फकीर बाबा ने रात को ही कह दिया था कि वे सब भोर का उजाला होने तक तैयार हो जाएं और अगले दिन सुबह सब ठीक वक्त पर तैयार थे । बाबा का अधिकतर वक्त झोपड़े में ही बीता था । खाने के बाद, रात को जब बाबा मिलने आए तो उन्होंने अपनी शक्ति से देवराज चौहान के गले का जख्म ठीक कर दिया था ।


भोर के उजाले में आज बाबा का चेहरा सुकून से भरा शांत लग रहा था । बाबा ने सब को देखा । हर किसी के चेहरे पर जोश ही नजर आया तो वे बोले ।


"तुम लोगों में से कोई भी वापस लौटने को तैयार नहीं । ताज लेने सब जाएंगे ?"


किसी ने कुछ नहीं कहा ।


फकीर बाबा के चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी । "मैं एक बार फिर सबको कह देना चाहता हूं कि जहां आप लोग जा रहे हैं, वो खतरनाक जगह है। जादुई करिश्मों से भरी हुई है ।" बाबा की निगाह उनके चेहरों पर फिर रही थी ।


सब खामोश रहे ।


"यह बात मैं आप सबको बता देना चाहता हूं कि उस नगरी में वो ताज अपनी अहमियत रखता है, जिसे लेने तुम लोग जा रहे हो ।" बाबा का स्वर शांत था ।


"क्या हैसियत रखता है ? " जगमोहन ने पूछा ।


"जब वक्त आएगा, इस बात का जवाब तुम लोगों को खुद-ब-खुद ही मिल जाएगा ।" बाबा के होंठो पर छोटी सी मुस्कान उभरी--- "एक सवाल का जवाब मिलेगा और दस नए सवाल तुम लोगों के सामने खड़े हो जाएंगे। उस नगरी में प्रवेश करने के बाद, तुम लोग बिना ताज के सही-सलामत वापस लौट आए तो ये भी बहुत बड़ी बात होगी । ताज के साथ वापस आना तो और भी असंभव है।"


"आप हमें डरा रहे हैं बाबा ।" महाजन बोला ।


"नहीं। मैं तुम लोगों को हकीकत का आईना दिखा रहा हूं।" बाबा का स्वर शांत था । 


"बाबा ।" महाजन पुनः बोला--- "व्हिस्की के बिना, मेरी टांगों की गाड़ी नहीं चलती । जहां आप भेज रहे हैं, वहां तो व्हिस्की मिलने से रही । इस बात को लेकर मैं परेशान हूं।" 


फकीर बाबा मुस्कुराए । फिर बोले ।


"अपने पांवो के पास पड़ा सिक्का उठाओ।"


महाजन ने फौरन नीचे देखा। पांव के पास छोटा-सा गोल सा सिक्का पड़ा था और उसे पूरा विश्वास था कि वो सिक्का वहां पहले मौजूद नहीं था । महाजन ने झुककर सिक्का उठाया और बाबा को देखा । 


"नील सिंह । जब तक ये सिक्का तुम्हारे पास रहेगा । तब तक तुम्हारी व्हिस्की की जरूरत पूरी होती रहेगी।" 


"वो कैसे ?"


"मन ही मन जब भी व्हिस्की की इच्छा जाहिर करोगे, बोतल तुम्हारे सामने होगी।"


"थैंक्स बाबा ।" महाजन ने मुस्कुरा का सिक्का फौरन जेब में डाल लिया ।


फकीर बाबा की निगाह पुनः सब पर गई ।


"किसी को कुछ और कहना पूछना है ?" फकीर बाबा ने पूछा । मोना चौधरी कह उठी ।


"ताज हासिल करने के बाद उस मायावी नगरी से कैसे बाहर निकला जाएगा ?"


"किसी से रास्ता पूछने की जरूरत नहीं ।" बाबा मुस्कुराए--- "वो तिलस्मी ताज है । खुले आसमान के नीचे उसे हाथ में पकड़कर, नगरी से बाहर आने की इच्छा करोगे तो बाहर आ जाओगे । लेकिन यह बात सिर्फ खुले आसमान के नीचे ही लागू होगी। अगर सिर पर कोई छत है तो वो तिलस्मी ताकत काम नहीं आएगा ।"


"उस तिलस्मी ताज से और क्या-क्या काम लिया जा सकता है ।" देवराज चौहान ने पूछा । 


"कई काम लिए जा सकते हैं। परंतु उसके बारे में मैं बताना ठीक नहीं समझता।" फकीर बाबा ने देवराज चौहान को देखा ---- "ताज हाथ में आने पर उसकी ताकत का एहसास खुदब-खुद ही हो जाएगा।"


"बाबा ।" रूस्तम राव बोला--- "जादुई नगरी के बारे में कोई ऐसी बात, जो हमारे काम आए ।"


"बहुत बातें हैं । जो कि बतानी कठिन है ।" फकीर बाबा ने कहा--- "लेकिन सब इतना जान लो कि जो नजर आए उस पर विश्वास मत करना और विश्वास किए बिना बात भी नहीं बनेगी।"


"ये का बात होएला बाप ?"


