उसने हाथ बढ़ाकर दरवाजा खोल दिया ।
हम ऐसे कोण पर थे कि वहीं से विभा के सामने, दरवाजे के उस पार खड़ा वह घनी दाढ़ी-मूंछ वाला सरदार नजर आया।
हम यह सोचकर चौंकने के साथ उठ खड़े हुए कि इस तरह मिलने आने वाला कौन है । विभा उस वक्त उसे ध्यान से देख रही थी जब उसने कहा ---- “विभा जी आप ही हैं न !”
और ।
विभा की अगली हरकत हमें भौंचक्का कर देने वाली थी ।
ऐसी कि हम ऐसा सोच भी नहीं सकते थे कि वह ऐसा भी कर सकती है। उसका दायां हाथ बिजली की सी गति से चला था । उस हाथ ने सरदार का गिरेबान पकड़ा और पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा। ऐसा करने के साथ वह अपनी जगह से हट गई थी।
अभी हम कुछ समझ भी नहीं पाए थे कि सरदार एक चीख के साथ गिरता-पड़ता-सा हमारी तरफ आया।
उधर, दरवाजा वापस बंद करती हुई विभा जिंदल ने चीखकर कहा था ---- “सावधान वेद, ये कोई नुकसान न पहुंचा पाए । ”
शगुन ने झपटकर सरदार को इस तरह दबोच लिया जैसे बाज ने कबूतर को दबोच लिया हो ।
उस वक्त वह शगुन के बंधनों से निकलने के लिए छटपटा रहा था जब अपने कोट की जेब से रिवाल्वर निकालती विभा उसकी तरफ बढ़ती गुर्राई ---- “जरा भी हरकत की तो गोली मार दूंगी । ”
“प... प्लीज... प्लीज विभा जी, ऐसा मत कीजिएगा ।" वह बुरी तरह आतंकित होकर गिड़गिड़ा उठा ---- “मैं यहां आपको किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने नहीं आया था।”
“फिर शक्ल छुपाकर क्यों आए ?”
“ह... हत्यारे के डर से । उससे छुपकर । "
“वेद ।” विभा ने कहा ---- “दाढ़ी-मूंछ और पगड़ी नोंच लो।”
तब तक मैं उसकी आवाज पहचान चुका था।
धीरज सिंहानिया था वह ।
दाढ़ी-मूंछ और पगड़ी उतारने के बाद वही हमारे सामने था।
“ अब बोलो ।” विभा जिंदल ने उसे आराम से सोफे पर बैठाने के बाद पूछा----“क्यों आए यहां?” “हत्यारे ने मुझे मारने की धमकी दी है ।” उसकी हालत वाकई
बैरंग नजर आ रही थी -- -- “प्लीज विभा जी, मुझे बचा लो ।”
“ पुलिस के पास जाते । मराठा के पास जाते ।”
“ मुझे नहीं लगता कि पुलिस मुझे बचा पाएगी ।”
“मुझे पुलिस से ज्यादा ताकतवर समझते हो ?”
“हां । महसूस तो मैंने ऐसा ही किया है। आप जितना समझदार कोई नहीं है। गोपाल मराठा भी नहीं।”
“किसी की सुरक्षा समझदार आदमी नहीं, ताकतवर आदमी कर सकता है। फोर्स कर सकती है और मेरे पास कोई फोर्स नहीं है।"
“आप चाहें तो फोर्स भी जुटा सकती हैं। आपकी बात न गोपाल मराठा टाल सकता है, न कमीश्नर साहब ।”
“तुम्हें कैसे पता ?”
“ अशोक ने बताया था कि आप कितनी पावरफुल हैं।"
“उसे कैसे पता ?”
“मुझे नहीं पता।”
“अच्छा ये बताओ ----अशोक इस वक्त है कहां?”
“मुझे यह भी नहीं पता । वह उसी वक्त से गायब है जब से चांदनी की लाश मिली। मोबाइल भी ऑफ पड़ा है उसका और..
