“मैंने पहले ही कहा था कि ये मुंह नहीं खोलेगा ।" सोहनलाल कठोर स्वर में कह उठा।

 

ये उजड़ा-सा पार्क था। रात तो क्या दिन में भी यहां कोई

नहीं आता था। पारसनाथ पर चारों ने आसानी से कब्जा पाया और उसे यहां लाकर मोना चौधरी के बारे में पूछने लगे कि वो कहां रहती है।

 

पारसनाथ तो वो पत्थर था, जिसकी मर्जी के बिना मुंह नहीं खुलवाया जा सकता था। तगड़ी से तगड़ी यातना दी गई पारसनाथ को । चाकू की नोक से उसके शरीर को उधेड़ा गया, परन्तु पारसनाथ ने मोना चौधरी के बारे में कुछ नहीं बताया। हाथ-पांव बांध रखे थे पारसनाथ के ।

 

“ये म्हारी बातों का जवाब न दयो तो अंम अभ्भी 'वड' दयो हो, इसो को।"

 

“सोच ले पारसनाथ।” गुर्रा उठा जगमोहन-“ये तुम्हारी जिन्दगी का आखिरी वक्त है।”

 

“क्यों खामख्वाह मरेला बाप । मोना चौधरी का ठिकाना बताईला ।”

 

“वेकार की कोशिश कर रहे हो।" पारसनाथ ने सपाट कठोर स्वर में कहा- "मुझसे कुछ नहीं मालूम हो सकेगा।"

 

“महाजन कहां रहता है?" जगमोहन ने भिंचे स्वर में पूछा।

 

“मेरे मुंह से ये भी नहीं जान सकोगे।"

 

“अंम अभ्भी ‘वडो' इसो को।" बांकेलाल राठौर ने खतरनाक स्वर में कहा और रिवाल्वर निकाल ली।

 

"भंवर सिंह -- ।"

 

इस आवाज के साथ ही सबने चौंक कर गर्दनें घुमाईं। कुछ फांसले पर फकीर बाबा खड़ा था।

 

“ओ पेशीराम तम-।" बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ीं।

 

"सलाम पेशीराम- ।” रुस्तम राव कह उठा- "लाडो कैसी होएला ?”

 

“ठीक है बेटे ! उसकी आंखें तो तेरे ही इन्तजार में लगी रहती हैं।” फकीर बाबा ने कहा ।

 

लाड़ो और इन सबके पहले जन्म की चंद और बातें जानने के लिये पढ़ें उपन्यास 'ताज के दावेदार' एवं 'कौन लेगा ताज' ।

 

“गुलचंद ! कैसा है तू? तेरा नशा तो हर जन्म में चलता है।" पेशीराम कह उठा ।

 

“उसके बिना तो मेरा काम ही नहीं चलता।" सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

 

“जग्गू ।” फकीर बाबा ने कहा- “तू हर जन्म में देवा का साथ देता है। बेशक वो गलत हो ।”

 

"मेरी निगाहों में देवराज चौहान गलत नहीं होता पेशीराम।" जगमोहन गम्भीर स्वर नें कह उठा ।

 

 

 

तभी फकीर बाबा ने पारसनाथ के बंधनों को देखा। उसी पल बंधन खुल गये ।

 

"“खड़ा हो जा परसू - ।" फकीर बाबा ने कहा।

 

पारसनाथ खड़ा हो गया। यातनाओं के कारण वो खुद को कमजोर-सा महसूस कर रहा था ।

 

फकीर बाबा ने उसकी तरफ हाथ किया तो पलक झपकते ही उसके सारे घाव गायब हो और वो बिल्कुल सामान्य नजर आने लगा। पारसनाथ ने अपने शरीर को देखा फिर फकीर बाबा को ।

 

“मुझे तुम्हारी शक्तियों का एहसास है पेशीराम- ।” पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर मुस्कान उभरी।

 

“तुम बिना वजह हमारे पास नहीं आये होंगे पेशीराम-।" जगमोहन कह उठा।

 

“ठीक समझे जग्गू -। मैं तुम लोगों को लेने आया हूं।"

 

“अभ्भी म्हारो वक्त न आयो जो तू लेनो के वास्तो आ गयो- "

 

पेशीराम के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

 

“देवा और मिन्नो के कहने पर मैं तुम सबको लेने आया हूं।

जो नहीं चलना चाहेगा, उसे नहीं ले जाऊंगा।"

 

“देवराज चौहान ?” जगमोहन चौंका- “कहां है देवराज चौहान ?”

