होता जब लिफ्ट के दोनों द्वार एक दूसरे से मिल जाते ।
सुनील के लिफ्ट पर आउट आफ आर्डर की तख्ती लगाई और चिन ली के फलैट में घुस गया ।
गनीमत थी कि उतने समय में कोई वहां नहीं आया था ।
चिन ली अपने बैडरूम में अर्धनग्नावस्था में सोई पड़ी थी ।
सुनील ने उसके अधखुले होंठों पर अपने होंठ रख दिये । चिन ली चिहुंक कर उठ बैठी ।
“तुम ?” - वह हैरानी से उसे देखती हुई बोली ।
“इसमें हैरानी की कौन-सी बात है, जानेमन ?” - सुनील पलंग पर बैठा हुआ बोला ।
“तुम यहां आये कैसे ? नौकरानी कहां है ?”
“नौकरानी मालूम नहीं कहां है ! मैं तुमसे मिलने के लिये आया था । द्वार खुला देखकर भीतर चला आया था ।”
“इस वक्त ?”
“क्या खराबी है इस वक्त में ? शरीफ आदमियों के आने का तो यही वक्त होता है ।”
“हांगकांग में नहीं, मिस्टर ।” - चिन ली अब तक स्वयं पर काफी काबू पा चुकी थी । अत: वह अपना पुराना हथियार इस्तेमाल करने लगी थी - “और विशेष रूप से चिन ली के फ्लैट पर नहीं । जब दुनिया की रात होती है तब चिन ली का दिन होता है और जब दुनिया का दिन होता, है तब चिन ली की रात होती है । समझे, मिस्टर ?”
“समझा ।”
“मैं सुबह पांच बजे चायना क्लब से वापिस आती हूं और फिर दिन के दो बजे तक सोती हूं ।”
“लेकिन, डियर” - सुनील बोला - “बारह तो बज ही गये हैं । क्या आज मेरी खातिर तुम अपनी दो घन्टे की नींद बलिदान नहीं कर सकतीं ?”
“नींद तो उड़ ही गई है, मिस्टर ।” - चिन ली अंगड़ाई लेती हुई बोली - “अब यह बताओ तुम क्या चाहते हो ?”
“यकीन करो जो तुम इस समय सोच रही हो, वह नहीं चाहता हूं ।”
“तो फिर ?”
“आज वह शराब नहीं पिलाओगी” - सुनील उसके प्रश्न की ओर ध्यान दिए बिना बोला - “जिसका एक पैग पीकर एक बोतल का नशा हो जाता है ?”
“वह तो खत्म हो गई, मिस्टर” - चिन ली मादक स्वर से बोली - “लेकिन मैं क्या उस शराब से कम नशीली चीज हूं ?”
“उससे बहुत अधिक नशीली चीज हो तुम । इसीलिये मैं तुम्हारे हाथों उल्लू बन गया था । चिन ली, अगर स्ट्रिपटीज डांसर होने की जगह तुम स्क्रीन एक्ट्रेस होतीं तो इस समय सारे संसार में तुम्हारा नाम होता ।”
“तुम क्या कह रहे हो, मिस्टर ! मुझे तुम्हारी एक भी बात समझ नहीं आ रही है ।” - चिन ली शिकवा सा करती हुई बोली ।
“अब मैं वही बात कहने जा रहा हूं जो फौरन तुम्हारी समझ में आ जायेगी ।”
“तो कहो न ।”
“टैक्नीकल पेपर कहां हैं ?” - सुनील चिन ली के चेहरे पर दृष्टि गड़ाता हुआ बोला लेकिन उसे यह देखकर बड़ी निराशा हुई कि चिन ली के चेहरे पर शिकन भी नहीं आई थी ।
“कौन से टैक्नीकल पेपर ?” - उसने भोलेपन से पूछा ।
“वही जो सलामत अली भारत से चुरा कर लाया था ।”
“कौन सलामत अली ? कौन-से पेपर ? यह तुम क्या रहे हो, मिस्टर ?”
