टैक्सी ‘ब्लास्ट’ के विपक्षी अखबार ‘क्रानिकल’ के दफ्तर के सामने से गुजरी । ‘स्पाट न्यूज’ के विशाल चमकदार बोर्ड पर केवल एक ही वाक्य लिखा हुआ था -
सिनेमा स्टार सन्तोष कुमार मरडर्ड
“उस्ताद, जरा जल्दी हांको न ।” - सुनील उतावले स्वर में टैक्सी ड्राइवर से बोला ।
“साहब” - ड्राइवर बोला - “सड़क पर बहुत ट्रैफिक है । इससे ज्यादा तेज गाड़ी चला पाना सम्भव नहीं है ।”
सुनील बुरा सा मुंह बनाया और चुप हो गया । उसे अपनी साढे सात हार्स पावर की मोटर साईकिल बुरी तरह याद आ रही थी ।
अन्त में जब टैक्सी मिनर्वा स्टूडियो वाली सड़क पर घूमी तो सुनील ने शांति की सांस ली ।
एकाएक ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी और बोला - “टैक्सी इससे आगे नहीं जा पायेगी, साहब । आगे रास्ता बंद है ।”
सुनील ने खिड़की में सिर निकाल कर बाहर झांका ।
मिनर्वा स्टूडियो के मुख्य द्वार के बाहर लोगों की भारी भीड़ जमा दी ।
सुनील टैक्सी से बाहर निकल आया । उसने टैक्सी का बिल चुकाया और आगे बढा ।
वह भीड़ में शामिल हो गया और रास्ता बनाता हुआ मुख्य द्वार की ओर बढने लगा ।
द्वार के समीप उसे ललित दिखाई दिया ।
ललित ‘क्रानिकल’ का रिपोर्टर था और किसी हद तक सुनील का मित्र था ।
उसी क्षण ललित ने भी उसे देख लिया ।
“आओ गुरु” - ललित बोला - “क्या बात है, सन्तोष कुमार की हत्या को ‘ब्लास्ट’ जरूरत से ज्यादा ही महत्व दे रहा है ।”
“क्या मतलब ?”
“ब्लास्ट’ के एक रिपोर्टर और एक फोटोग्राफर पहले से ही यहां मौजूद हैं और अब तुम भी आ गये हो ।”
“अच्छा ! मुझे मालूम नहीं था ।”
“तुम्हें मालूम नहीं था । तो यहां कैसे टपके ?”
“मैं तो अपने एक दोस्त से मिलने आया था ।”
“तुम्हारा दोस्त यहां ! मिनर्वा स्टूडियो में ! कौन है वो ?”
“कामता नाथ !”
“जो ‘इन्कलाब’ डायरेक्ट कर रहा है ।”
“हां !”
“वह तुम्हारा दोस्त है ।”
“हां !”
“बड़ी ऊंची यारी पालकर रखते हो ।”
सुनील हंसा और आगे बढा ।
“कोशिश बेकार है, गुरु ।”
“क्या मतलब ?”
“यह कत्ल का मामला है और प्रैस की बदकिस्मती से तफ्तीश के लिये इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल आया है और तुम तो जानते ही हो कि प्रैस के मामले में वह कितनी नीचता दिखाता है । जब तक तफ्तीश खत्म नहीं कर लेगा, प्रैस वालों को पास भी नहीं फटकने देगा ।”
“मेरा उससे क्या वास्ता है । मैं तो कामता नाथ से मिलने जा रहा हूं ।”
“प्यारे भाई, कामता नाथ से यारी वाला तुम्हरा घिस्सा चलेगा नहीं ।”
“यह घिस्सा नहीं है ।”
ललित अविश्वासपूर्ण हंसी हंसा ।
सुनील आगे बढा ।
बड़ी कठिनाई से वह मुख्य द्वार तक पहुंच पाया ।
मुख्य द्वार मजबूती से बन्द था । गोरखा पहरेदार महत्वहीन सा एक ओर खड़ा था । द्वार के दूसरी ओर दो क्रूर चेहरों वाले पुलिस के सिपाही खड़े थे ।
भीतर कम्पाउन्ड में भी काफी भीड़ थी और भीड़ में कई लाल पगड़ियां चमक रही थीं ।
“हवलदार” - सुनील एक सिपाही से सम्बोधित हुआ - “मैं कामता नाथ का दोस्त हूं । मैं...”
“कौन कामता नाथ ?” - हवलदार उच्च स्वर में बोला ।
“कामता नाथ उत्तमचन्दानी सेठ की फिल्म का डायरेक्टर है ।”
“मैं किसी डाक्टर को नहीं जानता ।”
“डाक्टर नहीं, डायरेक्टर । कामता नाथ ! कामता नाथ मेरा दोस्त है । उत्तमचन्दानी सेठ भी मेरा दोस्त है । मुझे भीतर जाने दो ।”
“किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं है ।”
“लेकिन, हवलदार, मैं इस स्टूडियों में ही काम करता हूं ।”
“कहा न, किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं है ।”
“लेकिन...”
“अरे बाबा, जाओ न, क्यों कान खा रहे हो ?”
“अच्छा, जरा इन्सपेक्टर प्रभूदयाल को ही बुला दो ।”
“इन्सपेक्टर साहब बिजी हैं । उन्हें फुरसत नहीं ।”
“मेरा नाम सुनील है । तुम जाकर उन्हें बताओ तो सही ।”
“कोई जरूरत नहीं । कल आना ।”
सुनील हताश होकर पीछे हट गया ।
भीतर घुस पाने का कोई तरीका उसे नहीं सूझ रहा था ।
ललित अब भी उसके पीछे खड़ा था । सुनील को देखकर वह मुस्कराया ।
सुनील को क्रोध आने लगा ।
“हैल विद ऐवरी बाडी” - सुनील दांत पीसकर बोला ।
“आफ कोर्स । आफ कोर्स ।” - ललित उपहासपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील चुप रहा । वह भीतर घुस पाने की कोई तरकीब सोच रहा था ।
“वैसे उस्ताद” - ललित बोला - “अगर उस घोड़े की शक्ल वाले सिपाही ने या खुद इन्सपेक्टर प्रभूदयाल ने भी तुम्हें भीतर घुस जाने दिया होता तो मैं पुलिस डिपार्टमेंट का कीमा बना देता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि ‘क्रानिकल’ भी उतना ही महत्वपूर्ण पेपर है जितना ‘ब्लास्ट’ । अगर ‘ब्लास्ट’ के प्रतिनिधि को भीतर घुसने दिया जा सकता है कि ‘क्रानिकल’ के प्रतिनिधि को क्यों नहीं ।”
“लेकिन प्यारे लाल, इस वक्त मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर नहीं हूं । उत्तमचन्दानी सेठ का दोस्त हूं ।”
“अभी तो तुम कामता नाथ का नाम ले रहे थे ।”
“दोनों मेरे दोस्त हैं ।”
“क्यों नहीं । क्यों नहीं । सारी दुनिया तुम्हारी दोस्त है । वैसे तुम यह क्यों नहीं कहते हो कि मरने वाला तम्हारा सगा भाई था और तुम लाश की शिनाख्त करने आये हो । यह घिस्सा जरूर चल जायेगा । जरा कोशिश करके देखो ।”
“ओ शटअप ।” - सुनील गुर्राया ।
ललित हंसा । वह सुनील की बेबसी का पूरा आनन्द ले रहा था ।
उसी क्षण सुनील के कानों में पुलिस के सायरन की आवाज पड़ी । फिर भीड़ काई की तरह फटने लगी और अगले ही क्षण उसे पुलिस की एक जीप द्वार की ओर बढती दिखाई दी ।
सुनील और ललित भी बाकी लोगों के साथ एक ओर हट गये ।
जीप मुख्य द्वार के समीप आकर रुक गई ।
मुख्य द्वार पर खड़ा हवलदार तत्परता से द्वार खोलने लगा ।
सुनील ने सिर नीचा करके जीप के भीतर झांका और फिर उसके नेत्र चमक उठे ।
जीप के भीतर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह बैठा था ।
सुनील अपने आसपास खड़े लोगों का धक्के देता हुआ और उनकी गालियों की परवाह किये बिना जीप की ओर लपका । उसे भय था कि कहीं उसके समीप पहुंचने से पहले ही जीप कम्पाउन्ड के भीतर प्रविष्ट न हो जाये ।
ललित हैरान सा सुनील को जीप की ओर लपकता देख रहा था ।
ज्यों ही वह जीप के समीप पहुंचा, ड्राइवर ने जीप स्टार्ट कर दी ।
“रामसिंह !” - सुनील जोर से बोला ।
रामसिंह उसका मित्र था ।
रामसिंह ने सुनील को ओर देखा और फिर उसने ड्राइवर रुके रहने का संकेत किया ।
“सुपर साहब” - सुनील हांफता हुआ बोला - “मेरी थोड़ी मदद कर दो । बदले में भगवान तुम्हें जल्दी से तरक्की बक्शेगा ।”
रामसिंह ने अपने होंठों से दबा हुआ सिगार निकालकर हाथ में ले लिया अपनी आदत के अनुसार उसे अपनी पहली उंगली और अंगूठे के बीच में फिराने लगा । पहले उसने सुनील को देखा फिर अपने चारों और फैली भीड़ पर दृष्टि दौड़ाई ।
भीड़ में उसे कई प्रैस फोटोग्राफर और रिपोर्टर दिखाई दिये । वह नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता हुआ सुनील से बोला - “सॉरी ! सॉरी मैन ।”
“वाट सॉरी” - सुनील हैरानी से बोला - “बिना काम जाने ही उसे करने से इन्कार कर रहे हो ।”
“मुझे मालूम है तुम क्या कहना चाहते हो लेकिन वह नहीं हो सकता ।”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“मैं तुम्हें भीतर नहीं ले जा सकता । यह यारी की वजह से हिमायत दिलाने वाली बात हो जायेगी । मैं तुम्हारा दोस्त होने के अलावा पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट भी हूं और तुम मेरे दोस्त होने के अलावा ‘ब्लास्ट’ के रिपोर्टर भी हो ।”
“अरे मेरे बाप” - सुनील झुंझलाकर बोला - “मैं यह कब कह रहा है कि तुम मुझे भीतर ले जाओ ।”
“नहीं कहा तुमने ?”
“नहीं कहा । हरगिज नहीं कहा ।”
“तो फिर ?” - रामसिंह उलझन पूर्ण स्वर में बोला ।
“जिस स्टूडियो में तुम घुसने वाले हो, उसके मालिक का नाम उत्तमचन्दानी है । तुम भीतर जाकर उसे सिर्फ इतना कह दो कि मैं बाहर खड़ा हूं ।”
“बस ?”
“बस !”
“ओके ! कह दूंगा ।”
“जाते ही कह दना ।”
“ओके ।”
रामसिंह ने सिगार फिर होठों मे दबा लिया । उसने ड्राइवर को संकेत किया । जीप आगे बढ गई ।
“आज तो सुपर साहब भी दगा दे गये ।” - ललित उसके पीछे आकर बोला ।
“अबे ओ ‘क्रानिकल’ के घोड़े” - सुनील गुर्राया - “तू तेल देख और तेल की धार देख ।”
“मतलब यह कि अभी भी तुम्हें बाकी प्रैस प्रतिनिधियों से पहले भीतर घुस पाने की उम्मीद है ।”
सुनील चुप रहा ।
“मेरे साथ आओ । चाय पिलाता हूं । तब तक प्रभूदयाल अपनी तफ्तीश से निपट ही जायेगा । अब तो वह वैसे भी फुर्ती दिखायेगा क्योंकि उसका बाप आ गया है ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
वह फाटक के सीखचों में से कम्पाउन्ड के भीतर झांक रहा था ।
उत्तमचन्दानी सेठ एक ए एस आई के साथ फाटक की ओर बढ रहा था ।
फाटक के समीप आकर उसने भीड़ में झांका । फिर उसने सुनील की ओर संकेत करके ए एस आई को कुछ कहा । ए एस आई ने हवलदार को संकेत किया ।
तत्काल फाटक खुला ।
“चीरियो !” - सुनील ललित की ओर देखकर हाथ हिलाता हुआ बोला और फाटक के भीतर घुस गया । फाटक फौरन बन्द हो गया ।
सुनील उत्तमचन्दानी सेठ के साथ हो लिया ।
ललित मुंह बनाये सुनील को जाता देखता रहा ।
सुनील ने देखा, उत्तमचन्दानी सेठ बेहद गम्भीर था । उसके होंठ बड़ी मजबूती से एक दूसरे के साथ भिंचे हुए थे । वह सुनील से एक शब्द भी नहीं बोला था । सुनील चुपचाप उसके साथ इमारत की ओर बढ रहा था । ए एस आई सुनील के फाटक के भीतर कदम रखते ही उनसे अलग हो गया था ।
सुनील सोच रहा था, आखिर सेठ का एक करोड़ रुपया डूब ही गया । आखिर कोई उसकी फिल्म के हीरो की हत्या करने में सफल हो ही गया ।
इमारत के समीप पहुंचकर सुनील ठिठका ।
‘दुल्हन’ के परखचे उड़ गये थे । इतना भयंकर विस्फोट हुआ था कि ‘दुल्हन’ के आसपास खड़ी गाडियों की ‘दुल्हन’ की लाल रंग की बाडी के टुकड़े दूर-दूर तक फैले हुये थे ।
सुनील के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई । उसने जल्दी से उस दिशा में मुंह फिरा लिया ।
अगर स्टील की बनी गाड़ी की यह हालत हुई थी तो उसके भीतर बैठे सन्तोष कुमार का क्या हाल हुआ होगा ? उसका शरीर भी गाड़ियों के मलबे के बीच में ही कहीं हजारों टुकड़ों में बिखरा पड़ा होगा ।
उसी क्षण इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की दृष्टि सुनील पर पड़ी । वह कुछ क्षण हैरानी से सुनील को देखता रहा और फिर लम्बे डग भरता हुआ उसके समीप पहुंचा ।
“तुम भीतर कैसे पहुंचे ?” - सुनील के समीप आकर वह कठोर स्वर से बोला ।
सुनील को उत्तर देने की जरूरत नहीं पड़ी ।
“इन्स्पेक्टर” - उत्तमचन्दानी सेठ बर्फ से ठण्डे स्वर से बोला - “ये साहब मेरे साथ हैं ।”
प्रभूदयाल ने आश्चर्य से पहले सेठ की ओर देखा, फिर सुनील की ओर देखा और फिर हड़बड़ा कर सेठ से बोला - “राइट, सर । राइट, सर ।”
सेठ इमारत के भीतर की ओर बढा ।
सुनील ने प्रभूदयाल की ओर देखकर एक क्षण के लिये अपनी दाईं आंख बन्द की और फिर जल्दी से सेठ के साथ हो लिया ।
प्रभू दयाल का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।
सेठ उसे फिर उसी कमरे में ले आया जिसमें कुछ घन्टे पहले कामता नाथ ने उसे सेठ से मिलाया था ।
कमरे में पहले से ही कुछ लोग मौजूद थे । वहां खलनायक रामचन्द्र था, कैमरा मैन दिवाकर था, सोम प्रकाश था और... और सन्तोष कुमार था ।
सुनील की निगाहें जैसे सन्तोष कुमार के चेहरे पर चिपक कर रह गई । उसका मुंह खुले का खुला रह गया ।
उत्तमचन्दानी सेठ मेज के पीछे की अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ चुका था । वह धीरे से खांसा ।
सुनील ने विस्फारित नेत्र सन्तोष कुमार के चेहरे से नहीं हटे ।
“बैठो, सुनील ।” - उसके कान में उत्तमचन्दानी का स्वर पड़ा ।
सुनील ने बड़ी मेहनत से अपनी निगाहें सन्तोष कुमार के चेहरे से हटाई । उसने विचित्र नेत्रों से उत्तमचन्दानी सेठ की ओर देखा और फिर दुबारा सन्तोष कुमार की ओर देखता हुआ बोला - “तुम... तुम जिन्दा हो ।”
सन्तोष कुमार ने बेचैनी से अपनी कुर्सी पर करवट बदली । वह मुंह से कुछ नहीं बोला ।
“बैठो ।” - उत्तमचन्दानी सेठ फिर बोला ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“तो फिर मरा कौन है ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
किसी ने उत्तर नहीं दिया ।
सुनील ने बारी-बारी कमरे में मौजूद हर व्यक्ति पर दृष्टि दौड़ाई । फिर एकाएक एक बड़ा अप्रिय ख्याल उसके मस्तिष्क में बिजली की तरह कौंध गया ।
कामता नाथ !
