लव एट फ़र्स्ट साइट

नारनौल एक ऐतिहासिक नगर है, जो हरियाणा के दक्षिण में पड़ता है। इस नगर को लेकर अनेक किवंदन्तियाँ और गाथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत काल में इसे ‘नरराष्ट्र’ के रूप में जाना जाता था। प्रचलित है कि यह नगर पहले भारजंगल से ढका हुआ था और शेरों का ठिकाना था। बाद में जंगलों को काटकर यह नगर बसाया गया और यह एक व्यापारिक केन्द्र बन गया।             

शेरशाह सूरी का जन्म नारनौल में हुआ था। अकबर ने यहाँ बीरबल के छत्ते का निर्माण करवायाँ। शाह कुली ख़ां ने यहाँ जलमहल बनवाया था। नारनौल अनेक ऐतिहासिक इमारतों का महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है (यह गूगल से लेकर चिपका दिया है)।

नारनौल नगर के सरकारी अस्पताल के सामने झोंपड़ीनुमा बनी चाय की दुकान में वीर, आदि और नीलेश, तीनों चाय पी रहे थे। सुबह के दस बज रहे थे। वीर और नीलेश बी.एस.सी. सेकंड़ ईयर में थे और आदि फ़र्स्ट ईयर में था। हालांकि तीनों एक-दूसरे को पहले से ही जानते थे। तीनों ने बारहवीं एक साथ एक ही स्कूल से उतीर्ण की थी। वीर और नीलेश ने अपने बारहवीं के अंक देखकर ही विचार कर लिया था कि उन्हें बी.एस.सी. करने के लिए कालेज में दाख़िला ले लेना चाहिए और आदि ने बारहवीं के बाद अपना एक साल एम.बी.बी.एस. की तैयारी में खपा दिया था और उसके बाद उसने कालेज में दाख़िला लिया था। इसलिए आदि दोनों का जूनियर था, लेकिन इससे इन तीनों को घंटा कोई फ़र्क़ पड़ने वाला था। इनका पढ़ना-लिखना, जीना-मरना, मस्ती करना सब एक साथ ही होता था। हालांकि नीलेश पढ़ाई और क्लास लेने के प्रति सजग था, लेकिन नीलेश भी अधिकतर इनके साथ ही मिलता था क्योंकि वीर और आदि उसे इतना क्लास लेने का मौक़ा ही नहीं देते थे।

ख़ैर, आज भी तीनों चाय की दुकान पर बैठे किसी सोनी का इन्तज़ार कर रहे थे।

“भैंचो, यह सोनी कहाँ रह गया? आया क्यूँ नहीं अभी तक?” वीर ने मोबाइल की स्क्रीन पर टाइम देखते हुए कहा।

“अरे, बता तो दिया था न कि कहाँ पर आना है?” आदि ने अपनी बाजुओं पर हाथ घुमाते हुए कहा।

“हाँ, आज सुबह ही उससे बात हुई थी तो बताया था कि यहीं चाय की दुकान पर आना है।” वीर ने दरवाजे की तरफ़ देखते हुए कहा।

“अरे यार, मुझे क्लास भी लेनी है। पहला पीरियड़ 09:30 पर शुरू हो चुका है और मैं अभी तक यहीं बैठा हूँ। तुम लोग यह अपना जल्दी ख़त्म करो।” नीलेश ने दोनों को देखते हुए कहा।

“ख़त्म तो तभी होगा जब अपना रैंबो यह शर्त जीतेगा और सोनी को पार्टी देनी पड़ेगी।” वीरे ने आँखों की भौंहें ऊपर चढ़ाते हुए कहा।

दरअसल, सोनी और आदि में पंजा लड़ाने की शर्त लग गई थी। आज का दिन तय किया गया था, पंजा लड़ाने के लिए। और जो भी हारेगा, उसे तीनों को जूस और पैटीज़ की पार्टी देनी पड़ेगी। तो आज इसी दंगल के लिए सोनी का इन्तज़ार हो रहा था।

