ब्लू मून क्लब के रेस्टोरेंट में…!
उस्मान लंगड़ा उस मेज की तरफ बढ़ रहा था जहां नजमा और मुजफ्फर बेग के साथ अनवर हसन बैठा था ।
उसकी चाल में सतर्कता थी और वह सीधा न जाकर एक ऐसे कोण पर चल रहा था कि अनवर की निगाह उस पर पड़ जाये और उसके आगमन के लिये तैयार हो जाये ।
उस्मान लंगड़ा मैसेंजर की हैसियत से काम कर रहा था । हसन भाई मज़ाक में उसे प्यादा कहा करते थे ।
मुजफ्फर बेग ने उसे आते देखा और मेज पर आगे झुककर फुसफुसा दिया ।
अनवर ने उधर नहीं देखा । उसने नजमा से कुछ कहा तो वह उसकी बाँह थपथपाकर उठी और धीरे–धीरे एग्जिट की ओर चली गयी ।
उस्मान लंगड़ा आ पहुंचा ।
अनवर ने उसकी तरफ गरदन घुमायी ।
मुजफ्फर बेग ने नजमा द्वारा खाली की गयी कुर्सी की ओर हाथ हिला दिया ।
उस्मान बैठ गया ।
–"क्या खबर है ?" अनवर ने पूछा । उसका लहजा खुश्क था और अंदाज किसी घमण्डी डिक्टेटर जैसा ।
–"रतन मेहरा उन पुलिसियों के बारे में पता लगाकर आया है जिनके लिये आपने कहा था ।"
–"तो ?"
–"आप इंसपेक्टर कमल किशोर के बारे में जानना चाहते थे ।"
रतन मेहरा कालका प्रसाद के लोगों में से एक था–तथ्यों को सूंघने में माहिर और भरोसेमंद ।
–"कमल किशोर सीधा आदमी है । बहुत अच्छा तजुर्बेकार और एक्सप्लोसिव्ज के मामले में एक्सपर्ट । उसकी किसी कमज़ोरी का पता नहीं लगा है जिससे उस पर दबाव डाला जा सके ।"
अनवर ने हुंकार–सी भरी ।
–"और भी खबर है ।" उस्मान बोला ।
अनवर ने पुन: हुंकार भरी ।
–"बताते क्यों नहीं ?" मुजफ्फर बोला–"और क्या है ?"
–"उस पुलिसिये के बारे में है, जो उस रात पैराडाइज क्लब में आया था ।"
–"कौन ? तोमर ?"
–"हां ! वह बहुत ही सख्त मिज़ाज, ईमानदार और फर्ज का पाबंद है । उस तक भी नहीं पहुंचा जा सकता ।"
–"साला, हरामी !" अनवर गुर्राया–"मादर...।"
मुजफ्फर ने यूं चटखारा लिया मानों सुनकर बहुत मजा आया था ।
अनवर ने कड़ी नजर से उसे घूरा तो वह अपनी कुर्सी में सिकुड़कर रह गया ।
–"पुलिस को प्रेस और मीडिया से इतनी पब्लिसिटी मिल रही है कि वे दूध के धुले समझे जा रहे हैं ।"
–"तोमर के बारे में और क्या पता लगा ?" मुजफ्फर ने शान्त स्वर में पूछा ।
–"वह कमल किशोर और दूसरे बहुत से पुलिस अफसरों के साथ मिलकर काम कर रहा लगता है ।" उस्मान कंधे झटकाकर बोला–"उनमें फ्रॉड केसेज के एक्सपर्ट, नारकोटिक्स वगैरा से जुड़े अफसर शामिल हैं । किसी खास मिशन की तरह । कमल किशोर और मनोज तोमर हालांकि क्राइम ब्रांच में हैं लेकिन वे हैडक्वार्टर्स से काम नहीं कर रहे हैं ।"
अनवर हसन ने होठों पर जीभ फिराई ।
–"महाजन हाउस से ?"
