सबसे पहले राधा की आंख खुली। बहुत ही सुहावना मौसम हो रहा था। हवा के वेग की आवाज कानों में पड़ रही थी। सामने ही स्वच्छ पानी की नदी मध्यम गति से बह रही थी। इधर-उधर छोटे-बड़े पहाड़ी पत्थर बिखरे हुए थे। नदी का पानी इतना साफ था कि, पानी के भीतर पड़े पत्थर स्पष्ट चमक रहे थे।


बहते पानी की मधुर आवाज कानों से टकरा रही थी। जगह-जगह पेड़ लगे हुए थे। हवा से उनके पत्ते खड़खड़ा रहे थे। स्वर्ग जैसा एहसास हो रहा था।


ये सब देखकर राधा सिर से पांव तक प्रसन्नता के सागर में डूब गई। पास ही में महाजन और नगीना बेहोश पड़े थे। राधा हाथ आगे बढ़ाकर महाजन को हिलाती हई बोली ।


“नीलू देख, कितनी सुन्दर जगह है। मेरा तो यहां मन लग गया। अब हम यहीं रहेंगे। घर बना ले यहां पर ।” 


महाजन बेहोशी में था ।


राधा ने नगीना को हिलाया। उसे भी होश नहीं आया।


"लगता है मेरे को पहले होश आ गया है। इन्हें भी आ जायेगा ।” 


बड़बड़ाते हुए राधा उठी और मौसम का आनन्द लेते हुए टहलने लगी । फिर नदी के पास जा पहुंची। वहां पानी से उसने हाथ-मुंह धोया और साड़ी के पल्लू से चेहरा साफ करते हुए नदी के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगी।


कुछ आगे जाकर, नदी से हटकर वापस ऊपर आई और उस तरफ जाने लगी, जिधर नगीना और महाजन बेहोश पड़े थे, परन्तु चंद कदमों के पश्चात ही ठिठक गई।


देवराज चौहान और मोना चौधरी को बेहोश पड़े देखा। देवराज चौहान घायल था। पेट का बड़ा जख्म स्पष्ट नजर आ रहा था ।


“ये दोनों यहां बेहोश पड़े हैं।" राधा बड़बड़ा उठी- “तो ये है देवराज चौहान । मैंने इसे ही पेड़ के नीचे खड़े देखा था। सारी मुसीबतों की जड़ यही है। इसे खत्म ही कर देती हूं।"


बड़बड़ाने के साथ ही राधा ने पास ही पड़ा बड़ा सा पहाड़ी पत्थर दोनों हाथों से उठाया और देवराज चौहान के सिर पर मारने के लिए दोनों हाथों में पकड़े पत्थर को अपने सिर से ऊपर तक ले गई।


इससे पहले कि उस बड़े पत्थर से राधा देवराज चौहान का सिर कुचल पाती, वो किसी बुत की तरह जड़ खड़ी रह गई। हिलना चाहकर भी वो हिल नहीं सकी। सिर्फ आंखों की पुतलियां हिल रही थीं। दोनों हाथ सिर से ऊपर थे और उनके बीच बड़ा भारी पत्थर फंसा हुआ था।


“ये मुझे क्या हो गया !" राधा बड़बड़ाई। 


उसने पुनः हिलने की कोशिश की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ- "हाय राम, किसी ने जादू-टोना कर दिया है मुझ पर। ये सब उसी भिखारी ने किया  होगा। वो तो मुझे शक्ल से ही चालाक लगता था। जादू टोने से ही उसने घर से हमें गायब किया और यहां ले आया। मुझे तो जादू-टोना भी नहीं आता कि उस से निपट सकूं। तांत्रिक गौणा ही इस भिखारी बदमाश से निपट सकता था। लेकिन गौणा तो मर चुका है। कहां फंस गई मैं ।"


अब यही खूबसूरत माहौल, राधा को सबसे बुरा लगने लगा। 


"मोना चौधरी !” राधा ने सामने ही बेहोश पड़ी मोना चौधरी को पुकारा


लेकिन बेहोश मोना चौधरी के कानों तक, राधा की आवाज कहां पहुंची।


***


बांकेलाल राठौर की आंख खुली। वो उठ बैठा। फौरन ही उसकी निगाह हर तरफ घूम गई। चेहरे पर अजीब-से भाव आ गये। फिर उसकी नजरें आस-पास बेहोश पड़े जगमोहन, रुस्तम राव, सोइनलाल और पारसनाथ पर गई। देखते ही देखते पारसनाथ का शरीर हिला । उसने आंखें खोलीं । तुरन्त ही उठ बैठा।


