तुरबत

यासिर ख़ान को इस बात का पूरा अंदाजा था कि अब तक उसकी पोल खुल चुकी होगी। वह जानबूझ कर नीलेश और जुबेर ख़ान से कराची में अलग हो गया था ताकि पाकिस्तानी इंटेलिजेंस का ध्यान उसके ऊपर ही लगा रहे। इस मौके का फायदा उठा कर जुबेर ख़ान नीलेश को उनके ‘दो दरिया आइलैंड’ के सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचा देता।

यासिर ख़ान का लक्ष्य जल्द से जल्द तुरबत पहुँचने का था जहाँ से वह ‘केछ दरिया’ के किनारे होता हुआ नसीराबाद आसानी से पहुँच सकता था। तुरबत तक का आठ घंटे का रास्ता उसने ऐसे तय किया था जैसे हवाई जहाज उड़ा रहा हो। उसने अपनी गाड़ी कराची में पहले ही बदल ली थी।

रास्ते में उसे अभी तक कोई परेशानी नहीं हुई थी। उसे पता था कि रास्ते में पड़ने वाली मिलिट्री की चेकपोस्ट से किन रास्तों से बचा जा सकता था। उसके रास्ते में एक आखिरी दुश्वारी नसीराबाद में पड़ने वाली चेकपोस्ट थी जहाँ से पार होने के बाद वह अपने कबीले के लोगों में महफ़ूज़ होता। उस चेकपोस्ट से बचने का कोई रास्ता नहीं था।

कुछ देर में उसे वह चेकपोस्ट दिखाई देने लगी। चेकपोस्ट के पास गाड़ियों की लंबी कतार लगी हुई थी। उसने अपनी गाड़ी भी कतार में लगा दी। यह खतरा उसे उठाना ही था। अगर वह इस वक्त अपनी गाड़ी से किनारा करने की सोचता तो भी वह ज्यादा दूर नहीं जा सकता था। मिलिट्री के खोजी कुत्ते उसे केछ दरिया के बियाबाँ में भी ढूँढ निकालते और फिर अपनी सफाई देने के लिए उसके पास कुछ नहीं रह जाता।

उसकी गाड़ी का नंबर आया।

“नाम क्या है तुम्हारा और किधर से आ रहे हो?” ड्यूटी पर तैनात जवान ने पूछा।

“जुनैर ख़ान। गवादर से।” यासिर ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

“गाड़ी में क्या है?” उस जवान ने फिर पूछा।

“कालीन हैं, जनाब।” यासिर ने जवाब दिया।

उस जवान ने अपने साथी को यासिर कि गाड़ी की तलाशी लेने को कहा।

“कब गए थे?” अगला सवाल हुआ।

“एक हफ्ता पहले। यहीं से तो गया हूँ जनाब। उस वक्त मेरा भाई साथ था। अब वो गवादर में ही रुक गया है। हमारा और माल आने वाला है। मैं भी यह माल छोडकर वापस गवादर ही जाऊँगा।” यासिर ने अपने अंदाज में भरपूर मिठास घोलते हुए कहा।

“ठीक है। गाड़ी के कागजात?” अगला प्रश्न हुआ।

यासिर ख़ान ने गाड़ी के कागजात उस जवान के हवाले किए। न जाने क्यूँ उसके दिल की धड़कनें यकायक बढ़ने लगी।

“गाड़ी के कागजात तो तुम्हारे नाम नहीं हैं। जरा अपनी गाड़ी को एक तरफ लगाओ।” जवान ने सतर्क होते हुए कहा।

“मैंने कहा न जनाब। गाड़ी मेरे भाई फैजल ख़ान के नाम है। आप मेरी बात का...” यासिर ने उस जवान को यकीन दिलाने की कोशिश की।

“तुम ये सब बातें अब अंदर ऑफिस में बताओ। जल्दी करो, पीछे बहुत लंबी कतार लग चुकी है।” उस जवान पर यासिर की दलील का कोई असर नहीं हुआ।

तब तक आर्मी के तीन जवानों ने उसे अपने घेरे में ले लिया था। वे लोग उसे अपने निशाने पर लेकर ऑफिस की तरफ बढ़ चले।

‘खेल ख़तम।’

यासिर के मन में विचार कौंधा।

ऑफिस में कदम रखते ही उसे वहाँ की फिजा भारी महसूस हुई।

“हम्म। तो तुम्हारा नाम जुनैर ख़ान है।” सामने बैठे आदमी ने उसके दस्तावेजों का मुआइना करते हुए कहा।

