रात का अंधेरा कब का फैल चुका था।


चाँद पूरा निकला हुआ था। आकाश में तारे मोतियों की भांति चमकते नजर आ रहे थे। चाँद की रोशनी में दूर-दूर तक पानी की काली सतह नजर आ रही थी। सतह हौले-हौले हिल रही थी। जिससे कि उसके पानी होने का एहसास हो रहा था। वरना वो समतल जमीन ही महसूस हो रही थी, काला समन्दर था वो। किनारे पर देवराज चौहान, मोना चौधरी, जगमोहन, महाजन, पारसनाथ, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, नगीना और राधा मौजूद थे। उनसे कुछ दूरी पर फकीर बाबा खड़ा था।


चाँदनी रात होने की वजह से वे लोग एक-दूसरे को बहुत हद तक स्पष्ट देख रहे थे


“छोरे ! थारो घड़ो का टेम देवे हो?”


रुस्तम राव ने कलाई पर घड़ी देखने के बाद कहा।


“ग्यारह बजेला बाप । "


“टापू को समन्दरों से बाहर आने को एक घंटों का वक्त होवो अभी।"


महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूंट भरा और पारसनाथ के पास पहुंचकर गम्भीर स्वर में बोला ।


“मेरे ख्याल में हम बहुत बड़े खतरे में कदम रखने जा रहे हैं। "


“हां।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा- “हम एक ऐसी अंधेरी गली में प्रवेश करने जा रहे हैं, जहां रोशनी का जरा भी इन्तजाम नहीं ।


रास्ता नजर नहीं आयेगा । गली में गड्डा कुआं या घात लगाये लोग, हमारे इन्तजार में मौजूद हो सकते हैं। हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते।” " गुरुवर की बात न होती तो मैं कभी भी इस मामले में दखल न देता ।” “तुम क्या सब ही, गुरुवर की खातिर, शैतान के अवतार से टक्कर लेने जा रहे हो?”


“पेशीराम ने कहा कि शैतान के अवतार से सिर्फ गुरुवर टक्कर ले सकते हैं। ” महाजन बेचैन स्वर में बोला- “ इस बात से स्पष्ट है कि वो असीम शक्तियों और ताकतों का मालिक है। ऐसे में हम लोग उसका मुकाबला कैसे कर सकेंगे। वो जादुई करिश्में जानता है। तिलस्म है उसका | जादू-टोना जानता है। जिन्न और प्रेतों को अपने कब्जे में रखा है, जो उसके इशारे पर कुछ भी कर सकते हैं। हमारा, शैतान के अवतार के साथ मुकाबला जरा भी बराबर का नहीं है। "


पारसनाथ कुछ न कहकर अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा। उधर राधा, नगीना से कह रही थी।


“तूने मेरे घर पर झूठी बातें कहकर मुझे बहुत बेवकूफ बनाया।


“मैंने कुछ बुरा नहीं किया तुम्हारे साथ !”


“सो तो है। लेकिन तू मोना चौधरी को देवराज चौहान के हाथों खत्म करवाना चाहती थी।”


“मैं कुछ नहीं चाहती। जो मेरे पति ने कहा, मैंने वही किया । तू भी तो अपने पति की हर बात मानती है।” नगीना बोली।


“हां। पति की बात नहीं मानूंगी तो क्या उस मूंछों वाले गधे की बात मानूंगी।” राधा ने मुंह बनाया।


बांकेलाल राठौर के कानों में ये शब्द पड़े।


“छोरे!” बांकेलाल राठोर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा- “वो औरत फिरो म्हारी मूंछों पर वार करो हो ।


“बाप वो बच्ची होएला। वो नेई जानेला मूंछों की पॉवर ।”


