शाम को लगभग सात बजे रमाकांत सुनील के 3, बैंक स्ट्रीट स्थित फ्लैट पर पहुंचा ।
“कुछ पता चला ?” - सुनील ने आशापूर्ण स्वर में पूछा ।
“प्यारयो यूथ क्लब के आधे दर्जन आदमी एक केस पर काम कर रहे हों और कुछ पता न लगे, यह कैसे हो सकता है !” - रमाकांत ने डींग हांकी ।
“शूट ।” - सुनील बोला ।
“महेश कुमार की हत्या रात दो और तीन बजे के बीच में किसी समय हुई है ।” - रमाकांत बोला - “उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी और गोली उसी रिवाल्वर द्वारा चलाई गई थी जो पुलिस ने घटनास्थल के समीप झाड़ियों में से बरामद की थी ।”
“वह रिवाल्वर किस की है ?”
“रजिस्ट्रेशन के रिकार्ड से पता चला था कि वह रिवाल्वर राजकुमार नाम के उसी वकील की है जिसका तुमने जिक्र किया था ।”
“जो चौदह महात्मा गांधी रोड पर रहता है ?”
“हां ।”
“अच्छा !”
“राजकुमार और मंजुला गले-गले तक एक दूसरे के इश्क में फंसे हुए हैं और शीघ्र ही शादी करने वाले हैं । राजकुमार मंजुला को शूटिंग सिखाया करता था और कुछ ही दिन पहले वह रिवाल्वर उसने मंजुला को प्रैक्टिस के लिए दी थी । मंजुला ने स्वीकार किया है कि हत्या कि रात को भी वह रिवाल्वर उसकी कार के डैशबोर्ड में बने कम्पार्टमेंट में थी ।”
“और ?”
“तुमने घटनास्थल पर कदमों के निशानों के विषय में पूछा था । उस विषय में तो जो कुछ तुम देख आए थे, उसके अतिरिक्त कोई नई बात मेरी जानकारी में नहीं आई है । लेकिन एक बड़ी महत्वपूर्ण बात नजर में पड़ी है जिसकी ओर प्रभूदयाल का या किसी और का ध्यान नहीं गया है ।”
“क्या ?” - सुनील ने उत्सुकतापूर्ण स्वर में पूछा ।
“सड़क पर बने टायर के निशानों से पता लगता है कि शहर की ओर से एक कार महेश कुमार के काटेज की ओर गई और सड़क पर उस स्थान पर आकर रुकी जहां मंजुला की पंक्चर गाड़ी खड़ी थी । उसके बाद उस कार ने वहीं से यू टर्न लिया और शहर की ओर चल दी ।”
“वे निशान तो मैंने भी देखे थे लेकिन उसमें महत्वपूर्ण बात क्या है ? सम्भव है कोई कार वाला गलती से उस सड़क पर आ गया हो और आगे महेश कुमार का काटेज देखकर वहीं से गाड़ी घुमाकर वापिस ले गया हो क्योंकि वह सड़क तो आगे से बन्द है ।”
“सब कुछ सम्भव है । तुम मेरी बात सुनो ।”
“बोलो ।”
“उस कार के पहियों के निशान देखकर मालूम होता था कि उसका पिछला बायां टायर थोड़ा सा कटा हुआ था । टायर की ट्रीडिंग के निशानों में कटे हुए टायर का निशान अलग ही दिखाई देता था ।”
“फिर ?”
“अब इस बात को एक क्षण के लिए यहीं छोड़ो और अपने दूसरे सवाल का जवाब सुनो । तुमने पूछा था महेश कुमार के पास उसके काटेज में कौन-कौन मिलने आया करते थे ?”
“हां ?”
“हम ऐसे छः व्यक्तियों का पता लगा पाए थे । उनमें एक तो महेश कुमार का प्रापर्टी एजेण्ट था, एक उनका कोई वृद्ध रिश्तेदार था; दो चालू किस्म की सोसायटी गर्ल थीं जो राजनगर की विभिन्न क्लबों और होटलों में अक्सर दिखाई दे जाती हैं, एक इम्पीरियल होटल की कैबरे डांसर थी और एक कांता थी ।”
सुनील सतर्क हो उठा । कान्ता का नाम रमाकांत ने बड़े ड्रामेटिक अन्दाज से लिया था ।
“कांता कौन है ?”
“कांता एक बेहद खूबसूरत लड़की है और अस्थाई रूप से राजनगर की फोर स्टार क्लब में रहती है ।”
“तुम छः आदमियों में से कांता का ही नाम क्यों ले रहे हो और उसका जिक्र इतने विशेष रूप से क्यों कर रहे हो ?”
“क्योंकि वही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।”
“लेकिन क्यों ?”
“क्योंकि वह महेश कुमार की मंगेतर है और उसके पास एक ऐसी फियेट गाड़ी है जिसका पिछला बायां टायर थोड़ा सा कटा हुआ है ।” - रमाकांत ने बम सा छोड़ा ।
बात की गुरुता को समझने में सुनील को पूरे तीस सैकेण्ड लगे और फिर वह एकदम उछल पड़ा - “वण्डरफुल ! रमाकांत, बाई गाड, यू आर ग्रेट ।”
“आदाब अर्ज है । आदाब अर्ज है ।” - रमाकांत जोर जोर से हाथ हिलाता हुआ यूं बोला जैसे किसी मुशायरे में शेर पढने के बाद हासिल हुई वाहवाही का जवाब दे रहा हो ।
“इसका मतलब तो यह हुआ कि हत्या की रात को यह कांता नाम की लड़की भी घटनास्थल पर मौजूद थी ।”
“वह नहीं, उसकी कार ।” - रमाकांत बोला - “और वह भी घटनास्थल पर नहीं घटनास्थल से दो सौ गज दूर ।”
“एक ही बात है ।”
“एक ही बात नहीं है क्योंकि अभी एक गर्मागर्म समाचार तुमने सुना नहीं है ।”
“क्या ?”
“प्रभूदयाल ने पार्वती को महेश कुमार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है ।”
“क्या ?” - सुनील चिल्ला पड़ा ।
“यह सच है ।”
“लेकिन सन्देह तो वह बेटी पर कर रहा था ?”
“बेटी पर वह केवल सन्देह कर रहा था । सबूत उसे मां के खिलाफ अधिक मिले हैं ।”
“कोई नई बात हो गई है क्या ?”
“कितनी ही नई बातें हो गई हैं । जैसे प्रभूदयाल ने राजनगर में मंजुला के पास वे जूते बरामद किए हैं जिन्हें हत्या की रात को पार्वती पहनकर महेश कुमार के काटेज तक गई थी । और प्रताप चन्द की पत्नी इन्द्रा ने बड़ी सैन्सेशनल बात बताई है ।”
“क्या ?”
“वह कहती है कि उसने और प्रताप चन्द दोनों ने रात को ढाई बजे दूरबीन की सहायता से पार्वती को महेश कुमार के काटेज में बड़ी संदिग्धावस्था में घूमते देखा था ।”
“इन्द्रा ने प्रभूदयाल को बताया है यह ?”
“यह बात तीन चार मुखों से गुजरकर प्रभूदयाल तक पहुंची थी । इन्द्रा ने अपनी किसी सहेली को कहा था । उस सहेली ने अपनी सहेली को कहा था और यूं ही बात चलती-चलती प्रभूदयाल तक पहुंच गई । तुम तो औरतों की साइकालोजी जानते ही हो । हर औरत को दूसरी औरत कोई राज की बात बताती है और साथ ही कह देती है कि बहन तुम्हें मेरी कसम है किसी और को मत कहना और फिर यह सोचकर निश्चिन्त हो जाती है कि कथित बहन सचमुच किसी और को नहीं कहेगी । बाद में प्रभूदयाल ने सीधे इन्द्रा से भी इस विषय में बात की थी तो उसे स्वीकार करना पड़ा था कि उसने और उसके पति ने पार्वती को रात को देखा था लेकिन उसका पति चाहता था कि इन्द्रा यह बात किसी से न कहे ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि प्रताप चन्द भी यही समझता था कि मां बेटी में से किसी ने हत्या की है । वह उन लोगों की सहायता करना चाहता था । प्रभूदयाल ने बहुत रगड़ा उसे । बेचारा बहुत शर्मिन्दा हुआ और फिर बाद में अपनी पत्नी पर बहुत बरसा कि ‘हरामजादी औरत’ जरा सी बात अपने पेट में नहीं पचा सकी । और ‘हरामजादी औरत’ कहती है कि वे मां बेटी क्या प्रताप चन्द की ‘अम्मा लगती हैं’ जो वह उन्हें कानून के हाथ नहीं पड़ने देना चाहता । दोनों में खूब जमकर लड़ाई हुई ।”
सुनील चुप रहा ।
“प्रभूदयाल कहता है कि पार्वती को मुजरिम साबित करने के लिए उसके पास काफी सबूत हैं ।”
“काटेज के जो शीशे वगैरह टूटे हैं, उसके बारे में वह क्या कहता है ?”
“वह कहता है कि पार्वती के हाथ में रिवाल्वर देख कर उस से बचने के लिए महेश कुमार ने पार्वती पर शीशा फेंककर मारा होगा । शीशे के वार से पार्वती तो बच गई लेकिन भारी शीशा खिड़की से जा टकराया और खिड़की के कांच के और खुद शीशे के परखच्चे उड़ गए । उसी भटके से दीवार से तस्वीर गिरकर टूट गई फिर पार्वती ने महेश कुमार पर गोली चला दी और रिवाल्वर बाहर आकर झाड़ियों में फेंक दी । और सुनील दिक्कत की बात यह है कि पार्वती प्रभूदयाल की इस थ्योरी का कोई विरोध नहीं कर रही है । वह तो समझती है हत्या उसकी बेटी ने की है और वह बेटी की खातिर शहीद हुई जा रही है ।”
“मुझे तो रमाकांत, पार्वती ऐसी औरत नहीं लगती जो किसी की हत्या कर सके ।”
“नहीं लगती होगी और शायद उसने हत्या की भी न हो लेकिन अगर उसके विरुद्ध केस सिद्ध हो गया तो फांसी तो वह चढ ही जाएगी चाहे वह निर्दोष ही क्यों न हो ।”
“रमाकांत ।” - सुनील सोचता हुआ बोला - “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मां बेटी में से हत्या किसी ने भी न की हो और केवल एक गलतफहमी के अन्तर्गत मां समझ रही हो कि हत्या बेटी ने की है और बेटी समझ रही हो कि हत्या मां ने की है ।”
“हालात देखकर तो ऐसा नहीं लगता है । दो में से एक ने तो हत्या की ही है ।”
“तुमने वह शीशा देखा है ?”
“कौन सा ?”
“जिसके दीवार से टकराने से खिड़की टूटी थी ।”
“शीशा तो चकनाचूर हो गया था । मैंने केवल उसका ठोस चांदी का फ्रेम देखा था ।”
“कैसा था फ्रेम ?”
“बड़ा शानदार फ्रेम था । उस पर पुराने जमाने की पच्चीकारी की हुई थी । प्रभूदयाल कहता था कि वह शीशा सौ साल से भी अधिक पुराना है । शीशे समेत कम से कम पन्द्रह सेर तो वजन होगा उसका ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“क्या हुआ ?” - रमाकांत हैरानी से बोला ।
“मैं कांता को चैक करने जा रहा हूं ।”
“उससे क्या होगा ?”
“कुछ तो होगा ही । आखिर वह हत्या की रात को घटना स्थल पर नहीं तो घटनास्थल के आस-पास तो मौजूद ही थी ।”
“मेरे आदमियों से और कुछ चाहते हो तुम ?” - रमाकांत भी उठता हुआ बोला ।
“राजकुमार को चैक करवाओ ।” - सुनील बोला - “पता लगाने की कोशिश करो कि हत्या की रात को वह कहां था ।”
“ओके ।”
“मैं चला ।” - सुनील बोला और द्वार की ओर बढ गया ।
***
सुनील ने फोर स्टार क्लब की पार्किंग में अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर दी ।
वह क्लब की लाबी की ओर बढ गया ।
उसने घड़ी देखी । नौ बजने को थे ।
वह रिसैप्शन पर पहुंचा । रिसैप्शन काउन्टर के पीछे एक स्टूल पर एक लगभग पच्चीस वर्ष की सुन्दर युवती बैठी थी । उसने देखा रिसैप्शन के काउंटर की बगल में ही पी बी एक्स बोर्ड लगा हुआ था और उस बोर्ड को भी शायद रिसैप्शनिस्ट लड़की ही आपरेट करती थी ।
“यस सर !” - सुनील को देखकर वह चेहरे पर एक बड़ी नपी तुली फिल्मी मुस्कुराहट लाती हुई बोली ।
“मिस कांता अपने कमरे में हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“सम्भव है हों । कमरे में नहीं तो क्लब के हाल में होंगी ।”
“मैं उनसे मिलना चाहता हूं ।”
“आपका नाम ?”
“सुनील ।”
लड़की ने बोर्ड की ओर हाथ बढाया ।
“इसकी क्या जरूरत है ?” - सुनील जल्दी से बोला - “आप मुझे उनका कमरा बता दीजिए, मैं खुद चला जाऊंगा ।”
“सारी सर ।” - लड़की शिष्ट स्वर में बोली - “ऐसा सम्भव नहीं है । उनकी अनुमति के बिना मैं आपको उनके कमरे में नहीं भेज सकती ।”
“आल राइट ।” - सुनील तनिक मायूस स्वर से बोला ।
लड़की ने बोर्ड का रिसीवर अपने कान से लगाया, बोर्ड पर लगी कुछ चाबियां आपरेट कीं और फिर बोली - “आई एस सारी टु डिस्टर्ब यू मैडम, बट समबाडी वान्ट्स सी यू... दि नेम इज मिस्टर सुनील... बट... राइट मैडम ।”
लड़की ने रिसीवर अपने कान से हटाया और फिर जल्दी से सुनील से बोली - “मिस कांता आपसे बात करना चाहती हैं । आप सामने के बूथ में चले जाइये । उसमें टेलीफोन है । मैं आपको वहां लाइन देती हूं ।”
सुनील ने सिर हिलाया और जल्दी से बूथ में घुस गया । उसने रिसीवर उठाकर अपने कान से लगा लिया और बोला - “हैल्लो ।”
“यस ।” - उसे एक स्थिर स्त्री स्वर सुनाई दिया - “यस मिस्टर सुनील ?”
“मैं आपसे मिलना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“आपसे एक महत्वपूर्ण बात करनी है ।”
“क्या ?”
“टेलीफोन पर ही बताऊं ?”
“क्या हर्ज है ।”
“हर्ज तो नहीं है लेकिन अगर आप मुझसे मिल लेतीं तो...”
“मिस्टर सुनील ।” - दूसरी ओर से ब्लेड की धार जैसा पैना स्वर सुनाई दिया - “आपको कुछ कहना है तो कहिए वर्ना मैं टेलीफोन बन्द करती हूं । मैं तो यह भी नहीं जानती आप कौन हैं । मैं तो आपसे टेलीफोन पर भी बात करना स्वीकार करके आप पर मेहरबानी कर रही हूं ।”
“मैं ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं ।” - सुनील बोला ।
“फिर ?”
“आप महेश कुमार को जानती हैं ?”
“मुझसे सवाल मत कीजिए । आप अपनी बात कहिए और जल्दी कीजिए ।”
“महेश कुमार की कल रात को झेरी में हत्या हो गई है ।”
“फिर ?”
“वह महेश कुमार आपका मंगेतर था ।”
“था । फिर ?”
सुनील को आज तक ऐसी दो टूक करने वाली लड़की नहीं मिली थी । सुनील ने भी एकदम धावा बोल देने का निश्चय कर लिया ।
“पुलिस हत्यारे की तलाश कर रही है ।” - सुनील स्थिर स्वर से बोला - “और मैं यह सिद्ध कर सकता हूं कि ठीक हत्या के समय आप महेश कुमार के काटेज के पास मौजूद थीं ।”
कान्ता कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “कैसे?”
“घटना स्थान से केवल दो सौ गज दूर आपकी फियेट कार के पहियों के निशान हैं ।”
“कैसे जाना ?”
“आपकी गाड़ी का पिछला बायां टायर एक स्थान से कटा हुआ है । पिछली रात को साढे बारह बजे के बाद बारिश हुई थी और पानी के साथ आस-पास से बहकर आई हुई मिट्टी सड़क पर फैल गई थी । आपकी कार के कटे हुअ पहिये ने गीली सड़क पर निशान छोड़े हैं ।”
“केवल यही सबूत है आपके पास यह सिद्ध करने के लिए कि मैं हत्या के समय वहां मौजूद थी ?”
“जी हां ।” - सुनील विश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“मिस्टर सुनील !”
“यस ।”
“यू आर ए फूल ।” - कांता एक-एक शब्द पर जोर देती हुई बोली ।
“व्हाट !” - सुनील चिल्लाया । क्रोध से उसका चेहरा लाल हो उठा ।
“यस, आई रिपीट । यू आर ए फूल । जो कुछ आपने कहा है, उससे केवल यह सिद्ध होता है कि हत्या के समय मेरी कार घटना के समीप मौजूद थी । किसी स्थान पर मेरी कार की मौजूदगी यह सिद्ध नहीं करती है कि मैं वहां पर मौजूद थी । मैं अपनी कार अक्सर लान के कम्पाऊंड में खड़ी रखती हूं और कभी-कभी बाहर फुटपाथ पर भी । मुझे क्या पता कब मेरी गाड़ी को कौन ले गया । अगर कभी अपनी जिन्दगी में आप यह सिद्ध कर सकें कि घटना स्थल पर मैं मौजूद थी तो मुझे बताने आ जाइएगा । फिलहाल आपकी बकवास कोई कीमत नहीं रखती है । विशेष रूप से तब जबकि हत्यारी गिरफ्तार भी हो चुकी है । एण्ड नाउ आई विश यू ए वैरी गुड नाइट ।”
और दूसरी ओर से भड़ाक से रिसीवर क्रेडिल पर पटके जाने की आवाज आई ।
सुनील ने भी रिसीवर रखा और बूथ से बाहर निकल आया ।
उसने देखा रिसेप्शनिस्ट अपना रिसीवर बोर्ड के हुक पर टांग रही थी ।
सुनील लम्बे डग भरता हुआ उसके समीप पहुंचा और नम्र स्वर में बोला - “आप मेरा और कांता का वार्तालाप सुन रही थीं ?”
