वो टी.वी. स्क्रीन के सामने बैठा था। स्क्रीन पर स्नो नजर आ रही थी। उसके सिर पर हैडफोन लगा था। उसके चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। उसके कानों में मीनाक्षी के शब्द पड़ रहे थे तब वो देवराज चौहान और जगमोहन को फोन करने के लिए पक्का कर रही थी।

उसने घड़ीनुमा ट्रांसमीटर पर सम्बन्ध बनाकर बात की।

"मैं बोल रहा हूं। देवराज चौहान जगमोहन की हर्षा यादव और मीनाक्षी के साथ बातें हो रही हैं। वे लोग रॉयल वाल्ट के स्ट्रांग रूम में पड़ी किसी दवा को लूटने की योजना बना रहे हैं।"

"योजना बन गई?"

"नहीं। लेकिन बनाई जा रही है। हर्षा यादव ने शायद वाल्ट के भीतर के हिस्सों की फिल्म दिखाई है टी.वी. पर। उसे देखकर देवराज चौहान ने कहा है कि इस तरह तो वाल्ट के स्ट्रांग रूम तक पहुंच पाना सम्भव नहीं है। अब वो दूसरा कोई रास्ता तलाश करने की फेर में है। वो जानना चाहता है कि वाल्ट के आसपास की इमारतों में क्या है। यहीं पर उनकी बात समाप्त हो गई। अब उनकी दोबारा मुलाकात होगी या फोन पर बात होगी। इस काम में वक्त लग सकता है। क्योंकि देवराज चौहान को पहले वाल्ट के आसपास के बारे में मालूम करना है।"

पल भर की चुप्पी के बाद उधर से आवाज आई।

"तुम इसी प्रकार नजर रखो। उनकी बातें सुनते रहो। थक जाओ तो अपनी जगह पर किसी दूसरे को बिठा दो।"

"वो तो ठीक है। लेकिन ये निगरानी तभी तक कायम रह सकती है, जब तक उस कमरे में मौजूद, उसके उतारे कपड़ों में 'चिप' मौजूद है। दोबारा उसने वो ही कपड़े पहने तो ठीक है, नहीं तो उसके कमरे से बाहर निकलने पर उस पर नजर नहीं रखी जा सकती।"

"मैं समझता हूं। जहां तक हो सके, अंत तक उस पर नजर रखो।"

"जी।"

■■■

देवराज चौहान और जगमोहन इस बात के प्रति सतर्क थे कि कोई उनका पीछा न करे। सब ठीक रहा। किसी ने पीछा नहीं किया। वे सोहनलाल के फ्लैट पर पहुंचे।

"राजन का क्या हाल है?"

"वो बंधा पड़ा है।"

"कुछ बोला नहीं ?"

"नहीं।"

देवराज चौहान और जगमोहन कुर्सियों पर जा बैठे। रात हो रही थी।

"तुमने पता किया राजन के बारे में?"

"कर रहा हूं। उसके मोबाइल फोन से निकले नम्बरों को मिला-मिला कर बात कर रहा हूं। देर-सबेर में कोई नतीजा सामने आ जाएगा।" सोहनलाल भी बैठा--- "तुम लोग बताओ, वहां क्या हुआ?"

जगमोहन ने बताया।

सोहनलाल गहरी सांस लेकर कह उठा।

"ये रॉयल वाल्ट का ही मामला निकला।"

"हां।" जगमोहन ने देवराज चौहान पर नजर मारकर कहा--- "वहां पर सीधे रास्ते से नहीं जाया जा सकता। अगर दूसरी तरह स्ट्रांग रूम में प्रवेश करते हैं तो वाल्ट वाले हिस्से में नहीं पहुंच सकते, जहां वो हीरा होगा।"

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई।

"देखा जाए तो ये झंझट वाला मामला है।" सोहनलाल बोला।

"ठीक कहते हो। मैंने देवराज चौहान से कहा है कि वो इस मामले को छोड़ दे। हम दस अरब के हीरे की तरफ ध्यान देते...।"

"देवराज चौहान ये मामला छोड़ भी नहीं सकता।" सोहनलाल गम्भीर स्वर में कह उठा--- "क्योंकि लाखों-करोड़ों लोगों की जिन्दगी का सवाल है। इस तरफ से आंखें बंद नहीं की जा सकती।"

जगमोहन ने गहरी सांस ली और उठते हुए बोला।

"तुम खाने का इन्तजाम करो। मैं राजन से बात करके आता हूं।"

सोहनलाल उठा और रेस्टोरेंट में खाने का आर्डर देने के लिए फोन की तरफ बढ़ गया।

राजन बैड के पास ही नीचे फर्श पर, वैसे ही बंधा पड़ा था, जैसे वो बांधकर गया था। जगमोहन उसके पास पहुंच कर मुस्कराया, और बैड पर टांगें लटकाकर बैठता हुआ बोला।

"मजे हो रहे हैं।"

राजन उसे घूरने लगा।

"ऐसे ही पड़ा रहेगा। पड़े-पड़े मर भी सकता है। मुंह खोलेगा तो, बच जाएगा। बता---किसने तेरे को हमारा पीछा करने को कहा। कहां से तुमने हमारा पीछा शुरू किया और हमारा पीछा करने का मकसद क्या था। बहुत ही मामूली सवाल है। जवाब दे और चलता बन। घर पर तेरा कोई इन्तजार नहीं कर रहा क्या ? या फिर तेरा घर है ही नहीं। आखिर किसी की तो तेरे को याद आ रही होगी।"

राजन उसी तरह खा जाने वाली नजरों से उसे देखता रहा।

"नहीं बताएगा ?"

"नहीं।" राजन के भिंचे होंठ हिले।

"तेरे जैसे लोग सीधी तरह नहीं मानते।" जगमोहन ने मुस्कराकर कहा--- "और हार मानने वाले हम भी नहीं हैं। तेरे बताए बिना ही हम तेरे घर तक पहुंच जाएंगे। जिस परिवार की वजह से तूने मुंह बंद कर रखा है। उस परिवार को तेरे सामने लाकर खड़ा कर देंगे। रिवॉल्वर की नाल उनकी कनपटी पर होगी। तब तू मुंह खोलेगा।"

वो खा जाने वाली नजरों से जगमोहन को देखने लगा।

"चिन्ता मत कर। वक्त आने पर तेरा गुस्सा-नाराजगी दूर हो जाएगी।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा और उठ खड़ा हुआ।

■■■

सोहनलाल ने राजन के फोन में मौजूद एक नम्बर मिलाया, दूसरी तरफ से किसी व्यक्ति की नशे की भरभराहट से भरी आवाज कानों में पड़ी।

"है...लो...।"

"क्या हाल है राजन भाई।" सोहनलाल ऊंचे स्वर में बोला।

वहां मौजूद देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह उसकी तरफ उठी।

"राजन?" उधर से नशे से भरा स्वर आया।

"हां भई, पहचाना मुझे।"

"नहीं तो।"

"क्यों मजाक करता है। मुझे पहचान लिया है तूने।"

"मैंने नहीं पहचाना।"

"मजाक मत कर राजन। मैं मुस्तफा हूं। तू...।"

"सुन...।"

"हां।"

"मैं राजन नहीं, सुन्दर सिंह हूं।"

"दो पैग अन्दर गए तो सुन्दर सिंह बन गया।"

"सच में मैं सुन्दर सिंह हूं। मैं तो...।"

"तू राजन नहीं है ?"

"नहीं।"

"पक्का ?"

"हां यार। मैं राजन नहीं हूं।" नशे से भरी आवाज सोहनलाल के कानों में पड़ी।

"तेरी आवाज राजन जैसी नहीं है। तू सच में राजन नहीं है। ठीक कहता है तू। फिर राजन ने मुझे तेरा नम्बर क्यों दिया। वो ऐसा क्यों करेगा। ये नम्बर राजन का है या तेरा ?"

"मेरा । फोन मेरे पास है तो मेरा ही नम्बर होगा।"

"मैंने सोचा कहीं तूने उससे एक-दो दिन के लिए फोन उधार ले लिया...।"

"क्या फालतू की बात करता है। क्या नाम बताया था तूने?"

"मुस्तफा ।"

"हूं। उसने गलती से नम्बर दे दिया होगा। भगवान जाने उसने मेरा नम्बर क्यों दिया।" उधर से बात खत्म करने वाले ढंग में कहा--- "राजन का नम्बर बोलता हूं, नोट कर।"

"नम्बर क्या नोट करना है।" सोहनलाल जल्दी से बोला--- "मेरे को अभी राजन से मिलना है। वो अपने घर पर मेरा इन्तजार कर रहा होगा। उसके घर के पास से ही बोल रहा हूं। एक बार पहले आया था। उसके घर को अब भूल गया लगता हूं। काफी देर से पहचान में नहीं आ रहा। तू राजन के घर का ही नम्बर बता दे।"

"अड़तीस नम्बर है उसके घर का।"

"अड़तीस ?"

"हां । कहना सुन्दर सिंह ने तेरा हाल-चाल पूछा है।"

"वो तो कह दूंगा। नम्बर अड़तीस उसके मकान का। लेकिन जगह का नाम क्या है?"

"जगह का...? अभी तो तू कह रहा है कि उसके घर के पास ही कहीं...।"

"वो तो हूं। फिर भी सोचा कहीं जगह भी न भूल गया हूं। एक बार तेरे से पूछ लूं।"

"बोरीवली ईस्ट।"

"ओह। यही तो गड़बड़ हो गई। मैं बोरीवली वेस्ट में भटक रहा हूं।"

"तूने पी तो नहीं रखी ?"

"नहीं। आज नहीं पी।"

"यही गलती कर दी। पी लेता तो वेस्ट नहीं, ईस्ट पहुंचता। सुन... उधर रोमा रेस्टोरेंट है। उसके बगल की गली में घुस जाना। अड़तीस नम्बर उसी में पड़ेगा।"

"मेहरबानी सुन्दर सिंह साहब।" सोहनलाल के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"ये बात छोड़। वैसे तेरे को उससे धंधे के वास्ते मिलना है?" सुन्दर सिंह ने पूछा।

"हां।"

"कैसा काम है?"

"तू क्यों पूछ रहा है ?"