“जी जनाब। दुरुस्त है।” यासिर ने पूरे विश्वास से जवाब दिया।

“अकबर ख़ान बुगती से तुम्हारा क्या कनेक्शन है?” सामने वाले ने पूछा।

“वो मेरे मरहूम चचा थे और हमारे कबीले के लीडर थे।” यासिर ख़ान ने जवाब दिया।

“वो ‘मरहूम’ कैसे हुए, यह हमें नहीं बताओगे?” सामने से सवाल आया।

यासिर ख़ान चुप रहा। कुर्सी से उठकर वह शख़्स यासिर ख़ान के सामने आया। उसने अपने मोबाइल में यासिर को एक फोटो दिखाई जिसमें वह समद ख़ान के सामने आर्मी ड्रेस में खड़ा था।

“अपने आप को तो पहचानते होगे तुम यासिर उर्फ जुनैर ख़ान बुगती। मुनीर पाशा की नज़र बाज की नज़र है, हमारी जमीन पर गद्दार कहीं भी छिपा हो, मेरी निगाह से बच नहीं सकता।” मुनीर पाशा ने दाँत भींचते हुए कहा।

‘तो ये है मुनीर पाशा। इंटेलिजेंस का जल्लाद। या खुदा जुबेर और नीलेश अपने सफर में कामयाब हो गए हों’

यासिर ने मन ही मन में दुआ की।

तभी जैसे एक वज्र उसके चेहरे से टकराया।

यासिर का मुँह खून से भर गया। इसके बाद मुनीर पाशा के प्रहार यासिर ख़ान के शरीर से जगह-जगह टकराने लगे। मगर यासिर ख़ान के मुँह से उफ़्फ़ तक नहीं निकली।

“चुप क्यों हो गया खबीस की औलाद। तूने पाकिस्तानी इंटेलिजेंस को बेवकूफ़ समझ रखा है। यहाँ तू जुनैर ख़ान बना हुआ है और कराची में यासिर ख़ान। हमारे सेफ हाउस को उड़ा कर और उस काफिर नीलेश को छुड़ा कर तू सोच रहा था कि बच कर निकल जाएगा। मुनीर पाशा तुझ जैसे वतन के गद्दार को जमीन से भी खोद कर बाहर निकालने की कुव्वत रखता है। अब बता कहाँ है वो हिंदुस्तानी पिल्ला?” मुनीर पाशा के मुँह से कहर भरी आवाज निकली।

“तुम क्या समझते हो? मैं उसे यहाँ से अफगानिस्तान के रास्ते बाहर भेजूँगा। वो तो कब का इस जमीन से रुखसत हो चुका है। तुम बेशक अपने आप को बड़ा दानिशमंद समझते हो। सबसे बड़े अहमक़ हो तुम। तुम्हारी नाक के नीचे से उड़ाया है मैंने तुम्हारे शिकार को।” यह कहकर यासिर ख़ान खुल कर हँसा।

उसकी हँसी उसके खून से सने चेहरे पर बड़ी भयानक लग रही थी। मुनीर पाशा अपनी शिकस्त सहन नहीं कर सका। किसी पागल की तरह वह एक बार फिर उस पर लातों और घूसों की बौछार करने लगा।

“मैं तुम्हें ऐसी मौत मारूँगा कि फिर कभी कोई मेरे मुल्क से गद्दारी नहीं कर सकेगा।” अपनी उखड़ती साँसों को काबू में करता हुआ बोला।

सहसा उसे अपनी मेज पर रखा हुआ खंजर दिखाई दे गया। आँखों में वहशियाना भाव लिए वह उसकी तरफ बढ़ा। तभी मानो वहाँ पर एक जलजला आ गया।

एक रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड मुनीर पाशा के ऑफिस के बाहर आकर गिरा जिससे हुए विस्फोट की लपटें मुनीर पाशा के ऑफिस के अंदर तक आयी। मुनीर पाशा अपना संतुलन बनाए न रख सका और ओंधे मुँह जाकर एक तरफ गिरा।

जब तक वह अपने आप को संभाल पाता, उसके कानों में यासिर ख़ान का गगन भेदी अट्टहास पिघले हुए शीशे की मानिंद उतरता हुआ चला गया। उसने कहर बरपा देने वाली नजरों से यासिर ख़ान की तरफ देखा।