“अबे चूतिए, कहाँ रह गया था तू?” वीर ने सोनी को दुकान के अंदर आते ही कहा।

“कुछ नहीं भाई वीर, बस थोड़ा लेट हो गया, लेकिन आ तो गया। अब यह बता कि इन दोनों में से किसको हराना है?” सोनी ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“बड़ा जल्दी में है तू, कहाँ जाएगा ?” वीर ने एक सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

“भाई, बस इसे हराकर फिर जिम करने भी जाना है।” सोनी ने अपनी टी-शर्ट की बाजू को ऊपर चढ़ाते हुए कहा।

पंजा लड़ाने की प्रतिस्पर्धा आदि और सोनी के बीच शुरू हो चुकी थी। दोनों पूरी ताक़त के साथ एक-दूसरे को हराने में लगे थे, यह दोनों के चेहरों के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था। चंद ही मिनटो में फ़ैसला हो गया था। आदि जीत गया था। तीनों के चेहरे पर जीत की खुशी कम, ब्लकि पार्टी की खुशी ज़्यादा थी।

“साला, आज तबीयत सुबह से ही ख़राब है, वरना आज तो यह गया था समझो।” सोनी ने टेबल पर हाथ मारा और जाने के लिए खड़ा हो गया।

“भैंचो, जूस और पैटीज़ का ऑर्डर और पैसे, दोनों देते जाना।” वीर ने चुटकी ली तो तीनों दोस्त खिलखिलाकर हँस पड़े।

पार्टी लेने के बाद तीनों नीलेश की बाइक से कालेज पहुँच चुके थे। नीलेश क्लास अटेंड करने के लिए चला गया था तथा वीर और आदि, दोनों कॉरीडोर में घूम रहे थे। फ़र्स्ट ईयर में नए चेहरे देखने को मिल रहे थे। रंग-बिरंगे कपड़ो में लड़कियाँ तितलियों की तरह हर जगह दिख रही थीं। कुछ लड़के अलग-अलग जगहों पर खडे होकर लड़कियों को घूर रहे थे। हालांकि वो दोनों भी यही कर रहे थे।

“अरे यार, इसे देख। क्या ग़ज़ब है भाई।” आदि ने सामने से जाती एक लड़की को देखते हुए कहा।

“लगता है, इस बार तो फ़र्स्ट ईयर वाले लड़कों की मौज हो गई। भैंचो, इतना ग़ज़ब स्टॉक तो पिछले साल भी नहीं आया था।” वीर ने कॉरीडोर में लड़कियों को देखते हुए कहा।

“भाई, अब बहुत सहन कर लिया। अब दोनों भाई सिंगल नहीं रहेंगे। अबकी बार तो ड़बल होके ही रहेंगे, चाहे प्रपोज़ के साथ-साथ रिक्वेस्ट भी क्यूँ ना करनी पड़े।” आदि ने वीर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“हाँ यार, अबकी बार कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। इस बार बाज़ी मारनी होगी। अगर सेकंड़ ईयर में भी सिंगल ही रहना पड़ा तो मैं अपनी अन्तरात्मा को क्या जवाब दूँगा।” वीर ने सामने खुले आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा।

“सेम हीयर भाई, अपना भी यही फ़ाइनल है अब तो।” आदि ने चेहरे पर कॉन्फ़िडेंस लाते हुए कहा।

“तो फिर चल, सुट्टा लगा के आते है।” दोनों जय-वीरू की तरह कालेज से निकल गए।

अगले दिन तीनों कालेज सही समय पर पहुँच चुके थे। यह इन तीनों का रोज़ का काम था। बिल्कुल ठीक समय पर कालेज पहुँचना, लेकिन कलास अटेंड केवल नीलेश करता था। बाकी वीर और आदि केवल टाइमपास और ड़बल होने की उम्मीद से ही आते थे। आज भी नीलेश अपनी क्लास में था और वो दोनों हमेशा की तरह कॉरीडोर में हाथों में किताबें पकड़े सीढ़ियों के सामने खड़े लड़कियों को आते-जाते देख रहे थे। आदि तो हर लड़की की ख़ूबसूरती का कायल हो रहा था। सभी को देखकर उसकी आहें निकल रही थीं, लेकिन वीर ऐसी लड़की की तलाश में था जो उसकी आहें निकलवा भी सके और महसूस भी कर सके। तभी वीर की नज़र सामने आती एक लड़की पर पड़ी। वीर उसे देखता ही रह गया। उस लड़की के चेहरे की आभा देखते ही बनती थी। लौंग का लश्कारा, सुरमयई और बड़ी आँखें, हल्की झुकी पलकें, बिखर के आते उसके बाल, सांवला रंग और साथ में पहना कत्थई रंग का सूट वीर पर क़यामत ढहा रहा था। वीर ऩे अपने दिल और साँसों, दोनों को सँभालकर आदि से पूछा,“भाई यह कौन है जिसको देखते ही साँसें रूक गईं और नसों में रक्त अपनी औकात से तेज दौड़ने लगा?”