"अपना काम भी राजन जैसा ही है। मेरे लायक कोई काम हो तो बताना।"

"बोलूंगा।"

"मेरा ये नम्बर संभाल के बाजू वाली जेब में डाल लेना। जरूरत पड़े तो फोन मार देना।"

"समझ गया। फिर बात करूंगा।" कहने के साथ ही सोहनलाल ने रिसीवर रख दिया।

तभी कॉलबेल बजी।

सोहनलाल ने उठकर दरवाजा खोला। बाहर रेस्टोरेंट से आया डिलीवरीमैन था। खाना लेकर आया था। सोहनलाल ने खाना लेकर उसे पैसे दिए और दरवाजा बंद करके पलटा।

"राजन के घर का तो पता लग गया कि वो कहां रहता है। उसकी पत्नी और बच्चे भी वहीं रहते होंगे। जिनकी वजह से राजन ने मुंह बंद कर रखा हुआ। हम आज रात ही उसकी बीवी-बच्चों को यहां ला...।"

"रात को ये काम ठीक नहीं होगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "औरत और बच्चों को लाने का मामला है। रात में शोर भी पड़ सकता है। जबकि दिन में कुछ शोर भी हुआ तो कोई परवाह नहीं करेगा।"

"ये भी ठीक है।" सोहनलाल पास पहुंच कर बैठता हुआ बोला। खाना उसने टेबल पर रख दिया।

"राजन की पत्नी और बच्चे को लाने में खास परेशानी नहीं आएगी।" देवराज चौहान ने कहा--- "उन्हें इतना कहना ही बहुत होगा कि उसका एक्सीडेंट हो गया था। कल से वो बेहोश था। हस्पताल में अब उसे होश आया तो, उसने पता बताकर घर वालों को खबर देने को कहा। ये सुनते ही उसकी पत्नी चल पड़ेगी। क्योंकि दिन भर और रात को राजन के बारे में उसे कोई खबर नहीं मिलेगी राजन हमारे पास है। तुम्हारी कही बात को फौरन सच मान लेगी।"

सोहनलाल ने सिर हिला दिया।

"बढ़िया कही, मैं ऐसा ही करूंगा। "

"ये काम कल दोपहर बाद करना जबकि उसकी पत्नी पूरी तरह परेशान हो चुकी होगी कि राजन की कोई खबर नहीं मिल रही। ऐसे में वो तुम्हारी बात सुनते ही आंखें बंद करके विश्वास कर लेगी कि राजन हस्पताल में है। तभी उसके बारे में कोई खबर नहीं मिल पाई। तुम्हारे साथ चलने में वो एक मिनट की भी देर नहीं लगाएगी।"

सोहनलाल ने उंगलियों में सुलगती गोली वाली सिगरेट का कश लिया।

"तुम अब उस वाल्ट के बारे में क्या करोगे ?"

"मैं कल रॉयल वाल्ट के आगे-पीछे अगल-बगल का हिस्सा देखूंगा।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसके बाद ही तय कर पाऊंगा कि इस काम में कुछ हो सकेगा या नहीं।"

"मुझे तो नहीं लगता कि काम हो।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा-- "बेहतर होगा कि हम सोहनलाल की बात पर गौर करें। दस अरब के हीरे के बारे में सोचें। वाल्ट के भीतर के सारे इन्तजाम हमारे सामने है। तुम चाहो तो आसानी से योजना बना सकते हो कि कैसे वो हीरा पाना है। क्यों सोहनलाल, वो हीरा कब आना है ?"

"मुझे तो यही बताया गया है कि एक-दो दिन में वाल्ट में पहुंच जाएगा।" सोहनलाल ने कहा।

"वो हीरा कम से कम वाल्ट के स्ट्रांग रूम में नहीं रखा जा सकता। क्योंकि वो बंद है। उसे खोला नहीं जा सकता। वैसे भी वो स्ट्रांग रूम जॉर्ज लूथरा का पर्सनल स्ट्रांग रूम है।"

"स्ट्रांग रूम तो वाल्ट में दूसरा भी हो सकता है।" सोहनलाल कह उठा।

"ओह!"

"अगर उसे खोलने का ढंग भी इसी तरह का हुआ तो उस स्ट्रांग रूम के भीतर जा पाना कठिन है।" सोहनलाल ने जगमोहन को देखा--- "मैं मालूम करूंगा कि वो हीरा कहां रखा जाएगा।"

"जल्दी मालूम करना।" जगमोहन ने कहने के साथ ही देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान आंखें बंद किए, सोफा चेयर पर पसरा पड़ा था।

जगमोहन समझ गया कि देवराज चौहान हीरे वाले मामले में दिलचस्पी नहीं ले रहा।

"खाना ठण्डा हो रहा है।" सोहनलाल बोला।

"डाल ले बर्तनों में।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा--- "राजन को खिला देना। वो...।"

"इसके लिए उसके हाथ खोलने पड़ेंगे।"

"खोल देंगे। कुछ देर उसके पास बैठ जाएंगे कि कोई शरारत न करे।"

■■■

अगले दिन देवराज चौहान सुबह आठ बजे ही तैयार होकर सोहनलाल के फ्लैट से निकल गया था। जगमोहन को वो कह गया था कि वो सोहनलाल के साथ काम करे। वो जो काम करने जा रहा है। उसमें उसकी जरूरत नहीं है। अभी सिर्फ उसने वाल्ट के आस-पास की जगह ही देखनी है।

जगमोहन और सोहनलाल ने दोपहर बाद हरकत में आना था। अभी उनके पास बहुत वक्त था। राजन बेडरूम के फर्श पर बंधा पड़ा था। इस तरह पड़े-पड़े वो दुखी हो गया था, परंतु अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं था। जगमोहन और सोहनलाल ने पुनः कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

शाम चार बजे जगमोहन और सोहनलाल बोरीवली ईस्ट पहुंचे। जगमोहन कार में ही बैठा रहा और सोहनलाल रोमा रेस्टोरेंट के बगल वाली गली में प्रवेश कर गया। रोमा रेस्टोरेंट तलाशने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई थी। अड़तीस नम्बर छोटा सा मकान भी मिल गया।

दरवाजे पर ताला लटक रहा था।

पड़ोस से पूछने पर पता चला कि राजन की बीवी दोनों बच्चों को लेकर कुछ देर पहले ही कहीं गई है और रात तक आने को कह गई थी। यानी कि आने का कोई फायदा न हुआ। उन्होंने रात को आने की सोची और वापस फ्लैट पर आ पहुंचे।

शाम के छः बज रहे थे।

देवराज चौहान फ्लैट पर वापस आ चुका था। उसके पास भीतर आने के लिए दूसरी चाबी थी।

वो बड़े से कागज पर पैन लेकर कोई नक्शा जैसी चीज बनाने में व्यस्त था।

"कब आए?" जगमोहन ने पूछा।

"दो घंटे हो गए।" देवराज चौहान ने दोनों को देखा--- "तुम लोग राजन की बीवी-बच्चों को लेने गए थे।"

"घर में कोई नहीं मिला। हमारे जाने से कुछ पहले ही वो अपने बच्चों के साथ कहीं गई थी। पड़ोस से पता चला कि वो रात को आने को कह गई है।" सोहनलाल बोला--- "हम रात को जाएंगे।"

देवराज चौहान पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया।

जगमोहन और सोहनलाल बेडरूम में पहुंचे, जहां राजन बंधा पड़ा था। वो थकान से भरा बुरे हाल लग रहा था। उन्हें देखते ही उसने दांत भींच लिए।

जगमोहन मुस्कराया और पास ही बैड पर बैठता हुआ बोला।

"आराम हो रहा है।"

"मुझे बांधकर रखने का कोई फायदा नहीं। मैं कुछ नहीं बताने वाला।" वो गुस्से से कह उठा।

"हम तेरे से कुछ नहीं पूछ रहे ।" जगमोहन बोला--- "तेरे को कुछ बताना चाहते हैं।"

"क्या?"

"अभी रोमा रेस्टोरेंट होकर आए हैं।"

राजन की आंखें सिकुड़ गई।

"बोरीवली ईस्ट में!"

राजन उसी तरह, उसे देखता रहा।

"मैं तो बाहर ही रहा। अपना ये सोहनलाल गली के अंदर गया। वहां अड़तीस नम्बर के मकान में।"

राजन के चेहरे पर बेचैनी उभरी। वो परेशान नजर आने लगा। जगमोहन को देखता रहा। लेकिन इसके बाद जगमोहन कुछ कहने की अपेक्षा उठ गया।

"तुम कुछ बता रहे थे।" राजन जल्दी से कह उठा।

"बता दिया।"

"इसके आगे कुछ बताओ। उस अड़तीस नम्बर मकान के बारे में।"

"वहां मैं नहीं गया। सोहनलाल गया था।"

राजन ने जरा सा टेढ़े होकर सोहनलाल को देखा।

"वहां कौन मिला तुम्हें ?"

"सीधी तरह बात कर।" सोहनलाल ने सख्त स्वर में कहा--- "पहले बोल वो तेरा घर है।"

"हां!" उसने बेचैनी से कहा।

"वहां तेरे बच्चे और बीवी रहती है।"

"हां!" राजन का स्वर भिंच गया।

"जिनके डर की वजह से तू मुंह नहीं खोल रहा कि मुंह खोला तो कोई तेरे परिवार को मार देगा। वो परिवार अगले कुछ घंटे में यहां तेरे सामने मौजूद होगा। तब या तो तू मुंह खोलेगा या फिर अपने बीवी बच्चों की मौत देखेगा। तेरे को अपनी मौत का डर नहीं लेकिन अपने परिवार की मौत का डर है। यानी कि तब तू मुंह खोलेगा।"

राजन होंठ भींचे सोहनलाल को देखता रहा।

"सुन!" जगमोहन ने कहा--- "तरे बीवी-बच्चों को उठाकर लाएंगे। उन्हें तकलीफ होगी। यहां भी उन्हें तकलीफ हो सकती है। क्या मालूम हमसे गुस्से में क्या हो जाए। बढ़िया तो ये रहेगा कि तू हमारे सवालों का जवाब दे दे।"

"मेरे घर का तुम लोगों को कैसे पता चला ?"

"चल गया। ये बात तेरे जानने की नहीं है। अपनी कह---बताता है ?"

"नहीं।"

"यानी कि जब तेरे सामने तेरी पत्नी और बच्चे खड़े होंगे। चाकू उनकी गर्दनों से लगे होंगे, तब तू बताएगा।" जगमोहन सख्त स्वर में बोला--- "तब चाकू की नोक किसी के शरीर में भी घुस सकती है।"

राजन दांत भींचे खामोश रहा।

"बड़ा हरामी है। ये आसानी से मुंह नहीं खोलेगा। इसके सामने इसकी पत्नी और बच्चों का गला काटना पड़ेगा।"

"कोई बात नहीं।" सोहनलाल ने खतरनाक स्वर में कहा--- "कुछ घंटों में वो यहां होंगे। तब आएगा मजा।"

राजन गुस्से से उन्हें देखता रहा। आंखों में व्याकुलता भरी पड़ी थी।

■■■

रात के साढ़े नौ बज रहे थे कि एकाएक देर से व्यस्त देवराज चौहान अपनी जगह से उठा और सामने पड़ा कागज उठाकर तह करके जेब में रखा, पैन बंद करके एक तरफ रख दिया।

सोहनलाल सामने ही लम्बे सोफे पर अधलेटा सा था।

जगमोहन एक दूसरे कमरे में राजन के पास था।

"जगमोहन को बुला।" देवराज चौहान बोला।

"क्या सोचा वाल्ट के स्ट्रांगरूम के बारे में ?" सोहनलाल कह उठा--- "काफी देर से उलझे लगे हो।"

"रास्ता निकाल लिया है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

सोहनलाल चौंका।

"स्ट्रांगरूम में जाने का?"

"हां।"

"कोड लॉक का पता लग गया या कहीं, दूसरी जगह से ?" सोहनलाल संभला-संभला सा लग रहा था।

"दूसरी जगह से।"

"ओह!"

