सोनू जब वैन ले भागा, तो घबराहट में वैन की हैडलाइट जलाना भूल गया था। यही बात उसे फायदा दे गई। बचा गई। उसने वैन को अंधाधुंध आत्माराम के खेत की तरफ दौड़ा दिया था। हर तरफ अंधेरा छाया हुआ था। आधी रात हो रही थी। चाँद भी अब बादलों के टुकड़ों के पीछे छिप रहा था।
काफी आगे उसे कोई आगे की तरफ भाग कर जाता दिखा।
पहले तो सोनू घबरा उठा कि ये कौन है, फिर जब उसे पहचाना तो चैन की साँस ली। वो प्यारा था।
सोनू ने प्यारे के पास वैन ले जा रोकी।
तब तक प्यारा भी वैन को पास आते देख ठिठक गया था।
प्यारा छलांग मारकर वैन के दरवाजे से लटक गया। सोनू ने उसी पल वैन दौड़ा दी।
"काम बन गया सोनू...।" प्यारा खुशी से कह उठा।
"चुपकर! मेरी साँस अभी तक अटकी पड़ी है।" सोनू हड़बड़ाए स्वर में बोला।
"डर रहा है?"
"हाँ। डर तो लग रहा है। तूने कारों की हवा निकाल दी थी?"
"हवा निकालने में खतरा था। तब सूं-सूं हवा निकलने की तेज आवाज सबको सुनाई दे जाती।"
"तो तूने हवा नहीं निकाली?" सोनू वैन को दौड़ा रहा था। कभी खेतों में तो, कभी कच्चे रास्ते पर।
प्यारा वैन की खिड़की पर लटका हुआ था।
"मुझे कील मिल गई थी वहाँ से। वो मैं हर कार के एक टायर में घुसेड़ता गया। प्यारे ने कहा।
"बढ़िया किया।"
"अब वो हमारे पीछे नहीं आ सकते।"
"पीछे नजर मार। मुझे तो अँधेरे में कोई नहीं दिख रहा।"
प्यारे ने लटके-लटके पीछे नजर मारी।
"हमारे पीछे कोई नहीं है।" प्यारा बोला।
"फिर तो हमने बाजी मार ली।" सोनू ने राहत की साँस ली।
"वहाँ कितने लोग थे...। अगर हमें पकड़ लेते तो हमारी तगड़ी ठुकाई करते।" प्यारे ने कहा।
"हाथ-पाँव जरूर टूट जाते।" सोनू वैन दौड़ाता बोला।
"बच गए।" प्यारा वैन के दरवाजे में लटका दाँत फाड़कर हँस पड़ा--- "तेरे को पता है कि वैन में भी दो गनमैन थे।
"हाँ। तभी तो सबका ध्यान वैन के पीछे की तरफ लगा था। जिस कार की हैडलाइट जल रही थी, जब मैं उस कार के पीछे वाले टायर को पंचर कर रहा था, तो तब मैंने उन गनमैनों को देखा।"
"तूने बहुत हिम्मत से काम लिया।"
"पता नहीं, बस हो गया।" प्यारे ने गहरी साँस ली--- "तूने भी तो वैन दौड़ाकर हिम्मत का काम किया।"
"तब मैं घबराहट में था। पता नहीं कैसे सब होता चला गया। एक बात तो बता...।" सोनू बोला।
"क्या?"
"वैन के भीतर क्या है? तूने तो देख लिया होगा।"
"हाँ। तब देखा था। भीतर स्टील के पाँच बक्से हैं।"
"मतलब कि पच्चीस लाख रुपया।"
"पच्चीस लाख... वो कैसे?"
"एक बक्से में पाँच लाख से क्या कम होगा--- पाँच बक्से हुए तो पच्चीस लाख हो गया कि नहीं?"
"हाँ, पच्चीस तो हो गया।" प्यारे बोला--- "तेरे को पता है कहाँ जाना है?"
