“मगर अगली सुबह मैंने अशोक को सबकुछ बता दिया था । " अंततः मेरी जुबान ने अंगड़ाई ली।


“यकीन मानो - - यह जानना मेरे लिए भी दिलचस्प होगा।” जमील अंजुम बोला----“अशोक ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की ?”


“सुनते-सुनते उनका चेहरा सुर्ख हो गया था। एक पल को तो ऐसा लगा जैसे वे अभी जाकर रतन का खून कर देंगे लेकिन फिर वह सुर्खी सफेदी में बदलती चली गई। चेहरे पर मौजूद गुस्से और उत्तेजना ने शांति और समझदारी का रूप अख्तियार कर लिया। बोले---- 'इस घटना को इस रूप में तूल देना समझदारी नहीं होगी। बदनामी हो जाएगी हमारी । मगर मैं रतन की इस करतूत को भूल नहीं सकता । पहला मौका मिलते ही बदला लूंगा' ।”


“परंतु बदला लेना तो दूर, एक महीना गुजर जाने के बावजूद उसने रतन बिड़ला को खरोंच तक नहीं पहुंचाई । ” मेरे चुप होते ही जमील ने कहना शुरु कर दिया था ---- “अपने पति की इस नामर्दी ने तुम्हें झुंझलाकर रख दिया । और फिर, तुमने इसीलिए छंगा- भूरा को रतन बिड़ला के मर्डर की सुपारी दे डाली। वैसे कानून की बात अलग है, मेरे ख्याल से तुमने कुछ गलत नहीं किया। एक गैरतमंद लड़की को ऐसा करना भी चाहिए था । वह भला अपने साथ रेप करने वाले को सजा न देती तो भारतीय नारी ही कैसे कहलाती?”


“यह झूठ है।” मैं एक बार फिर कह उठी ---- “रेप वाली बात सच होने के बावजूद यह झूठ है इंस्पेक्टर कि रतन बिड़ला का कत्ल मैंने कराया है। मैं तो इस बारे में..


“ सुबूतों की रोशनी में इस बात में कोई दम नहीं है । "


मैं सन्न रह गई ।


किसी ने मुझे बहुत ही पुख्ता तरीके से फंसाया था ।


कौन हो सकता है वह ?


इस सवाल का जवाब पाने के लिए सवाल कियाके बारे में कैसे पता लगा ?” “आपको रेप 64


“ रतन की बीवी से।"


“अ... अवंतिका?”


“जी।”


“ पर उसे कैसे पता ?”


“पति लोग बहुत चालाक होते हैं। अपने बड़े से बड़े गुनाह को करने के बाद वे पत्नी की नॉलिज में इस ढंग से ले आते हैं कि बात उनकी जानकारी में आ भी जाए और पत्नी की नजर में बेगुनाह भी बने रहें । बल्कि सहानुभूति के पात्र बन जाएं। ऐसा वे इस शंका के तहत करते हैं कि बात अगर कहीं और से फूटकर पत्नी की जानकारी में आ जाए तो बचाव का रास्ता खुला रहे । शायद ऐसी ही शंका रतन बिड़ला को भी थी । शायद उसे इस डर ने सताया था कि कहीं तुम ही किसी दिन अवंतिका को उसके पतिदेव की करतूत न बता बैठो। अपने बचाव हेतु उसने अंवतिका को बता दिया था कि नशे की झोंक में उससे गलती हो गई थी । बताने के बाद अवंतिका से माफी मांग ली थी उसने । ऐसी अवस्था में पत्नी बेचारी माफ कर देने के अलावा और कर ही क्या सकती है ? "


“लेकिन उसे यह बात आपको बताने की जरूरत क्यों पड़ी ? ”


“जब किसी का पति मर जाए... इस दुनिया में ही न रहे तो उसे पुलिस को ऐसी बातें बतानी ही पड़ती हैं।”


“क्या मतलब?”