 

“तुम मोना चौधरी की बात कर रहे हो पेशीराम- ।” पारसनाथ के होंठों से निकला ।

 

“हां। दोनों जहां हैं। एक साथ ही है। मैं तो उनका कहा मान रहा हूं। सब चलना चाहते हो या किसी को इन्कार है।"

 

सबकी नजरें मिलीं।

 

“पेशीराम !” रुस्तम राव गम्भीर-सा कह उठा - "कोई गड़बड़ होएला क्या ?"

 

“गड़बड़ो तो हौवे ही- ।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा - "भारी गड़बड़ी की स्मैल आवे म्हारे को तो।”

 

"हम चलने को तैयार हैं।" जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा।

 

“असल मामला क्या होएला पेशीराम ?” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में पूछा।

 

“अभी नहीं बता सकता त्रिवेणी। सबके सामने ही बताऊंगा।"

 

रुस्तम राव फिर कुछ नहीं बोला।

 

पेशीराम ने पारसनाथ को देखा। “क्यों परसू, तू क्या सोच रहा है ?"

 

“अगर मोना चौधरी के पास ले जा रहे हो तो मुझे कोई एतराज नहीं।" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।

 

फकीर बाबा ने आंखें बंद करके होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाय तो उसी पल सब मध्यम-सी धुंध में बदल गये और फिर वो धुंध भी गायब हो गयी।

 

अब वहां कोई भी नजर नहीं आया। उजड़ा पार्क खाली-खाली नजर आ रहा था।

 

***

“नीलू!” राधा ने वहां छाई चुप्पी को तोड़ा- "मुझे तो लगता है कि मोना चौधरी की कार पैंचर हो गई होगी। जो अभी तक नहीं पहुंची। वरना अब तक तो वो सौ बार आ गई होती। " 


महाजन ने गम्भीर निगाहों से राधा को देखा। कहा कुछ नहीं।


नगीना बेचैनी भरे अंदाज में कुर्सी पर बैठी थी। 


“तू कुछ कहता क्यों नहीं नीलू -।"


“मोना चौधरी ने यहां घर में नहीं आना था।" महाजन ने कहा। 


“तो-।"


“बाहर ही देवराज चौहान से मुलाकात करनी है।" कहते हुए महाजन के होंठ भिंच गये।


“बाहर ही।” राधा के होंठों से निकला- “तो तुमने उसे बता दिया था कि देवराज चौहान कहां है।"


“हां - "


“तो फिर यहां क्या कर रहा है। बाहर देख। कहीं उनके बीच लड़ाई न हो रही हो ।"


व्याकुलता से नगीना ने होंठ भींच लिए। महाजन उठा और दूसरे कमरे के बैडरूम की तरफ बढ़ा। 


“वहां कहां जा रहा है? "


“रिवाल्वर लेने। " 


“वो तो तू पहले ले आया था।"


“गोलियां लाना भूल गया था। कहने के साथ ही महाजन उस कमरे में प्रवेश कर गया। बोतल में बची सारी ही गले में उड़ेली और वोतल को छिपाकर ड्राईंगरूम में पहुंचकर दरवाजे की तरफ बढ़ा।


“गोलियां ले लो नीलू - "


“हां ।”


"मौका लगे तो देवराज चौहान का निशाना ले लेना। बहुत देर हो गई है। मोना चौधरी आ चुकी होगी।”


नगीना होंठ भींचे महाजन को देख रही थी। महाजन ने दरवाजा खोला और बाहर देखा । नगीना उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ी। 


"तू कहां जा रही है यहीं बैठ ।”


"देखूं तो सही कि बाहर क्या हो रहा है।" नगीना ने अपनी व्याकुलता छिपाते हुए कहना चाहा।


“अभी तेरे या मेरे बाहर देखने का वक्त नहीं है। नीलू सब संभाल लेगा। बाहर से कोई गोली आकर हमें लग गई तो क्या होगा । देवराज चौहान तेरा तो निशाना ले ही लेगा। बैठ जा।” राधा ने कहा। और दापस कुर्सी पर बैठ गई।


नगीना चाहकर भी आगे न जा सकी


“क्यों नीलू! क्या नजर आ रहा है ?"