–"नहीं ।"
–"किसी पुलिस स्टेशन से ?"
–"नहीं ।"
–"फिर ?"
–"अभी पता नहीं लग पाया है ।"
–"अगर हमें जानकारी नहीं मिल रही है तो पुलिसियों को पैसा क्यों खिलाया जा रहा है ?"
–"सिचुएशन साफ नहीं है । लेकिन एक अच्छी खबर है । इंसपेक्टर रंजीत मलिक को जानते हो ?"
अनवर ने धीरे से सर हिलाया ।
–"मलिक भी इस टीम में है और वह असली हरामजादा है ।"
–"यह मुझे भी पता है । नई बात बताओ ।"
इससे पहले कि उस्मान कुछ कहता मेजों के बीच से गुजरता एक वेटर आ पहुंचा और मुजफ्फर के कान में कुछ फुसफुसाकर उल्टे पैरों लौट गया ।
मुजफ्फर बेग मुस्कराया ।
–"उसकी नस हमारे हाथ आ गयी लगती है ।"
–"मलिक की ?"
–"और किसकी ? दयाशंकर का फोन आया है ।"
* * * * * *
अनवर ने सवालिया निगाहों से देखा ।
–"वह हरामी क्या कर रहा है ?"
–"आप जानते हैं वह क्या करता है ।"
–"दल्ला है साला ! रंडियों के चक्कर में रहता है ।"
–"करता तो यही है लेकिन इसमें भी उसका खास मकसद होता है ।"
अनवर विचारों में उलझ गया प्रतीत हुआ । किसी ऐसी निजी दुनिया में जहां कोई और नहीं घुस सकता था ।
–"हूं ।" अंत में बड़बड़ाया–"वह राकेश की छोकरी पर नजर रख रहा था ।"
–"मैं उससे बात करके आता हूँ ।"
मुजफ्फर चला गया ।
पांच मिनट बाद वापस लौटा । चेहरे पर ऐसी मुस्कराहट लिये मानों कोई खजाना हाथ लग गया था ।
–"दया शंकर की मेहनत रंग ले आयी ।" चहकता हुआ बोला ।
अनवर कुछ नहीं बोला । भावहीन बना उसे देखता रहा ।
मुजफ्फर ने चटखारा लिया ।
–"उसे मलिक के खिलाफ मसाला मिल गया है ।"
–"तगड़ा ?"
–"काफी है । ठीक वैसा ही जैसा हरबंस लाल जोशी और नारायण दास खुराना के खिलाफ हमारे पास है । मलिक भी रंगीन मिज़ाज निकला ।"
–"खुलकर बताओ ।"
–"दयाशंकर ने वो सारी चीजें राकेश के घर से हासिल की थी, याद आया ?"
–"लौंडिया रजनी के साथ ?"
–"वह और भी थीं । लेकिन दयाशंकर बहुत चालाक आदमी है । उसे लगा कुछ और मसाला भी हासिल किया जा सकता है । इसलिये उसने रजनी के फ्लैट को मानीटर करा दिया–बेडरूम में माइक्रोफोन फिट करके ।"
–"मानीटर करने के लिये बेडरूम सबसे सही जगह है । वहीं से अंदर की बातें पता चलती हैं ।"
–"मलिक राकेश के केस की इन्वेस्टीगेशन कर रहा है और रजनी राजदान मैटिरियल विटनेस है । लड़की के साथ राकेश के जिस्मानी ताल्लुकात थे । उसी के केस का इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर उसी केस की मैटिरियल विटनेस के साथ हमबिस्तर हो रहा है । उस पर गिल्टी बाई एसोसिएशन और मिसयूज ऑफ अथॉरिटी के आरोप आसानी से लगाये जा सकते हैं । दयाशंकर के पास यह साबित करने के लिये काफी मसाला है और सुबह तक और भी मिल जायेगा ।"
अनवर मुस्कराया । उसका मुंह यूं खुल गया जैसे कोई मगरमच्छ किसी शिकार को निगलने वाला था । फिर उसके होंठ भिंच गये ।