“कौन यह?” आदि ने लड़की की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

“हाँ, यही। मिल गई भाई, जिसके लिए मैं फ़र्स्ट ईयर से सिंगल से डबल होने की जुस्तजू में भटक रहा था। पता कर इसका।” वीर ने तलाश पूरी हो जाने के भाव को चेहरे पर उतारकर कहा।

“ठीक है, पता करता हूँ।” आदि ने कहा।

थोड़ी देर बाद आदि उसी चाय की दुकान में पहुँचा, जहाँ वीर और नीलेश पहले से उसका वहाँ इन्तज़ार कर रहे थे। “पता चल गया भाई, उसके बारे में।” आदि ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“हाँ तो बता न, देर क्यूं कर रहा है।” वीर ने कहा।

“उसका नाम माया है और इसी साल फ़र्स्ट ईयर में दाख़िला लिया है। बस, इतना ही पता चल सका।” आदि ने कहा।

“इतना ही तो पता करना था मेरे रैंबो। आगे का काम तो तेरे भाई का है।” वीर ने कहा।

“सच में कोई पसन्द आ गई क्या तेरे को? मुझे भी तो दिखा, कौन है वो?” नीलेश ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

“हाँ, दिखा देंगे। पहले मैं तो देख लूँ उसे जी भरकर।” वीर ने आदि के लिए चाय लाने का इशारा करते हुए कहा।

“पसन्द तो आ गई तुझे, लेकिन थोड़ा सँभल कर करना जो भी करना हो” नीलेश ने चिन्ता ज़ाहिर करते हुए कहा।

“भाई ऐसा है, किसी लड़की को पसन्द करने के लिए उसमें दो चीज़ें होना ज़रूरी है। एक तो उसकी आँखों में छिपा दर्द और दूसरा उसके होंठों पर तैरती मुस्कान। और मेरी माया के पास तो ये दोनों ही है। और रही बात सँभलने की, तो भैंचो ऐसा है कि अब तक सँभल ही तो रहे थे। अब समय आया है प्यार में डगमगाने का।” वीर ने काल्पनिक तौर पर माया को देखते हुए कहा।

“मेरी माया, क्या बात है?”  नीलेश और आदि ने हँसकर चुटकी ली।

“हाँ, सालो, मेरी माया और आज से भाभी है तुम्हारी।” वीर ने कहा।

“अच्छा एक बात बता। उस कविता में क्या कमी थी, जिसने तुझे कुछ महीने पहले प्रपोज़ किया था और तूने इंकार कर दिया था। मेरे अनुसार तो इस माया से कविता ज़्यादा ख़ूबसूरत थी।” आदि ने कहा।

“कविता भी अच्छी लड़की थी, लेकिन बॉस, वो मेरे टाइप की नहीं थी। ख़ूबसूरत होगी वो, लेकिन उसकी ख़ूबसूरती ने दिल को टच नहीं किया। और वैसे भी बात ख़ूबसूरती की नहीं थी। हर किसी की अपनी ख़ूबी होती है। माया में कुछ ऐसा है कि उसे देखते ही अलग ही महसूस हुआ। उसे देखा तो लगा कि साला चौरासी लाख योनियों से गुज़रकर इंसान के रूप में मैंने सिर्फ इसलिए ही जन्म लिया है कि उसे प्यार कर सकूँ। एक अलग ही बात है उसमें यार, जिसको देखते ही साँसें अपना संतुलन खो देती हैं। शरीर में अलग ही थरथराहट होती है। रक्त तेज़ी से बहने लगता है। कुछ अलग ही है उसमें। तुम लोग नहीं समझोगे।” वीर ने कहा। 