"जगमोहन को बुला।"

सोहनलाल उठा और जगमोहन को बुला लाया।

"हर्षा यादव को फोन करो। कहो कि हम आ रहें हैं।" देवराज चौहान ने कहा।

"क्यों?" जगमोहन के होंठ सिकुड़े।

"स्ट्रांगरूम में जाने का रास्ता मिल गया है। बाकी बातें बाद में। फोन करके देखो।"

कई पलों तक जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा, फिर फोन की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। रिसीवर उठाकर मीनाक्षी का बताया नम्बर डायल करने लगा।

मीनाक्षी ने ही रिसीवर उठाया था।

"हैलो!"

"फोन पर तुम्हारी आवाज और भी मीठी लगती है।" जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा।

पल भर की चुप्पी के बाद मीनाक्षी की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

"जगमोहन !"

"हां!"

"मुझे तो आशा नहीं थी कि तुम लोगों का फोन या तुम आओगे।" शब्दों के साथ ही मीनाक्षी का गहरी सांस लेने का स्वर सुनाई दिया--- "हर्षा यादव के साथ मैं बात कर रही थी कि एक दिन बीत गया। एक-दो दिन तुम लोगों का इंतजार करने के बाद, रघुनाथ से बात करेंगे कि वो हमें देश के बाहर पहुंचा दे।"

"हम वहां आना चाहते हैं?"

"खास बात है ?"

"मालूम नहीं। देवराज चौहान आने को कह रहा है तो खास बात ही होगी।"

"आ जाओ। कल किसी ने पीछा तो नहीं किया था?"

"नहीं।"

"उसने मुंह खोला, जिसे कैद कर रखा है?"

"खोल देगा, अपनी बात करो।"

"आ जाओ। एक मिनट, हर्षा से पूछती हूं।" फिर जगमोहन के कानों में मीनाक्षी और हर्षा यादव की आवाजें पड़ीं। हर्षा यादव के शब्द फोन पर उसे भी सुनाई दिए कि आने दो--- "आ जाओ।" मीनाक्षी की आवाज उसे सुनाई दी।

"पहुंच रहें हैं।" कहकर जगमोहन ने रिसीवर रखा। फिर पलटकर देवराज चौहान से बोला--- "चलें ?"

"हां।"

तभी सोहनलाल कह उठा।

"तुम भी जा रहे हो?"

"हां।" जगमोहन ने उसे देखा।

"आज रात तो हमें राजन की पत्नी और उसके बच्चे को...!"

"ये काम कल भी हो सकता है। हर्षा यादव के यहां खतरा हो सकता है कि उधर कोई नजर न रख रहा हो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "मेरे साथ इसका होना ठीक रहेगा।"

"कोई बात नहीं।" सोहनलाल बोला--- "कल राजन के यहां चले जाएंगे। उसके परिवार को लेने। वैसे तो ये काम मैं अकेला भी कर सकता हूं। लेकिन राजन के पास भी किसी का रहना जरूरी है।"

"अगर वापसी जल्दी हो गई तो वहां चल पड़ेंगे।"

देवराज चौहान और जगमोहन बाहर आ गए।

"स्ट्रांगरूम में पहुंचने का रास्ता निकला क्या ?" जगमोहन ने पूछा।

देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिला दिया। जगमोहन ने ये नहीं पूछा कि वो रास्ता क्या है। क्योंकि वो जानता था कि देवराज चौहान अभी नहीं बताएगा।

रास्ते में दोनों ने इस बात का ख्याल रखा कि कोई पीछा न कर रहा हो। वहां पहुंचकर भी नजर हर तरफ रखी। परंतु ऐसा कोई न दिखा, जो इधर नजर रखने के लिए मौजूद हो। अगर कोई था भी तो अंधेरे में कोई न दिखा। जब उन्होंने कॉलबैल दबाई तो रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे।

■■■

"सच में!" हर्षा यादव ने शांत-गंभीर स्वर में देवराज चौहान को देखते हुए कहा--- "तुम्हें दोबारा सामने देखकर खुशी हुई। मैंने तो सोचा था कि अब तुम आओगे ही नहीं।"

"क्यों ?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"क्योंकि...!" मीनाक्षी ने कहा--- "स्ट्रांगरूम में पहुंचने का रास्ता है ही नहीं। कोड लॉक हटाने का भी कोई रास्ता नहीं और कोई रास्ता निकलने की उम्मीद ही नहीं है, जो...!"

"रास्ता है।" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा--- "देवराज चौहान बताएगा।"

हर्षा यादव और मीनाक्षी की नजरें देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकीं।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और दोनों को देखकर कह उठा।

"स्ट्रांगरूम का सिक्योरिटी सिस्टम क्या है ?"

"सिक्योरिटी सिस्टम ?"

"पक्का होना चाहिए।" देवराज चौहान बोला।

"स्ट्रांगरूम का सिक्योरिटी सिस्टम वहां मौजूद दो तिजोरियों और एक अलमारी से जुड़ा है। अगर उन्हें कोई खोलने की चेष्टा करता है तो कंट्रोलरूम में अलार्म बज उठेगा।"

"मतलब कि उनके लॉक सिस्टम के साथ सिक्योरिटी सिस्टम है ?"

"हां!"

"ऐसे लॉक सिस्टम की सिक्योरिटी, खास जगह के भीतर ही भीतर काम करती है। अगर उस सिक्योरिटी को खास जगह की रेंज से दूर ले जाया जाए तो सिक्योरिटी सिस्टम जैसी व्यवस्था खुद ही समाप्त हो जाती है।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरे ख्याल में तिजोरी को स्ट्रांगरूम में ही खोलना ठीक नहीं होगा। ऐसा करते ही अलार्म बज उठेगा।"

हर्षा यादव की आंखें सिकुड़ीं। उसने मीनाक्षी को देखा। नजरें पुनः देवराज चौहान पर जा टिकी।

"हम तो स्ट्रांगरूम तक पहुंचने की बात कर रहे थे, तुम तो इस तरह बात कर रहे हो, जैसे हम स्ट्रांगरूम में खड़े हैं।" हर्षा यादव के स्वर में कूट-कूटकर उलझन भरी हुई थी।

"तुम ये सोचकर चलो कि हम स्ट्रांगरूम में पहुंच गए।" देवराज चौहान बोला---  "उसके बाद की बात मैं कर रहा हूं कि तब वहां पर क्या करना है?"

हर्षा के होंठ हिले। वो सोचों में दिखा। देवराज चौहान को देखता रहा।

"तुम्हारा मतलब कि तब तिजोरी खोलनी है या उसे साथ ले जाना है।" मीनाक्षी कह उठी।

"हां।"

"अगर वहां खोलने में खतरा है तो उसे साथ ले चलेंगे।" मीनाक्षी ने कहते हुए हर्षा यादव को देखा।

"वहां तिजोरी खोलने से कंट्रोलरूम में लगा अलार्म बज उठेगा।" जगमोहन ने कहा।

"उसे साथ ले चलना ही ठीक रहेगा।" मीनाक्षी ने पुनः कहा।

"स्ट्रांगरूम में वीडियो कैमरा भी लगा होगा जो...!" देवराज चौहान ने कहना चाहा।

"नहीं!" हर्षा यादव के होंठ हिले--- "वहां वीडियो कैमरा नहीं लगा।"

"क्यों?" देवराज चौहान की निगाह हर्षा यादव पर जा टिकी।

"अब इस क्यों का जवाब मैं क्या दूं? जॉर्ज लूथरा ने जैसा ठीक समझा होगा, वैसा ही इंतजाम कराया होगा। शायद वो नहीं चाहता होगा कि कोई गलती से भी उसकी वहां की कार्यवाही को देख ले।"

"यही बात होगी।" जगमोहन बोला ।

"लेकिन उस तिजोरी को वहां से ले जाना कोई खेल नहीं है। नामुमकिन जैसा काम है।" हर्षा यादव ने बेचैनी से कहा।

"क्यों?"

"वो भारी है। इतनी भारी कि, चार आदमी भी उसे आसानी से नहीं उठा सकते।"

"तुम्हें कैसे पता?"

"मालूम है। ऐसी बातें तो बिना पता किए भी सुनने को मिल जाती है।" हर्षा यादव बोला--- "वहां तिजोरी को खोला गया तो कंट्रोलरूम में अलार्म बज जाएगा। वैसे अलार्म बजने पर भी कोई स्ट्रांगरूम तक नहीं आ सकेगा, क्योंकि वहां पहुंचने का रास्ता बंद है। लेकिन तब इस बारे में भागदौड़ शुरू हो जाएगी। पांच-दस मिनट में वाल्ट की सिक्योरिटी जान लेगी कि किसी अन्य तरफ से रास्ता बनाकर कोई स्ट्रांगरूम में जा पहुंचा है और वहां पड़ी तिजोरी के साथ छेड़छाड़ कर रहा है। ऐसे में वो रास्ता फौरन तलाश करने की चेष्टा की जाएगी।"

"ठीक कहते हो।" देवराज चौहान बोला।

"तिजोरी को वहां से इसलिए नहीं ले जा सकते कि वो बहुत भारी है।" हर्षा यादव कह उठा--- "ये बातें तो बाद की है कि कैसे क्या करना है। पहले पता तो चले कि स्ट्रांगरूम में कैसे पहुंचा जाएगा।"

देवराज चौहान ने कश लिया।

हर्षा यादव, मीनाक्षी और जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

"मैंने आज आधा दिन रॉयल वाल्ट के आस-पास जुड़ी जगहों की जानकारी ली है।" देवराज चौहान कह उठा--- "टी.वी. स्क्रीन पर कल रॉयल वाल्ट के भीतरी रास्तों को देखा। ये भी पता लगा कि स्ट्रांगरूम कहां है। स्ट्रांगरूम उस इमारत के ठीक पीछे वाले हिस्से में है। या फिर यूं कहा जाए कि स्ट्रांग रूम के बाद दूसरी तरफ की इमारत शुरू हो जाती है। पीछे की तरफ से साथ लगती इमारत।"

"हां।" मीनाक्षी ने तुरन्त सिर हिलाया--- "ये बात हमें पता है।"

"वाल्ट के पीछे की तरफ साथ लगती इमारत के नीचे वाले हिस्से में फर्नीचर का शो-रूम है। ऊपर कोई बैंक है। हमें नीचे वाले हिस्से से मतलब है, क्योंकि स्ट्रांगरूम भी नीचे है। आज मैंने फर्नीचर शो-रूम के भीतर जाकर अच्छी तरह देखा। उधर मैं फर्नीचर लेने के बहाने गया था। फर्नीचर शो-रूम के मालिक ने उस जगह का पूरा ही लम्बा हॉल बना रखा है। बीच में कोई दीवार नहीं है। सौ फीट लम्बा शो-रूम है वो। ठीक सामने दीवार के पीछे, वाल्ट का स्ट्रांगरूम आता है। हम उस दीवार से रास्ता बनाकर आसानी से स्ट्रांगरूम में पहुंच सकते हैं। स्ट्रांगरूम में पहुंचने की समस्या जितनी बड़ी लगती है, उतनी है नहीं।"

"मुझे तो ये बेवकूफी वाली बात लग रही है।" मीनाक्षी के होंठों से निकला।

"क्या मतलब?" जगमोहन ने उसे देखा।

"स्ट्रांगरूम में पहुंचने का रास्ता कितनी आसानी से बताया जा रहा है।" वो बोली।

"जो रास्ता है, वो ही बताया जाएगा कि हम उसमें जानबूझकर कठिनाइयां पैदा कर दें।" जगमोहन ने मुंह बनाया।

