रात के 3:50 बज रहे थे।
पारसनाथ उस गोदाम जैसी जगह पर बुरे हाल में मौजूद था। बड़ी सी मशीन के साथ उसे रस्सियों के साथ जकड़कर बांधा हुआ था। वो न तो बैठ सकता था, न खड़ा रह सकता था। मशीन के कई हिस्से उसके शरीर में चुभन पैदा कर रहे थे। शरीर पर नाईट सूट था। सिर के बाल बिखरे हुए। चेहरे और कपड़ों से जाहिर हो रहा था कि खासी धुनाई हो चुकी है उसकी।
वहां दस लोग थे इस वक्त। अधिकतर नशे में लग रहे थे।
पारसनाथ गुस्से से भरा उन सब को देखे जा रहा था।
"क्यों बे... क्या देखता है?" एक ने नशे से भरे कड़वे स्वर में कहा।
"कौन हो तुम लोग?" पारसनाथ दांत किटकिटा उठा--- "ये सब कुछ क्यों कर रहे...।"
"शाह जी पहुंच रहे हैं यहां, वो बात करेंगे बच्चे...।"
“शाह जी?" पारसनाथ की आंखें सिकुड़ी--- "वो ड्रग्स किंग।"
"ठीक समझा, वो ही...।"
"मेरा उससे क्या पंगा...।" पारसनाथ अभी तक हैरान था।
"शाह जी बताएंगे। उन्होंने हमें पता बताकर कहा कि तुझे उठाना है। उठा लाए। फिर फोन आया कि तुम्हारी खासी धुनाई करें। तो हमने कर दी। अब वो खुद तेरे स्वागत के लिए आ रहे हैं। तू शाह जी का खास चहेता लगता है।"
"मेरा शाह जी से कोई मतलब नहीं है।" पारसनाथ ने गुस्से से कहा।
"वो ही बताएंगे। आने वाले हैं। चिपका रह मशीन से...।"
पारसनाथ हैरान था कि ड्रग्स किंग शाह जी ने उस पर हाथ क्यों डाला?
दस मिनट में ही शाह जी वहां आ पहुंचा।
पैंतीस बरस का शाह जी कमीज-पैंट में था। वो पारसनाथ के पास पहुंचा। होंठ भिंचे हुए थे।
"तुम मेरे साथ ये सब क्यों कर रहे हो? मेरा-तुम्हारा कोई मतलब ही नहीं है।" पारसनाथ ने कहा।
"कल रात तूने एक लड़के की छाती पर गोली मारी थी।" शाह जी शब्दों को चबाकर कह उठा।
“हां... तो?” पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।
"वो मेरा छोटा भाई है।" शाह जी कठोर शब्दों में बोला।
पारसनाथ चौंका।
"अब समझा कि तेरा-मेरा क्या मामला है?" शाह जी ने खा जाने वाले स्वर में कहा--- “राहत की बात तो ये है कि मेरा भाई मौत से बच गया है। वो अस्पताल में है और डॉक्टर की देख-रेख में है।"
“मैं उसे गोली न मारता तो वो मुझे गोली मार देता। वो नशे में था और समझाने पर भी नहीं समझ रहा...।"
"वो मेरा भाई है।" शाह जी ने कड़वे स्वर में कहा-- "वो जो चाहेगा, करेगा।"
पारसनाथ के होंठ भिंच गए।
“तुमने मेरे भाई को गोली मारी... ये बात मुझे पसन्द नहीं आई। मैं तुझे तड़पा-तड़पा कर मारूंगा।"
"ये गलत है। गलती तुम्हारे भाई की थी और अब तुम गलती कर रहे...।"
"मैं कोई गलती नहीं कर...।"
"जब मैंने उसे गोली मारी तो नहीं जानता था कि वो तुम्हारा भाई है।" पारसनाथ ने पैंतरा बदला--- “मुझे छोड़ दो। ये सब बातें यहीं खत्म कर दो। जुर्माने के तौर पर तुम जो दस-बीस लाख रुपया कहोगे, मैं दे दूंगा।"
"दस... बीस लाख...।" शाह जी ने कड़वे स्वर में कहा--- "करोड़ों रुपया पैदा करना, मेरे हाथ की मैल जैसा है। मेरा भेजा हुआ हजारों का माल जब विदेशों में पहुंचता है तो वह करोड़ों में बदल जाता है। ड्रग्स किंग कहते हैं मुझे। अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप के कितने ही देशों में मेरी भेजी ड्रग्स जा रही है। तुम मुझे गलत समझ रहे हो कि दस-बीस लाख देकर मुझे चुप करा लोगे। मैं तुम्हारी जान लेकर रहूंगा। मेरे आदमी...।"
"मुझे जानते हो?" पारसनाथ खुद को बचाने का हर इस्तेमाल कर लेना चाहता था।
"तुम्हें जानने को है ही क्या ?" शाह जी तीखे स्वर में कह उठा--- "तुम रेस्टोरेंट चलाते हो... बस।"
“मोना चौधरी का नाम सुना है?"
"सुना है... तो?"
"वो मेरी खास पहचान की है। मुझसे मत बिगाड़ो। मेरे कहने पर मोना चौधरी तुम्हारे काम आ सकती...।"
"तुम बेकार की कोशिश कर रहे हो। मुझे मोना चौधरी की जरूरत नहीं है।" शाह जी ने व्यंग्य से कहा--- "तुमने क्या सोचा था कि मोना चौधरी का नाम सुनकर तुमसे प्रभावित हो जाऊंगा? बेवकूफ हो तुम...।"
पारसनाथ महसूस कर चुका था कि शाह जी उसे जान से मार देने पर अड़ा हुआ है।
"मुझे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा? जब मैंने तुम्हारे भाई को गोली मारी, तब नहीं जानता था कि वो तुम्हारा भाई है।"
शाह जी ने पलटते हुए अपने आदमी को पुकारा।
"राजा... ।”
"जी...।" एक आदमी उसी पल सामने आया।
“ये आदमी अब तुम्हारे हवाले है। इसने कल राजू को गोली मारी थी। किस्मत अच्छी थी राजू की कि वो बच गया। इसे तड़पा-तड़पा कर मारो। जान जितनी देर से निकले, उतनी ही इसे तकलीफ होगी।" शाह जी ने कठोर स्वर में कहा।
"समझ गया।" राजा ने सिर हिलाया।
“मुझे जब भी खबर दो, ये ही खबर दो कि ये तड़प-तड़प कर मरा है।" शाह जी ने क्रूर स्वर में कहा।
"ये ही खबर दूंगा शाह जी...।" राजा ने सिर हिलाया।
शाह जी वहां से चला गया।
■■■
शाह जी के उसी ठिकाने के बाहर... ।
रॉ के वो आठ एजेन्ट थे जो कि आधे घंटे से अपनी जगहों पर जमे हुए थे। जब वे एक्शन में आने वाले थे तो उन्होंने शाह जी की कार को उस ठिकाने पर पहुंचते देखा। उन्होंने इस बात की खबर तुरन्त चीफ को दी। गोपालदास जी ने आदेश दिया कि उनका टारगेट पारसनाथ को वहां से निकालना है, शाह जी को नुकसान पहुंचाना नहीं। वहीं रुके रहो।
ऐसे में एक्शन में आते-आते वे रुक गए थे।
आधे घंटे बाद उन्होंने शाह जी की कार को बाहर निकलकर दूर जाते देखा।
एक एजेन्ट ने तुरन्त गोपालदास जी से सम्पर्क बनाकर कहा---
"शाह जी चला गया है।"
"तो सोचते क्या हो? फौरन काम शुरू कर दो।" गोपालदास जी की आवाज कानों में पड़ी।
उसके बाद रॉ के एजेन्टों में तेजी से हलचल पैदा हो गई।
वे एक्शन में आ गए।
एक-एक करके वे अलग-अलग जगहों में बिखरे हुए थे। सबके हथियारों पर साइलेंसर लगे हुए थे। उन्होंने दोनों गेट पर खड़े तीन आदमियों की टांगों पर गोलियां मारकर उन्हें घायल किया। फिर हथियारों सहित भीतर प्रवेश करते चले गए।
कुछ ने दायें-बायें की दीवारों से फलांग कर भीतर प्रवेश किया था।
सब काम तेजी से और बे-आवाज हो रहा था।
उस ठिकाने पर जो लोग भी थे, सब भीतर थे। सुबह के पांच बजने वाले थे। रात भर के जगे होने की वजह से उनके भीतर ठस-ठस कर सुस्ती भर चुकी थी। ऐसे में किसी हमले के होने के बारे में तो सोच भी नहीं सकते थे। अधिकतर ने तो अपनी रिवाल्वर भी एक तरफ रखी हुई थी। ऐसे में वे अचानक हो जाने वाले हमले का मुकाबला कैसे कर पाते !
ये ही हुआ।
रॉ के उन आठों एजेन्टों ने एक साथ उस हॉल गोदाम जैसे कमरे में प्रवेश किया।
"खबरदार!” एक चीखा--- "जो जहां है वहीं खड़ा रहे। हिले तो गोली मार दी जाएगी।"
सब हक्के-बक्के रह गए।
ऐसा कुछ होगा, उन्होंने सोचा भी नहीं था।
पारसनाथ चौंका। उसकी आंखें सिकुड़ गईं। आने वाले इन लोगों में से किसी को उसने पहले नहीं देखा था।
एक ने रिवाल्वर निकालने के लिए जेब में हाथ डाला कि उसी पल एक गोली उसकी टांग पर आ लगी।
"अब की बार गोली छाती में लगेगी।" रॉ के एक एजेन्ट ने कठोर स्वर में कहा।
"कौन हो तुम लोग?” राजा ने चीखकर पूछा।
"खामोश रहो।"
सन्नाटा सा छा गया था वहां।
शाह जी का हर आदमी स्तब्ध खड़ा था कि ये क्या हो गया?
"तुम लोग नहीं जानते कि किसके ठिकाने पर ये सब कर रहे हो ?" राजा ने गुस्से से कहा।
एक एजेन्ट आगे बढ़ा और गन की नाल राजा की छाती पर रख दी।
राजा कांप उठा।
"हम यहां तक आए हैं तो ये जानते ही हैं कि किसकी जगह पर हम हैं। ये शाह जी का ठिकाना है। बोल हां...।"
“हां... ।"
“अब तू बोला तो गोली तेरी छाती से अन्दर घुसेगी और पीठ से बाहर आ जाएगी। बोल के दिखा अब... ।”
नाल छाती पर रखी थी। राजा की अब हिम्मत कहां थी कहने की।
तब तक दो एजेन्ट्स पारसनाथ के पास पहुंच चुके थे और उसके बंधनों को खोलने लगे थे।
पारसनाथ हैरान था कि ऊपर वाले की फौज के लोगों ने उसे बचा लिया।
"कौन हो तुम लोग ?” पारसनाथ ने उलझन भरे अंदाज में पूछा।
"चुप रहो...।"
“लेकिन तुम...।"
"चुप रहो। ये वक्त बात करने का नहीं है।"
पारसनाथ चुप ही रहा।
वो बंधनों से आजाद हो गया। नाइट सूट फटा हुआ था और चेहरे पर ठुकाई के तगड़े निशान नजर आ रहे थे।
■■■
तीन कारों में रॉ के एजेन्टों का काफिला वापस चल पड़ा।
साथ में पारसनाथ था।
एक ने गोपालदास जी को फोन किया।
"पारसनाथ को हम वहां से निकाल लाए हैं।" एजेन्ट ने कहा।
"किस हाल में है वो ?"
"नाइट सूट जगह-जगह से फटा पड़ा है और चेहरे पर तगड़ी ठुकाई के निशान हैं। एक आंख में सूजन है।"
"हूं। ठीक है।" गोपालदास जी की आवाज उसके कानों में पड़ी--- "एक नम्बर टार्चर रूम में ले जाओ पारसनाथ को। वहां इसे तगड़े ढंग से टार्चर करो। इस काम के दौरान अपने चेहरों को ढक लेना। नकाब डाल लेना। पारसनाथ को टार्चर करने की दस मिनट की सी.डी. बनानी है। ऐसी सी.डी. कि देखने वाले को ये लगे कि पारसनाथ नहीं बचने वाला।"
"समझ गया सर।"
"पारसनाथ को टार्चर करना है लाली खान के नाम से।" गोपालदास जी की आवाज कानों में पड़ी--- "लाली खान, अफगानिस्तान के काबुल की है और ड्रग्स के धंधे की वहां की किंग है। टार्चर के दौरान पारसनाथ से ऐसी बातें की जाएं कि...ऐसा कुछ पूछा जाए कि पारसनाथ का वास्ता लाली खान और ड्रग्स से जुड़ा लगे। सी. डी. देखने वाले को ये लगे कि लाली खान, पारसनाथ को देर-सवेर में मार के ही रहेगी।"
“ठीक है, सर। मैं पूरी तरह समझ गया।"
"पारसनाथ को इतना ही टार्चर करना, जितनी सी. डी. बनाने के लिए जरूरत हो। ये सब ज्यादा नहीं चलना चाहिए।"
"यस सर।"
■■■
पारसनाथ को महसूस हो गया था कि वो आजाद नहीं हुआ था। बल्कि पहले की ही तरह बुरा फंसा पड़ा है। उसे एक ऐसे कमरे लाया गया जो कि देखने में ही समझ आ रहा था कि वो टार्चर रूम है। पारसनाथ समझ नहीं पा रहा था कि ये लोग कौन हैं। बार-बार पूछने पर भी उसे उसकी किसी बात का जवाब नहीं मिल रहा था। उसे लोहे की कुर्सी पर बिठा दिया गया। पिंडलियों को लोहे के कड़ों में जकड़ दिया गया था। इसी तरह कलाइयों को कुर्सी के हत्थों के साथ, कड़ों में जकड़ दिया गया। पारसनाथ छटपटाकर रह गया।
"कौन हो तुम लोग?" पारसनाथ चीख उठा--- "ये सब क्या हो रहा है? आखिर चाहते क्या हो तुम लोग ?”
कोई जवाब नहीं दिया गया उसे।
दो आदमी उसके पास ही रहे।
वक्त बीतने लगा था। दिन निकल आया था। पारसनाथ की आंखों में नींद भरी पड़ी थी। आंखें लाल होने लगीं। जब भी वो कुर्सी पर बैठा आंखें बंद करता तो उसी पल पानी का गिलास डाल दिया जाता। पारसनाथ की आंखें उसी पल खुल जाती। उसे सोने नहीं दिया गया। सुबह के दस बजते-बजते पारसनाथ की आंखों में सुर्खी आनी शुरू हो गई थी।
वहां मौजूद दोनों आदमी उसे सोने नहीं दे रहे थे।
पारसनाथ पूछ-पूछ कर थक गया था कि वो लोग कौन हैं और उससे क्या चाहते हैं?
लेकिन उसे किसी बात का जवाब नहीं दिया गया। उससे कोई बात नहीं की जा रही थी।
दिन के बारह बजे वहां चार नकाबपोश व्यक्तियों ने भीतर प्रवेश किया। एक के पास वीडियो कैमरा था। उसके बाद पारसनाथ को यातना देने का दौर शुरू हुआ और इस सारे काम की वीडियो फिल्म भी बनाई जाने लगी।
पारसनाथ की चीखें वहां गूंज रही थीं।
■■■
रात के 9 बज रहे थे।
पारसनाथ आरामदेह बेड पर गहरी नींद में सोया पड़ा था। उसके शरीर पर साफ-सुथरे कपड़े थे। चेहरे पर शाह जी के आदमियों द्वारा की गई ठुकाई के निशान अब काले पड़ने शुरू हो चुके थे।
गोपालदास जी ने उस कमरे में कदम रखा। उनके चेहरे से स्पष्ट लग रहा था कि कुछ देर पहले ही वे गहरी नींद लेकर उठे हैं। गोपालदास जी ने कुर्सी खींची और उस पर बैठ गए। इस थोड़े से शोर से ही पारसनाथ की आंख खुल गई। कई घंटों की नींद से वो राहत महसूस कर रहा था। परन्तु मस्तिष्क में उलझनें ही उलझनें थीं। उसने गोपालदास को देखा और उठ बैठा।
गोपालदास ने जेब से पैकिट-लाइटर निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया।
"तुम इसी ब्रांड की सिगरेट पीते हो।"
पारसनाथ ने गहरी निगाहों से गोपालदास जी को देखा और सिगरेट सुलगा ली।
"नींद लेकर तुम्हें आराम मिला होगा।” गोपालदास जी ने पूछा ।
"कौन हो तुम?"
"क्या करोगे मेरे बारे में जानकर?" गोपालदास जी मुस्कराए।
"मैं जानना चाहता हूं कि मैं किन लोगों के हाथों में हूं और ये सब क्या हो रहा है?"
"शाह जी तुम्हारे साथ क्या करने वाला था?"
"मुझे मारने जा रहा था वो।"
"हमने तुम्हें बचा लिया।” गोपालदास जी मुस्कराए--- "चाय, कॉफी की इच्छा है?"
"कॉफी।"
गोपालदास जी जेब से मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगे। फोन पर कॉफी लाने को कहा।
पारसनाथ तीखी निगाहों से गोपालदास जी को देख रहा था।
"मुझे बताओ, कौन हो तुम?" पारसनाथ ने पूछा--- "लाली खान कौन है ?"
