बम्बई में ।
विनायक राव वाडेकर, अपने आफिस में, एग्जिक्यूटिव चेयर में पसरा सिगरेट फूंक रहा था । वह ठिगने कद का भारी बदन आदमी था । जवानी के दौर में पहलवान रहा विनायक राव अब पचास के पेटे में पहुंच चुका था । हालांकि मोटापा दूर करने का हर मुमकिन इलाज उसने किया था । लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुआ । और उसका जिस्म चर्बी का ढ़ेर सा बनकर रह गया ।
उसकी उंगलियों में दबा सिगरेट खत्म होने वाला था । उसी से नया सिगरेट सुलगाकर उसने बेचैनी से पहलू बदला । अचानक बदल गए हालात ने उसे भारी चिंता में डाल दिया था । मनमोहन सहगल की कथित आत्महत्या के समाचार को पूरा एक दिन भी नहीं गुजरा था कि शमशेर सिंह का टेलोग्राम आ पहुंचा ।
उसने डेस्क पर पड़ा टेलिग्राम उठा लिया । जाहिरा तौर पर वो अलाइड कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी की मीटिंग की सूचना थी । जो कम्पनी के वकील द्वारा दी गई थी । विनायक राव भी उस कंपनी के डाइरेक्टरों में से एक था ।
लेकिन वास्तव में वो उस ऑर्गनाइजेशन के प्रमुखों की मीटिंग का बुलावा था । जिसका एक बड़ा ओहदेदार शमशेर सिंह था । आम तौर पर, ऐसी मीटिंग तभी बुलायी जाती थी जब आर्गेनाइजेशन ने कोई नया प्रॉजेक्ट शुरू करना होता था । मनमोहन की मौत के फौरन बाद इस मीटिंग के बुलाए जाने का सिर्फ एक ही मतलब हो सकता था–भारी गड़बड़ ।
वह देर तक बैठा सोचता रहा । अंत में उसने यूं संतुष्टि पूर्वक सर हिलाया मानों सही निश्चय पर पहुंच गया था ।
* * * * * *
विश्वास नगर में ।
शानदार लिबास वाले स्थूलकाय कमलकांत शर्मा ने टेलीग्राम पढ़कर डेस्क पर डाल दिया । और सामने खड़े आदमी पर निगाह डाली ।
–'तुम अमरकुमार के बॉडी गार्ड हुआ करते थे, रोशन ।' वह बोला–'मुझे न तो यहां किसी असिस्टेंट की जरूरत है और न ही मैंने शमशेर सिंह से कोई आदमी मांगा था । मैं इस कैसिनो को बिना किसी की मदद के पूरे दस साल से चलाता आ रहा हूँ । फिर तुम अमरकुमार और विशालगढ़ को छोड़कर यहाँ क्यों आ गए ?'
ठिगने कद और भारी, मजबूत बदन वाले रोशन का चेहरा भावविहीन था ।
–'मैं सिर्फ वही करता है, जो मुझ से कहा जाता है । मिस्टर शर्मा ।' वह कंधे उचकाकर बोला–'अमरकुमार के नखरों से मैं बुरी तरह ऊब चुका था । इसलिए जब बिग बॉस ने मुझे यहाँ आने का मौका दिया तो मैंने हाथों हाथ उसे लपक लिया ।'
कमलकांत ने चंद पल सोचा फिर सर हिला दिया ।
–'ठीक है ।' वह बोला–'फ्लोर मैनेजर से मिल लो । बह फिलहाल तुम्हें किसी काम पर लगा देगा । उसने टेलिग्राम की ओर इशारा किया–'दो–एक दिन में मैं शमशेर सिंह से मिलने वाला हूँ । उससे बातें करने के बाद ही तय किया जाएगा तुम्हारे लिए क्या ठीक रहेगा ।'
–'राइट, सर ।'
रोशन सधे हुए कदमों से चलता हुआ आफिस से निकल गया ।
