जगमोहन ने रुक-रुककर कई बार कॉलबेल बजाई।
भीतर बेल बजने की तो आवाज आई लेकिन दरवाजा न खुला। न ही भीतर से कोई आहट उभरी।
जगमोहन ने सोहनलाल को देखा। सोहनलाल के होंठ सिकुड़े पड़े थे।
"दरवाजा नहीं खुल रहा।" जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा--- "देवराज चौहान को कैसे पता चला कि यहां कोई नहीं होगा। हर्षा यादव और मीनाक्षी यहां नहीं होंगे?" जगमोहन की आवाज में अजीब से भाव थे।
सोहनलाल ने आस-पास देखा। उस गैलरी में पांच फ्लैट थे। कोई आ-जा नहीं रहा था। गैलरी सूनी पड़ी थी। कुछ देर पहले ही एक औरत वहां से गई थी, जब वो पहली बेल बजाने जा रहे थे।
"खोलूं दरवाजा?" सोहनलाल ने फुसफुसाकर पूछा।
जगमोहन आस-पास नजरें दौड़ाता कह उठा।
"खोल।"
सोहनलाल ने कपड़ों में छिपी छोटी सी सख्त तार जैसी कोई चीज निकाली और दरवाजे की नॉब पकड़कर की-होल में वो तार नुमा चीज डाली और खास अंदाज में हिलाने लगा।
जगमोहन की निगाह आस-पास घूम रही थी। ये इत्तफाक ही था कि उस वक्त तक कोई नजर नहीं आया था। सोहनलाल लगा रहा। एक मिनट ही बीता होगा कि बेहद मध्यम सी आवाज के साथ दरवाजे की नॉब घूम गई। दरवाजा जरा सा खुला। दोनों की नजरें मिली। सोहनलाल ने फौरन दरवाजा खोला। भीतर दाखिल हुआ तो पीछे-पीछे जगमोहन भी आ गया। सोहनलाल ने दरवाजा बंद कर दिया।
जगमोहन का हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर पहुंच चुका था कि जरूरत पड़ने पर फौरन उसे निकालकर उसका इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन ऐसी कोई भी जरूरत नहीं पड़ी।
दोनों की निगाह कमरें में घूमी।
हर तरफ चुप्पी और खामोशी थी।
कोई भी वहां नहीं था।
जगमोहन ने रिवॉल्वर निकालते हुए कहा।
"चक्कर मार। देख।"
सोहनलाल सावधानी से आगे बढ़ा और उस फ्लैट का चक्कर मारकर वापस आ गया।
"कोई नहीं है यहां।"
तब तक जगमोहन वहां का जायजा ले चुका था।
महसूस कर चुका था कि वहां की कई चीजें गायब थी। जैसे कि कपड़े। एक तरफ सूटकेस पड़ा था, वो भी नहीं था। टी.वी. टेबल के पास अन्य टेबल पर ज्वैलरी बॉक्स पहले पड़े थे, वो भी नहीं दिख रहे थे। ऐसी कई छोटी-छोटी चीजें गायब थी। वहां वैसा कोई भी सामान नहीं था, जो हर्षा यादव या मीनाक्षी इस्तेमाल करते थे।
दोनों ने पूरे फ्लैट की तलाशी ली।
कोई भी काम की चीज हाथ नहीं लगी।
"यहां की हालत देखकर तो लगता है कि यहां कोई रहता ही न हो।" सोहनलाल बोला--- "किचन को देखकर तो ऐसा लगता है, जैसे महीनों से उसे इस्तेमाल न किया गया हो।"
"मैं भी यही महसूस कर रहा हूं।"
"तुम किचन तक नहीं आए थे पहले?"
"मैं किचन तक आकर क्या करूंगा। ड्राईंगरूम और उस कमरे में गया था। सब ठीक लगा था मुझे।"
सोहनलाल कुछ न बोला।
एक बार फिर दोनों ने फ्लैट पर बारीकी से नजर मारी। लेकिन ऐसा कुछ न लगा कि वहां कोई रहता हो।
"तुम और देवराज चौहान उन दोनों से यहीं मिले थे?" सोहनलाल ने पूछा।
"हां।"
"यहां तो कोई रहता नहीं लगता। कई जगह पर धूल की परत जमी हुई है कि...!"
"मुझे कुछ गड़बड़ लग रही थी। शायद देवराज चौहान ने वो गड़बड़ पहले ही महसूस कर ली हो।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा--- "पड़ोस से यहां के लोगों के बारे में पता करें।"
"पड़ोस से---क्या फायदा?"
"आ, यहां से निकलें।"
दोनों सावधानी से बाहर निकले। दरवाजा भिड़ा दिया।
जगमोहन रुका नहीं और पड़ोस के दरवाजे की तरफ बढ़ गया। वहां की बेल बजाई।
फौरन ही दरवाजा खुला। ऐनक लगाए वृद्ध दरवाजे पर खड़ा नजर आया।
"मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा।" बूढ़े ने छूटते ही कहा।
"मैंने भी आपको पहले कभी नहीं देखा।" जगमोहन ने मुस्कराकर कहा--- "मैं बगल वाले फ्लैट पर आया था, वहां पर।"
"मिश्राजी तो छः महीनों से शिमला में रह रहे हैं। बगल वाला फ्लैट बंद है।" वो फौरन कह उठा।
"पक्का।"
"मैं क्या झूठ बोलूंगा, मजाक करूंगा !!
"मेरा ये मतलब नहीं था।"
"तुम कौन हो मिश्राजी के? पहले कभी नहीं देखा?" वो बूढ़ा बोला ।
"अभी तो कुछ नहीं हूं, रिश्ते के लिए आया था। शायद उनका कुछ बन जाऊं?"
"वो कैसे?"
"मिश्राजी से अपनी बहन के रिश्ते की बात करने आया था।"
उसने सिर से पांव तक जगमोहन को देखा।
"रिश्ते की बात?"
"हां।"
"तुम्हारी बहन की उम्र कितनी है?"
"बाईस साल।"
"और मिश्रा की पैंसठ-सत्तर साल उम्र है। नकली दांतों का सैट मेरे साथ ही जाकर लगवाया था और तुम... !"
"सच कह रहे हैं आप?" जगमोहन हड़बड़ाकर बोला।
"मैं तुम्हें झूठा लगता...!"
"ये बात नहीं। मैं तो अपनी तसल्ली कर रहा था। मेहरबानी आपकी, जो ये बात मुझे बता दी। नमस्कार।" कहकर जगमोहन पलटा और सोहनलाल की तरफ बढ़ गया।
"सुनो!" पीछे से बूढ़े की आवाज आई--- "मैं तुम्हें, तुम्हारी बहन के लिए एक बढ़िया लड़का बताता हूं।"
लेकिन अब जगमोहन ने कहां रुकना था।
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"तुमने ठीक कहा था कि हर्षा यादव और मीनाक्षी वहां नहीं मिलेंगे।" जगमोहन ने सोहनलाल के साथ भीतर प्रवेश करते हुए कहा--- "लेकिन तुम्हें कैसे पता चली ये बात?"
देवराज चौहान के होंठों पर अजीब सी मुस्कान आ ठहरी।
सोहनलाल ने पलटकर दरवाजा बंद कर दिया था।
"हर्षा यादव वाले फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं, कई बार बेल बजाने पर भी जवाब नहीं मिला तो सोहनलाल ने दरवाजे का लॉक खोला और हम भीतर प्रवेश कर गए। भीतर कई चीजें, जो हमने देखी थी, नहीं मिली। जल्दी ही मुझे इस बात का अहसास हो गया कि पहले से देखा गया खास-खास सामान भी वहां नहीं है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- "हमने वहां का ड्राइंग रूम और एक वो कमरा देखा था। वहां सब ठीक था, परंतु अन्य कमरें और जगहों पर इस तरह धूल जमी हुई है कि जैसे महीनों से उन्हें साफ न किया गया हो।"
"मतलब कि वो अपने नहीं किसी और के फ्लैट में थे। जिसके बारे में उन्हें पक्का पता था कि उसका मालिक अभी वापस नहीं आने वाला।" देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा।
"हां। हमने बाहर आकर पड़ोस से पूछा तो पता चला, उस फ्लैट का मालिक कोई मिश्रा है जो कि पिछले कई महीनों से शिमला में रह रहा है। उसकी जानकारी के मुताबिक बगल वाला फ्लैट खाली है। वहां कोई नहीं रहता।"
उसी मुस्कान के साथ देवराज चौहान सोफा चेयर पर बैठा और सिगरेट सुलगा ली।
जगमोहन उसके सामने जा बैठा और बोला ।
"ये सब क्या हो रहा है? हर्षा यादव और मीनाक्षी कहां चले गए? तुम्हें क्या लगता है कि...?"
"मामला भारी तौर पर गड़बड़ लग रहा है मुझे।" सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई--- "राजन और उसके घर वाले कहां हैं?"
"भीतर कमरे में हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल भी पास आ बैठा।
देवराज चौहान ने दोनों को देखा फिर शांत स्वर में कहा।
"जॉर्ज लूथरा अपना खेल खेल गया है। ऐसा हो जाता है, इसमें किसी की गलती नहीं है। सामने वाला अगर अपना बनकर गला काटे तो गला कट ही जाता है। हमारा धंधा जुबान पर चलता है। शब्दों पर चलता है। अब किसी की जुबान और शब्द ही सच के वर्क में लिपटें हो तो धोखा हो ही जाता है। वो ही हमारे साथ हुआ।"
जगमोहन ने सिर खुजलाया। नजरें देवराज चौहान पर ही रही।
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का कश लिया।
"ये सारा मामला दीदार सिंह से शुरू हुआ। जबकि दीदार सिंह का इस मामले से कुछ भी लेना-देना नहीं है। दीदार सिंह की ढींगड़ा से अच्छी पहचान है और ढींगड़ा जॉर्ज लूथरा जैसे आतंकवादी के लिए काम करता है। उनके मामले संभालता है। दीदार सिंह ने बातों-बातों में ढींगड़ा को मेरे और जगमोहन के आने के बारे में बता दिया। दीदार सिंह जानता था कि पांच मिनट का काम है तो मैं कार कहां खड़ी करूंगा। ये जुदा बात थी कि जगमोहन को तब वापस आने में पन्द्रह मिनट लग गए। ढींगड़ा ने सब कुछ जानकर जॉर्ज लूथरा से बात की और तब जॉर्ज लूथरा को शायद मेरे जैसे इन्सान की जरूरत रही होगी।"
"किस काम के लिए?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।
"रॉयल वाल्ट के स्ट्रांग रूम में प्रवेश करने के लिए। वो कोई रास्ता चाहता होगा, जो कि उसे मिल नहीं रहा होगा। मेरा नाम सामने आते ही वो समझ गया कि मैं कोई रास्ता बना लूंगा। इसलिए आनन-फानन उसने हर्षा यादव वाली कहानी तैयार की और बहुत ही चालाकी से हर्षा यादव का मेरे से संबंध बना दिया। सब कुछ उसने इस तरह किया और करवाया कि मुझे किसी तरह का शक न हो। यह हर्षा यादव हमारे साथ रहा। उधर जॉर्ज लूथरा ढींगड़ा के माध्यम से मुझ पर नजर भी रखवाता रहा कि मेरी सारी भागदौड़ उसकी नजरों में रहे। मोटे तौर पर बात ये है कि रॉयल वाल्ट जॉर्ज लूथरा का नहीं है। वो स्ट्रांग रूम में मौजूद तिजोरी चाहता होगा। उसमें कोई खास चीज है, जिसकी उसे जरूरत होगी।"
जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिली।
"रॉयल वाल्ट जॉर्ज लूथरा का नहीं है?" जगमोहन बोला।
"नहीं।"
"तो फिर उसने भीतर की वीडियो फिल्म कैसे बना ली कि...!"
