धीरज बस उसे घूरता रहा।
“तुम्हारी पहली बात भी ठीक थी मराठा, ऐसी आखिर वह क्या हकीकत है, क्या भेद है जिसे खुलने से रोकने के लिए यह खुद को रेप जैसे इल्जाम का मुल्जिम बनाने को तैयार हो गया। कोर्ट में भले ही मुजरिम साबित न होता लेकिन समाज में तो बदनाम हो ही जाता।”
“इसका मतलब तो हमारे दोनों सवालों का एक ही जवाब हुआ ।” मैंने कहा-“वह भेद जानना जिसे ये छुपाने की कोशिश कर रहा है।"
“सिर्फ कोशिश ही नहीं कर रहा बल्कि सारे पापड़ उसी के लिए बेल रहा था बेचारा ।” विभा बोली- --- “पता नहीं ये ऐसा क्या गुनाह किए बैठा है जिसे सामने नहीं आने देना चाहता।”
“बकना तो इसके बाप को भी पड़ेगा ।” दांत किटकिटाते हुए मराठा ने कहा ---- “इस तरह नहीं बकेगा तो इलैक्ट्रिक शॉक देने पर बकेगा। पुलिस के टार्चररूम में अच्छों-अच्छों को हकीकत..
“नहीं मराठा ।” विभा ने उसकी बात काटी ---- “शायद तुम नहीं जानते कि विभा जिंदल पुलिस की थर्ड डिग्री के सख्त खिलाफ है।"
“आप बस थोड़ी देर कि लिए, मुश्किल से आधे घंटे के लिए यहां से बाहर चली जाइए। उसके बाद जब आप लौटेंगी तो इसे तोते की तरह रट - रटकर बोलता पाएंगी।”
“मैंने यह नहीं कहा मराठा कि मैं किसी को थर्ड डिग्री से गुजरते नहीं देख सकती बल्कि यह कहा है कि पुलिस के इस तरीके के सख्त खिलाफ हूं । न अपनी आंखों के सामने ऐसा होने दे सकती हूं, न ही आंखों के पीछे । यह तरीका अमानवीय है ।”
“आपका पाला शायद लातों के भूतों से नहीं पड़ा । कहावत तो सुनी होगी, लातों के भूत बातों से नहीं मानते। कुछ लोगों से हकीकत उगलवाने के लिए वह सब जरूरी होता है ।”
“मैं वो नहीं होने दूंगी ।"
“ और ये मुझे इस तरह जुबान खोलने वाला नहीं लग रहा। आप समझ क्यों नहीं रहीं विभा जी ? जिस भेद को यह छुपाने की कोशिश कर रहा है उसे उगलवाने का और कोई तरीका नहीं
"है।"
“क्या?” मराठा परेशान - सा हो गया ।
विभा ने जवाब देने के स्थान पर सीधा कमिश्नर को फोन मिलाया और बोली----“कमिश्नर साहब, यह तो आपको पता लग ही गया होगा कि हमने धीरज सिंहानिया को गिरफ्तार किया है ।”
“हां बहूरानी, पता लगा ।” स्पीकर से आवाज निकली।
“ इसे कल सुबह ही फोरेंसिक लेबोरेटरी में भेज दिया जाए । ”
“क्या कराना चाहती हैं?"
“नार्को एनालिसिस और ब्रेन फिंगर प्रिंटिंग यानी ब्रेन मैपिंग और लगे हाथों पालीगाफी टेस्ट भी हो जाए तो बेहतर है । "
“आप ऐसा चाहती हैं तो क्यों नहीं होगा, लेकिन..
“लेकिन ?”
“क्या वह कोई राज नहीं उगल रहा है?”
“तभी तो इसकी जरूरत पड़ी । "
“ठीक है | हो जाएगा। मैं अभी प्रबंध कर देता हूं।"
विभा ने थैंक्यू कहकर संबंध-विच्छेद किया और होठों पर हल्की सी मुस्कान लिए मराठा से बोली- --- "विज्ञान जब इतनी तरक्की कर चुका है कि एक इंजेक्शन लगते ही आदमी सारी हकीकत उगल देता है तो उसके साथ अमानवीय तरीका अपनाने की क्या जरूरत है?”
