लता ने चाय बनाई और चाय के दौरान उनकी बात हुई ।
"अब कहो ।" मोना चौधरी बोली--- "सारी बात एक ही बार में बता दो । अब तक तुमने जो बताया । वो समझ चुकी हूं । आगे बोलो ।"
लता चाय का प्याला सामने रखे शांत बैठी थी ।
बज्जू ने घूंट भरा और गम्भीर स्वर में कह उठा।
"जो मैं चाहता हूं, वो सारा काम अजबसिंह पर काबू पाकर किया जा सकता है ।" उसने मोना चौधरी की आंखों में देखा।
"तुम अजबसिंह पर काबू पा लो तो सारी समस्या खुद-ब-खुद हल हो जाएगी ।"
मोना चौधरी ने घूंट भर कर प्याला नीचे रखा ।
"ये काम तुमने अजबसिंह पर काबू पाकर क्यों नहीं कर लिया ?"
"वो आसान नहीं है कि उस पर काबू पाया जा सके ।" लता बोली--- "आसान होता तो हम ये काम कर लेते ।"
"अजब सिंह के बारे में बताओ ।" मोना चौधरी ने लता को देखा ।
बोला बज्जू ।
"वो जल्लाद जैसा इंसान है और खतरनाक संगठन से वास्ता रखता...।"
"कैसा संगठन ?" मोना चौधरी ने टोका ।
"ये मैं नहीं बता सकता । मैं सिर्फ वो ही बात बताऊंगा जो जरूरी हो ।"
"अजबसिंह पर अगर काबू पाना है तो उसके बारे में सब कुछ जानना जरूरी है ।
"वो जल्लाद दरिंदा है । तुम्हारे लिए इतना जानना ही जरूरी है । तुमने उसके संगठन के खिलाफ काम नहीं कर नहीं करना है । तुमने तो उस पर काबू पाकर, उसे अपने इशारे पर चलाने के लिए मेहनत करनी है । इसके लिए कोई रास्ता निकाल ही लोगी । लता ने कहा ।
मोना चौधरी कुछ पलों की खामोशी के बाद बोली ।
"कहां है अजबसिंह ?"
"कुल्लू के पास भुन्तर नाम की जगह पर अक्सर मिलता है । भुन्तर में उसके दो होटल हैं । जो उसके ठिकाने के तौर पर काम करते हैं । वैसे होटल की कमाई में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है । ऐसे में होटल के काम उसकी पत्नी कमलेश ही संभालती है । अजबसिंह अभी भुन्तर में ही है और तब तक भुन्तर में रहेगा, जब तक की बीचपॉम नाम का जहाज दक्षिणी बन्दरगाह के करीब नहीं पहुंच जाता । फिर जहाज के करीब पहुंचकर उसमें मौजूद उस खास माल को ठिकाने लगाने में व्यस्त हो जाएगा।" बज्जू ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए गम्भीर स्वर में कहा।
मोना चौधरी चाय के घूंट लेती, कुछ पलों तक खामोश रही ।
"तुम लोग जो सामान चाहते हो, वो थाईलैंड से आ रहे बीचपॉम नाम के जहाज में है । और वो जहाज गहरे समंदर में है । मैं अजबसिंह पर काबू पा भी लूं, तब भी, उस जहाज पर कैसे जाया जा सकता है, जो गहरे समंदर में होगा । उसमें पड़ा वो सामान जो तुम लोगों को चाहिए, कैसे निकालकर, कहां पहुंचाना होगा । ये सब मामूली बातें नहीं...।"
"हम हर वक्त तुम्हारे साथ रहेंगे और ये मामूली बातें ही हैं ।" बज्जू ने सिर हिलाकर कहा--- "जब तुमने अजबसिंह के साथ जहाज पर पहुंचना होगा तो तुम उस नम्बर पर फोन कर दोगी, जो तुम्हें दिया जाएगा । तुम्हारी बताई जगह पर हैलीकॉप्टर पहुंच जाएगा, जिसके द्वारा तुम समंदर में दौड़ रहे बीचपॉम तक, अजबसिंह के साथ पहुंच सकोगी ।"
"हैलीकॉप्टर ?"मोना चौधरी के होंठों से निकला--- "हैलीकॉप्टर तुम लोगों के पास...।"
"हमारे पास बहुत कुछ है ।" लता के चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी--- "हम गाय-भैंसे भी रखते हैं और हैलीकॉप्टर भी । जिस चीज की जरूरत होती है, हम पा लेते हैं । तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं।"
मोना चौधरी बारी-बारी दोनों को गहरी निगाहों से देखने के बाद बोली ।
"तुम लोग सिर्फ दो ही हो ?"
"क्या मतलब ?"
"अजबसिंह की तरह कोई संगठन तो नहीं है तुम लोगों का ?"
"फिर बेकार के सवाल ।" बज्जू ने सिर हिलाया--- "तुम...।"
"भुन्तर में...मुझे कुछ बताओ कि कैसे अजबसिंह पर काबू पा सकती हूं । ये बड़ा काम है । अपने प्रभाव में लेना है अजबसिंह को । इस हद तक की वो बीचपॉम जहाज से, तुम लोगों का पसंदीदा माल, मेरे इशारे पर निकाल दे । ये काम करना वो कभी भी पसंद नहीं करेगा और उससे ये काम कराना है । मुझे किसी की सहायता की भी जरूरत पड़ सकती है ।"
"फिक्र मत करो ।" लता बोली--- "अजबसिंह के दोनों होटलों में काम करने वाले कई आदमी हमारे आदमी हैं । जरूरत पड़ने पर वे बिना कहे ही तुम्हारी सहायता कर देंगे । तुम्हें एक फोन नम्बर दे दिया जाएगा मोना चौधरी । जो कि भुन्तर का ही होगा । उस नम्बर पर बात करके तुम कैसी भी सहायता के लिए कहोगी, तुम्हें मिल जाएगी।"
"फोन पर क्या कहना होगा कि वो मुझे पहचान सकें ?"
"अपना नाम बताकर ये कह देना कि तुम बीचपॉम से बोल रही हो ।"
मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया और होंठ सिकोड़ कर बोली ।
"तुम लोगों का नेटवर्क बहुत फैला हुआ है । यहां बैठे-बैठे दिल्ली के सारे मामले संभाल रहे हो । भुन्तर में तुम लोगों का पूरा फैलाव है । यकीनन यहां बिलासपुर में भी होगा और अन्य कई जगहों पर भी होगा ।"
"निन्यानवें के फेर में मत पड़ो ? तुम्हें अपने काम के बारे में सोचना चाहिए।"
"अगर वो माल बीचपॉम से निकाल लिया गया तो। पहुंचाना कहां है ?"
"समन्दर में ।" लता ने कहा--- "वो सामान पेटियों में है । जहाज से वो पेटियां समन्दर में फेंक देनी है । तब बोट्स में हमारे लोग वहीं होंगे । वो सामान को संभाल लेंगे । ये काम जब भी हो, रात के अंधेरे में हो । जहाज में हजारों लोग होंगे । दिन में ये सब होता पाकर जहाज में भगदड़ पैदा हो जाएगी। काम पूरा नहीं हो सकेगा ।"
मोना चौधरी ने अच्छी तरह महसूस कर लिया था कि ये दोनों सिर्फ दोनों ही नहीं है । इनके साथ असँख्य लोग हैं । जिन्हें छिपाकर ये दोनों खुद को अकेला दर्शा कर, इस काम के लिए बात कर रहे हैं ।
"अजबसिंह जहाज में मौजूद अपने आदमियों से बात कर लेता है भुन्तर में बैठे-बैठे?"
"हां । उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं । उन लोगों के पास सब इंतजाम है ।"
बनारसी दास वाली हीरों की थैली टेबल पर पड़ी थी । मोना चौधरी ने वो थैली उठाकर जेब मे डाली और दोनों को देखा । इस वक्त रात के दो बजने जा रहे थे ।
"बाकी बातें मैं बाद में करूंगी, पहले काम की बात कर ली जाए ।" मोना चौधरी ने कहा ।
बज्जू और लता की नजरें मिली ।
"अभी तक हम काम की बात ही कर रहे थे ।" बज्जू ने कहा ।
"ये बातें तुम लोगों के काम की थी । मेरे काम की बात है कि इस काम को पूरा करने के लिए, मुझे क्या मिलेगा ?"
"तुम्हारा क्या ख्याल है ।" लता फौरन बोली--- "काम हो जाएगा ?"
"मेरे ख्याल में तो हो जाएगा । बिगड़ गया तो कह नहीं सकती ।" मोना चौधरी बोली--- "सारे मामले में सबसे अहम बात तो अजब सिंह पर काबू पाना है । ये बाद में पूछूंगी कि वो कैसी आदतों का मालिक है । पहले तो काम के दाम की बात करो ।"
क्षणिक खामोशी में लता और बज्जू के नजरें मिलीं।
"तुम क्या कीमत चाहती हो काम की ?" बज्जू ने पूछा ।
"इस बारे में तुम लोगों को मुंह खोलना होगा, तुम लोगों की बताई कीमत से मुझे इस बात का एहसास होगा कि इस काम को तुम कितना आसान समझ रहे हो या कठिन ?" मोना चौधरी ने कहा ।
"ये बेहद कठिन काम है हमारे लिए ।" लता बोली--- "तभी तो तुमसे बात की गई है । बीचपॉम नाम के जहाज में सामान के साथ जो लोग हैं, वो सिर्फ अजबसिंह की बात मानेंगे और अजबसिंह कभी भी संगठन के खिलाफ जाकर, तुम्हारे कहने पर जहाज में मौजूदा सामान को वक्त से पहले बाहर नहीं निकलवाएगा । काम की कीमत लगाते हुए, ये भी सोच लेना मोना चौधरी कि इसमें तुम्हारी जान भी जा सकती है।"
"फिर तो तुम लोगों ने काम की कीमत अवश्य तय कर रखी होगी ।" मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े ।
लता और बज्जू की नजरें मिलीं ।
लता ने इशारा किया तो बज्जू बोला ।
"पचास लाख तुम्हें इस काम को पूरा करने के मिलेंगे । पच्चीस लाख पहले और पच्चीस काम पूरा होने पर ।
मोना चौधरी के चेहरे पर व्यंग के तीखे भाव उभरे ।
"बेहतर होगा तुम लोग देवराज चौहान से बात कर लो ।"
"क्या मतलब ?" बज्जू के होंठों से निकला ।
"कम भाव में ज्यादा सौदा देवराज चौहान करता होगा । मैं नहीं।" मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा-- "इस काम में बहुत खतरे हैं । तुम्हारी बातों से मैंने महसूस किया है कि अजबसिंह मामूली हस्ती नहीं रखता । उसे फंसाकर सीधे रास्ते पर लाना ही खतरे का सौदा है । कभी भी वो मेरी जान ले सकता है । अगर मैंने अजबसिंह को काम के लिए तैयार कर लिया तो उसके साथ ही मेरी जान के दुश्मन बन सकते हैं। जिनके बारे में मैं कुछ नहीं जानती कि वो किस हद तक खतरनाक लोग हैं । इसके बाद उस जहाज पर खतरा है, जहां से उस सामान की पेटियां निकालनी हैं । यानी कि ये काम ऐसा है कि कभी भी, कहीं भी, कुछ भी हो सकता है । फिर भी ये काम दिलचस्प लग रहा है मुझे । इसलिए रियायती तौर पर इस काम की तुम लोगों से एक करोड़ लूंगी। एकदम नगद । पूरी पेमेंट एडवांस ।"
दोनों की निगाह मोना चौधरी पर थी ।
चंद पलों के लिए वहां खामोशी रही ।
"एक करोड़ देने में हमें ऐतराज नहीं ।" लता बोली--- "लेकिन एडवांस देना ठीक नहीं होगा ।"
"वजह ?"
"क्या मालूम एडवांस लेने के बाद तुम काम पूरा कर पाती हो या नहीं । काम पूरा न हुआ तो सोच ही सकती हो कि हमारी स्थिति क्या होगी । करोड़ों रुपए का खरा नुकसान तो हमें हो ही जाएगा ।"
"ठीक कह रहे हो ।" मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी--- "इस बात पर तुम्हें अवश्य सोचना चाहिए।"
बज्जू ने एकाएक बेचैनी से पहलू बदला ।
चुप्पी लम्बी होने लगी ।
लता ने बज्जू को देखा ।
"तुम क्या कहते हो बज्जू ?" लता गम्भीर स्वर में बोली ।
बज्जू ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि फिर मुंह बंद कर लिया।
"मोना चौधरी ।" लता ने मोना चौधरी से कहा--- "पचास लाख तुम्हें एडवांस में दे देते हैं और...।"
"मैं कह चुकी हूं कि एक करोड़ एडवांस ।" मोना चौधरी ने बात काटी--- "मेरे साथ कमीनो की तरह सौदेबाजी मत करो ।"
लता ने होंठ भींचे और उठकर टहलने लगी ।
बज्जू ने व्याकुलता से मोना चौधरी को देखा फिर लता को देखने लगा।
"दे देते हैं एडवांस ।" बज्जू ने सिर हिलाकर कहा ।
लता ने ठिठककर बज्जू को देखा ।
"अगर ये काम पूरा न कर सके तो ?"
"इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा ।"
लता कई सालों तक सोच भरी निगाहों से बज्जू को देखती रही फिर मोना चौधरी को देखा ।
"मानी तुम्हारी बात । एक करोड़ एडवांस ही सही ।"
"जब रकम मुझे मिल जाएगी । तब मैं इस मामले पर काम करना शुरू करूंगी ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"रकम यहां लोगी तो काम कैसे करोगी । रकम को संभालोगी या...?"
"करोड़ रुपए की डिलीवरी दिल्ली कर दो । मेरा काम शुरू हो जाएगा ।"
"दिल्ली किसे पेमेंट देनी है ।" बज्जू बोला--- "नीलू महाजन को या पारसनाथ को ?"
"पारसनाथ को ?"
"पेमेंट करवा दो बज्जू ।"
बज्जू ने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया और दिल्ली फोन किया ।
बात हुई ।
"मैं बोल रहा हूं ।" बज्जू ने दूसरी तरफ से आवाज सुनते ही कहा ।
"हां ।"
"मोना चौधरी की पहचान वाले पारसनाथ का पता-ठिकाना मालूम कर लिया होगा ?"
"हां । महाजन और पारसनाथ के पते एक साथ ही मिल गए थे।" आवाज बज्जू के कानों में पड़ी ।
"पारसनाथ के यहां एक करोड़ नगद पहुंच रुपया पहुंचा दो ।"
"एक करोड़ ? तो सौदा एक करोड़ में हुआ । लेकिन एडवांस रकम देना...।"
"तुम्हें जो कहा है, वो करो ।"
"ठीक है । कौन से नोट देने हैं । नये या पुराने ?"
"जो ठीक समझो । कब तक ये काम हो जाएगा ?"
"अगले दो घंटों में पारसनाथ तक करोड़ों रुपया पहुंच जाएगा ।"
बज्जू ने रिसीवर रखकर मोना चौधरी को देखा।
"दो घण्टे में पैसा पारसनाथ के पास पहुंच जाएगा । बेहतर होगा तुम उसे खबर कर दो ।"
मोना चौधरी ने पारसनाथ का नम्बर मिलाया, बात की।
पारसनाथ जागी हालत में था । अभी सोया नहीं था ।
"दो घंटे तक तुम्हारे पास करोड़ रुपए पहुंचेगा । संभाल लेना ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"कोई खास बात है-खास काम ?"
"हां, तुम पैसे को संभालो ।"
"मेरी जरूरत तो नहीं ?"
"अभी नहीं । इस वक्त रात के ढाई बज रहे हैं । पांच बजे फिर फोन करूंगी ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रखा, फिर लता और बज्जू को देखा--- "मैं पांच बजे तक आराम करना चाहूंगी ।"
"काम पर कब...?"
"जब मैं पारसनाथ से बात कर लूंगी और वो कह देगा कि पैसा उसके पास पहुंच गया ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"ये काम तो दो घंटे तक हो जाएगा ।"
"तब काम भी शुरू हो जाएगा । मैं तुम लोगों को नहीं जानती । पैसे के मामले में विश्वास नहीं कर सकती ।"
लता ने मोना चौधरी को एक कमरा दे दिया नींद लेने के लिए वापस आई तो बज्जू बोला ।
"क्या हमने ठीक सौदा किया है मोना चौधरी से ? मुझे तो करोड़ ज्यादा लग रहा है ।"
"इस बात की खबर हमारे पास पहले ही थी कि मोना चौधरी काम के लिए अपनी पसन्द की रकम लेगी ।"
"साथ में ये बात भी तो थी कि वो काम पूरा करके रहेगी ।"
"मेरे ख्याल में हमें मोना चौधरी की काबिलियत पर भरोसा करना चाहिए । शक तो उस पर तब होता जब वो पचास लाख पर मान जाती । उसे विश्वास है कि वो काम पूरा कर लेगी । तभी तो एक करोड़ और वो भी एडवांस ले रही है।"
होंठ सिकोड़े बज्जू, लता को देखता रहा । चेहरे पर सोच के भाव आ ठहरे थे ।
■■■
सुबह छः बजे मोना चौधरी की आंख खुली तो दूसरे कमरे में जाकर, पारसनाथ को फोन किया। लता और बज्जू सामने लेटे थे । वो उठ बैठे ।
"रुपया मिला ?" पारसनाथ का नींद से भरा स्वर कानों में पड़ा तो मोना चौधरी ने पूछा ।
"हां । हजार-हजार की गड्डियां है । सूटकेस ठसाठस भरा है ।" पारसनाथ के स्वर से अब नींद के भाव गायब हो गए थे--- "अभी रुपया चैक नहीं किया । सूटकेसों को खोलकर देखा भर है। उसके बाद मैं सो गया था ।"
"फिर फोन करूंगी ।" इसके साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रखा ।
लता बोली ।
"पैसा मिल गया पारसनाथ को ?"
"हां ।"
"तो हमारा काम शुरू कर दो । ज्यादा वक्त नहीं बचा । बीचपॉम नाम के जहाज को आने में ।"
मोना चौधरी ने गम्भीर अंदाज में सिर हिलाया ।
"मेरे भुन्तर पहुंचने का इंतजाम करो । नहाने जा रही हूं । उसके बाद नाश्ता करूंगी ।"
"मोना चौधरी कमरे से निकली तो लता और बज्जू की नजरें मिलीं।
"भुन्तर कैसे पहुंचाना है मोना चौधरी को ?" लता के होंठों से निकला ।
"दिक्कत क्या है ?"
"सुनील नेगी तुम बोल रहे हो ।" लता ने शब्दों को चबाकर कहा--- "मोना चौधरी को पकड़ने के लिए हिमाचल की पूरी पुलिस सतर्क है । हर बैरियर-नाका, होटल, सड़के, सब जगह पर मोना चौधरी को ढूंढा जा रहा है । पुलिस वालों के पास मोना चौधरी के चेहरे का स्केच है । वैसे भी मोना चौधरी लाखों में अलग नजर आती है । यहां बिलासपुर ही नहीं, हिमाचल की हर जगह पर पुलिस का खतरा है ।"
"ये खतरा तो मोना चौधरी को उठाना ही होगा ।"
"कोई दूसरा वक्त होता तो, मैं सब कुछ मोना चौधरी पर छोड़ देती । लेकिन इस वक्त वो हमारा ही बेहद खास काम करने जा रही हैं । हमारा एक करोड़ रुपया भी दांव पर लग चुका है । ऐसे में हमें मोना चौधरी की हर सम्भव सहायता करनी पड़ेगी । भुन्तर तक उसे सुरक्षित पहुंचाकर ही उससे अलग होना पड़ेगा ।"
बज्जू कुछ न बोला ।
"सड़कों पर सख्ती है ।" लता बोली--- "रात को हमारे आदमी का फोन आया था। आने-जाने वाली गाड़ियों की चैकिंग हो रही है । सुनील नेगी के साथ-साथ दिल्ली से आया इंस्पेक्टर मोदी भी फील्ड में है । ऐसे में कोई ऐसा रास्ता तलाशना होगा कि बिना किसी खतरे के मोना चौधरी को भुन्तर पहुंचा सकें ।"
"इंस्पेक्टर सुनील नेगी ने उन रास्तों पर भी नजर रखवा दी होगी, जिनका कम इस्तेमाल किया जाता है । नेगी को तुम भी जानती हो और मैं भी । वो कभी भी अधूरा काम नहीं छोड़ता । मोना चौधरी तक पहुंचने की पूरी कोशिश करेगा ।"
"मोना चौधरी को भुन्तर कैसे पहुंचाना है कि उसके सामने कोई परेशानी न खड़ी हो । ये तय करना है हमें।"
मोना चौधरी नाश्ता करके हटी तो साढ़े सात बज रहे थे ।
"तुम्हारा भुन्तर जाने का इंतजाम कर दिया गया है ।" बज्जू ने गम्भीर स्वर में कहा--- "यहां से मुख्य सड़क तक तुम्हें पैदल ही जाना होगा । पुलिस तुम्हारी तलाश में है । ऐसे में पुलिस वालों के सामने पड़ने की गलती मत कर देना । मुख्य सड़क पर तुम्हें एम्बुलेंस तुम्हें भुन्तर दिखाई देगी । जो कि यहां के सरकारी हस्पताल की है । वो एम्बुलेंस तुम्हें भुन्तर पहुंचाएगी । मेरे ख्याल में शाम के चार बजे तक तुम भुन्तर पहुंच जाओगी ।"
मोना चौधरी ने बारी-बारी दोनों को देखा।
"मुझे यहां या कहीं भी हथियारों की जरूरत पड़ सकती...।"
"हथियार या आदमी, जो भी जरूरत पड़ेगी । फौरन इंतजाम हो जाएगा । भुन्तर का वो फोन नम्बर तो तुम्हें याद ही है । उस पर फोन कर देना । जरूरत की हर चीज हासिल हो जाएगी ।" लता ने सिर हिलाकर कहा ।
"अजबसिंह को मैं पहचानूंगी कैसे ?"
लता कमरे से बाहर निकल गई । मिनट भर बाद आई तो हाथ में तस्वीर थी ।
"ये अजब सिंह की तस्वीर है।"
मोना चौधरी ने तस्वीर ली । देखी । इसके साथ ही उसकी आंखें सिकुड़ी ।
तस्वीर बहुत हद तक पारसनाथ के चेहरे जैसी लग रही थी ।
■■■
सिविल हस्पताल ।
बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।
मोटे-मोटे अक्षरों में उस छोटी-सी एम्बुलेंस पर लिखा था । मारुति ओमनी वैन को, एम्बुलेंस का रूप दिया गया था । उसकी ड्राइविंग सीट पर पैंट-कमीज पहने, लापरवाह-सा नजर आने वाला युवक बैठा था । वैन के शीशे में से पीछे, भीतर बैठी नर्स नजर आ रही थी, जो कि अपनी यूनिफॉर्म में थी । भीतर मौजूद मरीज नजर नहीं आ रहा था।
सर्पाकार सड़क पर वो एम्बुलेंस दौड़ी जा रही थी ।
मोना चौधरी को सड़क किनारे खड़े इस एम्बुलेंस को छोड़ दिया था लता ने । मेकअप का सामान और नर्स की यूनिफार्म भीतर ही थी । मोना चौधरी ने मेकअप करके अपना चेहरा बदला और वैन में ही कपड़े उतारकर नर्स की यूनिफार्म पहन ली । अपने कपड़े सीट के नीचे छिपा दिए। तब एम्बुलेंस में उसके अलावा और कोई नहीं था ।
उसके बैठने के लिए वैन के पीछे वाले हिस्से में छोटी सी सीट थी । बीचो-बीच स्ट्रेचर पड़ा था । पास ही स्टैण्ड पर ग्लूकोज की बोतल लटक रही थी । साथ में लगी लम्बी सी पाइप और नीडल स्ट्रेचर पर ही पड़ी थी । इस काम से फारिग हुई तो वैन चलाने वाला युवक और एक पचास बरस का व्यक्ति वहां पहुंचे । युवक ने ड्राइविंग सीट संभाल ली । वो व्यक्ति स्ट्रेचर पर लेटा।
मोना चौधरी की नजरें उससे मिली ।
वो शांत भाव से मुस्कुराया ।
"दरवाजा बंद कर लो मोना चौधरी ?" उसने कहा ।
मोना चौधरी ने बिना कुछ कहे वैन का दरवाजा भीतर से बंद किया फिर वापस आ बैठी ।
"खींच ले एम्बुलेंस को ।" स्ट्रेचर पर लेटी व्यक्ति ने कहा और बाएं हाथ से नीडल उठाई।
"कहां जाना है ?" मोना चौधरी ने उसे देखा ।
"भुन्तर तक तुम्हें पहुंचाने की जिम्मेदारी हम पर है ।" उसने नीडल को दाएं हाथ के उलटी तरफ नाड़ी में डाल ली ।
तभी वैन स्टार्ट हुई और धीरे से आगे बढ़ी ।
"भुन्तर में मुझे क्या करना है ?"