“नहीं, नहीं तो ।” - लड़की घबराकर बोली ।
“अगर सुन भी रही थीं तो कोई हर्ज नहीं है ।” - सुनील बोला ।
लड़की ने नजरें झुका लीं ।
“शी काल्ड मी ए फूल ।” - सुनील बोला ।
लड़की चुप रही ।
“कैसी लड़की है कांता ?” - सुनील ने सहज स्वर से पूछा ।
“लड़की कहां, औरत है ।” - रिसेप्शनिस्ट बोली ।
“शक्ल सूरत में कैसी है ? आप जितनी खूबसूरत है ?”
रिसेप्शनिस्ट का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।
“किन्हीं विशेष कारणोंवश मुझे कांता में गहरी दिलचस्पी है । मैं उसके विषय में कुछ जानना चाहता हूं । आप मेरी मदद कर सकती हैं ?”
“मैं ?”
“हां और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपके अहसान का बदला मैं एक ऐसे सर्टिफिकेट की सूरत में चुकाऊंगा जिस पर स्वयं रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्तातक्षर होते हैं ।”
“क्या मतलब ?”
“यह ।” - सुनील बोला और उसने लड़की को सौ रुपये के नोट की एक झलक दिखा दी ।
लड़की ने नेत्र एकदम चमक उठे ।
सुनील आशापूर्ण नेत्रों से उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“वह कांता है ।” - एकाएक लड़की धीमे स्वर से बोल पड़ी ।
सुनील ने उड़ती हुई दृष्टि क्लब के भीतर की ओर डाली ।
वह एक बेहद पुष्ट शरीर वाली औरत थी । उसने भारी मेकअप किया हुआ था और गहरे काले रंग की कीमती साड़ी और ब्लाउज पहना हुआ था जिस पर सफेद रंग के झिलमिलाते हुए सितारे टंके हुए थे । वह लापरवाही से सीढियां उतरी और एक दरवाजा खोलकर क्लब के भीतर गायब हो गई ।
सुनील को उसकी सूरत देखकर ऐसा नहीं लगा जैसे उसके किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई हो ।
उसी क्षण एक कमरे में से डिनर सूट पहने हुए एक आदमी निकला । उसने एक अर्थपूर्ण दृष्टि पहले सुनील पर और फिर रिसेप्शनिस्ट लड़की पर डाली और फिर लम्बे डग भरता हुआ एक अन्य कमरे में चला गया ।
“अब तुम जाओ यहां से ।” - लड़की एकाएक घबराकर बोली ।
“क्या हुआ ?” - सुनील बोला ।
“वह आदमी जो हमें घूरता हुआ गया है, मैनेजर था । वह तुम्हें मेरा कोई ब्वाय फ्रेंड समझ रहा था ।”
“तो फिर क्या हुआ ?”
“वह मुझसे मुहब्बत जताता है और किसी दूसरे आदमी से मुझे बात करते देखकर अंगारों पर लोट जाता है ।”
“तो लोटता रहे, तुम्हें क्या ?”
“मैंने नौकरी करनी है मिस्टर । वह मुझे अभी खड़े-खड़े नौकरी से निकाल सकता है । मेरे डेढ सौ रुपये के वेतन पर मेरे आठ भाई बहनों का पेट पलता है । अगर यह नौकरी गई तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है । समझे ? अब या तो यहां से चले जाओ या फिर बताओ मैं क्लब की रिसेप्शनिस्ट होने के नाते तुम्हारे लिए क्या करूं ?”
“लेकिन मैं तो कांता के बारे में तुमसे कुछ जानना चाहता था ।”
“उस सर्टिफिकेट के बारे में तुम सीरियस थे ?”
“हां, शत प्रतिशत । चाहो तो पहले ले लो ।” - और उसने अपनी जेब की ओर हाथ बढाया ।
“नहीं, अभी नहीं ।” - वह बोली - “देखो क्लब वाली लाइन में ही थोड़ी दूर जाकर एक छोटा सा टी स्टाल है । तुम वहां बैठकर मेरा इन्तजार करो । मैं थोड़ी देर में यहां किसी वेटर को बिठाकर तुम्हारे पास आती हूं ।”
“प्रामिस ?”
“प्रामिस ।”
“अपना नाम तो बता दो ।”
“रोजी ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला और क्लब से बाहर निकल आया ।
उसने अपनी मोटर साइकिल सम्भाली और रोजी के बताए हुए टी स्टाल पर आ पहुंचा ।
उसने चाय का आर्डर दिया और फिर लक्की स्ट्राईक के कश लगाता हुआ रोजी की प्रतीक्षा करने लगा ।
रोजी लगभग आधे घन्टे बाद आई ।
“मैं केवल पांच मिनट के लिए यहां ठहर सकती हूं ।” - वह घबराए स्वर में बोली ।
“इतनी घबरा क्यों रही हो ?” - सुनील बोला ।
“मेरी ड्यूटी रात के बारह बजे तक होती है । मैं इस तरह काउन्टर छोड़कर आऊं तो मैनेजर बहम करने लगता है ।”
“बैठो तो सही ।”
रोजी बैठ गई ।
“चाय पियोगी ?”
उसने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“कान्ता क्लब में कब से रह रही है ?” - सुनील ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया ।
“छ: महीने हो गए हैं ।”
“लेकिन क्लब में रहना तो बड़ा महंगा काम है । इसके पास इतने पैसे कहां से आते हैं ?”
“उसके पास क्या रखा है । उसका सारा खर्च तो उसका मंगेतर देता है ।”
“महेश कुमार ?”
“मुझे नाम नहीं मालूम ।”
“उसका मंगेतर तो महेश कुमार ही है ।”
“तो फिर वही होगा ।”
“तुम्हें मालूम है कल रात अर्थात मंगलवार रात को झेरी में उसके झील के किनारे वाले काटेज में उसकी हत्या हो गई है ।”
“मैंने अखबार में खबर पढी थी लेकिन उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि वह वही महेश कुमार था ।”
“कल रात की कान्ता क्लब से बाहर कहीं गई थी ?”
“गई थी ।”
“किस समय ?”
“रात को लगभग बारह बजे । रात को बारह बजे से थोड़ी ही देर पहले उसकी झेरी से एक ट्रंककाल आई थी ।”
“ट्रंककाल किसकी थी ?”
“मुझे नाम नहीं मालूम । कोई औरत बोल रही थी और उसके स्वर से यूं लगता था जैसे वह बहुत उत्तेजित हो ।”
“क्या कहा था उसने ?”
“मिस्टर, मुझे गलत मत समझना । मैं लोगों की टेलीफोन काल सुनती नहीं हूं । मैं तो काल कनैक्ट करके अपनी लाइन डिस्कनैक्ट कर देती हूं लेकिन कल रात तो अभी मैंने अपनी चाबी आपरेट भी नहीं की थी कि काल ही खत्म हो गई थी ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“मतलब यह कि मुझे ट्रंक आपरेटर ने बताया कि झेरी से कांता की ट्रंककाल है । मैंने कांता को रिंग दी । कांता लाइन पर आ गई । उस समय तक मैं यह देखने के लिए लाइन पर थी कि काल ठीक से कनैक्ट हो गई है या नहीं । तभी दूसरी ओर से कोई औरत बोली - “आ जाओ । और काल खत्म हो गई ।”
“बस ।”
“हां दूसरी ओर से बोलने वाली औरत ने हैलो तक नहीं कहा । उसने केवल ‘आ जाओ’ कहा और लाइन छोड़ दी ।”
“फिर ?”
“फिर लगभग पांच मिनट बात कान्ता बड़ी तेजी से सीढियां उतरती हुई आई और लगभग भागती हुई क्लब से बाहर निकल गई । उसकी कार बाहर कम्पाउन्ड में ही खड़ी रहती है । वह कार का ताला खोलकर भीतर जा बैठी और अगले ही क्षण उसकी कार बन्दूक में से निकली गोली की रफ्तार से क्लब के कम्पाउन्ड से बाहर निकल गई ।”
“वह गई कहां थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“लौटकर कब आई वह ?”
“मुझे नहीं मालूम । मैं तो बारह बजे बोर्ड बन्द करके घर चली जाती हूं ।”
“तुम्हारे सिवाय किसी ने कांता को क्लब से बाहर जाते हुए देखा था ?”
“जहां तक मेरा ख्याल है नहीं ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा ।
रोजी बड़ी उतावली-सी बार-बार अपनी नन्ही-सी कलाई घड़ी देख रही थी ।
सुनील ने अपनी जेब से सौ रुपये का नोट निकाला और रोजी की ओर बढा दिया ।
रोजी ने झिझकते हुए नोट ले लिया और फिर जल्दी से उसे अपने ब्लाउज में खोंसती हुई बोली - “मिस्टर, तुम नहीं जानते, यह सौ रुपये का नोट हमारे जैसे परिवार के लिए कितना हितकर सिद्ध हो सकता है !”
“यह सौ का नोट नहीं है ।” - सुनील विनोदपूर्ण स्वर से बोला - “यह तो सरकारी योग्यता प्रमाण-पत्र है जो भारत सरकार मेरे माध्यम से मुझसे ज्यादा जरूरतमन्द लोगों तक पहुंचाती रहती है ।”
रोजी के चेहरे पर मुस्कराहट छा गई और वह उठकर खड़ी हुई ।
“तुम किसी से तो यह नहीं कहोगे कि ये बातें तुम्हें मैंने बताई हैं ?” - रोजी ने डरते हुए पूछा ।
“नहीं कहूंगा ।” - सुनील ने उसे आश्वासन दिया - “और अगर कहने की जरूरत पड़ भी गई तो इस बात की गारन्टी करता हूं कि तुम्हारे ऊपर कोई आंच नहीं आएगी ।”
“थैंक्यू ।” - रोजी बोली - “थैंक्यू वैरी मच । यू आर ए वन्डरफुल मैन ।”
और वह तेजी से टी-स्टाल से बाहर निकल गई ।
थोड़ी देर बाद सुनील भी उठा । उसने चाय के पैसे चुकाए और बाहर आ गया ।
वह मोटर साइकिल पर आ बैठा । वह दायें-बायें देखता हुआ धीरे-धीरे मोटर साइकिल चला रहा था ।
अगले ही ब्लाक में उसे एक ऐसा पैट्रोल पम्प दिखाई दिया जिसके कम्पाउन्ड में पब्लिक टेलीफोन बूथ लगा हुआ था ।
सुनील ने बूथ के पास मोटर साइकिल रोकी और उतरकर बूथ में घुस गया ।
उसने यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिए ।
“यूथ क्लब, गुड ईवनिंग ।” - दूसरी ओर से आपरेटर की मधुर आवाज सुनाई दी ।
सुनील ने जल्दी से कायन बाक्स में दस नए पैसे के दो सिक्के डाले और फिर बोला - “हैलो-हैलो ।”
“यस प्लीज, यूथ क्लब ।”
“पुट मी टु रमाकांत, प्लीज ।” - सुनील बोला ।
“प्लीज होल्ड दि लाइन फार ए मोमेन्ट ।” - आपरेटर बोली ।
सुनील रिसीवर कान से लगाए खड़ा रहता ।
थोड़ी देर बाद ही उसके कान में रमाकांत की आवाज पड़ी - “रमाकांत स्पीकिंग ।”
“रमाकांत मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“हां-हां बोलो ।”
“एक बहुत महत्वपूर्ण काम करवाना है तुम्हें ।”
“क्या ?”
“कल रात को बारह बजे से थोड़ी देर पहले झेरी से फोर स्टार क्लब में कान्ता के नाम एक औरत ने ट्रंककाल की थी । तुम यह पता लगा सकते हो, वह औरत कौन थी ?”
“बड़ा मुश्किल काम है, यार ।”
“कुछ मुश्किल नहीं है । झेरी में मैनुअल टेलीफोन एक्सचेन्ज है । उस इलाके में साठ-सत्तर से अधिक टेलीफोन काम नहीं कर रहे होंगे । ऐसे इलाके में से सारे दिन में मुश्किल से एक या दो ट्रंककाल होती होंगी । मैं तुम्हें काल का समय और काल्ड पार्टी का नाम और पता भी बता रहा हूं । मुश्किल क्या है इसमें ?”
“मैं कोशिश करूंगा ।”
“कोशिश नहीं यह काम होना ही चाहिए ।”
“आल राइट, आल राइट । हो जाएगा । और कुछ ?”
“और यह है कि अब कान्ता की चौबीस घन्टे निगरानी होनी चाहिए ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैंने उसे उसकी कार के टायर के बारे में बताया है । मेरा ख्याल है वह टायर बदलवाने की कोशिश करेगी ।”
“हो जाएगा । और ?”
“और बस ।”
“अब एक दो बातें मुझसे सुनो ।”- रमाकांत बोला ।
“कहो ।”
“तुमने हमें राजकुमार को चैक करने के लिए कहा था ?”
“हां ।” - सुनील बोला - “विशेष रूप से यह कि हत्या की रात को वह कहां था ?”
“सुनील, मेरे आदमी यह तो नहीं जान पाए हैं कि हत्या की रात को वह कहां था लेकिन मैं तुम्हें यह बता सकता हूं कि हत्या की रात को वह कहां नहीं था ।”
“क्या मतलब ?”
“हत्या की रात को राजकुमार अपने 14-महात्मा गांधी रोड स्थित फ्लैट पर नहीं था । वह सुबह लगभग चार बजे के करीब अपने फ्लैट पर पहुंचा था । इमारत का चौकीदार इस बात का गवाह है । राजकुमार ने पुलिस को बयान दिया था कि हत्या की रात को वह अपने फ्लैट पर ही था ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “लेकिन उसकी अपने फ्लैट से मात्र अनुपस्थिति तो यह सिद्ध नहीं कर सकती कि हत्या उसने की है ।”
“और भी बातें हैं ।”
“वे भी बताओ ।”
“प्रभूदयाल ने उसके फ्लैट पर मंजुला की अटैची से जो जूते बरामद किए हैं, उन्हें पुलिस लैबोरेट्री में टैस्ट करने पर उनके तलुवों पर खून के धब्बे मिले हैं और वह खून महेश कुमार की ही टाइप का है । राजकुमार के पांव इतने छोटे हैं कि वे जूते उसे भी पूरे आ सकते हैं । प्रभूदयाल वे जूते राजकुमार को पहनाकर देखना चाहता था लेकिन राजकुमार ऐसे किसी टैस्ट के लिए तैयार नहीं हुआ था । राजकुमार को यह भी मालूम था कि उसी रिवाल्वर मंजुला की कार में रखी थी । महेश कुमार की हत्या करने का अच्छा-खासा उद्देश्य भी उसके पास है । राजकुमार मंजुला पर बुरी तरह मरता है, ऐसे लोग मुहब्बत के नाम पर कुछ भी कर गुजरने से हिचकते नहीं हैं ।”
“लेकिन प्रभूदयाल इस लाइन पर क्यों नहीं सोचता ? उसे भी तो यह तथ्य मालूम होंगे ?”
“प्रभूदयाल को राजकुमार उतना संदिग्ध नहीं मालूम हो रहा है जितनी कि पार्वती । पार्वती के विरुद्ध सर्कमस्टान्शल सबूत ज्यादा तगड़े हैं । इसीलिए तो वह मंजुला के पीछे नहीं पड़ रहा है । और सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि पार्वती अपने व्यवहार से प्रभूदयाल की इस धारणा की पुष्टि कर रही है कि वह हत्यारी है ।”
सुनील चुप रहा ।
“प्रभूदयाल ने केस के विषय में क्रानिकल को अपना बयान दिया है जो शायद कल सुबह के अखबार में प्रकाशित होगा । प्रभूदयाल और किसी अखबार के प्रतिनिधि से बातचीत नहीं कर रहा है । वह हर किसी को यह जवाब दे रहा है कि कल का क्रानिकल पढ लेना । उसके कथनानुसार उसने अपने बयान में सब संशय निवारण कर दिए हैं और पार्वती के खिलाफ ऐसा पक्का केस बनाया है कि वह बच नहीं सकती । सुनील इस बार तो क्रानिकल वाले चोट दे गए तुम्हें ।”
“ऐसा ही होता है ।” - सुनील लापरवाही से बोला - “कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर ।”
“अब तुम्हारा क्या इरादा है ?”