कामता नाथ कहां है ?
“कामता नाथ कहां है ?” - उसने उच्च स्वर में प्रश्न किया ।
सब निगाहें चुराने लगे । किसी ने उत्तर नहीं दिया ।
“कामता नाथ कहां है ?” - सुनील ने सेठ की ओर देखते हुये अपना प्रश्न दोहराया ।
सेठ के चेहरे पर असुविधा के लक्षण प्रकट हुए । फिर वह बड़े विचलित स्वर में बोला - “सुनील, दरअसल, दरअसल, कामता नाथ... बाहर जो हादसा हुआ है, उसका शिकार दरअसल कामता नाथ हुआ है ।”
“कैसे ? कैसे ?” - सुनील उच्च स्वर में बोला - “रेडियो में तो आया था कि बम की चपेट में आकर सन्तोष कुमार मर गया था मैंने ‘क्रानिकल’ की स्पाट न्यूज में भी यही लिखा देखा था ।”
“वह सब एक गलतफहमी के अन्तर्गत हो गया था ।” - सेठ उत्तमचन्दानी ने बताया ।
“कैसी गलतफहमी ?”
“सब बताता हूं । सब बताता हूं । पहले तुम आराम से बैठो तो सही ।”
सुनील चुप हो गया । वह स्वंय को व्यवस्थित करने का प्रयत्न करने लगा ।
“क्या हुआ था ?” - थोड़ी देर बाद उसने प्रश्न किया ।
“किसी ने सन्तोष कुमार की लाल रंग की गाड़ी में बम रख दिया था” - उत्तमचन्दानी सेठ ने बताया - “बम को उसने इस ढंग से कार के इग्नीशन के साथ कनैक्ट कर दिया था कि इग्नीशन ऑन किये जाते ही बम फट पड़ा था ।”
“यह आपको कैसे मालूम है ?”
“मुझे नहीं मालूम । मुझे पुलिस इन्स्पेक्टर ने बताया है । उसी की तफ्तीश से यह प्रकट हुआ है कि बम के फटने का समय निर्धारित करने के लिये उसमें कोई टाईम क्लाक फिट नहीं थी । बम का इग्नीशन के साथ ही सम्बन्ध कर दिया गया था । जब भी इग्नीशन ऑन किया जाता बम फट जाता और इन्स्पेक्टर का कहना है कि बम भी किसी का अपना बनाया हुआ था ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि किसी ने नाइट्रो ग्लिसरीन नाम के एक विस्फोटक पदार्थ से खुद ही बम तैयार कर लिया था ।”
“मतलब यह कि हत्यारा गोला बारूद के बारे में जानकारी रखता था ।”
“पुलिस का यही ख्याल है ।”
“लेकिन इस सारे बखेड़े का शिकार कामता नाथ कैसे हो गया ?”
“कामता नाम को जरूरी काम था इसलिये उसने थोड़ी देर के लिये सन्तोष कुमार की ‘दुल्हन’ मांग ली थी ।”
“मेरे आफिस में तो वह एक शोफर द्वारा चलाई जाने वाली ‘इम्पाला’ में आया था ?”
“वह मेरी गाड़ी है । उस पर ड्राइवर शूटिंग के बाद दमयन्ती माला को उसके घर छोड़ने चला गया था ।”
“और कामता नाथ के पास अपनी गाड़ी भी तो है ?”
“उसके पास एक पुरानी फियेट गाड़ी है लेकिन आज वह उसे स्टूडियो में नहीं लाया था । गाड़ी में कोई खराबी थी और वह उसे वर्कशाप में छोड़ आया था ।” - जवाब रामचन्द्र ने दिया ।
“बाहर और भी तो गाड़ियां खड़ी हैं ।”
“हां, खड़ी हैं । तुम कहना क्या चाहते हो ?” - सेठ बोला ।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और बोला - “मैं कुछ नहीं कहना चाहता । मैं सोच रहा था, जब इन्सान की मौत आती है तो दुनिया की कोई शक्ति उसे टाल नहीं पाती । भगवान की लीला देखिये, कामता नाथ की अपनी गाड़ी भी आज ही बिगड़ी और स्टूडियों में मौजूद आधी दर्जन गाड़ियों में से उसने कोई गाड़ी चुनी भी तो सन्तोष कुमार की गाड़ी जिसमें हत्यारे ने उसकी हत्या के लिये बम रख दिया था ।”
“क्या किया जाये” - उत्तमचन्दानी सेठ असहाय भाव से बोला - “कामता नाथ की मौत ऐसे ही लिखी थी ।”
“हां, और आपके हीरो की मौत नहीं लिखी थी ।” - सुनील बोला ।
सन्तोष कुमार ने आग्नेय नेत्रों से सुनील की ओर देखा लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला ।
सोम प्रकाश सुनील की ओर घूमा और फिर कठोर स्वर में बोला - “मिस्टर, कामता नाथ की मौत के लिये तुम सन्तोष कुमार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते । सन्तोष कुमार को क्या ख्वाब आया था कि उसकी गाड़ी में किसी ने बम रखा हुआ था और फिर कामता नाथ ने खुद सन्तोष कुमार ने गाड़ी मांगी थी, सन्तोष कुमार ने उसे नहीं कहा था कि वह उसकी गाड़ी ले जाये ।”
“तुम सन्तोष कुमार के सैक्रेट्री हो न ?” - सुनील बोला ।
“हां ।”
“और शायद सन्तोष कुमार के प्रति तुम्हारा एक दायित्व यह भी है कि जब वह खुद किसी बात को सुनकर चुप रह जाये तो तुम उसकी ओर से स्थिति में कोई मुनासिब बात फिट कर दो ।”
सोम प्रकाश क्रोधित हो उठा । एक क्षण के लिये सुनील को लगा जैसे सोम प्रकाश उस पर झपट पड़ने वाला हो लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ।
“जैन्टलमैन” - एकाएक कैमरामैन दिवाकर बोल पड़ा - “यह एक दूसरे पर बातें उछालने का समय नहीं है । हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि एक निर्दोष आदमी की जान चली गई है और अभी तक उसकी लाश स्टूडियो के कम्पाउन्ड में हजार टुकड़ों में बिखरी पड़ी है ।”
सब चुप हो गये । सारे सिलसिले में शायद वह पहली समझदारी की बात कही गई थी ।
“सेठ जी” - सुनील बोला - “लेकिन रेडियो में गलत खबर कैसे प्रसारित हो हुई ?”
“क्योंकि पहले यही समझा गया था कि सन्तोष कुमार ही मर गया है । जिस गाड़ी में बम फटा था, वह सन्तोष कुमार की थी । हमें तब यह मालूम नहीं था कि कामता नाथ ने सन्तोष कुमार की गाड़ी मांगी थी और लाश इतनी क्षत विक्षत हो गई थी कि उससे शिनाख्त नहीं हो सकती थी । सन्तोष कुमार हमें कहीं दिखाई नहीं दिया । हम सब ने यही समझा कि सन्तोष कुमार ही मर गया है । उसकी हत्या के प्रयत्न तो हो ही रहे थे । हमने समझा कि हत्यारा इस बार अपने प्रयत्नों में सफल हो गया था ।”
सेठ एक क्षण रुका और फिर बोला ।
“स्टूडियो के बाहर सड़क पर एक पुलिस मैन की ड्यूटी थी । बम का विस्फोट सुनकर वह भीतर आया । तब तक हम लोग भी बाहर निकल आये थे । सिपाही ने हम से पूछा कि क्या हो गया है । मैंने कह दिया कि सन्तोष कुमार की हत्या हो गई है । सिपाही ने पुलिस को फोन किया । पुलिस आ गई । एक बात से दूसरी बात जुड़ती चली गई । नतीजा यह हुआ कि चारों ओर यही खबर फैल गई कि सन्तोष कुमार मर गया है । वही गलत खबर रेडियो और प्रैस तक भी पहुंच गई । सन्तोष कुमार नहीं मरा है, यह बात तो हमें तब मालूम हुई, तब हमने सन्तोष कुमार को जीवित देखा । उसी ने हमें बताया कि कामत नाथ उसकी गाड़ी मांगकर ले गया था । बाद में घटना स्थल पर पुलिस ने कुछ और भी सूत्र खोज निकाले जिन से मालूम हुआ कि सन्तोष कुमार की हत्या के उस प्रयत्न का शिकार वास्तव में कामता नाथ ही हुआ था । जैसे कामता नाथ की घड़ी, बटुआ, उसके कपड़ों के टुकड़ों वगैरह ।”
“और इस सारे सिलसिले के दौरान में सन्तोष कुमार कहां था ?”
“मैं” - सन्तोष कुमार बोला - “स्टूडियो के एक दूसरे ड्रैसिंग में सोया पड़ा था । शूटिंग के बाद मेरा सिर दुखने लगा था । मैं आराम करने की खातिर ईजी चेयर पर लेटा था कि मुझे नींद आ गई थी ।”
“तुम कहां थे ?” - सुनील ने सोम प्रकाश से पूछा ।
पहले सुनील को लगा कि सोम प्रकाश उत्तर देने से इनकार कहने वाला था लेकिन फिर वह धीरे से बोला - “मैं इसी सड़क के सिरे पर मौजूद रायल स्टूडियो में गया हुआ था । बाद में जब वहां खबर पहुंची तो तभी मैं यहां लौटा था ।”
“तुम्हें तो मालूम था कि गाड़ी कामता नाथ ले रहा था ? फिर तुमने यह बात लोगों को बताई क्यों नहीं ?”
“शरलाक होम्स साहब” - सोम प्रकाश व्यंग्यूपर्ण स्वर में बोला - “रायल स्टूडियो में खबर पहुंचने के बाद जब तक मैं यहां पहुंचा था, तब तक सन्तोष कुमार भी घटना स्थल पर पहुंच चुका था और यह बात पहले ही प्रकट हो चुकी थी ।”
“मतलब यह कि तुम इस घटना के काफी देर बाद यहां लौटे थे ।”
“जी हां । लगभग बीस मिनट बाद ।”
“आपको बम फटने की आवाज सुनाई नहीं दी थी ?” - सुनील ने सन्तोष कुमार से पूछा ।
“नहीं । जिस ड्रैसिंग रूम में मैं मौजूद था वह कम्पाउन्ड से बहुत दूर है” - सन्तोष कुमार शान्ति से बोला - “और उसके खिड़कियां, दरवाजे भी बन्द थे ।”
“आपको दुर्घटना की खबर कैसे हुई ?”
“ड्रैसिंग रूम के बाहर लोगों का शोर सुनकर मेरी नीन्द खुल गई थी । मैं बाहर निकल आया था । मुझे देख कर कुछ लोग चिल्लाने लगे कि मैं तो जिन्दा हूं । मैंने उनसे बात पूछी तो मालूम हुआ कि मैं अपनी कार में छुपे बम के विस्फोट में मरा समझा जा रहा था । मैं फौरन बाहर भागा ।”
सुनील चुप हो गया ।
“तुम बहुत सवाल पूछ चुके हो” - सन्तोष कुमार अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोला - “अब मैं तुम से एक सवाल पूछूं ?”
“जरूर पूछिये, साहब ।” - सुनील बोला ।
“तुम्हें मुझ से और अन्य लोगों से इतने सवाल पूछने का क्या अधिकार ह ?”
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्र से उत्तमचन्दानी सेठ की ओर देखा और बोला - “मुझे सेठ ने यह जानने के लिये नियुक्त किया है कि आपकी हत्या करने का प्रयत्न कौन कर रहा है ।”
सन्तोष कुमार सेठ की ओर घूमा और बोला - “सेठ, तुमने मुझे बताया नहीं ।”
सेठ उत्तमचन्दानी कसमसाया और फिर बोला - “मैं तुम्हें बताना चाहता था लेकिन तुम मूड में नहीं थे । तुम्हारी सुनील से झड़प हो गई थी ।”
“लेकिन तुम्हें इस आदमी को बुलाने से पहले मुझे बताना चाहिये था ।”
“मैंने सोचा था कि बात तुम्हारे सामने ही हो जायेगी । और फिर कामता नाथ ने भी थोड़ी जल्दबाजी की थी । उसे विश्वास था कि तुम्हें इस मामले में कोई एतराज नहीं होगा । ...सन्तोष, आखिर मैंने सुनील को बुलाया तो तुम्हारा हित सोच कर ही था ।”
“बड़ी कृपा की आपने मुझ पर” - सन्तोष कुमार बोला । उसके स्वर में व्यंग्य का स्पष्ट पुट था - “अब स्थिति यह है कि मामला पुलिस के हाथ में पहुंच चुका है और पुलिस जैसी संगठित फोर्स, मुझे आशा है, हत्यारे को तलाश कर भी लेगी । अब इस मामले में मुझे सुनील की सेवाओं की जरूरत दिखाई नहीं देती” - फिर वह सुनील की ओर घूमा और बोला - “आप छुट्टी कीजिये साहब । अब आपको इस मामले में सिर फोड़ने की जरूरत नहीं है कि मेरी हत्या करने की कोशिश कौन कर रहा है ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ । उसने बारी बारी कमरे में मौजूद हर आदमी पर दृष्टिपात किया और फिर बोला - “अब तो ज्यादा जरूरत है, साहब । कामतानाथ मेरा दोस्त था । उसके हत्यारे को तलाश करने के लिये मैं जमीन आसमान एक कर दूंगा ।”
“तुम अपनी मर्जी से जो जी में आये करो लेकिन हम लोग तुम्हें कोई सहयोग नहीं देंगे ।” - सोम प्रकाश बोला ।
“क्यों नहीं देंगे, साहब ? क्या कामता नाथ आप लोगों का दोस्त नहीं था । क्या आप लोग यह नहीं चाहते कि कामतानाथ का हत्यारा गिरफ्तार हो ।”
सोम प्रकाश ने होंठ काटे । वह महसूस कर रहा था कि उस के मुंह से एक गलत बात निकल गई थी वह तनिक दबे स्वर से बोला - “मेरा मतलब यह नहीं था । मेरा मतलब था कि जब पुलिस तफ्तीश कर रही है तो हत्यारा पकड़ा ही जायेगा । मुझे विश्वास नहीं कि तुम हत्यारे को तलाश कर सकोगे ।”
“तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे हत्यारे को तुम्हारा संरक्षण प्राप्त है और किसी भी दूसरे आदमी के मुकाबले में तुम्हें अपनी योग्यता पर ज्यादा विश्वास है ।”
सोम प्रकाश ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन सुनील पहले ही बोला पड़ा - “मैं चला, सेठ जी ।”
और वह बाहर की ओर बढा ।
उत्तमचन्दानी अपने स्थान से उठा और सुनील के पीछे हो लिया ।
गलियारे में आकर उसने सुनील को रोका ।
“सुनील” - सेठ बोला - “सन्तोष कुमार के मामले में मैं अपनी स्थिति पहले से ही बयान कर चुका हूं । मुझे उम्मीद है उसकी किसी बेहूदगी के लिये तुम मुझे जिम्मेदार नहीं ठहराओगे ।”
“चिन्ता मत कीजिये, सेठ जी” - सुनील शान्त स्वर में बोला - “मैं आपकी स्थिति समझता हूं ।”
“और तुम उसके कह देने की वजह से अपना वह काम भी नहीं छोड़ोगे जिसकी वजह से मैंने तुम्हें बुलवाया है ?”