“बनने की कोशिश मत करो, मादाम । तुम्हारा असली रूप मेरे सामने आ चुका है । चायना क्लब की आड़ में चलने वाले स्पाई रिंग की संचालिका तुम हो । गोल्डस्मिथ तो तुम्हारी शतरंज का मोहरा मात्र है । और गौतम यह बात जान गया था इसलिये तुमने किराए के हत्यारे से रायल होटल में उसका खून करवा दिया । लेकिन मिंग का भाई भी यह जानता था कि मिंग ने किसके संकेत पर हत्या की है, इसलिए तुमने उसे भी ठिकाने लगवा दिया । और...”
“बहुत बोर कर रहे हो, मिस्टर ।” - चिन ली उसे टोक कर जमहाई लेती हुई बोली - “अगर कहानी सुनानी थी तो कोई दिलचस्प कहानी तो सुनानी शुरू की होती ।”
“मैं गलत कह रहा हूं ।”
“एकदम गलत और बेमानी बातें कर रहे हो ।” - चिन ली लापरवाही से बोली - “मिस्टर, अगर जैसा तुम कह रहे हो, मैं किसी स्पाई रिंग की लीडर हूं तो फिर मैंने तुम्हें क्यों जीवित छोड़ दिया ? मुझे क्या जरूरत पड़ी थी कि मैं हाउसबोट से तुम्हारे भाग जाने का इन्तजाम करती ? तुम उस समय हाउसबोट पर कैद थे और संसार की कोई शक्ति तुम्हें वहां से छुड़वा नहीं सकती थी । उस स्थिति में गोल्डस्मिथ ठाठ से तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े करके समुद्र में फेंक सकता था । आखिर क्यों मैंने तुम्हें वहां से भाग जाने का अवसर दिया ?”
“तुम्हारी ये ही चाल तो मुझे बेवकूफ बना गई, मादाम चिन ली ।” - सुनील बोला - “तुमने हाउसबोट से मुझे निकल जाने का मौका देकर मेरा विश्वास जीत लिया । तुम्हें यह तो मालूम था कि मैं जासूस था लेकिन तुम्हें यह मालूम नहीं था कि मैं हांगकांग में अकेला आया था या मेरे साथ और साथी भी थे । इसीलिए तुमने मुझे हाउसबोट से भाग जाने का अवसर देकर मुझ पर अहसान किया और इस बात का प्रोत्साहन दिया कि मैं तुम से मेल-जोल बढाऊं । कल रात मैं तुम्हारे यहां आया तो तुमने अपने औरत होने का लाभ उठाना आरम्भ कर दिया । तुमने अपने रूप और यौवन के सम्मोहन में फंसाकर मुझे शराब पिला दी और फिर बुरी तरह मेरी चेतना पर छा गईं । फिर तुमने बार-बार मुझसे यह पूछा कि मैं हांगकांग में अकेला था, और पूछने का ढंग ऐसा था जैसे उसमें भी तुम कोई मेरी भलाई सोच रही थीं । एक बार पूरी तरह विश्वास हो जाने पर कि मैं अकेला हूं, तुम चायना क्लब फोन करने के बहाने उन हत्यारे चीनियों को फोन कर आई कि तुम्हारे फ्लैट से निकलते ही मेरी हत्या कर दी जाये । फिर तुम ने बहाना बनाकर मुझे फ्लैट से बाहर भेज दिया और निश्चिंत होकर बैठ गईं । लेकिन मेरी तकदीर अच्छी थी इसलिये मैं उन पांच चीनियों के हाथों से भी बच गया । उन पांच चीनियों में से एक के शरीर में गोलियां लगी देखकर तुम समझ गईं कि मेरे पास रिवाल्वर थी । इसलिये तुमने पुलिस को फोन कर दिया कि मैं किसी की हत्या करने के इरादे से बिना लायसेंस की रिवाल्वर जेब में लिये फिर रहा था । पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई और तुमने समझा कि जान छूटी । लेकिन मैं वहां से भी बच निकला । इतना होने के बाद भी मेरा तुम्हारी और कभी ख्याल नहीं जाता अगर आज सुबह मुझे यह न मालूम हुआ होता कि वह नकटा चीनी अब भी हाउसबोट पर था जिसे तुमने रिश्वत देकर भगा दिया था । और फिर जिस रात मैं हाउसबोट से भागा था, उस रात मैंने गोल्डस्मिथ को डैक पर तुम्हारे साथ खड़ा देखा था जबकि तुम मुझे यह समझा रही थी कि वह चायना क्लब में था ।”
सुनील चुप हो गया ।
“मैं तुम्हें इतना समझदार तो नहीं समझती थी, मिस्टर !” - चिन ली सरल स्वर में बोली ।
“अब समझने लगोगी ।” - सुनील कठोर स्वर से बोला - “पेपर कहां हैं ?”
