झोपड़े के पास ही मखमली घास पर एक तरफ मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन, बंगाली और पाली बैठे थे । दूसरी तरफ देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रूस्तम राव और कर्मपाल सिंह मौजूद थे। उनके बीच कुछ हटकर फकीर बाबा बैठे थे । काफी देर से उनके बीच खामोशी थी ।


इस बीच देवराज चौहान और मोना चौधरी की निगाहें कई बार टकराई और आंखों ही आंखों में एक-दूसरे को शिकस्त देने की चुनौती दी ।


आखिरकार खामोशी को, फकीर बाबा ने ही तोड़ा ।


"देवा और मिन्नो की हरकतों से ये एक बात तो सामने आ चुकी है कि ये दोनों अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाले । ये जब-जब सामने आएंगे, तब-तब झगड़ा करेंगे । मैं समझ चुका हूं कि तुम दोनों के इस जन्म में भी यही होगा। तुम दोनों के मन में भरी मैल शायद इस जन्म में साफ न हो सके । बहुत कोशिश की तुम दोनों की दुश्मनी समाप्त करने की, लेकिन मुझे कोई फायदा नजर नहीं आता ।" बाबा की आंखों में गुस्से की सुर्खी स्पष्ट नजर आ रही थी और चेहरे पर क्रोध की रेखाएं खिची हुई थी । कोई कुछ न बोला।


सबकी निगाह फकीर बाबा पर थी ।


"रोज की, जरा-जरा सी लड़ाई को में एक ही बार में खत्म कर देना चाहता हूं । यह बात जुदा है कि जब तक देवा और मिन्नो का मेल नहीं होगा, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी । लेकिन इस जन्म में ये होगा मुझे संभव नहीं लगता। इसलिए कम से कम तुम दोनों की इस जनम की लड़ाई को खत्म करवा देना चाहता हूं । ताकि मेरा वक्त चैन से बीते । नहीं तो मेरा ध्यान तुम दोनों पर ही लगा रहता है । अब अगले जन्म में तुम दोनों की दोस्ती कराने की कोशिश करूंगा । शायद तब मुझे मुक्ति मिले । मेरा शरीर खाक में मिल सके।"


"अभी तो ये जन्म बहुत बाकी है बाबा ।" जगमोहन उलझन भरे स्वर में बोला ।


बाबा के कठोर चेहरे पर, सख्त सी मुस्कान उभरी ।


"हां । लेकिन मुकाबले के लिए जो रास्ता देवा और मिन्नो को बताऊंगा । उस पर चलकर शायद दोनों में से कोई न बच सके। यानी कि इन दोनों में से एक तो अपनी जान गवांकर ही रहेगा ।" फकीर बाबा ने कहा ।


कहा फकीर बाबा के चेहरे पर गंभीरता आ गई । "इस बात का चांस मात्र एक प्रतिशत है कि दोनों बच जाएं और हार-जीत का फैसला हो जाए।" बाबा ने कहा । ea


"ऐसो मुकाबलों का, का फायदों हौवे कि हारो-जीतो का फैसलो न हो सको और पैले ही पता हौवे कि एक तो मरो ही मरो ।"


बांकेलाल राठौर ने माथे पर बल डाल कर ।


"लेकिन मुकाबला कैसे होगा ? क्या करना होगा ?" महाजन बोला ।


"बताता हूं । लेकिन उससे पहले मेरी शर्त है । जो कि देवा और मिन्नो को स्वीकार करनी होगी । अगर वो शर्त स्वीकार नहीं की गई तो ये मुकाबला शुरू नहीं होगा।" बाबा ने पक्के स्वर मेंकहा ।


"कैसी शर्त ?" पारसनाथ के होठों से निकला ।


सोहनलाल ने सोचो में डूबे गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।


"जो भी हारेगा । वो दुश्मनी भूलकर दूसरे की बातों का पालन करेगा। या यूं समझो कि हारने वाला, जीतने वाली का हर हुक्म मानेगा, ताकि तीन जन्मों से चली आ रही दुश्मनी का अंत हो और मुझे भी मुक्ति मिल सके।"


"इस शर्त में तो आप का लालच है फकीर बाबा ।" सोहनलाल कह उठा।


"हां । यह लालच तो मेरा शुरू से ही रहा कि देवा और मिन्नो में दुश्मनी खत्म हो और जन्मों से भटकते मुझे, मेरे शरीर को मुक्ति मिल सके । इसी लालच ने तो मुझे देवा और मिन्नो के साथ बांध रखा है । "