"मैं जानता हूं तुम्हारे दिमाग में बहुत सवाल....।"
“तुम लोगों ने किसी गलत आदमी को पकड़ लिया है। मैं किसी लाली खान नाम की औरत को नहीं जानता। मैंने उसकी ड्रग्स नहीं चुराई । तुम लोग लाली खान के आदमी हो? लेकिन मेरा विश्वास करो कि मैं वो आदमी नहीं हूं जो...।"
"जानता हूं कि तुम्हारा इन बातों से कोई वास्ता नहीं।"
"जानते हो?" पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।
"हां...।"
पारसनाथ कई पलों तक गोपालदास जी को देखता रहा।
"तुम्हें यातना देने से पहले ही जानते थे कि तुम लाली खान को नहीं जानते। उसकी ड्रग्स तुमने नहीं चुराई। इस मामले से तुम्हारा कोई मतलब नहीं।"
"तो... तो फिर मुझे यातना क्यों दी गई?"
"ये सब करना जरूरी था।" गोपालदास जी उठे और दोनों हाथ पैंट की जेबों में डालकर कह उठे--- "तुम यहां कैदी नहीं हो। मेहमान हो। मजे से इसी कमरे में रहो। जरूरत की हर चीज तुम्हें मिलती रहेगी और....।"
"चाहते क्या हो तुम?" पारसनाथ के होंठ भिंच गए।
“कुछ दिन तुम यहीं रहोगे, फिर तुम्हें छोड़ दिया जाएगा।"
“आखिर क्यों? क्या चाहते हो तुम लोग? कुछ मुझे भी पता चले....।"
"तुम्हें बताना जरूरी नहीं समझता मैं...।"
“कम से कम अपने बारे में तो बता...।"
तभी दरवाजा खुला और एक आदमी कॉफी के साथ भीतर आया। प्याला उसने पारसनाथ को थमाया।
"पहले मुझे शाह जी के आदमियों के हाथों से निकाला। फिर यहां लाकर मुझे यातना दी गई। उसके बाद अब मुझे आरामदेह कैद दे रहे हो। जबकि मैं अफगानिस्तान की लाली खान को और उसके ड्रग्स के धंधे को नहीं जानता... फिर...।"
"इसका पूरा ध्यान रखा जाए।" गोपालदास जी ने कॉफी लाने वाले आदमी से कहा--- "अगर ये कैद से निकलने की चेष्टा करता है तो इसके साथ कैसी भी सख्ती कर सकते हो। मेरी इजाजत के बिना ये आजाद नहीं होना चाहिए।"
"यस सर...।"
गोपालदास जी बाहर की तरफ बढ़ गए।
पारसनाथ कॉफी का प्याला थामे, होंठ भींचे बैठा दरवाजे को देखता रहा, फिर वहां खड़े आदमी को देखा।
वो आदमी मुस्कराकर बोला---
“वक्त बिताने के लिए ताश खेलोगे या ड्रिंक लेना पसन्द करोगे या... फिर दोनों चीजें एक साथ...।"
"तुम सब तगड़े हरामी लगते हो।" पारसनाथ ने कड़वे स्वर में कहा।
“तगड़े से भी बड़े हरामी ।” वो आदमी मुस्कराकर बोला--- “हमसे जरा बच के रहना।"
■■■
मोना चौधरी परेशान थी।
महाजन भी कम परेशान नहीं था।
रात तीन बजे मोना चौधरी को सितारा का फोन आया था। उसने रोते हुए बताया था कि कुछ लोग आए और पारसनाथ को उठाकर ले गए। मोना चौधरी सितारा के पास जा पहुंची। उससे सब कुछ जाना।
सितारा किसी को नहीं पहचानती थी जो पारसनाथ को उठा ले गए थे । परन्तु इतना बताया कि वो खतरनाक लोग थे। मोना चौधरी को ये गंभीर मामला लगा। इस प्रकार पारसनाथ को उठाया जाना... उसने महाजन को फोन करके सारी बात बताई।
महाजन फौरन पारसनाथ के घर आ पहुंचा।
उसके बाद वे पारसनाथ को ढूंढते रहे। उसकी खबर पाने की चेष्टा करते रहे।
पूरा दिन बीत गया। अब अंधेरा भी छा गया था दोबारा, परन्तु पारसनाथ की कोई खबर नहीं मिली।
मोना चौधरी और महाजन परेशान थे कि पारसनाथ के साथ क्या हो गया होगा।
महाजन ने राधा को सितारा के पास भेज दिया था कि इस बुरे वक्त में सहारा मिल सके। पारसनाथ का खास आदमी डिसूजा भी पारसनाथ को ढूंढता रहा था सारा दिन। लेकिन कहीं से पारसनाथ की खबर न मिली।
"बेबी!" महाजन और मोना चौधरी, मोना चौधरी के फ्लैट पर पहुंचे तो महाजन बोला--- “मुझे तो गड़बड़ लगती है...।"
मोना चौधरी ने गम्भीर निगाहों से उसे देखा ।
"पारसनाथ को इस प्रकार ले जाना आसान नहीं है। उसे ले जाने वाले यकीनन खतरनाक लोग हैं और उसकी कोई खबर न मिलना भी गंभीर मामला लग रहा है। कुछ पता नहीं कि उसे किन लोगों ने उठाया है।"
"फिरौती के लिए उठाया होता तो अब तक फोन आ गया होता।" मोना चौधरी ने कहा ।
"मैं नहीं समझता कि पारसनाथ को पैसों लिए उठाया गया है। मामला कुछ और ही है।" महाजन बोला। उसके चेहरे पर चिन्ता बरस रही थी।
मोना चौधरी खामोश रही।
"अब क्या किया जाए बेबी ?"
"हमें पारसनाथ की तलाश में लगे रहना चाहिए।" मोना चौधरी के होंठ भिंच गए।
"हम यही कर सकते हैं कि उसे ढूंढते रहें। परन्तु उसे ढूंढने के लिए हमारे पास कोई सुराग नहीं है।"
"हम एक बार फिर यहां से चलेंगे और पारसनाथ की तलाश इस आशा से शुरू करेंगे कि उसे ढूंढ लेंगे।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
तभी मोना चौधरी का फोन बजा ।
दूसरी तरफ सितारा थी।
"अभी-अभी कुछ लोग पारसनाथ को पूछने आए थे। उनके साथ एक आदमी वो भी था जो रात को पारसनाथ को उठा ले गया था।" सितारा ने बताया।
मोना चौधरी ये बात सुनकर बड़ी हैरान हुई।
"रात को वो पारसनाथ को ले गए तो अब वो क्यों पारसनाय को ढूंढ रहे हैं?" मोना चौधरी कह उठी।
"ये मैं नहीं जानती। कह रहे थे कि पारसनाथ से कह देना कि वो शाह जी के हाथों से बच नहीं सकता।"
"शाह जी...।" मोना चौधरी के होठों से निकला--- "ये कौन है?"
पास मौजूद महाजन ये नाम सुनकर चौंका।
“मैं जानता हूं इसे...।" महाजन कह उठा।
"मैं तुम्हें फिर फोन करती हूं सितारा। पारसनाथ वापस आ जाएगा। तुम फिक्र मत करो। हम उसे ढूंढ रहे हैं।” कहकर मोना चौधरी ने फोन बंद किया और महाजन को देखा। महाजन कह उठा---
“मुझे बताओ कि सितारा ने क्या कहा...?"
मोना चौधरी के बताने पर महाजन बोला---
"शाह जी ड्रग्स का धंधा करता है। ये आजकल ड्रग्स किंग के नाम से जाना जाता है और... ।” महाजन बताता रहा।
■■■
गोपालदास जी अपने आफिस में ही थे कि फोन बजा ।
"हैलो...।"
“सर।” दूसरी तरफ से आवाज आई--- "शाह जी के आदमी, पारसनाथ को पूछने उसके घर गए। वो पारसनाथ को तलाश कर रहे हैं ।"
"ये तो होना ही था।" गोपालदास जी ने सोच भरे स्वर में कहा--- "पारसनाथ की पत्नी ने ये बात मोना चौधरी को बताई होगी।"
"जरूर बताई होगी। मोना चौधरी और महाजन, दिन भर पारसनाथ को तलाश करते रहे हैं।"
“अब मोना चौधरी को पता चल सकता है कि पारसनाथ को शाह जी के आदमी ढूंढ रहे हैं। तुम अपनी ड्यूटी पर रहो।"
"जी...।"
गोपालदास जी ने फोन काटा और जयन्त को फोन किया।
"हैलो...।" जयन्त की आवाज कानों में पड़ी।
“मोना चौधरी कहां है?" गोपालदास जी ने पूछा।
"अपने फ्लैट पर। कुछ पहले ही आई है। महाजन भी साथ है।"
"शाह जी के आदमी पारसनाथ को तलाश करते, उसके घर तक गए थे। ऐसे में अब मोना चौधरी को किसी तरह पता चल सकता है कि वो शाह जी के आदमी थे। मोना चौधरी शाह जी से उलझ सकती है और मैं नहीं चाहता कि मोना चौधरी वक्त खराब करे। अब तुम्हें मोना चौधरी से मिल ही लेना चाहिए।" गोपालदास जी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"ठीक है सर। मैं अभी मिलता...।"
“जैसा समझाया है, वैसे ही बात करना और उतनी ही करना।"
"राइट सर।"
■■■
मोना चौधरी और महाजन फ्लैट से बाहर निकलने ही जा रहे थे कि कालबैल बज उठी।
मोना चौधरी दरवाजे के पास पहुंची और आई मैजिक में आंख लगाई।
बाहर खड़े जयन्त का चेहरा दिखा। मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। एक निगाह महाजन पर मारी ।
महाजन ने इशारे से मोना चौधरी से पूछा कि क्या हुआ?
"बाहर जो है, मेरे लिए वो नया है। उसे नहीं जानती।" मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा और रिवाल्वर निकालकर दरवाजे की चेन चौखट में लगे लॉक में फंसाई और सिटकनी हटाकर दरवाजा खोला तो चैन लगी होने की वजह से वो मात्र दो इंच ही खुला।
मोना चौधरी ने सावधानी से बाहर झांका।
जयन्त से उसकी नजरें मिलीं।
"ये तुम्हारे लिए है।" जयन्त ने हाथ में दबी सी.डी. दो इंच खुले दरवाजे से भीतर की।
“क्या है ये?"
“देख लो। मैं फिर फोन करूंगा।" जयन्त ने कहा।
सोचों में फंसी मोना चौधरी ने सी.डी. थाम ली। बोली---
“मुझे जानते हो?”
“मोना चौधरी हो तुम... इश्तिहारी मुजरिम।” जयन्त ने मुस्कराकर कहा और पलटकर चला गया।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। यहां उसे हर कोई सिर्फ मोना के नाम से जानता था। यानि कि जो उसे सी.डी. दे गया है, उसके पास उसके बारे में पूरी जानकारी थी। उसका आगा-पीछा सब जानता था। वो सी.डी. देकर चला गया था।
मोना चौधरी ने दरवाजा बंद किया और पलटी।
“क्या है सी.डी. में?"
"अभी देख लेते हैं।" कहकर मोना चौधरी टी.वी. पर रखे डी.वी.डी. प्लेयर की तरफ बढ़ गई।
“कौन था वो आदमी?" महाजन ने पूछा।
"मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा।"
“उसका नाम भी नहीं पूछा?"
"वो सी.डी. थमाकर चला गया। कह रहा था, फिर फोन करूंगा।" मोना चौधरी ने सी.डी. को डी.वी.डी. प्लेयर में लगाया और टी.वी. ऑन कर दिया।
दोनों की निगाहें टी.वी. पर थीं।
अगले ही पल मोना चौधरी और महाजन, दोनों बुरी तरह चौंके।
टी.वी. पर पारसनाथ का चेहरा दिखा। लोहे की कर्सी पर बैठा। हाथ-पैर बंधे हुए थे। कपड़े फटे से थे और चेहरे पर पिटाई- ठुकाई के निशान स्पष्ट झलक रहे थे। आंखें लाल सी हो रही थीं।
"बेबी.... ये... ये पारसनाथ...।" महाजन के होठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।
जबकि मोना चौधरी के दांत भिंच चुके थे।
और महाजन-मोना चौधरी ने टी.वी. पर जो देखा, वो इस प्रकार था।
स्क्रीन पर दो-तीन नकाबपोश नजर आने लगे थे। पारसनाथ से पूछताछ होने लगी।
“तुमने लाली खान के रास्ते में आकर बहुत बड़ी गलती की है पारसनाथ।" एक ने उसके चेहरे पर घूंसा जमाते हुए कहा।
पारसनाथ कराह उठा और तेज स्वर में बोला--- “मैं किसी लाली खान को नहीं जानता।"
तभी एक और घूंसा उसे पड़ा। पारसनाथ कुर्सी पर बंधा छटपटा उठा।
"अपनी आवाज नीची रख... ।"
"तुम लोग हो कौन... आखिर मुझे भी तो कुछ बताओ।" पारसनाथ पुनः चीखा।
तभी एक-दो घूंसे पड़े पारसनाथ को। एक पेट में, दूसरा चेहरे पर।
पारसनाथ चीख पड़ा।
"अब भी नहीं समझे कि हम कौन हैं? हम लाली खान के आदमी हैं। वो लाली खान जो अफगानिस्तान के काबुल शहर में मौजूद होती है और ड्रग्स के बड़े धंधे की मालकिन है। दुनिया भर में वो ड्रग्स भेजती है। तू तो उसे अच्छी तरह जानता है...।"
"मैं नहीं जानता... मैं...।"
तभी एक ने उसके सिर के बाल पकड़ लिए।
पारसनाथ का चेहरा बालों के खिंचाव के कारण लाल हो गया। आंखों में पानी चमक उठा।
"हमसे ड्रामा मत कर। तूने लाली खान की ड्रग्स पर हाथ डालकर बहुत बड़ी गलती की है। लाली खान ऐसे किसी इन्सान को माफ नहीं करती, जो उसकी ड्रग्स पर हाथ डाले। ये बात हर वो आदमी जानता है तो ड्रग्स के धंधे से जुड़ा है, तुम तो... ।”
"तुम मेरी बात का यकीन करो ।” पारसनाथ पीड़ा से तड़पता कह उठा--- "मैं लाली खान को नहीं जानता। उसका नाम पहली बार सुन रहा हूं... और मैंने किसी ड्रग्स पर हाथ नहीं डाला। मैं ये काम नहीं करता...।"
तभी कई घूंसे उसके चेहरे और शरीर पर पड़े।
पारसनाथ चीख उठा। बंधनों में तड़प उठा।
"अब याद आया कि तू लाली खान को जानता...।"
"मैं नहीं जानता।" हांफता सा पारसनाथ कह उठा--- "मैं नहीं...।"
“लाली खान की ड्रग्स तूने कहां छिपा रखी है?"
"मेरे पास कोई ड्रग्स नहीं है। मैंने किसी की ड्रग्स नहीं ली। तुम लोग मेरी बात का यकीन क्यों नहीं करते... ।” पारसनाथ तड़पकर बोला।
उनकी बातें करने की आवाजें सुनाई देने लगीं।
स्क्रीन पर हांफता, बंधनों में फंसा कराहता, पारसनाथ ही नजर आ रहा था। उसकी हालत सच में बुरी हो रही थी।
"ये ऐसे मुंह नहीं खोलेगा।” आवाज सुनाई दी।
“मुंह तो इसका बाप भी खोलेगा!" दूसरी आवाज गुर्राती हुई थी।
"तू देख, अभी मुंह खोलेगा।" तीसरी आवाज के साथ ही स्क्रीन पर थोड़ा सा धुआं दिखा।
शायद सिगरेट सुलगाई गई थी।
तभी एक आदमी पारसनाथ के पास पहुंचा और उसकी बांह पर जलती सिगरेट दाग दी।
चीखा पारसनाथ ।
"बता, ड्रग्स कहा रखी है? बतायेगा तो जिन्दा छोड़ देंगे।"
"मैं किसी ड्रग्स को नहीं जानता। मैंने कुछ नहीं किया। मेरे पास कोई ड्रग्स नहीं है।" पारसनाथ तड़पकर गुस्से में कह उठा।
"हरामजादा है, मुंह नहीं खोलेगा। इसे गर्म सलाखें दागनी पड़ेंगी। तभी ये काबू में आएगा...।"
फिर एक आदमी पारसनाथ पर झपटा और उसे घूंसे-लातें मारने लगा।
पारसनाथ की चीखें गूंजने लगीं। वो तड़प उठा।
तभी सी.डी. खत्म हो गई।
स्क्रीन सितारों से झिलमिलाने लगी।
मोना चौधरी और महाजन के मस्तिष्कों को इस तरह झटका लगा जैसे अंधेरे कुएं से निकलकर, रोशनी में आ गए हों।
दहक रहा था मोना चौधरी का चेहरा। चेहरे पर क्रूरता और क्रोध नजर आ रहा था।
महाजन के दांत भिंचे हुए थे। गालों की हड्डियां बाहर की तरफ झलक उठी थीं।
"बेबी! वे लोग पारसनाथ को मार देंगे।"
“लाली खान!” मोना चौधरी गुर्रा उठी--- "ये औरत बहुत बुरी मौत मरेगी मेरे हाथों...।"
"अफगानिस्तान की है ये...।" महाजन ने खा जाने वाले स्वर में कहा--- "बेशक हमें अफगानिस्तान ही क्यों न जाना पड़े, इसे हम नहीं छोड़ेंगे।"
"लेकिन पहले पारसनाथ को बचाना...।”
"बेबी! शाह जी भी ड्रग्स का धंधा करता है और लाली खान भी। शाह जी के आदमी पारसनाथ को ढूंढ रहे हैं। ये बात समझ में नहीं आई। अगर पारसनाथ, शाह जी के पास होता तो उसे, उसके आदमी क्यों ढूंढते? मामले में पेंच है।”
"लेकिन अब हमारे पास दिशा है। हम पारसनाथ को ढूंढ लेंगे। लाली खान के दिल्ली स्थित कौन से सम्पर्क हैं, ये हमें...।"
"जो सी. डी. दे गया था, उसने कहा था कि वो तुम्हें फोन करेगा...।" महाजन ने एकाएक कहा।
"हां... उसने ये ही कहा था।"
"तो उसका फोन आने दो।" महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा--- "वो लाली खान का ही आदमी था। शायद वो लोग सोच रहे हैं कि पारसनाथ ने हमारे द्वारा उस ड्रग्स को कहीं छिपा दिया है, तभी वो आदमी हमें सी.डी. दे गया।"
"पारसनाथ ड्रग्स जैसे काम में कभी हाथ नहीं डालेगा।" मोना चौधरी ने दृढ़ स्वर में कहा।
"मालूम है मुझे। वो ऐसा काम कभी नहीं करेगा। एक बार उनका फोन आने दो, उसके बाद...।"
तभी मोना चौधरी का फोन बजने लगा।
दोनों ठिठके । उनकी नजरें मिलीं।
ये मोना चौधरी का मोबाइल फोन नहीं बजा था---बल्कि लैंडलाइन वाला फोन बज रहा था।
मोना चौधरी उसी पल आगे बढ़ी और रिसीवर उठाकर कान से लगाया।
"हैलो...।"
"सी.डी. देखी?" आवाज कानों में पड़ी।
मोना चौधरी ने पहचान लिया कि कानों में पड़ने वाली आवाज वो ही थी, जिसने सी.डी. दी थी।
"तुम?" मोना चौधरी के होठों से गुर्राहट निकली--- “अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो पारसनाथ को छोड़ दो... ।"
"तुम क्यों सोच रही हो कि पारसनाथ मेरे पास है?" उधर से जयन्त की आवाज आई।
"वो सी.डी. तुमने ही...।”
"मैंने दी तो इसका ये मतलब तो नहीं कि पारसनाथ मेरे पास है। मुझे पता चला है कि तुम पारसनाथ को ढूंढ रही... ।”
"पारसनाथ कहां है?"