"अजबसिंह पर तुमने काबू पाना है । शक मत करो । हम सही आदमी हैं ।" वो बोला--- "लता और बज्जू ने कहा था कि तुम जो भी जायज बात पूछो, उसका जवाब दे दूं।"
"हो सकता है मैं कोई ऐसी बात पूंछू कि तुम जवाब न दे सको ।" मोना चौधरी ने कहते हुए खिड़की के बाहर देखा ।
"तुम्हारे हर सवाल का जवाब मेरे पास है । लेकिन हर सवाल का जवाब दूंगा नहीं ।" उसने स्ट्रेचर पर लेटे-लेटे कहा--- "जो जरूरी बात होगी, वो ही बता सकूंगा ।"
वैन की रफ्तार तेज हो चुकी थी और एम्बुलेंस का सायरन चालू कर दिया गया था । इससे ये फायदा हुआ कि राह गुजरते वाहन एम्बुलेंस को रास्ता देने के लिए धीमे हो जाते । एक तरफ हो जाते ।
उसने स्ट्रेचर पर लेटे-लेटे सिगरेट सुलगा ली।
"सिगरेट लोगी ?" उसने कश लेते हुए पूछा ।
"नहीं ।" मोना चौधरी ने इंकार में सिर हिलाया--- "नाम क्या है तुम्हारा ?"
"रामचंद्र डोगरा ।"
"मतलब कि हिमाचल के ही हो ।"
"हां ।"
"अजबसिंह के बारे में बताओ ।"
"बज्जू ने बताया नहीं ?"
"तुम बताओ । अलग-अलग सुनने में नई बात मिल जाती है ।"
एम्बुलेंस की रफ्तार बहुत तेज हो चुकी थी ।
"एम्बुलेंस को खाई में मत गिरा देना ।" रामचंद्र डोगरा बोला--- "धीरे चला भूरे ।"
"विश्वास रखो । वैन की रफ्तार इतनी है कि वक्त आने पर कंट्रोल कर सकूं ।" ड्राइविंग सीट पर बैठो भूरे ने कहा--- "ये रास्ते तो मेरे लिए ऐसे है कि आंखें बंद करके भी ड्राइव कर लूं इन पर।"
मोना चौधरी और रामचंद्र डोगरा की नजरें मिली ।
"अजबसिंह के बारे में बोलो ।"
"अजबसिंह पचास बरस का सेहतमंद फुर्तीला इंसान है । पच्चीस बरस पहले वो लुधियाना से खाली हाथ हिमाचल में आया था । साथ में उसकी पत्नी कमलेश थी । पहले दो साल तो उसने इधर-उधर काम किया पेट भरने के लिए । तभी उसकी पहचान कुछ लोगों से हो गई और वो उनके लिए काम करने लगा । अगले दस सालों में अजबसिंह हिमाचल का पक्का नाम बन गया । भुन्तर में उसने जगह लेकर होटल बना लिया । दूसरा होटल तो अभी पांच साल पहले बनाया है और...।"
"अजबसिंह किन लोगों के साथ काम करता है ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"मैं नहीं बता सकता ।"
"क्या काम करता है ?"
"गलत, गैरकानूनी काम करता है । इसके अलावा कुछ नहीं बताऊंगा ।"
मोना चौधरी, रामचंद्र डोगरा को देखती रही।
"पुलिस उसके बारे में जानती है कि वो गलत काम करता है । लेकिन उसके खिलाफ आज तक सबूत इकट्ठा नहीं कर पाई । अगर किसी पुलिस वाले को सबूत मिले तो अजबसिंह ने नोट दिखाकर सबूत गायब करवा दिए । अगर पुलिस वाला नहीं माना तो उस पुलिस वाले को ही ऐसा गायब करवा दिया कि उसकी लाश किसी को नहीं मिली । अजब सिंह अपना काम बहुत सफाई से करता है । वो सतर्क रहने वालों में से है ।"
मोना चौधरी ने सिर हिलाया उसके खामोश होने पर ।
"यूं उसके भुन्तर में दो होटल है । छोटा-सा होटल मनाली में है । आमदनी का जरिया उसका यही है। लेकिन वो खतरनाक संगठन से जुड़ा हुआ है । पैसा उसे वहीं से हासिल होता है । कई हत्याएं कर चुका है । लेकिन कोई गवाह नहीं । इस वक्त थाईलैंड बैंकॉक से बीचपॉम नाम का पानी का जहाज आ रहा है । उस शिप में संगठन का सामान है । उस सामान को जहाज से निकालकर, खास जगह पहुंचाने का काम अजबसिंह को दिया गया है।"
"ये बात तुम लोगों को कैसे मालूम ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"हमारे कुछ लोग अजबसिंह के लिए काम करते हैं । पैसा लेकर वो भीतरी खबरें हमें दे देते हैं ।" रामचंद्र डोगरा ने कहा ।
"तुम लोग कौन हो ?"
"हमारे बारे में मत पूछो ?"
"क्यों ?"
"क्या मालूम कर सकोगी । मालूम करने की जरूरत भी नहीं है । तुम सिर्फ अपना काम देखो ।"
"अपने बारे में तुम लोग कितना भी छिपा लो । देर-सवेर में मालूम तो हो ही जाएगा ।"
रामचंद्र डोगरा ने कुछ नहीं कहा ।
एम्बुलेंस बनी वैन अपने सायरन के साथ दौड़ी जा रही थी ।
"इतना तो मुझे बताया जा सकता है कि शिप में ऐसा क्या सामान आ रहा है कि जो तुम पा लेना चाहते हो ?"
"क्या जरूरत है बताने की ?" उसने इंकार वाले लहजे में कहा ।
"अजबसिंह की आदतें क्या हैं ।" मोना चौधरी बोली--- "उसकी कमजोरियां तो होगी ही ?"
"ऐसे खतरनाक लोगों के कम ही कमजोरियां होती हैं ।" रामचंद्र डोगरा ने गम्भीर स्वर में कहा--- "उनकी कमजोरियों के बारे में मैं कुछ खास नहीं जानता । परिवार के नाम पर उसकी पत्नी और एक बेटा है । इस बारे में तुम्हारी सहायता नहीं कर...।"
तभी ड्राइव कर रहे भूरे का तेज स्वर कानों में पड़ा ।
"आगे नाका है । गाड़ियों की चैकिंग हो रही हैं ।"
चंद पलों के लिए वैन में खामोशी-सी छा गई ।
मोना चौधरी ने सामने की तरफ देखा ।
आगे पच्चीस-तीस वाहनों की लाइन लगी नजर आ रही थी ।
"कितनी गाड़ियां हैं ?" रामचंद्र डोगरा ने लेटे ही लेटे कहा ।
"बीस-तीस...।"
"उनकी साइड से निकालकर ले चलो । सरकारी हस्पताल के वैन पर वे शक नहीं करेंगे । सायरन चालू रखना ।"
भूरे ने ऐसा ही किया ।
वाहनों की कतार के पास से होता हुआ नाके तक जा पहुंचा । लम्बी-मजबूत बल्ली को पेंट करके, बैरियर का रूप दे रखा था । एक पुलिस जीप खड़ी थी । चार पुलिस वाले वाहनों को चैक कर रहे थे ।
बैरियर पार भी वाहनों की कतार थी । दो पुलिस वाले उधर चैकिंग कर रहे थे।
भूरे ने वैन को बैरियर के पास ले जा रोका ।
दूसरे ही पल एक पुलिस वाला पास पहुंचा ।
"क्या है एम्बुलेंस में ?"
"पेशेंट है । कुल्लू तक पहुंचाना है । बड़े हस्पताल में ।"
"दिखा ।"
"भूरा जल्दी से उतरा । पुलिस वाले के साथ वैन के दरवाजे के पास पहुंचा । नर्स के यूनिफॉर्म पहने मोना चौधरी तो पहले ही नजर आ रही थी । दरवाजा खुला, स्ट्रेचर पर लेटे मरीज के रूप में रामचंद्र डोगरा भी नजर आया । उसने आंखें बंद कर रखी थी । स्टैंड पर ग्लूकोज की बोतल, हाथ पर लगी ड्रिप।
पुलिस वाले ने रूटीन चैकिंग की तरह सब कुछ लिया। सरकारी हस्पताल की एम्बुलेंस में मरीज ले जाया जा रहा था । मोना चौधरी के चेहरे पर निगाह मारी । मेकअप से उसने चेहरा बदल रखा था । नर्स के यूनिफॉर्म में तो वैसे ही जुदा दिखाई दे रही थी । कागज पर बना मोना चौधरी के चेहरे का स्कैच, उसके चेहरे से जरा भी मेल नहीं खा रहा था। उसकी नजरों में सब ठीक था ।
तभी मोना चौधरी ने पुलिस वाले से कहा ।
"सर । पेशेंट की हालत नाजुक है । प्लीज हमें जाने दीजिए...।"
"अभी बैरियर उठवाता हूं ।" कहने के साथ ही वो बैरियर की तरफ बढ़ा--- "बैरियर हटाओ । एम्बुलेंस जाने दो ।"
भूरा वैन का दरवाजा बंद करके ड्राइविंग सीट पर बैठा था।
रामचंद्र डोगरा ने आंखें खोली ।
"सब ठीक है ।" मोना चौधरी ने दबे स्वर में कहा ।
तभी उनके देखते ही देखते बैरियर उठाया गया ।
वहां खड़े पुलिस वाले ने हाथ हिलाकर एम्बुलेंस को जाने का इशारा किया ।
वैन आगे बढ़ी ।
बैरियर पार किया ।
तभी सामने से क्वालिस आकर बैरियर पर रुकी । सफेद रंग की क्वालिस के बाहर दोनों तरफ पेंट से मोटा-मोटा पुलिस लिखा था । छत पर लाल बत्ती लगी थी । मोना चौधरी को देखते ही देखते सुनील नेगी अन्य दो पुलिस ऑफीसरों के साथ क्वालिस से बाहर निकला ।
वो इस तरह रुकी थी कि एम्बुलेंस को जाने का एकाएक रास्ता नहीं मिला ।
दो पुलिस वाले फौरन सुनील नेगी के पास पहुंचे । उसे सैल्यूट दिया ।
"सर ! अभी तक तो मोना चौधरी नजर नहीं आई।"
"आने-जाने वाली गाड़ियों की चैकिंग अच्छी तरह कर रहे हो ?" नेगी ने गाड़ियों पर नजर मारते हुए कहा ।
"यस सर । हम सतर्क हैं ।"
तभी सुनील नेगी ने एम्बुलेंस को देखा । जिससे लगातार सायरन बज रहा था ।
"एम्बुलेंस कहां की है ?"
"बिलासपुर सिविल हस्पताल की । भीतर पेशेंट है । उसे कुल्लू से हस्पताल पहुंचाना है ।" उस पुलिस वाले ने जल्दी से कहा ।
"पेशेंट की फाइल देखी ।
"फाइल ?"
"पेशेंट की फाइल।" नेगी ने उसे घूरा--- "मोना चौधरी का मामला है । मैंने कितनी बार कहा है कि जरा सी भी लापरवाही इस्तेमाल नहीं करनी है । वो बहुत खतरनाक है । बड़े ऑफिसरों ने उसे 'चुड़ैल एक्सप्रेस' का नाम दिया है ।"
"मैं अभी पेशेंट के फाइल चैक करता हूं ।"
"वो कोई भी रूप बनाकर बिलासपुर में से निकल सकती है । हिमाचल के किसी भी हिस्से में पहुंच सकती है । कागज पर बने स्कैच पर न जाकर, अपना दिमाग भी इस्तेमाल करो ।"
तब तक पुलिस वाला एम्बुलेंस की खिड़की पर पहुंच चुका था ।
"पेशेंट की फाइल दिखाओ ।" उसने खिड़की से मोना चौधरी से कहा ।
"श्योर ।" मोना चौधरी मुस्कुराकर बोली, फिर ऐसी नीचे झुकी जैसे कहीं से पेशेंट की फाइल उठा रही हो । साथ ही धीरे से राम चंद्र डोगरा से कहा--- "उन्हें हम पर शक हो गया है ।"
"स्ट्रेचर के नीचे गन है ।" कहते हुए रामचंद्र डोगरा ने आंखें बंद कर लीं ।
"बाहर सुनील नेगी भी है ।"
रामचंद्र डोगरा ने फौरन आंखें खोली ।
"नेगी ? हिमाचल क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर नेगी ?"