"वो जॉर्ज लूथरा है। हस्ती रखता है। उसकी अपनी पहुंच है और दौलत सब काम करवा देती है।" देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन टकटकी बांधे देवराज चौहान को देखता रहा।
"मतलब कि उसने वाल्ट के भीतर की वीडियो फिल्म उतरवा ली।" सोहनलाल बोला--- "अगर ऐसा है तो स्ट्रांग रूम तक पहुंचना उसके लिए क्या बड़ी बात है ? वो...!"
"कोई बड़ी बात नहीं होगी।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसकी कोड लॉक वाली बात ठीक कही हो सकती है कि वो कोड लॉक की वजह से स्ट्रांग रूम में नहीं पहुंच पा रहा होगा। मेरा नाम सामने आया तो समझ गया कि मैं कोई रास्ता बना लूंगा। तभी उसने मेरे गिर्द जाल फैला दिया। हर्षा यादव और मीनाक्षी मुझसे आ मिले। हर्षा यादव और मीनाक्षी की छानबीन में मुझे शक न हो, इस वास्ते उसने हर तरफ बात फैला दी कि जॉर्ज लूथरा के आदमी उनकी हत्या के लिए भागे फिर रहे हैं और सच में मुझे कहीं भी शक नहीं हुआ।"
"अब ये तो स्पष्ट हो गया कि वाल्ट उसका नहीं है।" जगमोहन बोला--- "मेरे ख्याल में वाल्ट के स्ट्रांग रूम में रखी तिजोरी में दवा जैसी कोई चीज नहीं होगी। वहां कुछ और ही होगा।"
"और क्या हो सकता है।" सोहनलाल बोला--- "जॉर्ज लूथरा जैसे दौलतमंद आतंकवादी, तिजोरी में रखी दौलत के लिए तो ये सब करने से रहा। उसमें यकीनन कुछ खास होगा।"
"ठीक कहते हो। खास भी ऐसा जो उसके लिए बहुत जरूरी हो।" जगमोहन फौरन कह उठा--- "जरूरी न होता तो कम से कम वो हमें इस मामले में न खींचता।" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा--- "हम ढींगड़ा की गर्दन पकड़ सकते हैं।"
"उससे क्या फायदा होगा?" देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन के होंठ सिकुड़ गए।
"ढींगड़ा को हम पकड़ लेते हैं तो उससे हमें कुछ हासिल नहीं होगा। उसे हम शूट कर देते हैं तो जॉर्ज लूथरा को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसा करके हमें भी कोई फायदा नहीं होगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
दोनों की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकीं।
"हर्षा यादव और मीनाक्षी ने हम लोगों से बात इस तरह की कि हमें उनकी नीयत पर जरा भी शक नहीं हुआ।" जगमोहन शब्दों पर जोर देकर धीमे स्वर में बोला--- "वो अब हमसे योजना ले चुके चुके हैं कि वाल्ट के स्ट्रांग रूम तक कैसे पहुंचा जा सकता है। ऐसे में वे क्या खुद तिजोरी की डकैती करेंगे ?"
"हां।"
"मतलब कि वो वाल्ट के स्ट्रांग रूम तक जाएंगे।" जगमोहन का चेहरा कठोर हो गया।
देवराज चौहान ने कश लेकर कहा।
"उस योजना में वे लोग अपनी सहूलियत के मुताबिक बदलाव करेंगे, फिर इस काम को अंजाम देंगे।"
"क्या उन्होंने ये नहीं सोचा होगा कि हमें इस काम के बारे में सब कुछ पता है। जब भी वे काम करेंगे, हम उनके रास्ते में आ जाएंगे। उनके काम को खराब कर सकते हैं।" जगमोहन का स्वर बेहद कठोर हो गया।
"ये बात अवश्य सोची होगी और इसका उन्होंने रास्ता भी निकाला होगा।" देवराज चौहान मुस्कराया--- "हमें हर वक्त इस बात का ध्यान रखना है कि हमारे सामने शातिर इन्सान जॉर्ज लूथरा है। जिसे हार पसंद नहीं। अपनी जीत के लिए और मोटी दौलत पाने के लिए वो कुछ भी कर सकता है।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को घूरा।
तभी सोहनलाल कह उठा।
"अब क्या होगा? हम...!"
"जॉर्ज लूथरा के आदमी दो-चार दिन में वाल्ट के स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। जो योजना मैंने उन्हें बताई थी, उसी योजना पर वो थोड़ा-बहुत फेर-बदल करके काम करेंगे। तिजोरी के लिए डकैती डालेंगे।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "साथ में इस बात का भी इंतजाम रखेंगे कि अगर डकैती के वक्त हम उनके रास्ते में अड़चन बनने की कोशिश करें तो वे हमें भी संभाल सकें। लेकिन वो ये भी चाहेंगे कि डकैती के दौरान शोर-शराबा न हो।"
उसी पल जगमोहन फटने के अंदाज में कह उठा।
"ये कैसे हो सकता है। दोनों बातों को वो लागू नहीं कर सकते कि डकैती के वक्त वो हमसे भी निपट लें और शोर-शराबा भी न हो। हम वहां नजर रखेंगे और जब भी वो लोग डकैती करना चाहेंगे, हम उनकी डकैती को असफल बना देंगे। हमसे धोखाधड़ी करके जॉर्ज लूथरा अपने काम में सफल नहीं हो सकता।"
"हम उनसे पहले डकैती करके वो तिजोरी ले जा सकते हैं।" सोहनलाल ने कहा।
देवराज चौहान ने कश लिया और सोच भरे स्वर में बोला।
"हम उनकी डकैती में रुकावट नहीं बनेंगे।"
"क्या?"
"न ही उससे पहले हम डकैती करेंगे।"
"मैं समझा नहीं।" सोहनलाल की आंखें सिकुड़ीं।
"उन्हें डकैती करने देंगे। उन्हें इस बात का पूरा मौका देंगे कि वो सफल डकैती करके, तिजोरी को अपने कब्जे में ले सकें।"
"हमारे पास पर्याप्त वक्त है कि इसी योजना को अंजाम देते हुए, तिजोरी को अपने कब्जे में कर सकें।" सोहनलाल बोला।
"तुम इन हालातों में उनकी जगह बैठे हो तो क्या करोगे ?" देवराज चौहान ने सोहनलाल से कहा।
सोहनलाल देवराज चौहान को देखने लगा।
"काम बेशक दो दिन बाद करना हो लेकिन वाल्ट पर और उस फर्नीचर शो-रूम पर नजर रखना शुरू कर दोगे। ये देखने के लिए कि दूसरी पार्टी अगर कुछ कर रही है तो क्या कर रही है।"
"तुम्हारा मतलब कि वहां अब जॉर्ज लूथरा के आदमी नजर रखेंगे।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"अब तक उन्होंने नजर रखनी शुरू कर दी होगी। वो भी ये सोच सकते हैं कि सारे मामले को जानकर हम उनसे पहले डकैती करने की सोच सकते हैं। ऐसा करते हैं तो वो हमसे तिजोरी छीन सकें।”
"ओह!"
"वो बहुत सावधानी से चलेंगे। इस तरह कि हमें कुछ करने का मौका न मिले और वो अपना काम कर जाएं। वो ऐसा वक्त ही नहीं आने देंगे कि हम उनके रास्ते में आ सकें।" देवराज चौहान ने कहा।
"ऐसा कैसे हो सकता है।" जगमोहन बोला--- "वो क्या सोचते हैं कि हम ये सब भूल जाएंगे। नहीं भूलेंगे। जॉर्ज लूथरा ये बात अवश्य सोचेगा कि हम भी वहां, उनकी हरकतों के लिए खड़े रहकर, नजर रख सकते हैं। हर समय वहां खड़े रह सकते हैं। हम खामोशी से तो बैठने से रहे।"
"कुछ भी सोचने में जल्दबाजी मत करो।" देवराज चौहान ने कश लेते हुए कहा--- "सबसे पहले हमें राजन, उसकी पत्नी और बच्चों को यहां से निकालना है। उसके बाद हमें अपने आगे के कदम के बारे में सोचना है।"
पलों की चुप्पी के बाद सोहनलाल बोला।
"राजन को यहां से इस तरह निकालना है कि, वो जान न सके कि कहां पर कैद था।" सोहनलाल बोला--- "यहां से जाकर वो ढींगड़ा को बता सकता है कि वो कहां कैद था। इस तरह जॉर्ज लूथरा को हमारी ये जगह मालूम हो सकती है।"
"राजन मुंह खोलने के बाद ढींगड़ा के पास जाने की सोचेगा भी नहीं। फिर भी हम सावधानी के नाते राजन और उसके परिवार को यहां से इस तरह बाहर निकालेंगे कि वो जान न सके कि कहां पर कैद रहा। जगमोहन उसे लेकर आओ।"
जगमोहन फौरन उठा और बंद दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का कश लिया।
"तुम्हें हर्षा यादव की किसी भी हरकत पर न लगा कि कहीं कोई गड़बड़ है।"
"हर्षा यादव और मीनाक्षी, दोनों ने बहुत समझदारी से हमसे बातचीत की कि हमें किसी भी तरफ से कोई शक न हो सके।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "जॉर्ज लूथरा ने सब काम बहुत अच्छी तरह किया।"
सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
तब तक जगमोहन, राजन, उसकी पत्नी और दोनों बच्चों को ले आया था।
राजन और विम्मी के चेहरों पर घबराहट थी। उन्होंने सबको देखा।
"हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है।" देवराज चौहान बोला--- "तुम अपनी पत्नी बच्चों को ले जा सकते हो।"
राजन के होंठ हिले। कुछ कह नहीं सका।
"जॉर्ज लूथरा के बारे में जानते हो कि वो कहां मिलेगा।" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं।" राजन ने इन्कार में सिर हिलाया--- "मैं सिर्फ ढींगड़ा के बारे में जानता हूं। ये जानता हूं कि वो जॉर्ज लूथरा के लिए काम करता है। इसके अलावा कुछ नहीं जानता। ढींगड़ा के दो-तीन ठिकाने हैं। वो बता सकता हूं कि कहां पर है।"
"कहां है?" सोहनलाल ने कहा।
राजन ने ढींगड़ा के तीन ठिकाने बताए।
"लेकिन ज्यादातर वो पहले वाले ठिकाने पर मिलता है।"
"ठीक है।" जगमोहन बोला--- "तुम निकलो यहां से। ये जगह न देख सको, इसलिए तुम सबकी आंखों पर पट्टी बांधकर यहां से निकाला जाएगा। मैं...।"
"लेकिन मैं जाऊंगा कहां?" राजन के होंठों से निकला।
"क्या मतलब?"
