पारिवारिक भूत
“अब एक भूत की कहानी सुनायें,” मैंने बीबीजी से कहा, मेरी मकान मालकिन, जैसे ही वह बरामदे में पुराने पलँग पर आराम से बैठीं, “आपके गाँव में कम-से-कम एक भूत तो होगा।”
“ओह, वहाँ बहुत सारे थे,” बीबीजी ने कहा, जो विचित्र कहानियाँ सुनाती कभी नहीं थकती थीं, “दुष्ट चुड़ैलें और शरारती प्रेत। और था एक मूंजिया जो भाग गया था।”
“मूंजिया क्या होता है?” मैंने पूछा।
“मूंजिया एक जवान ब्राह्मण लड़के का भूत था, जिसने अपनी शादी से एक दिन पहले आत्महत्या की थी। हमारे गाँव के मूंजिया ने पीपल के पेड़ पर अपना घर बनाया था।”
“मुझे आश्चर्य होता है कि क्यों भूत हमेशा पीपल के पेड़ पर रहते हैं!” मैंने कहा।
“इस बारे में मैं तुम्हें कभी और बताऊँगी,” बीबीजी ने कहा, “लेकिन मूंजिया के बारे में कहानी सुनो…।”
गाँव के पीपल के पेड़ के पास (बीबीजी के अनुसार) एक ब्राह्मण का परिवार रहता था जो इस मूंजिया की विशेष सुरक्षा में था। भूत ने खुद को इसी परिवार से जोड़े रखा हुआ था (वे उस लड़की के परिवार से सम्बन्धित थे जिससे कभी उसकी शादी होने वाली थी) और उनके प्रति अपने लगाव को पत्थर, हड्डियाँ, मल और कचरा फेंककर, डरावनी आवाज़ें निकालकर, और जब भी मौका मिले, उन्हें डराकर दिखाता रहता था। उसके संरक्षण में शीघ्र ही वह परिवार बिखर गया। एक-एक करके वे मर गये और बचने वाला वह एकमात्र बेवकूफ़ लड़का था जिसको भूत ने तंग नहीं किया था, क्योंकि वह सोचता था कि ऐसा करना उसकी प्रतिष्ठा के खिलाफ़ था।
लेकिन, गाँव में, जन्म, शादी और मृत्यु सबकी आती है और इस बात को ज़्यादा देर नहीं बीती जब पड़ोसी उस मूर्ख की शादी पर विचार करने लगे।
गाँव के बुज़ुर्गों की एक सभा के बाद, वे सहमत हुए, पहली बात कि मूर्ख की शादी होनी चाहिए; और दूसरी कि उसकी शादी सबसे कर्कशा लड़की से होनी चाहिए जो बिना योग्य उम्मीदवार पाये सोलह की उम्र तक पहुँच गयी हो।
मूर्ख और कर्कशा की जल्द ही शादी हो गयी और उन्हें खुद को सँभालने के लिए छोड़ दिया गया। बेचारे मूर्ख के पास आजीविका कमाने का कोई साधन नहीं था और उसे भीख माँगने का सहारा लेना पड़ा। पहले वह खुद को ही मुश्किल से सँभाल पाता था और अब उसकी पत्नी भी एक अतिरिक्त बोझ थी। घर में घुसते ही उसकी पत्नी ने उसके कान के नीचे एक घूँसा लगाया और उसे रात के खाने के लिए कुछ लाने के लिए बाहर भेज दिया।
बेचारा लड़का हर दरवाज़े पर गया, लेकिन किसी ने उसे कुछ नहीं दिया, क्योंकि वही लोग जिन्होंने उसकी शादी तय की थी, उससे चिढ़े हुए थे क्योंकि उसने उन्हें अपनी शादी की दावत नहीं दी थी। जब, शाम को वह खाली हाथ लौटा, तो उसकी पत्नी चिल्लायी, “तुम लौट आये, तुम आलसी, मूर्ख? तुम इतनी देर तक कहाँ थे, और मेरे लिए क्या लाये हो तुम?”
