एक बजे…!"



कार विस्फोट में मारे गये इंसपेक्टर निरंजन सिंह, एस० आई० मनोहर लाल, राकेश मोहन, हैड कांस्टेबिल और पुलिस कार के ड्राइवर के अवशेषों में कोई और तब्दीली नहीं आयी । विक्टर सैमुअल और लिस्टर ब्रिगेन्जा, परवेज आलम और बलदेव मनोचा की लाशें सड़ने की सामान्य प्रक्रिया में थीं ।



* * * * * *



एक बजे…!"



ऊँचे कद और सुडौल एवं आकर्षक उभारों वाली सुंदरी मीना रमानी रेशमी गाउन पहने आराम से कुर्सी में पसरी हुई थी, उसके सामने भारी मजबूत जिस्म और धूर्त चेहरे वाला एक आदमी बैठा था ।



उन दोनों के बीच में मेज पर रखा टेप रिकार्डर चालू था ।



–"वापस आ जाना, प्लीज !" टेप से एक लड़की का स्वर उभरा–"स्पेयर चाबी ले जाओ ।"



–"नहीं…।" एक आदमी की आवाज़ में कहा गया–"मेरे पास अपने फ्लैट की चाबी है लेकिन…!"



–"लेकिन क्या ?" लड़की ने पूछा ।



–"इजन्ट इट आल टू फास्ट ?" आदमी बोला ।



–"आई नो इट इज फास्ट, बट…!" लड़की ने कहा ।



–"खैर, छोड़ो, डार्लिंग ।" आदमी बोला–"मैं दोबारा बातें करना चाहता हूं…कल । अभी हम दोनों जज्बाती हो रहे । बस वासना का भूत सवार है ।"



–"तुम पर भी ?" लड़की ने पूछा ।



–"बेशक ।" आदमी बोला–"इस वक्त तुम्हें प्यार करने के अलावा कुछ और कर पाना नामुमकिन है ।"



–"ओ० के० ।" लड़की ने कहा–"कल बात करेंगे । फोन कर लेना ।"



–"जरूर ।" आदमी बोला ।



टेप से कपड़ों की सरसराहट उभरने लगी ।



मीना रमानी के सामने बैठे आदमी ने कहकहा लगाया ।



–"दोनों जवानी के पूरे जोश में थे ।"



टेप खाली चल रहा था ।



–"काश हमने सभी कमरों में एक–एक माइक लगा दिया होता ।" मीना रिकार्डर का 'ऑफ' बटन दबाकर बोली–"अंधेरे में चलाया गया तीर आखिर निशाने पर जा ही लगा ।"



–"अब मुझे फोटुओं का इंतजार है ।"



–"इसके लिये तुम्हें कल तक सब्र करना पड़ेगा । जब तक वह ऑफिस नहीं चली जाती, मैं उसके फ्लैट में नहीं जा सकती ।" मीना ने चटखारा–सा लिया–"लेकिन एक बात माननी पड़ेगी पुलिस वाला होते हुये भी वह बहुत रोमांटिक है ।"



–"राकेश मोहन से ज्यादा बढ़िया लगता है ।"



–"मैं अच्छी तरह जानती हूं, वह हरामी कितना अच्छा था…और कितना बुरा ।"



–"मुझे तो इस बातचीत को सुनकर ही जोश आ गया ।"



–"तुम भी पूरे हरामी हो…खैर आज मुफ्त में ऐश करा देती हूं । इसने मुझे भी गर्मा दिया है ।"



उसने उठकर गाउन उतार दिया । नीचे बस काली लेस वाला पेंटीज पहने थी ।



आदमी, उसके पीछे बेडरूम में चला गया ।



* * * * * *



एक बजे…!"



एस० आई० मनोज तोमर, एस० पी० वर्मा, इंसपेक्टर कमल किशोर, इंसपेक्टर रोशन लाल, फ्रॉड केसेज के मामलों का एक एक्सपर्ट और दो एस० आई०, आधा दर्जन कांस्टेबिल, दो महिला कांस्टेबल और दिनेश ठाकुर ने होटल सुईट में फिट माइक्रोफोन्स से उसकी टेलीफोन वार्तालाप टेप करने वाला राजेश्वर यादव स्पेशल आप्रेशन हैडक्वार्टर्स के हॉल में मौजूद थे ।



सब अपने–अपने काम में मसरूफ थे लेकिन माहौल में तनाव था ।



वर्मा ने बीसवीं बार अपनी रिस्टवाच पर नजर डाली और उसका मुंह बन गया ।



–"अगर और दसेक मिनट में वह कांटेक्ट नहीं करता है तो उसकी सलाह के बगैर हम आज रात की कार्यवाही शुरू कर देंगे ।" कड़वाहट भरे लहजे में बोला ।



तभी कमरे के दूसरे सिरे पर मौजूद रेडियो से नकुवा–सा स्वर उभरने लगा ।



* * * * * *



एक बजे…!"



