सहस्त्राब्दी की एक रात

साई की दुकान के नीचे वाले खड्डे में हड्डियाँ और फेंके हुए माँस के टुकड़े ढूँढते सियार “हूआ-हूआ” कर रहे थे। पसंद इस आवाज़ से अविकल था। एक नौजवान कम्प्यूटर विशेषज्ञ जो खुद को इन सब अंधविश्वासों और अज्ञात के भय से परे समझता था। उसके शब्दकोश में अज्ञात का अर्थ था, जिसकी अभी खोज होनी हो। वह रात में, श्मशान के पास से गुज़र रहा था।

आधी रात होते ही नयी सहस्त्राब्दी शुरू हो जायेगी। साल 2000 बुला रहा था, पसंद जैसे पढ़े-लिखे नौजवानों के लिए नयी सम्भावनाओं से भरा हुआ, जबकि करोड़ों लोग—जो जल्द ही एक अरब से भी ज़्यादा होने वाले हैं—नीचे मैदानों की गर्मी और धूल में पसीना बहा रहे थे ताकि उनको और उनके बड़े परिवारों को दो वक्त की रोटी नसीब हो पाये। उनके पास न पब्लिक स्कूल की शिक्षा थी, न ही गैराज में तीन गाड़ियाँ और न बरमूडा में बैंक खाता। अब सबके पास इतना दिमाग, अच्छी किस्मत और हाँ, पैतृक सम्पत्ति नहीं हो सकती—जिसने उसके लिए जीवन को इतना सुविधाजनक और सम्भावनाओं से भरा बनाया था—पसंद ने मन-ही-मन सोचा, ‘यह वह सहस्त्राब्दी होगी जब सभी चालाक और बुद्धिमान लोग सर्वोपरि होंगे और बाकी सभी तरह के गधे नीचे गिर जायेंगे।’ उसकी यह धारणा थी कि गुलामों की उन्नति के लिए एक शासक विशिष्ट वर्ग का होना बहुत ज़रूरी है।

उसने अपनी घड़ी की ओर देखा—बारह बजे थे। उसने अच्छा खाना खाया था और अब वह इस लम्बी, घुमावदार सड़क पर टहलता हुआ सभी अमीर और जाने-माने लोगों के घरों के सामने से गुज़र रहा था—लाल, बैनर्जी, कपूर, रामचंदानी। वह इन सब से किसी तरह भी कम नहीं, और अब तो वह इनसे भी आगे निकलने वाला था। वह अपनी चोटी तक पहुँचने वाला था, जबकि ये लोग पहले ही अपना मुकाम हासिल कर अब वापस नीचे गिर रहे थे—ऐसा वह सोचता था।

अब वह श्मशान तक पहुँच गया था, टूटी कब्रों वाला यह श्मशान—जिसमें कुछ कब्रें डेढ़ सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी थीं, एक ऐसे शक्तिशाली साम्राज्य की निशानी था जो आज धूल और खंडहर के अलावा कुछ नहीं। यहाँ दफ़नाये गये थे कर्नल और जिलाधीश, व्यापारी और मेमसाहिब, और कई छोटे बच्चे—जिनके नाज़ुक जीवन की लौ किसी अशान्त समय में बुझ गयी थी। ये सब हारे हुए लोग थे। उसके पास उन लोगों के लिए उपेक्षा के अलावा और कुछ नहीं, जो अपने शौर्य और वैभव को मज़बूती से पकड़े न रख पाये। उसके लिए कभी हारे हुए साम्राज्य नहीं होंगे।

यहाँ सड़क पर बहुत अँधेरा था, क्योंकि उत्तरी चोटी पर घने पेड़ थे। पसंद थोड़ा घबराया पर उसकी जेब में रखे मोबाइल ने उसे फिर आश्वस्त कर दिया—वह जब चाहे अपने ड्राईवर और अंगरक्षक को बुला सकता था।

चाँद, नाग टिब्बा के ऊपर से झाँक रहा था, और सारी कब्रें उसके चारों ओर कतारों में खड़ी थीं, जैसे नवयुग के इस टी-शर्ट और जींस धारी शूरवीर को सलामी दे रही हों। देवदार के पेड़ों के बीच उसे श्मशान की बाहरी रेखा पर एक हल्की रोशनी दिखाई दी। उसके एक चमचे ने उसे बताया था कि यहाँ एक विधवा अपने बहुत सारे छोटे बच्चों के साथ रहती है। हालाँकि उसका स्वास्थ्य खराब रहता है पर वह अभी भी जवान और सुन्दर थी, और लोग कहते थे कि वह उन लोगों को बहुत खुश करती थी जिनके पास लुटाने के लिए पैसे हों, क्योंकि अपने भूखे परिवार के लिए उसे पैसों की बहुत आवश्यकता थी।

लोग यह भी कहते थे कि वह थोड़ी पागल थी और उसका स्वर्गीय पति—जो वहाँ देखभाल करता था, को मिली झोंपड़ी में रहने की बजाय वह मकबरों में सोना पसंद करती थी।

पसंद को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वह यहाँ प्यार की खोज में नहीं आया था, उसे केवल दैहिक सन्तुष्टि चाहिए थी। और अभी उसे ज़रूरत महसूस हो रही थी, किसी औरत के ऊपर अपनी मर्ज़ी चलाने की, ताकि वह अपनी मर्दानगी साबित कर सके। आज तक सभी जवान लड़कियाँ उससे दूर भागती थीं, पर यह औरत जवान नहीं थी।

तीस पार की यह औरत अपनी गरीबी और बदसलूकी के कारण और भी बूढ़ी दिखती थी। पर अभी भी ढलती सुन्दरता की झलक उसकी सुलगती आँखों और सुडौल हाथ-पैरों में दिख जाती थी। अँधेरे में दाँत चमका कर पसंद की ओर मुस्कुराते हुए उसने उसे अपने शयनकक्ष में आमन्त्रित किया—यह वह मकबरा था जो उसे सबसे प्रिय था।

पसंद के पास प्रेम-क्रीड़ाओं का समय नहीं था। उसने उसके वक्ष को पकड़ लिया और तब उसे पता चला कि वे बहुत बड़े नहीं थे। उसके पहले से फटे कपड़ों को उसने नोच कर फेंक दिया और अपने होंठ उसके सूखे होंठों पर जड़ दिये। उसने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। वह जो चाहता था उसने किया। बाद में थककर जब वह एक कब्र—जो किसी प्राचीन मृत योद्धा के अवशेष को ढँके थी, पर लेटा था तब उस औरत ने उसके ऊपर झुककर उसे गाल और गले पर ज़ोर से काट लिया।

दर्द और आश्चर्य से वह चिल्ला उठा और उठने की कोशिश करने लगा। पर कई छोटे पर मज़बूत हाथों ने उसे फिर कब्र की तरफ़ धकेल दिया। छोटे मुँह और नुकीले दाँत उसके शरीर पर हमला करने लगे। धूल से सने हाथों ने उसके कपड़े फाड़ दिये। वे छोटे दाँत बार-बार उसे काटने लगे। उसकी चीखें सियारों के रुदन से मिल गयीं।

“आराम से मेरे बच्चों” औरत बोली “सबके लिए बहुत है।”

वे फिर उस पर टूट पड़े।

नीचे खाई में अपनी बारी का इन्तज़ार करते सियार फिर ‘हूआ-हूआ’ करने लगे। हड्डियाँ उनकी होंगी। सिर्फ़ मोबाइल ही तिरस्कृत रहेगा।