"मैंने...।" राजन का चेहरा फक्क था--- "ढींगड़ा के बारे में मुंह खोल दिया है। ये बात फौरन ढींगड़ा समझ जाएगा। हो सकता है अब तक उसने अपने आदमी मेरे घर पर लगा दिए हो कि मैं वहां पहुंचूं तो वो मुझे ढींगड़ा के पास ले जाए। ढींगड़ा बहुत खतरनाक बंदा है। वो हर हाल में जान जाएगा कि मैंने मुंह खोल दिया है। उसके बाद वो मेरे को तो मारेगा ही, विम्मी और बच्चों को भी खत्म कर देगा। ऐसा करने में वो देर नहीं लगाएगा। ताकि दूसरे आदमियों को सबक मिले, वो मुंह न खोले कभी। ये सब करने के तो वो मौके ढूंढ़ता है। उसने पहले ही सबसे कह रखा है कि जो उससे गद्दारी करेगा, वो अपनी जान के साथ अपने परिवार को भी गंवा देगा। ढींगड़ा कहता नहीं है। करके रहता है।''
"ये तुम्हारी सिरदर्दी है।" देवराज चौहान सपाट स्वर में बोला--- "अगर तुम हमारी वजह से, या हमारा काम करते हुए फंसे होते तो ढींगड़ा नाम की मुसीबत से तुम्हें हम बचा देते। लेकिन ये तुम्हारा मामला है। हम इस मामले में किसी भी हालत में नहीं आएंगे। ये सब कुछ तुम्हें निपटना होगा।"
"मैं ढींगड़ा जैसे इन्सान से नहीं निपट सकता।"
"तो फिर मरो।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा--- "ऐसे आदमी का पतलून थामने से पहले पचास बार तेरे को सोच लेना चाहिए था। लेकिन तब तो तेरे को वो नोट नजर आ रहे होंगे, जो वो दे रहा होगा और तूने कभी सोचा भी नहीं होगा कि कभी तू अपने परिवार के साथ, ढींगड़ा के मौत के दरवाजे पर खड़ा होगा।"
राजन कुछ न बोला ।
विम्मी के चेहरे से लग रहा था कि वो अभी रो देगी। दोनों बच्चों को अपने से चिपका रखा था।
"हम ये शहर छोड़ कर चले जाते हैं।" विम्मी की आंखों से आंसू बह निकले--- "मुझे अपना परिवार सलामत चाहिए। मैं नहीं चाहती कि हम चारों में से किसी को कुछ हो। मुझे सबकी जरूरत है। तुम दूसरे शहर में जाकर कोई शराफत वाला काम कर लेना। मेहनत मजदूरी कर लेना। जैसे-तैसे हम काम चला लेंगे।"
"ऐसा ही करना पड़ेगा। लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं।" राजन टूटे थके स्वर में बोला---"पांच-सात सौ रुपया ही पड़ा है। ऐसे में...।"
"जगमोहन...।" देवराज चौहान बोला--- "इसे दस हजार दे दो। किराए के साथ कुछ दिन का खर्चा भी निकल जाएगा।"
जगमोहन ने शराफत के साथ दस हजार की गड्डी निकाली और राजन को थमा दी।
"तुम दोनों इनकी आंखों पर पट्टी बांध कर, इन्हें यहां से दूर छोड़ आओ। उसके बाद जहां जाना होगा। चले जाएंगे।"
जगमोहन और सोहनलाल ने उनकी आंखों पर पट्टी बांधी और उन्हें बाहर खड़ी कार में बिठाकर ले गए। उसके बाद एक घंटे बाद लौटे।
तब देवराज चौहान उस पुराने कागज को सैन्टर टेबल पर बिछाए उलझा हुआ था। हाथ में पैन पकड़ा था। जिससे दूसरे कागज पर कुछ लिख रहा था।
"राजन और उसकी पत्नी-बच्चों को छोड़ आए हैं।" जगमोहन बोला।
"अब तुम दोनों वाल्ट और उस फर्नीचर शो-रूम पर नजर रखो। जॉर्ज लूथरा के आदमी कभी भी वाल्ट के स्ट्रांग रूम में पड़ी तिजोरी तक पहुंचने के लिए डकैती की शुरुआत कर सकते हैं। तुम दोनों बारी-बारी वहां नजर रखोगे। वहीं जॉर्ज लूथरा के आदमी भी अवश्य नजर रख रहे होंगे। कोशिश करना कि उनकी नजर में न आ सको। सावधान रहना। उन लोगों ने तुम्हें वहां देख लिया तो वे तुम्हें गोली भी मार सकते हैं।"
जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिली।
"वहां कुछ होता नजर आए तो फौरन मुझे खबर करना। फोन कर देना।" देवराज चौहान गम्भीर था।
"पहले मैं जाता हूं।" जगमोहन बोला--- "इस वक्त शाम हो रही है, तुम रात को कभी भी वहां आ जाना। तब मैं वापस आ जाऊंगा और सुबह फिर तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा। बारी-बारी ये काम करेंगे तो आराम भी मिलता रहेगा।"
"ठीक है।"
जगमोहन बाहर निकल गया।
सोहनलाल ने दरवाजा बंद कर लिया।
देवराज चौहान पुनः उन कागजों में व्यस्त हो गया था।
रात को ग्यारह बजे सोहनलाल चला गया था और साढ़े बारह बजे जगमोहन वापस आ गया। कुछ आराम करने के बाद देवराज चौहान पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया था। जब जगमोहन वहां पहुंचा तो तब देवराज चौहान अपने काम से फुर्सत पाकर हटा ही था।
"पौने बारह बजे तक तो वहां कुछ होता नजर नही आया ।" जगमोहन ने बैठते हुए कहा--- "हो सकता है आज रात कुछ करने का इरादा न हो। कल रात वो डकैती करें।"
"कोई दूसरा वहां नजर आया?"
"नहीं। मैंने हर तरफ नजर रखी। लेकिन कोई नहीं दिखा, जो नजर रख रहा हो।"
"ऐसा नहीं हो सकता कि वहां कोई न हो। वहां पक्का होगा कोई।" देवराज चौहान बोला।
"हो सकता है। लेकिन अभी तो दिखा नहीं।"
"जिस तरह तुम ओट में रहे। छिपे रहे। जॉर्ज लूथरा का आदमी भी छिपा होगा। हो सकता है, आज नहीं तो कल वो नजर आए जो जॉर्ज लूथरा के इशारे पर, फर्नीचर शो-रूम के बाहर नजर रख रहा हो।"
जगमोहन सिर हिलाकर रह गया। नजर सैन्टर टेबल पर बिखरे कागजों पर गई।
"ये सब क्या है?"
देवराज चौहान ने कागजों पर नजर मारी। होंठों पर छोटी-सी मुस्कान आ गई।
"स्ट्रांग रूम में पहुंचने की योजना की हर सीढ़ी को फिर से ध्यान से देख रहा था।"
"उससे क्या फायदा?"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान छाई रही।
जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"हम।" देवराज चौहान बोला--- "उन्हें डकैती करने देंगे।"
जगमोहन एकाएक सतर्क नजर आने लगा।
"फिर?" उसके होंठों से निकला।
"उस सारे काम के दौरान हमें सत्ताईस सेकंड ऐसे मिलेंगे कि अगर हम उन 27 सेकंड का सही इस्तेमाल करें तो बाजी पलट सकते हैं।"
"27 सेकंड?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"हां।"
"मुझे समझाओ, अभी मैं समझा नहीं।" जगमोहन एकाएक उत्सुक सा नजर आने लगा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"ये 27 सेकंड का क्या चक्कर है ?" जगमोहन पुनः बोला ।
"वो लोग जब डकैती करके, तिजोरी के साथ बाहर आएंगे तो, तिजोरी को रखकर ले जाने के लिए वैन भी लाए होंगे। तिजोरी के फर्नीचर शो रूम से बाहर आते ही, वो वैन जहां कहीं पास ही खड़ी होगी, फौरन उधर आ जाएगी। मेरे हिसाब से तिजोरी को उठाकर वैन में रखने और वैन का दरवाजा बंद करने में वो 27 सेकंड का समय लगाएंगे। हमें जो भी करना होगा इन्हीं 27 सेकंड में करना होगा।"
जगमोहन देवराज चौहान को देखे जा रहा था।
"इन 27 सेकंड में हम क्या करेंगे या क्या कर सकेंगे?" जगमोहन के माथे पर बल नजर आने लगे थे।
"जब वो वैन में तिजोरी रख रहे होंगे तो वो वैन अवश्य स्टार्ट होगी। उसकी ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर या तो बैठा होगा या फिर तिजोरी को भीतर रखने में उनकी सहायता कर रहा होगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हमें उस वक्त ड्राइविंग सीट पर कब्जा करना है। ये काम सिर्फ 27 सेकंड में होगा। क्योंकि 27 सेकंड में वे तिजोरी को वैन में रखकर वैन का दरवाजा बंद कर देंगे। ड्राइविंग सीट पर हम में से कोई मौजूद होगा। दरवाजा बंद होने की आवाज सुनते ही वो वैन को ले भागेगा।"
जगमोहन उलझन भरी निगाहों से देवराज को देख रहा था।
"वहां पर, करीब ही कहीं तब उनके और भी साथी हो सकते हैं, जो कि इसलिए खड़े होंगे कि काम के दौरान कोई मुसीबत आती है तो उसे दूर कर सकें। ऐसे में जब हम वैन लेकर भागेंगे तो वो अवश्य हरकत में आएंगे। तो हममें से एक वैन लेकर भागेगा और जो बाहर होगा, वो उन पीछे आने वालों को रोकेगा।"
"अगर उनको न रोका जा सका तो?"