कमलकांत ने इस बातचीत के दौरान उसे बड़ी बारीकी से वाच किया था । रोशन के व्यवहार में आई भारी तब्दीली नोट करने के कारण वह परेशानी सी महसूस कर रहा था । पिछली दफा जब उसने अमरकुमार के साथ रोशन को देखा था तब रोशन एक ऐसा आज्ञाकारी सेवक था जो अपने मालिक को खुश रखने के लिए उत्सुक रहता था । लेकिन अब उसके स्वभाव में अजीब सा हैकड़ीभरा आत्मविश्वास आ गया था । और ऐसे किसी आदमी पर पूरी तरह भरोसा वह नहीं कर सकता था ।
कमलकांत ने अपनी गरदन को यूं झटका दिया मानों इस तरह रोशन को अपने दिमाग से झटकना चाहता था ।
वह मनमोहन सहगल के बारे में सोचने लगा । मनमोहन की मौत की खबर से उसे भारी शॉक लगा था । और उससे भी ज्यादा शॉक उस खबर से लगा । जिसके मुताबिक, मनमोहन को इसलिए ठिकाने लगाया था क्योंकि ऑर्गेनाइजेशन की ओर से होटल गगन खरीदने के लिए जो पेमेंट उसने की थी । उसमें बीस लाख रुपए एक अपहरण कांड की फिरौती की रकम थी ।'
जहां तक कमलकांत का सवाल था । वह शुरू से ही इस बात के खिलाफ था कि ऑर्गेनाइजेशन किसी भी तरह की जायदाद, होटल वगैरा खरीदने या किसी अन्य जायज धंधे में अमरकुमार को बतौर फ्रंटमैन इस्तेमाल करके पैसा लगाए । लेकिन खुद कमलकांत ऑर्गेनाइजेशन के जिन मेंबर्स का प्रतिनिधित्व करता था । उनके पास गलत तरीकों से कमाया गया दो नम्बर का पैसा इतना ज्यादा था कि उसे जायज तरीके से इनवेस्ट करना तो दूर रहा उसे जाहिर भी वे नहीं कर सकते थे । जबकि उसी पैसे को इस ढंग से इनवेस्ट करने में कोई झंझट उनके सामने नहीं था । बरसों से यही सिलसिला चला आ रहा था ।
अचानक उसकी आंखें सिकुड़ गई । मनमोहन को जो रकम भेजी गई थी वो चार सोर्सेज से आई थी । और उनमें से एक सोर्स वह खुद था । उसने बेचैनी से पहलु बदला । क्या रोशन को इसीलिए विश्वास नगर भेजा गया था ? क्या वे लोग समझ रहे थे फिरौती वो रकम उसी रकम में शामिल थी जो उसने मनमोहन को भेजी थी ?
वह देर तक सोचता रहा । लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका ।
* * * * * *
कलकत्ता में ।
भारी बदन वाले अविनाश मुखर्जी की शानदार कोठी के ड्राइंग रूम में कीमती लिबास वाले दो अधेड़ मौजूद थे । देखने में ही धूर्त नजर आने वाले उन दोनों के चेहरे पर खीज भरे भाव थे । उनमें से एक का नाम केदारनाथ था और दूसरे का नारायन दास ।
उनके सामने बैठे अविनाश मुखर्जी ने जेब से टेलिग्राम निकाल कर उनकी ओर बढ़ाया ।
उन दोनों में पढ़कर टेलिग्राम वापस दे दिया ।
–'आप मीटिंग अटेंड करने जाएंगे ?' केदारनाथ ने पूछा ।
–'हाँ ।' मुखर्जी बोला ।
–'लेकिन आपकी किसी मीटिंग में कोई दिलचस्पी मुझे नहीं है ।' नारायनदास तनिक क्षुब्ध स्वर में बोला–'मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूँ मेरी रकम कब वापस मिलेगी । सी० आई० डी० ने जो रकम पकड़ी थी उसमें आठ लाख रुपए मेरे थे । क्योंकि रकम पकड़ी जाने के लिए मैं कतई जिम्मेदार नहीं हूँ । इसलिए मुझे अपनी रकम वापस चाहिए ।'