“मतलब भी बता दूंगा और वादा रहा...जरूर बताऊंगा।” वह मजा लेने वाले अंदाज में बोला था ---- "तुम बस मेरे एक सवाल का जवाब दे दो, एक छोटे से सवाल का ।”


“कैसा सवाल ?”


“जैसा कि पहले ही कह चुका हूं-- -- कम से कम मेरी निगाह में अपने साथ रेप करने वाले को मरवाकर तुमने कोई गलती नहीं की । यही अंजाम होना चाहिए था साले का लेकिन छंगा-' -भूरा से तुमने उसकी लाश पर 'क्यों' लिखने को क्यों कहा?”


“म...मतलब?” मेरी खोपड़ी घूम गई । असल में मैं समझ ही नहीं पाई थी कि वह पूछ क्या रहा है?


" इस बात का मतलब समझने के फेर में ही तो मेरे दिमाग का दिवाला निकला पड़ा है।" वह बोला ---- "पुलिस में हूं। लाश तो मैंने बहुत देखी हैं। देखता ही रहता हूं । पेशा ही ये है मगर रतन जैसी लाश पहले कभी नहीं देखी जिस पर कुछ लिखा हो और लिखा भी ऐसा हो कि लाख बुद्धि घुमाने पर भी जिसका कोई मतलब ही समझ में आकर नहीं दे रहा । लाश के पेट पर 'क्यों' शब्द लिखा है। मैंने इन चोट्टी वालों से कहा---- ये तो ठीक है कि तुमने हत्या की लेकिन हत्या करने के बाद इसके पेट पर ‘क्यों' क्यों लिखा? बस ये और बता दो, तो इनका एक-टूक कहना है कि ऐसा करने के लिए- - यानी कत्ल करने के बाद लाश के पेट पर 'क्यों' लिखने के लिए भी तुम्हीं ने कहा था । इन्हें नहीं मालूम कि ---- क्यों? इन्होंने तो बस उसका पालन कर दिया जो तुमने कहा था । बहरहाल, पचास हजार हलाल करने थे।"


“बक रहे हैं ये । झूठ बोल रहे हैं। मैंने इनसे कुछ नहीं कहा । ”


“ यानी नहीं बताओगी?”


“अरे ! जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो बताऊं क्या?”


“अभी शायद तुम्हें यह उम्मीद है कि मैं झांसे में आ सकता इसलिए ऐसा कह रही हो । कोई बात नहीं । अभी नहीं तो कुछ देर बाद बताओगी । तब बताओगी जब समझ जाओगी कि मुझे इतना कुछ मालूम है कि तुम्हारे बचाव का कोई रास्ता नहीं बचा *hod


बौखलाई-सी अवस्था में मैं उसका चेहरा देखती रही ।


“अवंतिका बिड़ला रात के करीब दो बजे घबराई और हड़बड़ाई हुई अवस्था में इस थाने में अर्थात् मेरे पास आई थी ।" एक बार फिर उसने कहना शुरु कर दिया ---- “रोते कलपते रिपोर्ट लिखवाई कि दो गुंडे उसके पति को किडनेप करके ले गए हैं । ”


“किडनेप ?”


“अवंतिका ने अपनी रिपोर्ट में लिखवाया ----रात के करीब डेढ़ बजे मैं अपने पति के साथ होटल पैराडाइज से निकली। बी. एम. डब्ल्यू. में हम बंगले की तरफ जा रहे थे । गाड़ी रतन ड्राइव कर रहे थे। सड़कें सुनसान पड़ी थीं। उस वक्त हम हाई-वे से जुड़ी एक लिंक रोड से गुजर रहे थे जब अचानक ही लाल रंग की मारूति ने ओवरटेक किया और सड़क पर तिरछी खड़ी होकर रास्ता रोक लिया। मजबूरन रतन को ब्रेक लगाने पड़े। यदि ऐसा न करते तो भयंकर किस्म का एक्सीडेंट होना तय था ।