"आत्माराम के गन्ने के खेत में...।"
"भूला नहीं तू। सब याद है।" प्यारे अभी तक लटका हुआ था--- "सोनू मुझे तो गिन्नी की बहुत याद आ रही है।"
"उसे छोड़। पैसे की तरफ ध्यान दे। अब हम अमीर बन गए हैं।"
"तू ठीक कहता है। अब गिन्नी तो क्या चाची भी मुझसे शादी करने को राजी हो जाएगी।"
"तो मैं गिन्नी से शादी कर लूँगा।" सोनू ने कहा।
"गिन्नी से? उससे तो मैंने शादी करनी...।"
"अभी तूने कहा तो है कि तू चाची से शादी करेगा।"
"वो तो मैंने यूँ ही कहा है। गिन्नी तेरी भाभी है, उससे शादी की कभी मत सोचना।"
"तू गिन्नी से शादी नहीं करेगा तो तब मैं उससे कर लूँगा।"
"मैं गिन्नी से शादी करुँगा।"
"तो मैं कोई और ढूंढ लूँगा। शादी ही तो करनी है, कोई भी चल जाएगी।" सोनू ने वैन धीमी की--- "नीचे नीचे उतर।"
"क्यों?"
"आत्माराम के गन्ने का खेत आ गया है। ऐसे ही वैन गन्नों में ले गया तो गन्ना तेरे में घुस जाएगा।"
"ओह, एक मिनट...।"
वैन धीमी हो चुकी थी।
प्यारे ने छलांग लगा दी। नीचे जा लुढ़का और फौरन खड़ा हो गया।
सोनू ने वैन की रफ्तार बढ़ाई और तेज गति से वैन को गन्ने के खेत में लेता चला गया।
सोनू ने वैन को रोकते ही लम्बी, चैन की साँस ली और इंजन बंद करके नीचे उतरता बोला---
"प्यारे...।"
"हाँ...।" प्यारे की आवाज गन्ने के खेतों से बाहर आई।
"जरा देख, बाहर से वैन नजर आ रही है?"
"नहीं नजर आ रही।"
"पीछे देख, कोई इधर तो नहीं आ रहा?"
पल भर बाद प्यारे की आवाज आई---
"नहीं आ रहा। उनकी कारें तो मैंने पंचर कर दी थीं।"
सोनू वैन के पीछे वाले हिस्से में पहुँचा।
रात के इस अंधेरे में भी वो पाँचों स्टील के बॉक्स पड़े नजर आ रहे थे।
प्यारे पास आ पहुँचा।
"शुक्र है कि कोई बॉक्स गिरा नहीं। दरवाजा जो खुला था वैन का...।" प्यारा बोला।
"प्यारे... अब हमारे पास पच्चीस लाख हैं। पूरे पच्चीस लाख...।"
"अब देखता हूँ कि चाची गिन्नी की शादी कैसे मुझसे नहीं करती---।" प्यारे ने अकड़ से कहा।
"जल्दी से बक्से खोल और नोट बाहर...।"
"सोनू...।" एकाएक प्यारे ने टोका।
"गिन्नी नींद में होगी। तू उसकी क्यों फिक्र करता है?"
"मैं कुछ और सोच रहा हूँ...।"
"क्या?"
"हम पच्चीस लाख का क्या करेंगे? यह पैसा तो हमारे लिए बहुत ज्यादा है।"
"तो क्या हो गया।"
"समझा कर सोनू, ज्यादा पैसा होगा तो किसी को हम पर शक पड़ जाएगा कि पैसा कहाँ से आया हमारे पास। वो पुलिस को खबर कर देगा। पुलिस आएगी और पूछेगी कि हमारे पास इतना पैसा कहाँ से आया तो हम क्या जवाब देंगे?"
"बात तो तेरी ठीक है। इस बात से मुझे भगते की बात याद आ गई।"
"भगता?"
"हाँ। एक बार वो अखबार से खबर पढ़ कर बता रहा था कि एक आदमी इसलिए पुलिस के हाथों में पड़ गया कि वह रोज का बहुत पैसा खर्च करता था। किसी को शक हुआ तो उसने पुलिस को खबर कर दी। पकड़ा गया। वो पैसा उसने कंपनी से गबन किया था।"
"हम ऐसा नहीं करेंगे। किसी को बताएंगे ही नहीं कि हमारे पास पैसा है। जैसे रहते आए हैं, वैसे ही खर्च करेंगे। कभी जरूरत पड़े तो हजार-पाँच सौ का नोट निकाल लिया। बाकी सब घर में ही छुपा कर रखेंगे।
"बात तो तेरी सही है।"
"तू भगते को इस बारे में मत बताना। नहीं तो उसे भी हिस्सा देना पड़ेगा।"
"भगते को क्यों बताऊँगा। मेरा दोस्त तो तू है। मैं तो उसकी दुकान पर कभी यूँ ही खबरें सुनने को बैठ जाता हूँ...।" सोनू ने कहा।
"मैं तो मैं कह रहा था कि हम पच्चीस लाख का क्या करेंगे...। ये हमारे लिए ज्यादा है। संभाला भी नहीं जाएगा।"
"तो?" सोनू अंधेरे में प्यारे को देखने लगा।
"सारा पच्चीस लाख ले गए तो किसी को खुशबू भी आ सकती है कि हमारे पास पैसा है।"
"तू कहना क्या चाहता है?"