“मैं राजकुमार से बात करूंगा ।”
“लेकिन जरा सम्भल कर । वह बड़ा रूखा आदमी है ।”
“देखा जायेगा ।”
“ओके । विश यू गुडलक ।”
“थैंक्यू ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया और बूथ से बाहर निकल आया ।
केस को राजकुमार और कांता के सन्दर्भ में सोचने से उसे कुछ आशा हो आई थी । उसका दिल कह रहा था कि पार्वती हत्यारी नहीं है । लेकिन पुलिस तफ्तीश के परम्परागत दोषपूर्ण टैकनीक के कारण उसका बचाव पड़ा पेचीदा हो गया था । हत्या के केस की तफ्तीश का पुलिस का हमेशा से ही यह तरीका होता था कि वे केस के सब से अधिक संदिग्ध व्यक्ति को पकड़ लेते थे और फिर उसी के विरुद्ध सबूत जुटाने शुरू कर देते थे । इस सिलसिले में वे केस से सम्बन्धित अन्य लोगों के कई संदिग्ध कामों को नजरअन्दाज कर देते थे । इसी कारण प्रभूदयाल मंजुला और राजकुमार के कई संदिग्ध कार्यकलापों की ओर ध्यान नहीं दे रहा था । भारतीय पुलिस के इन्स्पेक्टर का ध्येय तो येन केन प्रकारेण हत्या के केस को हल करके वाहवाही लूटना होता था । उसे तो एक ऐसे बलि के बकरे की जरूरत होती थी जिस पर हत्या का अपराध थोपा जा सके ।
सुनील ने घड़ी देखी । साढे दस बजने को थे । उस समय उसे राजकुमार से मिलना उचित नहीं लगा ।
उसने मोटर साईकिल स्टार्ट की और उस पर सवार होकर बैंक स्ट्रीट की ओर चल दिया ।
***
अगले दिन सुबह लगभग आठ बजे बाहर जाने के लिए तैयार हो चुकने के पहले सुनील ने अपने फ्लैट से रमाकान्त का नम्बर डायल किया और रिसीवर कान से लगाये चुपचाप दूसरी ओर घण्टी जाने का सिग्नल सुनता रहा । सुबह के समय रमाकान्त के टेलीफोन में काल पी बी एक्स बोर्ड से होकर नहीं जाती थी । रात को जाते समय आपरेटर रमाकांत की लाइन डायरेक्ट कर जाया करती थी । सुनील जानता था कि कई मिनट तक निरन्तर घन्टी बजती रहने के बाद कहीं जाकर रमाकान्त की नींद खुलेगी ओर उसके बाद भी वह सोचेगा कि काल रिसीव करे या न करे ।
अन्त में घण्टी बजनी बन्द हुई और उसे रमाकांत की उनींदी आवाज सुनाई दी - “हल्लो ।”
“मार्निंग रमाकांत ।” - सुनील बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“बोलो ।” - रमाकांत जम्हाई लेता हुआ बोला - “यही वक्त मिला है तुम्हें बोलने का ।”
“झेरी की ट्रंककाल के बारे में कुछ पता लगा ?”
“मैंने दिनकर और जौहरी दोनों को इसी काम पर लगाया हुआ है । अभी उन्होंने रिपोर्ट नहीं भेजी है । यह रात में होने वाला काम तो था नहीं । अभी सवेरा हुआ है कुछ तो करेंगे ही वे लोग ।”
“और कुछ !”
“कांता के बारे में तुम्हारा अनुमान एकदम सच निकला ।”
“क्या ?”
“मैंने राकेश को फोर स्टार क्लब की निगरानी के लिए भेजा था । उसके क्लब के सामने पहुंचाने के दस मिनट बाद ही कांता अपनी फियेट ड्राइव करती हुई क्लब से बाहर निकली थी । राकेश उसके पीछे लग गया था । वह कार को राक्सी मोटर्स के गैरज में ले गई थी और उसने कार का पिछला बायां टायर ही नहीं चारों टायर बदलवा डाले हैं ।”
“चारों ?”
“हां ।”
“और पुराने टायरों का क्या किया है उसने ?”
“उन्हें वह वहीं छोड़ आई है । मैनेजर कहता था कि वे टायर बिक सकते हैं । कांता ने उसे कहा है कि अगर टायर बिक सकते हैं तो बेच दे । टायर अभी लगभग नए ही हैं । इस विषय में मेरे आदमियों के लिए क्या आदेश है ?”
“टायरों की इस अदला बदली के विषय में फिलहाल मैं चुप रहना चाहता हूं । अब कांता की निगरानी की जरूरत नहीं है । तुम राकेश को राक्सी मोटर्स की निगरानी पर लगा दो और पता लगाओ कि टायर बिक कर किसके हाथ पहुंचते हैं ।”
“ओके ।”
“और कुछ ?”
“एक बात और है लेकिन पुलिस उसे अधिक महत्व नहीं दे रही है । इसकी सूचना मुझे कल रात बहुत देर से मिली थी इसलिए तुम्हें फौरन सूचित नहीं कर सका था ।”
“क्या बात है ?”
“पुलिस को मंजुला की कार की ड्राइविंग सीट वाली साइड के दरवाजे के हैंडिल पर एक साफ सुथरा अंगूठे का निशान मिला है ।”
“किस का है ?”
“प्रभूदयाल ने केवल पार्वती और मंजुला को चैक किया है । वह निशान उन दोनों में से किसी के अंगूठे के नहीं हैं । इसीलिए प्रभूदयाल इस सूत्र को नजरअन्दाज करने करने की कोशिश कर रहा है ।”
“यह बात तुम्हारी जानकारी में कैसे आई ?”
“मेरा सोर्स है ?”
“क्या ?”
“पुलिस के होमीसाइड डिपार्टमेंट में मैंने एक स्पाई पाल रखा है जो जरूरत पड़ने पर मुझे इस प्रकार की टिप देता रहता है ।”
“क्या तुम्हारा वह स्पाई तुम्हें उस अंगूठे के निशान की एक फोटोग्राफिक कापी दिला सकता है ?”
“दिला सकता है लेकिन मुफ्त में नहीं ।”
“पैसे की चिन्ता मत करो ।”
“कापी आ जाएगी ।”
“और कांता तथा राजकुमार के अंगूठे के निशान हासिल कर सकते हो ?”
“कर सकता हूं ।”
“जरा मिलान करके देखो कि वह निशान इन दोनों में से किसी के अंगूठे के निशान से मिलता है ?”
“हो जाएगा ।”
“मैं आज झेरी जाने वाला हूं । जाने से पहले एक बार फिर तुम्हें फोन करूंगा ।”
“मतलब कि एक बार फिर मेरी नींद खराब करोगे ।”
“एक दिन कम सो लोगे तो मर नहीं जाओगे ।”
उत्तर में रमाकांत ने टेलीफोन बन्द कर दिया ।
सुनील ने भी रिसीवर रखा और फ्लैट से बाहर निकल आया ।
उसने फ्लैट को ताला लगाया, नीचे आकर मोटर साइकिल सम्भाली और सीधा 14, महात्मा गांधी रोड के सामने जा पहुंचा ।
राजकुमार का फ्लैट ढूंढने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई । उसने कालबेल बजा दी ।
थोड़ी ही देर में द्वार खुला और उसे ड्रेसिंग गाउन में लिपटे हुए एक युवक की सूरत दिखाई दी ।
“फरमाइए ।” - युवक बोला ।
“मैं मिस्टर राजकुमार से मिलना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“मैं ही राजकुमार हूं ।” - वह एक बार सुनील को सिर से पांव तक घूर चुकने के बाद बोला ।
“नमस्ते, राजकुमार जी ।” - सुनील बड़ी गर्मजोशी से उसकी ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं ।”
राजकुमार ने बड़ी अनिच्छा से सुनील से हाथ मिलाया और संदिग्ध नेत्रों से उसे देखता हुआ बोला - “क्या सेवा कर सकता हूं मैं आपकी ?”
“मैं आप से एक बड़े महत्वपूर्ण विषय पर बात करने आया हूं और मुझे विश्वास है कि उससे आपका भी हित होगा, उन लोगों का भी हित होगा जिनके आप शुभचिन्तक हैं और मेरे अखबार का हित तो होगा ही ।”
“ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण विषय है, साहब ?”
“यहीं खड़ा-खड़ा बताऊं ?”
“क्या हर्ज है ?”
“बड़े अनसोशल आदमी हैं आप !”
“जी हां, हूं फिर ?”
“फिर कुछ नहीं ।” - सुनील बनावटी विनोदपूर्ण स्वर में बोला - “मेरी वर्तमान स्थिति से उस विषय की महत्ता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है जिस पर मैं आप से बात करने आया हूं ।”
“आपने अभी तक कहा कुछ भी नहीं है ।” - राजकुमार रुक्ष स्वर में बोला - “हालांकि बोल आप काफी देर से रहे हैं ।”
“मैं महेश कुमार की हत्या के केस की तह तक पहुंचने का प्रयत्न कर रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“फिर ?”
“और मेरी धारणा है कि हत्या पार्वती या मंजुला ने नहीं की है ।”
“तो ?”
“मैं यह तो सिद्ध नहीं कर सकता कि हत्या किसने की है लेकिन पार्वती और मंजुला के अलावा एक अन्य व्यक्ति को पुलिस की नजरों में भारी सन्देह का पात्र बना सकता हूं ।”
“किसे ?”
“आपको ।”
राजकुमार यूं चिहुंका जैसे किसी ने उसके शरीर के साथ बिजली का तार छुआ दिया हो ।
“क्या बक रहे हैं आप !”
“मैं बक नहीं रहा हूं, फरमा रहा हूं ।” - सुनील अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “आपने पुलिस को बयान दिया था कि हत्या की रात को आप अपने फ्लैट पर मौजूद थे लेकिन मैं सिद्ध कर सकता हूं कि आप उस रात अपने फ्लैट पर नहीं थे । आप सुबह चार बजे अपने फ्लैट पर लौटे थे ।”
“कैसे सिद्ध कर सकते हैं आप ?”
“आपके फ्लैट के भीतर उस आरामदेह सोफे पर बैठकर जो मुझे यहीं से दिखाई दे रहा है ।”
“आप तो ऐसे बात करते हैं, साहब ।” - राजकुमार एक ओर हटता हुआ बोला - “जैसे आप जिन्दगी में कभी सोफे पर नहीं बैठे ।”
“सोफे पर बहुत बैठा हूं ।” - सुनील बोला - “लेकिन ऐसे लोगों से बहुत कम मिला हूं जो मुझसे इतना परहेज दिखायें कि मुझे अपने घर में भी नहीं घुसने दें ।”
“अगर आपने यह न कहा होता कि मैं अखबार का रिपोर्टर हूं तो शायद मैं आपसे ऐसा व्यवहार नहीं करता । मंजुला से मेरा सम्बन्ध होने के कारण उतना मुझे पुलिस ने परेशान नहीं किया जितना रिपोर्टरों ने ।”
“अखबार का रिपोर्टर तो मैं अब भी हूं ।” - सुनील बैठता हुआ बोला ।
“लेकिन अब बात अलग है ।” - राजकुमार भी बैठता हुआ बोला - “अब आप एक मेरे लिए बड़ी खतरनाक सिद्ध हो सकने वाली बात की जानकारी का दावा कर रहे हैं ।”
“सम्भव है मैं झूठ बोल रहा होऊं ।”
“ऐसी सूरत में मैं अब भी आपको फ्लैट में से उठाकर बाहर फेंक सकता हूं ।”
“मैंने एक बात कही और आपने उस पर फौरन विश्वास कर लिया । आपने यह क्यों नहीं सोचा कि शायद मैं झूठ बोल रहा होऊं ।”
“मैं वकील हूं, साहब ।” - राजकुमार बोला - “अदालत में मेरा रोज सच और झूठ से ही वास्ता पड़ता है । मैं आदमी की सूरत देखकर बता सकता हूं कि वह झूठ बोल रहा है या सच । अगर आपकी बात मुझे कोरी धमकी महसूस हुई होती तो मैं आपको भीतर बुलाने के स्थान पर आपके मुंह पर द्वार बन्द कर देता ।”
“आपको यह बताने की तो जरूरत नहीं है न कि अगर मेरी बात सच हुई तो आप केस में कितने बड़े मर्डर सस्पेक्ट बन सकते हैं ?”
“जी हां, सच कह रहे हैं आप ।”
“सम्भव है उस रात आप भी पार्वती के काटेज पर हों । रात को जब मंजुला फटे कपड़ों में बदहवास महेश कुमार के काटेज से वापिस लौटी हो तो उसे देखकर आपका खून खौल उठा हो । आप चुपचाप पगडण्डी के रास्ते महेश कुमार के काटेज पर गए हों, वहां महेश कुमार ने आपका भी अपमान किया हो । आपको और ताव आ गया हो । आपको मालूम था कि मंजुला की पंक्चर गाड़ी सड़क पर खड़ी है और उसमें आपकी रिवाल्वर रखी है । आप रिवाल्वर निकाल लाए हों और आकर महेश कुमार को शूट कर दिया हो । फिर आपने रिवाल्वर झाड़ियों में उछाल दी हो । आप मर्द हैं और काफी बलवान भी हैं । आप रिवाल्वर को काटेज के पास से उछालकर दूर खड़ी कार के आस-पास झाड़ियों में कहीं फेंक सकते हैं लेकिन पार्वती वृद्धा है, वह इतनी दूर रिवाल्वर नहीं फेंक सकती और कदमों के निशान से स्पष्ट जाहिर होता है कि किसी ने कार की दिशा में एक ही चक्कर लगाया है, दो नहीं । फिर आप पगडण्डी के रास्ते ही वापिस लौट आए । और फिर वहां से वापिस राजनगर अपने फ्लैट में आ गए । वकील साहब, यह सिद्ध हो जाने के बाद कि हत्या की रात को आप अपने फ्लैट पर सुबह चार बजे लौटे थे, आप पार्वती से भी ज्यादा सन्देह के पात्र बन जाते हैं । क्या ख्याल है आपका ?”
“आप ठीक कह रहे हैं ।” - राजकुमार चिन्तित स्वर से बोला ।
“आज तक आपने मुजरिमों के ही बचाव के बारे में सोचा है । आज से आप अपने बचाव के बारे में भी सोचना आरम्भ कर दीजिए ।”
“पहले आप यह बताइए कि आप यह कैसे सिद्ध कर सकते हैं कि हत्या की रात को मैं अपने फ्लैट पर नहीं था ।”
“आपकी इमारत के चौकीदार ने आपको अगली सुबह चार बजे लौटते देखा था और उसे आपको पहचानने में कोई गलती नहीं हुई है ।”
“मारे गए ।” - राजकुमार बड़बड़ाया ।
“आपने हत्या की है ?” - सुनील ने सीधा सवाल किया ।
“सवाल ही नहीं पैदा होता, जनाब ।” - राजकुमार बोला - “उस रात मैं झेरी इलाके के पास भी नहीं फटका ।”
“तो फिर इतनी रात कहां रहे आप ?”
“यह मैं नहीं बता सकता ।”
“क्यों ?”
“बस है कोई बात ।”
“अगर यही सवाल आपसे पुलिस पूछे तो ?”
“पुलिस की अब मुझमें दिलचस्पी बाकी नहीं है । उन्होंने मुझसे जो पूछना है, पूछ लिया है । पुलिस की जानकारी में यह बात कभी नहीं आ सकती कि मैं हत्या की रात को अपने फ्लैट पर नहीं था ।”
“आ सकती है ।”
“नहीं आ सकती । मैं ऐसा इन्तजाम कर दूंगा कि चौकीदार दोबारा जुबान न खाले ।”
“और मेरा क्या इन्तजाम करेंगे आप ?”
“क्या मतलब ?”
“इस बात की सूचना पुलिस को देने से मुझे कैसे रोकेंगे आप ?”
“आप पुलिस को सूचना देंगे ?” - राजकुमार हैरानी से बोला ।
“जी हां ।” - सुनील ने बड़े इत्मीनान से उत्तर दिया - “पुलिस को सूचना भी दूंगा और सारी दास्तान अपने अखबार में भी छापूंगा ।”
“आपको क्या मिलेगा इससे ?”
“मुझे कुछ नहीं मिलेगा । लेकिन ‘ब्लास्ट’ के पढने वालों को बड़ा सैन्सेशनल रीडिंग मैटर मिलेगा ।”
“बड़े कमीने आदमी हैं आप ।”
“अपना-अपना ख्याल है । आप जिसे कमीनापन कहते हैं । मैं उसे पेशे के प्रति ईमानदारी कहता हूं ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
राजकुमार कई क्षण चुप रहा और फिर बोला - “कोई ऐसा तरीका हो सकता है, जिससे आप अपनी चोंच बन्द रख सकें ?”
“हो सकता है ।”
“क्या ?”
“आप मुझे यह बता दीजिए कि हत्या की रात को आप कहां थे ?”
“ताकि आप उसे भी अपने अखबार में छाप दें ?”
“अगर उस बात का सम्बन्ध केस से नहीं होगा तो मैं उसे अखबार में छापना तो दूर उसका किसी से जिक्र भी नहीं करूंगा ।”
“वादा करते हैं ?” - राजकुमार उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला ।
“वादा करता हूं ।” - सुनील बोला - “और आप इसे ‘प्राण जायें पर वचन न जाई’ मार्का वादा समझिए ।”
राजकुमार ने एक दीर्घ निश्वास ली और बोला - “एल एल बी मैंने कामर्स में एम ए करने के बाद करी थी । वकालत में भी मैं ज्यादा केस इन्कम टैक्स के ही लेता हूं । मैं बड़े गरीब मां बाप का बेटा हूं । मेरे मां बाप गांव में रहते हैं । मैं लगभग सात आठ सौ रुपये कमाता हूं जिसमें से तीन साढे तीन सौ ही मैं अपने मां बाप को भेज पाता हूं । बाकी रुपये की पाई-पाई राजनगर जैसे मंहगे शहर में जिन्दा रहने में खर्च हो जाती है । मैं मंजुला से मुहब्बत करता हूं और उससे शादी करना चाहता हूं । मंजुला शादी के लिए तैयार है और उसकी मां को भी इसमें कोई एतराज नहीं है लेकिन मेरी स्थिति ऐसी नहीं है कि मैं मंजुला से शादी कर सकूं ।”
“क्यों ?”
“शादी के लिए रुपया चाहिए और मेरे पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं है । दुर्भाग्य से मैं प्रेम के आवेग में कभी मंजुला से यह झूठ बोल बैठा था कि मैं एक रईस जमींदार का बेटा हूं । गांव में हमारी हवेली है और हमारे पास बहुत पैसा है । मंजुला माड्रन लड़की है । वह शादी में भारी धूमधाम की आशा कर रही है । सम्भव है जब उसे मेरी वास्तविक आर्थिक दशा की जानकारी हो तो वह मुझे एक झूठा और गलत किस्म का आदमी समझ बैठे ।”
“फिर ?”
“मैं बहुत परेशान था और चौबीस घन्टे कहीं से पैसा हासिल करने की तरकीबें सोचता रहता था । मैंने निश्चय किया हुआ था कि पैसा किसी भी तरीके से मिले, मिलना चाहिए मुझे । चाहे उसके लिए मुझे किसी का गला ही क्यों न काटना पड़े ।
“हे भगवान !” - सुनील घबरा कर बोला - “कहीं आपने सचमुच ही तो किसी का गला नहीं काट डाला ?”