"चुप रहो मीनाक्षी।" हर्षा यादव ने गंभीर स्वर में टोका--- "पहले सुन लेने दो कि देवराज चौहान क्या कहता है। स्ट्रांगरूम में पहुंचना, सच में बहुत बड़ी समस्या है। परंतु कितनी आसानी से देवराज चौहान ने हल निकाल दिया। हम यहां तक सोच नहीं सकते थे। बताओ---ये सब कैसे होगा, तुमने सोच लिया होगा।"

कश लेने के पश्चात देवराज चौहान ने सोच भरे शांत स्वर में कहा।

"इसके लिए हमें शो-रूम पर कब्जा करना होगा। शो-रूम के ही कर्मचारी को नोट देकर उससे मालूम किया है कि शो-रूम बंद होते-होते रात के दस बज जाते हैं। तब तक आस-पास के अन्य शो-रूम पूरी तरह बंद हो चुके होते हैं। पन्द्रह दुकानों के पार एक रेस्टोरेंट अवश्य खुला रहता है। वो दूर पड़ता है। दस बजे के आस-पास उस मार्केट का चौकीदार आ जाता है। फर्नीचर शो-रूम के अधिकतर कर्मचारी साढ़े नौ बजे तक चले जाते हैं। तब शो-रूम का मालिक और एक कर्मचारी वहां रह जाता है। आखिरी आधे घंटे में फर्नीचर शो-रूम का मालिक दिन भर का अपना हिसाब देखता है। दस बजे के करीब जब चौकीदार आता है तो शो-रूम का बड़ा शटर बंद करवाने में वो आखिरी मौजूद कर्मचारी की सहायता करता है। ये रोजमर्रा का रूटीन है। इस तरह शो-रूम बंद होता है। और इस आखिरी घंटे में शो-रूम पर कब्जा कर सकते हैं।" कहकर देवराज चौहान रुका।

हर्षा यादव तुरन्त पहलू बदलकर कह उठा।

"रूको मत। कहो, मैं पूरी तरह सुन रहा हूं।"

"लेकिन शो-रूम पर कब्जा करने में आखिरी अड़चन वो चौकीदार है जो हर रात शो-रूम बंद करवाता है। शटर नीचे गिराने में हाथ लगाता है। शो-रूम में हम कब्जा कर लेते हैं। उसके मालिक और आखिरी मौजूद कर्मचारी को बंधक बनाकर शटर गिरा देते हैं, तो भी चौकीदार अड़चन बन सकता है। क्योंकि वो भीतर हो रही रोशनी को महसूस कर लेगा। दूसरे गिरे शटर के बाहर रोज की भांति ताले नहीं लगे होंगे। बेशक हम शटर भीतर से बंद कर लें। परंतु चौकीदार अपनी ड्यूटी पूरी करते हुए पास ही बीट बॉक्स या फर्नीचर मालिक के घर फोन करेगा कि शटर खुला है। ताले नहीं लगाए गए।"

"हां, ऐसा तो होगा ही।" हर्षा यादव ने सिर हिलाया।

जगमोहन और मीनाक्षी की नजरें देवराज चौहान पर थीं।

"फर्नीचर शो-रूम को हमने इस तरह कब्जे में लेना है कि भीतर काम करते हुए हमें बाहर से कोई परेशानी न हो। वरना हम भारी मुसीबत में फंस सकते हैं। किसी को शक हो गया तो वो बाहर ताला लगाकर पुलिस को फोन कर सकता है कि भीतर कुछ गड़बड़ है। ऐसे में वो शो-रूम हमारे लिए चूहेदान साबित होगा। पुलिस आकर हमें आसानी से पकड़ लेगी और हमारा काम वहीं का वहीं रुक जाएगा।"

"ठीक कहते हो। ऐसे में उस चौकीदार को खत्म कर देना जरूरी...!"

"समझदार लोग काम के दौरान खून नहीं बहाते । दूसरे की जान की कीमत समझते हैं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में टोका--- "चौकीदार की जान लेने का कोई फायदा नहीं। दो के साथ हम तीसरे को भी शो-रूम में बंधक बना सकते हैं।"

"गुड आईडिया !" हर्षा यादव के होंठों से निकला--- "तुम सच में रास्ता बनाने में मास्टर हो।"

"चौकीदार के भी भीतर आ जाने पर बाहर से किसी भी तरह के खतरे के आने का अंदेशा नहीं रह जाएगा। परंतु शो-रूम मालिक के घर न पहुंचने पर, उसके घर वाले अवश्य शो- रूम में फोन करेंगे। घंटी बजती रहेगी। कोई नहीं रिसीवर उठाएगा। तब उसके घर वाले शो-रूम तक आएंगे। ऐसे में उन्हें शटर पर ताला लगा नहीं मिले तो समझ जाएंगे कि कोई गड़बड़ है। वो फौरन पुलिस को फोन करेंगे। यहां भी गड़बड़ हो सकती है। ऐसे में जब हम शो-रूम के मालिक उसके नौकर और चौकीदार को शो-रूम के भीतर लेकर शटर नीचे कर देंगे तो बाहर से मीनाक्षी शटर पर वो ही ताले लगा देगी, जो कि रोज लगते हैं। वो ताले शो-रूम के भीतर ही होंगे। वो ताले हम बाहर मौजूद मीनाक्षी तक पहुंचा सकते हैं। जब हमें बाहर निकलना होगा तो मोबाइल फोन से मीनाक्षी को फोन कर देंगे तो वो ताले खोल देगी।"

"खूब !" हर्षा यादव मुस्कराकर कुछ आगे हुआ--- "सच में मान गया तुम्हें ! क्या रास्ता निकाला है!"

"बार-बार तालियां मत मार।" जगमोहन ने उसे घूरा--- "मुंह से कह देना ही ठीक है।"

हर्षा यादव ने उसे देखा, फिर मुस्कराकर सिर हिलाया।

"जो भी कहो, मैं बुरा नहीं मानूंगा। मीनाक्षी बोतल-गिलास देना।"

मीनाक्षी उठी और बोतल गिलास लाकर टेबल पर रख दिया।

"तुम लोग तो पिओगे नहीं। मैं एक पैग ले लूं।" कहकर उसने पैग तैयार किया और घूंट भरा--- "आगे कहो। तुम्हारी योजना मुझे बहुत अच्छी लग रही है। कामयाब बातें कह रहे हो।"

"उसके बाद?" मीनाक्षी के होंठ खुले।

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग से कश लिया।

"भीतर हमें शो-रूम की दीवार तोड़कर, उसके पीछे स्ट्रांगरूम की दीवार तोड़कर, स्ट्रांगरूम में पहुंचने का रास्ता बनाना होगा। दीवार तोड़ने का सामान हम साथ लेते जाएंगे। दीवार हमें नीचे से भी तोड़नी है। इस तरह कि उस तिजोरी को शो-रूम में खींच सकें। तुम कहते हो कि तिजोरी भारी है। उठाई नहीं जा सकती। ऐसे में सामान ढोने वाली छोटी-सी ट्राली वहां ले चलेंगे। तिजोरी को आसानी से उस पर डालकर, बाहर जहां हमारी कोई वैन खड़ी होगी, वहां तक ले चलेंगे और वहां से तिजोरी को वैन में डाल देंगे।"

"इस काम में कितने आदमी इस्तेमाल करने पड़ेंगे?" हर्षा यादव ने पूछा।

"मीनाक्षी शटर को ताला लगाकर बाहर ही कहीं पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके उसके भीतर रहेगी। भीतर तीन आदमियों को बंधक बनाए रखना है। दो दीवारें भी तोड़नी है। ऐसे में भीतर तीन को होना चाहिए। चार भी हो जाएं तो कोई दिक्कत नहीं। चार में हमें काम करने में ज्यादा आसानी रहेगी।"

हर्षा यादव ने घूंट भरा। सोच भरी निगाह देवराज चौहान पर थी।

"तिजोरी को हम वहां नहीं खोलेंगे। क्योंकि वाल्ट के कंट्रोलरूम में अलार्म बज उठेगा। ऐसी सिक्योरिटी का सिस्टम ज्यादा से ज्यादा एक किलोमीटर की रेंज में होगा। उसके बाद हम कहीं भी तिजोरी खोल सकते हैं। हमारे पास तब वक्त ही वक्त होगा। बेहतर तो होगा कि तिजोरी को हम अपनी किसी सुरक्षित जगह पर ले जाएं और उसे वहां खोला जाए।"

"ठीक कहते हो। तिजोरी हमारे पास होगी तो फिर उसे जल्दी खोलें या देर में कोई फर्क नहीं पड़ता।" हर्षा यादव कह उठा--- "क्योंकि हमें तो उस दवा से मतलब है, जो भीतर है। उसे जॉर्ज लूथरा के हाथों में नहीं पड़ना चाहिए।"

देवराज चौहान ने हर्षा यादव को देखा।

"वो दवा कैसे बेकार की जाएगी?" देवराज चौहान ने पूछा।

"वो दवा सिर्फ पानी में असर करती है। उसे बेकार करने के लिए जमीन पर गिरा देना ही काफी है।" हर्षा यादव बोला।

देवराज चौहान ने कश लिया। कहा कुछ नहीं।

"तुमने सब कुछ आसानी से कह दिया। इतनी बड़ी डकैती की योजना को चंद शब्दों में कह दिया।" मीनाक्षी बोली--- "कहने और करने में बहुत फर्क होता है। जब इस योजना पर चलेंगे तो कई मुसीबत भरी बातें सामने आ सकती हैं।"

"हां, ऐसा अक्सर होता है कि आसमानी विपदा की तरह मौके पर मुसीबत सामने आ खड़ी होती है। हम अपनी योजना बनाकर, उसे अंजाम दे रहे हैं। योजना में कभी भी अचानक आने वाली मुसीबतों को शामिल नहीं किया जाता। ऐसी मुसीबतों का खड़े पांव ही हल निकाला जाता है।"

"हम उन मुसीबतों के बारे में सोचें, जो हमारे सामने आ सकती है।" मीनाक्षी ने कहा।

देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा।

"ऐसी मुसीबतों का ना तो कोई नाम होता है और न ही कोई पहचान होती है। ये अचानक सामने आती है और हमें भी अचानक ही उसका मुकाबला करके, सब कुछ संभालना पड़ता है। इस बात का अंदाजा लगा पाना संभव ही नहीं है कि कैसी मुसीबतें सामने आ सकती है। हम दस मुसीबतों का अंदाज लगा लेंगे लेकिन जो मुसीबत सामने आएगी, उसके बारे में हमने सोचा ही नहीं होगा। इसलिए इस बारे में सोचना बेकार है कि काम के दौरान कोई गड़बड़ होगी तो वो कैसी गड़बड़ होगी।"

जवाब में मीनाक्षी सिर हिलाकर रह गई।

हर्षा यादव सोचों में डूबा नजर आया।

"तुम क्या सोच रहे हो हर्षा ?" मीनाक्षी ने पूछा।

"मैं!" हर्षा यादव सोच से बाहर निकलता कह उठा--- "मैं सोच रहा हूं कि जब शो-रूम की और स्ट्रांगरूम वाली दीवारें तोड़ी जा रही होंगी तो कितना शोर होगा। क्या वाल्ट के भीतर तक उनकी आवाज जाएगी।"

"दीवारें तोड़ने में ऐसा कोई शोर नहीं होगा। दीवार एक बार टूटनी शुरू हो जाए तो सारी दीवार बिना शोर के तोड़ी जा सकती है।" जगमोहन धीमे स्वर में कह उठा--- "दीवार में ईंटे लगी होती हैं। सिर्फ हाथ की चोट मारकर भी एक-एक करके ईंटों को निकाला जा सकता है, अगर ज्यादा सावधानी की जरूरत हो तो जबकि वहां थोड़ी-बहुत आवाज भी चलेगी ।"

हर्षा यादव ने होंठ सिकोड़कर सिर हिला दिया।

"एक बात बताओ।" जगमोहन पुनः कह उठा--- "तुम ये सब सिर्फ दवा के लिए कर रहे हो?"