रुस्तम राव कह उठा ।


“का बतायो छोरे धारे को। वो म्हारी गुरदासपुरो वाली, म्हारे को बोत यादो आवो। एक बारो अंमने मूंछों को मूंड लयो तो वो म्हारे से बोत नाराजो हो गयो। बोलो कि अंम थारी मूंछों को पैले प्यार करो, बादो में थारे को। जबो तक म्हारी मूंडों बड़ो-बड़ो न हो गयो । तबो तक उसो ने म्हारे से बात ही न कियो। जब वो देखो कि म्हारी मूछों पैले की तरहो फिट हो गयो तो फिर लस्सी का बड़ो गिलास पिलायो, मक्खनों का गोला डालो के । मक्की की रोटी और सरसों का सागो खिलायो खेतो में बिठाके और जब तक अंम खायो वो बोत प्यार-प्यार से दुपट्टे से मक्खियों को उड़ायो । ”


“ये ई प्यार होईला बाप । ”


“वो बोत चाहो हो म्हारे को, पण उसो के बापो ने, उसो का व्याह दूसरो के साथो कर दयो।” बांकेलाल राऔर ने गहरी सांस ली- “तब मन्ने गुरदासपुरो ही छोड़ दयो। म्हारा तो वां पे सबो कुछ ही खत्म हो गयो।"


“हौसला रखेला बाप । ये दुनियां बोत गड़बड़ होएला । "


तभी मोना चौधरी की आवाज वहां गूंजी।


“पेशीराम, कहीं ऐसा तो नहीं कि वो टापू आज समन्दर से बाहर निकले ही नहीं। ”


“ऐसा आज तक नहीं हुआ मिन्नो । ”


“ आज ऐसा हो गया तो?”


“इसका जवाब मेरे पास नहीं है। "


देवराज चौहान ने पेशीराम से कहा ।


"अगर जंजीरा बाहर नहीं आया तो हम समन्दर की तह में जाकर उसकी तलाश कर सकते हैं। "


“कोई फायदा नहीं देवा ।” पेशीराम ने शांत स्वर में कहा- “ ये शैतान के अवतार के खेल हैं। पानी की गहरी से गहरी तह में जाकर भी तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। सिर्फ समन्दर की उबड़-खाबड़ जमीन मिलेगी। काला पानी होने की वजह से, समन्दर की गहराई में तुम कुछ भी स्पष्ट नहीं देख सकोगे। शैतान के अवतार की दुनियां समन्दर के पानी में नहीं हो सकती। वो कमजोर नहीं है जो छिप कर रहे।"


“तुमने उसे देखा है?” जगमोहन ने पूछा।


“नहीं। मैंने उसे कभी नहीं देखा।” पेशीराम बोला- “ बारह बजने दो, अभी जंजीरे के बाहर आने में वक्त बाकी है।"


सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।


“वो शैतान का अवतार। हम मामूली इन्सान। ऐसे में हम उसका क्या बिगाड़ सकेंगे।” वो जगमोहन से बोला ।


“सोहनलाल!” जगमोहन के दांत भिंच गये- “मुकाबले से पहले नहीं सोचा जाता कि अंजाम क्या होगा। अंजाम भगवान के हाथ में और काम इन्सान के हाथ में। होनी को हम टाल नहीं सकते तो, बेकार की बातों को सोचने से क्या फायदा।”


फकीर बाबा का स्वर सबके कानों में पड़ा।


“वहां तुम लोगों ने आपसी झगड़ा भुला देना है। एक साथ मिलकर काम करना है। अगर तुम लोगों के आपसी झगड़े जारी रहे तो इसका फायदा शैतान के अवतार को मिलेगा। नुकसान तुम लोगों का होगा। और वो नुकसान होगा तुम लोगों की जान जाने का। यज्ञ के इस नाजुक वक्त में गुरुवर की परेशानियां जान देकर भी दूर न कर सके तो जान देने का क्या फायदा । मिलकर रहोगे तो तुम लोगों की शक्ति बढ़ेगी। वरना शैतान के अवतार के सामने और भी कमजोर पड़ जाओगे।”


सबने एक-दूसरे को देखा। कहा कुछ नहीं। चुप्पी-सी छा गई वहां ।


रात के बारह बजने में ज्यादा वक्त बाकी नहीं बचा था।


रात के ठीक बारह बजे ।


सबकी नजरें काले समन्दर पर ही थीं।


फिर उन्हें जो देखने को मिला, वो ठगे से खड़े रह गये।


बहुत ही विस्मयकारी दृश्य उनके सामने आता जा रहा था।


जो कि विश्वास के काबिल नहीं था, परन्तु अविश्वास का भी कोई कारण नहीं था। अपनी आंखों से सब कुछ देख रहे थे।


