भुल्ले खान कार चला रहा था। चेहरे पर गंभीरता थी। अहमद को मारना उसे अच्छा नहीं लगा था परंतु मारना पड़ा। जो एक बार धोखा दे सकता था वो दोबारा भी दे सकता था। अहमद ने अपना विश्वास खो दिया था। देवराज चौहान बगल में बैठा था और सिगरेट के कश ले रहा था।
"क्या सोच रहे हो?" भुल्ले खान ने पूछा।
"जगमोहन के बारे में।" देवराज चौहान खिड़की से बाहर के नजारे देखते बोला।
"मेरे ख्याल में वो ठीक रहेगा। मेजर उसका ध्यान रखेगा। तुम मेजर के कहने पर काम कर रहे हो।
"मेजर जरूर जगमोहन का ध्यान रखेगा।"
"अब तुम 'गोरिल्ला' पर काम शुरू करोगे?" भुल्ले खान का स्वर गंभीर था।
"जरूरी है। वरना मेजर, जगमोहन को पुलिस के हवाले कर देगा।"
"जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकालना आसान है या गोरिल्ला को इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालना आसान है?"
देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर भुल्ले को देखा।
"जो आसान लगे वो काम करो।" भुल्ले खान बोला।
"जगमोहन को हिन्दुस्तानी पुलिस के हाथों से निकाल लाना मेरे लिए कठिन है।" देवराज चौहान ने कहा।
"हिन्दुस्तान की पुलिस इतनी सख्त तो नहीं, जितनी कि पाकिस्तानी मिलिट्री है।"
"सवाल सख्त-नरम का नहीं है।" देवराज चौहान पुनः बाहर देखने लगा--- "बात कायदे की है कि मैं अपने देश की पुलिस के हाथ नहीं उठाता। क्योंकि मुझे अपने देश में रहना है। जबकि जगमोहन को छुड़ाने के लिए कुछ तो खून-खराबा होगा ही। ऐसे में मेरे लिए बेहतर है कि गोरिल्ला को पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथों से निकाला जाए।"
"जैसा तुम चाहो, मैं तुम्हारे साथ हूं।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।
"बेहतर है कि तुम मेरे साथ मत रहो। तुम्हारे लिए परेशानियां खड़ी हो सकती हैं।" देवराज चौहान बोला।
"तुम मेरी वजह से ही मुसीबत में पड़े हो। इसलिए इस काम में मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"सबसे पहले तो मैंने तुम्हारे रहने का इंतजाम करना है।" भुल्ले खान ने कहा--- "अपने घर पर तुम्हें ले जाना ठीक नहीं होगा। परंतु मेरे पास एक खाली फ्लैट है। उसमें तुम ठहर सकते हो। शाम तक फ्लैट में बैड और बाकी जरूरत का सामान ला दूंगा। मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगा। इस्लामाबाद को मेरे से ज्यादा, तुम नहीं जानते। मैं साथ रहूंगा तो तुम्हें आसानी होगी।"
देवराज चौहान चुप रहा।
"अगर कहीं और ठहरना चाहते हो तो कह दो।"
"और कहां?" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"राणा साहब के यहां।"
"वसीम राणा के पास रहना ठीक नहीं होगा। मैं उसे मुसीबत में नहीं डालना चाहता। आने वाले वक्त में जाने क्या हालात आते हैं। उस फ्लैट में रहना ही ठीक होगा, जिसके बारे में तुम बता रहे हो।"
"राणा साहब से मिलोगे भी नहीं?"
"नहीं। जरूरत पड़ी तो तभी राणा के पास जाऊंगा।" देवराज चौहान बोला।
"तो फ्लैट पर चलते हैं। साफ-सफाई भी करवानी पड़ेगी। ये काम किसी के हवाले करके, बाजार चलेंगे फ्लैट में जरूरत का सामान लाने के लिए।" भुल्ले खान बोला--- "काम शुरू कैसे करोगे?"
"मेजर ने इस्लामाबाद के एजेंटों के नंबर दिए हैं। उनसे बात करूंगा। वे बताएंगे कि गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर में कहां पर रखा गया है। फिर उस जगह को देखने के बाद काम के बारे में प्लान करुंगा।"
"शायद वहां मेरी पहचान भी निकल आए।"
"वो कैसे?"
"मिलिट्री वालों से भी कभी-कभी मेरा वास्ता पर जाता है। गुपचुप तौर से वो भी खास-खास आतंकवादियों को तैयार करते हैं और उन्हें हथियारों के साथ सीमा पार कराने में मुझे बुलाते हैं। ये काम मैं कई बार कर चुका हूं।"
"उनसे पैसे लेते हो?"
"क्यों नहीं, ये तो मेरा धंधा है। मिलिट्री वाले हो या किसी संगठन के लोग। मुफ्त में तो कोई काम होता नहीं। मुझे भी आगे पैसे देने होते हैं। ये तो चेन सिस्टम है। नोटों में कईयों का हिस्सा होता है।"
"मुझे मोबाइल फोन चाहिए।" देवराज चौहान बोला।
"वो भी ले लेंगे। मेजर के एजेंटों से आज ही संपर्क करोगे?" भुल्ले खान ने पूछा।
"सबसे पहले तो मैं नींद लूंगा। रात भर सफर करते रहे हैं। दोपहर का एक से ऊपर का वक्त हो चुका है, जरा भी आराम नहीं किया।" देवराज चौहान ने कहा--- "नींद पूरी होने के बाद ये काम शुरू करूंगा।"
"नींद तो मुझे भी आ रही है। तुम क्या वास्तव में इतने खतरनाक हो कि मेजर तुमसे काम ले।"
जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया।
"तुमने वास्तव में पाकिस्तान में आकर हामिद अली के भाई को मारा था।
"मैं अकेला नहीं था। तब मेरे साथ और भी कई लोग थे।" देवराज चौहान ने कहा।
"पर अब तुम अकेले हो। गोरिल्ला को वहां से निकाल लोगे या खुद ही मरोगे?"
"क्या होगा, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन अकेले होने की मुझे चिंता नहीं है। जरूरत पड़ने पर आदमी कहीं भी मिल जाएंगे। पैसा खर्चना पड़ता है। इस्लामाबाद में भी सारे इंतजाम हो जाएंगे।"
"पैसे कौन खर्च करेगा?"
"मेजर के एजेंट।" देवराज चौहान ने कहा और सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक दी।
"मेजर तुम्हारे हरकत में आने का इंतजार कर रहा होगा कि कब तुम उसके एजेंटों से संपर्क करते हो।"
"मेजर को भूल जा भुल्ले। सिर्फ गोरिला को याद कर। हमें अब आगे देखना है, पीछे नहीं। मैं मेजर कमलजीत सिंह के लिए ये काम नहीं कर रहा। ये काम मैं जगमोहन को आजाद कराने के लिए कर रहा हूं। इसलिए ये मेरा अपना काम है मैंने इसे हर हाल में पूरा करना है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
■■■
सारा दिन उनका खाली फ्लैट में, बाजार से सामान लाकर रखने में बीत गया। भुल्ले खान ही सारा पैसा खर्च कर रहा था। रात को होटल से उन्होंने खाना खाया और फ्लैट पर आकर गहरी नींद में जा डूबे। अगले दिन जब देवराज चौहान की आंख खुली तो दिन के ग्यारह बज रहे थे। भुल्ले खान भी उठा हुआ था और बेड पर बैठा था। दोनों ने गहरी और लंबी नींद ली थी। इस वक्त खुद को हल्का महसूस कर रहे थे।
"चाय बनाऊं?" भुल्ले खान उठते हुए बोला।
"कॉफी बना लो।"
"कॉफी तो इस वक्त नहीं है। चाय से ही काम चलाना पड़ेगा। भुल्ले खान किचन की तरफ चला गया।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली। चेहरे पर सोचें आ ठहरी थी। उसकी विचारधारा का केंद्र गोरिल्ला ही था। उसे पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथों से निकालना था, उससे वे महत्वपूर्ण कागज लेने थे। गोरिल्ला अगर साथ चल सका तो उसके साथ सीमा पार करके मेजर के पास पहुंचना था नहीं तो उसने खुद ही कागज मेजर तक ले जाने थे। देवराज चौहान जानता था कि ये काम आसान नहीं होगा। पाकिस्तानी मिलिट्री ने गोरिल्ला को सुरक्षित जगह पर रखा होगा कि कोई उस तक न पहुंच सके। वो भी ये सोच सकते हैं कि कोई गोरिल्ला तक पहुंचने की चेष्टा कर सकता है। फिर क्या पता गोरिल्ला ने मुंह खोल दिया हो। वो कागज वापस पाकिस्तानी मिलिट्री के पास पहुंच गए हों?
भुल्ले चाय बना लाया।
देवराज चौहान ने गिलास थामा और घूंट भरा।
चाय का गिलास थामे, भुल्ले कुर्सी खींचकर बैठता हुआ बोला।
"आज काम शुरू करना है ना?"
"हां।"
"कैसे?"
"मेजर के एजेंट को फोन करूंगा।" देवराज चौहान ने पुनः चाय का घूंट भरा--- "पता करूंगा कि गोरिल्ला को कहां रखा गया है।"
"अहमद बुरा फंसा गया तुम्हें।" चाय का घूंट लेते भुल्ले ने कहा--- "जब हिन्दुस्तानी मिलिट्री ने हमें पकड़ा तो मैंने आजादी की आशा ही छोड़ दी थी। ये भी अच्छा रहा कि मेजर का अपना काम फंसा हुआ था। मुझे कम से कम इतनी तो समझ आ गई कि अपना प्रोग्राम किसी को भी नहीं बताना है। पता नहीं कब कौन गद्दार निकल जाए।"
देवराज चौहान ने चाय समाप्त की और उठकर एक तरफ लटका रखी पैंट की जेब से मोबाइल फोन निकाला, जो कि कल ही भुल्ले ने नंबर के साथ नया खरीद कर दिया था। फिर दूसरी जेब से वो कागज निकाला, जिस पर मेजर ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में स्थित अपने एजेंटों के पते दिए थे।
भुल्ले खान गंभीर हो उठा था।
"नई मुसीबतें शुरू होने जा रही हैं।" भुल्ले कह उठा।
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी।
"मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा है कि तुम गोरिल्ला को कैसे, पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथों से निकालोगे?"
"ये तो अभी मुझे भी नहीं पता।" देवराज चौहान नंबर मिलाता कह उठा।
"पता नहीं क्या होगा। जगमोहन खातिर तुम मैदान छोड़कर भाग भी नहीं सकते।"
"भागना मेरी आदत नहीं है।"
"जगमोहन बहुत खास है तुम्हारा?"
"हां।" देवराज चौहान ने कहा और मोबाइल कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल गई। बेल जाने लगी।
"हैलो।" उधर से एक व्यक्ति की आवाज कानों में पड़ी।
"गोरिल्ला।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"सलाम वालेकुम साहब। मैंने पहचान लिया। आपकी खबर आ चुकी है।" उधर से कहा गया।
"नाम क्या है तुम्हारा?"
"कादिर शेख।"
"पाकिस्तान के हो?"
"पक्का जनाब। यहीं पैदा हुआ और मरना भी यहीं है। पाकिस्तान से तो मेरा अटूट रिश्ता है।"
"गोरिल्ला की क्या खबर है?"
"वो ही। इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर में उसे सख्ती से रखा हुआ है।" उधर से कादिर शेख ने कहा।
"कहां?"