“भाई, इतना भी संतुलन मत खो प्यार में। एक बात याद रख कि प्यार-मोहब्बत-इश्क़ धोखा है,अभी भी पढ़ लो मौक़ा है। और मुझे भी पढ़ने दो। तुम लोगों के चक्कर में साला रोज़ कोई ना कोई क्लास मिस हो रही है।” नीलेश ने तंज़ कसा।

“यह देखो, अभी तक प्यार के ‘प’ तक भी नहीं पहुँचा और न ही अभी तक प्यार की कश्ती में हिचकोले खाए, पर यह अपना भाई पहले ही नकारात्मक ज्ञान पेल रहा हैं। भाई पहले प्यार तो होने दे, फिर देखेंगे आगे का क्या होता है।” वीर ने अपनी बात रखी।

तीनों अपनी चाय ख़त्म कर अपने-अपने घर के लिए रवाना हो चुके थे।

अगले कुछ दिनों तक वीर, आदि और नीलेश अपना अपना टारगेट बनाकर कालेज जाते रहे। नीलेश का हमेशा की तरह समय पर क्लास अटेंड करने का टारगेट, वीर का माया को जी भरकर देखना और उसके नोटिस में आने का टारगेट और आदि का वीर के टारगेट को पूरा करवाना और माया की मदद से एक गर्लफ्रेंड बनाने का टारगेट। तीनों के अपने-अपने लक्ष्य निर्धारित थे। 

वीर माया की नज़रों में आ चुका था। माया भी यह जान चुकी थी कि कोई लड़का है जिसका क़द छह फुट के आस-पास छूता है, गेंहुँआ रंग है, शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए हैं, चेहरे पर हल्की दाढ़ी लिये उसे नज़रें चुराकर देखता रहता है। बस स्टॉप तक उसके पीछे-पीछे आता है। उसके क्लास से बाहर आते वक़्त सिर्फ़ उसे देखने के लिए दरवाज़े के सामने खड़ा रहता है। जब नज़रें मिलती हैं तो नज़रें चुरा लेता है। माया यह सब जान चुकी थी और जान कर भी अनजान बनी रहती थी। 

कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। वीर माया को देखता रहा और माया भी नज़रें चुराकर वीर को देखने लगी थी, लेकिन कहानी सिर्फ देखने और देखकर मुस्कुराने तक ही सीमित थी।             

आज माया ने हरे रंग का सूट पहना हुआ था। बालो में रब़ड डालकर उन्हे बाँधा हुआ था। माया अपने कुछ दोस्तों के साथ नोटिस बोर्ड के पास खड़ी थी और कुछ ही दूरी पर खड़ा वीर माया को ही देख रहा था।

“भाई, कब तक ऐसे ही देखकर काम चलाएगा? अब तो बात कर न उससे।” आदि ने कहा।

“हाँ यार, मैं भी यही सोच रहा हूँ। जल्दी ही करते हैं। अब तो मुझे भी यही लगता है कि इतना टाइम नहीं लेना चाहिए प्रपोज़ करने के लिए।” वीर ने कहा।

“जल्दी कर, नहीं तो कोई और ही उसे उड़ा के ले जाएगा। फिर देखते रहना यहीं पर खड़े होकर। फ़र्स्ट ईयर और सेकंड ईयर के लड़के गिद्द की तरह मंड़रा रहे हैं। कल जब मैं फ़र्स्ट ईयर के कुछ लड़कों से बातें कर रहा था तो माया का ज़िक्र हो रहा था। एक लड़का है जो उसे प्रपोज़ करने का सोच रहा है।” आदि ने कहा।

“नहीं यार, मंड़राने दे गिद्दो की तरह। लेकिन मुझे पता है और मेरी रूह भी जानती है कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए ही बनी है। अगर फिर भी किसी ने ऐसा करने की जुर्रत की तो उसकी बक्कल तार देंगे। और फिर भी अगर ऐसी बात है तो फिर आज माया से बात कर ही लेते है।” वीर ने अपनी बात रखी।