“ये तरीका दूसरे दृष्टिकोण से भी ठीक है।" मैंने कहा---- “टार्चर से बचने के लिए आदमी झूठ बोल सकता है, कोई कहानी गढ़ सकता है और ये तो वैसे भी कहानियां गढ़ने में माहिर नजर आता है लेकिन उन टेस्टों से गुजरते वक्त ऐसा संभव नहीं है। उस अवस्था में गफलत की हालत में आदमी सच और सिर्फ सच ही बोलता है क्योंकि इंसान से झूठ बोलने के लिए कहने वाली
नस निष्क्रिय हो जाती है । "
“ठीक है! अब तो नहीं डर रहे तुम ?” विभा जिंदल ने धीरज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ---- “घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। इलैक्ट्रिक शॉक की तो बात ही दूर, कोई एक थप्पड़ तक नहीं मारेगा। मराठा, आज रात इसे इसकी पसंद का खाना खिलाना।”
धीरज सिंहानिया का चेहरा इस कदर सफेद पड़ गया था जैसे उसके जिस्म में खून की एक बूंद भी बाकी न बची हो।
मेरा मोबाइल बजा ।
उसी पर टाइम देखा - - - - ढाई बज रहा था।
इतनी रात को तो कोई जरूरी कॉल ही हो सकती है, ऐसा सोच कर मैंने स्क्रीन पर नजर आ रहे नंबर पर ज्यादा गौर नहीं किया और कॉल रसीव करते हुए कान से लगाकर बोला ---- “यस ।”
“मणिक बोल रहा हूं वेद जी ।" दूसरी तरफ से उभरने वाली आवाज सचमुच उसी की थी ---- “मैं बहुत देर से बहूरानी का फोन ट्राई कर रहा हूं मगर मिल नहीं रहा, स्वीच ऑफ जा रहा है। क्या आप उनसे बात करा सकते हैं?”
“क्यों नहीं?” मेरी नींद एक ही झटके में काफूर हो गई थी। बैड से उठकर ड्राईंगरूम की तरफ बढ़ता बोला--- "कह तो रही थी कि बेटरी खत्म है। चार्जर पर लगाना भूल गई होगी। कोई खास बात है?”
“बहुत ही खास ।”
मैं दरवाजे पर पहुंच चुका था ---- “मुझे बता सकते हो ?” “मुझे मालूम है कि बहूरानी आपसे कुछ नहीं छुपातीं ।”
“तो फिर बताओ।” मैं गैलरी में ।
“मैंने अशोक बजाज का पता लगा लिया है ।"
“क... क्या ?” विभा के सुईट के दरवाजे तक पहुंचते-पहुंचते मेरे हलक से खुशी की चीख-सी निकल गई -“क्या कहा तुमने ?”
“इस वक्त वह मेरे कब्जे में है।”
“वैरीगुड ।” मेरे सारे शरीर में यूं रोमांच की तरंगें दौड़ती चली गईं जैसे बिजली के तारों में विद्युत दौड़ती है। कॉलबेल के स्वीच पर अंगूठा रखने के साथ पूछा ---- “कहां से हाथ लगा ?”
“ अपने घर पर ही था ।”
मैं जोर-जोर से स्वीच दबाता बोला---- “घर पर ?”
“मुझे पहले ही शक था कि वह वहीं होगा क्योंकि बजाज भवन पर मेरी कड़ी नजर थी और मैंने उसे निकलते नहीं देखा था । यह बात मुझे शुरू से ही हजम नहीं हो रही थी कि वह कहीं बाहर गया था। इसलिए वहीं डटा रहा और नतीजा सामने है। आप बहूरानी के..