जब उसे पता लगा कि वह एक पैसा भी नहीं लाया, तो वह गुस्से से उबल पड़ी और उसकी पगड़ी को फाड़कर पीपल के पेड़ पर फेंक दिया। फिर झाड़ू उठाकर, अपने पति को खूब मारा जब तक वह दर्द से कराहते हुए घर से भाग नहीं गया।
लेकिन कर्कशा का गुस्सा अब तक कम नहीं हुआ था। अपने पति की पगड़ी को पीपल के पेड़ पर देखकर उसने उसके तने को पीटना शुरू किया, अपने प्रहारों के साथ वह भद्दी गालियाँ भी दे रही थी। पेड़ पर रहने वाला भूत उसके प्रहारों के प्रति संवेदनशील हो गया था और इस बात के लिए चौकस कि उसकी भाषा के प्रभाव से कहीं वह पूरी तरह खत्म ही न हो जाये, वह उस पेड़ से गायब हो गया जिस पर वह बहुत सालों से रह रहा था।
बवंडर पर सवार, वह भूत जल्द ही मूर्ख तक जा पहुँचा जो अब भी गाँव से बाहर जाती सड़क पर दौड़ा चला जा रहा था।
“इतना तेज़ नहीं, भाई!” भूत चिल्लाया, “अपनी पत्नी को छोड़ दो, ज़रूर, लेकिन अपने पुराने पारिवारिक भूत को नहीं! दुष्टा ने मुझे मेरे पीपल के पेड़ से भगा दिया। सच ही है एक भूत का कड़वी ज़ुबान वाली एक औरत से कोई मुकाबला नहीं! आज से हम भाई हैं और हमें अपना भाग्य मिलकर बनाना चाहिए। लेकिन पहले वादा करो कि तुम अपनी पत्नी के पास कभी नहीं लौटोगे।”
मूर्ख ने बहुत ही खुशी से रज़ामंदी दी और साथ मिलकर उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी जब तक कि वे एक बड़े शहर नहीं पहुँच गये।
शहर में घुसने से पहले, भूत ने कहा, “अब सुनो, भाई, और अगर तुम मेरी सलाह मानोगे, तुम्हारा भाग्य बन जायेगा। इस शहर में दो बहुत खूबसूरत लड़कियाँ हैं, एक राजा की बेटी है और दूसरी एक अमीर महाजन की बेटी है। मैं जाऊँगा और राजा की बेटी को अपने वश में कर लूँगा और उसके पिता हर तरह का उपचार कर लेंगे लेकिन कोई प्रभाव नहीं होगा। उस बीच तुम हर दिन सड़कों पर साधू की पोशाक में घूमना और जब राजा आयें और तुम्हें अपनी बेटी को ठीक कर देने के लिए कहें तो तुम्हें जो भी शर्त सही लगे, वह रखना। जैसे ही मैं तुम्हें देखूँगा, मैं उस लड़की को छोड़ दूँगा। फिर मैं जाऊँगा और महाजन की लड़की को अपने वश में कर लूँगा। लेकिन उसके पास बिलकुल मत जाना, क्योंकि मैं उसके प्यार में हूँ और उसे छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं। अगर तुम उसके पास आये तो मैं तुम्हारा गला मरोड़ दूँगा।”
भूत अपनी हवा पर सवार हो चला गया और मूर्ख ने अकेले ही शहर में प्रवेश किया और तीर्थयात्रियों के लिए स्थानीय विश्राम घर में एक बिस्तर प्राप्त कर लिया।
अगले दिन शहर में इस बात का समाचार हर ओर फैला था कि राजा की बेटी खतरनाक रूप से बीमार थी। चिकित्सक, हाकिम और वैद—आये और चले गये, और सबने लड़की की बीमारी को लाइलाज बताया। राजा दुःख से विचलित था और उसने अपनी आधी सम्पत्ति उसके नाम कर देने का प्रस्ताव रखा जो उसकी सुन्दर और एकमात्र लड़की को ठीक कर देगा। मूर्ख ने खुद को धूल और राख से लपेट कर सड़कों पर चलना आरम्भ कर दिया था, कभी-कभी चिल्लाता—“भूम, भूम, भो! बम भोला नाथ!”