अभी हम ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाए थे कि मारूति से दो गुंडे कूदकर बाहर निकले।


उन्होंने दो तरफ से हमारी गाड़ी को घेर लिया।


दोनों के हाथों में देशी कट्टे थे।


उन्होंने खतरनाक लहजे में धमकी दी कि अगर हमने जरा भी हरकत की तो गोली मार देंगे ।


हम घबरा गए।


ड्राइविंग सीट की तरफ मौजूद गुंडे ने एक झटके से गाड़ी का गेट खोला और रतन को खींचकर बाहर निकाल लिया।


रतन के हलक से चीख निकल गई थी ।


चीख तो मैं भी पड़ी थी परंतु उस वक्त सहमकर रह गई जब मेरी तरफ मौजूद गुंडे ने कट्टा सिर से सटाकर मार डालने की धमकी दी । मैंने बड़ी मुश्किल से पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?


जवाब में किसी ने कुछ नहीं कहा।


मैं हकबकाई-सी अपनी सीट पर बैठी रह गई थी ।


जबरदस्ती खींचता हुआ वह रतन को मारूति के नजदीक ले गया । रतन बराबर चीख चिल्ला ही नहीं रहे थे बल्कि उसका विरोध भी कर रहे थे। पर उनकी एक न चली ।


गुंडे ने अंत में उन्हें मारूति में ठूंस ही दिया ।


मेरी खिड़की के नजदीक खड़ा गुंडा अपने स्थान से तभी हटा जब दूसरा अपना काम पूरा कर चुका ।


उसके बाद वह भी मारूति में समा गया और मैं तब तक भी किंकर्त्तव्यविमूढ़-सी बैठी थी जबकि मारूति आंखों से ओझल हो गई।


यह घटना पलक झपकते ही हो गई थी ।


समझ ही नहीं पा रही थी कि देखते ही देखते मिनटों-सेकिंडों में ये क्या हो गया ? समझ में आया तो पागलों की तरह 'बचाओ बचाओ' चिल्लाने लगी। मगर वहां कोई होता तो मदद के लिए आता भी।


जब यह समझ में आया कि चीखने-चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा तो ड्राइविंग सीट संभाली और ड्राइव करती सीधी यहां, थाने पहुंची हूं और यह रिपोर्ट लिखवा रही हूं।”


जमील की सारी बातें सुनने के बाद मैंने कहा--“बकौल आप ही के, इस रिपोर्ट में तो अवंतिका ने कहीं भी यह नहीं कहा कि रतन ने मेरे साथ रेप किया था और.. “तब तक तो उस बेचारी को खुद भी मालूम नहीं था कि यह करतूत तुम्हारी है। ऐसी अवस्था में वह इस बारे में क्या कहती ?”


“बाढ़ में कैसे पता लगा?”


“कानून के मुताबिक मैंने उसकी रिपोर्ट दर्ज करने के बाद गुंडों की उम्र, हुलिए और लिबास आदि के बारे में पूछा । उन सबको वायर लेस पर फ्लैश किया और अवंतिका को यह आश्वासन देकर घर भेज दिया कि जल्दी ही उसके पति का पता लगा लूंगा।”


उसके बाद मैं मोटरसाइकिल उठाकर सुनसान पड़ी सड़कों पर निकल पड़ा। इसे इत्तफाक कहो या कुछ और... करीब आधे घंटे बाद अशोक रोड पर सफेद रंग की एक इनोवा नजर आई।


