ये दोपहर की बात है।
सोहनलाल नए लिए शानदार फ्लैट में ए.सी. की ठण्डी हवा में गहरी नींद में था। शरीर पर तहमद के अलावा कुछ नहीं था। वो दो घंटे की नींद और ले लेता, अगर कॉलबेल न बजती । तीन बार बेल बजी। तीसरी बार कुछ लम्बी ही बेल बजी।
सोहनलाल की नींद तो पहली बार ही बेल बजने पर खुल गई थी परंतु वो ढीठ बनकर पड़ा रहा। तीसरी बार लम्बी बेल बजी तो वो उछलकर बैड से फर्श पर आ गया। मेन द्वार पर पहुंचा और आई मैजिक से बाहर देखा। फिर मुंह बनाया।
बाहर सिक्का खड़ा था। सब उसे सिक्का ही कहते थे। तीन-चार बार सोहनलाल उसके साथ काम कर चुका था। सोहनलाल जानता था कि सिक्का बिना मतलब के किसी के पास नहीं जाता। परंतु इस वक्त सिक्का के साथ एक व्यक्ति और भी था।
सिक्का यूं ही तो किसी को लेकर उसके पास आने से रहा। यकीनन कोई खास बात ही होगी। ये सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया।
पचास वर्षीय सिक्का उसे देखकर मुस्कराया। वो सामान्य कद का, भरे बदन वाला व्यक्ति था। चेहरा भोला-भाला था। लेकिन वो खतरनाक इन्सान था। उसके साथ आया व्यक्ति छः फीट को छूता हुआ लग रहा था। शरीर पर साधारण ढंग की कमीज-पैंट पहन रखी थी।
"कैसा है सोहनलाल ?" सिक्का उसे देखकर मुस्कराया।
"अच्छा हूं।" सोहनलाल दूसरे व्यक्ति पर नजर मारकर बोला---- "जब मैं घर पर होता हूं तो दोपहर की नींद लेता हूं।"
"अब तो नींद खराब हो गई तेरी। अन्दर आने दे।" सोहनलाल वहीं खड़ा रहा।
"क्या हुआ?"
"ये कौन है ?"
"मेरे साथ है।"
"वो तो मैं देख रहा हूं। ये कौन है?"
"विनायक।"
"कौन विनायक ?"
"अभी इतना जानना ही बहुत है। बाकी बात भीतर आके।" सिक्का ने कहा और दरवाजे पर खड़े सोहनलाल को पीछे करता हुआ भीतर प्रवेश कर गया।
पीछे खड़ा विनायक उसे देखता हिचकिचाया।
"आ जा, अब, तू क्या दीदे फाड़े देख रहा है। आ...।"
विनायक भी जल्दी से भीतर आ गया।
सोहनलाल दरवाजा बंद करके घूमा।
सिक्का सोफे पर बैठ चुका था। देखते ही देखते विनायक भी उसकी बगल में बैठ गया।
सोहनलाल भी पास पहुंचा और उनके सामने सोफे पर बैठते हुए टेबल पर मौजूद पैकेट में से गोली वाली सिगरेट निकालकर सुलगाई। कश लिया। सिक्का को देखा।
"काम है तेरे से।" सिक्का बोला।
"पहले इसके बारे में बता।" सोहनलाल बोला--- "विनायक बोला तू इसे !"
"मेरी बात सुन। सब जवाब तेरे को मिलेगा।" सिक्का हाथ हिलाकर बोला--- "वो ही बताने जा रहा हूं। ये विनायक---पूरा नाम सुदेश विनायक है। ये रॉयल वाल्ट के गनमैन हैं।"
सोहनलाल मन ही मन चौंका।
"रॉयल वाल्ट!"
"हां।"
सोहनलाल ने सुदेश विनायक को गहरी निगाहों से देखा।
"रॉयल वाल्ट का गनमैन तेरे साथ कैसे ?"
"वाल्ट लुटवाना चाहता है।" सिक्का शांत स्वर में बोला।
"क्या ?" सोहनलाल चौंका।
विनायक की निगाह सोहनलाल पर थी।
"वाल्ट लुटवाना चाहता है। उधर क्या ये अकेला गनमैन है?" सोहनलाल का स्वर तीखा हो गया।
"समझाकर। रास्ता बता देगा। परेशानी कम करेगा। भीतर का सारा इंतजाम बताएगा।"
"तूने इसको कहां से पकड़ा ?" सोहनलाल अब विनायक को घूरने लगा था।
"ये मेरे पास आया। इसका साला अपना आदमी है। वो आजकल जेल में है। उसने, इसको कहा कि मेरे से मिले तो ये मिला। रॉयल वाल्ट के बारे में मेरे से बात की।"
"और तू इसे मेरे पास ले आया।"
"गलत किया?" सोहनलाल सिक्का को घूरने लगा।
"ऐसे मत देख। आ उधर कोने में।" सिक्का उठा और आगे बढ़कर सोहनलाल की बांह पकड़कर उसे उठाया और एक तरफ ले गया--- "घूरता क्यों है?"
"तू इसको मेरे दरवाजे पर क्यों लाया ?" सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का कश लिया--- "तेरे को बात करनी थी तो अकेले आ जाता। मैं...!"
"तैश में मत आ। विनायक बहुत काम का बंदा है। रॉयल वाल्ट पर हाथ डाला जाए तो कामयाब हुआ जा सकता है। मैंने इसकी पूरी बात सुनी है। तू सुनेगा तो...।"
"मैं ताले-वाल्ट, तिजोरी खोलता हूं। डकैती डालने जैसा काम नहीं कर सकता। इसके लिए तू कहीं और जा। सही बंदा पकड़। मुझे सब ठीक लगा तो इस काम में आऊंगा।"
सिक्का सिर आगे करके कह उठा।
"बंदा तो तेरे पास है। तू जानता है उसे।"
"कौन?"
"वो ही अपना देवराज चौहान। नम्बर वन डकैती मास्टर। तेरी तो उससे खास पटती है। एक बार मैं तेरे पास आया तो वो घुट-घुटकर तेरे से बात कर रहा था। तब तूने मुझे खड़े पांव भगा दिया था। बाद में मुझे याद आया कि वो देवराज चौहान है। अखबार में उसकी तस्वीर देखी थी कभी। पूछने पर तूने बताया था कि देवराज चौहान को अच्छी तरह जानता है तू। वो करेगा रॉयल वाल्ट में डकैती। पक्का करेगा।"
"दिमाग खराब हो गया है तेरा।" सोहनलाल तीखे स्वर में बोला--- "मेरे कहने पर वो क्यों करेगा ?"
"क्योंकि परसों रॉयल वाल्ट में इस दुनिया का सबसे बेशकीमती हीरा रखा जा रहा है। वो हीरा अमेरिका से उसका मालिक किंग्सटन ला रहा है। हिन्दुस्तान में हीरा बेचने का उसका सौदा पट गया है। खरीदने वाले ने कहा है कि उसे हिन्दुस्तान में हीरा चाहिए तो परसों किंग्सटन वो हीरा लेकर हिंदुस्तान पहुंच रहा है।"
सोहनलाल ने उसे देखते हुए कश लिया।
"मालूम है, वो हीरा कितने का है ?"
"कितने का?"
"दस अरब में उसका सौदा हुआ है। हीरा लेने रॉयल वाल्ट में जाएंगे तो दो-चार लॉकर दूसरे भी खोल लेंगे। आने-जाने का पेट्रोल और चाय-पानी का खर्चा भी निकल आएगा। वहां देश भर के अमीर लोगों के लॉकर हैं। साले हर लॉकर में माल भरा होगा।" सिक्का के चेहरे पर दौलत से भरी मुस्कान आ ठहरी--- "दस अरब का हीरा हाथ में लेकर देखेगा तो कैसा लगेगा तेरे को ?"
सोहनलाल उसे देखता रहा।
"बात कर देवराज चौहान से। ठहर... विनायक से पहले रॉयल वाल्ट के बारे में जान ले। फिर...।"
"मैं क्या करूंगा वाल्ट के बारे में जानकर ?" सोहनलाल ने टोका।
सिक्का ने उसकी आंखों में झांका।
"क्या मतलब?"
"अगर इस काम के लिए देवराज चौहान तैयार हुआ तो फिर बात करूंगा तेरे से।"
"तो ऐसा बोल।" मुस्करा पड़ा सिक्का--- "देवराज चौहान तैयार होगा। दस अरब का हीरा हर कोई पाना चाहेगा। वो हीरा कुछ दिन रॉयल वाल्ट में ही रहेगा। वक्त है उस पर हाथ डालने का। देवराज चौहान से कब बात करेगा?"
"ज्यादा सवाल मत पूछ । अब तू उसे लेकर जा।" सोहनलाल दूर बैठे विनायक को देखते हुए कह उठा--- "दोबारा कभी मेरे से कैसा भी काम हो---अकेले आना। किसी को साथ मत लाना।"
"तेरे फोन का इंतजार करूं। जल्दी फोन करेगा देवराज चौहान से बात करके ?"
"हां!"
"वो ये काम करने को न माने तो ?"
"तो किसी दूसरे को ढूंढना। डकैती सिर्फ देवराज चौहान ही नहीं करता और भी ढेरों लोग करते हैं।"
"देवराज चौहान तो डकैती करने में एक्सपर्ट...!"
"निकल ले। मेरे फोन का इंतजार कर कि हां हुई या न हुई।"
"बढ़िया ! चल विनायक।"
सिक्का और विनायक चले गए।
सोहनलाल ने दरवाजा बंद कर लिया।
■■■
जब देवराज चौहान की कार बंगले में प्रवेश कर गई तो पीछा कर रही कार कुछ आगे जाकर सड़क के किनारे रुक गई। ड्राइवर की बगल में बैठे व्यक्ति ने फोन मिलाया और बात की।
"कहो।" दूसरी तरफ से आवाज आई।
"देवराज चौहान की कार एक बंगले में प्रवेश कर गई है।"
"नजर रखो और रिपोर्ट देते रहो।" कहने के साथ ही दूसरी तरफ से फोन बंद कर दिया गया।
उसने कान से फोन हटाया और स्टेयरिंग सीट पर बैठे व्यक्ति को देखा।
"क्या हुआ?" स्टेयरिंग सीट पर बैठे व्यक्ति ने पूछा।
"होना क्या है। वो ही डण्डा मारने वाला ढंग । नजर रखो। रिपोर्ट देते रहो। इसके साथ ही फोन बंद । नमस्ते-धन्यवाद कुछ नहीं।"
"ठीक ही तो है। काम की बात होनी चाहिए।"
उसने फोन जेब में डाला और कार का दरवाजा खोलते हुए कहा।
"मैं बंगले पर नजर रख रहा हूं। तुम कार के साथ तैयार रहना। वो बाहर आएं तो पीछे जाना है।"
"मैं तैयार हूं। तू नजर रख।"
वो कार से निकला और जेबों में हाथ डालता टहलता हुआ बंगले की तरफ चल पड़ा।
■■■
शाम हो चुकी थी।
देवराज चौहान ने घंटा भर आराम करने के बाद नहा-धोकर कपड़े बदले और किचन में जाकर चाय बनाई और दो कपों में डालकर ड्राइंगरूम में आ गया। जगमोहन वहां पहले से ही बैठा था। देवराज चौहान इस सारे काम के दौरान सोचों में डूबा रहा। उसने एक कप जगमोहन की तरफ रखा, दूसरा खुद लेकर एक तरफ सोफा चेयर पर बैठ गया और घूंट भरा, फिर जगमोहन को देखा ।
जगमोहन, देवराज चौहान को ही देख रहा था।
नजरें मिलते ही जगमोहन के चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी।
"कोई रास्ता नहीं मिल रहा।" जगमोहन ने मुस्कराते हुए गहरी सांस ली।
"रास्ता ?" देवराज चौहान ने घूंट भरा।
"हर्षा यादव के बारे में सोच रहा था कि उसको, उसके काम का कोई रास्ता बता सकूं। लेकिन मेरी सोचें कहीं भी नहीं पहुंच पा रही। जॉर्ज लूथरा के आदमी शहर भर में फैले उसकी और मीनाक्षी की तलाश कर रहे हैं। किसी भी कदम के लिए वो बाहर निकलेंगे तो कहीं न कहीं जॉर्ज लूथरा के आदमियों की नजरों में आ जाएंगे।"
"और ये भी जरूरी नहीं कि हर्षा यादव अगर सरकार के किसी जिम्मेवार व्यक्ति के पास पहुंच गया तो उसकी बताई बात पर एक्शन हो जाएगा। क्या वो जिम्मेवार व्यक्ति जॉर्ज लूथरा के खिलाफ काम करना चाहेगा?"
देवराज चौहान के शब्दों पर जगमोहन ने सिर हिलाया।
"ठीक कहते हो। मेरे ख्याल में हमें इस रास्ते के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। ये हर्षा यादव का मामला...!"
"हमें सोचना चाहिए।" दैवराज चौहान ने टोका--- "ये सोचना चाहिए कि हर्षा यादव के कहे मुताबिक अगर जॉर्ज लूथरा पानी में वो दवा डालने में कामयाब हो गया तो क्या होगा। कितने लोग मरेंगे।"
"बहुत मरेंगे !" जगमोहन के होंठों से निकला।
"तो हमें ये सोचना चाहिए कि मासूम लोगों की जान हम कैसे बचा सकते ?"
जगमोहन देवराज चौहान को देखने लगा।
"मुझे तो कोई रास्ता नजर नहीं आता।"
" एक रास्ता मुझे दिखा है और इन हालातों में वो रास्ता ही इस्तेमाल हो सकता है।"
"कैसा रास्ता ?"