“वही कर रहा हूं। अंदर घंटी भी बज रही है मगर कोई रेस्पॉस नहीं है।" मैंने अंगूठा स्वीच से चिपका ही जो दिया।
मणिक ने कहा ---- “वे तो हल्की-सी आहट से उठ जाती हैं । कहीं ऐसा तो नहीं कि सुईट में हों ही नहीं ?”
“कहां चली जाएगी ?” मेरा यह वाक्य पूरा हुआ ही था कि नया फ्लोर सिक्योरिटी इंजार्च लपककर नजदीक आता बोला ---- -- "मैडम रूम में नहीं हैं सर, मैंने उन्हें जाते देखा था । "
मैंने चकित लहजे में पूछा ---- “कब?” में
“करीब दो घंटे हो गए । "
मैं सन्न |
कुछ समझ नहीं सका।
फ्लोर इंचार्ज से किया जाने वाला अगला सवाल भी नहीं सूझा ।
फोन पर बोला- “वो रूम में नहीं है मणिक ।”
“ओह !” मणिक का ऐसा लहजा जैसे अब उसे भी नहीं सूझ रहा हो कि क्या करे----“कहां चली गईं ?”
“क्या काम था? क्या मैं कोई हैल्प कर सकता हूं?”
“इस वक्त मैं होटल के बाहर खड़ा हूं सर, गाड़ी में अशोक बजाज का बेहोश जिस्म है। इसे बहूरानी के सुइट में लाना है लेकिन होटल की सिक्योरिटी ऐसा नहीं करने देगी। वे होतीं तो कोई इंतजाम कर देतीं। शायद कमिश्नर साहब से कहकर..
“तुम वहीं रहो, मैं कोशिश करता हूं।” कहने के बाद मैंने एक क्षण भी गंवाए बगैर फोन काटा। फोन बुक की मदद से विभा का फोन मिलाया मगर वह स्वीच ऑफ जा रहा था । खुद ही पर झुंझला-सा गया मैं। भला विभा को फोन मिलाने की क्या तुक थी?
अगर वह मिल सकता होता तो मणिक मुझे ही फोन क्यों करता ?
क्या करूं? कमिश्नर साहब को फोन मिला दूं क्या ? क्या मेरा ऐसा करना ठीक होगा? मैंने ज्यादा नहीं सोचा, ठीक हो या न हो लेकिन नंबर मिला दिया। तीसरी बेल पर कॉल रिसीव की गई ।
कमिश्नर साहब का अलसाया - सा 'हैलो' उभरा ।
मैंने बहुत नम्र और शालीन शब्दों में अपना परिचय दिया। जब उन्होंने कहा ---- 'हां, हमें मालूम है कि आप बहूरानी के दोस्त हैं और उनके साथ आए हुए हैं ।' तो मेरा हौसला बढ़ा तथा प्रॉब्लम बताई ।
सुनते ही बोले---- “आप हमें मिस्टर मणिक का नंबर लिखवा दें।
हम अभी होटल के नाइट मैनेजर से बात करके उन्हें फोन करते हैं । वे बेहोश जिस्म को आपके सुईट तक ले जा सकेंगे।”
'थैंक्यू' कहने के बाद मैंने मणिक का नंबर बता दिया ।
उनसे संबंध-विच्छेद करने के बाद तेजी से मणिक का नंबर रि-डायल किया और उसे बताया कि मेरी बात कमिश्नर साहब से हो गई है। वे अभी मैनेजर से बात करके उसे फोन कर रहे हैं।
मणिक का 'थैंक्यू' सुनने के बाद मैंने फोन काटा और लपकता सा अपने सुईट में पहुंचा । शगुन को जगाकर जब उसे सारी कैफियत बताई तो जहां यह सुनकर वह रोमांचित हो उठा कि अशोक मिल गया है वहीं यह सोचकर सस्पेंस में फंस गया कि विभा जिंदल कहां चली गई? बोला ---- “पता नहीं आंटी रातों में कहां गायब हो जाती हैं?"
