मोना चौधरी, महाज,न पारसनाथ, बंगाली और पाली वहां से निकलने की तैयारी करने लगे ।
"बंगाली ।" महाजन ने बोतल से घूंट भरा--- "तेरा ये ठिकाना तो हाथ से गया ।"
"कोई बात नहीं । इन कामों में नुकसान और फायदा तो चलता ही रहता है ।" बंगाली का स्वर शांत था ।
"कार कहां है ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"यहां से पैदल ही निकलना होगा। कार सड़क पर बनी मार्किट के पार्किंग में खड़ी है ।" बंगाली बोला ।
"इतनी दूर क्यों खड़े की ?" पाली बोला ।
"इसी बात को मददेनजर रखते हुए कि अगर किसी हालातों में यहां से निकलना पड़े तो खामोशी से निकल कर वहां तक पहुंचा जा सके। जैसे कि अब---I"
तभी उनके कानों में पुलिस सायरन की मध्यम सी आवाज पड़ने लगी ।
"पुलिस आ गई।" पाली के होठों से निकला ।
"अभी हमारे पास वक्त है । पीछे से निकलने का रास्ता साफ है ।" कहने के साथ ही ली पीछे के दरवाजे की तरफ बढ़ा, जो छोटी-पतली गली में खुलता था । में
d एकाएक सबके कदम फर्श से चिपकते चले गए ।
ठीक, उसी वक्त ?
"ये क्या हुआ ?" पाली के होठों से निकला--- "मेरे पैर नहीं उठ रहे।"
मोना चौधरी और महाजन की निगाहें मिली। फिर पारसनाथ को देखा । जो अपनी जगह पर स्थिर खड़ा दोनों को देख रहा था ।
"मेरे पैर भी नहीं उठ रहे ।" बंगाली का हड़बड़ाया स्वर उनके कानों में पड़ा ।
मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी । होंठ भिंचे हुए थे ।
"फकीर बाबा ।" महाजन के होठों से निकला ।
मोना चौधरी ने सहमति में सिर हिला दिया ।
"लेकिन बाबा हमसे चाहते क्या हैं ?" महाजन के स्वर में उलझन थी ।
"कोई खास बात होगी।" मोना चौधरी ने इतना ही कहा ।
पुलिस सायरन की आवाज मकान के सामने वाले हिस्से की तरफ आकर रुक गई ।
"पुलिस आ गई।" बंगाली के होठों से बेचैन स्वर निकला।
"कहीं ऐसा तो नहीं कि बाबा हमें पुलिस के हाथों में पहुंचा देना चाहते हों यह लड़ाई आगे ना बढ़े ।" महाजन बोला ।
"ये बाबा कौन है ?" पाली उलझन भरे स्वर में कह उठा ।
"नहीं।" मोना चौधरी की आवाज में विश्वास था--- "बाबा ऐसा काम नहीं कर सकते।"
"तो फिर...।"
तभी उस पल, देखते ही देखते उन सबके शरीर धुंए में बदले और दूसरे ही क्षण में धुंए की लकीर बनकर हवा में गुम होते चले गए।
इसके कुछ पलों बाद ही मकान में पुलिस के जूतों की गूंज उठी ।
***
मोना चौधरी, नीलू महाजन, पारसनाथ, बंगाली और पाली के दिमाग तो पूरी तरह काम कर रहे थे । परंतु वह इस बात को नहीं समझ पा रहे थे कि उनके साथ क्या हो रहा है । उनका शरीर कहाँ है ? खुद को अंधेरे से भरी जगह में महसूस कर रहे थे जैसे ।
और फिर जब उनके पांव जमीन पर लगे तो उनके सिर घूम रहे थे ।
मोना चौधरी ने अपने मस्तिष्क पर पूरी तरह काबू रखा था। क्योंकि वो पहले भी इस स्थिति में से गुजर चुकी थी। पांव जमीन पर लगते ही उसकी आंखें खुली और फौरन आसपास देखा । यह वही जगह थी, जहां फकीर बाबा ने पहले भी उसे बुलवा लिया था ।
"ये हम कहां आ गए ?" महाजन के होठों से निकला ।
मोना चौधरी ने उसे देखा ।
महाजन के चेहरे पर हैरत के भाव थे और हाथ में बोतल थमी हुई थी ।
पारसनाथ रह-रह कर अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेर रहा था । अपनी सिकुड़ी निगाहों से वो आसपास का माहौल देख रहा था ।
"ये जगह तो मुंबई में कहीं भी नहीं है।" बंगाली के होठों से निकला--- "मैंने मुंबई का जर्राजर्रा देख रखा है।"
"ठीक कहते हो । यह जगह मुंबई से बाहर है ।" पाली कह उठा ।
"लेकिन हम इस तरह अचानक यहां कैसे आ गए ?" बंगाली हैरान-परेशान था ।
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा ।
"तुमने बताया था कि बाबा ने इसी तरह तुम्हें अपने पास बुलाया था।" पारसनाथ गंभीर था--- "तब वो जगह यही थी या कोई और थी ?"
