मोना चौधरी की आंखें अंगारों की तरह सुलग रही थीं। हाथ में रिवॉल्वर थमी हुई थी भिंचे दांत धधकता चेहरा जिस्म के जरें जरें में क्रोध से भरा तनाव।


बंगाली ने मकान के पीछे की तरफ का मोर्चा संभाल रखा था और पाली ने बाएं हाथ में दबा रखी रिवॉल्वर से आगे की तरफ निगाहें गड़ा रखी थीं। जब देवराज चौहान भीतर आया था तो उन्होंने आगे के मोर्चे पर ध्यान रखा था। परंतु लाख कोशिशों के बावजूद भी उनकी कोई गोली देवराज चौहान को निशाना नहीं बना सकी थी। फिर उसके बाद जब छत पर चलने की आहट महसूस हुई तो वे समझ गए कि देवराज चौहान रेन वाटर पाइप के जरिए छत पर जा पहुंचा है।


उसी वक्त पीछे से फायरिंग हुई।


तब पीछे महाजन था। लेकिन पास की दीवार की ओट ले लेने की वजह से वो बच गया था। लेकिन अब एक बात उनके सामने स्पष्ट हो गई थी कि उन्हें तीन तरफ से घेरा गया है। छत पर देवराज चौहान है। उसके साथी पीछे भी पहुंच चुके हैं और एक सामने की तरफ है।


चौधरी पारसनाथ और महाजन के पास पहुंची।


मोना महाजन सीढ़ियों की तरफ नजर रख रहा था और पारसनाथ की निगाहें पीछे की तरफ थीं और सीढ़ियां पीछे की तरफ से ही नीचे आती थी, इसलिए दोनों में ज्यादा दूरी नहीं थी।


"हम लोगों को तीन तरफ से घेरा गया है। " मोना चौधरी धीमे स्वर में बोली।


किंतु खूंखार पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।


"यस बेबी।" महाजन के चेहरे पर सख्ती थी—"उन्होंने बहुत समझदारी से काम लिया है। बहुत अच्छी तरह उन्होंने हमें घेर लिया है। लेकिन इस घिराव का फायदा उन्हें नहीं होगा। देवराज चौहान छत पर है। वो नीचे नहीं आ सकता। नीचे आने में कितनी भी फुर्ती दिखा ले। सीढ़ियों पर ही मारा जाएगा। मैं उसके इंतजार में हूं।


महाजन की आवाज छत तक, देवराज चौहान के कानों में पड़ रही थी। जो ऊपर सीढ़ियों के कोने में मौजूद था और वह जानता था कि महाजन ठीक कह रहा है। नीचे जाने के लिए आधी सीढ़ियां भी उसने तय की और सीढ़ियों के मोड़ पर पहुंचते ही नीचे वाला पहले उसका निशाना लेगा और उसे रिवॉल्चर के इस्तेमाल करने का मौका तब मिलेगा, जब उसे गोली लग चुकी होगी।


मोना चौधरी के दांत भिंचे रहे।


"पीछे की दीवार फांदकर वे लोग भीतर नहीं आ सकते। ... पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा—"मैं और बंगाली उधर का ध्यान रख रहे हैं। ज्योहि उन्होंने यह कोशिश की तो वो गोलियों का निशाना बन जाएंगे। इस बात से वो लोग भी वाकिफ होंगे, जो पीछे की तरफ हैं। तभी तो वो भीतर आने की कोशिश नहीं कर रहे।"


"और सामने की तरफ से भी कोई भीतर नहीं आ सकता।' महाजन बोला—"दरवाजे बंद हैं और वहां रिवॉल्वर लिए पाली मौजूद है। यानी कि मकान के भीतर हम सुरक्षित हैं।" मोना चौधरी ने महाजन को घूरा।


"हम सुरक्षित हैं।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर बोली- "या फिर यूं कह लो कि हम चूहेदान में चूहे की तरह कैद होकर रह गए हैं। वो हमें घेर रहे हैं और हम कुछ नहीं कर सकते। चूहों की तरह पिंजरे में बैठे रहें। देवराज चौहान और उसके साथी मौका मिलने पर हम पर हमला कर सकते हैं, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते। हमारे लिए यह कोई बहादुरी की तो बात नहीं हुई। " पारसनाथ की निगाह मोना चौधरी की तरफ उठी।


