वो दौड़ रहा था।
दौड़ता जा रहा था। वो पैंतालीस-पचास को छूता, प्रभावशाली व्यक्तित्व का समझदार व्यक्ति लगता था। काले रंग का सूट और गुलाबी रंग की शर्ट पहन रखी थी। भागते हुए जूतों की आवाज स्पष्ट उभर रही थी वो जहां दौड़ रहा था, वो भरी-पूरी मार्केट की गैलरी थी। एक तरफ बड़ी-बड़ी दुकानें थी और बीस फीट के रास्ते के बाद गोल, मोटे-मोटे पिलर खड़े थे। उसके बाद सड़क थी, जहां से वाहन आ-जा रहे थे।
वो दुकानों के सामने गैलरी वाले रास्ते पर दौड़ रहा था।
वहां से आते-जाते लोगों से वो रह-रहकर टकरा रहा था।
उस व्यक्ति के चेहरे पर घबराहट और बदहवासी थी। टक्कर लगने से वहां चलते लोग लड़खड़ा जाते तो कुछ रुककर उसे देखने लगते। परंतु उसका ध्यान तो पूरी तरह तेज से तेज दौड़ने पर था।
एक छोटे से कमरे में कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने कानों पर हैडफोन फिट कर रखा था। उसी से अटैच माईक की पतली सी तार होंठों तक पहुंच रही थी। उसका ध्यान सामने नजर आ रही टी.वी. स्क्रीन पर था, जिस पर भरे-पूरे बाजार में वो व्यक्ति दौड़ता नजर आ रहा था। होंठों को सिकोड़े उसकी निगाह स्क्रीन पर टिकी थी।
एकाएक वो कुर्सी से थोड़ा आगे को झुका और स्क्रीन पर नजर आ रहे दौड़ते उस व्यक्ति पर नजरें टिकाए टी.वी. के पास रखी छोटी सी मशीन में लगे दो बटनों को दबाया तो एकाएक स्क्रीन के दृश्य में बदलाव आ गया। जिस लम्बी बिल्डिंग के नीचे दुकानों की कतार जा रही थी, उस इमारत का कोना नजर आने लगा था स्क्रीन पर। वहां मोड़ था। दौड़ते आदमी के लिए मोड़ करीब आता जा रहा था। अब या तो उसने दौड़ते हुए मोड़ मुड़ना था या फिर सामने सड़क को पार करके आगे वैसी ही मार्किट के फुटपाथ पर दौड़ना था।
स्क्रीन पर निगाह टिकाए व्यक्ति की नजरें मोड़ पर जा टिकी। उस बिल्डिंग से मोड़ मुड़ते ही उधर भी ठीक-ठीक संख्या में लोग आ-जा रहे थे। मोड़ मुड़कर फुटपाथ के किनारे सड़क की तरफ कोई व्यक्ति खड़ा था। वो व्यक्ति बेहद शांत भाव से दोनों हाथ जेबों में डाले इधर-उधर देख रहा था। सड़क के किनारे दस कदमों की दूरी पर कार खड़ी थी। उसके हाव-भाव से स्पष्ट था कि वो किसी का इंतजार कर रहा है।
वो और कोई नहीं देवराज चौहान था।
स्क्रीन पर नजर आ रहे देवराज चौहान को देखता रहा वो, जो कि पूरी तरह से उसे स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था। फिर उसकी निगाह दौड़ते व्यक्ति पर जा टिकी, जो उस मार्किट के दुकानों के मोड़ के पास पहुंच चुका था।
दौड़ते-दौड़ते वो व्यक्ति गैलरी समाप्त होते ही सीधा जाने की अपेक्षा मुड़ा और दौड़ा। चंद कदमों के बाद ही वो फुटपाथ के किनारे पर खड़े देवराज चौहान से जा टकराया।
जबरदस्त टक्कर थी।
देवराज चौहान संभल न सका और लड़खड़ा कर नीचे जा गिरा।
दौड़ने वाला भी खुद को न संभाल सका और लड़खड़ा कर गिरता हुआ लुढ़कनियां खाता चला गया।
कंधा फुटपाथ पर टकराने से देवराज चौहान की बांह में पीड़ा की तीव्र लहर तो दौड़ी, परंतु उसने खुद को जल्द ही संभाल लिया और उठा। कमीज की बांह झाड़ते हुए उसे देखा जो उससे टकराया था। वो अभी तक नीचे पड़ा गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। फिर वो उठने लगा। उठने का ढंग बता रहा था कि वो थक-टूटकर चूर हो चुका है।
देवराज चौहान उसके पास पहुंचा।
आते-जाते कुछ लोग ठिठक गए थे परंतु करीब आने की किसी ने चेष्टा नहीं की।
उसने गर्दन घुमाकर पास आ खड़े देवराज चौहान को देखा तो देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर उसकी बांह थामी और उसे खड़ा किया। वो हांफ रहा था। उसने जल्दी से मोड़ की तरफ देखा। वो घबराया हुआ था।
"तुम मुझसे टकराए थे।" देवराज चौहान उसकी हालत का जायजा लेता कह उठा।
"स... सॉरी!" कहते हुए उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। मोड़ की तरफ देखा--- "म... मैं देख नहीं पाया कि...!"
"क्या बात है?" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।
दोनों की नजरें मिली।
"बात?"
"तुम घबराए हुए हो। भाग रहे...!"
"कुछ लोग मेरी जान के पीछे हैं। वो मुझे मार डालना चाहते हैं।" उसकी आवाज में कम्पन उभरा--- "मैं उनसे बचने के लिए भाग रहा...!"
"मुकाबला क्यों नहीं करते उनका।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "कब तक भागते रहोगे ?"
"तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आएगा। उनकी संख्या ज्यादा है। हथियार है उनके पास। मैं अकेला और बिना हथियार के हूं। सड़क पर किसी के ऊपर गोली चला देना उनके लिए मामूली बात है। मुझमें और उनमें बहुत फर्क है। मेरे टकराने से तुम्हें जो तकलीफ हुई, उसके लिए माफी चाहता हूं। वो पीछे हैं, यहां मेरा वक्त बरबाद हुआ।" कहने के साथ ही वो पुनः भागने के लिए पलटा कि देवराज चौहान ने टोका।
"सामने कार खड़ी है। उसमें बैठ जाओ। बच जाओगे।"
उसने ठिठककर देवराज चौहान को सवालिया नजरों से देखा।
"तुम बचाओगे मुझे ?"
"बचा लूंगा। मैं बे-हथियार नहीं हूं और जरूरत पड़ने पर गोली चलाने से भी मुझे परहेज नहीं। मुझे सिर्फ इतना बता दो कि तुम कोई गलत काम करके तो भागे नहीं जा रहे हो---जो...!"