जवाब में कोई कुछ नहीं बोला ।


फकीर बाबा की बात शत-प्रतिशत सही थी ।


"मेरी शर्त मंजूर हो तो बात आगे बढ़ाऊं ?" फकीर बाबा ने देवराज चौहान और मोना चौधरी को देखा।


"बाबा ।" मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी--- "देवराज चौहान को गुलाम बनाने के वास्ते, मैं ये शर्त मानने को तैयार हूं।"


फकीर बाबा की निगाह, देवराज चौहान की तरफ उठी ।


"मोना चौधरी के इन शब्दों को सुनने के बाद, मेरा इंकार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता ।" देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी--- "मैं हर तरह के मुकाबले के लिए तैयार हूं।"


"वड, के रख दवांगे ।" बांकेलाल राठौर होंठ ही होठों में बड़बड़ा उठा ।


फकीर बाबा के होठों पर मुस्कान उभरी। आंखों में भरे गुस्से की लाली कम होने लगी । 


"मैं जानता था।" बाबा का स्वर इस बार शांत था--- "तुम दोनों तैयार हो जाओगे।" 


"बाबा ।" महाजन बोला--- "मोना चौधरी और देवराज चौहान की जान जाने का चांस है, लेकिन इस लड़ाई में हमारी क्या स्थिति होगी। जो लोग साथ होंगे।"


"नील सिंह ।" बाबा ने पहले स्वर में कहा--- "मैं नहीं जानता भविष्य के गर्भ में क्या है । लेकिन इस मुकाबले में किसी को, कब कुछ हो जाए । कहा नहीं जा सकता । यूं समझ लो कि ये कड़ा मुकाबला मैंने खासतौर से सोच-समझ कर रखा है कि इस जन्म में देवा-मिन्नो मानने वाले नहीं । शायद अगले जन्म में मैं इन दोनों का दोस्ताना मिलाप करा सकूं । जबकि इस मुकाबले में सबसे बड़ा घाटा मेरे को है । मैं चाहता था कि तुम लोगों के इस जन्म में मुझे मुक्ति मिल जाए । जिसके आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते । अब अपनी मुक्ति के लिए मुझे देवा और मिन्नो के अगले जन्म का इंतजार करना पड़ेगा।"


फकीर बाबा के चेहरे पर गंभीरता नाच उठी । सबकी निगाहें एकटक फकीर बाबा के चेहरे पर टिक चुकी थी । फकीर बाबा ने देवराज चौहान और मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखा। 


"मुकाबला 'ताज' का है । " 


"ये मुकाबला कैसा है बाबा ?" पारसनाथ ने पूछा


"ताज ?" जगमोहन के होठों से निकला ।


"हां ?" किसी खास जगह तुम सबको भेजा जाएगा ।" फकीर बाबा ने ठोस स्वर में कहा --- "वहां पर एक 'ताज' मौजूद है । उस ताज को जो ले आएगा, जीत उसी की मानी जाएगी ।"


"बाबा ।" रुस्तम राव कह उठा--- "इसका मतलब वो 'जीत का ताज' होएला ।" रूस्तम राव बोला ।


"हां । देवा और मिन्नो के लिए तो वो ताज 'जीत का ताज' ही होगा ।" बाबा का स्वर गंभीर था--- "देवा और मिन्नो की हार-जीत का फैसला वो ताज ही करेगा।"


"ताज है कहां ?" महाजन ने पूछा ।


"बहुत दूर । उस तक जाने के लिए, जहां से रास्ते की शुरुआत होती है, वहां मैं तुम लोगों को छोड़ दूंगा। उसके बाद वो रास्ता तय करके, एक खास जगह तक तुम लोगों को पहुंचना होगा । जिसके बारे में मैं तब बताऊंगा, जब तुम लोग उस रास्ते पर खड़े होओगे । जब मैं तुम लोगों को छोडूंगा, वहां से आगे बढ़ने के दो रास्ते हैं । एक रास्ते पर देवा जाएगा, दूसरे पर मिन्नो । दोनों रास्ते उसी जगह पर पहुंचते हैं, जहां ताज है । परंतु...।" फकीर बाबा ने देवराज चौहान और मोना चौधरी को देखा--- "जहां से रास्ता शुरू होता है, जिन-जिन रास्तों को तुमने तय करके आगे बढ़ना है । वो सारी मायावी और जादुई नगरी है। वहां तरह- तरह की चीजों से तुम लोगों का वास्ता पड़ेगा। कभी भी कुछ भी हो सकता है । हर तरफ ऐसा खतरा होगा कि जिसका मुकाबला करना इंसानों के लिए कठिन ही है । अब देखना यह है कि कैसे तुम लोग खतरों का मुकाबला करके, ताज तक पहुंचते हो और कौन उस ताज जीत का ताज' बनाकर लाता है या फिर कोई भी वापस नहीं आता।"