"उन्हें हर हाल में रोकना होगा। नहीं तो हम तिजोरी वाली वैन पर कब्जा नहीं कर सकते। वो वैन का पीछा करते रहेंगे। देर-सबेर में वैन को रोक लेंगे। सबसे पहले वो वैन चलाने वाले को शूट करेंगे। ऐसे में उन्हें रोकना बहुत जरूरी है। हर हाल में उन्हें रोका जाएगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
जगमोहन ने पहलू बदला।
"उस वैन को तब तुम ले उड़ोगे।" देवराज चौहान बोला।
"मैं?"
"हां और मैं उन लोगों को रोकूंगा जो तुम्हारे पीछे आना चाहेंगे।"
जगमोहन ने हौले से सिर हिला दिया।
"सोहनलाल मेरे साथ होगा। तुम्हें वैन को भगाने में ध्यान देना है। वैन को कहां ले जाना है। वो जगह हम तय कर लेंगे। उन 27 सेकंड में हमें हद से ज्यादा फुर्ती दिखानी है।"
"समझ गया।" जगमोहन सोच भरे गम्भीर स्वर में बोला--- "मान लो कि अगर वैन पर कब्जा न किया जा सका तो?"
"हमें वो ही 27 सेकंड मिलेंगे कि हम अगर कुछ कर सकते हैं तो कर लें। वे लोग अगर वैन लेकर वहां से चल पड़े तो फिर हम कुछ नहीं कर सकेंगे। तब वैन हमारे हाथ नहीं आ सकेगी।" देवराज चौहान की निगाह जगमोहन के चेहरे पर थी--- "अगर जॉर्ज लूथरा को उसकी हरकत का जवाब देना है तो तुम्हें वो वैन ले भागना होगा।"
"कर लूंगा ये काम।" कहते हुए जगमोहन के दांत भिंच गए।
"उस तिजोरी में जो भी है, वो जॉर्ज लूथरा के लिए महत्व रखता है। वरना वो तिजोरी तक पहुंचने के लिए इतना-इतना लम्बा चक्कर न चलाता कि पहले मेरे से खेल-खेल कर योजना जानता फिर खामोशी से उस योजना पर अमल करता। मेरे ख्याल में तिजोरी हाथ से जाती पाकर वो तिलमिला उठेगा।"
"वो तो होगा ही।" जगमोहन ने कहा--- "वो वक्त उसकी तगड़ी हार का वक्त होगा।"
देवराज चौहान ने कश लिया। सोच में डूबे कुछ कहने लगा कि जगमोहन बोला।
"मान लो कि अगर वैन चलाने वाला, तिजोरी वैन में रखने के लिए वैन के पीछे की तरफ जाता है और जाते वक्त वो वैन का ईंजन बंद करके चाबी अपने साथ ले जाता है तो क्या होगा।"
"वो उस वक्त ऐसा नहीं करेगा। जल्दी में होगा। वैन का ईंजन स्टार्ट ही छोड़ कर...।"
"मैंने तुम्हारी बात मानी। तुम भी ये मानो कि जो मैंने कहा है, वो भी हो सकता है।"
"हो सकता है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "एक प्रतिशत इस बात का चांस है कि ऐसा हो।"
"तो फिर हम क्या करेंगे। तब चाबी तो उससे छीन नहीं सकेंगे।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा। कुछ पलों बाद शांत स्वर में कह उठा।
"तब हम उस वैन पर कब्जा कर पाने की स्थिति में नहीं होंगे। अगर चाबी छीनने की चेष्टा करते हैं तो वहां मौजूद तीन-चार लोगों का मुकाबला करना पड़ेगा। जो कि ऐसे वक्त पर फौरन हथियारों का इस्तेमाल करेंगे। उनके दो-चार आदमी कुछ दूरी पर रहकर नजर रख रहे होंगे। वो भी तुरन्त वहां आ पहुंचेंगे। यानी कि खून-खराबा होगा। उन्हें कम और हमें ज्यादा नुकसान होगा। आखिरकार वैन वो ही ले जाएंगे। तिजोरी उनके पास ही रहेगी।"
जगमोहन देवराज चौहान को देखता रहा।
"ऐसे मौके पर वैन के टायर को बेकार कर देना है। ताकि वो वैन न ले जा सकें और उसी पल पुलिस को फोन कर देना है। वैसे भी वहां से कुछ दूरी पर बीट-बाक्स है। उधर भी खबर कर सकते हैं। इतनी जल्दी वो तिजोरी को ले जाने का दूसरा इन्तजाम नहीं कर सकेंगे कि पुलिस उनके सिर पर होगी।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "यानी कि हमारा पहला मकसद है कि जॉर्ज लूथरा वो तिजोरी पाने में कामयाब न हो सके। क्योंकि उसने धोखेबाजी करके हमसे योजना बनवाई है। हम उसे सफल नहीं होने देंगे।"
जगमोहन गहरी सांस लेकर, सिर हिलाकर रह गया।
■■■
चार दिन बीत गए उन्हें फर्नीचर शो-रूम पर नजरें रखते हुए, जगमोहन और सोहनलाल ने दिन और रात बांट कर चौबीस घंटे की निगरानी की।
परन्तु इन चार दिनों में कुछ नहीं हुआ।
सोहनलाल रात की ड्यूटी पूरी करके आया। जगमोहन के पहुंचने पर ही वहां से हिला था। वो जब फ्लैट पर पहुंचा तो सुबह के सात बजे थे। आंखों में नींद और थकान थी।
"आज रात भी कुछ नहीं हुआ। सोहनलाल ने देवराज चौहान से कहा--- "चार रातें ऐसे ही बीत गई। तुमने कहा था कि दो-चार दिन में वे लोग अपना काम कर देंगे।"
"ख्याल तो मेरा यही था।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "तुमने किसी और को रात भर वहां देखा ?"
"मुझे तो ऐसा कोई नजर नहीं आया।"
"नजर रखते रहो। जल्दी ही कुछ होगा।" देवराज चौहान ने कहा।
अगली दो रातें और बीत गईं।
करीब सप्ताह हो गया, उन्हें इस तरह वहां की निगरानी करते हुए।
"अभी तक कुछ नहीं हुआ।" सोहनलाल सुबह-सुबह वापस आकर बोला।
"अब तक हर हाल में उन लोगों को अपना काम कर देना चाहिए था।" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
"तुम्हारे सामने ही है सब कुछ।"
देवराज चौहान, सोहनलाल को देखता रहा।
"हो सकता है कि उनका कुछ करने का इरादा ही न हो।"
"उनका इरादा नहीं बदल सकता। वो तिजोरी जॉर्ज लूथरा को चाहिए। वरना हर्षा यादव और मिनाक्षी अपनी योजना के तहत मुझे न मिलते। वहां पहुंचने का रास्ता जान कर गायब नहीं हो जाते।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "वो अवश्य ये काम करके रहेंगे।"
"तो अभी तक वे क्यों रुके हुए हैं। सप्ताह बीत गया।"
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़े सोहनलाल को देखा।
"मेरे ख्याल में वे जानते हैं कि हम लोग वहां नजर रखे हुए हैं।"
सोहनलाल के माथे पर बल पड़े।
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"हो सकता है कि वो इस इन्तजार में हो कि हम लोग थक कर वहां का ख्याल छोड़ दें। ये सोच लें कि उन लोगों का डकैती करने का इरादा नहीं है। जब हम लोग वहां से हट जाएं तो, तब वो अपनी योजना को अंजाम दें। यानी कि जॉर्ज लूथरा नहीं चाहता होगा कि इस काम के दौरान कोई शोर-शराबा हो। झगड़ा हो। वो खामोशी से काम करना चाहता होगा।"
"जॉर्ज लूथरा के आदमी हम पर कहां से नजर रख सकते हैं। हमें तो कोई नजर नहीं...।"
"नजर रखने के कई ढंग होते हैं। वे अवश्य जानते हैं कि तुम और जगमोहन दिन-रात, बारी-बारी नजर रख रहे हो। जॉर्ज लूथरा जानता है कि ऐसा लम्बे वक्त तक नहीं चल सकता। हम उधर से अपना ध्यान हटा लेंगे।"
"तुम्हारा ख्याल गलत भी हो सकता है।" सोहनलाल सोच भरे स्वर में कह उठा।
"एक-दो दिन रुको मालूम हो जाएगा।"
देवराज चौहान तैयार होकर नौ बजे फ्लैट से बाहर निकल गया।
■■■
शाम को पांच बजे देवराज चौहान वापस लौटा।
सोहनलाल नींद पूरी कर चुका था। नहा-धो चुका था।
"कहां गए थे?" उसके अंदर आने पर सोहनलाल ने दरवाजा बंद करते हुए पूछा।
"इसी काम के लिए गया था।" देवराज चौहान बैठ गया--- "उस फर्नीचर शो-रूम के सामने दो सड़के हैं। एक जाने की सड़क। एक आने की सड़क । उसके पार फ्लैट बने हुए हैं। वहीं उन फ्लैटों में सत्रह नम्बर फ्लैट किराए पर लिया है।" देवराज चौहान ने जेब से चाबी निकाल कर सोहनलाल को दी--- "ये उस फ्लैट की चाबी है। आज रात से उस फ्लैट के भीतर बैठ कर, फर्नीचर शो-रूम पर नजर रखी जाएगी। इस बात की तरफ से सावधान रहना कि वहां आते-जाते तुम दोनों को कोई देखे नहीं।"
"हमें तो मालूम नहीं कि अगर कोई हम पर नजर रख रहा है तो कहां से नजर रख रहा है।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "फिर भी हम ध्यान रखेंगे कि ज्यादा लोगों की निगाह में न आ पाएं।"
"जगमोहन को मोबाइल पर फोन कर दो कि वो रोज की भांति आठ बजे अपनी जगह छोड़ दे और उसके आने का इन्तजार न करे। उसे बाकी सवालों के जवाब, आने पर मिल जाएंगे।"
सोहनलाल फोन की तरफ बढ़ गया।
आज रात से फर्नीचर शो-रूम की निगरानी उस फ्लैट के भीतर बैठकर की जाने लगी। रात के वक्त सोहनलाल लाइट बंद करके खिड़की के पास कुर्सी पर बैठ जाता। वहां से, सड़क पर शो-रूम और बाकी की जगह भी स्पष्ट नजर आती। शो-रूम की बाहर की रोशनी में आस-पास की जगह पर पर्याप्त प्रकाश रहता।
इस तरह तीन रातें और बीत गई।
चौथी शाम जगमोहन थका-टूटा वापस आया। सोहनलाल निगरानी करने के लिए फ्लैट में जा चुका था। जगमोहन के चेहरे पर से बोरियत स्पष्ट झलक रही थी।
"ग्यारह दिन हो गए इस बेकार से काम में।" जगमोहन बोला--- "मेरे ख्याल में वहां कुछ नहीं होने वाला। उन लोगों का डकैती करने का कोई प्रोग्राम नहीं है। होगा तो हट गया होगा। उन्होंने कुछ करना होता तो अब तक कर लिया होता। हमें अपने दूसरे कामों को देखना चाहिए।"
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला ।
"तुम जवाब में कुछ कह क्यों नहीं रहे ?" जगमोहन पुनः बोला।
"जॉर्ज लूथरा बहुत सब्र वाला आदमी है।"
"क्या मतलब?"