“नहीं । आप सुनते रहिए ।”
“अच्छा ।”
“एक दिन मेरे मुन्शी ने कचहरी में मुझे एक सेठ से भिड़वा दिया । वह इन्कम टैक्स के किसी केस में बुरी तरह फंसा हुआ था और उसको लाखों रुपये का जुर्माना हो जाने की सम्भावना थी । सेठ कहता था कि अगर मैं उसे किसी तरह बचवा दूं या सस्ते में उसकी जान छुड़वा दूं तो वह मुझे मुंह मांगी रकम देने के लिए तैयार था । पैसा तो साहब उन दिनों मेरा खुदा बना हुआ था, इसलिए मैं केस स्टडी करने के लिए तैयार हो गया । मैंने देखा कि सेठ के कितने ही पुराने खातों में जो अभी तक अदालत में पेश नहीं हो पाये थे, हेर फेर करने के बाद ही सेठ को ढेर सारे इन्कम टैक्स से बचाया जा सकता था । मैंने सेठ को यह बात बताई और अगले ही दिन उसने अपने कुछ विश्वास पात्र मुनीम खाते समेत अपनी कोठी के तहखानों में बिठा दिये और वे मेरे बताये ढंग से दिन रात नये खाते तैयार करने लगे । मंगलवार को सेठ ने मुझे बताया था कि सब कुछ हो गया था और मैं आकर फाइनल चैकिंग कर लूं । रात को मैं सेठ के तहखाने में पहुंच गया और फिर रात भर नये खातों को चैक करता रहा । मैंने अपनी आंखों के सामने पुराने खाते जलवा दिये, क्यों कि मुझे डर था कि फ्राड में कहीं मैं भी न फंस जाऊं । सारा काम निपटा कर जिस समय मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा उस समय सुबह के चार बज चुके थे । यह मेरा दुर्भाग्य है कि महेश कुमार की हत्या भी उसी रात को हुई जिस रात को मैं सेठ के तहखाने में रहा । अगर इस विषय में पुलिस ने मुझ से सवाल किया और मैंने सच बोल दिया तो सेठ रगड़ा जाएगा । सेठ ने मुझे पचास हजार रुपये देने का वादा किया हुआ है । अगर सेठ डूबा तो मेरा रुपया भी डूब जाएगा ।”
“लेकिन कभी तो पुलिस आपसे सवाल कर ही सकती है । जैसे यह बात मुझे मालूम हो गई है, वैसे ही यह बात पुलिस को भी मालूम हो सकती है ।”
“केवल चौकीदार ने ही मुझे सुबह चार बजे लौटकर आते देखा है । उसका इन्तजाम कर लूंगा मैं ।”
“क्या इन्तजाम करेंगे आप ? रिश्वत देंगे उसे ?”
राजकुमार ने सुनील से नजर नहीं मिलाई ।
“आप इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल को जानते नहीं हैं, मैं जानता हूं । अगर एक बार वह इस राह पर लग गया तो वह शैतान के पेट से भी बात निकाल लेगा । मान लीजिए अदालत में पर्याप्त सबूतों के अभाव में पार्वती के विरुद्ध केस नहीं सिद्ध हो पाता । फिर प्रभूदयाल नये सिरे से केस की तफ्तीश शुरू करेगा और किसी भी रूप में हत्या से सम्बन्धित लोगों को नये सिरे से चैक करेगा । तब आपकी भी बारी आएगी । उस समय अगर प्रभूदयाल को मालूम होगा कि आपने चौकीदार को रिश्वत देकर आपके बारे में अपना मुंह बन्द रखने के लिए कहा है तो आपकी खैर नहीं ।”
“तो फिर में क्या करूं ?”
“एक तरकीब मैं आपको बताता हूं लेकिन उस पर आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी ।”
“क्या ?” - राजुकमार आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“आप हर दूसरे तीसरे दिन रात को लेट आइए ।” - सुनील बोला - “कभी दो बजे कभी तीन बजे, कभी चार बजे और इस बात का खास ध्यान रखिये कि चौकीदार आपको आता देख ले । ऐसे ही जब आप कई बार रात को लेट अपने फ्लैट पहुंचेंगे तो उसे मंगलवार की रात को आपके लेट आने में कोई विशेषता दिखाई नहीं देगी । कई दिनों बाद पूछे जाने पर वह यही कहेगा कि साहब तो अक्सर ही देर से घर आते हैं, क्या मालूम मंगलवार को वे अपने फ्लैट पर थे या नहीं ।”
“तरकीब तो अच्छी है ।” - राजकुमार हिचकिचाता हुआ बोला - “लेकिन इतनी-इतनी रात तक मैं रहा कहां करूंगा ?”
“कहीं रहो । सिनेमा का आखरी शो देखो, समुद्र के किनारे जाकर सो जाओ, क्लब में ताश खेलते रहो, होटलों में डांस देखो, शहर से बाहर का चक्कर लगा आओ । मतलब यह कि हर दूसरे तीसरे दिन रात को लेट घर आओ ।”
“ऐसे तो मैं बदनाम हो जाऊंगा । मंजुला को पता लग गया तो वह मुझे बड़ा गन्दा आदमी समझेगी ।”
“मंजुला को कैसे पता लग सकता है ?”
“लग सकता है । कई बार, वह रात को दो बजे मुझे झेरी से ट्रंककाल करके जगा लेती है ।”
“तो फिर पता लग जाने दो । मंजुला को समझाना तो आसान है । वह आप से मुहब्बत करती है । चाहे उसके सामने हकीकत ही बयान कर देना, लेकिन पुलिस को और विशेष रूप से प्रभूदयाल को, समझाना बड़ा टेढा काम है ।”
“ठीक है ।” - राजकुमार निर्णयातमक स्वर में बोला - “मैं ऐसा ही करूंगा ।”
“शुरूआत आज से ही कर दो ।”
“आल राइट ।”
“अब एक मेहरबानी मुझ पर भी करो ।”
“कहो, यार ।” - राजकुमार मुहब्बत भरे स्वर में बोला ।
“यार !” - सुनील हैरानी से बोला - “अभी दस मिनट पहले तो तुम मुझसे यूं पेश आ रहे थे जैसे मैं कोई छूत की बीमारी का रोगी या इश्तहारी मुजरिम होऊं ?”
“शर्मिन्दा मत करो, यार ।” - राजकुमार भावुक स्वर में बोला - “तुम काम बताओ ।”
“मुझे तुम्हारे दोनों अंगूठों के निशान चाहियें ।”
“क्यों ?” - राजकुमार हैरान होकर बोला ।
“मंजुला की पंक्चर कार के एक हैंडिल पर एक अंगूठे का बड़ा स्पष्ट निशान मिला है । मैं चैक करना चाहता हूं कि वह निशान तुम्हारा तो नहीं ।”
“अभी भी शक करते हो मुझ पर ?”
“चैक करने में क्या हर्ज है ?”
“आल राइट ।” - राजकुमार बोला ।
राजकुमार ने एक स्टैम्प पैड और एक कोरा कागज निकाला और स्टैम्प पैड की स्याही अंगूठों पर लगा कर उसने अंगूठे कोरे कागज पर टेक दिए । फिर उसने कागज सुनील को थमा दिया ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला, और उसने कागज को सावधानी से तह करके जेब में रख लिया ।
“ओके ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “थैंक्स अगेन ।”
“नो, इट्स मी हू इज टू बी थैंकफुल ।” - राजकुमार गर्मजोशी से हाथ मिलाता हुआ बोला ।
सुनील मुस्करा दिया ।
राजकुमार उसे द्वार तक छोड़ने आया ।
“मिस्टर सुनील ।” - द्वार पर पहुंचकर वह फिर हाथ मिलाता हुआ बोला - “आई एम सारी फार माई बिहेवियर । आई होप यू विल फारगिव मी ।”
“ओह, नैवर माइन्ड दैट ।”
“कभी मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताना । मुझे खुशी होगी ।”
“जरूर बताऊंगा ।” - सुनील बोला ।
उसने अन्तिम बार राजकुमार से हाथ मिलाया और वहां से विदा हो गया ।
***
महात्मा गांधी रोड के फुटपाथ पर बैठे हुए एक हाकर से उसने क्रानिकल का ताजा अंक खरीदा और उसे ले एक रेस्टोरेन्ट में घुस गया ।
उसने चाय का आर्डर दिया और अखबार देखने लगा ।
अखबार के मुख पृष्ठ पर प्रभूदयाल का चित्र छपा हुआ था और उसी पृष्ठ के दायें भाग में चार कालम की चौड़ाई में मोटे टाइप में हैड लाइन छपी हुई थी ।
झेरी कांड का रहस्य खुल गया ।
महेश कुमार का हत्यारा गिरफ्तार ।
होमी साइड डिपार्टमेंट के सुयोग्य इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की अनोखी सूझबूझ का अप्रत्याशित परिणाम ।
इसके नीचे साधारण अखबारी टाइप में केस का विवरण छपा हुआ था ।
शुरू के कुछ पैरों में केस का डिटेल थी जो अखबारों में पिछले दिन भी छप चुकी थी । एक स्थान पर लिखा था ।
इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ने क्रानिकल के विशेष प्रतिनिधि को एक इन्टरव्यू में बताया कि महेश कुमार की हत्यारी पार्वती देवी के विरुद्ध इतने प्रमाण हैं कि उसका हत्या के अपराध से बच जाना एक करिश्मा होगा ।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार हत्या रात को दो और तीन बजे के बीच में हुई थी और उस समय झेरी में ही रहने वाले प्रताप चन्द नाम के एक सज्जन और उसकी पत्नी इन्द्रा ने पार्वती को बड़ी सन्दिग्धावस्था में महेश कुमार के काटेज में देखा था । उसी समय उन्होंने काटेज की टूटी हुई खिड़की भी देखी थी ।
पार्वती के काटेज और महेश कुमार के काटेज के बीच की पगडण्डी पर फैले कदमों के निशान अपनी कहानी खुद कह रहे हैं । वे निशान निश्चय ही पार्वती के कदमों के हैं । पार्वती की बेटी मंजुला भी अपनी मां का अपराध छुपाने में उसकी पूरी सहायता कर रही थी । मंजुला पार्वती के वे जूते जो वह हत्या की रात को पहने हुए थी, चुपचाप लेकर राजनगर गई थी ताकि वह उन्हें ‘ठिकाने लगा सके’ लेकिन ऐसा कोई मौका उसके हाथ में आने से पहले इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ने वे जूते अपने कब्जे में कर लिए थे । जूतों पर सूखा हुआ कीचड़ जमा हुआ था और मंजुला ने स्वीकार किया था कि वे जूते पार्वती के हैं । बाद में जूतों को पुलिस लैबोरेट्री में एग्जामिन करने पर उनके तलों पर खून के निशान पाए गए थे । पुलिस विशेषज्ञ का कथन है कि खून के वे निशान महेश कुमार के खून की टाइप से मिलते-जुलते हैं ।
पार्वती के विरुद्ध सबूतों की यह श्रृंखला यहीं समाप्त नहीं हो जाती । पार्वती का कथन है कि मंजुला रात को ग्यारह बजे वापिस आ गई थी जबकि उसकी कार के पहिये में धंसा हुआ शीशे का टुकड़ा प्रकट कर रहा है कि मंजुला वहां से हत्या के समय शीशे टूटने के बाद रवाना हुई । बरसात से भीगी सड़क पर उसकी कार के पहियों के निशान भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं । (स्मरण रहे कि मंगलवार रात को झेरी के इलाके में बारिश रात साढे बारह बजे शुरू हुई थी) पार्वती का मंजुला के लिए इस प्रकार झूठ बोलना यह सिद्ध करता है कि वह मां की हैसियत से मंजुला के मान सम्मान की रक्षा करने का पूरा प्रयत्न कर रही है । वह नहीं चाहती कि संसार को यह जाहिर हो पाप कि मंजुला कामी पुरुष की हवस का शिकार हो गई ।
इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की थ्योरी इस प्रकार है -
रात को लगभग दो बजे पार्वती ने एक चीख की आवाज सुनी । उस आवाज को पहचानने में पार्वती को कोई दिक्कत नहीं हुई । वह आवाज मंजुला की थी । आवाज महेश कुमार के काटेज से आई थी । मंजुला की मां का दिल बेटी के किसी अनिष्ट की आशंका से कांप उठा । उसने वह रिवाल्वर निकाली जो मंजुला को राजकुमार नामक वकील ने शूटिंग की प्रैक्टिस के लिए दी थी और अपनी बेटी की रक्षा के लिए पगडण्डी के रास्ते महेश कुमार के काटेज की ओर चल दी ।
स्मरण रहे कि मंजुला ने अपने पिछले बयान में कहा था कि वह रिवाल्वर कार के डैशबोर्ड में बने कम्पार्टमेंट में रखी थी लेकिन इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल इस तथ्य को अस्वीकार करता है । उसका दावा है कि मंजुला झूठ बोल रही है । रिवाल्वर वास्तव में घर में ही थी और मंजुला की चीख की आवाज सुनकर पार्वती वह रिवाल्वर लेकर महेश कुमार के काटेज में पहुंची थी ।
जिस समय पार्वती महेश कुमार के काटेज पर पहुंची, महेश कुमार मंजुला को जबरदस्ती अधिकार में करने का प्रयत्न कर रहा था । उसी जबरदस्ती के दौरान दीवार पर लगी एक तस्वीर, मेज पर रखा एक गिलास और मंजुला का कम्पैक्ट जमीन पर गिरकर टूट गया था । पार्वती ने महेश कुमार की ओर रिवाल्वर तान दी । महेश कुमार ने मंजुला को छोड़ दिया ।
पार्वती ने मंजुला को काटेज से बाहर भेज दिया । महेश कुमार पार्वती का इरादा भांप गया । अपने बचाव के लिए उसने चांदी के फ्रेम वाला शीशा पार्वती पर फेंककर मारा जो पार्वती को लगने के स्थान कमरे की खिड़की से जा टकराया और खिड़की के कांच और शीशे दोनों के परखचे उड़ गए । तभी पार्वती ने रिवाल्वर का घोड़ा दबा दिया । गोली महेश कुमार की छाती में घुस गई और वह अपनी पहियों वाली कुर्सी पर ढेर हो गया ।
इसके बाद पार्वती ने मंजुला को तो कार पर घर भेज दिया और स्वयं महेश कुमार के काटेज से उन सूत्रों को दूर करने लगी जो मंजुला का सम्बन्ध महेश कुमार से जोड़ सकते थे ।
मंजुला कार पर सड़क के रास्ते अपने काटेज की ओर चल पड़ी लेकिन उसकी कार के टायर में शीशे का टुकड़ा घुस चुका था । थोड़ी ही दूर जाने पर कार का पहिया बैठ गया और मंजुला वहां से पैदल घर आ गई ।
पार्वती भी अपना काम समाप्त करके सड़क के रास्ते से वापिस चल दी । थोड़ी ही दूर पर उसने मंजुला की कार खड़ी देखी । उसने रिवाल्वर कार के पास झाड़ियों में फेंक दिया था ताकि बाद में वह यह दावा कर सके कि किसी ने कार में से रिवाल्वर निकालकर महेश कुमार की हत्या की थी और रिवाल्वर को झाडियों में फेंक दिया था, रिवाल्वर फेंक चुकने के बाद वह सड़क के रास्ते ही वापिस महेश कुमार के काटेज लौट आई ।
इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कथनानुसार यही एक थ्योरी है जो हर बात को स्पष्ट कर देती है और निर्विवाद रूप से यह सिद्ध कर देती है कि हत्या पार्वती ने की है ।
आगे के कुछ पैरे इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की और उसकी कार्यप्रणाली की प्रशंसा से भरे पड़े थे ।
सुनील ने अखबार बन्द कर दिया ।
प्रभूदयाल की थ्योरी वजनदार थी । इसमें कोई सन्देह नहीं था ।
अखबार में मंजुला की कार के दरवाजे के हैंडल पर मिले अंगूठे के निशान का कहीं भी जिक्र नहीं था । शायद प्रभूदयाल ने उसे जिक्र के काबिल नहीं समझा था ।
सुनील ने चाय समाप्त की और पैसे चुकाकर रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल आया ।
वह मोटर साइकिल पर आ बैठा और यूथ क्लब की ओर चल दिया ।
यूथ क्लब पहुंचकर उसने मोटर साइकिल कम्पाउन्ड में खड़ी की और भीतर घुस गया ।
रिसेप्शन काउन्टर खाली पड़ा था ।
वह सीढियों की ओर बढने ही लगा था कि उसे रिसेप्शन की बगल में बने रमाकांत के आफिस का दरवाजा खुला दिखाई दिया ।
भीतर रमाकांत बैठा था ।
कमरा चार मीनार के कडुवे धुवें से भरा हुआ था ।
रमाकांत के सामने मेज पर एक फोटोग्राफ रखा था जिसे वह बड़ी तल्लीनता से मैग्नीफाईंग ग्लास की सहायता से परख रहा था ।
सुनील को देखकर उसने मैग्नीफाईंग ग्लास मेज पर रख दिया और बोला - “आओ । आओ प्यारयो ।”
“यह क्या है ?” - सुनील फोटोग्राफ की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“मंजुला की कार के हैन्डिल पर मिले अंगूठे के निशान का एन्लार्ज किया हुआ फोटोग्राफ है । अभी पहुंचा है यह मेरे पास । जरा परख रहा था इसे मैं ।”
सुनील ने अपनी जेब से राजकुमार के अंगूठे के निशान वाला कागज निकाला और उसे रमाकांत की ओर बढाता हुआ बोला - “जरा इससे मिलाओ ।”
रमाकांत ने कागज ले लिया ।
“ये निशान किसके हैं ?” - उसने पूछा ।
“राजकुमार के ।”
रमाकांत ने मैग्नीफाईंग ग्लास फिर उठा लिया और फोटोग्राफ से निशानों को मिलाने लगा ।
सुनील बड़े धैर्य से प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग पांच मिनट बाद रमाकांत बोला - “नहीं मिलते ।”
“खूब अच्छी तरह देख लिया है ?”