***

सब कुछ उनके सामने ही था।

पहले उन्हें एक तीद्र रोशनी देखने को मिली। जैसे कोई बल्ब जल रहा हो। वो धीरे-धीरे समन्दर से निकलकर आकाश की तरफ बढ़ने लगा था। चन्द्रमा की रोशनी में उस चमकती बल्ब जैसी चीज के नीचे लम्बा-सा कुछ होने का एहसास हो रहा था। उस बल्ब जैसी चीज की रोशनी में समन्दर का थोड़ा सा हिस्सा रोशन हो उठा था। बहुत ही मध्यम-सी गति थी उस रोशनी की, आकाश की तरफ बढ़ने की।

दो मिनट बीत गये।

ढाई सौ फीट ऊंचाई पर वो रोशनी पहुंची होगी कि उसी पल सबकी आंखें फैल गईं।

काले पानी के जिस हिस्से से वो बल्ब जैसी रोशनी निकली थी, उससे ढाई- ढाई सौ फीट के फांसले पर, बराबर दूरी पर वैसी ही चार अन्य रोशनियां बाहर निकलीं।

अब वो पांचों रोशनियां एक साथ बराबर गति से आकाश की तरफ बढ़ने लगीं।

समन्दर का काफी बड़ा हिस्सा उन रोशनियों के कारण साफ नजर आने लगा था ।

ये एक रोमांचकारी दृश्य था, उन सबके लिए। हर कोई स्तब्ध - सा खड़ा ये सब देख रहा था। जब वो चारो रोशनियां पचास-पचास फीट ऊपर पहुंची और बीच वाली तीन सौ फीट ऊपर आसमान में पहुंच चुकी थी तो तब उसी वक्त समन्दर से बेहद छोटी-छोटी रोशनियां बाहर निकलने लगीं।

“ये क्या होएला बाप?”

“नीलू ! ये तो किसी बड़े जादूगर का तमाशा है। पहले मुझे यहां क्यों नहीं लाया?"

सबकी खामोश, उत्सुकता भरी निगाह काले समन्दर पर हो रही हरकतों पर टिकी थी।

शीराम गम्भीर निगाहों से ये सब होता देख रहा था। तीस मिनट लगे काले समन्दर में होती हलचलों को थमने में।

अब जो उनके सामने था, वो उन्हें हैरान कर देने के लिए काफी था। अजीब- सी स्थिति में खड़े वो सब उधर ही देखे जा रहे थे।

उनके चेहरे पर, उनकी सोचों में अविश्वास ही अविश्वास था। बड़ा-सा जमीन का टुकड़ा काले समन्दर के बाहर, पानी से करीब चार फीट ऊपर आ ठहरा था। उस पर छोटा सा खूबसूरत महल खड़ा था। जिसकी पांच मीनारें थीं। एक मीनार महल के ठीक बीचो-बीच से निकल रही थी। जो कि समन्दर की सतह से तीन सौ फीट ऊंची जा रही थी। बाकी चार मीनारें महल के चारों कोनों में थी जो कि मात्र पचास फीट ऊंची थी। मीनारों के ठीक ऊपर तीव्र रोशनियां हो रही थी। बाहरी रोशनियों की वजह से महल की लम्बाई- चौड़ाई, आकार, हर चीज स्पष्ट नजर आ रही थी । महल के बाहर कच्ची जमीन पर खूबसूरत पेड़ों की कतारें थीं जिन पर नन्हें नन्हें बल्ब रोशन हुए पड़े थे। उन रोशनियों की वजह से समन्दर का बहुत बड़ा हिस्सा जगमगा उठा था। हर तरफ काला पानी चमकता हिलता स्पष्ट नजर आ रहा था। ये सब कुछ हैरान कर देने वाली बातें थीं उनके लिए। “देवा!” फकीर बाबा का गम्भीर स्वर वहां गूंजा - “मिन्नो।” फकीर बाबा के शब्दों से उनके मस्तिष्क की स्तब्धता टूटी। उनके शरीर हिले । जैसे नींद से जागे हों।

“पेशीराम!” देवराज चौहान ने अपने पर काबू पाते हुए कहा- "ये सब क्या है?”