"उस दवा को हम वहां से निकाल लें, जहां वो पड़ी है।"
"ये कैसे हो सकता है ?" जगमोहन चौंका।
"हर्षा यादव जानता है कि वो दवा कहां पड़ी है।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
जगमोहन भी कई पलों तक देवराज चौहान को देखता रहा।
"वो दवा जहां भी पड़ी हो।" जगमोहन धीमे स्वर में कह उठा--- "वहां तक पहुंचना कठिन होगा। क्योंकि वो जगह जॉर्ज लूथरा जैसे खतरनाक इन्सान की सुरक्षित जगह होगी। वहां पर जाना, मौत में पांव रखना होगा।"
"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं।" देवराज चौहान ने चाय का घूंट भरा---- "अगर लाखों-करोड़ों लोगों को मौत के मुंह से बचाना है तो ये खतरा लेना ही होगा।"
जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।
"तुम क्या सच में गंभीर हो ?"
"सोच रहा हूं।" देवराज चौहान ने जगमोहन की आँखों में झांका।
"ये सोच हमें ले डूबेगी। मैं राय नहीं दूंगा कि जार्ज लूथरा की किसी सुरक्षित जगह पर कदम रखा जाए। एक बार हम उससे टकरा चुके हैं और देख चुके हैं कि वो किस हद तक खतरनाक है। ऐसे में उसके मामलों में खामखाह... ।"
"हर्षा यादव अगर सही कह रहा है तो हम खामखाह वाला काम नहीं कर रहे। बल्कि जॉर्ज लूथरा के हाथों लाखों लोगों को बचाने जा रहे हैं। उसकी खतरनाक योजना को फेल करने की चेष्टा करने जा रहे हैं।"
जगमोहन कई पलों तक खामोश रहा।
"क्या सोच रहे हो ?" देवराज चौहान ने प्याला टेबल पर रखते हुए कहा।
"सिर्फ ये कि जॉर्ज लूथरा को जहां से वो दवा मिली है। वो देश उसे और भी दवा दे सकता है।" जगमोहन कह उठा।
"हां, ये हो सकता है। लेकिन ये सोचकर हम खामोश नहीं रह सकते। बचाव की कोशिश करना जरूरी है।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और अपनी जगह से उठ कर टहलने लगा।
खामोशी सी छा गई उनके बीच।
"मेरा दिल नहीं मानता ये काम करने को।" टहलते हुए जगमोहन ने कहा--- "हम एक ऐसे काम को करने की सोच रहे हैं, जिसे करने में हमारा कोई मतलब नहीं होना चाहिए। अगर इस मामले में कुछ करना ही है तो सरकार के किसी जिम्मेवार व्यक्ति को फोन पर सबकुछ बताकर हर्षा यादव का पता बता देते हैं। सरकारी कार्यवाही के दौरान हर्षा यादव और मीनाक्षी सुरक्षित हाथों में पहुंच जाएगी। वो इस बारे में सब कुछ बता सकेंगे कि जॉर्ज लूथरा...!"
"क्या जॉर्ज लूथरा तब हाथ पर हाथ रखे बैठा रहेगा। जबकि उसके हाथ बहुत लम्बे हैं। ऐसा होने पर फौरन ही सारी खबर जॉर्ज लूथरा के पास पहुंचेगी और फिर खबर मिलेगी कि हर्षा यादव सरकार की कस्टडी में जहर खाने या किसी दूसरी तरह मारा गया। ये काम जॉर्ज लूथरा के इशारे पर या दौलत लेकर वहीं का कोई सरकारी आदमी ही करेगा। जॉर्ज लूथरा हर्षा को किसी भी हाल में मुंह खोलने नहीं देगा।"
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा। टहलते-टहलते ठिठका। देवराज चौहान को देखा।
"तुम्हारी बात मेरी समझ से बाहर है कि हम इस मामले में दखल दें।"
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि पोर्च में कार रुकने की आवाज आई।
दोनों की नजरें मिलीं।
उसी पल जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और मुख्य द्वार के करीब बनी खिड़की के पास जा पहुंचा। जरा सा पर्दा उठाकर बाहर देखा तो सोहनलाल नजर आया। जगमोहन वहां से हटा और आगे बढ़कर दरवाजा खोला। तब तक सोहनलाल पास आ गया था।
"मेरे इन्तज़ार में खड़े हो।" कहते हुए सोहनलाल भीतर आ गया।
जगमोहन ने दरवाजा बंद किया तो सोहनलाल की आवाज उसके कानों में पड़ी।
"तुम लोग आजकल क्या खास काम कर रहे हो?"
जगमोहन पलट कर पास आ पहुंचा था।
"क्यों?" देवराज चौहान की नजर सोहनलाल पर जा टिकी।
"बाहर एक आदमी बंगले पर नजर रख रहा है।"
सोहनलाल के शब्दों पर देवराज चौहान और जगमोहन चौके। नजरें मिलीं।
"वो जॉर्ज लूथरा का आदमी होगा।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"जॉर्ज लूथरा?" सोहनलाल चिहुंक उठा--- "वो खतरनाक आतंकवादी?"
"हां।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
"मामला क्या है। जॉर्ज लूथरा के और तुम्हारे रास्ते फिर से एक कैसे हो गये?" सोहनलाल हक्का-बक्का था।
"तुम इसे बताओ।" कहते हुए देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा--- "मैं अभी आता हूं।"
"कहां जा रहे हो?"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।
जगमोहन समझ गया कि देवराज चौहान, बाहर मौजूद आदमी से निपटने गया है।
"बाहर एक ही है?" जगमोहन ने बेचैनी से सोहनलाल को देखा।
"मुझे तो एक ही दिखा।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "बात क्या है?"
■■■
देवराज चौहान पैदल ही बंगले के गेट से बाहर निकला और ठिठक कर, जेब से पैकिट निकाल कर सिगरेट सुलगाने लगा। सड़क पर से कभी-कभाद वाहन निकल जाता था ।। सिगरेट सुलगाने के दौरान ही देवराज चौहान ने उस व्यक्ति को देख लिया था, जो कुछ आगे बगल वाले बंगले की तरफ खड़ा इधर ही देख रहा था। परंतु उसे बाहर आया पाकर, सकपका कर दूसरी तरफ देखने लगा था।
देवराज चौहान ने दूर, सड़क के किनारे खड़ी कार को भी देख लिया था और समझ गया था कि वो कार इसी की होगी। इसी में वो यहां आया होगा। उसमें एक या दो व्यक्ति हो सकते हैं। वो अपने बंगले के आसपास शोर-शराबा नहीं चाहता था। परन्तु इस वक्त रुका भी नहीं जा सकता था। जाने उसके बंगले की निगरानी क्यों की जा रही है। ऐसे में कुछ लोग तैयारी के साथ कभी भी उस पर हमला कर सकते हैं।
देवराज चौहान ने कश लिया और लापरवाही से उस व्यक्ति की तरफ बढ़ गया। हाव-भाव से ऐसा व्यस्त दर्शा रहा था कि जैसे किसी गहरे ख्याल में डूबा हो।
उस व्यक्ति ने देवराज चौहान को अपनी दिशा की तरफ बढ़ते पाया तो हड़बड़ा उठा। परन्तु उसने अपनी तरफ से समझदारी दिखाई कि वहां से नहीं हिला। वहीं खड़ा रहा, जैसे किसी का इन्तजार कर रहा हो। साथ ही उसने महसूस किया कि देवराज चौहान का ध्यान उसकी तरफ नहीं है। वो अपने ही किसी काम के लिए बाहर निकला है।
तब वो दूसरी तरफ देख रहा था और इन्तजार कर रहा था कि इधर से आता देवराज चौहान अभी उसके पास से निकल कर, आगे बढ़ता चला जायेगा। लेकिन उसे अपने पांवों के नीचे से जमीन सरकती महसूस हुई, जब देवराज चौहान को ठीक अपने सामने खड़ा पाया।
दोनों की नजरें मिली।
उसे अपनी टांगें कांपती सी लगी।
"किसके कहने पर तुम मुझ पर नजर रख रहे हो?" देवराज चौहान का स्वर बेहद शांत था।
वो अचकचा उठा। होंठ हिले, बोला कुछ नहीं।
"जवाब दो।"
"क्या...कह रहे हो तुम? मैं.. मैं...।"
"मुझे जानते हो?" देवराज चौहान बेहद सामान्य था।
"न...हीं...।"
"तो फिर मेरे पीछे क्यों हो?"
"मैं...मैं तो...।"
"तुम उस कार में थे।" देवराज चौहान ने दूर खड़ी कार की तरफ इशारा किया--- "जब मैं बंगले पर पहुंचा तो तुम्हारी कार को पीछे आते देखा था। बीच में बैठे तुम भी दिखे। मैंने सोचा, तुम चले गये होगे। यही देखने के लिए बाहर निकला तो तुम्हें खड़े पाया। क्या चाहते हो?"
वो सूखे होंठों पर जीभ फेर कर रह गया।
"मैं जानता हूं तुम्हें किसने मेरे पीछे लगाया है?"
"किसने?" उसके होंठों से बरबस ही निकला।
इस सवाल ने देवराज चौहान के सामने स्पष्ट कर दिया था कि वो वास्तव में उस पर ही नजर रख रहा था। देवराज चौहान ने शांत भाव में हर तरफ देखा। उस सड़क से इक्का-दुक्का लोग आ-जा रहे थे। कभी कभार कोई वाहन भी निकल जाता था। दूर वो कार अभी भी खड़ी थी। यहां पर कुछ भी करना ठीक नहीं था।
"मेरे साथ आओ।" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"क...कहां?"
"बंगले पर।"
"क्यों... मैं...न...।" उसके शब्द अधूरे ही रह गये।
देवराज चौहान ने जेब में मौजूद रिवॉल्वर की झलक थोड़ा-सा निकाल कर दिखाई।
"मेरे पीछे हो तो, मेरे बारे में जानते भी होगे कि मैं रिवॉल्वर इस्तेमाल करने में परहेज भी नहीं करता।" देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया। चेहरा कठोर दिखने लगा।
उसने फौरन कार की तरफ देखा।
"वहां से तुम्हारी सहायता के लिए कोई भी नहीं आएगा।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "उस कार में जो भी है, वो पक्का देख रहा होगा कि तुम अब मेरे पास हो।"
उसने फक्क चेहरे से देवराज चौहान को देखा।
"चलोगे या रिवॉल्वर निकालूं।"
वो हिला। उसके कदम कुछ दूर बंगले के गेट की तरफ उठे।
देवराज चौहान उसके साथ हो गया।
तभी उनके कानों में ईंजन की हल्की-सी आवाज पड़ी। उसने गर्दन घुमाकर देखा। दूर खड़ी वो कार तेजी से आगे बढ़ गई थी। उसका अभी तो वापस लौटने का इरादा नहीं लगता था।
"तुम्हारी कार गई।" देवराज चौहान बोला।
वो फौरन पलटा।
कार को जाता पाकर, उसका चेहरा डर से भर उठा था।
"रुक मत। चलता रह।"
वो जल्दी से सीधा हुआ और आगे बढ़ने लगा। उसकी आंखों में खौफ था।
"तुम्हारे साथी ठीक नहीं थे। तुम्हें छोड़कर भाग गये। कितने थे कार में?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
"ए... एक।"
"वो वापस आएगा?"
उसने देवराज चौहान को देखा फिर फीके स्वर में बोला।
"पक्का आएगा।" उसके शब्दों में दृढ़ता थी।
"कोई फायदा नहीं होगा। यहां उसे कोई नहीं मिलेगा। तुम भी नहीं।" उसे लिए देवराज चौहान बंगले के गेट से भीतर प्रवेश कर गया।
■■■
एक घंटे बाद देवराज चौहान, जगमोहन और वो व्यक्ति, सोहनलाल के फ्लैट पर थे। सोहनलाल भी उनके साथ था। इस बात का उन्होंने पूरा ध्यान रखा था कि कोई उनका पीछा न कर रहा हो।
अभी तक उस व्यक्ति से कुछ नहीं पूछा गया था।
सोहनलाल ने उसे एक कुर्सी पर बिठा दिया था। वो डरा पड़ा था।
"अभी तक ये स्पष्ट नहीं हुआ कि ये जॉर्ज लूथरा का आदमी है।" जगमोहन ने धीमे स्वर में पूछा।
"नहीं।" देवराज चौहान बोला--- "सिर्फ इतना ही मालूम हुआ है कि ये हमारे पीछे है।"
"मैं बात करता हूं उससे।" कहकर जगमोहन कुछ कदमों की दूरी पर मौजूद उस व्यक्ति की तरफ बढ़ गया।
उसे पास आता पाकर, उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
जगमोहन ने दूसरी कुर्सी खींची और उसके पास बैठता हुआ कह उठा।
"अभी तो मैं प्यार से बात करूंगा। तूने मजबूर किया तो दूसरी ढंग इस्तेमाल करूंगा।"
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। जगमोहन को देखता रहा।
"नाम क्या है तेरा?"
"राजन।"
"मेरे को जानता है?"
वो देखता रहा, जगमोहन को।
"बोल?"
"हां।" उसने धीमे स्वर में कहा--- "जानता हूं तुम्हारे को। जगमोहन नाम है तुम्हारा।"
"तुम्हारा नाम राजन है। बढ़िया---अब ये बताओ कि किसने तुम्हें हमारे पीछे लगाया है।"
वो चुप रहा।
"इस तरह मुंह बंद करने से काम नहीं चलेगा। मेरी बातों का जवाब देता रह।"
उसने मुंह नहीं खोला।
"क्या इरादा है?" जगमोहन का स्वर सख्त हो गया।
उसने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी। खामोश ही रहा।
"मैंने पूछा हैं तेरे को किसने हमारे पीछे लगाया है?"
