कारण था फिर वही बेहूदा हरकत ।


विजय को लगा कि कोई शरारती बच्चा उसके साथ शरारत कर रहा है, किंतु तभी उसके दिमाग में प्रश्न उठा, आखिर ये शरारत उसी के साथ क्यों की जा रही है?


कहीं इस छोटी-सी घटना के पीछे कोई बड़ा रहस्य तो नहीं? उसके दिमाग ने उत्तर दिया कि संभव है ऐसा ही हो, क्योंकि आग के बेटों के उस पत्र से स्पष्ट होता है कि अपराधी कुछ विचित्र - सी आदतों का स्वामी है । कही अपराधी उसे छका तो नहीं रहा? न जाने क्यों उसके दिमाग में यह बात घर कर गई कि हो न हो, ये हरकत कोई बहुत बड़ा रहस्य रखती है।


अभी वह सोच ही रहा था कि इस बार किसी ने अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर चूंटी काटी-इतनी शक्ति से कि विजय तिलमिलाकर रह गया लगभग चीखा-' 'अबे ओ... भाई, कौन है बे ?


लेकिन जो भी था, वह उसके पास से गायब था । एक बार को तो विजय की खोपड़ी घूम गई। उसके बोलने के ढंग पर उसके आसपास खड़े लोग उसे विचित्र - सी निगाहों से देखने लगे । विजय ने मूर्खो की भांति चेहरा बनाया और शुतुरमुर्ग की भांति अपनी गरदन लम्बी करके इधर-उधर देखने लगा । लोग मुस्कराकर रह गए ।


वैसे इस बार विजय पूर्णतया सतर्क था ! अब वह पता लगाना चाहता था कि आखिर ये हरकत है किसकी और उसका अभिप्राय क्या है?


तभी वह चौंक पड़ा वास्तव में इस समय उसे यहां जिस चेहरे के दर्शन हुए उसे देखकर वह बुरी तरह से चौंक पड़ा । वह लोगों की टांगों के बीच से होता हुआ उसकी ओर आ रहा था । वास्तव में इस चेहरे की यहां और इस समय उपस्थिति आश्यर्चपूर्ण थी । विजय कुछ चकरा-सा गया । आखिर उसने उसे मेकअप में भी पहचान कैसे लिया? विजय के मन में इस प्रश्न की उत्पत्ति हुई और मन ने उत्तर में यही कहा कि आखिर ये लड़का है क्या?


वह उसके निकट आया और अभी चूंटी काटने ही वाला था कि विजय चीखा-' 'अबे ओ हरामखोर की औलाद... कौन है तू?"


-" अगर डैडी को गाली दी तो मैं आपकी दाढ़ी पकड़कर टक जाऊंगा आप मुझे नहीं पहचानते मैं विकास हूं।'' लगभग ग्यारह वर्षीय वह लड़का शरारत-भरे लहजे में बोला - ।


विजय चकराकर रह गया । आखिर ये लड़का उसे पहचान


कैसे गया? इस समय वह ऐसे मेकअप में था कि अच्छे-से-अच्छा पारखी भी उसे पहचान न सकता था, किंतु ग्यारह वर्षीय यह छोकरा...! एक बार फिर विजय सोचने पर मजबूर हो गया कि विकास खतरनाक शैतान है । यह तो उसे पता था कि अलफांसे ने उसे न सिर्फ खतरनाक कार्यों में दक्ष कर दिया था, बल्कि 'दहकते शहर' नामक केस का हीरो भी विकास ही था, किंतु विजय को पहचानना एक भिन्न और आश्चर्यपूर्ण बात थी ।


विकास...!


