बिस्तर पर बैठे बद्री के चेहरे पर चिंता मिश्रित विचारपूर्ण भाव थे । उसकी निगाहें कमरे में इधर–उधर लड़खड़ाते फिर रहे भोला पर जमी थी । उसने इमारत के चौकीदार को भेजकर व्हिस्की की दो बोतलें मंगाई थीं । और पिछले करीब तीन घंटों में अकेला ही डेढ़ बोतल डकार गया था । नशे के कारण अब उसकी हालत ऐसी थी कि खुद को संभाल नहीं पा रहा था ।

बद्री ने उसे समझाने और रोकने की लाख कोशिश की थी । मगर भोला ने मानना तो दूर उसकी ओर देखा तक नहीं । और मन ही मन कुढ़ता बद्री उस मनहूस घड़ी को कोसने लगा । जब भोला को पहली बार अपने साथ शामिल किया था ।

अचानक भोला की ठोकर से कुर्सी उलट गई और वह खुद गिरता–गिरता बचा ।

–'आराम से लेट जाओ, टकरु ।' बद्री बोला–'और सोने की कोशिश करो ।'

भोला पलंग के पास आ खड़ा हुआ । अपनी सुर्ख आंखों को मिचमिचाते हुए उसे देखा ।'

–'सुनो, बद्री, मुझे तुमसे नफरत हो गई है ।' वह बोला, नशे के कारण उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी–'इस सारी मुसीबत के लिए तुम्ही जिम्मेदार हो । तुम सिर्फ तुम ।'

बद्री की सहनशक्ति जवाब दे गई ।

–'तुमने उस वक्त तो शिकायत नहीं की जब बीस लाख रुपये की स्कीम में मैंने तुम्हें शामिल किया था और वो रकम हासिल करके भी दिखा दी ।' वह गुर्राकर बोला–'यह ठीक है कि वो सारी रकम हमने पाँच लाख में बेच दी । लेकिन पहले कभी तुमने इतनी रकम ख्वाब में भी देखी थी । तुम्हारी औकात ही क्या थी । तुम मामूली उठाईगिरे और लोगों को डरा धमका कर लूटने वाले ही तो थे । हज़ार–दो हजार की मामूली रकम भी तुम्हें हाथी का पैर नजर आती थी ।'

–'मैं पूछता हूँ, तुम्हारे वो पांच लाख ही हमें क्या सुख दे रहे हैं ?' भोला ने कमरे में हाथ घुमाते हुए पूछा–'इस कबाड़खाने में पड़े घुट रहे हैं । बाहर नहीं जा सकते क्योंकि वे लोग हमें ढूँढ़ रहे हैं । उसने अपने हाथ कूल्हों पर रख लिए–'तुम बार–बार यही कहते रहे हो वे हमें ढूँढ़ रहे हैं । ठीक है न ?'

–'यह तो तुम भी जानते हो ।' बद्री कराहता सा बोला–'क्या उस रात हमें ठिकाने लगाने की कोशिश नहीं की गई ।'

भोला के नशे ने तमतमाए चेहरे पर मुस्कराहट पुत गई । उसने सर हिलाकर इन्कार कर दिया ।

–'गलत । हमें नहीं, तुमको ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी ।' वह उसकी ओर हाथ हिलाकर बोला–'सिर्फ तुम्हें ।'

–'तुम पागल हो गए हो । वे लोग जानते हैं तुम...।'

–'सिर्फ तुम्हें । मुझे नहीं ।' भोला जोरदार स्वर में प्रतिवाद करता हुआ बोला–'मैं कुछ भी नहीं हूं । सारी प्लानिंग और दिमाग तुम्हारा ही था । रकम बेचने वाले भी तुम ही थे । इसलिए उन्हें तुम्हारी ही तलाश है । मेरी नहीं । मैं बेकार इस कबाड़खाने में घुट रहा हूं । मुझे यहां बन्द पड़े रहने की कोई जरूरत नहीं है । मैंने फैसला कर लिया है । मैं यहाँ से जा रहा हूँ ।'

वह पीछे हटा और दरवाजे को ओर बढ़ गया ।

–'ठहरो !' बद्री बोला ।

–'किसलिए ?'