"वो इस काम में जितनी देर कर रहा हैं, समझो उतना ही कीमती माल तिजोरी में है। वो नहीं चाहता कि डकैती करने की जल्दी करके, अपना काम खराब कर ले।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "वो इस बात के लिए अच्छी तरह तसल्ली कर लेना चाहता है कि अब हमारी नजर वहां पर नहीं है।"
"तीन रातें और दिन से हम फ्लैट पर से नजर रख रहे हैं। इतने में भी उसकी तसल्ली नहीं हुई तो कब होगी।"
"इन्तजार करो।"
जगमोहन ने उखड़ी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"ये भी तो हो सकता है कि जॉर्ज लूथरा का ऐसा कुछ करने का प्रोग्राम ही न हो।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी।
"इन्तजार करो और देखो---इस तरह लापरवाही करके, एकदम इस मामले से हट जाना ठीक नहीं।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था--- "मत भूलो कि हमारे सामने खेल खेलने वाला खिलाड़ी बहुत शातिर है।"
जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।
वो इस तरह के, निगरानी रखने वाले बोरियत भरे काम से तंग आ चुका था।
■■■
रात पौने दस बजे फोन की बेल बजी।
जगमोहन ने टी.वी. लगा रखा था। देवराज चौहान आंखें बंद किए सोफे पर लेटा था।
"हैलो!" जगमोहन ने रिसीवर उठाते हुए कहा।
"जगमोहन।" सोहनलाल की धीमी आवाज उसके कानों में पड़ी--- "मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है।"
जगमोहन चौंका। फौरन सीधा हुआ। टी.वी. बंद किया।
"क्या बात है ?"
देवराज चौहान आंखें खोलकर, जगमोहन को देखने लगा था।
"मुझे लग रहा है, जैसे आज कुछ होने वाला है।" सोहनलाल की धीमी आवाज जगमोहन के कानों में पड़ रही थी--- "मैं फ्लैट में बैठा हूं। उसी खिड़की के पास, सड़क पार फर्नीचर का शो-रूम मुझे स्पष्ट नज़र आ रहा है। शो-रूम के भीतर का काफी बड़ा हिस्सा रोशनी में स्पष्ट नजर आ रहा था। बाहर भी पार्किंग वाली जगह में खूब रोशनी है। दो-तीन मिनट पहले शो-रूम के बाहर लम्बी कार आकर रुकी। उसमें से दो व्यक्ति निकल कर, भीतर चले गए। कार वहां से आगे चली गई। मुझे नजर नहीं आ रही कि कार कहां है। वो दोनों फर्नीचर देख रहे हैं। अभी-अभी एक और आदमी ने भीतर प्रवेश किया है। शो-रूम वाले, इस वक्त शो-रूम बंद करने की तैयारी कर रहे थे। अब नौकर उन लोगों को फर्नीचर दिखा रहा है। मालिक एक तरफ काउंटर पर बैठा है। तीसरा जो बाद में भीतर गया था, वो अकेला ही फर्नीचर इस तरह देख रहा है, जैसे पहले दो से उसका कोई मतलब न हो। लेकिन उसका ध्यान फर्नीचर देखने में खास नहीं है। ये मैं देख चुका हूं।"
"तुम्हें लगता है कि कुछ होने वाला है।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"मुझे पक्का लग रहा है कि कुछ होगा। क्योंकि ये वो ही वक्त है, जो देवराज चौहान ने अपनी योजना में उन्हें बताया था। मेरे ख्याल में देवराज चौहान ठीक कहता था कि जॉर्ज लूथरा के आदमी इसलिए खामोश बैठे हैं, कि हम वहां पर नजर रख रहे हैं। आज चौथी रात है कि हम फ्लैट में रहकर नजर रख रहे हैं। इन चार रातों में उन्होंने हमें वहां नहीं देखा तो यही समझा कि हम तंग आकर चले गए हैं। अब नजर नहीं रख रहे। वो सोच भी नहीं सकते कि शो-रूम पर नजर रखने के लिए हमने सामने वाला फ्लैट किराए पर ले लिया है।"
जगमोहन ने देवराज चौहान पर निगाह मारी।
"अब वहां पर क्या हो रहा है?"
"अभी तक तो वही हो रहा है, जो तुम्हें बताया था।" सोहनलाल का स्वर जगमोहन के कानों में पड़ा--- "अगर मेरा ख्याल सही है कि आज रात डकैती होने वाली है तो, रात दस के आसपास मार्किट का चौकीदार आता है। वो आता ही होगा। वो शटर बंद करवाने में रोज, उस नौकर की सहायता करता है। आज भी वो आएगा। अगर डकैती आज की जाती है वे लोग, चौकीदार को भीतर ले लेंगे कि, भीतर ही कैद करके रख सकें।"
"तुम फोन पर ही रहना। अभी पांच-सात मिनट बाकी है। चौकीदार के आते ही फोन करता हूं।"
"बढ़िया।" कहने के साथ ही जगमोहन ने रिसीवर रखा।
"क्या हो रहा है वहां?" जगमोहन ने बता कर कहा।
"उसका कहना है कि चौकीदार के आते ही पता चल जाएगा कि कुछ होने वाला है या नहीं।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“तीन रातों से तुम लोग वहां दिखे नहीं हो। आज चौथी रात है।" देवराज चौहान बोला--- "कोई बड़ी बात नहीं, रास्ता साफ देखकर उन लोगों ने आज रात काम करने का इरादा बना लिया हो?"
जगमोहन ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि फोन की बेल बज उठी।
"हैलो।" जगमोहन ने रिसीवर उठाया।
"चौकीदार आ गया है।" सोहनलाल की धीमी आवाज कानों में पड़ी।
"क्या कर रहा है वो ?"
"अभी शो-रूम के बाहर आकर खड़ा हुआ है। मालिक को उसने सलाम किया है। भीतर मौजूद ग्राहकों को देखकर बाहर ही रुक गया है अब इधर-उधर देखकर वक्त बिता रहा है। दुकान के सामने लोग आ-जा रहे हैं। लेकिन ज्यादा नहीं। अगर ये लोग जॉर्ज लूथरा के ही हैं। डकैती करने जा रहे हैं तो चौकीदार के साथ पक्का कोई गड़बड़ होगी ही।"
"चौकीदार कुछ वक्त बिताने के लिए वहां से आगे भी जा...।"
"रुको...। एक व्यक्ति चौकीदार की तरफ बढ़ रहा है। देखने दो ?"
लाइन पर खामोशी छा गई।
जगमोहन सतर्क नजर आ रहा था। उसके होंठ सिकुड़ गए थे।
देवराज चौहान, सोफे पर लेटा, आंखें खोले जगमोहन को देख-सुन रहा था।
"जगमोहन डकैती होने जा रही है।" सोहनलाल का फुसफुसाता स्वर कानों में पड़ा।
जगमोहन सीधा होकर बैठ गया।
"क्या हो गया?"