"हां!"

"उस तिजोरी में दवा के अलावा अगर कोई और चीज हो तो वो मैं ले लूंगा। तुम्हें एतराज ?"

"नहीं।"

"अपनी बात पर कायम रहना।"

"कायम रहूंगा।" हर्षा यादव ने गंभीर निगाहों से उसे देखा--- "तुम सोचते हो कि उसमें दौलत होगी।"

"कुछ तो होगा। कम से कम दस का एक नोट तो पड़ा होगा। यानी कि उसमें दवा के अलावा जो होगा। मेरा होगा। उसमें से तुम कुछ नहीं मांगोगे।" जगमोहन ने बात पक्की करने वाले ढंग में कहा।

"मंजूर है।" हर्षा यादव ने कोई एतराज नहीं किया।

मीनाक्षी सोच भरे स्वर में कह उठी।

"मेरे ख्याल में अभी योजना पूरी नहीं हुई। हमें इस पर पुनः बात करनी चाहिए। ऐसे में कई नई बातें सामने आएंगी, जो कि हमारे काम करने में सहायक बन जाएगी।"

"इस योजना की पक्की रूप-रेखा तो अब तैयार करनी है। इस पर बात करनी है अभी।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैंने तो मोटे तौर पर ये बताया कि किस तरह हम वाल्ट के स्ट्रांगरूम में पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं।"

उसके बाद योजना को पक्का बनाने के लिए उनकी बातें होने लगी।

पूरी तरह योजना बनाते-बनाते उन्हें सुबह के चार बज गए।

चारों को तसल्ली थी कि वो सही ढंग से आगे बढ़ रहे हैं। स्ट्रांगरूम तक पहुंचने की योजना इस हद तक पूरी बना ली गई कि वे जब भी चाहें, उस पर काम कर सकें।

"इस योजना पर हम आने वाली रात काम न करके, उससे अगली रात काम करेंगे।" देवराज चौहान बोला।

"मेरे ख्याल में तो इस पर कल रात ही काम कर देना चाहिए। क्यों देर...!" मीनाक्षी ने कहना चाहा।

"हमें उस सामान को इकट्ठा करना है जो कि डकैती के दौरान इस्तेमाल होगा। इसमें वक्त लगेगा। काम को जल्दी न करके पक्के तौर पर करना बेहतर रहता है।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"ठीक कहते हो कि हमें जल्दी नहीं करनी चाहिए।" हर्षा यादव गंभीर स्वर में कह उठा--- "डकैती में इस्तेमाल होने वाला सामान इकट्ठा करना है। साथ ही अब सुबह हो रही है। आने वाली रात तक नींद लेकर हम फ्रेश नहीं हो सकते। एक रात छोड़कर, अगली रात ही काम करना बेहतर रहेगा। तुम अब दोबारा कब मिलोगे हमसे ?"

"शाम को फोन पर बात हो जाएगी। आज मिलने की जरूरत नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "हम कल मिलेंगे। दोपहर बाद आ जाएंगे। जो जरूरी बातें करनी होगी, वो हो जाएंगी। फिर हम शाम को आठ बजे यहां से सब निकलेंगे। भीतर जाने के लिए हम तीन तो है ही। एक मेरा साथी और आ जाएगा।"

"जैसा तुम ठीक समझो। जो करना है तुमने करना है।" हर्षा यादव तसल्ली भरे स्वर में कह उठा--- "शाम को हम तुम्हारे फोन का इंतजार करेंगे।"

उसके बाद देवराज चौहान और जगमोहन वहां से चले आए।

■■■

स्क्रीन पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। स्रो ही चमक रही थी। वो उसके सामने थका सा कुर्सी पर सिर पर हैडफोन लगाए बैठा था। हैडफोन के जरिए उनकी बातों का एक-एक शब्द सुन रहा था। जब देवराज चौहान और जगमोहन वहां से गए तो उसने घड़ीनुमा ट्रांसमीटर ऑन करके बात की।

"मैं बोल रहा हूं।"

"कहो।"

"देवराज चौहान-जगमोहन, हर्षा यादव और मीनाक्षी के पास हैं। उन लोगों ने रॉयल वाल्ट के स्ट्रांगरूम में पहुंचने के लिए योजना बनाई है। वो लोग स्ट्रांगरूम में मौजूद तिजोरी की डकैती करना चाहते हैं। उस तिजोरी में कोई दवा है जो...।"

"तुमने उनकी पूरी योजना सुनी?" उधर से आती आवाज घड़ीनुमा ट्रांसमीटर से निकली।

"हां।"

"मुझे पूरी योजना सिलसिलेवार बताओ।"

"ठीक है, मैं...!"

"ये योजना देवराज चौहान ने बनाई है या हर्षा यादव ने?"

"देवराज चौहान ने।""

"ठीक है, बोलो।"

वो स्ट्रांगरूम तक पहुंचने की देवराज चौहान की योजना बताने लगा।

दस मिनट लगे उसे योजना बताने में।

"हूं।" उधर से ट्रांसमीटर में से आवाज आई--- "तो आज रात छोड़कर डकैती अगली रात की जाएगी?"

"हां, उन लोगों में ये ही तय हुआ है। फाइनल फोन शाम को देवराज चौहान और जगमोहन करेंगे।"

"तुम्हें सुनना है कि फोन पर हर्षा यादव क्या कहता है। उसी से पता चल जाएगा कि देवराज चौहान ने क्या कहा?"

"समझ गया।"

"अपनी जगह पर किसी दूसरे को समझाकर बिठा दो। तुम थक चुके होगे।"

"हां, दोपहर के लिए किसी दूसरे को बिठाता हूं। उसके बाद मैं ये जगह ले लूंगा। शाम को देवराज चौहान की हर्षा यादव से जो बात होनी है, वो मेरा सुनना ही ठीक रहेगा। दूसरे से सुनने में गलती हो सकती है।"

"जैसा तुम ठीक समझो।"

इसके साथ ही उनकी बातचीत बंद हो गई।

■■■

ग्यारह बजे ही देवराज चौहान की आंख खुली। उसने बगल में सोए पड़े जगमोहन को उठाया।

"डकैती में इस्तेमाल होने वाला सामान लाना है। लिस्ट तैयार करो। पूरा सामान इकट्ठा करने के लिए कम से कम एक दिन चाहिए।"

"नहा-धोकर निकल जाता हूं।" जगमोहन ने कहा और सोहनलाल को आवाज लगाई।

सोहनलाल पलों में सामने था।

"क्या हुआ?"

"तेरे यहां मेहमान बने बैठे हैं। कम से कम बेड टी तो पिला दे।" जगमोहन ने मुंह बनाया।

"बेड टी तो क्या, बढ़िया परांठे भी बनाकर खिलाता हूं। नहा-धो लो।"

"अभी तो तू चाय पिला और वो, राजन को कुछ खाने को दिया।"

"उसे खिला-पिलाकर फिर से बांध दिया है। मैं चाय लाता हूं।" सोहनलाल जाने लगा।

"सुन।"

सोहनलाल ठिठका।

"तूने मेरा ढाई लाख देना है।"

"बासी बातें मत किया कर।"

"बासी!"

"और क्या ?" सोहनलाल ने बोरियत भरे स्वर में कहा--- "ढाई साल से ये बात सुन रहा हूं।"

"बहुत ढीठ है। ढाई साल से सुन रहा है। मानता भी है और देता भी नहीं।" जगमोहन ने उसे घूरा।

"तू कहता है, मैं देने की हां कर देता हूं। कभी इन्कार तो नहीं किया। ये तो नहीं कहा कि नहीं देना।"

"तेरे हां कह देने से ढाई लाख मुझे मिल जाएगा।"

"मेरे हां कहने से तेरे को शान्ति तो मिलती है कि तू लेनदार है। देने वाला देने से इन्कार नहीं करता।"

"तू मेरे को बेवकूफ...!"

"चाय पीनी है तेरे को। परांठे खाने हैं?"

"हां।"

"तो पहले ये काम कर ले। ढाई लाख वाली बात तो चलती रहेगी।" सोहनलाल बाहर निकल गया।

देवराज चौहान बैड की पुश्त से सिर टिकाए कश ले रहा था।

जगमोहन ने देवराज चौहान पर नजर मारकर कहा।

"हम इतनी मेहनत खामखाह कर रहे हैं। स्ट्रांगरूम में पहुंचना और हाथ कुछ लगना नहीं।"

"तुम दौलत की बात कर रहे हो।"

"अपने काम की तो यही बात...!"

"कभी-कभी ऐसे काम भी करने पड़ते हैं, जो सिर्फ दूसरों के लिए होते हैं। उसमें अपना फायदा नहीं देखा जाता।"

देवराज चौहान की बात पर जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।

"तुम सामान की लिस्ट तैयार करो।"

जगमोहन दूसरे कमरे से कागज-पैन ले आया।

देवराज चौहान उसे सामान नोट करवाने लगा।

सोहनलाल चाय ले आया। वो जान चुका था कि क्या काम किया जाना है।

"तुम चलना साथ में ये सामान लाना है।" जगमोहन बोला--- "यहां बैठकर क्या करेगा। राजन के पास देवराज चौहान है। राजन की जरूरत देवराज चौहान देख लेगा।"

"सामान तो आ जाएगा। जो भी उसका इंतजाम तो मैं आधी रात को भी कर दूंगा।" सोहनलाल दोनों को चाय के प्याले थमाता हुआ बोला--- "इस वक्त सबसे पहले राजन के बीवी-बच्चों को यहां लाना है। आखिर राजन को कब तक हम बांधकर यहां रखेंगे। उसकी देखभाल करते रहेंगे। उसके लिए हर वक्त एक को यहां मौजूद रहना पड़ता है।"

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

"पहले ये काम कर लो। उसके बीवी-बच्चों को यहां छोड़कर, सामान का इंतजाम करने चले जाना।"

"एक घंटे तक यहां से निकलेंगे। नाश्ता तैयार कर देता हूं। तुम जल्दी से नहा लो।" कहकर सोहनलाल बाहर निकल गया।

"साला ! औरतों की तरह हुक्म चलाने लगा है।" जगमोहन बड़बड़ाया--- "नाश्ता बनाएगा तो ऐसे ही बोलेगा।"

■■■

भीड़ भरे बाजार में जगमोहन ने सड़क के किनारे रोमा रेस्टोरेंट के करीब कार रोक दी।

"मैं होकर आता हूं।" सोहनलाल दरवाजा खोलते हुए बोला।

"मेरी जरूरत है ?"