जवाब में खामोशी रही।
"तुम कौन हो?"
"मैं तुम्हारी सोसायटी के गेट के बाहर 1253 नम्बर की कार में हूं। मिलना चाहो तो आ जाओ।"
"वहीं रहना। मैं अभी आई...।" मोना चौधरी ने कठोर स्वर में कहा और रिसीवर रख दिया।
"क्या हुआ?" महाजन ने पूछा।
"सी. डी. देने वाला सोसायटी के गेट के बाहर ही है... आओ।"
मोना चौधरी और महाजन उसी पल फ्लैट से बाहर निकले और डोर लॉक करके आगे बढ़ गए।
सोसायटी के गेट के बाहर पहुंचे।
1263 नम्बर की कार खड़ी दिख गई। वे उसके पास पहुँचे। भीतर झांका।
जयन्त कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा था।
मोना चौधरी ने कार का दरवाजा खोला और उसकी बगल की सीट पर बैठते हुए रिवाल्वर निकाल ली।
"कहां है पारसनाथ... ?" मोना चौधरी ने दांत पीसकर कहा।
तभी पीछे का दरवाजा खोलकर महाजन भी भीतर आ बैठा।
"तो नीलू महाजन भी साथ आया है।" जयन्त शांत स्वर में बोला।
"इस रिवाल्वर का ध्यान दो, जो तुम्हारे पेट से लगी है।" मोना चौधरी गुर्रा उठी।
जयन्त ने मोना चौधरी को देखा और शांत स्वर में कह उठा--
"तो तुम पारसनाथ के बारे में जानना चाहती हो?"
"हां।"
"फिर तो तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। महाजन के साथ चलने पर मुझे कोई एतराज नहीं है।"
"तुम हो कौन?"
"जयन्त नाम है मेरा। मैं रॉ का एजेन्ट हूं...।"
"रॉ, मतलब कि भारत की गुप्त जासूसी संस्था?"
"वो ही। मेरा आई कार्ड मेरी कमीज की जेब में पड़ा है। निकालो और देख लो...।"
पीछे बैठे महाजन ने हाथ आगे बढ़ाया और उसकी कमीज की जेब में हाथ डाला। कार्ड निकाल लिया और खिड़की से बाहर स्ट्रीट लाइट की रोशनी में कार्ड पर नजर डाली फिर वापस जयन्त की जेब में कार्ड रखता कह उठा---
"ये सच में रॉ का एजेन्ट है।"
"वो सी.डी. तुम्हारे पास कहां से आई?" मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में पूछा।
"इस बारे में चीफ ही तुम्हें बता सकते हैं मोना चौधरी। कहो तो चीफ के पास ले चलूं?”
"चलो...।"
“रास्ते में जब मैं तुम्हें कहूं...।" जयन्त ने डैशबोर्ड से दो काली पट्टियां निकाली --- "ये अपनी आंखों पर चढ़ानी होंगी।"
"क्यों?"
"रॉ के ठिकाने गुप्त हैं। सिर्फ रॉ के लोग ही उन जगहों के बारे में जान सकते हैं। इसी में हमारी सुरक्षा है।"
"ठीक है। जब तुम कहोगे, हम आंखों पर पट्टियां चढ़ा लेंगे।" मोना चौधरी ने कहा और रिवाल्वर हटाकर जेब में रख ली।
जयन्त ने मोबाइल निकाला और चीफ का नम्बर मिलाया।
"हैलो...।" चीफ गोपालदास जी की आवाज कानों में पड़ी।
"हम आ रहे हैं।"
"पीछे के रास्ते से उस कमरे में पहुंचना।"
"यस चीफ।” कहकर जयन्त ने फोन जेब में रखा और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।
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मोना चौधरी और महाजन ने जब जयन्त के कहने पर आंखों पर से काली पट्टी उतारी तो खुद को एक तंग, अंधेरे से भरी गली में पाया। कार का इंजन बंद हो चुका था।
"बाहर निकलो... और मेरे पीछे आओ।" जयन्त ने कहा।
तीनों कार से बाहर निकले। जयन्त आगे बढ़ा और सामने के दरवाजे को जेब से चाबी निकालकर खोला और दोनों को पीछे आने का इशारा करके भीतर चला गया। मोना चौधरी और महाजन के भीतर प्रवेश करने पर जयन्त ने दरवाजा बंद किया। एक तरफ बढ़ता कह उठा---
"आओ...।"
दोनों जयन्त के पीछे चल पड़े।
ये तीन फीट की पतली सी गली थी। हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। मोना चौधरी और महाजन जयन्त के प्रति पूरी तरह सतर्क थे कि वो कुछ गड़बड़ करे तो उसे संभाल लें।
जल्दी ही वो रास्ता खत्म हो गया और सामने एक दरवाजा दिखा। जिसे जयन्त ने खोला तो दरवाजे के उस पार लिफ्ट दिखी। जयन्त के पीछे वे दोनों भी लिफ्ट में प्रवेश कर गए। दरवाजा बंद करके जयन्त ने पहली मंजिल के लिए बटन दबाया तो हल्के से झटके के साथ लिफ्ट ऊपर को सरकने लगी।
फौरन ही लिफ्ट रुक गई।
जयन्त ने हाथ से दरवाजा खोला और मोना चौधरी तथा महाजन के साथ बाहर निकला और कुछ आगे जाने पर एक दरवाजे को खोला और भीतर वे प्रवेश कर गए। ये सजा सा कमरा था। सोफा पड़े थे वहां और एक तरफ डबल बैड भी लगा था। वहां कोई मौजूद नहीं था। मोना चौधरी नजरें दौड़ाकर बोली---
"तुम्हारा चीफ कहां है?"
"अभी आ जाएंगे।"
"आखिर तुम लोग पारसनाथ के मामले में क्या कर रहे ....।"
“मोना चौधरी!” जयन्त ने शांत स्वर में कहा--- "जो बात भी पूछनी हो, चीफ से पूछना। मैं किसी बात का जवाब नहीं दे सकता।"
मोना चौधरी और महाजन वहीं बैठ गए।
जयन्त भी सोफा चेयर पर जा बैठा।
ज्यादा इंतजार न करना पड़ा कि गोपालदास जी ने भीतर प्रवेश किया। जयन्त खड़ा हो गया।
"स्वागत है मोना चौधरी का।" आगे बढ़कर गोपालदास जी ने हाथ मिलाया फिर महाजन की तरफ हाथ बढ़ाया--- "तुम नीलू महाजन हो?"
"सही पहचाना।"
"तुम रॉ के चीफ हो?" मोना चौधरी के स्वर में शक के भाव थे।
“शत-प्रतिशत... ।” गोपालदास ने मुस्कराकर कहा और जेब से आई कार्ड निकालकर मोना चौधरी को दिया--- "तुम देख सकती हो और इस वक्त तुम दोनों रॉ के गुप्त आफिस में हो। आफिस के ऐसे हिस्से में, जहां हर किसी का आना मना है।"
कार्ड देखकर, उसे लौटाती मोना चौधरी कह उठी---
"तुम मेरे बारे में जानते थे कि मैं कहां पर हूं तो मुझे गिरफ्तार करा सकते थे।"
"क्या फायदा?” गोपालदास बैठता हुआ कह उठा--- "ये काम हमारा नहीं है। जैसे कि सी.बी.आई. देश के घरेलू मामले देखती है, वैसे ही रॉ देश के बाहरी मामले संभालती है। हमारे पास बहुत कुछ है करने को। बरबाद करने के लिए हमारे पास वक्त नहीं है। हम देश को बाहरी सुरक्षा देते हैं और हर तरफ नजर रखते हैं। मोना चौधरी पकड़ी जाये या ना पकड़ी जाये, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"पारसनाथ तुम्हारे पास है?" मोना चौधरी ने पूछा।
"नहीं... मैं पहले भी कह चुका हूं कि हम छोटे कामों में हाथ नहीं डालते मोना चौधरी ।” फिर गोपालदास ने एक तरफ खड़े जयन्त से कहा--- "इनके लिए चाय-पानी का इन्तजाम...।"
"जरूरत नहीं...।" मोना चौधरी ने टोका--- "मैं सिर्फ काम की बात करना चाहती हूं।"
"तुम हमारी खातिरदारी पर ज्यादा ही ध्यान दे रहे हो।" महाजन ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
"आप लोग मेरे मेहमान हैं और...।"
"पारसनाथ कहां है?"
"अब?” कहते हुए गोपालदास ने कलाई पर बंधी घड़ी देखी--- "इस वक्त तक तो पारसनाथ बहुत दूर पहुंच चुका...।"
"वो जिन्दा है या नहीं?"
“जिन्दा ही होगा। जब मुझे उसके बारे में आखिरी खबर मिली, तब तो वो जिन्दा था और उसे कहीं ले जाया जा रहा था। क्या तुम लोग पूरी बात जानना चाहते हो, बताऊं क्या?"
"रॉ की पारसनाथ में क्या दिलचस्पी है ?" मोना चौधरी ने पूछा।
"सच पूछो तो रॉ को इस बात से कोई मतलब नहीं कि पारसनाथ जिन्दा रहता है या मरता है।" गोपालदास ने शांत स्वर में कहा--- "परन्तु हालात कुछ ऐसे हो गए कि पारसनाथ की हालत की सी.डी. मुझे तुम तक पहुंचानी पड़ी। सच बात तो ये है कि मैं नहीं जानता था कि पारसनाथ, तुम्हारे लिए खास महत्व रखता है। ये तो मेरे किसी आदमी ने पारसनाथ को पहचाना और मुझे बताया कि ये तो इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी का खास साथी है। अब मुझे ये बताओ कि मैं बात कहां से शुरू करूं? क्या सिर्फ वो ही बात बताऊं जो तुम्हारे मतलब की हो या अपने मतलब की भी बात बताऊं?"
"तुम इस मामले में दखल दे रहे हो तो तुम्हारा अवश्य कोई खास मतलब होगा?"
“यकीनन है और मेरा मतलब तुम ही सुधार सकती हो और तुम्हारा मैं....।"
"वो कैसे?"
"क्योंकि पारसनाथ को तुम जिन्दा देखना चाहती हो। वो बुरी स्थिति में है। उसे मारा भी जा सकता है। परन्तु मैं चाहूं तो उसे जिन्दा रखवा सकता हूं, क्योंकि वहां एक आदमी मेरा है। जो कि पारसनाथ को बचाए रखेगा। अब सवाल ये पैदा होता है कि मैं क्यों चाहूंगा पारसनाथ जिन्दा रहे? अगर मेरा कोई फायदा निकलता हो तो पारसनाथ वहां जिन्दा रह सकता है।"
"वहां कहां?"
"अफगानिस्तान में...।"
"अफगानिस्तान?" मोना चौधरी बोली--- "तुम्हारा मतलब कि...।"
"आज ही पारसनाथ को अफगानिस्तान ले जाया गया है। शायद अभी वो सफर के बीच होगा। उसका और लाली खान का असल मामला क्या है, मैं नहीं जानता। उस सी.डी. को देखकर जितना समझा जा सकता है, वो ही समझा मैं। पारसनाथ ने लाली खान की ड्रग्स...।"
"ये गलत है।" मोना चौधरी कह उठी--- "पारसनाथ किसी भी कीमत पर ड्रग्स के मामले में हाथ नहीं डालेगा। वो ड्रग्स से नफरत करता है।"
"मैंने पहले ही कहा है कि सी.डी. देखकर जितना मामला समझा जा सकता है, उतना ही मैं समझा...।"
"तुम मुझे अंधेरे में रख रहे हो।"
"नहीं। मैं ऐसा क्यों करूंगा मोना चौधरी ?"
"ये सी.डी. तुम्हें कहां से मिली?"
"उसी आदमी ने मुझे भेजी, जो कि लाली खान का आदमी है, परन्तु खबरें मुझे देता है। नोट लेता है। जब मुझे पता लगा कि सी.डी. तुमसे वास्ता रखती है तो मैंने अपना भला सोचा, तुम्हारा और पारसनाथ का भला सोचा और सी.डी. तुम तक पहुंचा दी और तुम मेरे सामने मौजूद हो, ताकि अपना भला मुझसे जान सको और मैं यहां इसलिए मौजूद हूं कि तुम्हारे द्वारा मैं अपना फायदा कर सकूं। यानि कि मामला एक है और फायदा दोनों का। मेरे पास जानकारी है, जिसकी तुम्हें जरूरत है और तुम्हारे पास कर गुजरने की हिम्मत , जिसकी मुझे जरूरत है।"
"बोलो क्या कहना चाहते हो?" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।
"लाली खान का नाम सुना है?" गोपालदास ने पूछा।
"सी.डी. में ही सुना...।"
"तो पहले मैं तुम्हें लाली खान के बारे में बताऊंगा। अफगानिस्तान के काबुल शहर में लाली खान का परिवार बसता है। बहुत पुराना परिवार है ये। इनकी अफगानिस्तान के कई शहरों में बड़ी-बड़ी जमीनें हैं, जो कि इस परिवार के पुराने लोगों ने खरीद रखी हैं और वहां पर खेती होती है अफीम की खेती। मीलों लम्बे खेतों में अफीम की खेती। हजारों आदमी पहले भी खेतों में काम करते थे और अब भी हजारों ही कर रहे हैं। ये परिवार के नाम पर धंधा करते हैं। इस परिवार का उसूल है कि औरतें ही इस धंधे की बड़ी बनेंगी। पहले लाली खान की मां जुबैदा खान धंधा संभाला करती थी। उससे पहले जुबैदा खान की मां सलमा खान। सलमा खान ने ही धंधा शुरू किया था। जमीनें खरीदी थीं। खेतों में अफीम उगानी शुरू की थी। ये बात अस्सी साल पहले की है। फिर सलमा खान के बाद उसकी बेटी जुबैदा खान ने धंधा संभाला और धंधे को आगे बढ़ाया। बहुत अच्छी तरह किया धंधा। आठ साल पहले जुबैदा खान को किसी ने गोली मार दी। किसने मारी, ये आज तक पता नहीं चल सका, तो उसके साथ ही धंधे में लगी लाली खान ने धंधे की कमान संभाल ली। जुबैदा खान के तीन बच्चे थे। लाली खान, गुलजीरा खान और हैदर खान। लाली खान ने धंधे की कमान संभाली और गुलजीरा खान और हैदर खान भी धंधा देखने लगे। तीनों अपनी मां से बढ़कर खतरनाक हैं। लोग इनकी दहशत मानते हैं। जहां पर लाली खान का नाम आता है तो सब सीधे हो जाते हैं। गुलजीरा खान और हैदर खान भी अपनी बहन से डरते हैं। आज से दस साल पहले अपनी मां के होते हुए, लाली खान ने शादी की थी। दसवें महीने ही लड़की पैदा हुई। लाली खान ने लड़की रखकर पति को तलाक दे दिया। लाली खान ने शादी ही इसलिए की थी कि भविष्य में धंधे को संभालने के लिए लड़की पैदा कर सके और वो हो गई। इस वक्त लाली खान की लड़की नौ साल की हो चुकी है। परन्तु वो कहां है, कोई नहीं जानता। लेकिन ये सब जानते हैं कि किसी सुरक्षित देश में वो, गुप्त रूप से रहकर पढ़ाई कर रही है।"
गोपालदास कहकर चुप हुए।
“आपकी बातों से स्पष्ट है कि लाली खान खतरनाक हस्ती है।" महाजन बोला।
"बहुत ही खतरनाक। इनका अपना खुफिया दल है।" गोपालदास ने कहा--- "बेशक ये धंधा ड्रग्स का करें, परन्तु नजर हर तरफ रखते हैं। यूं समझो कि अफगानिस्तान में लाली खान की अपनी सरकार है।"
"लेकिन लाली खान के ड्रग्स के धंधे से रॉ क्यों परेशान है?" मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा।
"रॉ के ड्रग्स के धंधे से कोई परेशानी नहीं। लाली खान अफगानिस्तान में और हम हिन्दुस्तान में। ये उसके देश का मामला है। परन्तु लाली खान कुछ ऐसा कर सकती है कि जिससे हमारे देश में परेशानी पैदा हो सकती है।"
"क्या?"