“या तब से गायब हुआ जब से मैंने यह पता लगा लिया कि तीन नवंबर की रात को वह चांदनी के साथ होटल राज पैलेस में नहीं बल्कि ब्लैक डायमंड नाइट क्लब में था ? ”
“मेरे लिए तो चांदनी की लाश मिलने के बाद से ही गायब है ।"
“कैसी धमकी मिली है तुम्हें ? "
उसने अपना मोबाइल निकाला।
एक एस. एम. एस. पढ़ाया।
उसका हिंदी रूपांतर यूं था ---- “आज रात तुम्हारा नंबर है । "
“इससे कैसे समझे कि मैसेज हत्यारे का ही है और वह तुम्हें मारने की ही बात कर रहा है?” विभा ने पूछा ।
“अ... अजीब बात कर रही हैं आप? हत्यारा भला इससे साफ मैसेज और क्या देगा? नंबर मेरा है। जाहिर है ----वह कहना चाहता है कि पहले मैंने रतन को मारा, फिर अवंतिका को, उसके बाद चांदनी, रमेश, किरन और फिर संजय - सुधा को । अब नंबर तुम्हारा है ।”
“तुम खुद को मरने वालों की फेहरिस्त के साथ क्यों जोड़ रहे हो ?”
“प्लीज विभा जी, इतनी अजीब-अजीब बात मत कीजिए। मैं को उस फेहरिस्त के साथ खुद को न जोडूं तो किसके साथ जोडूं?”
शुरु से लेकर अब तक और पूछ क्या रही हूं! ऐसा क्या कर दिया था तुमने जो कोई तुम सबको चुन-चुनकर मार रहा है ?”
“सच्ची कहता हूं ---- मुझे नहीं पता । ”
“नहीं पता तो किस बेस पर खुद को उनसे जोड़ रहे हो ?”
“मुझे तो किरन की बात ही सच लगती है। कोई है, जो इस देश के प्रसिद्ध घराने के बेटे और बहूओं को चुन-चुनकर मार रहा है।"
“तुम मुझसे मदद मांगने आए हो लेकिन हकीकत छुपा रहे हो ।”
“आप यकीन तो कीजिए विभा जी, मैं कुछ नहीं छुपा रहा।” विभा ने साफ लफ्जों में कहा- -“मैं तब तक कोई मदद नहीं कर सकूंगी जब तक वजह नहीं बताओगे ।”
“कैसे यकीन दिलाऊं आपको ? वजह मुझे नहीं मालूम विभा जी, आप कोशिश तो कीजिए मुझे बचाने की ! हो सकता है इस कोशिश में हत्यारा पकड़ा जाए। फिर तो वजह खुद वही बता देगा।”
“अच्छा ये तो कुबूल करो कि जिस तरह से तुम्हारे संबंध बजाज और भंसाली से थे उसी तरह बिड़ला और कपाड़िया से भी थे ! ”
“नहीं... नहीं... नहीं विभा जी, कितनी बार कहूं ---- उन दोनों से मेरे संबंध कभी नहीं रहे। रहे होते तो मैं बता न देता?"
विभा के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे मान चुकी हो कि वह कुछ भी 'हांगने' वाला नहीं है। बोली----“मेरे ख्याल से तो किसी दोस्त ने यूं ही मजाक में मैसेज दे दिया है। कोई मारने वाला नहीं है तुम्हें । "
“क... कैसी बात कर रहीं हैं विभा जी ?” उसका तो मानो दम ही निकल गया ---- “मैं तभी से बराबर वो नंबर लगाने की चेष्टा कर रहा हूं जिससे ये मैसेज मिला है। स्वीच ऑफ जा रहा है ।”
“मजाक करने वाला क्या स्वीच ऑन रखेगा ?”