नजर तो इस बीच और भी कई गाड़ियां आई थीं लेकिन उन पर खास ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे तो लाल मारूति की तलाश थी । असल में मुझे देखते ही इनोवा की स्पीड आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ गई थी, इसी बात ने मेरा ध्यान उसकी तरफ घुमाया। हम पुलिसवाले ऐसी तब्दीलियों को बहुत जल्दी पकड़ते हैं । लिहाजा ---- मैंने भी मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा दी और उसका पीछा करना शुरू कर दिया। मेरे अनुपात में ही इनोवा की स्पीड भी बढ़ती चली गई । शक पुख्ता होता चला गया । उस वक्त यह तो नहीं सोचा था कि इनोवा रतन बिड़ला का भेद खोल देगी मगर यह एहसास जरूर हो गया था कि उसमें असामाजिक तत्व हैं, तभी तो मुझसे दूर भागने की कोशिश कर रहे हैं! अंततः एक स्थान पर मैंने इनोवा को रुकने पर मजबूर कर दिया। यह देखकर तो रोमांचित ही हो उठा कि इनोवा में मौजूद दोनों हस्तियों के हुलिए अवंतिका द्वारा बताए गए हुलियों से मिलते थे |


उनकी तरफ अपना सर्विस रिवाल्वर तानते हुए मैंने पहला ही वाक्य यह बोला था -- - 'मैं जानता हूं कि तुमने रतन बिड़ला नाम के आदमी को किडनेप किया है। भागने की तो बात ही दूर, हिलने तक की भी कोशिश की तो गोली से उड़ा दूंगा ।'


शायद बताने की जरूरत नहीं है कि वे ये ही दोनों थे। छंगा और भूरा। खुद को मेरे निशाने पर देखकर पट्ठों के होश उड़ गए । इन्हें कवर किए, सबसे पहले मैंने तलाशी ली। दोनों की जेब से एक-एक देशी कट्टा बरामद किया। रतन के बारे में पूछा। ये बोले ---- शिकार हमारे चंगुल से निकलकर भाग गया है। मेरा दूसरा सवाल गाड़ी के बारे में था । यह कि रतन को किडनेप करते वक्त ये लाल मारूति में थे, वह


एक घंटे के अंदर सफेद इनोवा में कैसे बदल गई?


जवाब में इन्होंने बताया कि मारूति भी चोरी की थी, इनोवा भी चोरी की है। उस वक्त ये लाल मारूति में ही थे और जहां से रतन को किडनेप किया था वहां से ज्यादा दूर नहीं जा पाए थे कि वह चलती गाड़ी से कूद गया था ।


फुटपाथ पर लुढ़कता हुआ वह एक खाई में जा गिरा था ।


ये वापस लौटने और उसे उठाकर पुनः गाड़ी में डालने की हिम्मत नहीं जुटा सके। उल्टा यह डर सताने लगा कि एक तरफ तो अपने मिशन में नाकामयाब हो गए हैं दूसरी तरफ इसी गाड़ी में रहे तो पकड़े जाने का खतरा है सो, मारूति एक फुटपाथ पर खड़ी की और होटल गुलमोहर की पार्किंग से इनोवा उठा ली ।


गाड़ियों की यह अदला-बदली तो मेरी समझ में आ रही थी किंतु यह बात कंठ से नीचे नहीं उतर रही थी कि रतन बिड़ला चलती गाड़ी से कूदकर इनके हाथ से निकल गया है ।


काफी सख्ती से पूछताछ की लेकिन ये अपनी बात पर अड़े रहे । मोबाइल पर सूचना देकर मैंने गश्त पर निकली अपने थाने की टुकड़ी को भी वहीं बुला लिया था । उस टुकड़ी का नेतृत्व सब-इंस्पेक्टर गजराजसिंह कर रहा था । अब ये दोनों पूरी तरह हमारी गिरफ्त में थे। मेरे आदेश पर पुलिसवालों ने इनोवा की तलाशी लेनी शुरू की और उस वक्त तो मुझ सहित सबके रोंगटे ही खड़े हो गए जब डिक्की खोलते ही रतन बिड़ला की लाश पर नजर पड़ी ।