“हाँ भाई, यही ठीक रहेगा। आज ही कर दे माया को प्रपोज़। फिर अगर बात बन गई तो पार्टी भी होगी।” आदि ने वीर से कहा।

“भैंचो, गांव बसा नहीं लुटेरे पहले से नज़र गड़ाए बैठे हैं।” वीर ने मुहावरे के रूप में तंज़ कसा। “चल, तुम लोग भी क्या याद करोगे, करते हैं आज पार्टी। बीयर और सुट्टे की पार्टी मेरी तरफ़ से।”

“लेकिन एक दिक़्क़त है। अगर तू उसे प्रपोज़ करने जाए तो प्लीज़ यह अपना राऊडी लुक को थोड़ा बदल लेना। नहीं तो तुझे देखते ही मना कर देगी।” आदि ने वीर को उपर से नीचे तक देखते हुए कहा।

“तो क्या करूँ?” वीर ने आदि से पूछा

“पहले तो अपने यह शर्ट के ऊपर के खुले बटन बन्द कर और फिर शर्ट को पैंट के अन्दर दबा और अपने बालों को एक तरफ़ कर। तभी तो राऊडी से जैंटलमैन टाइप लगेगा।” आदि ने वीर को अँगुली के इशारे से समझाते हुए कहा।

“जिनका रिलेशनशिप स्वयं भगवान ने बनाया हो, तो फिर लुक से क्या फ़र्क़ पड़ेगा।” वीर ने अपनी बात रखी। 

“अरे, वो कहते है न कि First Impression is the Last Impression. भाई, कही तो यह लाइन इस्तेमाल होती होगी, आज यही करके देखते हैं।” आदि ने कहा।

“हम्ममम ठीक है, नीलेश को फ़ोन कर। फिर निकलते हैं।” वीर ने कहा।

तीनों नीलेश की बाइक पर वहीं अपने अड्डे पर प्लानिंग बनाने के लिए जा चुके थे कि कहाँ   और कैसे प्रपोज़ करना है?

कालेज से बस-स्टॉप तक जाने के लिए सामान्य रास्ते के अलावा एक कच्चा रास्ता भी था, जो कालेज के पीछे से जाता था। टैम्पो, मोटरसाईकिल इस्तेमाल करने वाले छात्र उस सामान्य रास्ते का प्रयोग करते थे और जो पैदल बस-स्टॉप के लिए निकलते थे, वे शॉर्टकट का प्रयोग करते थे, जो कि कालेज के पीछे से रेतीला कच्चा रास्ता था।

माया भी उसी रास्ते से बस-स्टॉप के लिए जाती थी। आज वीर ने पक्का इरादा कर लिया था कि माया को प्रपोज़ करना ही है। तीनों दोस्त समय से दस मिनट पहले ही उस कच्चे रास्ते पर पहुँच चुके थे जहाँ से माया रोज़ कालेज के लिए आती-जाती थी। आज भी माया कुछ ही मिनटों में वहीं से गुज़रने वाली थी। आदि और नीलेश मॉरल सपोर्ट के लिए वीर से कुछ दूरी पर जाकर खड़े हो गए थे। वीर ने उन्हें पहले ही कह दिया था कि बाइक चालू ही रखें, क्योंकि अगर कुछ गड़बड़ हुई तो उन्हें वहाँ से भागना भी पड़ सकता है। हालांकि वीर माया की आँखों में पहले ही देख चुका था कि वो उसे शायद ही ‘ना’ कहे, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे, नज़रें फरेबी भी होती हैं।