"यही थी ।" मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी--- "यहां से कुछ आगे बड़ा-सा झोपड़ा है बाबा का । "
"ये बाबा है कौन । जिसका जिक्र बार-बार तुम लोग कर रहे हो ?" बंगाली ने मोना चौधरी को देखा ।
"जब बाबा सामने आएंगे तो देख लेना।" महाजन ने बोतल से घूंट भरा । "मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।" पाली ने कहा ।
"अब क्या करना है ?" पारसनाथ ने पूछा ।
"बाबा ने हमें अपने पास बुलाया है ।" मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी--- "और बाबा इस वक्त कहां है । मैं जानती हूं। कुछ दूर हमें पैदल बढ़ना होगा।"
"चलते हैं ।" महाजन बोला।
"देखें तो सही कि बाबा है कौन ?" पाली ने अजीब से लहजे में कहते हुए बंगाली को देखा-
- "कार नहीं । बस नहीं। प्लेन नहीं और जाने कैसे वो हमें यहां ले आया ?"
"अगर सच में ये किसी बाबा का कमाल है तो वास्तव में वो करिश्मासाज है । बंगाली बोला--- "ऐसे करिश्मे तो हमारे बंगाल में भी कभी देखने-सुनने को नहीं मिले ।"
"ये कहीं बंगाली बाबा न हो ।"
"नहीं।" बंगाली ने सिर हिलाया--- "बंगाली बाबा को फकीर बाबा नहीं कहा जाता । वो कोई दूसरा बाबा ही होगा ।"
तब तक मोना चौधरी अपना कदम आगे बढ़ा चुकी थी ।
सब उसके साथ चल पड़े ।
महाजन घूंट भरता बड़बड़ाया ।
"बोतल खत्म होने वाली है। पहले मालूम होता कि ऐसा कुछ होना है तो पांच-सात बोतल और पकड़ लेता। टैंक में पेट्रोल डालना बंद हो गया तो दिमाग की मशीन भी ठप्प हो जाएगी।"
***
फकीर बाबा की आंखें, पूरी तरह लाल सुर्ख होकर, सुलग रही थी । चेहरे पर कठोरता से भरा कसाव आया हुआ था। स्पष्ट नजर आ रहा था कि वे हद से ज्यादा गुस्से में है । इस वक्त बाबा झोपड़े से बाहर नर्म-मखमली घास पर खड़े थे, जब मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन, बंगाली और पाली वहां पहुंचे। अपने सामने पाकर फकीर बाबा का चेहरा और भी कठोर हो गया।
कई पलों तक उनकी निगाहें बाबा पर टिकी रही ।
"नमस्कार बाबा ।" पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा ।
जवाब में बाबा ने सिर्फ सिर हिलाया । बदन पर वही मैली पैंट-कमीज थी ।
"नमस्कार बाबा ।" महाजन ने शांत स्वर में कहा ।
फकीर बाबा की सुर्ख आंखे, अभी तक गुस्से से भरी आग उगल रहे थी
"ये कोई बाबा है ।" बंगाली बोला--- "मुझे तो कोई ढोंगी लगता है । ये तो खुद दाने-दाने का मोहताज लगता है । "
"बंगाली ।" मोना चौधरी फौरन बंगाली की तरफ पलटकर गुर्राई --- "अपनी जुबान को लगाम दे।"
बंगाली ने फौरन होंठ बंद कर लिए ।
फकीर बाबा की निगाह पाली पर जा टिकी । पाली के कंधे के जख्म और गले में लटक रही पट्टी में फंसी कलाई को देखा।
अगले ही पल जैसे सबने महसूस किया कि फकीर बाबा की आंखों से सुनहरी लकीर निकलकर पाली की तरफ बढ़ी हो । अजीब-सी चमक उभरी और लुप्त हो गई । पाली को कंधे पर तीव्र झटका लगा ।