"हम पाँच लाख का एक बॉक्स ले चलते हैं, बाकी यहीं रहने देते हैं।"
"तेरा मतलब बीस लाख छोड़ दें?"
"हमारा काम पाँच लाख से चलता है या नहीं?" प्यारे ने पूछा।
"हमारे काम का क्या है, एक लाख से भी चल जाएगा।"
"एक से नहीं चलेगा।" प्यारे ने गर्दन हिलाई--- "एक लाख, एक सौ रुपया चाची को देकर, गिन्नी से शादी करुँगा।"
"एक लाख, एक सौ? सौ का मतलब नहीं समझा मैं...।"
"लक्ष्मण चाची को एक लाख रुपया देना चाहता है गिन्नी से शादी करने के लिए।"
"हाँ।"
"मैं सौ ऊपर दूँगा।"
"ये तो तूने बहुत ठीक सोचा।" सोनू ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।
"हम एक ही बॉक्स ले चलते हैं। आधा-आधा कर लेंगे। तू ऑटो खरीद लेना, मैं दुकान डाल लूँगा।"
"तू ठीक कहता है...।" सोनू ने प्यारे के कंधे पर हाथ मारा--- "उठा एक और भाग चलते हैं।"
दोनों ने आगे पड़े बक्से को बाहर की तरफ खींचा।
"भारी है ये तो।" प्यारे बोला।
"कहीं इसमें चिल्लर तो नहीं भरी?" सोनू ने कहा।
"हमारा काम चिल्लर से भी चल जाएगा। क्यों सोनू?"
"हाँ... हाँ।" सोनू ने कहा--- "हम दोनों ने मिलकर यह बक्सा उठाना पड़ेगा। लगा हाथ...।"
दोनों ने मिलकर बक्सा वैन से नीचे उतार कर रखा।
तब उन्हें पता चला कि बक्से के दोनों तरफ कुंडे लगे हैं।
दोनों ने एक-एक तरफ से कुंडा पकड़कर बक्से को उठाया।
"इसमें चिल्लर ही होगी।"
"निकल चल यहाँ से...।"
"मैं गन्ने के खेत के बाहर झाँककर आता हूँ कि वहाँ कोई है तो नहीं।" प्यारे ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया।
"देख...देख। वो लोग जरूर हमें ढूंढ रहे होंगे।"
फौरन पलट आया प्यारे।
"सब ठीक है। बक्सा उठा और चल।"
दोनों बक्सा गन्ने के खेत से बाहर आ गए। बक्सा भारी था और हर चार कदमों के बाद साँस लेने के लिए बक्से को नीचे रखना पड़ता था। इसी प्रकार वे चलते रहे। अपनी दुनिया में मस्त थे दोनों। ना तो पुलिस का डर था और ना ही किसी दूसरे का। पाँच लाख हाथ आ जाने की खुशी थी। ये पाँच लाख इन दोनों की कल्पनाओं की देन थी, वरना एक बक्से में बारह करोड़ की रकम थी।
परन्तु वो पाँच लाख सोचकर ही खुश थे।
"सोनू गिन्नी के पास चलते हैं।" प्यारा बोला।
"पागल है तू?"
"क्यों?"
"वो अपनी माँ को इस बारे में बता देगी। चाची पाँच का पाँच ही हजम कर लेगी। जैसे उस दिन हमारे ढाई सौ रुपये हजम कर लिए थे। तेरे को पता है ना कि चाची कितनी लालची है।" सोनू बोला।
"बात तो तू ठीक कहता है।" प्यारा कह उठा।
"दोनों जैसे-तैसे बक्से को उठाये आगे बढ़े जा रहे थे।
एकाएक सोनू ठिठका, बक्सा नीचे रख दिया।
"क्या हुआ?"
"बहुत बड़ी गलती हो गई... मैं अभी आया।"
"लेकिन कहाँ जा रहा है?"
"आत्माराम के खेत में।" कहकर सोनू भागता हुआ नजरों से ओझल हो गया।
"बेवकूफ, एक और बक्सा लेने गया होगा...।" प्यारा बड़बड़ा उठा और उसी बक्से पर बैठ गया।
आधे घंटे बाद सोनू लौटा। वो खाली हाथ था।
"तू वहाँ क्या करने गया था?" प्यारे ने पूछा।
"वक्त पर याद आ गया, वरना फँस जाते।"
"क्या मतलब?"