“शैतान के अवतार का जंजीरा (टापू) है। यही छः महीने बाद, ठीक बारह बजे इसी जगह से समन्दर से निकलता है। हर बार इसी तरह रोशनियों में डूबा महल जंजीरे पर नजर आता है। तीन घंटे बाद जंजीरा पुनः समन्दर में लुप्त होना शुरू हो जाता है। ”

“तुम्हें पक्का यकीन है कि इस जंजीरे पर पहुंचकर हम शैतान के अवतार की दुनियां में जा सकते हैं।” मोना चौधरी ने पूछा।

“मिन्नो! यकीन न होता तो मैं तुम सबको यहां लाता ही क्यों ?” पेशीराम की आवाज में जहान भर की गम्भीरता थी- “शैतान के अवतार की ताकत का छोटा- सा नमूना तुम लोगों के सामने है। इसी से अंदाजा लगा सकते हो कि हकीकत में कैसी शक्तियों का मालिक हो सकता है। मेरे ख्याल में इस जन्म में, तुम लोगों की ये आखिरी मुलाकात है मेरे साथ। क्योंकि तुम लोग जिन्दा वापस नहीं आ सकोगे। मैं इन्तजार करूंगा तुम दोनों के दोबारा जन्म लेने की। जाने फिर कहां जन्म लोगे तुम दोनों। तब भी मेरी यही कोशिश होगी कि देवा और मिन्नो में दोस्ती कराकर, गुरुवर के श्राप से मुक्त हो सकू।”

“वापस आने का रास्ता कहां से मिलेगा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मैं नहीं जानता। अपनी हर परेशानी का हल तुम्हें ही तलाश करना होगा। जिस जगह को मैंने कभी नहीं देखा, वहां के बारे में बता ही क्या सकता हूं।” फकीर बाबा की आवाज में व्याकुलता आ भरी थी ।

“पेशीराम !” मोना चौधरी गम्भीर भी थी और क्रोध में भी..."

“शैतान के अवतार के बारे में कोई खास बात बताना चाहते हो?” 

“जो जानता था, वो तुम सब को बता चुका ।”

मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा।

“अब हमारे यहां रुकने की जरूरत नहीं रही देवराज चौहान । हमें चलना चाहिये।” मोना चौधरी कह उठी।

देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर काले समन्दर में उभरे जंजीरे को देखा।

“हां।” देवराज चौहान ने कहा- “हमें वक्त रहते जंजीरे पर पहुंच जाना चाहिये। अगर देर हो गई तो जंजीरा वापस समन्दर में समा जायेगा फिर इसकी वापसी के लिए हमें छ: महीने का इन्तजार करना पड़ेगा। और इन छः महीनों में शैतान का अवतार गुरुवर की परेशानियों को और बढ़ा चुका होगा।”

मोना चौधरी का चेहरा और भी सख्त हो गया।

“हम शैतान के अवतार के इरादों को कामयाब नहीं होने देंगे देवराज चौहान। रही बात आपसी झगड़े की तो वक्त आने पर वो भी देख लेंगे।"

“मुझे विश्वास है कि हम कामयाब रहेंगे मोना चौधरी । ” 

कहने के पश्चात् देवराज चौहान ने दृढ़ता भरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा - “हम जा रहे हैं पेशीराम।"

“जाओ।” फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा- “मेरा मन कहता है कि तुम दोनों के इस जन्म का अंत होने जा रहा है। अब वापस नहीं आ सकोगे। मेरे ख्याल में अब मैं तुमसे तभी मिल पाऊंगा, जब दोबारा तुम दोनों कहीं जन्म लोगे।"

देवराज चौहान और मोना चौधरी दृढ़ इरादों के साथ पलटे और काले समन्दर की तरफ बढ़ गये। जहां कुछ देर पहले ही निकला छोटा सा टापू नजर आ रहा था।