कुछ ही मिनटों बाद वीर को माया सामने से आती हुई नज़र आई। उसको देखते ही वीर का कॉन्फ़ीडेंस लेवल नीचे ज़मीन चांट रहा था। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी और दिल इतनी ज़ोरों से धड़क रहा था कि उसे अपनी धड़कन की आवाज़ साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी। माया जब उसके पास से गुज़री तो उसने वीर को एक नज़र भर देखा भी, मगर वीर वहीं पर खड़ा रहा नि:शब्द। न वो उसे रोक पाया और न ही बात कर पाया। वीर को समझ ही नहीं आ रहा था कि उसे कैसे और क्या बोलकर रोके? वह वहाँ जड्वत खड़ा रहा, बस। जब नीलेश ने बाइक का हॉर्न बजाया, तब वीर ने उन दोनों की तरफ़ देखा। आदि और नीलेश ने वीर को इशारा किया कि वो जा रही है, जल्दी से बात कर उससे। वीर ने फिर अपने दिल की धड़कन की आवाज़ सुनी जो उसी तेज़ी से धड़क रहा था। उसने अपने अन्दर गहरी साँस ली और माया से बात करने के लिए उसके पीछे कुछ कदम दौड़कर पहुँचा और वीर ने घबराते हुए कहा- “हैलो, आपसे एक मिनट बात कर सकता हूँ?” माया ने वीर की तरफ़ देखा और कहा “हाँ बोलो, क्या बात करनी है?”

“आपका मोबाइल नम्बर चाहिए। कुछ बात करनी है।”

“मोबाइल नम्बर किसलिए चाहिए? अब जब तुमने रोक ही लिया है तो अभी बता दो क्या बात करनी है?” माया ने कहा।

असल में, वीर घबरा गया था। ऐसे ही सीधे नम्बर माँगने से कौन देगा? लेकिन जैसे ही वीर ने माया से बात करनी शुरू की तो वीर के दिमाग़ ने अपना काम करना बन्द कर दिया था। दिल बेपरवाह और असंतुलित होकर धड़क रहा था। संभावना, ड़र, खुशी, उत्साह, अनिश्चितता जैसे अनगिनत भाव चेहरे से बाहर झलक रहे थे। इतनी घबराहट उसे आज तक नहीं हुई थी, जितनी आज हो रही थी।

“हाँ जल्दी बोलो, क्या बात करनी है? मुझे जाना भी है।” माया ने आगे बढ़ते हुए कहा।

“वो मैं आपको पसन्द करता हूँ, बस, आपसे फ्रैंड़शिप करनी है। इसलिए आपका फ़ोन नम्बर चाहिए था, क्योंकि सामने बोलने में मैं थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।”वीर ने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों को भींचते हुए कहा।

“लेकिन मैं तो मोबाइल रखती ही नहीं हूँ। हाँ, मेरे पापा के नम्बर दूँ, उस पर बात कर लेना उनसे, जो भी करनी हो।” माया ने वीर की आँखों में देखते हुए कहा।

वीर के पास अब आगे कुछ बोलने के लिए शब्द नहीं बचे थे। वीर की घबराहट तेज़ हो रही थी। “रहने दीजिए पापा का नम्बर तो” इतना कहकर वीर वापस जाने के लिए मुडा तो माया ने वीर से कहा,“अच्छा सुनो, तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम वीर है। बस, आपसे फ्रैंड़शिप करनी है।” वीर ने जवाब दिया।

“हाँ-हाँ वो ठीक है, मैंने तो केवल नाम पूछा है। ठीक है तो आप मुझे अपना मोबाइल नम्बर दे दीजिए, मैं कॉल करती हूँ।” माया ने अपने हैंड़बैग से पेन निकालते हुए कहा। 

वीर ने अपना मोबाइल नम्बर माया को दिया और मुड़कर आदि और नीलेश की तरफ़ जाने लगा। वीर को सारा वातावरण गुलाबी दिखने लगा था। उसे आस-पास कुछ भी नहीं दिख रहा था। बस, उसकी और माया की हुई बातें ही उसके दिमाग़ में चल रही थीं। हल्की-सी मुस्कुराहट चेहरे पर अपनी छाप छोड़ रही थी। आदि के पास पहुँचते ही वीर ने मुड़कर देखा तो माया जा चुकी थी। 

“क्या हुआ? क्या कहा उसने ?” आदि ने वीर के कंधे पर हाथ रखकर पूछा।

“कुछ नहीं। चल, बीयर लेके आते हैं।” वीर ने अपनी दबी शर्ट को पैंट से बाहर निकालते हुए कहा।

“भाई, इसका मतलब कि ‘हाँ’ हो गई। तभी बीयर पिला रहा है।” नीलेश ने बाइक को बन्द कर उससे उतरते हुए कहा।