“मुझे तो कोई भी नजर नहीं आ रहा।" महाजन ने बाहर देखते हुए कहा ।


"देवराज चौहान तो वहां खड़ा होगा।"


“नहीं। मैं देखकर आता हूं। तुम दरवाजा बंद कर लो - ।” 


कहने के साथ ही पहाजन बाहर निकल गया। 


नगीना उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ी। 


“तू फिर उंठी - ।” राधा ने तुरन्त टोका। 


“दरवाजा बंद करने जा रही हूं।" नगीना बोली। 


“खुला रहने दे दरवाजा।" राधा हाथ हिलाकर कह उठी- "मैं क्या डरती हूं देवराज चौहान से आने दे उसे । तू बैठ जा । " 


नगीना चाह कर भी दरवाजे के पास न जा पाई।


महाजन तीसरे मिनट ही वापस लौटा। वो सिर से पांव तक परेशानी से भरा हुआ था। भीतर आने पर उसने दरवाजा भी बंद करने की चेष्टा नहीं की।


“राधा बोतल ला ।” महाजन कुर्सी पर बैठता हुआ भिंचे स्वर में कह उठा ।


“बोतल - ?”


“अंधेरा हो चुका है। अब तो मुझे पीने से मना नहीं कर

सकती ।"


बिना कुछ कहे राधा उठी और दूसरे कमरे से बोतल लाकर महाजन को दे दी। महाजन ने बोतल खोली और दो तगड़े घंटे भरे फिर बोतल को टेवल पर रख दिया।


"देवराज चौहान से कोई बात हो गई जो उखड़ा पड़ा है तू।" राधा कह उठी ।


"वहां देवराज चौहान नहीं है।" महाजन ने गम्भीर-परेशान स्वर में कहा - "पेड़ के पास ही नीचे ढेर सारा खून बिखरा हुआ जाने वो खून देवराज चौहान का है या बेबी का ।” 


“सच नीलू - ।" राधा के होंठों से निकला। 


“हां मैं भीतर ही था तब, जब बाहर कुछ हुआ होगा। मैंने सोचा था कि जब बेबी आयेगी तो मालूम हो जायेगा। लेकिन बेबी के बाहर आ जाने का मुझे एहसास नहीं हो पाया।" महाजन शब्दों पर जोर देते कह उठा- “बेबी को तलाश करना पड़ेगा कि वो कहां है। तभी उससे मालूम होगा कि क्या हुआ है । " 


उसी पल नगीना उठ खड़ी हुई। चेहरे पर कठोरता नजर आ रही थी ।


महाजन और राधा की निगाह उसके चेहरे पर गई।


"तेरे को क्या हुआ?" 


“मै जा रही—।”


“तू बाहर जायेगी अभी। अगर देवराज चौहान बाहर हुआ तो।” राधा ने कहना चाहा।


“खामोश रहो।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ी।


राधा और महाजन की उलझन भरी नजरे मिलीं। 


“बाहर मत जाओ।" महाजन ने टोका-“देवराज चौहान तुम्हारे लिये छिपा भी हो सकता है।"


नगीना खुले दरवाजे तक पहुंची कि ठिठक गई । दरवाजे के पार, पास ही बाहर फकीर बाबा खड़ा था। जो शांत निगाहों से नगीना को देख रहा था ।


“कौन हो तुम?” नगीना के होंठों से निकला- "मेरे रास्ते से हट जाओ।"


“मुझे पहचाना नहीं नगीना बेटी-।"


नगीना ने फौरन फकीर बाबा को आवाज से पहचान लिया। 


“अ-आप--फकीर बाबा ।” 


फकीर बाबा के चेहरे पर धीमी से मुस्कान उभरी,


“भीतर चलो नगीना।"


“नगीना तुरन्त उल्टे पांव ही वापस हो गई।"


फकीर बाबा ने भीतर प्रवेश किया।


उस पर निगाह पड़ते ही महाजन चौंक कर खड़ा हो गया।


"तुम - पेशीराम-।" महाजन के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।


राधा ने अजीब-सी निगाह से पुराने-मैले कपड़ों में फकीर बाबा के बूढ़े शरीर को देखा।


"क्यों नीलू! कौन है ये? ऐसी क्या बात हो गई जो भिखारी घर के भीतर आकर भीख मांगने की हिम्मत करने लगे।”


"इसकी बातों का बुरा मत मानना पेशीराम।” महाजन ने अपने पर काबू पाने की कोशिश की।


फकीर बाबा ने मुस्करा कर राधा को देखा। 


“सदा खुश रहो ।”


राधा के माथे पर बल उभर आये। उसने अजीब-सी निगाहों से महाजन को देखा ।


“बाबा!” नगीना परेशनी से कह उठी- “महाजन कहता है, जहां देवराज चौहान खड़ा था, वहां खून बिखरा है। उन्हें कुछ हो तो नहीं गया। वो कैसे है बाबा ?”