"वो आदमी चौकीदार के पास पहुंचकर रुका। दो-तीन बातों के बाद उसे लेकर शो-रूम के भीतर जा रहा है। चौकीदार के साथ वो चिपका चल रहा है। मेरे ख्याल में उसने चौकीदार को रिवॉल्वर लगा रखी है। दो-चार लोग करीब से निकले हैं, परंतु कोई नहीं सोच सकता कि गड़बड़ होने जा रही है। अब वो चौकीदार को लेकर शो-रूम के भीतर प्रवेश कर गया है। शो-रूम का मालिक काउंटर के पीछे बैठा उन्हें ही देख रहा है। शायद सोच रहा है कि चौकीदार और वो व्यक्ति क्यों भीतर आ रहे हैं। वो चौकीदार के साथ भीतर जाता जा रहा है। वो---मालिक के होंठ हिलते नजर आ रहे हैं। शायद वो उनसे भीतर आने की वजह पूछ रहा है। ओह---रुको... भीतर मौजूद तीन आदमियों में से दो बाहर की तरफ आ रहे हैं। लेकिन बाहर नहीं---वो शटर बंद कर रहे हैं। शायद भीतर रिवॉल्वरें निकाल कर उन्हें कवर कर लिया गया है। तभी मालिक-नौकर और चौकीदार शटर की तरफ नहीं आ रहे। उन्होंने जल्दी-जल्दी शटर गिरा दिया। आधे से ज्यादा शटर नीचे कर दिया। फर्श से अब सिर्फ दो फीट नीचे है शटर। मुझे उनकी टांगें नजर...जगमोहन एक मारुति वैन वहां आ रुकी है। उसमें से एक आदमी बाहर निकला है। उसके हाथ में बड़ा सा बैग है। वो बैग उसने शटर के नीचे से भीतर किया तो भीतर वालों ने बैग भीतर खींच लिया। अब वो व्यक्ति फिर वैन की तरफ बढ़ा। वैन के पीछे वाले दरवाजे को उठाकर, उसने हाथों से धकेलने वाली छोटी सी रेहड़ी निकाली है। जैसी कि रेलवे स्टेशनों पर सामान-सूटकेस रखकर ले जाया जाता है। वो उस छोटी सी रेहड़ी को धकेलता हुआ शटर तक ले गया। भीतर वालों ने उस रेहड़ी को भी भीतर खींच लिया है और रेहड़ी देने वाले व्यक्ति को कुछ दिया है।"
"ताले होंगे।"
"मैं नहीं जानता। वो व्यक्ति वापस वैन के पास आ गया। ओह! शटर पूरा बंद कर दिया गया है। वैन के पास खड़ा व्यक्ति सिगरेट सुलगा रहा है। दो-तीन लोग उसके पास से निकले हैं, लेकिन किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वो खड़ा है, शटर बंद हो चुका है। भीतर की कोई भी रोशनी बाहर नहीं आ रही। लगता है, जैसे शो-रूम बंद हो गया।"
"उन्होंने शो-रूम के भीतर की बड़ी लाइटें बंद कर दी होगी।" जगमोहन बोला।
"ऐसा भी हो सकता है।"
"वैन वाला व्यक्ति क्या कर रहा है?"
"कश ले रहा है। एक मिनट---उसने सिगरेट फेंककर जूते से मसल दी है। आस-पास देखकर इस बात की तसल्ली की है कि फौरन तो उस तरफ कोई नहीं आ रहा। अब वो शटर की तरफ बढ़ा है।"
"ताले लगाएगा बाहर से।"
"हां, वो शटर के एक तरफ झुका ताला ही लगा रहा है। उधर ताला लगाया जाता है। अब वो दूसरी तरफ जा रहा है।"
कुछ चुप्पी के बाद सोहनलाल की आवाज आई--- "दूसरी तरफ भी उसने ताला लगा दिया है। जेब में हाथ डाला है। चाबियां जेब में रखी होगी। वैन के पास आया। अब वो ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। वैन स्टार्ट कर ली है उसने। वैन आगे बढ़ गई... अब मुझे यहां से वैन नजर नहीं आ रही।"
"वो पास ही कहीं रहेगा। शटर की चाबियां उसके पास हैं। जब उसे मोबाइल पर फोन करके कहा जाएगा तो वो शटर के ताले खोल देगा। उसने जो बैग भीतर वाले को दिया था उसमें...!"
"डकैती के काम आने का सामान होगा।" जगमोहन ने बात काटकर तेज स्वर में कहा--- "उन्होंने दीवारें भी तोड़नी है। जरूरत का हर सामान उसमें भरा होगा। और उस हाथों से पकड़कर धकेलने वाली छोटी-सी रेहड़ी को भारी तिजोरी को बाहर लाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। उस पर तिजोरी रखकर उसे धकेला जाएगा।"
"ठीक कह रहा है। अब क्या करना है?"
"तू कुर्सी पर बैठा है?"
"हां।"
"बैठा रह, आराम कर। सामने देखता रह । मैं देवराज चौहान से बात करता हूं। उसके बाद फोन करूंगा।"
"ठीक है।"
जगमोहन ने रिसीवर रखकर देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान इसी तरह सोफे पर लेटा-लेटा बोला।
"तो उधर काम शुरू हो गया?"
"हां।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा--- " भीतर चार आदमी हैं। उन्होंने अब तक शो-रूम के मालिक, नौकर और चौकीदार को बांधकर एक तरफ डाल दिया होगा। शटर गिराकर बाहर से ताला लगा दिया गया है। जो योजना तुमने बनाई थी, अभी तक तो ठीक वैसे ही काम हो रहा है। तिजोरी भारी है, उठाई नहीं जा सकती। ऐसे में उसे बाहर तक लाने के लिए सामान होने वाली रेहड़ी भी शो-रूम के भीतर पहुंच गई है। बाहर से जिसने ताले लगाए हैं, वो वैन पर चला तो गया है। लेकिन पास ही कहीं होगा।"
देवराज चौहान सीधा होकर बैठा। सिगरेट सुलगाई। चेहरा शांत था।
"वो तिजोरी हमने टी.वी. स्क्रीन पर देखी थी। चार फीट ऊंची है और तीन फीट चौड़ी।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उस तिजोरी को मारुति वैन पर नहीं लादा जा सकता, जबकि शटर बंद करने वाला मारुति वैन पर था।"
"तिजोरी ले जाने के लिए उन्होंने यकीनन दूसरी वैन का इंतजाम कर रखा होगा। वो वैन तब देखने को मिलेगी, जब तिजोरी को वहां से ले जाना होगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"हां।" जगमोहन ने सिर हिलाया--- "ऐसा ही होगा।"
"हम एक बार फाइनल तौर पर बात करते हैं कि वक्त आने पर काम कैसे करना है।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "तुम सोहनलाल से कहो कि वे लोग बाहर भी फैले होंगे। उन्हें और उनकी गाड़ियों को पहचानने की कोशिश करता रहे। ये बहुत जरूरी है।"
जगमोहन ने रिसीवर उठाकर सोहनलाल का नम्बर मिलाया और बात करके रिसीवर रख दिया।
उसके बाद देवराज चौहान जगमोहन को बताने लगा कि आगे का काम कैसे करना है।
■■■
दो घंटे बाद! जब करीब रात के बारह बजे थे।
उसी किराए के फ्लैट की खिड़की के पास देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल खड़े थे। खिड़की से फर्नीचर के शो-रूम का गिरा हुआ शटर स्पष्ट नजर आ रहा था। शो-रूम के माथे पर लगी बोर्ड की रोशनी वहां पूरी फैल रही थी। आस-पास के बोर्डों की रोशनियां भी फैली हुई थी। बाहर से जरा भी एहसास नहीं हो रहा था कि भीतर रोशनी हो रही है। सब कुछ रोज की भांति सामान्य लग रहा था।
"क्या रहा अब तक?" देवराज चौहान ने पूछा।
"सब कुछ सामान्य। उसके बाद कोई भी हलचल देखने को नहीं मिली।" सोहनलाल ने कहा।
"यानी कि कोई भी शो-रूम के बंद शटर तक नहीं आया।"
"नहीं।"
"उन लोगों की गाड़ियों की पहचान की?"
"मैं यहां से नहीं हिला । सामने नजर रखनी जरूरी थी और यहां से गाड़ियों के बारे में कुछ पता नहीं चल सकता।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
"उन लोगों से वास्ता रखती अभी तक तुम्हें दो गाड़ियां ही देखने को मिली ?" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला।
"हां, एक तो वो गाड़ी, जिससे दो व्यक्ति उतरकर शो-रूम के भीतर गए थे और वो आगे बढ़ गई। वो गहरे रंग की कार थी। लांसर या हान्डा सिटी जैसी कार और दूसरी सफेद रंग की मारुति वैन थी, जिससे बैग और सामान ढोने वालो छोटी ट्रॉली शटर के नीचे सरकाई थी। फिर उस व्यक्ति ने शटर के बाहर ताले लगाए और वैन को लेकर आगे बढ़ गया।"
देवराज चौहान कश लेकर कुछ पलों के बाद बोला।
"जगमोहन।"
"हां।"
"सफेद मारुति वैन को कुछ नहीं कहना है। क्योंकि उसके पास शटर के तालों की चाबियां हैं। उसने शटर के ताले खोलने हैं। जब उसे भीतर से मोबाइल फोन पर कहा जाएगा तो वो ताले खोलकर, शटर उठाएगा।" देवराज चौहान बेहद शांत स्वर में कह रहा था--- "लेकिन उस कार को देखो, अगर वो कहीं खड़ी है तो। आस-पास कहीं पार्क की होगी कार। गहरे रंग की लांसर या हांडा सिटी कार है।"
"ऐसी कार बाहर खड़ी हुई तो मैं ढूंढ लूंगा।"
"उसमें एक या दो लोग हो सकते हैं।" देवराज चौहान का स्वर सपाट था--- "उन पर रहम करने की कोई जरूरत नहीं। वो जॉर्ज लूथरा जैसे आतंकवादी के लिए काम करते हैं। बेशक उन्हें शूट कर दो। वो लोग तब हमारे लिए मुसीबत पैदा कर सकते हैं, जब हम हरकत में आएंगे।"
"समझ गया।"
"मैं तब तुमसे कुछ दूर रहूंगा और इस बात की नजर रखूंगा कि उनके अलावा कोई और वहां न हों। काम के वक्त तुम्हें आस-पास देखने की चिन्ता नहीं करनी है। और लोग हुए तो उन्हें मैं संभाल लूंगा।"
"ठीक।"
"सोहनलाल । तुम यहीं रहो और नजर रखो। जरूरत पड़े, तो मोबाइल पर बात कर लेना।"
"बढ़िया।"
"शो-रूम के भीतर जो डकैती कर रहे हैं।" देवराज चौहान ने बेहद शांत स्वर में कहा--- "उन्हें वाल्ट के स्ट्रांग रूम में मौजूद तिजोरी तक पहुंचने में कम से कम तीन घंटे लगेंगे। चार भी लग सकते हैं, फिर उस तिजोरी को धकेलने वाली रेहड़ी पर डालने में वक्त लगेगा। क्योंकि वो हर्षा यादव के मुताबिक बहुत भारी है। यानी कि भीतर डकैती करके तिजोरी के साथ वो दो बजे से पहले बाहर नहीं आ सकते। अभी हमारे पास दो घंटे हैं।"
"उनके बाहर आने पर क्या करना है ?"