राजन ने कोई जवाब नहीं दिया।
"कब से तू हमारा पीछा कर रहा है। कहां से तूने हम पर नजर रखनी शुरू की। तब तुम्हें कैसे पता चला कि हम वहां पर होंगे। जल्दी से जवाब देना शुरू कर।"
राजन ने होंठ भींच लिए।
"नहीं बताएगा?"
"नहीं।"
"क्यों?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"नहीं का मतलब होता है, नहीं बताऊंगा।" एकाएक राजन कठोर स्वर में कह उठा---- "न ही तुम लोग मेरा मुंह खुलवा सकते हो। कोशिश करके देख लो। कामयाब नहीं हो सकोगे।"
जगमोहन ने दांत भींचकर रिवॉल्वर निकाली और उसकी तरफ कर दी।
राजन ने रिवॉल्वर को देखा फिर जगमोहन को घूरा ।
"गोली मारोगे?"
"तो क्या मैंने तेरे को दिखाने के लिए रिवॉल्वर...।"
"मारो...।"
"क्या?"
"गोली मारो।" राजन कह उठा--- "दिखाने के लिए नहीं निकाली तो गोली मारने के लिए ही निकाली है रिवॉल्वर।"
जगमोहन सख्त निगाहों से राजन को घूरने लगा।
"तेरे को गोली मारूंगा तो तू मर जाएगा। इस दुनिया में तेरा काम खत्म। उसके बाद कोई जरूरी नहीं कि दोबारा तेरा जन्म होता भी है या नहीं। हो सकता है तेरी आत्मा...।"
"तुम गोली मारो। अपना काम खत्म करो।" राजन दांत भींचे कह उठा।
उसी पल जगमोहन उस पर झपटा और रिवॉल्वर की नाल उसके गाल पर मारी। वो कराह उठा। तभी दूसरे हाथ का घूंसा, उसके दूसरे गाल पर मारा। वो लड़खड़ा कर कुर्सी से नीचे गिर गया। इससे पहले वो उठता कि जगमोहन ने आगे बढ़कर, उसकी गर्दन पर जूता रख दिया।
राजन ने जूते को दोनों हाथों से हटाना चाहा कि जगमोहन ने रिवॉल्वर उसके चेहरे की तरफ कर दी। ये देखकर वो ठिठक गया। जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक भाव थे।
"बता रहा है?" जगमोहन गुर्राया।
"नहीं।"
"अब मैं तेरे को गोली मारने जा रहा हूं।"
वो चुप रहा।
तभी सोहनलाल करीब आता कह उठा।
"रुको जगमोहन। अभी गोली मत मारना। मैं तुम्हें साईलेंसर लगी रिवॉल्वर देता हूं। उससे फायर की आवाज नहीं के बराबर होगी।" कहते हुए सोहनलाल दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गया।
रिवॉल्वर उसकी तरफ किए, जगमोहन खतरनाक नजरों से, उसे देख रहा था।
"बचना है तो तेरे को मुँह खोलना पड़ेगा।"
वो खामोशी से जगमोहन को देखता रहा। जगमोहन ने जूते वाला पांव उसकी गर्दन पर दबा रखा था। हाथ में दबी रिवॉल्वर उसकी तरफ कर रखी थी। वो नीचे पड़ा जगमोहन को ही देख रहा था।
चंद कदमों की दूरी पर बैठा देवराज चौहान कश लेता इधर ही देख रहा था।
"तुझे मरना हैं तो मर साले।" जगमोहन ने मौत से भरे स्वर में कहा।
नीचे पड़े राजन की आंखों में मौत का खौफ था। चेहरे पर जिन्दा रहने की चाहत के निशान थे। परन्तु मुंह बंद रखा हुआ था। तभी सोहनलाल दूसरे कमरे से निकल कर, पास आता कह उठा।
"ये लो। इससे गोली मारो। साईलेंसर लगा है। गोली चलने की आवाज नहीं होगी।"
जगमोहन ने अपने वाला रिवॉल्वर जेब में डाला और सोहनलाल का लाया रिवॉल्वर पकड़ लिया। रिवॉल्वर की नाल पर साईलेंसर लगा हुआ था। जगमोहन ने साईलेंसर चैक किया और रूख नीचे पड़े राजन की तरफ कर दिया। जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक भाव थे।
"एक मिनट।" सोहनलाल ने टोका--- "क्या कहता है ये?"
"कुछ नहीं बता रहा।" जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली--- "मरना चाहता है। कोई मजबूरी हो सकती है। लेकिन मजबूरी के बारे में भी नहीं बता रहा कि क्यों मुंह बंद कर रखा है।"
"ठहर मैं पूछता हूं। अभी गोली मत चला देना।" कहते हुए सोहनलाल घुटनों के बल नीचे बैठा--- "पैर हटा ले गले से। अगर ये उठने की कोशिश करे तो फिर बेशक गोली मार देना।"
जगमोहन ने उसकी गर्दन से पैर हटा लिया।
राजन हाथ से अपनी गर्दन मसलने लगा।
"चिन्ता मत कर। अभी तेरे को गोली नहीं मारी जाएगी। मेरे से बात करके ही तू मरेगा।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "एक बात तो बता। जब तेरे को पता है कि हमारी बात का जवाब देकर तू बच जाएगा तो बोलता क्यों नहीं। खुद क्यों मरने को तैयार है। अपनी जान तो सबको प्यारी होती है।"
राजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
"मुंह खोलेगा। मेरी बात का जवाब देगा या मैं ही भौंकता रहूंगा। हम दो ही काम करते हैं, तेरे जैसों को या तो गोली मार देते हैं या फिर मुंह खुलवा लेते हैं। इस वक्त हम जल्दी में हैं। इसलिए मुंह खुलवाने में वक्त बरबाद नहीं करना चाहते। गोली तो मारनी ही पड़ेगी। क्योंकि तेरे को जिन्दा नहीं छोड़ा जाएगा। हमें सिर्फ इतना बता दे कि तू उसका नाम क्यों नहीं बता रहा, जिसने तेरे को देवराज चौहान और जगमोहन का पीछा करने को कहा है।"
राजन ने गहरी सांस ली फिर धीमे स्वर में बोला।
"उठ कर बैठ जाऊं?"
"बैठ जा... बैठ जा। ये बैठ रहा है। गोली मत चला देना जगमोहन।"
राजन उठकर बैठ गया।
"पानी पिलाओगे।" वो बोला।
"बाद में। पहले मेरी बात का जवाब दे।" सोहनलाल उसके पास उसी तरह घुटनों के बल बैठा था।
राजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वो बहुत डरा पड़ा था।
गुस्से में भी था कि शायद मौत पास आ चुकी है। यही वजह थी कि वो गुस्से में, झल्लाया पड़ा था।
"ये बता कि तू उसके बारे में क्यों नहीं बता रहा, जिसने तेरे को देवराज चौहान और जगमोहन के पीछे लगाया है।"
राजन ने सोहनलाल को देखा।
सोहनलाल सख्त नजरों से उसे देख रहा था।
"मेरे परिवार में पत्नी और बच्चे हैं। मैंने मुंह खोला तो वो सबको मार देगा। इधर मैंने मुंह बंद रखा तो सिर्फ मैं ही मरूंगा।" राजन का स्वर पक्का और दृढ़ता से भरा था।
"बढ़िया।" देवराज चौहान मुस्कराकर पास आता कह उठा--- "तुम्हारा नाम राजन है। बच्चे हैं तुम्हारे । काम तुम जो करते हो। वो हमें पता ही है। हम जल्द ही तुम्हारी पत्नी और बच्चों को तुम्हारे सामने खड़ा कर देंगे। तब तुम खुद ही मुंह खोलोगे। हमारी बात का जवाब दोगे। जगमोहन?"
"हां।"
"इसके हाथ-पांव बांध दो।" देवराज चौहान ने कहते हुए सोहनलाल को देखा--- "इसे कहां रखना है?"
"उधर---उस वाले कमरे में डाल दो।"
जगमोहन ने राजन को उठाया। उसकी जेबों की तलाशी ली।
तलाशी में मोबाइल फोन मिला।
देवराज चौहान ने उसका फोन ले लिया।
"सोहनलाल।" जगमोहन, राजन को धकेलता हुआ बोला--- "बांधने के लिए कुछ ला।"
"नाईलोन की डोरी देता हूं।" कहते हुए सोहनलाल कमरे की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन, राजन को उस कमरे की तरफ ले गया, जिधर सोहनलाल ने उसे रखने को कहा था।
देवराज चौहान, राजन का मोबाइल फोन लेकर, उसे चैक करने लगा।
दस मिनट बाद जगमोहन और सोहनलाल आ गये वहां।
"बढिया बांधा है उसे। हिल नहीं सकेगा।" सोहनलाल ने कहा और बैठने के बाद गोली वाली सिगरेट सुलगाने लगा।
देवराज चौहान अभी भी राजन का मोबाइल फोन चैक कर रहा था।
जगमोहन भी बैठ गया था।
देवराज चौहान ने राजन का मोबाइल उसकी तरफ बढ़ाया।
"इस फोन में रिसीव किए नम्बर हैं। जो नम्बर मिलाए हैं, वो हैं। जो कॉल्स आई और अटेंड नहीं की गई। सबके नम्बर इस फोन में दर्ज हैं। उन नम्बरों को कागज पर उतारो। उसके बाद उनके बारे में---राजन के बारे में जानने की चेष्टा करो। किसी न किसी से मालूम हो जाएगा उसके घर का अता-पता।"
"समझ गया।" सोहनलाल ने मोबाइल फोन लेकर सेन्टर टेबल पर एक तरफ ही रख दिया, फिर बोला--- "जगमोहन ने हर्षा यादव वाली सारी बात बताई। जॉर्ज लूथस इस मामले में है।" कहकर सोहनलाल खामोश हो गया।
देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा।
"जगमोहन बता रहा है कि तुम इस मामले में आने की सोच रहे हो।" सोहनलाल गंभीर था।
"फैसला नहीं किया। अभी सिर्फ सोच ही रहा हूं। मैं जॉर्ज लूथरा को कामयाब नहीं होने देना चाहता ।" देवराज चौहान का दृढ़ता भरा स्वर शांत था--- "मैं अभी जगमोहन के साथ हर्षा यादव के पास जा रहा हूं। उससे मालूम करूंगा कि वो खतरनाक दवा जॉर्ज लूथरा ने कहां रखी है। उसके बाद सोचा जाएगा कि इस बारे में क्या करना और क्या नहीं।"
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेटे का कश लिया फिर धीमे स्वर में बोला।
"मैं तो किसी दूसरे ही काम के लिए आया था।"
"क्या?"
"रॉयल वाल्ट में परसों दस अरब का हीरा रखा जाने वाला है। इस वाल्ट में देश के बड़े-बड़े लोगों ने लॉकर ले रखे हैं। उनमें बेशकीमती सामान भरा पड़ा होगा। जो कि सरकार से छिपाकर रखा गया है। अगर हम दस अरब के हीरे को पाने के लिए अन्दर जाएं तो चंद दूसरे लॉकरों पर भी हाथ...!"
"मैं हर्षा यादव वाले काम पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत समझता हूं।" देवराज चौहान बोला।
"मैं समझता हूं।" सोहनलाल ने सिर हिलाया।
"मेरे ख्याल में हमें सोहनलाल की बात पर भी गौर करना चाहिए।" जगमोहन कह उठा--- "दस अरब का हीरा ! साथ में दो-चार लॉकर और खुल गए तो काफी माल हाथ लग... ।"
"ये काम नहीं हो सकता। मेरा ध्यान उस दवा की तरफ है, जिससे जॉर्ज लूथरा जैसा आतंकवादी कहर बरपा देना चाहता है। लाशें बिछा देगा। मैं उसे कामयाब नहीं होने देना चाहता।" देवराज चौहान ने शांत-दृढ़ता भरे स्वर में कहा--- "हर्षा यादव से एक बार बात अवश्य करूंगा कि वो दवा कहां पड़ी है। हो सकता है, मैं वहां तक न पहुंच पाऊं, जहां दवा पड़ी है या फिर वहां तक पहुंच जाऊं।"
जगमोहन ने सोहनलाल को देखा।
"तुम जो करोगे, ठीक ही करोगे।" सोहनलाल ने कहा और टेबल पर पड़े फोन को थामते हुए उठ खड़ा हुआ--- "मैं इस फोन में मौजूद नम्बरों को कागज पर लिखकर, राजन के बारे में जानने की कोशिश करता हूं कि वो कहां रहता है। अपने बारे में जाना पाकर हो सकता है तब राजन मुंह खोल दे। तब हम उस पर उसके परिवार के बारे में धमकी देकर दबाव बना सकते हैं।"
"तुम ये काम करो।" देवराज चौहान उठता हुआ बोला--- "हम हर्षा यादव से मिलकर आते हैं। चलो जगमोहन। वहां पर हमारे लिए खतरा भी हो सकता है। राजन जाने किसके कहने पर कहां से हमारे पीछे लगा है। हर्षा यादव को भी इससे खतरा हो गया होगा। जब तक राजन मुंह नहीं खोलता, तब तक हमें कुछ भी मालूम नहीं होगा कि पीछा करने का क्या मामला है?"
"मैं राजन के बारे में छानबीन कर लूंगा। इस फोन में मौजूद नम्बरों से, मैं राजन के बारे में अवश्य जान लूंगा।" सोहनलाल कह उठा--- "कल तक अवश्य राजन के बारे में कोई बात सामने आएगी।"
"ध्यान से!" जगमोहन ने टोका--- "वो कहीं बंधन खोलकर खिसक न जाए। वो...!"