"ऐसी मायावी और जादुई नगरी के बारे में मैंने पहले तो कभी नहीं सुना ।" पारसनाथ बोला ।


"तुम लोग अभी जानते ही क्या हो । इंसान सिर्फ अपनी हदों तक रहता है । एक हद से पार वो नहीं देख पाता । ये दुनिया बहुत करिश्मों से भरी पड़ी है। जितने देखो, वही कम है। लेकिन इंसान की इच्छा शक्तियां उसके वजूद को कमजोर और खोखला बना देती है, जिसकी वजह से वो करिश्मों तक नहीं पहुंच सकता । यूं ही भटकते-भटकते अपनी जिंदगी समाप्त कर देता है ।" फकीर बाबा ने कहा।


"बाबा ।" बांकेलाल राठौर बोला-- "आपो का मतलब हौवे कि आज के वक्त में भी,जादू और माया का लोक हौवे । यो सिर्फ कोरी कहानियां ना ही हौवे ।"


"हां। जो दुनिया सैकड़ों साल पहले थी । वही अब हैं । फर्क सिर्फ यह आया कि जैसे इंसानों ने अपने लिए सुरक्षा कवच बना लिया है । इंसान अपनी सुरक्षा में लगा रहता है । उसी तरह मायावी लोक ने भी खुद को अपने तक सीमित कर लिया है । मायावी लोक के लोग इंसानों की दुनिया में दखल नहीं देते और वे ये भी पसंद नहीं करते कि इंसान उनके मायावी लोक में दखल दें । " 


"जो कि हम देने जाएला है, बाबा ।" रुस्तम राव बोला ।


फकीर बाबा ने सहमति में सिर हिलाया ।


"आप तो हमें मौत के कुएं में फेंक रहे हैं ।" महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूंट भरा--- "हम लोग मायावी शक्तियों का मुकाबला कैसे कर सकेंगे। ऐसे में तो हमारी मौत निश्चित है । यह तो मुकाबला न होकर हम सब को खत्म करने का रास्ता निकाला है ।" 


फकीर बाबा के होठों पर मुस्कान उभरी ।


"मुकाबले का मतलब जानते हो नींल सिंह ?" बाबा ने पूछा । 


"मैं समझा नहीं ।"


"मुकाबले का मतलब होता है, बच आने की उम्मीद।" महाजन ने सिर हिलाया ।


"जहां तुम लोग जाओगे । वहां कर समझदारी से काम लिया गया तो आसानी से वापसी भी हो सकती है । ऐसे में तुम ये नहीं कह सकते कि मैं तुम लोगों को मौत के कुंए में भेज रहा हूं । उस मायावी लोक में ताकत कम और अक्ल की ज्यादा जरूरत होगी । बच कर आना, तुम लोगों की समझदारी पर निर्भर करता है। "


"यो बाबा तो जख्म भी दयो और दवा-दारू भी करो ।" बांकेलाल राठौर बड़बड़ाया ।


सब खामोश रहे ।


देवराज चौहान बोला ।


"ताज लाने के बाद आप तक कैसे पहुंचेंगे।"


"मेरी नजरें तुम सब पर रहेंगी। लेकिन मुझसे कोई भी किसी तरह की सहायता की अपेक्षा मत करो । तुम दोनों के मुकाबले में मैं कहीं भी दखल नहीं दूंगा। वैसे भी तुम लोग मुझे देख नहीं सकोगे । जब जरूरत होगी, तब मैं खुद-ब-खुद ही सामने आ जाऊंगा ।" फकीर बाबा का स्वर शांत था ।


सब एक-दूसरे को देख रहे थे ।


"आज का दिन तुम लोग आराम करो ।" फकीर बाबा ने उठते हुए कहा--- "वो छड़ी जमीन में गड़ी हुई है। जिसको भी किसी भी चीज की जरूरत हो, उस घड़ी को छूकर मांगेगा तो मिल जाएगी। साथ ले जाने के लिए अगर तुम लोग हथियार की जरूरत महसूस करते हो तो छड़ी को छूकर, वह भी पा सकते हो ।"


इसके साथ ही फकीर बाबा आगे बढ़ा और झोपड़े में प्रवेश करता चला गया।


देवराज चौहान और उसके साथी कुछ हटकर अपनी बातों

लग गए और मोना चौधरी  और उसके साथी अपने में व्यस्त हो गए ।


***


"आपुन को तो लगेएला है कि बाबा हमारे साथ बोत खतरनाक खेल खेएला है ।" रूस्तम राव बोला ।