फारूख हसन उन चारों लड़कियों का स्ट्रिप शो देख रहा था जिन्हें पैराडाइज क्लब की तबाही के बाद ब्लू मून में ट्रांसफर कर दिया गया था । हालांकि डांस फ्लोर अपेक्षाकृत छोटा था लेकिन वे उतने ही उत्तेजक ढंग से परफार्म कर रही थीं ।



फारूख हसन के लिये कामुकता का अहसास सिर्फ महसूस करने की चीज नहीं थी । वो उसके दिमाग से होता हुआ यौनांगों तक में समाता जा रहा था ।



उसका पूरा ध्यान माला की नग्नता पर केन्द्रित था । वह जानता था अगर माला जल्दी उसके पास नहीं आयी तो उस पर निराशा का पागलपन सवार हो जायेगा ।



– शो की समाप्ति पर लड़कियों ने भरपूर अंग–प्रदर्शन करके तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों की गूँज के बीच दर्शकों से विदा ले ली ।



फारूख ने हैडवेटर को इशारे से बुलाया ।



–"माला से जाकर कहो मैं उसके साथ ड्रिंक लेना चाहता हूँ ।"



हेडवेटर चुपचाप सर झुकाकर चला गया ।



* * * * * *



एक बजे…!"



दिनेश ठाकुर 'लीडो' नाइट क्लब में यासीन मलिक और मंसूर मदनी के साथ बैठा व्हिस्की की चुस्कियां ले रहा था । उनकी किराये की कांटेसा बाहर सड़क पार खड़ी थी ।



करीब दो सौ गज दूर मोड़ पर एक काली एंबेसेडर खड़ी थी । आगे वाली सीट पर मौजूद दोनों आदमी वर्मा के स्पेशल ऑपरेशन स्क्वाड के क्राइम ब्रांच के एस० आई० थे ।



* * * * * *



एक बजकर बत्तीस मिनट पर...!



रंजीत मलिक नये हैडक्वार्टर्स में दाखिल हुआ ।



–"तुम कहां गायब हो गये थे ?" उसे देखते ही आदत के विपरीत वर्मा गुस्से से चिल्लाया–"हम बारह बजे से तुम्हें तलाश कर रहे हैं । दुबई से भी तुम्हारे लिये तीन बार फोन आ चुके हैं लेकिन कोई तुम्हारा सुराग तक नहीं लगा सका । अगर तुम कोई ठोस जानकारी लेकर आये हो तो ठीक है वरना भगवान ही मालिक है ।"



रंजीत ने मन ही मन खुद को कोसा । रजनी राजदान के चक्कर में वह अपनी बुक करायी ट्रककॉल्स तक को भूल गया ।



–"सॉरी, सर । देरी के लिये माफी चाहता हूं । लेकिन मैं भी कुछ लेकर आया हूं । यहां क्या चल रहा है ?"



वर्मा का गुस्सा ठण्डा नहीं हुआ । उसने धीरे से सर हिलाकर अपने निजी ऑफिस में चलने का संकेत कर दिया ।



रंजीत उसके पीछे ऑफिस में चला गया ।



–"देखिये, सर...!" दरवाज़ा बंद करके कहना शुरू किया ।



–"सॉरी, रंजीत...!" वर्मा हाथ उठाकर उसे रोकता हुआ बोला–"लेकिन तुम्हारा इस तरह कई घण्टे तक गायब रहना मुझे बहुत बुरा लगा है । खैर, मैं बहस नहीं करुंगा...हमारे पास काफी मसाला है । पहले तुम इन्हें सुन लो ।"