"तुम कहना क्या चाहती हो मोना चौधरी?" पारसनाथ बोला। "मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या किया जाए।"


" मैं इस घेराव से आजाद होकर आमने सामने देवराज चौहान का मुकाबला करना चाहती हूं।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा। 


"इसका तो फिर एक ही रास्ता है बेबी।" महाजन ने गहरी सांस ली।


"क्या?"


"ये सीढ़ियां चढ़ो और छत पर मौजूद देवराज चौहान के पास पहुंच जाओ। उसके बाद...।" 


“मैं आत्महत्या करने के लिए नहीं, आमने सामने के मुकाबले के लिए कह रही हूं। " मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी— "मैं पहले सीढ़ियों से ऊपर चढ़ी या देवराज चौहान पहले नीचे आया, यानी कि जिसने भी पहल की, उसकी मौत पक्की है। " 


दो पल के लिए उनके बीच खामोशी रही।


"देवराज चौहान के इस घेरे को तोड़ना संभव नहीं।" पारसनाथ बोला- "घेरे को तोड़ने के लिए हमें खुले में जाना पड़ेगा, जो कि ठीक नहीं होगा। यही मजबूरी अब देवराज चौहान और उसके साथियों को है। हमें शूट करने के लिए उन लोगों को मकान के भीतर आना पड़ेगा और ऐसा करते ही वे मरेंगे।"


तभी बंगाली ने देखा पीछे की दीवार से एक हाथ ऊपर आया, जिसमें रिवॉल्वर दबी हुई थी। रिवॉल्वर का रुख भीतर की तरफ हुआ, नाल को इधर-उधर घुमाते हुए तीन-चार फायर हुए। बंगाली ने हाथ का निशाना लेकर फुर्ती के साथ दो फायर किए, परंतु तब तक रिवॉल्वर वाला हाथ वहां से हट चुका था। बिना निशाने के चलाई गोलियां किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकी।


उसी वक्त सामने की तरफ से फायर की आवाज आई।


दांत भींचे मोना चौधरी पलटी और कमरों के भीतर से गुजरती हुई मकान के सामने वाले कमरे में पहुंची कि उसके देखते ही देखते पाली ने रिवॉल्वर की नाल खिड़की से बाहर निकाली और नाल को बाई तरफ टेड़ों करते हुए फायर कर दिया ।


"क्या हुआ?" मोना चौधरी ने करीब पहुंचकर पूछा।


"वो मूंछों वाला भीतर आ चुका है। " पाली ने सख्त स्वर में कहा- "उसने मुझे खिड़की पर देखकर फायर कर दिया। लेकिन मैं पीछे हट गया। अब जवाब में मैंने उधर फायर किया, जिधर वो है। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बेकार में गोलियों की बरबादी हो रही हैं। हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि न तो वो लोग कुछ कर सकते हैं और न ही हम लोग। जो करने के लिए सामने आएगा। वो मारा जाएगा। देवराज चौहान तो छत पर पहुंच चुका है। रह-रहकर उसके छत पर चलने की आवाजें सुनाई दे रही हैं। "


मोना चौधरी के दांत भिंचे हुए थे।


"इन लोगों को भगाने का मैंने इंतजाम कर दिया है। " पाली की आवाज में कड़वापन आ गया।


“क्या मतलब?”


"फोन पर पुलिस को खबर कर दी है कि यहां कुछ बदमाशों ने हमला कर दिया है और गोलियां चला रहे हैं। पुलिस के आते ही देवराज चौहान और उसके साथी यहां से भाग जाएंगे।” पाली मुस्कराया।


“यह तुमने क्या किया बेवकूफ।" मोना चौधरी की आवाज में गुस्सा भर आया।


"गलत किया क्या?”