"मुझे भी ऐसा ही लग रहा है ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा ।


"फिक्र कादी, 'वड' के रख दागे सब नू । "


सोहनलाल ने मुंह बनाया ।


"मायावी नगरी में किसी को 'वडा' नहीं जाता ।"


"अंम थारे से बातो नेई करो । तंम गोली वालो सिगरेट फूंको ।" बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली ।


देवराज चौहान ने कर्म पाल सिंह को देखा ।


"तुमने सुना हम कहां जा रहे हैं । "


"हां।" कर्मपाल सिंह ने हौले से सिर हिलाया।


"वहां जान जाने का पूरा खतरा है। बाबा की बातों से ये तो स्पष्ट है । देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "इस मामले से अब तुम्हें कुछ लेना देना नहीं है। अच्छा यही होगा कि हमारे साथ मत जाओ।"


"अगर मैं साथ जाना चाहूं तो ?"


"जान गंवाने का ज्यादा शौक है तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।" देवराज चौहान ने कहा । 


"मैं अकेला नहीं हूं । मेरे साथ तुम सब भी तो हो ।" कर्मपाल सिंह मुस्कुराया--- "अब तो मन में ये इच्छा है कि मायावी नगरी को, जादुई नगरी को देखूं।"


"तुम्हारी मर्जी । समझाना मेरा फर्ज था।"


तभी जगमोहन, देवराज चौहान के पास पहुंचा ।


"तुम्हारा क्या ख्याल है । बाबा ने ये मुकाबला कड़ा नहीं रखा ? मायावी-जादुई नगरी में जाने कैसे हालात हमारे सामने होंगे । वहां हम किसी का मुकाबला कैसे कर सकेंगे ?" जगमोहन बोला ।


"अभी से इस बारे में सोचना बेवकूफी है । जादुई नगरी में प्रवेश करने के बाद ही हमें मालूम हो पाएगा कि वहां किस तरह के खतरे हैं और उनका मुकाबला कैसे किया जा सकता है।" देवराज चौहान ने कहा ।


"हम इंसान हैं । जादूगरों का मुकाबला कैसे कर...।"


"बेकार के सवाल मत करो । आने वाले वक्त का इंतजार करो। देखो क्या होता है।" जगमोहन ने फिर कुछ नहीं कहा ।


कर्मपाल सिंह उठा और टहलता हुआ कई कदम आगे निकल गया । चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे। पीछे आहट मिली तो फौरन पलटा । आने वाला बंगाली था।


"बंगाली ।" कर्म सिंह के होठों से निकला ।


"क्या हाल है कर्मे ।" बंगाली का स्वर गंभीर था ।


"ठीक हूं । यहां जो कुछ भी हो रहा है। हम दोनों की वजह से हो रहा है।" कर्मपाल सिंह बोला ।


"हां । तेरे को भी शंकर भाई की काली फाइल चाहिए थी और मुझे भी । फाइल का मसला तो पीछे छूट गया और यहां नया लफड़ा खड़ा हो गया । पहले मालूम होता तो हम दोनों ही पीछे हट जाते या मिलकर काम करते ।"


"इन बातों का वक्त बीत चुका है बंगाली ।"


"ठीक बोला तू ।" बंगाली ने सिर हिलाया--- "देवराज चौहान के साथ जाएगा तू ?" 


"हां । " 


"मैं भी मोना चौधरी के साथ जादुई नगरी जाऊंगा ।" बंगाली बोला--- "सुना है, जादुई नगरी में हीरे-जवाहरात बहुत होते हैं और बेशकीमती होते हैं। मौका मिला तो साथ लेता आऊंगा।" "पागल है।" कर्मपाल सिंह मुस्कुरा पड़ा। "क्या ?"


"हाँ। वहां जान का खतरा होगा और तेरे को हीरों की पड़ी है।" कर्मपाल सिंह ने कहा । 


"मालूम है । वहां कुछ भी हो सकता है ।" बंगाली ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन मैं जाऊंगा जरूर । जादुई नगरी को देखने का मौका कभी-कभी, किसी किस्मत वाले को ही मिलता है।"


"बेबी ।" महाजन ने घूंट भरा और गंभीर स्वर में बोला--- "जादुई नगरी से ताज लाना इतना आसान नहीं है । "


"मालूम है ।" मोना चौधरी भी गंभीर थी--- "जहां बाबा मुकाबले के लिए भेजेंगे, वो जगह खतरों से भरी होगी और इस बार तो बाबा भी चाहते हैं कि मामला आर-पार हो जाए।" 


"मैं बाबा से बात करता हूं कि मुकाबले के लिए वो कोई और रास्ता--- "


"नहीं।" मोना चौधरी ने सख्त निगाहों से महाजन को देखा--- "तुम घबरा रहे हो क्या ?" 