उनके पीछे थे जगमोहन, सोहनलाल, महाजन, पारसनाथ, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, राधा और नगीना । सब कुछ कर गुजरने को तैयार नजर आ रहे थे। पेशीराम के देखते ही देखते वो सब समन्दर के किनारे पर पहुंचकर ठिठके । फिर एक के बाद एक समन्दर में कूदते चले गये

और तैरते हुए उस छोटे से टापू की तरफ बढ़ने लगे।

तीस मिनट लगे उन्हें टापू तक पहुंचने में।

देवराज चौहान और मोना चौधरी ने एक साथ ही टापू पर पांव रखा। उसके बाद एक-एक करके सब टापू पर आते चले गये। ठण्डी हवा चल रही थी। गहरा सन्नाटा था। कोई नजर नहीं आ रहा था।

कुछ पल ठिठककर सब हर तरफ नजरें दौड़ाते रहे। 

" महल की तरफ चलो। " मोना चौधरी कह उठी। 

देवराज चौहान ने सबको गम्भीर निगाहों से देखा।

“अब हम नहीं जानते कि हमारे साथ क्या होगा । कैसे-कैसे हालात हमारे सामने आयेंगे।” देवराज चौहान के गम्भीर स्वर में - ठहराव के भाव थे- “जो कुछ भी हो, हमने संयम और समझदारी से काम लेना है। कैसी भी जल्दबाजी और गलती से हमारी जान जा सकती है। शैतान का अवतार जो भी है, वो बंद मुट्ठी है हमारे लिए। वो कौन है? दिखने में कैसा है? अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किस तरह करता है? हमें इस बात का जरा भी आभास नहीं। यकीन के साथ तो नहीं कह सकता। लेकिन हो सकता है शैतान के अवतार को खबर हो कि हमारे कदम उसकी तरफ बढ़ रहे हैं। हर बात को ध्यान में रखकर हमें आगे बढ़ना है।” 

“थारी बातो तो म्हारे को फिट लगो हो।”

“मेरे ख्याल में महल में हम सबको एक साथ प्रवेश नहीं करना चाहिये । ” मोना चौधरी ने कहा-- “पहले एक को जाना चाहिये अगर कोई खतरा आये तो कम से कम उस खतरे का रंग-रूप देखा जा सके। "

“मोना चौधरी ठीक कहती है। " नगीना ने कहा । 

“पहले मैं महल में जाऊंगा । " महाजन कह उठा। 

“नहीं।” जगमोहन बोला- “पहले मैं महल में... '

“मैं जा रही हूं महल में।” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी- “तुम सब यहीं खड़े रहो।”

जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर गई।

“किसी एक को तो पहले महल में जाना ही है। " देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “तो मोना चौधरी के जाने में क्या हर्ज है?”

उसी पल मोना चौधरी के कदम महल की तरफ बढ़ गये। कुछ दूरी पर महल का चमकता हुआ प्रवेश द्वार नजर आ रहा था। कुछ पहले से ही जमीन पर बिछा मखमली कालीन शुरू हो रहा था, जो महल के मुख्यद्वार की तरफ जा रहा था। सबकी व्याकुल गम्भीर निगाह मोना चौधरी पर टिकी थी।

मोना चौधरी रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले चुकी थी ।

"ठहर जा ।"

मोना चौधरी ने ठीक प्रवेश द्वार पर, महल के भीतर कदम रखने के लिए पैर उठाया तो तेज सी आवाज उसके कानों में पड़ी तो पैर को वहीं रोका और फिर वापस खींच लिया। हाथ में रिवाल्वर थामे फुर्ती के साथ नजरें हर तरफ घुमाईं तो सामने से ही एक व्यक्ति आता नजर आया।

उसकी ऊंचाई तीन फीट की थी। सेहतमंद था वो। शरीर पर लंगोट जैसा कोई कपड़ा बांध रखा था। इसके अलावा और कुछ नहीं पहना हुआ था । सिर के बाल गर्दन तक झूल रहे थे।

मोना चौधरी की पैनी निगाह उस पर टिक चुकी थी ।

तीन कदम पहले ही वो ठिठक गया और मोना चौधरी को देखकर मुस्कराया। 

“मैं क्यों पूछँ कौन है तू?” वो हंसकर बोला- “यहां क्यों आई है तू?” 

