एक बजे !
हसीना ने बिस्तर में बेचैनी से करवट बदली और मुंह से कराह निकल गयी । बरसों में पहली बार उसे अपनी उम्र का पूरा कोफ्त महसूस हुआ । नींद उससे कोसों दूर थी । बार–बार एक ही खौफनाक नज़ारा जहन में उभर रहा था ।
प्रवेश हॉल में गोलियों की गूँज…परवेज का झटके से पीछे हटना...दीवारों पर खून की बौछारें...फर्श पर खून से लथपथ पड़ा परवेज...!
बेचारा...!
हसीना के अंदर घुमड़ती बेचैनी और अकेलेपन का गम अंत में चीख के रूप में बाहर उबल पड़ा ।
* * * * * *
एक बजे...!
ब्लू मून में रात की रंगीनियां अपने पूरे शबाब पर थीं ।
टीना नजर नहीं आ रही थी लेकिन नजमा रेस्टोरेंट में हसन भाइयों की मेज पर थी । मुजफ्फर बेग भी अनवर के साथ था ।
अनवर धीरे–धीरे स्पेशल रोस्टेड चिकन का स्वाद ले रहा था ।
फारूख हसन ऊपर बार में था, जहां अभी भी फ्लोर शो चल रहा था ।
अनवर परेशान था । उसे सैकड़ों फिक्रें सता रही थीं–मां को पहुंचा गहरा सदमा, पैराडाइज क्लब की तबाही, तेजी से बदलते हालात, फारूख...और सबसे ज्यादा चिन्ता का विषय था असगर अली ।
वह अभी भी पुलिस के कब्ज़े में था और उनमें से किसी को भी उसके असली दमखम की जानकारी नहीं थी । असगर अली आदमी बढ़िया था । अपने काम में भी माहिर था । लेकिन उस बैकग्राउंड से नहीं था जिससे खुद अनवर या फारूख या कालका प्रसाद जैसे दूसरे लोग थे । पुलिस वालों का दबाव बढ़ता जा रहा था । वे इतने चालाक होते हैं असगर अली को बातों में फंसाकर कुछ भी कबूलवा लेंगे ।
नजमा ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया ।
अच्छी लड़की है, उसने सोचा । लेकिन आज रात इसके बगैर भी काम चला लेगा ।
उसने गहरी सांस ली ।
कालका प्रसाद कहां फंस गया ? अभी तक क्यों नहीं लौटा ?
* * * * * *
एक बजे...!
कालका प्रसाद कार की पिछली सीट पर बैठा था ।
बद्री, करन और चार्ली भी उसके साथ थे । बद्री कार चला रहा था ।
चारों खामोश थे ।
सारा दिन भारी गुजरा था और रात और भी ज्यादा भारी पड़ रही थी । थकान और बेचैनी भरी भागदौड़ जारी थी ।
हालात जो शक्ल अख्तियार करते जा रहे थे कालका प्रसाद को वो सब जरा भी पसंद नहीं था । वह इससे भी खुश नहीं था कि फारूख और अनवर इन दिनों उसे हर एक बात नहीं बता रहे थे । दूसरे, बरसों पुराने साथी बलदेव मनोचा का वो अंजाम नहीं होना चाहिये था । उन बातों को सोचना भी वह नहीं चाहता था, जिन्हें अपने पुराने साथी के साथ करने पर उसे मजबूर किया गया था । उसे सिर्फ इतनी तसल्ली थी कि उसने मनोचा को टार्चर करके मारने की बजाये थोड़ी रहमदिली दिखाई थी । अगर दोनों भाइयों में से कोई भी मौजूद होता तो ऐसा कर पाना नामुमकिन था । हालांकि फारूख ने हुक्म दिया था–इस कमीने की गुदा में पूरी बोतल घुसेड़कर पैंदा तोड़ देना । फिर यह भी सच था कि अब से पहले कई बार ऐसी घिनौनी और बेहद तकलीफदेह यातनाएँ वह लोगों को दे चुका था–जब भाइयों ने हुक्म दिया और वे मौके पर मौजूद रहे थे । लेकिन अपने पुरानी साथी मनोचा के साथ यह सब करना अच्छा नहीं लगना था ।