“हाँ तो नहीं हुई है अभी, लेकिन उसने मेरे नम्बर लिए हैं, कह रही थी कि कॉल करूँगी। अब देखते है कि वो कॉल करती है या करवाती है।” वीर ने बाइक के साइड़ मिरर में अपने बाल ठीक करते हुए कहा।

​ “तो अपना ब्रो अब ड़बल होने वाला है।” आदि ने चुटकी ली।

“अबे चल ना, सीधा ठेके पर ले ले।” वीर ने आदि के सिर पर मारते हुए कहा।

वीर आदि और नीलेश, तीनों ठेके पर पहुँच चुके थे। वहाँ से उन्होंने बीयर का एक कैरेट, सिगरेट और खाने का कुछ सामान लिया और किसी सुनसान जगह पर पार्टी करने के लिए निकल गए।

रास्ते में ही वीर ने अजय को भी फ़ोन कर दिया था और कह दिया था कि कहाँ पर पहुँचना है। अजय भी थोड़ी देर में वही पहुँचने वाला था।

अब तिकड़ी नहीं चौकड़ी जम चुकी थी। चारों दोस्त किसी सुनसान जगह पर एक पेड़ के नीचे महफ़िल जमा चुके थे। जगह इतनी सुनसान थी कि दूर-दूर तक कोई इंसान तो क्या, कोई जानवर भी नहीं दिख रहा था। बस, दो सौ मीटर दूर दाईं तरफ़ से रेल की पटरियाँ गुज़र रही थीं। हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा था। चारों  ने अपनी एक-एक बीयर की बोतल उठाई और एक साँस में ही पूरी बोतल ख़ाली कर गए। दूसरी बोतल खोलकर सामने रख दी। वीर आदि और अजय ने सिगरेट सुलगा ली थी। अजय सिगरेट के धुँए के छल्ले बनाकर ऊपर आसमान की तरफ़ छोड़ रहा था।

आदि की नज़र अजय के हाथों की खरोंचो के निशानों पर पड़ी। आदि ने एक घूंट बीयर गले में उड़ेल कर अजय से पूछा, “अरे यार, ये चोट के निशान कैसे?” अजय ने कहा, “भाई, दो दिन पहले एक भसड़ हो गई थी। बहुत मुश्किल से बचा हूँ।”

“लेकिन हुआ क्या?” वीर ने पूछा।

“वीर, तुझे तो पता ही है कि चेतना और मेरा सीन चालू है। तो चेतना ने रात को मिलने के लिए कहा तो बन्दा पहुँच गया रात को एक बजे उसके घर के बाहर। चेतना को फ़ोन करके पहले ही कह दिया था कि मैं रात को आ रहा हूँ, तो उसने छत का दरवाज़ा पहले ही खुला छोड़ दिया था और कहा कि सीधा सीढ़ियों से उतरकर कमरे में आ जाना।”

“फिर क्या हुआ?” नीलेश ने पूछा।

“अब उसने यह तो बताया नहीं कि कौन से कमरे मे आना है? मैं जब छत पर पाइप के सहारे चढ़कर सीढ़ियों से नीचे गया तो देखा कि सामने तो तीन कमरे हैं। अब पता नहीं था कि कौन से कमरे में जाना है तो ड़र के कारण जो सामने कमरा था, उसी में चला गया। वहाँ बैड़ पर कोई सो रहा था तो मैंने सोचा कि चेतना ही है। तो मैं भी साथ में बैड़ पर लेट गया। जब उसे कसकर मैंने बाँहों में लिया तो वो चिल्ला पड़ी ‘चोर...चोर’। जब उसका चेहरा मैंने ग़ौर से देखा तो वह चेतना की बहन निकली। मेरी तो चोर सुनकर वहीं फट गई। मैं तो सीधा छत पर भागा और वहीं से नीचे कूद गया। तभी यह खरोंचे आ गईं।” अजय ने बीच-बीच में बीयर की घूंट लेते हुए कहा।

“हँसाओ मत, सालो” आदि ने पेट पकड़कर हँसते हुए कहा।

“तो अब चेतना से बात हुईं।” वीर ने पूछा।

“बात क्या हुई, सुबह ही मिलने आई थी। जूते लौटा के गई है जो वहीं रह गए थे।” अजय ने एक और सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