“मैं पहले ही कह चुका हूं, नहीं छोड़ूंगा । कामता नाथ मेरा दोस्त था ।”
“और यह लो । यह बारह हजार रुपये का चैक है, जिसका मैंने तुमसे वादा किया था ।”
सुनील ने चैक ले लिया और बोला - “कामता नाथ विवाहित था, यह तो मुझे मालूम है, उसके बाल बच्चे भी हैं ?”
“तीन बच्चे हैं ।”
“और उसकी आर्थिक स्थिति कैसी थी ?”
“ठीक ही थी ।”
“कोई सौ पचास हजार रुपया जाम किया हुआ था उसने ?”
उत्तमचन्दानी एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मुझे उम्मीद नहीं । कामता नाथ कमाता तो बहुत था लेकिन खर्च भी बहुत करता था । वह खुद ही कहा करता था कि वह रुपया जमा नहीं कर पाता था ।”
“आप लोग उसके परिवार के लिये क्या कर रहे हैं ?”
“मैं और लोगों की नहीं जानता । लेकिन मैं खुद तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं उसके परिवार पर किसी आर्थिक संकट के आने की नौबत नहीं आने दूंगा ।”
“आप अपने उस हीरो के बच्चे से कहिये न कि वह कुछ करे । आखिर कामता नाथ की जान जाने की वजह से ही तो वह जिन्दा है ।”
“मैं कहूंगा लेकिन अगर वह कुछ नहीं भी करेगा तो कोई अन्तर नहीं पड़ेगा । सब ठीक हो जायेगा ।”
“अच्छी बात है । अब आप एक काम कीजिये ।”
“क्या ?”
सुनील ने चैक सेठ की ओर बढा दिया और बोला - “यह रुपया आप कामता नाथ के परिवार को पहुंचा दीजिये ।”
“लेकिन...”
“देखिये सेठ जी, यह रुपया आपने मेरी सेवाओं के बदले में मुझे दिया है । मैं इसे किसी भी ढंग से खर्च करूं, आपको एतराज नहीं होता चाहिये ।”
“ओके ।” - और सेठ ने चैक ले लिया ।
“नमस्कार” - सुनील बोला - “मैं आप से फिर मिलूंगा ।”
सेठ ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया । सुनील लम्बे डग भरता हुआ गलियारे में आगे बढ गया । सेठ उसे जाता देखता रहा । उसके नेत्रों में गहरी प्रशंसा का भाव था ।
***
चैथम रोड पर स्थित भवानी लाज एक मन्जिली इमारत थी । इमारत के सामने की दीवार पर मुख्य द्वार की बगल में ढेर सारी नेम प्लेट लगी हुई थीं । सुनील ने बारी-बारी से पढना आरम्भ कर दिया ।
एक नेम प्लेट के अनुसार आराधना तीसरी मंजिल के सामने के फ्लैट में रहती थी ।
सुनील इमारत में प्रविष्ट हो गया । सीढियां तय करके वह तीसरी मंजिल पर पहुंचा । सामने के फ्लैट पर भी आराधना के नाम की नेम प्लेट लगी हुई थी ।
सुनील ने काल बैल बजाई ।
थोड़ी देर बाद द्वाल खुला और एक बेहद खूबसूरत लड़की ने बाहर झांका । वह स्लैक्स और एक ढीली सी बुश-शर्ट पहने हुए थी । बुश-शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुये थे और उसमें से उसके वक्ष का तीन चौथाई भाग ब्रेसियर के बन्धन से मुक्त होने के लिये छटपटाता दिखाई दे रहा था लेकिन उसकी अपनी उस स्थिति की कोई विशेष परवाह नहीं मालूम होती थी ।
“आराधना जी ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
उसने सिर से पांव तक सुनील को देखा । फिर उसके चेहरे पर एक रहस्यपूर्ण मुस्कराहट उभरी और फिर उसने सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“मैं आपसे बात करना चाहता हूं ।” - सुनील शिष्ट स्वर में बोला ।
“वाई नाट” - आराधना बोली - “भीतर आओ न मेरे राजकुमार ।”
“राजकुमार !” - सुनील हड़बड़ा कर बोला ।
“हां, हां, कम इन आई से” - और आराधना से हाथ बढाकर सुनील को भीतर खींच लिया । साथ ही उसने फ्लैट का द्वार भीतर से बन्द कर लिया । आराधना सुनील की ओर देख कर मुस्कराई । उसने एक गहरी सांस ली और आगे बढती हुई बोली - “आओ ।”
आराधना की सांस के साथ विस्की का एक तेज भभूका सुनील की नाक तक पहुंचा । उसने कमरे में चारों और दृष्टि दौड़ाई । वह एक सजा हुआ ड्राइंग रूम था । एक ओर रेडियो ग्राम था जो उस समय पॉप संगीत प्रवाहित कर रहा था । ड्राइंग रूम में मौजूद सोफों के बीच एक आठ गुणा आठ का भाग खाली था जहां बिछे गलीचे पर ढेर सारी रंग बिरंगी गद्दियां पड़ी थीं और एक ओर जानीवाकर की एक बोतल, एक विस्की का गिलास, सोडे और बर्फ वगैरह रखी थी ।
एकाएक सुनील के मन में एक सन्देह उपजा ।
“आप मुझें कोई गलत आदमी तो नहीं समझ रही हैं, आराधना जी” - सुनील ने झिझकते हुए प्रश्न किया - “शायद आपको किसी और आदमी की प्रतीक्षा थी और संयोगवश अभी उसकी जगह मैं आ गया हूं ।”
“मुझे किसी और आदमी की प्रतीक्षा नहीं थी” - आराधना विस्की में भीगे हुए स्वर में बोली - “मुझे तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी, राजकुमार ।”
राजकुमार ! फिर राजकुमार !
“लेकिन मैं राजकुमार नहीं हूं । मैं तो...”
“ओह, कम आन । राजकुमार नहीं हो तो क्या हुआ । मैं ही कौन सी राजकुमारी हूं ।”
सुनील झिझकता हुआ आगे बढा ।
आराधना गलीचे पर लेट गई । अपनी एक कोहनी गद्दियों पर टिकाकर उसने सुनील की ओर देखा ।
“बैठो ।” - वह बोली । उसके स्वर में आदेश का पुट था ।
सुनील उसके सामने एक सोफे पर बैठ गया ।
“दरअसल मिस्टर... क्या नाम है तुम्हारा ?”
“जी, राजकुमार नहीं है ।”
“मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास है । मैंने नाम पूछा है ।”
“सुनील ।”
“सुनील दत्त ।”
“मैं आपको सुनील दत्त मालूम होता हूं ?”
आराधना ने अपनी विस्की से गहरी हो चुकी निगाहें सुनील के चेहरे पर टिकाई और फिर जरूरत से ज्यादा जोर से सिर हिलाती हुई बोली - “नहीं ।”
“फिर आपने मुझे सुनील दत्त क्यों कहा ?” - सुनील उपहास पूर्ण स्वर में बोला ।
“यूं ही” - आराधना बोली - “मेरी मर्जी । मेरे जी में आया मैंने कह दिया । तुम्हें क्या ?”
“कुछ भी नहीं । ओके बाई मी ।”
“तुम समझदार आदमी हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम बड़े अच्छे मौके पर आये” - आराधना बोली - “पार्टी में अकेले कोई खास मजा नहीं आता ।”
“पार्टी ?”
“हां । और क्या ? पार्टी ही तो हो रही है यहां । जहां शराब हो, शबाब हो, वहां पार्टी ही होती है ।”
“लेकिन पार्टी... अकेले... कमाल है ।”
“हां, यह भी पार्टी की एक किस्म होती है । जब इन्सान की कोई मनोकामना पूरी हो जाती है तो कभी कभार वह भीड़ इकट्ठी करने के स्थान पर खुद अपने आपको पार्टी दे डालता है । वही मैं कर रही हूं । वैसे तो अब तुम आ गये हो और तनहाई वाली कोई बात नहीं रही है ।”
“लेकिन शायद मैं तो इस किस्म की पार्टियों के लिये मुनासिब आदमी नहीं । खासतौर पर मैं तो एक बहुत मामूली आदमी हूं । कोई राजकुमार नहीं ।”
“सब ठीक है” - आराधना मुंह बिगाड़ कर बोली - “कई बार जब मेल ट्रेन नहीं आती तो आदमी पैसेन्जर ट्रेन पर भी तो सफर करने के लिये तैयार हो जाता है ।”
सुनील चुप रहा । उसे समझ नहीं आ रहा कि वह आराधना से अपने मतलब की बात कैसे शुरू करे । आराधना नशे में थी । उसे न अभी होश थी और न ही इस बात की परवाह मालूम होती थी कि उसके सामने एक नितान्त अजनबी बैठा था ।”
“विस्की पीते हो ?” - आराधना ने पूछा ।
“पीता तो हूं” - लेकिन हिचकिचाता हुआ बोला - “लेकिन...”
“रैक में से एक गिलास ले आओ ।” - आराधना ने आदेश दिया ।
“लेकिन, आराधना जी, मैं...”
“राजकुमार, मेरा मतलब है सुनील दत्त... नहीं सिर्फ सुनील, अगर तुम शराब नहीं पियोगे तो पार्टी का मजा कैसे आयेगा ?”
सुनील अनिच्छापूर्ण ढंग से उठा और रैक से एक गिलास उठा लिया ।
“नीचे आकर बैठो ।” - आराधना बोली ।
सुनील नीचे गलीचे पर आराधना के समीप बैठ गया ।
आराधना के उसके गिलास में ढेर सारी शराब, सोडा और बर्फ डाल दी ।
सुनील ने अपना गिलास उठा लिया ।
आराधना ने भी अपना शराब से तीन चौथाई भरा हुआ गिलास हाथ में ले लिया ।
“चियर्स !” - सुनील गिलास ऊंचा करके बोला ।
आराधना ने अपना गिलास उसके गिलास ने टकराया और बोली - “आओ, हम शराब पियें और भगवान से प्रार्थना करें कि आज के मुबारक दिन अपनी जान खोने वाले इन्सान की आत्मा जहन्नुम की आग में झुलसे ।”
और उसने अपना गिलास होठों से लगाया और एक ही सांस में गटागट सारी विस्की पी गई ।
सुनील मुंह बाये आराधना का मुंह देखता रहा ।
आराधना ने अपने दायें हाथ की पीठ से मुंह पोंछा और गिलास को गलीचे पर लुढका दिया ।
सुनील ने एक घूंट पिया और सावधानी से गिलास नीचे रख दिया ।
“आप मुझसे यह नहीं पूछेंगी कि मैं कौन हूं और यहां क्या करने आया हूं ?” - सुनील बोला ।
“तुमने मुझे बता तो दिया है कि तुम सुनील दत्त हो, नहीं खाली सुनील हो ।”
“और आपकी निगाह में इतना परिचय काफी है ।”
“इससे कम भी काफी है । मतलब यह कि अगर तुम मुझे अपना नाम भी न बताते तो क्या फर्क पड़ता । मैं तुम्हें राजकुमार कहकर पुकार सकती थी । वैसे तुम खूबसूरत हो ।”
“मेम साहब, खूबसूरती की तारीफ औरत की की जाती है और यह मर्दों का काम होता है ।”
“ओके ! तुम मेरी खूबसूरती की तारीफ करो ।” - और आराधना ने अपनी दोनों बांहें उठाकर इतनी जोर की अंगड़ाई ली कि सुनील को उसके जवान और खूबसूरत शरीर का बन्द बन्द टूटता हुआ महसूस हुआ ।
सुनील के होंठ सूखने लगे । उसने अपने गिलास में से विस्की का एक बड़ा सा घूंट पिया ।
“शुरू करो !” - आराधना बोली ।
“क्या ?”
“मेरी खूबसूरती की तारीफ ।”
“आराधना जी, अगर आप एक मिनट के लिये मुझे अपनी बात कहने का मौका दें तो...”
“सिर्फ एक मिनट के लिये ? तुम मेरी खूबसूरती की तारीफ सिर्फ एक मिनट के लिये करोगे ?”
“वह तो मैं कयामत के दिन तक कर सकता हूं कि लेकिन एक मिनट का समय मैं अपनी बात कहने के लिये चाहता हूं ।”
“अपनी बात कह चुकने के बाद भाग तो नहीं जाओगे ?”
“नहीं भागूंगा ।”
“प्रामिस ?”
“कहो फिर ?”
“मैं आपसे सन्तोष कुमार के बारे में बात करना चाहता था ।”
आराधना को जैसे झटका सा लगा । वह सम्भालकर बैठ गई । उसने दो तीन गद्दियों अपनी गोद में रखकर उन पर अपनी कोहनियां टिका लीं और अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा टिकाकर उसे घूरने लगी ।
सुनील नर्वस हो उठा ।
“कौन हो तुम ?” - आराधना तीव्र स्वर में बोली । इस बार उसके स्वर में विस्की की थरथराहट नहीं थी ।
“अभी तो आपको यह जानने में कतई दिलचस्पी नहीं थी कि मैं कौन हूं ?”
“कौन हो तुम ?” - आराधना ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“मैं एक प्रैस रिपोर्टर हूं ।” - सुनील बोला ।
“कौन से पेपर के ? पेपर का नाम बोलो ।”
“ब्लास्ट !”
“डायरेक्ट्री में तुम्हारा नाम है ?”
“है !”
“डायरेक्ट्री उठाकर लाओ ।”
सुनील टेलीफोन के नीचे पड़ी डायरेक्ट्री उठा लाया ।
“ब्लास्ट निकालो ।”
सुनील ने डायरेक्ट्री में ‘ब्लास्ट’ वाला पृष्ठ निकाला और डायरेक्ट्री उसके आगे कर दी । आराधना उसके समीप सरक आई और डायरेक्ट्री देखने लगी । वह एकदम सुनील से सटी हुई थी और सुनील अपने शरीर पर उसके पुष्ट वक्ष का उतार चढाव स्पष्ट रूप से अनुभव कर रहा था । सुनील की अपनी सांस तेज होने लगी ।
आराधना कुछ क्षण डायरेक्ट्री पर अपनी निगाहों फोक्स करने का प्रयत्न करती रही और फिर बोली - “हूं । सुनील कुमार चक्रवर्ती । स्पेशल कारस्पान्डेन्ट । दैट्स यू ?”