“बड़ी बारीकी से देखा है मैंने । यह राजकुमार के अंगूठे का निशान नहीं है ।” - यह फोटोग्राफ की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“कान्ता के अंगूठे का निशान मिला ?”
“आदमी फोर स्टार क्लब भेजा हुआ है । मिल जाएगा ।”
“ट्रंककाल का कुछ पता लगा ?”
“अभी नहीं ।”
“मैं झेरी जा रहा हूं । वहां से तुम्हें फोन करूंगा ।”
“दिनकर और जौहरी दोनों वहीं हैं । अगर वे मिल जाएं तो उन्हीं से पूछ लेना नहीं तो फोन कर लेना ।”
“अच्छा ।” - और सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“बैठो, चाय नहीं पियोगे ?”
“नहीं ।” - सुनील बोला और बाहर निकल आया ।
***
झेरी में सुनील सीधा पुलिस चौकी पहुंचा ।
चौकी में वही थानेदार मौजूद था ।
“आइए रिपोर्टर साहब ।” - सुनील को देखकर वह बोला ।
“आपकी तस्वीर खींचने आया हूं ।” - सुनील कन्धे पर लटका कैमरा थपथपाता हुआ बोला ।
“अच्छा ?” - थानेदार खुश होकर बोला - “मैं तो समझा था कि...”
“वादा करके मुकर गया ।”
थानेदान हो-हो करके हंसने लगा ।
“तैयार हो जाइए ।” - सुनील कन्धे से कैमरा उतारकर लेंस एडजस्ट करता हुआ बोला ।
थानेदार ने अपनी वर्दी ठीक की, मूंछों पर ताव दिया और तस्वीर खिंचवाने के लिए तैयार हो गया ।
सुनील व्यू फाइन्डर में से थानेदार को देखने लगा और फिर उसने बटन दबा दिया । फिर उसने कैमरा मेज पर रख दिया ।
“फोटों खिंच गई ?”- थानेदार हैरानी से बोला ।
“और क्या ?”
“लेकिन आपने मुझे ‘रेडी’ तो कहा ही नहीं, रिपोर्टर साहब !” - थानेदार ने प्रतिवाद किया ।
“रेडी कहने से तस्वीर में बनावट आ जाती है, थानेदार साहब । मैंने आपकी तस्वीर बड़ी स्वाभाविक मुद्रा में उतारी है ।”
“ओह, अच्छा । तस्वीर बढिया आएगी न ?”
“एकदम फर्स्ट क्लास ।”
“और छपेगी भी बढिया ?”
“हां ।”
“शुक्रिया ।”
“अब एक और तस्वीर हो जाए ।”
थानेदार तनकर बैठ गया ।
“यहां नहीं ।”
“तो फिर ?”
“घटनास्थल पर । महेश कुमार के काटेज के उस कमरे में जहां उसकी हत्या हुई थी । मैं आपकी एक तस्वीर घटनास्थल पर तफ्तीश करते हुए खींचना चाहता हूं ।”
“यह तो मुमकिन नहीं है ।”
“क्यों ?”
“लाश हटवाने के बाद शहर का इन्स्पेक्टर वह कमरा सील कर गया है । काटेज के कम्पाउन्ड के बाहर भी ताला लगा हुआ है और एक सिपाही हर वक्त वहां ड्यूटी देता है ताकि कोई भीतर न जा सके ।”
सुनील निराश हो उठा । उसने तो सारा तमाशा ही घटनास्थल देखने के लिए किया था ।
“तो, थानेदार साहब ।” - वह निराश स्वर से बोला - “उस कमरे में आपकी तस्वीर खींच पाने का कोई तरीका नहीं है ?”
“नहीं साहब, मैं मजबूर हूं ।”
“फिर सोच लीजिए ।”
“इसमें फिर क्या सोचना है । अगर यह मेरे बस की बात होती तो मैं जरूर कुछ करता ।”
“अच्छा ।” - वह थानेदार की ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “मुझे खेद है, मैं आपकी दूसरी तस्वीर नहीं खींच सका ।”
थानेदार ने बड़ी गर्मजोशी से उसका हाथ थाम लिया और बोला - “कोई बात नहीं । लेकिन पहली तस्वीर को बहुत बढिया छापना और अगर हो सके तो एक कापी मुझे भी दे देना ।”
“जरूर दूंगा ।” - सुनील बोला और पुलिस चौकी से बाहर निकल आया ।
उसने घड़ी देखी, बारह बजने को थे ।
उसने अपनी मोटर साइकिल झेरी के डाकखाने की ओर आने वाली सड़क पर डाल दी ।
झेरी के छोटे से बाजार में से गुजरते समय उसे एक दुकान पर प्रताप चन्द खड़ा दिखाई दिया ।
सुनील ने उसकी बगल में मोटर साइकिल रोक दी और बोला - “प्रताप चन्द जी, नमस्ते ।”
प्रताप चन्द एकदम उसकी ओर घूम पड़ा ।
“मुझे पहचाना आपने ?”
क्षण भर के लिए प्रताप चन्द के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया । फिर वह एकदम बोला - “जी हां, क्यों नहीं । आप सुनील हैं न, ‘ब्लास्ट’ के रिपोर्टर ?”
“एकदम ठीक पहचाना आपने । कहिए क्या हाल है ?”
“दुआ है आपकी ।”
“पार्वती देवी गिरफ्तार हो गई ?” - सुनील बोला ।
“जी हां ।” - प्रताप चन्द दुखपूर्ण स्वर में बोला - “कितने अफसोस की बात है ।”
“आपने तो बहुत कोशिश की उनकी सहायता करने की ।”
“कोशिश क्या साहब, उल्टा मेरी बीवी की करतूत ने तो उन्हें फंसा दिया । अगर मेरी बीवी अपनी जबान बन्द रख पाती तो शहर के इन्सपेक्टर का पार्वती देवी को गिरफ्तार करने का कभी हौसला नहीं होता ।”
“जी हां ।” - सुनील ने स्वीकार किया ।
“हमारे झूठ बोलने से पार्वती देवी का तो कोई भला हुआ नहीं, उलटे शहर का इन्स्पेक्टर मुझे धमकी दे गया है कि वह मुझ पर भी गलत बयानी का मुकद्दमा चलवाएगा । सुनील साहब, मेरी कोई बात नहीं है लेकिन अगर पार्वती देवी को सजा हो गई तो मैं अपनी बीवी को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा ।”
“आप ऐसा क्यों सोचते हैं ? आपकी बीवी ने तो अपनी स्त्री-सुलभ कमजोरी के कारण ही अपनी जबान खोली थी । किसी दुर्भावना के कारण तो उसने ऐसा किया नहीं होगा । और फिर यह जरूरी थोड़े ही है पार्वती देवी दोषी सिद्ध हों ।”
“मैं तो मान नहीं सकता कि पार्वती देवी ने हत्या की हो । वे तो एक मक्खी को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकतीं । मेरे ख्याल से तो वे अपनी बेटी को बचाने के लिए खुद अपनी बलि दे रही हैं ।”
“मुमकिन है ।”
प्रताप चन्द चुप रहा ।
सुनील ने मोटर साइकिल को किक मारी और बोला - “अच्छा प्रताप चन्द जी ।”
“अच्छा ।” - प्रताप चन्द अनमने स्वर से बोला ।
एकाएक सुनील को एक ख्याल आया ।
“एक बात बताइए प्रताप चन्द जी ।” - वह बोला ।
“फरमाइए ।”
“महेश कुमार को जो आपने दो सौ एकड़ जमीन की आप्शन दी हुई थी, अब उसका क्या होगा ?”
“वह आप्शन तो महेश कुमार के साथ ही खत्म हो गई है, साहब ।”
“मतलब यह कि अब आप अपनी जमीन को पहले वाली कीमत पर बेचने के लिए बाध्य नहीं हैं ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । आप्शन तो मैंने महेश कुमार को दी थी । जब वह ही नहीं रहा तो आप्शन कैसी ? अब तो मैं अपनी जमीन किसी को भी किसी भी कीमत पर बेचने के लिए स्वतन्त्र हूं ।”
“कोई आफर आई है क्या आपको ?”
“जी हां, एक दूसरे होटल वाले इस जमीन की बीस गुनी कीमत दे रहे हैं मुझे ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि आपको तो महेश कुमार के मर जाने के बहुत फायदा हुआ ।”
“जी हां ।” - प्रताप चन्द संकोचपूर्ण स्वर से बोला ।
“अच्छा, नमस्ते ।” - सुनील बोला ।”
सुनील ने मोटर साइकिल स्टार्ट की और डाकखाने की ओर बढ गया ।
झेरी के छोटे से डाकखाने में बैंच पर जौहरी बैठा था ।
सुनील को देखकर वह उठ खड़ा हुआ ।
“हैल्लो ।” - सुनील उससे हाथ मिलाता हुआ बोला - “यहां कैसे बैठे हो जौहरी ?”
“रमाकांत के लिए बुक करवाई है । काल लगने की प्रतीक्षा कर रहा हूं ।” - जौहरी बोला ।
“ट्रंककाल के बारे में कुछ पता लगा ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी हां । उसी की सूचना रमाकांत को देने के लिए यहां बैठा हूं ।”
“बाहर आओ ।” - सुनील बोला ।
जौहरी उठकर उसके साथ बाहर आ गया ।
“किसने की थी वह कॉल ?” - सुनील ने उत्सुकता से पूछा ।
“फोर स्टार क्लब में कांता को वह काल राधा ने की थी ।” - जौहरी ने बताया ।
“राधा कौन ?”
“वह नौकरानी जो महेश कुमार के घर में खाना पकाने और सफाई वगैरह करने जाती थी ।”
“श्योर ?”
“डैड श्यौर ।”
“राधा रहती कहां है ?”
“यहां से थोड़ी ही दूर डाकखाने वाली लाइन में मेन रोड पर ही उसका घर है ।”
“तुम्हारे साथ दिनकर भी तो आया था ?”
“हां, मैंने उसे वापिस राजनगर भेज दिया है । अगर मेरी ट्रंक काल से पहले वह यूथ क्लब पहुंच गया तो रमाकांत को वह सूचना दे देगा । मैं यहां इसलिए ठहर गया था कि शायद झेरी में रमाकांत को और काम हो ।”
“तुम वापस कैसे जाओगे ?”
“बस पर चला जाऊंगा । मैं और दिनकर स्कूटर पर आए थे । स्कूटर दिनकर वापस ले गया है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “तुम ऐसा करो जौहरी, पहले तो तुम ट्रंककाल कैंसिल करवा दो । अब उस की जरूरत नहीं । फिर मुझे राधा से मिलवा दो । उसके बाद मैं तुम्हें मोटर साइकिल पर राजनगर ले जाऊंगा ।”
“ओके बाई मी ।” - जौहरी बोला और डाकखाने में घुस गया ।
दो मिनट में ही वह वापस लौट आया ।
सुनील ने मोटर साइकिल स्टार्ट कर दी । जौहरी पीछे बैठ गया ।
“रास्ता बताते रहना ।” - सुनील बोला ।
“सीधे चलते रहिए ।” - जौहरी बोला - “जब राधा का घर आएगा तो मैं बता दूंगा ।”
सुनील ने मोटर साइकिल सड़क पर डाल दी ।
“यहां ।” - एक स्थान पर जौहरी सुनील की पीठ ठोकता हुआ बोला ।
सुनील ने मोटर साइकिल रोक दी । दोनों नीचे उतर आए ।
“जौहरी ।” - सुनील बोला - “हमें राधा से इस प्रकार पेश आना है कि हमें जबान से तो कुछ कहना पड़े लेकिन वह हमें सरकारी आदमी समझे ।”
“अच्छा ।” - जौहरी बोला ।
दोनों राधा के छोटे से मकान के सामने जा पहुंचे ।
सुनील ने धीरे से द्वार खटखटाने के लिए हाथ बढाया ।
“ठहरिए, द्वार मुझे खटखटाने दीजिए ।” - जौहरी उसे रोकता हुआ बोला ।
और उसने इतनी जोर से द्वार भड़भड़ाया जैसे अगर फौरन द्वार नहीं खुला तो वह उसे चौखट से उखाड़ कर फेंक देगा ।
“किसी का द्वार खटखटाने का पुलिस वालों का तरीका यह है ।” - जौहरी बोला - “आप तो शरीफ आदमियों की तरह द्वार खटखटा रहे थे ।”
सुनील हंस पड़ा ।
“कौन है ?” - भीतर से एक स्त्री स्वर सुनाई दिया ।
उत्तर में जौहरी ने फिर द्वार भड़भड़ा दिया और अधिकार पूर्ण स्वर से बोला - “दरवाजा खोलो ।”
द्वार फौरन खुल गया । द्वार पर लगभग तीस साल की औरत खड़ी थी ।
जौहरी ने सुनील को कोहनी से टहोका ।
“तुम्हारा नाम राधा है ?” - सुनील कर्कश स्वर में बोला ।
“जी हां ।” - राधा ने कम्पित स्वर में उत्तर दिया ।
“भीतर चलो ।” - सुनील उसी स्वर से बोला - “हमें तुमसे कुछ बातें करनी हैं ।”
“किस विषय में ?” - राधा ने डरते हुए पूछा ।
“महेश कुमार की हत्या के विषय में ।”
“आप लोग...”
“हां हां, अब ज्यादा सवाल मत करो और रास्ता छोड़ो ।”
राधा एक ओर हट गई ।
दोनों भीतर घुस गए और भीतर जाकर एक चारपाई पर यूं बैठ गए जैसे उनके बाप का घर हो ।
“बैठो ।” - जौहरी अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
राधा एक स्टूल पर बैठ गई ।
“आप... आप पुलिस के आदमी हैं ?” - राधा ने डरते डरते फिर पूछा ।
सुनील ने उसका प्रश्न नजर अन्दाज कर दिया और एकदम तोप मे से छूटे गोले की सी तेजी से बोला - “मंगलवार की रात को, अर्थात जिस रात को महेश कुमार की हत्या हुई थी, तुमने राजनगर के फोर स्टार क्लब में कांता नाम की लड़की को ट्रंक काल की थी ?”
राधा अब सचमुच ही डर गई । उसका शरीर पत्ते की तरह कांपने लगा ।
“जी... जी...” - वह हकलाई ।
“उस ट्रंककाल में तुमने कांता को केवल ‘आ जाओ’ कहा था और फोन बन्द कर दिया था ।”
“आप... आपको कैसे मालूम ?”
“हमें सब कुछ मालूम है । तुम जवाब दो, तुमने काल की थी या नहीं ?”
“की थी ।” - राधा ने स्वीकार किया ।
“तुमने कांता को झेरी आने के लिए कहा था ?”
“जी हां ।”
“क्यों ?”
राधा चुप रही ।
“क्यों ?” - सुनील गरजा ।
“क्योंकि कांता की महेश बाबू ने शादी होने वाली थी । कांता ने मुझसे कहा था कि अगर कभी महेश बाबू के पास कोई लड़की रात को देर तक रहे और मुझे उस लड़की या महेश बाबू की नीयत में कोई फर्क आता दिखाई दे तो मैं फौरन उसे ट्रंक-काल कर दूं ।”
“उसने कहा और तुमने मान लिया !” - जौहरी बोला ।
राधा दृष्टि झुका कर बोला - “कांता मेम साहब ने मुझे पचास रुपये दिये थे ।”
“और बाद में और भी देने का वादा किया था ?”
राधा ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“कितने ?”
“पचास रुपये ।”
“तुम्हारी ट्रंक काल...” - सुनील बोला - “कांत ने बारह बजने से कुछ मिनट पहले, रिसीव की थी । वह फौरन ही वहां से चल दी थी । झेरी कितने बजे पहुंची थी वह ?”
“दो बजे के करीब ।”
“फिर ?”
“मैं यहां खिड़की पर बैठी थी । मुझे कांता की कार दिखाई दी तो मैं बाहर निकल आई । कांता ने मुझे अपने साथ आने के लिए कहा । मैं जाना नहीं चाहती थी लेकिन कांता के बार-बार कहने पर इन्कार न कर सकी । मैं कार में बैठ गई । कांता ने कार चला दी और महेश बाबू के काटेज की ओर चल दी । काटेज से थोड़ी दूर रास्ते में मुझे मंजुला की कार खड़ी दिखाई दी । मैंने कांता को बताया कि वह उसी लड़की की कार थी जो महेश बाबू के साथ थी । कांता पहले ही क्रोध से उबल रही थी, कार की बात सुनकर वह और भी भड़क उठी ।”
“क्यों ?”
“वह तो समझती थी कि महेश बाबू ने कोई झेरी की मामूली लड़की या कोई कालगर्ल शहरी लड़की बुला रखी होगी लेकिन कार देखकर तो उसे ऐसा लगा कि वह लड़की हर प्रकार से सम्पन्न थी । उसे चिन्ता यह थी कि ऐसी लड़की के चक्कर में पड़ कर कहीं महेश बाबू कांता से शादी का इरादा छोड़ न दे ।”
“फिर ?”
“कांता ने अपनी कार मंजुला की कार के समीप खड़ी कर दी और नीचे उतर पड़ी ।”
“और तुम ?”
“मैं कार में ही बैठी रही । और साहब मैं कसम खा कर कहती हूं कि उसके लौट आने तक मैं एक क्षण के लिए भी कार से नीचे नहीं उतरी ।”
“अच्छा, फिर ?”
“कांता नीचे उतरी और कार का निरीक्षण करने लगी । उसने देखा कार पंक्चर थी । वह कार की ड्राइविंग सीट वाला द्वार खोल कर कार के भीतर घुस गई । कुछ देर वह कार को भीतर से देखती रही और फिर निकल आई । उसने मुझे कहा कि वह काटेज में जा रही थी और मैं वहीं ठहरूं ।”
“मंजुला की कार के डैश बोर्ड में बने कम्पार्टमेंट को खोला था उसने ?”