हर तरफ देखने के बाद उसने बांकेलाल राठौर को देखा। 


“ये कौन-सी जगह है ?" पारसनाथ का स्वर सपाट था। आंखों में उलझन थी ।


“पारसनाथ! थारी अकल घास चरणो गयो का।" बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली- “पहलो भी पेशीराम अंम सबो को ऐसी ही किसी जगहो ही लायो और फिर ताज लानो वास्तो भेज दयो । तिलस्मी नगरी में गयो । दालू बाबा को 'वडो'। ये सबो पेशीराम इसो लियो करो कि देवराज चौहान और मोना चौधरी में दोस्ती हो जावो ।”


“तो?”


“इस बारो भी पेशीराम अंम सबो को ऐसो ही मुसीबत में धकेलो हो ।”


पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा। 


“ठीक कहेला बाप ।” रुस्तम राव आंखें मलता उठ बैठा- “पेशीराम अब भी ऐसा ही टांका भिड़ेला ।"


दोनों ने रुस्तम राव को देखा, जिसके चेहरे पर गम्भीरता के भाव थे ।


कुछ ही देर में जगमोहन और सोहनलाल को भी होश आ गया। सब उलझन में थे कि वो लोग कहां पर हैं, परन्तु हर कोई गम्भीर और बेचैन-सा भी नजर आ रहा था कि कहीं पेशीराम पहले की तरह उन्हें जादुई और तिलस्मी खतरों में न भेज दे। 


पहले की घटनाएं जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन के उपन्यास (1) जीत का ताज, (2) ताज के दावेदार, (3) कौन लेगा ताज।


महाजन की आंख खुली तो फौरन उठ बैठा !


चंद कदमों को दूरी पर उसने नगीना को टहलते देखा। उसने आस-पास देखा परन्तु राधा कहीं भी नजर नहीं आई। महाजन की निगाह नगीना पर जा टिकी।


“राधा कहां है ?” महाजन पूछते हुए खड़ा हो गया । 


“मालूम नहीं। मुझे होश आया तो मैंने सिर्फ तुम्हें ही बेहोश देखा।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।


“ये कैसे हो सकता है। राधा को पास ही होना चाहिये ।' महाजन की व्याकुल निगाह इधर-उधर घूमने लगी।


नगीना भी हर तरफ देख रही थी कि शायद राधा नजर आ जाये।


“तुमने तो उसके साथ कुछ बुरा नहीं कर दिया।” एकाएक महाजन ने पुनः नगीना को देखकर कहा।


नगीना ने महाजन को देखा फिर शांत भाव में मुस्करा पड़ी।


“राधा ने मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं किया कि मैं उसका बुरा करूं।" नगीना ने सामान्य स्वर में कहा- “तुम्हारे घर पर बेशक मैंने झूठा ही ड्रामा किया। लेकिन उसमें भी राधा ने मेरा पूरा साथ दिया। मेरी सहायता की। मुझे हौसला देती रही । "


होंठ भींचे, महाजन अपनी नजरें दौड़ाने लगा।


“कहां चली गई वो ?"


“यहां का मौसम, नजारा बहुत अच्छा है।" नगीना बोली“शायद वो पास ही कहीं घूम रही हो ।”


“हो सकता है, ऐसा ही हुआ हो।" महाजन ने कहा -- "मैं राधा को देखने जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि ये जगह कैसी है। तुम्हारां अकेले रहना ठीक नहीं होगा। चाहो तो मेरे साथ आ सकती हो ।” 


“मैं अपने को तुमसे भी और दूसरे से भी बचा सकती हूं।

वैसे मेरी चिन्ता क्यों ?”


“क्योंकि तुम देवराज चौहान की पत्नी हो। बिना वजह तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो जाये तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।" 


नगीना ने महाजन को देखा फिर कह उठी।


"चलो।"


दोनों वहां से आगे बढ़ने लगे। 


“कुछ अंदाजा लगा सकते हो कि फकीर बाबा हमें कहां ले आया है ?" नगीना ने शांत स्वर में पूछा।


"मैं नहीं जानता कि पेशीराम कहां लाया है हमें।" महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा-“लेकिन मुझे किसी बड़ी मुसीबत के आने का अंदेशा लग रहा है।”


"क्या मतलब ?”