–'मैं भी अपना पैसा वापस चाहता हूँ । केदारनाथ बोला–'फिरौती की रकम से कतई कोई वास्ता मेरा नहीं है । मैंने अपनी गाढ़ी कमाई के छह लाख रुपए दिए थे । हम पन्द्रह दिन से ज्यादा इन्तजार नहीं कर सकते । अगर इस बीच हमारा पैसा वापस नहीं मिला तो हम कम्पनी के चेयरमैन और प्रेसिडेंट का दरवाजा खटखटाएंगे ।
मुखर्जी के चेहरे पर व्याकुलतापूर्ण भाव उत्पन्न हो गए ।
–'ठीक है ।' वह बोला–'मैं शमशेर सिंह तक तुम्हारा मैसेज पहुंचा दूंगा ।'
* * * * * *
बार काउंटर पर व्हिस्की की चुस्कियाँ लेता मदन, फोन कॉल का इन्तजार कर रहा था । करीब दस मिनट पहले जब बार में आया था तो बार टेंडर ने बताया उसके लिए तीन बार किसी का फोन आ चुका था और फोन कर्ता ने जल्दी ही फिर फोन करने के लिए कहा था ।
फलस्वरूप मदन इन्तजार कर रहा था ।
सांवली रंगत, औसत कद बुत और चेहरे पर चेचक के हल्के दागों वाला करीब पैंतीस वर्षीय मदन बहुत ही पहुंची हुई चीज था । पेशे से जेबकतरा और पत्तेबाज़ मदन अपने काम में इतना माहिर था कि न तो कभी जेब काटता हुआ पकड़ा गया और न ही कभी जुए में ताश के पत्ते लगाता हुआ । उसकी निगाहें इतनी तेज थीं कि आदमी को देखते ही उसकी खसलत पहचान लेता था । ठाठ से रहने के अलावा उसका इकलौता शौक था घूमना । किसी एक शहर में ज्यादा दिन रह पाना उसके वश की बात नहीं थी । अपनी खुला खर्च करने की आदत और खुशमिजाज तथा मिलनसार स्वभाव के कारण लगभग हर बड़े शहर के अपराधी जगत में उसने बहुत ही अच्छे रसूख कायम में किए हुए थे । अपने रसूखात को भी वह जब तब कैश करता रहता था ।
मदन ने ड्रिंक खत्म करके सिगरेट सुलगाई ही थी बार टेंडर ने हांक लगाकर उसका ध्यान आकर्षित किया । उसने देखा, माउथपीस पर हाथ रखे बार टेंडर टेलीफोन रिसीवर थामे खड़ा था ।
मदन उसके पास पहुंचा तो बारटेंडर ने रिसीवर उसे थमा दिया ।
–'मदन स्पीकिंग ।' वह माउथ पीस में बोला ।
–'मैं बोल रहा हूं । दूसरी ओर से कहा गया–'आज रात विशालगढ़ जा सकते हो ?'
मदन दूसरी ओर से बोलने वाले को फौरन पहचान गया ।
–'यस सर ।' वह बोला–'हुक्म कीजिए ।'
–'वहां होटल प्लाजा में शामलाल बवेजा के नाम से जा ठहरो । तुमने बद्रीप्रसाद नामक एक आदमी का पता लगाना है ।'
–'पता लग जाएगा सर । वहाँ मेरे बीसीयों सॉलिड कांटेक्ट्स हैं । उसका हुलिया, पेशा वगैरा बताइए ।'
फोन कर्ता द्वारा यह सब बताने के बाद कहा गया–'उसका पता लगाते ही तुमने मुझे इत्तिला देनी है । लेकिन उसे हवा भी नहीं लगनी चाहिए कि कोई उसे ढूंढ़ रहा है ।'
–'आप बेफिक्र रहिए । ऐसा कुछ नहीं होगा ।
–'यह काम जल्दी होना बेहद जरूरी है ।'
–'आप मुझ पर भरोसा कीजिए ।'
–'मैं यहां तुम्हारे एकाउंट में दस हजार रुपए जमा करा दूंगा ।'
–'थैंक्यू, सर ।'
दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया ।
मदन रिसीवर यथा स्थान रखकर तेजी से बार से निकल गया ।
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