वे एक-दूसरे में खोए अपनी बातों में मशगूल थे।


मगर अशोक बजाज का ध्यान उन्हीं पर था ।


‘उन पर' भी न कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा ।


अशोक की आंखें सिर्फ और सिर्फ उस जोड़े के ‘फी-मेल' पर स्थिर थीं। ऐसा देखकर धीरज सिंहानिया के होठों पर बहुत ही दिलचस्प मुस्कान दौड़ी । बोला ---- “क्या देख रहे हो?”


मगर !


अशोक बजाज ने कोई जवाब नहीं दिया ।


जवाब तो बेचारा तब देता जब धीरज सिंहानिया की आवाज उसके कानों तक पहुंची होती और... आवाज कानों तक तब पहुंची होती जब एक पल के लिए भी उसकी नजरें 'फी-मेल' से हटी होतीं |


'मेल' की पीठ थी उनकी तरफ ।


‘फी-मेल' का फेस ।


पूर्णिमा के चांद-सा गोल ।


समुद्र पर बिखरी चांदनी - सा रंग | गुलाबी होंठ । नोकीली नासिका । बड़ी-बड़ी आंखें । माथे पर सिंदूरी सूरज | बालों की एक लट उसके बात करते-करते बार-बार कपोलों पर लटक आती थी जिसे अपनी नाजुक, पतली और नेल पॉलिश से सजी उंगुलियों से हटाने की जैसे उसे आदत पड़ गई थी।


हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहने हुए थी वह ।


उस जलवे को देखकर धीरज की मुस्कान गहरी हो गई।


इस बार उसने मेज पर रखे अशोक के दोनों हाथों में से एक को हौले से थपथपाते हुए कहा ---- “मिस्टर बजाज।"


“आं !” इस बार अशोक बजाज चौंका और ऐसा चौंका कि अगले ही पल झेंपता - सा बोला- - - - “हां | क्या कह रहे थे तुम ?”


“किस बारे में?” धीरज सिंहानिया ने पूछा ।


“ब... बिजनेस के बारे में।”


“गनीमत है----कम से कम यह तो याद है तुम्हें कि हम बात किस टॉपिक पर कर रहे थे मगर... आगे कुछ कहूं तो तब जब तुम्हारा ध्यान मेरी तरफ हो ।” कहते वक्त धीरज की भेदभरी मुस्कान में कुटिलता के कीटाणु आ मिले थे।


बजाज कुछ और ज्यादा झेंप गया ।


बात को संभालने और खुद को सामान्य दर्शाने के फेर में थोड़ा हड़बड़ाकर बोला“न... नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।"


“कैसी बात नहीं है?"


“ मैं तुम्हारी बात सुन रहा हूं।"


“ हो सकता है सुन रहे हो । ” धीरज सिंहानिया के होठों पर अब वाचालता भरी मुस्कान थी---- “मगर मेरा दावा है, उस वक्त तक तुम मेरी बातों पर ध्यान नहीं दे सकोगे जब तक ध्यान उस तरफ


“क... किस तरफ ? ” बजाज जैसे चोरी करता पकड़ा गया ।


सिंहानिया के होठों पर शरारती मुस्कान रेंगी।


आंखों से 'जलवे' की तरफ इशारा किया ।


बजाज ऐसा सकपकाया कि कुछ कह नहीं सका।


“वैसे चीज बुरी नहीं है।" सिंहानिया कहता चला गया ---- “बल्कि अगर यह कहा जाए तब भी गलत नहीं होगा कि कम से कम इस वक्त इस हॉल में उससे बेहतरीन कोई चीज नहीं है । ”


बौखलाया-सा बजाज बोला ---- “तुम कह रहे थे कि तुम अपनी कंपनी की एक इकाई को हमारी कंपनी में मर्ज करना चाहते हो।"


“वो बात तो बहुत पुरानी हो गई दोस्त ।" इस बार सिंहानिया हंस पड़ा ---- “उसके बाद तो तुम मुझसे मेरी शर्तें भी पूछ चुके हो और मैं वे शर्तें ही बता रहा था कि तुम्हारा ध्यान उस तरफ चला गया। ऐसा गया कि फिर लौटकर ही नहीं आया। जैसे कोई कभी न लौटने के लिए किसी भूतहा बंगले में चला गया हो। पुरानी पिक्चरें देखी हैं न!"