“ उसकी इस आदत से मैं भी परेशान हूं। दूसरों को चमत्कृत करके उसे मजा आता है, इस मामले में पट्ठी मुझे भी नहीं बख्शती।"
हम इसी तरह की बातें करते रहे लेकिन बातों में मन नहीं लग रहा था । असल में तो हमें मणिक का इंतजार था ।
बार - बार गैलरी में झांकने लगता था मैं ।
वह पंद्रह मिनट बाद नजर आया।
खुद मैनेजर उसके साथ था मगर मेरा ध्यान मैनेजर पर कहां?
मैं तो मणिक के कंधे पर पड़े जिस्म को देख रहा था ।
बिल्कुल नंगा था वह ।
एक बार को तो यह सोचकर रूह ही कांप गई कि कहीं वह मरा हुआ तो नहीं है? लेकिन फिर याद आया कि मणिक ने उसे बेहोश बताया था । भला वह झूठ क्यों बोलेगा ?
मैनेजर उसे मेरे सुईट में छोड़कर चला गया ।
मणिक ने उसे लंबे सोफे पर लिटा दिया और ऐसा होते ही मेरी और शगुन की आंखें फटी की फटी रह गईं।
हम दोनों उसके पेट पर लिखे 'ते' को देख रहे थे ।
“इ... इसका क्या मतलब ?” मेरे मुंह से स्वतः निकला ।
“इसका मतलब जब अभी तक बहूरानी की ही समझ में नहीं आ रहा तो हमारी समझ में क्या आएगा ?”
“ नहीं। मेरा मतलब वो नहीं था ।” मैंने जल्दी से कहा ---- “मेरा मतलब ये था कि अभी तक तो ऐसे अक्षर केवल लाशों में लिखे नजर आए थे। मगर ये तो बेहोश है । अब क्या..
“मेरे ख्याल से यह मरने ही वाला था कि मेरे हाथ लग गया।”
“क्या मतलब?” मैं चौंका ---- “तुम्हारा ख्याल ऐसा क्यों है ?”
“बजाज - भवन की पिछली चारदीवारी फांदकर यह बदहवाशी की हालत में भाग रहा था । वहीं तैनात था मैं | थोड़ी-सी भागदौड़ के बाद दबोच लिया। मेरे द्वारा दबोचे जाते ही यह इस कदर घबराया जैसे मौत के हाथों ने दबोच लिया हो । जूडी के मरीज की तरह कांपने लगा था ये । मुझे लगा - - - - हार्ट अटेक से ही मर जाएगा अतः फौरन ही कनपटी पर कराट मारकर बेहोश कर दिया।"
“इसी हालत में भागता हुआ निकला था यह ?” बुरी तरह व्यग्र होकर मैंने पूछा----“बगैर एक भी कपड़ा पहने ?”
“ और क्या इसके कपड़े मैंने उतार लिए ? ”
उसके जवाब पर मैं सकपका-सा गया |
“पेट पर लिखे 'ते' को तो मैंने बाद में देखा। तब, जबकि इसे अपनी गाड़ी में डाला और उसकी लाइट ऑन की।” मणिक कहता चला गया- - "मुझे लगता है हत्यारा इसे मारने ही वाला था कि किसी तरह उसके चंगुल से निकलकर भाग लिया। वह इसके कपड़े भी उतार चुका था और पेट पर 'ते' भी लिख चुका था।"
शगुन ने कहा- कहा----“लेकिन आंटी ने तो कहा था कि अपने अगले शिकार पर हत्यारा 'ल' लिखेगा ।”
“मेरे ख्याल से इसे होश में लाने की कोशिश करनी चाहिए, इसके साथ जो कुछ हुआ है ----यही बताएगा ।” मेरा वाक्य पूरा हुआ ही था कि मणिक की जेब में पड़ा मोबाइल बजा ।
उसने निकालकर स्क्रीन पर नजर मारी और मुंह से 'बहूरानी' निकालते हुए कॉल रिसीव की । दूसरी तरफ से विभा की आवाज उभरी----“फोन किया था ?” “जी बहूरानी ।” “वजह?” मणिक एक ही सांस में सबकुछ बता गया । “वैरीगुड मणिक । तुमने बहुत अच्छा काम किया है। वहीं रहो ।