मोना चौधरी सतर्क -सी उसे देखती रही।

“लेकिन एक बात जरूर पूछूंगा । ” वो पहले की तरह हंसा ।

“क्या?”

“तेरा इस जन्म का जोड़ीदार कहां है?'"

“जोड़ीदार?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं- “इस जन्म का?”

“वो ही देवा।” वो हंसा- “मैं सब जानता हूं कि तू मिन्नो है। लेकिन मैं क्यों पूछ् ? तीन जन्म पहले तूने मेरे मालिक को अपने जोड़ीदार देवा के साथ मिलकर खत्म कर दिया था। अब फिर तू मेरे मालिक की जान लेने की खातिर आ गई ! आ-जा। लेकिन अकेले नहीं आने दूंगा। जोड़ीदार देवा भी तेरे साथ होना चाहिये।”

मोना चौधरी कई पलों तक उसे देखती रही ।

“ये शैतान के अवतार की जगह है। "

“मैं जानता हूं मिन्नो कि तू सब जानती है।”

“तीन जन्म पहले मैंने और देवराज चौहान ने मिलकर शैतान के अवतार को मारा था। ” मोना चौधरी गम्भीर थी।

“हां। अब भूल गई क्या?”

“तब तेरे मालिक यानि शैतान के अवतार का नाम क्या था?"

“मैं क्यों बताऊं। तू ही जान।'

मोना चौधरी के दांत भिंच गये।

“मालिक ने मुझे पचास बरस पहले ही बता दिया था कि तुम और देवा इसी रास्ते से आओगे फिर उसकी जान लेने और मैंने तुम लोगों का स्वागत करना है। " उसने हंसते हुए कहा- “लेकिन अकेले-अकेले तेरा स्वागत नहीं करूंगा मिन्नो।” “देवा भी मेरे साथ है।" उसे गहरी निगाहों से देखते मोना चौधरी ने कहा ।

“बुला उसे। वो तेरे साथ ही क्यों नहीं आया?" हंसा वो।

उसके प्रति सावधान मोना चौधरी ने पलटकर ऊंचे स्वर में पुकारा । दूर वो सब रोशनी में स्पष्ट नजर आ रहे थे।

मोना चौधरी के पुकारने की आवाज सुनते ही सब तेजी से इसी तरफ आने लगे।

जल्दी ही वो सब पास में थे।

“आ देवा।” वो व्यक्ति हंस कर कह उठा- “अधूरी जोड़ी को देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा था। अब तो मन खुश हो गया। आओ-आओ, शैतान के अवतार की तरफ से मैं तुम सब का स्वागत करता हूं। भीतर आओ। ”

देवराज चौहान ने उलझन भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

“देवराज चौहान!” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी- “इसकी बातों से मुझे मालूम हुआ है कि शैतान का अवतार हमारे तीन जन्म पहले वाले जन्म से वास्ता रखता है और हम दोनों ने ही मिलकर तब उसे मारा था। अब भी शैतान के अवतार को सालों पहले से पता था कि हम दोनों इस रास्ते से फिर उसकी जान लेने आयेंगे। ”

“इसका मतलब शैतान के अवतार को खबर है कि हम आ रहे हैं। " देवराज चौहान कह उठा।

“हां।”

“तीन जन्म पहले शैतान के अवतार का नाम क्या था, जिसे हमने मारा था ?” - देवराज चौहान बेहद गम्भीर था ।

“इस बारे में ये नहीं बता रहा । "

“आओ आओ।” वो व्यक्ति पुनः हंसकर कह उठा - "मेहमानों का इस तरह बाहर खड़े रहना अच्छा नहीं होता। भीतर आ जाओ सब लोग। मुझे सेवा का मौका दो।”

मोना चौधरी और देवराज चौहान की नजरें मिलीं। फिर वो भीतर प्रवेश कर गये।

बाकी सब उनके पीछे थे।

***
उस व्यक्ति के बार-बार पूछने पर उन्होंने चाय लाने को कह दिया था। उस ठिगने व्यक्ति का नाम मोगा था। अब वे सब चाय के घूंट भर रहे थे। मोगा पास ही सेवक की भांति हाथ बांधे खड़ा था।