"चौथी मंजिल। कमरा नंबर 28। सप्ताह पहले ही ये जानकारी किसी से ली।"
"वो कागज कहां है?"
"गोरिल्ला ने कहीं छिपा रखे हैं। वापस पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथ नहीं लगे।"
"पक्का?"
"पूरी तरह पक्का।"
"सम्भव है गोरिल्ला ने यातना के आगे मुंह खोल दिया हो और कागजों के बारे में बता दिया हो।"
"परसों तक तो ऐसा नहीं हुआ था।" कादिर शेख की आवाज आई।
"वो लोग गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से बाहर ले जाते हैं?"
"नहीं।"
देवराज चौहान ने फोन पीछे करके भुल्ले से कहा।
"जानते हो मिलिट्री हैडक्वार्टर कहां है?"
"हां। तीन-चार बार वहां जा चुका हूं।"
देवराज चौहान ने पुनः फोन पर बात की।
"गोरिल्ला को वहां से निकालना हो तो क्या करना होगा?" देवराज चौहान ने कहा।
"ये नहीं हो सकता वो जगह मिलिट्री हैडक्वार्टर है जनाब। वहां तो घुसना भी संभव नहीं, निकाल लाने की बात तो दूर की है। मेरे ख्याल में तो ऐसा सोचना भी पागलपन है।"
"मेजर में मुझे क्यों भेजा है, जानते हो?"
"हां।"
"तो ये बात तुमने मेरे से क्यों नहीं कही कि मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी को नहीं निकाला जा सकता।"
"कही थी।"
"तो मेजर क्या बोला?"
"उसने कहा कि वो ऐसे आदमी को भेज रहा है जो ये काम आसानी से कर लेगा।" कादिर शेख ने उधर से कहा।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"देवराज चौहान।"
"हिन्दुस्तान से आए हो तो हिन्दू ही होगे।"
"मैं हिन्दू नहीं हिन्दुस्तानी हूं।" देवराज चौहान बोला--- "मेजर ने कहा था कि तुम मेरी सहायता करोगे।"
"मैं तुम्हारी सहायता करने को तैयार हूं, तुम कहो तो सही। हथियार चाहिए, हर तरह के हथियार, गोला-बारूद हाजिर कर दूंगा। आदमी चाहिए तो वो भी इंतजाम हो जाएगा। खर्चा-पानी चाहिए तो वो भी मिल जाएगा। बताओ क्या चाहिए?"
"तुम्हारी सलाह कि गोरिल्ला को कैसे वहां से निकाला जा सकता है?"
"ये बात मैं नहीं जानता। मेरी नजरों में ये असंभव सा काम है।" उधर से कादिर शेख ने कहा।
"मेजर से तुम्हारी बात होती है?"
"जरूरत पड़ने पर।"
"तो उसे समझाओ कि ये काम असंभव सा है।" कहने के साथ ही देवराज ने फोन बंद कर दिया।
"क्या हुआ?" भुल्ले खान बोला--- "काम नहीं करना क्या?"
"काम तो करना ही है। जगमोहन को बचाना है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "गोरिल्ला मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल पर कमरा नम्बर 28 में रखा गया है और अभी उसने मुंह नहीं खोला कि उसने कागज कहां रखे हैं। परंतु पाकिस्तानी मिलिट्री के टॉर्चर के सामने वो ज्यादा देर नहीं ठहर सकता। मुंह खोल देगा। काम जल्दी करना होगा।"
भुल्ले खान, देवराज चौहान को देखने लगा। फिर बोला।
"तुम सोच रहे हो कि गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकाला जाए।"
"ये करना ही पड़ेगा। उसे मिलिट्री के हाथों से निकालना होगा।"
"तुमने मिलिट्री हैडक्वार्टर देखा है।"
देवराज चौहान ने भुल्ले खान को देखा।
"वहां चिड़िया भी पर नहीं मार सकती। मेरी बात को गंभीरता से लेना।"
"काम तो करना ही है।"
"मुझे नहीं लगता कि तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को निकाल सकते हो।"
देवराज चौहान ने मेजर की लिखी, फोन नम्बरों की लिस्ट को पुनः देखा और दूसरा नंबर मिलाया।
"अब किसे?" भुल्ले ने पूछा।
"दूसरे एजेंट को।" नम्बर मिलाने के बाद देवराज चौहान ने फोन कान से लगा लिया--- "तुम नहा-धो लो। अब हमें मिलिट्री हैडक्वार्टर की तरफ चलना है।"
"तुम बात करो। मैं भी सुनूंगा।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।
दूसरी तरफ बेल गई।
"हैलो।" तुरंत ही उसके कानों में आवाज पड़ी।
"गोरिल्ला।" देवराज चौहान ने कोडवर्ड दोहराया।
"ओह, मैं तो कब से तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहा था। इस्लामाबाद कब पहुंचे?"
"कल।"
"बताओ क्या करना है?"
"तुम्हारा नाम क्या है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"अनीस अहमद।"
"गोरिल्ला इस वक्त कहां है?"
"मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल पर, कमरा नंबर 28 में।"
"कैसे पता?"
"मेरे अपने सोर्स हैं जानकारी के।"
"उसने मुंह खोल दिया होगा कागजों के बारे में।"
"अभी तो नहीं।"
"परंतु ऐसा हो सकता है।"
"जरूर हो सकता है। मिलिट्री वाले उसे यातना पर यातना देते होंगे। पता नहीं कब तक वो मुंह बंद रख सकेगा।"
"उसके मुंह खोलने पर तुम्हें पता चल जाएगा?"
"चल जाएगा। चौथी मंजिल पर तैनात एक जवान मुझे खबर देता रहता है और पैसे लेता है।"
"मेजर ने मुझे छः-सात लोगों के फोन नम्बर दिए थे। क्या तुम सब आपस में मिलते रहते हो?"
"नहीं। हमारा आपस में कोई संबंध नहीं है।"
"मैं गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालना चाहता हूं। इस बारे में तुम क्या कहते हो?"
चंद क्षणों की खामोशी के बाद अनीस अहमद की आवाज आई।
"ये बेहद कठिन काम है पर तुम कोशिश करके देख सकते हो। तुम्हारी जान भी जा सकती है। वहां जबर्दस्त पहरा है। किसी के भीतर जाने से पहले उसकी अच्छी तरह तलाशी ली जाती है। चौथी मंजिल पर बाहरी आदमी बहुत कम जा पाते हैं क्योंकि वहां मेजर, ब्रिगेडियर के ऑफिस हैं और गोपनीय कार्य होते हैं।" अनीस अहमद के स्वर में गंभीरता थी--- "मेरे ख्याल में तो तुम वहां पहुंच भी गए तो गोरिल्ला के साथ नहीं निकल सकते।"
"ये तुम जानते ही हो कि मैं गोरिल्ला को वहां से निकालने आया हूं।" देवराज चौहान बोला।
"हां।"
"तो बताओ मुझे कि मैं कैसे काम करूं?"
"तुमने अभी तक और किससे संपर्क किया?" अनीस अहमद ने कहा।
"ये क्यों पूछ रहे हो?"
"इस बारे में किसी और से भी राय ले लो। मेरे ख्याल में ये काम मौत को दावत देने जैसा है।"
"तो ये बात मेजर से कहो।"
"कही थी, परंतु मेजर ने कहा कि वो काबिल बंदे को भेज रहा है, जो आसानी से ये काम कर लेगा।"
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए।
"तुम मुझे अपनी राय दो।"
"कोई भी काम इंसान के लिए कठिन नहीं होता, देखना ये है कि वो किस जज्बे से काम करता है। तुम मिलिट्री वाले हो तो अपना फर्ज समझकर काम करोगे, परंतु।"
"मैं मिलिट्री वाला नहीं हूं।" देवराज चौहान बोला।
"तो?"
"मेरे दोस्त को मेजर ने बंदी बना रखा है। वो कहता है गोरिल्ला से वो कागज हासिल करके उसे दूं नहीं तो मेरे दोस्त को पुलिस के हवाले कर देगा। वो पुलिस के हाथों पड़ा तो बहुत गलत हो जाएगा।"
"समझा। तुम तो फंसे पड़े हो। देखना अब ये है कि तुम्हें दोस्त की कितनी जरूरत है।"
"इस्लामाबाद तक आ गया हूं। तुम इसी से मेरी जरूरत का अंदाजा लगा सकते हो।"
"अपना नाम नहीं बताया तुमने?"
"देवराज चौहान।"
"करते क्या हो हिन्दुस्तान में?"
"डकैतियां करता हूं।"
"डकैतियां? हैरानी है कि तुम मेजर के चंगुल में कैसे जा फंसे। लेकिन मेजर तुमसे ये काम ले रहा है तो जाहिर है कि तुम काबिल इंसान हो। तुम्हारे साथ कितने लोग आए हैं?" उधर से अनीस अहमद ने पूछा।
"अकेला हूं।"
"समझ में नहीं आता कि तुम क्या सोचकर पाकिस्तान चले आए। ये काम आसान नहीं है। कहां ठहरे हो?"
"होटल में।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला--- "गोरिल्ला को निकाल लाने का रास्ता बताओ।"
"कुछ समझ में आया तो तुम्हें फोन करूंगा। ये नंबर तुम्हारा ही है ना?"
"हां। मिलिट्री के हाथों में पड़ने से पहले गोरिल्ला किन-किन लोगों से मिला था?"
"क्यों?"
"उसने वो कागज किसी पहचान वाले के पास ही रखे होंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- "क्या तुम लोगों ने इस बात को चैक किया? वो जब छिपता फिर रहा था तो किस-किस के पास गया था?"
"कुछ नहीं पता।" अनीस अहमद की आवाज कानों में पड़ी।
"यहां उसकी पहचान का कौन था?"