विकास, विजय के दोस्त, केंद्रीय खुफिया विभाग के होनहार जासूस ठाकुर रघुनाथ का लड़का था । यह लड़का अत्यंत खतरनाक बन गया था। इस अल्पायु में ही अलफांसे ने उसे गजब के हैरतअंगेज कारनामे सिखा दिए थे।


विजय को लगा, कहीं ये खतरनाक लड़का यहां उसकी पोल ही खोल दे । अत: वह तुरंत भीड़ में से निकलकर एक ओर को चला गया ।


विकास के मासूम से अधरों पर शरारतपूर्ण मुस्कान थी और वह विजय के पीछे-ही-पीछे बाहर आया । भीड़ से अलग आकर विजय उसकी ओर मुड़कर बोला-' 'क्यों बे दिलजले, तुम यहां कैसे ? "


"अंकल, सच बताऊं या झूठ !" विकास मुस्कराकर बोला।


'देखो मियां दिलजले- तुम्हरी हरकतें अधिक लंबी होती जा रही है। पहले नेकर का नाड़ा बांधना सीखो तब ऐसे खतरनाक स्थानों पर आया करो।"


-"अंकल, मैं पैंट पहनता हूं जिसमें नाड़ा नहीं पेटी होती है !!"


विजय ने घड़ी देखी-दो बजने में सिर्फ पांच मिनट शेष थे । अत: इस समय वह विकास को यहां से खिसकाने के लिए उससे बिना उलझे बोला- 'तुम यहां क्यों आए हो बेटे ?" ।


" आपको दिलजली सुनाने ।"


-"अबे ओ.. ।' विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि ठहर गया और स्वयं ही बात बदलकर बोला- "लेकिन तुमने हमें पहचाना कैसे ?"


- "लो, ये भी कोई कठिन काम था झकझकिए अंकल, मैं आपको दिलजली सुनाने आपकी कोठी पर गया था । वहां देखा तो पाया कि आप शीशे के सामने बैठे ये श्रृंगार कर रहे हैं । मेरे देखते ही देखते आपने ये नकली दाढ़ी-मूंछें लगाई और यहां आ गए । मैं आपके पीछे-पीछे था।"


विजय, विकास के मासूम, प्यारे प्यारे चेहरे को देखता ही रह गया । उसे विश्वास नहीं हुआ कि इतनी अल्पायु का किशोर इतनी विलक्षण बुद्धि रख सकता है। वह इतना खतरनाक हो सकता है जितना कि विजय था । विजय को कुछ विचित्र - सा लगा । विकास को इतना जीनियस देखकर उसे विचित्र - सी खुशी का अहसास हुआ । विकास की एक-एक हरकत ऐसी थी कि जो विजय के मन में घर कर जाती । विकास को वह भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का सर्वोत्तम जासूस बनाने का दृढ़ निश्चय कर चुका था, किंतु इस समय विकास को यहां देखकर न जाने क्यों उसे कुछ मानसिक परेशानी हुई। तभी वह विकास से कुछ कहने ही जा रहा था कि चौंक पड़ा ।


अचानक बैंक की तरफ से तगड़े शोर की उत्पत्ति हुई और फिर समस्त वातावरण भयभीत चींखों से भर गया । भागती हुई भीड़ का रेला उसी ओर आया। उसने विकास को संभालने के लिए यहां नजर मारी-जहां विकास था, किंतु उस समय विजय की आखें आश्चर्य से फैल गई जब उसने पाया कि विकास रूपी छलावा अपने स्थान से गायब है। विजय को लगा कि यह लड़का छलावा तो नहीं । आसपास उसे कहीं विकास नजर नहीं आया !