“सम्भव है खोला हो मैंने देखा नहीं था ।”
“कांता फिर महेश कुमार के काटेज में गई ?”
“जी हां वह पैदल ही महेश कुमार के काटेज में गई थी । उसके काटेज में घुसने के थोड़ी देर बाद ही मुझे एक गगन भेदी चीख की आवाज सुनाई दी थी और फिर वह यूं भागती हुई काटेज से बाहर निकली थी जैसे भूत देख लिया हो । वापिस आकर वह फौरन अपनी कार के स्टियरिंग पर बैठ गई । उसने कार को यू टर्न दिया और पूरी रफ्तार से वापिस भाग निकली । रास्ते में उसने मुझे बताया कि महेश कुमार अपने काटेज में मरा पड़ा था । किसी ने उसे गोली मार दी थी ।”
“फिर ?”
“उसने मुझे मेरे घर के सामने उतार दिया । उसने मुझे कहा कि मैं इस विषय में अपनी जबान बन्द रखूं तो किसी को यह पता नहीं लगेगा कि वह हत्या की रात को झेरी में आई थी । मैंने उसे चुप रहने का वादा किया और फिर वह वापिस चली गई । अब आप लोगों को पता नहीं इस बात की जानकारी कैसे हो गई है ।”
“हमारा तो काम ही बातों की जानकारी हासिल करना है ।” - जौहरी शान से बोला ।
“कांता महेश कुमार के काटेज में कितनी देर ठहरी थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“अधिक से अधिक एक मिनट । लाश देखते ही वह उल्टे पांव वापिस लौट आई थी ।”
“इतने समय में क्या तुमने गोली चलने की आवाज सुनी थी ?”
“मुझे ध्यान नहीं । मैं गोली की आवाज नहीं पहचानती । अगर गोली चली भी होगी तो मुझे पता नहीं लगा होगा ।”
“तुमने मंजुला की कार का दरवाजा खोला था ?”
“नहीं, साहब । मैंने आपको पहले ही बताया है, मैंने तो कांता की कार के बाहर कदम भी नहीं रखा था ।”
“तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ, वह चीख कांता की थी ?”
“मेरा ख्याल है । उसे समय और तो किसी के काटेज में होने की सम्भावना नहीं थी । अगर कोई होता तो कांता ने उसका जिक्र किया होता । जिस ढंग से वह भागती हुई बाहर निकली थी उससे तो यही लगता था कि कांता चीखी थी ।”
सुनील ने जौहरी को संकेत किया । और फिर दोनों उठ खड़े हुए ।
“मेरे पर तो काई मुसीबत नहीं आएगी, साहब ?” - राधा ने डरते हुए पूछा ।
“अगर तुम सच बोल रही हो तो तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है । अगर कांता से रुपये लेकर उसे बचाने की खातिर झूठ बोल रही हो तो तुम भी फंस जाओगी ।”
“मैं सच बोल रही हूं ।”
“फिर तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है ।”
दोनों बाहर निकल आए । और मोटर साइकिल पर आ बैठे ।
सुनील ने मोटर साइकिल राजनगर की ओर जाने वाली सड़क पर डाल दी ।
“राधा के बयान में तो ऐसा नहीं लगता कि कांता ने हत्या की है ।” - जौहरी बोला ।
“अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, प्यारे । फिलहाल तो तेल देखो और तेल की धार देखो ।”
जौहरी चुप हो गया ।
***
तीन बजने से थोड़ी देर पहले सुनील ने ‘ब्लास्ट’ के आफिस के सामने मोटर साइकिल रोक दी । जौहरी रास्ते में ही उतर गया था ।
वह ‘ब्लास्ट’ की इमारत में घुस गया और सीढियों के रास्ते पहली मन्जिल पर जा पहुंचा ।
रिसेप्शनिस्ट कम टेलीफोलन आपरेटर रेणु ने उसे देखा और बड़े मुहब्बत भरे अन्दाज में बोली - “आजकल कहां रहते हो ?”
“जहन्नुम में ।” - सुनील बोला ।
“हाय मैं मर जाऊं ।” - रेणु आह भरकर बोली - “ऐसी शानदार जगह से वापिस क्यों लौट आए हो ?”
“बताऊं ।” - सुनील आंखें तरेरता हुआ बोला ।
“मेरे पास मत आना । वहीं खड़े-खड़े बताओ ।” - रेणु डरने का अभिनय करता हुई बोली ।
“लेकिन जो भाषा तुम समझती हो, वह इतनी दूर से तो बोली नहीं जा सकती न !”
“मुझे माफ करो । मुझे नहीं सुननी वह भाषा ।”
“सोच लो ।”
“सोच लिया ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला और वहां से आगे बढ गया ।
वह न्यूज एडीटर राय के कमरे में पहुंचा ।
“आओ सुनील ।” - राय उसे देखकर आंखों से चश्मा उतारता हुआ बोला ।
“ईवनिंग न्यूज प्रेस में जाने में अभी कितनी देर है ?”
राय ने घड़ी पर दृष्टिपात किया और बोला - “लगभग एक घण्टा ।”
“मैं अभी एक रिपोर्ट लिख कर ला रहा हूं । वह फ्रंट पेज पर जानी चाहिए ।”
“फ्रंट पेज पर ? कैसी रिपोर्ट है ?”
“महेश कुमार की हत्या के बारे में ।”
“हत्या हुए अड़तालीस घण्टे होने को आए हैं । अब फ्रंट पेज पर जाने के लायक क्या रह गया और उसमें ? विशेष रूप से जब कि हत्यारा गिरफ्तार भी हो चुका है ।”
“मैं डायानामाईट ला रहा हूं ।” - सुनील बोला - “मेरी रिपोर्ट पुलिस की थ्योरी को भक्क से उड़ा देगी ।”
“अच्छा ?”
“हां ।”
“तो फिर खड़े-खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो ? शुरू हो जाओ ।”
“मेरी रिपोर्ट का इन्तजार करना ।” - सुनील बोला और वहां से निकलकर अपने केबिन में आ गया ।
वह अपनी सीट पर जमकर बैठ गया ।
उसने एक्सटेन्शन टेलीफोन का रिसीवर उठाया और बोला - “रेणु, यूथ क्लब में मिला दो । जल्दी ।”
थोड़ी देर बाद उसके कान में रमाकांत की आवाज पड़ी ।
“रमाकांत, मैं सुनील बोल रहा हूं । अंगूठे के निशान का पता चला ?”
“सुनील, अंगूठे का निशान कान्ता का है ।” - रमाकांत की आवाज आई ।
“मेरा भी यही ख्याल था ।”
“कैसे ?”
“जौहरी से पूछना ।”
और उसने टेलीफोन रख दिया ।
उसने अपने सामने कुछ नोट शीट सरका लीं और पैन लेकर उन पर लिखने लगा ।
मशीन की तेजी से सुनील के मन के भाव कागज पर उतरने लगे ।
लगभग साढे तीन बजे उसने रिपोर्ट तैयार कर ली और रिपोर्ट को ले जाकर मेज पर रख दिया ।
“हैडलाईन जोरदार लगाना ।” - सुनील बोला ।
“इसे री राईट करने की जरूरत है ?” - राय ने पूछा ।
“पढकर देख लो ।”
“ओके ।” - राय बोला - “तुम अपने केबिन में बैठो । आधे पौन घण्टे में मैं तुम्हें पेपर की प्रूफ कापी भेजता हूं ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला और अपने केबिन में वापिस आ गया ।
उसने लक्की स्ट्राईक का एक सिगरेट सुलगाया और प्रतीक्षा करने लगा ।
ठीक चालीस मिनट के बाद चपरासी उसे पेपर की प्रूफ-कापी दे गया ।
सुनील ने देखा, मुख्य पृष्ठ पर मोटे अक्षरों में लिखा था:
क्या झेरी हत्याकांड का रहस्य वाकई खुल गया है ?
क्या पुलिस ने महेश कुमार का सही हत्यारा गिरफ्तार किया है ?
क्या पार्वती ने हमेश कुमार की हत्या की है ? नीचे ब्रैकिट में लिखा था:
(हमारे विशेष प्रतिनिधि सुनील कुमार चक्रवर्ती द्वारा)
मंगलवार की रात को झेरी के इलाके में हुई महेश कुमार की हत्या की तफ्तीश के दौरान पुलिस ने अपनी सूझ-बूझ का कम और जल्दबाजी का ज्यादा परिचय दिया है । केस के सम्बन्धित कितने ही महत्वपूर्ण सूत्रों का या तो पुलिस ने जिक्र ही नहीं किया है और या फिर पुलिस को उनकी जानकारी ही नहीं हो पाई है ।
पुलिस क्योंकि पार्वती को हत्यारी समझती है और उसे गिरफ्तार कर चुकी है । इसलिए यह केवल उन्हीं सूत्रों को प्रकाश में ला रही है जो कि पार्वती के विरुद्ध केस को और भी मजबूत कर सकते हैं । यही कारण है कि पुलिस द्वारा केस के कितने ही पहलुओं पर तफ्तीश करने की जरूरत ही नहीं समझी गई है ।
हम यह दावा नहीं करते हैं कि पार्वती हत्यारी नहीं है ।
सम्भव है हत्या उसी ने की हो लेकिन उसके विरुद्ध कोई ठोस सबूत नहीं है । पार्वती के कुछ एक्शन भारी सन्देहजनक थे इसलिए पुलिस उसे हत्यारी समझ रही है लेकिन वे एक्शन ऐसे नहीं हैं जो पार्वती को निर्विवाद रूप से हत्यारी सिद्ध कर सकें । हत्या के समय मात्र घटनास्थल पर देखा जाना यह सिद्ध नहीं करता कि पार्वती हत्यारी है । पार्वती के जूतों पर महेश कुमार के खून के निशान और फिर मंजुला द्वारा उस जूतों को छुपाने का उपक्रम एक भारी गलतफहमी का परिणाम भी हो सकते हैं ।
स्मरण रहे पुलिस के पास ऐसा कोई गवाह नहीं है जिसने पार्वती को रिवाल्वर थामे, या महेश कुमार पर गोली चलाते या बाद में रिवाल्वर झाड़ियों में फेंकते देखा है ।
पार्वती के विरुद्ध जिस प्रकार के और जितने सबूत पुलिस के पास हैं उससे कहीं अधिक और कहीं ठोस सबूत तो इन पंक्तियों के लेखक ने कान्ता नाम की उस लड़की के विरुद्ध खोज निकाले हैं जो राजनगर की फोर स्टार क्लब में रहती है, जो महेश कुमार की मंगेतर है और जिसके बारे में पुलिस को रत्ती भर भी जानकारी नहीं है इसलिए नहीं है क्योंकि पार्वती को गिरफ्तार कर लेने के बाद पुलिस ने केस के प्रति अपनी जिम्मेदारी समाप्त प्राय समझ ली और केस के किसी नये पहलू पर तफ्तीश करने की जरूरत ही नहीं समझी ।
कान्ता एक बड़ी दम्भ भरी और चिड़चिड़े स्वभाव वाली लड़की है । अपने होने वाले पति को दूसरी लड़कियों के साथ अठखेलियां करते देख कर उसे क्रोध आ जाना स्वाभाविक है । ऐसी लड़कियां क्रोध के आवेग में अन्धी हो जाती हैं और हत्या जैसा जघन्य अपराध करने से भी नहीं चूकती हैं ।
इन पंक्तियों का लेखक निर्विवाद रूप से यह सिद्ध कर सकता है कि हत्या की रात को, हत्या के समय, कान्ता घटनास्थल पर मौजूद थी ।
घटनास्थल पर सड़क पर खड़ी मंजुला की पंक्चर कार के पास एक ऐसी कार के टायरों के निशान पाए गए हैं जिसका बायां पिछला टायर थोड़ा सा कटा हुआ है । टायरों के निशानों में गीली सड़क पर टायर के उस कटे हुए भाग का निशान स्पष्ट दिखाई देता है । पुलिस ने इस सूत्र की ओर कतई ध्यान नहीं दिया था लेकिन ब्लास्ट के प्रतिनिधि के उपक्रमों से मालूम हुआ है कि ऐसी फियेट कार कान्ता के पास है ।
और पुलिस को मालूम होना चाहिए कि पिछली रात को कान्ता ने अपनी कार को राक्सी मोटर्स के गैरेज में ले जाकर उसके चारों टायर बदलवा डाले हैं ताकि घटना स्थल पर मिले टायर के निशानों का सम्बन्ध कभी भी उसके साथ न जोड़ा जा सके ।
घटना स्थल पर कान्ता की मौजूदगी सिद्ध करने वाला यह ही अकेला सबूत नहीं है ।
रात के बारह बजे से पहले कान्ता को झरी से एक ट्रंककाल आई थी जिसमें केवल दो शब्द कहे गये थे । वे शब्द थे - ‘आ जाओ’ । कान्ता ट्रंककाल रिसीव करने के फौरन बाद अपनी कार लेकर क्लब से बाहर जाती देखी गई थी ।
झेरी में महेश कुमार की नौकरानी राधा ने हमारे प्रतिनिधि के सामने स्वीकार किया है कि उसी ने कान्ता को ट्रंककाल की थी । कान्ता ने उसे रुपये देकर महेश कुमार की निगरानी के लिए तैयार किया हुआ था । ताकि जब भी कोई लड़की देर तक महेश कुमार के साथ ठहरे, राधा कान्ता को सूचित कर दे ।
राधा इस बात की गवाह है कि उस रात दो बजे के करीब कान्ता झेरी में पहुंची । कान्ता राधा को लेकर महेश कुमार के काटेज की ओर चल दी । रास्ते में उन्हें मंजुला को पंक्चर गाड़ी खड़ी दिखाई दी । कान्ता कार से उतरी । उसने मंजुला की कार का द्वारा खोल कर भीतर झांका । कार के डैश बोर्ड में बने कम्पार्टमेंट में उसे एक रिवाल्वर दिखाई दी । कान्ता ने चुपचाप रिवाल्वर निकाला और फिर क्रोध से उबलती हुई राधा को वहीं छोड़ कर पैदल ही महेश कार के काटेज की ओर चल दी । वहां पहुंचने पर उसकी महेश कुमार से झड़प हो गई । शायद कुछ छीना झपटी भी हुई जिसके कारण शीशे वगैरह टूटे फिर कान्ता ने महेश कुमार को गोली से उड़ा दिया और वापिस लौट आई । कार के समीप आकर उसने चुपचाप रिवाल्वर झाड़ियों में उछाल दी और कार में बैठकर वापिस लौट आई ।
बाद में शायद पार्वती वहां पहुंची । मृत महेश कुमार को देख कर उसकी चीख निकल गई और वह उल्टे पांव वापिस लौट आई । लौटने से पहले काटेज में महेश कुमार की कुर्सी के आस-पास फर्श पर फैला हुआ खून उसके जूतों में लग गया ।
इस थ्योरी की सत्यता को सिद्ध करने वाला सबसे बड़ा सबूत है मंजुला की कार की ड्राईविंग सीट के द्वार के हैंडिल पर मिला अंगूठे का निशान जिसके विषय में अभी भी पुलिस कुछ नहीं जान पाई है और इसीलिए उसका जिक्र भी नहीं कर रही है ।
ब्लास्ट का चेलेंज है कि अंगूठे का वह निशान कान्ता का है ।
हम यह नहीं कहते कि पुलिस पार्वती को निरपराध समझकर मुफ्त कर दे । हम तो पुलिस का ध्यान कान्ता की ओर आकर्षित करना चाहते हैं क्योंकि उस पर भी हत्या का उतना ही तगड़ा सन्देह किया जा सकता है जितना पार्वती पर ।
पार्वती पर केस चलाने से पहले अगर पुलिस ने कान्ता को चैक नहीं किया तो इसका मतलब यह होगा कि पुलिस अधिकारी जानबूझकर अपने किसी निजी स्वार्थ के कारण पार्वती को सजा दिलवाने में दिलचस्पी रखते हैं और कान्ता को जानबूझकर जनता की जानकारी से दूर रखना चाहते हैं ।
आशा है सम्बन्धित पुलिस अधिकारी इस ओर ध्यान देंगे ।
सुनील ने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और अखबार रख दिया ।
उसने काल बैल बजाई ।
चपरासी उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“अखबार छप गया हो तो उसकी एक कापी लेकर आओ ।” - सुनील बोला ।
“अच्छा साहब ।” - चपरासी बोला और कैबिन से बाहर चला गया ।
सुनील ने एक कागज लिया और उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया -
टु कान्ता,
विद दि काम्पलीमेन्टस आफ सुनील कुमार ‘दि फूल’
चपरासी अखबार ले आया ।
सुनील ने वह कागज अखबार के ऊपरी भाग में पिन कर दिया और अखबार वापिस चपरासी को थमाता हुआ बोला - “इसे एक लिफाफे में रख लो और फोर स्टार क्लब में मिस कान्ता को दे आओ । कहना, सुनील साहब ने भेजा है ।”
“अच्छा साहब ।” - चपरासी बोला और बाहर चला गया ।
सुनील चुपचाप बैठा रहा ।
उसने चिंगारी लगा दी थी । अब शोल भड़कने का इन्तजार था ।
***
‘ब्लास्ट’ का ईवनिंग एडीशन सड़क पहुंचने के आधे घन्टे बाद ही प्रभूदयाल भड़कता हुआ ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में आ धमका ।
वह सीधा सुनील के केबिन में पहुंचा ।
“आइये, इन्सपेक्टर साहब ।” - सुनील उसे देखकर मुस्कराता हुआ बोला ।
प्रभूदयाल ने अपने हाथ में थामा हुआ अखबार सुनील के सामने मेज पर पटका और धम्म से एक कुर्सी पर बैठता हुआ बोला - “यह क्या हंगामा है ?”
“कौन सा हंगामा ?” - सुनील ने विनोदपूर्ण स्वर में पूछा ।
“यह क्या छाप दिया तुमने ?”