"यूं तो लाली खान की भेजी ड्रग्स हिन्दुस्तान में है। यहां कई ड्रग्स डीलर हैं जो उससे ड्रग्स मंगवाते हैं। डीलर अगर अफगानिस्तान में ही ड्रग्स की डिलीवरी लेता है तो ड्रग्स के रेट बहुत कम होते हैं। हिन्दुस्तान में ड्रग्स की डिलीवरी लेनी हो तो भाव ज्यादा हो जाते हैं। हमारे पास इस बात की पूरी लिस्ट है कि हिन्दुस्तान में कौन-कौन डीलर, लाली खान से ड्रग्स लेता है। परन्तु हमने अभी इस बात की खबर स्थानीय पुलिस को नहीं दी। क्योंकि हमारी समस्या अलग ही है।" गोपालदास ठिठका।
मोना चौधरी और महाजन की निगाह उस पर थी।
जयन्त सावधानी से पास में खड़ा था।
“लाली खान ने इतनी दौलत कमा ली है ड्रग्स के धंधे से कि उससे पैसा संभाला नहीं जा रहा। पुरानी कहावत है कि पास में पैसा ज्यादा हो और वक्त हो तो दिमाग में शैतानी विचार जगह बना लेते हैं। कुछ ऐसा ही लाली खान के साथ हुआ। उसने पाकिस्तान में एक आतंकवादी संगठन खड़ा कर लिया है अपने पैसे से। ये संगठन उसने दो साल पहले खड़ा किया था और अब उसका संगठन ताकतवर होना शुरू हो गया है। संगठन के पास पैसे की कोई कमी नहीं है, क्योंकि लाली खान के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। लाली खान का ये संगठन पाकिस्तान की सरकार और वहां के बड़े लोगों से पैसे लेकर उनके काम आता है। अभी तक तो ये ही हो रहा था, परन्तु तीन महीने पहले हमें गुप्त तौर पर सूचना मिली थी कि लाली खान का खड़ा किया संगठन, पाकिस्तान सरकार से तगड़ा पैसा लेकर, हिन्दुस्तान में गड़बड़ी फैलाने का ठेका ले रहा है। उसके संगठन की पाकिस्तान सरकार से बातचीत चल रही है। ऐसा होना हमारे देश के लिए नुकसानदेह है। हम इसे रोकना चाहते हैं। उस संगठन की असली ताकत लाली खान की दौलत है और वो दौलत, लाली खान ड्रग्स के धंधे से कमा रही है। अगर लाली खान का ड्रग्स का धंधा तबाह हो जाए तो वो संगठन खुद-ब-खुद ही खत्म होता चला जाएगा। अब तुम समझी कि मैं क्या कहना चाहता हूं।"
मोना चौधरी ने सिर हिलाया।
महाजन के होंठ सिकुड़ गए।
"हमारे कई एजेन्टों ने लाली खान के संगठन में जगह बनाने की चेष्टा की, ताकि लाली खान के कामों के बीच घुसकर, कामों को खराब करके, लाली खान को कमजोर किया जा सके। परन्तु हमारे एजेन्टों को सफलता नहीं मिली। हर बार वो किसी न किसी वजह के कारण, असफल रहे और मारे गए। हम अपने आठ एजेन्ट गंवा चुके हैं। लाली खान के लोग बेहद सतर्क हैं। इनका अपना खुफिया दल है। ये इतने मजबूत लोग हैं कि कोई बाहरी इनके बीच अपनी जगह नहीं बना सकता।"
मोना चौधरी की निगाह गोपालदास पर थी।
"तभी इत्तफाक से हमारी नजरों में पारसनाथ का मामला आ गया। अभी भी हमारे आदमी पारसनाथ पर नजर रखे हुए हैं और इधर मैं तुमसे बात कर रहा हूं मोना चौधरी।"
"तो आप चाहते हैं कि रॉ की तरफ से, लाली खान से ये लड़ाई मैं लड़ूं...।" मोना चौधरी कह उठी।
"हां।"
"ये बड़ा मामला है। मुझे इसमें क्यों घसीट रहे हो?"
"मेरे ख्याल से तुम पारसनाथ को हर हाल में बचाना चाहोगी और उसके बारे में सिर्फ हम ही जानते हैं कि लाली खान उसे कहां ले जा रही है। कहां उसे रखा जाएगा। हमारा एक आदमी, पारसनाथ के पास है। वो हमें खबरें देता रहेगा। वो पारसनाथ को बड़ा खतरा आने पर बचायेगा भी और मौका मिलने पर वहां से निकालकर, भगा भी देगा।" गोपालदास जी शांत स्वर में कह रहे थे--- “पारसनाथ को आजाद कराने की जिम्मेदारी हम लेते हैं। तुम लाली खान को तबाह करने की जिम्मेदारी ले लो।"
मोना चौधरी गम्भीर नजर आने लगी।
“तुम मुझे बता दो कि पारसनाथ कहां है। मैं उसे आजाद करा लूंगी।" मोना चौधरी ने कहा।
“ये नहीं हो सकता।"
"क्यों?" महाजन के माथे पर बल पड़े।
"तुम लोग हमारे काम आओ तो हम पारसनाथ को बचा सकते हैं। वरना पारसनाथ में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। उसके साथ बेशक कुछ भी हो। ये बातचीत हम यहीं खत्म कर देते हैं।"
"इस तरह तो तुम हमें ब्लैकमेल कर रहे हो।” महाजन तेज स्वर में कह उठा।
"नहीं।” गोपालदास ने इनकार में सिर हिलाया--- "मैं एक सौदा करने की कोशिश कर रहा हूं। मेरे पास पारसनाथ की खबर है, मैं उसे बचा सकता हूं। इसके बदले तुमसे काम लेना चाहता हूं।"
"तुम्हारे पास एजेन्टों की कमी पड़ गई जो मेरी सहायता लेना चाहते हो?" मोना चौधरी ने कहा।
"बहुत एजेन्ट हैं। एक से एक बढ़कर हैं। इतने शातिर है कि तुम सोच भी नहीं सकतीं। परन्तु लाली खान के आदमी हमारे एजेन्टों को पहचान लेते हैं। हर बार हमारी योजना फेल हुई है। लेकिन तुम हमारी एजेन्ट नहीं हो। तुम्हारी अपनी ही पहचान है। मोना चौधरी हो तुम। इश्तिहारी मुजरिम हो। अण्डरवर्ल्ड में तुम्हारा नाम है। अपनी पहचान के दम पर तुम चंद कोशिशों के बाद लाली खान के लोगों में पहुंच सकती हो।" गोपालदास जी ने कहा।
“जितनी आसानी से तुम ये कह रहे हो, उतना आसान नहीं है ये काम... ।"
“मेरे एजेन्टों के लिए ये काम कठिन हो सकता है---परन्तु तुम्हारे लिए नहीं मोना चौधरी ।"
"मेरे लिए भी कठिन है।"
"मैं तुम्हारा रास्ता आसान बना सकता हूं।"
"वो कैसे?"
"ये बात तुम्हारी हां होने के बाद बताऊंगा। तुम्हारे इनकार पर ये मामला, मुझे यहीं खत्म कर देना होगा। सौदा ये है, पारसनाथ को मैं लाली खान के आदमियों से छुड़ाकर तुम्हारे सामने पेश कर दूंगा और तुम्हें रॉ के लिए लाली खान को इस हद तक तबाह करना होगा कि उसका पाकिस्तान में खड़ा हो चुका संगठन लाली खान से सहायता न मिल पाने की वजह से गिर जाए।"
"ये बहुत बड़ा और लम्बा काम है।"
"वो तो है।"
"इसमें मेरी जान भी जा सकती है।"
“अवश्य। परन्तु अपराध के हर गुण-अवगुण से वाकिफ हो तुम । आधा चांस है कि तुम सफल भी रहो।"
"तुम मुझसे चालाकी करते भी हो सकते हो।"
"वो कैसे?"
“हो सकता है इस काम को मेरे से कराने की खातिर तुमने पारसनाथ को स्वयं ही कैद कर रखा हो?" मोना चौधरी बोली।
“अगर तुम ये काम करती हो, तो काम के बीच तुम्हें पता भी चल सकता है कि उन लोगों ने पारसनाथ को कहां रखा है। परन्तु तब बेहतर यही होगा कि तुम पारसनाथ को आजाद कराने की चेष्टा मत करना। उससे उसे खतरा पैदा हो सकता है। ये काम हमारा है। हम पारसनाथ को आजाद कराकर हिन्दुस्तान तक ले आएंगे।” गोपालदास ने शांत स्वर में कहा--- "मैं जो कह रहा हूँ, तुम्हें उस पर यकीन करना चाहिए। मैं तुमसे काम लेना चाहता हूँ तो कोई बात गलत नहीं कहूंगा।"
मोना चौधरी ने महाजन को देखा।
महाजन के चेहरे पर गम्भीरता थी। वो बोला---
"ये काम खतरनाक रहेगा मोना चौधरी। लाली खान खतरनाक है।"
"पारसनाथ के बारे में सोचो...।"
महाजन ने कठोर निगाहों से गोपालदास को देखा।
"बेहतर होगा कि तुम हमें बता दो कि लाली खान के लोगों ने पारसनाथ को कहां रखा है?" महाजन बोला।
"ये बात मैं इसलिए नहीं बताऊंगा कि मैं ये काम मोना चौधरी से लेना चाहता हूं।” गोपालदास ने गम्भीर स्वर में कहा।
"यानि कि पूरे बेईमान हुए पड़े हो।"
"कुछ भी कह लो।"
"बेबी!" महाजन ने मोना चौधरी से गम्भीर स्वर में कहा--- "ये तो हमें पता है कि पारसनाथ लाली खान के आदमियों के पास है। और वो उसे अफगानिस्तान ले गए हैं। हम चाहें तो पारसनाथ को आसानी से ढूंढ लेंगे।”
मोना चौधरी के चेहरे पर गम्भीरता टिकी हुई थी।
“ये इतना आसान होता तो मैं पारसनाथ के दम पर खेल खेलने की चेष्टा ही क्यों करता?” गोपालदास के चेहरे पर मुस्कान उभरी--- "वैसे तुम दोनों जो करना चाहते हो, कर सकते हो। तब मैं पारसनाथ की कोई गारण्टी नहीं लूंगा।"
“ठीक है।” मोना चौधरी कह उठी--- "हमें ये सौदा मंजूर है।"
महाजन ने गहरी सांस ली।
“सौदा ये है हमारे बीच कि तुम रॉ के लिए लाली खान को बरबाद करोगी। उसकी इस तरह कमर तोड़ दोगी कि वो पाकिस्तान में खड़े किए अपने संगठन को सहायता पहुंचाने की ताकत खो दे और बदले में मैं पारसनाथ को, लाली खान के लोगों के हाथों से निकालकर तुम्हारे हवाले करूंगा।" गोपालदास ने कहा।
"अगर पारसनाथ को कुछ हो गया तो?" महाजन बोला।
"कुछ नहीं होगा। हमारा आदमी उसे वहां से निकाल लेगा ।" गोपालदास ने कहा।
कुछ क्षणों तक खामोशी रही, फिर मोना चौधरी बोली---
"लाली खान के लोगों के बीच जगह बनाना आसान नहीं है।"
"मैंने कहा है कि ये काम मैं आसानी से कर दूंगा।"
"कैसे?"
"लाली खान के चार ऐसे आदमी मारे गए हैं जो कि माल को कहीं भी पहुंचाने में एक्सपर्ट थे। सालों से वो लाली खान के इस काम को संभाल हुए थे। उनके मारे जाने से लाली खान के लोगों को माल इधर-उधर पहुंचाने में परेशानी हो रही है। आदमी तो उनके पास सैकड़ों हैं, परन्तु इस काम के लिए उन्हें एक्सपर्ट आदमी चाहिए होता है कि जिसे माल सौंपकर निश्चिंत हो जाएं। लाली खान ऐसे आदमी को तलाश कर रही है, जो उनके काम पर खरा उतरे। तुम ऐसे आदमी के तौर पर लाली खान के लोगों से सम्पर्क बना सकती हो।"
“बेकार है। ऐसा करना ठीक नहीं रहेगा।"
"क्यों?"
"मेरा अपना नाम है। हिन्दुस्तान में वजूद है। ऐसे में मैं अफगानिस्तान पहुंच जाऊं तो ये अटपटी बात होगी।"
"मैं इसकी वजह पैदा कर दूंगा।"
"कैसे?" मोना चौधरी बोली।
"मान लो कि तुमने यहां कोई बड़ा कांड कर दिया है। कानून बुरी तरह तुम्हारे पीछे पड़ गया तो तुम्हें यहां से भागना पड़ा।"
"ऐसा तुम करोगे?”
“मैं सारा इन्तजाम कर दूंगा।”
मोना चौधरी ने महाजन को देखा।
“मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा बेबी।" महाजन बोला--- “कुछ उलझन हो रही है...।"
गोपालदास खामोशी से खड़े उन्हें देखते रहे।
"मेरे पास एक ऐसा रास्ता है जिसके जरिए मैं तुम्हें लाली खान के आदमियों के बीच पहुंचा दूंगा।"
"कैसा रास्ता?"
“कल ही मुझे हिन्दुस्तान के एक ऐसे आदमी के बारे में पता चला है, जो कि लाली खान के लोगों से अच्छा सम्बन्ध रखता है। तुम उसके द्वारा लाली खान के आदमियों तक पहुंच सकती हो।”
“ठीक है।" मोना चौधरी बोली--- “कोशिश करके देख लेते हैं।"
"इस काम में मेरा ये एजेन्ट... जयन्त तुम्हारे साथ रहेगा मोना चौधरी...।"
"ये क्यों?" मोना चौधरी ने जयन्त को देखा।
"इसे साथ रखने का तुम्हें बहुत फायदा होगा। लाली खान की वजह से अफगानिस्तान में रॉ के एजेन्टों का तगड़ा जाल फैला हुआ है। जयन्त उन सबके सम्पर्क में रहेगा। हर तरह की खबरें तुम लोगों को मिलती रहेंगी। चूंकि अगर तुम लोग अपनी कोशिश में सफल रहे तो, तब तुम्हें ऐसे अपने लोगों की जरूरत पड़ सकती है, जो माल कहीं पर भी पहुंचाने में तुम्हारी सहायता कर सकें। ऐसे में रॉ के लोग कदम-कदम पर तुम्हारे काम आएंगे। ये तभी होगा, जब जयन्त तुम्हारे साथ होगा। रॉ के लोगों के साथ हमारा भीतरी आदमी ही सम्पर्क में रह सकता है, तुम जैसा बाहरी नहीं...।"
"अफगानिस्तान में रॉ के ऐसे लोगों की वजह से मैं फंस भी सकती हूं।"
"नहीं। ये मुमकिन नहीं। क्योंकि हमारा नेटवर्क ही ऐसा है कि सब ठीक रहेगा। ये भीतरी बात है, तुम्हें नहीं बताई जा सकती।”
मोना चौधरी ने एक निगाह महाजन पर मारी। परन्तु खामोश रही।
“तुमसे ज्यादा हमें इस बात की व्याकुलता रहेगी कि तुम सफल रही। ऐसे में मैं तुम्हें कोई गलत राय नहीं दूंगा। जयन्त तुम्हारे पास रहेगा तो तुम्हें इस ऑपरेशन में बहुत फायदा होगा।" गोपालदास ने गंभीर स्वर में कहा।
"ठीक है। मैं तुम्हारा ये काम करने को तैयार हूं...।" मोना चौधरी ने कहा-- “परन्तु ये बात याद रखना कि पारसनाथ मुझे ठीक-ठाक हालत में चाहिए। उसे कुछ हुआ तो... ।"
“मैं वादा करता हूं कि पारसनाथ को ठीक-ठाक वहां से छुड़ा लिया जाएगा। मेरा भरोसा करो।"
"तुम्हारा ये एजेन्ट, इस काम में मेरे साथ रहने के काबिल भी है?”
जयन्त शांत खड़ा था।
"पूरी तरह काबिल है। 4 साल अमेरिका में रॉ के एजेन्ट के तौर पर काम करके डेढ़ महीना पहले ही हिन्दुस्तान लौटा है। इसे यहां ज्यादा लोग जानते भी नहीं हैं। ये कितना खतरनाक है, वक्त आने पर पता चल जाएगा।"
"और समझदार भी?"
