तुमने अपनी औरतों से उसके कपड़े उतारने के लिए कहा और नशे में धुत्त उन्होंने लड़की को दबोच लिया। एक-एक करके उसके सारे कपड़े चिथड़े कर दिए । जब वो अपना नंगा जिस्म छुपाने लगी। रोने लगी। तो तुम्हारी औरतें उसकी दोनों कलाईयां दाएं-बाएं फैलाकर खड़ी हो गईं । तुम्हें खुलकर उसका नंगा जिस्म दिखाने लगीं और उस जिस्म को देखकर तुम पागल हो गए। नोंचने-खसोटने लगे उसे । फिर एक-एक करके उसके साथ रेप किया । वो मासूम लड़की भला चीखने-चिल्लाने और रो-रोकर, हाथ जोड़ - जोड़कर माफ कर देने के लिए गिड़गिड़ाने से ज्यादा और कर ही क्या सकती थी? वो सब किया उसने तुम तो तुम... तुम्हारी औरतों तक को तरस नहीं आया। शराब ने उन्हें राक्षसियां बना दिया था । तुम उसे रोंद रहे थे । उसकी अस्मत लूट रहे थे और वे यूं हंस रही थीं जैसे रामलीला के मंच पर ताड़का हंसती है । जब वह निढाल हो गई । बेसुध हो गई । बेहोश हो गई तो उसी हालत में तुमने उसे हजारों फुट गहरी खाई में फैंक दिया । बोलो... फैंका था न! की थी न उसकी वह हालत !” “त... तो फिर... तो फिर... उससे तुम्हारा क्या मतलब ?”
“वो मेरी बहन थी कुत्ते! मेरी बहन थी वो ।” दांत भींचकर जो आवाज उसने अपने मुंह से निकाली उससे धीरज की तो बात ही दूर हम तक के जिस्म ठंडे पड़ गए ---- “राधा नाम था उसका। कानून तो तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता मगर मैं जिंदा हूं । उसका भाई जिंदा है। जब तक एक- एक साले को मौत के घाट नहीं उतार दूंगा । हरेक की नंगी लाश दुनिया को नहीं दिखा दूंगा, तब तक चैन की सांस नहीं लूंगा । इतने दिन तो यही पता लगाने में गुजर गए कि तुम लोग कौन हो और कहां-कहां रहते हो ।”
“प... पर उसमें मेरी गलती नहीं थी ।” धीरज गिड़गिड़ाया- “मैं तो सबसे पीछे बैठा रहा था । तुम्हें इतना सब मालूम है तो यह भी मालूम होगा कि मैंने उन सबसे वह सब करने से मना किया था । बार-बार कहा था कि वे ठीक नहीं कर रहे हैं मगर कोई माना ही नहीं।”
“ यानी याद आ गया !" उसने शब्द चबाए ---- “सारा मंजर याद आ गया तुझे! मेरी बहन को वो नोंच-नोंचकर लूटना । उसके कपड़े तार-तार कर देना और फिर खाई में फैंककर उसे मार देना। सब याद आ गया तुझे! सब याद आ गया हरामजादे..
“म ... मैंने तो कहा था रमेश से ।” धीरज कह उठा ---- “मैंने तो बहुत कहा था कि आओ, उसे खाई से निकाल लाएं। हो सकता है वह जिंदा हो । बच जाए बेचारी । हम उसे अस्पताल ले जाएंगे लेकिन..
“ये सच है हरामजादे... ये सच है कि अगर तुम उसे खाई से निकाल लेते । अस्पताल ले जाते तो राधा बच जाती। तब तक मरी नहीं थी वो । दम तो उसने मेरी बांहों में... मेरी इन बांहों में तोड़ा था । उस वक्त एक भी कपड़ा नहीं था उसके जिस्म पर ।”
“पर उसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैंने बताया न, मैंने र..
“बस ।” उसने हाथ ऊपर उठाया-- “चुप।”
धीरज की जुबान को ब्रेक लग गए।
हकबाया - सा वह, रोने को तैयार - सा उसकी तरफ देखता रह गया। जबकि वह गर्जा-- -- “बहुत बोल चुका तू । अब बोलने का कोटा खत्म | इंजेक्शन लगा... इंजेक्शन लगा अपने बाजू में।"
“म... मेरी बात तो सु..