दूसरे ने पल उसकी आंखें हैरानी से फैल गई कंधे पर की गई बैंडिज और गले में लटक रही पट्टी गायब थी । उसकी बांहू नीचे झूल रही थी । कंधा बिल्कुल स्वस्थ हो चुका था। पाली ने बांह हिलाई । दूसरे हाथ से कंधे को दबाकर देखा । सब ठीक था ।
पाली हक्का-बक्का सा बाबा को देखता रहा ।
"बाबा ।" अगले ही पल पाली श्रद्धा भाव से बाबा के पांव छूने को लपका । दो कदम भी आगे बढ़ा होगा कि उसे ऐसा लगा जैसे रास्ते में किसी अदृश्य दीवार ने उसका रास्ता रोक लिया हो ।
पाली रुक गया । उसने हैरानी से बाबा को देखा ।
तभी पाली को लगा जैसे किसी ने उसे पीछे धकेला हो । कदम खुद-ब-खुद भी पीछे हटते चले गए और वह वापस अपनी जगह पर आकर खड़ा हो गया । बंगाली ने अजीब सी निगाहों से पाली को देखा
"क्या हुआ ?"
पाली के होंठ हिले । परंतु कोई बोल न निकला ।
सब की निगाह फकीर बाबा पर थी । जो सुर्ख आंखों से मोना चौधरीको घूर रहा था ।
मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी ।
"क्या बात है बाबा | मुझसे इतनी नाराजगी क्यों ?" मोना चौधरी शांत स्वर में बोली ।
"मिन्नो ।" फकीर बाबा की आवाज में सख्ती थी--- "आखिर तूने मेरी बात नहीं मानी । देवा से झगड़ा ले ही लिया । हर बार की तरह इस बार भी अपनी मर्जी कर ली।"
"देवराज चौहान ही मेरे रास्ते में आया था।" मोना चौधरी का स्वर शांत था ।
"मुझे सब मालूम है कि क्या हुआ और कैसे हुआ ? मैं सफाई नहीं मांग रहा । मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि तुमने मेरी बात नहीं मानी । झगड़े पर उतर आई ।"
"झगड़ा कभी एक तरफ से नहीं होता बाबा ।"
"देवा ने मेरी बात मानी थी । वो मुंबई से बाहर चला गया था । वो हमेशा मेरी बात मान लेता है लेकिन तुम नहीं मानती । देवा को जीतने में लगी रहती हो । यहीं पर झगड़ा बढ़ जाता है।"
"देवराज चौहान को मैं हराकर ही रहूंगी बाबा । मैं उसे हर हाल में शिकस्त दूंगी।"
फकीर बाबा की आंखों की सुर्खी और भी चमक उठी ।
"मैंने कभी नहीं चाहा कि तुम दोनों झगड़ो । लेकिन तीन जन्मों से तुम दोनों की लड़ाई देखते हुए मैं तंग आ चुका हूं। कब तक तुम दोनों की पहरेदारी करता रहूंगा । यही वजह रही कि तुम्हें तुम्हारे साथियों के साथ यहां बुला लिया है ।" बाबा का स्वर कठोर था ।
"क्यों बाबा ?" पारसनाथ के माथे पर बल पड़े ।
"जो झगड़ा तुम लोग कर रहे हो । इससे कोई नतीजा नहीं निकल सकेगा । मिन्नो और देवा के सामने मैं रखूंगा झगड़े की वजह । उसमें से दोनों में से एक को जीतना होगा।"
"हम समझे नहीं ।" महाजन कह उठा ।
"थोड़ा सा सब्र कर लो । देवा को भी आ जाने दो । फिर सब कुछ समझ जाओगे ।" बाबा की निगाह बारी-बारी पांचो पर फिर रही थी --- "तुम लोग यहां आधा किलो मीटर से ज्यादा दूर नहीं जा सकते । मैंने न नजर आने वाली दीवार खींच रखी है । बहुत जल्द मैं वापस आ रहा हूं ।" कहने के साथ ही फकीर बाबा ने हाथ ऊपर उठाया तो जाने कहां से हाथ में पतली-सी छड़ी आ गई । छड़ी को अपने पावों के पास जमीन में धंसाकर फकीर बाबा ने कहा--- - "मेरे जाने के बाद किसी भी चीज की जरूरत पड़े तो इस छड़ी को छूकर मांग लेना । मिल जाएगी। अगर इस छड़ी को जमीन से निकाला गया तो फिर कुछ भी नहीं मिलेगा।"