अब... जैसे पकड़ा गया चोर ढीटपने पर उतर आए ।


कुछ ऐसे ही अंदाज में कहा अशोक बजाज ने----“क्या करता! वह खूबसूरत ही इतनी है ।”


“सो तो है मगर..


धीरज सिंहानिया ने जान बूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।


बजाज को पूछना पड़ा ----“मगर?”


“भाभी से खूबसूरत नहीं है । "


“भाभी?”


“तुम्हारी पत्नी की बात कर रहा हूं ---- चांदनी की ।”


बजाज के मुंह से यही एक मात्र लफ्ज निकला ----“ओह!”


“मैंने देखा है उन्हें ।” सिंहानिया कहता चला गया ---- " और दावे के साथ कह सकता हूं कि इसे और उन्हें बराबर-बराबर खड़ा कर दिया जाए तो यह उनके सामने ऐसी लगेगी जैसे कोहिनूर की बगल में पड़ा कांच का टुकड़ा । "


“तुम्हें इतनी पसंद है मेरी बीवी?”


“मैं पसंद की नहीं, खूबसूरती की बात कर रहा हूं।"


“ओह!”


“क्या मैंने कुछ गलत कहा ?” कहते वक्त धीरज सिंहानिया ने बजाज की आंखों में इतनी गहराई तक झांका था जैसे बहुत-सी बातें उसके बगैर कहे भांप लेना चाहता हो ---- “क्या इसकी खूबसूरती चांदनी भाभी की खूबसूरती के सामने कहीं ठहरती है?”


“हो सकता है तुम ठीक कह रहे हो मगर..


इस बार बजाज ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।


धीरज सिंहानिया ने वहीं किया जिस लिए बजाज ने वाक्य अधूरा छोड़ा था । अर्थात् पूछा- - - - “क्या कहना चाहते हो ?”


“छोड़ो ।” बजाज ने कहा ---- “उन शर्तों को दोहरा दो जिनके तहत तुम अपनी कंपनी की इकाई को हमारी कंपनी में मर्ज ..


सिंहानिया ने उसकी बात काटी ---- “सच पूछो तो बिजनेस की बातें करने का अब मूड नहीं रहा । ”


“मतलब?”


“मूड उस टॉपिक पर बातें करने का बन गया है जिसे अचानक ही वह गुलबदन हसीना हमारे बीच खींच लाई है।”


“इस टॉपिक पर भला हम क्या बातें कर सकते हैं?”


“उम्र ही क्या है अभी हमारी !” सिंहानिया ने कहा----"मैं अभी पच्चीस से ऊपर नहीं गया हूं और तुम तो मुझसे भी एकाध साल कम ही होगे कि हमारे बापों ने हमें बिजनेस के लफड़ों में फंसा दिया है। बिजनेस-टॉक करने हमें यहां भेज दिया । इसमें शक नहीं कि ध्यान उस गुलबदन हसीना ने मेरा भी भंग किया था मगर वह उतना भंग नहीं हो सका जितना तुम्हारा हो गया । "


बजाज खामोश रहा।


“जानते हो क्यों, क्या कारण है इसका ? "


“क्या कारण है ?”


“यह कि मैं बाहर वालियों की भी आरतियां उतार लिया करता हूं और तुम चाहकर भी शायद अभी तक ऐसा नहीं कर पाए हो !”


“साला चौबीस घंटे स्टेटस का ख्याल रहता है ।"


“स्टेटस का ख्याल तो 'हमें' भी रखना पड़ता है । "


“फिर कैसे उतार पाते हो बाहर वालियों की आरतियां?”