“लगाता है या मार दूं गोली ?” उसकी उंगली ट्रेगर पर कसी ।
मराठा ने पूछा---- “अब किस बात का इंतजार कर रही हो ?”
“या तो वो इंजेक्शन लगा लेगा या वो साला गोली मार देगा।" मैं कह उठा - - - - “ इरादा क्या है विभा? उसे मरवाना चाहती हो क्या?”
इस बीच लबादाधारी धीरज से एक बार और इंजेक्शन लगाने के लिए कह चुका था। कांपते-झांपते धीरज ने सीरींज अपने बाजू की तरफ बढ़ाई। हमने इस आशा में विभा की तरफ देखा कि वह शायद अब कुछ कहे... अब कुछ कहे लेकिन वो पट्ठी तो कुछ बोली ही नहीं।
आंखों में दिलचस्पियां लिए बस देखती रही ।
काफी देर तक धीरज अपने बाजू में इंजेक्शन लगाने की कोशिश जरूर करता रहा लेकिन लगाया नहीं ।
और फिर अचानक वह सीरींज एक तरफ फैंककर लबादाधारी पर झपट पड़ा । लबादाधारी बौखलाया । उसे ट्रेगर दबाने का मौका नहीं मिला। रिवाल्वर कालीन पर जा गिरा और कालीन पर ही जा गिरे एक दूसरे से गुथे धीरज और लबादाधारी।
“एक्शन ।” कहती हुई विभा खड़ी हो गई ।
मराठा और शगुन तो मरे ही उसके मुंह से निकलने वाले इस लफ्ज के लिए जा रहे थे । एकसाथ दोनों ही के जिस्मों में जैसे बिजली भर गई । कमान से निकले तीर की तरह दौड़े वे। जबकि मैं ये सोच रहा था कि अब इस सबकी जरूरत ही क्या रह गई है?
धीरज तो खुद ही लबादाधारी पर हॉवी हो चुका
और फिर, मराठा और शगुन बैडरूम की कांच वाली दीवार से यूं टकराए जैसे ए. के. सेंतालिस से चली गोलियां टकराई हों ।
“भाड़... भाड़... ।” की दो जोरदार आवाजें हुईं।
दो जगह से कांच टूटा और फिर माहौल कांच टूटने की आवाज से झनझना उठा। उससे आगे का दृश्य मैंने और विभा ने एक बार फिर छोटे-से टी. वी. की स्क्रीन पर देखा था । लबादाधारी शगुन और मराठा की गिरफ्त में था । धीरज चीखे चला जा रहा -“पकड़ लो ... पकड़ लो । यही हत्यारा है ।” 'सिंहानियाज' के चारों तरफ हलचल नजर आने लगी थी ।
बंगले की छत से लेकर उस खिड़की तक एक रस्सी लटकी हुई थी जिसके माध्यम से लबादाधारी बैडरूम में आया था। रस्सी का ऊपर वाला सिरा पानी की टंकी से ज्वाईंट नल के साथ बंधा था |
खिड़की का कांच बहुत सावधानी से काटा गया था ।
इस तरह वह पर्दे के पीछे पहुंचा।
चेहरे से नकाब हटाया गया।
वह करीब पच्चीस वर्षीय गोरा-चिट्टा पहाड़ी लड़का था ।
उसके पास से अन्य सामान के साथ एक मोबाइल भी मिला । उसमें उसी नंबर का सिम था जिससे धीरज सिंहानिया के मोबाइल पर धमकी भरा एस. एम. एस. भेजा गया था ।
स्वीच ऑफ था उसका ।
पकड़ा जाने के बाद भी वह डरा नहीं ।
मराठा और शगुन की गिरफ्त में फंसा देर तक चिल्लाता रहा कि धीरज, मंजू और अशोक को जिंदा नहीं छोड़ेगा ।
कुछ देर बाद गूजरमल सिंहानिया भी कमरे में आ गए।
सभी पुलिसवालों तक यह मैसेज पहुंच गया था कि हत्यारे ने हत्या करने की कोशिश की लेकिन पकड़ लिया गया ।
हैरत सबको इस बात पर थी कि इतने पहरे के बावजूद वह बंगले की छत तक कैसे पहुंच गया ?