"मेरे ख्याल में नहीं। फिर भी तू गली में नजर रख। अपने पति के एक्सीडेंट की बात सुनकर कोई भी औरत रुकेगी नहीं।" सोहनलाल कार से बाहर निकला और दरवाजा बंद करके गली में प्रवेश करता चला गया।

जगमोहन भी कार से बाहर आ गया। गली के किनारे खड़ा हो गया। भीड़ भरा बाजार होने की वजह से कोई किसी तरफ ध्यान नहीं दे रहा था। सब जैसे भाग-दौड़ करके आगे निकल जाना चाहते थे।

सोहनलाल राजन के मकान के पास पहुंचा। कल वो देख ही चुका था कि अड़तीस नम्बर मकान यही है। बाहर नम्बर भी नहीं लिखा था। इस वक्त दरवाजा खुला था।

सोहनलाल ने दरवाजा थपथपाया।

भीतर, पास ही बत्तीस-तैंतीस बरस की औरत बैठी थी। उसने सिर आगे करके वहां खड़े सोहनलाल को देखा तो सोहनलाल ने हाथ जोड़कर नमस्कार की।

"राजन साहब का घर यही है ?"

वो औरत फौरन उठ गई। चेहरे से परेशान लग रही थी। भीतर के कमरों से बच्चों की और टी.वी. चलने की आवाजें आ रही थीं।

"जी हां।" औरत ने कहा--- "आप कौन हैं?"

"मैं तो कोई भी नहीं। हमदर्दी के नाते आ गया।" सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा--- "राजन साहब का दो दिन पहले एक्सीडेंट हो गया था। वो...!"

"कहां है राजन... !" औरत बेसब्र हो उठी--- "वो ठीक तो है। मैं उन्हें तलाश करते परेशान...!"

"चिन्ता मत कीजिए। सब ठीक है। होश आने पर उन्होंने अपने घर का पता बताकर कहा, यहां उसकी पत्नी और दो बच्चे हैं। उन्हें खबर कर दूं कि वो हस्पताल में हैं। आपका नाम भी बताया था लेकिन भूल गया।"

"विम्मी!"

"हां, विम्मी!" सोहनलाल ने ऐसे भाव दिखाए, जैसे याद आ गया हो--- "आप कहें तो मैं आपको राजन साहब के पास...!"

"हां, मैं अभी चलती हूं। सिर्फ दो मिनट भाई साहब।"

उसके बाद तो विम्मी ने देर नहीं लगाई। जो कपड़े वो पहने थी, उन्हीं कपड़ों में उसने बच्चों को साथ लिया। एक लड़का ग्यारह साल का था, दूसरा आठ का। देखते ही देखते उसने ताला बंद किया और बोली।

"चलिए भाई साहब। राजन के पास, मुझे पहुंचाने का बहुत-बहुत शुक्रिया आपका !"

"आप जरा भी फिक्र मत कीजिए।" सोहनलाल गली में आगे बढ़ते हुए बोला--- "राजन साहब बिल्कुल ठीक हैं। एक-दो दिन में डॉक्टर साहब छुट्टी दे देंगे। सच बात तो ये है कि मैंने एक रात उन्हें सड़क के किनारे बेहोश पड़ा पाया। हमदर्दी के नाते उन्हें अपने घर ले आया और डॉक्टर को बुला लिया। हस्पताल इसलिए नहीं ले गया कि पुलिस मुझे परेशान करेगी। उधर उसे संभालने वाला भी कोई नहीं था। मेरे को उसके घर का पता नहीं था तब कि आपको खबर कर देता। अब होश आया तो उसने अपने घर का पता दिया। इस वक्त वो मेरे घर आराम कर रहा है। डॉक्टर उसे दवा दे जाता है। फिक्र की तो कोई बात नहीं।"

"आप तो भगवान हैं मेरे लिए! मैं...।"

"कैसी बात करती हैं। इन्सान ही इन्सान के काम आता है। मैं राजन साहब के काम आया। अब आपके काम आ रहा हूं कि आप अपने पति को लेकर परेशान थीं कि वो कहां चला गया। मैं आपको आपके पति के पास ले जा रहा हूं। ये सब तो चलता ही रहता है। क्या आप कभी किसी के काम नहीं आईं?"

"आई।"

"इसी तरह आज मैं आपके काम आ रहा हूं। मामूली बात है।"

वे गली के बाहर तक आ पहुंचे।

"ये कार खड़ी है आपको लेने के लिए। खासतौर से दोस्त की कार लाया हूं। बैठिए।" सोहनलाल ने पीछे का दरवाजा खोला।

विम्मी दोनों बच्चों को लेकर भीतर बैठ गई।

सोहनलाल ने आगे वाला दरवाजा खोला और भीतर जा बैठा। जगमोहन पहले से ही ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था। उसने कार आगे बढ़ा दी।

"कितनी देर का रास्ता है भाई साहब ?" विम्मी बोली।

"आधा घंटा लगेगा और आप अपने पति के पास होंगी।" सोहनलाल का स्वर शांत था--- "बच्चे आपके दोनों बहुत प्यारे हैं, पढ़ते होंगे?"

"जी हां।"

"राजन साहब काम क्या करते हैं ?"

विम्मी ने कुछ नहीं कहा। चेहरे पर हिचकिचाहट उभरी।

"बिजनेस करते हैं?" सोहनलाल ने पुनः पूछा।

"यूं ही इधर-उधर का काम करके घर चलाते हैं।" विम्मी के जवाब देने के ढंग से पता चल गया कि वो राजन के काम के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती। यानी कि वो जानती थी कि राजन गैरकानूनी काम करता है।

■■■

दरवाजा देवराज चौहान ने खोला । सामने उन लोगों को देखकर पीछे हट गया।

"आइए-आइए।" सोहनलाल भीतर प्रवेश करता हुआ बोला--- "वो उधर उस कमरे में आपके पति हैं।''

विम्मी बिना कुछ कहे बच्चों के साथ तेजी से उस तरफ बढ़ गई।

उस कमरे में पहुंचते ही वो ठिठकी। बैड खाली था। हर तरफ उसकी निगाह गई। तभी उसे लगा कि बैड के उस पार फर्श पर कोई पड़ा है। बैड घूमकर उधर पहुंची तो राजन को बंधे पाकर हड़बड़ा उठी।

"ये क्या---आपको तो बांध रखा है !"

राजन के दांत भिंच गए, विम्मी और दोनों बच्चों को वहां देखकर !

"पापा!"

"पापा आपको किसने बांधा है ?"

विम्मी उसके पास ही बैठ गई। स्वर भर्रा उठा।

"क्या हुआ---क्या बात है जो...?"

"तुम यहां कैसे आई बच्चों को लेकर ?"

"एक आदमी मुझे लेकर आया है। वो कह रहा था कि आपका एक्सीडेंट हो गया है। आप उसके घर पर हैं। उधर मैं तीन दिन से आपकी तलाश में परेशान थी। आपने घर फोन नहीं किया और मैं जब भी आपके मोबाइल पर फोन करती तो नम्बर नहीं मिलता। जाने आपके फोन को क्या हो गया है।" कहते-कहते विम्मी ठिठकी--- "बात क्या है। इन लोगों ने आपको क्यों बांध रखा है। इस तरह झूठ बोलकर ये हमें क्यों यहां लेकर आए ?"

"ये मेरे से कुछ पूछना चाहते हैं!"

"तो बता दीजिए।"

"इनके सवालों का जवाब दिया तो मैं जिसके लिए काम करता हूं, वो गुस्से में तुम लोगों को मार देगा।"

"मैंने कितनी बार कहा है कि ये गलत काम छोड़ दीजिए। लेकिन मेरी तो सुनते नहीं जो...!"

"अब ये वक्त इन बातों का नहीं है।" राजन दांत भींचकर कह उठा--- "ये लोग तुम्हें और बच्चों को इसलिए यहां लाए हैं कि मैं इनकी बातों का जवाब दूं। नहीं दूंगा तो ये तुम्हें-बच्चों को मार देंगे ।"

"ये भी तो हो सकता है कि यूं ही कह रहे हों। हमें यहां लाने वाला तो शरीफ लगा जो...!"

"चुप रहो। किसी के माथे पर कुछ नहीं लिखा होता !" राजन ने दांत भींचकर कहा--- "बहुत खतरनाक लोग हैं ये। माना हुआ हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर है। ये चाहे तो...!"

तभी उनके कानों में कदमों की आहटें पड़ीं।

देखते ही देखते सोहनलाल और जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया। उनके रंग-ढंग में तीखे भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। सोहनलाल के हाथ में खुला चाकू था और जगमोहन के हाथ में रिवॉल्वर ।

"नहीं!" विम्मी की आंखों से आंसू निकल पड़े--- "इन्हें मत मारिए। मैं...!"

सोहनलाल ने उसकी बांह पकड़कर पीछे किया और राजन के बंधन चाकू से काटने लगा।

"अंकल, मेरे पापा को मत मारिए।" आठ बरस का मासूम बच्चा, भोलेपन से कह उठा।

"जो लोग बुरे काम करते हैं, वो एक दिन इसी तरह मरते हैं।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा--- "तेरे पापा को मालूम होना चाहिए कि जो काम ये करता है, ऐसे में कोई भी इसे मार देगा।"

सोहनलाल ने उसके बंधन काट दिए और पीछे हट गया। राजन बंधनों से आजाद होते ही अपने हाथ-पांव मसलने लगा। दो दिन से बंधे रहने के कारण वो अपने शरीर में काफी कमजोरी महसूस कर रहा था। उसकी गंभीर निगाह बारी-बारी सब पर फिर रही थी।

"भगवान के लिए मेरे पति को...!" कहते हुए विम्मी हाथ जोड़कर आगे आ गई।

तभी जगमोहन ने सख्त स्वर में टोका।

"मैडम, पीछे हो जाओ और बीच में आने की चेष्टा मत करो।"

"इन्हें मत मारो।"

"चुपचाप पीछे हट जाओ।" जगमोहन गुर्राया--- "हमें अपने सवालों का जवाब चाहिए। ये खुद मरने को तैयार है, लेकिन सवालों का जवाब देने को तैयार नहीं। इसलिए तुम लोगों को लाना पड़ा। अब भी ये जवाब नहीं देता तो परवाह नहीं। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है बरबाद करने को। इसे तो हम कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन तुम्हें और दोनों बच्चों को मार देंगे। सारी उम्र ये जिन्दा रहेगा और जुबान बंद रखने की सजा भुगतता रहेगा।"

विम्मी की आंखों से आंसू बह निकले। उसने दोनों बच्चों को कसकर थाम लिया।

राजन नीचे से उठा और बैड के किनारे पर बैठ गया। वो कमजोरी महसूस कर रहा था।

उसी पल देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया। सब पर निगाह मारकर सख्त स्वर में पूछा।

"ये मुंह खोल रहा है या नहीं?"