लोग उसकी वेशभूषा देखकर चकित रह जाते और उसे एक बुद्धिमान और सिद्ध पुरुष समझते, उन्होंने राजा को खबर की। राजा तुरन्त शहर में आया, और मूर्ख के आगे दंडवत हो गया, उससे अपनी बेटी को ठीक कर देने की भीख माँगी। थोड़ी उदारता और अनिच्छा दिखाने के बाद मूर्ख राजा के साथ उसके महल में जाने के लिए मान गया और लड़की उसके सामने लायी गयी।
उसके बाल बिखरे हुए थे, दाँत बज रहे थे और उसकी आँखें बिलकुल अन्दर धँसी हुई थीं। वह विलाप करती, कोसती और अपने कपड़े फाड़ती। जब मूर्ख उसके सामने आया तो उसने कुछ अर्थहीन मन्त्र पढ़े, और भूत मूर्ख को पहचान कर चिल्ला पड़ा—“मैं जाता हूँ, मैं जाता हूँ! भूम, भूम, भो!”
“मुझे एक संकेत दो कि तुम चले गये हो,” मूर्ख ने माँग रखी।
“जैसे ही मैं लड़की को छोड़ूँगा,” भूत ने कहा, “तुम देखोगे कि वह आम का पेड़ उखड़ जायेगा। यही संकेत मैं दूँगा।”
कुछ मिनट बाद आम का पेड़ धड़ाम से गिर गया। लड़की को अपने दौरे से आराम मिला और वह अपनी इस बात से अनजान लग रही थी कि उसे क्या हुआ था। यह समाचार पूरे शहर में फैल गया और मूर्ख आदर और आश्चर्य का एक नुमाइंदा बन गया। राजा ने अपने वचन के अनुसार अपनी आधी सम्पत्ति उसके नाम कर दी; और इस तरह मूर्ख के लिए आनन्द और समृद्धि का दौर शुरू हुआ।
कुछ हफ़्ते बाद, भूत ने महाजन की बेटी को अपने वश में कर लिया, जिससे वह बहुत ज़्यादा प्रेम करता था। अपनी बेटी का मानसिक सन्तुलन खोते देख, महाजन ने अति आदरणीय मूर्ख को बुलावा भेजा और उसे एक अच्छी खासी राशि देने का प्रस्ताव दिया अगर वह उसकी बेटी को ठीक कर देगा तो। लेकिन भूत की चेतावनी को याद कर मूर्ख ने जाने से मना कर दिया। महाजन क्रोधित हो उठा और अपने आदमियों को उसे बलपूर्वक उठा लाने के लिए भेजा और मूर्ख के पास प्रतिरोध का कोई साधन नहीं होने के कारण, महाजन के घर खींच लाया गया।
जैसे ही भूत ने अपने पुराने साथी को देखा, वह क्रोध में चिल्लाया, “मूर्ख, तुमने हमारा समझौता क्यों तोड़ा और यहाँ क्यों आ गये? अब मैं तुम्हारी गर्दन मरोड़ दूँगा!”
लेकिन मूर्ख जिसकी बुद्धि की प्रतिष्ठा ने वास्तविक रूप में उसे बुद्धिमान बनाने में योगदान दिया था, कहा, “भाई भूत, मैं तुम्हें परेशान करने नहीं आया, बल्कि एक भयंकर समाचार सुनाने आया हूँ। पुराने दोस्त और संरक्षक, हमें यह शहर तुरन्त छोड़ देना चाहिए। तुम देखो, वह आ गयी है—मेरी खूँखार पत्नी, वह कर्कशा! हम दोनों को प्रताड़ित करने के लिए और हमें गाँव खींच ले जाने के लिए। वह इस घर की ओर आती सड़क पर है और कुछ मिनटों में यहाँ होगी!”
जब भूत ने यह सुना, वह चिल्ला पड़ा, “ओह नहीं, ओह नहीं! अगर वह आ गयी है तब हमें ज़रूर चले जाना चाहिए! भूम भो, भूम भो, हम जाते हैं, हम जाते हैं!”
घर की दीवारों और दरवाज़ों को तोड़ते हुए, भूत ने खुद को एक छोटे से बवंडर में समेट लिया और शहर में तेज़ गति से उड़ते हुए एक खाली पीपल का पेड़ तलाशता रहा।
अपनी बेटी के दुष्ट प्रभाव से स्वतन्त्र हो जाने से आनन्दित महाजन ने मूर्ख को गले लगा लिया और उस पर उपहारों की बौछार कर दी और उसी दौरान, बीबीजी ने कथा समाप्त की। मूर्ख ने महाजन की सुन्दर लड़की से विवाह कर लिया और अपने श्वसुर की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनकर शहर का सबसे अमीर और सफल महाजन बना।
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