"जो देखोगे-सुनोगे, वो सिर्फ भ्रम होगा। लेकिन कहीं-कहीं सच्चाई भी होगी। क्या सच है, क्या झूठ है और आंखे जो देख रही हैं, वो सच है या मात्र भ्रम । यह सब कुछ तुम लोगों ने अपनी समझ के मुताबिक ही तय करना है । जो सच लगेगा, वो सच नहीं होगा । जिससे झूठ समझोगे, वो झूठ नहीं होगा ।"


"म्हारे समझ में तो थारी बात न आवो बाबा।" बांकेलाल राठौर बोला।


"इससे ज्यादा मैं बताने की जरूरत नहीं समझता। वहां पहुंचकर हर उस सवाल का जवाब भी तुम लोगों को मिलने लगेगा, जो सवाल अभी तुम लोगों के दिमाग में भी नहीं आए।" 


क्षणिक चुप्पी सी छा गई ।


"बाबा।" पारसनाथ ने कहा--- "आप भविष्य में देख सकते हैं । इसलिए आपको मालूम होगा कि हम जो करने जा रहे हैं। आखिर उसका अंजाम क्या होगा ?"


फकीर बाबा के होठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी।


"मैं भविष्य में देख सकता तो यह बात मुझे अवश्य मालूम रहती कि देवा और मिन्नो में कब दोस्ती होगी और कब मुझे इस पुराने बूढ़े शरीर से मुक्ति मिलेगी । ऐसे में मैं परेशान न रहता कि इन दोनों के बीच दुश्मनी की दीवार खत्म हो जाए। इसलिए यह बात हमेशा के लिए अपने दिमाग से निकाल दो कि मैं भविष्य में देख सकता हूं । हां, इतना जरूर है कि कभी-कभी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास मुझे हो जाता है । मैं भूतकाल को जानता हूं । तुम लोगों ने तीन जन्म ले लिए, लेकिन मैं वक्त बिताने के लिए तपस्या करने लगा । तपस्या करते-करते मैं इतना आगे निकल गया कि मुझे खुद नहीं मालूम हो सका कि कब मैं अद्भुत शक्तियों का मालिक बन गया । मैं आम इंसानों से दूर हो गया और ऐस बातों की जानकारी मुझे हो गई, जो सिर्फ सिद्ध पुरुष को ही हो सकती है। लेकिन मेरे पास ऐसी कोई ताकत या सिद्दी नहीं कि मैं भविष्य के गर्भ में झांक सकूं।"


पारसनाथ ने फिर कुछ नहीं पूछा ।


"बाबा ।" बांकेलाल राठौर बोला--- "वो मायावी नगरी गुरदासपुरी में लस्सी का भी इंतजाम हौवे का ?" "नहीं । वहां खाने-पीने का इंतजाम आप लोगों को खुद ही करना होगा । कैसे करना है ये आप लोग जानें।" "यो तो चीटिंग हौवे बाबा ।" बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरा--- "महाजन को सिक्का दयो कि जबो वो मांगे, उसो को व्हिस्की मिलो । पण म्हारे को सिक्का न दयो, खाने के

वास्ते।"


"व्हिस्की, नील सिंह की मजबूरी है । हर जन्म में वो नशा लेकर ही काम करता है । ये बात तुम लोग नहीं समझ सकते । लेकिन मैं जानता हूं । इसलिए उसकी मजबूरी को समझ कर उसकी बात मानी ।"


रुस्तम राव ने फौरन सोहनलाल को देखा ।


"बाप । तेरे पास गोली वाली सिगरेट होएला क्या ? नेई तो बाबा को बोल दे ।"


"मेरे पास अपने स्टॉक का पूरा इंतजाम है।" सोहनलाल मुस्कुराया ।


उसके बाद सबकी निगाह फकीर बाबा पर जा टिकी ।


"अब चला जाए ?" फकीर बाबा ने पूछा ।


सबने एक-दूसरे को देखा। आखिरकार सहमति से सबने सिर हिला दिया । 


"हथियारों की जरूरत हो तो छड़ी को छूकर ले सकते हो।" बाबा ने जैसे याद दिलाया । 


उसके बाद सबने छड़ी को छू-छू कर अपने पसंदीदा हथियार हासिल किए।


"याद रखना ।" बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "जहां तुम लोग जा रहे हो, वहां ये हथियार काम नहीं आएंगे और वहां हर कोई दोस्त होगा और हर कोई दुश्मन होगा । अच्छे-बुरे की पहचान तुम लोगों ने अपनी समझ के मुताबिक करनी है। अब तुम सब लोग अपनी-अपनी आंखें बंद कर लो।"