“हां। " मोना चौधरी ने पूर्ववतः स्वर में कहा—"अभी कोई न कोई रास्ता निकल आता, उनसे निपटने का। तुम...।"


"मोना चौधरी मेरी तरह, पुलिस के पास दो-चार फोन और भी पहुंचे होंगे। कितनी गोलियां चल चुकी हैं। देर से फायरिंग हो रही है। लोग कान बंद करके बैठने से तो रहे। "पाली ने कहा। मोना चौधरी उसे घूरती रही। उसी वक्त गोली चली।


मोना चौधरी तुरंत मकान के पीछे वाले हिस्से में पहुंची। "गोली किसने चलाई?" मोना चौधरी की आवाज में दरिंदगी थी।


"मैंने। "


"क्यों?"


"ऊपर से देवराज चौहान ने सीढ़ियों पर बड़ा-सा पत्थर इस तरह लुढ़काया कि लगे जैसे कोई नीचे उतर रहा हो तो मुझे फायर करना पड़ा। फिर वो पत्थर नजर आया सामने बीच वाली सीढ़ी पर पड़ा है।"


"देवराज चौहान नीचे आने की कोशिश में है। " मोना चौधरी बोली । 


"और मैं उसके इंतजार में हूं।" महाजन खतरनाक स्वर में कह उठा। 


"कोई फायदा नहीं। " पारसनाथ की निगाह मोना चौधरी की तरफ उठी।


तभी चंद कदम दूर मौजूद बंगाली बोला। 


“मैं अपने आदमियों को फोन करती हूं। पंद्रह मिनट में ही वो यहां होंगे। उसके बाद तो इन लोगों को भागने का भी मौका नहीं मिलेगा। " बंगाली के स्वर में क्रूरता के भाव थे। 


"अब किसी भी बात का कोई फायदा नहीं।" मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी—"पाली ने बेवकूफी कर दी है। " 


"कैसी बेवकूफी?" पारसनाथ की आंखें सिकुड़ी।


"उसने पुलिस को फोन कर दिया है कि यहां फायरिंग हो रही है।" 


"बेवकूफ।" महाजन के होंठों से निकला—"उसने ऐसा क्यों किया?"


"अपनी समझ के मुताबिक उसने यह काम बचाव के लिए किया है। " मोना चौधरी जहरीले स्वर में बोली।


"दिमाग खराब हो गया है उसका।" महाजन झल्लाया। 


"पुलिस का यहां आना ठीक नहीं होगा।" पारसनाथ का स्वर सख्त या— "हमें नुकसान हो सकता है। "


"अब पुलिस कभी भी, यहां आ सकती है। " मोना चौधरी गुस्से में थी।


तभी कुछ दूर मौजूद बंगाली की आवाज आई।


"पुलिस पर फायरिंग मत करना। नहीं तो वो मेरा बिस्तरा गोल कर देगी।"


"सामने पड़ने पर पुलिस से मुकाबला तो करना ही पड़ेगा।" पारसनाथ का खुरदरा स्वर कठोर था। 


"नहीं।" बंगाली ने फौरन कहा "इस बारे में मोना चौधरी सेमेरी बात हो चुकी है। "


पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।


"पुलिस के सामने आने पर हाथ तो खड़े करने से रहे। " महाजन की आवाज में तीखापन था । 


"तुम लोग तो पुलिस से झगड़ा करके चले जाओगे। बाद में मैं नहीं बचूंगा।" 


मोना चौधरी का चेहरा धधक रहा था।


"इस वक्त तो यह सोचो कि पुलिस के आने पर देवराज चौहान और उसके साथी तो बचकर निकल जाएंगे। क्योंकि उनका घेरा बाहर की तरफ है। उसके बाद पुलिस की गाज हम पर ही गिरेगी। अगर हम हथियार छिपाकर हाथ खड़े करके, शरीफों की तरफ उनके सामने आ जाएं तो भी देर-सबेर में वो हमारी असलियत जान जाएगी। यानी की इस वक्त हमें देवराज चौहान से ज्यादा पुलिस से खतरा है। महाजन और पारसनाथ की निगाहें मिलीं। 