"भगते ने एक बार अखबार पढ़ कर बताया था कि पुलिस ने एक लुटेरे को उसकी उंगलियों के निशानों की वजह से पकड़ लिया। कई बार भगता बता चुका है कि अपराधी को अपराध करके वो जगह अच्छी तरह साफ कर देनी चाहिए।"
"तूने क्या किया?"
"मैंने अपनी ये कमीज उतारकर, वैन को आगे-पीछे अंदर-बाहर से अच्छी तरह साफ कर दिया अब पुलिस को हमारी उंगलियों के निशान वैन पर से नहीं मिलेंगे। पुलिस को पता ही नहीं चलेगा कि पाँच लाख से भरा बक्सा हम ले आए हैं...।"
"ओह, ये तो तूने अच्छा किया।"
"चल, जल्दी से बक्सा उठा।"
दोनों पुनः जैसे-तैसे भारी बक्सा उठाकर चलने लगी। बार-बार रुक कर साँस लेते। इस तरह आगे बढ़ते एक घण्टा बीत गया। हर तरफ खेत थे। उनकी कॉलोनी की रोशनियाँ कुछ दूरी पर नजर आ रही थीं।
"मैं तो थक गया प्यारे...।"
"थक तो मैं भी गया हूँ। लेकिन पैसा कमाने के लिए कुछ तो मेहनत करनी पड़ती है।"
"हम इस भारी बक्से को घर तक ले गए तो कोई-ना-कोई हमें देख लेगा।" सोनू ने कहा।
"तो क्या करें?"
"मेरी मान तो किसी खेत में गड्ढा खोदकर, बक्सा दबा देंगे। कल सुबह आएंगे और थोड़े-थोड़े पैसे निकाल कर ले जाया करेंगे। दो दिन में ही बक्सा खाली कर देंगे।" सोनू बोला।
"बात तो तेरी जँची। लेकिन गड्डा कैसे खोदेंगे?"
"हाथों से...।"
"इस तरह तो बहुत टाइम लग जाएगा। बक्से को जमीन में दबाने के लिए गहरा गड्ढा खोदना पड़ेगा।"
"खोद लेंगे।" सोनू ने हँसकर कहा--- "पाँच लाख पाने के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ेगी।"
"ठीक है। कौन से खेत में बक्सा दबाएं?"
"किसी भी खेत में दबा देते हैं। कल हमने दो-तीन चक्कर लगाकर पाँच लाख निकाल तो लेना ही है।"
"फिर तो यह पास वाला खेत ही ठीक है...आ।"
"ये तो चरखू का खेत है, हर वक्त अफीम के नशे में धुत रहता है...।" प्यारा बड़बड़ा उठा।
◆◆◆
दिन के उजाले की रोशनी फैली।
प्यारे और सोनू ने उस जगह की मिट्टी बराबर कर दी थी, जहाँ बक्सा दबाया था। दोनों बुरी तरह थके लग रहे थे। साँसें चढ़ी हुई थीं। हाथों से मिट्टी खोदना और उसमें बक्सा दबाना, वास्तव में मेहनत वाला काम था।
उन्होंने शरीर पर कच्छा पहना हुआ था।
कपड़े तो पहले ही उतार दिए थे कि गंदे ना हो जायें।
"काम हो गया सोनू। मुझे तो नींद आ रही है।" प्यारे बोला।
"चल घर चलते हैं। मुझे भी नींद आ रही है।"
दोनों ने कपड़े पहने। चल पड़े। प्यारे को एकाएक गिन्नी की याद आई।
"मैं तो गिन्नी के पास जाऊँगा...।" प्यारे कह उठा।
"चल। भाभी को भी देख लें। हाथ फेरेगा क्या?" सोनू बोला।
"पागल है! दिन निकल आया है। कोई देख लेगा।"
"ठीक है। इस काम के लिए कोई और मुहूर्त निकाल लेंगे।"
रास्ते में ट्यूबवेल चलता मिल गया। हाथ-मुँह धो लिए।
कुछ ही देर में वहाँ पर थे, जहाँ गिन्नी को छोड़ा था।
वहाँ चादर बिछी हुई थी, परन्तु गिन्नी नहीं थी।
"गिन्नी कहाँ गई?" प्यारा घबराकर बोला।
"चोर तो उठाकर नहीं ले गए?" सोनू चादर उठाता कह उठा।
"उसकी आँख खुल गई होगी। वह घर चली गई होगी।" प्यारे बोला।
"हमें भी घर पहुँचना होगा। गिन्नी सलामत हो।"
दोनों तेजी से घर की तरफ चल पड़े।
सोनू ने चादर को गोल करके बगल में दबा लिया था।
प्यारे और सोनू गिन्नी के घर में जा घुस।
सामने गिन्नी खड़ी थी। सुबह का गुलाबी चेहरा, खिला रंग। बेहद हसीन लग रही थी वो।
उसे सलामत पाकर दोनों ने चैन की साँस ली।
"तू किधर चला गया था प्यारे?"