–"अब देखना यह है कि मलिक को सीधा किया जा सकता है या नहीं ।"
–"दयाशंकर का कहना है कि उस बारूद से कमिश्नर को भी सीधा किया जा सकता है ।"
–"कालका जल्दी आ जायेगा । वह इससे निपट लेगा । वह कुत्ते की दुम तक को सीधा कर सकता है ।"
–"आप चाहते हैं पुलिस हैडक्वार्टर्स में हम अपने लोगों को भी जानकारी हासिल करके पास करने पर लगा दें ?" उस्मान ने जानना चाहा ।
–"मैं जानना चाहता हूं क्राइम ब्रांच वाले किस चक्कर में है ? वे कहां से काम कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं ?" अनवर की नजरें उस्मान पर जमी थीं–"अपने आदमी को पकड़ो और उससे कहो, अगर वह जल्दी ठोस जानकारी देता है तो उसे तगडा बोनस मिलेगा ।"
उस्मान उठा और सर हिलाकर चला गया । वह खुश था । उसे यकीन था मोटा इनाम मिलेगा । रतन को, हैडक्वार्टर्स में पुलिसिये को ओर खुद उसे भी ।
* * * * * *
दो बजकर पैंतालिस मिनट पर…।
सड़कों पर यातायात ज्यादा नहीं था ।
एक कांस्टेबल पुलिस की अनमार्ड कार को सुभाष मार्ग की ओर दौड़ा रहा था । उसकी बगल में रंजीत मलिक बैठा था । दो और कांस्टेबल पीछे मौजूद थे–एक पुरुष और एक महिला । सुभाष मार्ग के उस पते पर पहुँचने में ज्यादा देर नहीं लगनी थी ।
* * * * * *
दो पचास पर...!
दिनेश ठाकुर, यासीन और मंसूर नाइट क्लब से निकले और अपनी किराये की कांटेसा में सवार होकर मंज़िल की ओर रवाना हो गये ।
करीब दो सौ गज दूर खड़ी एम्बेसेडर में मौजूद दोनों एस० आई० ने भी उन्हें जाते देख लिया था । उन दोनों के नाम थे–रविन्दर और सतेन्दर । कारों के मामले में उनका तजुर्बा बहुत ज्यादा था । अत्यन्त कुशल ड्राइवर होने के साथ–साथ शहर के ट्रैफिक सिस्टम, विभिन्न सड़कों, शार्टकट्स वगैरा की उनकी जानकारी कुशलतम टैक्सी ड्राइवरों को भी चकरा सकती थी ।
एंबेसेडर तेजी से आगे बढ़ी । रविन्दर ड्राइव कर रहा था और सतेन्दर जल्दी–जल्दी रेडियो पर बातें करने में मसरूफ था । वे जानते थे कांटेसा कहां जा रही थी और यह भी कि वो एक बार ब्लू मून के सामने से गुजरकर वापस आयेगी और मोर्चा लगा लेगी ।
शहर के भूगोल से पूर्णतया परिचित रविन्दर और सतेन्दर को यह समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि कांटेसा कौन–सा रूट पकड़ेगी और कहां से क्लब पहुँचेगी । उन्हें पूरा यकीन था कांटेसा द्वारा पहला चक्कर लगाने से कम से कम पांच मिनट पहले पहुंचकर वे पोजीशन ले चुके होंगे ।
* * * * * *
माला पास से और भी ज्यादा हाहाकारी नजर आ रही थी ।
ब्लू मून की बार में अलग–थलग सी मेज पर उसकी बगल में बैठे फारूख के अंदर वासना का ज्वार तेजी से बढ़ता जा रहा था । हवस की आग उसे झुलसाये दे रही थी ।
–"तुम रात बाहर गुजारना चाहती हो ?"