वीर, आदि और नीलेश ज़मीन पर लोटे पेट पकड़ कर हँस रहे थे ।

“हँसो मत यार, अब यह बताओ कि बीयर और सुट्टा किस खुशी में आज?” अजय ने सिगरेट वीर को पास करते हुए पूछा।

“वीर ने आज माया को प्रपोज कर दिया है। इसलिए आज ही महफ़िल जम रही है क्योंकि कल तक तो प्रपोज़ल की उत्सुकता थोड़ी कम हो जाती तो सोचा कि पार्टी तो आज ही ले लेते हैं।” आदि ने बढ़-चढ़कर बताते हुए कहा।

“ठीक है वीरे, यह काम तो सही किया तूने। अब यह बता कि तू कब जा रहा है जूते भूलने के लिए?” अजय ने आँख मारते हुए कहा।

“नहीं यार, मुझे यह सब नहीं करना। और वैसे भी अभी कुछ भी पक्का नहीं है। फ़ोन पर ‘हाँ’ करेगी या ‘ना’। फ़ोन भी करेगी या नहीं, पता नहीं है। तो मेरे यार, अभी कुछ भी निश्चित नहीं है।” वीर ने बीयर का घूंट पीते हुए कहा।

“अबे ‘हाँ’ ही है। तू क्यूँ इतना सोच रहा है? मैंने उसकी आँखों में तेरे लिए ‘हाँ’ देखी थी।” नीलेश ने अपनी बात को बीच में डाला।

“हाँ भैंचो, तेरे को सौ मीटर दूर से उसकी आँखों में ‘हाँ’ दिख गई जो मुझे दो मीटर दूर से नहीं दिखी। और वैसे भी भाईयों, मुझे वो सब नहीं करना जो अजय कह रहा है।” वीर ने कहा।

“साले, क्यूँ नहीं करना? काम नहीं करता क्या तेरा?” अजय ने चुटकी ली।

“अबे चूतिए, तेरी तरह वन नाईंट स्टैंड वाला प्यार नहीं है ये, समझा ना। आत्मा से आत्मा वाला प्यार होगा, अगर उसने ‘हाँ’ करी तो। ऐसा प्यार जो गंगा में पहली डुबकी की तरह होगा, शरीर को छूते ही आत्मा तृप्त हो जाएगी। वैसे छोड़ो, तुम लोगो को प्रेम का यह रूप समझ में नहीं आएगा।” वीर ने तीनों की तरफ़ देखते हुए कहा। 

“हाँ भाई, समझ गए।” तीनों ने एक स्वर में कहा।

“क्या समझ गए?” वीर ने पूछा।

“यही कि आख़िर में तुम्हारा कटेगा ज़रूर।” अजय ने कहा।

“ऐसा कुछ नहीं होगा। साले, जैसे तेरी गर्लफ्रेंड्स तेरा काटती हैं ना वैसी नहीं है माया।” वीर ने कहा।

“भाई, सभी ऐसी होती है, हाँ, किसी-किसी का वो रूप निकलने में टाइम लगता है। बाक़ी अगर वो ऐसी नहीं है तो फिर ठीक ही है।” अजय ने कहा।

चारों ने बची हुई बाक़ी बीयर को ख़त्म किया और अपने-अपने घर जाने के लिए खड़े हो गए।

“अरे यार रूको ना थोडी देर ! पानी की बोतल दे” अचानक ही नीलेश ने बोतल की तरफ इशारा करके कहा।

“बीयर के बाद अब पानी पिएँगा क्या?” अजय ने कहा।

“नहीं यार, मेरा प्रेशर बन गया है!” नीलेश ने कहा। 

“अबे यार! तू भी ना। साला जहाँ ट्रेन की पटरी देखी, वहीं प्रेशर बन जाता है।” अजय ने खीझते हुए कहा।

“यार, दे ना पानी की बोतल। धोना तो पडेगा ना।” नीलेश ने कहा।

ले साले। बाप भी नहीं सोचे होंगे कि बेटा ये रईसी करेगा। बिसलेरी से धोएगा।” अजय ने तंज कसा।

नीलेश के आने के बाद चारों वहां से अपने-अपने घर के लिए निकल गए।