इस सवाल के जवाब में उसने बताया कि - - - - वह एस. एम. एसदेने के बाद से छत पर था बल्कि एस. एम. एस. दिया ही छत पर से था । बंगले के चारों तरफ लगती पुलिस उसने अपनी आंखों से देखी थी मगर कैमरे आदि के बारे में पता नहीं था ।
यह तो स्पष्ट हो ही चुका था कि सभी का कत्ल करने के बाद उसने उनके कपड़े क्यों उतारे और एक शिकार के कपड़े दूसरे शिकार के पास क्यों छोड़ता था । विभा ने जब पूछा कि लाशों पर अक्षर क्यों लिखता था और उनका मतलब क्या है तो बोला----“कोई मतलब नहीं है उनका । वो सब तो मैं पुलिस को चकमा देने के लिए लिखता था ताकि पुलिस उनका मतलब निकालने में ही उलझी रहे ।”
एकाएक विभा धीरज सिंहानिया की तरफ घूमी।
वह अपराधी की मानिंद गर्दन झुकाए खड़ा था | पूछा----“तुम तो कह रहे थे कि बिड़ला और कपाड़िया को जानते तक नहीं हो, फिर हम ये क्या सुन रहे हैं?”
गर्दन झुकाए ही उसने सिर्फ इतना ही कहाझुकाए “सॉरी।” ————
“सॉरी कहने से काम नहीं चलेगा सिंहानिया ।” विभा के लहजे में कोड़े की-सी फटकार थी---- “तुम्हें बताना होगा कि झूठ क्यों..
“ब... बात ये है विभा जी कि नशे की ज्यादती के कारण उस दिन जो कुछ हो गया था, सो हो गया था लेकिन नशा उतरने पर उस सबको सोचकर हमारे होश फाख्ता हो गए। हमें उसी दिन लगा था कि ये घटना कभी-भी बवाल बन सकती है। हो सकता है पुलिस ही छानबीन करने लगे और हम लोगों तक पहुंच जाए। सो, फैसला किया कि आज के बाद हम एक दूसरे के लिए अंजान बन जाएंगे। कोई पूछेगा भी तो कह देंगे कि हमारा एक-दूसरे से कोई संबंध ही नहीं है ।”
“ अशोक और रमेश से अंजान क्यों नहीं बने?”
“ इन दोनों के साथ ऐसा संभव नहीं था | रमेश के बारे में सब पहले ही से जानते थे कि वह मेरा स्टूडेंट लाइफ का दोस्त है और अशोक से हमारे बापों ने बिजनेस रिलेशन जोड़ा था जिससे मुकरना किसी भी स्पॉट पर पकड़ा जा सकता था । "
“तुम एक-एक करके मरते रहे मगर एक-दूसरे से संबंध नहीं कबूला । आज भी अगर ये पकड़ में नहीं आता तो..
“विभा जी, इस दरम्यान हम गुप्तरूप से आपस में मिले जरूर, इस बात पर चर्चा भी हुई कि चुन-चुनकर हमारे ही दोस्तों को मारा जा रहा है मगर समझ नहीं सके कि ऐसा कौन और क्यों कर रहा है? सात अगस्त तक तो हमारा दिमाग ही नहीं पहुंचा था और..
“और ?”
“पहुंच भी जाता तो आप समझ सकती हैं, शायद उस सबको हम आपके या पुलिस के सामने कुबूल नहीं कर पाते।"
“जानते हो उस जघन्य कांड की तुम्हें क्या सजा मिल सकती है ?”
“इ... इसीलिए तो ।” कहने के बाद उसने धीरे से अपना चेहरा ऊपर उठाया और बोला---- “कानून तो जो सजा देगा, देगा ही। उससे बड़ी सजा तो ये होगी कि समाज में हमारे लिए कोई स्थान नहीं रह
जाएगा। पता नहीं किस जुनून में वो सब हो गया ?”