"फिर क्या किया जाए?" पूछा बंगाली ने।


सबकी निगाहें मिलीं।


आंखों में एक ही जवाब था। "इस जगह को फौरन छोड़ देना ही हम सबके लिए बेहतर होगा।" मोना चौधरी कह उठी "देवराज चौहान से फिर निपट लिया जाएगा। वो तो किसी भी हाल में हमारे हाथों बचने वाला नहीं।" सख्त


"इस वक्त हम देवराज चौहान के घेरे में हैं। "पारसनाथ स्वर में बोला— "अपनी मर्जी से निकल भी नहीं सकते।"


देवराज चौहान से इस बारे में बात की जाए।" महाजन शब्दों को चबाकर बोला।


सबके चेहरों पर कठोरता थी। जवाब में किसी ने បាយ नहीं कहा।


छत पर सीढ़ियों के कोने में मौजूद देवराज चौहान के कानों में मध्यम सी सब आवाजें सारे शब्द पड़ रहे थे और वह भी महसूस कर रहा था कि उनके झगड़े के बीच पुलिस का आना ठीक नहीं। अगर पुलिस आने वाली है तो ऐसे में यहां से निकल जाना ही ठीक है। तभी उसके कानों में महाजन की आवाज पड़ी जो उसे पुकार रहा

था।


"देवराज चौहान।" देवराज चौहान ने महाजन की आवाज को पहचाना और समझ भी गया कि उसे क्यों पुकारा जा रहा है। उसके जवाब न देने पर महाजन की आवाज फिर से कानों में पड़ी।


"देवराज चौहान। "


"हां। " देवराज चौहान का लहजा शांत था।


"मैं महाजन "


"पहचान लिया है मैंने। " देवराज चौहान का हाथ अपने खून से सने गले पर था, जहां रूमाल बांध रखा था। अब खून बहना रुक चुका था— "बात बोल।"


बोल...।"


"बेबी, तुमसे बात करना चाहती है।"


क्षणिक खामोशी के बाद मोना चौधरी का तीखा स्वर कानों में पड़ा।


"देवराज चौहान। कुछ ही देर में यहां पुलिस आने वाली है। ऐसे में हम लोग किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। अलबत्ता पुलिस के बीच में आ जाने की वजह से हालात और बिगड़ सकते हैं। देवराज चौहान खामोश रहा। ?"


"सुन रहे हो"


"हां। "


"अगर तुम्हें पुलिस के बीच में आने से परहेज नहीं। तो हमें भी कोई एतराज नहीं। फैसला मैं तुम पर छोड़ रही हूं। इस वक्त हालातों को यहीं रोककर, फैसला फिर किसी दिन पर छोड़ना चाहते हो तो बेहतर। नहीं तो इस वक्त जो जैसा चल रहा है, बेशक वैसा ही चलने दो। जैसा तुम पसंद करो। "


देवराज चौहान ने रिवॉल्चर को बगल में दबाकर सिगरेट सुलगाई।


"क्या मालूम, आज के बाद तुम कब सामने पड़ो। " कश लेकर रिवॉल्वर हाथ में लेते देवराज चौहान बोला।


"देवराज चौहान। " मोना चौधरी की आवाज में एकाएक सुलगन आ गई थी- "अब मैं तुमसे ज्यादा जल्दी में हूं कि हममें फैसला हो और पुलिस की वजह से इस वक्त हम निकलने की सोच रहे हैं। लेकिन वायदा रहा कि बहुत जल्द हममें मुलाकात होगी। आखिरी, फैसले से भरी मुलाकात। "


"तो जगह तय कर लो। आखिरी मुलाकात के लिए हम वहीं मिलेंगे। वक्त भी बता दो। " देवराज चौहान का स्वर सपाट था। 


दो पल की चुप्पी के बाद मोना चौधरी का स्वर आया। 


"बंगाली। ऐसी कोई जगह बताओ, जहां देवराज चौहान से फैसले से भरी मुलाकात हो सके। "


बंगाली ने तुरंत मंबई के बाहर की जगह बताई। 


"जगह के बारे में सुना देवराज चौहान?" मोना चौधरी का स्वर इस बार ऊंचा था। 




"सुना। हम कल मुलाकात करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा- "वक्त तुम्हारी पसंद का।"