“अगर न बताऊं तो ?” - चिन ली इठला कर बोली ।
“तो यह देख रही हो ?” - सुनील ने जेब से रिवाल्वर निकाल कर उसकी ओर तान दी ।
चिन ली ने एक बार रिवाल्वर को और फिर सुनील के चेहरे की ओर देखा । फिर उसके चेहरे पर मुस्कराहट बिखर गई ।
“रिवाल्वर जैसी बद्सूरत चीज तुम्हारे खूबसूरत चेहरे से मेल नहीं खाती ।” - वह बोली ।
“बहुत मजाक हो चुका ।” - सुनील बोला । उसने रिवाल्वर को बैडरूम के कोने में मेज पर रखे गिलास की ओर ताना और घोड़ा दबा दिया । गिलास के परखचे उड़ गये । उसने रिवाल्वर की नाल फिर चिन ली की ओर घुमा दी ।
“ये ही हालत तुम्हारे इस खूबसूरत शरीर की भी हो सकती है ।” - सुनील बोला ।
“मिस्टर” - चिन ली बोली - “मैंने इससे ज्यादा तगड़ी धमकियां सुनी हैं और तुम्हारे हाथ में थमी रिवाल्वर से ज्यादा खतरनाक हथियार देखे हैं ।”
चिन ली ने सहज ही हाथ बढाकर पलंग के साथ लटका हुआ बैड स्विच पकड़ लिया ।
“गोली मत चलाना, मिस्टर ।” - वह बोली - “अब अगर तुम्हारी रिवाल्वर के ट्रीगर पर तुम्हारी उंगली का जरा भी दबाव बढा तो मेरे इस बैड स्विच को दबाने भर की देर होगी, और रायफल की कम से कम बीस गोलियां तुम्हारे शरीर के आर-पार निकल जायेंगी । जरा सिर उठाकर देखो ।”
सुनील ने ऊपर छत की ओर देखा । छत पर कई रायफलें फिट हुई हुई थीं और सबकी नाल का निशाना सुनील की ओर था ।
सुनील के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं ।
“रिवाल्वर नीचे फेंक दो ।” - चिन ली ने आज्ञा दी ।
सुनील ने रिवाल्वर जमीन पर रख दी ।
“क्या उम्र है तुम्हारी, मिस्टर ?” - उसने पूछा ।
“सत्ताइस साल ।”
“अगर चिन ली से न टकराये होते तो कम से कम पचास-साठ साल तो और जीते ही ।”
सुनील चुप रहा ।
“जिन टेक्नीकल पेपरों के कारण तुम अपनी मौत के मुंह में पहुंच गये हो, उन्हें भी एक नजर देख लो ।” -चिन ली तकिये के नीचे से कुछ पेपर निकाल कर सुनील को दिखाती हुई बोली - “ये हैं वे हवाई जहाज के अविष्कार से सम्बन्धित पेपर जिन पर तुम्हारे देश के इन्तीनियरों की वर्षों की अनथक मेहनत लगी हुई है । जिन्हें सलामत अली ने अपने देश के लिये प्राप्त किया था लेकिन उसने अपने देश के साथ भी गद्दारी की । नतीजा तुम्हारे सामने है । पेपर मेरे पास हैं । और मैं अब और अधिक इन्तजार किये बिना आज ही रात इन्हें पेकिंग ले जा रही हूं ।”
सुनील चुप रहा ।
“माइकल ने रिपोर्ट दी थी कि सलामत अली वह महत्वपूर्ण ड्राइंग प्राप्त करने में सफल हो गया है जिसका जिक्र नरेन्द्र सिंह ने अपने पत्र में किया था । लेकिन अब मुझे लगता है कि माइकल और सलामत अली दोनों तुम्हारी पुलिस के हाथ पड़ गये हैं । हमने ट्रांसमीटर पर माइकल से सम्बन्ध स्थापित करने की बहुत चेष्टा की है लेकिन उधर से कोई उत्तर नहीं मिलता ।”
“इन पेपरों का तुम क्या करोगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“अपने देश को सौंप दूंगी । उसके बाद मेरा देश विमान तैयार करे या न करे, कम से कम तुम्हारे देश को तो हमने सुरक्षा के इतने बड़े साधन से वंचित कर ही दिया न ! साथ ही सलामत अली के देश को भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ । हम तो यह चाहते हैं कि एशिया का कोई भी देश अपनी प्रतिरक्षा का इतना सुदृढ़ इन्तजाम न कर पाये कि वह मेरे देश की विस्तारवादी नीति का सामना कर सके । खैर, बहुत बातें हो चुकीं । अब तुम मरने के लिये तैयार हो जाओ ।”