मैं आती हूं। और सुनो ---- मेरे आने तक उसे होश में मत लाना।” मणिक ने केवल इतना ही कहा ---- “जी।” अब विभा का इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था ।
“च... चांदनी प्लीज... प्लीज मुझे बख्श दो । मुझे मत मारो । मैं मानता हूं कि मैंने तुम पर बहुत जुल्म किया। मुझे वह सब नहीं करना चाहिए था। गलती हो गई मुझसे। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं। पैर पड़ता हूं। मुझे माफ कर दो । हां... मुझे माफ कर दो । हां... हां... मैं सबकुछ बता दूंगा । भले ही मेरा अंजाम चाहे जो हो लेकिन मैं विभा जिंदल को सबकुछ बता दूंगा। मैं तो पहले भी बता देना चाहता था। तभी बता देना चाहता था जब रतन के बाद अवंतिका का मर्डर हुआ । मैं तभी समझ गया था कि तुम बेकसूर हो लेकिन वो साला धीरज नहीं माना। तुम मुझे विभा जिंदल के पास ले चलो। मैं उसे सबकुछ बता दूंगा मगर मुझे मारो मत ।”
ये थे वे शब्द जो होश में लौटने की प्रक्रिया की तरफ बढ़ रहे अशोक के मुंह से टूट-फूटकर निकले थे और हम सब यानी मैं, शगुन, मणिक, विभा और गोपाल मराठा उसके मुंह से निकलने वाले एक एक शब्द को बहुत गौर से सुन रहे थे ।
उसका अर्थ समझने की कोशिश कर रहे थे ।
गोपाल मराठा विभा से पहले ही मेरे सुईट में पहुंच गया था ।
उसने बताया था कि उसे यहां पहुंचने के लिए विभा ने फोन किया था। विभा उसके आधे घंटे बाद पहुंची थी।
उसके पहुंचते ही अशोक को होश में लाने की प्रक्रिया शुरु हो गई थी और इस वक्त उसकी चेतना लौट रही थी ।
उपरोक्त शब्द उसने आंखें मिचमिचाते हुए कहे थे।
और फिर, जाने क्या-क्या बड़बड़ाते हुए उसने आंखें खोलीं ।
हम सबको देखते ही और फिर शायद पहचानते ही हड़बड़ाकर उठा । बौखलाई हुई अवस्था में बोला ---- “म... मैं यहां कैसे आ गया? यहां कैसे आ गया मैं? चांदनी कहां है... चांदनी कहां है ? "
“चांदनी मर चुकी है अशोक ।” विभा ने कहा ।
“न... नहीं... वह मरी नहीं है। वह मुझे मार डालेगी। मुझे बचा लो। विभा जी, मुझे बचा लो ।” कहने के साथ वह विभा जिंदल के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगा था ।
“तुम शायद दहशत में हो । कोई ख्वाब देखा है तुमने । तुमने तो खुद चांदनी की लाश देखी थी। उसकी शिनाख्त की थी। फिर वह जिंदा कैसे हो सकती है? इस बात पर तुम यकीन ही कैसे कर सकते हो ?”
“मुझे नहीं मालूम क्या कैसे हो गया, पर वो जिंदा है। उसने मुझे मारने की कोशिश की। पता नहीं कैसे बच गया मैं? कैसे यहां आ गया ? य... ये देखिए, उसने मेरे सारे कपड़े उतार लिए । पेट पर ये भी लिख दिया। हां, याद आया - - - - वो बस मुझे मारने ही वाली थी कि भागने का मौका मिल गया और शायद मैं भाग आया । तभी तो यहां हूं। मैं आप लोगों को कैसे मिला ? कैसे बच गया मैं?”
“कहां की बात है ये, कहां मारने की कोशिश की थी उसने तुम्हें ?”