"मैं था। मेरी तरह बाकी एजेंट भी थे। अगर उसने कागज हममें से किसी के पास रखे होते तो वो मेजर के पास पहुंच चुके होते। नहीं पहुंचे तो स्पष्ट है कि कागज हममें से किसी के पास नहीं हैं।"
"गोरिल्ला दल जब इस्लामाबाद पहुंचा तो उन्हें रास्ता किसने दिखाया था?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हम सब ने। मेजर के एजेंटों ने।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। चुप रहा। चेहरा सोचों से भरा था।
"कोई और बात?" अनीस अहमद की आवाज आई।
"गोरिल्ला तक पहुंचने के लिए, मेरे लिए कोई रास्ता बना सकते हो?" देवराज चौहान बोला।
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। ये कठिन काम है। कुछ दिमाग में आया तो तुम्हें फोन करूंगा। कुछ और चाहिए। हथियार, पैसा, कार, इस्लामाबाद का नक्शा, या फिर साथी, जो भी चाहिए हो फौरन इंतजाम कर दूंगा।"
"अभी कुछ नहीं चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
भुल्ले खान गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था।
"मिलिट्री हैडक्वार्टर का नाम सुनकर हर कोई पीछे हट रहा है।" देवराज चौहान बोला।
"वो गलत भी तो नहीं कर रहे।" भुल्ले खान बोला--- "बात अगर मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर घुसने की है तो मैं तुम्हें वहां ले जा सकता हूं। भीतर एक-दो ऑफिसरों के लिए मैं बंदों को सीमा पार पहुंचा चुका हूं।"
देवराज चौहान, भुल्ले खान को देखने लगा।
"मेरे साथ एक बार भीतर चलोगे तो कम से कम ये देख लोगे कि वहां का क्या माहौल है और...।"
"ठीक है।" देवराज चौहान तुरंत खड़े होता कह उठा--- "तुम मुझे मिलिट्री हैडक्वार्टर में ले चलो।"
"इस तरह नहीं।" भुल्ले खान ने सिर हिलाया--- "तुम्हें यहां का लोकल आदमी दिखाना होगा। बाजार से पठानी सूट, कमीज-सलवार खरीदनी होगी। थोड़ी-सी दाढ़ी-मूंछें लगा लो तो ज्यादा बेहतर होगा। तैयार होकर यहां से तो निकलते हैं, बाकी के इंतजाम रास्ते में कर लेंगे। मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर तो तुम्हें मैं आसानी से ले जाऊंगा।"
■■■
अगले चार घंटों तक भुल्ले खान और देवराज चौहान सड़कों पर कार में इधर-उधर भागते रहे और देवराज चौहान को पठानी सूट खरीदकर पहनाया। पांवों में ऐसी जूतियां पहनी, जैसी कि यहां के लोकल लोग आमतौर पर इस्तेमाल करते थे। नाई की दुकान पर जाकर बालों का हेयर स्टाइल बदलवाया। फिर एक जगह से भुल्ले खान ने दाढ़ी-मूंछ का इंतजाम किया। कुछ ऐसा कि चेहरे पर लगी असली दाढ़ी-मूंछ लगे।
चार घंटे लगे, परंतु देवराज चौहान अब यहां के स्थानीय लोगों की तरह लग रहा था। उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो हिन्दुस्तानी है।
"अब तुम पूरी तरह यहां के लोगों की तरह लग रहे हो।" भुल्ले खान कह उठा--- "ये ठीक है।"
"हमें मिलिट्री हैडक्वार्टर चलना है भुल्ले।" देवराज चौहान ने कहा।
"वहीं चल रहे हैं। दाढ़ी पक्की तरह चेहरे से चिपकी है ना?"
"हां। ये काम मैंने किया है। तुम चिंता मत करो।"
"चिंता तो करनी पड़ती है, मिलिट्री हैडक्वार्टर में दाढ़ी उतर गई तो फंस जाएंगे।"
"तुम मेरे लिए खतरा उठा रहे हो।"
"और तुम मेरी वजह से इस मुसीबत में पड़े हो। हम दोनों में कोई भी ये काम खुशी से नहीं कर रहा।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा--- "पता नहीं आगे अल्लाह क्या रंग दिखाने वाला है।"
"इस काम में खतरा है। तुम मुझसे अलग हो जाओ तो बेहतर होगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"फिर तुम्हें पुलिस हैडक्वार्टर कौन दिखाएगा?" भुल्ले खान मुस्कुराया।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता उभरी रही।
भुल्ले खान कार चलाता कह उठा।
"अब सुन लो। तुम राशिद अली हो। लाहौर से आए हो और मेरे साथ मेरे धंधे पर लग गए हो। लाहौर में नूरजहां रोड पर तुम्हारा परिवार रहता है। वहां तुम लकड़ी का बिजनेस करते थे और आग लगने से तुम्हारा काम-धंधा तबाह हो गया। तब तुम मेरे पास आ गए। हम दोनों मौसेरे भाई हैं। वैसे तुमसे पूछताछ होगी नहीं, परंतु किसी मौके पर जिक्र हो जाए तो तुम जवाब दे सको।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया फिर बोला।
"तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर जाकर किससे मिलोगे?"
"कर्नल बख्तावर अली से। उसकी तरफ पिछले काम का बचा पैसा भी निकलता है। मैंने सोचा था कि वो फोन करके पैसा देने को बुला लेगा, परंतु अब इसी बहाने मिलिट्री हैडक्वार्टर में तो प्रवेश पा ही लेंगे।"
"वो वहां ना मिला तो?"
"तो कल मिल जाएगा। परसों मिल...।"
"उसे फोन कर लो कि---।"
"फोन करने से बात नहीं बनेगी। वो बहाना लगा देगा। मेरा असल मकसद तो तुम्हें मिलिट्री हैडक्वार्टर दिखाना है कि तुम वहां की पहरेदारी के सिस्टम को देख सको, ये जान सको कि वहां तुम जो काम करना चाहते हो, वो कर सकते हो या नहीं।"
देवराज चौहान कार से बाहर देखने लगा। दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे। इस्लामाबाद की सड़कों पर भारी ट्रैफिक था। जगह-जगह जाम लगा मिल जाता था। देवराज चौहान की सोचों में सिर्फ यही दौड़ रहा था कि गोरिल्ला को कैसे मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकाला जाए। अगर उससे मुलाकात-बात करने का मौका मिल जाए तो...।"
"भुल्ले एकाएक देवराज चौहान ने कहा।
"हां।"
"गोरिल्ला से मुलाकात का कोई इंतजाम हो सकता है।" देवराज चौहान बोला।
"तुम बेवकूफों वाली बातें कर रहे हो। वो मिलिट्री का हैडक्वार्टर है और गोरिल्ला वहां का V.I.P. कैदी होगा। ऐसे में कोई उसके पास भटक भी नहीं सकता।" भुल्ले ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा।
"पैसे लेकर कोई मुलाकात करा दे।"
"संभव ही नहीं।"
"एक बार किसी से बात करके तो देखो।"
"यार देवराज चौहान।" भुल्ले मुंह बनाकर कह उठा--- "एक तो ये काम हो नहीं सकता। दूसरे अगर मान लो कि हो गया काम। तुम गोरिल्ला तक पहुंच गए तो तब क्या होगा।"
"मैं उससे जान सकता हूं कि वो कागज उसने...।"
"गोरिल्ला की जगह खुद को रखकर सोचो कि तुम ऐसे हालातों में फंसे हो और कोई तुम्हें आकर कहे कि तुम्हें मेजर ने भेजा है तो तुम क्या सोचोगे? यही सोचोगे कि ये पाकिस्तानी मिलिट्री की ही कोई चाल है।"
देवराज चौहान होंठ सिकोड़कर रह गया।
"कुछ और सोचो।" भुल्ले खान ने कहा।
"तुम इस वक्त मिलिट्री हैडक्वार्टर ही जा रहे हो ना?"
"सीधा वहीं जा रहे हैं। आधे घंटे में पहुंच जाएंगे।"
देवराज चौहान पुनः बाहर देखने लगा।
अगले ही पल देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।
"सूबेदार जीत सिंह।" देवराज चौहान के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।
मात्र एक पल पहले, उसके बाहर देखते ही बगल से तेज रफ्तार से, वो नीली कार निकली थी। एक सेकेंड के लिए ही वो कार की पीछे की सीट को देख पाया था। और जो देखा, वो उसका दिमाग खराब कर देने के लिए काफी था। कार की पीछे की सीट पर सूबेदार जीत सिंह को बैठे देखा था। उसने नीले चैक वाली आधी बांह की शर्ट पहन रखी थी। लाल पगड़ी बांधी हुई थी। वो सूबेदार जीत सिंह ही तो था।
"क्या कहा?" भुल्ले खान ने पूछा--- "सूबेदार जीत सिंह को क्यों याद कर रहे...।"
"वो कार।" देवराज चौहान तेजी से आगे जाती नीली कार की तरफ इशारा करके तेज स्वर में बोला--- "भुल्ले, उस कार में सूबेदार जीत सिंह बैठा है। वही, जिसे हमने मेजर के पास देखा था।"
"सूबेदार जीत सिंह?" भुल्ले खान चौंका--- "वो पाकिस्तान में...?"
"उसने नीली चैक शर्ट और लाल पगड़ी...।"
"तुम्हें वहम हुआ है।" भुल्ले ने इंकार में सिर हिलाया--- "सूबेदार जीत सिंह का पाकिस्तान में क्या काम। वो तो...।"
"वो सूबेदार जीत सिंह ही है। मैंने-मैंने अपनी आंखों से उसे देखा।"
"मैं नहीं मान...।"
"तुम कार उसके पीछे लगाओ। उस कार को किसी तरह रुकवाओ।" देवराज चौहान के स्वर में उत्तेजना थी।
"लेकिन-वो...।"
"जो मैंने कहा है वो करो।" देवराज चौहान गुर्रा उठा।
भुल्ले खान ने कार को आगे जा रही नीली कार के पीछे दौड़ा दिया। लेकिन उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो देवराज चौहान की बात से सहमत नहीं है। भुल्ले खान ने उखड़े स्वर में कहा।
"सूबेदार जीतसिंह पाकिस्तान आने की गलती नहीं कर सकता। वो यहां क्यों आएगा?"
"मैं नहीं जानता कि वो पाकिस्तान क्यों...।"
"तुम्हें गलतफहमी हुई है। वो सूबेदार जीतसिंह नहीं हो सकता।"
"पर, मैंने उसे देखा है।"
"अच्छी तरह देखा है?"