“बहुत ज्यादा स्मार्ट समझते हो अपने आपको?”
“ज... जी ?” उसके मस्तक पर बल पड़े ।
“ और विभा जिंदल के बारे में अभी तक इतना ही जान पाए हो कि तुमने ये सोच लिया कि वह तुम्हारे झांसे में आ जाएगी ?”
“म... मैं समझा नहीं?"
और... चटाक्!
विभा जिंदल के हाथ का बहुत ही करारा चांटा उसके गाल पर पड़ा। इतना करारा कि धीरज सिंहानिया मुंह से चीख निकालने के साथ चकरघिन्नी-सी खाकर दूर जा गिरा।
सब हैरान। कमरे में मौजूद हर शख्स ।
मैं भी ।
जबकि विभा ने इतने पर ही बस नहीं कर दी थी |
बाज की तरह धीरज पर झपटी वह ।
———— झुकी और दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर ऊपर उठाती बोली - - - - “तुम जो बार-बार कैमरे की तरफ देख रहे थे। पूरा मौका मिलने के बावजूद जो तुमने इंजेक्शन अपने बाजू में नहीं लगाया, क्या मैं उसका मतलब नहीं समझती?”
“मैडम ।” एकाएक गूजरमल सिंहानिया गर्जे---- “ये क्या कर रही हैं आप? ऐसा क्या कर दिया धीरज ने जो..
“आपने इतनी ज्यादा हरामी औलाद पैदा की है मिस्टर गूजरमल सिंहानिया कि विभा जिंदल को ही धोखा देने चली है ।” विभा को इतने गुस्से में मैंने पहले कभी नहीं देखा था । उसने तिनके की तरह हिलाते हुए धीरज को गूजरमल के सामने खड़ा करते हुए दांत किटकिटाकर कहा ---- ' “सुनना चाहते हैं आप... सुनना चाहते हैं कि इसने क्या किया है? तो सुनिए ---- इसने एक कहानी गढ़ी । ऐसी कहानी जिस पर हम सबको यकीन आ जाए। हम सब विश्वास कर लें कि हां, इसलिए हो रही थीं ये हत्याएं । पुलिस खुश हो जाए कि उसने हत्यारा पकड़ लिया। मैं ये सोचकर जिंदलपुरम लौट जाऊं कि ये केस खुल चुका है ।”
“ये आप क्या कह रही हैं विभा जी ?” मराठा के मुंह से निकला ।
“किसी मसूरी में सात अगस्त को कोई घटना नहीं घटी। किसी के साथ कोई रेप नहीं हुआ । वो सब इसी शैतान की खोपड़ी से निकली स्टोरी है और ये ... ये शख्स ! हो सकता है राधा नाम की इसकी कोई बहन रही हो और वह किसी दुर्घटना की शिकार हो गई हो ।”
हमारे दिमागों में आकाशीय बिजली-सी कड़की थी ।
“कैसी बात कर रही हैं आप ?” वह गूजरमल सिंहानिया ही था जो अभी तक अटका पड़ा था ---- “इतने संगीन अपराध में, सात-सात हत्याओं के इल्जाम में क्या कोई खुद को यूं ही फंसा लेगा?”
“इसने कोशिश की है । "
“ मैं नहीं मान सकता।"
“अभी मानेंगे आप | मानना पड़ेगा ।” कहने के साथ वह धीरज का गिरेबान छोड़कर पहाड़ी लड़के पर झपटी और बोली----“बोलो, ये झूठा इल्जाम अपने सिर लेने को क्यों तैयार हुए तुम ?”
लड़के की हालत बैरंग ।
सहमे हुए अंदाज में उसने धीरज की तरफ देखा।
“इधर देखो।” उसने लड़के का चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए कहा- -“सारा खेल खुल चुका है। अब तुम्हें कोई पैसा नहीं मिलना । जिनके लिए ये सब कर रहे थे वे सब बरबाद हो जाएंगे सो अलग।"
गया“नहीं... नहीं।” वह फौरन नीचे बैठकर विभा के कदमों से लिपट “ऐसा मत कहिए | मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। बेगुनाह बीवी है। बूढ़े मां-बाप हैं। उनकी परवरिश करने वाला कोई नहीं है।" ————
“तुम तो हो !”