"एक बार पहले भी पेशीराम हम सब को ऐसी ही जगह लाया था और वहां से हमें जादुई-तिलस्मी नगरी भेज दिया था। जहां कदम-कदम पर मौत से भरे खतरे थे और- ।"


“जब तिलस्मी ताज लेने गये थे।" नगीना कह उठी। 


“हां।” महाजन ने गहरी सांस ली- "इस बार भी पेशीराम कहीं ऐसी ही किसी जगह न भेज दे। जहां।" कहते-कहते

महाजन रुक गया।


सामने से जगमोहन, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव, सोहनलाल और पारसनाथ आते दिखाई दिए। 


महाजन की आंखें सिकुड़ गईं। 


“ये लोग भी यहां हैं।" महाजन के होंठों से निकला। 


“भाभी!” जगमोहन की खुशी से भरी आवाज उनके कानों में पड़ी । 


"बहना ।"


“दीदी, आपुन भी इधर ही होएला ।” 


नगीना के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।


देवराज चौहान और मोना चौधरी तक पहुंचने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा। जल्द ही उन दोनों को तलाश कर लिया। राधा की स्थिति देखकर सब चौंके थे ।


“ये कौन है ?" जगमोहन ने दांत भींचकर कठोर स्वर में पूछा।


“ये राधा है। महाजन की पत्नी।" नगीना ने कहा। 


“यो तो देवराज चौहान के सिरो को कुचलो हो । ईब तो यो हिलो ना ही ।”


“पेशीराम हो ऐसा करके इसे रोकेला बाप ।”


“देवराज चौहान को बेहोश देखकर, इसने सोचा होगा कि मौका अच्छा है, इसे खत्म करने का।"


महाजन व्याकुल बेचैन निगाहों से राधा को देख रहा था। 


“मुझे ठीक कर नीलू।" राधा के होंठ हिले - "ये मुझे क्या हो गया ।” 


“तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था राधा।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा -“अब हम पेशीराम के मेहमान हैं। एक-दूसरे पर वार करेंगे तो उसकी शक्तियां ऐसा होने से रोक देंगी हो सकता है पेशीराम सजा भी दे दे।” 


"सच नीलू । मुझे मालूम नहीं था।" राधा ने मुंह लटकाकर कहा-“अब तो मुझे ठीक कर दो।"


“मैं कुछ नहीं कर सकता।" महाजन ने भिंचे स्वर में कहा- "जब पेशीराम चाहेगा। तब ही तुम सामान्य अवस्था में।" 


तभी मोना चौधरी के शरीर में हरकत हुई। सबकी नजरें मोना चौधरी पर जा टिकीं ।


धीरे-धीरे मोना चौधरी की आंखें खुलीं। वो तुरन्त बैठी फिर खड़ी हो गई। सबको अपने पास ही देखकर कुछ हैरान हुई, फिर अपने पर काबू पा लिया। 


राधा की हालत देखकर उसके होंठ सिकुड़े। 


तब तक नगीना बेहोश पड़े देवराज चौहान के पास पहुंच चुकी थी। उसके पेट का बड़ा सा जख्म देखकर वो तड़प उठी थी। उसने जल्दी से जगमोहन से कहा।


“जगमोहन! इनके पेट में जख्म है।”


जगमोहन पहले ही उस बड़े जख्म को देख चुका था । “भाभी !” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा- "इस वक्त हमं पेशीराम के मेहमान हैं। वो देवराज चौहान को कुछ नहीं होने देगा। पेशीराम के सामने आते ही सब ठीक हो जायेगा।” 


उसी पल देवराज चौहान भी होश में आ गया। 


“कैसे हैं आप ?” नगीना के होंठों से निकला । 


“ठीक हूं।"


“आपके पेट में जख्म है। गहरा है।” 


“ठीक हो जायेगा।" 


कहते हुए देवराज चौहान की नजरें राधा पर जा टिकी। वो समझ गया कि राधा उसे पत्थर से मारने जा रही थी कि पेशीराम की शक्तियों ने उसे रोक दिया।


देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। सबकी नजरें मिलीं।


“देवा ।” तभी फकीर बाबा की फुसफुसाहट देवराज चौहान के कानों में पड़ी - "कैसा है तू ?”