“ अपने ही स्टेटस वालों के बीच रहकर ।" धीरज सिंहानिया कहता चला गया----“बात फूट न सके, इस बात का ख्याल क्योंकि सबको बराबर रहता है इसलिए बात फूट नहीं सकती।"


“ओह !” एक बार फिर बजाज इतना ही कहकर रह गया।


“ मेरी बात का जवाब नहीं दिया तुमने ।” धीरज सिंहानिया ने एक बार फिर कहा---- “दिल पर हाथ रखकर सच्चा जवाब दो । क्या वह तुम्हारी बीवी से खूबसूरत है?”


“नहीं।"


“फिर क्यों उसे पाने के लिए मरे जा रहे हो ?”


इस बार, कह ही दिया अशोक बजाज ने ----“भले ही आपको मटन बिरयानी चाहे जितनी पसंद हो मगर हर रोज वही तो नहीं खा सकते न ! मुंह मार जाती है। एक न एक दिन आपको उससे ‘ऊब’ होने लगती है । दिल चाहता ---- भले ही दाल मिले । पर - चेंज हो !”


“करेक्ट... हंडरेट परसेंट करेक्ट ।” धीरज सिंहानिया ने इस तरह कहा जैसे अशोक बजाज के मुंह से अपनी पसंद की बात सुनकर खुश हो गया हो ---- “ठीक ऐसे ही ख्याल मेरे भी हैं । बल्कि मेरे नहीं ---- 'हमारे' कहना चाहिए । हमारी टुकड़ी के ।”


"टुकड़ी?”


“एक जैसे स्टेटस के लोगों की टुकड़ी । ”


“मैं कुछ समझा नहीं।”


“समझाता हूं।" कहने तक वह इस नतीजे पर पहुंच चुका था कि वह बजाज से 'खुलकर' बातें कर सकता है । बोला ---- “क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें ड्रिंक का आर्डर दे देना चाहिए ?”


अशोक बजाज थोड़ा हिचका मगर मुश्किल से आधा मिनट सोचने के बाद वह भी इस नतीजे पर पहुंचा कि सिंहानिया भी अपने ही स्टेटस का है सो, उससे खुल जाने में कोई बुराई नहीं है और ... इस नतीजे पर पहुंचते ही जैसे शब्द स्वतः मुंह से निकले ---- “श्योर ।"


“गुड | क्या लोगे ?”


“शी -वाज रीगल । लार्ज पैग ।”


धीरज सिंहानिया ने बगैर देर किए इशारे से वेटर को अपने नजदीक बुलाया और शी-वाज रीगल के दो लार्ज पैग लाने का आर्डर देने के बाद जेब से 'मार्लोपोलो' का पैकिट निकालकर एक सिगरेट अपने होठों पर लटकाई तथा पैकिट बजाज की तरफ बढ़ा दिया ।


“थैंक्स | मैं अपना ब्रांड लेता हूं।" कहने के साथ उसने अपनी जेब से पांच सौ पचपन का पैकिट निकाल लिया था ।


“फार चेंज ।” धीरज सिंहानिया ने बहुत ही गहरी मुस्कान के साथ अपने हाथ में मौजूद ‘मार्लोपोलो' के पैकिट को हिलाया ।  


अशोक बजाज के मुंह से निकला ---- “मतलब?”


“करके तो देखो, तुम इसे पियो । मैं पांच सौ पचपन पिऊंगा। दोनों के टेस्ट चेंज हो जाएंगे । शायद अलग मजा आए । "


“गुड ।” कहने के साथ अशोक बजाज ने उसके पैकिट से एक सिगरेट निकाल ली और सिंहानिया ने उसके पैकिट से ।


फिर, एक म्यूजिकल लाइटर ने दोनों सिगरेटें सुलगाईं |


“चार जोड़े हैं हम।” पहले कश के साथ सिंहानिया ने कहना शुरु किया- “अगर तुम शामिल होना चाहोगे तो पांच हो जाएंगे।”


“करते क्या हो ?” बजाज ने पूछा ।


"एंज्वॉय ।”


“कैसा एंज्वॉय ?”