“ह... हमारी कोठी के बेस्मेंट में । वही पहुंच सकती थी वहां । मेरे, पापा के और उसके अलावा तो किसी को पता ही नहीं है कि हमारी कोठी में बेस्मेंट भी है। मैं वहीं छुपा था।”
“क्यों छुपे थे ?”
“अ... आप जान जो गई थीं कि मैंने झूठ बोला था | चांदनी के साथ कोई रेप नहीं हुआ। उस रात राज पैलेस में तो हम थे ही नहीं, हम तो ब्लैक डायमंड नाइट क्लब में थे। मेरे पास क्लब के मैनेजर का फोन आया । उसने बताया कि आप वहां पूछताछ करने पहुंची थीं। यह भी बताया कि आप क्या जान गई थीं। मैंने उसे डांटा । कहा कि क्लब का नियम है कि वह किसी मेंबर की प्राइवेसी भंग नहीं करेगा तो उसने क्यों बताया ? वो कहने लगा - - - - खुद कमिश्नर साहब का फोन आया। न मानता तो क्लब का लाईसेंस रद्द कर दिया जाता । यह पता लगते ही मैं घबरा गया कि अब आप मुझे नहीं छोड़ेंगी। मैं छुप गया। अपने बेस्मेंट से बेहतर छुपने की जगह मुझे और कोई नहीं सूझी । वहीं छुपा था कि चांदनी पहुंच गई और उसने..
“ और किसे पता था कि तुम वहां छुपे हो ?”
“किसी को नहीं । ”
“तुम्हारे पापा को भी नहीं?”
“नहीं। मैं किसी को भी नहीं बता सकता था लेकिन वो वहां भी पहुंच गई। वो कहीं भी पहुंच सकती है। हम सबको वही मार रही है। वो मुझे भी मार डालेगी विभा जी, मुझे उससे बचा लो । मैं आपको सबकुछ बताने को तैयार हूं। सबकुछ।”
“क्या सबकुछ ?”
और फिर, जो कुछ उसने बताया वह इतना हौलनाक, घृणित और सस्पेंस - फुल था कि सांस रोककर हम सुनते ही चले गए।
वह वही सब था जिसे इस कहानी का हर किरदार छुपा रहा था । जिसे छुपाने के लिए धीरज सिंहानिया खुद को रेप जैसे घृणित अपराध में फंसाने को तैयार हो गया था ।
अगले चेप्टर से वही लिख रहा हूं और उस अंदाज में लिख रहा हूं जिसमें उपन्यास लिखा करता हूं। पढ़ने के बाद यह फैसला तो आप ही कीजिए कि सुनने के बाद हमारी क्या हालत हुई होगी----
बात 'लीला कॉन्टीनेंटल' नामक फाइव स्टार होटल के डिनर हॉल की है। बहुत ही मद्धिम रोशनी थी वहां और स्टेज पर बज रहे आर्केस्ट्रा के कारण सारे हाल में गूंज रहा था ---- गुनगुना संगीत |
एक सीट के दो तरफ पड़ी कुर्सियों पर देश के दो बड़े औद्योगिक घरानों के चश्मो-चिराग आमने-सामने बैठे थे।
अशोक बजाज और धीरज सिंहानिया |
दोनों एक से बढ़कर एक कीमती सूटों में सजे ।
धीरज सिंहानिया उस वक्त कुछ कह रहा था ।
मगर अशोक बजाज का ध्यान उसकी बातों पर नहीं था ।
वह एकटक किसी और सीट की तरफ देख रहा था ।
धीरज सिंहानिया ने अपनी बात कहनी बंद की ।
आंखों से आशोक बजाज की नजरों का पीछा किया ।
धीरज सिंहानिया की आंखें जहां जाकर स्थिर हुईं वहां एक जवान, शादीशुदा जोड़ा बैठा हुआ था। उन्हें देखकर धीरज सिंहानिया के होठों पर भेदभरी मुस्कान उभरकर लुप्त हो गई ।
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