भागती हुई भीड़ का रेला उसके अत्यंत निकट आ गया था । लोगों की भयभीत चीखें वातावरण पर अपना प्रभुत्व जमाएं थी । विजय ने फिलहाल अपना मस्तिष्क विकास से हटाकर उस ओर लगा दिया ।


वह एक ओर को हट गया और उधर देखा - जिधर से लोग चीखते हुए भाग रहे थे । उधर देखते ही विजय बुरी तरह चौक पड़ा । आश्चर्य से उसकी आंखें सिकुड़ गई । वह उस ओर देखता ही रह गया । उसे ऐसा लगा- वह जो देख रहा है -वह स्वप्नमात्र है । वास्तव में इस समय विजय जो देख रहा था-वह उसी तरह मूर्खतापूर्ण बात थी जैसे ये सोचना कि आकाश गिर जाए । कुछ ऐसा ही दृश्य उसके सामने था जिस पर वह कदापि विश्वास नहीं कर सकता था । वह इस बात पर तो विश्वास कर सकता था कि हिमालय अपने स्थान से हिल गया- किंतु इस दृश्य को सत्य नहीं मान सकता था, किंतु दृश्य कठोर यथार्थ के रूप में उसके सामने था ।


क्षण-प्रतिक्षण उसकी आंखें हैरत से फैलती जा रही थीं । दृश्य जितना स्पष्ट होता जाता, उसकी आंखें उसी अनुपात में हैरत से फैलती चली जाती थीं । वास्तव में था यह हैरतअंगेज दृश्य । उसे अपने रोंगटे खड़े होते हुए महसूस हुए । भयानक दृश्य उसने देखा । उस दृश्य को देखकर लोग उससे भयभीत होकर न सिर्फ चीखने-चिल्लाने लगे थे, बल्कि अपनी-अपनी रक्षा हेतु भाग लिए थे । विजय को भी मानना पड़ा कि प्रस्तुत दृश्य मौत से भी भयानक और खतरनाक है ।


सबसे पहले उसने बदहवास - सी भागती भीड़ के उस पार धुआं उठता देखा, जिसे देखकर एक ही क्षण में भीड़ काई की तरह फट गई और प्रस्तुत दृश्य को देखकर विजय की आंखें हैरत से फैल गई ।


उसके सामने आग के बेटे थे ।


वास्तव में ये 'आग के बेटे' थे !


ये लगभग दस जीवित हाड़-मांस के इंसान थे किंतु आश्चर्य की बात ये थी कि उनके संपूर्ण जिस्म आग की लपटों में घिरे हुए थे। समस्त जिस्म से आग लपलपा रही थी- मानो किसी ने उनके जिस्मों पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी हो । उनके जिस्मों से लपलपाती हुई भयंकर अग्निशिलाएं धधक रही थी । लपटें कुछ इस प्रकार ऊंची उठ रही थी मानो दस होलियां एक साथ जल रही हों। उनके जिस्मों से ज्वलित अंगारे धरती पर गिरते जा रहे थे । भयंकर अग्निशिलाएं ऐसे लपलपा रही थी मानो गंधक की अग्निशिलाएं जल रही हो ।


उनका संपूर्ण जिस्म भंयकर किस्म की लपलपाती आग की लपटों में था ।


इससे भी आगे आश्चर्यजनक ये था कि आग की लपटों में घिरे हुए वे आग के बेटे निरंतर रिजर्व बैंक की ओर बढ़ रहे थे! लोगों को न सिर्फ आश्चर्य हो रहा था, बल्कि बदहवास हो गए थे । ये बात न सिर्फ उनके दिमाग से बाहर थी, हैरतअंगेज भी थी कि इस बुरी तरह आग की लपटों में लिपटे हुए इंसान जीवित भी रह सकते हैं । वे न सिर्फ जीवित थे, बल्कि मस्त हाथी की तरह झूमते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे । मैदान साफ हो चुका था । पी. ए. सी. वाले विचित्र - सी परेशानी और कश्मकश में फंस गए थे । यह तो वे जानते ही थे कि उन्हें किन्हीं विशेष अपराधियों से टकराने के लिए बुलाया गया है, किंतु उन्हें ऐसी आशा कदापि नहीं थी कि अपराधी इस विचित्र ढंग के होंगे ।


स्वयं विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे । अपने स्थान पर खड़ा विजय सामने के भयानक दृश्य को निहारता रहा ।