"मैं उसके सिर पर संवार रहूंगा। निश्चिंत रहो।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"पहले की अपेक्षा इस बार हमारे लिए हर्षा यादव के पास खतरा ज्यादा हो सकता है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "पहले हम अचानक हर्षा यादव से मिले थे। अब हम उसके पास जा रहे हैं। दोबारा जा रहे हैं। मेरे ख्याल में हमारा पीछा हर्षा यादव के यहां से ही शुरू हुआ होगा। जब हम वहां से निकले थे।"
देवराज चौहान के शब्दों पर जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।
"इसका मतलब !" सोहनलाल बोल उठा--- "जहां हर्षा यादव मौजूद है, वहां की निगरानी पहले से ही हो रही होगी। तुम लोग वहां गए तो निगरानी करने वालों में से एक-दो तुम लोगों के पीछे लग गए।"
"यही हुआ होगा।"
देवराज चौहान ने दोनों को देखा।
"लेकिन इन सोचों में एक अड़चन है।"
"क्या?"
"जो हम पर नजर रख रहा था। यानी कि राजन नाम का व्यक्ति जानता है कि मेरा नाम देवराज चौहान है और ये जगमोहन। जबकि राजन को हमने पहले कभी नहीं देखा। एकदम से वो हम दोनों को नहीं पहचान सकता। इससे ये स्पष्ट होता है कि वो पहले से ही हमारी निगरानी कर रहा था या फिर किसी को मालूम था कि हर्षा यादव हमें वहां लेकर आएगा तो वो हर्षा यादव के फ्लैट के बाहर पहले से ही पहुंच गया। या फिर तब पहुंचा जब हम भीतर हर्षा यादव से बातचीत कर रहे थे। फिर बाहर निकले तो वो पीछे लग गया।"
कुछ देर वहां चुप्पी रही।
"इन बातों से हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकेंगे।" जगमोहन बोला--- "ऐसी कितनी ही बातें सोच लें लेकिन पक्की बात पर नहीं पहुंच सकते। इस बारे में सही तौर पर राजन ही बता सकता है और वो मुंह खोलने को तैयार नहीं।"
"मैं उसका मुंह जल्दी ही खुलवा लूंगा।" कहते हुए सोहनलाल ने हाथ में पकड़े मोबाइल फोन को देखा।
देवराज चौहान की निगाह जगमोहन पर जा टिकी।
"जब मैंने राजन को पकड़ा तो कार में बैठा उसका दूसरा साथी भाग निकला था।" कहकर देवराज चौहान पलभर के लिए ठिठका--- "यानी कि हमारे लिए हर्षा यादव के पास जाने में खतरा हो सकता है। हमें सतर्क रहना होगा।"
■■■
जगमोहन कार को खुले गेट से भीतर लेता चला गया। वहां से समन्दर का किनारा स्पष्ट नजर आता था। समन्दर के पानी की खुश्बू तक हवा के संग आकर, समन्दर के करीब होने का एहसास करा देती थी।
दोनों ने इस बात का ध्यान रखा था कि इमारत के बाहर कौन निगरानी करता हो सकता है। परंतु ऐसा कोई भी नजर नहीं आया था। इमारत के सामने चलती सड़क थी। उसके पार खाली मैदान शुरू हो जाता था। उस मैदान को पार करके काफी आगे समन्दर के किनारे की शुरुआत हो रही थी।
कार से उतरकर दोनों भीतर प्रवेश कर गए। सीढ़ियां तय करके दूसरी मंजिल पर स्थित उस फ्लैट के दरवाजे के पास पहुंचे, जहां वे हर्षा यादव के साथ पहले आए थे। जगमोहन ने कॉलबेल दबाई। भीतर बैल बजने की आवाज आई, फिर मध्यम सी कदमों की आहट कानों में पड़ी।
कदमों की आहट दरवाजे के पास आकर रुक गई।
"कौन ?" बेहद मध्यम सा स्वर उनके कानों में पड़ा।
उन्होंने पहचाना। वो आवाज मीनाक्षी की थी।
"हम हैं।" जगमोहन ने सपाट स्वर में कहा।
चंद पलों की खामोशी के बाद दरवाजा खुला। जरा सा और झिरी में से मीनाक्षी ने उन्हें देखा। फिर आहिस्ता से दरवाजा खोला। फौरन गर्दन घुमाकर दाएं-बाएं देखा। शायद वो देखना चाहती थी कि वो अकेले हैं या साथ में कोई है। फिर उनसे कहा।
"भीतर आ जाओ।"
दोनों भीतर आ गए।
मीनाक्षी ने तुरन्त दरवाजा बंद किया और पलटी।
देवराज चौहान और जगमोहन हर्षा यादव को देख रहे थे जो कि निकर और कमीज पहने कुर्सी पर बैठा था। पास ही टेबल पर व्हिस्की का तैयार पैग पड़ा नजर आ रहा था।
वे लोग चंद क्षणों तक एक-दूसरे को देखते रहे।
मीनाक्षी आगे बढ़कर हर्षा यादव के पास आ पहुंची थी।
एकाएक हर्षा यादव के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी। वो उठा और कह उठा।
"मुझे तो आशा नहीं थी कि तुम लोगों का फोन भी आएगा। लेकिन तुम दोनों खुद ही आ गए। बैठो---खड़े क्यों हो ?"
देवराज चौहान और जगमोहन सोफा चेयरों पर जा बैठे।
"मीनाक्षी।" हर्षा यादव बैठते हुए बोला--- "इनके लिए पैग तैयार करो। ये...!"
"जरूरत नहीं।" जगमोहन बोला--- "हम यहां पीने नहीं आए।"
हर्षा यादव ने कंधे उचकाकर गहरी सांस ली।
"मर्जी तुम्हारी। मेरे ख्याल से तुम लोगों का दोबारा आना इस तरफ इशारा करता है कि मेरी सहायता के लिए ही आए हो। क्या किसी बड़े सरकारी ऑफिसर को मेरी समस्या बताई है जो...!"
"ऐसी कोई बात नहीं।" जगमोहन बोला।
"ओह!"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कश लेकर कह उठा।
"हमारे जाने के बाद कोई खास बात तो नहीं हुई?"
हर्षा यादव ने नजरें उठाकर उलझन भरी नजरों से मीनाक्षी को देखा फिर देवराज चौहान को ।
"क्या कोई खास बात होनी चाहिए थी ?" हर्षा यादव के चेहरे पर गंभीरता नजर आने लगी।
"जरूरी नहीं था कि कुछ हो।" देवराज चौहान मुस्करा उठा--- "जब हम यहां से निकलकर गए तो बाद में हमें महसूस हो गया कि हमारा पीछा किया जा रहा है। जरूरी नहीं कि वो पीछा यहीं से शुरू किया गया हो। ऐसे में मैंने सोचा कि कहीं तुम लोगों पर कोई मुसीबत न आ गई हो।"
"अभी तक तो हम ठीक हैं।" गंभीर स्वर में कहते हुए हर्षा यादव ने व्हिस्की का गिलास उठा लिया--- "तुम्हारी बात सुनकर डर लगने लगा है कि कहीं जॉर्ज लूथरा को हमारे यहां होने के बारे में पता न हो।"
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।"
हर्षा यादव ने घूंट भरा।
तभी मीनाक्षी कह उठी।
"तुम दोनों यूं ही तो आए नहीं होगे। बोलो---क्या बात करने आए हो ?"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह मीनाक्षी की तरफ उठी।
वो व्यक्ति कुर्सी पर बैठा था। सामने टी.वी. स्क्रीन थी, परंतु स्क्रीन पर कोई दृश्य नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ स्नो ही दिखाई दे रही थी। परंतु टी.वी. में से उसे देवराज चौहान, जगमोहन, हर्षा यादव और मीनाक्षी के बातें करने की आवाज आ रही थी। उसने तुरन्त घड़ीनुमा ट्रांसमीटर को चालू करके बात की।
"कहो।" घड़ी में से महीन आवाज निकलकर उसके कानों में पड़ी।
"देवराज चौहान और जगमोहन पुनः हर्षा यादव के पास जा पहुंचे हैं। मैं उन्हें स्क्रीन पर नहीं देख पा रहा। हर्षा यादव ने वो कपड़े उतार दिए हैं, जिसमें 'चिप' थी। वो कपड़े उसी कमरे में कहीं होंगे। इसलिए मैं उनकी आवाज ही सुन पा रहा हूं। वे अभी-अभी हर्षा यादव के पास पहुंचे हैं।"
"तुम उनकी बातें सुनो और खबर खास हो तो फौरन मुझे बताओ।"
"समड़ा गया।" इसके साथ ही संबंध कट गया। उसने घड़ी को ठीक करके सामान्य किया। कानों पर लगा हैड फोन ठीक करते हुए अपना ध्यान उनकी बातों पर लगा दिया।
देवराज चौहान या जगमोहन के कुछ कहने से पहले ही हर्षा यादव कह उठा।
"एक मिनट । जो तुम्हारा पीछा कर रहा था, हो सकता है वो अब भी पीछा कर...!"
"ऐसा कुछ नहीं है।" देबराज चौहान कह उठा--- "उसे मैंने पकड़ लिया है। वो मेरी कैद में है।"
"उसने क्या बताया कि क्यों पीछा कर रहा था?"
"उसने कुछ नहीं बताया। वो मुंह नहीं खोल रहा। उसका दूसरा साथी भाग गया जो कार में... !"
"उसे कहां कैद कर रखा है? क्या वो लोग वहां नहीं पहुंच सकते ?"
"नहीं, वो ऐसी जगह पर है, जहां कोई नहीं पहुंच पाएगा।" जगमोहन ने कहा।
"उसका मुंह खुलवाते तो शायद कोई काम की बात मालूम...!"
"कोशिश हो रही है।"
"मतलब कि तुम्हारा कोई आदमी उसके पास है ?"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
"ठीक है, फिर तो वो जल्दी ही मुंह खोल देगा। तुम कहो---क्या बात करने आए हो ?"
"तुम अपने पास मौजूद सामान को सरकार के पास पहुंचाना चाहते हो, ताकि जॉर्ज लूथरा के खिलाफ कार्यवाही हो कि वो दवा से देश की जनता को नुकसान न पहुंचा सके।" देवराज चौहान ने कहा।
"हां।"
"लेकिन ये संभव नहीं लग रहा। जॉर्ज लूथरा तुम्हारी ऐसी किसी कोशिश को सफल नहीं होने देगा।"
"यही कहने आए हो।" हर्षा यादव ने उसकी आंखों में देखा।
"मेरी बात का जवाब दो।"
"तुम्हारा कहना सही है।" हर्षा यादव ने गहरी सांस लेकर कहा--- "लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि...!"
"जॉर्ज लूथरा तुम्हारे लिए तब तक सारे रास्ते बंद रखेगा, जब तक कि वो कोड लॉक द्वारा वो जगह खुलवाकर वो दवा हासिल नहीं कर लेता। उसके बाद भी, उसके आदमी तुम्हारी तलाश करेंगे। वो तुम्हें छोड़ेगा नहीं।"
हर्षा यादव ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।
मीनाक्षी पास ही छोटे से स्टूल पर बैठ गई।
"कहते जाओ।" हर्षा यादव गिलास को एक तरफ रखता हुआ बोला--- "मैं सुन रहा हूं।"
देवराज चौहान ने कश लिया।
जगमोहन बे-मन सा बैठा था।
"मैं तुम्हें बिलकुल ही उलटा रास्ता बताने आया हूं। उस रास्ते को इस्तेमाल करके तुम सफल होने की चेष्टा भी कर सकते हो। जॉर्ज लूथरा को मुंहतोड़ जवाब भी दे सकते हो। शायद जान भी बचा सको।"
हर्षा यादव की आंखों में चमक आ ठहरी।
"रास्ता बताओ।"
"जहां वो दवाई पड़ी है, वो जगह तो तुम जानते ही हो।" देवराज चौहान ने कहा।
"जानता क्या, उस जगह के भीतर के सारे रास्ते की फिल्म मेरे, पास है कि दवा कहां पर... लेकिन तुम ये क्यों कह रहे हो---क्या कहना चाहते हो?"
"अगर इस मामले में अपना झंडा गाड़ना चाहते हो तो वो दवा अपने कब्जे में ले लो।"
हर्षा यादव समझने वाली निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा।
लेकिन मीनाक्षी उखड़े-तेज स्वर में कह उठी।
"बकवास ! क्या पागलों वाली बात कर रहे हो। हम जॉर्ज लूथरा से जान बचाते भागे फिर रहे हैं और तुम कहते हो कि उसकी जगह पर पहुंचकर वहां से वो दवा निकाल लाएं। बेवकूफी की भी हद होती है।"
"जॉर्ज लूथरा सोच भी नहीं सकता कि तुम लोग वहां जा सकते हो। चूंकि कोड लॉक वहां का किसी के पास नहीं है। ऐसे में उधर खास पहरा भी रखा नहीं होगा। जो होगा, वो अब लापरवाही से भरा होगा। ऐसे में उधर जाने में खतरा कम है और सड़क पर निकलने में खतरा ज्यादा है। तुम...!"
"देवराज चौहान !" मीनाक्षी तीखे स्वर में कह उठी--- "रास्ता बताने का शुक्रिया। इस रास्ते को हम याद रखेंगे।"
हर्षा यादव एकाएक उठा और कुछ दूर पड़ी बोतल उठा लाया और गिलास को पुनः तैयार करके घूंट भरा। वो एकाएक बहुत बेचैन-परेशान दिखने लगा था।
"क्यों---रास्ता बहुत ज्यादा पसंद आया क्या ?" जगमोहन उसी पल मुस्कराकर कह उठा।
मीनाक्षी ने उखड़ी नजरों से उसे घूरा!