"हां, समझदार भी है।"
"पर ये तो बुत की तरह खड़ा हुआ है।" मोना चौधरी ने कहा।
"समझदार है, तभी तो... ।" गोपालदास मुस्करा पड़ा।
"कुछ और...।"
"एक बात।" गोपालदास गम्भीर दिखा--- "अफगानिस्तान में हमारी एक एजेन्ट काम कर रही है। लैला नाम है उसका। वो लाली खान के खिलाफ में, अपना ड्रग्स का कारोबार खड़ा करने की चेष्टा कर रही है। ये हमारे आदेश पर कर रही है। इस काम को करने के लिए रॉ ने उसे पैसा दिया है। लैला की चेष्टा है कि लाली खान की पार्टियां तोड़े। ताकि लाली खान इन्कम कम होगी तो पाकिस्तान के संगठन को वो कम पैसा देगी। परन्तु लैला खान का काम शुरूआती तौर पर है। अभी उसे अपने काम में सफल होने में वक्त लग सकता है। ये मैंने तुम्हें इसलिए बताया कि अन्जाने में कभी लैला के और तुम्हारे रास्ते एक हुए तो मामला बिगड़े नहीं। ठीक वक्त आने पर लैला को भी तुम्हारे बारे में बता दिया जाएगा।"
“हूं...।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा--- "काम कब शुरू होगा?"
“काम तो अभी से शुरू हो जाएगा। परन्तु तुम्हारा काम कल दोपहर बाद शुरू होगा।”
"क्या मतलब?”
"मतलब सुबह अखबारों में पढ़ लेना । तुम काम करने जा जो रही हो, उसे रॉ ऑपरेशन 'गु-ले-ल' का नाम दे रही है। अगर कोई तुमसे 'गु-ले-ल' कहकर सम्पर्क करता है तो वो हमारा आदमी होगा।"
“गु-ले-ल' का मतलब?”
“गु से गुलजीरा खान। लाली खान की बहन, जिसके बारे में तुम्हें बता चुका हूं। लै से लैला, और ल से लाली खान। इन शब्दों को मिलाकर बनता है गु-ले-ल। जिसे हम गुलेल कहेंगे। ऑपरेशन गुलेल... ।"
मोना चौधरी ने सिर हिला दिया, फिर बोली---
"नीलू महाजन को मैं अफगानिस्तान भेज देना चाहती हूं।"
“क्या मतलब... ये तुम्हारे साथ नहीं रहेगा?" गोपालदास चौंका।
"मेरे साथ तुम्हारा ये एजेन्ट जयन्त रहेगा। महाजन, अफगानिस्तान में लैला के साथ काम करेगा।"
"इससे फायदा?"
"फायदा देखना मेरा काम है, तुम वो ही करो जो मैं चाहती हूं...।"
महाजन ने मोना चौधरी को देखा। परन्तु खामोश रहा।
"ठीक है।" गोपालदास ने सोच भरे स्वर में कहा--- "महाजन को आज रात ही हम अफगानिस्तान भेज देते हैं। तुम्हारा पासपोर्ट है?"
"घर पर है।" महाजन बोला--- "एक घंटे में ले आऊंगा।"
"तुम जयन्त के साथ जाकर पासपोर्ट ले आओ।"
महाजन ने मोना चौधरी को देखा तो मोना चौधरी ने सिर हिला दिया।
"चलो।" महाजन ने जयन्त से कहा और उसके साथ बाहर निकल गया।
"हमारे बीच जो हो रहा है, ये बातें और कितने लोग जानते हैं?" मोना चौधरी ने पूछा।
"सिर्फ हम चार ही...।"
“अफगानिस्तान में जो एजेन्ट तैनात हैं, वो मेरे बारे में कुछ नहीं जानते?"
"नहीं। ऑपरेशन गु-ले-ल के बारे में उन्हें कोई खबर नहीं...।"
मोना चौधरी सोच भरे ढंग से सिर हिलाकर रह गई।
"तुम इसी कमरे में रात बिताओ। यहां कोई नहीं आएगा। खाने का सामान फ्रिज में रखा है। सुबह मुलाकात होगी।” गोपालदास ने कहा और पलटकर बाहर निकलता चला गया।
मोना चौधरी के चेहरे पर सोचों से भरी गहरी रेखाएं नजर आ रही थीं।
■■■
अगले दिन नौ बजे मोना चौधरी की आंख खुली।
एक तरफ कमरे में लगा किचन भी था, ये रात को ही उसने देख लिया था। वहां से मध्यम सी एक-दो आवाजें उठीं तो मोना चौधी वहां पहुंची। एक आदमी को वहां व्यस्त पाया।
“गुड मार्निंग मैडम।” वो मुस्कराकर बोला--- “मैं आपके लिए नाश्ते का इंतजाम कर रहा हूं...।"
“किसने भेजा है तुम्हें?”
"चीफ ने, यानि कि मिस्टर गोपालदास ने। उन्होंने कहा है कि आप उनकी मेहमान हैं।"
"कॉफी बना दो।" मोना चौधरी ने कहा।
“अभी लीजिए...।” फुर्ती से कॉफी बनाने में व्यस्त हो गया।
"तुम कपड़ों से तो खानसामा नहीं लगते ?"
"मैडम, मैं रॉ की तरफ से कई देशों में खानसामा का काम कर चुका हूँ। डेढ़ साल सिंगापुर में, उत्तरी कोरिया में सवा साल और आठ महीने पाकिस्तान में। मैं किचन का हर काम बढ़िया करने के साथ रॉ के लिए खबरें भी बढ़िया भेज सकता हूं।"
मोना चौधरी ने समझने वाले ढंग में सिर हिला दिया।
“अगले कुछ दिनों में मुझे नई नौकरी मिल रही है। मुझे हंगरी भेजा जा रहा है। सतीश मेहता नाम है मेरा। आपके लिए चीफ ने अखबार भिजवाई है। कमरे में रखी है, आप अखबार देखिए। मैं कॉफी लाया।"
कमरे में पहुंचकर मोना चौधरी ने अखबार देखी तो चौंकी।
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर उसकी तस्वीर छपी हुई थी और जयन्त की तस्वीर भी छपी थी और नीचे मोटे-मोटे शब्दों में लिखा था--- 'इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी ने बीती रात नौ पुलिस वालों को शूट कर दिया।' खबर इस प्रकार थी कि मोना चौधरी किसी का अपहरण कर रही थी कि पुलिस ने देख लिया और पीछे लग गई। तब मोना चौधरी ने नौ पुलिस वालों को शूट कर दिया। साथ में मोना चौधरी का एक साथी भी था।
मोना चौधरी बिना रुके खबर पढ़ती चली गई।
अखबार में दी खबर के मुताबिक पुलिस मोना चौधरी को हर हाल में पकड़ लेना चाहती है।
बेचैन सी हो उठी मोना चौधरी ।
बहुत घटिया जुर्म उस पर थोपा गया था। ये सब गोपालदास ने ही करवाया था।
सतीश मेहता वहां पहुंचा और उसे कॉफी देता कह उठा--- "टी.वी. पर आप ही के बारे में ख़बरें दी जा रही हैं मैडम... ।"
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा और कॉफी का घूंट भरा।
एक घंटे बाद जब वो नहा-धोकर नाश्ता कर चुकी थी तो गोपालदास ने भीतर प्रवेश किया।
"गुड मार्निंग मोना चौधरी ।"
"महाजन कहां है?" मोना चौधरी ने पूछा।
"वो सुबह चार बजे की फ्लाइट से अफगानिस्तान चला गया। अब तो वो लैला से मिल भी चुका होगा... ।”
"आपने लैला को उसके बारे में बता दिया था।"
"रॉ अपना काम कभी नहीं भूलती... ।” गोपालदास जी बैठ गए।
"बहुत बुरा इल्जाम मुझ पर लगाया गया है... बुरा ही लगना चाहिए। तभी तो ऑपरेशन गु-ले-ल में सफल हो सकोगी।"
"इस तरह तो पुलिस हमेशा ही मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ी रहेगी कि मैंने पुलिस वालों को मारा...।"
"ये सिर्फ तब तक के लिए है, जब तक कि तुम ये काम पूरा नहीं कर लेती। उसके बाद अखबारों और टी.वी. में इस बारे में आ जाएगा कि पुलिस वालों को तुमने नहीं मारा था। गलतफहमी की वजह से तुम्हारा नाम ले लिया गया था।"
"ये काम कराना भूलना मत... ।”
"इस बारे में तुम्हें कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तो कुछ काम की बात कर लें?”
"काम की बात?" मोना चौधरी ने गोपालदास को देखा।
"हां, जब तक तुम हिन्दुस्तान में हो, रॉ की जिम्मेदारी हो । अफगानिस्तान पहुंच गई तो फिर तुम कुछ भी करने को आजाद हो । मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि अब तुम्हें आगे क्या करना है। दोपहर बाद तुम हरकत में आओगी। तुम्हें उस आदमी तक पहुंचना है जो कि लाली खान के लोगों के साथ सम्बन्ध रखता है। वो ही तुम्हें लाली खान के लोगों के बीच पहुंचा सकता है। हमारे एक आदमी से उसके सम्बन्ध अच्छे हैं। हमारा वो ही आदमी तुम्हें और जयन्त को उस तक ले जाएगा। ये सब कैसे होगा, सुन लो। बाकी अपना दिमाग लगा लेना।"
“लाली खान के उस खास आदमी का नाम क्या है?"
"बंटी के नाम से जाना जाता है वो...।"
■■■
दोपहर 1 बजे।
गोपालदास के आफिस में, जयन्त मौजूद था।
"सतर्क रहना जयन्त।" गोपालदास ने कहा--- “मोना चौधरी को पता नहीं चलना चाहिए कि पारसनाथ के मामले में हमने उससे झूठ कहा।"
"मेरे मुंह से ऐसी कोई बात निकलने का सवाल ही पैदा नहीं होता सर।" जयन्त ने गंभीर स्वर में कहा।
"हमारे एजेन्टों को लाली खान के आदमी पहचान जाते थे। झूठ बोलना मजबूरी थी हमारे सामने। ऐसा कुछ करने का मेरा कोई प्लान नहीं था। परन्तु अचानक ही मोना चौधरी का नाम मेरे सामने आया और प्लान मेरे दिमाग में बनता चला गया।"
"जी...।"
"ऑपरेशन गु-ले-ल का सारा काम मोना चौधरी करेगी। तुम उसके साथी के तौर पर उसके साथ रहोगे। क्योंकि वो इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी है। उसी के दम पर ऑपरेशन गु-ले-ल शुरु किया जा रहा है। उसका नाम है, इसलिए आगे वो ही रहेंगी। उसे ही सब पहचानते हैं। तुम उसके अंडर रहोगे, परन्तु उसकी हरकतों पर पूरी तरह नजर रखोगे। अगर कभी मोना चौधरी अपने मिशन से भटकने लगे तो उसे ठीक राह दिखाना तुम्हारा काम रहेगा।"
"यस सर। परन्तु ये जरूरी तो नहीं कि वो सफल रहे?" जयन्त गंभीर स्वर में बोला ।
"कोई जरूरी नहीं। क्योंकि लाली खान खतरनाक है। हम मोना चौधरी पर एक चांस ले रहे हैं। अगर उसे कुछ हो जाता है तो उससे न तो रॉ को कोई फर्क पड़ेगा और न ही देश को। परन्तु मुझे तुम्हारी चिन्ता रहेगी जयन्त ।"
"मैं अपना ध्यान रखूंगा...।"
"ये मिशन खतरनाक है और अन्य कामों से हटकर है। इस काम में पहले भी हम आठ एजेन्ट गंवा चुके हैं। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कुछ हो। तुम्हें हर तरफ से अपना ध्यान रखना होगा।”
जयन्त ने सिर हिला दिया।
"तुम्हें मोना चौधरी की हर बात माननी है। यूं समझो कि इस मिशन की चीफ वो ही है। अगर उसका कोई आदेश तुम्हें बहुत ज्यादा गलत लगे तो उस स्थिति में तुम अपना फैसला ले सकते हो। परन्तु मोना चौधरी को भी तुम्हें रॉ की एजेन्ट समझकर ही चलना होगा।"
“मैं ऐसा ही करूंगा सर। मोना चौधरी के साथ पूरी तरह मिलकर काम करूंगा।"
"वो खूबसूरत है।"
"यस सर...।"
"तुमने उसकी खूबसूरती पर नहीं, काम पर ध्यान देना है। किसी भी हालत में भटकना मत। मोना चौधरी इस काम में हमारा खास मोहरा है।"
"मैं अपने काम को गम्भीरता के साथ करूंगा।" जयन्त ने कहा।
“यही आशा है मुझे तुमसे। अब तुम मोना चौधरी के पास जाओ। तुम दोनों यहां से तीन बजे निकलोगे। तुम्हारे पास विभाग से वास्ता रखती जो भी चीजें हैं, वो निकालकर टेबल पर रख दो। अफगानिस्तान में हमारे जो भी एजेन्ट हैं, उन सबके नम्बर तुम्हारे पास हैं, यानि कि तुम्हें याद करा दिए गए हैं। वो तुम्हें ऑपरेशन गु-ले-ल कहने पर ही पहचानेंगे। तुम्हारा नाम नहीं जानते वो।"
"समझ गया सर।" जयन्त जेबों से सामान निकालकर टेबल पर रखता कह उठा।
"मोना चौधरी और तुम्हारी तस्वीरें अखबारों में छप चुकी हैं। टी.वी. पर चेहरे दिखाए जा रहे हैं। ऐसे में तुम दोनों को मेकअप में ही बाहर निकलना होगा। वरना बुरी तरह फंस जाओगे। पुलिस ने देख लिया तो वो गोली मार देगी। मेकअप का सारा सामान मोना चौधरी के पास पहुंच चुका है। तुम मोना चौधरी का मेकअप करो, वो तुम्हारा करेगी। चूंकि इस काम को गुप्त रखा जा रहा है, इसलिए इस काम में किसी की सहायता नहीं ली जा रही।"
"सतीश मेहता तो सुबह मोना चौधरी के पास था।" जयन्त ने कहा।
"वो नहीं जानता कि मामला क्या है और कल की फ्लाइट से वो काम पर हंगरी जा रहा है। इस मामले से उसका कोई वास्ता नहीं है।"
■■■
मोना चौधरी के चेहरे पर मूंछें थीं। सिर पर पड़ी टोपी के बीच उसके लम्बे बाल छिप चुके थे। शरीर पर कमीज-पैंट और जीन्स की जैकिट थी। उसे इस हुलिए में पहचान पाना आसान नहीं था । जयन्त ने चेहरे पर दाढ़ी-मूंछें और चश्मा लगा रखा था। वो भी पहचाना नहीं जा सकता था। दोनों कार की पिछली सीट पर बैठे थे। पचास बरस का एक आदमी कार चला रहा था।
फिर कार ने मोड़ काटा और एक कालोनी की भीतरी सड़क पर, एक फ्लैट के सामने जा रुकी।
शाम के पांच बज रहे थे।
उस आदमी ने इंजन बंद किया और दरवाजा खोलते कह उठा---
"निकलो... ।”
मोना चौधरी और जयन्त बाहर निकले।
"मेरे पचास हजार दो...।" वो मोना चौधरी और जयन्त से बोला।
जयन्त ने पचास हजार की गड्डी निकालकर उसे दे दी। जिसे उसने जेब में रख लिया।
"मैं तुम दोनों को उस आदमी से मिलवा रहा हूं जो तुम दोनों को हिन्दुस्तान के बाहर सैटल कर सकता है। उससे तुम्हारी पटरी मेल खाए या नहीं, इससे मुझे कोई मतलब नहीं। मुझे मेरा पचास मिल गया। आओ...।" कहकर वो सामने के फ्लैट की तरफ बढ़ गया।
मोना चौधरी और जयन्त उसके साथ थे।
दरवाजे पर पहुंचकर उसने कालबैल बजाई।
कुछ पलों बाद पचपन बरस के एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला।
"मैंने तेरे को फोन किया था कि मैं आ रहा हूं...।" उसने कहा।
"लेकिन तूने ये नहीं कहा था प्रमोद कि तू साथ में किसी को लाएगा ?” उस आदमी ने मोना चौधरी और जयन्त को देखते हुए कहा।
"काम के हैं ये बंटी...।"
बंटी पीछे हटा तो तीनों भीतर प्रवेश कर गए।
बंटी दरवाजा बंद करके पलटते कह उठा---
"मामला क्या है... ?"
"तूने आज की अखबारें पढ़ी होंगी। टी.वी. पर खबरें सुनी होंगी।" प्रमोद ने कहा।
"खास क्या है उनमें?"
“मोना चौधरी और जयन्त... ।"
बंटी ने मोना चौधरी और जयन्त को गहरी निगाहों से देखा ।
"वही हैं ये।" प्रमोद ने कहा--- "दिखाओ इन्हें...।"
मोना चौधरी ने होठों पर चिपकी मूंछें उतारीं और सिर पर रखी टोपी उतारी। उसके सिल्की बाल खुलकर बिखरते चले गए। उसका खूबसूरत चेहरा सामने था।
जयन्त ने भी अपनी दाढी-मूंछें उतार ली थीं।
बंटी के होंठ सिकुड़े। वो गम्भीर सा प्रमोद से कह उठा---
“तू इन्हें यहां क्यों लाया? किसी को पता चल गया तो मेरे सिर पर मुसीबत...।”
"इन्हें देश से बाहर जाना है।"
"तो मैं क्या करूं?”