सुनील ने आंखें मूंद ली ।
चिन ली ने स्विच दबा दिया ।
रायफलों में से एक भी गोली नहीं निकली ।
चिन ली के चेहरे पर भय और आतंक के भाव दौड़ गये ।
उसने कई बार स्विच दबाया लेकिन जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह स्विच छोड़कर फर्श पर पड़ी सुनील की रिवात्वर की ओर झपटी ।
उसी समय सुनील ने आंखें खोल दीं । एक ही क्षण में उसे सारी स्थिति समझ में आ गई । उसने चिन ली की ओर छलांग लगा दी । चिन ली के हाथ में रिवाल्वर आने से पहले ही सुनील ने उसे दबोच लिया ।
उसने हाथ बढ़ाकर रिवाल्वर उठा ली और चिन ली को बालों से पकड़कर सीधा खड़ा कर दिया ।
“भगवान जाने तुम्हारी रायफलों ने अपना काम क्यों नहीं किया ।” - वह पलंग से पेपर उठाकर अपने कोट की जेब में रखता हुआ बोला - “लेकिन मेरी रिवाल्वर धोखा नहीं देगी । इसमें सिर्फ दो गोलियां हैं लेकिन तुम्हारे लिये तो एक ही काफी है ।”
उसी समय आय की आवाज हुई और एक गोली सनसनाती हुई सुनील के सिर के ऊपर से निकल गई ।
“मास्टर, बचो ।” - एकाएक उसे मुहम्मद का स्वर सुनाई दिया ।
सुनील एकदम घूमा । बैडरूम के खुले द्वार में से उसे ड्राइंग रूम में खड़ा गोल्डस्मिथ दिखाई दिया । उसके दायें हाथ में रिवाल्वर थी और उसके उस हाथ के साथ मुहम्मद लिपटा हुआ था ।
गोल्डस्मिथ के दूसरे हाथ का भरपूर घूंसा मुहम्मद के मुंह पर पड़ा । मुहम्मद उलट कर ड्राइंग रूम के दूसरे कोने में जा गिरा । उसका सिर दीवार से टकराया और वह होश खो बैठा ।
सुनील ने फायर किया लेकिन गोल्डस्मिथ बच गया ।
गोल्डस्मिथ सुनील की ओर फायर झोंकने ही वाला था कि सुनील ने चिन ली को सामने कर दिया और अपनी रिवाल्वर की नाल चिन ली की कनपटी पर लगा दी ।
“गोल्डस्मिथ ।” - सुनील चिल्लाया - “अगर फायर किया तो चिन ली का भेजा उड़ा दूंगा ।”
गोल्डस्मिथ रुक गया ।
“डैडी” - एकाएक चिन ली चिल्ला पड़ी - “मेरी परवाह मत करो । पेपर इसकी जेब में हैं । तुम गोली चलाओ ।”
गोल्डस्मिथ उलझन में पड़ गया सुनील और चिन ली को देखता रहा ।
“डैडी” - चिन ली फिर चिल्लाई - “डोंट माइन्ड मी । तुम गोली चलाओ । इसकी रिवाल्वर में सिर्फ एक गोली है । डैडी, शूट ।”
गोल्डस्मिथ ने रिवाल्वर की नाल ऊपर उठाई । उसके हाथ कांप रहे थे ।
“गोल्डस्मिथ” - सुनील बोला - “अगर चिन ली तुम्हारी बेटी है तो तुम्हें इसका और भी ख्याल करना चाहिये । गोल्डस्मिथ, रिवाल्वर फेंक दो । मैं चिन ली को कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा ।”
“डैडी, शूट ।” - चिन ली प्रार्थना भरे स्वर से चिल्लाई ।
गोल्डस्मिथ का हाथ कांपना बन्द हो गया । उसने अपनी रिवाल्वर का ट्रीगर दबा दिया ।
गोली चिन ली की छाती में लगी ।
“बाई, डैडी ।” - चिन ली धीमे स्वर में बोली - “इसे मत छोड़ना । पेपर इसकी जेब में हैं ।”
और उसका मृत शरीर सुनील की बांहों में झूल गया ।
सुनील ने चिन ली को छोड़ दिया और अपनी रिवाल्वर की आखिरी गोली गोल्डस्मिथ की ओर दाग दी ।