“इस बात से ये मामला और भी खतरनाक हो गया कि शैतान के अवतार को तुम दोनों ने तीन जन्म पहले मारा था और अब हम फिर उसे खत्म करने आये हैं और, उसे सब खबर है।” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा- “या यूं कह लो कि वो तुम दोनों के आने का इन्तजार ही कर रहा था ।"

“देवा-मिन्नो नहीं तुम सबके आने का इन्तजार । ” मोगा कह उठा।

“हम सबके?” जगमोहन की निगाह मोगा पर जा टिकी ।

प्यारे पाठकों जैसा कि पढ़कर आपको महसूस होने लगा है कि विस्मयकारी और रोमांचकारी हादसों का दौर अब शुरू होने जा रहा है। देवराज चौहान और मोना चौधरी अपने साथियों के साथ “शैतान के अवतार” की दुनियां में प्रवेश करने जा रहे हैं। वहां इनके साथ क्या होना है, इन बातों की इन्हें जरा भी खबर नहीं है। लेकिन इस बात का एहसास है कि वहां मौत इनका इन्तजार कर रही हो सकती है। उधर जैसे फकीर बाबा को महसूस हो रहा है कि इनमें से कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा क्योंकि शैतान का अवतार बेपनाह ताकतों का मालिक है। अब इनसे तब ही मुलाकात होगी, जब ये दोबारा कहीं जन्म लेंगे। तो क्या “शैतान का अवतार” वो बाल ढूंढकर गुरुवर की अद्भुद शक्तियों का मालिक बन जायेगा। इन सबको शैतान का अवतार खत्म कर देगा। कैसी है “ शैतान के अवतार " की नगरी ।

तीन जन्म पहले देवराज चौहान और मोना चौधरी “ शैतान के अवतार" की जान किन हालातों में, क्यों ली थी। कौन है “ शैतान का अवतार ” ऐसे कई दिलचस्प सवालों के साथ हैरतअंगेज कहानी का हमारे सामने आना बाकी है। इन सब बातों को जानने के लिए पढ़ें रवि पॉकेट बुक्स में अनिल मोहन का आगामी नया उपन्यास “दूसरी चोट” ।

“हां।” उसने हंसकर कहा- “तीन जन्म पहले तुम सबने भी तो देवा और मिन्नो का साथ दिया था जग्गू।”

“जग्गू! तुम मेरे तीन जन्म पहले वाले नाम को जानते हो?” जगमोहन के होंठों से निकला

“मैं तुम्हारे क्या सबके नामों को जानता हूं। तब अपने मालिक के साथ में भी तो मरा था।” वो हंसते हुए कह रहा था - "ये गुलचंद है। ये परसू । ये भंवर सिंह है। ये त्रिवेणी है। ये नील सिंह है । लेकिन इन दोनों बालाओं को नहीं जानता । तीन जन्म पहले तब ये बालाएं वहां नहीं थीं । ”

“अब तो साथ हूं ना ठिगने । ” राधा हाथ हिलाकर कह उठी- “चुप कर । आराम से चाय पीने दे। "

सब हैरान से उलझन में फंसे एक-दूसरे को देखने लगे।

नगीना बेहद गम्भीर थी।

“ये तो बोत गड़बड़ होएला बाप । " रुस्तम राव ने भिंचे स्वर में कहा- “आपुन लोग, चुपके से शैतान के अवतार को खत्म करने वास्ते आईला था। पण वो तो आपुन लोगों का आगा-पीछा सब जानेला । अब वो आपुन को जिन्दा नेई छोड़ेला । '

“म्हारो मन तो करो कि गुरदासपुरो ही दौड़ जायो । अंम ऐसा करो तो गुरुवर म्हारो बारो में का सोचो हो।”

" हालात और भी खतरनाक हो गये हैं। ” देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा- “शैतान के अवतार को हम दुश्मन मानकर उसका मुकाबला करने चले थे लेकिन वो तो हमारा पुराना दुश्मन निकला। जो कि पहले से ही तैयारी किए हुए है।"

“तुम ठीक कहते हो देवराज चौहान । मुझे नहीं कि पहले कदम पर ही शैतान के अवतार की तरफ से हमें चोट मिल जायेगी। लेकिन हम इन बातों की परवाह करेंगे तो, खुद को कमजोर पायेंगे। मौत से लड़ने का हमारा उत्साह कम नहीं होना चाहिये ।"

देवराज चौहान के चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी ।

“मोगो की बातो सुनो के तो म्हारी पैट गिल्लो हो गयो। सारो मालूम था उत्साही उधर से ही खिसक गयो तो का हौवों?”