“दैट्स मी ।”
आराधना उससे अलग हट गई । सुनील ने एक गहरी सांस ली और उसने डायरेक्ट्री एक ओर रख दी ।
“तुमने साढे आठ बजे का न्यूज ब्राडकास्ट सुना था ?” - उसने प्रश्न किया ।
“जी हां, सुना था” - सुनील बोला - “इसीलिये तो मै यहां आया हूं ।”
“मेरे बारे में तुम्हें किसने बताया था ?”
“किसी को बताने की जरूरत ही नहीं थी । आपको कौन नहीं जानता ?”
“मुझे मस्का लगाने की कोशिस मत करो । मैंने पूछा है कि मेरा नाम तुम्हें किसने सुझाया था !”
“कामता नाथ ने ?”
“तुम सन्तोष कुमार के बारे में मुझसे क्या पूछना चाहते हो ?”
“मैंने सुना है कि ‘इन्कलाब’ में से आपको सन्तोष कुमार की वजह से हटाया गया था ।”
“तुमने ठीक सुना है ।”
“सन्तोष कुमार ने ऐसा क्यों किया ?”
“क्योंकि वह बेहद गन्दा, घिनौना और परले सिरे का कमीना इन्सान है और सच पूछो तो उसे इन्सान कहना भी उसका सम्मान करना है ।”
“इसके अलावा भी कोई और वजह होगी ? कोई निजी बात जिसकी वजह से उसने आपके साथ ऐसी ज्यादती की । मैंने सुना है कि जब आपकी ‘इन्कलाब’ में लिया गया था । तब तो उसने कोई एतराज नहीं किया था । जब उसने आपको फिल्म से हटाने की मांग की थी, तब तक को ‘इन्कलाब’ की शूटिंग शुरु भी हो गई थी ।”
“करैक्ट ।”
“फिर क्या हो गया था ?”
“फिर वह हुआ था, जिसकी सन्तोष कुमार को आशा नहीं थी । सन्तोष कुमार समझता था कि मैं उसके बिस्तर की शोभा बनने में गौरव का अनुभव करूंगी । मैं उसकी फिल्म की हीरोइन थी और मुझे इस बात पर गर्व करना चाहिये था कि मैं नई अभिनेत्री होते हुए भी सन्तोष कुमार जैसे सुपर स्टार के साथ आ रही थी । मुझे इस बात के लिये उसका अहसान मानना चाहिये था और वक्ती तौर पर उसकी रखैल बन जाने पर कतई एतराज नहीं करना चाहिये था । सन्तोष कुमार अपनी फिल्म की हीरोइन पर वैसा ही अधिकार बताना चाहता था जैसे कोई पचास रुपये देकर एक रात के लिये खरीदी गर्ई रण्डी पर अपना अधिकार जताना चाहता है । वह कहता था कि उन लड़कियों के मुकाबले में मेरी तकदीर एक लाख गुणा अच्छी थी जो सन्तोष कुमार पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर चुकने के बाद भी कोई नतीजा हासिल नहीं कर पाती थी । वह.. वह बेहूदा इन्सान समझता था कि जितनी सहूलियत से आप एक तौलिये से अपने गन्दे हाथ पौंछ सकते हैं उतनी ही सहूलियत से आप किसी की इज्जत लूट सकते हैं, विशेष रूप से मेरे जैसी नई अभिनेत्री की इज्जत जो सन्तोष कुमार के साथ हीरोइन आने की वजह से ही स्टार बन सकती थी । वह इन्सान नहीं गन्दी नाली का गन्दा कुलबुलाता हुआ कीड़ा था जो अपने आपको खुदा समझता था, बल्कि खुदा से भी दस इन्च ऊंचा समझता था ।”
आराधना चुप हो गई । उसका चेहरा तमतमा उठा था और सांस तेज हो गई थी । उसने गलीचे पर लुढका हुआ अपना गिलास सीधा किया, उसमें थोड़ी विस्की डाली और उसे नीट ही पी गई ।
“इन्कलाब की दूसरे रोज की शूटिंग के बाद सन्तोष कुमार मुझे एक पार्टी में ले गया” - आराधना फिर बोली - “पार्टी किसी प्रोड्यूसर ने दी थी जिसकी फिल्म की सिल्वर जुबली हो गई थी । हर फिल्मी पार्टी की तरह वहां भी शराब का बड़ा तगड़ा इन्तजाम था और लोग इसलिये बेतहाशा शराब पी रहे थे क्योंकि वह मुफ्त में हासिल हो रही थी । मुझे शराब से परहेज तो तब भी नहीं था लेकिन मैंने तब तक एक पैग से ज्यादा शराब कभी नहीं पी थी । सन्तोष कमार की वजह से, बल्कि यूं कहो कि उसके बहकावे में आकर, उस रोज मैंने ज्यादा शराब पी ली । उसकी राय में शराब ही एक विशेष प्रकार के सर्कल में आपकी स्थापना कर सकती है । मैं लोगों के साथ शराब की सोहबत करूंगी और फिर मुझे बड़े बड़े प्रोड्यूसरों में उठने बैठने का अवसर मिलेगा और मैं आनन फानन में स्टार बन जाऊंगी । बड़ी स्टार बनने का सपना तो मैं देखती ही थी इसलिये मैं सन्तोष कुमार की बात मान गई । मिस्टर, मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि बड़े-बूढे, शराफत के पुतले और प्रतिष्ठा के आधार स्तम्भ मालूम होने वाले ये फिल्मी लोग ऐसी पार्टियों में कितनी बेहूदी हरकतें करते हैं । जवान लड़की देखकर वहशत से इनके चेहरे चमकने लगते हैं, मुंह से लार टपकने लगती है । बातों-बातों में किसी की झुर्रियों वाला बूढा हाथ आपके कन्धे पर आ पड़ेगा और आपके गाल सहलाने लगेगा और या फिर आपके वक्ष की ओर रेंगने लगेगा । कोई आपके नितम्बों पर चुटकी काट लेगा तो कोई जोश में आकर आपको अपने अंक में ही भर लेगा । आप अगर बेशर्मी से हंस कर उन्हें प्रोत्साहन दें तो आप बहुत अच्छी लड़की है और आप जरूर तरक्की करेंगी । आप उनकी गन्दी हरकतों पर एतराज करें तो वे दांत निकाल कर एक अश्लील हंसी हंसेगे और कहेंगे कि इस लड़की का कोई फ्यूचर नहीं । यह क्या हीरोइन बनेगी ।”
“आप सन्तोष कुमार के बारे में कुछ कह रही थी ?” - सुनील बोला ।
“हां” - आराधना बोली - “पार्टी एक होटल में हो रही थी । रात के बाहर बजे के करीब जब मैंने घर जाने की इच्छा प्रकट की तो सन्तोष कुमार बोला कि वह मुझे मद्रास से एक बहुत बड़े प्रोड्यूसर से मिलवाना चाहता था । उसने होटल में एक कमरा ले रखा था और वह उस कमरे में मुझे ले आया । उस वक्त सन्तोष कुमार नशे में धुत्त था । कमरे में आकर उसने भीतर से ताला लगा लिया और फिर मुझ पर झपट पड़ा । शराब मैंने भी पी थी । मुझे नशा भी था लेकिन इनना नहीं कि मुझे यह मालूम न हो कि मुझ पर क्या गुजरने वाली थी । सन्तोष कुमार की नीयत जाहिर होते ही मेरा नशा हिरन होने लगा । मैंने विरोध किया लेकिन कौन सुनता था । उल्टा वह तो यह कहने लगा कि मैं विरोध करके अपना भाव बढाने की कोशिश कर रही थी । उसने मुझे दबोच लिया और मैं उसके बन्धन से मुक्त होने के लिये हाथापाई करने लगी । लेकिन वह शैतान की तरह शक्तिशाली था । मैंने उसका मुंह नोच लिया, अपनी पूरी शक्ति उसके बन्धन से निकल जाने में लगा दी लेकिन मैं सफल नहीं हो सकी । उसने मेरे कपड़ों की धज्जियां उड़ा दीं और मुझे एकदम नग्न कर दिया । तब उसकी पकड़ से छूटने का एक मौका मेरा साथ लग गया । मेरा हाथ बगल की मेज पर पड़े एक फूलदान तक पहुंच गया । मैंने वह फूलदान पूरी शक्ति से उसके सिर पर दे मारा । मेरे शरीर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह बेहोश हो गया । मैं उठ खड़ी हुई । मैंने उसके मुंह पर थूका और पलंग की चादर को अपने शरीर पर लपेट कर कमरे से बाहर निकल आई । होटल के एक वेटर ने मेरी सहायता की । वह मुझे पिछवाड़े से निकाल कर होटल से बाहर ले आया । उसने मुझे एक टैक्सी पर बिठा दिया और मैं सन्तोष कुमार को और अपनी तकदीर को हजार-हजार बार कोसती हुई अपने फ्लैट पर पहुंच गई ।”
“फिर क्या हुआ ?”
“अगले दिन कुछ नहीं हुआ । सारा दिन मैं अपने फ्लैट में पड़ी रही । उससे अगले दिन इन्कलाब की शूटिंग थी । मैं मिनर्वा स्टूडियो पहुंची । सन्तोष कुमार पहले ही वहां मौजूद था । मिस्टर, एक्सट्राओं और स्टूडियो के कर्मचारियों से भरे हुए सैट पर से उसने मेरी भरपूर तौहीन करके मुझे सैट से बाहर निकलवा दिया । उस दिन मेरा जी चाहता था कि जमीन फट पड़े और मैं उसमें समा जाऊं, या मेरे पास पिस्तौल हो और मैं उस कुत्ते के पिल्ले का वहीं खातमा कर दूं । लेकिन कुछ भी नहीं हुआ मैं बेइज्जत होकर सैट से बाहर निकल आई । मजेदार बात यह थी कि - सन्तोष कुमार की इतनी बेहूदी हरकत के बाद भी किसी की मेरे साथ सहानुभूति नहीं थी । हर कोई सन्तोष कुमार को ही मक्खन लगा रहा था । बाद में केवल उत्तमचन्दानी सेठ ने मुझसे हाथ जोड़कर माफी मांगी थी । अपनी मजबूरी का रोना रोया था । और मुझे पांच हजार रुपये भी दिये थे ।”
आराधना एक क्षण रुकी और फिर बोली - “मुझे इन्कलाब में सन्तोष कुमार के साथ लिये जाने की वजह से मेरी बहुत पब्लिसिटी हो गई थी और तीन बड़े प्रोड्यूसरों ने मुझे अपनी नई फिल्मों के लिये साइन भी कर लिया था । अगले सात दिनों में मुझे उन तीन फिल्मों से भी जवाब मिल गया । और मिस्टर, मैं, आराधना, बड़ी स्टार बनने का ख्वाब देखती-देखती एकदम बेकार हो गयी । उस समय तक मेरी चार पिक्चरें रिलीज हुई थीं । और चारों में प्रैस और पब्लिक दोनों ने ही मेरी खूब प्रशन्सा की थी । उन दिनों मुझे ‘मोस्ट प्रामिसिंग न्यूकमर’ ‘मोस्ट टेलेटिंड स्टार’ ‘सुपर स्टार आफ टूमारो’ और पता नहीं क्या क्या कह कर पुकारा जाता था । सन्तोष कुमार ने पता नहीं क्या कुचक्र रचा कि मानो लोग यह भी भूल गए कि कभी आराधना नाम की किसी अभिनेत्री का अस्तित्व था । मिस्टर, उन दिनों मैंने बहुत सिर मारा, लेकिन किसी अच्छे निर्माता ने मुझे अपनी फिल्म में नहीं लिया । उन दिनों सन्तोष कुमार के कुछ चमचों ने मुझे यह राय भी दी कि मुझे सन्तोष कुमार से माफी मांग लेनी चाहिये थी । मुझे उसके सामने सम्पर्ण कर देना चाहिये था । वह न केवल मुझे माफ कर देता बल्कि वह अपने प्रभाव से मुझे फिर से स्टार भी बनवा देता । लेकिन मैं नहीं मानी ।”
“फिर आपको फिल्में कैसे मिली ?”
“फिर मैंने उन निर्माताओं का सहारा लिया जिनका सन्तोष कुमार से कोई वास्ता नहीं । अर्थात छोटे, महत्वहीन फिल्में बनाने वाले निर्माता, जो सन्तोष कुमार जैसे बड़े स्टार को लेकर कभी फिल्म नहीं बना सकते थे । क्योंकि उनका सन्तोष कुमार से कोई स्वार्थ नहीं था इसलिये वे सन्तोष कुमार की कोई उल्टी सीधी बात मानने के लिये बाध्य नहीं थे । कहने का मतलब यह है कि मोस्ट प्रामिसिंग स्टार आराधना, सैन्सेशनल स्टार डिक्सवरी आराधना, वगैरह अब शाही लकड़हारा किस्सा साढे तीन यार हाय मैं मर गई और दिल हो गया चोरी जैसी फिल्मों में काम करती है और यह सब इसलिये हुआ क्योंकि उसने सुपर स्टार सन्तोष कुमार की आंकशायिनी बनने का मुबारक मौका हाथ से निकल जाने दिया ।”
आराधना के होंठ एक कडुवी मुस्कराहट से विकृत हो गए ।
“यह झगड़ा हुए कितना अरसा हो गया है ?”
“लगभग चार साल ।”
“सन्तोष कुमार की हत्या कर देने का ख्याल आपके दिमाग में बुहत दिनों बाद आया ।” - सुनील सहज स्वर में बोला ।
आराधना के चेहरे ने एकदम भाव बदले । उसने कठोर नेत्रों से सुनील की ओर देखा और कठोर स्वर में बोली - “क्या बक रहे हो ?”
सुनील अपने चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कराहट लिये चुप रहा ।
“तुम्हारा अक्ल से कोई खास वास्ता नहीं मालूम होता” - आराधना बोली - “अगर मैंने सन्तोष कुमार ही हत्या करनी होती तो तब करती जब मैं उसके कमीनेपन का शिकार हुई थी, चार साल बाद नहीं । और अगर मैंने हत्या करनी होती तो मैं सीधे-सीधे जाकर उसकी छाती पर पिस्तौल रख देती, न कि उसे जहर देने और उसका कार में बम रखने जैसे बेहूदे काम करती ।”
सुनील चुप रहा ।
“वैसे उन दिनों मैं बहुत चाहा करती थी कि भगवान मुझे इतना साहस दे कि मैं जाकर सन्तोष कुमार को परलोक भेज सकूं । वास्तव में मैं इतनी बड़ी हिम्मत कभी नहीं कर पाई ।”
“मतलब यह कि सन्तोष कुमार की हत्या आपने नहीं की या नहीं करवाई ।”
“नहीं” - आराधना शान्ति से बोली - “वैसे अगर तुम अपने अखबार में यह छाप दो कि उसकी हत्या मैंने की है तो मुझे कोई एतराज नहीं होगा । इस होक्स से मुझे ढेर सारी पब्लिसिटी मिल जायेगी और फिर शायद उस पब्लिसिटी से ही प्रभावित होकर कोई बड़ा प्रोड्यूसर मुझे अपनी फिल्म में ले ले । आखिर संतोष कुमार भी तो पब्लिसिटी की ही खातिर अपने से बीस साल छोटी लड़की से शादी करने वाला है ।”
“जी !” - सुनील चौंका ।
“तुम्हें नहीं मालूम ? अखबार में तो उसकी मंगनी का समाचार भी छप गया है । वह माधुरी नाम की एक नई और कड़क जवान अभिनेत्री से शादी कर रहा है ।”
“माधुरी अपने से आयु में इतने बड़े आदमी से शादी क्यों कर रही है ?”