"नहीं! मैंने कोई गलत काम नहीं...।"
"कार में बैठ जाओ।"
वो अनिश्चित सा खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा।
देवराज चौहान उसे ।
कुछ पल बीते कि वो व्यक्ति एकाएक कार की तरफ दौड़ा और पीछे वाला दरवाजा खोलकर फुर्ती से भीतर जा बैठा। दरवाजा बंद कर लिया।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया।
जो दो-चार लोग मामला देखने-समझने के लिए खड़े हो गए थे। वो चल पड़े वहां से।
देवराज चौहान ने दो कश ही लिए होंगे कि एकाएक चार खतरनाक से आदमी दौड़ते हुए दुकानों की तरफ से निकलकर वहां ठिठके। वे भी हांफ रहे थे। उनकी नजरें हर तरफ गईं। तभी एक चीखा।
"तुम दोनों सड़क पार करके सामने की तरफ जाओ। हम इस तरफ देखते हैं। छोड़ना नहीं। देखते ही गोली मार दो।''
दो बदमाश सड़क पार करके मार्केट के दूसरे हिस्से की तरफ दौड़ गए।
दो इस तरफ, देवराज चौहान के पास से निकलकर आगे दौड़ते चले गए।
देवराज चौहान ने उन्हें देखा। कहा कुछ नहीं।
उस व्यक्ति को बचाने में कोई झगड़ा पैदा नहीं हुआ।
पांच मिनट भी न बीते होंगे कि सामने से जगमोहन आता दिखा। वो पास आ पहुंचा।
"बहुत देर लगा दी ?" देवराज चौहान बोला।
"हां।" जगमोहन मुस्कराया--- "लेकिन काम हो गया। चलें...?"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया।
दोनों कार के पास पहुंचे और भीतर बैठ गए। जगमोहन ने कार स्टार्ट की।
तभी देवराज चौहान की निगाह फुटपाथ पर सामने से आते दौड़ते दोनों बदमाशों पर पड़ी। जो कि अब वापस भागे आ रहे थे। यानी कि उन्हें मालूम हो गया था कि उनका शिकार इस तरफ नहीं आया।
जगमोहन कार आगे बढ़ाने लगा कि ठिठका। फौरन पलटकर पीछे वाली सीट पर देखा। वो व्यक्ति सीट पर दुबका सा बैठा था। चेहरे पर ठहरी घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी।
"कौन हो तुम?" जगमोहन के होंठ भिंच गए।
"यहां से चलो।" देवराज चौहान कह उठा--- "ये बात पांच मिनट बाद भी हो जाएगी।"
जगमोहन समझ गया कि ये व्यक्ति देवराज चौहान की रजामंदी से कार के भीतर है। सोच भरी मुद्रा में उसके होंठ सिकुड़े और उसने कार आगे बढ़ा दी।
कुर्सी पर बैठा वो व्यक्ति स्क्रीन पर नजरें टिकाए बैठा था। स्क्रीन पर उसने कार आगे बढ़ते देखी। तब देवराज चौहान और जगमोहन कार के भीतर थे। कार बराबर स्क्रीन पर नजर आ रही थी, बेशक वो कोई भी रास्ता पकड़ रही हो।
कुछ पलों बाद उसने कलाई पर बंधी घड़ी की सुईयां छेड़ी और तभी घड़ीं से भिनभिनाहट सी आवाजें आने लगी। वो घड़ी अब ट्रांसमीटर बन गई थी।
"हैलो!" वो व्यक्ति घड़ी को होंठों के पास ले जाकर बोला--- “हैलो सर, रामदेव दिस साइड। रामदेव...!"
"कहो।" मर्द की अस्पष्ट सी आवाज उस घड़ी से निकलती हुई उसके कानों में पड़ी।
"हर्षा यादव, इस वक्त देवराज चौहान के साथ उसकी कार में मौजूद है।" रामदेव बोला।
"गुड! जैसा हमने प्लान बनाया था, वैसा ही हो रहा है।" घड़ी में से निकली आवाज कानों में पड़ी।
"यस सर!"
"कार पर नजर रख रहे हो?"
"जब तक वो 'चिप' उसके कपड़ों में है, वो मुझे स्क्रीन पर नजर आता रहेगा।"
"गुड! वैरी गुड !! हर्षा यादव पर बराबर नजर रखो। देखो, देवराज चौहान और जगमोहन उसे कहां ले जाते हैं और उनमें क्या बातें होती हैं। ये तो शुरुआत है और हमें अपने मुकाम पर पहुंचना है। सतर्क रहो।"
"यस सर!"
इसके साथ ही घड़ीनुमा ट्रांसमीटर से आवाज आनी बंद हो गई। उसने घड़ी की सुईयां वापस घुमाकर, उसे पुनः घड़ी के रूप में ले आया। वक्त ठीक किया उसके बाद स्क्रीन पर नजरें टिका दी।
देवराज चौहान वाली कार स्क्रीन पर स्पष्ट दौड़ती नजर आ रही थी। जिसे की जगमोहन ड्राइव कर रहा था और पीछे वाली सीट पर हर्षा यादव मौजूद था।
■■■
जगमोहन को देवराज चौहान ने पीछे वाली सीट पर मौजूद व्यक्ति के बारे में बता दिया था।
सुनकर जगमोहन ने सिर हिलाया और ड्राइव करते हुए उस व्यक्ति से बोला।
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"हर्षा यादव।" वो अब सीट पर सीधा होकर बैठ गया था। चेहरे के भाव बहुत हद तक काबू में थे।
"क्या हुआ है तेरे को ? कौन थे तेरे पीछे ?" जगमोहन ने पूछा।
हर्षा यादव ने गहरी सांस ली, फिर कुछ पल खामोश रहकर कह उठा।
"रहने दो। ये मामला न जानने की कोशिश करो। जो है, उसे मुझ तक ही रहने दो।"
जगमोहन ने होंठ सिकोड़े, फिर कह उठा।
"मर्जी तुम्हारी ! कहां उतारूं तुम्हें---तुम...।"
उसी क्षण मोबाइल फोन की बेल बजी। हर्षा यादव के पास मौजूद फोन बजा था। उसने तुरंत जेब से फोन निकाला और बटन दबाकर बात की।
"हैल्लो!"
"हर्षा!" दूसरी तरफ से युवती की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम ठीक तो हो?"
"हां! मैं ठीक हूं। उन लोगों ने मुझे देख लिया था। शहर भर में वे लोग मुझे तलाशते फिर रहे हैं वो कहीं तो देख...!"
"तभी तो मैंने तुम्हें कहा था कि बाहर मत जाओ।" उधर से युवती ने बात काट कर कहा।
"जाना भी जरूरी था। मैं आ रहा हूं।"
"हर्षा!" इस बार युवती का स्वर चिन्ता से भरा था--- "ऐसा आखिर कब तक चलेगा। जॉर्ज लूथरा के सामने तुम कुछ भी नहीं हो। उसके आदमी तुम्हें ढूंढ रहे हैं। वो तुम्हें कभी भी मार देंगे।"
"तुम ठीक कहती हो।" हर्षा यादव का चेहरा कठोर होने लगा-- "कि जॉर्ज लूथरा के सामने मैं कुछ भी नहीं। उसके आदमी मुझे मार देंगे। लेकिन इस डर से मैं चूहे की तरह कहीं भागकर छिपूंगा नहीं। अब तक मुकाबला...!"
"प्लीज हर्षा! बात को समझो, मैं...!"
"फोन पर बहस मत करो। मैं आ रहा हूं।" कहने के साथ ही उसने फोन बंद किया और वापस जेब में डाला।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
जॉर्ज लूथरा !
ये नाम नया नहीं था उनके लिए। खूंखार... खतरनाक आतंकवादी जॉर्ज लूथरा । दौलत ही उसके लिए सब कुछ थी। वो हर देश के लिए---हर देश के खिलाफ काम करने को तैयार था। अगर उसे उसकी पसंद के नोट मिलते हों। उसका खतरनाक नेटवर्क दुनिया के लगभग हर देश में फैला हुआ था।
पहले टकराव में देवराज चौहान और जॉर्ज लूथरा के अरमान अधूरे रह गए थे। कोई भी एक-दूसरे पर जीत हासिल नहीं कर सका था। दोनों ही एक बार फिर टकराने की इच्छा रखते थे।
(जॉर्ज लूथरा के बारे में जानने के लिए पढ़ें देवराज चौहान सीरीज का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'दौलत मेरी मां')
"तुम किस जॉर्ज लूथरा की बात कर रहे हो ?" एकाएक जगमोहन ने टोका।
हर्षा यादव ने जगमोहन की तरफ नजर मारी। खामोश रहा।
"जवाब नहीं दिया तुमने?" जगमोहन ने पुनः कहा।
"आप लोगों ने मुझे खतरे से बचाया। मेरी जान बचाई। उसकी मेहरबानी। इससे आगे मैं कोई बात का जवाब नहीं दूंगा।"
"मैं तुम्हें बताना चाहता था कि एक जॉर्ज लूथरा को मैं भी जानता हूं।" जगमोहन ने कार ड्राइव करते हुए शांत स्वर में कहा-- "अंतराष्ट्रीय आतंकवादी है वो...।"
"क्या?" हर्षा यादव के होंठ भिंच गए। माथे पर बल नजर आने लगे--- "तुम उसे जानते हो ?" इसके साथ ही उसने फुर्ती से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
"रिवॉल्वर वापस रख लो।" देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर उसे देखा--- "वो हमारा दोस्त नहीं, दुश्मन है।"
हर्षा यादव कुछ पलों तक उन्हें बारी-बारी देखता रहा, फिर बोला।
"पुलिस वाले हो तुम लोग ?"
"नहीं।"
"फिर कौन हो?"