"फालतू की बात मत करो।"
जगमोहन कंधों को हिलाकर रह गया।
"हम अपनी जान बचाने की फिक्र में हैं और तुम हमें मौत के मुंह में कूदने को कह रहे हो।"
"अपना-अपना सोचने का ढंग है।" जगमोहन ने कहा, फिर देवराज चौहान से बोला--- "ये बात इनकी समझ में नहीं आने वाली कि हम क्या कह रहे हैं। समझा लिया तुमने।"
देवराज चौहान ने खामोशी से कश लिया।
"मेरे ख्याल में सोहनलाल वाली बात पर गौर करते हैं।" जगमोहन ने पुनः कहा--- "चलें ?"
देवराज चौहान कश लेते, बेचैन हुए पड़े हर्षा यादव को देख रहा था। जबसे उसने अपनी बात कही थी, वो परेशान सा हो उठा था।
मीनाक्षी, हर्षा यादव को देखकर तीखे स्वर में कह उठी।
"देख लिया होगा तुमने कि कितनी अच्छी सलाह हमें देने आए हैं।"
हर्षा यादव ने घूंट भरा और गिलास रखकर मीनाक्षी की ओर देखा।
"मुझे देवराज चौहान की बात पसंद आई है।"
"क्या?" मीनाक्षी का मुंह खुला का खुला रह गया।
"हैरान क्यों हो रही हो?"
"तुम इनकी बेवकूफी वाली बात में फंस रहे हो।" वो चीखने जैसे स्वर में बोली।
"ऐसा कुछ नहीं है। मुझे सोचने दो। मैं...!"
"मैं नहीं चाहती हर्षा कि तुम इस बात पर सोचो।"
"प्लीज!" हर्षा यादव गंभीर स्वर में कह उठा--- "तुम अभी तक नहीं समझ पा रही हो कि देवराज चौहान ने कितनी बढ़िया बात कही है। मैं मानता हूं कि इसमें खतरा है। लेकिन ये बात पूरी हो जाए तो जॉर्ज लूथरा का क्या हाल होगा। मैं तो ये सोच रहा हूं। तुम भी सोचो । कितना अच्छा लगेगा।"
"हर्षा तुम...!"
"प्लीज मीनाक्षी ! मेरी सुनो। होगा वही, जो तुम चाहोगी, लेकिन मेरी बात भी सुन लो।" हर्षा यादव ने हाथ हिलाकर कहा--- "देवराज चौहान की ये बात कितनी सही है कि जॉर्ज लूथरा और उसके आदमियों का ध्यान उस तरफ तो बहुत कम होगा, जहां वो दवा रखी हुई है। वहां तक पहुंचने में खतरा कम है।"
"बाहर निकल नहीं सकते और वहां पहुंचने को कह...!"
"तुम बिना सोचे-समझे कहे जा रही हो। मैं...!"
"हमें ये काम नहीं करना।" मीनाक्षी गुस्से में चीखने वाले स्वर में कह उठी--- "मैं परेशान हो चुकी हूं, इन सब बातों से। सब कुछ यहीं छोड़ दो। आओ हम किसी तरह इस शहर से निकलकर दूर कहीं चले जाते हैं। जहां जॉर्ज लूथरा का डर न हो। जहां...!"
हर्षा यादव ने देवराज चौहान को देखा।
"देवराज चौहान ! क्या तुम सिर्फ रास्ता बता रहे हो या हमारा साथ भी दोगे, वहां से उस दवा को निकालने में?"
"साथ भी दूंगा। उस दवा की डकैती में मैं आगे रहूंगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"तुम...!"
"हर्षा!" मीनाक्षी पहले की तरह तेज स्वर में बोली--- "ये खतरनाक बात है, जो...!"
"मीनाक्षी!" हर्षा यादव ने उसे देखा--- "ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है। हर कोई इसका लोहा मानता है। मेरे ख्याल में ये इस मामले में हमारा साथ दे रहा है तो काम पूरा होने के चांसिस ज्यादा हो जाते हैं। बल्कि मैं तो कहूंगा कि हमारी किस्मत अच्छी रही जो देवराज चौहान मिल...!"
"मुझे तो आने वाला वक्त बुरा ही नजर आ रहा है हर्षा। तुम गलत बातों के फेर में...!"
"तुम कुछ देर चुप रहो। मुझे देवराज चौहान से बात करने दो।"
मीनाक्षी ने गुस्से से मुंह फेर लिया।
देवराज चौहान ने कश लिया।
हर्षा यादव ने घूंट भरकर देवराज चौहान को देखा।
जगमोहन के होंठ सिकुड़े पड़े थे।
"सारी योजना तुम बनाओगे डकैती मास्टर साहब।" हर्षा यादव का स्वर सोच से भरा था।
"हां, लेकिन पहले मैं ये जानना चाहूंगा कि वो दवा कहां पर...!"
"मालूम हो जाएगा। मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई ।" हर्षा यादव ने टोका--- "तुम योजना बनाओगे। दवा की डकैती करोगे। हमसे आगे रहोगे। सब कुछ तुम करोगे।"
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
"ये सब तुम क्यों करोगे। बहुत खतरा है। पैसा तुम्हें एक भी नहीं मिलना।"
"मैं...!" देवराज चौहान मुस्कराया--- "इसलिए करूंगा कि जॉर्ज लूथरा अपने बुरे इरादे में कामयाब न हो सके।"
"कोई और वजह?"
"मासूम लोग उस दवा वाले पानी का शिकार होकर लाखों की संख्या में बे-मौत न मरें।"
"इसके अलावा कोई और वजह ?"
"कोई नहीं।"
"लेकिन मुझे वजह नजर आ रही है।"
"अच्छा!" जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं--- "हमें तो नजर नहीं आ रही, फिर तुम्हें कहां से नजर, आ गई?"
हर्षा यादव ने घूंट भरते हुए दोनों को देखा, फिर कह उठा।
"तुम जान चुके हो कि वो दवा जॉर्ज लूथरा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।" वो एक-एक शब्द पर जोर देकर सोच भरे स्वर में कह रहा था--- "दूसरे तुम माने हुए डकैती मास्टर हो। दौलत के लिए डकैती करते हो। हो सकता है तुम्हारे दिमाग में ये बात हो कि तुम वो दवा हासिल करके, जॉर्ज लूथरा से सौदा कर लो। दवा वापस करने का। उससे करोड़ों रुपए तुम ले लो और...!"
"इस तरफ तो हमने सोचा ही नहीं था!" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा--- "तुमने अच्छा आईडिया दिया।" जगमोहन ने गर्दन घुमाकर तीखी निगाहों से देवराज चौहान को देखा--- "सुना तुमने । ये हमें अच्छा रास्ता बता रहा है। तुम्हें इस बारे में भी सोचना चाहिए कि उस दवा के बदले हम जॉर्ज लूथरा से करोड़ों रुपया ले सकते हैं।"
"गलत नहीं कहा इसने ।" देवराज चौहान ने कश लेते हुए शांत स्वर में कहा--- "लेकिन हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं हैं। ये बात इसे समझा दो। कह दो कि... !"
"मेरे समझाने की जरूरत ही कहां है। ये तो बिना समझाए ही बहुत कुछ समझा हुआ है।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।
हर्षा यादव, के चेहरे पर पुन: परेशानी नजर आने लगी थी। उसने घूंट भरा।
मीनाक्षी दांत भींचे बारी-बारी सबको देख रही थी।
"डकैती मास्टर साहब! तुम्हारा आईडिया मुझे पसन्द आया। लेकिन ये बात भी सच्ची है कि तुम उस दवा का सौदा जॉर्ज लूथरा से कर लोगे । हमें मरवा दोगे। और...।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा। वहम-शक में मत...!"
"सफाई मत दो।" हर्षा यादव ने उसकी आंखों में झांका--- "जो इन्सान दौलत के लिए डकैतियां करता रहा हो। वो दौलत पाने का मौका क्यों छोड़ेगा। माना कि जॉर्ज लूथरा से तुम्हारा टकराव हुआ था। तुमने उसे बहुत नुकसान दिया। इस वक्त तुम दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हो। लेकिन तुम दौलत पाने के लिए और वो दवा वापस पाने के लिए आपस में दोस्ती से भरी मुलाकात कर सकते हो।"
"और कर लो भला !" जगमोहन ने व्यंग से देवराज चौहान से कहा--- "यही सुनना बचा था। चलें अब । सोहनलाल वाली बात सही है। उससे चलकर बात करते...!"
"जगमोहन !" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में टोका--- "हर्षा यादव साहब गलत तो नहीं कह रहे। इनकी जगह कोई दूसरा होता तो शायद वो भी ये ही सोच लेता। इसने गलत कहा है तो बता दो।"
"माना कि ठीक कह रहा है।" जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा--- "अब बात हो गई और खत्म भी हो गई। यहां बैठकर वक्त खराब करने से क्या फायदा। हम...!"
तभी मीनाक्षी ने हर्षा यादव को देखकर कहा।
"हर्षा। रघुनाथ से बात करो।"
हर्षा यादव ने मीनाक्षी को देखा।
"रघुनाथ से! क्यों ?"
"वो अण्डरवर्ल्ड के लोगों को बखूबी जानता है।" मीनाक्षी सोच भरे, उखड़े स्वर में कह उठी--- "देवराज चौहान के रिकार्ड में ये बात भी है कि अगर ये अपनी मर्जी से किसी के साथ मिलकर काम करता है तो ईमानदारी से करता है।"
हर्षा यादव, होंठों को अजीब से ढंग से मोड़े मीनाक्षी को देखने लगा।
"रघुनाथ को फोन करके, उससे देवराज चौहान के बारे में पूछो तो सही।"
"ठीक है।" हर्षा यादव ने कहकर देवराज चौहान और जगमोहन को देखा--- "एक फोन कर सकता हूं।"
"करो।" जगमोहन बोला--- "लेकिन बात हमारे सामने करोगे।"
हर्षा यादव ने सिर हिलाया। घूंट भरकर गिलास रखते हुए उठा और सामने पड़े फोन के पास जा पहुंचा। कमरें में गहरा सन्नाटा छा गया था।
दूसरी तरफ से लाइन मिलते ही आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो!"
"रघुनाथ है?"
"आप कौन हैं ?"
"ये बात बताने वाली नहीं है! तुम रघुनाथ से बात कराओ या मैं फोन रखूं।" हर्षा यादव के स्वर में आदेश के भाव थे।
दो पलों की चुप्पी के बाद उसके कानों में आवाज पड़ी। ।
"होल्ड करो। देखता हूं रघुनाथ भाई हैं या चले गए।"
इसके बाद लाइन पर चुप्पी छा गई। मीनाक्षी की नजरें उस पर थीं।
जगमोहन भी हर्षा यादव को देख रहा था।
देवराज चौहान सोचों में लग रहा था।
एक मिनट से ज्यादा का वक्त हो गया, जब हर्षा यादव के कानों में रघुनाथ की आवाज पड़ी।
"कौन?"
"रघुनाथ।"
"पहचानी हुई आवाज है।" रघुनाथ की आवाज कानों में पड़ी--- "याद नहीं आ रहा। अपने बारे में बोलो।"
"हर्षा यादव।"
कुछ क्षणों के लिए तो उधर से आवाज नहीं आई।
"हर्षा यादव---तुम!"
"हैरान क्यों हो रहे हो?" हर्षा यादव ने कहते हुए गहरी सांस ली।
"तुमने कोई लफड़ा कर दिया है क्या?"
"पूरी बात बोल।" हर्षा यादव के चेहरे पर गंभीरता के भाव थे।
"सुनने को मिला है कि जॉर्ज लूथरा तेरे पीछे है। तू उसका कोई कीमती सामान ले उड़ा है।"
हर्षा यादव ने गहरी सांस ली।
"सुनने को मिल गया तेरे को?"
"अपना तो काम ही सुनना, खबरें इकट्ठी करना और खबरों को बेचना है। क्या किया तूने?"
"कुछ खास नहीं।"
"बोलता है कुछ खास नहीं और उधर जॉर्ज लूथरा के आदमी तेरे को शहर में हर फीट की जगह पर तलाशते फिर रहे हैं। वो तेरे को खत्म कर देना चाहते हैं। मालूम पड़ा आज तू दिन में उनके हाथ लगते-लगते बच गया।"
"हां!"
"गलत किया तूने। जॉर्ज लूथरा हस्ती है। उससे तेरे को पंगा नहीं लेना था।"
"अब तो ले लिया।"
"बचेगा नहीं। वो तेरे को मार डालेंगे। वैसे मामला क्या है?" रघुनाथ जैसे सबकुछ जानने को बेचैन था।
"बहुत सवाल कर रहा है तू?"
"मामला ही ऐसा है। किधर छिपा है?"
"तू क्या सोचता है कि तेरे को बताऊंगा?" हर्षा यादव सख्त स्वर में बोला ।
"मालूम है नहीं बताएगा।"
"तो फिर पूछता क्यों है?"
"तेरे साथ छोकरी भी है। वो उधर जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम में काम करती थी। क्या नाम है, भूल गया। वो...!"
"मीनाक्षी।"
"हां, वो ही---मीनाक्षी। मालूम पड़ा तू उससे शादी करना चाहता था लेकिन जॉर्ज लूथरा नहीं माना। इसी बात का पंगा पड़ा। ये ही बात थी या कोई और बात थी?"
"सब जानता है तो पूछता क्यों है?"