“म... मुझे एड्स है । ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहूंगा मैं। "
उसके बाद वहां सन्नाटा खिंच गया ।
ऐसा सन्नाटा जो हरेक को चुभ रहा था ।
विभा के कदमों में, जहां वह बैठा था वहीं बैठा-बैठा अपने दोनों हाथों में चेहरा छुपाकर फूट-फूटकर रो पड़ा ।
विभा अहिस्ता-आहिस्ता उसके नजदीक बैठ गई | बोली----- -“तो इसलिए खुद को फांसी पर चढ़ाने के लिए तैयार हुए थे।" के
वह बस रोता रहा।
“कितने में सौदा हुआ था ? " विभा का दूसरा सवाल ।
वह तब भी कुछ नहीं बोला ।
बुरी तरह भन्नाए हुए गोपाल मराठा ने होलेस्टर से रिवाल्वर खींचा और झपटकर उसे धीरज सिंहानिया की कनपटी पर रखने के साथ भभकते लहजे में बोला“तू बोल ! कितने में सौदा हुआ था ?”
“द... दस लाख में।”
“इन्हें थाने ले चलो मराठा ।” विभा ने कहा----“बाकी बातें वहीं कुबूलते अच्छे लगेंगे। अभी तो धीरज से हकीकत उगलवानी है।" मराठा उसका कालर पकड़कर दरवाजे की तरफ घसीटता ले गया। कुछ भी तो नहीं कर सके गूजरमल सिंहानिया |
“बोल सिंहानिया... बोल । जवाब दे विभा जी के सवाल का ।” गोपाल मराठा टार्चर चेयर पर बंधे धीरज के बाल पकड़े उसे जोर से झंझोड़ता हुआ गुर्राया- -“वो कौनसी हकीकत है जिसे छुपाने के लिए तू खुद को रेप जैसे घिनौने इल्जाम में फंसाने को तैयार था ?”
“नहीं मराठा, खुद को किसी इल्जाम में फंसाने को तैयार नहीं था यह ।” हवालात में मौजूद विभा ने कहा ---- “इतना बेवकूफ मत समझो इसे । इसने बहुत ही खूबसूरत चाल चली थी । "
“जी ?” मराठा ने विभा की तरफ देखा ।
“इतना होशियार ये है कि इसे मालूम था ---- इसका खरीदा हुआ दलबहादुर भले ही अदालत में चाहे जितनी बार चीख-चीखकर कहे कि इसने और इसके दोस्तों ने इसकी बहन के साथ रेप किया था और ये इनसे उसी का प्रतिशोध लेने के लिए इनकी हत्याएं कर रहा था लेकिन धीरज को एक दिन की भी सजा नहीं हो सकती थी। जानता जो था कि इसका पढ़ाया हुआ दलबहादुर कोर्ट में इस बात को केवल कहेगा, कोई सबूत पेश नहीं करेगा और सबूतों के बगैर कोई कोर्ट किसी को सजा नहीं दे सकती । सो कोर्ट को इसे बरी करना ही था। हां, सात हत्याओं के इल्जाम में दलबहादुर को जरूर फांसी पर चढ़ना था क्योंकि उसके यह सबूत भी पेश कर देता और..