"ऐसा, जिसके बाद 'भूखे' नहीं रह जाते । कम से कम उस कदर ‘भूखे’ तो हरगिज नहीं जैसे तुम हो। मैं यह नहीं कहता कि वैसी गुलबदन हसीनाएं हमें आकर्षित नहीं करतीं जैसी उस सीट पर बैठी अपनी जुल्फों से खेल रही है। हमारा भी दिल चाहता है कि वह बगैर कपड़ों के हमारे बिस्तर पर, हमारी बांहों में हो मगर तुम्हारी तरह इन ख्यालों में इतने नहीं डूब पाते कि अपने बिजनेस की किसी इंपोर्टेंट डील का नुकसान कर बैठें ।”


"मैं कुछ समझा नहीं।”


धीरज सिंहानिया के कुछ कहने से पहले वेटर पैग ले आया।


दोनों ‘चेयर्ज' कहकर 'हम - प्याला' हुए और पहले शिप के बाद धीरज सिंहानिया ने कहना शुरु किया ---- “सबसे पहले यूं समझो कि मेरे अलावा जो तीन जोड़े और हैं वे भी मेरी और तुम्हारी तरह ही ऊंचे घरानों से ताल्लुक रखते हैं। कोई किसी से कम नहीं है।”


“ पर तुम लोग करते क्या हो ?”


धीरज सिंहानिया ने अपनी दोनों कोहनियां मेज पर रखीं। अशोक बजाज की तरफ झुका और उसकी आंखों में आंखें डालकर बहुत ही धीमे और रहस्यमय स्वर में बोला- - - - “बीवियां बदलते हैं।”


“ब... बीवियां ब... बदलते हो?” मारे आश्चर्य के अशोक बजाज के हलक से चीख-सी निकल गई ।


आंखें फटी रह गईं थीं उसकी ।


“धीरे दोस्त । धीरे बोलो।” धीरज सिंहानिया बुदबुदाया - - - - “अपनी नहीं तो मेरी इज्जत का तो ख्याल करो ।”


अशोक बजाज का चेहरा लाल हो गया था ।


यूं लग रहा था उसे जैसे वह सामने बैठे धीरज सिंहानिया को नहीं बल्कि आंखों के सामने तांडव करती कुतुबमीनार को देख रहा हो ।


लग रहा था ---- एक ही शिप में उसे कई बोतलों का नशा हो गया है। होठ फड़फड़ाए जरूर लेकिन उनसे कोई आवाज नहीं निकल सकी। पैग पर हथेली की पकड़ सख्त होती चली गई और फिर, पैमाने को एक ही झटके में खाली कर गया ।


" तुम्हें तो कुछ ज्यादा ही शॉक लग गया लगता है।" उसे बहुत ध्यान से देखते धीरज सिंहानिया ने कहा ।


“क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम लोग एक-दूसरे की पत्नी के साथ... ।” इस बार बहुत ही धीमें स्वर में कहा था अशोक बजाज ने, मगर बावजूद इसके वह अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका।


“जब तुम किसी और की 'होंडा सिटी' की ड्राइविंग सीट पर बैठकर उसकी सवारी करने के इच्छुक हो तो इसमें क्या बुराई है कि कोई और भी तुम्हारी 'मर्सडीज' पर सवार होकर 'सारा जहां' घूमे ?”