“स्टेटस (रुतबा) की खातिर । शायद सन्तोष कुमार की बीवी बनकर ही वह इतनी पब्लिसिटी हासिल कर ले कि वह बड़े-बड़े कान्ट्रेक्ट मार ले । और नहीं तो सन्तोष कुमार रईस आदमी तो है ही । पैसे के लिये वह सन्तोष कुमार की बीवी बन जायेगी और बाकी सांसारिक कामों के लिये वह कोई यार पाल लेगी, जैसा कि इस प्रकार की स्थिति में हर लड़की करती है । वैसे सम्भव है माधुरी का तो पहले से ही कोई यार हो और उन दोनों ने सन्तोष कुमार की दौलत लूटने के लिये ही इस बात से कोई एतराज न किया हो कि माधुरी सन्तोष कुमार से शादी कर ले ।”
“आप बड़ी भयानक बातें करती हैं ।”
आराधना हंसी और बोली - “मैं बड़ी सच्ची बातें करती हूं ।”
“आपकी की बातों से मुझे एक और बड़ी अनोखी बात की जानकारी हुई है ।”
“कौन सी बात ?”
“फिल्मी दुनिया में लोग पब्लिसिटी के लिये बहुत मरते हैं ।”
“क्योंकि पब्लिसिटी उनके स्टार बने रहने के लिये बहुत जरूरी है । जो स्टार जनता की चर्चा का विषय नहीं बना रहता, वह स्टार भी नहीं बना रह पाता । हमारे यहां तो पब्लिसिटी के लिये लोग ज्यादा स्टन्ट नहीं मारते हैं, हालीवुड में तो लोग पब्लिसिटी स्टन्ट की खातिर आत्महत्या तक का उपक्रम करने से नहीं हिचकते । शादियां और तलाक तो वहां पर पब्लिसिटी हासिल करने का सबसे सीधा और सरल तरीका है ।”
“आपकी राय में हत्यारा कौन हो सकता है ?”
“कोई भी हो सकता है । उसके सताये हुये हजारों लोग इस दुनिया में हैं । लेकिन एक बात है जिसने भी सन्तोष कुमार की हत्या की है, उसने इनाम के काबिल काम किया है । अगर मुझे हत्यारे का पता लग जाये तो मैं तो उसका मुंह चूम लूं ।”
“क्या स्वराज कुमार सन्तोष कुमार का हत्मारा हो सकता है ?”
“मेरी राय में तो नहीं हो सकता । हालांकि स्वराज कुमार को भी सन्तोष कुमार ने ‘इन्कलाब’ से निकलवाया था लेकिन मेरी और उसकी स्थिति में फर्क था । मैं तब कुछ भी नहीं थी लेकिन स्वराज कुमार तब भी भी बड़ा स्टार था । ‘इन्कलाब’ में न होने से उसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ा । उल्टे उस सन्दर्भ में तो स्वराज कुमार को अच्छी खासी पब्लिसिटी मिल गई थी । कई फिल्मी समाचार पत्रों ने लिखा था कि सन्तोष कुमार स्वराज कुमार से डर गया था कि कहीं पहली बार की तरह इस बार भी स्वराज कुमार उसके झण्डे न उखाड़ दे ।”
“और अश्वथप्पा ?”
“वह मद्रासी प्रोड्यूसर ? उसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती । मैं उसे जानती नहीं । वैसे मैंने सुना है कि सन्तोष कुमार ने सबसे ज्यादा उसे ही तबाह किया है ।”
“लेकिन आपकी राय में...”
“अब खत्म करो” - आराधना उसकी बात काटकर बोली - “यह प्रैस कान्फेंस नहीं हो रही है, यह सुपर स्टार सन्तोष कुमार की हत्या की खुशी में पार्टी हो रही है । अपना गिलास खाली करो ।”
सुनील ने अपना गिलास खाली कर दिया ।
आराधना से अस्थिर हाथों से बोतल उठाई और अपने और सुनील के गिलास में शराब डाल दी । सुनील ने दोनों गिलासों में सोड़ा और बर्फ डाल दी ।
आराधना ने अपना गिलास उठाया और ऊंचे स्वर से बोली - “लैट्स टोस्ट फॉर सन्तोष कुमार । मे हिज सोल रॉट इन हैल (आओ, सन्तोष कुमार के लिये जाम पियें । भगवान करे उसकी आत्मा नर्क की ज्वाला में जले ।)”
और आराधना ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया ।
“आराधना जी” - सुनील नर्वस स्वर में बोला - “अगर आप वाकई सन्तोष कुमार की मौत का जश्न मना रही हैं तो मैं आप को बहुत मायूस कर देने वाला समाचार सुनाने जा रहा हूं ।”
“कौन सा समाचार ?” - आराधना उसकी ओर झुक कर बोली ।
“दरअसल - दरअसल सन्तोष कुमार मरा नहीं है ।”
“क्या बक रहे हो ?” - आराधना गुर्राई - “मैंने खुद रेडियो में उसकी मौत का समाचार सुना है ।”
“वह समाचार गलत था । दरअसल सन्तोष कुमार की कार बम से उड़ गई थी लेकिन कार में सन्तोष कुमार नहीं था, कामता नाथ था ।”
“झूठ !” - आराधना तन कर बैठ गई और जोर से चिल्लाई ।
“मैं सच कह रहा हूं । वह...”
“यह झूठ है ! यह झूठ है !” - एकाएक आराधना विक्षिप्तों की तरह चिल्लाने लगी और जोर-जोर से अपने सामने पड़े गद्दियों के ढेर पर मुक्के बरसाने लगी - “यह झूठ है ! सन्तोष कुमार मर चुका है ।”
“नहीं !”
“वह मर चुका है ! वह मर चुका है !” - आराधना चिल्लाई । एकाएक उसने विस्की को बोतल को गरदन से पकड़ा और उसे पूरी शक्ति से सामने की दीवार पर दे मारा ।
विस्की की बोतल और दीवार पर लगी आराधना की एक तस्वीर हजार टुकड़ों में ड्राईंग रूम में बिखर गई ।
फिर आराधना ने अपने हाथों में अपना मुंह छुपा लिया और सुबकियां ले लेकर रोने लगी ।
शराब उस पर बुरी तरह हावी हो चुकी थी ।
सुनील ने विस्की का गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ । कुछ क्षण वह हिचकिचाता हुआ वहां खड़ा रहा और फिर सिर हिलाता हुआ द्वार की ओर बढा ।
द्वार के समीप आकर वह ठिठक गया ।
दाईं ओर एक छोटा सा कमरा था जिसका दरवाजा खुला था । उस कमरे में एक छोटी सी मेज पर पड़ा हुआ एक टाईपराईटर सुनील को दिखाई दिया ।
सुनील ने एक सावधानीपूर्ण दृष्टि आराधना की ओर डाली और फिर दबे पांव उस कमरे में घुस गया । उसने द्वार भीतर से बन्द कर लिया । उसने टाईपराइटर में कागज डाला और फिर उसकी अभ्यस्त उंगलियां की बोर्ड पर दौड़ने लगी । उसने टाईप का वह स्टैण्डर्ड वाक्य टाईप कर दिया था, जिसमें अंग्रेजी के सारे अक्षर आते थे । फिर उसने रोलर में से कागज खींच लिया । उसने अपनी जेब से सन्तोष कुमार को आई चेतावनी वाली चिट्ठी निकाली । वह बड़ी बारीकी से दोनों कागजों के अक्षर मिलाने लगा । उसका विशेष ध्यान ‘बी’ और ‘एफ’ पर था ।
अन्त में उसने चेतावनी वाली चिट्ठी फिर जेब में रख ली और दूसरा कागज फाड़ कर टुकड़े मेज के नीचे पड़ी रद्दी की टोकरी में डाल लिये ।
दोनों कागजों का कोई अक्षर नहीं मिलता था । चेतावनी वाली चिट्ठी सामने पड़े टाईपराइटर पर टाईप नहीं की गई थी ।
सुनील धीरे से द्वार खोलकर बाहर निकल आया ।
आराधना वहीं गलीचे पर लुढक गई थी और अब सो रही थी । उसका नशे में तमतमाया हुआ चेहरा उसके आंसुओं से भीगा हुआ था ।
सुनील चुपचाप फ्लैट का द्वार खोलकर बाहर निकल गया ।
***
अगले दिन सुबह दस बजे सुनील ‘ब्लास्ट’ के आफिस में पहुंचा ।
सबसे पहले उसने अर्जुन के बारे में पूछा ।
अर्जुन वह रिपोर्टर था जो पिछली रात को ‘ब्लास्ट’ के फोटोग्राफर के साथ मिनर्वा स्टूडियों के कम्पाउन्ड में मौजूद था ।
अर्जुन दफ्तर में नहीं आया था और न्यूज एडीटर राय के कथनानुसार उसके जल्दी दफ्तर में आने की सम्भावना भी नहीं थी । वह अभी भी पिछली रात की हत्या वाले केस पर काम कर रहा था ।
सुनील वापिस अपने केबिन में आकर बैठ गया । उसने एक्सटैन्शन टेलीफोन उठाया । दूसरी ओर से रेणु की आवाज सुनाई देते ही वह बोला - “अगर कहीं से अर्जुन बोले तो उसकी मेरे से भी बात कराना ।”
“और अगर प्याला सिन्हा बोले तो उसे क्या कहूं ?” - दूसरी ओर से रेणु का शरारतभरा स्वर सुनाई दिया ।
सुनील ने उत्तर देने के स्थान पर धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । वह मजाक के मूड में नहीं था ।
उसने ‘ब्लास्ट’ की एक कापी मंगाई और कामता नाथ की हत्या का विवरण पढने लगा । वह विवरण अर्जुन की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया था लेकिन उसमें बहुत सी बातें सुनील की बताई हुई भी थीं ।
बारह बजे के करीब उसके एक्सटैन्शन टेलीफोन की घन्टी बजी ।
सुनील ने रिसीवर उठाया और बोला - “हल्लो ।”
“अभी थोड़ी देर पहले अर्जुन का टेलीफोन आया था ।” - रेणु बोली ।
“तो तुमने मेरी बात क्यों नहीं करवाई उससे ?” - सुनील तीव्र स्वर में बोला ।
“वह बड़ा उत्तेजित था । कह रहा था कि सीधा दफ्तर में आ रहा हूं । वह तुमसे यहीं आकर बात करेगा । बस पांच मिनट में आता ही होगा ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर रख दिया ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
अर्जुन पांच मिनट में दफ्तर में तो आ गया लेकिन सुनील के केबिन में वह आधे घन्टे बाद पहुंचा ।
वह एक लगभग पच्चीस साल का खूबसूरत युवक था । वह ‘बलास्ट’ में केवल छः महीने पहले से नौकरी कर रहा था और आदतन बहुत मामूली बात से भी बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाता था ।
“हल्लो !” - अर्जुन उसके सामने की कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।
“तुम तो पांच मिनट बाद आ रहे थे ?” - सुनील शिकायत-भरे स्वर में बोला ।
“और आ भी गया था” - वह बोला - “लेकिन पहले जरा रिपोर्ट देने राय के पास चला गया था ।”
“तुम कामता नाथ की हत्या वाले केस पर अभी भी काम कर रहे हो न ।”
“हां ।”
“कोई नई बात मालूम हुई ?”
“बिल्कुल हुई । नई भी और सैन्सेशनल भी ।”
“क्या ?” - सुनील उत्सुक स्वर में बोला ।
“पुलिस को मालूम हो गया है कि कामता नाथ की हत्या किसने की है, अर्थात संतोष कुमार की हत्या करने की कौन कोशिश कर रहा था ।”
“कौन ?”
“सोम प्रकाश ।”
“नहीं ।” - सुनील अविश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं सच कह रहा हूं । मैं अभी सीधा पुलिस हैडक्वार्टर से ही आ रहा हूं ।”
“लेकिन सोम प्रकाश तो सन्तोष कुमार का बड़ा पक्का चमचा था । वह तो हर समय सन्तोष कुमार को एडवोकेट किया करता था । वह तो उल्टा सन्तोष कुमार की खातिर लोगों से लड़ जाया करता था ।”
“सब दिखावा था । हकीकतन वह भी उन सैकड़ों हजारों लोगों में से एक है जो संतोष कुमार की जात से नफरत करते है । और फिर वह अभिनेत्री आराधना का सगा भाई भी तो है ।”
“क्या ?” - सुनील हैरानी से चिल्लाया ।
“भाई साहब” - अर्जुन गम्भीर स्वर में बोला - “सोमप्रकाश अभिनेत्री आराधना का सगा भाई है । सन्तोष कुमार ने आराधना की जितनी दुर्गति की है, उसे निगाह में रखते हुए सोचा जाये तो सोम प्रकाश कर सन्तोष कुमार का खून करने की कोशिश करना कोई ज्यादा अविश्वसनीय बात नहीं मालूम होती । कामता नाथ तो बेचारा खामखाह मारा गया ।”
“लेकिन यह बात मुझे किसी ने नहीं बताई कि सोम प्रकाश आराधना का सगा भाई है । कामता नाथ तक ने नहीं बताई । उत्तमचन्दामी सेठ ने भी नहीं बताई ।”
“उन्हें मालूम ही नहीं होगा । यह बात किसी को भी मालूम नहीं है कि सोम प्रकाश आराधना का भाई है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम हुई ?”
“पुलिसे हैडक्वार्टर से ।”
“और पुलिस को कैसे मालूम हुई ?”