सहसा वह चौंका.. . उसने देखा ।


अचानक उसके पिता- शहर के आई.जी. ठाकुर साहब आग के बेटों के सामने आ डटे । विजय देख चुका था कि ठाकुर साहब के चेहरे पर भयानक भाव उभर आए हैं जो इस बात का प्रमाण थे कि वे कोई भयानक निर्णय ले चुके हैं । इस समय विजय ने अपना आगे बढ़ना उचित न समझा । अत: वहीं खड़ा रहकर सब कुछ देखता रहा ।


ठाकुर साहब आग के बेटों के सामने रिवॉल्वर तानकर खड़े हो गए और चीखे- "इन्हें चारों ओर से घेर लिया जाए ।" पी. ए. सी. वाले बदहवास तो हो ही चुके थे, किंतु इस आदेश का उन्होंने तुरंत पालन किया । क्षण-मात्र में आग के बेटे पी. ए. सी. के वृत्त में कैद थे, किंतु आग के बेटे मस्त हाथी की भांति झूमते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर थे । मानो इस घेराव से उन्हें कोई सरोकार ही न हो ।


उनके ठीक सामने ठाकुर साहब खड़े थे ।


आग के बेटे आगे बढ़ते रहे, किंतु ठाकुर साहब भी मानो अडिग चट्टान थे। वे जितने निकट आते जाते उसी अनुपात में ठाकुर साहब के चेहरे की भयंकरता में चार चांद लगते जाते थे । तब जबकि वे अत्यंत निकट आ गए, ठाकुर साहब बोले- "ठहरो... नहीं तो भून दिए जाओगे।" 


किंतु ऐसा लगता था जैसे वे सभी बहरे हो । ठाकुर साहब की आवाज का लेशमात्र भी प्रभाव उन पर न हुआ । वे उसी प्रकार बढ़ रहे थे ।


विजय इस दृश्य को देख रहा था, किंतु सिर्फ देख ही रहा था |


'आग के बेटे' निरंतर आगे बढ़ रहे थे। ठाकुर साहब चीख-चीखकर चेतावनी दे रहे थे जिसका उन पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था? अलबत्ता ठाकुर साहब के क्रोध में निःसंदेह दृष्टि होती जा रही थी! अंत में तब-जबकि वे इतने निकट आ गए कि ठाकुर साहब को उनके जिस्मों से लपलपाती आग की ऊष्मा मिलने लगी तो ठाकुर साहब चीखे --"फायर !"


- 'रेट.. . रेट.. . रेट...!'


आदेश के साथ ही पी. ए. सी. वालों की गनों ने अपने भयानक जबड़े खोल दिए । लपलपाते हुए भयंकर आग के शोले आग के बेटों की ओर बढ़े । वे दहकते हुए जिस्मों से टकराए भी, किंतु उस समय विजय को आश्चर्य नहीं हुआ जब बेचारी गनों की गोलियां बिना कोई जौहर दिखाए शहीद हो गइ । उसे पहले ही उम्मीद थी कि आग के बेटे इन आम हथियारों के बस में आने वाले नहीं है, बल्कि इनका अंत करने के लिए दिमागी पेंचों को खटखटाना पड़ेगा ।


परिणाम देखकर ठाकुर साहब को जहां थोड़ा आश्चर्य हुआ है। पी. ए. सी. के जवान तो भौचक्के रह गए। आग के बेटे ठाकुर साहब के अधिकाधिक निकट आ गए थे । इतने निकट कि उन्हें अपना जिस्म जलता-सा प्रतीत होने लगा तो वे तुरंत वहां से हट गए ।

उसके बाद...!

क्रम इसी प्रकार चलता रहा । ठाकुर साहब बार-बार आग के बेटी को खतरनाक लहजे और शब्दों में चेतावनी देते रहे, किंतु जब उसका लेशमात्र भी प्रभाव न देखते तो उन्हें स्वयं यह महसूस होता कि उनकी चेतावनी खोखली है। अनेक बार गर्ने गरजती, किंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात!