यह सोचकर मेरा दिमाग घूम गया कि एक ही घंटे के अंदर

इन्होंने अपने शिकार को मार भी डाला था ।


गुस्से में वहीं ठुकाई शुरु कर दी । लेकिन टूटे यहां यानी हवालात में ही आकर । उस वक्त मैं दंग रह गया जब इन्होंने बताया कि हमने तो रतन को उठाया ही हत्या करने के लिए था ।


जब पूछा कि रतन को हत्या के उद्देश्य से क्यों उठाया था तो 'मरते क्या न करते' वाली अवस्था में इन्हें बताना पड़ा कि हत्या के लिए सुपारी मिली थी।


तुम समझ सकती हो ---- पुलिस जब उगलवाने पर आती है तो सबकुछ उगलवा लेती है। जल्दी ही इन्होंने यह भी उगल दिया कि सुपारी देने वाली का नाम चांदनी बजाज है।


तुम्हारा... यानी इतने बड़े घराने की बहू का नाम सुनकर मेरे होश उड़ गए थे मगर बात जम रही थी ।


रतन जैसे अमीर आदमी से इन टटपूंजियों की ऐसी किसी दुश्मनी की बात तो सोची नहीं जा सकती थी जिसकी वजह से ये उसकी हत्या करें । तुम्हारा नाम आते ही मुझे ये झमेला काफी बड़ा नजर आने लगा था और अब... जो भी करना था, पूरी सावधानी के साथ करना था, पुख्ता सबूतों के साथ करना था क्योंकि मणीशंकर बजाज की बहू पर आसानी से हाथ नहीं डाला जा सकता था ।


ये यह कबूल कर चुके थे कि सुपारी के तौर पर तुमने जो पचास हजार रुपए दिए थे। वे इस वक्त भी इनकी खोली में मौजूद हैं ।


इनोवा की डिक्की से निकाली गई लाश का निरीक्षण मैंने इनसे इतना सब उगलवाने के बाद किया और ... ऐसा करने पर एक बार फिर बुद्धि चकराकर रह गई।


कलाबाजियां खा रही मेरी बुद्धि के दो कारण थे।


पहला - - - - रतन बिड़ला मरा जरूर था लेकिन उसे गोली नहीं लगी थी जबकि निरीक्षण करने से पहले मैंने यही सोचा था कि इन्होंने उसे उन्हीं दोनों देशी कट्टों में से किसी से मारा होगा जो इनके पास से बरामद हुए थे और अंवतिका के बयान के मुताबिक जिनके बूते पर इन्होंने रतन को किडनेप किया था ।


गोली तो गोली, रतन के जिस्म पर खरोंच तक का निशान नहीं था । अगर यह कहूं तो गलत नहीं होगा कि उस वक्त यह सोचकर मेरी बुद्धि चकरा गई कि रतन बिड़ला मरा तो मरा कैसे?


इस सवाल के जवाब में इन्होंने बताया कि हत्या का तरीका ये रतन को किडनेप करने से पहले ही सोच चुके थे।


व्हिस्की के एक क्वार्टर में इन्होंने जहर मिलाकर रखा था।


लाल मारूति में ही उस क्वार्टर को रतन के मुंह से लगाकर उसे जबरदस्ती पिलाई, जिसके प्रभाव से थोड़ी ही देर में वह मर गया।


बुद्धि की कलाबाजियों का दूसरा कारण था ---- लाश पर एक भी कपड़े का न होना और उसके पेट पर स्केच पेन से लिखा गया 'क्यों ।'


मैंने पूछा ---- “इसके कपड़े कहां हैं और पेट पर 'क्यों' शब्द क्यों लिखा है ? दोनों का एक ही जवाब था ---- ऐसा करने के लिए चांदनी ने ही कहा था । मैंने कपड़ों और स्केच पेन के बारे में पूछा, इन्होंने बताया कि वे दोनों चीजें रास्ते में फेंक दी थीं ।