“बड़े अनोखे ढंग से । किसी ने पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके कहा कि पुलिस को चाहिये कि वह कामता नाथ की हत्या के मामले में सोम प्रकाश को चैक करे क्योंकि सोम प्रकाश अभनेत्री आराधना का सगा भाई है । और फिर फोन बन्द हो गया । फोन करने वाले ने अपना नाम पता कुछ नहीं बताया ।”
“हैरानी है । सन्तोष कुमार ने आराधना की इतनी दुर्गति की और आराधना का भाई ही उसका प्राईवेट सेक्रेट्री बना रहा ।”
“सन्तोष कुमार ने उसे इसलिये नहीं निकाला होगा क्योंकि उसे मालूम नहीं होगा कि वह आराधना का भाई है और सोम प्रकाश खुद उसे इसलिये नहीं छोड़ता होगा क्योंकि सन्तोष कुमार उसे मोटा वेतन देता था और सोम प्रकाश जैसी काबलियत के आदमी को उस प्रकार का वेतन किसी और जगह से हरगिज हासिल नहीं हो सकता था । या फिर यह भी सम्भव है कि वह सन्तोष कुमार की हत्या कर देने का कोई उचित और सुरक्षित मौका तलाश करने की खातिर ही सन्तोष कुमार से चिपका रहा हो ।”
“लेकिन फिर भी यह बड़ा अजीब लगता है कि आराधना के साथ सन्तोष कुमार की ज्यादती की घटना के चार साल बाद वह सन्तोष कुमार ही हत्या करने की कोशिश करे ।”
“इसकी कई वजह हो सकती हैं । जैसे सम्भव है इससे पहले वह अपने में सन्तोष कुमार का कत्ल कर देने की हिम्मत न जुटा पाया हो या पहले उसे उचित मौका न मिला हो । या फिर उसे जोश भी अब आया हो । ज्यों ज्यों उसने अपनी बहन को दुखी देखा हो त्यों त्यों उसके मन में यह अहसास बढता गया हो कि उसकी बहन की सारी मुसीबतों का कारण सन्तोष है । या फिर यह भी सम्भव है कि उसने सन्तोष कुमार का खून करने की कोशिश अपनी बहन की वजह से न की हो, शायद कोई निजी कारण हो जिसकी अभी तक किसी को जानकारी नहीं हो पाई है ।”
“फिर भी सोम प्रकाश का आराधना का भाई होना ही उसे हत्यारा सिद्ध करने की पर्याप्त वजह नहीं है ।”
“उसके खिलाफ और भी तो सुबूत हैं ।”
“और क्या सुबूत हैं ?”
“राजनगर आने से पहले सोम प्रकाश विशालगढ में गवर्नमेंण्ट की बम बनाने वाली आर्डीनेन्स फैक्ट्री में तीन साल काम कर चुका है । गोला-बारूद के बारे में सोम प्रकाश बड़ी तगड़ी जानकारी रखता है । बम बनाने के सम्बन्धित कोई ऐसी बात नहीं है, जिसकी जानकारी सोम प्रकाश को नहीं है और पुलिस की तफ्तीश से यह पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि जो बम संतोष कुमार की कार में रखा गया था, वह हैण्डमेड था संतोष कुमार की जानकारी के दायरे में आने वाले किसी और आदमी को गोला बारूद की जानकारी नहीं है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “और ?”
“और उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत यह है कि वह फरार हो गया है ।”
“क्या ?”
“सोम प्रकाश कल रात को स्टूडियो से गायब हो गया था और अभी तक उसका पता नहीं चला है ।”
“पुलिस ने आराधना से पूछताछ की है ?”
“की है ! लेकिन उसे सोम प्रकाश की कोई जानकारी नहीं है । उसके कथनानुसार सोम प्रकाश वहां नहीं आया था और न ही उसके वहां आने की अधिक सम्भावना थी क्योंकि सोम प्रकाश पिछले चार सालों में एक बार भी आराधना के उस फ्लैट में नहीं गया था लेकिन फिर भी सावधानी के तौर पर पुलिस उसके फ्लैट के निगरानी कर रही है । शायद सोम प्रकाश वहां आ जाये । वैसे सोम प्रकाश के नाम वारन्ट निकल चुके हैं और सारे पुलिस स्टेशनों में उसके बारे में सूचना भिजवाई जा चुकी है ।”
“सोम प्रकाश रहता कहां था ?”
“सन्तोष कुमार के साथ ही रहता था । उसी की कोठी में ।”
“और सन्तोष कुमार कहां रहता है ?”
“बीच रोड पर । दो नम्बर कोठी में ।”
उसी क्षण चपरासी ने द्वार खोला और एक लगभग पैंतीस साल का ढीला ढाला सा आदमी भीतर प्रविष्ट हुआ । उसके पीछे द्वार फिर बन्द हो गया । वह आदमी उलझनपूर्ण नेत्रों से कभी सुनील और कभी अर्जुन का मुंह देखता रहा ।
“फरमाइये ।” - सुनील बोला ।
“आप दोनों में से सुनील कौन साहब हैं ?” - वह बोला ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला ।
वह आदमी मुस्कराया और फिर नर्वस भाव से बोला - “मेरा नाम देवाराम है ।”
“तशरीफ रखिये ।”
देवाराम अर्जुन की बगल में पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“मैं रायल होटल में रिसैप्शन क्लर्क हूं ।” - देवाराम बोला ।
“अच्छा ।” - सुनील भावहीन स्वर में बोला ।
“मैं ‘ब्लास्ट’ पढता हूं । ‘ब्लास्ट’ में आपका नाम अक्सर आता है । इसलिये मैं आपको जानता हूं ।”
“अच्छा !”
देवाराम कुछ क्षण चुप रहा और फिर हिचकिचाता हुआ बोला - “मिस्टर सुनील, मैंने सुना है कि अगर कोई आदमी अखबार वालों को कोई महत्वपूर्ण बात बताये तो अखबार वाले उसे उस बात की कीमत देते हैं ।”
“आपको कोई महत्वपूर्ण बात मालूम है ?” - सुनील ने तनिक भी उत्साह दिखाये विना पूछा । ऐसे लोग अखबार के दफ्तर में रोज आते थे और जिस बात को वे महत्वपूर्ण समझते थे वह या तो महत्वपूर्ण नहीं होती थी और या फिर वह अखबार को पहले ही मालूम होती थी ।
“जी हां !” - इस बार देवाराम के स्वर में विश्वास का पुट था ।
“आप कौन सी महत्वपूर्ण बात जानते हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“पहले आप मुझे यह बताइये कि उस बात के बदले में मुझे क्या मिलेगा ?” - देवाराम एक पेशेवर सौदेबाज के स्वर में बोला ।
“यह तो बात के महत्व पर निर्भर करता है ।”
“बात बहुत महत्वपूर्ण है ।”
“देखिये साहब” - सुनील तनिक तिक्त स्वर में बोला - “जो बात है, वह जब तक सामने नहीं आयेगी, तब तक हम उसकी कोई कीमत नहीं लगा सकेंगे ।”
“लेकिन आप मेरे साथ बेईमानी तो नहीं करेंगे ?”
“क्या मतलब ?” - सुनील तीव्र स्वर में बोला ।
“मेरा मतलब है कि बात सुनकर पैसा न देने की खातिर यह तो नहीं कह देंगे कि बात महत्वपूर्ण नहीं है ?”
सुनील क्रोधित हो उठा । इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, देवाराम फिर बोला - “अगर ऐसा हो तो मैं किसी दूसरे अखबार के दफ्तर में चला जाऊं । ‘क्रानिकल’ भी तो ‘ब्लास्ट’ जितना ही बड़ा अखबार है ।”
सुनील का पारा एकदम उतर गया । वह अपने चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कराहट पैदा करता हुआ बोला - “नहीं, नहीं देवाराम जी, ऐसी बात नहीं है । अगर आपकी सूचना महत्वपूर्ण होगी तो हम जरूर उसकी कीमत अदा करेंगे और अच्छी कीमत अदा करेंगे । आप बताइये, आप क्या कहना चाहते हैं ?”
देवाराम कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “आपको मेरी सूरत पहचानी हुई नहीं मालूम होती ?”
सुनील ने गौर से देवाराम को देखा और फिर बोला - “मुझे कुछ याद नहीं आ रहा ।”
“चार दिन पहले ‘ब्लास्ट’ में मेरी तस्वीर छपी थी ।” - देवाराम गर्वपूर्ण स्वर में बोला ।
“आपने रायल होटल का नाम लिया था ?” - अर्जुन बोल पड़ा ।
“जी हां ! मैं रायल होटल में रिसैप्शन क्लर्क हूं ।”
“सुनील” - अर्जुन बोला - “ये वही साहब हैं जिनकी वीणा माथुर वाले केस में हमने तस्वीर छापी थी ।”
“राइट ! याद आ गया मुझे भी ।” - सुनील बोला । साथ ही वीणा माथुर वाला सारा केस भी उसके दिमाग में घूम गया ।
चार दिन पहले रायल होटल के एक कमरे में वीणा माथुर नाम की एक लगभग बाइस साल की लड़की मरी पाई थी । पुलिस आई थी और लाश को पोस्टमार्टम के लिये उठवाकर ले गई थी। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से मालूम हुआ था कि वीणा माथुर गर्भवती थी और उसने नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली थी ।
वीणा माथुर रायल होटल में एक महीने से रह रही थी । होटल के रजिस्टर में उसने अपना विश्वनगर का कोई पता लिखवाया था जो, पुलिस की तफ्तीश से मालूम हुआ था, कि गलत था । वीणा माथुर की तस्वीर अखबार में छपी थी और अगले ही दिन उसके मां बाप लाश को लेने के लिये राजनगर पहुंच गये थे । तब पुलिस को मालूम हुआ था कि वीणा माथुर राजनगर से लगभग चालीस मील दूर स्थित तारकपुर नाम के इलाके के पोस्टमास्टर की लड़की थी । वह अविवाहित थी और एक महीना पहले एकाएक घर से भाग निकली थी । उसकी तलाश की बहुत कोशिश की गई थी लेकिन कुछ मालूम नहीं हो सका था । उसके घर से भाग जाने की असली वजह उसके मां बाप की समझ में तभी आई थी जब वह मर गई थी और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से उन्हें मालूम हुआ था कि वह गर्भवती थी । एक कुवांरी लड़की के गर्भवती हो जाने के बाद इस प्रकार की घटनायें घटित हो जाना कोई अस्वाभाविक बात नहीं थी ।
अपनी मौत के समय वीणा माथुर को पांच महीने का गर्भ था ।
वह सीधा-साधा आत्महत्या का केस था और पुलिस ने बिना किसी विशेष तफ्तीश के उसे आत्महत्या का केस करार देकर उसे खारिज भी कर दिया था ।
आरम्भ में देवाराम नाम के रिसैप्शन क्लर्क के बयान ने वीणा माथुर की मौत को थोड़ा रहस्य का रंग देने की कोशिश की थी और उसी सिलसिले में उसकी अखबार में तस्वीर भी छपी थी । उसके बयान के अनुसार वीणा माथुर की मौत की खबर लगने से दो घन्टे पहले एक आदमी वीणा माथुर से मिलने आया था । देवाराम के बयान के अनुसार उसी आदमी ने वीणा माथुर को जबरदस्ती या धोखे से नींद की गोलियां खिलाकर उसकी हत्या कर दी थी । वह आदमी उस रात से पहले भी पांच छ: बार होटल में आया था । और दो बार उसने वीणा माथुर का होटल का बिल भी अदा किया था । देवाराम के कथनानुसार वह पहनावे और शक्ल सूरत से अच्छा खासा सम्पन्न दिखाई देने वाला आदमी था और होटल तक वह अपनी कार पर आया करता था । देवाराम की धारणा थी कि उसी आदमी ने वीणा माथुर की इज्जत लूटी थी और बाद में उसको रुपया देकर उसका मुंह बन्द करने की कोशिश की लेकिन जब वह सफल नहीं हो सका था और जब शायद वीणा माथुर ने उसे उसका नाम अपने साथ घसीटने की धमकी दी थी तो अपनी इज्जत बचाने के लिये उसने किसी प्रकार वीणा माथुर को नींद की गोलियां खिला दी थी और खुद खिसक गया था ।
देवाराम ने उस आदमी का हुलिया भी बयान किया था लेकिन क्योंकि पुलिस को वह साफ-साफ आत्महत्या केस मालूम हो रहा था इसलिये उन्होंने उस आदमी को तलाश करने का कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया था ।
और आज वही देवाराम कोई कथित महत्वपूर्ण बात लेकर ‘ब्लास्ट’ में आया था ।
“आप जो महत्वपूर्ण बात बताने जा रहे हैं, क्या उसका सम्बन्ध वीणा माथुर की आत्महत्या से है ?”
“हत्या कहिये, साहब । हमारी कामचोर पुलिस इस दिशा में चाहे कोई हाथ पांव न हिलाये लेकिन मुझे आज भी पूर्ण विश्वास है कि उस मासूम लड़की की हत्या की गई थी और हत्या उसी आदमी ने की थी जो होटल में उससे मिलने आया करता था और उसका बिल भी अदा किया करता था ।”
“लेकिन वह महत्वपूर्ण बात क्या है जो आम हमें बताने जा रहे हैं ।”
“मिस्टर सुनील, वीणा माथुर की हत्या के मामले में जो काम पुलिस नहीं कर पाई है, वह संयोगवश मैंने कर लिया है । अब मैं जानता हूं कि वह आदमी कौन था जो होटल में वीणा माथुर से मिलने आया करता था ।”
“कौन है वह आदमी ?” - सुनील उत्सुक स्वर से बोला ।
“फिल्म डायरेक्टर कामता नाथ ।”
“क्या ?” - सुनील एकदम चौंककर बोला - “आपको कोई गलतफहमी तो नहीं हुई ? आप उसी आदमी का जिक्र कर रहे हैं न जो पिछली रात मिनर्वा स्टूडियो में बम फूटने से मारा गया है ?”
“जी हां” - देवाराम विश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “बिल्कुल वही आदमी । मैं उसे लाखों में पहचान सकता हूं ।”
“आपने अब उसे कहां देखा ?”
“अखबार में उसकी तस्वीर छपी है ।”
“ओह ! तो आपने तस्वीर से उसकी शिनाख्त की है ?”
“हां लेकिन इसमें सन्देह की कोई गुंजायश नहीं कि वह वही आदमी था जो होटल में वीणा माथुर से मिलने आया करता था । तस्वीर एकदम साफ थी । मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकती ।”
“लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि कामता नाथ का वीणा माथुर नाम की उस लड़की से अवैध सम्बन्ध कैसे हो सकता है । कामता नाथ विवाहित है और बाल बच्चों वाला आदमी है । वह ऐसी बेहूदी हरकत भला कैसे कर सकता है ?”
“यह सब मुझे नहीं मालूम । मैं तो केवल इतना जनता हूं कि कामता नाथ ही वह आदमी है जो वीणा माथुर से मिलने होटल में आया करता था और जो वीणा माथुर की मौत की रात को भी होटल में आया था ।”
“लेकिन वीणा माथुर को पांच मास का गर्भ था । राजनगर में वह केवल एक महीने पहले आई थी । उससे पहले तक वह तारकपुर जैसे छोटे से गांव में रहती थी । तारकपुर यहां से चालीस मील दूर है । ऐसी लड़की से तो कामता नाथ जैसे आदमी का सम्पर्क स्थापित हो पाने की भी सम्भावना नहीं दिखाई देती ।”
“यह सब मुझे नहीं मालूम । मैं तो...”
