फकीर बाबा उस छोटे से गुलाबी रंग के मकान के आंगन की हरी घास पर समाधि की मुद्रा में बैठा था। बंद आंखें। दोनों हाथ फैले हुए घुटनों पर बदन पर सफेद धोती-कुर्ता। गले में माला । माथे पर तिलक । सिर के छोटे-छोटे बाल। शेव किया झुर्रियों से भरा चेहरा, परन्तु चेहरे पर अनोखा तेज था। कानों में जाने किस धातु की छोटी-छोटी वालियां।
आहट पाकर फकीर बाबा ने आंखें खोलीं तो सबको सामने पाया। उसके चेहरे पर शांत मुस्कान बिखर गई।
“नीलू!” तभी राधा कह उठी-“देखा तूने इस बहरूपिये को । पहले तो गंदे कपड़े पहने हुए था। अब तो इसका रूप ही बदला हुआ है। साधु-महात्मा जैसा लगता है। किसी के कपड़े चुरा लाया होगा। मैंने तो पहले ही कहा था कि शक्ल से ही ठीक आदमी नहीं लगता। जिस तरह हमको गायब करके यहां लाया, उससे तो लगता है तांत्रिक है ये और- ।"
“राधा!" नीलू ने उखड़े स्वर में कहा-“अब तुम कुछ नहीं बोलोगी।"
“नहीं बोलती।” राधा ने मुंह लटकाकर कहा।
फकीर बाबा के चेहरे पर अभी भी अपनेपन से भरी मुस्कान थी।
“बैठ जाओ।"
सब घास पर ही बैठ गये।
“किसी को खाने-पीने की किसी चीज की आवश्यकता हो तो कह दो।"
“पेशीराम !” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा - "ये सब बातें बाद में भी हो जायेगी। पहले गुरुवर की बात करो।”
तभी राधा कह उठी।
“कोने वाली दुकान के समोसे खाने का मन हो रहा है। उसकी हरी चटनी बहुत मजेदार होती है।"
राधा के शब्द पूरे होते ही उसके सामने चांदी का थाल और कटोरा पड़ा नजर आया। थाल में समोसे भरे हुए थे और चांदी के कटोरे में हरी चटनी थी। राधा की आंखें हैरानी से फैल गई।
“नीलू! ये तो कोने वाली दुकान के ही समोसे - "
“चुपचाप खाती रहो। बोलो मत।" महाजन ने कहा।
राधा समोसे खाने में व्यस्त हो गई।
"मुझे बोतल चाहिये पेशीराम।" महाजन ने कहा।
उसी पल महाजन के सामने बोतल मौजूद थी। महाजन ने बोतल खोली और तीन तगड़े घूंट लिए ।
“तुम गुरुवर के बारे में बता रहे थे पेशीराम।" मोना चौधरी की नजरें फकीर बाबा पर थीं।
कुछ देर खामोश रहकर पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा।
“गुरुवर का अस्तित्व और उनकी शक्तियां बचाना चाहते हो तो तुम लोगों को शैतान के अवतार को खत्म करना होगा।"
“शैतान का अवतार ?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।
“कौन है ये ?” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“जो भी हो ‘वड़' देंगे को इसो गोलियों मारो कर ।”
“शैतान का अवतार बहुत ही शक्तिशाली इन्सान है। हर तरह की शक्तियों का मालिक है।" पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा- "सच तो ये है कि गुरुवर ही शैतान के अवतार पर काबू पा सकते हैं, परन्तु गुरुवर अभी इस स्थिति में नहीं हैं कि शैतान के अवतार की तरफ ध्यान दे सकें। इसी का फायदा वो उठा रहा है।"
“गुरुवर यज्ञ शुरू करने से पहले ही शैतान के अवतार को खत्म करके इस खतरे से मुक्ति पा सकते हैं।" सोहनलाल बोला ।
“गुरुवर नहीं भांप सके कि शैतान का अवतार कौन है । " पेशीराम ने कहा !
“क्या मतलब हौएला ?"