"करो। "


"दिन के बारह बजे।" 


"ठीक है। मैं अपने साथियों को यहां से ले जा रहा हूं। पीठ पर वार करने की भूल मत कर बैठना।" देवराज चौहान की आवाज में एकाएक दरिंदगी के भाव आ गए थे।


"जहां बराबर की टक्कर हो, वहां पीठ पर वार नहीं होते देवराज चौहान। " मोना चौधरी की आवाज तीखी थी। 


देवराज चौहान ने ऊंचे स्वर में आवाज लगाई। 


"जगमोहन।"


मकान के पीछे की दीवार के पार से जगमोहन की आवाज आई। 


"हां"


"पुलिस आने वाली है। यहां से निकल चलो। रुस्तम राव को भी बोल दो। " देवराज चौहान ने कहा।


"लेकिन...। " जगमोहन ने कहना चाहा।


"बाकी बातें बाद में होंगी। यहां से निकलो। सामने की तरफ से बांके को लो।"


यह सुनते ही मोना चौधरी महाजन से बोली।


"पाली से बोलो किसी पर गोली मत चलाए।


महाजन ने अपनी जगह छोड़ी और मकान के भीतरी कमरे की तरफ बढ़ गया।


देवराज चौहान छत के दूसरे हिस्से में पहुंचा, जहां से वो रेन वॉटर पाइप से ऊपर आया था। रिवॉल्वर दांतों में फंसाकर नीचे उतरा और रिवॉल्वर पुनः हाथ में ले ली।


चंद कदमों की दूरी पर मौजूद बांकेलाल राठौर ने उसे देखा। 


"का हौवो ?"


"यहां से निकलो। पुलिस आने वाली है। "


"का कहत हो। अंम तो मोना चौधरी को 'वडने' आयो । पुलिस की परवाह न हौवे अंमको।"


"अभी चलो। कल मोना चौधरी से फैसले से भरी मुलाकात होगी। " 


"वो कैसे?"


"जगह और वक्त तय हो चुका है। कल मामला एक किनारे लग जाएगा। " कहते हुए देवराज चौहान के जबाड़ों में कसाव भरता चला गया "जो भी हो, कल ये मामला खत्म होकर ही रहेगा।" 


इसके साथ ही आगे बढ़ता देवराज चौहान गेट के पास पहुंचा और कुंडी खोलकर, पल्ला एक तरफ करते हुए बाहर निकलता चला गया। बांकेलाल राठौर उसके साथ हो गया।


दोनों कार तक पहुंचे। कर्मपाल सिंह स्टेयरिंग सीट पर मौजूद था। वे भीतर बैठ गए।


"क्या हुआ?" कर्मपाल सिंह ने पूछा।


“सुनने को आवे कि यां पुलिस पहुंचनो वालो हाँचे।"


"कैसे पता लगा?"


"मालूम नहीं। देवराज चौहान ही बोलो।" 


कर्मपाल सिंह ने प्रश्न भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान ने कुछ कहने की अपेक्षा सिगरेट सुलगा ली। अगले दो मिनट बाद जगमोहन और रुस्तम राव भी वहां पहुंचे और कार में बैठ गए। कर्मपाल सिंह कार में बैठने लगा कि तभी उनके कानों में पुलिस सायरन की तेज आवाज पड़ी। देखते ही देखते पुलिस वालों से भरी जिप्सी, उनकी बगल से गुजरती चली गई।


"पुलिस तो आ गयो । मोना चौधरी और उसके साथी फंसो ही फंसो। "


"कोई नहीं फंसेला बाप। वो सब अब तक पतली गली से निकल गएला होगा।"


कर्मपाल सिंह ने कार मोड़ी और दौड़ा दी।


"क्या हुआ था?" जगमोहन ने पूछा ।


देवराज चौहान ने बताया।


सुनकर बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।. 


"कोई बातों ना ही। एको दिन और 'जी' ले सुसरी कल 'वडेंगे' मोना चौधरी को।"


***