"मैंने गर्दन घुमाई। बाहर देखा तो बगल से कार निकली और सूबेदार जीत सिंह को पीछे बैठे देखा।"
"कितनी देर वो तुम्हें दिखता रहा?" भुल्ले खान कार दौड़ा रहा था, परंतु सड़कों पर ट्रैफिक काफी ज्यादा था। वो नीली कार तीन कार आगे थी और उसका ड्राइवर कार दौड़ाने की कोशिश में लग रहा था।
"कितनी देर...? मेरे ख्याल में उसे देखने के लिए मुझे आधा सैकिंड ही मिला था और।"
"आधा सेकंड।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा--- "तुम्हें पहचानने में धोखा हुआ है। वो जीतसिंह नहीं हो सकता।"
"वो सरदार था और जीत सिंह ही था।" देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर दिया।
"पाकिस्तान के हर शहर में सरदार रहते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि हर कोई जीत सिंह बन गया।"
"तुम उस नीली कार के बराबर पहुंचने की कोशिश करो। उस कार को रोको।"
भुल्ले खान कार को उस नीली कार के पास ले जाने की चेष्टा में था। परंतु ट्रैफिक ज्यादा था और आगे निकल पाना कठिन था। कभी-कभी तो बीच में रिक्शे और ठेले वाले भी आ जाते थे।
इसी तरह दस मिनट बीत गए।
वो नीली कार, जैसे-तैसे और भी कारों को पार करके आगे चल गई थी।
"मुझे कार चलाने दो।" देवराज चौहान ने झल्लाकर कहा।
"शांत रहो। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं।" भुल्ले खान गंभीर स्वर में कह उठा।
देवराज चौहान के होंठ भिंचे थे। वो आगे, कई वाहन पार, नीली कार को देख रहा था। कभी-कभी तो वो वाहनों की ओट में छिप सी जाती थी। उस कार के पीछे की सीट पर बैठे लाल पगड़ी की झलक उसे रह-रहकर मिल जाती थी। वाहनों की रफ्तार सड़क पर 30-40 के दरम्यान थी।
"मुझे विश्वास नहीं आ रहा कि सूबेदार जीतसिंह पाकिस्तान में घूम रहा है।" देवराज चौहान बोला।
"वो जीतसिंह नहीं होगा।" भुल्ले खान का पूरा ध्यान कार दौड़ाने पर था।
"अभी पता चल जाएगा।" देवराज चौहान की नजरें सामने की तरफ थी। नीली कार अब नजर नहीं आ रही थी--- "भुल्ले वो कार हाथ से निकल गई तो बहुत बुरा होगा। जीतसिंह के पाकिस्तान में दिखने के पीछे कोई राज है। वो हिन्दुस्तानी मिलिट्री में सूबेदार है। ऐसे में उसका पाकिस्तान में नजर आना।"
"अभी देख लेना, वो सूबेदार जीतसिंह नहीं होगा। मुझे तुम्हारी बात पर जरा भी विश्वास नहीं है। भला सूबेदार जीतसिंह पाकिस्तान क्या, मुसीबत में फंसने आएगा। ये उसकी ड्यूटी में नहीं आता और मेजर उसे क्यों आने देगा।"
तभी आगे मोड़ आया, वो नीली कार अन्य वाहनों के साथ बाएं मुड़ गई। कुछ ट्रैफिक सीधा जाता चला गया। भुल्ले खान ने भी कार बाएं मोड़ी और तेजी से दौड़ा दिया।
नीली कार की रफ्तार काफी तेज हो चुकी थी। पहले की सड़क की अपेक्षा, इस सड़क पर कम ट्रैफिक था। भुल्ले खान पूरी चेष्टा में था कि नीली कार के करीब पहुंच जाए।
"वो लाल पगड़ी वाला।" देवराज चौहान नीली कार के पीछे बैठे व्यक्ति की पगड़ी देखता कह उठा--- "वो जीतसिंह है। अगर मेजर उसे भेजता तो मुझे जरूर किसी माध्यम से खबर देता।"
"एक मिनट के लिए मान लो कि वो जीतसिंह ही है तो उसे मेजर ने नहीं भेजा, तुम ऐसा सोचते हो कि वो खुद ही पाकिस्तान में आ गया।" भुल्ले खान मुस्कुरा पड़ा--- "जाने क्या-क्या सोच रहे हो जबकि वो सूबेदार जीतसिंह नहीं है।"
भुल्ले खान अब कार को नीली कार के काफी करीब ले आया था।
"ओवरटेक करो।" देवराज चौहान होंठ भींचकर बोला--- "आगे कार लगाकर उस कार को रोको।"
कार चलाते भुल्ले खान रह-रह कर नीली कार के पीछे की सीट पर बैठे सरदार को देख रहा था, जिसकी पगड़ी स्पष्ट नजर आ रही थी।
"वो पीछे भी तो नहीं देख रहा।" भुल्ले खान बड़बड़ा उठा।
एकाएक नीली कार ने बहुत तेज रफ्तार पकड़ ली।
वो दूर होने लगी।
भुल्ले खान ने भी कार की रफ्तार बढ़ा दी।
"आगे चौराहा है।" देवराज चौहान दांत भींचकर बोला--- "लाल बत्ती होने वाली है।"
"फिर तो आगे वाली कार भी लालबत्ती पर रुकेगी।"
इसी पल लाल बत्ती होती नजर आ गई।
उसी वक्त नीली कार चौराहे के पास थी। देवराज चौहान और भुल्ले खान देख रहे थे कि नीली कार अब रुकी के अब रुकी, परंतु वो नहीं रुकी। रफ्तार से दौड़ती लाल बत्ती पार करती चली गई। दूसरी तरफ से शुरू हुए ट्रैफिक से टकराते वो बाल-बाल बची। अन्य वाहन लाल बत्ती पर रुक गए। भुल्ले खान को भी कार रोक देनी पड़ी। चौराहे पर से दूसरी तरफ का ट्रैफिक शुरु हो चुका था और किसी भी हाल में आगे नहीं बढ़ा जा सकता था।
गुस्से में देवराज चौहान की मुट्ठियां भिंच गई।
"मैंने तो पूरी कोशिश की थी।" भुल्ले खान ने अफसोस भरे स्वर में कहा--- "वो कार किस बुरी तरह लाल बत्ती पार करके गई है ये तुमने देखा ही है। अब तो वो हाथ से निकल गई।"
"उस कार में सूबेदार जीत सिंह था भुल्ले।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
"सच बात तो ये है कि मुझे तुम्हारी बात पर जरा भी विश्वास नहीं। तुम्हें मात्र आधे सैकिंड के लिए उसकी झलक देखी थी, पहचानने में तुम्हें धोखा भी लग सकता है। दावे के साथ मत कहो कि वो जीत सिंह था।"
"वो जीत सिंह ही था।" देवराज चौहान का क्रोध में भरा स्वर पड़ा था।
भुल्ले खान गहरी सांस लेकर रह गया।
"आगे रास्ता किस तरफ जाता है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"इस्लामाबाद शहर है ये। आगे का रास्ता तो दसियों तरफ जाता है।" भुल्ले खान ने बताया।
देवराज चौहान कसमसाया सा बैठा रहा। सामने देखता रहा।
"तुम मान लो कि तुम्हें गलती लगी है कि...।"
"चुप रहो।" देवराज चौहान ने पुश्त से सिर टिकाकर आंखें बंद कर लीं।
"शाम हो रही है, हमें मिलिट्री हैडक्वार्टर पहुंचना चाहिए। वरना आज का दिन बीत जाएगा।" भुल्ले खान ने कहा।
"तुम्हें।" देवराज चौहान ने आंखें खोलते हुए कहा--- "मेरी बात का जरा भी भरोसा नहीं कि मैंने उस कार में सूबेदार जीत सिंह को देखा।"
"सही कहा तुमने।" भुल्ले खान गंभीर स्वर में बोला।
"लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि मैंने सूबेदार जीत सिंह को उस कार में बैठे देखा है।" देवराज चौहान ने कहा।
"मान भी लिया जाए कि तुम सही कह रहे हो तो अब क्या हो सकता है। वो कार तो नजरों से निकल गई। अब उसे ढूंढा नहीं जा सकता। तुम ही बताओ कि कुछ हो सकता है इस बारे में?"
तभी ग्रीनलाइट हो गई।
भुल्ले खान कार को आगे बढ़ाता बोला।
"अब किधर लूं कार?"
"साइड लगा दो।" देवराज चौहान ने जेब से फोन निकालते हुए कहा।
भुल्ले ने यू-टर्न लिया और कार को सड़क किनारे रोककर इंजन बंद कर दिया।
"अब?" भुल्ले बोला।
देवराज चौहान मोबाइल से नंबर मिला रहा था। फिर फोन कान से लगा लिया।
"किसे कर रहे हो फोन?"
"मेजर के एजेंट को। अगर मेजर ने किसी सिलसिले में जीतसिंह को सीमा पर भेजा है तो एजेंटों पता होगा।" देवराज चौहान बोला।
"तो वो सरदार जो भी था, तुम उसे सूबेदार जीतसिंह बनाकर ही दम लोगे।" भुल्ले खान मुस्कुरा पड़ा।
दूसरी तरफ कई बार बेल जा चुकी थी फिर उसके कानों में कादिर शेख की आवाज पड़ी।
"हैलो।"
"गोरिल्ला।" देवराज चौहान ने कहा।
"हुक्म हुजूर?"
"मेजर ने उस पार से किसी को इस्लामाबाद भेजा है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"बस, आपको ही भेजा है।"
"मेरे बाद कोई नहीं आया, मेजर की तरफ से?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"नहीं जनाब। किसी ने आना था क्या?"
"मुझे मेजर से बात करनी है। हो सकेगी?" देवराज चौहान ने पूछा।
"जरूरी है?"
"हां।"
"तो मेरा पता नोट कीजिए और आ जाइए।" कहकर उधर से कादिर शेख ने अपना पता बता दिया।
देवराज चौहान ने फोन बंद करके पता, भुल्ले खान को बताकर, चलने को कहा।
भुल्ले खान ने कार आगे बढ़ा दी।
"सूबेदार जीत सिंह के बारे में मेजर से पूछोगे?" भुल्ले खान बोला।
"हां।" देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे।
"अच्छे-भले मिलिट्री हैडक्वार्टर जा रहे थे कि जीतसिंह के भूत ने तुम्हें पकड़ लिया।" भुल्ले खान ने गहरी सांस ली।
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कादिर शेख ने जो पता दिया था, वो इस्लामाबाद के एक भरे-पूरे बाजार की, एक दुकान का पता था। जहां चावल का थोक व्यापार किया जाता था। आसपास की दुकानों पर किराने का थोक में सामान मिलता था। कादिर शेख की दुकान काफी बड़ी, भीतर तक लंबी थी और चावलों की छोटी-बड़ी बोरियां लगी दिख रही थी। तीन दुकान के कर्मचारी भी वहां अपने कामों में व्यस्त दिखे। बाहर सड़क पर रिक्शे-वाले, ठेले वालों की आवा-जाही थी। पैदल भी बहुत संख्या में लोग आ-जा रहे थे। देवराज चौहान भुल्ले खान दुकान पर पहुंचे। कर्मचारियों को बताया कि कादिर शेख से मिलना है तो एक आदमी बोरियों के पीछे मौजूद एक केबिन में उन्हें छोड़ गया।
कादिर शेख वहां पर मौजूद था।
वो पचास बरस का स्वस्थ व्यक्ति था। सिर पर नमाजी टोपी और कुर्ता-पायजामा पहन रखा था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी। उसे देखने पर जिम्मेवार व्यक्ति होने का एहसास होता था।
"आइए जनाब।" वो बोला, देवराज चौहान ने उसकी आवाज पहचानी--- "तशरीफ रखिए।"
देवराज चौहान और भुल्ले खान टेबल के पास मौजूद कुर्सियों पर जा बैठे।
"किन जनाब से मिल रहा हूं मैं?" कादिर शेख बोला।
"मैं देवराज चौहान हूं। और ये भुल्ले खान।"
"भुल्ले खान।" कादिर शेख ने गंभीर निगाहों से भुल्ले को देखा--- 'नाम सुना नहीं।"
"ये मेरे साथ है।" देवराज बोला।
"मेजर से इसका कोई वास्ता नहीं?"
"नहीं।"
"तो इसे मेरे सामने क्यों लाए। तुम अकेले आते।"
"चिंता मत करो। ये मेरे भरोसे का है।" देवराज चौहान ने कहा।
"इस काम में कोई भी भरोसा नहीं होता।" कादिर शेख शांत स्वर में बोला--- "मेजर से बात करना चाहते हो?"
"हां। कराओ।"
"गोरिल्ला के बारे में कुछ किया?"
"अभी नहीं।"
"अपने चेहरे से दाढ़ी हटाओ, मैं तुम्हें देखना चाहता हूं।" कादिर शेख ने कहा।
देवराज चौहान ने दाढ़ी उतार दी।
उसके चेहरे को देखने के बाद कुर्सी पर बैठा कादिर शेख झुका टेबल के सबसे नीचे का ड्राज खोला और एक मोबाइल फोन निकाल कर नम्बर मिलाने लगा। फिर फोन उसकी तरफ बढ़ाया।
"बात कर लो।"
देवराज चौहान ने फोन लिया और कान से लगा लिया। बेल जा रही थी।
"हैलो।" फिर देवराज चौहान के कानों में मेजर की आवाज पड़ी।
"गोरिल्ला।" देवराज चौहान ने कहा।
"ओह देवराज चौहान।" उधर से मेजर ने कहा--- "कोई सफलता मिली?"
"ये काम दो दिन में होने वाला नहीं है मेजर। गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर में रखा हुआ है।"
"तुम तो माने हुए डकैती मास्टर हो। सोच लो कि एक आदमी की तुमने डकैती करनी है और---।"
"पैसे की डकैती और आदमी की डकैती में फर्क होता है। वो भी मिलिट्री हैडक्वार्टर में डकैती।"
"मुझे यकीन है कि तुम सफलता से ये काम कर लोगे।"
"जगमोहन कैसा है?"