“सब ठीक है नगीना देवा कुछ घायल अवश्य हुआ है मिन्नो की गोली से। लेकिन जान का खतरा नहीं है।” फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा- "मैं वक्त पर न पहुंचा होता तो कुछ भी हो सकता।”


“मुझे उनके पास ले चलो बाबा या बता दो वो कहां है । " नगीना तड़प-सी उठी- “वो घायल है। मैं उनके पास - ।”


“अवश्य। मैं अभी तुझे देवा के पास ले चलूंगा।"


महाजन हैरानी से नगीना को देख रहा था। उसके चेहरे पर उलझन ही उलझन थी ।


“नीलू - ।" राधा, महाजन के पास आकर उसकी बांह पकड़कर कह उठी– “ये क्या कह रही है। ये तो ऐसे बात कर रही हैं जैसे देवराज चौहान की बीवी हो । देख तो कैसे तड़प रही है।” 


" फकीर बाबा के चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी ।” 


महाजन ने आंखें सिकोड़कर फकीर बाबा को देखा।


“ये सब क्या है पेशीराम ?” महाजन कह उठा - "ये कौन है ?" 


“नगीना नाम है इसका ।” 


“वो तो जानता हूं लेकिन देवराज चौहान से इसका क्या वास्ता?” 


"देवा की पत्नी है ये । ” 


महाजन को लगा जैसे पहाड़ सिर पर आ गिरा हो । 


“क्या? देवराज चौहान की पत्नी ?" 


“हां नील सिंह।” फकीर बाबा का स्वर शांत था - "ये वास्तव में देवराज चौहान की पत्नी है।”


दो पल तो महाजन से कुछ कहते न बना। देखता रहा वो नगीना को ।


"ये - ये यहां क्यों आई?” 


“बताओ बेटी ।


नीलसिंह की उलझन को दूर करो।" फकीर बाबा ने नगीना से कहा ।


“नील सिंह।” नगीना के होंठ हिले - "लेकिन इसका नाम तो नीलू महाजन है।"


“तीन जन्म पहले इसका नाम नील सिंह ही था। इसके जन्म बदल रहे हैं, नाम बदल जाते है, लेकिन श्राप की वजह से मैं तब से ही जिन्दा हूं।" 


“ओह!”


नगीना ने बताया कि देवराज चौहान के साथ मुम्बई में क्या हुआ और वो दिल्ली क्यों आया ?


सब कुछ जानकर महाजन गम्भीर हो उठा। 


“मेरी तो समझ में कुछ भी नहीं आ रहा नीलू । सब कुछ बताकर मुझे भी समझदार बना दे।”


तभी नगीना कह उठी।


“देवराज चौहान नहीं जानते थे कि दिल्ली में मोना चौधरी कहां मिलेगी। तुम्हारा पता पा लिया था। ऐसे में मैंने यहां आकर ऐसी बातें की कि तुम लोग देवराज चौहान के बारे में मोना चौधरी को खबर करो । वो सामने आ जाये।”


“गलत किया तुमने बहुत।" महाजन धीमे स्वर में कह उठा - "इस काम में तुम्हें देवराज चौहान की सहायता नहीं करनी चाहिये थी । ” 


“उनकी कही बात पर चलना मेरा धर्म है।” नगीना के होंठों से निकला ।


“देवराज चौहान गलत बात कहेगा तो वो भी तुम मानोगी।" 


“हां ।” 


“नीलू, मैं भी तो तुम्हारी हर गलत-सही बात आंखें बंद करके मान लेती हूं।" राधा कह उठी ।


“तुम शायद नहीं जानतीं कि जब मोना चौधरी और देवराज चौहान सामने पड़ते हैं तो कैसा झगड़ा खड़ा हो जाता है। मैंने कभी भी नहीं चाहा कि दोनों के बीच झगड़ा हो ।” महाजन गम्भीर था- “जाने क्या बात है, जब भी दोनों आमने-सामने पड़ते हैं। एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हो जाते हैं।" 