उसी क्षण गोल्डस्मिथ की रिवाल्वर से भी गोली निकली और दोनों गोलियां रास्ते में टकरा गईं ।
गोल्डस्मिथ आंखों में खून लिये सुनील की ओर बढा ।
सुनील ने खाली रिवाल्वर गोल्डस्मिथ की ओर खींच मारी । रिवाल्वर भड़ाक से गोल्डस्मिथ के चेहरे से टकराई । उसका लाल चेहरा लहूलुहान हो गया लेकिन उसकी गति में कोई अन्तर नहीं आया ।
“नाओ, डोंट मूव, यू स्वाइन ।” - गोल्डस्मिथ कहर भरे स्वर से गर्जा - “मैं तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा ।”
गोल्डस्मिथ ने रिवाल्वर का घोड़ा दबाया लेकिन रिवाल्वर में से गोली निकालने से पहले ही उसके मुंह से एक लम्बी हाय निकली और उसके हाथ से रिवाल्वर छूट गई ।
अपनी बेटी के शरीर से कुछ हाथ दूर वह फर्श पर गिरा और उसने दम तोड़ दिया ।
द्वार पर राम सिंह खड़ा था । उसकी रिवाल्वर की नाल में से अभी भी धुआं निकल रहा था ।
“शुक्र है भगवान का ।” - वह रिवाल्वर जेब में रखता हुआ बोला - “मैं ठीक समय पर पहुंच गया ।”
लेकिन सुनील उसके कथन की ओर ध्यान दिये बिना मुहम्मद की ओर लपका ।
मुहम्मद के सिर से खून रिस रहा था । वह अब भी चेतनाशून्य था ।
सुनील ने पास पड़े जग में से पानी निकालकर उसके चेहरे पर छींटे मारने आरम्भ कर दिये ।
कुछ ही क्षण बाद मुहम्मद होश में आ गया ।
“यू आल राइट, मास्टर ?” - मुहम्मद सुनील को देखकर बोला ।
सुनील का दिल भर आया । मुहम्मद उम्र का छोटा जरूर था लेकिन दिल का बहुत बड़ा था ।
“तुम्हारे सिर में चोट लगी है ।” - वह बोला ।
“मामूली चोट है, मास्टर ।” - मुहम्मद लापरवाही से बोला - “ऐसी चोटें तो लगती ही रहती हैं । इतनी चोट तो जेब काटने पर पकड़े जाने के बाद पुलिस द्वारा की गई पिटाई में आ जाती है ।”
“तुम ऊपर कैसे आ पहुंचे ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैंने पौटिंगर स्ट्रीट में गोल्डस्मिथ को इस ओर आते देखा था । मैंने तुम्हें फोन किया लेकिन फोन बिजी मिला - शायद खराब था - इसलिये मैं तुम्हें चेतावनी देने के लिये यहां भागा आया । फ्लैट का द्वार खुला हुआ था । तुम चिन ली के साथ बैड रूम में थे । उस समय चिन ली तुम्हें कह रही थी कि अगर वह बैड स्विच का बटन दबा दे तो तुम्हारे शरीर में से रायफल की कम से कम बीस गोलियां आर-पार हो जायेंगी । मैंने सोचा अगर एक स्विच के दबाने से बीस रायफलें चल सकती थीं तो इस इन्तजाम में अवश्य ही बिजली का कुछ हाथ होगा । मैं फौरन बाहर भागा और मैंने बिजली का मेन स्विच बन्द कर दिया । उसी समय गोल्डस्मिथ ऊपर आ गया । वह तुम पर गोली चलाने वाला ही था कि मैं उसकी रिवाल्वर वाली बांह पकड़ कर झूल गया ।”
“मुहम्मद, मेरे भाई, मेरे दोस्त” - भावुक स्वर से बोला - “तुम नहीं जानते तुमने मेरा कितना उपकार किया है । न जाने कितनी बार तुमने मेरी जान बचाई है । अगर तुम न होते तो शायद मैं अपने उद्देश्य में कभी सफल नहीं हो पाता । तुम नहीं जानते मेरी सहायता करके अनजाने में ही तुमने मेरे देश का कितना हित किया है । मैं तुम्हारा आभारी हूं ।”
सुनील उठा और राम सिंह के पास आकर बोला - “राम सिंह, तुम्हारे पास कितना धन है ?”