तब तक इन्हें यह डर सताने लगा था कि अगर रतन की बीवी पुलिस के पास पहुंच गई होगी तो मारुति की तलाश शुरू हो गई होगी।


इसलिए गाड़ी चेंज की ।


लाश इनोवा की डिक्की में ठूसी और उस वक्त मेरे द्वारा पकड़ लिए गए जब उसे किसी ऐसी जगह ठिकाने लगाने ले जा रहे थे जहां से कभी किसी को बरामद न हो सके।


जब मैंने पूछा कि ये ऐसा क्यों चाहते थे तो बताया कि ऐसा करने के लिए भी चांदनी ने ही कहा था । कहा था कि अगर तुम ऐसा करने में कामयाब हुए तो पचास हजार और मिलेंगे।


अब एक पुलिस इंस्पेक्टर के नाते मेरा काम इनके बयान की पुष्टि करना और उसके पक्ष में सबूत जुटाना था।


सो, सबसे पहले खोली पर गया ।


इनकी निशानदेही पर पचास हजार रुपए बरामद किए ।


नोट एकदम नए थे 1


नंबर भी सीरियल से थे लेकिन वे एक गड्डी के नहीं थे।


इस बात ने मुझे बताया कि नोट ए. टी. एम. मशीन से निकाले गए हैं। यदि ऐसा न होता, अर्थात् किसी ने अपने पास पहले ही से मौजूद पचास हजार रुपए दिए होते तो वे एक ही गड्डी के होते। दो गड्डियों के करीब-करीब आधे-आधे नोट नहीं होते। मैंने इंटरनेट का सहारा लिया। पता लगा कि चांदनी बजाज का खाता आइ.सी.आइ.सी. आइ बैंक की मेन ब्रांच में है। मैंने तुरंत डायरेक्ट्री से उसके मैनेजर का फोन नंबर लिया और घुमा दिया ।


रात के तीन बजे फोन पाकर वह झुंझलाया तो बहुत लेकिन जब मैंने बताया कि यह सरकारी फोन है और उसके द्वारा दिए गए क्लू के आधार पर इसी समय एक बड़े मुजरिम को पकड़ा जा सकता है तो वह मदद के लिए तैयार हो गया ।


उसके तैयार होने का ही प्रतिफल था कि इस वक्त मेरे हाथ में तुम्हारे खिलाफ पुख्ता सबूत है । पर अभी मैं हत्या का कारण नहीं जान पाया था। कारण अवंतिका ने बताया । तब, जबकि ऐसी ही किसी उम्मीद में 'बिड़ला - हाऊस' पहुंचा। रतन के माता-पिता सहित सारा बिड़ला - हाऊस जाग रहा था । सभी चिंतित और परेशान थे। उनका ख्याल था कि अपहरण फिरौती के लिए किया गया होगा | अगर यह कहा जाए तब भी गलत नहीं होगा कि वे किडनेपर्स के फोन आदि का इंतजार कर रहे थे । जब मैंने अपनी उस वक्त तक की प्रोग्रेस के बारे में बताया तो जाहिर है कि उनके होश उड़ गए । रतन के मरने की खबर ने वहां कोहराम मचा दिया । रोती-कलपती तथा चीखती-चिल्लाती अवंतिका बार-बार एक ही बात कहने लगी । यह कि चांदनी नाम की चांडालनी आखिर मेरे पति से बदला लेकर ही मानी । मैं साफ कहती हूं कि सारी गलती उन्हीं की नहीं थी, उसकी गलती भी तो थी। शराब तो उसने भी पी रखी थी।


जब मैंने इन बातों का मतलब पूछा तो उसने रेप वाली बात बताई। उसके बाद मेरे जानने के लिए कुछ नहीं रह गया था ।