“गुरुवर को तो हर बात पहले से ही मालूम होती है।" पारसनाथ बोला- “उनसे भला क्या छिप सकता है। "
“छिप सकता है। जैसे कि शैतान का अवतार सौ बरस से गुरुवर के सामने नहीं आया।" पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा- "डेढ़ सौ बरस पहले ही गुरुवर ने अपनी शक्तियों के दम पर जान लिया था कि कहीं पर शैतान के अवतार का जन्म होने वाला है। कहां होगा ये जन्म, गुरुवर की शक्तियां नहीं बता सकीं। फिर सौ बरस पहले शैतान के अवतार का जन्म हुआ तो गुरुवर की शक्तियों ने शैतान के अवतार के जन्म की सूचना दे दी, परन्तु गुरुवर नहीं जान सके कि शैतान के अवतार का जन्म कहां पर हुआ है। अच्छी शक्तियों पर शैतान की शक्तियां हमेशा भारी पड़ी हैं। शैतान की शक्तियों को गुरुवर की शक्तियां पार कर के नहीं देख सकी शैतान को। बुरी शक्तियों के कई पालिक गुरुवर की नजरों में थे, परन्तु उनमें से शैतान का अवतार कौन है। गुरुवर आभास नहीं पा सके। डेढ़ सौ बरस पहले ही गुरुवर अपनी तपस्या से ये बात जान चुके थे कि शैतान का अवतार जो भी होगा, वो उनके लिए कभी बड़ी-बड़ी मुसीबतें खड़ी करेगा। लोगों को परेशान करेगा। हर कोई उसकी मौत की कामना करेगा, परन्तु शैतान का अवतार अपनी ताकतों से हर किसी को जीतता रहेगा।”
“गुरुवर ने शैतान के अवतार की मौत के बारे में कभी बताया?” जगमोहन ने पूछा ।
"नहीं। जब-जब भी मैंने ये सवाल पूछा, गुरुवर चुप्पी साध गये ।” पेशीराम ने गम्भीर स्वर में कहा - "शैतान के अवतार को भी अवश्य इस बात का एहसास रहा होगा कि गुरुवर की शक्तियों को वो नहीं जीत सकता। इसी कारण उसने ये जाहिर नहीं होने दिया कि वो ही शैतान का अवतार है। और जब गुरुवर अपनी समस्त शक्तियों को बाल में कैद करके, गुप्त जगह पर रखकर, बेहद महत्वपूर्ण यज्ञ में व्यस्त हो गये तो शैतान का अवतार खुलकर सामने आ गया। गुरुवर अगर इस यज्ञ को भंग करते हैं तो वो सामान्य इन्सान बन जायेंगे। सारी शक्तियां उनसे छिन जायेंगी। ये बात शैतान का अवतार जानता है। ऐसे में गुरुवर उस यज्ञ को भंग नहीं कर सकते। इसी बात का फायदा उठाकर शैतान का अवतार उस बाल को तलाश कर रहा है, जिसमें गुरुवर की समस्त असीम शक्तियां कैद हैं। अगर वो बाल शैतान के अवतार को मिल जाती है तो, गुरुवर की सारी शक्तियों का मालिक वो बन जायेगा। फिर उससे कोई नहीं जीत सकता। इसके साथ ही शैतान का अवतार गुरुवर के यज्ञ को भंग करने का भरपूर प्रयास कर रहा है कि गुरुवर का यज्ञ खराब करके, उन्हें साधारण इन्सान बना दे, ताकि कोई उसके मुकाबले के काबिल न रहे।"
मोना चौधरी का चेहरा क्रोध से दहक उठा।
“पेशीराम!" वहशी स्वर में कह उठी भोना चौधरी - "अब वो शैतान का अवतार ज़िन्दा नहीं रहेगा, गुरुवर को परेशान करने के लिए। मैं उसे - ।"
“अंम उसो का अपणी रिवाल्वरो से 'वड' दयो ।”
“फिक्र नेई पेशीराम । आपुन शैतान के अवतार से निपटेला।"
महाजन ने बोतल से घूंट भरा और कह उठा।
“जैसे भी हो हम उसे खत्म करके, गुरुवर का रास्ता आसान कर देंगे। गुरुवर को हम परेशानी में नहीं देख सकते ।”
"चल-चल नीलू ।” राधा ने समोसा खाना रोककर उसे देखा- “अभी चल शैतान के अवतार के पास शम्बूझा से बड़ा शैतान तो नहीं होगा वो। मैं तेरे साथ हूं। तू टांगें पकड़ना। मैं उसका गला काट दूंगी।"
“वो शैतान नहीं, शैतान का अवतार है।" पेशीराम ने व्याकुल स्वर में कहा- “उसकी शक्तियां असीमित हैं। मेरे ख्याल में तो उसका मुकाबला कर पाना सम्भव नहीं। ऐसी कोई विद्या नहीं, जिसका उसे ज्ञान नहीं हो । जादू-टोना । तिलस्म । प्रेतों और जिन्नों तक को उसने बस में कर रखा है। जो कि उसके इशारे पर हर काम करते हैं। गुरुवर के अलावा कोई भी उसे जीत नहीं सकता। लेकिन भविष्य के गर्भ में क्या है । इस वक्त मैं भी नहीं देख पा रहा हूं।"
"गुरुवर का यज्ञ कब समाप्त होगा ?” नगीना ने पूछा ।
“इस बारे में मुझे कोई खबर नहीं है कि गुरुवर के यज्ञ की अन्तिम आहुति कब है ।”