"अभी पूछा नहीं।" जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली।

"वक्त क्यों बरबाद करते हो।" देवराज चौहान राजन की तरफ बढ़ता हुआ बोला--- "अगर नहीं जवाब देता तो इसके बीवी-बच्चों को शूट कर दो। सिर्फ तीन बार इससे पूछना है। पहली बार इन्कार करे तो इसके एक बच्चे को मारो। दूसरी बार इन्कार करे तो दूसरे बच्चे को मारो। तीसरी बार भी न बताए तो इसकी पत्नी के सिर से रिवॉल्वर की नाल लगाकर ट्रेगर दबा दो और इसे बेहोश करके बाहर किसी सड़क पर...!"

"आप बता क्यों नहीं देते जो ये पूछना चाहते हैं।" विम्मी रोते हुए कह उठी।

राजन ने विम्मी को देखा। सिर झुका लिया।

"तुम लोगों को बचाने की खातिर ही मैंने मुंह बंद रखा है।" राजन का स्वर धीमा था।

"अब बचा लो इन्हें।" जगमोहन ने दरिन्दगी से कहा--- "हम इन्हें मारने जा रहे हैं और अब इन्हें बचाने की कीमत तेरा मुंह खोलना होगा। मुंह बंद रखने से तेरे बीवी-बच्चे मरेंगे।"

राजन ने नजरें उठाकर विम्मी और अपने दोनों बच्चों को देखा, फिर अन्यों को।

"तुम लोगों को सब बताकर, अब मुंह खोल दूंगा। बच्चों को बचा लूंगा लेकिन बाद में वे लोग मेरी पत्नी और बच्चों को मार देंगे।" राजन के स्वर में जान नहीं थी।

"बेकार की बातें छोड़ो।" देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर उसके सिर के बाल मुट्ठी में पकड़े और चेहरा ऊपर किया।

देवराज चौहान के चेहरे पर वहशी भाव छा चुके--- "मुंह खोलते हो या...!"

राजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वो एकटक देवराज चौहान के खतरनाक चेहरे को देख रहा था।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखकर कहा।

"मैं अब इससे पहली बार पूछ रहा हूं। ये इन्कार करे तो इसके एक बेटे को गोली मार देना।"

"नहीं!" विम्मी दहशत से चीख उठी।

"प्लीज, मेरे बच्चों को मत मारना।" राजन के होंठों से कांपता स्वर निकला।

देवराज चौहान की निगाह पुनः राजन के पीले पड़ रहे चेहरे पर जा टिकी।

"बोल। तेरे को किसने मेरे पीछे लगाया। कहां से तू मेरे पीछे लगा और पीछा करने का मकसद क्या...?"

"देवराज चौहान !" राजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा--- "जल्दबाजी मत करो। अपने बीवी-बच्चों को बचाने की खातिर, तुम्हारे इस सवाल का जवाब दे दूंगा। लेकिन वो लोग बाद में...!"

"बाद की बात बाद में, अब की बात करो। उधर जगमोहन तैयार है। वो किसी भी वक्त...!"

"उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।"

देवराज चौहान वहशी निगाहों से उसे देखता रहा, फिर उसके सिर के बालों को छोड़कर वो पीछे हटा और राजन को घूरते हुए सिगरेट सुलगाई और कश लिया।

"कहां से शुरू करेगा।"

राजन होंठ भींचे सोच में लगा रहा।

पैना सन्नाटा छा गया था वहां ।

विम्मी ने दोनों बच्चों को दोनों बांह में जकड़ रखा था। वो डरकर कांप रही थी।

तभी सोहनलाल कड़वे स्वर में कह उठा।

"वो देख---अपनी बीवी को, बच्चों को। उनकी हालत, उनके चेहरे देख..। अक्ल से काम ले।"

राजन ने उन्हें नहीं देखा। वो गंभीर और परेशानी में लग रहा था।

"मैं सब कुछ बता दूंगा। इस तरह कि तुम लोगों को कुछ भी नहीं पूछना पड़ेगा।" राजन ने धीमे-चिन्ता भरे स्वर में कहा--- "मुझे सिर्फ इतना बता दो कि उन लोगों से मैं अपने को और अपने परिवार को कैसे बचाऊंगा। वे लोग बहुत खतरनाक...!"

"जब तक तुम मुंह नहीं खोलोगे, उनके बारे में नहीं बताओगे। तब तक हम तुम्हें कोई सलाह नहीं दे सकते।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा--- "बात लम्बी न करके, काम की बात बोलो। हमारी बातों का जवाब दे रहे हो या नहीं?"

बेचैनी भरी नजरों से राजन ने देवराज चौहान को देखते हुए सहमति में सिर हिलाया।

सबकी निगाह राजन पर जा टिकी।

"कोशिश करना कि सब कुछ इस तरह बताना कि हमें कुछ पूछना न पड़े।"

चंद पलों की खामोशी के बाद राजन थके से स्वर में कह उठा।

"मैं ठीक से नहीं जानता कि असल में मैं किसके लिए काम करता हूं। जो मुझसे काम लेता है और जो पैसा देता है, मैं सिर्फ उसे जानता हूं। ढींगड़ा कहते हैं उसे। पांच सालों से मैं उसके लिए काम कर रहा हूं। वो मुझे हर महीने तीस हजार रुपया देता है। बदले में ढींगड़ा कैसा भी काम कहे, मुझे करना होगा। सिर्फ हत्या करना नहीं है मेरे काम में। लेकिन मैं जानता हूं कि ढींगड़ा ही असल आदमी नहीं है। उसके ऊपर कोई है, जिससे उसे काम के आदेश मिलते हैं और वो मेरे जैसे दस-बीस आदमियों को जो कि उसने रखे हुए हैं, आदमियों को काम करने को कह देता है।"

"ढींगड़ा किसके इशारे पर काम करता है?" देवराज चौहान ने पूछा।

राजन कुछ पलों तक देवराज चौहान को देखता रहा, फिर बोला ।

"यूं तो मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। ये बातें मालूम करना भी खतरनाक है। परंतु इन बातों को छिपाया भी नहीं जा सकता। बात बाहर आ ही जाती है।" राजन का व्याकुल स्वर धीमा हो गया--- "मेरे ख्याल से ढींगड़ा, जॉर्ज लूथरा जैसे खतरनाक आतंकवादी के लिए काम करता है।"

जवाब में देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

"आगे कहो।"

"उस दिन दोपहर का वक्त था, जब ढींगड़ा की तरफ से फोन पर आदेश मिला कि मैं एक खास जगह पर पहुंच जाऊं। वहां पर तुम्हारी कार का नम्बर बताया गया और नाम भी कि तुम्हारा नाम देवराज चौहान है। साथ में तुम्हारा साथी जगमोहन होगा। तब...!"

"कहां की बात कर रहे हो तुम?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।

"वहां की, जहां तुमसे हर्षा यादव टकराया था।"

"मतलब कि ढींगड़ा ने तुम्हें कहा कि वहां पर मेरी कार होगी। मैं मिलूंगा। मेरे साथ जगमोहन भी होगा।"

"हां, और ये भी कहा कि वहां हर्षा यादव की देवराज चौहान से मुलाकात होगी। उसने ये भी कहा कि इस बात के बहुत चांस हैं कि देवराज चौहान हर्षा यादव को अपने साथ ले जाएगा। उस स्थिति में मैंने तुम्हारा पीछा करना है। तुम पर नजर रखनी है। तुम कहां-कहां जाते हो, पूरी रिपोर्ट उसे फोन पर देनी है।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

दोनों के चेहरों पर उलझन से भरे भाव नजर आ रहे थे।

"ढींगड़ा को कैसे मालूम हुआ कि हम वहां पर होंगे?"

"मालूम नहीं। "

"ढींगड़ा कैसे जानता था कि हर्षा यादव की वहां मेरे से मुलाकात होगी। वो मुझसे टकराएगा या कैसे भी मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगा।" देवराज चौहान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

"ऐसी किसी बात का जवाब मेरे पास नहीं है। जो मुझे कहा गया, वो ही मैं बता रहा हूं। जो मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं, वो खुद ही बता रहा हूं।" राजन की निगाह देवराज चौहान के उलझन भरे चेहरे पर थी।

सोहनलाल हैरानी से कह उठा।

"मेरी समझ में नहीं आ रहा कि बाहर का आदमी कैसे जान सकता है कि तुम लोग कहां जाने वाले हो। कहां रुकोगे । वहां पर तुम कार के बाहर फुटपाथ पर खड़े होओगे और तब हर्षा यादव तुमसे टकराएगा।"

"ये सवाल तो सच में हैरानी भरा है।" जगमोहन के होंठों से निकला--- "हमने तो किसी से बात नहीं की थी कि हमने उधर जाना है, फिर कोई कैसे जान सकता है कि...!"

"जिससे हमने मिलना था, उससे तो मालूम हो सकता है।" देवराज चौहान बोला।

जगमोहन के होंठ सिकुड़ गए।

"तुम्हारा मतलब कि दीदार सिंह ने ढींगड़ा को बताया होगा कि हमने उसके पास आना है?"

"हां, इसके अलावा ढींगड़ा को कहीं से भी कुछ भी मालूम नहीं हो सकता। ये बात दीदार सिंह ने या तो खासतौर से ढोंगड़ा से कही होगी या फिर यूं ही रवानगी में उसके मुंह से निकल गया होगा। वो दोनों एक-दूसरे को जानते अवश्य हैं।" देवराज चौहान ने कहा और राजन को देखा--- "तुम कहो।"

"जब तुम हर्षा यादव को अपनी कार में लेकर चले तो मैं तुम्हारे पीछे लग गया। इस काम में मेरा एक साथी भी था। उसके बाद तुम दोनों जहां-जहां जाते रहे। मैं ढींगड़ा को रिपोर्ट देता रहा। उसके बाद तुमने मुझ पर काबू पाकर कैद कर लिया।" राजन ने धीमे स्वर में कहा।

"ढींगड़ा का और हर्षा यादव का कोई संबंध है?"