सबने आंखें बंद कर लीं ।


"जिसने भी अब मेरी आवाज सुनने से पहले आंखें खोली तो हमेशा के लिए अंधा हो जाएगा।" बाबा ने सतर्क करने वाले ढंग से कहा ।


वो सब आंखें बंद किए खामोश खड़े रहे ।


तभी उन सबके शरीर को एक साथ हल्का सा झटका लगा । परंतु किसी ने भी आंखें खोलने की चेष्टा नहीं की। कुछ देर बाद बाबा का स्वर उनके कानों में पड़ा।


"अब आप सब लोग आंखें खोल सकते हैं।"


सबने फौरन आंखें खोल ली ।


दूसरे ही पल उनकी आंखें हैरानी से फैल गई।


आंखें खोलते ही उन सबने खुद को बहुत ही खूबसूरत हरे-भरे बाग में पाया। जहां कई फलों के पेड़ लगे हुए थे । फल लटकते नजर आ रहे थे । बाग में कई रंगों के फूल बहुत ही खूबसूरती के साथ लगे नजर आ रहे थे। फूलों की मन को लुभाने वाली महक सांसो से टकरा रही थी ।


ठंडी हवा बदन से टकरा रही थी ।


आकाश में बरसाती बादल मंडरा रहे थे । सूर्य बादलों की ओट में था । बहुत ही सुखद और दिल को सुकून पहुंचाने वाला समां था यहां । वो बाग इतना लंबा था कि जहां भी नजर जाती वहां बाग का हिस्सा ही नजर आ रहा था । लगता था जैसे उस बाग का कहीं अंत ही न होता हो ।


उसी बैग के एक हिस्से में वे सब खड़े थे ।


उनके सामने गंभीर चेहरा लिए फकीर बाबा खड़े थे ।


"ये कौन सी जगह है बाबा ?" जगमोहन ने पूछा ।


"यहां से जादुई नगरी को रास्ता जाता है। जहां से उस ताज को लाना है।" फकीर बाबा ने कहा ।


"हिन्दुस्तान के नक्शों में यो जगह कां पड़े हो ?" बांकेलाल राठौर ने पूछा।


फकीर बाबा के होठों पर मुस्कान उभरी ।


"ये जगह दुनिया की किसी भी नक्शे में नहीं है।"


"ये कैसे होएला बाबा । जगह है तो दुनिया में कहीं तो इसका अता-पता होएला ।"


"तुम लोग इस वक्त धरती पृथ्वी ग्रह पर नहीं हो । "


सब चौंके ।


"तो फिर कहां हैं?" पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर अजीब से भाव उभरे ।


"पृथ्वी ग्रह से बहुत नीचे पाताल में।"


"पाताल में ?" सोहनलाल ने फकीर बाबा को देखा--- "मैं नहीं मानता। ये पाताल नहीं हो सकता।"


"क्यों ?" फकीर बाबा का स्वर शांत था ।


"पाताल में आसमान नहीं होता । सूर्य नहीं होता और... "


"सब कुछ होता है ।" फकीर बाबा, सोहनलाल की बात काटकर मुस्कुराया--- "ये पाताल का आसमान है, पाताल का सूर्य है । पृथ्वी का इंसान आसमान में तो दूर-दूर तक पहुंच गया है। लेकिन जमीन के नीचे, पाताल के किसी रहस्य तक नहीं पहुंच सका । यहां पाताल के भोले-भाले लोग ही रहते हैं । उनसे तुम लोग मिलोगे। कई नए रहस्यों से तुम लोग वाकिफ होओगे ।"


"पाताल का सूर्य डूबता है ?" महाजन ने पूछा ।


"नहीं । पृथ्वी के सूर्य की तरह, यहां का सूर्य भी अपनी जगह रहता है । लेकिन पृथ्वी घूमती है तो पाताल भी घूमेगा । ऐसे में पृथ्वी की ही तरह, पाताल का जो हिस्सा सूर्य के सामने होगा, वहीं पर दिन होगा।" फकीर बाबा ने कहा।


"आपका मतलब कि पाताल बहुत बड़ा है ।"


"हां । पृथ्वी के जितने भाग में दुनिया बसी है, उससे आधा भाग पाताल में बसा हुआ है।" कईयों के चेहरों पर हैरानी के भाव उभरे ।