"व्हिस्की भी मिल जाएगी ?" महाजन ने फौरन पूछा ।
जवाब में बाबा ने आंखें बंद की और देखते ही देखते उनकी निगाहों के सामने से गुम हो गया । दो पल के लिए सब हैरानी से ठगे रह गए ।
"ओह ।" बंगाली के होठों से निकला--- "बाबा तो अद्भुत शक्तियों का मालिक है।" महाजन ने बोतल से बची खुची व्हिस्की खत्म करके एक तरफ फेंकी और फौरन आगे बढ़कर जमीन में गड़ी छड़ी को छूकर बोला ।
"सबसे बढ़िया व्हिस्की की बोतल मुझे चाहिए।"
शब्द पूरे होते ही व्हिस्की की सील बंद बोतल छड़ी के पास पड़ी नजर आई। "वाह।" महाजन हंसकर बोतल उठाते हुए बोला--- "ये तो कमाल हो गया । मोना चौधरी और पारसनाथ की नजरें मिली ।
"बाबा क्या करना चाहते हैं ?" पारसनाथ ने पूछा ।
"मालूम नहीं । लेकिन मेरे ख्याल में कोई खतरनाक खेल शुरू होने वाला है ।" मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली ।
महाजन ने बोतल खोल कर होठों से लगाई। घूंट भरा ।
"बहुत ही फाइन व्हिस्की है । बढ़िया रहा । फिर उसने मोना चौधरी को देखा--- "बाबा कहां गए हैं ?"
"देवराज चौहान को लेने । "
"क्यों ?"
"बाबा के शब्दों के मुताबिक । वो मेरा और देवराज चौहान का मुकाबला कराएंगे।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी--- "हममें कौन जीतेगा । बाबा ये बात सामने लाना चाहते हैं।"
"बाबा के बीच में आ जाने से ये मामला अब भी मुसीबत से भरा हो जाएगा ।" महाजन ने गहरी सांस ली ।
"ये बाबा है कौन ? तुम लोग इसे कैसे जानते हो ?" बंगाली ने उलझन भरे स्वर में पूछा । "देखता रह । समझता रह | सब समझ जाएगा ।" महाजन ने कहा और नीचे मौजूद हरी घास पर बैठ गया।
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाई और कश लेते इधर-उधर देखने लगा ।
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच और दृढ़ता के भाव थे ।
पाली को अभी तक विश्वास नहीं आ रहा था कि फकीर बाबा ने पलक झपकते ही उसका कंधा ठीक कर दिया है। जबकि जख्म गहरा था ।
***
कर्मपाल सिंह ने कार को सीधा बंगले के पोर्च में ले जाकर रोका । सब कार से निकलकर बंगले में प्रवेश करते चले गए । मन ही मन उन्हें इस बात का मलाल हो रहा था कि मोना चौधरी और उसके साथियों को ठीक-ठाक घेर लिया था परंतु पुलिस की वजह से अपने इरादों में कामयाब न हो सके ।
भीतर सोहनलाल भी मौजूद था ।
"ये क्या हुआ ?" देवराज चौहान के गले में बंधे, खून से सने रुमाल और छाती पर कमीज पर लगे खून को देखते ही उसके होठों से निकला।
"फर्स्टएड का बॉक्स लाओ, भीतर से ।" जगमोहन ने कहा ।
सोहनलाल फौरन बंगले के भीतर की तरफ बढ़ गया ।
"भगेला वो सब बाप । वरना आज तो खलास हो ही जाना था ।" रूस्तम राव बैठते हुए बोला ।
"म्हारो तो 'वडने' का पूरा मूड़ हौवे । पण आज का दिन तो उसकी जिंदगी में, जीने को दर्ज इस हौवो । इसो के वास्ते बचो हो मोना चौधरी । अंम कल तो उसको वडो ही वडो ।" बांकेलाल राठौर कठोर स्वर में बोला ।