"वहाँ, पास ही था...। तू जाने कब उठी और...।"
"अभी-अभी तो घर आई हूँ। रात भर खूब नींद आई।" गिन्नी मुस्कुराई।
"मेरी चादर तू वहीं छोड़ आई थी...।" सोनू में शिकायती स्वर में कहा।
"मुझे ध्यान नहीं रहा।" गिन्नी ने कहा और आगे बढ़कर प्यारे का हाथ पकड़ लिया--- ""बच्चा ठहर गया प्यारे?"
"ब...बच्चा...?" प्यारे ने हड़बड़ाकर, सोनू को देखा।
"जैसा तूने कहा, मैंने किया। सूरजभान के गोलगप्पे खाकर, खुले में खेतों में सोई। अब तो बच्चा ठहर गया होगा...।"
प्यारे ने हड़बड़ाए से पुनः सोनू को देखा।
सोनू फौरन कह उठा---
"ह...हाँ... हाँ क्यों नहीं ठहरा होगा। जरूर ठहर गया होगा। नौ महीने बाद तू प्यारे के बच्चे को जन्म देगी।"
"शुक्र है। अब माँ मेरा ब्याह लक्ष्मण से नहीं करेगी।" गिन्नी कह उठी।
प्यारे, प्यार से गिन्नी को देखने लगा।
"बैठ प्यारे मैं चाय बनाती हूँ...।" गिन्नी ने कहा।
"मुझे नींद आ रही है। रात भर मैं सोया नहीं। तेरी रखवाली में जागता रहा गिन्नी।"
"मैं भी नहीं सोया।" सोनू जल्दी से कह उठा।
"ठीक है। तू सो। हम दोपहर को बातें करेंगे।"
प्यारे ने सिर हिला दिया।
उसके बाद प्यारे और सोनू बाहर निकले। चार कदम आगे बढ़कर अपने कमरे का दरवाजा खोलता प्यारे बोला---
"गिन्नी को ये भी नहीं पता कि बच्चा कैसे ठहरता है?"
"चुप कर। उसे इसी भ्रम में रख कि बच्चा ठहर गया। वो चाची को बतायेगी तो चाची चीख मारकर, बेहोश हो जायेगी।"
"चीख मारना जरूरी है, वैसे बेहोश नहीं हो सकती?"
"मैंने कई फिल्मों में देखा है कि ऐसी खबर पाकर, लड़की की माँ चीख मारकर बेहोश होती है।" सोनू बोला।
"छोड़! मुझे तो नींद आ रही...।"
"मैं चलता हूँ। अपने घर पर सोऊँगा।"
"यहीं सो जा...।"
"नहीं। घर पर ही सोऊँगा। दो-चार घण्टे नींद लेकर आऊँगा... फिर...।"
"फिर खेतों में चलेंगे। उस बक्से में से पाँच लाख में से कुछ निकाल लाएंगे।"
"धीरे बोल दीवारों के भी कान होते हैं।"
प्यारे ने हड़बड़ाकर मुँह बंद कर लिया।
"चाची तक ये बात पहुँच गई तो पाँच लाख भी हमारे हाथों से निकल जाएगा।" सोनू ने धीमे स्वर में कहा।
"समझ गया। नींद लेने के बाद चलेंगे और बक्से में से थैला भर के ले आएंगे। थैला है तेरे पास?" आहिस्ता से बोला प्यारे।
"पड़ा है। नीचे से फटा हुआ है। कृष्णा से सिलाई लगवा लाऊँगा।"
"ठीक है।" प्यारे ने सिर हिला दिया।
सोनू चला गया।
प्यारे ने चप्पल उतारी और चारपाई पर जा लेटा। वह इतना थका हुआ था कि लेटते ही नींद आ गई। पाँच लाख के बारे में एक बार भी कुछ सोचने का मौका नहीं मिला।
◆◆◆
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