पानी में कुछ है
पन्द्रह साल पहले मैंने एक गर्म दोपहर में राजपुर के करीब उस तालाब को खोजा था। वह पास उगे साल के पेड़ों की छाया से ढँका था और शान्त और आमन्त्रित करता प्रतीत हो रहा था। मैंने अपने कपड़े उतारे और पानी में गोता लगा दिया।
पानी मेरी उम्मीद से ज़्यादा ठंडा था। वह ग्लेशियर के पानी की तरह बर्फ़ीला ठंडा था। सूरज ने जैसे इसे कभी छुआ नहीं था, ऐसा प्रतीत होता था। पूरी शक्ति के साथ तैरते हुए मैं तालाब के दूसरे किनारे पर पहुँचा और खुद को पत्थर पर खींचा, काँपते हुए।
लेकिन मैं थोड़ा और तैरना चाहता था। इसलिये मैंने फिर से गोता लगाया और हल्के ब्रेस्टस्ट्रोक देता हुआ तालाब के बीचोंबीच पहुँचा। कुछ मेरे पैरों के बीच सरक आया। कुछ लिसलिसा, मुलायम। मैं किसी को देख नहीं पा रहा था, कुछ सुन नहीं पा रहा था। मैं तैरता रहा लेकिन वह लिसलिसी तैरती हुई चीज़ मेरे पीछे लगी रही। मुझे वह अच्छा नहीं लग रहा था। कुछ मेरे पैर के पास लिपट आया। कोई पानी के नीचे का पौधा नहीं। कोई चीज़ जो मेरे पंजों को चूस रही थी। एक लम्बी जीभ मेरी पिंडली को चाट रही थी। मैं बेतहाशा तैरता रहा, उस अनजान चीज़ से खुद को दूर भगाता हुआ जो मेरा साथ चाहती थी। कोई अकेली चीज़, छाया में विलीन होती हुई। पानी में हाथ-पैर मारता फुहारें छोड़ता, मैं एक भयभीत सूंस की तरह तैर रहा था जो कि किसी भयंकर खतरे से भाग रहा हो।
पानी से सुरक्षित बाहर आकर, मुझे धूप की रोशनी से गर्म एक पत्थर मिला और मैं वहाँ पानी को देखता खड़ा रहा।
कुछ नहीं हिला। तालाब की सतह अब शान्त और अचल थी। बस कुछ गिरे हुए पत्ते तैर रहे थे। एक भी मेढक, एक भी मछली, या पानी का पक्षी नज़र नहीं आ रहा था और यह अपने आप में एक विचित्र बात थी, क्योंकि आप किसी प्रकार के जीवन का प्रमाण तालाब में देखने की ज़रूर उम्मीद करते हैं।
लेकिन तालाब में कोई रहता था, इस बात का मुझे यकीन था। कोई बहुत ही ठंडे खून वाला, पानी से भी ठंडा और गीला। क्या वह खरपतवार में फँसा कोई शव था? मैं नहीं जानना चाहता था; इसलिये मैंने अपने कपड़े पहने और तेज़ी से निकल आया।
कुछ दिनों बाद मैं दिल्ली के लिए निकला, जहाँ मैं एक विज्ञापन एजेंसी में काम करने गया था और लोगों को यह बताता कि किस तरह कोला इत्यादि पेय के सेवन से आप ग्रीष्म की गर्माहट झेल सकते हैं जो वास्तव में आपको और प्यासा बनाता है। जंगल का वह तालाब मुझे भूल चुका था।
मैंने उस घटना के दस साल बाद फिर राजपुर की यात्रा की। उस छोटे होटल को छोड़ते हुए जहाँ मैं ठहरा हुआ था, मैंने खुद को उसी पुराने साल के जंगल से गुज़रते पाया और उस तालाब की ओर खिंचे चले जाने से खुद को रोक नहीं पाया, जहाँ मैं अपना तैरना खत्म नहीं कर पाया था। मैं वहाँ फिर से तैरने के लिए बहुत उत्सुक नहीं था, लेकिन यह जानने की उत्सुकता थी कि क्या वह तालाब अब भी वहाँ अस्तित्व में है या नहीं।
बेशक, वह वहाँ अब भी था, हालाँकि आस-पास का माहौल बदल चुका था और कई नये घर और अन्य इमारतें बन गयी थीं, पहले जहाँ सिर्फ़ जंगल था। और तालाब में भी बहुत सारी गतिविधियाँ जारी थीं।
ढेर सारे मज़दूर बाल्टी और रबर की पाइप से तालाब से पानी खींच रहे थे। वह छोटी धारा जो उसे पानी देती थी, वे उसे अवरुद्ध कर चुके थे और उसका मार्ग बदल दिया था।
एक सफ़ेद सफारी सूट में सज्जित व्यक्ति इस अभियान का निरीक्षण कर रहा था। पहले मैंने सोचा कि वह कोई जंगल का अवैतनिक प्रबन्धक है, लेकिन फिर पता चला कि वह एक स्कूल का मालिक था जो पास में ही निर्मित हो रहा था।
“क्या आप राजपुर में रहते हैं?” उसने पूछा।
“मैं रहा करता था… बहुत पहले…आप तालाब को क्यों खाली कर रहे हैं?”