“लगभग एक हजार डालर हैं ।”
“और वापिस जाने का क्या इन्तजाम है ? काम तो हो ही गया है ।”
“भारतीय वायु सेना का एक स्पेशल विमान कोलून के हवाई अड्डे पर खड़ा है । हम जब चाहेंगे, वह हमें वापिस राजधानी ले उड़ेगा ।”
“यह सारा धन तुम मुझे दे दो ।”
राम सिंह ने नोट निकाल कर सुनील को दे दिये ।
“मुहम्मद” - सुनील नोट मुहम्मद को देता हुआ बोला - “धन से किसी के उपकार का बदला नहीं चुकाया जा सकता लेकिन फिर भी मैं चाहता हूं यह तुम ले लो ।”
“थैंक्स, मास्टर ।” - मुहम्मद ने नोट ले लिये ।
“क्या करोगे इन नोटों का ?” - सुनील ने पूछा ।
“अपनी बहन को दूंगा ।”
“क्यों ?”
“वह पेशा करती है । शायद एक मुश्त इतना धन मिल जाने पर वह उस नरकीय जीवन को छोड़ सकने में सफल हो जाये ।”
सुनील हैरान रह गया । इतनी छोटी उम्र में ही मुहम्मद जीवन के कितने गहरे तथ्यों से परिचित था ।
“और तुम क्या करोगे ?”
“वही पुराना धन्धा । विदेशी टूरिस्टों की जेबें काटूंगा । शायद जिन्दगी में कोई और तुम्हारे जैसा ग्रेट आदमी मिल जाये ।”
***
केस समाप्त हो गया । गोल्डस्मिथ और चिन ली का लाशों वगैरह का सारा बखेड़ा राम सिंह की खातिर चीफ इन्सपेक्टर टर्नर ने अपने हाथों में ले लिया । सुनील और राम सिंह वापिस लौट आये । प्रतिरक्षा मन्त्रालय के गुप्त पेपर प्रतिरक्षा मन्त्रालय में वापिस पहुंच गये । प्रतिरक्षा मन्त्री ने स्वयं सुनील का धन्यवाद किया और उसके कृत्य पर भारी गर्व का अनुभव किया । प्रत्यक्ष में सुनील के इस महान कार्य की किसी को खबर भी नहीं हुई । ब्लास्ट के चीफ एडीटर मलिक साहब तो इस बात पर बेहद नाराज हुये कि वह एकाएक ही एक सप्ताह भर कहां गायब रहा था । प्रमिला और रमाकान्त ने भी उसे खूब झाड़ पिलाई ।
सुनील सब सुनता रहा ।
माईकल को फांसी की सजा हुई ।
नरेन्द्र सिंह को दस वर्ष की सजा हुई लेकिन वह अपनी सजा के दूसरे वर्ष में ही स्वर्ग सिधार गया ।
राम सिंह और सुनील के सम्बन्ध और गहरे हो गये !
लेकिन वास्तविक प्रशंसा सुनील को मृत नरेश कुमार की मंगेतर रमा से मिली । उसका यह कथन सुनील के दिल पर अमिट अक्षरों से लिख गया था कि अगर सुनील उस रहस्य को न सुलझाता तो सारा देश नरेश कुमार को ही देशद्रोही कहकर पुकारता और रमा जीवन भर इस बात को न भूला पाती कि उसका भावी पति देशद्रोही था लेकिन अब उसे नरेश कुमार पर गर्व था क्योंकि उसका जीवन देश के हित में होम हुआ था ।
समाप्त
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