"मजे में है। वो कैद में है परंतु जब भी घूमने को कहता है मेरे जवान उसे सैर करा लाते हैं।" मेजर की आवाज आई।
"सूबेदार जीत सिंह कैसा है?"
"वो भी ठीक है। तुम्हें जीत सिंह की चिंता क्यों...।"
"उससे मेरी बात कराओ।"
"सूबेदार जीत सिंह से?"
"हां।"
"मैं तो सोच रहा था कि तुम जगमोहन से बात करना...।"
"सूबेदार जीत सिंह से मेरी बात कराओ मेजर।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था।
"तुम्हें जो बात करनी है मुझसे करो। सूबेदार जीतसिंह से क्या बात---।"
"तुम्हें जो कहा है, वो करो मेजर। जीत सिंह को फोन दो।"
"वो छुट्टी पर गया है।" उधर से मेजर कमलजीत सिंह की आवाज आई।
"कब?"
"उसी दिन, जिस दिन तुम और भुल्ले खान सीमा पार करके पाकिस्तान में गए थे। पर बात क्या है देवराज चौहान, सूबेदार जीत सिंह से तुम्हें क्या लेना-देना। तुम अपना काम...।"
"मैंने जीत सिंह को पैंतालीस मिनट पहले पाकिस्तान के इस्लामाबाद में देखा है।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।
"नहीं।" उधर से मेजर के बुरी तरह चौंकने का स्वर आया--- "ये नहीं हो सकता। भला सूबेदार पाकिस्तान क्यों...।"
"मैंने उसे कार पर जाते देखा। पीछा किया परंतु वो कार हाथ से निकल गई।"
"तुम्हें गलती लगी।"
"मुझे गलती नहीं लग सकती मेजर।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।
भुल्ले खान और कादिर शेख की निगाह देवराज चौहान पर थी।
"या तो तुम पागल हो गए हो देवराज चौहान या फिर मैं पागल होने वाला हूं। जीत सिंह इस्लामाबाद में... असंभव है ये बात। वो तो अपने गांव अमृतसर गया है। अमृतसर से छः किलोमीटर दूर उसका गांव...।"
"तुमने तो जीत सिंह को पाकिस्तान नहीं भेजा?"
"मैंने? जीत सिंह पाकिस्तान नहीं अपने गांव छुट्टी पर गया है। दस दिन की छुट्टी ली है उसने और---।"
"उसके गांव का, घर का फोन नंबर है तुम्हारे पास मेजर?"
"हां, उसके रिकॉर्ड में है...।"
"तो फोन करो उसे।" देवराज चौहान सख्त स्वर में कहा।
कई क्षण मेजर की आवाज नहीं आई। फिर आवाज आई।
"मैं अभी जीतसिंह को उसके गांव फोन करके, उससे बात करता हूं।"
"मैं इस वक्त कादिर शेख के पास बैठा हूं और तुम्हारे फोन आने का इंतजार कर रहा हूं। मैंने जीत सिंह को पौना घंटा पहले यहां, इस्लामाबाद में देखा है। अभी फोन करना मुझे।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
कमरे में कई पल खामोशी छाई रही।
"कुछ देर में मेजर का फोन आने वाला है।" देवराज चौहान ने कादिर शेख से कहा। फोन टेबल पर रखा।
कादिर शेख ने फोन उठाकर वापस टेबल के नीचे वाले में ड्राज में रख दिया।
"सूबेदार जीतसिंह कौन है?" कादिर शेख ने गंभीर स्वर में पूछा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"तुम्हें क्या करना है जानकर?" देवराज चौहान ने कहा।
"बताओ तो---अगर नुकसान ना हो बताने में।" वो पुनः बोला।
"मेजर के साथ काम करता है।"
"हिन्दुस्तानी मिलिट्री में?"
"हां।"
"उसे तुमने इस्लामाबाद में देखा?" कादिर शेख ने देवराज चौहान को देखा।
"हां। मुझे पूरा विश्वास है कि मैंने सूबेदार जीत सिंह को इस्लामाबाद में, कार में जाते देखा।"
"हिन्दुस्तानी मिलिट्री का सूबेदार सीमा पार करके इधर आने का खतरा क्यों लेगा? मेजर ने क्या कहा?"
"वो छुट्टी पर अपने गांव अमृतसर गया है।"
"अजीब इत्तेफाक है। वो तुम्हें यहां दिखा और उधर वो छुट्टी पर है। इत्तेफाक है या नहीं?"
"मेजर का फोन आने पर पता चल जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं तुम्हें सतर्क करना चाहता हूं।" कादिर शेख गंभीर स्वर में बोला।
"किस बारे में?"
"मेजर के सिस्टम के बारे में। मेजर का ताना-बाना ठीक नहीं चल रहा पाकिस्तान में।"
"मैं समझा नहीं।"
"वो मिलिट्री का छोटा-सा बेस था। जहां छः गोरिल्ला घुसे थे उस फाइल को लेने। बहुत सोच समझकर काम शुरू किया गया था। जब उस वक्त बेस पर सिर्फ तेरह मिलिट्री वाले थे और रात का एक बज रहा था। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तब उनमें से आधे से ज्यादा तो पीकर सो रहे होंगे। सिर्फ चार जवान पहरे पर थे। हमारे पास यही खबर थी। यानी कि छः गोरिल्लाओं को कोई दिक्कत नहीं होनी थी, उस फाइल को वहां से निकाल लाने की। परंतु जब वो मोर्चा बनाकर गुप-चुप भीतर घुसे तो इस प्रकार उन पर गोलियां बरसने लगी जैसे उनके ही आने का इंतजार हो रहा था।"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"ये बात तुम्हें कैसे पता?"
"तब एक गोरिल्ला ने फोन पर मेरे से संपर्क बनाकर, ये बात बताई थी।" कादिर शेख बोला--- "सवाल तो इस बात का है कि मिलिट्री बेस पर जाने और फाइल ले आने की योजना बनाते वक्त उन छः गोरिल्ला के अलावा मैं था। अनीस अहमद था और इस्माइल था। हम तीन एजेंट और उन छः गोरिल्ला ने मिलकर उस रात बेस पर हमले की योजना बनाई थी। वो छः फाइल लेने चले गए। परंतु वहां पाकिस्तानी मिलिट्री वाले पहले से ही सतर्क बैठे थे जैसे कि उन्हें सब खबर मिल रही हो कि हम क्या कर रहे हैं।"
"उन्हें खबर किसने दी?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी हुई थी।
"मैंने, अनीस अहमद ने या फिर इस्माइल ने। हम तीनों में से किसी एक ने तो खबर बाहर की ही थी, तभी तो चार गोरिल्ला मौके पर ही मारे गए, बाद में पांचवा भी मरा, परंतु छटा किसी प्रकार उस फाइल को हासिल कर लेने में सफल हो गया।" कादिर शेख ने सहज स्वर में कहा--- "मेजर के सिस्टम में ये गड़बड़ पैदा हो चुकी है।"
"तुमने मेजर से ये बात कही?"
"कोई फायदा नहीं था बताने का। वहां बैठकर मेजर अपने सिस्टम को रिपेयर नहीं कर सकता।" कादिर शेख ने कहा--- "वो सारा काम ठीक से हो जाना था अगर हम तीनो में कोई गद्दार नहीं होता।"
"तुम्हारा मतलब कि अनीस अहमद या इस्माइल में से कोई गद्दार है।" देवराज चौहान बोला।
"मैं भी तो हो सकता हूं।" कादिर शेख मुस्कुराया--- "वक्त बहुत खराब चल रहा है। किसी पर भरोसा करना ठीक नहीं है। अपने लोग ही मौत की वजह बनते हैं। तुम भी सतर्क हो जाओ, क्योंकि तुम भी उन्हीं गोरिल्लाओं के कदमों पर चल रहे हो। मेजर के एजेंटों से संपर्क बनाते जा रहे हो। तुम्हारा हाल भी गोरिल्लाओं जैसा ना हो जाए। अब तुम कहते हो कि तुमने यहां मेजर के साथ काम करने वाले सूबेदार जीत सिंह को देखा। हालांकि हिन्दुस्तानी मिलिट्री वाले का इस्लामाबाद पहुंच जाना, गले से नीचे नहीं उतरता, परंतु तुम खामखाह तो नहीं कह रहे। क्या तुमने वास्तव में वो हिन्दुस्तानी सूबेदार को देखा है?"
"हां।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
कादिर शेख ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
"तुम ये कहना चाहते हो कि मैं मेजर के एजेंटों से संपर्क ना करूं?" देवराज चौहान बोला।
"मैं तुम्हें आने वाले खतरे के प्रति आगाह कर रहा हूं।"
"अगर तुम्हारी ये बात मैं मेजर से कहूं तो?"
"बेशक कह दो। नाव में छेद हो तो तभी पानी भर आता है। देर-सवेर में मेजर को भी छेद के बारे में मालूम हो जाएगा।"
"मैंने अभी तक तुम्हारे अलावा सिर्फ अनीस अहमद से संपर्क बनाया है।"
कादिर शेख, देवराज चौहान को देखता रहा।
"अब मैं इस्माइल से भी संपर्क बनाऊंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
कादिर शेख खामोश रहा।
"मैं देखूंगा कि तब क्या वास्तव में मेरे साथ गड़बड़ होती है।"
"तुम क्या देखोगे। तुम्हारा काम ही हो जाना है तब। मैं तो तुम्हें सलाह दे रहा हूं बेशक ये काम करो। परंतु मेजर के एजेंटों से सतर्क रहो। मेरे से भी। कोई डबलक्रॉस कर रहा है। हमारी खबरें पाकिस्तानी मिलिट्री को दे रहा है। परंतु मेरी बात सुनकर सबक लेने की अपेक्षा तुम फिर वही सब कुछ दोहराने को कह रहे हो।"
खामोश गंभीर बैठा भुल्ले खान कह उठा।
"जनाब ठीक कह रहे हैं देवराज चौहान। उखड़ो मत। हालात को समझो। इनका इशारा चौंकाने वाला है।"
देवराज चौहान ने कादिर शेख से कहा।
"तो क्यों ना सबसे पहले मैं तुम्हें ही अपने शक में लूं।"
"कह तो रहा हूं कि किसी पर भरोसा मत करो।"
"तो मैं अकेला काम कैसे करूंगा।"
"ये तुम जानो। मेरी सलाह है कि तुम अपनी बातें किसी को मत बताओ। हमसे हथियार-पैसा, जो लेना हो लो और चुपचाप अपना काम कर जाओ। यही एक सुरक्षित रास्ता है।" कादिर शेख ने गंभीर स्वर में कहा।
"ये बात अनीस अहमद या इस्माइल जानते हैं कि तुम तीनों में से किसी ने गड़बड़ की है।"
"वो क्या सोचते हैं मुझे पता नहीं। परंतु मैंने इस बारे में उनसे बात नहीं की। मैंने तुमसे जो कहा है, वो सिर्फ मेरे विचार है। उन दोनों से मेरा सीधा संपर्क नहीं है, सिर्फ काम होने पर ही हम कभी-कभार मिल लेते हैं। वो भी तब, जब मेजर कहता है।"
"तुम्हें उन दोनों में से किसी पर तो शक होगा?"
"नहीं। किसी एक पर शक नहीं, परंतु उन दोनों में से कोई तो है जो मेजर के सिस्टम में छेद का काम कर रहा है।"
देवराज चौहान ने कश लिया। कुछ चुप रहकर बोला।
"इस काम में मुझे आदमियों की जरूरत पड़ेगी तो वो इंतजाम कैसे होगा?"