"जब तक तुम अपने बारे में और ये नहीं बताओगे कि जॉर्ज लूथरा को लेकर तुम किस मामले में फंसे हुए हो। हमारे बारे में कुछ नहीं जान सकोगे।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "जॉर्ज लूथरा का और हमारा कुछ पहले टकराव हुआ था। लेकिन वो हमारे हाथों से बच गया और हम उसके हाथों से बच गए। वो सच में खतरनाक इन्सान है। जो भी खेल खेलता है, दूर की सोचकर खेलता है। लेकिन हम में जल्दी ही टकराव होगा। क्योंकि ऐसी इच्छा उसकी भी है और मेरी भी।"
हर्षा यादव खामोश, कुछ उलझन में फंसा नजर आने लगा। रिवॉल्वर उसने हाथ में ही पकड़े रखी। उसके चेहरे से लग रहा था कि वो तेजी से सोच रहा है।
"तुमने मुझे कहा था कि तुम्हारे पास हथियार नहीं है। लेकिन तुम्हारे पास रिवॉल्वर है।"
"हां!" हर्षा यादव के होंठ हिले--- "उस वक्त जल्दी में था। बात खत्म करने के लहजे से मैंने ये कह दिया था। वो चार थे, जो मेरे पीछे थे। एक रिवॉल्वर से मैं उनका मुकाबला नहीं कर सकता था। करता तो वहां मौजूद आस-पास के निर्दोष लोग मरते और उनमें से किसी की चलाई गोली मुझे खत्म कर देती। इसलिए ठीक यही समझा कि भागकर जान बचाऊं। रिवॉल्वर तभी निकालूं, जब पानी सिर से ऊपर हो जाए।"
"कहां उतारूं तुम्हें ?" जगमोहन कह उठा।
हर्षा यादव के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर को देखा फिर उसे वापस जेब में डाल लिया। चेहरे पर उलझन की छाप थी।
"जॉर्ज लूथरा के आदमी बेसब्री के साथ मेरी तलाश कर रहे हैं। वो जाने मुझे कहां टकरा जाएं। इस वक्त मैं उनका मुकाबला करने को तैयार नहीं हूं। अगर मुझे मेरी पसंद की जगह पर छोड़ दो तो...!"
"कहां?"
हर्षा यादव ने बताया।
"इस जगह के बारे में जॉर्ज लूथरा को मालूम हुआ तो वो...!"
"नहीं मालूम। दो दिन पहले ही मैंने इस जगह को ठिकाना बनाया है। यहां पर मैं सुरक्षित हूं।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
"मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम लोगों पर विश्वास करूं या न करूं। क्या मालूम तुम मेरे काम आ सको या नहीं।"
"तुम्हारे काम आने का ठेका हमने नहीं लिया।" जगमोहन बोला--- "फिर भी शायद हम तुम्हें कोई ठीक सलाह दे दें, क्योंकि ये मामला जॉर्ज लूथरा जैसे खतरनाक आतंकवादी से वास्ता रखता है।"
हर्षा यादव ने कुछ नहीं कहा।
कार दौड़ती रही।
आधे घंटे बाद कार हर्षा यादव की बताई जगह पर पहुंची। ये जगह समन्दर के करीब चार मंजिला इमारत थी। जिसके भीतरी हिस्से को फ्लैटों में बांटा हुआ था।
जगमोहन ने कार प्रवेश द्वार पर रोक दी थी।
"उतरो।" जगमोहन बोला--- "इस वक्त तुम्हें इतनी ही सलाह दे सकता हूं कि तुम जॉर्ज लूथरा का मुकाबला नहीं कर सकते। उसके आदमियों से नहीं बच सकते। आज बच गए हो तो कल नहीं बच सकोगे। बेहतर यही होगा कि जो भी मामला है, उससे पीछा छुड़ाकर, कहीं दूर जाकर खामोश जिन्दगी बिताना शुरू कर दो।"
हर्षा यादव ने देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारी।
"अगर मैं तुम लोगों से बात करूं तो बात तुम तक ही रहेगी? बाहर गई तो...!"
"चिन्ता मत करो।" जगमोहन ने टोका--- "तेरी बात हमसे पार नहीं जाएगी।"
"ठीक है। कार को भीतर ले लो। पार्किंग में रोको। फ्लैट में बैठकर बात करते हैं।" वो गंभीर स्वर में कह उठा।
■■■
उस बिल्डिंग के जिस फ्लैट में हर्षा यादव के साथ देवराज चौहान और जगमोहन पहुंचे, वो साधारण-सा फ्लैट था। एक ड्राईंगरूम जैसा हॉल था और दो अन्य कमरे।
जिस युवती ने दरवाजा खोला था, वो तीस की उम्र को छू रही थी। सांवले रंग की, अच्छी कद-काठी की खूबसूरत और आकर्षक थी वो। उसमें सबसे ज्यादा खासियत उसका शरीर था। शरीर के उभार थे। अच्छे ढंग से उसने छातियां बांध रखी थीं और कुल्हों के उभार नजरों को खींच रहे थे। बहरहाल इन बातों का असर देवराज चौहान और जगमोहन पर तो होने से रहा। इस वक्त उसने सलवार-कमीज पहन रखी थी। ऐसे में उसके शरीर के उभार और भी अच्छे ढंग से, नजरों को खींचने की क्षमता रखते थे।
दरवाजा खुलते ही वो तीनों भीतर आ गए।
युवती दरवाजा बंद करते हुए गंभीर स्वर में कह उठी।
"हर्षा! अब बाहर जाना बंद कर दो।"
हर्षा यादव ने ठिठककर उसे देखा, फिर गहरी सांस लेकर कह उठा।
"आज जॉर्ज लूथरा के आदमियों की नजरों में आ गया था। इन दोनों की मेहरबानी से बचा।"
युवती ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"ये लोग कौन हैं?"
"अभी मैं इनके बारे में कुछ नहीं जानता।" हर्षा यादव ने कहते हुए देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारी।
"तो फिर इन्हें साथ क्यों ले आए? जानते नहीं कि तुम खतरे में... !"
"मीनाक्षी।" हर्षा यादव ने टोका--- "ये लोग जो भी हैं, कम-से-कम मेरा बुरा नहीं चाहते। इन्होंने मुझे उन लोगों से बचाया है। ऐसे में इनका उन लोगों से जानलेवा झगड़ा भी हो सकता था। लेकिन सब ठीक रहा।" शांत स्वर में कहते हुए हर्षा यादव ने दोनों को देखा। वो सोफे पर बैठ चुके थे--- "एक और खास बात इन्होंने कही।"
"क्या?"
"कुछ महीने पहले इनका जॉर्ज लूथरा से टकराव हुआ था।"
मीनाक्षी चौंकी, फिर फौरन ही संभल गई।
"इन्होंने ये बात कही और तुमने मान ली!"
"क्या मतलब?"
"तुम अच्छी तरह जानते हो हर्षां कि जॉर्ज लूथरा से टकराने वाला जिन्दा नहीं बच सकता।" मीनाक्षी के स्वर में तीखापन आ गया--- "और ये जिंदा हैं। अगर तुम दूसरों की ऐसी ही बेवकूफियों भरी बातों में आते रहे तो जल्दी ही बुरे फंसोगे।"
हर्षा यादव ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"मुझे इनकी बात सच लगी थी। सच्चाई महसूस हुई थी इनके शब्दों में।" हर्षा यादव कह उठा।
मीनाक्षी की नजरें देवराज चौहान और जगमोहन की तरफ उठीं।
देवराज चौहान तब सिगरेट सुलगा रहा था।
"तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर हैं हर्षा। पूरी तरह अनजान लोगों पर तुमने विश्वास कर लिया। इन्हें यहां तक ले आए। जबकि किसी तरह से इनका जॉर्ज लूथरा से संबंध भी है। ये लोग भला जॉर्ज लूथरा से क्या टकराएंगे। क्या तुम सोच सकते हो कि ये लोग जॉर्ज लूथरा जैसे खतरनाक इंसान से टकराने का दम रखते हैं। मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा। क्या ये जॉर्ज लूथरा के साथी नहीं हो सकते ? तुम तो...!"
"प्लीज मीनाक्षी ! मुझे इनसे बात कर...।"
"ये गलत है हर्षा। अभी भी वक्त है। इन्हें बाहर कर दो। इनसे कोई बात मत करो। हमें अजनबियों से जॉर्ज लूथरा के बारे में कोई भी बात नहीं करनी चाहिए। हम मुसीबत में...।"
तभी हर्षा यादव आगे बढ़ा और उनके सामने सोफे पर जा बैठा।
देवराज चौहान ने कश लिया।
जगमोहन ने मीनाक्षी को देखा, फिर मुस्कराकर हर्षा यादव से कहा।
"चलें हम?"