“तुम सब की मौत निश्चित कर चुका है शैतान का अवतार । ” मोगा ने हौले- हौले हंसते-हंसते कहा- “वो जानता है कि तुम लोगों ने दालूबाबा से टक्कर ली और उसे मार दिया। हाकिम को खत्म कर दिया। वो हाकिम, जो शैतान के अवतार का बहुत ही खास होता था । " 

ये सब जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास (1) जीत का ताज, (2) ताज के दावेदार (3) कौन लेगा ताज- 

“ हाकिम को खत्म करना खेल नहीं था लेकिन तुम लोगों ने मार दिया उसे। शैतान के अवतार को तुम लोगों की शक्ति का एहसास है। तुम लोगों की ताकतों को देखते हुए ही मालिक ने तुम सबकी मौत का प्रबन्ध किया है।”

“तू हमें डरा क्यों रहा है?” राधा ने उसे घूरा- “आराम से चाय पीने दे। 

जवाब में मोगा हौले-हौले हंसता रहा।"

निस्सन्देह वो समझ चुके थे कि शैतान का अवतार असीम ताकत का मालिक है। जिसका मुकाबला नहीं किया जा सकता।

हाकिम जैसा शैतान अगर उसका चेला था तो शैतान का अवतार खुद कितना शक्तिशाली होगा।

वो सब एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे। हालातों को महसूस कर चुके थे कि आने वाले वक्त में क्या होने वाला है, परन्तु कोई भी वापस पलटने को तैयार नहीं था। तभी उन सबको हल्का सा झटका लगा। कम्पन महसूस हुआ

उन्हें फिर सब ठीक हो गया।

“ये क्या हुआ था अभी?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“शैतान के अवतार की दुनियां की तरफ, हमारी रवानगी शुरू हो गई है गुलचंद ।” मोगा हंसते हुए बोला।

“थारो मतलब कि टापू पानी में घुसो जावे हो।” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला।

“हां।” मोगा बोला- “अब तुम सब बहुत जल्दी हमारी दुनियां में प्रवेश करने जा रहे हो। ”

सबने एक-दूसरे को देखा। आंखों में एक ही सवाल था कि अब क्या होगा? “महल पानी में जा रहा है तो हम भी पानी में डूब जायेंगे ।" राधा कह उठी।

“मत भूलो अब तुम लोग शैतान के अवतार के मेहमान हो और उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता । फिर पानी कैसे भीतर आ सकता है।" मोगा हंसते हुए बोला- “हवा-पानी - आग, सब कुछ मालिक की मुट्ठी में कैद है।”

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नजरें मिलीं।

वो सब चुप्पी से बैठे रहे। महल सहित टापू धीरे-धीरे पानी में समाता चला गया।

फकीर बाबा तब तक काले समन्दर के किनारे खड़ा रहा, जब तक कि वो सारा टापू, महल और महल की बीच वाले बुर्ज की ऊंची रोशनी वापस पानी में न समा गई। अब हर तरफ काले समन्दर का पानी नजर आ रहा था। इस अहसास के साथ फकीर बाबा के चेहरे पर दुःख और अफसोस के भाव थे कि शैतान के अवतार से टकराकर ये लोग वापस जिन्दा नहीं लौट सकेंगे। शायद इस जन्म का साथ खत्म हो गया है। अब इनसे अगले जन्म में ही मिलना हो सकेगा।

काले समन्दर को देखते हुए फकीर बाबा ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाया फिर होंठों ही होंठों में जाने क्या बुदबुदाया। उस पल फकीर बाबा का शरीर रूई के गोले में बदला फिर वो रूई का गोला छोटा होता हुआ जाने कहां खो गया।

समाप्त