"देख, ज्यादा ड्रामा मत कर। तेरे अफगानिस्तान में कांटैक्ट हैं। तू इन्हें वहां भिजवा सकता है। ये वहां छिपकर रह लेंगे और कोई काम भी मिला तो कर लेंगे। यहां इनके लिए खतरा है। पुलिस बुरी तरह पीछे है। खबरें सुन ली होंगी कि...।"
"मोना चौधरी जैसी खतरनाक हस्ती को मेरे पास नहीं लाना...।"
"काम की बात कर...।"
"मैं ये काम नहीं कर सकता।" बंटी बोला।
"क्यों?"
"पिछली बार जिस आदमी को मैंने भेजा था, वो रॉ का आदमी निकला। ये तो शुक्र है कि मैं बच गया, वरना रगड़ा जाता।"
"बहाने मत बना। ये मेरे खास हैं।"
"नहीं। मैं नहीं...।"
"उल्लू के पट्ठे! ये मोना चौधरी है, रॉ की नहीं है और अखबारें न्यूज चैनल, चीख-चीखकर इसके बारे में... ।”
"तुम किसी और के पास ले जाओ इन्हें...।"
“ये मेरे खास हैं बंटी...।" प्रमोद ने जोर देकर कहा--- "यूं ही मैं इन्हें तेरे पास नहीं लाया।"
"अभी मैं इनके लिए कुछ नहीं कर सकता।" बंटी ने स्पष्ट इनकार किया।
"पक्का?" प्रमोद तीखे स्वर में बोला।
"हां...।"
"सुन लिया तुम दोनों ने?" प्रमोद ने दोनों से कहा--- “ये कुछ नहीं कर सकता।"
मोना चौधरी ने रिवाल्वर निकाल ली।
“ये...।" बंटी हड़बड़ाया--- "ये तुम क्या कर रही...।"
“तुम हमारे लिए कुछ करो, वरना मैं तुम्हें गोली मार दूंगी।" मोना चौधरी गुर्राई।
“ये क्या बात हुई?” बंटी परेशान हो उठा।
"एक को और मार दूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।” मोना चौधरी की आवाज में खूंखारता आ गई थी--- "मैं इस वक्त मुसीबत में हूं। मुझे कहीं पाकिस्तान में टिका दो। सिंगापुर में या हांगकांग में। मैं इस देश से निकल जाना चाहती हूं। प्रमोद ने मुझे बताया कि बाहरी देशों में तुम्हारी अच्छी पैठ है। तुम...।"
"सिर्फ अफगानिस्तान में ही मेरी पहचान है।" बंटी के होंठों से निकला ।
"अफगानिस्तान भी चलेगा। मैं हिन्दुस्तान से निकल जाना चाहती हूं। मैं और मेरा साथी। समझे तुम...।”
बंटी ने गहरी सांस लेकर सिर हिला दिया।
"अच्छा तो यही होगा कि तुम मुझे वहां कोई काम भी दिला दो। थोड़ा वक्त मैं आराम से निकालना चाहती हूँ और मेरे पास पैसा भी नहीं है। क्या तुम अफगानिस्तान में मुझे काम दिला सकते हो?"
बंटी आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा।
"ये हमारा काम नहीं करेगा।" जयन्त ने दांत भीचकर कहा--- "मार दो इसे।"
"जल्दी मत करो।" प्रमोद कह उठा--- "तुम हर वक्त मरने-मारने की ही बात क्यों करते हो? थोड़ा वक्त दो बंटी को। जल्दी मत करो। ये समझदार है, काम जरूर करेगा।"
बंटी ने प्रमोद को खा जाने वाली नजरों से देखा।
प्रमोद के चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
"क्या काम कर सकती हो तुम?” बंटी ने मोना चौधरी से पूछा।
"ये पूछो क्या काम नहीं कर सकती मैं? जानते नहीं मेरे बारे में क्या? कभी सुना नहीं कि मोना चौधरी क्या है?"
"ज्यादा नहीं ध्यान दिया कभी तुम पर...।"
"जितना ध्यान दिया है, उतना ही बहुत है। मैं सब काम कर सकती हूं। डकैती, अपहरण और...।"
"ये सब नहीं। क्या तुम ड्रग्स को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा सकती हो?"
“घटिया काम है ये। ऐसे काम मैं नहीं करती...।” मोना चौधरी ने व्यंग्य से कहा।
“ये घटिया काम नहीं है। बड़ा काम है। मैं तुमसे 50 ग्राम माल ले जाने की बात नहीं कर रहा। 50 किलो जैसी बड़ी खेपों को ले जाने की बात कर रहा हूं। सौ करोड़ के माल ले जाने लाने की बात कर रहा हूं। बड़े-बड़े बैगों में बंद माल को ले जाने की बात कर रहा हूं और इस काम के तगड़े पैसे भी मिलेंगे।" बंटी ने अपनी बात पर जोर देकर कहा।
“मोना चौधरी !” जयन्त बोला--- “ये तो मोटी रकमों की बात कर रहा है।"
"पूरी बात बताओ, ये काम कैसे होगा?" मोना चौधरी ने कहा।
“अफगानिस्तान में मेरे पहचान के कुछ लोग हैं, जो अफीम उगाते हैं और उससे कोकीन, आईस, स्मिथ, गांजा, चरस, स्मैक, हेरोईन वगैरह तैयार कर माल को विदेशों में भेजते हैं। तगड़ा पैसा है इस काम में । मुफ्त के भाव माल पड़ता है और जाता है करोड़ों में। लेकिन वो खतरनाक लोग हैं। उनके धंधे के कड़े नियम हैं। कोई खामख्वाह का मोल-भाव करे तो उसे मार देते हैं। कुछ पता नहीं चलता कि कब क्या कर दें। आदमी सही वक्त पर, सही जगह पर ठीक से डिलीवरी न पहुंचाये तो उसे शूट कर देते हैं। उनके साथ काम करना आसान बात नहीं है। यूं वे माल पहुंचाने वाले को कमीशन देते हैं, तनख्वाह नहीं।"
"ये काम हमारे लिए अच्छा रहेगा मोना चौधरी।" जयन्त कह उठा।
"अगर ये काम करना पसन्द करो तो अफगानिस्तान में सैटल हो सकते हो। परन्तु जरूरी नहीं है कि वो तुम्हें काम पर रखे ही। नये आदमी को वो पहले अच्छी तरह परखते हैं। उनके बीच अपनी जगह बना लेना आसान नहीं।"
“ठीक है। तुम हमें अफगानिस्तान में यही काम दिला दो।"
“उनसे फोन पर बात करूंगा। उन तक पहुंचा दूंगा। आगे क्या होता है, इससे मेरा कोई मतलब नहीं।" बंटी बोला ।
"बात करो उनसे...।" मोना चौधरी बोली।
"अभी?" बंटी ने उसे देखा ।
"हां, अभी। हम मुसीबत में हैं। हिन्दुस्तान से दफा हो जाना चाहते हैं।" मोना चौधरी तीखे स्वर में बोली।
"मुझे क्या मिलेगा?"
"तुम... तुम क्या चाहते हो?"
"मैं तुम्हारी बात उन लोगों से करा रहा हूं, तो मुझे भी कुछ मिलना चाहिए।"
"जयन्त! 50 हजार इसे दे दो।"
"50 कम है।"
"लाख दे दो।"
जयन्त ने 500 के नोटों की दो गड्डियां निकालकर उसे दीं।
“मैं बात करके देखता हूं, नहीं तो तुम्हारा पैसा वापस कर दूंगा।" बंटी ने टेबल पर नोटों की गड्डियां रखीं और दूसरे कमरे से अपना फोन लाया और नम्बर मिलाने लगा।
मोना चौधरी, जयन्त और प्रमोद की नजरें, बंटी पर थीं।
"हमारा काम होना चाहिए।" मोना चौधरी बोली।
“मुझे लाख आता बुरा नहीं लगता। तुम्हारे सामने ही बात कर रहा हूं।" बंटी ने कहा और फोन कान से लगाया।
"काम होता हुआ तो अब ये जरूर करेगा।" प्रमोद बोला।
बंटी फोन कान से लगाए रहा। उधर बेल जा रही थी।
"हैलो... ।"
"इंडिया से बंटी बोल रहा हूँ... ।" बंटी कह उठा।
"बोलो...।"
"पता चला कि माल ले जाने वालों की जरूरत है।"
"हां... कोई है क्या?”
"हां है।"
"उसका नाम क्या है?"
“मोना चौधरी ! हिन्दुस्तान की इश्तिहारी मुजरिम है। यहां उसके लिए खतरा बढ़ गया है। कल ही उसने कई पुलिसवालों को मार दिया। वो हिन्दुस्तान से निकल जाना चाहती है।" बंटी ने कहा।
"हमारे काम की है?"
“मेरे ख्याल से तो है। बाकी तुम देख लेना। भेजूं क्या? दो हैं वो, साथ में जयन्त नाम का आदमी भी है।"
"रास्ता समझा के भेज दे।"
"ठीक है।" कहकर बंटी ने फोन बंद किया--- "बात हो गई। तुम दोनों अफगानिस्तान जा सकते हो। पता-ठिकाना मैं समझा देता हूँ कि कहां पहुंचकर किससे मिलना है। आगे की बात तुम लोगों पर हैं। मेरी कोई गारण्टी नहीं... ।”
"तुम उन्हें काम के बंदे दिला रहे हो।" जयन्त बोला--- “तुम्हें क्या फायदा?"
“तुम लोग उनके काम के निकले तो मुझे वो अच्छा पैसा देंगे ।" कहकर जयन्त ने टेबल पर से नोटों की गड्डियां उठा लीं--- "लेकिन मेरी बात को भूलना मत कि वो खतरनाक हैं। अपने धंधे के अलावा उन्हें और कोई परवाह नहीं...।"
"वो हैं कौन?"
"लाली खान नाम की औरत ही ड्रग्स के धंधे को संभालती । साथ में उसकी बहन गुलजीरा खान और भाई हैदर खान हैं। लेकिन सबकी बड़ी लाली खान ही है। एक बार मैं उससे तब मिला था, जब उनके साथ जुड़ा था। तब लाली खान ने मुझे देखा और सहमति से सिर को हिलाकर चली गई थी। यानि कि मुझे अपने धंधे में शामिल करने में कोई एतराज नहीं था। उसके बाद लाली खान से मेरा कभी भी वास्ता नहीं पड़ा। गुलजीरा खान या हैदर खान से अवश्य दो-चार बार बात हुई। यूं प्रत्यक्ष में गुलजीरा खान ही सब कुछ संभालती है। और हैदर खान उसका साथ देता है।"
बंटी बताता रहा।
मोना चौधरी और जयन्त सुनते रहे।
"अफगानिस्तान पहुंचने का इंतजाम भी तुम ही करोगे?" जयन्त ने कहा।
"ये काम मैं नहीं करता।" बंटी ने प्रमोद को देखा--- “प्रमोद ये काम कर सकता है।"
"कर दूंगा। पचास हजार लूंगा। रास्ते का खर्चा तुम लोगों को अलग से देना होगा। आगे किसी से मिलवा दूंगा। पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान पहुंचा देंगे।”
जयन्त ने 500 के नोटों की गड्डी निकालकर प्रमोद को दी।
"तुम्हारा पचास हजार। हमें अफगानिस्तान पहुंचाने की तैयारी अभी से शुरू कर दो।"
"चलो।" गड्डी लेकर जेब में ठूंसता प्रमोद मुस्कराया--- “यहां से निकलो।"
■■■
"लाली खान का संगठन सख्त किस्म का है। जो सुना उससे, ये ही जाना ।” मोना चौधरी बोली--- "हमें उनसे मिलने के लिए खास प्लान बनाना पड़ेगा। अगर हम उन्हें साधारण लगे तो वो हमसे काम नहीं लेंगे।"
"तो क्या किया जाए?" जयन्त ने पूछा।
"खास अन्दाज में उनसे मिलना पड़ेगा।"
"लेकिन हमारा अंदाज ऐसा भी न हो कि वो उखड़ जाएं।" जयन्त ने कहा।
"हमें बहुत समझदारी से मुलाकात करनी होगी। इस तरह कि उन्हें लगे हम इस काम के हैं। इसी बात पर हमारा आगे का काम टिका है। हमें हर हाल में उन लोगों में शामिल हो जाना है। तभी बात बनेगी।"
तभी सामने से एक आदमी के साथ प्रमोद आता दिखा।
मोना चौधरी और जयन्त पहले की तरह मेकअप में थे।
शाम के छः बज रहे थे।
पास आते हुए प्रमोद उस आदमी से कह उठा---
“ये हैं दोनों जिन्हें अफगानिस्तान पहुंचाना है।"
"अर्जेंट है...।" वो आदमी दोनों पर निगाह मार कर बोला।
"बहुत अर्जेंट है।" प्रमोद बोला।
"एक का डेढ़ यानि कि दोनों का तीन लाख लगेगा...।"
"ये तो ज्यादा है।" प्रमोद मुस्कराकर कह उठा।
"अर्जेंट मामला हो तो इतना ही लगता है। रास्ते में भी चढ़ावा देना पड़ता है। पूरे सफर का खर्चा है। अगर बीच में कहीं फंस गए और निकलने को दस-बीस हजार देने पड़े तो ये ही देंगे। हम नहीं देंगे।" उस आदमी ने कहा।
प्रमोद ने दोनों को देखा।
“ठीक है।" जयन्त बोला-- “लेकिन अर्जेंट का मतलब अर्जेंट ही हो।"
"नोट मेरे हवाले करो। पूरे तीन लाख... अभी आदमी तुम लोगों के साथ भेज देता हूं। वो अफगानिस्तान तक पहुंचा आएगा।"
"नोट लेकर तुम खिसक गए तो?"
"क्या बात करते हो? धंधा करना है, यहीं रहना है। चोर-बाजारी थोड़े ना है, जो भाग जाएंगे।"
"नहीं भागेगा कहीं ये। मेरी गारण्टी पर इसे नोट दे दो....।" प्रमोद बोला।
जयन्त ने हजार-हजार के नोटों की तीन गड्डियां उसे दीं।
“तुम लोग यहीं ठहरो। दस मिनट में मेरा आदमी तुम लोगों के पास आएगा जो तुम दोनों को अफगानिस्तान पहुंचा देगा।"
वो चला गया।
“मुझे भी इजाजत दो।" प्रमोद बोला--- “कभी फिर सेवा की जरूरत पड़े तो बताना।"
प्रमोद चला गया।
“देख लिया ।" मोना चौधरी बोली--- "कैसे अफगानिस्तान तक का सफर बिना पासपोर्ट के हो जाता है।"
“मुझे सब पता है।” जयन्त ने शांत स्वर में कहा।
"पता है तो क्या किया इस बारे में?"
"हमें और भी बहुत काम हैं, पूरे करने होते हैं। वो काम ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।" जयन्त कह उठा।
मोना चौधरी आसपास नजरें दौड़ाती कह उठी---
"ये बात हमेशा याद रखना कि हमारा मिशन मौत से भरा है। अगर हम लाली खान के लोगों को धोखा देने में सफल न हो सके तो वो हमें मार देंगे। वहां से बच निकले तो आगे किसी पड़ाव पर मारे जा सकते हैं। लाली खान जैसी औरत की तबाही के बारे में सोचना भी बेवकूफी है। जरूरी नहीं कि हमारे इरादे पूरे हो सकें।”
"इन खतरों का अहसास है मुझे।"
"कोई भी बेवकूफी मत कर बैठना। वरना तुम्हें बचा नहीं पाऊंगी।"
"तुम मुझे बच्चा समझकर बात कर रही हो।" जयन्त ने चिढ़े स्वर में कहा।
“ऐसा तो मैंने कुछ नहीं कहा।" मोना चौधरी ने जयन्त को देखा।
"ऐसा ही कहा है। लेकिन वक्त आने पर तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जान लोगी।"
■■■
तीन दिन बाद ।
अफगानिस्तान का शहर कोनार ।
जो व्यक्ति उन्हें अफगानिस्तान के कोनार तक हिन्दुस्तान की और पाकिस्तान की सीमा पार कराकर लाया था, उसका नाम विकास यादव था। मोना चौधरी और जयन्त को पता चल चुका था कि वो अक्सर अफगानिस्तान आता रहता है। असल में वो ड्रग्स का धंधा करता था। अफगानिस्तान आता था और जेब में जितना माल होता, उतने की ड्रग्स लेकर, चोर रास्तों से वापस हिन्दुस्तान जाकर, उस ड्रग्स को चौगुने दामों पर बेच देता था।
रास्तों में एक-दो जगह परेशानी आई, परन्तु विकास यादव ने सब संभाल लिया था।
कोनार शहर पहुंचते ही उसने कहा---
“अब तुम लोग अफगानिस्तान में हो। जहां जाना चाहो, जा सकते हो।"
"ये कौन सी जगह है?"