“यह एक खतरा बन गया है,” उसने कहा, “मेरे दो लड़के यहाँ हाल में डूब गये। दोनों ही सीनियर विद्यार्थी थे। यह सही है कि उन्हें बिना अनुमति के तैरने नहीं आना चाहिए था, यह तालाब निषिद्ध था। लेकिन आप जानते हैं कि लड़के कैसे होते हैं। नियम बनाइये और वह उसे तोड़ना अपना कर्तव्य मानते हैं।”
उसने बताया कि उसका नाम कपूर है और वह मुझे अपने घर में ले गया, एक नया बना बँगला जिसका खूब बड़ा और बढ़िया बरामदा था। उसका नौकर हमारे लिए ठंडे शर्बत के गिलास लाया। हम बेंत की कुर्सियों पर बैठे, जहाँ से तालाब और जंगल दिख रहा था। खुली जगह के पार, एक पथरीली सड़क नयी बनी स्कूल की इमारत की ओर जाती थी, जिस पर नयी सफ़ेदी हुई थी और वह धूप में चमक रही थी।
“क्या लड़के वहाँ एक ही समय पर गये थे?” मैंने पूछा।
“हाँ, वे दोस्त थे। और उन पर ज़रूर पक्के दुश्मनों ने आक्रमण किया होगा। सारे अंग मुड़े और टूटे हुए, चेहरा बिगड़ा हुआ। लेकिन मौत डूबने से हुई—यह चिकित्सक का कथन था।”
हमने तालाब के उथलेपन को घूरा, जहाँ अब भी कुछ लोग काम कर रहे थे, बाकी लोग दोपहर के भोजन के लिए गये थे।
“शायद इस जगह को छोड़ देना ही सही होगा,” मैंने कहा, “इसके चारों ओर काँटेदार बाड़ लगायें। अपने लड़कों को दूर रखें। हज़ारों साल पहले, वास्तव में यह घाटी चारों ओर से घिरा हुआ समुद्र थी। अब कुछ तालाब और धाराएँ ही उसके अवशेष के रूप में बची हैं।”
“मैं इसे भरना चाहता हूँ और वहाँ पर कुछ बनाना चाहता हूँ। एक ओपन एयर थियेटर शायद। हम एक कृत्रिम तालाब तो कहीं भी बनवा ही सकते हैं।”
अभी बस एक आदमी तालाब में बचा हुआ था, कीचड़ के पानी में घुटने तक डूबा हुआ और मैंने और मिस्टर कपूर दोनों ने देखा कि उसके बाद क्या हुआ।
तालाब के तल से कुछ निकला। वह एक दैत्यकार घोंघे की तरह लग रहा था, लेकिन उसके सिर का आधा हिस्सा मानव का था, उसका शरीर और अवयव आधे घोंघे या ऑक्टोपस की तरह थे। एक विशाल स्कूबी, स्त्री दैत्य। वह तालाब में खड़ी उस आदमी से ज़्यादा लम्बी थी। एक नरम और लिसलिसी जीव, हमारे प्राचीन काल की उत्तरजीवी।
तेज़ शोषक गति से, उसने उस आदमी को अपनी बाज़ुओं में लपेट लिया कि बस उस आदमी की बाँहें और पैर ही बेतहाशा और निरर्थक रूप से संघर्षरत दिखाई दे रहे थे। स्कूबी, स्त्री दैत्य ने उसे पानी में खींच लिया।
कपूर और मैंने बरामदा छोड़ा और तालाब के किनारे भागे। सतह के पास हरी काई से झाग निकल रहा था। बाकी सब कुछ स्थिर और शान्त था। और जिस तरह बच्चे के मुँह से बबलगम निकलता है, एक क्षत-विक्षत आदमी का शरीर पानी से निकल घूमता हुआ हमारी तरफ़ आया।
मृत और दम घुटा हुआ, और शरीर का सारा द्रव्य चूस कर सुखाया हुआ।
स्वाभाविक था कि उसके बाद तालाब पर कोई और काम नहीं हुआ। यह कहानी बताई गयी कि एक मज़दूर फिसल गया और पत्थर पर गिरकर मर गया। कपूर ने मुझे राज़ नहीं खोलने की कसम दी। उसका स्कूल बन्द हो जाता अगर उस क्षेत्र में कई विचित्र तरीके से डूबने से मौतें और अन्य दुर्घटनाएँ होतीं। लेकिन उसने उसे अपनी सम्पत्ति से अलग करते हुए उस जगह के चारों ओर दीवारें खड़ी करते हुए उसे बिलकुल अगम्य बना दिया। साल के जंगल के सघन विस्तार ने उस तक पहुँचने का रास्ता ढँक दिया।
मानसून की बारिश आयी और तालाब फिर से भर गया।
मैं आपको बता सकता हूँ कि वहाँ कैसे पहुँचना है अगर आप उसे देखना चाहें। लेकिन मैं आपको वहाँ तैरने की सलाह नहीं दूँगा।
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