"समझदारी से काम लोगे तो मेजर के किसी एजेंट से इंतजाम करने को नहीं कहोगे। खुद ही आदमी इकट्ठा करना। पैसा तुम्हें हमसे जरूर मिल जाएगा। हथियार भी मिल जाएंगे।" कादिर शेख बोला--- "परंतु तुम जो करना चाहते हो, वो मेरी समझ से बाहर है। गोरिल्ला मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल पर कमरे में कैद है। मिलिट्री हैडक्वार्टर में कदम-कदम पर पहरा है। हर जगह, भीतर भी चैकिंग होती है। एक फ्लोर से दूसरे फ्लोर पर जाते समय बाहरी आदमियों के चैकिंग होती है। वहां पर C.C.T.V. कैमरे से भी नजर रखी जाती है। पक्के इंतजाम है। ऐसे में तुम वहां से गोरिल्ला को कैसे बाहर ला सकते हो। मुझे नहीं लगता कि तुम इस काम में कामयाब हो सकोगे।"
देवराज चौहान चुप रहा।
"तुमने मुझे मिलिट्री हैडक्वार्टर देखा है?" कादिर शेख ने पूछा।
"तुमने अपनी बातों से मुझे उलझन में डाल दिया है।" देवराज चौहान बोला।
"गोरिल्लाओं का हाल बहुत बुरा हुआ था। सारा मिशन फेल हो गया। ये किसी की धोखेबाजी से ही हुआ।"
"तुम, अनीस अहमद या इस्माइल में से किसी एक ने गोरिल्लाओं के बारे में पाकिस्तानी मिलिट्री को खबर दी।"
कादिर शेख ने सहमति से सिर हिलाया।
"फिर तो मुझे तुमसे इस मामले के बारे में ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा।
"अब समझे तुम बात को।"
"तुम तीनों को छोड़कर मैं एजेंटों से संपर्क करके अपना काम ले सकता हूं।"
"ये ठीक रहेगा।" कादिर शेख ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन इस बात का क्या करोगे कि अभी तक तुम्हारे आने और तुम्हारे काम के बारे में खबर पाकिस्तानी मिलिट्री के पास पहुंच गई हो।"
"मैं अभी तक तुमसे और अनीस अहमद से मिला हूं, इस्माइल से नहीं---।"
"मैंने तो अपना विचार जाहिर किया है। शायद उन तक खबर ना पहुंची हो।"
भुल्ले खान ने बेचैनी से पहलू बदलकर कहा।
"शेख साहब, काफी खतरनाक बातें कर रहे हैं।"
"परंतु मेरी बातें सही हैं।" कादिर शेख ने गंभीर स्वर में कहा।
"बात तो तब बनती जब तुम सीधे सीधे बता देते कि वो आदमी गद्दार है।"
"मेरा काम गद्दार को ढूंढना नहीं है। फिर मैं दोबारा कह रहा हूं कि ये बातें, मेरे विचार हैं।"
"तुम्हारा मतलब ये तो नहीं कि तुम्हारे विचार गलत भी हो सकते हैं।" देवराज चौहान बोला।
"मैंने जो कहा है, वो पूरी तरह सच है। ऐसा ही हुआ था। पाकिस्तानी मिलिट्री के पास, उस रात की पहले से ही खबर थी कि छः लोगों का गोरिल्ला दल, फाइल पाने के लिए मिलिट्री के उस छोटे से ठिकाने पर हमला करने वाला है। हमारी खबर के मुताबिक वहां सिर्फ तेरह मिलिट्री वाले थे और रात का पहरा चार मिलिट्री वालों ने देना था। गोरिल्ला दल ने जब वहां कदम रखा तो उन पर गोलियां चलने लगी और मिलिट्री वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी। यानी उनको सब पता था कि रात को वहां गोरिल्ला दल आने वाला है। मेरे, अनीस अहमद और इस्माइल के अलावा गोरिल्ला दल के बारे में कोई नहीं जानता था। हम तीनों में से कोई एक गद्दार है जिसने पाकिस्तानी मिलिट्री को हमारा उस रात का सारा प्लान बताया।"
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि मोबाइल बजने की आवाज आने लगी।
कादिर शेख ने टेबल के नीचे की ड्राज से फोन निकाला और स्क्रीन पर आया नंबर देखकर बोला।
"बात करो।"
देवराज चौहान ने फोन लिया और कॉलिंग स्विच दबाकर बात की।
"कहो मेजर।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैंने अभी सूबेदार जीतसिंह से फोन पर बात की है। वो अमृतसर के पास अपने गांव में है।" उधर से मेजर की आवाज आई।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
"मैं खुद हैरान था कि सूबेदार जीत सिंह इस्लामाबाद में कैसे हो सकता है। ये बात मैंने उसे बताई तो वो हैरान हो गया।"
"फिर तो मुझे धोखा हुआ होगा। सूबेदार जीत सिंह नहीं होगा जिसे मैंने देखा था।" देवराज चौहान बोला।
"काम की क्या पोजीशन है?" मेजर की आवाज कानों में पड़ी।
"काम पर लग चुका हूं। परंतु मुझे पता चला है कि तुम्हारे एजेंटों में से कोई पाकिस्तानी मिलिट्री से मिला हुआ है। गोरिल्ला दल के बारे में मिलिट्री वाले पहले से ही जान गए थे और मिशन फेल होने की हद तक पहुंच गया।"
"ये नहीं हो सकता।"
"मुझे तो कादिर शेख ने ऐसा ही बताया है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
मेजर की आवाज नहीं आई।
"इस स्थिति में मेरे लिए काम करना कठिन हो जाएगा।" देवराज चौहान बोला।
"जैसे भी हो, तुम्हें ये काम करना है देवराज चौहान।" मेजर का गंभीर स्वर कानों में पड़ा--- "तुमसे पता चला कि मेरे एजेंटों में कोई गद्दार हो सकता है। मैं इस बात की छानबीन कराऊंगा।"
"कैसे?"
"मेरे और लोग भी हैं वहां। वो गोरिल्ला दल का मामला चैक करेंगे।"
"ये तुम जानो। परंतु इन हालातों में तुम्हारे एजेंटों की सहायता नहीं ले सकता मैं।"
"ये काम तुमने पूरा करना है। जैसे भी करो।" मेजर का स्वर गंभीर था।
देवराज चौहान ने मोबाइल कादिर को देते हुए कहा।
"तुम मेजर से बात करो। मैं चलता हूं। उठ भुल्ले।" इसके साथ ही देवराज चौहान खड़ा हो गया।
देवराज चौहान और भुल्ले खान वहां से बाहर निकले और भीड़ भरी सड़क पर आगे बढ़ गए।
कुछ दूर खड़ी पार्किंग में मौजूद कार में जा बैठे। देवराज चौहान गंभीर दिख रहा था।
"तो जिसे तुमने देखा था, वो सूबेदार जीत सिंह नहीं था।" भुल्ले खान कह उठा।
"मेजर कहता है कि जीत सिंह इस वक्त, अमृतसर के पास, गांव में, अपने घर पर है। उसने जीत सिंह से बात की है।"
"मुझे तो पहले ही पता था तो जीत सिंह इस्लामाबाद आ ही नहीं सकता।"
"पर वो मुझे जीतसिंह ही लगा था।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।
"अब तो ये मामला खत्म हो गया है?"
"हां।"
"कादिर शेख ने बहुत खतरनाक बात कही कि गोरिल्ला दल धोखे में मारा गया।" भुल्ले बोला।
"सच में ये खतरनाक बात है।" देवराज चौहान बोला--- "कादिर शेख अगर ये सोचता है कि ये बात उसके बताने पर, मैं उसे संदेह के घेरे में नहीं लूंगा, तो ये उसकी भूल है। वो गद्दार कादिर शेख भी हो सकता है।"
"पर ये बात अभी तक उसने मेजर को क्यों नहीं बताई?"
"इसकी वजह तो वही जानता होगा। परंतु अब हमें सतर्क रहना होगा। भुल्ले।"
"हां।"
"तू इस मामले से निकल जा। ये काम अब और भी खतरनाक होने लगा है।"
"तुम्हारे साथ ही रहूंगा।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा--- "मेरी वजह से ही तुम इस मामले में फंसे हो। अभी ये बात राणा साहब को नहीं पता। पता लगने पर वो भी मेरे से नाराज होंगे। लेकिन ये सोचकर कम नाराज होंगे कि मैं इस काम में तुम्हारे साथ लगा हुआ हूं। जगमोहन को मेजर ने पकड़ रखा है। अगर उसे भी आने दिया होता तो इस काम से हाथ झाड़कर हम आसानी से खिसक जाते। अब जाना कहां है। मिलिट्री हैडक्वार्टर जाने का तो वक्त निकल गया। शाम के साढ़े छः बज रहे हैं। वापस फ्लैट पर चलें?"
"मैं कादिर शेख की बातें सोच रहा हूं।"
"क्या?"
"कि वो सही कह रहा है कि गोरिल्ला के साथ धोखेबाजी हुई थी।" देवराज चौहान बोला।
"वो गलत क्यों कहेगा ऐसी बात? मेरे ख्याल में तो ये बताकर तुम्हारा भला ही किया है। तुम्हें सतर्क किया है कि कहीं तुम भी गोरिल्ला के दल की तरह मारे ना जाओ।" भुल्ले खान ने सोच भरे स्वर में कहा।
"अनीस अहमद से मिलते हैं।" एकाएक देवराज चौहान जेब से फोन निकालता कह उठा।
"क्यों?"
"अगर गोरिल्ला दल वाले मामले के गद्दार का पता चल जाए तो हमारा काम कुछ आसान हो सकता है। उससे कई तरह की, काम की जानकारियां मिल सकती हैं। शायद उसे काम में भी लाया जा सके।"
"वो पाकिस्तानी मिलिट्री को खबरें देता है तो हमारे क्या काम आएगा?" भुल्ले खान बोला।
"देखते हैं।" देवराज चौहान मेजर के दिए कागज पर से अनीस अहमद का नंबर देखकर मिलाया।
फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी।
बात हुई। मिलने का वक्त आधे घंटे बाद का तय हुआ। देवराज चौहान ने भुल्ले को बता दिया कि अनीस अहमद कहां पर मिलने वाला है। भुल्ले खान ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ाते कहा।
"अगर कादिर शेख की बात सही है तो वो गद्दार अनीस अहमद भी हो सकता है। ऐसे में उससे मिलने में तुम्हें खतरा आ सकता है। वो तुम्हारे बारे में मिलिट्री को खबर दे सकता है।"
"इतना रिस्क तो लेना ही होगा।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
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अनीस अहमद 30-32 बरस का व्यक्ति था। वो पैंट-कमीज में था और क्लीन शेव था। कद लंबा था। सांवले रंग का था। सेहतमंद था। उसने बताया था कि वो उस रेस्टोरेंट में होने वाली टेबल पर बैठा होगा और काली कमीज पहनी होगी। इसलिए वो आसानी से पहचान में आ गया। देवराज चौहान और भुल्ले खान ने जब रेस्टोरेंट में प्रवेश किया तो वो बैठा नजर आया। दोनों सीधा उस तक जा पहुंचे।
उसने दोनों को देखा। वो सोच रहा था कि देवराज चौहान अकेला ही आएगा।
"गोरिल्ला।" देवराज चौहान ने कहा और कुर्सी पर बैठ गया।
भुल्ले खान भी बैठा।
"तुम्हारी आवाज मैंने पहचान ली है।" अनीस अहमद बोला--- "पर ये कौन है?" उसने भुल्ले को देखा।
"मेरा आदमी है।" देवराज चौहान ने कहा।
"हिन्दुस्तान से आया तो नहीं लगता।" उसने पुनः भुल्ले खान पर नजर मारी।
"ठीक कहा। पाकिस्तान का है। तुम इसकी चिंता मत करो। इसकी जिम्मेदारी मुझ पर है।"
अनीस अहमद ने सिर हिलाकर कहा।
"गोरिल्ला के बारे में अब तक तुमने क्या कदम उठाया?"
"मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं।"
"क्या?"
"कितने दिन पहले गोरिल्ला दल वाला काम किया गया था?" देवराज चौहान ने पूछा।
"आठ-नौ दिन पहले।" अनीस अहमद ने देवराज चौहान को देखा।
"तब क्या-क्या तैयारी की गई थी और क्या हुआ था, मुझे सब बताओ।"
"तुम्हारे काम से, इन बातों का क्या मतलब?"
"बहुत गहरा मतलब है। उसी गोरिल्ला दल का एक मेंबर, मिलिट्री हैडक्वार्टर में कैद है और उसे वहां से निकालना है मैंने। ऐसे में मैं जानना चाहता हूं कि वो फंसा कैसे?" देवराज चौहान बोला।
अनीस अहमद के चेहरे पर गंभीरता उभरी।
"जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ था।"
"क्या हुआ था?"
"गोरिल्ला दल के वो छः लोग हमसे आ मिले। हमने उन्हें छुपाकर रखा। मेरे साथ कादिर शेख और इस्माइल था। कादिर शेख से तो मैं पहले भी मिल चुका था, परंतु इस्माइल से पहली बार मिला था। गोरिल्ला दल ने बताया कि उन्होंने क्या काम करना है। वो मिलिट्री के उस ठिकाने की रेकी करना चाहते हैं। उसके बाद हम उनकी जो सहायता कर सकते थे हमने की। कुछ दिन वो मिलिट्री के उस ठिकाने पर नजर रखते रहे जहां पर उन्होंने वो फाइल लेनी थी। मिलिट्री का वो छोटा-सा ठिकाना था। दस-ग्यारह कमरे थे और लगभग इतने ही मिलिट्री के टैंट लगे थे। सैनिक भी वहां ज्यादा नहीं होते थे। जब रेकी का काम पूरा हो गया तो हमने उनके साथ बैठकर योजना बनाई कि काम को कैसे अंजाम देना है। आसान काम था क्योंकि उस रात वहां सिर्फ तेरह मिलिट्री वाले थे और चार जवानों को रात का पहरा देना था। हमने उन्हें मिलिट्री के उस ठिकाने का नक्शा लाकर दे दिया था। उन्हें पता था कि वो फाइल उस ठिकाने पर कहां पर रखी गई है। उस रात को हमने एक चोरी की कार दे दी उन्हें। जिसे इस्तेमाल करके वो रात के एक बजे मिलिट्री के उस ठिकाने पर पहुंचे। हम में ये तय था कि काम के बाद वो हमें फोन करके अपनी पोजीशन के बारे में बताएंगे और हम उन्हें मिलेंगे और छुपा देंगे। उसके बाद दो-चार दिन में उन्हें सीमा पार करा देंगे। साथ ही मैं और इस्माइल वहां से कुछ दूर रहकर उधर नजर रख रहे थे।"
"कादिर शेख तब तुम लोगों के पास नहीं था?"
"नहीं। उसे मैंने ही घर भेज दिया था कि इस तरह तीनों का इकट्ठे रहना ठीक नहीं। आगे का मामला हम देख लेंगे और सुबह उसे फोन करूंगा। कादिर शेख का उस वक्त पास ना होना, कोई खास महत्व नहीं रखता।" अनीस अहमद ने गंभीर स्वर में कहा--- "उन छः गोरिल्ला ने चोरी-छुपे मिलिट्री के ठिकाने में प्रवेश किया था। दूर से मैंने और इस्माइल ने ये जान लिया था। परंतु उसके बाद क्या हुआ वहां, पता नहीं चल सका। दो-तीन मिनट बीतने के बाद वहां से धड़ाधड़ फायरिंग की आवाजें आने लगी। ऐसा लगा जैसे दो तरफ से गोलियां चलने लगी हो। मैं समझ गया कि गोरिल्ला दल खतरे में पड़ गया है। इन हालातों में हमारा वहां रुकना ठीक नहीं था। मैं और इस्माइल वहां से चले आए। अपने-अपने घर चले गए हम, परंतु पूरा ध्यान गोरिल्लाओं पर था कि उनके साथ क्या हुआ। इस तरह की फायरिंग होने का कोई मतलब ही नहीं था। ऐसा लगा था जैसे मिलिट्री वाले पहले से ही तैयार बैठे हों। वो सब जानते हों कि आज रात उनके ठिकाने पर, कुछ लोग आने वाले हैं।"
"तुम्हारा मतलब कि पाकिस्तानी मिलिट्री को गोरिल्ला दल के बारे में खबर थी।" देवराज चौहान बोला।
"लगता तो ऐसा ही है।"
"कैसे खबर थी--- किसने बताया?"
"कौन बताएगा?" अनीस अहमद ने देवराज चौहान को देखा।
"तुम या कादिर शेख या इस्माइल।"
अनीस अहमद की निगाह देवराज चौहान पर टिकी रही। उसे देखता रहा। चेहरे पर गंभीरता आ गई थी। कुछ पलों की खामोशी के बाद उसने धीमे स्वर में कहा।
"ये ठीक है कि पाकिस्तानी मिलिट्री को पहले से ही उनके आने का पता था, लेकिन ये खबर हम तीनों में से किसी ने उन तक पहुंचाई हो, ऐसा लगता नहीं।"
"क्यों नहीं लगता?"
"ऐसा कुछ होता तो मिलिट्री हमें भी पकड़ चुकी होती, हिन्दुस्तानी एजेंट होने के नाते।"
"ये जरूरी तो नहीं।"
"जरूरी है।"
"नहीं।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "मान लो तुम ही डबल एजेंट हो। तुम ही पाकिस्तानी मिलिट्री को खबरें दे रहे हो और तुमने ही उन्हें गोरिल्ला दल के बारे में बताया, परंतु मिलिट्री ने तुम्हारे साथियों को कुछ नहीं कहा कि तुमसे उन्हें काम की खबर मिल रही है। वो दोनों फंस जाते तो तुम मेजर की निगाहों में संदिग्ध हो जाते। इस वजह से कादिर शेख और इस्माइल बचे हुए हैं और उन्हें बराबर तुमसे खबरें मिलती रही।"
अनीस अहमद के चेहरे पर तीखे भाव आ गए।
"ये तुम उदाहरण दे रहे हो या मेरी तरफ उंगली उठा रहे हो।" उसने कड़वे स्वर में कहा।
"नाराज होने की जरूरत नहीं। मैंने सिर्फ उदाहरण दिया है कि बाकी दो क्यों बचे रहे।" देवराज चौहान बोला।
"इसे उदाहरण ही रखना, मेरी तरफ उंगली उठाने की कोशिश ना करना।" अनीस अहमद नाराज-सा दिखा--- "वैसे तुम्हारी बात सही हो सकती है। मेरे, कादिर शेख और इस्माइल में से कोई डबल एजेंट हो सकता है।"
"अगर ऐसा कोई है तो तुम क्या सोचते हो, वो कौन होगा?"
अनीस अहमद के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
"कह नहीं सकता। व्यक्तिगत तौर पर मैं कादिर शेख या इस्माइल पर उंगली नहीं उठा सकता। तुम दोनों में से मुझे कोई भी ऐसा नहीं लग रहा। परंतु कोई तो है ही ऐसा। तभी गोरिल्ला दल वाला मामला 'लीक' हुआ।"
"इस्माइल कैसा इंसान है?"
"बढ़िया। जिंदादिल है। हिम्मती है। मैं उसे पसंद करता हूं।"
"और कादिर शेख?"
"वो भी ठीक है। जिम्मेदार और गंभीर इंसान है। मुझे इन दोनों में से किसी पर शक नहीं।"
"आज कादिर शेख से बात हुई मेरी। उसने मुझे सतर्क किया कि तीनों में, वो खुद भी तीनों में शामिल है, कोई एक तो धोखेबाज है ही। तभी तो गोरिल्ला दल का मामला पाकिस्तान मिलिट्री जान पाई। जहां सिर्फ चार मिलिट्री के जवान पहरे पर होने चाहिए थे, वहां पन्द्रह-बीस लोग गोरिल्ला दल के आने के इंतजार में हथियारों को लेकर मोर्चा लिए हुए थे। वो भी किसी के डबल एजेंट होने के बाद स्वीकारता है।"
"तो उससे पूछो कि कौन हो सकता है वो?"
"पूछा लेकिन इस बारे में वो अभी तक अपनी राय कायम नहीं कर पाया।" देवराज चौहान ने कहा।
अनीस अहमद के चेहरे पर गंभीरता दिखाई दे रही थी। वो बोला।
"इस्माइल से नहीं मिले?"
"मिलूंगा।"
"तुम तीनों से मिलो और अपनी राय कायम करो।"
"मैं उस मामले में अपनी राय कायम नहीं कर सकता, जो बीत गया हो। राय तभी कायम की जा सकती है, तभी किसी की तरफ उंगली उठाई जा सकती है, जब मामला खुद पर बीता हो।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "कादिर शेख ने स्पष्ट कहा है कि जो भी करना हो करो, परंतु किसी की सलाह या सहायता ना लूं, वरना मेरा हाल में गोरिल्ला दल की तरह होगा। उसका कहना है कि अब तक मेरे बारे में, उस डबल एजेंट की वजह से पाकिस्तानी मिलिट्री जान चुकी होगी और इस वक्त मैं खतरे में हूं।"
अनीस अहमद चुप रहा।
"तुम क्या कहते हो इस बारे में?"
"कुछ समझ में नहीं आता।" अनीस अहमद ने गंभीर स्वर में कहा--- "अगर गोरिल्ला दल की खबर, पाकिस्तानी मिलिट्री तक पहुंच सकती है कि किस रात वो हमला करने वाले हैं तो तुम्हारी खबर भी उन तक पहुंच सकती है।"
"तो कादिर शेख ठीक कहता है कि मैं तुम तीनों से मिलना बंद कर दूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं उसकी बात से सहमत हूं परंतु तुम्हारी मजबूरी है कि तुम अकेले ये काम नहीं कर सकते। हमारी सहायता लेनी ही पड़ेगी। जबकि मेरा ख्याल है कि तुम गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने में कामयाब नहीं हो सकोगे।"
"मैं नहीं जानता कि आने वाले वक्त में क्या होगा। अभी तो हालातों पर गौर कर रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा--- "तो उस रात गोरिल्ला दल के साथ क्या हुआ?"