"कोनार... ।”
"काबुल जाना है हमने।"
“यहाँ से बस लेकर लाघमान जाओ। वहां से मेहतरियम की बस लेना। मेहतरियम से कुछ घंटों में काबुल पहुंच जाओगे। कोनार से काबुल तक का रास्ता पूरे एक दिन का है।" विकास यादव ने कहा।
मोना चौधरी और जयन्त इस वक्त मेकअप में नहीं थे।
विकास यादव चला गया।
इस वक्त दोपहर का एक बज रहा था। उन्होंने बस अड्डे से बस ली और चल पड़े।
रात ग्यारह बजे वे काबुल पहुंचे।
ठण्डक थी काबुल में।
हर तरफ शान्ति छाई हुई थी।
"इस वक्त हमें किसी होटल में आराम करना चाहिए। अपनी नींद पूरी करनी चाहिए।" जयन्त बोला।
वे एक पुरानी सी इमारत में बने होटल में जा ठहरे।
“मैं महाजन से कैसे बात कर सकती हूं?” मोना चौधरी बोली।
“जल्दी मत करो। वैसे भी तुम्हें महाजन से बात करने की जरूरत नहीं। लैला ने उसे व्यस्त कर दिया होगा।"
"मैं उससे बात नहीं करना चाहती। सिर्फ पूछा है।”
“फिलहाल तो लैला के फोन पर ही उससे बात की जा सकती है।" जयन्त बोला--- "लैला हमारी शातिर एजेन्ट है। वो महाजन से बढ़िया काम ले रही होगी।"
"लैला इंडिया की है या अफगानिस्तान की...?"
"अफगानिस्तान की...।"
"तुम लोगों को कहां से मिली?”
जयन्त ने मोना चौधरी को देखा और शांत स्वर में कह उठा---
"रॉ के हाथ बहुत लम्बे हैं। तुम लम्बाई के बारे में सोच भी नहीं सकतीं। दुनिया के हर कोने में रॉ के स्थानीय एजेन्ट हैं। अब सो जाओ। कल हमने गुलजीरा खान से मिलना है। हमें नींद पूरी कर लेनी चाहिए।"
"पहले उस नम्बर पर फोन करना है जो बंटी ने हमें दिया था। उसने बताया था कि हम गुलजीरा खान तक कैसे पहुंचेंगे।"
"इस वक्त तो फोन करने का कोई फायदा नहीं। रात के बारह बज रहे हैं।"
"हां, कल ही फोन करेंगे।" मोना चौधरी ने कहा।
■■■
आधी रात का वक्त हो रहा था।
काबुल में मुख्य सड़क के किनारे खड़ी वैन में महाजन मौजूद था। स्ट्रीट लाइटें ऑन थीं। सड़कों पर मध्यम सी रोशनी फैली थी। कभी-कभार ही सड़क पर से कोई वाहन निकलता था, वरना शान्ति ही थी।
वैन के बाहर तीन आदमी टहल रहे थे जो कि उसके साथ ही थे।
महाजन को इस तरह वैन में बैठे आधा घंटा बीत चुका था कि उसका फोन बजा।
"हैलो।" महाजन ने बात की।
"वे चल पड़े हैं। वैन का नम्बर सुनो।" इसके साथ ही नम्बर बताया गया।
"कितने लोग हैं?" नम्बर सुनने के बाद महाजन ने पूछा।
"तीन। एक वैन चला रहा है, बाकी दो बगल में बैठे हैं। वैन का रंग ब्राउन है। बीस-पच्चीस मिनट लगेंगे, वहां तक पहुंचने में।"
"ठीक है।" कहने के साथ ही महाजन ने फोन बंद किया और बाहर खड़े लोगों से चिल्लाकर कहा-- "चलो... ।"
तीनों वैन में भीतर आ बैठे। एक ने स्टीयरिंग संभाल लिया। वैन स्टार्ट की गई।
"हमें उसी जगह पर पहुंचना है। वहां से ब्राउन रंग की वैन निकलेगी।" इसके साथ ही महाजन ने वैन का नम्बर बताते हुए कहा--- "तीन लोग हैं वैन में और तीनों आगे ही बैठे हैं।"
वैन तेजी से दौड़ने लगी थी।
पीछे बैठे आदमी वैन में रखीं गनें उठाने लगे थे। ये देखकर महाजन ने कहा--
"गोलियां न ही चलें तो बढ़िया है। उसके बिना भी हम उन पर काबू कर सकते हैं। हमें खून-खराबा नहीं करना है। हमारा मकसद उनका माल लूटना है।"
"उन्होंने गोलियां चलाईं तो हमें भी चलानी पड़ेंगी।" एक आदमी ने कहा।
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
तेजी से दौड़ती वैन दस मिनट बाद ही एक चौड़ी सड़क पर जा पहुंची। वैन को सड़क के पास ही रोका और वे सब बाहर निकले। वैन चलाने वाला भीतर ही बैठा रहा।
महाजन ने फोन निकालकर नम्बर मिलाया।
“महाजन हूं।” महाजन बोला--- “तुम मोड़ पर हो ?”
“हां।"
"वैन आ रही है। ब्राउन रंग। नम्बर है...।"
“मुझे बता दिया गया है।”
"ठीक है। जब वो वैन तुम्हारे मोड़ से निकले तो मुझे फोन कर देना।"
“करूंगा।”
महाजन ने फोन बंद करके जेब में रखा।
उसके साथ वैन से बाहर खड़े दोनों आदमियों ने गनें थाम रखी थीं।
“कब तक आएगी वैन?" एक ने महाजन से पूछा।
"आने ही वाली है।" महाजन की निगाह दूर तक सड़क पर गई। स्ट्रीट लाइट की रोशनी सड़क पर पड़ रही थी।
दस मिनट ही बीते कि महाजन का मोबाइल बजा।
"हां...।" महाजन ने बात की।
"वैन अभी-अभी मेरे सामने से निकली है।" उधर से कहा गया।
"ठीक है।" कहकर महाजन ने फोन बंद किया और अपने आदमियों से बोला--- "वैन आ रही है।"
ये सुनते ही वे सतर्क हो गए।
वैन के भीतर बैठे आदमी ने उसी पल वैन आगे बढ़ाई और सड़क के बीचों-बीच खड़ी कर दी। फिर वो भी गन थामे बाहर आ गया। अब वो तीनों आदमी गनें थामें सड़क के बीचों-बीच खड़े थे। उनके पास खड़े महाजन के हाथ में रिवाल्वर थी।
"अगर वो वैन नहीं रोकें तो वैन के टायर पर गोलियां चलानी हैं।" महाजन ने कहा।
"वो रही वैन...।" एक उत्साह भरे स्वर में कह उठा।
दूर, सामने किसी वाहन की हैडलाइट चमकती दिखी, जो कि पास आती जा रही थी।
महाजन के होंठ भिंच गए। उसने अपने आदमियों को देखा। सब ठीक था।
हर पल वैन पास आती जा रही थी।
"उन्हें वैन रोकने का इशारा करो।" महाजन ने कहा।
एक आदमी गन वाला हाथ ऊपर करते हुए आगे बढ़कर वैन को रुकने का इशारा करने लगा।
सामने से आता वाहन धीमा होने लगा। बाकी के दो आदमी गोलियां चलाने के लिए तैयार थे, अगर वैन दौड़ना चाहे तो ।
परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ।
धीमी होती हुई वैन पास आ रुकी।
महाजन और एक गनमैन वैन के पास पहुंचे।
"बाहर निकलो।" महाजन चीखा।
भीतर बैठे आदमी ने शीशा नीचे करके पूछा---
"क्या बात है?"
महाजन ने उसी पल दरवाजा खोला और उसकी बांह पकड़कर नीचे खींच लिया।
हड़बड़ाया सा वो सड़क पर आ गिरा।
बाकी दोनों व्यक्तियों ने, वैन में बैठे दोनों व्यक्तियों को गनों पर रखकर बाहर निकाला।
"आखिर ये सब क्या हो रहा है? तुम लोग नहीं जानते कि मैं कौन हूँ?" महाजन के पास खड़ा आदमी चीखा।
तीसरा गनमैन वैन के भीतर बैठा और वैन को किनारे पर ले आया।
सड़क पर खड़ी वैन भी किनारे पर कर दी गई।
"तुम पाकिस्तान से आए थे ड्रग्स खरीदने ? अब लाली खान के आदमियों से ड्रग्स खरीदकर वापस पाकिस्तान जा रहे हो...।" महाजन बोला।
"तुम्हें कैसे पता?" वो चौंका।
"सब बताऊंगा। कुछ देर चुप रह... ।"
फिर देखते-ही-देखते दोनों वैनों के पीछे के हिस्से को पास-पास करके रोका गया और उस वैन में रखे ड्रग्स के बड़े-बड़े पैक थैले निकालकर, महाजन वाली वैन में रखे जाने लगे।
"बेवकूफों, मेरी ड्रग्स क्यों लूट रहे हो? मैं इस की कीमत देकर आ रहा हूं...।" महाजन के पास वाला व्यक्ति चीखा ।
"तुम महा-बेवकूफ हो।" महाजन धीमे स्वर में बोला।
"क्या मतलब?"
"लाली खान अब ईमानदारी से धंधा नहीं करती।”
"क्या मतलब... तुम क्या कहना...।"
“भीतर की बात है, मैं तुम्हें नहीं बता सकता। तुमने आगे बात कर दी... तो मैं मारा जाऊंगा।"
"मैं आगे बात नहीं करूंगा। तुम बताओ।"
“कसम खाते हो?"
"मां की कसम।"
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"मोहम्मद।"
"हूं...।" महाजन धीमे स्वर में बोला--- "बेवकूफ, मैं लाली खान के लिए ही काम करता हूं...।"
"लाली खान के लिए...?"
"धीरे बोल... ।"
"तुम...तुम कहना क्या चाहते हो?" एकाएक उसकी आंखें सिकुड़ गई थीं।
"मुझे हैदर खान ने कहा था तुमसे ड्रग्स लूटने को ।" महाजन धीमे स्वर में बोला ।
“क्यों... ?” उसके होठों से निकला।
"अभी हैदर खान का फोन आया था कि तुम उसके पास से ड्रग्स लेकर निकले हो और इस रास्ते से निकलोगे। वो तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं कर रहा। हैदर खान के कहने पर मैं अक्सर उन लोगों से ड्रग्स लूट लेता हूं जो उससे ड्रग्स खरीदते हैं। इससे लाली खान को डबल फायदा होता है। अब तुम्हारी ड्रग्स लूटी गई तो तुम क्या करोगे? माल तो तुम्हें चाहिए। पैसे तुम्हारे पास हैं नहीं। आखिरकार तुम अब लाली खान से उधार ड्रग्स लोगे। इस तरह लाली खान ने एक ही माल को दो बार बेच दिया। डबल फायदा हुआ। मैं तो हैदर खान के आदेश पर हर रोज ही किसी न किसी को इस तरह लूटता ही रहता हूं।" महाजन ने राज भरे स्वर में कहा।
"मैं नहीं मानता...।" मोहम्मद के होंठों से निकला।
“भाड़ में जा ! अगर तूने ये बात किसी को बताई तो मैं तेरे को नहीं छोडूंगा। हैदर खान ये पसन्द नहीं करेगा कि मैं भीतर की बात किसी को बताऊं। फिर तूने तो मां की कसम खाई है...।"
मोहम्मद हक्का-बक्का सा खड़ा, महाजन को देखे जा रहा था।
तभी महाजन के साथी की आवाज आई।
“काम हो गया। चलो...।"
"तुम्हारी सारी ड्रग्स मेरी वैन में पहुंच चुकी है। चलता हूं मैं।" महाजन धीमे स्वर में बोला--- “अगर तुम्हें मेरी बात का नहीं भरोसा तो ड्रग्स के इन बैगों पर निशान लगा दो। फिर इन्हीं बैगों को वापस लाली खान के गोदाम में पड़े देख लेना...।"
मोहम्मद के माथे पर बल पड़े नजर आने लगे।
"याद रखना। मेरा नाम मत लेना, वरना छोडूंगा नहीं। कहो तो तुम्हारे भले के लिए, तुम्हें राय दूं?"
"क्या ?"
"लाली खान से माल लेना बंद कर दो। ये लोग अब बेईमानी पर उतर आये हैं। और कई लोग ड्रग्स तैयार करते हैं... उनसे लो माल। वो हेराफेरी नहीं करते। सैयद के बारे में सुना है कि वो ईमानदारी से धंधा करता है।" कहकर महाजन वैन की तरफ बढ़ गया।
देखते-ही-देखते महाजन और उसके तीन साथी वैन में बैठे और वैन दौड़ती हुई नज़रों से ओझल हो गई।
"वापस चलो।" मोहम्मद दहाड़ उठा--- "ये गम्भीर मामला है। मुझे बात करनी होगी....।"
■■■
लगातार फोन बजने पर हैदर खान की आंख खुली।
रात के 3:30 बजे थे।
"हैलो...।" उसने मोबाइल उठाकर, कालिंग स्विच दबाकर कान से लगाया।
"मेरे भाई...।" गुलजीरा खान की आवाज कानों में पड़ी।
हैदर खान की आंखें खुल गई। दीवार पर लगी घड़ी में वक्त देखा।
"बोल मेरी बहन... ।" हैदर खान ने शांत स्वर में कहा।
"तूने अपना माल लुटवाया?"
"नहीं...।" हैदर खान की आंखें सिकुड़ीं।
"पाकिस्तान से आया मोहम्मद माल लेकर निकला था कि किसी ने उसका माल लूट लिया। लूटने वाले ने उसे कहा कि तेरे कहने पर वो माल लूट रहा है... और ये माल वापस लाली खान के गोदाम में पहुंच जाएगा।"
"तो मेरे नाम पर माल लूटा ?" हैदर खान का चेहरा कठोर हो गया--- "कौन था माल लूटने वाला ?"
"मैं मोहम्मद से नहीं मिली। इस बात की खबर मिली है। मोहम्मद इस वक्त काबुल में ही है। जिगनेर इलाके के ठिकाने पर । वो आपे से बाहर हो रहा है। तू अभी जाकर उससे मिल। जो भी हुआ, वो चिन्ता वाली बात है।"
■■■
हैदर खान एक घंटे बाद जिगनेर इलाके के ठिकाने पर पहुंच गया।
ये जगह गोदाम के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। माल तैयार करके यहां रखा जाता था और यहां से सप्लाई किया जाता था। यहां हरदम पंद्रह-बीस हथियारबंद लोग रहते थे।
हैदर खान उस कमरे में पहुंचा जहां मोहम्मद को रखा गया था।
दो आदमी मोहम्मद के पास मौजूद थे।
मोहम्मद ने हैदर खान को व्यंग्य भरी नजरों से देखा।
"तुम लोग बाहर जाओ।" कुर्सी पर बैठते हुए हैदर खान ने दोनों आदमियों से कहा।
वे दोनों बाहर चले गए।
"आजकल तो धंधा बहुत फायदा दे रहा होगा हैदर साहब।" मोहम्मद ने दांत भींचकर कहा--- "खुद ही माल दिया और खुद ही लुटवा दिया...।"
"हम ऐसा नहीं करते...।" हैदर खान ने शांत स्वर में कहा।
“इतना सफेद झूठ मत बोलो... मैं जान...।"
"तुमने मेरी बात नहीं सुनी।" हैदर खान का स्वर कठोर हो गया--- “अगर मैंने ये काम करवाया होता तो वो आदमी कभी भी मेरा नाम नहीं लेता।"
"तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात का विश्वास करूं ?"
"हां। मैं सच्चा इन्सान हूं...।"
"ये बात तो वो भी कह रहा था, जिसने माल लूटा। उसने कसम खाकर कहा कि वो सच कह रहा है।"
हैदर खान के चेहरे पर कठोरता नजर आ रही थी
"माल की तुम फिक्र मत करो। अभी तुम्हें माल मिल जाएगा और मेरा आदमी तुम्हें अफगानिस्तान की सीमा पार कराकर आएगा।"
"सच कह रहे हो?" मोहम्मद के होठों से निकला।
"मैं कभी झूठ नहीं बोलता। हम धंधा ईमानदारी से करते हैं। तुम्हारे साथ जो हुआ, उससे साफ जाहिर है कि कोई हमारा धंधा खराब करने की चेष्टा कर रहा है। तुमने उसे देखा, जिसने माल लूटा ?"
"बहुत अच्छी तरह से। बातें भी कीं उससे।"
"उसने अपना नाम बताया ?"
"ऐसी नौबत नहीं आई।"
"उसका हुलिया बताओ कि देखने में वो कैसा था?"
मोहम्मद ने बारीकी से हुलिया बताया।
सुनने के बाद हैदर खान बोला---
“उसके तीनों साथियों का हुलिया बताओ।"
मोहम्मद ने वो भी बताया।
"इन चारों को पहले कभी देखा था?"
"नहीं।" मोहम्मद ने इंकार में सिर हिलाया--- "मुझसे बात करने वाला मुझे राय दे रहा था कि लाली खान को छोड़कर किसी और से माल खरीदूं। सैयद का नाम लिया था उसने।"
"सैयद...।" हैदर खान के दांत भिंच गए।
"मुझे माल दो। ये तुम्हारा झगड़ा है। मैं यहां से निकल जाना चाहता हूं...।"
हैदर खान ने अपने आदमी को बुलाकर कहा---
"मोहम्मद को दोबारा पूरा माल दो और इसे पाकिस्तान की सीमा में भी प्रवेश करा दो।"
■■■
सुबह 6 बजे ।
हैदर खान गुलजीरा खान से उसके घर पर मिला। वहां और भी आदमी थे। सख्त पहरा था।
हैदर खान के वहां पहुंचने पर ही, सेविका ने गुलजीरा खान को नींद से उठाया था। दोनों मिले।
"सुना मेरे भाई।" गुलजीरा खान बोली--- "मोहम्मद से मिला?"