"जगमोहन को समझा दिया है।" देवराज चौहान बोला--- "इसी ने करना है। अभी आकर तुम्हें बता दूंगा। हम बाहर का काम निपटाकर आते हैं। तुम यहां से बाहर नजर रखो।"
■■■
सड़कों पर से कभी-कभार कोई वाहन निकल जाता था। बीस दुकानें पार जो रेस्टोरेंट था, वहां अब लोगों का आना-जाना कम होता जा रहा था। रेस्टोरेंट भी अब बंद होने की तैयारी पर था। अगले एक घंटे में उसने बंद हो जाना था। इसके अलावा वहां हर तरफ शान्ति थी। ऐसे में रोज चौकीदार की ही रौनक होती थी, परंतु आज वो भी कहीं नजर नहीं आ रहा था।
जगमोहन अंधेरे में सावधानी से फुटपाथ पर लगे पेड़ों की ओट में सावधानी से हर तरफ नजरें दौड़ाता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसकी निगाह सोहनलाल की बताई कार को तलाश कर रही थी। अगर वो कार नजर नहीं आई तो स्पष्ट था कि वो जा चुकी है। हो सकता है वो सफेद मारुति वैन ही बाहर हो। उसके अलावा और कोई न हो।
एकाएक जगमोहन ठिठक गया। होंठ भींच लिए उसने। वो फुटपाथ पर पेड़ के तने की ओट में खड़ा था। उससे मात्र चार फीट सड़क की तरफ सड़क के किनारे वैसी ही कार खड़ी थी, जैसी कि सोहनलाल ने बताया था। कार के भीतर अंधेरा था। भीतर दो व्यक्तियों के मौजूद होने का एहसास हो रहा था। एक सिगरेट के कश ले रहा था। रह-रहकर सिगरेट की लौ चमक उठती थी।
जगमोहन वहीं खड़ा सावधानी से कार के भीतर देखता रहा।
कुछ ही पलों में उसे पूरा यकीन हो गया कि ये ही वो कार है। जिसके बारे में सोहनलाल ने बताया था। परंतु वो नहीं चाहता था कि गलती से कोई निर्दोष उसके हाथों से मरे। ये भी हो सकता है कि ये दूसरी कार हो और भीतर बैठे दोनों व्यक्ति मजे से व्हिस्की की बोतल खाली करने में लगे हों।
होंठ भींचे जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली। दूसरी जेब से साईलेंसर निकाला और नाल पर चढ़ाने लगा। साथ ही साथ इस बात का भी फैसला करता जा रहा था कि किस तरह उसे हरकत में आना है। क्या करना है ? मालूम था उसे कि देवराज चौहान दूर नहीं है। वो जहां भी होगा, उस पर नजर रख रहा होगा कि अगर उस पर ऊपर से कोई खतरा आता है तो वो उससे निपट लेगा।
रिवॉल्वर की नाल पर साईलेंसर फिट करके उसने आस-पास अंधेरे में निगाह मारी। सब ठीक था। कोई न दिखा। एक कार सड़क से निकल गई थी। उसकी हैड लाइट की रोशनी में भीतर बैठे दोनों व्यक्ति स्पष्ट तौर पर जगमोहन को दिखे थे। वो दोनों आगे वाली सीटों पर बैठे थे।
अब वक्त बरबाद करने का कोई फायदा नहीं था।
जगमोहन पेड़ की ओट से निकला और तेज-तेज कदम उठाता हुआ आगे बढ़ा। कार के आगे के दरवाजे के शीशे नीचे थे। वो फुटपाथ से उतरा और झुकते हुए रिवॉल्वर वाला हाथ भीतर डाला। एक की छाती पर रिवॉल्वर की नाल रखी और अंधेरे में देखता हुआ कठोर स्वर में बोला।
"हिलना मत। इस वक्त तुम लोग सी.आई.डी. के घेरे में हो। यहां हर तरफ सी.आई.डी. के लोग फैले हैं। कुछ भी करने की चेष्टा की तो सैकेण्डों में बे-मौत मारे जाओगे।"
वो दोनों हक्के-बक्के रह गए।
मुंह से बोल न फूटा।
"हमें पूरी खबर है कि फर्नीचर शो-रूम में घुसकर तुम लोग उससे साथ जुड़े वाल्ट के स्ट्रांग रूम में डकैती डाल रहे हो। वहां से तिजोरी ले जाने के फेर में हो। हिलना मत।" जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा।
वो अभी भी कुछ नहीं कह सके।
"खामोश क्यों हो---बोलो, इस डकैती के पीछे कौन है। हमें मालूम है। फिर भी पूछ...!"
"देवराज चौहान ने आप लोगों को खबर दी होगी।" एक के होंठों से निकला।
"वो ही देगा, उसके अलावा किसी को इस मामले के बारे में क्या पता।" दूसरे की आवाज में तीखापन था।
"जवाब दो---वरना...।" कठोर स्वर में कहते हुए जगमोहन ने रिवॉल्वर की नाल का दबाव उसकी छाती पर बढ़ाया--- "तुम लोग इस वक्त घिरे पड़े हो। यहां चप्पे-चप्पे पर सी. आई.डी. का जाल...!"
"जाल बिछा रहने दो।" एक ने शांत स्वर में कहा--- "हमें पकड़ने से कोई फायदा नहीं होगा। डकैती को रोक दोगे, तब भी तुम लोगों के हाथ कुछ नहीं आएगा। इस मामले में अपनी टांग मत फंसाओ। जो पांच-दस लाख लेने हो, अभी ले लो। एक घंटे में नोट यहां होंगे। पन्द्रह लाख ले लो। लेकिन हमारे मामले में दखल मत दो।"
"रिश्वत देने की कोशिश...!" जगमोहन ने दांत भींचकर कहना चाहा।
"ये रिश्वत नहीं है। समझा करो, हम लोगों की दोस्ती की शुरुआत है। अगर हमारी बात न मानकर तुम लोगों ने हमारा काम रोकने की कोशिश की तो जॉर्ज लूथरा तुम सी.आई.डी. वालों का पूरा का पूरा परिवार उजाड़ देगा।"
"जॉर्ज लूथरा।"
"खतरनाक आतंकवादी है जॉर्ज लूथरा । नाम सुन रखा होगा।"
"मुझे पहले से ही मालूम था कि तुम लोग जॉर्ज लूथरा के आदमी...!"
"देवराज चौहान ने तुम लोगों को फोन करके बता दिया होगा। छोड़ो---पन्द्रह लाख रुपया बहुत होगा, तुम...!"
तभी जगमोहन की उंगली हिली ।
रिवॉल्वर से फायर होने की दबी-दबी आवाज उभरी। बारूद की स्मैल सांसों को महसूस हुई। जिसकी छाती पर नाल रखी थी, गोली उसकी छाती को पार करके सीट की पुश्त में जा धंसी थी। उसे तड़पने का मौका भी नहीं मिला और उसी पल शांत हो गया।
दूसरा व्यक्ति हक्का-बक्का रह गया था। तभी उसे होश आया कि क्या होने जा रहा है। उसने दरवाजा खोलकर बाहर निकलना चाहा तो जगमोहन ने फुर्ती के साथ नाल उसकी तरफ करके एक के बाद दो फायर किए। उसके शरीर को तीव्र झटका लगा और वो बाहर निकलने से पहले ही भीतर ढेर हो गया था।
कार में बारूद की स्मैल भर गई थी।
होंठ भींचे जगमोहन पीछे हटा सीधा हुआ। रिवॉल्वर को पैंट की जेब में फंसा लिया। नाल गर्म थी। वो कार के साथ घूमकर दूसरी तरफ पहुंचा, खुला दरवाजा बंद करने के लिए। मरने वाले की एक टांग बाहर थी। जगमोहन झुका, उसकी टांग को उठाकर भीतर किया और आहिस्ता से कार का दरवाजा बंद कर दिया।
फिर बिना वहां रुके वापस फुटपाथ पर पहुंचा और आगे बढ़ गया।
दस-पन्द्रह कदम ही आगे गया होगा कि देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
"काम हो गया ?"
"हां।" जगमोहन कहते हुए ठिठका और पलटकर देवराज चौहान को देखा, जो तने की ओट में खड़ा था।
"वो जॉर्ज लूथरा के ही आदमी थे ?"
"हां, इस बात की तसल्ली के बाद ही मैंने उन्हें शूट किया।" जगमोहन सतर्क स्वर में बोला--- "वो सफेद मारुति वैन दिखी ?"
"नहीं, वो यहां आस-पास ही कहीं, किसी गली में खड़ी होगी। डकैती करने वाले जब उसे फोन करेंगे तो वो व्यक्ति वहां पहुंचेगा और बाहर से ताले खोलकर शटर उठा देगा। तिजोरी ले जाने के लिए कोई बड़ी वैन भी यहां से दूर नहीं होगी। काम होने पर उस वैन को फौरन पहुंचने की खबर दी जाएगी तो वो वैन भी आ जाएगी। हमें उनकी परवाह नहीं करनी है। वक्त आने पर वो वैन सामने आ जाएगी।" देवराज चौहान धीमे स्वर में बोला।
"अब क्या करें ?"
"हमें सावधानी से आस-पास खड़ी कारों और वाहनों को चेक करना है कि कहीं जॉर्ज लूथरा के आदमी और भी न हों। ऐसे लोग आखिरी मौके पर हमारे लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं, जब तुम तिजोरी वाली वैन लेकर निकलने की चेष्टा में होंगे।"
"ठीक है। हम...!"
तभी दोनों की निगाह फर्नीचर शो-रूम पर जा टिकी। वो यहां से कुछ दूर तो था, परंतु सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था। वहां पर अभी-अभी कोई कार रुकी थी। कार की हैडलाइट चमक रही थी। उनके देखते ही देखते एक औरत, एक बीस साल का लड़का और बूढ़ा सा व्यक्ति निकला। वो लोग शटर के पास गए। डेढ़-दो मिनट वहां रहे, फिर कार में बैठकर उधर से चले गए। कार नजरों से ओझल हो गई।
"ये शो-रूम के मालिक के घर वाले होंगे। उसके घर न पहुंचने पर, उसकी तलाश में निकले होंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"कोई खोज-खबर न मिलने पर ये लोग पुलिस के पास जाएंगे।" जगमोहन बोला।
"हां।"
"पुलिस, यहां भी आ सकती है, पूछताछ के लिए।"
"इस वक्त पुलिस किससे पूछेगी। सुबह ही पुलिस यहां आएगी। भीतर हो रही डकैती में कोई अड़चन नहीं है।"
उसके बाद दोनों सतर्कता से ऐसा कोई वाहन देखने-ढूंढने लगे, जिसमें जॉर्ज लूथरा के आदमी मौजूद हों, परंतु ऐसी कोई दूसरी कार न मिली। वो वापस सोहनलाल के पास फ्लैट में जा पहुंचे।
"वो कार मिली ?" उन्हें भीतर आते पाकर सोहनलाल ने पूछा। वो खिड़की के पास कुर्सी पर बैठा, बाहर देख रहा था।
"हां। उसमें दो थे। जॉर्ज लूथरा के लिए काम करते थे।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा।
"थे! मतलब कि अब नहीं रहे।"
"ठीक समझे।"
"एक कार अभी शो-रूम के बाहर आकर रुकी थी। एक- दो मिनट वो कार वहां...!"