भोला वापस पलट गया । उसने देखा, बद्री के हाथ में रिवाल्वर थी । जिसका रुख सीधा उसी की ओर था ।

–'इसलिए कि तुम्हारे बाहर जाने का मतलब होगा, हम दोनों की मौत । और मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगा । बद्री बोला–'तुम्हें गोलियां खाने का इतना ही शौक है तो तुम्हारी यह ख्वाहिश मैं यहीं पूरी कर देता हूं । तुम कहीं नहीं जाओगे । यहीं रहोगे, इसी कमरे में ।'

भोला मिचमिचाती आंखों से रिवाल्वर को देख रहा था । फिर उसकी निगाहें बद्री के चेहरे पर जा टिकीं ।

–'तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, बद्री ।' वह यूं बोला मानों उसकी इस हरकत पर अफसोस जाहिर कर रहा था–'ऐसा नहीं करना चाहिए था ।'

बद्री ने रिवाल्वर से कुर्सी की ओर संकेत किया ।

–'चुपचाप वहाँ बैठ जाओ ।' उसने कहा–'नशा उतरने पर तुम्हें पता चलेगा मैंने तुम्हारे हक में ठीक ही किया है । वह पलंग से उतर कर खड़ा हो गया रिवाल्वर का रुख सीधा भोला की छाती की ओर था–'अपने लिए एक ड्रिंक बनाओ और आराम से बैठो ।'

भोला ने अपना सर हिलाया, धीरे से बड़बड़ाया और सिंक के पास जाकर करीब आधी भरी बोतल से गिलास को लगभग पूरा भर लिया । उसने पलटकर सिंक से टेक–लगा ली ।

–'तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, बद्री । उसने पुनः कहा और हाथ में पकड़ा व्हिस्की से भरा गिलास, अचानक उसके मुंह पर उछाल दिया ।

बद्री ने बचने की कोशिश करते हुए लगातार दो फायर झोंक दिए । दोनों गोलियां भोला के सर के पास से गुजर कर दीवार में जा घुसी ।

लेकिन बद्री खुद को बचा नहीं पाया । गिलास में भरी व्हिस्की सीधी उसके चेहरे पर आ गिरी नीट व्हिस्की आँखों में पड़ने के कारण उसे अपनी आँखें जलती सी महसूस हुई । वह चीखता हुआ आंखें मलने लगा । उसने पुनः रिवाल्वर ऊपर उठाई लेकिन उसे सही फायरिंग पोजीशन में नहीं ला सका ।

नशे की तगड़ी झोंक में होते हुए भी आश्चर्यजनक चुस्ती–फुर्ती का प्रदर्शन करता हुआ भोला इस बीच उसके सर पर जा पहुंचा था । उसने एक वजनी घूँसा बद्री के पेट में जमा दिया ।

बद्री इस बुरी तरह लड़खड़ाया कि उसके हाथ से रिवाल्वर छूट गई । आंखें बन्द किए वह पीड़ा से होंठ काट रहा था ।

भोला ने उसका गिरहबान पकड़कर उसकी पीठ जोर से दीवार के साथ टकरा दी । साथ ही एक वजनी घूँसा पेट में दे मारा । फिर उसे बड़ी बेदर्दी से नीचे पटक दिया । पहले से ही दर्द से मरे जा रहे बद्री का सर फर्श से टकराया और उसकी चेतना जवाब दे गई ।

भोला ने उसके नीचे बूट अड़ाकर उसे पीठ के बल उलट दिया । फिर नीचे झुककर उसकी जेबों में भरी नोटों की गड्डियाँ निकालकर अपनी जेबों में ठूँस ली ।

–'हमारी पार्टनरशिप खत्म हो गई ।' उसने कहा और लड़खड़ाता हुआ दरवाजा खोलकर कमरे से निकल गया ।

सीढ़ियां उतरकर इमारत से बाहर आकर वह देर तक खड़ा ताजा हवा में गहरी सांसें लेता रहा । फिर सड़क पर चल दिया ।

वह खुद को पूरी तरह आजाद महसूस कर रहा था । आजादी के एहसास और जेब में भरे नोटों ने उसे रोमांचित कर दिया । अब वह अपनी मर्जी का मालिक था । जो चाहे कर सकता था । कोई उसे रोकने वाला नहीं था ।

उसने क्या करना था । यह वह अच्छी तरह जानता था ।