“और ?” हकीकत जानने के लिए मरे जा रहे मैंने पूछा ।
“इसके लिए उससे भी ज्यादा इंपोर्टेंट मेरे दिमाग में यह डालकर मुझे जिंदलपुरम वापस भेजना था कि ये केस हल हो चुका है और यह खेल इसने पहली बार नहीं खेला। दो बार पहले भी खेल चुका
“द... दो बार ? ” हम तीनों ही चौंके ।
“स्टोरियां गढ़ने में ये तुम दोनों से बहुत आगे की चीज मालूम पड़ रहा है।” विभा जिंदल ने मेरी और शगुन की तरफ देखते हुए कहा था - - - - “पहली स्टोरी इसने रतन की लाश को ठिकाने लगाने के लिए गढ़ी। ऐसी जबरदस्त स्टोरी कि जमील अंजुम बेचारा उसमें पूरी तरह फंस गया| रतन की हत्या के मामले में बस वह उतना ही समझ सका जितना यह समझाना चाहता था । अगर मैं दिल्ली न आती तो वह किस्सा वहीं खत्म हो चुका था । रतन मरा। चांदनी ने छंगा- भूरा को सुपारी देकर मरवाया। कानून का काम पूरा ।”
“ओह... और दूसरी बार ? "
“चांदनी से डायरी लिखवाकर ।” विभा ने कहा ---- “उसके जरिए भी तो यही कोशिश की गई थी कि मैं चांदनी को रतन, छंगा-भूरा और अवंतिका की हत्यारी मान लूं और यह मानकर कि उसने सुसाईड कर ली है, इस केस को हल हुआ मान लूं और जिंदलपुरम लौट जाऊं।”
“ये तो बहुत खतरनाक लड़का है विभा !”
ही “ और इस बार तो पट्ठे ने दलबहादुर के मुंह से पूरी वो कहानी सुनवा दी जिसकी वजह से हत्याएं हो रही थीं । सारा खेल इसी उद्देश्य से खेला गया | मुझसे पीछा छुड़ाना इसकी प्रायल्टी पर था और उसके लिए इससे बेहतरीन और क्या चाल हो सकती थी ?”
“पर हमें या पुलिस को धोखा देने से इसका क्या भला होने वाला था आंटी?” शगुन ने सवाल उठाया ---- “असल हत्यारा तो खुला ही घूमता रहता न ! इनकी हत्याएं तो यूं ही होती रहतीं ।”
“बहुत ही माकूल... तुमने बहुत ही माकूल सवाल उठाया है छुटके राजा ।” विभा ने कहा ---- "और ये सवाल हमारे लिए एक इतना बड़ा दूसरा सवाल खड़ा कर देता है जिसका जवाब जानना निहायत जरूरी है। और वो सवाल ये है कि ----सोचने वाली बात है, जो शख्स इनकी हत्याएं कर रहा है, इसकी प्रायल्टी पर उससे निजात पाना नहीं बल्कि उससे ज्यादा मुझसे निजात पाना था। सवाल उठता है ---- क्यों? उसके मुकाबले मुझसे निजात पाना इसकी प्रायल्टी पर क्यों है?"
“जबकि हम तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इनकी मदद ही कर रहे हैं।" मैंने कहा- -“ अर्थात् अगर हम हत्यारे को पकड़ने में कामयाब हो जाते हैं तो इनकी हत्याएं होनी रुक जाएंगी। ऐसी स्थिति में तो इन्हें हमारी मदद हासिल करनी चाहिए। कहना चाहिए हमसे कि जितनी जल्दी हो सके हत्यारे को पकड़कर कानून के हवाले करें।”
“वही तो... वही तो कहना चाहती हैं विभा जी ।" गोपाल मराठा बोला- “और किया है इसने उल्टा । वही तो जानना है हमें, जो करना चाहिए था वह न करके ये उल्टा क्यों कर रहा था ?”
“इसके उल्टे खेल का जवाब मुझे मालूम है । "
“म...मालूम है?” मारे हैरत के गोपाल मराठा का बुरा हाल हो गया----“मालूम है तो हम जानना क्या चाहते हैं, पूछ क्या रहे हैं?"
“ उल्टा खेल इसने उस भेद को खुलने से रोकने के लिए खेला जिसकी वजह से इन सबकी हत्याएं हो रही हैं। इसे यह डर सता रहा था कि अगर विभा जिंदल मैदान में रही, संतुष्ट होकर जिंदलपुरम नहीं चली गई तो वह भेद खुल जाएगा । है न जमूरे !” उसने अंतिम तीन शब्द टार्चर चेयर के साथ बंधे धीरज से कहे थे।
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