ऐसी हैवानियत करने की बजाये उसने मनोचा को आसान मौत दे दी थी । उसे जरा भी तकलीफ़ नहीं सहनी पड़ी थी ।
स्कॉच की चुस्कियां, गपशप और हंसी–मज़ाक से मनोचा को रास्ते भरखुश रखा गया था–फार्म तक । हालांकि पानी और बिजली की सुविधाओं के बावजूद फार्म के नाम पर हाईवे और आम सड़क से दूर वहां एक पुरानी कॉटेज, तीन आउट हाउस और पांच एकड़ में फैली झाड़ियां ही थीं । तीन साल से वो हसन भाइयों की निजी सम्पत्ति थी और कई बार उसे डवलप करके सही मायने में फार्म हाउस बनाने की योजना बनायी गयी थी लेकिन वैसा कुछ हो नहीं पाया । उसे कभी–कभार गुप्त ठिकाने के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता था । उन लोगों को छिपाकर रखने के लिये जिनके पीछे पुलिस पड़ जाती थी या किसी को गुमनाम मौत देने के लिये ।
वहां पहुंचने तक मनोचा लगभग सामान्य और बेफिक्र नजर आने लगा था । वह पहले भी वहां आ चुका था और पुलिस की सरगर्मियां ठण्डी पड़ने तक वहां रहने के आइडिये से खुश था ।
कार से उतरकर कच्चे रास्ते पर पैदल काटेज की ओर जाते वक्त चार्ली ने अचानक पीछे से उसकी खोपड़ी पर तगड़ा प्रहार कर दिया था–रबड़ के सोटे से । जिसे इसी मकसद से वह साथ लेकर आया था ।
मनोचा के मुंह से कराह तक नहीं निकल सकी । वह बेहोश होकर नीचे जा गिरा ।
बद्री और करन उसे उठाकर तेजी से सबसे बड़े आउट हाउस में ले गये । जिसे किसी जमाने में अनाज के गोदाम के लिये इस्तेमाल किया जाता था । बेहोश मनोचा को वहां पड़ी लकड़ी की मोटी मजबूत पेटियों में से एक में ठूंस दिया गया–गर्भाशय के भ्रूण जैसी हालत में ।
कालका प्रसाद ने उसकी खोपड़ी में सीधी नीचे की ओर पिस्तौल रखते हुये, ताकि गोलियां जिस्म के अंदर ही रहें, दो बार ट्रिगर खींच दिया ।
फिर पेटी में पत्थर भरकर उसे और भारी बना दिया गया । मोटी लम्बी कीलों से पेटी पर ढक्कन ठोंककर उस पर चाक से क्रॉस का बड़ा–सा निशान बना दिया गया ।
बाद में कोई और ट्रक लेकर आयेगा । पेटी को लादकर नदी, झील या समुद्र में कहीं डुबो दिया जायेगा ।
कालका प्रसाद नहीं जानना चाहता था–कहां !
तब तक करन ने काटेज के बाहर लगी टोंटी से प्लास्टिक का लम्बा होज पाइप जोड़कर तगड़ा छिड़काव करके पैरों के तमाम निशान मिटा दिये थे–कार से काटेज और फिर वहां से गोदाम तक ।
वापसी सफर के दौरान करीब सात मील दूर कालका प्रसाद ने एक पुल पर कार रुकवाई । चूड़ियां घुमाकर पिस्तौल के सभी हिस्से अलग–अलग कर लिये । कुल आठ पीस थे । हरएक पीस को अलग–अलग नदी तटों से बहते पानी की तेज धारा में फेंक दिया ।
अंत में जब करीमगंज तक एक घण्टे का सफर बाकी रह गया तो कार एक सुनसान जगह में रोककर चारों व्हील चेंज कर दिये गये–दूसरे मेक के टायरों वाले व्हीलों से पुराने पहिये चार अलग–अलग स्थानों पर प्रतीक्षारत कारों में लोड करा दिये गये । जहां से वे विभिन्न जगहों पर कूड़े के ढेरों पर फेंक दिये जाने थे ।
कालका प्रसाद कोई सुराग छोड़ने का रिस्क नहीं लिया करता था ।
* * * * * *
एक बजे…!"