वह मुस्करायी । लेकिन मुस्कराहट में कोई ख़ुशी नहीं थी । कामांध फारूख उसकी आंखों में झांकती कड़वाहट और हिकारत को नहीं भांप सका ।
–"रात बाहर गुजारने से तुम्हारा क्या मतलब है ?"
फारूख के दिमाग में उसके नग्न शरीर की दर्जनों तस्वीरें उभर रही थीं । वह तय नहीं कर पा रहा था माला स्कूल गर्ल की यूनीफ़ॉर्म में ज्यादा मजेदार साबित होगी या नर्स की ।
–"तुम्हारा मतलब है ।" उसे जवाब देता न पाकर माला सिगरेट का गहरा कश लेकर बोली–"किसी शाम को तुम डिनर के लिये मुझे बाहर ले जाओगे, मेरा मनोरंजन करोगे और फिर चाहोगे मैं बिस्तर में तुम्हें ऐश कराऊं ?"
–"माला !" फारूख की आवाज़ नर्म थी–"मैं बहुत दिनों से तुम्हारी परफार्मेंस देख रहा हूं । तुम्हें देखकर मेरे अंदर सनसनी मचने लगती है । तूफान उठ खड़ा होता है । तुम्हें बहुत पसंद करता हूं ।" उसका चेहरा कठोर हो गया–"दूसरी ओर, मैं जब चाहूं तुम्हें धंधे से बाहर करके बेकार कर सकता हूं । तुम्हें कहीं कोई काम नहीं देगा । हमारे क्लबों में ही नहीं, किसी भी क्लब में और इस पूरे शहर में ।
माला ने ड्रिंक सिप किया ।
–"जानती हूँ ।"
–"तो ?"
–"तो मुझे वही करना पड़ेगा जो तुम कहोगे...फिलहाल ।"
फारूख ने राहत महसूस की ।
–"होशियार लड़की हो ।" माला ने उसकी ओर नहीं देखा ।
–"कब ?"
–"आज रात । अभी !"
इस दफा माला ने उसे देखा–नफरत भरी निगाहों से । जिसे फारूख के लिये समझ पाना नामुमकिन था ।
–"तुम आज रात मुझे अपने साथ ले जाना चाहते हो ?" फुंफकारती–सी बोली–"तुम चाहते हो आज रात तुम्हें मौज–मेला कराऊं ?"
–"मैं तुम्हें बेहद चाहता हूं । तुम नहीं जानती तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूं । कैसे मैं...खैर, तुम भी मुझे थोड़ा चाहती हो या नहीं ?"
–"तुम मुझे चाहते हो । ओ० के०, हसन भाई !"
–"नहीं, फारूख !"
–"ओ० के०, फारूख । कहां चलना है ?"
–"मेरे घर ।"
–"मजाक कर रहे हो ।"
–"नहीं, हम घर ही चलेंगे ।"
–"हसन हाउस ? जहां तुम्हारा भाई और उसकी मां हैं ? जहां परवेज कल रात मारा गया था ? तुम्हारे साथ चलने को मैं तैयार हूँ लेकिन उस घर में सोऊंगी नहीं ।"
फारूख ने पलभर सोचा ।
–"ठीक है ! कहां चलना चाहती हो ?"
–"किसी शानदार जगह जैसे...रायल इन !"
–"इतनी रात गये ?"
–"हां, क्यों ?"
–"वहां कमरा नहीं मिलेगा ।"
–"मैं तो समझती थी हसन भाई इस शहर में जब चाहें जो चाहें ले सकते हैं ।" माला ने यूं कंधे उचकाये कि बारीक कपड़े के टॉप के पीछे उसके वक्ष मचलकर तन गये–"मेरा ख्याल गलत था ।"
फारूख मोम की तरह पिघल गया ।
–"नहीं । कमरा मिलेगा...उनका सबसे बढ़िया सुईट मिलेगा । जानती हो, मुझे तुम्हारा पूरा नाम तक नहीं मालूम । क्या है ?"
माला ने नाक सिकोड़ते हुये मुंह बनाया ।
–"माला तलवार ।"
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