"पूछना पड़ता है, खबर पक्की करने के लिए। बहुत हिम्मत का काम किया लेकिन तू बचेगा नहीं। तेरे को अच्छी तरह मालूम है कि जॉर्ज लूथरा के हाथ कितने लम्बे हैं। वो छोकरी पक्का खूबसूरत होगी। तभी तो तूने...!"
"मेरे काम की कोई खबर है तो बता।"
"तेरे काम की तो नहीं, लेकिन अपने काम की खबर सुनने का इंतजार कर रहा हूं।"
"कैसी खबर?"
"तेरे मरने की। कभी भी तू मर जाएगा हर्षा?"
"ये बेकार की खबर है। अब तेरे पास अच्छी खबर नहीं होती।" हर्षा यादव तीखे स्वर में बोला।
"एक बात बताएगा क्या?" रघुनाथ के स्वर में गंभीरता थी।
"क्या?"
"तू जॉर्ज लूथरा का क्या लेकर भागा। सुनने को मिला कि जॉर्ज लूथरा के आदमी अब सिर्फ तेरे को ढूंढने-मारने का काम कर रहे हैं। तू उसकी कोई खास चीज लेकर ही भागा है, वरना जॉर्ज लूथरा तेरे को इतनी अहमियत नहीं देता। ऐसा तो नहीं वो मीनाक्षी, जॉर्ज लूथरा की चहेती हो और उसे तू ले उड़ा।"
"ऐसी कोई बात नहीं है।"
"तेरे फायदे की बात बोलूं।"
"बोल।"
"तेरे को हिन्दुस्तान से बाहर निकाल देता हूं, छोकरी के साथ। गुप-चुप काम होगा, किसी को पता नहीं चलेगा। पक्की तरह जॉर्ज लूथरा के हाथों से बच जाएगा। दूसरे देश में तेरे रहने का भी इन्तजाम कर दूंगा। तेरे को वहां छोकरी के साथ पूरी सैट करा दूंगा। बाकी की जिन्दगी मजे से कट जाएगी। इस सारे काम के नोट मोटे लगेंगे।"
"सोचूंगा।"
"तेरे सोचने तक जॉर्ज लूथरा के आदमियों ने तेरे को मार दिया तो ?"
"मैं उससे पहले सोचकर तेरे को जवाब दे दूंगा।" हर्षा यादव गंभीर स्वर में कह रहा था--- "एक बात तो बता।"
"क्या?"
"देवराज चौहान का नाम सुना है ?"
पल भर की चुप्पी के बाद रघुनाथ की आवाज आई।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान ?"
"हां।"
"तेरे को उसके बारे में मालूम करने का।"
"सवाल मत कर, जवाब दे।"
"बोल।"
"मालूम है तेरे को कि देवराज चौहान कहां मिलेगा ?"
"नहीं, ये बात नहीं पता।"
"हूं।" हर्षा यादव ने देवराज चौहान पर नजर मारी--- "ये देवराज चौहान कैसी आदतों का मालिक है?"
"उसकी आदतें बताने में बोत वक्त लगेगा। तू काम की बात पूछ।"
"देवराज चौहान किस हद तक विश्वास के काबिल है?"
"पूरी हद तक।"
"क्या मतलब?
"उसके साथ अगर कोई धोखेबाजी न करे तो वो भी नहीं करता। काम बेशक कुछ भी करता हो लेकिन ईमानदार है---अगर सामने वाला भी ईमानदार हो। जो कहता है पूरा करता है।"
"तू कहता है कि धोखेबाजी नहीं करता। दौलत सामने हो तो कोई भी बेईमान हो जाता है।"
"देवराज चौहान ऐसा नहीं है।"
"पैसा सबको बेईमान बनने पर मजबूर कर देता है रघुनाथ।"
"तू मेरे मुंह से क्या सुनना चाहता है कि मैं बोलूं देवराज चौहान बेईमान है ?"
"ये तो मैं नहीं बोला ।"
"तेरी बातों से तो ऐसा ही लगता है। सुन---देवराज चौहान तेरे से ज्यादा ईमानदार है। तेरे से ज्यादा हरामी भी बन जाएगा, अगर तूने उसे हरामीपन दिखाया। समझ गया कि और...।"
"समझ गया।"
"मामला क्या है देवराज चौहान क़ा।"
"रहने दो। देवराज चौहान से कुछ काम है। उसे तलाश करना चाहता हूं।"
"नहीं ढूंढ पाएगा उसे। मालूम नहीं वो किधर रहता है। अगर कोई उसका ठिकाना जानता होगा तो तेरे को बताएगा नहीं। तू सड़कों पर निकला तो जॉर्ज लूथरा के आदमी तेरे को गोली...!"
"मैं तेरे से फिर बात करूंगा।"
"वो सोचना---देश से बाहर जाने की। इस तरह पक्का बच जाएगा।"
"ठीक है, सोचकर तेरे को फोन करूंगा।"
"जॉर्ज लूथरा के आदमियों के हत्थे चढ़ने से पहले सोचना।"
"हां।" हर्षा यादव ने रिसीवर रखा और पलटा ।
सब उसे ही देख रहे थे।
हर्षा यादव ने मीनाक्षी से कहा।
"रघुनाथ कहता है कि देवराज चौहान पर विश्वास किया जा सकता है।"
"रघुनाथ गलत भी हो सकता है।" मीनाक्षी के होंठों से निकला।
"नहीं!" हर्षा यादव ने इन्कार में सिर हिलाया--- "रघुनाथ जिस ढंग से बोला, वो सच बोला।"
मीनाक्षी कुछ न कह सकी। परंतु वो हर्षा यादव की बात से सहमत नहीं लग रही थी।
हर्षा यादव आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठते हुए गिलास उठा लिया।
"हो गई तसल्ली।" जगमोहन बोला ।
"हां।" हर्षा यादव ने घूंट भरा।
"तो अब बता, वो दवा किधर रखी है। अपनी बात शुरू कर।"
हर्षा यादव ने गिलास को एक ही सांस में खाली कर दिया।
"हर्षा!" एकाएक मीनाक्षी बोली।
खाली गिलास रखते हुए हर्षा यादव ने मीनाक्षी को देखा।
"इन्हें अभी ये बताने की जरूरत नहीं कि वो जगह कहां है। इन्हें बाकी सब कुछ बताकर इनकी योजना सुनो कि कैसे वहां से दवा को निकाला जा सकता है। योजना को लेकर पहले हमारी तसल्ली तो हो।"
"मैं ऐसा ही करूंगा।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान का चेहरा शांत था।
"मैं तुम लोगों को टी.वी. पर वो जगह दिखाता हूं, जहां दवा रखी है। वहां के सारे इंतजाम बताता हूं। मीनाक्षी ठीक कहती है कि पहले दवा तक पहुंचने की योजना बताओ। कोड लॉक जैसी मुसीबत को कैसे दूर करोगे। जो कि मुझे कहीं से भी संभव नहीं लग रहा। ये सब सोचना---योजना बनाना तुम्हारा काम है। डकैती जैसी योजना मैं नहीं बना सकता। लेकिन तुम ऐसी योजना बनाने में एक्सपर्ट हो।" हर्षा यादव ने गंभीर स्वर में कहा, फिर मीनाक्षी को देखा--- "सी.डी. लगाओ। टी.वी. चलाओ।"
मीनाक्षी टी.वी. सैट की तरफ बढ़ गई।
''प्रवेश गेट पर दो गनमैन मौजूद रहते हैं वहां। वो गेट बहुत ही भीड़ भरी चलती सड़क पर है। गेट पर ही दो वीडियो कैमरे लगे हैं। गेट पर आकर कोई खड़ा भी होता है तो उसका चेहरा, उस इमारत के कंट्रोल रूम में मौजूद टी.वी. सैटों पर नजर आने लगता है। वहां हर किसी के भीतर आने के लिए पासवर्ड है। गेट के पास भीतरी तरफ गार्ड रूम है। किसी को भीतर आने देने से पहले वो लोग भीतर बात करते हैं।"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
"तुम जो बता रहे हो, उससे तो लगता है, जैसे ये जगह जॉर्ज लूथरा का ठिकाना न होकर कोई दूसरी ही जगह हो।"
हर्षा यादव ने गंभीरता से सिर हिलाया फिर कह उठा।
"है तो ये जॉर्ज लूथरा का ठिकाना ही, परंतु इसका रूप ऐसा है कि कोई सोच भी नहीं सकता कि इस जगह से जॉर्ज लूथरा का वास्ता होगा। ये बात कोई साबित भी नहीं कर सकता। दरअसल ये जगह शहर का नामी वाल्ट है। जिसके मालिक शहर के दो बड़े लोग हैं। ऐसे में कौन साबित करेगा कि उन दोनों पर जॉर्ज लूथरा की हकूमत चलती है। जॉर्ज लूथरा वक्त आने पर अपनी कीमती चीजें वहां रखता है। उधर उसके सामान को न तो कानून का डर, न ही चोरी का। सब कुछ सुरक्षित रहता है।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"जॉर्ज लूथरा सच में दूर की सोचकर चलता है।"
"यानी कि उस वाल्ट के भीतर वो दवा रखी हुई है।" देवराज चौहान का स्वर सपाट था।
"हां, उधर...!"
तभी मीनाक्षी की आवाज आई।
"चला दूं।"
तीनों की निगाह उसकी तरफ गई।
"चलाओ।"
मीनाक्षी ने टी.वी. ऑन किया, फिर सी.डी. प्लेयर का बटन दबाया और वापस आ बैठी।
तब तक टी.वी. पर दृश्य नजर आना शुरू हो गया था।
उन्हें देखते हुए हर्षा यादव कहता जा रहा था।
"ये देखो। ये बाहर का गेट है। जिसकी मैं बात कर रहा था। बाहर सड़क पर वाहन आ-जा रहे हैं। गेट से भीतर जो कमरा बना नजर आ रहा है, वो गार्ड रूम है। वहां से इंटरकॉम द्वारा भीतर बात की जाती है। अब स्क्रीन पर गेट के आस- पास लगे दो कैमरे नजर आ रहे हैं। उन कैमरों द्वारा कैच की गई हर हरकत भीतर कंट्रोलरूम में स्क्रीन पर देखी जाती है। कंट्रोल रूम में हर वक्त चार गनमैन रहते हैं। दो तो बाहरी हालात वाली स्क्रीनों पर नजर रखते हैं। अन्य दो उस इमारत के भीतर वाली जगह पर नजर रखते हैं। उस स्ट्रांगरूम के हर रास्ते-गैलरी और भीतरी हिस्सों के दृश्य उनके सामने लगी स्क्रीनों पर नजर आते हैं। अब तुम लोगों को जो स्क्रीन पर गेट से तीस फीट दूर मौजूद बारह फुट चौड़ा दरवाजा नजर आ रहा है, वो वहां के प्रवेश द्वार का हिस्सा है। यहां पर दो गनामैन खड़े नजर आ रहे हैं। इनके पास ही दीवार में माइक फीट है। जो छोटी सी जाली नजर आ रही है, वो माइक की जाली है। पास में स्विच लगा है। गनमैनों को भीतर बात करनी हो तो उस स्विच को दबाए रखकर बात कर सकते हैं। उस स्विच को दबाते ही माइक चालू हो जाता है। इस वक्त जिस शीशे के दरवाजे के पास वो खड़े हैं, वो बंद है। इस दरवाजे को तोड़ा नहीं जा सकता। गोलियों से भेदा नहीं जा सकता। बुलेट प्रूफ शीशें हैं। इनसे छेड़छाड़ की जाए तो अलार्म बजने लगता है। इस दरवाज़े को ये गनमैन नहीं खोल सकते। इन्हें माइक पर भीतर खबर देनी पड़ती है। तसल्ली होने के बाद ही भीतर से उस दरवाजे पर लॉक का सिस्टम हटाकर खोला जाता है, जो कि भीतर से इलैक्ट्रिक सिस्टम से अटैच है। ये देखो अब वो दरवाजा खुल रहा है। कैमरा अब दरवाजे से भीतर प्रवेश कर रहा है।"
सबकी नजरें टी.वी. स्क्रीन पर थीं। स्क्रीन पर आने वाले दृश्यों को देखकर हर्षा यादव बोलते हुए बता रहा था। उसके खामोश होते ही गहरा सन्नाटा छा गया।
हर्षा यादव पुनः बोला ।