अंत में सदर दरवाजे से होते हुए, आग की लपटों में लिपटे आग के बेटे बैंक के अंदर चले गए। पुलिस का चक्रव्यूह उनको लेशमात्र भी हानि पहुंचाने में असक्त रहा। ठाकुर
साहब का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया, किंतु वह कर ही क्या सकते थे?

सड़क पर अब भी दहकते शोले बिखरे पड़े थे।

विजय अभी कोई उपाय सोच हो रहा था कि बुरी तरह से चीखा । उसकी नजर छलावे पर पड़ी । हां-उसे छलावा ही कह सकता था । वास्तव में यह शैतान था - अल्पायु का खतरनाक शैतान! वह विकास के अतिरिक्त कोई न था, जिसे देखकर विजय चौंका था । वह सिर्फ विकास के चेहरे से नहीं चौंका था ।

वास्तव में वह चौंका था विकास की हरकत से । उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर लड़का चाहता क्या है ? आखिर विकास उसे कितनी बार आश्चर्य के सागर में गोते लगवाता? विजय को लगा कि अगर यह लड़का इसी तरह मौत के भयानक जबड़ों में छलांग लगाता रहा तो किसी दिन मौत के जबड़े उसे अपने आगोश में ले लेंगे। उसे गुस्सा आया अलफांसे पर जिसने विकास के इन खतरनाक खेलों में दक्ष किया था । इस अल्पायु में भला इतना खतरनाक लड़का बनाने की क्या तुक है? वास्तव में विकास की इस हरकत से चौंकने वाला सिर्फ विजय ही न था, बल्कि ठाकुर साहब और रघुनाथ के साथ-साथ अन्य पी. ए. सी. के जवान भी थे । रघुनाथ और ठाकुर साहब के लिए सर्वप्रथम तो चौकने का कारण विकास की यहां उपस्थिति ही थी । उससे भी अधिक थी विकास की हरकत ।

उनके देखते-ही-देखते विकास किसी भूत की भांति भागता हुआ आग के बेटों के पीछे बैंक में प्रविष्ट हो गया । उसे देखते ही ठाकुर साहब और रघुनाथ के मुंह से निकला ।

-"विकास...!"

किंतु वह खतरनाक छलावा बैंक के अंदर प्रविष्ट हो चुका था |

एक ही पल में विजय ने निश्चय कर लिया । वह जान गया कि विकास मौत के जबड़े में जम्प लगा चुका है । अत: वह भी विद्युत गति से झपटा और देखते ही देखते वह भी बैंक में समा गया । उसके पीछे ठाकुर साहब और रघुनाथ भी झपटे थे, किंतु वह जानता था कि दोनों में से कोई भी उसे पहचान न पाया है - वे केवल विकस की रक्षा हेतु मौत के मुंह में आ रहे हैं । ।

बिना उनकी चिंता किए वह अंदर प्रविष्ट हो गया । अंदर का दृश्य देखते ही एक बार विजय को फिर चौक जाना पड़ा । आग के बेटे उसी हालत में कैश की ओर बढ़ रहे थे और विकास तेजी से फर्श पर रेंगता हुआ एक ओर बढ़ रहा था । अभी तक विजय समझ नहीं पाया था कि आखिर ये लड़का चाहता क्या है?

उसने भी सिर्फ इतना किया कि वह रिवॉल्वर निकालकर विकास के पीछे रेंगने लगा। ताकि विकास के किसी मुसीबत में फंस जाने पर वह उसकी रक्षा कर सके, लेकिन न जाने उसे क्यों ऐसा लगता कि विकास कोई साधारण लड़का नहीं है, अवश्य ही उसे विधाता ने कोई विशेष शक्ति प्रदान की है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये छटंकी-सा लड़का आग के बेटों का बिगाड़ क्या लेगा? आखिर वह रेंगकर करना क्या चाहता है? विकास का लक्ष्य क्या है? विजय जितना विकास के विषय में सोचता वह सिर्फ उलझकर रह जाता ।

आग के बेटे उनसे लापरवाह थे । आग की लपटें अब भी लपलपाकर ऊपर उठ रही थीं। शोले अब भी गिर रहे थे ।

विकास तेजी से रेंगता हुआ विकास के निकट पड़ा और फुसफुसाया- "क्यों बे मियां दिलजले... क्या इरादे?'