"मीनाक्षी ने जो कहा, वो गलत नहीं है।" हर्षा यादव ने गंभीर स्वर में कहा--- "ये सच है कि जॉर्ज लूथरा से टकराकर जिन्दा बच पाना संभव नहीं है। क्या सच में तुम लोग जॉर्ज लूथरा से टकराए थे, या यूं ही हवा में...!"
"सच में।"
"मैं कैसे मान लूं?"
"हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है कि हम अपनी बात की सच्चाई साबित कर सकें।" जगमोहन बोला--- "मालूम होता कि ऐसा वक्त हमारे सामने आना है तो हम अवश्य कोई सबूत अपनी जेबों में डाले रखते।"
"मेरी बात को समझने की कोशिश करो।" हर्षा यादव गंभीर स्वर में कह उठा--- "इस वक्त मैं जिस मामले में फंसा हूं, वो बहुत ही ज्यादा गंभीर और जॉर्ज लूथरा के लिए कीमती मामला है। मीनाक्षी ठीक कहती है कि ऐसी बातें हर किसी से नहीं की जा सकतीं।"
"चाहते क्या हो?" देवराज चौहान बोला।
"तुम लोगों के बारे में जानना कि तुम दोनों कौन हो। ये जानने के बाद ही मुझे फैसला करना होगा कि तुम दोनों से इस मामले पर बात करूं या न करूं।" हर्षा यादव की निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर थी। तभी उसने कंधे पर मीनाक्षी का हाथ महसूस किया। वो पास आ पहुंची थी।
कुछ पलों के लिए वहां चुप्पी रही।
"अगर तुम अपने बारे में नहीं बताओगे तो हम कोई भी बात नहीं कर पाएंगे।" हर्षा यादव कह उठा।
"ये देवराज चौहान है।" जगमोहन ने हर्षा यादव की आंखों में देखते हुए कहा।
हर्षा यादव की आंखें सिकुड़ीं।
मीनाक्षी की उंगलियां उसे अपने कंधे में चुभती महसूस हुई।
हर्षा यादव ने गर्दन घुमाकर मीनाक्षी को देखा। मीनाक्षी की आंखों में अजीब से भाव आ गए थे।
"ये सच है कि देवराज चौहान का जॉर्ज लूथरा से टकराव हुआ था।" हर्षा यादव बोला।
"तुम!" मीनाक्षी बोली--- "कौन... देवराज चौहान हो ?"
"देवराज चौहान।" जगमोहन बोला--- "डकैती मास्टर देवराज चौहान। तुम्हारे चेहरे से लगता है कि तुमने ये नाम सुन रखा है। देवराज चौहान का नाम सुनकर तुम्हें कुछ हुआ लगता है।"
"तुम कौन हो?"
"जगमोहन।"
हर्षा यादव ने पुनः नजरें उठाकर मीनाक्षी को देखा।
वो कुछ कहने लगा कि मीनाक्षी ने टोका।
"हर्षा। तुम इनसे बातें करो। मैं दो मिनट में आती हूं।" कहने के साथ ही वो पलटी और दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई।
हर्षा यादव ने मीनाक्षी को जाते देखा, फिर दोनों से बोला ।
"मुझे मालूम है कि चंद महीने पहले देवराज चौहान नाम का डकैती मास्टर अपने कुछ साथियों के साथ जॉर्ज लूथरा से टकरा बैठा था और जॉर्ज लूथरा को भारी नुकसान हुआ था। लेकिन मुझे कैसे विश्वास हो कि तुम वो ही देवराज चौहान हो, जो जॉर्ज लूथरा के दुश्मन हो और...!"
तभी जगमोहन मुस्कराकर उठते हुए बोला।
"जॉर्ज लूथरा का पता-ठिकाना हमारे पास नहीं है। वरना उससे लिखवा लाता।"
"तुम... तुम खड़े क्यों हो गए?" हर्षा यादव की आंखें एकाएक सिकुड़ी।
"तुम देवराज चौहान से बातें करो। मैं तुम्हारी मीनाक्षी से मिलकर आता हूं।" जगमोहन के स्वर में हल्का सा तीखापन आ गया--- "मैं नहीं चाहता कि उसे हमारी मौत का इंतजाम करने का मौका मिले।"
"ऐसा कुछ नहीं है। तुम यहीं बैठो। मैं...!" कहते हुए हर्षा यादव ने उठना चाहा।
उठते-उठते हर्षा यादव ठिठक गया।
देवराज चौहान के हाथ में रिवॉल्वर देख ली थी उसने। नाल का रुख उसकी तरफ ही था।
जगमोहन उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया, जिधर मीनाक्षी गई थी।
"बैठो।" देवराज चौहान का स्वर हर भाव से परे था।
हर्षा यादव वापस बैठ गया।
"तुम्हें कोई बात करनी हो तो मेरे से कर सकते हो।" देवराज चौहान बोला। रिवॉल्वर उसके हाथ में दबी थी।
हर्षा यादव ने देवराज चौहान को देखा। हाथ में दबी रिवॉल्वर को देखा और गहरी सांस लेकर वहीं बैठा रहा। कुछ कहने-बोलने की उसने जरा भी चेष्टा नहीं की।
"जब मेरा जॉर्ज लूथरा से झगड़ा हुआ था, जब तुम कहां थे?" देवराज चौहान ने पूछा।
(जॉर्ज लूथरा के बारे में जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'दौलत मेरी मां')
हर्षा यादव बेचैनी से बैठा रहा। जवाब में कुछ नहीं कहा। कभी-कभार उस दरवाजे की तरफ देख लेता था, जिधर पहले मीनाक्षी, फिर जगमोहन गया था।
■■■
जगमोहन उस खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश करते ही ठिठका।
मीनाक्षी, कोने में मौजूद टेबल पर रखे कम्प्यूटर में व्यस्त थी। कुर्सी पर बैठी 'की बोर्ड' के बटनों से खेल रही थी। कभी-कभार उसका हाथ माउस पर भी पहुंच जाता।
कम्प्यूटर स्क्रीन पर एक तरफ किसी व्यक्ति या औरत का चेहरा नजर आता और साथ में उसके बारे में ब्यौरा होता। ब्यौरे में नाम-पता और उसके कामों का जिक्र था।
जगमोहन के होंठ सिकुड़े। वो शांत भाव से चलता हुआ उसके पीछे जा खड़ा हुआ।
"आ गए तुम ?" वो अपने काम में व्यस्त, बिना पीछे देखे बोली।
जगमोहन के होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कान उभरी।
"तुम्हें मालूम था कि मैं आऊंगा ?" जगमोहन ने कहा।
"हां। तुम या तुम्हारा साथी, कोई एक अवश्य मेरे पीछे आएगा।" वो अपने काम में लगी कहे जा रही थी--- "क्योंकि तुम लोग खुद को देवराज चौहान और जगमोहन कह रहे हो। ऐसे में ये जरूर जानना चाहोगे कि मैं इधर क्या करने आई?"
"ठीक समझी तुम। हम खुद को देवराज चौहान और जगमोहन कह नहीं रहे, हैं भी। तुम...!"
"अभी मालूम हो जाएगा।"
जगमोहन की निगाह स्क्रीन पर जा टिकी।
"क्या इसमें हमारा रिकार्ड भी दर्ज है?"
"तस्वीरें भी हैं।"
"गुड! ये सब कहां से लिया ?"
"जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड का सामान है।" मीनाक्षी का स्वर गंभीर हो उठा--- "मैं उसके यहां डैस्क वर्क करती थी। उसके रिकार्ड रूम में मेरा आना-जाना रहता था। ऐसे में महीनों की मेहनत के पश्चात वहां मौजूद रिकार्ड की कापियां बनाती चली गई। जितना मैं करना चाहती थी, उतना नहीं कर पाई। यूं समझो कि जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम के एक प्रतिशत की ही कॉपी कर सकी। फिर मौका नहीं मिला।"
कुछ पल की खामोशी के बाद जगमोहन बोला।
"मामला क्या है ? जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम...!"