"ये देखो। भीतर प्रवेश करते ही पन्द्रह फीट लम्बी गैलरी है। ये सीधा रास्ता है। पन्द्रह फीट चौड़ी गैलरी के दोनों तरफ सपाट दीवार है। कोई दरवाजा नहीं है। छत पर लगे कैमरों के लैंस नजर आ रहे हैं। कंट्रोल रूम में बैठे लोग पन्द्रह फीट का रास्ता तय करने के दौरान आने वाले व्यक्ति को पुनः भली-भांति देखते हैं। उन्हीं कैमरा लैंसों के साथ स्कैनिंग लैंस भी लगा है। जब आने वाला इन्सान उसके नीचे से गुजरता है तो उसके शरीर की पूरी स्कैनिंग उसी पल कंट्रोल रूम में मौजूद स्क्रीन पर भेजता है। यानी कि अगर आने वाले व्यक्ति के पास कोई हथियार वगैरह है तो व्रो स्क्रीन पर नजर आने के साथ-साथ 'बीप' की आवाज टी.वी. से निकलनी शुरू हो जाती है। यानी कि वाल्ट के भीतर जाने से पहले उस व्यक्ति से हथियार ले लिया जाता है और जब वो वापस जाता है तो उसका हथियार उसे वापस कर दिया जाता है।"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह स्क्रीन पर थी।
"ये देखो अब गैलरी खत्म हो गई। तिराहा आ गया। एक रास्ता सीधा जा रहा है। बाकी के दो रास्ते दाएं-बाएं मुड़ रहे हैं। यहां पर एक गनमैन खड़ा नजर आ रहा है। वो आने वाले को बाईं तरफ मुड़कर, एक दरवाजा खोल कर भीतर छोड़ देता है। जो कि स्वागत कक्ष है। वहां वाल्ट के दो जिम्मेवार कर्मचारी होते हैं। वाल्ट खोलने की सारी औपचारिकताएं पूरी की जाती है। आने वाले के पास कोई हथियार है तो उसकी खबर उन्हें कंट्रोल रूम से मिल गई होती है। वो हथियार लेकर, उसे रसीद दे दी जाती है। उसके बाद उसे एक आदमी वाल्ट रूम में ले जाता है। जहां आने वाले ने लॉकर खोलना होता है, वहां के वीडियो कैमरे ऑफ कर दिए जाते हैं। साथ चलने वाला व्यक्ति उसे लॉकर हॉल में ले जाकर छोड़ देता है और लॉकर में दूसरी चाबी घुमा आता है कि वो लॉकर खोल सके और ऐसे में लॉकर हॉल के प्रवेश द्वार पर लाल बत्ती जल जाती है जिसका मतलब होता है कि भीतर कोई है। जब भीतर वाला बाहर निकलता है तो वो बत्ती खुद ही बुझ कर हरी हो जाती है। साथ ही उस हॉल का दरवाजा, जो कि लिफ्ट के दरवाजे जैसा है खुद ही बंद होता चला जाता है। इसके अलावा भीतर के वीडियो कैमरे, जो कि बंद कर दिए गए होते हैं, वो खुद-ब-खुद ही पुनः चालू हो जाते हैं। हर रास्ते में, दीवारों पर जगह-जगह वीडियो कैमरे लगे हैं। बाहरी कोई भी व्यक्ति जब भीतर आता है तो, लॉकर हाल को छोड़कर बाकी के हर वक्त में, कंट्रोल रूम से उस पर नजर रखी जाती है। इस बारे में लापरवाही नहीं बरती जाती। बेशक लॉकर खोलने वाला अक्सर वहां आता-जाता हो।"
"यहां पर आदमियों की सिक्योरिटी की अपेक्षा, कैमरों पर ज्यादा भरोसा किया गया है।" देवराज चौहान बोला।
"ऐसी बात नहीं है। यूं कह सकते हैं कि इस वाल्ट में जगह-जगह गनमैन बिखरे नजर नहीं आते हैं। जॉर्ज लूथरा हर काम सोच समझ कर, अच्छे ढंग से करता है। ये उसकी पुरानी और पक्की आदत है। इस स्वागत कक्ष से लेकर लॉकर हाल के मुख्य दरवाजे तक जाने के रास्ते के बीच बंद दरवाजे पड़ते हैं, उनमें से चार दरवाजे ऐसे हैं कि जिनमें गनमैन भरे रहे हैं। यानी कि रास्तों पर न बिखर वो वहां मौजूद रहते हैं। तैयार रहते हैं। खतरे का सायरन बजने पर, या फिर इन्टरकॉम पर खतरे की अथवा किसी काम की खबर मिलने पर ही वे अपनी गनों के साथ बाहर निकलते हैं। ये देखो अब कैमरा स्वागत कक्ष से आगे, गैलरी में बढ़ रहा है। रास्तों को देखते रहो। कैमरा अब लॉकर हॉल के दरवाजे पर जाकर ही रुकेगा।"
वो स्क्रीन पर देखे जा रहे थे।
"ये देखो गैलरी खत्म होने वाली है। आगे मोड़ आ रहा है। गैलरी के कोने में जो दरवाजा है, वो गनमैनों से भरा रहता है। यानी कि हरे वक्त उसके भीतर छः गनमैन मौजूद रहते हैं। वहीं रहना उनकी ड्यूटी है। ये देखो--अब मोड़ मुड़ा जा रहा है। मुड़ गए। इस गैलरी के रास्ते में, दरवाजों में से दो दरवाजे ऐसे हैं कि जिनमें गनमैन मौजूद हैं। बाकी दरवाजों के पीछे भी वाल्ट के लोग मौजूद रहते हैं, परन्तु उनका संबंध वाल्ट सुरक्षा से नहीं है। वो वाल्ट के दूसरे कार्यों के लिए हैं। ये जो दरवाजा अब आ रहा है। इस दरवाजे वाले कमरे में गनमैन मौजूद हैं। गैलरी के कोने में जो दरवाजा आएगा उसमें गनमैन मौजूद हैं। हर जगह छः-छः गनमैन मौजूद रहते हैं।"
उनके देखते ही देखते गैलरी से कैमरा पुनः दाईं तरफ मुड़ गया।
"छत पर वीडियो कैमरे और स्कैनिंग लेंस भी लगा है। कहीं भी लापरवाही नहीं बरती जाती।" हर्षा यादव कहे जा रहा था--- "ये देखो, अब कैमरा आगे बढ़ना रुक कर, एक दीवार की तरफ हो गया है। देखने में ये दीवार है। परन्तु लॉकर हॉल में प्रवेश करने का रास्ता है ये। ध्यान से देखोगे तो स्क्रीन पर ऊपर से नीचे दीवार पर पतली सी लाइन नजर आ रही है। वो लाइन दोनों दरवाजों के पल्लों का जोड़ है। कहने को दीवार है ये। परन्तु हकीकत में स्टील का दरवाजा है। जो कि दीवार से कई गुणा ज्यादा मजबूत है। खास बात ये है कि इस दरवाजे के ठीक सामने ऐसा ही दरवाजा है, उसके पीछे छ: गनमैन मौजूद रहते हैं। वो देखो दीवार जैसा दरवाजा खुल रहा है। खामोशी से उसके दोनों पल्ले अलग-अलग सरक गये। छः फीट का रास्ता नजर आ गया। भीतर की तरफ लाल कारपेट बिछा दिखाई दे रहा है। देखते रहो। कैमरा आगे बढ़ रहा है।"
"दरवाजा कौन खोलता है ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"कन्ट्रोल रूम में बैठे व्यक्ति के पास स्विच बोर्ड लगा है। जब कोई लॉकर हॉल की तरफ जाता है तो स्क्रीन पर उसे बराबर देखा जाता है। जब वे लॉकर हॉल में जाने के लिए उस दरवाजे के पास पहुंचता है तो, वो बटन दबाकर दरवाजे को खोल देता है। वाल्ट का कर्मचारी लॉकर खोलने वाले को भीतर छोड़कर आ जाता है। लॉकर हाल का दरवाजा खुला रहता है। कंट्रोल रूम से, स्क्रीन द्वारा उस दरवाजे पर बराबर नजर रखी जाती है। भीतर वाला, जब बाहर निकलता है तो, कंट्रोल रूम से स्विच दबाकर दरवाजा बंद कर दिया जाता है। खुले दरवाजे के ठीक सामने ही गनमैनों का कमरा है। गड़बड़ होने पर सैकेण्डों में उन गनमैनों को इन्टरकॉम पर खबर कर दी जाती है और वे बाहर निकल आते हैं। स्क्रीन पर देखते रहो। लॉकर हॉल के भीतर के रास्ते देखो। भीतर लॉकर कैसे मौजूद है, देखते जाओ। स्क्रीन पर लॉकर हॉल की एक-एक चीज नजर आएगी। भीतरी माहौल सब समझ जाओगे।"
तीन-चार मिनट तक लॉकर हॉल का दृश्य स्क्रीन पर नज़र आता रहा।
"ये सब तो सामान्य लॉकर हैं। जॉर्ज लूथरा भला अपना कीमती सामान यहां क्यों रखेगा।" जगमोहन बोला ।
"देखते जाओ।" हर्षा यादव की निगाह भी स्क्रीन पर टिकी थी।
आखिरकार स्क्रीन पर पूरा लॉकर हॉल दिखा दिया गया।
"ये तो है लॉकरों का हॉल रूम। बहुत बड़ा है। तुम लोगों ने देख ही लिया है।" हर्षा यादव पुनः कह उठा--- "जगमोहन ने ठीक कहा कि ये सब तो सामान्य लॉकर हैं। जॉर्ज लूथरा अपना सामान यहां क्यों रखेगा। अपना सामान उसने यहां, इस लॉकर हॉल में नहीं रखा। ये देखो। लॉकरों के बीच अस्सी लॉकरों वाला ये हिस्सा। ये अस्सी लॉकर यूं तो किसी न किसी के नाम चढ़े हुए हैं। लेकिन हकीकत में ये सारे नाम बोगस हैं।"
"क्यों?"
"देख लो---स्क्रीन पर इस वक्त वो ही सारे लॉकर नजर आ रहे हैं। कैमरा उन पर ही है।"
"वो तो दिखाई दे रहा है।" जगमोहन बोला--- "लेकिन ये बोगस नामों पर क्यों चढ़े हैं?"
"अभी समझ में आ जाएगा।"
उनके देखते ही देखते कैमरा उन लॉकरों पर से हटा और छत की तरफ हो गया। छत पर छोटे-छोटे फानूस और रंग- बिरंगी लाइटें नजर आ रही थीं।
"ये क्या हो रहा है?" जगमोहन के होंठों से निकला।
देवराज चौहान के माथे पर भी बल नजर आने लगे थे।
"कोड लॉक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए कैमरा उन लॉकरों पर से हटा लिया गया।"
"मैं समझा नहीं।"
"देखते रहो। समझ में आ जाएगा।"
करीब डेढ़ मिनट बाद कैमरा छत की तरफ से हटा और पुनः उन अस्सी लॉकरों वाले बॉक्स पर आ टिका। जो कि करीब नौ फीट ऊंचा और बारह फीट चौड़ा था। देखते ही देखते वो हिस्सा जमीन में धंसने लगा। ज्यों-ज्यों वो जमीन में धंसता जा रहा था, पीछे का रोशनी भरा हिस्सा नजर आता जा रहा था।
सिर्फ आधे मिनट में वो लॉकरों वाला नौ बाई बारह फीट का हिस्सा इस तरह फर्श के नीचे चला गया जैसे वहां कभी कुछ हो ही नहीं। उसके पार रोशनी से भरा कमरा नजर आ रहा था। स्ट्रांग रूम जैसा था वो कमरा । वहां पर दीवारों के साथ-साथ ऐसी मजबूत बड़ी-बड़ी तिजौरियां रखी नजर आ रही थी कि जिन्हें बिना चाबी और कम्बीनेशन नम्बर के खोल पाना सम्भव नहीं था। कैमरा आगे पहुंच कर उस छिपे कमरे की तस्वीरें ले रहा था। उस कमरे का पूरा हाल बता रहा था। खिड़की दरवाजा तो दूर, वहां कोई रोशनदान भी नहीं था।
चुप्पी से वे सब स्क्रीन पर नजर आ रहे कमरे और वहां के सामान को देखते रहे।
आखिरकार वो कैमरा एक चार फीट की ऐसी तिजोरी पर जाकर रुक गया। जिसमें ऊपर-नीचे दो जगह चाबी डालने के बड़े-बड़े होल थे और बीचो बीच हाथ से घुमाने वाली छोटी-सी चक्री लगी थी। उस चक्री के आसपास 0 से 9 तक नम्बर थे। स्पष्ट था कि चाबी के अलावा उसे खोलने के लिए कम्बीनेशन नम्बर भी मिलाना पड़ता था। देखने से ही लग रहा था कि वो तिजोरी ऐसी मजबूत धातु की है कि जिसे तोड़ा-काटा नहीं जा सकता। गलाया नहीं जा सकता।
वहां छाई खामोशी को, तोड़ा हर्षा यादव ने।
"ये है वो तिजोरी, जिसमें जॉर्ज लूथरा ने वो दवा रखी है, जो करोड़ों लोगों की जान ले सकती है। लाखों घरों को बरबाद कर सकती है। पूरे देश की जड़ें हिला सकती है।"
देवराज चौहान ने स्क्रीन पर से नजरें हटाई और सिगरेट सुलगा कर कहा।
"कोड लॉक कैसे किया जाता है?"