“सुनील” - एकाएक अर्जुन बोल पड़ा - “सम्भावना है ।”
“क्या ?” - सुनील बोला ।
“पांच छ: महीने पहले तारकपुर की पहाड़ियों में ‘इन्कलाब’ की आउटडोर शूटिंग हुई थी । ‘इन्कलाब’ का पूरा यूनिट वहां गया था । कामता नाथ भी जरूर गया होगी । सम्भव है वहीं कामता नाथ की वीणा माथुर से मुलाकात हुई हो । और कामता नाथ ने उसे अभिनेत्री बना देने का झांसा देकर उसे खराब किया हो । सुनील, तुमने वीणा माथुर की सूरत नहीं देखी । मैंने भी उसकी लाश की ही सूरत देखी थी । उस हालत में भी वह हमारी फिल्म इन्डस्ट्री की दर्जनों खूबसूरत अभिनेत्रियों से ज्यादा खूबसूरत मालूम हो रही थी । फिल्म इन्डस्ट्री से सम्बन्धित लोग तो औरतखौरी के लिये बदनाम हैं ही । और वीणा माथुर जैसी खूबसूरत लड़की का अभिनेत्री बनने के लिये ललचाना भी कोई हैरानी की बात नहीं है ।”
“लेकिन कामता नाथ ऐसा आदमी नहीं था ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“तुम्हें क्या मालूम ? तुम तो खुद ही कहा करते थे कि जब से कामता नाथ फिल्म इन्डस्ट्री में आ गया था, तुम्हारा उससे कोई विशेष सम्पर्क नहीं था ।”
“पहले कामता नाथ वैसा आदमी नहीं था ।”
“सम्भव है बाद में हो गया हो ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और बोला - “शायद तुम ठीक कह रहे हो ।”
फिर वह देवाराम की ओर घूमा और बोला - “मैं आपसे आखिरी बार पूछ रहा हूं, देवाराम जी । आपको पूरा विश्वास है कि कामता नाथ ही वह आदमी था जो होटल में वीणा माथुर से मिलने आया करता था ?”
“आप यही बात मुझसे हजार बार भी पूछेंगे तो मेरा यही जवाब होगा । कामता नाथ ही वह आदमी था ।” - देवाराम दृढ स्वर में बोला ।
“और कामता नाथ मर चुका है ।”
“जी हां ।”
“और वीणा माथुर भी मर चुकी है ।”
“आप कहना क्या चाहते हैं ?”
“मैं यह कहना चाहता हूं, देवाराम जी, कि अगर कामता नाथ ने वीणा माथुर का खून किया भी हो तो अब कामता नाथ जहां पहुंच चुका है, वहां कानून के हाथ नहीं पहुंच सकते । अब यह बात जाहिर होने पर केवल यह होगा कि कामता नाथ का परिवार भारी बदनामी का शिकार बन जायेगा और भला किसी का भी नहीं होगा । इसलिये क्या आपको यह उचित नहीं लगता कि गड़े मुर्दे न उखाड़े जायें ।”
“लेकिन... लेकिन... आप यह भी तो सोचिये कि चार दिन पहले पुलिस ने मेरी बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया था । किसी ने कामता नाथ को तलाश करने की कोशिश नहीं की थी । क्योंकि किसी को हत्या वाले ऐंगल पर विश्वास नहीं था । लेकिन अब जबकि मैं दावा करके कह सकता हूं कि कामता नाथ ही वह आदमी था जो वीणा माथुर से मिलने आया करता था और उसी ने वीणा माथुर की हत्या की थी तो...”
“तब भी कुछ नहीं होगा । पुलिस वीणा माथुर की मौत के केस को आत्महत्या का केस करार देकर बन्द कर चुकी है । अगर पुलिस यह मान भी जाये कि कामता नाथ वीणा माथुर से मिलने आया करता था । तो भी इससे यह कहां सिद्ध होता है कि उसने वीणा माथुर की हत्या की है । देवाराम साहब, वीणा माथुर नींद की गोलियां खाकर मरी थी । और किसी को जबरदस्ती या धोखे से नींद की गोलियां खिला देना कोई आसान काम नहीं । नहीं साहब, पुलिस कामता नाथ के खिलाफ कुछ नहीं करेगी, आपके मौजूदा बयान के बाद भी कुछ नहीं करेगी । क्योंकि पुलिस जानती है कि वह कामता नाथ के खिलाफ कुछ सिद्ध नहीं नहीं कर सकती । विशेष रूप से इस सिलसिले को पुलिस इसलिये नहीं कुरेदेगी क्योंकि कामता नाथ मर चुका है ।”
“और आप भी मेरी बताई बात पेपर में नहीं छापेंगें ?” - देवाराम बोला । वह एकाएक निराश दिखाई देने लगा था ।
“सॉरी । हम नहीं छापेंगे । क्योंकि हम किसी दिवंगत आदमी के जीवन के बखिये उधेड़ने में विश्वास नहीं रखते, विशेष रूप से इसलिये क्योंकि ऐसा करने से हमें या किसी को कोई फायदा पहुंचने वाला नहीं है ।”
“फायदे का क्या सवाल है । इन्साफ की खातिर भी तो बहुत कुछ किया जाता है ।”
“इस केस में ऐसा भी कुछ नहीं होने वाला है । आपका बयान कामता नाथ को अपराधी सिद्ध करने के लिये कतई काफी नहीं है ।”
“तो इसका मतलब यह हुआ कि मैं यहां तक बेकार ही आया ।” - देवाराम निराश स्वर में बोला ।
“एकदम बेकार नहीं” - सुनील बोला - “अर्जुन इन्हें राय से कहकर पचास रुपये दिलवा दो ।”
“सिर्फ !”- देवाराम के मुंह से निकला ।
“हां और पचास रुपये भी हम आपको इस आशा पर दे रहे है कि आप किसी दूसरे अखबार के पास जाकर यही जानकारी उन्हें बेचने की कोशिश नहीं करेंगे ।”
“और अगर मैं पुलिस के पास जाऊं तो ?”
“पुलिस के पास आप शौक से जाइये । हमें कोई एतराज नहीं ।”
“आप मेरी लाई सूचना को पेपर में नहीं छापेंगे ?”
“बिल्कुल नहीं छापेंगे । सच पूछिये तो इन पचास रुपयों के बदले में हमें तो कुछ भी हासिल नहीं है ।”
“और अगर आपने इस विषय में अखबार में कुछ छापा तो...”
“तो हम आपको और रुपये देंगे ।”
“ओके ।” - देवाराम बोला और उठ खड़ा हुआ ।
सुनील ने अर्जु्न को संकेत किया । अर्जुन देवाराम को अपने साथ लेकर सुनील के केबिन से बाहर निकल गया ।
सुनील विचारपूर्ण मुद्रा बनाये बैठा रहा और उंगलियों से मेज ठकठकाता रहा । न जाने क्यों उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कामता नाथ वीणा माथुर या किसी को भी इतना भयंकर धोखा दे सकता था ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
एकाएक सुनील को खलनायक रामाचन्द्र का ख्याल आया । कामता नाथ ने कहा था कि रामचन्द्र उसका बड़ा पुराना दोस्त था और जब सुनील ने यह सन्देह व्यक्त किया था कि शायद रिवाल्वर में दो असली गोलियां रामचन्द्र ने रखी हो तो कामता नाथ ने उसका तीव्र विरोध किया था ।
सुनील ने डायरेक्ट्री खोली औ उसमें रामचन्द्र का नम्बर देखा ।
उसने एक्सटेन्शन टैलीफोन का रिसीवर उठा लिया ।
“यस ।” - दूसरी ओर से रेणू की आवाज सुनाई दी ।
“रेणु जरा लाइन दे दो ।” - सुनील बोला ।
तत्काल सुनील के कान में डायल टोन पड़ी ।
सुनील ने रामचन्द्र का नम्बर डायल कर दिया । थोड़ी देर घन्टी बजती रही । फिर दूसरी ओर से कोई बोला - “हल्लो !”
“मिस्टर रामचन्द्र देअर ?” - सुनील बोला ।
“कौन साहब बोल रहे हैं ?”
“मेरा नाम सुनील है । मैं कामता नाथ का मित्र हूं ।”
एक क्षण शांति रही । फिर उत्तर मिला - “जरा होल्ड कीजिये ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और रिसीवर कान से लगाये बैठा रहा ।
“थोड़ी देर बाद उसके कानों में एक नया स्वर पड़ा - “हैलो, रामचन्द्र ।”
“गुड आफ्टर नून, मिस्टर रामचन्द्र” - सुनील मीठे स्वर में बोला - “मेरा नाम सुनील है । कामता नाथ मेरा बहुत अच्छा मित्र था । उसी के सम्बन्ध में मैं आपसे दो मिनट बात करना चाहता हूं । क्या आप मुझे थोड़ा समय दे सकते हैं ?”
“क्या बात करना चाहते हैं आप ?”
“इस विषय में मैं टेलीफोन पर अधिक कुछ कहना उचित नहीं समझता । लेकिन इतना विश्वास रखिये, मैं खामखाह आपका समय बरामद नहीं करूंगा । कामता नाथ मेरा दोस्त था । उसी के हित में मैं आपसे मिलना चाहता हूं ।”
“कामता नाथ मेरा भी दोस्त था ।”
“जी हां । मुझे मालूम है । इसीलिये तो मैं आपसे बात करना चाहता हूं ।”
“मिस्टर सुनील, आपके ख्याल से क्या कामता नाथ की मौत के बाद भी उसका कोई हित हो सकता है ?”
“जी हां । हो सकता है । उसे एक गलत किस्म की बदनामी का शिकार होने से बचाया जा सकता है ।”
“एक आदमी जो मर चुका है, अगर किसी बदनामी का शिकार हो भी जाता है तो इससे किसी को क्या फर्क पड़ सकता है ।”
“उसके परिवार को भारी फर्क पड़ सकता है ।”
कुछ क्षण रामचन्द्र चुप रहा और फिर बोला - “आप ठीक कह रहे हैं । आप आ जाइये । मैं अपनी कोठी पर आपका इन्तजार करूंगा । आप आ जाइये । मैं अपनी कोठी पर आपका इन्तजार करूंगा । मैं चौदह बीच रोड पर रहता हूं ।”
“मैं फौरन आ रहा हूं ।”
“ओके ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने दोबारा डायरेक्ट्री खोली और उसमें सन्तोष कुमार का टेलीफान नम्बर देखा । उसने वह नम्बर डायल कर दिया ।
कुछ क्षण बाद दूसरी ओर से उत्तर मिला - “हल्लो ।”
“सन्तोष है ?” - सुनील भारी स्वर में बोला ।
“कौन साहब बोल रहे हैं ?”
“उत्तमचन्दानी ।”
“साहब हैं, सेठ जी । अभी बुलाता हूं ।”
“नहीं नहीं बुलाने की जरूरत नहीं । मैं वहीं आ रहा हूं । मैंने सिर्फ यह जानने के लिये फोन किया था कि वह घर पर तो है । कहीं जाने वाला तो नहीं है वह ?”
“वे एक घन्टे बाद जायेंगे । माड्रन में शूटिंग है ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और उसने टेलीफोन बन्द कर दिया ।”
उसने सिगरेट को ऐशट्रे में झोंका, कुर्सी की पीठ से अपना कोठ उठाकर पहना और फिर अपने केबिन से बाहर निकल गया ।
***
बीच रोड की चौदह नम्बर इमारत एक छोटी सी खूबसूरत कोठी थी जिसके सामने एक लान था जिसमें सीजन के रंग बिरंगे फूलों की भरमार दिखाई दे रही थी । कोठी का फाटक खुला था । सुनील ने अपनी साढे सात हार्स पावर के शक्तिशाली इन्जन वाली मोटर साइकिल ड्राइव वे में मोड़ दी और लाबी में ले जाकर खड़ी कर दी ।
वह मोटर साइकिल से उतरा और फिर उसने आगे बढकर कॉल बैल बजा दी ।
द्वार लगभग तत्काल ही खुल गया । द्वार खोलने वाला एक नौकर था ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला - “मैं...”
“जी हां । तशरीफ लाइये । साहब आप की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं ।”
नौकर सुनील को एक सजे हुए ड्राइंग रूम में छोड़ गया । वहां रामचन्द्र पहले से ही मौजूद था ।
रामचन्द्र ने उठकर सुनील से हाथ मिलाया और बोला - “बैठो ।”
सुनील बैठ गया ।
“जब तुमने फोन किया था तब मुझे ख्याल नहीं था कि तुम ही यहां आने वाले हो और तुमने भी मुझे बताया नहीं ।”
“दरअसल मैं भूल गया था कि कल शाम को आप भी मिनर्वा स्टूडियो में उत्तमचन्दानी सेठ के कमरे में मौजूद थे” - सुनील शिष्ट स्वर में बोला - “किसी ने आपका और मेरा परिचय तो करवाया नहीं था और वैसे भी पिछली रात को सन्तोष कुमार और सोम प्रकाश की वजह से वहां के वातावरण में इतनी कडुवाहट आ गई थी । कि किसी को किसी का ध्यान देने की सुध ही नहीं रही थी ।”
“तुम्हारे वहां से चले आने के बाद भी सन्तोष कुमार बहुत लाल पीला होता रहा था । वह सेठ से इस बात के लिये बहुत नाराज था कि तुम्हें बुलाने से पहले सेठ ने उसे बताया क्यों नहीं था । पता नहीं वह तुम्हारे इतना खिलाफ क्यों है ? क्या पहले भी कोई बात हो चुकी है ?”
“जी हां । कल शाम को ही झड़प हुई थी ।”
“क्या ? क्या झड़प हुई थी ?”
“यूं ही । मुझे अपमानित करने की कोशिश कर रहे थे वह । एक दो बातें मैंने भी कह दी थी ।”
“अच्छा किया । सेठ ने तुम्हें तो जवाब दे ही दिया होगा ?”
“नहीं । वह अभी भी चाहता है कि मैं उस आदमी को तलाश करने की कोशिश करूं जो सन्तोष कुमार की हत्या करने का प्रयत्न कर रहा है लेकिन यह बात सन्तोष कुमार पर जाहिर न होने दूं । कामता नाथ की मौत के बाद तो सेठ को सन्तोष कुमार की और भी चिन्ता होने लगी है ।”
“हां । क्यों नहीं होगी ?” - रामचन्द्र गहरी सांस लेकर - “इस बार तो हत्यारा लगभग कामयाम हो ही गया था लेकिन ऐन मौके पर शिकार हो गया बेचारा कामता नाथ । और कामता नाथ सिर्फ ‘इन्कलाब’ का डायरेक्टर था । डायरेक्टर मर गया तो क्या हुआ ? उसके रिक्त स्थान की पूर्ति के लिये तो सौ डायरेक्टर मिल जायेंगे लेकिन अगर कहीं सन्तोष कुमार मर गया तो सेठ का एक करोड़ रुपया डूब जायेगा ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम मुझ से क्या बात करना चाहते थे ?” - रामचन्द्र ने पूछा ।
सुनील ने वीण माथुर की मौत की घटना और कामता नाथ से उसके सम्भावित सम्बन्ध की कहानी बयान कर दी । ज्यों-ज्यों वह आगे बढता गया, रामचन्द्र गम्भीर होता गया । अन्त में जब सुनील रुका तो रामचन्द्र एक बेहद चिन्तित इन्सान मालूम हो रहा था ।
“यह तो तुमने बहुत बुरी खबर सुनाई ।” - अन्त में रामचन्द्र बोला ।
सुनील चुप रहा ।
“लेकिन अब तो बात शायद प्रकट न हो” - रामचन्द्र बोला - “तुम इसे छापोगे नहीं ।”
“हम तो नहीं छापेंगे लेकिन और कोई अखबार तो छाप सकता है ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन तुमने तो होटल के उस क्लर्क को मना किया है न कि वह किसी और अखबार के पास न जाये ।”
“लेकिन देवाराम नामक उस आदमी पर मुझे भरोसा नहीं । वह जरूर किसी दूसरे अखबार के पास चला जायेगा ।”
“तुम्हें उसको ज्यादा रुपये देने चाहिये थे ।”
“उससे कोई फर्क न पड़ता । अगर मैं उसे उसकी अपेक्षा से अधिक रुपये देता तो वह समझता कि मैं उसे उसका मुंह बन्द रखने के लिये रिश्वत दे रहा था । यह बात किसी दूसरे अखबार को या पुलिस को मालूम हो जाती तो हमारी बड़ी दुर्गति होती । वैसे भी देवाराम मुझे रुपये से ज्यादा वाहवाही के लिये लालायित दिखाई दिया था । वीणा माथुर की मौत के समाचार के साथ उसके असाधारण बयान की वजह से हमने देवाराम की तस्वीर भी ब्लास्ट में छाप दी थी । इसीलिके वह दुबारा भी हमारे ही पास आया था । रुपये के साथ-साथ वह यह भी तो चाहता है कि बड़े धूम धड़क्के के साथ अखबार में उसका जिक्र आये । हर कोई उसकी विटनेस को महत्व दे और वह हर किसी की चर्चा का विषय बन जाये ।”
“फिर क्या किया जाये ?”