रमोला को अपने भाग्य पर यकीन नहीं आ सका ।
अपार्टमेंट बड़ा और विलासपूर्ण ढंग से सुसज्जित था–ठीक किसी फिल्म के सैट की तरह । लम्बा–चौड़ा ड्राइंग रूम । बेडरूम में नर्म आरामदेह किंग साइज्ड बेड, शानदार ड्रेसिंग टेबल और स्टिरियो यूनिट जिससे आधुनिक किचिन और बाथरूम सहित पांचों कमरों में संगीत का रस लिया जा सकता था ।
एक अल्मारी में सजी कीमती पोशाकें, जूते, अण्डरगारमेंट्स वगैरा देखकर रमोला की ख़ुशी का पारावार नहीं रहा । ये तमाम चीजें उसके अपने साइज की ही थीं ।
–"तुम यहां आराम से रहो ।" फारूख ने कहा था–"मैं चार्ली को तुम्हारे पास छोड़े जा रहा हूं । तुम्हारी पूरी देखभाल करेगा । ताकि आज रात न तो तुम्हें डर लगे और न ही अकेलापन महसूस हो । सुबह एक लड़की आकर तुम्हें तुम्हारे काम के बारे में बता देगी ।"
चार्ली खाने–पीने की तमाम जरूरी चीजें ले आया ।
जब रमोला को उबासियां आने लगी और कहा सोना चाहती थी तब उसे अहसास हुआ चार्ली सिर्फ उसकी देखभाल लिये ही वहां नहीं था ।
वह बेडरूम में उसके साथ–साथ आ गया ।
–"रमोला ।" अपनी जैकेट उतारकर पूछा–"तुम्हें क्या ज्यादा पसंद है ?"
रमोला एकाएक समझ नहीं पायी ।
–"क्या मतलब ?"
चार्ली ने बिस्तर की ओर इशारा किया ।
–"पीठ के बल लेटना या पेट के ?"
रमोला ने अपने अंदर के भय पर काबू पाने की कोशिश की ।
–"देखो, चार्ली में बहुत ज्यादा थक गयी हूं ।" उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली–"आज रात नहीं, फिर किसी वक्त...।"
–"फारूख भाई को यह अच्छा नहीं लगेगा ।"
रमोला समझ गयी, कुछ भी कहना बेकार था । चार्ली को रोक पाना नामुमकिन है । वे लोग उसे तोड़ने के लिये ऐसा कर रहे हैं ।
पहले फारूख हसन और अब चार्ली । कल और दूसरे आ जायेंगे । कम से कम वक्त में ज्यादा से ज्यादा आदमियों को मोजमेला कराना होगा । उनकी मनमानी बर्दाश्त करते हुये उन्हें पूरी तरह खुश करना ही होगा । हालात से समझौता करना ही पड़ेगा ।
उसने गहरी सांस लेकर कपड़े उतारने शुरू कर दिये ।
चार्ली मुस्कराया ।
–"तुम बहुत अच्छी लड़की हो और...समझदार भी ।"
अब रात में एक बजे रमोला ने भी महसूस करना शुरू कर दिया शायद इसी में समझदारी है । अपने जिस्म के साथ कुछ देर की मनमानी बर्दाश्त करने में हर्ज भी क्या है, कुछ नहीं । इन तमाम ऐशो–आराम की कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी ।
* * * * * *
एक बजे…!"
असगर अली की आंखों में भी नींद नहीं थी । पुलिस हैडक्वार्टर्स के बेसमेंट में एक बंद कोठरी में बिस्तर पर पड़ा वह परेशान और भयभीत था ।
हालांकि उसने कबूल कुछ नहीं किया था लेकिन बड़ी–ही साफ तस्वीर उसके सामने पेश की गयी थी । उससे कल सुबह फिर पूछताछ की जायेगी । अगर वह चाहे तो अपने होटल जा सकता था । लेकिन इस दौरान उसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती थी । फिर ज्यादा उम्र वाले पुलिसिये ने करीब दर्जन भर ऐसे लोगों के नाम तक गिना दिये जो हसन भाइयों के गहरे दोस्त रहे थे लेकिन पुलिस द्वारा पूछताछ के बाद हसन भाइयों के हाथों जानोंमाल के भारी नुकसान उठाने पड़े थे ।
दलील अपनी जगह सही और वजनदार थी ।
असगर अली को मानना पड़ा पुलिस हैडक्वार्टर्स में रात गुज़ारने में ही सलामती थी ।
वह फारूख और अनवर हसन के बीच हुई बहुत–सी अहम बातों का राजदार रहा था । इसलिये उन दोनों से बखूबी वाक़िफ़ था । वह जानता था अगर उन्हें जरा–सा शक भी हो गया कि किसी ने उनके साथ गद्दारी की है तो उनकी बददिमागी और गर्ममिजाजी पागलपन की हदों को भी पार कर जाती है ।
असगर अली के जहन में कई ऐसी यादें ताजा हो गयीं जिन्हें भुलाना चाहकर भी भुला पाना नामुमकिन था ।
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