"चार मारे गए। एक के हाथ किसी तरह वो फाइल लग गई। वो सुरक्षित वहां से निकल आया। उसके साथ एक और गोरिल्ला था। दोनों वहां से निकलकर कहां गए, पता नहीं। परंतु अगले दिन एक गोरिल्ला की लाश मिली। परंतु उसके पास किसी तरह का कोई कागज नहीं था। मेजर को हम पल-पल की खबर दे रहे थे। तब मेजर ने हमें बताया कि तीन सैनिकों को, सादे कपड़ों में गोरिल्ला दल पर नजर रखने को उनके पीछे भेजा है। उन जवानों की नजर में आखिरी बचा, गोरिल्ला हो सकता है। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हम करें तो क्या करें। हम तो इस बात से परेशान थे कि छः में से पांच गोरिल्ला मारे जा चुके हैं, जो कि नाकामी की निशानी थी। तभी अगले दिन उन तीन सैनिकों में से, दो की लाश मिली पुलिस को। मेजर ने हमें फोन पर बताया कि वो लाशें उनके सैनिकों की हैं। एक बचे सैनिक ने मेजर को खबर दी थी। परंतु उन्हें किसने मारा, पता ना चला। गोरिल्ला को किसने मारा पता ना चला। हमने मेजर से कहा कि हमें आखिरी बचे जवान की खबर दे कि वो कहां है, हम उससे मिलना चाहते हैं। परंतु मेजर उससे संपर्क नहीं कर पाया। संपर्क का माध्यम फोन था, जिसका कि नंबर नहीं लग रहा था। उससे अगले ही दिन हमें पता चला कि आखिरी बचा गोरिल्ला मिलिट्री के हाथों में जा पड़ा है। परंतु उसके पास से किसी प्रकार का कागज नहीं मिला। वो फाइल नहीं मिली। बस यहीं पर ये मामला रुक गया था फिर तुम आ गए।"
"वो आखिरी बचे सैनिक की कोई खबर?"
"कोई नहीं।"
"वो कहां गया?"
"पता नहीं। हो सकता है मारा गया हो और हमें पता ना चला हो। क्योंकि तब सारे घटनाक्रम बहुत तेजी से हुए थे। सब तरफ नजर रखना भी कठिन हो रहा था। हम बौखला चुके थे कि मामला इतना कैसे गड़बड़ा गया।"
"उस आखिरी सैनिक का नाम क्या था?"
"मैं नहीं जानता। मेजर को पता होगा।"
"अब तुम इस सारे मामले के बारे में क्या कहते हो?"
"पाकिस्तानी मिलिट्री को मामले की, गोरिल्ला दल की पूरी खबर थी।" अनीस अहमद ने कहा।
"गोरिल्ला दल का सारा मामला मिलिट्री जान गई और तुम तीनों के बारे में उन्हें नहीं पता लगा। ये कैसे हो सकता है?"
अनीस अहमद देवराज चौहान को देखने लगा। एकाएक वो बेचैन दिखा।
"अगर किसी ने मिल्ट्री को गोरिल्ला दल के बारे में सारी खबर दी है तो स्पष्ट है कि उसने तुम तीनों के हिन्दुस्तानी मिलिट्री के एजेंट होने के बारे में भी बताया होगा। तुम तीनों का कच्चा चिट्ठा मिलिट्री के पास होगा कि नहीं?"
"जरूर होगा।" अनीस अहमद ने बेचैनी से पहलू बदला।
"और अभी तक मिलिट्री ने तुम तीनों को आजाद छोड़ रखा है। क्यों?" देवराज चौहान बोला।
अनीस अहमद के होंठ भिंच गए। चेहरा लटक गया।
उसके चेहरे के भावों को देखकर देवराज चौहान समझ गया कि पाकिस्तानी मिलिट्री को खबरें देने वाला कम से कम ये नहीं हो सकता। देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर जमी रही।
"त...तुम बहुत खतरनाक बात की तरफ इशारा कर रहे हो।" अनीस अहमद के होंठों से निकला।
"तुम खतरे में हो।"
"तो अभी तक मिलिट्री ने हम पर हाथ क्यों नहीं डाला?"
"ये बात तुमसे पहले भी कही है कि जो मिलिट्री को तुम लोगों की, या मेजर के भेजे लोगों की खबरें दे रहा है, उसने ही मिलिट्री को रोक रखा होगा कि, तुम लोगों को अभी कुछ नहीं कहना है। तुम तीनों में से दो को पकड़ लिया गया तो तीसरा मेजर की नजरों में शक का केंद्र बन जाएगा। वैसे भी मिलिट्री को कुछ नहीं मिलने वाला तुम लोगों को पकड़कर। मेजर की हरकतों की खबर उन्हें अपने जासूस से बराबर मिल रही है। या हिन्दुस्तान से सीमा पार करके जो भी पाकिस्तान आकर तुम लोगों से संपर्क करता है तो मिलिट्री को खबर मिलनी शुरू हो जाती है। मिलिट्री को यही सब तो चाहिए।"
"परंतु ये कब तक चलेगा। कभी तो मिलिट्री मुझ पर हाथ डालेगी।" अनीस अहमद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
"नहीं। मिलिट्री के लोग कभी भी तुम लोगों पर हाथ नहीं डालेंगे। उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। जब वे तुम लोगों की जरूरत नहीं समझेंगे तो तुम लोगों को शूट कर देंगे।"
"क्यों डरा रहे हो इसे।" भुल्ले खान बोला।
"मैं सच कह रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा--- "और जो डबल एजेंट का काम करता, पाकिस्तानी मिलिट्री को खबर दे रहा है अंत में उसका अंजाम भी यही होगा। वो भी बचने वाला नहीं।"
अनीस अहमद ने पुनः पहलू बदला। वो परेशान दिख रहा था।
तभी वेटर आया तो भुल्ले खान ने कॉफी के साथ खाने-पीने का ऑर्डर दे दिया।
"तु...तुम कहना क्या चाहते हो?" अनीस अहमद बोला।
"बता रहा हूं कि तुम कितने खतरे में जी रहे हो।"
"तो क्या मेजर के लिए काम करना छोड़ दूं?"
"उससे क्या होगा। मिलिट्री के ब्लैक लिस्ट में तुम्हारा नाम लिखा जा चुका है। तुम बचने वाले नहीं।"
"मैं फंसना नहीं चाहता। मेरा परिवार है। बूढ़े अब्बा हैं। मैं तो...।"
"ये काम भी फंसने वाला है। पाकिस्तान में रहकर तुम हिन्दुस्तान के जासूस बने हुए हो, कभी तो तुमने फंसना ही है। नोटों के लालच में देश से गद्दारी ज्यादा देर तक नहीं चलती। मुसीबत तो तुमने उसी दिन खरीद ली थी, जब मेजर के लिए काम शुरू किया।"
अनीस अहमद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा।
"तुम मेजर के लिए काम कर रहे हो या उसके खिलाफ काम कर रहे हो। तुम मुझे बातों से परेशान कर रहे हो।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"मैं तुम्हें हकीकत का आईना दिखा रहा हूं जो तुम देखना नहीं चाहते। तुम सोचते हो कि सब बढ़िया चल रहा है, पर ऐसा कुछ नहीं। तुम तलवार की धार पर चल रहे हो। धार से नीचे उतरे तो तलवार तुम्हें काट देगी।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर होता चला गया--- "यहां पर मैं इतना खतरे में नहीं हूं जितने कि तुम खतरे में हो। मैं तो भाग भी सकता हूं परंतु तुम नहीं भाग सकते। मेजर के काम के भी तुम तब तक के ही हो, जब तक उसके काम आ रहे हो। जासूसी का काम जितना आसान लगता है, असल में उतना आसान है नहीं। जब गले में फंदा पड़ता है तो कोई नहीं पूछता।"
अनीस अहमद ने खुद को संभाला और कह उठा।
"तुम अपने लिए सहायता लेने आए हो या मुझे ये सब कहने।"
"बुरा लगा।"
"मैं... मैं ये सब नहीं सुनना चाहता।"
तभी वेटर आर्डर का सामान सर्व कर गया।
भुल्ले खान ने कॉफी का प्याला उठाया और घूंट भरा फिर प्लेट में रखे स्नैक्स खाने लगा।
"तुम लोग मेरे किसी काम के नहीं हो। गोरिल्ला को आजाद कराने में तुम मेरी सहायता नहीं कर सकते।"
"मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को निकाला नहीं जा सकता। जो ऐसा सोचेगा, वो पागल होगा।" अनीस अहमद बोला।
"मेजर के नाम पर तुम मुझे कितना पैसा दे सकते हो।" देवराज चौहान ने कहा।
"कह नहीं सकता।" अनीस अहमद ने कहा--- "पैसे को कोई और संभालता है। उसे शायद कोई भी नहीं जानता। सिर्फ फोन नंबर है हमारे पास उसका। जब कभी हम किसी काम के लिए पैसा मांगते हैं तो मिल जाता है। परंतु तुम्हारे मामले के बारे में मुझे पूछना पड़ेगा कि वो तुम्हारे लिए कितना पैसा दे सकता है। क्या पूछ कर बताऊं?"
"आराम से पूछ लेना। मैं कल तुम्हें फोन करूंगा।"
"ठीक है। परंतु उसे क्या कहूं कि तुम्हें पैसे की जरूरत क्यों है।" अनीस अहमद ने पूछा।
"मेजर ने उसे जरूर समझा दिया होगा। तुम उससे सिर्फ पैसे की बात करना। बेहतर है, उसका नंबर मुझे दे दो।"
"इस बारे में कल बात करना। मुझे इजाजत नहीं है उसका नंबर देने की। पूछूंगा।"
देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
"चलें?" भुल्ले खान अपना कॉफी का आधा भरा प्याला नीचे रखता बोला।
"हां।"
"और 'बिल'?" भुल्ले खान उठ खड़ा हुआ।
"मैं दे दूंगा।" अनीस अहमद अभी भी बेचैन लग रहा था।
देवराज चौहान और भुल्ले खान रेस्टोरेंट से बाहर आ गए।
रात के साढ़े आठ बज रहे थे। वे कार की तरफ बढ़ गए।
"तुमने तो उसकी फूंक सरका दी।" भुल्ले खान बोला।
"मैंने सच बातें कही हैं। अगर मेजर के लोगों में कोई डबल एजेंट का काम कर रहा है तो ये भी बचने वाले नहीं।"
"ये बात तुम मेजर से कहो।"
"ये मेरा काम नहीं है। मेरा काम गोरिल्ला को वहां से निकालना है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "अगर पाकिस्तानी मिलिट्री, मेरे बारे में, मेरे मकसद के बारे में जानती हैं तो इस काम में मुझे समस्या खड़ी हो सकती है।"
"अगर मिलिट्री को तुम्हारे बारे में पता होता तो वो तुम्हें अब तक पकड़ लेती।" भुल्ले खान ने कहा--- "मिलिट्री तुम्हें मौका क्यों दे कि तुम गोरिल्ला को छुड़ाने की कोशिश कर सको।"
""तुम्हारी बात में दम है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
दोनों कार में जा बैठे। कार स्टार्ट करते भुल्ले खान बोला।
"अनीस अहमद के बारे में तुम्हारी क्या राय है?"
"वो डबल एजेंट नहीं हो सकता। इस्माइल से मिलना है अब।"
"अभी?"
"हां।" कहते हुए देवराज चौहान ने फोन निकाला और इस्माइल का नंबर मिलाने लगा।
"और कादिर शेख, क्या वो डबल एजेंट हो सकता है?" भुल्ले खान ने पूछा।
"मुझे नहीं लगा कि वो डबल एजेंट का काम कर रहा हो। वो डबल एजेंट होता तो मुझे सावधान नहीं करता। ये नहीं कहता कि कहीं मेरी हालत भी, गोरिल्ला दल जैसी ना हो जाए।" नंबर मिलाता देवराज चौहान कह उठा।
"अब बचा इस्माइल...।" भुल्ले खान बड़बड़ा उठा
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