हर्षा यादव ने देवराज चौहान को देखा फिर मीनाक्षी से कहा।
"स्क्रीन पर वो लॉकर लाओ। इन्हें कोड लॉक के बारे में बताना है।"
मीनाक्षी उठकर वापस सीडी प्लेयर के पास पहुंची और उंगली से एक बटन दबा दिया। टी.वी. पर अभी तक जो भी दिखा था, वो वापस (रिबाईंड) होने लगा।
देखते ही देखते स्क्रीन पर वो अस्सी लॉकर नजर आने लगे। मीनाक्षी ने पॉस का बटन दबाकर लॉकरों के द्वार को वहीं रोका और वापस आ बैठी।
"ये वो ही अस्सी लॉकर नजर आ रहे हैं, जिनका पूरा हिस्सा फर्श में समा गया था और पीछे के स्ट्रांगरूम में जाने का रास्ता बन गया था। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि इन अस्सी लॉकों को फर्जी नामों पर चढ़ा रखा है, क्योंकि अस्सी लॉकरों के रूप में ये स्ट्रांग रूम तक जाने का रास्ता है।" कुछ पल ठिठक कर हर्षा यादव पुन: कह उठा--- "ये अस्सी लॉकर ही कोड लॉक को बनाते हैं।"
"कैसे?" जगमोहन ने हर्षा यादव को देखा।
"अभी तुम लोगों ने अस्सी लॉकरों वाले, स्ट्रांग रूम के दरवाजे को फर्श में समाते देखा। इन लॉकरों वाले हिस्से को धकेलकर या किसी दूसरी तरह अपनी जगह से ईंच भर भी हिलाया नहीं जा सकता। इन अस्सी लॉकरों में बारी-बारी दो लॉकरों को खास ढंग से लॉक किया जाता है। ये काम एक ही बंदा करता था। जॉर्ज लूथरा का खास था वो जो कि मारा गया। जिस तरह एक के बाद दूसरे लॉकर में चाबी लगाई जाती है। उसी तरह पहले उसी एक में फिर दूसरे में चाबी घुमानी पड़ती है। तभी ये स्ट्रांग रूम का दरवाजा खुलता है। अब ये कैसे मालूम हो कि अस्सी लॉकरों में से किन दो लॉकरों को कोड लॉक के लिए इस्तेमाल किया गया है। अगर किन्हीं दो के साथ कोड लॉक होता तो, सब लॉकरों को खोलकर देखा जा सकता था। लेकिन यहां तो पहले उसे खोलना है, बाद में दूसरे को, यानी कि जिस तरह कोड लॉक किया गया था स्ट्रांग रूम का दरवाजा। उसी तरह खोलना पड़ेगा, तभी स्ट्रांग रूम में जाने का रास्ता बनेगा। नहीं तो उसे किसी दूसरी तरह नहीं खोला जा सकता। अब ये कैसे पता चले कि इन अस्सी लॉकरों में से किन दो लॉकरों को कोड लॉक के लिए इस्तेमाल किया गया है। इस बात को तो जॉर्ज लूथरा के फरिश्ते भी नहीं जान सकते। जो सख्त इन्तजाम उसने दूसरों के लिए किया था। उसी में आज वो खुद को फंसा महसूस कर रहा है। चाहकर भी वो अपने स्ट्रांग रूम में नहीं पहुंच सकता। वहां से वो दवा हासिल नहीं कर सकता। कोड लॉक तैयार करने वाली जर्मनी की कम्पनी का इंजीनियर्स ही यहां आकर कोई रास्ता निकाल सकता है। लेकिन कम्पनी के वहां के ऑफिस में आग लग गई थी। कई इंजीनियर्स और स्टाफ के लोग मारे गए हैं। इस वक्त वो कम्पनी बंद हो चुकी है। जॉर्ज लूथरा के आदमी जर्मनी जाकर, कम्पनी के किसी इंजीनियर्स को तलाश करने की चेष्टा करेंगे। मेरे ख्याल में तो जॉर्ज लूथरा ने अपने आदमियों को जर्मनी रवाना कर दिया होगा।"
देवराज चौहान ने कश लिया।
जगमोहन ने पहलू बदल कर देवराज चौहान को देखा।
"अस्सी लॉकरों में से कैसे पता चलेगा कि स्ट्रांगरूम का दरवाजा बंद करने के लिए, कौन से दो लॉकरों के तालों का इस्तेमाल किया गया है और उन दो लॉकरों में से पहले किस लॉकर में चाबी घुमाई गई है।" जगमोहन कह उठा।
"ये जान पाना असम्भव बात है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"मतलब कि तुम ये काम नहीं कर सकते?" हर्षा यादव कह उठा।
"नहीं।" देवराज चौहान ने उसे देखते हुए इन्कार में सिर हिलाया--- "उन अस्सी लॉकरों में से, उन दो लॉकरों को नहीं तलाशा जा सकता, जिन्हें इस्तेमाल करके कोड लॉक किया गया है। जबकि उन दो लॉकरों में चाबी भी सिलसिलेवार घुमानी है, जैसे कि उसे बंद किया गया है। हमने वहां चोरी-छिपे जाना है। हमारे पास इतना वक्त नहीं होगा कि कोड लॉक वाले दो लॉकरों को ढूंढ़ सकें। सच बात तो ये है कि कितना भी वक्त हो। उन अस्सी लॉकरों में से, उन दो खास लॉकरों की तलाश हम नहीं कर सकते। असम्भव है। लाइन खींच दो।"
हर्षा यादव मुंह लटकाए देवराज चौहान को देखने लगा।
मीनाक्षी ने गहरी सांस लेकर मुंह घुमा लिया।
जगमोहन के चेहरे पर राहत के भाव उभरे। टी. वी. स्क्रीन पर अभी भी अस्सी लॉकरों की तस्वीर नजर आ रही थी।
हर्षा यादव ने हाथ में पकड़ा गिलास एक ही सांस में खाली कर दिया।
"चलें।" जगमोहन ने देवराज चौहाने को देखा--- "सोहनलाल वाली बात पर ध्यान देते...।"
"हर्षा यादव।" देवराज चौहान, जगमोहन की बात पर ध्यान न देकर सोच भरे स्वर में कह उठा--- "अगर तुम उस इमारत के आसपास का नक्शा बताओ तो मैं कुछ सोचूं।"
"तुम्हें जो बताया है, उस पर सोचो। वो...।"
"डकैती तुमने करनी है। योजना तुमने बनानी है?" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका--- "वहां पहुंचने का रास्ता, स्ट्रांग रूम तक तुम अपने बलबूते पर पहुंच जाओगे ?"
"मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। ये तो तुमने करने को कहा था।"
"मैंने कहा था तो जो मैं पूछ रहा हूं, उसका जवाब दो।" देवराज चौहान बोला।
हर्षा यादव ने सोच भरे ढंग से गर्दन घुमाकर मीनाक्षी को देखा।
"तुम्हें पता है वाल्ट के आस-पास का माहौल ?"
"खास नहीं। मेरे ख्याल में वाल्ट के पीछे, बड़े-बड़े शो-रूम की बिल्डिंग है।" मीनाक्षी ने सोच भरे स्वर में कहा--- "वाल्ट के पीछे साथ लगती बिल्डिंग शायद फर्नीचर शो-रूम है।"
हर्षा यादव ने देवराज चौहान को देखा।
"इस तरह काम नहीं चलेगा।" देवराज चौहान ने इन्कार में सिर हिलाया--- "मुझे वो जगह पूरी तरह दिखानी...।"
"तुम करना क्या चाहते हो ?"
"स्ट्रांग रूम तक पहुंचने का रास्ता तलाश रहा हूं।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
"वो तो तुम्हें बता ही चुके हैं कि रास्ता...।" मीनाक्षी ने कहना चाहा।
"वो रास्ता है। जो कि बंद है।" देवराज चौहान बोला--- "मैं उसके अलावा किसी दूसरे रास्ते को तलाश कर रहा हूं कि जहां से उस स्ट्रांग रूम तक पहुंचा जा सके।"
"दूसरा रास्ता तो है ही नहीं, जो...।"
"मीनाक्षी।" हर्षा यादव ने टोका--- "तुम चुप रहो।"
"मैंने क्या गलत कह दिया जो...।"
"तुम देवराज चौहान की बात नहीं समझी। मैं समझ गया हूं।" हर्षा यादव मीनाक्षी को देखकर बोला--- "वो रास्ता तो है जो हमने इसे दिखाया है। ये उसके अलावा ऐसी जगह तलाश करना चाहता है, जहां से नया रास्ता बनाया जा सके।"
"ओह...।" मीनाक्षी ने जोरों से होंठ बंद कर लिए।
हर्षा यादव ने देवराज चौहान को देखा।
"क्या कह रहे थे तुम?"
"जो भी वाल्ट है, वो मुझे दिखाओ। छिपाने की कोई जरूरत नहीं। मैं उस इमारत के आस-पास के माहौल का जायजा लेने के बाद ही स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की कोई योजना बना सकूंगा। इस तरह...।"
"नहीं।" मीनाक्षी ने हर्षा यादव को देखा--- "हर्षा, मेरी मानो तो ये मामला यहीं...।"
"रघुनाथ ने पूरे विश्वास के साथ कहा था कि देवराज चौहान पर विश्वास किया जा सकता है।" हर्षा यादव ने मीनाक्षी को देखते हुए सोच भरे स्वर में कहा--- "इसे रघुनाथ की बात पर विश्वास करना चाहिए।"
मीनाक्षी के चेहरे पर असहमति के भाव उभरे रहे।
"इस वक्त तुम कह रही हो कि हम इस मामले से हट जाएं।"
"हां।"
"हटने से पहले देवराज चौहान को वो जगह बता देने में क्या हर्ज है। रास्ता मिल गया तो ठीक, नहीं तो हम अपने रास्ते और देवराज चौहान अपने रास्ते।" हर्षा यादव ने कंधे उचका कर कहा।
मीनाक्षी ने व्याकुल-सी निगाहों से बारी-बारी दोनों को देखा।
कुछ पल चुप्पी रही।
"मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता कि तुम्हारे मन में नाराजगी रहे। तुम कहोगी तो...।"
"ठीक है।" मीमाक्षी गहरी सांस लेकर धीमे स्वर में कह उठी--- "तुम्हें एक वादा करना होगा।"
"क्या?"
"अगर देवराज चौहान वाल्ट के खुफिया स्ट्रांग रूम तक पहुंचने का कोई रास्ता न निकाल पाया तो उसके बाद हम इस मामले से दूर हो जाएंगे। किसी तरह इस शहर से बाहर...।"
"वादा किया।" हर्षा यादव गम्भीर स्वर में बोला--- "फिर मैं इस मामले की तरफ देखूंगा भी नहीं। रघुनाथ कह रहा था कि वो हम दोनों को हिन्दुस्तान से बाहर भिजवा सकता है। पैसा मोटा लेगा, लेकिन काम कर देगा।"
"देखेंगे। बात कर लेंगे रघुनाथ से।" मीनाक्षी के चेहरे पर उलझन थी।
हर्षा यादव ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"रॉयल वाल्ट है वो, जिसकी मैं बात कर रहा हूं।" हर्षा यादव बोला।
जगमोहन चौंका।
सोहनलाल ने भी रॉयल वाल्ट का ही जिक्र किया था। उसने फौरन देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान हर्षा यादव को देख रहा था।
कुछ पल चुप्पी रही।
"अब तुम क्या करोगे?" हर्षा यादव ने पूछा।
"मैं रॉयल वाल्ट के आसपास का माहौल देखूंगा।" देवराज चौहान बोला--- "उसके बाद ही तय कर पाऊंगा कि वाल्ट के स्ट्रांग रूम तक किसी दूसरे रास्ते से पहुंचा जा सकता है या नहीं।"
जगमोहन उठ खड़ा हुआ।
"लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि तुम ये काम कर सकोगे या नहीं।" मीनाक्षी कह उठी--- "हमने भी अपना आगे का प्रोग्राम बनाना है। अगर तुम वहां पहुंचने का रास्ता नहीं बना सकते तो...।"
"फोन पर खबर कर देंगे।" जगमोहन ने कहा।
"कब तक?"
"एक-दो दिन में।" देवराज चौहान उठता हुआ बोला--- "तुम्हारे पास हमारा फोन आ जाएगा कि काम हो सकता है या नहीं। ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा।"
"ठीक है। मैं तो चाहता हूं कि मैं भी इस काम में तुम्हारे साथ रहूं लेकिन मेरा बाहर निकलना खतरे से भरा...।"
"तुम यहीं रहो। तुम्हारी अभी कोई जरूरत नहीं...।" देवराज चौहान ने कहा फिर जगमोहन से बोला--- "बाहर निकलते समय सावधान रहना। पहले की तरह शायद कोई हमारा पीछा...।"
"मैं ध्यान रखूंगा।"
"तुम लोगों को ऐसा खतरा है तो फिर हमें भी खतरा...।" हर्षा यादव ने कहना चाहा।
"अपना मामला तुम जानो। इस बारे में मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर...।"
"क्या हम दोनों तुम्हारे साथ नहीं चल सकते।" मीनाक्षी कह उठी--- "मेरे ख्याल में जहां तुम हो। वहां हमें भी खतरा कम ही रहेगा। हम खुद को ज्यादा सुरक्षित...।"
"मैं खुद किसी के यहां हूं और अभी बाहरी स्थिति से अनजान हूं। ऐसे में तुम दोनों को साथ लेकर यहां से बाहर जाना, और भी खतरे से भरा होगा।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
हर्षा यादव और मीनाक्षी देवराज चौहान को देखते रहे। बोले कुछ नहीं।
जगमोहन पलट कर दरवाजे की तरफ बढ़ा। ये देखकर मीनाक्षी उठ खड़ी हुई।
अगले चंद पलों में देवराज चौहान और जगमोहन दरवाजे से बाहर थे।
"जल्दी फोन करना।" पीछे से मीनाक्षी दरवाजा बंद करते हुए बोली--- "हमें तुम्हारे फोन का इन्तजार रहेगा।"
देवराज चौहान और जगमोहन सीढ़ियों की तरफ बढ़ते चले गए।
"सोहनलाल भी रॉयल वाल्ट की बात कर रहा था और ये मामला भी रॉयल वाल्ट का निकला।" जगमोहन कह उठा--- "क्या ख्याल है। रॉयल वाल्ट में घुसा जाए। वो दस अरब का हीरा भी हाथ लग जाएगा और...।"
"रॉयल वाल्ट के सुरक्षा प्रबंध तो तुमने देख ही लिए हैं।" देवराज चौहान बोला--- "उसके भीतर पहुंच पाना आसान काम नहीं है। जॉर्ज लूथरा ने सच में तगड़ी सिक्योरिटी का इन्तजाम किया है। मेरे ख्याल में सुरक्षा के खुफिया और भी इन्तजाम होंगे। जिनके बारे में हर्षा यादव को भी पता नहीं होगा।"
"शायद तुम ठीक कहते हो।" जगमोहन के होंठों से सोच भरा स्वर निकला।
सीढ़ियां तय करके वे नीचे उतरे और अपनी कार की तरफ बढ़ गए।
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