"वो सब बैठ चुके थे ।
जगमोहन, देवराज चौहान के गले में बंधा खून से सना रुमाल खोलने लगा ।
"पुलिस को खबर किसने की ?" कर्मपाल सिंह ने पूछा---
"शायद आस पड़ोस वालों ने।"
"नहीं । उनका कोई साथी है पाली । घिरा पाकर बचने के लिए, उसने पुलिस को फोन कर दिया ।" देवराज चौहान कह उठा--- "हो सकता है किसी और ने भी पुलिस को खबर की हो ।"
सोहनलाल फर्स्टएड बॉक्स ले आया।
देवराज चौहान के गले का जख्म कम नहीं तो ज्यादा भी नहीं था । अगर गोली जरा सी और गले की तरफ होती तो, शायद बड़ा नुकसान हो जाता ।
सोहनलाल फर्स्ट एड बॉक्स खोलता बेचैनी से कह उठा । "ये सब हुआ कैसे ?"
जगमोहन गले का जख्म साफ करने लगा ।
"थारे को का करना हो जान कर । जो ये करो, उसे तो कल हम 'वडो' हो ।" बांकेलाल राठौर अपने मूछों उमेठी।
"क्या हुआ ?" सोहनलाल ने गंभीर स्वर में, जगमोहन से पूछा ।
जख्म पर दवा लगाते जगमोहन ने सारी बात बताई ।
सुनकर सोहनलाल गंभीर हो उठा ।
"तो झगड़ा उफान पर आ ही गया ।" सोहनलाल की आवाज में व्याकुलता छा गई थी ।
"हां ।"
"झगड़ा तो और भी खतरनाक रूप लेगा ।"
"कल फैसला हो जाएगा ।" जगमोहन गले पर बेंडिज करता दांत भींचकर बोला--- "मोना चौधरी और उनके साथियों ने तयशुदा जगह पर मिलना है । फैसला होने में ज्यादा वक्त बाकी नही रहा ।"
"फैसला तो अंम ही करो । सब को 'वड़ने' में तो अंम ही एक्सपर्ट हौवे ।"
"तुम ही वडेला बाप । आपुन तो खड़ा होकर तमाशा देखेला ।"
"थारी जरूरत ना हौवे छोरे । तू घर पर घणो आराम करो। थारी टांगे दबाने वास्ते किसी को भेजो कां ? "
"बाप । बच्चे की टांगों को दबाकर क्यों तुड़वाने का प्रोग्राम बनाएला आपुन थारी मूछों को मरोड़ने के वास्ते कल साथ ही चलो हो । जब तुम सबको वडेला बाप तो तुम्हारु मूछों को मरोड़ने को वास्ते तुम्हें वक्त नहीं मिलेएला ।"
"थारो जरूरत न हौवे मूछों को तावो देने के वास्ते । म्हारे को मुंह तुड़वाना न हौवे ।" देवराज चौहान के गले की बैंडिज कर दी जगमोहन ने ।
"किसकी गोली लगी थी यहां ?" जगमोहन ने दांत भींचकर पूछा ।
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"गोली पर चलाने वाले का नाम नहीं लिखा होता ।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
"बाप । पहले एक कप गर्म चाय मारेला ।" रूस्तम राव ने बैठे-बैठे अंगड़ाई ली ।
सोहनलाल फर्स्टएड बॉक्स बंद करता हुआ बोला।
"मैं बनाता हूं।"
"म्हारी मत बनाइयो ।" बांके लाल राठौर ने कहा--- "अंम तो घरो जाकर ठंडी लस्सी, मक्खन का गोला डालकर पियो ।"
सोहनलाल वहां से गया और दस मिनट में ही सबके लिए चाय बना कर ले आया। उनके बीच बातों का मुद्दा मोना चौधरी ही थी कि जिससे कल मुलाकात होनी थी । इन बातों में देवराज चौहान खामोश था ।
दस चाय के सारे कप उस वक्त टेबल पर पड़े थे, जब सब की निगाह फकीर बाबा पर पड़ी । ना जाने कब वहां पहुंचा था । जब देखा तो सब ने उसे कदमों की दूरी पर खड़े देखा ।
"बाबा ।" रूस्तम राव फौरन उठ खड़ा हुआ ।