“ इतना सब कहने के बाद जब जमील अंजुम चुप हुआ तो मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि मेरी जुबान को लकवा - सा मार गया था। " चांदनी कहे चली जा रही थीचांदनी कहे चली जा रही थी---- “एक ही बात कह सकती थी मैं, वही... जो पहले भी अनेक बार कह चुकी थी । यह कि ---- 'मैं बेकुसूर हूं, रतन के मर्डर हेतु मैंने छंगा- भूरा को कोई सुपारी नहीं दी ।'


कही भी। लेकिन जमील अंजुम पर न कोई असर होना था, न हुआ । वह उल्टा यह पूछता रहा कि मैंने छंगा - भूरा को रतन के सारे कपड़े उतारने और उसकी लाश पर 'क्यों' लिखने के लिए क्यों कहा? जो बात पता ही नहीं थीं उसका भला मैं क्या जवाब देती? हां, मेरी बातों का असर अशोक पर जरूर हुआ । उन पर तो होना ही था । बहरहाल, वे मेरे पति हैं । वे साढ़े छः बजे थाने पहुंचे। मुझे सांत्वना दी । उनका ख्याल भी वही था, जो मेरा था । यह कि किसी ने मेरे खिलाफ साजिश रची है। उन्होंने छंगा-भूरा को डरा धमकाकर यह उगलवाने की कोशिश भी की कि वे किसके इशारे पर झूठा बयान दे रहे हैं लेकिन जमील अंजुम के कारण ज्यादा कुछ नहीं कर सके । उसका कहना था कि आप मेरी कस्टडी में मौजूद शख्स के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते । जो कहना है कोर्ट में कहना । अगले दिन छंगा-भूरा के साथ मुझे भी कोर्ट में पेश किया गया । मेरी पैरवी के लिए दिल्ली का सबसे धुरंधर क्रिमिनल लॉयर खड़ा किया गया, उसने जब कोर्ट में अपने पैंतरे दिखाए तो जज को मुझे उसी दिन जमानत पर छोड़ना पड़ा । केस चूंकी एक ही था और मुझे जमानत दी जा रही थी इसलिए छंगा - भूरा की भी जमानत हो गई। अशोक बुरी तरह भन्नाए हुए थे । वे तो चाहते थे कि छंगा-भूरा को अदालत से बाहर निकलते ही पकड़ लें। ठोकें। पूछें कि झूठा बयान क्यों दे रहे हैं मगर हमारे वकील ने रोका। कहा कि ऐसा करना नादानी ही नहीं बेवकूफी होगी । जिस केस में कुछ भी नहीं है वह इस एक गलती की वजह से उल्टा हो जाएगा । अशोक ने जब यह कहा कि केस में कुछ भी क्यों नहीं है? वे साफ-साफ चांदनी का नाम ले रहे हैं। पुलिस के पास ए. टी. एम. वाला पुख्ता सबूत भी है । ऐसी हालत में चांदनी कैसे बच सकेगी?


वकील यूं मुस्कराया जैसे कोई बचकानी बात सुनी हो और बोला कि दो-चार तारीखों में ही वह छंगा - भूरा को तोड़ लेगा। बड़े आराम से कोर्ट में यह साबित कर देगा कि वे झूठ बोल रहे हैं ।


अशोक ने कहा-- -' और ए. टी. एम. वाला सबूत ?' 


वकील फिर मुस्कराया। बोला ---- 'घबराओ नहीं यंगमेन, कोर्ट में मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही सबूतों की धज्जियां उड़ाता रहा हूं। यह साबित करने में मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा कि ए.टी.एम. कार्ड पुलिस ने चांदनी से नहीं बल्कि छंगा-भूरा से ही बरामद किया है । असल में वह खो गया था जो छंगा - भूरा के हाथ लग गया और उन्होंने ही किसी तरह कोड मालूम करके वे पचास हजार रुपए निकाले थे। उनके बेस पर सारा केस पुलिस का बनाया हुआ है।'