- "आप भी आ गए अंकल?" विकास उसी तरह रेंगता हुआ बोला ।

- "यस बेटे, लेकिन आखिर तुम चाहते क्या हो ?

'अंकल, ये हाथ में क्या है ? " विकास, विजय की बात का कोई उत्तर न देकर शरारत-भरे लहजे में बोला ।

- "इसे रिवॉल्वर कहते है प्यारे दिलजले ।" विजय हाथ में पकड़े रिवॉलर को हिलाता हुआ बोला ।

- ."ये कैसा रिवॉल्वर है अंकल? " बातों के बीच रेंगना निरंतर जारी था ।

-"क्यों?

- ''इससे तो मुर्गा भी नहीं मरेगा ।'' विकास बोला ।

"चुप बे-शैतान कहीं का... ।" विजय मुस्कराता हुआ बोला ।

तभी रेंगते हुए विजय की नजर बैंक की छत पर लगे पंखों पर पड़ी । तुरंत उसके दिमाग में एक विचार आया, क्यों न वह पंखे चला दे । शायद पंखों की हवा से इंसानों के जिस्मों में लगी आग बुझ जाए। उसने उन्हें ऑन करने के लिए स्विच की तलाश में निगाह इधर-उधर दौड़ाई तो स्विच पर नजर पड़ते ही दंग रह गया । इसलिए नहीं कि स्विच में कोई विचित्र बात थी, बल्कि इसलिए कि विकास का रुख उसी ओर था । उसे एक बार फिर विकास की बुद्धि का लोहा मानना पड़ा । न जाने क्यों अब उसे विकास के साहस, बुद्धि और शक्ति देखकर प्रसन्नता होने लगी-तेजी से रेंगता हुआ वह बोला ।

-"क्यों प्यारे-तुम इस तरफ क्यों बढ़ रहे हो?"

-"अंकल, गर्मी लग रही है क्यों न पंखे चला दें?

विजय समझ गया कि वास्तव में यह लड़का ठीक समय पर ठीक सोच सकता है ।

- उसके बाद जबकि विजय स्विचों तक पहुंचा। उस समय आग के बेटे पंखों के नीचे थे। उसने स्विच की ओर हाथ बढ़ाया, किंतु उसी पल वह बुरी तरह चौंका- न सिर्फ चौक पड़ा, बल्कि उसे अपना दिमाग घूमता-सा प्रतीत हुआ -उसे लगा कि जैसे वह हवा में तैर रहा है। वह स्वयं को संभाल न सका और धड़ाम से लहराकर फर्श पर गिरा ।

विकास ने विजय का गिरना देखा और तुरंत समय की गंभीरता को पहचान गया और उस स्थान से दूसरी ओर रेंग गया ।

उसके बाद विकास कुछ भी न कर सका । ठाकुर साहब और रघुनाथ ने आकर उसे पकड़ लिया । देखते-ही-देखते 'आग के बेटे' वापस लौटने लगे। पुलिस ने लाख प्रयास किए । प्रत्येक ने अपनी बुद्धि लड़ाई, किंतु आग के बेटे किसी बात से प्रभावित न हुए और न ही उन्होंने अपनी ओर से किसी की जान ली । शायद वास्तव में वे जनकल्याणकारी ही थे । हजारों लोगों के देखते ही देखतें आग के बेटे सागर के जल में विलुप्त हो गए, किंतु अपने पीछे छोड़ गए-भयानक आतंक और रिजर्व बैंक का खाली खजाना ।