"बाबा ।" जगमोहन के होठों से भी निकला।
"आ गयो ।" बांकेलाल राठौर उठ खड़ा हुआ ।
देवराज चौहान की निगाह फकीर बाबा पर टिक चुकी थी। साथ ही इस बात को भी उसने महसूस किया कि बाबा की सुर्ख आंखों में गुस्सा चमक रहा था ।
फकीर बाबा ने बारी-बारी सबको देखा ।
कर्मपाल सिंह अजीब-सी निगाहों से फकीर बाबा को देख रहा था कि यह शख्स कौन है और एकाएक मालूम हुए बिना वह कमरे के भीतर कैसे पहुंच गया और इसे देखकर हर कोई चुप-सा क्यों हो गया है । ऐसी क्या शख्सियत है, इस फटे हाल इंसान में ? फकीर बाबा की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी ।
बाबा को देखते, देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ ।
"क्या हाल है देवा ?"
"ठीक हूं बाबा ।"
"मिन्नो से झगड़ा हो ही गया तेरा । "
"बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन...।"
"जानता हूं । सब जानता हूं।" फकीर बाबा ने अपना गुस्से से भरा चेहरा हिलाया--- "तेरा काम पहले खत्म हो गया और एक-दो दिन पहले लौट आया और राह में मिन्नो मिल गई । "
"आप गुस्से में हैं बाबा ।"
"तुमने और मिन्नो ने गुस्सा दिलाया है।"
"वो कैसे बाबा ?"
"मैं तुम दोनों के झगड़े को जितना रोकने की कोशिश करता हूं, वो उतना ही बढ़ जाता है । तीन जन्मों से तुम दोनों के बीच यही झगड़े वाला तमाशा देख रहा हूं। मैं चाहता हूं कम से कम इस जन्म का झगड़े का किस्सा खत्म हो जाए । "
फकीर बाबा की आवाज में पक्के पन से भरी सख्ती भरी हुई थी । सबकी निगाह बाबा पर और कान बातों पर थे ।
"कोई खास आईडिया हौवे थारे पास बाबा ?"
फकीर बाबा, देवराज चौहान को देखता रहा ।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी।
"मैं समझा नहीं बाबा ।"
"तुम और मिन्नो झगड़ा करके एक-दूसरे को खत्म करना चाहते हो या फिर जीत का सेह्ररा अपने सिर पर बांधना चाहते हो कि कौन बड़ा है । दूसरे को नीचा दिखाना चाहते हो । अगर इतनी ही हिम्मत है तुम दोनों में तो मैं तुम दोनों का टकराव कराता हूं । बोलो मंजूर है, टक्कर लेने को ?' बाबा ने सख्त स्वर में कहा ।
देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी ।
"किस तरह का टकराव बाबा ?"
"यह बाद में बताऊंगा । टकराव के लिए तुम तैयार हो ?"
"हां बाबा ।"
फकीर बाबा ने वहां मौजूद सब पर निगाह मारी।
"इनमें से किसी को यहां छोड़ना है या सब को साथ ले चलना है ?" फकीर बाबा ने देवराज चौहान से पूछा।
देवराज चौहान की निगाह सब पर गई ।
सबके चेहरे पर साथ चलने की रजामंदी थी ।
"सब साथ चलेंगे बाबा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
फकीर बाबा ने अपनी सुर्ख आंखे बंद की होठों ही होठों में बुदबुदाने लगा। कुछ ही पलों में फकीर बाबा के साथ सब धुआं बन कर वहां से गुम होते चले गए | देवराज चौहान, जगमोहन सोहनलाल, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव और कर्म पाल सिंह में से वहां कोई भी नहीं था ।
गर्म चाय से भरे प्याले टेबल पर पड़े नजर आ रहे थे।
***
0 Comments