"तुम्हारा साथी भी ये बातें जानना चाहेगा।" मीनाक्षी ने टोका।
"हां।" जगमोहन का सिर हौले से हिला। वो उसके पीछे खड़ा था।
"तो अभी सवाल मत पूछो। एक ही बार में बात...!" कहते-कहते वो रुक गई।
स्क्रीन पर देवराज चौहान की तस्वीर आ ठहरी थी।
जगमोहन की निगाह भी स्क्रीन पर जा ठहरी।
स्क्रीन के एक कोने में देवराज चौहान का चेहरा था। बाकी के हिस्से में देवराज चौहान का ब्यौरा लिखा हुआ था। ब्यौरे में देवराज चौहान का नाम, काम और खुलासा तौर पर हुलिया लिखा था । पते की जगह पर न मालूम टाइम किया हुआ था।
"तुम लोग सच कह रहे हो।" मीनाक्षी स्क्रीन से नजरें हटाकर गर्दन घुमाकर जगमोहन को देखकर गहरी सांस लेते हुए कह उठी--- "तुम्हारा साथी तो सच में हिन्दुस्तान का जाना-माना डकैती मास्टर है।"
"हमनें तो कहा था कि हम सच कह रहे हैं।" जगमोहन शांत भाव में मुस्कराया।
वो सीधी हुई और पुनः 'की बोर्ड' पर उसकी उंगलियां चलीं।
अगले ही पल स्क्रीन पर जगमोहन की तस्वीर और उसका ब्यौरा नजर आने लगा।
"अच्छी तरह देख लो। ये मैं हूं।"
"देख लिया।" कहने के साथ ही उसकी उंगलियां पुनः 'की बोर्ड' पर चलीं। इसके साथ ही स्क्रीन पर सोहनलाल की तस्वीर नजर आने लगी। जगमोहन के होंठ सिकुड़ गए।
तस्वीर के साथ सोहनलाल का ब्यौरा लिखा था। जगमोहन ने पढ़ा।
"सोहनलाल के बारे में तुम लोगों के पास अधूरी जानकारी है। ताला-तिजोरी तोड़ तो हर जगह मिल जाते हैं लेकिन इसके काम में खूबियां हैं। ये हार नहीं मानता और हर तरह की...!"
"इसके बारे में ज्यादा जानना हमारी समस्या नहीं है। तुम दोनों के बारे में जानना चाहती थी कि अगर तुम लोग सच में देवराज चौहान-जगमोहन हो तो, तुम्हारी तस्वीर इस रिकार्ड में होनी चाहिए। वो मिल गई।"
जगमोहन कुछ नहीं बोला।
मीनाक्षी उठ खड़ी हुई।
दोनों की नजरें मिलीं।
"चलो !" वो बोली ।
"आगे तुम।" जगमोहन ने कहा--- "पीछे मैं।"
मीनाक्षी ने कुछ नहीं कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ी।
■■■
जगमोहन और मीनाक्षी वापस पहुंचे।
"इनके पास, खास-खास लोगों का रिकार्ड है। शायद हम भी खास हैं।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा--- "इसने रिकार्ड में चैक कर लिया है कि हम ठीक कह रहे हैं। हमारी तस्वीरें भी रिकार्ड में हैं।"
देवराज चौहान ने कश लिया और सिगरेट ऐश-ट्रे में डाल दी ।
हर्षा यादव के चेहरे पर भी तसल्ली के भाव आ ठहरे।
"बैठो।" जगमोहन बोला।
पहले मीनाक्षी बैठी, फिर जगमोहन बैठ गया।
"तुम दोनों की बात सुनने से पहले, मैं कुछ पूछना चाहता हूं।" देवराज चौहान बोला।
"पूछो।" हर्षा यादव ने कहा--- "अब तुमसे या जगमोहन से बात करने में हमें कोई एतराज नहीं।"
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में डालते हुए कहा।
"तुम्हारा जॉर्ज लूथरा से क्या वास्ता ?"
"मैं और मीनाक्षी जॉर्ज लूथरा के पास अलग-अलग डिपार्टमेंट में काम करते थे। मैं उसके प्लानर ग्रुप में था। किसी काम के बारे सोचना-समझना होता। योजना बनानी होती तो मेरे जैसे छ: लोग इकट्ठे होकर, उस मामले पर सोच-विचार करते और योजना को फाइनल करके जॉर्ज लूथरा के पास भेज देते। फिर जॉर्ज लूथरा योजना पर गौर करता। अगर उसे योजना बेकार लगती तो हमें पुनः सोच-विचार करके दोबारा योजना बनानी पड़ती। अगर कुछ बदलाव लाना होता तो वो जॉर्ज लूथरा खुद कर लेता या योजना हमारे पास भेज देता कि इसमें ये बदलाव किया जाए।"
"इसका मतलब तुम जॉर्ज लूथरा के भीतरी कामों की पूरी जानकारी रखते हो।"
"पूरी तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक जानकारी रखता हूं।" हर्षा यादव ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने मीनाक्षी पर नजर मारकर पुन: हर्षा यादव को देखा।
"ये कौन है?"
"ये भी जॉर्ज लूथरा के लिए काम करती थी। मीनाक्षी का काम लूथरा के रिकार्ड से वास्ता रखता था। बहुत ही जरूरत पड़ने पर मीनाक्षी को बाहर का काम सौंपा जाता। करीब दस सालों से मीनाक्षी जॉर्ज लूथरा के लिए काम करती रही।"
"और तुम ?"
"मुझे बीस-पच्चीस बरस हो गए जॉर्ज लूथरा के साथ।"
"इसका मतलब तुम जॉर्ज लूथरा के बारे में और उसके ठिकानों के बारे में बहुत कुछ जानते...!"
"ऐसा कुछ नहीं है। जॉर्ज लूथरा बहुत खतरनाक है। सतर्क इन्सान है वो।" हर्षा यादव ने इन्कार में सिर हिलाते हुए कहा--- "सामने वाले को वो उतनी ही जानकारी देता है, जितनी की जरूरत होती है। उस तक ज्यादा जानकारी नहीं पहुंचने देता। मैं उसके प्लानर ग्रुप में था। ऐसे में मेरा उसके कामों से क्या वास्ता। वो प्लानर ग्रुप को अपने से, अपने ठिकानों से दूर रखता था। एक इमारत में हम सबकी जरूरत पड़ने पर मुलाकत होती। वो भी तब जब जॉर्ज लूथरा के आदमी के आदेश मिलते। वहां हमें बताया जाता कि क्या मामला है और हम लोगों को क्या प्लान करना है। उसके कहे मुताबिक हम काम करते। काम पूरा कर लेने पर उसे फोन पर खबर कर देते तो वो आकर तैयार कर रखा सारा प्लान ले जाता। जो बातें उसे मुंह से बतानी होती तो वो मुंह से कह देते। सब कुछ बहुत कायदे से होता । बीस-पच्चीस सालों में सिर्फ पांच-सात बार ही ऐसे मौके आए कि मेरी जॉर्ज लूथरा से मुलाकात हो सकी।"
"और तुम ?" देवराज चौहान ने मीनाक्षी को देखा।
"मैं जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम से वास्ता रखती थी। किस बात का रिकार्ड किधर है, मेरे, अलावा चार लोग और भी थे, जो इन बातों का ध्यान रखते थे और जरूरत पड़ने पर सैकेण्डों में हमें मांगा गया रिकार्ड बाहर निकालना होता था। इसके साथ ही और भी जरूरी कामों को देखते।" मीनाक्षी गंभीर थी।
"कहां है जॉर्ज लूथरा का रिकार्ड रूम ?"
"मालूम नहीं।" मीनाक्षी ने गहरी सांस लेकर इन्कार में सिर हिलाया।
"ये कैसे हो सकता है कि मालूम नहीं।" जगमोहन कह उठा--- "हर्षा यादव ने अभी-अभी कहा था कि तुम दस सालों से जार्ज के यहां काम कर रही हो। ऐसे में जहां उसका रिकार्ड रूम...!"