"उस कार में शो-रूम के मालिक के घर वाले थे।" देवराज चौहान ने कहा।
"मेरा भी यही ख्याल था।" सोहनलाल कह उठा। साथ ही उसने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।
देवराज चौहान ने रेडियम के डायल वाली चमकती घड़ी पर निगाह मारकर कहा।
"दो बजने जा रहे हैं। उन्हें भीतर गए चार घंटे हो चुके हैं। अब वो कभी भी बाहर निकल सकते हैं। मेरे ख्याल में तिजोरी तक वो लोग पहुंच चुके होंगे। चार लोग भीतर गए हैं। दीवार तोड़ने का सामान उनके पास है। दो थक गए तो बाकी के दो लग गए होंगे तोड़ने को। यानी कि उन्होंने ये काम फुर्ती से किया होगा।"
जगमोहन और सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।
"जगमोहन, अब तुम्हें वहां पहुंच जाना चाहिए।" देवराज चौहान खिड़की के पास पहुंचकर बाहर देखता हुआ कह उठा--- "फर्नीचर शो-रूम से दो दुकाने आगे बाटा का शो-रूम है। ठीक उसके सामने चाईनीज खाने-पीने की वैन खड़ी है। उस वैन की ओट में तुम आसानी से जगह ले सकते हो।"
जगमोहन ने पास पहुंचकर खिड़की से बाहर देखा।
"जब तुम वहां छिपोगे तो किसी की नजर पड़ सकती है। कहीं पर भी जॉर्ज लूथरा के आदमी हो सकते हैं। जो हमें नजर न आए हों। ऐसे में वहां तक तुम्हें बहुत सावधानी से पहुंचना होगा। ये सोचकर आगे बढ़ना कि, वहां पर नजर रखी जा रही है। यानी कि ज्यादा से ज्यादा सतर्कता बरतनी है।"
"समझ गया।" जगमोहन ने गंभीरता से कहा और पीछे हट गया।
"वक्त आने पर वहां कैसे काम करना है। ये बात हो चुकी है। फिर भी कुछ पूछना हो तो...!"
"कुछ नहीं पूछना।" जगमोहन बोला--- "सब ठीक है।"
"तो जाओ, यहां तुम्हारी जरूरत नहीं।"
जगमोहन ने दोनों पर निगाह मारी और पलटकर बाहर निकल गया।
सोहनलाल खिड़की के बाहर देखता हुआ कह उठा।
"तुमने मुझे बताया नहीं कि जगमोहन ने वहां क्या करना है?"
देवराज चौहान ने सोहनलाल को बताया कि जगमोहन कैसे काम करेगा।
"इसमें खतरा है जगमोहन को !" सोहनलाल कह उठा।
"कोई खतरा नहीं, जो खतरा होगा--वो हम दूर कर देंगे। कुछ ही देर में हम भी वहां जाकर इधर-उधर फैल जाएंगे। जब वे लोग तिजोरी वैन में रख रहे होंगे। तब उधर कोई गड़बड़ होती है तो तुम उन्हें शूट करोगे। मैं इस बात का ध्यान रखूंगा कि वहां उनके कोई और साथी...!"
"बाहर देखो।" सोहनलाल ने एकाएक दबे स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने फौरन बाहर देखा।
उनके देखते ही देखते एक कार फर्नीचर शो-रूम के ठीक सामने सड़क के किनारे आकर रुक गई थी। उसकी हैडलाइट पहले से ही बंद थी। शो-रूम से वो कार करीब अस्सी फीट दूर होगी। दोनों उस कार पर नजरें जमाए खड़े थे। उसमें से कोई बाहर न निकला। भीतर किसी के बैठे होने का एहसास हो रहा था।
"ये लोग, जो भी कार में हैं, जॉर्ज लूथरा के भेजे आदमी हैं।" सोहनलाल कह उठा।
"हां, मेरे ख्याल में भीतर गए लोग बाहर आने वाले हैं।"
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़े कहा।
"जगमोहन अभी चाईनीज फूड वाली वैन के पीछे नहीं पहुंचा जो कार अभी-अभी पहुंची है, वो जगमोहन को वहां छिपते देख सकते हैं।" सोहनलाल व्याकुल स्वर में बोला--- "कहीं पहले से ही मुसीबत न खड़ी हो जाए।"
"अब कुछ नहीं हो सकता। जगमोहन को सतर्क करने का वक्त नहीं है हमारे पास।" देवराज चौहान सपाट स्वर में बोला ।
"उसे मोबाइल फोन पर सतर्क...!"
"नहीं।" देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा--- "अब कुछ भी करना ठीक नहीं होगा। रात के वक्त मोबाइल फोन की बेल की आवाज जगमोहन को मुसीबत में फंसा सकती है। वो जाने अब कहां किस स्थिति में है।"
"ऐसा न हो कि 27 सेकंड का वक्त जगमोहन को मिले ही नहीं।"
"उठो।" देखता देवराज चौहान सख्त स्वर में कह उठा--- "हमें बाहर पहुंचना चाहिए। अब जो होगा, बाहर ही होगा। उस कार के आने का मतलब है, वे कभी भी बाहर आ सकते हैं। मैं कार वालों को संभाल लूंगा। तुमने जगमोहन की तरफ ध्यान देना है कि उसके काम में रुकावट न आए।"
"अगर उन 27 सेकंड के आने से पहले ही कोई गड़बड़ हो जाए तो ?" सोहनलाल की आवाज में खतरनाक भाव झलक उठे--- "तब क्या करना है ?"
"तब काम की परवाह न करके, अपनी जान को सुरक्षित करना है।" देवराज चौहान भिंचे स्वर में कह उठा--- "अगर फायरिंग हो गई तो तिजोरी हमारे हाथ नहीं लगेगी और उनके हाथ भी नहीं लगेगी। ऐसे में वे लोग भी गोलियां चलाने से तब तक परहेज करेंगे, जब तक कि बहुत मजबूरी न आए। अपनी रिवॉल्वर पर साईलेंसर चढ़ा लो और जल्दी चलो।"
जगमोहन ने उस कार को रुकते देख लिया था और जब कोई बाहर नहीं निकला तो उसे समझते देर न लगी कि कार वाले भी जॉर्ज लूथरा के भेजे आदमी हैं। वो ये भी समझ गया कि अब भीतर वाले कभी भी बाहर आ सकते हैं। अब अगर सीधा चाईनीज फूड वाली वैन तक पहुंचता तो नई आई कार में बैठे लोगों की नजरें आसानी से उस पर पड़ सकती थी। ऐसे में वो बहुत पहले ही नीचे लेट गया और आहिस्ता-आहिस्ता सरककर चाईनीज फूड वाली वैन की, तरफ जाने लगा।
वहां दुकानों के बोर्डों की रोशनी फैली थी। देखे जाने का खतरा तो था। चौकीदार होता तो अवश्य देख लिया जाता। ये भी अच्छा था कि वहां से कोई आता पैदल नहीं निकला था। इस तरह पन्द्रह मिनट लगे उसे चाईनीज फूड की वैन तक पहुंचने में। वैन की ओट में पहुंचते ही उसका शरीर अंधेरे में डूब गया। वैन के साथ सटकर नीचे ही लेटा रहा। वैन के भीतर खाने-पीने के सामान की मध्यम सी स्मैल सांसों से टकरा रही थी। सांसों को कुछ संयत करके जगमोहन ने सिर उठाकर उस कार की तरफ देखा।
कार अपनी जगह खड़ी थी। उसमें से कोई बाहर नहीं निकला था।
मिनट भर जगमोहन कार को देखता रहा, फिर आहिस्ता से वैन के साथ-साथ आगे सरका तो फर्नीचर शो-रूम स्पष्ट नजर आने लगा। वहां सब ठीक था। अभी उधर कोई हलचल नहीं हुई थी।
जगमोहन हलचल होने का इंतजार करने लगा।
देवराज चौहान ने उधर की सड़क पार की और दोनों सड़कों के बीच बने चार फीट के फुटपाथ पर आ रुका। वहां बड़े साईज के सीमेंट के गमले और उसमें लम्बे-लम्बे पौधे लगे हुए थे। आस-पास सड़क से कोई वाहन जाता तो वे पौधे जोरों से हिलने लगते। वहां पर आसानी से छिपा जा सकता था।
देवराज चौहान पौधे के गमले के पीछे आसानी से छिपकर खड़ा हो गया। अब उसके सामने उधर की सड़क थी, जिसे कि वो सैकेण्डों में पार कर सकता था और उस कार तक पहुंच सकता था। दोनों सड़कों के बीच के फुटपाथ के बड़े से पौधे के पीछे छिपे देवराज चौहान ने चीते की सी निगाह से कार की तरफ देखा।
करीब मिनट भर देखता रहा।
उसमें दो आदमी थे और दोनों कार की आगे वाली सीट पर बैठे थे। देवराज चौहान उनकी हरकतों को स्पष्ट देख पा रहा थ। दोनों रह-रहकर फर्नीचर शो-रूम पर निगाह मार लेते थे।
सोहनलाल लम्बा सा चक्कर काटकर फर्नीचर शो-रूम के कुछ फासले पर मौजूद लैटर बॉक्स की ओट में छिप गया। उसका पतला सा शरीर लेटर बॉक्स के पीछे आसानी से आ गया था। वहां से सत्तर-अस्सी कदम दूर था शो-रूम। जरूरत पड़ने पर तुरंत जगमोहन की सहायता के लिए उधर पहुंच सकता था।
अब उन्हें इंतजार था, डकैती कर रहे आदमियों की हरकत का कि वे कब बाहर आते हैं। कब वो मारुति वैन वाला आकर शटर के बाहर लगे ताले खोलता है। इसके लिए उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा।
तब दो बजकर चालीस मिनट हो रहे थे। जब वो सफेद मारुति वैन फर्नीचर शो-रूम के बाहर आकर रुकी। वैन की लाइट बंद थी।
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