“इस विषय में कुद नहीं किया जा सकता, सिवाय इस बात की आशा करने के कि देवाराम अपनी जुबान बन्द रखेगा ।”
“तो फिर तुम मेरे पास... मेरा मतलब कि मैं... मैं तो समझा था कि इस सिलसिले में शायद मैं कुछ कर सकता हूं, इसलिये तुम मेरे पास आये हो ।”
“यह बात नहीं है, साहब । मैं तो किसी और वजह से आपके पास आया था ।”
“क्या ?”
“कामता नाथ मेरा बड़ा पुराना मित्र था लेकिन जब से वह फिल्मों के धन्धे में शामिल हुआ था, तब से मेरा और उसका सम्पर्क धीरे-धीरे टूटता ही चला गया था । कहने का मतलब यह है कि आज से आठ साल पहले के कामता नाथ को और उसके चरित्र को मैं अच्छी तरह समझता था लेकिन आज के कामता नाथ के बारे में मैं कुछ नहीं जानता । कामता नाथ और आपकी मित्रता का सूत्रपात उसके फिल्म उद्योग में पदार्पण करने के बाद ही हुआ होगा । कामता नाथ कहता था कि आप उसके पुराने मित्र हैं ।”
“हां । मैं उसे तभी से जानता हूं जब उसने फिल्म उद्योग में कदम रखा था ।”
“करैक्ट । यानी कि मेरे से उसका सम्पर्क टूटने के बाद से ही आप उसके मित्र हैं ।”
“हां ।”
“इसीलिये मैं आपके पास आया हूं । मेरे ख्याल से आप इस बात का बेहतर जवाब दे सकते है कि क्या कामता नाथ वीणा माथुर नाम की उस लड़की के साथ ऐसा घिनौना व्यवहार कर सकता था ?”
“नहीं कर सकता था” - रामचन्द्र दृढ स्वर में बोला - “कामता नाथ ऐसा आदमी नहीं था । आदतन ऐसा आदमी नहीं था । उल्टे वह तो ऐसे लोगों को बहुत बुरा इनसान समझा करता था जो लड़कियों को फिल्म उद्योग की चमक दमक का झांसा देकर उन्हें बरबाद कर देते थे । वह कहा करता था कि ऐेसे कमीने लोगों की वजह से फिल्म उद्योग का नाम बदनाम था । नहीं साहब, वीणा माथुर कामता नाथ की वजह से गर्भवती हुई हो यह बात मैं नहीं मान सकता । यह बात कामता नाथ के चरित्र से मेल नहीं खाती । मैं कामता नाथ को बरसों से जनता था । उसकी नीयत में एकाएक ही इतना बड़ा इन्कलाबी परिवर्तन हो गया हो, यह बात मुझे सम्भव नहीं लगती । कामता नाथ एक बाल-बच्चों वाला और खुदा से खौफ खाने वाला इनसान था । वह ऐसा नहीं कर सकता था । खुद तो ऐसा कुद करना दूर, अगर उसकी जानकारी में कोई आदमी ऐसी हरकते करता था तो कभी जिक्र आ जाने पर वह उसका इतना तीव्र विरोध करता था कि बाकायदा लड़ाई की नौबत आ जाती थी ।”
रामचन्द्र एक क्षण रुका और फिर बोला - “एक बार इसी प्रकार अभिनेत्री बनने की लालच में घर से भागी लड़की को उसने केवल अपने प्रयत्नों से बदमाश लोगों के हाथों में पड़ने से और खराब होने से बचाया था । बाद में उसने उस लड़की को समझा बुझा कर वापिस घर भेज दिया था । वह खुद अपनी जेब से किराया खर्च कर उसे पठानकोट की गाड़ी में बिठा कर आया था ।”
“लेकिन कामता नाथ का वीणा माथुर से सम्पर्क तो जरूर था । वह उससे मिलने रायल होटल जाया करता था और दो बार उसने वीणा माथुर का होटल का बिल भी खुद अदा किया था ।”
“या तो देवाराम से कामता नाथ को पहचानने में कोई गलती हुई है । और या फिर कामता नाथ का वीणा माथुर से इस खराबी के अलावा भी कोई और वास्ता था ।”
“देवाराम से गलती नहीं हुई । उसकी बात पर मुझे भी विश्वास है । वह अपने कथन पर बहुत दृढ था । रायल होटल में वीणा माथुर से मिलने जाने वाला आदमी कामता नाथ ही था ।”
“तो फिर कामता नाथ किसी और सिलसिले में वीणा माथुर से मिलने जाता होगा ।”
“कुछ समझ में नहीं आता कि मामला क्या है । वीणा माथुर और कामता नाथ दोनों ही मर चुके हैं । आखिर यह बात पता लगे तो कैसे लगे कि उन दोनों का एक दूसरे क्या वास्ता था ।”
रामचन्द्र ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया ।
सुनील विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा रहा ।
“मिस्टर सुनील” - थोड़ी देर बाद रामचन्द्र हिचकिचाता हुआ बोला - “ऐसी बात मुझे कहनी तो नहीं चाहिये लेकिन...”
और उसने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“आप क्या कहना चाहते हैं ?” - सुनील बोला ।
“मिस्टर सुनील, ‘इन्कलाब’ की शूटिंग में ‘इन्कलाब’ का पूरा यूनिट तारकपुर गया था और लगभग पन्द्रह दिन वहीं रहा था । सम्भव है वीणा माथुर को इन्कलाब के यूनिट के किसी और आदमी ने खराब किया हो ।”
“कसने ?”
“कोई भी हो सकता है ।”
“कोई तो हो सकता है लेकिन यह बात कहते समय आपके दिन में भी तो जरूर कोई नाम होगा ।”
रामचन्द्र कई क्षण चुप रहा और फिर हिचकिचाता हुआ बोला - “मैं सन्तोष कुमार के बारे में सोच रहा था ।”
“सन्तोष कुमार ऐसा कर सकता है ?”
“बिल्कुल कर सकता है । यह हरकत उसकी आदतों से बिल्कुल मेल खाती है । भाई साहब, उस जैसा औरतखोर आदमी सारे फिल्म उद्योग में दूसरा मिलना मुश्किल है । अभिनय का चान्स दिलवा देने के लालच में और वैसे ही इश्क जताकर जितनी लड़कियां उसने खराब की हैं, अगर ऐसी एक लड़की के बदले में उसे एक महीने की भी सजा हो तो उसकी बाकी की सारी जिन्दगी जेल में ही गुजर जाये । उसे तो रोज नई लड़की की जरूरत होती है । आउटडोर शूटिंग में जहां भी वह जाता है । वहीं लड़कियों की तलाश में जुट जाता है । कुछ न हासिल होने पर वह एकस्ट्रा लड़कियों के साथ भी मुंह काला करने से नहीं हिचकता । मिस्टर सुनील, ज्यों-ज्यों मैं इस विषय में ज्यादा सोचता हूं, त्यों त्यों मुझे विश्वास होता जा रहा है कि यह काम सन्तोष कुमार का ही है ।”
“और कामता नाथ इस तस्वीर में कहां फिट होता है ?”
“इस विषय में मैं कुछ नहीं कह सकता ।”
“अब एक बात और बताइये” - सुनील बोला - “क्या आप जानते हैं कि सन्तोष कुमार का सैक्रेट्री सोम प्रकाश आराधना का सगा भाई भाई है ?”
“क्या कह रहे हो ?” - रामचन्द्र हैरानी से उसका मुंह देखता हुआ बोला ।
“मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं” - सुनील बोला - “और यही नहीं, पुलिस का ख्याल है कि सन्तोष कुमार की कार में बम रखने वाला आदमी सोम प्रकाश था और सोम प्रकाश फरार हो गया है ।”
“नहीं !”
“मैं ठीक कह रहा हूं ।”
“कमाल है । सोम प्रकाश आराधना का भाई है और किसी को इस रिश्ते की कभी हवा तक नहीं लगी । मेरे ख्याल से तो फिल्म इन्डस्ट्री में किसी को भी, खुद सन्तोष कुमार को यह बात मालूम नहीं होगी । खास तौर पर अगर सन्तोष कुमार को यह बात मालूम होती तो वह सोम प्रकाश को कभी अपना सैक्रेट्री नहीं रखता । हद है यह तो, सन्तोष कुमार का सैक्रेट्री ही उसकी हत्या करने का प्रयत्न कर रहा है ।”
“आप इस बात को यूं सोचिये कि आराधना का भाई सन्तोष कुमार की हत्या करने का प्रयत्न कर रहा है ।”
“यह भी ठीक कह रहे हो तुम ।”
“आपके ख्याल से सोम प्रकाश पुलिस की निगाहों से कहां छुप सकता है ?”
“कहीं भी ! इतना बड़ा शहर है । इतनी बड़ी दुनिया है ।”
“कोई विशेष जगह नहीं बता सकते आप ?”
“विशेष जगह आराधना का फ्लैट ही हो सकती है ।”
“वहां तो वह नहीं गया । पुलिस आराधना के फ्लैट की निगरानी कर रही है । अगर वह वहां जायेगा भी तो जरूर गिरफ्तार कर लिया जायेगा ।”
“सन्तोष कुमार को यह बात मालूम हो चुकी है कि सोम प्रकाश आराधना का भाई है ?”
“अभी शायद न मालूम हुई हो । जो कुछ मैंने आपको बताया है, वह ईवनिंग न्यूज़ में छपेगा । तब मालूम हो ही जायेगा उसे ।”
“और यह कि पुलिस सन्तोष कुमार की हत्या के प्रयत्नों का सन्देह सोम प्रकाश पर ही कर रही है ?”
“यह भी शायद अभी न मालूम हुआ हो उसे ।”
रामचन्द्र चुप हो गया ।
“रामचन्द्र साहब” - सुनील ऐसे स्वर में बोला, जैसे पटाक्षेप कर रहा हो - “अगर आपके सामने कभी सोम प्रकाश का जिक्र हो, तो मेरी खातिर बात को जरा गौर से सुनियेगा । सम्भव है कहीं उसके छुपने के सम्भावित स्थान का जिक्र आ जाये ।”
“ओके ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“सहयोग के लिये धन्यवाद” - वह बोला - “अब मुझे इजाजत दीजिये ।”
“बैठो, चाय आ गई है ।” - रामचन्द्र बोला ।
सुनील ने देखा, एक वर्दीधारी वेटर चाय की ट्राली धकेलता हुआ ला रहा था ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया फिर मुस्कराया और फिर बैठता हुआ बोला - “थैंक्यू, किसी सिनेमा-स्टार के साथ चाय पीने का सौभाग्य मुझे बहुत कम ही प्राप्त हुआ है ।”
रामचन्द्र मुस्कराया ।
वेटर ने चाय सर्व कर दी । चाय के दौरान फिल्मों का हल्का-फुल्का जिक्र होता रहा, जिसमें एक बार भी रामचन्द्र ने वार्तालाप की धारा अपनी ओर मोड़ने का प्रयत्न नहीं किया । यह बात सुनील को बहुत पसन्द आई । और सिनेमा स्टारों की तरह रामचन्द्र को आत्मश्लाघा का शौक नहीं था ।
“अब एक आखिरी तकलीफ और कीजिये” - सुनील चाय का खाली कप मेज पर रखता हुआ बोला - “जरा अपना टैलीफोन इस्तेमाल करने की इजाजत दीजिये ।”
“मेरे साथ आइये ।” - रामचन्द्र उठता हुआ बोला ।
सुनील उसके साथ हो लिया ।
रामचन्द्र उसे एक आफिस के ढंग से सजे हुए कमरे में ले आया । उसने मेज पर रखे टैलीफोन की ओर संकेत कर दिया ।
लेकिन सुनील टैलीफोन के स्थान पर साइड की मेज पर रखे टाइपराइटर की ओर देख रहा था ।
सुनील ने टैलीफोन का रिसीवर उठा लिया । वह सन्तोष कुमार की कोठी का नम्बर डायल करने लगा ।
“तुम बात करो, मैं बाहर बैठा हूं ।” - रामचन्द्र बोला और कमरे से बाहर निेकल गया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही सुनील तीव्र स्वर मे बोला - “262851 ?”
“यस !”
“मिस्टर सन्तोष कुमार है । उनके लिये मद्रास से ट्रंककाल है । पी पी (परटीकुलर परसन) ।”
“साहब तो नहीं हैं ।”
“कौन से नम्बर पर मिलेंगे ।”
दूसरी ओर से किसी ने एक नम्बर बता दिया । सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
फिर वह टाइपराइटर की ओर बढा । टाइपराइटर के रोलर में एक आधा टाइप किया हुआ कागज लगा हुआ था । सुनील ने अपनी जेब से सन्तोष कुमार को चेतवानी वाली चिट्ठी निकाली और उसको रोलर में लगे कागज पर छपे अक्षरों से मिलाने लगा ।
शीघ्र ही वह इस नतीजे पर पहुंच गया कि चेतावनी वाली चिट्ठी उस टाइपराईटर पर टाइप नहीं की गई थी ।
उसने चिट्ठी जेब में रखी और कमरे से बाहर निकल आया ।
रामचन्द्र हाल में बैठा हुआ पाइप पी रहा था ।
सुनील लम्बे डग भरता हुआ उसके पास पहुंचा ।
“थैंक्यू सर, थैंक्यू फार ऐवरीथिंग ।” - सुनील बोला ।
“जा रहे हो ?” - रामचन्द्र बोला ।
“जी हां ।”
“आओ तुम्हें बाहर तक छोड़ आऊं ?” - रामचन्द्र बोला ।
“आप बैठिये । आप क्यों तकलीफ करते हैं ?”
“अरे तकलीफ कैसी ।” - रामचन्द्र बोला और उठकर उसके साथ हो लिया ।
रामचन्द्र बाहर लाबी तक उसके साथ आया । सुनील ने उससे हाथ मिलाया, एक बार फिर सहयोग के लिये कृतज्ञता प्रकट की और फिर वापिस अपनी मोटर साइकिल पर आ बैठा ।
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