"आपको यहां का पता कैसे चला ?" जगमोहन ने पूछा ।


"इस बात का जवाब मैं नहीं दे पाऊंगा । हूं मैं इंसान ही, लेकिन तपस्या और सिद्धि से जो शक्तियां मैंने प्राप्त की है, उन्हीं शक्तियों की ताकत से मैं वो चीज भी देख लेता हूं, जो इंसान नहीं देख पाते । यहां का वातावरण, लगभग पृथ्वी के जैसा ही है। वैसे ही फल लगते हैं। वैसे ही फूल । खेत और सब्जियां भी देखने को मिलेगी, लेकिन जादुई और मायावी लोक भी है पाताल नगरी में । जहां से तुम लोगों को वो ताज लाना है । पाताल लोक की सबसे खतरनाक जगह है तिलस्मी नगरी ।"


"यहां के लोगों की भाषा हम कैसे समझेंगे ?" देवराज चौहान बोला--- "या फिर पाताल के लोग, भी हम जैसे ही भाषा बोलते हैं । "


"नहीं । इनकी अपनी भाषा है ।" फकीर ने कहा--- "मैंने तुम लोगों को अपनी शक्ति द्वारा कुछ ऐसा दे दिया है कि यहां के लोगों की भाषा समझ सको और वो तुम्हारी समझ सकें । यहां के लोग अपनी भाषा में ही बोलेंगे, लेकिन तुम लोगों को उनके शब्द अपनी भाषा में ही सुनाई देंगे । इसी तरह तुम लोग जो बोलोगे, पातालवासी वो शब्द अपनी भाषा में सुन पाएंगे।"


देवराज चौहान ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया ।


"हमें जाना कहां है बाबा ?" मोना चौधरी ने पूछा।


फकीर बाबा की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।


"वो सामने देखो । यहां से रास्ते दो अलग-अलग दिशाओं में जा रहे हैं । " 


सबकी निगाह दो होते रास्तों पर गई ।


"देवा एक रास्ते पर जाएगा और तुम दूसरे रास्ते पर । अपना-अपना रास्ता चुन लो। किसने किस रास्ते पर जाना है। ये दोनों रास्ते मायावी नगरी में, एक ही जगह जाकर समाप्त होते हैं। तुम लोगों को वहीं पहुंचना है।"


"एकहो ही जगहों।" बांकेलाल राठौर कह उठा ।


"हां । देवा और मिन्नो अलग-अलग रास्तों को तय करके एक ही जगह पहुंचेंगे। यानी कि आगे बढ़ने के रास्ते तो अलग होंगे। लेकिन मंजिल तक की एक ही है।" फकीर बाबा ने कहा ।


"वां पोंच के क्या करेला बाबा ?" रुस्तम राव ने पूछा ।


कीर बाबा के होठों पर शांत मुस्कान उभरी ।


"पहले वहां तक तो सब लोग पहुंचो । वहां क्या करना है, ये बात वहीं बताऊंगा ।"


"आपो भी वां ही होएला बाबा ?"


"नहीं । लेकिन जब तुम लोग वहां पहुंच जाओगे, तो मैं वहीं मिलूंगा, फिर बताऊंगा कि ताज कहां है । अब मैं चलता...।"


"बाबा ।" महाजन ने टोका--- "वहां तक तो आप अपनी शक्ति के दम पर हमें पहुंचा सकते हैं । हम यहां...।"


"हां । पहुंचा सकता हूं । लेकिन मैं भी कानून-कायदों से बंधा पड़ा हूं ।" बाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "मायावी नगरी में मुझे तो जाने की इजाजत है। लेकिन किसी को साथ ले जाने की इजाजत मुझे नहीं है । अगर मैंने ऐसा किया तो जो शक्तियां मैंने प्राप्त कर रखी है, वो कमजोर पड़ सकती है । इसलिए यहां से मायावी नगरी तक तुम लोगों को खुद ही पहुंचना होगा । मैं वहीं मिलूंगा। जब ये बाग समाप्त हो तो समझ जाना कि मायावी नगरी आरंभ हो गई है और वहां से तुम लोगों को तिलस्मी नगरी में प्रवेश करने का रास्ता बताऊंगा जहां से वो 'ताज' लाना है।" 


कहने के साथ ही फकीर बाबा ने सब पर निगाह मारी और फिर सबके देखते-देखते फकीर बाबा का शरीर हवा में घुलता हुआ, ओझल हो गया। सबकी निगाहों से


जहां फकीर बाबा खड़े थे, वो जगह खाली थी।


कई पलों के लिए वहां सन्नाटा-सा छाया रहा। उस खामोशी को जगमोहन ने तोड़ा। वो महाजन से बोला।


"दोनों में से तुमने कौन-से रास्ते पर जाना है ।"


महाजन ने दोनों रास्तों पर निगाह मारी ।


"दाईं तरफ वाला रास्ता ठीक रहेगा ।" महाजन ने कहा ।


"ठीक है । हम बाईं तरफ वाला रास्ता ले लेते हैं ।" जगमोहन ने शांत भाव में सिर हिलाया।


***