"जगमोहन साहब।" मीनाक्षी धीमे स्वर में कह उठी--- "वो जॉर्ज लूथरा है। कोई बेवकूफ आदमी नहीं है। वो अपने आदमियों का बहुत ध्यान रखता है। उन्हें तकलीफ नहीं देता। साथ ही वो अपने आदमियों को इस बात का भी मौका नहीं देता कि वो गद्दारी कर सकें।" पलभर रुककर मीनाक्षी कह उठी--- "रिकॉर्ड रूम में हम चार लोग आ-जा सकते थे। हम चारों को सप्ताह में एक बार, बारी-बारी एक-एक दिन की छुट्टी दी जाती। वो ठिकाना कहां है, कोई नहीं जानता। हमें ऐसे वाहन में बाहर ले जाकर शहर में छोड़ा जाता, जिसके पार हम नहीं देख सकते कि वो वाहन कौन सी बिल्डिंग से, कहां से निकला है। इतना पक्का है कि जॉर्ज लूथरा का रिकार्ड रूम इसी शहर में कहीं है। जब छुट्टी का वक्त खत्म हो जाता तो फोन आ जाता कि गाड़ी वहां खड़ी है, मैं वहां पहुंच जाऊं। मैं वहां पहुंच जाती और गाड़ी में बैठकर उस जगह पर पहुंच जाती, जहां रिकॉर्ड रूम है। इस बीच जरूरत पड़ने पर और भी छुट्टी मिल जाती। घर-परिवार की परेशानी होती तो जॉर्ज लूथरा की तरफ से कोई मनाही नहीं होती छुट्टी के लिए।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।
"इसका मतलब जॉर्ज लूथरा के ठिकानों के बारे में तुम लोगों को कोई जानकारी नहीं।" देवराज चौहान बोला ।
"नहीं। कोई खास जानकारी नहीं। दो-चार ठिकानों के बारे में अवश्य जानकारी है।"
देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगा ली।
"तुम जॉर्ज लूथरा के प्लानिंग ग्रुप में थे और ये रिकार्ड रूम में।" देवराज चौहान बोला--- "तुम दोनों का क्या वास्ता ?"
मीनाक्षी ने हर्षा यादव को देखा।
हर्षा यादव ने दो पलों के लिए सिर झुका लिया फिर देवराज चौहान को देखकर बोला।
"आज से दो साल पहले जॉर्ज लूथरा ने अपने किसी काम के लिए दस लोगों को मलेशिया भेजा। हम दस के दस एक-दूसरे के लिए अनजान थे। उस ग्रुप में मैं और मीनाक्षी भी थे। वहीं हमारी जान-पहचान हुई। हमने एक-दूसरे को पसंद किया। जब वो काम करके हम मलेशिया से वापस लौटे तो एक होने का, शादी करने का फैसला कर चुके थे।"
"लेकिन तुम दोनों की उम्र में तो बहुत फर्क है। पचास तुम्हारी होगी। तीस इसकी, तो...!"
"प्यार के रिश्ते में उम्र नहीं देखी जाती।" मीनाक्षी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान उभरी।
"तुम दोनों यहां पर इकट्ठे कैसे ?" देवराज चौहान ने कश लिया--- "पूरी बात बताओ।"
हर्षा यादव और मीनाक्षी की नजरें मिलीं।
"कहते हैं, जो होना है, वो होकर ही रहता है। कुछ बातें इन्सान के बस में भी नहीं हैं।" हर्षा यादव गंभीर स्वर में कह उठा--- "हम दोनों शादी करना चाहते थे। ये बात हमने उससे की, जिसके पास हमसे ज्यादा अधिकार थे। परंतु उसने हमारी शादी तो क्या, हमारे मिलने पर भी रोक लगा दी। बोला कि रिकार्ड रूम से वास्ता रखने वाले और प्लानर ग्रुप एक नहीं हो सकते। मेरे जोर देने पर उसने जॉर्ज लूथरा से मेरी बात कराई तो जॉर्ज लूथरा ने भी यही कहा कि प्लानर और रिकार्ड रूम का मेल नहीं हो सकता। रिकार्ड रूम की बातें बाहर जा सकती हैं। हम शादी नहीं कर सकते और लूथरा ने स्पष्ट तौर पर हमारे मिलने पर भी रोक लगा दी।"
देवराज चौहान और जगमोहन उसे देख रहे थे।
मीनाक्षी खामोश सी बैठी, बे-मन हुई, इधर-उधर देख रही थी।
हर्षा यादव दायां हाथ चेहरे पर फेरकर गम्भीर स्वर में पुनः बोला ।
"लेकिन मैं जानता था कि हम चाहकर भी जॉर्ज लूथरा की ये बात नहीं मान सकते। क्योंकि हम एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं। लेकिन जॉर्ज लूथरा की वार्निंग का भी ध्यान रखना था। जान सबको प्यारी होती है। तब हम मिले तो नहीं, परंतु फोन पर बातें करते रहे। साथ ही इस बात का एहसास था कि जॉर्ज लूथरा को मालूम हो गया कि हममें बात करने का सिलसिला जारी है, तो वो हमें खत्म कर देगा। ऐसे में बहुत सोच-समझकर मैंने योजना बनाई और एक रात चुपके से मीनाक्षी से मिला। मैंने इसे स्पष्ट तौर पर समझाया कि देर-सबेर में जॉर्ज लूथरा ने हमारे रास्ते में आ ही जाना है। बेहतर होगा कि हम एक होने का ख्याल छोड़ दें, परंतु ये नहीं मानी। मैं कहां मान रहा था। तब मैंने मीनाक्षी से कहा कि बुरे वक्त के लिए हमारे हाथों में ऐसा कुछ होना चाहिए कि जॉर्ज लूथरा हम पर हाथ डालने से हिचके। ऐसे में मीनाक्षी की पहुंच जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम तक थी। मैंने कहा कि वो चुपके से जॉर्ज लूथरा के रिकार्ड रूम की फाइलों-प्लापियों में मौजूद रिकार्ड की दूसरी कॉपी बनाना शुरू कर दे। ताकि जब जॉर्ज लूथरा हमारे रिश्ते को अभी भी कायम जानकर, हमारी गर्दनें पकड़नी चाहे तो रिकार्ड रूम की तैयार हो चुकी कॉपी कानून के हवाले करने की धमकी देकर उसे रोक सकें।"
जगमोहन ने मीनाक्षी को देखा।
"तुमने तैयार कर ली रिकार्ड रूम की कॉपी ?"
जवाब दिया हर्षा यादव ने ।
"खास नहीं। इसे काम पर लगे दो महीने ही हुए थे। सावधानी और सतर्कता से इसे काम करना पड़ता था। वहां कैमरे लगे थे। दूसरे लोगों का भी आना-जाना होता था। आसान नहीं था ये काम। दो महीनों में वहां मौजूद रिकार्ड का जरा सा हिस्सा ही कॉपी कर पाई थी।"
"उसके बाद क्या हो गया ?" जगमोहन के माथे पर बल पड़े--- "ये पकड़ी गई?"
"नहीं!" हर्षा यादव ने जगमोहन को देखा--- "ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसकी तरफ से कोई समस्या खड़ी नहीं हुई। मीनाक्षी को समझ है कि कौन सा काम कैसे करना है। परेशानी मेरी तरफ से आई।"
देवराज चौहान एकटक हर्षा यादव को देख रहा था।
"मीनाक्षी जब उधर अपने काम में व्यस्त थी तो जॉर्ज लूथरा की तरफ से मुझे और अन्य पांच व्यक्तियों को एक योजना तैयार करने के लिए बुलाया गया ।" हर्षा यादव पल भर के लिए ठिठककर पुनः कह उठा--- "मेरे मन में तो लूथरा के लिए पहले ही नफरत आ गई थी। जिस बात के लिए हमें योजना बनाने को कहा गया, उसे सुनकर तो मैं कांप सा उठा। जबकि पहले भी खतरनाक से खतरनाक योजनाएं बनाकर देता रहा हूं, परंतु इस योजना ने तो मुझे हिला दिया।"
सन्नाटा सा छा गया था वहां।
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह हर्षा यादव पर थी।
हर्षा यादव ने मीनाक्षी को देखा, जिसने आंखें बंद करके सिर पुश्त से टिका लिया था।
"जॉर्ज लूथरा के लिए अगर सबसे प्यारी कोई चीज है तो वो है दौलत। दौलत ही उसकी मां, उसका धर्म उसका सब कुछ है। एक देश के साथ उसका सौदा तय हुआ था कि खास तरह की दवा हर छोटे-बड़े शहर में उस जगह पर डाली जाए, जहां लोगों को पीने का पानी सप्लाई होता था। देश भर में ये दवा एक ही दिन सब जगह डालनी थी। इस बारे में हमें कोई अच्छी योजना बनानी थी।"
"उस दवा का असर क्या था?" देवराज चौहान के होंठ खुले।
"बहुत ही खतरनाक !" हर्षा यादव ने गहरी सांस ली--- "उस दवा वाले पानी को पीने वाले के शरीर में खुजली पैदा हो जाती। खुजली होने पर इन्सान जब अपने शरीर को खुजलाता तो जख्म बन जाता। उस दवा के असर की वजह से वो जख्म कभी भी ठीक नहीं होता। साथ ही जख्म से पानी निकलना शुरू हो जाता। पानी निकलने के साथ-साथ ही जख्म बड़ा होता चला जाता और अंत में व्यक्ति की तड़प भरी मौत ही उस दवा का अंजाम था। यानी कि देश भर में ये बीमारी एक साथ उठती तो पूरा देश हिल ज्ञाता। दुनिया भर में इस बीमारी की वजह से हमारा देश बदनाम होता। दूसरे देश के लोगों का आना, हमारे देश में बंद हो जाता। व्यापार के संबंध दूसरे देशों से विच्छेद हो जाते। यानी कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ, देश की जनता भी बुरी तरह बीमारी में घिर जाती। तुम सोच ही सकते हो कि क्या हो जाता ?"