“बुरे सितारों का खेल है नीलसिंह । तीन जन्मों से बुरे सितारों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं देवा और मिन्नो। वो ही बुरे सितारे बार-बार उन्हें एक-दूसरे के सामने पड़ने पर मजबूर कर देते हैं।" फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा-"मैंने हर जन्म में देवा और मिन्नो की दोस्ती कराने की भरपूर चेष्टा की। लेकिन हर बार मैं हारा। बुरे सितारों की ही जीत हुई। इस जन्म के गर्भ में जाने क्या है। मालूम नहीं क्या होता है । "


"नीलू।" राधा ने महाजन की बांह हिलाई- "ये फटे-पुराने कपड़े वाला है कौन। तुम्हारे कई कपड़े खराब पड़े हैं जो कि नये जैसे लगते हैं तुम कहो तो इसे दे दूं ।” 


महाजन ने तीखी नजरों से राधा को देखा।


"मैंने कुछ गलत कह दिया नीलू?” 


"कुछ देर चुप रहो। "


"तुमने पहले क्यों नहीं कहा। मैं बोलती ही नहीं।" कहने के साथ कि राधा ने होंठ बंद कर लिए। 


महाजन ने फकीर बाबा को देखा। 


“मेरे से क्या काम पड़ गया पेशीराम ।” महाजन बोला। 


“मिन्नो ने बुलाया है तुम्हें । " 


“कहां ?" 


“जहां इस वक्त वो मौजूद है। जगह नहीं बता सकता।" 


महाजन आंखें सिकोड़े फकीर बाबा को देखता रहा। 


“नगीना बेटी! देवा ने तुम्हें भी बुलाया है।" 


“मैं तो चलने को तैयार हूं बाबा।" नगीना कह उठी।


“मुझे भी चलने से कोई एतराज नहीं।” महाजन का स्वर गम्भीर था ।


“हाय हाय ।” राधा ने कसकर महाजन की बांह पकड़ ली- “मेरे पति को तुम कहां ले जा रहे हो? अपनी हालत तो देखो। मुझे तो तुम कोई चोर-उचक्के लगते हो। तांत्रिक भी हो सकते हो। जो तुम्हारे कहते ही इन दोनों ने तुम्हारी बात पर विश्वास कर लिया । मैं नहीं जाने दूंगी अपने नीलू को तुम्हारे साथ।" 


“राधा!” महाजन कह उठा- “ये पेशीराम है। मैं इसे बहुत पुराना जानता-- ।”


“अब समझ आई बात कि तुम ऐसे लोगों के बीच उठते-बैठते हो। तभी बोतलें पीने की बुरी आदत लगी हुई है तुम्हें । ये लोग तो तुमसे मुफ्त में पीते होंगे।" राधा तीखे स्वर में कह उठी। 


" तुम चुप रहो राधा।।”


“क्यों चुप रहूं। मैं तुम्हें जैसे लोगों के बीच उठने-बैठने नहीं दूंगी। इससे अच्छे तो मेरी बस्ती के लोग हैं। " 


महाजन दांत भींचकर राधा को घूरने लगा।


ऐसे गम्भीर मौके पर भी, नगीना के होठों के बीच मध्यम-सी मुस्कान आ फंसी।


“ये नादान है नील सिंह। इस पर गुस्सा मत करो। साफ मन है इसका।”


“मुझे ले चलो पेशीराम।"


“नहीं।" राधा ने सख्ती से महाजन की बांह पकड़ कर दृढ़ता से कहा- “मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी।"


पेशीराम के चेहरे पर मुस्कान उभर आई।


“धर्म की पत्नी है ये इस जन्म में तुम्हें इसका कहना अवश्य मानना चाहिये । ”


महाजन ने राधा को देखा। "मेरे साथ चलोगी राधा ।” 


"कहां ?” 


“जहां मैं जा रहा हूं "


"नीलू" राधा का चेहरा खिल उठा:- “तुम्हारे साथ तो मैं कुएं में भी छलांग लगा सकती हूं।"


महाजन ने फकीर बाबा से कहा ! 


"चलो पेशीराम।"


“पैदल चलना है या कार में ?" राधा ने पूछा। 


पेशीराम ने आंखें बंद कीं और होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया। उसी पल उनके शरीर, रूई के गोले जैसी मध्यम-सी धुंध में बदले और धुंध सिमटकर जैसे हवा में गुम होती चली गई। फकीर बाबा, महाजन, नगीना, राधा, कोई भी अब वहां नहीं था ।


***