“तुम्हें क्या दिखाई देता है ?”
“कान्ता के बारे में जो कुछ तुमने छापा है, वह सब सच है ?”
“अगर तुम्हें शक है तो तुम चैक क्यों नहीं कर लेते ?”
“वह तो मैं करूंगा ही । फिलहाल मैं तुमसे पूछ रहा हूं ।”
“जो मैंने छापा है, वह सच है ।”
“तो तुम यह दावा कर रहे हो कि हत्या कान्ता नाम की लड़की ने की है, पार्वती ने नहीं ?”
“मैं कोई दावा नहीं कर रहा हूं । मेरा अनुमान है कि हत्यारी कान्ता भी हो सकती है और हर ‘ब्लास्ट’ पढने वाले पर अपना अनुमान प्रकट करने का मुझे पूरा हक है ।”
“लेकिन तुमने अपने अनुमान को पुलिस पर एक चैलेंज की सूरत में उछाला है ।”
“तो फिर कौन सी आफत आ गई है ?”
“अगर केस से सम्बन्धित तुम्हें कोई ऐसी तगड़ी बात मालूम थी तो उसे अखबार में छापने से पहले तुम्हें पुलिस को सूचित करना चाहिए था ।”
“क्यों करना चाहिए था, साहब ?” - सुनील उखड़कर बोला - “मैं नौकरी अपने अखबार की करता हूं या पुलिस की ?”
“लेकिन हत्या के केस से सम्बन्धित हर बात हमारी जानकारी में आनी चाहिए ।”
“यह बात भी तुम्हारी जानकारी में आ तो गई है । तभी तो यहां दौड़े चले आए हो ।”
“कान्ता के बारे में सारे तथ्य सीधे हमारे पास पहुंचने चाहिए थे, अखबार के माध्यम से नहीं ।”
“अपना-अपना ख्याल है ।” - सुनील लापरवाही से बोला - “जो बात हमारी नजर में पुलिस से पहले आई है, उसे हम ही पहले इस्तेमाल करेंगे ।”
प्रभूदयाल क्षण भर तिलमिलाया और बोला - “एक अच्छे नागरिक के नाते तुम्हें पुलिस को सहयोग देना चाहिए ।”
“तुम्हें भी तो एक अच्छे पुलिस अफसर के नाते प्रेस को सहयोग देना चाहिए । तुम तो क्रानिकल के रिपोर्टरों के अलावा किसी से बात न करो और हम अपने प्रयत्नों के फल थाली में सजाकर पहले तुम्हें पेश कर दें ।”
“कान्ता तुम पर मानहानि का मुकद्दमा दायर कर सकती है ।”
“कर सकती है । अगर समझकर औरत होगी तो करेगी नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि जो कुछ हमने छापा है वह अक्षरशः सच है ।”
उसी क्षण सुनील की एक्सटेन्शन लाईन की घन्टी बज उठी ।
सुनील ने रिसीवर उठा लिया और बोला - “यस ।”
“सोनू ।” - दूसरी ओर से रेणु का स्वर उसके कान में पड़ा - “एक कान्ता नाम की लड़की तुमसे फौरन मिलना चाहती है ।”
“उसे यहां भेज दो ।”
“ओके लेकिन सोनू...”
“क्या ?”
“वह मेरे से ज्यादा खूबसूरत नहीं है ।”
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
वह प्रतीक्षा करने लगा ।
कुछ ही देर में चपरासी कान्ता को सुनील के केबिन में छोड़ गया ।
“कांता सूरत से बेहद परेशान नजर आ रही थी । उसके हाथ में ‘ब्लास्ट’ की वह प्रति थमी हुई थी जो सुनील ने चपरासी द्वारा उसे भिजवाई थी । उसने एक उड़ती सी दृष्टि प्रभूदयाल और सुनील दोनों पर डाली और फिर वह संदिग्ध स्वर में सुनील से बोली - “आप ही सुनील साहब हैं ?”
“जी हां ।” - सुनील बोला - “सुनील मेरा ही नाम है । तशरीफ रखिये ।”
कान्ता ने बैठने का उपक्रम नहीं किया । वह बोली - “मेरा नाम...”
“मैं जानता हूं आपको । आप तशरीफ तो रखिए ।”
कांता ने एक बार प्रभूदयाल को देखा और फिर धीरे से बोली - “मैं आपसे अकेले में बात करने चाहती हूं ।”
प्रभूदयाल संकेत को समझ गया और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।
“बैठो प्रभू ।” - सुनील बोला - “वर्ना तुम बाद में कहोगे कि मैंने जानबूझ कर तुम्हें कान्ता से नहीं मिलाया ।”
“यह... यह कांता है ?” - प्रभू हैरानी से बोला ।
“हां” - सुनील बोला - “और मेम साहब, ये इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल हैं । आपके मंगेतर की हत्या की तफ्तीश यही कर रहे हैं ।”
कांता और भयभीत दिखाई देने लगी ।
“बैठ जाइए आप लोग ।” - सुनील बोला ।
प्रभूदयाल और कांता दोनों बैठ गए ।
“फरमाइये !” - सुनील कांता से बोला ।
कांता चुप रही । शायद वह एक पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में सुनील से बातचीत करने में दिक्कत अनुभव कर रही थी ।
“इन्स्पेक्टर के सामने बात करने में कोई हर्ज नहीं है ।” - सुनील बोला - “अखबार इन्होंने भी पढा है । ये भी आप ही की तलाश करने वाले थे । क्यों, इन्स्पेक्टर साहब ?”
“पहले मैं आप से अपने भद्दे व्यवहार की माफी चाहती हूं ।” - कांता कम्पित स्वर में बोली ।
“उसे छोड़िए । माफी मांगने की स्टेज से काफी आगे गुजर चुकी हैं आप ।”
“फिर भी मैं...”
“छोड़िये । आप माफी केवल इसलिए मांग रही हैं क्योंकि मैंने आपके बारे में बड़ी भयानक बातें खोज निकाली हैं । वर्ना आपकी नजर में उस सुनील में जिसे आपने फोन पर मूर्ख कहा था और इस सुनील में जो आपके सामने बैठा है, कोई विशेष अन्तर नहीं है ।”
कांता रुआंसे स्वर से बोली - “मेरी आप से क्या दुश्मनी थी जो आपने मेरे बारे में इतना जहर उगल दिया ?”
“सवाल दुश्मनी का नहीं, सिद्धान्त का है । मैंने आपको स्थिति के स्पष्टीकरण का मौका दिया लेकिन आपने उस मौके का फायदा उठाने के स्थान पर मुझे मूर्ख की उपाधि दे डाली । अब किसी प्रकार तो मुझे सिद्ध करना ही था की मैं मूर्ख नहीं हूं । जो कुछ मैंने आप द्वारा स्वयं को मूर्ख कहे जाने के बाद जाना, अगर आप मुझ से ढंग से पेश आई होतीं तो वे बातें मैं पहले आपको बताता और बाद में अखबार में छापने के बारे में सोचता और अगर मुझे आपका स्पष्टीकरण सन्तोषजनक लगता तो सम्भव है वे बातें कभी अखबार में छपती नहीं । लेकिन अब...”
और सुनील ने कन्धे उचका दिए ।
“लेकिन जो कुछ आपने छापा है, वह सच नहीं है ।” - कांता बोली ।
“उसका एक-एक शब्द सच है । मैं सिद्ध कर सकता हूं ।”
“बातें सच हैं लेकिन उन से नतीजा आपने निकाला है वह सत्य नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“मैंने महेश कुमार की हत्या नहीं की है ।”
एकाएक प्रभूदयाल बोल उठा - “मेरी बात सुनिए ।”
“फरमाइए ।” - कांता उसकी ओर मुड़ी ।
“आप स्वीकार करती हैं कि हत्या की रात को राधा ने आप को ट्रंककाल की और आप आधी रात को अपनी कार से झेरी गई और फिर...”
“जो कुछ ‘ब्लास्ट’ में छपा है, मैं वह सब स्वीकार करती हूं, लेकिन मैं भगवान की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि मैंने महेश कुमार की हत्या नहीं की । जिस समय मैं काटेज में पहुंची थी, उस समय वह मरा पड़ा था ।”
“आपने उसे नहीं मारा ?”
“सवाल ही पैदा नहीं होता । मैं तो महेश कुमार से मुहब्बत करती थी, इन्स्पेक्टर साहब । मैं उससे शादी करने वाली थी । मैं भला उसकी हत्या क्यों करती ?”
“फिर आपने राधा से क्यों कहा था कि अगर महेश कुमार के पास कोई लड़की रात को ठहरे तो वह आपको फोन कर दे ?” - प्रभू ने पूछा ।
“क्योंकि मैं महेश कुमार को रंगे हाथों पकड़कर उसे शर्मिन्दा करना चाहती थी ।”
“आपने सड़क के किनारे खड़ी मंजुला की कार की तलाशी भी तो ली थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी हां, मैंने उस कार की एक-एक चीज देखी थी ।”
“फिर तो आपने कार के डैशबोर्ड के कम्पार्टमेन्ट में रखी रिवाल्वर भी देखी होगी ?”
“मैंने वह कम्पार्टमेंट देखा था लेकिन वह खाली था । उसमें कोई रिवाल्वर नहीं थी ।”
“आप सच कह रही हैं ?”
“मैं शत-प्रतिशत कह सच रही हूं । कार में कोई रिवाल्वर नहीं थी । इसलिए मेरा काटेज में रिवाल्वर लेकर जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता । और फिर मैं तो वहां मुश्किल से एक मिनट ठहरी थी । महेश कुमार की लाश पर नजर पड़ते ही मेरे मुंह से चीख निकल गई थी । मैं उल्टे पांव वापिस हो गई थी । राधा मेरी हर गतिविधि की गवाह है । आप उससे पूछ लीजिए । उसने चीख की आवाज सुनी थी गोली की नहीं ।”
“आपने पुलिस को रिपोर्ट क्यों नहीं की थी ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“और बाद में अपनी कार के टायर क्यों बदलवाये ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्योंकि मैं बुरी तरह डर गई थी । मुझे डर था कि कहीं उस स्थिति में लोग मुझे हत्यारी न समझ बैठें ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि काटेज और पंक्चर कार के बीच फैले दोहरे कदमों के निशान आपके थे ।” - सुनील बोला ।
“जी हां ।”
“अब तो तुम्हें अपनी थ्योरी की टांग टूटती महसूस होती होगी, प्रभू ।” - सुनील प्रभूदयाल से बोला ।
“क्यों ?” - प्रभूदयाल बोला - “कांता के बयान से तो मेरी थ्योरी की पुष्टि होती है । कांता कहती है रिवाल्वर मंजुला की कार में नहीं थी । मैं भी यही कहता हूं । कांता के घटना स्थल पर पहुंचने से कुछ समय पहले पार्वती घर से रिवाल्वर लेकर पगडण्डी के रास्ते महेश कुमार के काटेज पहुंची, वहां उसने महेश कुमार को गोली मार दी पगडण्डी के रास्ते ही वापिस लौट आई ।”
“फिर रिवाल्वर कार के पास झाड़ियों में कैसे पहुंच गई ? अगर काटेज और कार के बीच कदमों के निशान कांता के हैं तो इसका मतलब तो यह हुआ कि पार्वती तो कार के पास गई नहीं और काटेज के पास खड़े होकर दो सौ गज दूर रिवाल्वर फेंक पाना पार्वती जैसी वृद्धा के लिए असम्भव है ।”
प्रभूदयाल चुप रहा । प्रत्यक्ष था उसके पास इसका कोई जवाब नहीं था ।
“लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि अगर हत्या पार्वती ने भी नहीं की तो किसने की ?” - सुनील बड़बड़ाया ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
“आप एकदम सच बोल रही हैं ?” - उसने कांता से पूछा ।
उत्तर में कांता की आंखों से दो आंसू ढलक पड़े ।
“प्रभू !” - सुनील प्रभूदयाल से बोला ।
“हां ।”
“मेरी एक इच्छा है ।”
“क्या ?”
“मुझे महेश कुमार के काटेज का वह हिस्सा दिखा सकते हो जिसमें हत्या हुई थी ?”
“उससे क्या होगा ?”
“सम्भव है कोई सूत्र मिल जाए ।”
“मैंने उस कमरे की बड़ी बारीकी से जांच की है । कोई सूत्र मिलने की सम्भावना नहीं है ।”
“फिर भी एक बार मुझे वह जगह दिखा देने में हर्ज क्या है । मेरी तसल्ली हो जाएगी ।”
“हर्ज तो नहीं है लेकिन... अच्छा चलो ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“आप भी चलिए ।” - प्रभूदयाल कांता से बोला - “राधा की मौजूदगी में आपके बयान की पुष्टि हो जाएगी ।”
“मुझे कोई एतराज नहीं है । चलिए ।” - कांता बोली ।
तीनों सुनील के केबिन से बाहर निकल आए ।
“मैं जीप लाया हूं ।” - प्रभूदयाल ने बताया ।
तीनों ‘ब्लास्ट’ के आफिस से बाहर निकल आए और पुलिस की जीप में आ बैठे ।
“झेरी चलो ।” - प्रभूदयाल ड्राइवर से बोला ।
ड्राइवर ने जीप स्टार्ट कर दी ।
***
प्रभूदयाल ने महेश कुमार के काटेज में उसके कमरे का द्वार खोलते ही बताया - “कमरे की हर चीज ज्यों की त्यों रखी हुई है । केवल कुर्सी पर से महेश कुमार की लाश उठवा दी गई है ।”
सुनील और कान्ता चुप रहे ।
प्रभूदयाल ने दरवाजा खोला और कमरे की बत्ती जला दी ।
सुनील बड़ी सावधानी से भीतर घुसा और बड़ी बारीकी से कमरे का निरीक्षण करने लगा ।
कमरा कांच के टुकड़ों से भरा पड़ा था । खिड़की के समीप नीचे फर्श पर उस शीशे का चांदी का फ्रेम पड़ा था जो खिड़की से टकराकर चकनाचूर हो गया था ।
कुर्सी की पीठ खिड़की की ओर थी और खिड़की और कुर्सी में कम से कम छः फुट का फासला था ।
सुनील ने आगे बढकर चांदी का फ्रेम उठा लिया ।
रमाकांत की रिपोर्ट सच थी । फ्रेम वाकई चौदह पन्द्रह सेर से कम वजन का नहीं था ।
सुनील ने चुपचाप फ्रेम वहीं रख दिया ।
“तुम्हारी थ्योरी तो मैं अब भी फेल कर सकता हूं, प्रभूदयाल ।” - अन्त में सुनील बोला ।
“कैसे ?” - प्रभूदयाल ने नाराज स्वर से पूछा ।
“यह कुर्सी अपनी पोजीशन से हिलाई तो नहीं गई है ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारा कहना है महेश कुमार ने आत्मरक्षा के लिए यह चांदी का शीशा हत्यारे को फेंक कर मारा लेकिन यह हत्यारे को लगने के स्थान पर खिड़की से जा टकराया ।”
“हां । क्या खराबी है इसमें ?”
“इसका मतलब यह हुआ कि हत्यारा खिड़की और महेश कुमार के बीच में था ।”
“हां ।”
“लेकिन महेश कुमार की पहियों वाली कुर्सी की पीठ खिड़की की ओर है और तुम कहते हो कि कुर्सी की पोजीशन हिलाई नहीं गई है । इसका मतलब यह हुआ कि महेश कुमार खिड़की और हत्यारे की ओर पीठ करके बैठा हुआ था । क्या कोई ऐसा आदमी जिसकी टांग पर प्लास्टर चढा हुआ हो, अपनी पीठ पीछे एक पन्द्रह सेर वजन का शीशा इतनी जोर से उछाल कर फेंक सकता है कि खिड़की के इस बुरी तरह परखच्चे उड़ जाएं ?”
प्रभूदयाल सोचने लगा ।
“और अगर बहस के लिए मान भी लिया जाए कि ऐसा हो गया और वह भारी शीशा हत्यारे से टकराने के स्थान पर खिड़की से जा टकराया और फिर हत्यारे ने महेश कुमार पर गोली चला दी । ऐसी सूरत में गोली महेश कुमार की पीठ में धंसी होनी चाहिए थी न कि छाती में ।”
“सम्भव है पहले महेश कुमार खिड़की की ओर मुंह करके बैठा हुआ हो ।” - प्रभूदयाल बोला - “उसने हत्यारे को रिवाल्वर निकालता देखकर अपने बचाव के लिए हत्यारे को शीशा फेंक कर मारा हो लेकिन निशाना चूक गया हो । उसके बाद आतंकित होकर महेश कुमार कुर्सी घुमाने लगा हो और उसी समय गोली उसकी छाती से टकराई हो और महेश कुमार के प्राण निकलने से पहले ही कुर्सी को पीठ खिड़की की ओर हो चुकी हो ।”
“लेकिन कुर्सी की हालत बताती है कि शीशे टूटने के बाद वह घुमाई नहीं गई है । अगर ऐसा हुआ होता तो कुर्सी के पहियों के नीचे भी शीशे के छोटे-छोटे टुकड़े होते और एकाध टुकड़ा किसी पहिए में घुस गया होता ।”
प्रभूदयाल ने आगे बढकर कुर्सी देखी ।
कुर्सी के पहिए के नीचे एक भी शीशे का टुकड़ा नहीं था और टायर एकदम साफ पड़ा था ।
प्रभूदयाल निरुत्तर हो गया ।
उसी क्षण सुनील की दृष्टि कुर्सी के पास पड़ी एक छोटी सी मेज पर गई ।
“वह शीशे का गिलास यहां से उठवा लिया है तुमने ?” - सुनील ने पूछा ।
“कौन सा शीशे का गिलास ?” - प्रभू ने पूछा ।
“वह शीशे का गिलास जिसके किनारे पर लिपस्टिक लगी हुई थी ।”
“ऐसा तो कोई गिलास हमें यहां नहीं मिला ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला - “तुम्हें कैसे मालूम है ऐसा कोई गिलास मेज पर था ?”