"तो फिर तुमने क्या किया ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मन-ही-मन मैंने फैसला कर लिया कि मैं ये काम नहीं करूंगा और होने भी नहीं दूंगा। किसी तरह बहाना बनाकर मैंने दो-चार दिन का वक्त मांग लिया और दूसरे योजनाकारों को भी समझा दिया कि इस योजना को बनाने से पहले हमें ये जानना होगा कि जनता को कहां-कहां से पीने का पानी सप्लाई होता है। बहरहाल वक्त मिल गया। सब ये जानने पर लग गए कि पीने का पानी कहां-कहां से छोड़ा जाता है। दवा कहां डाली जा सकती है कि लोग बीमारी के ज्यादा शिकार बनें। देश भर में मौजूद जॉर्ज लूथरा के संगठन के आदमियों को ये बात पता करने को कही। लेकिन मैं दूसरा काम करने में लग गया। यहां तक कि मीनाक्षी भी चुपके से मेरे कहने पर इसी काम पर लग गई।"
"कैसा काम ?"
"ये पता लगाना कि जॉर्ज लूथरा ने वो दवा कहां रखी है।" हर्षा यादव के दांत भिंच गए।
देवराज चौहान के माथे पर बल पड़ गए।
मीनाक्षी आंखें खोलकर हर्षा यादव को देखने लगी।
"पता लगा ?" जगमोहन ने पूछा।
"पता ही नहीं लगा, बल्कि उस जगह की वीडियो फिल्म भी मेरे हाथ लग गई। यूं तो मैं उस जगह को पहले से जानता था। लेकिन ये नहीं पता था कि वो दवा वहां है। दरअसल दवा वहां रखवाने के बाद उसकी वीडियो फिल्म, उस देश के कहने पर उतारी गई कि दवा को कहां रखा गया है। वो सुरक्षित है या नहीं। वो ये जानना चाहते थे। वो वीडियो फिल्म उस देश के एजेन्टों को सौंपी जानी थी। जॉर्ज लूथरा इस काम के लिए उस देश से अरबों की दौलत ले चुका था। वो फिल्म ज्योंहि मेरे हाथ लगी, मैं भाग निकला।"
"इससे क्या फायदा हुआ?" देवराज चौहान बोला ।
"इतना कि मैं ये बात जग जाहिर कर सकता हूं। जॉर्ज लूथरा के साथ उस देश की प्लानिंग फेल कर...!"
"पागलों वाली बातें मत करो।" देवराज चौहान ने उखड़े स्वर में कहा।
"क्यों?"
"तुम कुछ नहीं कर सकते। अब तक जॉर्ज लूथरा ने वो दवा वहां से निकालकर, कहीं और...।"
हर्षा यादव के चेहरे पर फैली जहरीली मुस्कान देखकर देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
"क्या हुआ?"
"जॉर्ज लूथरा बेबस है। वो कुछ नहीं कर सकता।"
"क्या मतलब?"
"जहां उस दवा को रखा गया है, वहां खास तरह की सुरक्षा है। अभी मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा। लेकिन इतना जान लो कि उस जगह को लॉक करते हुए टाइम और दिन फिक्स कर दिया जाता है। उसके बाद कोड दबाकर लॉक कर दिया जाता है। यानी कि उस दिन ही उस टाइम पर ही उस लॉक को कोड के बिना खोला जा सकता है। वरना जब भी उसे खोलना हो तो उस कोड की जरूरत पड़ेगी जिस कोड पर उसे लॉक किया गया है।"
"तुम्हारी बात मेरी समझ से बाहर है।" देवराज चौहान ने कहा--- "जॉर्ज लूथरा को इसमें कोई समस्या नहीं। वो अपने आदमी से कोड लॉक के बारे में जान लेगा और...!"
"वो तभी जानेगा, जब वो जिन्दा होगा।" हर्षा यादव ने सख्त स्वर में कहा--- "उसी को खत्म करके मैंने उससे वो रिकॉर्डिंग छीनी थी। वो अब कुछ भी बताने के लिए जिन्दा नहीं है। यानी कि कोड जाने बिना अपनी ही जगह से अपनी चीज नहीं निकाल सकता जॉर्ज लूथरा ।"
दोनों हर्षा यादव को देखते रह गए।
मीनाक्षी उठी और पीठ पर हाथ डाले बेचैनी से टहलने लगी।
"लेकिन ये बात उसी वक्त खुल गई कि मैंने गड़बड़ की है। इससे पहले वे मुझे पकड़ पाते। मैं भाग निकला और मीनाक्षी को भी फोन कर दिया कि वो मेरे पास आ जाए, क्योंकि हो सकता था कि मुझ पर काबू पाने के लिए जॉर्ज लूथरा इसका इस्तेमाल करता। इसे कैद कर लेता। मीनाक्षी मेरे पास आ गई। हम दोनों अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर, दौड़ते रहे। दो दिन पहले ही चुपके से ये जगह किराए पर ले ली और आज ये सोच कर मैं बाहर निकला कि अगर सब ठीक रहा तो देश के किसी बड़े व्यक्ति से मिलकर उसे सब बताता हूं। ताकि सरकार उस दवा पर काबू पा सके। मैं जानता था कि जॉर्ज लूथरा बेवकूफ नहीं है। उसने शहर भर की सड़कों पर मेरे और मीनाक्षी के लिए आदमियों का जाल बिछा रखा है। मैं उनकी नजर में आ गया तो जान बचाने के लिए भागने लगा कि फिर तुम मिले।"
देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"इस मामले में तुम जॉर्ज लूथरा के लिए समस्या नहीं बन सकते हर्षा यादव।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या मतलब?"
"जॉर्ज लूथरा उस कोड लॉक को हटाने का कोई रास्ता निकाल लेगा।"
"हां, यही बात तो मुझे परेशान कर रही है। तभी तो मैं आज बाहर निकला कि देश के किसी जिम्मेवार आदमी से मिल सकूं।" हर्षा यादव सिर हिलाकर बोला--- "लेकिन कामयाब नहीं हो सका। परंतु जॉर्ज लूथरा को भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा उस कोड लॉक को हटाने के लिए...।"
"क्यों?"
"जर्मनी की जिस कम्पनी ने जॉर्ज लूथरा के उस स्ट्रांग रूम का इंतजाम किया था, उस कम्पनी में महीना भर पहले आग लग गई थी। बिल्कुल बरबाद हो गई कम्पनी। तब कम्पनी के मालिक और इंजीनियर्स की मीटिंग हो रही थी। शायद ही कोई बचा हो। जो वहां नहीं पहुंचा होगा, वो बच गया होगा। यानी कि उस स्ट्रांग रूम को तैयार करने वाले आसानी से जॉर्ज लूथरा को नहीं मिल पाएंगे।"
"जॉर्ज लूथरा गैस कटर या अन्य किसी चीज से उस जगह, को कटवा सकता है, जहां वो दवा...!"