“ठीक हूं पेशीराम ।” होंठ हिले देवराज चौहान के।


“राधा तेरा सिर कुचलने जा रही थी कि मेरी शक्तियों ने रोक लिया। अब ये मैं तेरे पर छोड़ता हूं कि तू राधा को ऐसे ही रहने देता है या उसे सामान्य अवस्था में लाना चाहेगा।" फकीर बाबा के फुसफुसाहट कान में पड़ रही थी- “अगर राधा को ठीक देखना चाहता है तो उसके कंधे पर हाथ रख देना वो, पहले की तरह सामान्य हो जायेगी।" 


“समझ गया पेशीराम ।”


सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी।


"उसके बाद सबको लेकर, उस दिशा की तरफ बढ़ना, जिधर सफेद चट्टान है। कुछ ही देर में मुझ तक पहुंच जाओगे।" 


"हम आ रहे हैं पेशीराम।” देवराज चौहान के होंठ हिले। उसके बाद फकीर बाबा की आवाज देवराज चौहान के कानों में नहीं पड़ी।


"पेशीराम से बात कर रहे थे"- जगमोहन के होंठों से निकला।


“हां।” कहने के साथ ही देवराज चौहान राधा के पास पहुंचा और अपना हाथ राधा के कंधे पर रखा।


राधा के शरीर को करंट जैसा झटका लगा। दोनों हाथों में उठा रखा बड़ा सा पत्थर देवराज चौहान पर गिरने को हुआ कि देवराज चौहान ने फुर्ती से पत्थर को संभाला और एक तरफ फेंक दिया। राधा सामान्य अवस्था में आ गई थी।


“नीलू! मैं ठीक हो गई।” राधा, महाजन के पास जा पहुंची-"अब मैं चल-फिर सकती हूं।"


“राधा को ठीक करने के लिए तुम्हें, पेशीराम ने कहा था कि कंधे पर हाथ रखना है।" मोना चौधरी ने देवराज चौहान से कहा। 


“हां ।”


“पेशीराम हम लोगों को यहां क्यों लाया है ? " महाजन कह उठा । 


देवराज चौहान और मोना चौधरी की नजरें मिलीं। 


"पेशीराम ने बताया कि गुरुवर इस वक्त परेशानी में है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी- “वो अपनी शक्तियों को बाल जैसी किसी वस्तु में रखकर, महत्वपूर्ण यज्ञ में व्यस्त हैं और उस यज्ञ को अधूरा नहीं छोड़ सकते। उधर कोई है, जो गुरुवर की बाल रूपी शक्तियों को तलाश कर रहा है कि उनका मालिक बन सके और साथ गुरुवर के यज्ञ को खराब करने की कोशिश में लगा है। अगर वो उस बाल को ढूंढने में सफल हो गया जिसमें गुरुवर की शक्तियां हैं तो वो गुरुवर की तरह बेपनाह ताकतों का मालिक बन जायेगा और गुरुवर का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।"


“ये तो बोत गड़बड़ हो जाएला बाप ।"


“पेशीराम ने अभी नहीं बताया कि कौन है वो जो गुरुवर का अस्तित्व मिटा देना चाहता है।" देवराज चौहान बोला- “पेशीराम मजबूर है गुरुवर की सहायता न कर पाने को। ऐसे में वो चाहता है कि गुरुवर पर आने वाली परेशानी से हम मुकाबला करे। उस इन्सान के इरादों को नाकाम बना दे, जो गुरुवर की शक्तियां पा लेना चाहता है।" “उसो को तो 'वड' कर रख देंगे अंम।" बांकेलाल राठौर गुस्से से कह उठा ।


"पेशीराम है कहां ?" जगमोहन ने सख्त और गम्भीर स्वर में कहा।


"पेशीराम ने हमें उस सफेद चट्टान की दिशा की तरफ बढ़ने को कहा है कि वो उधर ही मिलेगा।" 


देवराज चौहान की नजर कुछ दूर मौजूद, चांदी की तरह चमकती सफेद चट्टान पर जा टिकी ।


***