"हर्षा यादव के बारे में तो सुन रखा है कि वो जॉर्ज लूथरा से जुड़ा है। जब मुझे ढींगड़ा के आदेश मिले तो ये भी पता चल गया था कि जॉर्ज लूथरा से उसकी खट-पट हो गई है। हर्षा यादव को खत्म करने के लिए उसके आदमी ढूंढ रहे हैं, परंतु सोचों में ये भी आया कि उधर ढींगड़ा भी हर्षा यादव के लिए काम करता है। ऐसे में हर्षा यादव को ढूंढने के लिए आदमी दौड़ाने की क्या जरूरत है। ढींगड़ा जानता तो है कि हर्षा यादव कहां पर है ? लेकिन मुझे इससे क्या---मैं वो काम करता रहा जो मुझे करने को कहा गया था।"

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।

सोहनलाल आंखें सिकोड़े बारी-बारी दोनों को देख रहा था।

"क्या चक्कर है ?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"वो ही समझने की चेष्टा कर रहा हूं।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली--- "हर्षा यादव भी जॉर्ज लूथरा का आदमी। ढींगड़ा भी जॉर्ज लूथरा का आदमी। जॉर्ज लूथरा के आदमी हर्षा यादव और मीनाक्षी की हत्या करने के लिए जगह-जगह उन्हें तलाश कर रहे हैं। उधर ढींगरा अपने आदमियों द्वारा हर्षा यादव की निगरानी करवा रहा है। ढींगरा ये भी जानता था कि मैं, तुम्हारे साथ दीदार सिंह के पास जाऊंगा और कार वहां खड़ी करूंगा। मैं कार के पास रहूंगा और जगमोहन दीदार सिंह के पास जाएगा। लेकिन वो ये कैसे जानता था कि वहां हर्षा यादव दौड़ता हुआ आएगा और मेरे से टकराएगा। मैं उसे बचाऊंगा। अपने साथ ले जाऊंगा। तब राजन नजर रखने के लिए मेरे पीछे लग जाएगा। इनमें कई बातें हैं, जो मेरी समझ में नहीं आ रही।"

"हो सकता है। " सोहनलाल की निगाह राजन पर जा टिकी--- "ये कुछ झूठ बोल रहा हो।"

"मैं!" राजन के होंठों से निकला।

"क्यों--क्या तुम झूठ नहीं बोल सकते ?" सोहनलाल ने चुभते स्वर में कहा।

"क्यों नहीं बोल सकता।" राजन ने फीके स्वर में कहा--- "लेकिन इस वक्त मैं झूठ या चालाकी दिखाने की स्थिति में नहीं हूं। मैं, मेरी पत्नी और बच्चे तुम लोगों के कब्जे में हैं। ऐसे में मैं झूठ बोलने की सोच भी नहीं सकता।"

"अगर तुम्हारी कोई बात झूठ निकली तो?" देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से उसे देखा।

"मैंने झूठ नहीं बोला !" राजन का बेचैन स्वर दृढ़ता भरा था।

"इस पर नजर रखो।" देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ बोला--- "मैं फोन करके आता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बाहर निकलता चला गया।

देवराज चौहान ने टेबल पर पड़ा सोहनलाल का मोबाइल फोन उठाकर दीदारसिंह के मोबाइल फोन का नम्बर मिलाया । बेल होने के कुछ पलों बाद, दीदार सिंह की आवाज कानों में पड़ी।

"कौन?"

"दीदार सिंह!"

कुछ पलों की खामोशी के बाद उसके कानों में दीदार सिंह का शांत स्वर पड़ा।

"देवराज चौहान !"

"हां।"

"जगमोहन से मेरी बात हो गई थी। अब तो हमारे में सब ठीक है।" दीदार सिंह के शब्द कानों में पड़े।

"दूसरी बात के लिए फोन किया है। जो कहना सोच-समझकर ठीक-ठीक कहना।"

"ठीक कहूंगा। बता...।"

"मैंने और जगमोहन ने उस दिन तेरे पास आना था। तू जानता था। मैंने तेरे को कह रखा था कि मैं बाहर रहूंगा। जगमोहन बात करेगा। जगमोहन से बात नहीं बनी तो फिर मैं तुम्हारे सामने आऊंगा। तुम जानते थे कि मैं बाहर कार के पास जगमोहन के इन्तजार में रहूंगा।"

"हां!" दीदार सिंह की आवाज में इस बार उलझन थी--- "बात क्या है?"

"तूने किसी को बताया कि मैंने और जगमोहन ने तेरे पास आना है। जगमोहन तेरे पास जाएगा और मैं बाहर कार के पास जगमोहन की वापसी के इंतजार में खड़ा रहूंगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत और गंभीर था।

दीदार सिंह की तरफ से आवाज नहीं आई।

"क्या सोच रहे हो?" देवराज चौहान ने पुनः कहा।

"कुछ बताओगे कि बात क्या है ?"

"जो मैंने पूछा है, उसका जवाब दो दीदार सिंह।"

"दूंगा। लेकिन लफड़ा क्या है ?"

"मेरी बात का जवाब दो कि तुमने इस बात का जिक्र किससे किया था?" देवराज चौहान की आवाज में स्पष्ट तौर पर सख्ती आ गई थी--- "अगर तुमने सच छिपाया या झूठ बोला तो जानते ही हो कि क्या होगा ?"

कुछ चुप्पी के बाद दीदार सिंह का शांत स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।

"इस बात का सरसरी तौर पर मैंने सिर्फ एक से ही जिक्र किया था। उससे बात बाहर नहीं जा सकती।"

"उसका नाम बताओ।"

"ढींगड़ा। उससे धंधे के सिलसिले में मेरा मिलना रहता है। उसके साथ बैठा था। यूं ही कोई बात चली तो ये जिक्र बीच में आ गया। लेकिन बात क्या है, कोई रगड़ा हुआ क्या ?"

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

"ढींगड़ा ?" देवराज चौहान का स्वर सामान्य था--- "जो कि जॉर्ज लूथरा के लिए काम करता है।"

"हां, जानते हो उसे ?"

"नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरी उससे कभी मुलाकात नहीं हुई। वो क्या जॉर्ज लूथरा से गद्दारी कर सकता है?"

"गद्दारी---कैसी गद्दारी ?"

"जॉर्ज लूथरा से छिपकर, उसके खिलाफ काम कर सकता है क्या वो?"

"नहीं ! वो तो जॉर्ज लूथरा का भगत है। उससे जॉर्ज लूथरा के खिलाफ किसी भी तरह की गद्दारी की आशा मत करना।" दीदार सिंह का मुस्कराता स्वर उसके कानों में पड़ा--- "जॉर्ज लूथरा के खिलाफ उसे भारी से भारी दौलत देकर नहीं खरीदा जा सकता। एक तो जॉर्ज लूथरा से उसे तगड़ा पैसा मिलता है। दूसरे वो जानता है कि जॉर्ज लूथरा के खिलाफ काम करके, वो बचा नहीं रह सकता। वो जॉर्ज लूथरा के खिलाफ कभी नहीं जाएगा।"

"पक्का।"

"पक्के से भी पक्का !"

"ठीक है, मैं फोन बंद कर रहा हूं। तुम ढींगड़ा को नहीं बताओगे कि उसके बारे में मैंने तुमसे कुछ पूछा है।"

"समझ गया। लेकिन बात क्या है ? ढींगड़ा ने कोई लफड़ा किया है तुम्हारे साथ ?"

"कुछ मत पूछो और सब कुछ भूल जाओ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद करके टेबल पर रख दिया। उंगलियों में फंसी सिगरेट का कश लिया और सोफे की पुश्त के साथ टेक लगाकर पसर गया।

कई मिनट बीत गए।

सोचों में रहा देवराज चौहान फिर उठा और सिगरेट ऐश-ट्रे में डालते हुए दूसरे कमरे में जा पहुंचा। राजन बैड के कोने में बैठा था। विम्मी दोनों बच्चों के साथ घबराई सी फर्श पर बैठी थी।

"क्या हुआ?" जगमोहन देवराज चौहान के चेहरे के भावों को देखते ही कह उठा।

देवराज चौहान ने सब पर नजर मारी फिर वह बोला।

"मेरे ख्याल में जॉर्ज लूथरा ने मुझ पर बहुत ही खूबसूरती के साथ जाल फेंका था। हम जाल में फंस गए।"

"क्या मतलब ?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

सोहनलाल भी सतर्क नजर आने लगा।

"दीदार सिंह से मेरी बात हुई है। उसका कहना है कि उसने सरसरी तौर पर ढींगड़ा से जिक्र किया था। हमने उसके पास आना है। उसे यहां तक बताया था कि मैं बाहर खड़ा रहूंगा और तुम दीदार सिंह से बात करने भीतर जाओगे।"

"ओह!"

"इस सारे मामले की शुरुआत मेरे ख्याल में यहीं से शुरू होती है। जब ढींगड़ा को पता चला कि मैं दीदार सिंह के पास आने वाला हूं। उसे वक्त भी मालूम था और ये भी पता था कि मैं कार कहां खड़ी करूंगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "उसने ये बात जॉर्ज लूथरा को बताई होगी और आनन-फानन उन्होंने अपने काम की योजना बना ली।"

"काम की कैसी योजना ?"

"बताऊंगा, तुम हर्षा यादव को फोन करो।"

"उसे फोन करने की अभी क्या जरूरत है। वो...!"

"करो।"

जगमोहन ने देवराज चौहान की आंखों में झांका। फिर पलटने लगा कि देवराज चौहान ने टोका।

"मेरे ख्याल में हर्षा यादव से तुम्हारी बात नहीं हो पाएगी।"

"क्या मतलब---वो बाहर गया होगा ?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"मीनाक्षी से भी बात नहीं होगी।" देवराज चौहान के चेहरे पर सामान्य मुस्कान उभरी।

"दोनों कहीं गए हैं क्या ?"

"वो उस जगह को छोड़ चुके होंगे।"

"क्यों ?" जगमोहन चौंका।

"ये कैसे हो सकता है ?" सोहनलाल के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

"तुम फोन करो, बाकी बातें फिर करेंगे।"

चेहरे पर उलझन समेटे जगमोहन ने रिवॉल्वर जेब में डाली और बाहर निकल गया।

"म... मैंने जो कहा है, सच कहा है!" राजन सूखे स्वर में कह उठा।

देवराज चौहान ने उसे देखा भी नहीं और कमर पर हाथ बांधे टहलने लगा।

"बात क्या है ?" सोहनलाल ने उलझन भरे स्वर में पूछा।

"जॉर्ज लूथरा अपना काम कर गया है।"

"कैसा काम?"

"अभी मुझे अपनी तसल्ली कर लेने दो। बाकी बातें फिर बताऊंगा।"

दो मिनट बाद जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया।

"बेल हो रही है, लेकिन फोन कोई नहीं उठा रहा।" जगमोहन ने परेशानी भरे स्वर में कहा--- "तुमने पहले ही कह दिया था कि उन दोनों से मेरी बात नहीं हो पाएगी। वे उस जगह को छोड़ चुके होंगे।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाते हुए सिगरेट सुलगाई।

"बाकी बातें बाद में करेंगे। तुम सोहनलाल को लेकर हर्षा यादव की जगह पर जाओ। वो वहां न हो तो उनके बारे में आस-पड़ोस से पता करना कि वे कब से वहां रह रहे हैं यानी कि उनके बारे में जो भी मालूम हो सके।"

जगमोहन के चेहरे पर गंभीरता नजर आने लगी।

"आ सोहनलाल।"

जगमोहन और सोहनलाल कमरे से निकल गए।

देवराज चौहान भी बाहर निकला और दरवाजा बंद करते हुए राजन से बोला।

"मेरे ख्याल में तुमने सच बोला है। जो मैं सोच-समझ रहा हूं, वो स्पष्ट हो लेने दो। तब तक यहां शराफत से रहना। शायद दो-चार घंटों में तुम अपनी पत्नी और परिवार के साथ यहां से जा सको।" इसके साथ ही पल्ले भिड़ाकर देवराज चौहान ने बाहर से सिटकनी लगा दी।

मुख्य द्वार खुला हुआ था।

जगमोहन और सोहनलाल जा चुके थे।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर दरवाजा भीतर से बंद किया और कश लेते हुए सोफे पर जा बैठा। चेहरे पर सोच के भाव ठहरे हुए थे। होंठ सिकुड़े पड़े थे। अब तक जो हुआ था, उस पूरे मामले पर सोचों को दौड़ा रहा था।

■■■