"वहां सब कुछ ऐसे मैटल से बना है कि काटा-तोड़ा नहीं जा सकता। जॉर्ज लूथरा ने हर तरफ से सुरक्षा का पक्का इंतजाम किया है। वो जुदा बात है कि वो सब इंतजाम आज उसके लिए ही मुसीबत बन गए। वो, जैसे अपने ही जाल में फंस गया।"
हर्षा यादव के इन शब्दों के बाद वहां खामोशी छा गई।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
तभी मीनाक्षी ने ठिठककर हर्षा यादव से कहा।
"तुम कहीं भी नहीं पहुंच सकते। जार्ज लूथरा को तुम भी अच्छी तरह जानते हो। वो जगह-जगह अपने आदमी फैला चुका है। तुम अब आजादी से सड़कों पर नहीं घूम सकते। पुलिस के पास तो उसकी पूरी पहुंच है। मेरे ख्याल में हम फंस चुके हैं। वो जानता है कि तुम कहां जाना चाहोगे। वहां वो तुम्हें नहीं पहुंचने देगा।"
हर्षा यादव ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं।
"तुम इसी तरह फंसे रहोगे और वे देर-सवेर में कोड लॉक हटाने के लिए जर्मन कम्पनी से किसी को बुला...!"
"इस काम में उसे दस-पन्द्रह दिन तो लग ही जाएंगे।" हर्षा यादव ने मीनाक्षी को देखा।
"माना।" मीनाक्षी गंभीर थी--- "तुम कहना क्या चाहते हो। वो कहो।"
हर्षा यादव खामोश सा उसे देखता रहा।
"इन दस-पन्द्रह दिनों में तुम कहीं नहीं पहुंच सकते ! जहां पहुंचकर बताना चाहते हो कि जॉर्ज लूथरा क्या करना चाहता है और वो दवा किस जगह पर मौजूद है। फोन पर ये बात तुम्हारी कोई सुनेगा नहीं और खुद वहां पहुंच नहीं सकोगे। मैं भी नहीं जा सकती कहीं। जॉर्ज लूथरा जानता है कि हम दोनों एक साथ हैं। इस सारे मामले का अंत यही होगा कि कभी न कभी जॉर्ज लूथरा के आदमी हमें खत्म कर देंगे।"
हर्षा यादव ने एकाएक देवराज चौहान को देखा।
"तुम मेरा ये काम कर सकते हो देवराज चौहान...?"
"मैं...?"
"हां तुम। जो मैं करना चाहता हूं, वो तुम कर सकते हो। देश के किसी जिम्मेवार व्यक्ति को...!"
"मैं ये काम नहीं कर सकता।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैं क्या हूं। कानून मेरे बारे में क्या ख्याल रखता है, ये तो तुम जानते ही हो। इस मामले में अगर मेरा नाम खुल गया तो कानून वाले मुझे इस मामले में घसीट लेंगे। मेरा नाम लगा देंगे कि मैं इस मामले में फंसा हूं या मैं ही कर रहा हूं।"
हर्षा यादव गहरी सांस लेकर रह गया।
"देवराज चौहान ठीक कहता है।" मीनाक्षी बोली--- "देवराज चौहान को वे लोग इस मामले में घसीट लेंगे।"
"जॉर्ज लूथरा के खिलाफ काम करके तुम फंस गए हो।" जगमोहन बोला।
"तो क्या उसकी बात मान लेता। उन्हें दवा पानी में मिलाने देता।" हर्षा यादव के होंठों से दबी-दबी सी गुर्राहट निकली--- "लाखों-करोड़ों लोग एड़िया रगड़कर बुरी मौत मर जाते। हर तरफ बीमारी और रोते-तड़पते लोग ही नजर आते। उनमें हम भी होते। मैंने जो किया ठीक किया। जरूरी तो नहीं कि इन्सान की हर कोशिश कामयाब हो जाए। इन्सान अपनी कोशिश में रह भी जाता है और सफल भी हो जाता है।" हर्षा यादव के चेहरे पर थकान सी नजर आने लगी--- "मालूम नहीं अब क्या होगा!"
वो एक-दूसरे को देखने लगे।
देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट ऐश-ट्रे में डाली और खड़ा हो गया।
सबने उसे देखा।
"तुम्हारी बातों में ऐसा कुछ नहीं है कि मैं इस पर सोच सकूं। ये तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है। जार्ज लूथरा तुम्हारे पीछे है और तुम आगे। इसमें मेरे लिए करने को कुछ नहीं है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
जगमोहन खड़ा हो गया।
हर्षा यादव और मीनाक्षी की नजरें मिलीं।
"सच में।" हर्षा यादव थके-टूटे स्वर में कह उठा--- "मैंने शायद गलती कर दी। जॉर्ज लूथरा से टकराना मेरी बेवकूफी थी।"
"सही कहा तुमने।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"मैं जार्ज लूथरा की ताकत को बाखूबी जानता हूं। इस पर भी उसके खिलाफ कदम उठा बैठा। अंजाम की न सोची। अब मेरी ये हालत है कि न बाहर निकल सकता हूं और न घर में बैठ सकता हूं। जॉर्ज लूथरा के आदमी जल्दी ही मुझे ढूंढ लेंगे।" हर्षा यादव ने गहरी सांस ली।
"देवराज चौहान ठीक कहता है कि हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।" जगमोहन बोला--- "मैं तेरे को इतनी सलाह दे सकता हूं कि मीनाक्षी को लेकर कहीं दूर भाग जा, शायद जान बच जाए।"
देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा।
"मैं जानता हूं कि जार्ज लूथरा को सामने देखकर कोई भी मेरे काम नहीं आएगा।" हर्षा यादव ने फीके स्वर में कहा--- "तुम मेरे बारे में लूथरा को बता मत देना।"
"निश्चिंत रहो।" जगमोहन ने कहा--- "यहां से निकलकर हम तुम्हें भूल जाएंगे।"
हर्षा यादव फीकी नजरों से जगमोहन को देखने लगा।
मीनाक्षी दूसरे कमरे में गई और वापस आकर एक कागज जगमोहन को थमा दिया।
"इस पर हमारा फोन नम्बर है।" वो जल्दी से बोली--- "कोई सलाह दे सको तो फोन करना।!"
देवराज चौहान दरवाजा खोले खड़ा था।
जगमोहन ने कागज जेब में डाला और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। देखते ही देखते देवराज चौहान के साथ बाहर निकल गया।
■■■
उस व्यक्ति की नजर स्क्रीन पर जमी थी।
उसने देवराज चौहान और जगमोहन को उस फ्लैट से बाहर जाते देखा। वे दोनों जब बाहर निकल गए तो उसने फौरन घड़ीनुमा ट्रांसमीटर ऑन करके बात की।
"देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकल गए हैं। अब वे हर्षा यादव के पास नहीं हैं।"
"उनमें क्या बातें हुई?"
उसने बताया कि उनमें क्या बातें हुई थी।
"तुम हर्षा यादव पर नजर रखो और रिपोर्ट देते रहो।"
"जी!"
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देवराज चौहान और जगमोहन जब कार पर उस इमारत से बाहर निकले तो कुछ दूर खड़ी कार स्टार्ट हुई और उनकी कार के पीछे लग गई। उस कार में दो व्यक्ति बैठे थे। एक चला रहा था, दूसरा उसकी बगल में बैठा था। चलाने वाला बोला।
"ऊपर खबर दे कि वो दोनों हमारी नजरों में हैं। हम उनके पीछे हैं।"
"ध्यान से। उनकी कार गायब न हो जाये।" बगल में बैठा व्यक्ति बोला और जेब से मोबाइल फोन निकाल कर नम्बर मिलाया फिर बात हो गई।
"हम देवराज चौहान और जगमोहन के पीछे हैं।"
"हर्षा यादव के यहां से वो कब निकला?"
"अभी।"
"गुड! पीछे रहो। नजर रखो। रिपोर्ट देते रहो। उन्हें शक न हो कि तुम लोग पीछे हो।" दूसरी तरफ से कहा गया।
"हम उसके पीछे ही रहेंगे।"
दूसरी तरफ से फोन बंद कर दिया गया।
"साले बात भी करते हैं तो डण्डा मारने वाले ढंग से।" फोन पर बात करने वाला बड़बड़ा उठा।
"कार पर नजर रख। वो तेरे को हर वक्त नजर आनी चाहिए।" कार चलाने वाला बोला।
"और तू...तू क्या कर रहा है?"
"मेरी नजर भी कार पर है।"
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