“प्रताप चन्द कहता था कि रात को चीख की आवाज सुनने के बाद जब वह यहां आया था तो उसने मेज पर एक शीशे का गिलास पड़ा देखा था जिसके किनारे पर लिपिस्टिक लगी थी ।”
“लेकिन प्रताप चन्द के बाद तो यहां कोई भी नहीं आया । प्रताप चन्द के बाद लोकल थानेदार फौरन ही यहां पहुंच गया था, तब से लेकर सुबह मेरे आने तक कोई चीज यहां से हिलाई नहीं गई थी । अगर ऐसा कोई गिलास होता तो वह यहीं होना चाहिए था ।”
“इन्स्पेक्टर साहब !” - एकाएक कांता बोल पड़ी - “मैंने भी वह गिलास देखा था ।”
“क्या ?” - प्रभूदयाल चौकन्ने स्वर में बोला ।
“जी हां, मैंने मेज पर एक शीशे का गिलास देखा था । उस के किनारे पर लाल रंग भी लगा हुआ था लेकिन उस समय मुझे यह नहीं सूझा था कि वह लिपिस्टिक का निशान था ।”
“कमाल है ।” - प्रभूदयाल हैरान होकर बोला - “तो फिर वह गिलास कहां गया ?”
“प्रभू !” - सुनील बोला - “तुम पार्वती से पूछो । क्या उसने भी कोई ऐसा गिलास देखा था ।”
“पार्वती राजकुमार की जमानत पर छूट चुकी है । अब वह वापस अपने काटेज पर पहुंच चुकी होगी । चलो वहां चलकर पूछते हैं ।”
तीनों महेश कुमार के काटेज से बाहर निकल आए और जीप में बैठकर पार्वती के काटेज के सामने जा पहुंचे ।
उन्होंने पार्वती के काटेज की घण्टी बजा दी ।
द्वार मंजुला ने खोला ।
इन्स्पेक्टर को देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया ।
“घबराइये नहीं ।” - प्रभूदयाल सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
मंजुला चुप रही ।
“पार्वती देवी घर पहुंच गईं हैं ?”
मंजुला ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“जरा उनसे मिलवा दीजिए ।” - प्रभूदयाल बोला ।
मंजुला उन्हें ड्राइंग रूम में ले आई ।
ड्राइंगरूम में पार्वती के पास राजकुमार, प्रताप चन्द और उसकी पत्नी इन्द्रा भी बैठी थी ।
इन्स्पेक्टर को देखकर वे लोग उठ खड़े हुए ।
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से प्रभूदयाल की ओर देखा ।
“गो अहेड ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“पार्वती देवी जी” - सुनील बोला - “मैं आपसे एक बार पहले भी मिल चुका हूं ।”
पार्वती ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“हम लोग आपसे एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल पूछने आये हैं । आप बेखटके उसका उत्तर दीजिए । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, उससे आपका या आपकी बेटी का कोई अहित नहीं होगा ।”
पार्वती चुप रही ।
“हत्या की रात को आप महेश कुमार के काटेज पर गई थीं न ?”
पार्वती ने उत्तर नहीं दिया ।
“चुप रहने से कोई लाभ नहीं है । यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि उस रात ढाई बजे के करीब आप महेश कुमार के काटेज में थीं । प्रताप चन्द और उसकी पत्नी दोनों ने आपको देखा था ।”
“मैं वहां गई थी ।” - पार्वती धीमे स्वर में बोली ।
“क्यों ?”
“मुझे एक चीख सुनाई दी थी । मुझे लगा था वह चीख मंजुला की थी ।”
“अर्थात आप चीख सुनने के बाद वहां पहुंची ?”
“जी हां ।”
“उस समय महेश कुमार मरा पड़ा था ?”
“जी हां ।”
“वहां पहुंचकर आपने क्या किया ?”
“मैंने बड़ी मेहनत से वहां से ऐसे सब सूत्र हटाने आरम्भ कर दिये जिससे यह पता लगने की सम्भावना थी कि मंजुला वहां थी ।”
“जैसे ?”
“जैसे मैं वहां से उसका टूटा हुआ कम्पैक्ट उठा लाई । ऐसी सब जगहों पर मैंने कपड़ा फेर दिया जहां मंजुला की उंगलियों के निशान होने की सम्भावना थी । मेज पर एक शीशे का गिलास पड़ा था जिसके किनारे पर लिपिस्टिक लगी हुई थी । मैं उसे अच्छी तरह साफ करके किचन में रख आई थी ।”
प्रभूदयाल के कान खड़े हो गए ।
सुनील प्रताप चन्द की ओर आकर्षित हुआ ।
“प्रताप चन्द जी !” - वह बोला - “आपने भी तो ऐसा एक शीशे का गिलास मेज पर रखा देखा था ?”
“जी हां ।” - प्रताप चन्द धीमे स्वर से बोला ।
“लेकिन पुलिस को ऐसा कोई गिलास घटनास्थल पर नहीं मिला ?”
प्रताप चन्द चुप रहा ।
“क्यों ?”
“मेरे जाने और पुलिस के आने के बीच के समय में कोई वह गिलास उठाकर ले गया होगा ?”
“यह असम्भव है ।” - प्रभूदयाल बोला - “वह आदमी उड़कर तो काटेज तक पहुंचा नहीं होगा । अगर ऐसा कोई आदमी काटेज में आया होता तो गीली जमीन पर उसके कदमों के निशान जरूर दिखाई देते ।”
“तो यह करिश्मा कैसे हो गया ?” - सुनील प्रभूदयाल से बोला - “कांता ने वह गिलास देखा था । उसके बाद पार्वती देवी काटेज में गई थीं । उन्होंने भी वह गिलास देखा था । फिर प्रताप चन्द जी वहां गए थे । उन्होंने भी उस गिलास को वहां देखा था लेकिन फिर भी ऐसा कोई गिलास वहां नहीं पाया गया था । यह कैसे सम्भव हो सकता है ?”
“इससे आप क्या नतीजा निकालना चाहते हैं ?” - प्रताप चन्द तेज स्वर से बोला ।
“इससे मैं यह नतीजा निकालना चाहता हूं कि आप झूठ बोल रहे हैं । गिलास आपने नहीं देखा था । और गिलास आपने इसलिए नहीं देखा था क्योंकि रात को ढाई बजे पार्वती के महेश कुमार के काटेज से चले जाने के बाद आप वहां नहीं गए थे ।”
“यह झूठ है ।” - एकाएक इन्द्रा बोल पड़ा - “ये ढाई बजे महेश कुमार के काटेज पर गए थे ।”
“आपको कैसे मालूम है ?” - सुनील बोला ।
“उस समय इन्होंने मुझे कहा था कि मैं महेश कुमार के काटेज पर यह देखने जा रहा हूं कि गड़बड़ कैसी है ?”
“आपने इन्हें काटेज में जाते देखा था ?”
इन्द्रा चुप हो गई ।
“इन्होंने केवल जाने का नाम ही लिया था, देवी जी । वास्तव में ये महेश कुमार के काटेज पर गए नहीं थे ।”
“लेकिन” - प्रभूदयाल बोला - “प्रताप चन्द के काटेज से महेश कुमार के काटेज तक और फिर वापिस प्रताप चन्द के कदमों के निशान बने हुए हैं जिससे साफ जाहिर होता है कि प्रताप चन्द वहां गया था ।”
“जरूर गया था ।” - सुनील ने स्वीकार किया - “लेकिन ढाई बजे नहीं । प्रताप चन्द ढाई बजे से बहुत पहले मंजुला के वहां से जाने के बाद महेश कुमार के काटेज में गया था और उसी समय इसने महेश कुमार की हत्या की थी ।”
“हत्या ? प्रताप चन्द ने ?” - कई स्वर एक साथ सुनाई दिए ।
“हां ।” - सुनील ऊंचे स्वर से बोला - “हत्यारा प्रताप चन्द है । इसी ने किसी तेज चीज से मंजुला की कार के पिछले टायर में पंक्चर किया था और इसी ने मंजुला की कार के डैशबोर्ड में बने कम्पार्टमेंट में से उसकी रिवाल्वर निकाली थी । जिस समय मंजुला महेश कुमार से झगड़ा करके काटेज से बाहर निकली थी उस समय प्रताप चन्द काटेज के पास ही कहीं छुपा खड़ा था । मंजुला कटे हुए टायर वाली कार लेकर चली गई थी । कार का पहिया काटेज से दो सौ गज दूर जाने के बाद ही बैठ गया थ । इसलिए मंजुला को कार वहीं छोड़कर पैदल अपने काटेज तक जाना पड़ा था । मंजुला के जाने के बाद प्रताप चन्द रिवाल्वर लेकर महेश कुमार के कमरे में घुसा । महेश कुमार दरवाजे की ओर मुंह और खिड़की की ओर पीठ किए बैठा था । प्रताप चन्द ने जाते ही उसे गोली से उड़ा दिया और बाद में प्रताप चन्द ने कमरे में तोड़-फोड़ मचानी शुरू कर दी ।”
“बाद में क्यों ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“पुलिस की थ्योरी है कि शीशे वगैरह उस समय टूटे जब महेश कुमार हत्यारे से भिड़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी कुर्सी की पोजीशन से यह बात असम्भव लगती है । हत्या कर चुकने के बाद प्रताप चन्द ने चांदी के फ्रेम वाला शीशा खिड़की पर दे मारा था, दीवार पर लगी हुई तस्वीर तोड़ दी थी । जिसके कारण सारा कमरा शीशे के टुकड़ों से भर गया था ।”
“लेकिन इतना हंगामा करने की क्या जरूरत थी ?”
“प्रताप चन्द की स्कीम में उस हंगामे की, उस शोर शराबे की बड़ी सख्त जरूरत थी । एक तो इसलिए क्योंकि प्रताप चन्द यह जाहिर करना चाहता था कि मंजुला शीशे वगैरह टूटने के बाद घटनास्थल से गई थी ।”
“कैसे ?”
“बड़ा आसान तरीका था । प्रताप चन्द ने घटनास्थल से शीशे का तेज टुकड़ा उठाया और लौटती बार उसे मंजुला की कार के टायर में उस स्थान पर घुसा दिया जहां इसने पहले पंक्चर करने के लिए टायर को काटा था । बाद में हर किसी ने यही समझा कि पंक्चर शीशे के टुकड़े से हुआ था । वह शीशे का टुकड़ा कम से कम ढेड इन्च लम्बा था । भला शीशे का डेढ इन्च लम्बा टुकड़ा बिना टूटे एकदम सीधा टायर में कैसे घुस सकता है ?”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“शीशे तोड़ने का दूसरा कारण यह था कि” - सुनील फिर बोला - “प्रताप चन्द चाहता था कि काफी शोर मचे ताकि घर आकर वह अपनी पत्नी को यह कह सके कि कहीं शीशे टूटने का शोर सुनकर इसकी नींद खुल गई थी । इसने खुद कहा है कि इन्द्रा इतनी गहरी नींद सोती है कि अगर उसके कानों पर नगाड़े ही बजाए जाएं तो उसकी नींद खुलती है । प्रताप चन्द ने इन्द्रा की इस आदत का फायदा उठाया । यह रात को अपनी पत्नी के सो जाने के बाद चुपचाप गया और महेश कुमार की हत्या कर आया । लौटती बार यह रिवाल्वर मंजुला की कार के पास झाड़ियों में फेंक आया । घर आकर यह फिर बिस्तर में घुस गया । थोड़ी देर बाद उसने जबरदस्ती इन्द्रा को जगाया और कहा कि इसने अभी-अभी कहीं शीशे टूटने और गोली चलने की आवाजें सुनी थी । प्रताप चन्द की स्कीम में कुछ रंग केवल संयोगवश भी आ गया । उसी क्षण कांता वहां पहुंची और वातावरण एक डरावनी चीख से गूंज उठा । चीख की आवाज ही पार्वती को काटेज तक खींच ले गई । इन्द्रा के जाग चुकने के बाद प्रताप चन्द ने कहा कि वह महेश कुमार के काटेज पर यह देखने जा रहा है कि क्या गड़बड़ है लेकिन वास्तव में यह महेश कुमार के काटेज पर गया नहीं । यह दस पन्द्रह मिनट नीचे वहीं छुपकर खड़ा रहा और उसके बाद इसने वापिस आकर इन्द्रा को बताया कि महेश कुमार की हत्या हो गई थी और वह चौकी पर रिपोर्ट करने जा रहा था । अगली सुबह किसी ने भी प्रताप चन्द के कदमों के निशानों को महत्व नहीं दिया क्योंकि हर किसी ने यही समझा कि प्रताप चन्द तो हत्या हो चुकने के बहुत समय बाद वहां गया था ।”
कोई कुछ न बोला ।
“अगले दिन सवेरे ही प्रताप चन्द” - सुनील फिर बोला - “पार्वती के काटेज पर उसे सारा किस्सा सुनाने चला गया । एक पड़ोसी के नाते सहानुभूति दिखाने के बहाने इसने पार्वती के मन में यह बात अच्छी तरह जमा दी कि हत्या मंजुला ने की थी और पार्वती को मंजुला की सहायता करनी चाहिए । पार्वती भी विश्वास कर बैठी कि हत्या उसकी बेटी ने की थी और वह झूठ पर झूठ बोलती चली गई ताकि मंजुला पर आंच न आए । प्रताप चन्द ने अपनी पत्नी को यह बात विशेष रूप से जोर देकर कही थी कि वह इस विषय में अपनी जबान बन्द रखे कि उन्होंने ढाई बजे पार्वती को महेश कुमार के काटेज में देखा था । प्रताचन्द अपनी बीवी की आदत जानता था कि वह अपनी जबान बन्द नहीं रख सकती । प्रताप चन्द तो यह चाहता ही था कि उसकी बीवी किसी से इस बात का जिक्र कर दे । बाद में यह शराफत का पुतला बना अपनी बीवी को कोसता रहा और दुख जाहिर करता रहा कि बेचारी मां-बेटी खामखाह पुलिस के सन्देह का शिकार होती जा रही हैं । प्रताचन्द की स्कीम में केवल इतना ही अन्तर आया कि पुलिस ने बेटी की जगह मां को हत्यारी समझा ।”
“लेकिन प्रताप चन्द को महेश कुमार की हत्या करने की क्या जरूरत थी ? उसके पास हत्या का क्या उद्देश्य था ?”
“जितना तगड़ा हत्या का उद्देश्य प्रताप चन्द के पास है, उतना किसी के पास भी नहीं है । महेश कुमार ने उसे अन्धेरे में रखकर उसकी दो सौ एकड़ जमीन बड़े सस्ते दामों में खरीद ली थी और बाकी की दो सौ एकड़ जमीन पर एक साल के लिए आप्शन ले ली थी अर्थात एक साल के अन्दर अन्दर महेश कुमार कभी भी उस जमीन को पुराने दामों पर ही खरीद सकता था । बाद में जब प्रताप चन्द को यह पता लगा कि महेश कुमार ने जमीन खेती करने के लिए नहीं होटल बनाने के लिए खरीदी थी तो वह क्रोध से आग बबूला हो गया । वह तभी से अपनी आप्शन वाली दो सौ एकड़ जमीन महेश कुमार के चंगुल से छुड़ाने की तरकीब सोच रहा था ताकि उस जमीन को वह बीस गुने अधिक दामों में बेच सके । फिर एक सुरक्षित मौका हाथ में आते ही उसने महेश कुमार की हत्या कर दी । प्रताप चन्द ने खुद स्वीकार किया है कि महेश कुमार की मौत के साथ ही आप्शन भी खत्म हो गई है ।”
“प्रताप चन्द की स्कीम बड़ी मास्टरपीस थी ।” - सुनील एक क्षण अपने शब्दों का प्रभाव सब पर देखने के लिए ठिठका और फिर बोला - “लेकिन वह गिलास के मामले में धोखा खा गया । जिस समय इसने महेश कुमार की हत्या की थी उस समय लिपस्टिक वाला गिलास वाकई मेज पर रखा था । इसलिए बाद में प्रताप चन्द ने उस गिलास का जिक्र भी कर दिया था ताकि मंजुला पर सन्देह और पक्का हो जाए । लेकिन पार्वती वह गिलास साफ करके किचन में रख आई थी और प्रताप चन्द को इस बात की जानकारी नहीं हुई थी वर्ना यह कभी गिलास का जिक्र नहीं करता । उस गिलास का जिक्र ही यह सिद्ध करता है कि प्रताप चन्द ढाई बजे के बाद महेश कुमार के काटेज में नहीं गया था ।”
सुनील चुप हो गया ।
प्रभूदयाल ने प्रताप चन्द की ओर देखा ।
प्रताप चन्द का चेहरा राख की तरह सफेद हो उठा था ।
प्रभूदयाल ने सिपाही की ओर संकेत किया ।
सिपाही ने हथकड़ियां प्रताप चन्द की ओर बढा दीं ।
इन्द्रा की चीख निकल गई ।
बाकी ड्रामा देखने के लिए सुनील वहां रुका नहीं । वह चुपचाप काटेज से बाहर निकल आया ।
प्रताप चन्द ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया ।
सुनील की थ्योरी अक्षरश: सच निकली थी ।
अगले दिन सुबह नगर में ब्लास्ट ही अकेला अखबार था जिसमें हत्या का सारा और प्रमाणिक विवरण छपा था ।
मंजुला, पार्वती और राजकुमार ने कई बार सुनील से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न किया और सुनील से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी ।
सारी घटना के एक महीने बाद सुनील को रजिस्टर्ड पोस्ट से राजकुमार और मंजुला की शादी का कार्ड मिला । उससे शादी में शामिल होने के लिए विशेष रूप से अनुरोध किया गया था ।
सुनील झेरी गया तो पार्वती ने उसे पलकों पर बिठा लिया । उसके कथनानुसार अगर सुनील न होता तो भगवान जाने उसकी क्या दुर्गति होती ।
उत्तर में सुनील भगवान का हवाला देने और दांत निकालने के अतिरिक्त कुछ न कर सका ।
समाप्त
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