एकदम से कोई जवाब नहीं दे सका बजाज ।


बोला --~-“मैं एक पैग और लेना चाहता हूं।"


“लार्ज ?” पूछने के साथ सिंहानिया मुस्कराया था।


बजाज केवल इतना ही कह सका - - - - “हां । ”


“जरूर ।” कहने के साथ धीरज सिंहानिया ने वेटर को नजदीक आने का इशारा किया और उसके आते-आते अपना पैग भी खाली कर दिया । दो और पैगों का आर्डर दिया उसने ।


फिर, पैग आने तक वे खामोश ही रहे।


सिर्फ बदले हुए ब्रांड की सिगरेट फूंकते रहे 1


दूसरा पैग भी आधा खाली करने के बाद अशोक बजाज ने कहा- -“यह बात तो ठीक है कि अगर हम दूसरे की गाड़ी की सवारी का मजा लेना चाहते हैं तो किसी दूसरे के द्वारा अपनी गाड़ी को इस्तेमाल होते देखने का माद्दा भी होना चाहिए लेकिन..


“लेकिन ?”


“भला 'गाड़ी' इसके लिए कैसे तैयार हो सकती है?"


धीरज सिंहानिया यूं मुस्कराया जैसे बजाज ने कोई बचकानी बात कह दी हो - - - - “क्यों... रोज-रोज मटन बिरयानी खाते क्या वे नहीं ऊबतीं? क्या उनका दिल कभी दाल खाने को नहीं करता ?”


कुछ कहते नहीं बन पड़ा अशोक बजाज पर |


किंकर्त्तव्यविमूढ़-सा वह धीरज सिंहानिया को बस देखता रहा ।


“करता है दोस्त ।” एक सिप लेने के बाद धीरज सिंहानिया कहता चला गया ---- “टेस्ट चेंज करने को उनका मन भी ठीक उसी तरह करता है जैसे हमारा करता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि हम इस बात को कह देते हैं, वे कह नहीं पातीं। और हम ‘ड्राइवर' ही इतनी आसानी से कहां कह पाते हैं ? खुद ही को देख लो----किस कदर चौंक पड़े थे तुम? और फिर किस कठिनाई के साथ कह सके? आदमी उस बात को कहने में हिचकता है जो एक कठोर सच्चाई के रूप में उसके दिल में होती है। जानते हो क्यों---- सिर्फ इसलिए, केवल यह सोचकर कि उसकी बात सुनकर सामने वाला उसके बारे में क्या सोचेगा ! फर्क सिर्फ इतना है कि यह भावना 'गाड़ियों' में 'ड्राइवरों' से कुछ ज्यादा होती है। या यूं भी कहा जा सकता है कि केवल यह सोचकर कि सामने वाला उनके बारे में क्या सोचेगा वे कुछ ज्यादा ही नखरे दिखाती हैं मगर यकीन मानों ---- सिर्फ नखरे ही दिखाती हैं । हकीकत यह है कि टेस्ट चेंज करने की इच्छा उनमें भी हमारे बराबर ही होती है । "


“नहीं। मेरी पत्नी में ऐसी इच्छा नहीं हो सकती ।”


धीरज सिंहानिया के होठों पर नृत्य करती वह मुस्कान गहरी हो गई जिसका मतलब था कि अशोक बजाज बचकानी बातें कर रहा है | बोला ---- “क्या तुम्हारी पत्नी तुम्हारे बारे में ऐसा सोच सकती है?"


“क... कैसा ?”


“कि तुम उससे ऊबने लगे हो । टेस्ट चेंज करने के ख्वाइशमंद रहते हो और मौका लगे तो ऐसा कर भी सकते हो ।”


“नहीं, वह ऐसा नहीं सोच सकती ।”


“क्योंकि तुमने अपनी छवि ऐसी ही बना रखी है ।”


" ऐसा ही समझ सकते हो ।”


“तो तुम भी समझ लो----उसने भी तुम्हारी नजरों में अपनी ऐसी ही छवि बना रखी है। ऐसी कि वह तुम्हें देवता मानती है और तुम्हारे अलावा किसी की हम - बिस्तर होना तो दूर, किसी के द्वारा अपने जिस्म को स्पर्श तक किया जाना पसंद नहीं करेगी |———— मगर हकीकत वही है। वही - - - - जो तुम्हारे दिल में भी है। औरत हो या मर्द - - - - मन सभी का एक-सा होता है दोस्त । टेस्ट चेंज करने की भावना हरेक के अंतर्मन में छुपी रहती है। यह एक प्राकृतिक इच्छा होती है जिसे हम एक-दूसरे के डर से छुपाए रखते हैं । ”