उसने मेज पर रखे फिलिप्स टेप रिकार्डर का 'प्ले' बटन दबा दिया ।



रंजीत ने खामोशी से टेप्ड वार्तालाप सुना–दिनेश ठाकुर और दुबई के आदमी के बीच हुआ और फिर दिनेश ठाकुर और यासीन और मंसूर के बीच गार्डन रूम में हुई बातचीत ।



तथ्य आपस में मेल खा रहे थे । रंजीत और वर्मा का शक, कि डॉन डिसूजा और हसन भाइयों के बीच ओपन वार छिड़ गयी थी, यकीन में बदल गया । रंजीत की दुबई की कालें अब फालतू थीं । उनकी कोई अहमियत नहीं रही । अब कई अहम फैसले लेने की जरूरत थी ।



–"मैं दावे के साथ कह सकता हूं, दिनेश ठाकुर ने दुबई में डॉन पीटर डिसूजा से बातें की हैं ।"



वर्मा का क्रोध शान्त होने लगा ।



–"तुम्हारा दावा सही है । हम नई दिल्ली से पुष्टि करा चुके हैं, वायस प्रिंट के जरिये । यह डॉन की ही आवाज़ थी ।"



"और उसके आदमी आज रात ब्लू मून पर हमला करने वाले हैं ।"



–"उसकी फिक्र मत करो । उसका इंतजाम कर दिया गया हैं ।"



–"आप उन्हें अरेस्ट नहीं कर रहे हैं ?"



–"अभी नहीं ।" वर्मा कराहता–सा बोला–"हालांकि उसूलन कर लेना चाहिये । लेकिन यहां हमारे कई अफसरों का मानना है कि डिसूजा को यहां आने देना ही बेहतर है ।"



–"ऑफकोर्स !"



–"नहीं, बिल्कुल नहीं ।"



–"क्यों, सर ?"



–"आज रात उन तीनों को ब्लू मून पर हमला करने देना समझदारी नहीं है लेकिन डिसूजा को यहां आने देना ही सरासर पागलपन है ।"



–"फारूख और अनवर हसन को इस शहर में मनमानी करने देना भी तो पागलपन है ।"



–"लेकिन डिसूजा के गिरोह और हसन भाइयों को एक ही शहर में खुला छोड़ना भयानक पागलपन है । क्रिमिनल इनसेनिटी हैं ।"



–"और आप उन्हें रोकेंगे भी नहीं ?"



वातावरण हल्का हो गया ।



–"नहीं । लेकिन अगर जरा भी चूक हो गयी या इसका सही नतीजा सामने नहीं आया तो प्रेस और पब्लिक हमें गिद्धों की तरह नोंच डालेंगे ।"



–"जानता हूं, सर !"



–"खैर, तुम क्या जानकारी लाये हो ?"



रंजीत के चेहरे पर तनाव पैदा हो गया ।



–"में एक हल्फिया बयान ला सकता हूं, जिससे साबित होगा राकेश मोहन हसन भाइयों का आदमी था । उन्हीं के लिये काम करता था । इसमें कारआमद तथ्य हमें मिलेंगे और हम इस बात की पुष्टि भी करा देंगे कि राकेश मोहन असल में एक पेशेवर गैट अवे ड्राइवर था ।"



–"कैसे ? राकेश मोहन को तो हम जिंदा कर नहीं सकते ।"



–"वह तो मर चुका है । हमें एक लीवर चाहिये...सिर्फ एक लीवर जो इस गंदगी के बंद मजबूत बक्से को खोल देगा । मेरे पास सालिड स्टेटमेंट होगा । वो लड़की विटनेस बॉक्स में खड़ी होकर भी बयान दे देगी ।"



वर्मा की भवें सिकुड़ गयीं ।



–"लड़की । राकेश की सहेली की बात कर रहे हो ?"



–"जी हां । एक और भी लिंक है लेकिन उसे चैक करना पड़ेगा । आपका फोन इस्तेमाल कर सकता हूं ?"



–"जरूर । किसी सोर्स को करना चाहते हो ?"



–"ऐसा ही समझ लीजिये ।"



–"मेरे सामने ही बात करोगे या में बाहर चला जाऊँ ?"



–"आप यहीं रहिये लेकिन यह नोट मत कीजिये में क्या नम्बर डायल कर रहा हूं ।"



–"ओ० के० ।"



रंजीत ने अफरोज का नम्बर डायल किया ।



सात–आठ बार घण्टी बजी । फिर अफरोज की आवाज़ सुनायी दी ।