"वो ही । अभी यहां पहुंचा है ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "पुलिस वालों पर गोलियां चलाओ तो कानून को एक तरफ रखकर वो अपने तौर पर पीछे पड़ जाते हैं।"
"तो फिर फाइल दिखाओ ।" डोगरा सख्त स्वर में बोला।
"एम्बुलेंस का आईडिया तुम लोगों का था । तो ध्यान रखना चाहिए था कि ऐसे मौके पर पेशेंट की फाइल भी देख ली जाती है ।"
तभी बाहर खड़े पुलिस वाले की आवाज आई ।
"जल्दी करो ।"
"रुको ।" मोना चौधरी बोली--- "फाइल शायद स्ट्रेचर के नीचे चली गई है ।"
"जल्दी करो । बड़े साहब यहां हैं । देर मत लगाओ ।"
मोना चौधरी और रामचंद्र डोगरा की आंखें मिली ।
आंखों ही आंखों में इशारा हुआ ।
"ड्राइवर ।" मोना चौधरी सामान्य स्वर में कह उठी--- "पेशेंट की फाइल तुम्हारे पास तो नहीं है ।"
"मेरे पास ?" भूरे ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा ।
नजरें मिलीं । मोना चौधरी ने आंखों आंखों में इशारा किया ।
भूरा समझा । गर्दन घुमाकर सामने देखा । चेहरे पर कठोरता आ गई थी।
"अभी तक तुम्हें फ़ाइल नहीं मिली ।" पुलिस वाले ने कहा--- "कैसी नर्स हो...अब तक तो...।"
उसी पल वैन को तीव्र झटका लगा ।
भूरे ने अपनी हरकत कर दी थी ।
वैन झटके के साथ आगे बढ़ी । पास खड़ा पुलिसवाला हड़बड़ा कर पीछे खड़ी कार से टकराया । भूरे ने वैन को क्वालिस की बगल से निकालना चाहा । परन्तु वैन की बॉडी पर क्वालिस के बम्फर की रगड़ लगती चली गई । तीव्र आवाज उभरी । पुलिस वालों में शोर उभरा ।
रूके वाहनों में बैठे कुछ लोग ऊंचे स्वर में चिल्लाए ।
उलट जाना था । एम्बुलेंस बनी वैन ने ।
भूरे ने कठिनता से वैन को संभाला ।
क्वालिस को पार कर आई थी वैन और उसके बाद वैन ने दौड़ लगा दी ।
■■■
"उसी में मोना चौधरी है ।" सुनील नेगी चिल्ला उठा ।
क्वालिस का ड्राइवर भीतर ही था । उसने वक्त खराब किए बिना क्वालिस को वापस घुमाया । नेगी अपने दोनों साथियों के साथ क्वालिस में बैठा । दो पुलिस वाले भी उसमें आ बैठे थे । क्वालिस तेजी से उस सड़क पर दौड़ पड़ी, जिधर वो एम्बुलेंस वाली वैन गई थी । सब पुलिस वालों के चेहरे सख्त हुए पड़े थे ।
"पुलिस वालों का घेरा तोड़कर भागना आसान काम नहीं । उन लोगों ने बहुत बड़ी हिम्मत दिखाई है ।" एक पुलिस वाले ने कहा ।
"हैरानी है । आखिर वे कौन लोग हो सकते हैं ।" दूसरा बोला।
"स्पष्ट है कि खतरनाक मुजरिम ही ऐसी हरकत कर सकते हैं ।"
"मोना चौधरी को पकड़ने के फेर में खतरनाक मुजरिम हाथ लगने जा रहे हैं ।"
काफी आगे तेज रफ्तार से दौड़ती मारुति वैन वाली एम्बुलेंस नजर आ रही थी । घुमावदार पहाड़ी सड़क होने के कारण कभी वो नजर आने लगती तो कभी निगाहों से ओझल हो जाती ।
"उसे पकड़ कर रहना है ।" एक ने ड्राइवर से कहा ।
"हम अभी उस पर पहुंच जाएंगे ।" ड्राइवर बोला--- "क्वालिस का मुकाबला, मारुति क्या करेगी ?"
एक पुलिस वाले ने इंस्पेक्टर सुनील नेगी को देखा ।
सुनील नेगी ने चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी ।
"सर । आपके ख्याल से एम्बुलेंस मैं कौन-से अपराधी हो सकते हैं ।"
"चुड़ैल एक्सप्रेस ।" नेगी के होंठ भिंच गए ।
"क्या...मोना चौधरी...?"
"हां । उसमें मोना चौधरी है ।"
"लेकिन वो हमें तो नजर नहीं आई ।"
"नर्स बनी बैठी है वो ।" सुनील नेगी पहले वाले स्वर में बोला--- "मेकअप कर रखा है उसने । मैंने एक झलक उसकी आंखों की देखी थी । आंखों से फौरन पहचान लिया मैंने कि वो, मोना चौधरी ही है ।"
"ओह...।"
"लेकिन वो एम्बुलेंस तो सिविल हस्पताल की...।"
"नकली एम्बुलेंस हो सकती है । या फिर हस्पताल से एम्बुलेंस को चुराया हो सकता है ।" नेगी ने शब्दों को चबाकर कहा--- "सच में बहुत खतरनाक है मोना चौधरी । दिल्ली से आए इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने उसके बारे में ठीक ही कहा था । पहले तो मैंने मोदी के शब्दों को गम्भीरता से नहीं लिया । लेकिन अब मोना चौधरी के बारे में मुझे फिर से सोच-विचार करना...।"
"सर ।" ड्राइवर चीखा--- "वो देखिये ।"
सबकी नजरें सामने की तरफ गई ।
उधर का दृश्य देखते ही उनकी सांसें जहां की तहां अटक गई है ।
"हे भगवान !" इंस्पेक्टर सुनील नेगी की आंखें फैल गई ।
एम्बुलेंस बनी मारुति वैन का ड्राइवर अपना कंट्रोल खो चुका था । देखते ही देखते वो सड़क के किनारे बड़े से पहाड़ी पत्थर से टकराई और पलट कर खाई में गिरती चली गई।
"ये तो बहुत गहरी खाई है ।" एक पुलिस वाले के होंठों से हड़बड़ाया सा स्वर निकला ।
"उनमें से अब कोई भी नहीं बचेगा ।"
ड्राइवर ने क्वालिस को उस पत्थर के पास रोका । जिससे टकराकर वैन नीचे गिरी थी । सबके दिल तेजी से धड़क रहे थे । वे जल्दी से बाहर निकले और सड़क के किनारे खड़े होकर नीचे झांका।
दो सौ मीटर नीचे बहुत हद तक पिचकी सी वैन टेढ़ी से पेड़ की मोटी शाखा से अटकी हौले-हौले हिल रही थी । नीचे जैसे अंतहीन-सी खाई नजर आ रही थी । अगर अभी कोई बचाव दल भी आ जाता तो भी उस वैन को बचा पाना असम्भव था । वो मजबूत-सी शाखा पर झूल रही थी । उसका जरा-सा भी बैलेंस दाएं-बाएं होना था कि वैन ने सैंकड़ों फीट नीचे...।
तभी वैन जोरों से हिली । यकीनन वैन के भीतर मौजूद किसी शख्स ने हरकत की होगी । इसके साथ ही वैन का बैलेंस बिगड़ गया । मोटी शाखा से वो हटी और इस प्रकार खाई में गिरती चली गई, जैसे किसी राक्षस ने दोनों हाथों से वैन को पकड़कर खाई में उछाल दिया हो ।
वो सब बुत से बने खड़े रहे ।
तभी खाई से जोरदार आवाज उभरी, जैसे वैन किसी चीज से टकराई हो ।
उसके बाद शांति छा गई ।
कोई आवाज नहीं ।
सकते की-सी हालत में खड़े रहे वो सब ।
वहां आते-जाते अन्य वाहन भी रुकने लगे थे ।
"सर ।" एक पुलिस वाले ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा--- "मोना चौधरी तो मर गई ।"
सुनील नेगी ने उसे देखा । कहा कुछ नहीं । चेहरे पर अफसोस के भाव नजर आ रहे थे ।
"जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ ।" अन्य पुलिस वाले ने कहा--- "अगर हम उनका पीछा नहीं करते तो वे जिंदा होते । पुलिस कार को पीछे आते देखकर वैन का ड्राइवर घबरा गया और ड्राइविंग से अपना कंट्रोल खो बैठा ।"
नेगी वहां से पीछे हटा और सिगरेट सुलगा ली ।
लोग इकट्ठा होने लगे थे । पूछ रहे थे क्या हुआ ? कैसे हुआ ?
एक सब-इंस्पेक्टर हट कर खड़े नेगी के पास पहुंचा ।
"अब क्या करना है सर ?" उसने गम्भीर स्वर में पूछा ।
"खाई में उतरना है, सुनील नेगी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"लाशें देखनी है, नीचे उतरने का रास्ता तलाश करो ।"
तभी खाई में से आता विस्फोट जैसा धमाका सबने सुना। गर्म इंजन और टैंक में मौजूद कंट्रोल का मेल हो जाने की वजह से ही वैन के पेट्रोल टैंक में आग लगी होगी । फिर टैंक फटने से धमाका हुआ ।
■■■
रात के ग्यारह बज रहे थे।
उसी सड़क के किनारे पुलिस वालों ने दो छोटे-छोटे तम्बू लगा रखे थे । उनके भीतर मध्यम-सी रोशनी का भी इंतजाम था । जांच दल ढाई घंटे पहले खाई में उतरा था । उसमें पुलिस फोटोग्राफर, फिंगरप्रिंट वालों के अलावा ऐसे हादसों के एक्सपर्ट लोग थे । अब वे कभी भी लौट सकते थे ।
एक टैंट में इंस्पेक्टर सुनील नेगी के सामने मोदी बैठा था । मोदी कुछ देर पहले ही यहां पहुंचा था ।
सब कुछ बताने के बाद सुनील नेगी गहरी सांस लेकर अफसोस भरे स्वर में बोला ।
"उनका पीछा किए बिना भी उन्हें पकड़ सकते थे । आगे वाले नाके पर उनके बारे में खबर की जा सकती थी । वैन भगाने के चक्कर में वैन का ड्राइवर कंट्रोल खो बैठा और...।" सिर हिलाकर नेगी खामोश हो गया।
"तुम खाई में होकर आए हो । वहां की क्या स्थिति है ?" मोदी ने व्याकुल स्वर में पूछा ।
"बहुत बुरी स्थिति हैं ।" नेगी ने गम्भीर स्वर में कहते हुए अपने बालों पर हाथ फेरा--- "वैन जलकर कोयला हुई पड़ी है । उसकी हालत ऐसी है कि जैसे कोई दोनों हाथों से कागज को मरोड़ देता है । लाशों की जलकर ऐसी हालत है कि उन्हें हाथ लगाया जाए तो वे भुरभुराने लगते हैं । उनके शरीर कई हिस्सों में, बंटे हुए थे । कौन-सा जला टुकड़ा, कौन से शरीर का है । अंदाजा लगाना बेहद कठिन है । अब उस वैन में कुछ भी नहीं बचा ।"
"तुम्हारा मतलब कि मोना चौधरी मर गई ।" मोदी असंयत सा कह उठा ।
"हां । उसके जिंदा रहने का सवाल ही नहीं उठता।"
"असम्भव ।" मोदी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
सुनील नेगी की नजरें, मोदी के चेहरे पर जा टिकी ।
"क्यों असम्भव ?"
मोदी ने पुनः व्याकुलता से पहलू बदला ।
"इंस्पेक्टर मोदी ।" सुनील नेगी अपने शब्दों पर जोर देकर बोला--- "मोना चौधरी मर चुकी है । वो जिंदा नहीं रही । इतनी ऊपर से गिरकर, गिरने वालों को करिश्मा भी जिंदा नहीं रख सकता ।
"इंस्पेक्टर सुनील नेगी ।" मोदी ने नेगी की आंखों में देखा--- "मैंने बड़े-बड़े करिश्मे होते देखे हैं।"
"जरूर देखे होंगे। लेकिन वैन गिरने का हादसा किसी करिश्मे से संबंध नहीं रखता । सैकड़ों फीट गहरी खाई में मैंने अपनी आंखों से देखा है । बहुत बुरे ढंग से नीचे गिरी । गिरते ही उसमें विस्फोट हुआ और वैन सहित भीतर के सारे लोग भी जल गए । भीतर तीन थे । मैंने तीनों को देखा, जब वो क्वालिस को टक्कर मारकर भागे थे । खाई में जाकर उनकी लाशें देखीं । तुम्हें बता चुका हूं ।"
"तुमने बताया था कि उनके शरीर टुकड़ों में बैठ गए हैं ।"
"हां ।" सुनील नेगी ने गम्भीरता से सिर हिलाया--- "वैन के बुरी तरह गिरने पर पेट्रोल की टंकी में विस्फोट होने से उनके शरीरों की ये हालत हुई । पैट्रोल टैंक फुल होगा । ऐसे में जब वो फटा तो उसने शक्तिशाली बम जैसा काम किया । उनके शरीर उड़ा दिए ।"
"तुमने उन शरीर के टुकड़ों का मिलान किया ?"
"क्या मतलब ?"