“मन तो नहीं मानता लेकिन तुम कहते हो तो मान लेता हूं।”


“ अपने दोस्तों को ज्वॉइन करने से पहले मैं भी नहीं मानता था कि मेरी पत्नी में भी वह इच्छा हो सकती है जो मुझमें है। सती सावित्री समझता था मैं उसे । ज्वॉइन करने से पहले खुद को वैसी ही साबित करने की उसने भरपूर कोशिश भी की। सब कुछ होने के बाद भी कुछ दिनों तक ऐसा नाटक करती रही जैसे उसके साथ बड़ा अनर्थ हो गया हो । मगर आज... आज हम दोनों इस बारे में खुलकर बातें कर सकते हैं। दोनों स्वीकारते हैं कि यह इच्छा हम दोनों में थी और यकीन मानों ---- दोस्तों के साथ एंज्वॉय करने के बाद से हम एक-दूसरे से ज्यादा संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं । दिमाग तनावहीन हो गए हैं।"


“जब बिस्तर पर होते हो तो यह सोचकर एक-दूसरे से घृणा नहीं होती कि उसने पिछली रात तुम्हारे दोस्त के साथ गुजारी थी ?”


“कैसी घृणा ? क्या बचकानी बातें कर रहे हो ? ऐसी बेवकूफाना बातें आदमी केवल तब तक करता है जब तक इस कठोर सच्चाई को कबूल नहीं कर लेता कि औरत मर्द का शरीर एक-दूसरे के द्वारा भोगे जाने के लिए बना है। कल उसने भोगा, आज तुमने- - क्या फर्क पड़ता है इससे ? क्या बिगड़ जाता है शरीर का?”


“तुम्हारे अलावा और कौन-कौन लोग हैं?”


“यह एक अवैध सवाल है । "


“क्या मतलब?”


“मेरे बारे में तो खैर तुम जान ही गए हो । वह भी केवल इसलिए क्योंकि जो ऑफर मैं तुम्हें दे रहा हूं उसे देने के लिए इतना बताना जरूरी था मगर बाकी दोस्तों के बारे में पत्नी सहित केवल वहां पहुंचकर ही जान सकते हो जहां ऐसी पार्टी रखी जाती है । हां - - - - इतना यकीन दिला सकता हूं कि एक भी जोड़ा तुम्हारे स्टेटस से नीचे का नहीं होगा। इस हालत में यह बात तो तुम समझ ही सकते हो कि 'लीक' कुछ नहीं होता। इस बात की चिंता सबको बराबर होती है ।”


अब ... अशोक बजाज पर नशा हावी हो चुका था।


बोला- “क्या ऐसी कोई पार्टी होने वाली है ?”


“महीने में एक बार होती है । "


“ अब कब होगी ?”


“क्यों पूछ रहे हो ---- क्या तुम् ---- क्या तुम ज्वॉइन करना चाहते हो ?”


“शायद ।”


“ शायद के लिए कोई गुंजाइश नहीं है दोस्त ।” धीरज सिंहानिया ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा ---- “जब इरादा पक्का हो जाए तो मुझे फोन करना । जगह भी बता दूंगा, टाइम भी । ”


पालम विहार से आगे।


दिल्ली हरियाणा बार्डर पर - - - - दौलत नसीराबाद ।


कनॉट प्लेस से केवल डेढ़ घंटे की ड्राइविंग करके वहां पहुंचा जा सकता है। छोटे-मोटे होटल और गेस्ट हाऊस भी हैं वहां लेकिन ज्यादातर धनाढ्य लोगों के बंगले और फार्म हाऊस ही हैं ।


स्थाई रूप से उनके मालिक दिल्ली में रहते हैं ।