“आप समझ क्यों नहीं रहीं विभा जी, ऐसा घटिया मजाक करने वाला तो मेरा कोई दोस्त ही नहीं है। ये जरूर हत्यारे ने ही भेजा है। प्लीज, इसे सीरियस लीजिए वरना वह मुझे भी मार डालेगा । ”
“एक बात और है ।”
“वो क्या ?”
“ अभी तक उसने जितने भी कत्ल किए, बस कर दिए। करने से पहले किसी को चेतावनी नहीं दी ।"
“आपको कैसे पता ?”
“दी होती तो कोई बताता नहीं ?”
“क्या पता दी हो ! किसी ने डर के मारे जिक्र न किया हो ?”
“मतलब एक तुम्हीं इतने हौसले वाले हो जिसने मेरे पास..
“नहीं विभा जी, हौसले वाला कहां हूं मैं? मैं तो डर के मारे आया हूं। मरना नहीं चाहता । आप देख नहीं रहीं? आपसे मदद मांगने भी किस तरह खुद को छुपाकर आया हूं!"
कुछ देर विभा जाने क्या सोचती रही, फिर बोलीहो ? किस तरह हिफाजत करूं मैं तुम्हारी ?” “क्या चाहते
“अब इस बारे में मैं क्या कहूं? वो तो आप ही जानें । मैं तो बस ये चाहता हूं कि हत्यारा मुझे मारने में कामयाब न हो सके ।”
“ठीक है।” विभा जिंदल अभयदान - सा देती बोली ---- “हत्यारा तुम्हें नहीं मार पाएगा। अब जाओ।”
“जाऊं?” वह चिंहुका ---- “कहां?”
“ अपने घर भई, और कहां जाओगे ?”
“क... क्या बात कर रही हैं आप? इस तरह तो..
“हां... हां | बोलो ! क्या कहना चाहते हो ?”
“विभा जी, आप तो मेरे मेटर को मजाक में उड़ाती- सी लग रही हैं । प्लीज, इसे सीरियस लीजिए | मेरी जान का सवाल है । "
“तुम्हें कैसे लगा कि मैं सीरियस नहीं ले रही ?”
“आपकी बातों से लग रहा है। ऐसे अंदाज में कह दिया कि घर जाऊं। कोई नहीं मार सकेगा मुझे जैसे सरकारी बाबू सामने खड़े किसी आदमी को टरकाने के लिए उसकी फाइल सरका देता है।"
“गलत समझ रहे हो तुम । घर नहीं जाओगे तो कहां जाओगे? बंदा सबसे ज्यादा सुरक्षित अपने घर में ही होता है । फिक्र मत करो। मैं वहीं तुम्हारी सुरक्षा के सारे इंतजाम कर दूंगी ।"
“क्या इंतजाम कर देंगी?”
“ अब यह तो मैं तुम्हें बताने से रही । ”
“ज... जी ? मुझे बताने में क्या हर्ज है? मैं खुद ही अपनी हत्या थोड़ी कर लूंगा?” वह चकित लहजे में बोला ।
“ये बात तो ठीक है लेकिन... ।” विभा जिंदल थोड़ी रुकी, फिर बोली----“अभी तो मैं खुद ही नहीं सोच पाई हूं कि तुम्हारी सुरक्षा के क्या इंतजाम करूंगी। अभी तो तुम आए हो। समस्या बताई है मुझे। सोचना पड़ेगा कि क्या इंतजाम किए जाएं पर तुम चिंता मत करो। सोच भी लूंगी और इंतजाम कर भी दूंगी । ”
“स... सच कह रही हैं आप?”
“अरे, झूठ क्यों बोलूंगी मैं ?"
“खैर, मुझे इस बात से ज्यादा मतलब भी नहीं है कि सुरक्षा के क्या इंतजाम होते हैं। मुझे तो बस यह चाहिए कि मरूं नहीं।”
“ये गारंटी तो कोई भी नहीं ले सकता । ”
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