"तुमने चैक किया कि वो टुकड़े तीन लाशों के हैं ? हो सकता है कि वो दो लाशों के टुकड़े हों ।"
"तुम ये कहना चाहते हो कि मोना चौधरी बच निकली हो ?"
सुनील नेगी ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा--- "यहां पर मेरी आंखों के सामने कोई करिश्मा नहीं हुआ कि कोई बच जाए । वैन का गिरना मौत का खेल था । उसमें सब मारे गए हैं ।"
"फिर भी तुम्हें लाशों के टुकड़े देखकर चैक करना चाहिए...।"
"मैंने इसकी जरूरत नहीं समझी । मोना चौधरी उर्फ चुड़ैल एक्सप्रेस की लाश भी, शरीरों के उन्हीं जले टुकड़ों में है ।" सुनील नेगी ने विश्वास भरे स्वर में शब्दों पर जोर देकर कहा--- "जिस ढंग से वैन गिरी, उसे देखते हुए मैं मोना चौधरी की मौत का दावा कर सकता हूं । उसका इस तरह मरना मुझे अच्छा नहीं लगा । बहुत नाम सुना था मोना चौधरी का । एक बार उससे मुक़ाबला करके, उसे गिरफ्तार करने की तमन्ना मन में उठी थी । लेकिन अब वो तमन्ना अधूरी रह गई।"
मोदी कुछ नहीं बोला । लेकिन चेहरे पर असहमति के भाव स्पष्ट तौर पर झलक रहे थे ।
सुनील नेगी उसे देखता रहा फिर गम्भीर स्वर में कह उठा ।
"तुम एकाएक चुप क्यों हो गए ?"
"समझ में कुछ नहीं आ रहा । विश्वास नहीं आता कि मोना चौधरी का किस्सा इतनी आसानी से खत्म...।"
तभी कदमों की आहट गूंजी ।
देखते ही देखते एक इंस्पेक्टर ने पुलिस डॉक्टर के साथ भीतर प्रवेश किया । ये दोनों उस जांच के दल में शामिल थे, जो खाई में, जली लाशें और वैन के पास गए थे।
"आ गए आप लोग । नेगी बोला--- "बैठिये ।"
टैंट में तंग सी जगह पर खाली पड़ी, दो कुर्सियों पर इंस्पेक्टर और डॉक्टर बैठे।
"सर ।" इंस्पेक्टर ने नेगी को देखा--- "वैन जब गिरी तो उसमें कितने लोग थे ?"
"तीन । दो व्यक्ति और एक युवती ।"
"लेकिन वहां तो हमें तो इंसानों के शरीरों के जले हिस्से मिले...।"
"दो ।" सुनील नेगी के होंठों से निकला ।
मोदी के होंठ भिंच गए ।
"जी हां और दोनों शरीर, मर्दों के हैं । किसी युवती का शरीर या जला शरीर नहीं मिला ।"
"ये कैसे हो सकता है ?" नेगी के होंठों से परेशानी भरा स्वर निकला--- "वैन जब गिरी उसके भीतर युवती भी थी । उसकी जली हुई लाश भी वहीं होनी चाहिए । शायद अंधेरे में लाशों के टुकड़े चैक करने में गलती...।"
तभी पुलिस डॉक्टर कह उठा।
"अगर ऐसा कुछ होता तो दो लाशों के टुकड़ों के अलावा, एक टुकड़ा तो फालतू होता । लेकिन हमें दो लाशों के टुकड़े पूरे ही मिले । वैन में अभी भी शरीर के दो टुकड़े फंसे हैं, लेकिन वे उन्हीं मृत शरीरों के हैं ।"
सुनील नेगी से कुछ कहते न बना।
मोदी की निगाह उन तीनों पर फिर रही थी ।
"उस युवती का मृत शरीर भी वहीं है ।" नेगी एकाएक शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "ध्यान से देखो । अंधेरा हो चुका है । रोशनी का अच्छा इंतजाम करो । फिर देखो-वहां...।"
"रोशनी वहां पर जबरदस्त है । हम पूरा इंतजाम करके वहां गए थे ।" इंस्पेक्टर ने कहा--- "अभी भी वहां तीसरे शरीर की तलाश की जा रही है । रोशनियां हर तरफ डाली जा रही हैं ।"
"फिर भी तो अंधेरा तो अंधेरा होता है ।" नेगी शब्दों को चबाकर बोला--- "सुबह दिन की रोशनी निकलने पर, पूरी खाई को छानना होगा । अगर अब तक युवती का मृत शरीर कहीं नहीं मिला तो वो कहीं और पड़ा होगा । जरूर मिलेगा। जब वैन खाई में गिरी तो हो सकता है, वैन का दरवाजा खुल गया हो और वो बाहर जा गिरी हो । तब भी जिंदा नहीं बच सकती ।"
"ठीक है सर । जांच दल को मैं नीचे ही रुकने का संदेश पहुंचा देता हूं । उनका खाना-पीना नीचे ही पहुंचा दिया जाएगा । सुबह दिन का उजाला फैलने पर वे वहां का जर्रा-जर्रा चैक करेंगे ।" इंस्पेक्टर ने सिर हिलाकर कहा ।
इंस्पेक्टर और पुलिस डॉक्टर बाहर निकल गए ।
तभी मोदी बोला ।
"तुम ये क्यों सोचते हो कि वैन जब खाई में गई तो उसका दरवाजा खुला और मोना चौधरी का मृत शरीर बाहर जा गिरा ।
"तो क्या सोचूं ?" सुनील नेगी की आंखें सिकुड़ी।
"ये सोचो कि वैन जब गिरी तो मोना चौधरी ने वैन का दरवाजा खोलकर सुरक्षित ढंग से बाहर छलांग लगा दी और बच गई ।"
"ऐसा होता तो हमें नजर अवश्य आता । हम सब तब ऊपर ही खड़े थे । नेगी के होंठों से निकला ।
"गिरते समय वैन हर वक्त तुम लोगों की नजरों में नहीं रही होगी । कई बार ऐसा हुआ होगा कि वैन तुम लोगों को न दिखी हो।"
सुनील नेगी, इंस्पेक्टर मोदी को घूमने लगा ।
"अपनी सोच बदलो और ये सोचो कि मोना चौधरी नहीं मरी । ठीक मौका देखकर गिरते वक्त वैन को उसने छोड़ दिया । वो निकली । जिंदा है वो । वो डॉक्टर ठीक कह रहा है कि युवती भी जल मरी होती तो, उसके शरीर का कम से कम एक टुकड़ा तो मिलता ।"
"जो भी कहो । मेरा दिल कहता है कि मोना चौधरी का मृत शरीर अवश्य मिलेगा ।" सुनील नेगी शब्दों को चबाकर कह उठा।
"हिमाचल पुलिस ने उसे चुड़ैल एक्सप्रेस का नाम अवश्य दिया है । लेकिन मौत चुड़ैल की भी आती है ।"
"अवश्य आती होगी । लेकिन मैं ये कहना चाहता हूं कि चुड़ैल एक्सप्रेस की लाश नहीं मिली । ऐसे में उसे जिंदा कहा जाएगा ।"
"उसकी लाश मिलेगी ।" सुनील नेगी ने मोदी की आंखों में झांका।
मोदी ने गहरी सांस ली और आंखें बंद कर ली ।
■■■
लता बेचैनी भरे अंदाज में कमरे में टहल रही थी । दोनों हाथ कमर पर बांध रखे थे । हाथों की मुट्ठियां बंद हुई पड़ी थी । देर से वो टहल रही थी और उसका अभी रुकने का इरादा नहीं लगता था।
रात के दस बज रहे थे ।
साढ़े बजे के करीब दरवाजे पर थपथपाहट हुई ।
क्षणिक पल के लिए ठिठकी लता फिर आगे बढ़कर दरवाजे के पास पहुंची।
"कौन ?" उसके होंठों से भिंचा हुआ, मध्यम स्वर निकला ।
"बज्जू ।"
लता ने दरवाजा खोला । बज्जू के भीतर आ जाने के पश्चात दरवाजा बंद किया ।
इस मौसम में भी बज्जू पसीने से भरा हुआ था । माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थी ।
लता की एकटक सख्त नजरें, बज्जू पर टिक चुकी थी।
"बुरी खबर है ।" बज्जू ने लता को देखा--- "रामचंद्र डोगरा, भूरा और मोना चौधरी तीनों ही नहीं बचे ।"
लता ने दांत भींच लिए ।
"भूरे ने ड्राइवर से कंट्रोल खो दिया। गहरी खाई में गिरी वैन । उनकी लाशें तक जल गई ।" बज्जू ने पुनः कहा ।
"सच में बुरा हुआ । मोना चौधरी पर विश्वास था कि मुझे कि वो अजबसिंह पर कैसे भी काबू पा लेगी ।" लता ने एक-एक शब्द को चबाते हुए सिर हिलाया--- "मोना चौधरी की मौत से हमें खरा नुकसान हुआ है ।"
"एक करोड़ रूपया पारसनाथ को दिया, वो नुकसान अलग ।"
लता ने बज्जू को देखा ।
"पारसनाथ से करोड़ों रुपया वापस लिया जाए ?"
लता का सिर इंकार में हिला।
"नहीं । ये गलत बात हो गई । मोना चौधरी ने काम का करोड़ों रुपए लिया था । वो काम पर लग गई थी । उसके बाद ही उसकी मौत हुई। ऐसे में उस रुपये पर हमारा हक नहीं बनता । पारसनाथ वो रुपया हमें लौटाएगा भी नहीं । क्योंकि हमारा सौदा मोना चौधरी के साथ हुआ था । पारसनाथ से नहीं ।" लता ने भिंचे स्वर में कहा ।
"फिर भी कोशिश करके देखने में क्या हर्ज है ।" बज्जू बोला । चंद पलों की सोच के बाद लता ने कहा ।
"बेशक कोशिश करके देख लो । झगड़ा नहीं करना है । बात से पारसनाथ माने तो ठीक ।"
"मैं अभी पारसनाथ से फोन पर बात करता हूं ।" बज्जू ने गम्भीर स्वर में कहा--- "लेकिन अब क्या किया जाए ?"
"देवराज चौहान तो सिंगापुर में है ।" लता बोली ।
"हां । मालूम नहीं उसकी वापसी कब हो । यही मालूम हुआ था कि अभी वो कुछ दिन वापस नहीं लौटेगा।"
"हमारे पास यही दो नाम थे । देवराज चौहान और मोना चौधरी । तीसरा नाम हमारे सामने नहीं है कि जो इस मामले को संभाल सके । अजब सिंह पर काबू पाकर, उसके द्वारा जहाज से माल उतरवा सकें।"
बज्जू लता के सख्त चेहरे को देखता रहा ।
लता के चेहरे पर खतरनाक भावा आ ठहरे थे ।
"मुझे बताओ, मैं क्या करूं ?" आखिरकार बज्जू धीमे-कठोर स्वर में कह उठा ।
"सोचने दो ।" लता ने खतरनाक स्वर में कहा और पुनः चहलकदमी करने लगी।
बज्जू की परेशान निगाह लता को देखती रही फिर सिर झटककर आगे बढ़ा और फोन के पास पहुंचकर रिसीवर उठाया और नम्बर मिलाने लगा । कमरे में बल्ब की पीली रोशनी फैली हुई थी ।
लाइन मिली ।
"हैलो ।" उधर से आवाज आई ।
"पारसनाथ से बात कराओ ।"
"आप कौन हैं ?"
"नाम से मुझे कोई नहीं पहचान सकेगा । बात कराओ ।"
"साहब से इस तरह बात नहीं हो सकेगी । मैसेज और अपना नम्बर दे दीजिए । वो ठीक समझेंगे तो बात कर...।"
"पारसनाथ से कहो, मैं मोना चौधरी के बारे में बात करना चाहता हूं । वो समझ जाएगा ।"
"मोना चौधरी ।"
"हां ।"
पल भर की चुप्पी के बाद आवाज आई ।
"होल्ड करो ।"
बज्जू ने रिसीवर थामें लता को देखा । जिसके चेहरे पर उलझन का जाल नजर आ रहा था । जैसे किसी फैसले पर पहुंचने में वो परेशानी महसूस कर रही हो ।
"कौन हो तुम ?" बज्जू के कानों में पारसनाथ की खुरदरी आवाज पड़ी ।
"पारसनाथ ?"
"हां ।" पारसनाथ का स्वर आया ।
"मैं वो हूं । जिसने एक करोड़ रूपया तुम तक पहुंचाया था।"
"मेरा-तुम्हारा कोई मतलब नहीं । वो पैसा तुमने मोना चौधरी को दिया था ।"
"ठीक कहते हो । मैं उसी सिलसिले में तुमसे बात करना चाहता हूं ।" बज्जू ने संभले स्वर में कहा ।
"तुम्हें जो बात करनी हो मोना चौधरी से करो ।"
"मोना चौधरी जिंदा नहीं रही ।"
दूसरी तरफ से पारसनाथ की आवाज नहीं आई ।
"सुना तुमने ?"