"मैं क्यों घबराऊंगा । बल्कि मैं तो चाहता हूं कि मुकाबले का रास्ता आसान हो जाए।" महाजन ने कहा ।


"मत भूलो कि जो खतरा हम लोगों के लिए होगा वो देवराज चौहान और उसके साथियों के लिए भी होगा।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी--- "हो सकता है खतरा, देवराज चौहान को निगल जाए और हम सही-सलामत ताज लेकर वापस आ जाएं ।"


"और ना भी लौट सकें ।" महाजन ने उसे देखा। "कुछ भी हो सकता है।" मोना चौधरी मुस्कुराई । महाजन ने पास ही घास पर लेटे पारसनाथ को देखा । "तुम क्या सोच रहे हो पारसनाथ ?" महाजन ने उसे देखा । पारसनाथ ने महाजन पर निगाह मारी ।


"कुछ नहीं।" पारसनाथ का स्वर सपाट था।


"जादुई नगरी जाकर ताज लाना, कैसा लग रहा है तुम्हें ?"


"बहुत ही मजेदार ।" पारसनाथ खुरदरे स्वर में बोला, परन्तु होठों पर मुस्कान उभर आई थी।


"वापस लौटने के चांस कम है । "


"बाबा इस बारे में बता चुके हैं।"


"मुझे तो समझ में नहीं आता कि बाबा इतनी खतरनाक जगह हमें क्यों भेज रहे हैं । "


"वो बहुत बार झगड़ने को मना कर चुके हैं ।" पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा--- "लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं मानी । आखिर तंग आकर उन्होंने ये रास्ता चुना । ताकि मोना चौधरी और देवराज चौहान का झगड़ा एक किनारे लगे । वो समझ चुके हैं कि ये दोनों मानने वाले नहीं ।"


"बाबा को आज गुस्सा आया हुआ था ।" महाजन ने बोतल में से घूंट भरा । तभी पास बैठा पाली कह उठा ।


"ये बाबा है कौन ?"


"अभी मत पूछ । फिर बताऊंगा । फुर्सत में ।" महाजन ने उसे देखा ।


"लेकिन ये तो हमें मुसीबत वाली जगह भेज रहा है। हमें नहीं जाना चाहिए ।" पाली ने कहा ।


"ये झगड़ा तुम्हारा नहीं है कि तुम खामखाह अपनी जान गंवाओ। तुम...।" 


"मैं साथ जाऊंगा।" पाली बात काट कर कह उठा । 


मोना चौधरी और महाजन की निगाह मिली।


"पाली ।" मोना चौधरी बोली --- "इस बात की कोई जबरदस्ती नहीं है कि तुम भी हमारे साथ चलो । वैसे भी जहां जाना है। वहां खतरे और मौत के अलावा कुछ नहीं । कह कर तुम्हें वापस भिजवा देते हैं, बाबा, से."


"क्यों ?"


"मरने की सोच ली ।" महाजन बोला ।


"तुम साथ न ही जाओ तो ठीक रहेगा।" पारसनाथ बोला--- "वहां तुम्हारे करने लायक कुछ नहीं होगा।"


"मैं साथ ही जाऊंगा।" पाली दृढ़ स्वर में बोला । मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।


"बंगाली से भी बात कर लेना । साथ जाना जरूरी नहीं है उसका । "


महाजन ने घूंट भरकर खाली बोतल एक तरफ फेंकते हुए कहा ।


"वो पुराने पार्टनर कर्मपाल सिंह से उधर बातचीत कर रहा है ।" कहने के साथ ही महाजन उठा और जमीन में धंसी छड़ी की तरफ बढ़ गया । छड़ी को छूकर व्हिस्की की बोतल मांगी तो फौरन हाजिर हो गई । बोतल थामे वापस पलटता महाजन गहरी सांस लेकर बड़बड़ाया--- "ये बाबा भी क्या कमाल की चीज है । "


रात होने पर, उन्होंने छड़ी के द्वारा ही खाने का इंतजाम किया ।


छड़ी ने वहां मौजूद हर इंसान को उसकी पसंद का लाजवाब खाना दिया। बहरहाल, खाने के बाद रात बीतने लगी ।


***