गुलजीरा खान 28 बरस की खूबसूरत, लम्बी चौड़ी युवती थी। मोटी नाक, गोल चेहरा... गोरा रंग और लम्बे बाल। खूबसूरती के सारे नम्बर उसके पास थे। परन्तु जानने वाले ही जानते थे कि वो कितनी क्रूर है। या फिर ड्रग्स के धंधे ने उसे खतरनाक बना दिया था। अपने धंधे को लेकर वो सख्त रहती थी कि सब ठीक चलना चाहिए। वो कभी भी ऐसी गलती नहीं करती थी कि लाली खान को, उसे कुछ कहने का मौका मिले।
"मिला। किसी ने मेरे नाम पर उसका माल लूटा।" हैदर खान गम्भीर स्वर में कह उठा।
"कौन था वो ?"
"पता नहीं...।”
"हुलिया सुना उससे ?"
"हां। लेकिन इस हुलिए के आदमी को पहले नहीं देखा। उसके तीन साथियों का हुलिया भी सुना।"
"मोहम्मद का क्या किया?"
"दोबारा माल दिया...।"
“ये तो नुकसान हो गया हमारा।" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े।
“उसे माल देना जरूरी था। क्योंकि मोहम्मद से मेरे नाम पर माल लूटा गया था।" हैदर खान ने कहा।
"हमने ठेका तो नहीं ले रखा सबका? कल को फिर ऐसा होगा। हम कब तक इस तरह नुकसान सहते रहेंगे।"
"गलती हमारी है गुल। कोई अफगानिस्तान में हमसे माल लेने आता है तो उसे सुरक्षा देना हमारा काम है। वो इस विश्वास के साथ अफगानिस्तान में आता है कि यहां लाली खान का हाथ उस पर रहेगा।"
गुलजीरा खान, हैदर खान को देखती रही।
"सोचने की बात है कि ऐसा हिम्मत वाला कौन है जो हमारे नाम पर माल लूटने लगा ?"
"मोहम्मद ने सैयद का नाम लिया था। परन्तु मैंने पता किया कि सैयद इस मामले में नहीं है। रात को वो अपने अफीम के खेतों पर गया हुआ था। उसके आदमी उसके साथ थे। वैसे भी सैयद हमसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं कर सकता। वो हमसे बहुत कमजोर है। जैसे कि मेरे नाम पर माल लूटा गया, उसी तरह लूटने वाले ने मोहम्मद के सामने सैयद का नाम ले लिया। ऐसा इसलिए किया गया कि हम सैयद से झगड़ा कर लें। ये माल लूटने वाले की चाल है।"
"सैयद आजकल काफी उड़ रहा है।" गुलजीरा खान कह उठी--- "हमारी कई पार्टियां टूटकर उसकी तरफ चली गई हैं...।"
"इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" हैदर खान ने कठोर स्वर में कहा--- "मैं उस आदमी को चाहता हूं जिसने मेरे नाम पर माल लूटा।"
"मैं खुफिया दल से कहूंगी कि उसे ढूंढे। कुछ ही देर में शमशेर को बुलाऊंगी।"
"शमशेर से कहना कि ये काम जल्दी करे। और अभी तक हमें ऐसे आदमी नहीं मिले जो हमारा माल मंजिल तक पहुंचा सकें।"
"जल्दी मत कर मेरे भाई। इस काम में हम हर किसी को नहीं लगा सकते।"
“शमशेर ये काम कर सकता है।"
"वो खुफिया दल संभालता है। उसे वही काम करने दो। वो काम भी कम जिम्मेदारी का नहीं है।" गुलजीरा खान ने कहा।
"माल ले जाने वाले आदमी जल्दी ढूंढ गुल। ये घटिया काम मेरे बस का नहीं...।"
"धंधा सलामत रखना है तो सब करना पड़ेगा।" गुलजीरा खान ने कहा--- "तू एक लड़की को कई बार अपने पास बुला चुका है।”
हैदर खान ने उसे देखा। होंठ सिकुड़े।
"मेरी निगरानी करती है तू?" हैदर खान ने पूछा।
"खुफिया दल, लाली खान के कहने पर हम सब पर नजर रखता है।" गुलजीरा खान ने कहा--- "एक ही लड़की का बार-बार तेरे पास आना ठीक नहीं। वो किसी की बातों में आकर तेरे लिए खतरा बन सकती है। क्या नाम है उसका ?"
"लैला।"
"हूं....। लड़कियां बदलता रहा कर। वैसे भी ज्यादा शौक मत पाल लड़कियों का। मुसीबत खड़ी हो जाएगी कभी।"
"तू मुझे सलाह मत दे।" हैदर खान उठता हुआ बोला--- "धंधे की तरफ ध्यान दे।"
■■■
शमशेर ।
45 बरस का मजबूत कद-काठी का व्यक्ति। चेहरे पर हल्की दाढ़ी। नाक लम्बी। आंखों में हर समय चौकन्नापन समाया रहता था। छः फीट के करीब लम्बाई थी।
इस वक्त सतर्क सा गुलजीरा खान के सामने खड़ा था।
सजे हुए कमरे में कुर्सी पर बैठी थी गुलजीरा खान। चेहरे पर गम्भीरता थी। चार आदमी और भी कमरे में थे।
"समझ गए शमशेर कि मैं चाहती हूं...।” वो बोली।
“आप चाहती हैं कि जिसने भी जनाब हैदर साहब के नाम पर माल लूटा, उसे तलाश करूं?"
"हां, ये काम जल्दी होना चाहिए।"
"जल्दी पूरा करने की कोशिश करूंगा।" शमशेर ने सिर हिलाकर कहा।
“जो लड़की हैदर के पास आठ-दस बार आ चुकी है, क्या नाम है उसका ?"
"लैला।"
"क्या करती है?"
“पैसे लेकर जिस्म बेचती है। जिस होटल में वो ज्यादातर नजर आती है, वहां से मेरे लोगों ने पता किया।"
“तुमने देखा उसे?"
"नहीं...।"
"देखने में कैसी है?"
"खूबसूरत है।"
"मैं नहीं चाहती कि एक ही लड़की बार-बार हैदर के पास आए। हमारे दुश्मन उस लड़की को बरगलाकर, हैदर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।"
"जी...।"
"उस लड़की के बारे में पता करो और मुझे रिपोर्ट दो...।"
“मैं आज ही उसके बारे में पता करता हूँ...।"
गुलजीरा खान का इशारा पाकर शमशेर बाहर निकल गया।
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"रात तुमने बहुत अच्छा काम किया।" लैला महाजन से कह उठी--- "लेकिन अब तुम्हें सतर्क रहना होगा। लाली खान के लोग तुम्हें ढूंढने में पूरा जोर लगा देंगे। तुम्हें ढूंढे बिना वो चैन नहीं लेंगे।"
"लेकिन तुमने मुझसे ये क्यों करवाया ?"
“ताकि अगली बार मोहम्मद को हम माल सप्लाई कर सकें। वो लाली खान से माल लेना बंद कर दे। इस धंधे में हर कोई सुरक्षित रहना चाहता है। ख़तरे के धंधे में कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता। पता चला है कि हैदर खान ने मोहम्मद के नुकसान की भरपाई कर दी है। परन्तु भविष्य में मोहम्मद सतर्क रहेगा। हमारे लोग उसे पाकिस्तान में मिलेंगे और लाली खान से कुछ सस्ता माल देने की बात करेंगे। डिलीवरी पाकिस्तान में ही दी जाएगी। माल भी शुद्ध होगा। इस तरह वो हमसे माल लेना शुरू कर देगा।"
"लाली खान को तुम लोगों पर शक नहीं होगा ?"
"आसान नहीं है हम पर शक करना। मैं सैयद की पार्टनर हूं, परन्तु मुझे पार्टनर के तौर पर कोई नहीं जानता। धंधे को संभालने के लिए सैयद ही सामने रहता है। मैं पीछे रहकर, धंधे को बढ़ाने के लिए काम करती हूं। कोई सोच भी नहीं सकता कि सैयद के सारे धंधे में मेरा पैसा लगा हुआ है। फिर तुम तो अफगानिस्तान में सबके लिए अजनबी हो। लाली खान के लोगों के लिए तुम्हें ढूंढ पाना आसान नहीं होगा। मैं बढ़िया काम कर रही हूं।"
"रॉ के इशारे पर ये धंधा करके तुम्हें क्या फायदा?"
"फायदा ही फायदा है। दोनों हाथों से पैसा बटोर रही हूं। ड्रग्स के धंधे में तगड़ी कमाई होती है। जो कि आधी मेरी और आधी सैयद की होती है। उधर रॉ की मोटी तनख्वाह हर महीने मेरे खाते में जमा हो जाती है। मेरा काम सिर्फ इतना है कि लाली खान की पार्टियों को तोड़कर उन्हें अपने धंधे में मिलाना है। वो ही कर रही हूं।"
"खतरा तो है ही।"
"मुझे ऐसे खतरों की आदत पड़ चुकी है।"
"सैयद जानता है कि तुम रॉ की एजेन्ट हो ?"
"नहीं। इस बारे में वो कुछ नहीं जानता।"
"मोना चौधरी और जयन्त के बारे में कोई खबर?"
"नहीं। परन्तु उन्हें अब तक तो अफगानिस्तान में पहुंच जाना चाहिए। शायद वे पहुंच चुके हों।"
"तुम्हें कैसे पता चलेगा कि वो आ गए हैं।”
"मैंने लाली खान के एक आदमी को पटा रखा है। वो मुझे खबर देगा।"
"क्या हम मोना चौधरी और जयन्त से सम्पर्क करेंगे?"
"नहीं। उन्हें जब जरूरत होगी, वो ही हमसे बात करेंगे। तब तक तुम मेरे साथ काम करते रहोगे। इससे तुम्हें ही फायदा होगा। यहां के माहौल से वाकिफ हो जाओगे। कुछ काम करना पड़ा तो आसानी से कर लोगे।"
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सुबह ग्यारह बजे मोना चौधरी ने बंटी के दिए फोन नम्बर पर फोन किया।
"हैलो... ।” उधर से आवाज आई।
“मोना चौधरी ।"
"कहां से आई हो?"
"हिन्दुस्तान से।”
"किसने भेजा ?"
"बंटी ने ।"
"आ जाओ। कहां पहुंचना है... पता है तुम्हारे पास?" उधर से पूछा गया।
"बंटी ने पता बताया था...।"
"वहीं आ जाओ।"
"मेरे साथ एक और भी है।"
"मालूम है। उसे भी साथ लेती आओ।"
मोना चौधरी ने फोन बंद कर दिया।
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काबुल शहर का ही वो भीड़ भरा तंग इलाका था।
मोना चौधरी और जयन्त आगे बढ़े जा रहे थे।
"यहां लोग हमें अजनबी निगाहों से देख रहे हैं।" जयन्त बोला।
"हमें देखकर ही वो समझ रहे हैं कि हम अजनबी हैं।" मोना चौधरी ने कहा---- "सतर्क रहना। हम उनके इलाके में हैं और वो जानते हैं कि हम आ रहे हैं। शायद वो हम पर नजर भी रख रहे हों।"
"कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हम कोई गलत हरकत नहीं कर रहे।" जयन्त की नजरें हर तरफ घूम रही थीं।
"अब हम बहुत बड़े खतरे में पांव रखने जा रहे हैं। कोई गड़बड़ हुई तो हमें अपनी सहायता खुद ही करनी है। मैं तुम्हें बता चुकी हूँ कि हमें इन लोगों से कैसे बात करनी है। हमारी बातों से इन्हें लगना चाहिए कि हम बहुत दम रखते हैं और इनका काम सफलता से पूरा कर देंगे।" मोना चौधरी का स्वर शांत था।
"मुझे बच्चों की तरह मत समझाओ।" जयन्त ने तीखे स्वर में कहा--- "मैं तुमसे ज्यादा समझदार हूं।"
"देखूंगी कि तुम कितने समझदार हो ।”
जयन्त ठिठका और पास से निकलते आदमी से एक खास गली का पता पूछने लगा।
इस दौरान ठिठकी मोना चौधरी की निगाह हर तरफ घूमी ।
वे पुनः आगे चल पड़े।
"हमारा पीछा हो रहा है।" मोना चौधरी कह उठी।
"ये तो अच्छी खबर है।" जयन्त ने कहा और पीछे देखने की कोशिश नहीं की।
"एक आदमी हैं। कमीज-पायजामा पहन रखा है। आधी बांह की जैकिट ले रखी है।"
"वो एक से ज्यादा होंगे।" जयन्त ने कहा।
“पक्का। ये उनका इलाका है। वो अच्छी तरह हमें देख रहे होंगे।"
दोनों आगे बढ़ते रहे।
बाजार खत्म हो गया। यहां भीड़ कुछ कम थी। फिर दोनों एक बड़े से गेट के सामने रुके। पुरानी सी बिल्डिंग में लगा, वो पुराना सा गेट था। जर्जर सी हो रही इमारत थी वो ।
गेट थोड़ा सा खुला था और वहां कोई नहीं खड़ा था।
मोना चौधरी आगे बढ़ी और गेट को धकेलकर भीतर प्रवेश कर गई। जयन्त उसके पीछे था। सामने छोटा सा अहाता था। जिसके साथ इधर-उधर के लिए दो-तीन दरवाजे लगे थे। वहां एक आदमी फर्श पर दीवार से टेक लगाए बैठा था। गन उसके पास ही रखी थी। उन्हें देखते ही, उसने गन को दोनों हाथों से थाम लिया।
मोना चौधरी और जयन्त उसकी तरफ बढ़ गए।
तभी मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर गेट की तरफ देखा। वहां से वो आदमी भीतर प्रवेश कर रहा था जो बाजार में उनके पीछे आ रहा था। दोनों अहाते में बैठे उस आदमी के पास पहुंचे।
इससे पहले कि वे कुछ कहते, उस आदमी ने उन्हें सामने के दरवाजे की तरफ इशारा किया।
दोनों उस दरवाजे में प्रवेश कर गए।
ये कमरा था। वहां चार लोग कुर्सियों पर बैठे हुए थे। उन्हें देखते ही वो खड़े हुए और आगे बढ़कर अच्छी तरह से उनकी तलाशी लेने लगे। जेबों में पड़ा सारा सामान बाहर निकालकर, टेबल पर रखा और सामान को चैक करने लगे। परन्तु उस सामान में कुछ ऐसा नहीं था, जिसे वे अपने काम का समझते। दोनों की रिवाल्वरें अपनी जेब में रख लीं। वे चारों मोना चौधरी और जयन्त को तीखी नजरों से घूर रहे थे।
तभी उस आदमी ने वहां प्रवेश किया जो उनका पीछा कर रहा था।
मोना चौधरी और जयन्त की नजरें उस पर गईं।
"नाम?" वो व्यक्ति बोला।
“मोना चौधरी ।"
“जयन्त...।"
"बंटी ने तुम दोनों को ही हिन्दुस्तान से भेजा है?" वो कह उठा। दोनों को सिर से पांव तक देखा।
"हां... ।"
"ऐसा क्या है तुम दोनों में? मुझे तो कुछ खास नहीं लगता तुम लोगों में।” वो सपाट स्वर में बोला ।
“हममें जो खास बात है, उसे हम माथे पर चिपकाकर नहीं घूमते !" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा।
"अच्छा!" वो कहर से मुस्करा पड़ा--- “उस 'खास' को कहां पर छिपाकर रखती हो तुम...?”
उसी पल जैसे बिजली चमकी।
मोना चौधरी का जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर पड़ा। वो एक कुर्सी से टकराकर नीचे जा गिरा। दूसरे पर झपटी मोना चौधरी। जयन्त भी दो पर झपट पड़ा था। उन्होंने इस तेजी से हमला किया कि चारों नीचे जा गिरे थे।
इससे पहले कि वो उठते, बाहर वाला गनमैन दरवाजे पर आया दिखा।
"क्या हो रहा है?" वो गुर्रा उठा। गन पोजीशन में हाथों में दबी थी।
मोना चौधरी और जयन्त ठिठक गए।
"मरना चाहते हो?" वो पुनः गुर्राया ।
पांचों उठे और मोना चौधरी और जयन्त को खा जाने वाली नजरों से देखने लगे थे।
"ये हमारा कमाल देखना चाहते थे।" मोना चौधरी बोली।
"और तुम।" गन वाले ने पांचों को घूरा--- "औरत से मार खा गए? शर्म आनी चाहिए!”
उस आदमी ने गन वाले को इशारा किया तो वो बाहर निकल गया।
"इनकी तलाशी अच्छी तरह ली?" वो ही व्यक्ति चारों से बोला।
"हां, रिवाल्वरों के सिवाय कुछ नहीं है। नोट वगैरह टेबल पर रखे हैं।" एक ने कहा।
मोना चौधरी आगे बढ़ी और टेबल से उठाकर अपना सामान जेब में रखने लगी।
जयन्त ने भी ऐसा ही किया।
"गाड़ी तैयार करो। इन्हें ले चलना है।" वो बोला।
दो आदमी बाहर चले गए।
फिर उनके वहां से चलने तक खामोशी रही।
वो आदमी मोबाइल निकालकर, धीमे स्वर में किसी से बात करने लगा।
पांच मिनट बाद उन्हें खड़-खड़ करती पुरानी सी वैन पर ले जाया गया। वैन के शीशे काले थे।
"हम कहां जा रहे हैं?" मोना चौधरी ने पूछा।
"चुप रहो।" वो आदमी सख्त स्वर में बोला।
जयन्त कुछ कहने लगा कि मोना चौधरी ने उन्हें खामोश रहने का इशारा किया।
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