"क्या हुआ उसे ?" पारसनाथ के खुरदरे स्वर में कठोरता आ गई थी।
"उसकी वैन खाई में गिरी। साथ में दो आदमी और भी थे । वो भी मारे गए ।" बज्जू गम्भीर था ।
"खाई में कहां ?"
"बिलासपुर, हिमाचल में ।"
"कुछ पलों बाद पारसनाथ की खरखराती आवाज आई ।
"लाश कहां है ?"
"देखी नहीं । सुना है, लाशें और वैन जलकर कोयला हो गई है । हिमाचल की क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर सुनील नेगी और दिल्ली से आया इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी इस मामले को देख रहे हैं ।"
"इंस्पेक्टर मोदी, दिल्ली से ?"
"तुम जानते हो उसे ?"
"मोना चौधरी सच में नहीं रही ?" इस बार पारसनाथ का भिंचा स्वर उसके कानों में पड़ा।
"अफसोस है कि मोना चौधरी की मौत की खबर, मुझे देनी पड़ रही है ।" बज्जू ने अफसोस भरी गहरी सांस ली और टहलती लता पर निगाह मार कर कहा--- "मैं तुमसे उस करोड़ के बारे में बात करना चाहता हूं ।"
"क्या ?"
"जिस काम के लिए करोड़ रुपए दिया था । मोना चौधरी वो काम नहीं कर पाई । अगर तुम वो पैसा वापस हमें दे देते तो मुझे पूरा विश्वास है कि मोना चौधरी की आत्मा को शांति मिलेगी । वो स्वर्ग में जाएगी ।"
"खुशकिस्मत हो कि इस वक्त फोन पर बात कर रहे हो ।" पारसनाथ की गुर्राहट कानों में पड़ी ।
"क्या मतलब ?"
"अगर मेरे सामने होते तो मैंने अपनी रिवॉल्वर की सारी गोलियां तुम्हारे जिस्म में उतार देनी थी ।" पारसनाथ की आवाज में दरिंदगी भर आई थी--- "मोना चौधरी की जान को दौलत से नहीं तौला जा सकता और तुम करोड़ रुपए वापस लेने की बात कर रहे हो । जबकि वो तुम लोगों का काम करते वक्त जान गंवा बैठी । वैन खाई में कैसे गिरी ?"
"पीछे पुलिस वैन लगी थी । वैन के ड्राइवर ने घबराकर, ड्राइविंग पर से कंट्रोल खो दिया । वैन खाई में जा गिरी ।"
"पुलिस क्यों पीछे लगी ?"
"इंस्पेक्टर सुनील नेगी, मोना चौधरी को पकड़ना चाहता था । वो पीछे था ।"
पारसनाथ की आवाज नहीं आई ।
"उस करोड़ में से आधा-आधा बांट लेते...।" बज्जू ने कहना चाहा ।
"हरामजादे ।" पारसनाथ के होंठों से दरिंदगी भरी गुर्राहट निकली--- "मैं तेरे को...।"
बज्जू ने फौरन रिसीवर रख दिया ।
लता ठिठकी । उसे देखा ।
"क्या हुआ ?" बज्जू का गम्भीर चेहरा देखकर लता ने पूछा ।
"मोना चौधरी की मौत की खबर सुनकर उसका दिमाग हिल गया लगता है । वो गालियां दे रहा है।"
"बज्जू ।" लता के होंठों पर मुस्कान उभरी--- "तुमने कैसे सोच लिया कि वो करोड़ों रुपए वापस दे देगा ।"
बज्जू ने कुछ नहीं कहा । उसके चेहरे पर थकान के भाव नजर आ रहे थे ।
लता के होंठों पर उभरी मुस्कान गायब हो चुकी थी । वो कुर्सी पर जा बैठी । अब उसकी आंखों में वहशी भाव थे । चेहरा खतरनाक भाव से भरा हुआ था ।
"बीचपॉम शिप पर मौजूद वो माल, उसके हाथों से निकलवाना है । उसके पास रहा तो बहुत गलत होगा ।"
बज्जू, लता को देखता रहा ।
लता की वहशी आंखें बज्जू की आंखों से मिली ।
"बीचपॉम जहाज को समन्दर में ही तबाह करा दो ।"
"क्या ?" बज्जू चिहुंक पड़ा ।
लता उसके हक्के-बक्के चेहरे को देखते रही ।
"पूरे जहाज को तबाह ?" खुद को संभालने की असफल चेष्टा की बज्जू ने ।
"ऐसा करना अब मजबूरी हो गई है ।" लता ने सर्द लहजे में कहा ।
"लेकिन जहाज में तो हजारों लोग।"
"हमें अपना काम पूरा करने से मतलब है । कौन मरता है । कितने मरते हैं । इससे कोई मतलब नहीं ।"
बज्जू ने फिर कुछ नहीं कहा ।
"काम कब हो जाएगा ?" लता ने पहले जैसे सर्द स्वर में पूछा ।
"जब कहो । जहाज अभी दूर है । करीब आने में चार-पांच दिन का वक्त लगेगा।
"बेहतर होगा कि बीचपॉम जहाज को हिन्दुस्तान की सीमा में प्रवेश करने से पहले ही तबाह कर दो । काम इस तरह करना कि कोई सोच भी न सके कि ये काम हमारा हो सकता है ।" लता के स्वर में आदेश के पक्के भाव आ गए थे ।
बज्जू ने गम्भीरता से सिर हिला दिया ।
"ये काम कब हो जाएगा ?"
"बीचपॉम शिप हिन्दुस्तान की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकेगा ।" बज्जू एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठा ।
"गुड ।" लता उठ खड़ी हुई--- "अब मैं तुम्हें यहां नहीं मिलूंगी। कहीं जाना है । मुझ तक कोई मैसेज पहुंचाना हो तो अच्छी तरह जानते हो कि किस नम्बर पर कहां बात करनी है ।"
"हां ।" बज्जू ने कहा--- "और मेरा भी यहां कोई काम नहीं । इस जगह को लॉक कर दो । या किसी पहचान वाले को यहां बिठा दो । जो गाय भैंसों की देखभाल करता रहे ।"
लता ने बज्जू की आंखों में झांका ।
"बीचपॉम तबाह हो जाना चाहिए बज्जू ।" लता के स्वर में कठोरता थी--- "सफलता से तुम्हें सब कुछ मिलता रहा है और आगे भी मिलता रहेगा । कामयाब नही हुए तो अंजाम जानते ही हो कि क्या हो सकता है ?"
बज्जू के चेहरे पर दरिंदगी भरी मुस्कान आ ठहरी।
"तुम अच्छी तरह जानती हो कि मुझे सिर्फ सफलता पसंद है । कामयाब होना मेरी आदत है ।"
"ये आदत बनी रहे तो अच्छा रहेगा । सब खुश रहेंगे । मैं नहीं चाहती कि तुम ऊपर वालों को शिकायत का मौका दो ।"
"ऊपर वालों से मुझे शिकायत है ।"
"क्या ?"
"मेरा ओहदा बढ़ाने में वे आना-कानी कर रहे हैं ।" बज्जू ने लता को देखा--- "साल भर पहले जब मुझे श्रीलंका काम के लिए भेजा गया था । तब कहा गया था कि इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम देने पर मेरा ओहदा बढ़ा दिया जाएगा । मैंने ठीक काम किया। परन्तु...।"
"तुम्हें भरपूर पैसा दिया जा रहा है ।" लता कह उठी ।
"मालूम है । लेकिन इस वक्त मैं ओहदे की शिकायत कर रहा हूं । ऊपर वालों ने अपनी बात पूरी नहीं की ।"
लता ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया ।
"अच्छी बात है । इस बारे में मैं ऊपर बात करूंगी ।"
बज्जू कुछ नहीं बोला ।
"शिप उड़ाने के लिए तुम्हें जितने आदमी-हथियार और बारूद चाहिए, मिल जाएंगे । ऊपर फोन कर देना ।"
बज्जू ने गम्भीरता से, सहमति से सिर हिला दिया।
■■■
पुलिस पार्टी खाई में मोना चौधरी का मृत शरीर तलाश कर रही थी । किसी पेड़-झाड़ी में अटका हुआ या किसी जानवर द्वारा खा लिया गया या फिर कहीं पड़ा अधजला शरीर ।
नीचे से पुलिसवाले वायरलैस सेट पर बराबर ऊपर खबर दे रहे थे ।
टैंट में रखे वायरलैस सेट पर, नीचे से आने वाले मैसेज को सुनील नेगी के रिसीव कर रहा था । पास ही मोदी कुर्सी पर पसरा पड़ा था । यदा-कदा पुलिस वाले भीतर आते और नेगी से बात करके चले जाते । चहल-कदमी का माहौल वहां बना हुआ था। भोर के उजाले के साथ ही, अन्य पुलिस पार्टी वहां पहुंची और मोना चौधरी के मृत शरीर की तलाश में खाई में उतर गई थी। सुनील लेगी हर हाल में मोना चौधरी का मृत शरीर तलाश कर लेना चाहता था । रात भर का जगह हुआ था । परन्तु चुस्त नजर आ रहा था । आंखें अवश्य भारी थी ।
मोदी ने रात को कुर्सी पर बैठे ही बैठे दो घंटों की नींद ले ली थी ।
सुनील नेगी ने मोदी को देखा ।
"मोना चौधरी का मृत शरीर ढूंढ कर ही रहेंगे ?" इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने गहरी सांस लेकर कहा ।
"मिल जाएगा मोना चौधरी का शरीर । पेड़-झाड़ियों या कहीं चट्टानों में फंसा होगा ।
"वो जिंदा है ।" मोदी ने पल भर के लिए आंखें बंद की, फिर खोल लीं--- "जिंदा न होती तो अब तक उसका मृत शरीर या शरीर का कोई हिस्सा पक्के तौर पर मिल गया होता।"
"समझ नहीं आता कि तुम मोना चौधरी का मरना स्वीकार क्यों नहीं कर रहे ?" नेगी झल्ला उठा ।
"वो मरी नहीं तो मैं कैसे मान लूं कि वो मर...।"
तभी टैंट का पर्दा उठाकर, एक कॉन्स्टेबल ने भीतर प्रवेश किया ।
"सर ।" वो सुनील नेगी से बोला--- "बाहर दो आदमी आए हैं । उनकी कार पर दिल्ली का नम्बर है । वो इंस्पेक्टर मोदी साहब को पूंछ रहे हैं । मैंने बताया वो यहां है तो उन्होंने भीतर आना चाहा, मैंने दूर ही रोक दिया ।"
मोदी की आंखें सिकुड़ी ।
"कौन है तुम्हारे मिलने वाले ?" सुनील नेगी ने मोदी को देखा ।
"दिल्ली से या कहीं और से कम से कम मेरा मिलने वाला नहीं आ सकता ।" मोदी ने धीमे स्वर में एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "शायद मैं समझ रहा हूं वे दोनों कौन है । उनके नाम पूछकर आओ ।"
कॉन्स्टेबल फौरन बाहर निकल गया ।
सुनील नेगी के चेहरे पर उलझन थी ।
तुरन्त ही कॉन्स्टेबल वापस आया ।
"सर, एक का नाम महाजन है । दूसरे का पारसनाथ...।"
मोदी तुरन्त सीधा होकर बैठ गया ।
"तुम्हारे जानने वाले हैं ।" सुनील नेगी ने पूछा ।
"मोना चौधरी के सगे वाले हैं ।" मोदी के होंठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी--- "यकीनन वो इस हादसे की खबर सुनकर यहां पहुंचे हैं । दोनों ही एक से बढ़कर एक खतरनाक हैं।"
"उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है । वे मोना चौधरी के साथी हैं । गैरकानूनी कई काम कर रखे होंगे ।"
"ठीक कहते हो । लेकिन सबूत कहां से लाओगे ?" मोदी उठ खड़ा हुआ ।
"गिरफ्तारी के बाद सब कुछ बताएंगे ।"
मोदी के होंठों पर गहरी मुस्कान उभरी और ठहर गई।
"पत्थर मुंह खोल सकते हैं लेकिन वे दोनों नहीं ।"
"तुम उनके हक में बात कर रहे हो इंस्पेक्टर मोदी...।"
"नेगी साहब । तुमने उनका नाम सुना है । उनके बारे में कुछ जानते नहीं और गिरफ्तार करने की सोचने लगे कि कलाइयों में हथकड़ी देखकर, या वर्दी देखकर अपने जुर्मों के बारे में बता देंगे । ऐसा होता तो दिल्ली पुलिस ने अब तक सब निपटा दिया होता । तुमने पहले भी मेरे शब्दों को गम्भीरता से नहीं लिया था, जब मैंने मोना चौधरी के बारे में बताया था । अब इन दोनों को आसान समझ रहे हो। मेरी तरफ से कोई इंकार नहीं है । बेशक दोनों को गिरफ्तार कर लो ।"
सुनील नेगी ने दांत भींच लिए ।
मोदी ने बाहर जाने के लिए कदम आगे बढ़ाया ।
"उन दोनों के पास जा रहे हो ?" नेगी ने तो कहा।
"हां । वो मोना चौधरी के बारे में मालूम करने आए हैं । उन्हें जब बताऊंगा कि वो जिंदा है तो दोनों की सांस में सांस आएगी ।"
"मोना चौधरी जिन्दा नहीं है ।"
"ये तुम्हारा अपना विचार है । लेकिन मैं जो कह रहा हूं, हकीकत वो ही है ।"
■■■