“यज्ञ कब शुरू हुआ था ?" नगीना बेहद गम्भीर थी। ।
"डेढ़ बरस हो गया ।”
“तुम्हारा मतलब कि शैतान का अवतार डेढ़ बरस से गुरुवर की परेशानियां बढ़ा रहा है।” सोहनलाल कह उठा।
“हां। लेकिन मेरे सामने कोई रास्ता नहीं कि उसे रोक सकूं।" पेशीराम ने कहते हुए आंखें बंद कर लीं- "मैं बहुत ही ज्यादा परेशानी के दौर से गुजर रहा हूं इस सिलसिले को लेकर। तभी भविष्य के आईने में झांककर देखा तो देवा और मिन्नो का झगड़ा नजर आया। जो कि शीघ्र ही होने वाला था। इस झगड़े में देवा की मौत के साथ अन्यों का भी भारी नुकसान था। देवा की मौत के बाद और भी कईयों ने मरना था। तभी मैंने फैसला कर लिया कि तुम लोग आपस की लड़ाई में क्यों जान गंवाओ । गुरुवर के वास्ते जान दोगे तो अगले जन्म में तुम सबको अच्छा रास्ता मिलेगा। मैं जानता था कि तुम दोनों गुरुवर की सहायता के लिए कभी इन्कार नहीं करोगे और मेरी सोच ठीक ही निकली।"
“गुरुवर के लयो तो म्हारो जानो भी हाजिर हौवो।"
“मैं नहीं देती जान ।” राधा समोसे को मुंह में घूंसे कह
उठी - “नीलू जान देने को कहेगा तो तब दूंगी।"
“अंम थारे से बात न करो हो ।”
“मैं कहां मूंछो वालों से बात कर रही हूं। मूंछ वाले तो मुझे वैसे भी अच्छे नहीं लगते।” राधा ने मुंह बनाकर कहा ।
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा। वो तीखे स्वर में कुछ कहने लगा तो रुस्तम राव कह उठा।
"बाप! वो औरत जात होएला। मूंछ वाला औरत की बात का बुरा नेई मानेला
"छोरे वो म्हारी मूंछों को 'वडने' की ट्राई करो हो।"
"ऐसी बात नेई होएला बाप । वो तो समोसा 'वडेला' ।”
"शैतान का अवतार कहां रहता है पेशीराम ?” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
"देवा!” फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा- “शैतान के अवतार से टक्कर लेने में जान जा सकती है।"
“पेशीराम!” देवराज चौहान दरिन्दा-सा लगने लगा- "तुम बताओ शैतान का अवतार कहां रहता है। किसी की जान लेने के लिए, अपनी जान को भी दांव पर लगाना पड़ता है। "
“बताओ पेशीराम !” मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भाव थे- "शैतान का अवतार कहां मिलेगा ?"
फकीर बाबा ने सबके चेहरों पर गम्भीर निगाह मारी । "क्या तुम सब मौत को गले लगाने को तैयार हो ?" सबने हां में दृढ़ता से आवाज लगाई।
राधा कह उठी।
“मेरे बारे में नीलू से पूछ लो। वो जो कहेगा, मैं वही करूंगी कहते हुए राधा ने समोसों का थाल एक तरफ सरका दिया। सबकी निगाह उस पर ही थी।
फकीर बाबा चुप कर गया ।
कुछ लम्बी चुप्पी के बाद फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“सच बात तो ये है कि मैं स्वयं भी नहीं जानता कि शैतान का अवतार कहां रहता है। गुरुवर ने कभी भी मुझे उस तरफ जाने की इजाजत नहीं दी। लेकिन वो रास्ता मुझे मालूम है, जो शैतान के अवतार तक जाता है।"
“रास्ता बताओ।" मोना चौधरी गुर्रा उठी।
"हर छः महीने में एक बार तीन घंटों के लिए काले समन्दर में से एक जंजीरा बाहर निकलता है। डेढ़ बरस की भागदौड़ से सिर्फ इतना ही जान पाया हूं कि वो जंजीरा शैतान के अवतार की दुनियां का ही जरा सा हिस्सा है। शैतान के अवतार के साम्राज्य का जरा सा अंश है वो।" पेशीराम कह रहा था- “छः महीने में, सिर्फ तीन घंटे के लिए, काले समन्दर से वो जंजीरा बाहर क्यों निकलता है? ये मैं नहीं जानता। तीन घंटे बाद वो जंजीरा पुनः पानी में समा जाता है।"
“काला समन्दर क्या है ?" सोहनलाल ने कहा।
“उस समन्दर का पानी स्याह काला है। इसलिए उसे काला समन्दर कहा जाता है। मैंने जब से उस समन्दर को देखा है, उसका पानी काला ही देखा है। वो काला पानी पीने के लायक नहीं है। बहुत आगे जाकर वो काला पानी, स्वच्छ पानी के रूप में नजर आने लगता है। ऐसा क्यों है। कैसे है। मैं नहीं जानता। शायद काले समन्दर तक ही शैतान के अवतार का साम्राज्य फैला है। "
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