"वो रहा मोदी ।" महाजन ने घूंट भरा और बोतल पैंट में फंसा ली । वो सड़क के किनारे खड़ी अपनी कार से टेक लगाए हुए थे । सड़क पर वाहन आ-जा रहे थे ।
मोदी को टैंट से बाहर निकलते पाकर, पारसनाथ का खुरदरा चेहरा कठोर हो गया ।
महाजन परेशान नजर आ रहा था ।
दोनों रात से ड्राइविंग करके, अब यहां पहुंचे थे ।
मोना चौधरी की मौत उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी । लेकिन कब क्या हो जाए, कुछ पता नहीं था । अपने सोर्स द्वारा घटनास्थल की जानकारी पाकर वो सीधा यहां पहुंचे थे । कभी तो उन्हें विश्वास आने लगता कि सच में मोना चौधरी अब इस दुनिया में नहीं रही, तो कभी लगता उन्होंने गलत सुना है । मोना चौधरी सलामत है।
मोदी उनके पास पहुंचा ।
"तू था मोना चौधरी की वैन के पीछे ?" गुर्राकर पूछा, महाजन ने ।
"नहीं ।" मोदी ने शांत स्वर में कहा--- "इंस्पेक्टर सुनील नेगी था ।"
"कहां है वो हरामजादा ।" महाजन के चेहरे पर दरिंदगी के भाव नाचने लगे थे ।
"उधर टैंट में जहां से मैं निकला हूं ।"
महाजन के दांत भिंच गए । वो टैंट की तरफ बढ़ने को हुआ कि पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा ।
"रुक जा महाजन।"
महाजन ने खा जाने वाली निगाहों से पारसनाथ को देखा ।
"यहां पुलिस वाले हैं ।"
महाजन दांत किटकिटा उठा ।
"मत भूलो कि मैं भी पुलिस वाला हूं ।" मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अपने पर काबू रखो ।"
"नहीं तो क्या कर लेगा तू ?" महाजन ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा । आंखें लाल हो रही थी ।
मोदी कई पलों तक महाजन की सुर्ख आंखों में देखता रहा फिर कह उठा।
"बेकाबू होने का कोई फायदा नहीं । तुम...।"
"मोना चौधरी के साथ क्या हुआ ?" पारसनाथ ने खुरदरे कठोर स्वर में पूछा ।
मोदी ने सब कुछ बताया । उसके बाद कहा।
"मेरी निगाहों में, सोचो में, वो जिंदा है । उसके शरीर का कोई जला हिस्सा नहीं मिला । मृत शरीर नहीं मिला ।"
महाजन और पारसनाथ की नजरें मिली ।
"यानी कि मोना चौधरी की मौत की अभी पुष्टि नहीं हुई ?" पारसनाथ का हाथ अपने खुरदरे गाल पर जा पहुंचा ।
"नहीं । नेगी कहता है मोना चौधरी नहीं रही । लेकिन मेरी निगाहों में वो शत-प्रतिशत जिंदा है ।"
"सच कह रहा है ?" महाजन की गुस्से से भरी आवाज में हल्का-सा कम्पन उभरा।
"अपनी सोचों के हिसाब से तो सच ही कह रहा है ।" मोदी गम्भीर था ।
महाजन के होंठ हिले । लेकिन कुछ कह न सका ।
"कब तक ये बात स्पष्ट हो जाएगी कि मोना चौधरी के साथ क्या हुआ ? वो ठीक है या नहीं ?" पारसनाथ बोला ।
"मेरे हिसाब से तो ये बात स्पष्ट हो चुकी है ।" मोदी ने कहा--- "इंस्पेक्टर नेगी अपनी तसल्ली करने में लगा हुआ है । दो-तीन घंटों में वो भी यही कहने लगेगा कि मोना चौधरी जिंदा है । पुलिस पार्टियां खाई में है । कभी भी वापस आ सकती हैं ।"
"हम यही हैं ।" पारसनाथ खुरदरे कठोर स्वर में बोला--- "पुलिस इस फैसले पर पहुंचे, हमें बता देना ।"
"अवश्य । ये काम करने में मुझे कोई परेशानी नहीं ।"
तभी टैंट से सुनील नेगी बाहर निकला । उसने उधर देखा।
"वो है इंस्पेक्टर सुनील नेगी ?" महाजन की खतरनाक निगाह नेगी पर जा टिकी थी ।
मोदी ने उधर देखा ।
"हां ।"
"बुला उसे ।" महाजन की आवाज में दरिंदगी भर आई ।
"महाजन ।" पारसनाथ ने खुरदरे कठोर स्वर में टोका--- "अभी चुप ।"
"मैं उसे कुछ कह नहीं रहा । बात करूंगा ।" महाजन का स्वर पहले जैसा ही था ।
नेगी को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी । वो खुद ही इस तरफ आने लगा ।
महाजन की सुलगती निगाह सुनील नेगी पर जा टिकी ।
पारसनाथ भी खतरनाक नजरों से नेगी को देखने लगा।
मोदी के चेहरे पर व्याकुलता नजर आने लगी ।
पास पहुंचकर सुनील नेगी ठिठका । दोनों को पुलिसया ढंग से घूरा ।
"तो तू पीछा कर रहा था बीवी का ।" महाजन गुर्रा उठा ।
नेगी की आंखें सिकुड़ी ।
"बेबी ?"
"ये मोना चौधरी की बात कर रहा है ?" मोदी ने जल्दी से कहा।
"गैर कानूनी काम करने वालों का पीछा करना ही हमारी ड्यूटी है ।" सुनील नेगी ने शब्दों को चबाकर दोनों को बारी-बारी देखा--- " बात करने का लहजा ठीक रखो । वरना मैं तुम जैसे लोगों के साथ शराफत से पेश नहीं आता ।"
महाजन की आंखें सुलग उठी ।
पारसनाथ कठोर निगाहों से उसे देखता, अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा ।
महाजन दांत भींचे आगे बढ़ा । सुनील नेगी के करीब पहुंचकर ठिठका ।
मोदी सतर्क हो उठा ।
"तो तू हम जैसे लोगों के साथ शराफत से पेश नहीं आता ?" महाजन के होंठों से गुर्राहट निकली।
"नहीं मैं...।"
"तो क्या करता तू...तू...।"
"तुम लोगों को अन्दर बंद करके ऐसे डंडे लगाऊंगा कि...।"
तभी महाजन के हाथ ने फुर्ती से हरकत की । जेब से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में आ दबी थी । दूसरे ही पल रिवॉल्वर नेगी के पेट से जा सटी । खूंखारता से भरे भाव थे, महाजन के चेहरे पर।
अचकचा उठा सुनील नेगी । उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है । जबकि वहां पुलिस वाले फैले हो । उसके हाथ बरबस ही पेट पर सटी रिवॉल्वर पर जा टिके ।
"हम उन लोगों में नहीं आते, जिन्हें तू डंडे लगा सके ।" महाजन ने पूर्ववतः स्वर में कहा ।
"तुम...तुम लोगों की ये हिम्मत ।" नेगी के होंठों से निकला।
"इतने पुलिस वालों के बीच रिवॉल्वर निकाल ली । इसका लाइसैंस भी तुम लोगों के पास नहीं होगा । अब तुम अपनी गिरफ्तारी से नहीं बच...।"
"गोली चलाऊं ?" महाजन गुर्राया ।
"क्या ?" नेगी को पहली बार घबराहट हुई ।
पारसनाथ करीब आया और खुरदरे स्वर में, बेहद सख्त लहजे में बोला ।
"होश में रहो इंस्पेक्टर इस वक्त फालतू बात न करके मोना चौधरी के बारे में बात करो ।"
सुनील नेगी ने होंठ भींचकर मोदी को देखा ।
"तुम...तुम इनसे बात करो । ये तुम्हें पुराना जानते हैं । ये जो हरकत कर रहे हैं...वो...।"
"मैं इन्हें पुराना जानता हूं तभी तो कह रहा हूं कि वर्दी का रौब इन पर मत झाड़ो ।" मोदी ने गम्भी रस्वर में कहा--- "पारसनाथ ठीक कह रहा है कि इस वक्त मोना चौधरी के बारे में बात करो । दिल का बोझ फिर कभी हल्का कर लेना।"
नेगी, मोदी को घूरने के बाद महाजन को देखने लगा । उसका चेहरा बता रहा था कि ये सब उसके साथ पहली बार हो रहा है । किसी ने इस तरह सरेआम रिवॉल्वर उसके साथ नहीं लगाई ।
"इंसानों की बात करना ।" महाजन उसके पेट से रिवॉल्वर हटाकर वापस अपनी जेब में डालता हुआ बोला--- "इस भ्रम में मत रहना कि यहां पुलिस वाले फैले हुए हैं ।"
सुनील नेगी होंठ भींचकर रह गया ।
मोदी सतर्क-सा खड़ा महाजन-पारसनाथ को देख रहा था।
"मोना चौधरी के पीछे क्यों था तू ? वो यहां क्या कर रही थी ?" पारसनाथ ने भिंचे स्वर में पूछा ।
"मैं नहीं जानता वो यहां क्या कर रही थी । मोना चौधरी के बारे में इंस्पेक्टर मोदी ने खबर दी । मोना चौधरी नजर आ गई तो उसका पीछा करने लगा कि उसे गिरफ्तार कर सकूं । इतने में ही वैन खाई में जा गिरी ।" सुनील नेगी बारी-बारी दोनों को देखता हुआ कह उठा--- "मैं नहीं जानता मोना चौधरी क्या कर रही थी बिलासपुर में।"
"कुछ तो पता होगा कि वो किस काम के फेर में थी ?" महाजन सख्त स्वर में बोला ।
"नहीं मालूम ।"
"तू क्या कहता है कि वो मर गई ?" महाजन पहले जैसे स्वर में बोला ।
सुनील नेगी ने सहमति से सिर हिलाया ।
"बेबी की लाश मिली ?"
"नहीं ।"
"जा ।" पारसनाथ भिंचे स्वर में बोला--- "मोना चौधरी की लाश देख, ढूंढ, मिले या न मिले, हमें बता, हम यहीं पर हैं ।"
दोनों को घूरने के बाद नेगी ने मोदी को देखा ।
मोदी ने सहमति से सिर हिलाया तो गुस्सा समेटे नेगी पलट कर वहां से चला गया ।
"गुस्सा मत करो ।" मोदी गम्भीर स्वर में बोला--- "मुझे पूरा विश्वास है कि मोना चौधरी जिंदा है।
■■■
दोपहर के तीन बज रहे थे ।
खाई में गई दोनों पुलिस पार्टियां वापस आ गई थी । मोना चौधरी की लाश या ऐसा कुछ भी नहीं मिला था कि, जिससे वहां मोना चौधरी के वजूद की मौजूदगी का एहसास हो सके ।
ऐसी में किसी भी सूरत में मोना चौधरी को मरा नहीं माना जा सकता था
सुनील नेगी, मोना चौधरी का मृत शरीर न मिलने पर परेशान सा हो उठा था।
"मैंने पहले ही कहा था कि मोना चौधरी जिंदा है । उसे कुछ नहीं हुआ ।" मोदी ने मुस्कुराकर शांत स्वर में कहा ।
"लाश न मिलने का मतलब ये तो नहीं कि वो जिंदा है ।" नेगी कड़वे स्वर में कह उठा।
"मोना चौधरी मरेगी तो लाश मिलेगी ।" मोदी ने उठते हुए कहा ।
"पारसनाथ और महाजन के पास जा रहे हो ।" सुनील नेगी का स्वर सख्त हो गया ।
"हां । वो बाहर इंतजार...।"
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम उनकी इतनी परवाह क्यों कर...।"
"मोना चौधरी कई बार मेरी जान बचा चुकी है ।" मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि उन्हें छोड़ दूंगा । मेरे पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं कि उन्हें गिरफ्तार कर...।"
"गिरफ्तार तो मैं कर लूंगा । गिरफ्तार क्या, मौका मिलते ही दोनों को शूट कर दूंगा । है तो वो मोना चौधरी के साथी ही ।"
"नेगी ।" मोदी होंठ सिकोड़कर बोला--- "मैंने तुम्हें जो समझाना था, समझा दिया ।" इसके साथ ही वो आगे बढ़ा और झुकते हुए टैंट का पर्दा उठाया । बाहर निकल गया ।
घर की तरफ उसने नजर मारी । पारसनाथ पीछे वाली सीट पर बैठा था । उसे बाहर आते पाकर कार से बाहर निकल आया। उसे देखकर महाजन ने खुली बोतल से घूंट भरा और बोतल बंद करके कार के भीतर सीट पर रख दी ।
मोदी उनके पास आ पहुंचा ।
"खाई में मोना चौधरी का मृत शरीर नहीं मिला ।" मोदी ने धीमे स्वर में कहा ।
"मुझे पूरा विश्वास है कि बेबी जिंदा है ।" महाजन तीखे स्वर में कह उठा।
"ये ख्याल मेरा तब ही बन गया था, जब शुरू में ही मोना चौधरी का शरीर नहीं मिला था ।" मोदी बोला--- "मैंने तुम दोनों को अच्छी खबर दी है ।"
पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए मोदी से कहा ।
"तुम्हें सच में नहीं मालूम कि मोना चौधरी यहां किस काम में थी ?"
"मालूम होता तो अवश्य बता देता ।"
"बिलासपुर में वो किसी से मिली थी ?"
"मुझे खबर नहीं।"
"वो यहां किसी से मिली थी ।" महाजन अपने शब्दों को चबाकर कह उठा--- "उसके साथ दो और लोग भी थे । जबकि तुम पहले ही बता चुके हो कि इंस्पेक्टर नेगी ने जब उसे गिरफ्तार करने की चेष्टा की तो वो अकेली कार को ड्राइव कर रही थी । उसके बाद बेबी एक रात तुम लोगों की निगाह से दूर रही । उसकी कोई खबर नहीं मिली । फिर जब दिखी तो एम्बुलेंस में नर्स के भेष में बिलासपुर से निकलने जा रही थी । जाहिर है कि कुछ लोग उसे बिलासपुर से निकालने की चेष्टा में थे ।"
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया।
"तुम्हारा क्या ख्याल है मोदी । मोना चौधरी यहां से निकल जाती तो कहां जा सकती थी ?"
"कह नहीं सकता ।" मोदी ने लापरवाही से कहा--- "क्या मालूम उसने कहां जाना था । अब बेहतर यही होगा कि तुम लोग यहां से चले जाओ । इंस्पेक्टर सुनील नेगी तुम लोगों की मौजूदगी की वजह से कुछ ज्यादा ही गुस्से में है । कहने के साथ ही मोदी पलटा और सड़क पार करता हुआ, उन पुलिस वालों की तरफ बढ़ गया, जो कल के गए, कुछ पहले ही खाई से लौटे थे।
"मोना चौधरी यहां से दूर नहीं है ।" पारसनाथ पुलिस वालों पर नजरें मारकर बोला--- "उसने किसी से, कोई काम करने के लिए करोड़ों रुपया लिया है । यहां से बचकर वो उस काम को पूरा करने निकल गई होगी ।"
"यहां से चलो ।" महाजन दरवाजा खोलकर स्टेयरिंग सीट पर बैठता हुआ बोला--- "आगे चलते हैं । कोई ठीक जगह देखकर होटल में कमरा ले लेंगे और बेबी से बात करने का इंतजार करेंगे।"
"बात करने का इंतजार ?" कार में बैठते हुए पारसनाथ ने महाजन को देखा ।
"हां । मोबाइल फोन मेरे पास है और बेबी के पास नम्बर है ।"
पारसनाथ का हाथ तुरन्त अपनी जेब में पड़े मोबाइल फोन पर गया ।
"तुम्हारा मोबाइल का नम्बर भी बेबी के पास है ?" महाजन ने पूछा ।
"नहीं । मेरा नम्बर नया है ।"
महाजन ने कार आगे बढ़ा दी।
"अठाईस साल उम्र है मेरी । मालूम है अभी तक मैंने शादी क्यों नहीं की ?" ड्राइविंग करते हुए वो हंसकर बोला ।
मोना चौधरी ने मुस्कुराकर उसे देखा ।
"क्यों नहीं की ?"
"क्योंकि पहले तुम नहीं मिली थी ।" उसने मुस्कुराकर मोना चौधरी को देखा फिर सामने देखने लगा--- "अगर तुम पहले मिल गई होती तो, मैंने तुमसे कब की शादी कर ली होती, दो-तीन बच्चे तो हो ही गए होते अब तक ।"
"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुमसे शादी कर लूंगी ।"
"शादी हो गई है क्या तुम्हारी ?"
"नहीं।"
"फिर मुझसे शादी करने में क्या एतराज है । नर्स की नौकरी में तुम भला क्या तनख्वाह लेती होगी । हमारे पास तो सौ से ऊपर नौकर हैं । हर महीने उनकी तनख्वाह ही पांच-छः लाख रुपये बनती है । मैं अपने मां-बाप का अकेला लड़का हूं । सब कुछ तो मेरा है । आठ कारें और वैगन है हमारे पास । दो शानदार होटल है और...।"
"होटल ?" मोना चौधरी की निगाह उस पर जा टिकी थी ।
"हां । दो होटल है भून्तर में । एक मनाली में भी है और कई काम है पापा के । मैं तो कब से तुम जैसी खूबसूरत लड़की की तलाश में था । मां शादी के लिए कहती रहती है । लेकिन कोई पसन्द नहीं आ रही थी ।"
"अब पसन्द आ गई ?" मोना चौधरी मुस्कुराई । मन ही मन वो सतर्क हो चुकी थी।
"हां । तुम पसन्द आ गई । लेकिन मेरी मां को मत बताना कि तुम नर्स हो । वो बड़े घर की बहू चाहती हैं । मैं तुम्हें समझा दूंगा कि मां से कैसे बात करनी है । सब ठीक हो जाएगा ।"
"शादी के बाद तो पता चल ही जाएगा कि मेरा घराना खास नही....।"
"तब कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।" वो हौले से हंसा--- "मां कोई मुसीबत खड़ी नहीं करेगी । वो इज्जतदार है । बहू की इज्जत करनी आती है उसे । जैसे मैं कहूं, वैसे ही मां से बात करना । सब बढ़िया रहेगा ।"
मोना चौधरी खिड़की से बाहर देखने लगी ।
छोटी-सी विदेशी कार, सर्पाकार पहाड़ी सड़क पर दौड़ी जा रही थी
"सच मानो । मेरे पापा के पास बे-शुमार दौलत है । मेरे से शादी करके जिंदगी भर के मजे लोगी ।"
"मुझे मालूम है तुम सच कह रहे हो ।" मोना चौधरी ने मुस्कुराकर उसे देखा--- "तुम्हारे पापा का नाम क्या है ?"
"अजबसिंह की हस्ती हैं वो ।" उसने शान भरे ढंग में कहा ।
मोना चौधरी ने मन ही मन गहरी सांस ली ।
वो सोच भी नहीं सकती थी कि अजबसिंह के बेटे से इस तरह मुलाकात हो जाएगी ।
जब एम्बुलेंस वाली वैन भूरे के कंट्रोल से बाहर हुई और खाई में लुढ़कने को हुई थी तभी मोना चौधरी ने साईड का दरवाजा खोला और फुर्ती से नीचे कूद गई । तब तक वैन लुढ़क चुकी थी । वो ज्यादा नहीं गई थी, जब वो खुद ही तो सीधी खाई थी । यकीनन उसने नीचे लुढ़क जाना था अगर वो झाड़ी उसके हाथों में न आ जाती । झाड़ी की जड़े, पहाड़ी में गहरी धंसी हुई थी । उसने मोना चौधरी का बोझ संभाल लिया । उसके बाद उसके देखते-देखते पहले वैन पेड़ की मोटी डाल पर अटकी फिर नीचे जा गिरी ।
ऊपर वाहन रुकने और बातों की मध्यम-सी आवाजें उसके कानों में पड़ने लगी।
वो जानती थी कि कुछ ही देर में यहां पुलिस ही पुलिस होगी । नीचे गहरी खाई थी, जरा भी लापरवाह होने का मतलब था, सैकड़ों फीट गहरी खाई में गिर जाना । लेकिन यहां रुका भी नहीं जा सकता था । बिना वक्त गंवाये वो झाड़ियों, छोटे-छोटे पौधों और उभरी चट्टानों पर हाथ-पांव टिकाए, वहां से दूर खिसकने लगी । इस दौरान कई बार उसका हाथ या पांव फिसलते-फिसलते बचा ।
एक घंटे की मेहनत के पश्चात वहां से दूर हो गई तो धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगी । सड़क तक पहुंचने में उसका बुरा हाल हो गया था । नर्स की सफेद यूनिफॉर्म पर हर जगह मिट्टी की मिट्टी लग चुकी थी । सांस उखड़ सी रही थी । जहां से वैन नीचे गिरी थी। वो जगह पीछे छूट गई थी । परन्तु यहां भी उसके लिए खतरा था । वो नर्स के कपड़ों में थी । कभी भी गड़बड़ हो सकती थी ।
तभी सामने से तेज रफ्तार से कार आती दिखाई दी ।
मोना चौधरी फौरन सड़क से दूसरी तरफ आई और लिफ्ट के लिए कार को हाथ देने लगी।
कार फौरन उसके पास आकर रुकी ।
"हैलो ।" ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक बोला--- "क्या दिक्कत हो गई आपको ?"
"मैं नर्स हूं । एक मरीज को लेकर कुल्लू जा रही थी कि मरीज मुझे एम्बुलेंस से बाहर धकेलकर लेकर भाग गया । प्लीज, मेरी हैल्प कीजिए । मुझे कुल्लू पहुंचना है ।"
"बैठ जाइए ।"
मोना चौधरी भीतर आ बैठी । कार पुनः आगे बढ़ गई ।
"मैडम ! सच बात तो ये है कि अगर आपने लिफ्ट के लिए हाथ न दिया होता तो भी मैं कार रोकता।"
"क्यों ?" मोना चौधरी के होंठों से निकला।
"क्योंकि आप हैं ही इतनी खूबसूरत ।"
जवाब में मोना चौधरी मुस्कुराकर रह गई ।
"मैं तो कब से आप जैसी खूबसूरत लड़की की तलाश में था, जो देखते ही अच्छे लगे ।"
"आप तो मजाक कर रहे हैं ।"
"मेरे सच को मजाक मत कहिये ।"
मोना चौधरी की निगाह उसके चेहरे पर जा टिकी ।
उसके बाद जो बातचीत हुई, पाठकों ने वो अभी पढ़ ही ली है ।
मोना चौधरी की निगाहों में अजब सिंह दूर था । परन्तु वो अचानक ही करीब लगने लगा था ।
"क्या मालूम तुम्हारे पापा मुझे पसन्द न करें ।"
"उनकी परवाह मत करो । पापा मजेदार आदमी हैं ।" वो हंसा--- "मेरी बात वो कभी नहीं टालते । तुम्हारे घर में कौन-कौन है ?"
"मेरी मां है । गुड़गांव में रहती है । आंखों से कम दिखता है । मेरी नौकरी ऐसी है कि उसके पास नहीं रह सकती । पड़ोस में ही मामा का मकान है । मुझे जब भी छुट्टी मिलती है । मां से मिल आती हूं ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।
"मतलब की मां की तरफ से कोई रुकावट नहीं ।"
"नहीं । लेकिन मेरी तरफ से रूकावट हो सकती है । मैं तुम्हें नहीं जानती । अभी तक तुमने अपना नाम भी नहीं बताया । ऐसे में शादी...।"
"संजीव सिंह नाम है मेरा । भून्तर में सब जानते हैं ।"
"मेरा नाम सुधा है ।"
"आह ! मैं नहीं जानता था कि मेरी पत्नी का इतना प्यारा नाम होगा ।" संजीव सिंह ने गहरी सांस लेकर कहा।
मोना चौधरी मुस्कुराई ।
"क्या हुआ ?"
"संजीव सिंह भी अच्छा नाम है ।"
"तुम्हें पसन्द आया ?" उसने जल्दी से कहा ।
"पसन्द नहीं भी आया होता तो भी काम चला लेती ।" मोना चौधरी हौले से हंसी ।
कार भून्तर की तरफ दौड़े जा रही थी ।
मोना चौधरी की मंजिल करीब आती जा रही थी ।
■■■
0 Comments