“तुमने मेरे चचा अकबर ख़ान बुगती के बारे में तो पूछ लिया लेकिन मेरे बाप के बारे में पूछना भूल गए। मेरे बाप का नाम है फिरदौस ख़ान बुगती। मरहूम अकबर ख़ान बुगती का बड़ा भाई। और इस इलाके में हवा भी मेरे बाप से पूछ कर सरहद पार करती है। तुमने मुझे नहीं, अपनी कयामत को बंद किया है। मुनीर पाशा, बाहर जाकर देख... मेरा बाप मुझे लेने आया है।” यासिर ख़ान के ये अंतिम शब्द थे जो मुनीर पाशा को सुनाई दिये।

इसके बाद गोलियों और रॉकेट की बौछार ने मुनीर पाशा और उसके जवानों को संभलने का मौका नहीं दिया। कुछ ही समय में पूरी चेकपोस्ट धुएँ के बादलों में घिर गयी।

जिसको जहाँ जगह मिली, वहाँ अपनी जान बचाने के लिए भागा। चेकपोस्ट पर कोई भी गाड़ी साबुत नहीं बची। गोलियों की सनसनाती हुई बारिश में मुनीर पाशा चाहकर भी यासिर ख़ान को दोबारा अपने कब्जे में न ले सका।

मुनीर पाशा अपने जख्मों को सहलाने और अपने जवानों की लाशों को बेबसी से देखने के सिवा कुछ न कर सका। वह समझ रहा था कि सिर्फ़ वो ही यासिर के पहुँचने का इंतजार कर रहा था।

फिरदौस ख़ान अपने बेटे को छुड़ाने के लिए इस कदर कहर बरपा करेगा उसे अंदाजा न था।

जब तक धूल और धुएँ के बादल छँटे तब तक फिरदौस ख़ान अपने लख्ते-जिगर को लेकर जा चुका था।

☸☸☸

मुंबई

मुंबई पुलिस के कमिश्नर ऑफिस में कमिश्नर धनंजय रॉय और राजीव जयराम के अतिरिक्त आलोक देसाई, नैना दलवी, शाहिद रिज़्वी, नागेश कदम और मिलिंद राणे बैठे हुए थे। सुधाकर की कमी सबको खल रही थी। उसे बड़ी गंभीर हालत में मुंबई के प्रसिद्ध हॉस्पिटल ‘जय इंटरनेशनल’ में दाखिल किया गया था जहाँ पर डॉ रजत अवस्थी उसका इलाज कर रहा था।

“तो दोस्तों, आप लोगों की देश की आन-बान की खातिर मर मिटने के जज़्बे ने दुश्मन को हर मोर्चे पर शिकस्त दी है। जब तक हमारे देश में, आप जैसे लोग जाँबाज लोग, फिर चाहे वह हमारी सेना के हों, मुंबई पुलिस के हों, इंटेलिजेंस फोर्स के हों या भारत का आम नागरिक ही क्यों न हों, मौजूद हैं तब तक हमारे देश की तरफ कोई आँख उठा कर भी नहीं देख सकता। इस मिशन में आप लोगों ने जो सहयोग दिया वह मुझे सारी जिंदगी याद रहेगा।” राजीव जयराम ने वहाँ पर मौजूद सभी लोगों से मुखातिब होते हुए कहा।

सब लोगों ने तालियाँ बजा कर राजीव जयराम की बात को सपोर्ट किया। तभी श्रीकांत ने उस कमरे में कदम रखा। उसने धनंजय रॉय और राजीव जयराम का एड़ियाँ ठकठका कर अभिवादन किया। बाकी लोगों से वह पूरी गरमजोशी से मिला।

“वैल्कम श्री। पूरा हो गया तुम्हारा मिशन।” राजीव जयराम ने पूछा।

“यस सर। लेकिन मुझे अपने साथियों के साथ फैक्टरी वाले मिशन में मौजूद न होने का अफसोस रहेगा।” श्रीकांत बोला।

“हम लोगों ने आखिर अपना काम करना है। कभी साथ रहकर, कभी दूर रहकर। इमोशंस को कभी-कभी पिछली सीट पर बिठाना पड़ता है, श्री। अभी हमारा काम ख़तम नहीं हुआ है। जो लोग हमारी हिरासत में हैं जैसे फिलिप्स जेक्सन, अब्दील राज़िक और राहुल तात्या, इनसे हमें पूछताछ करनी है और बाकी के लोगों को, जिन्होंने इन्हें हथियार लाने और ले जाने में मदद की, खोज निकालना है। दिलावर के मरने से पहले उससे डाइंग डेक्लेरेशन लेकर तुमने बहुत समझदारी का काम किया, नैना। वही हमारी सबसे पुख्ता बुनियाद है। कमिश्नर साहब, उस्मान ख़ान से इंटेलिजेंस पूछताछ करेगी और इस दौरान उसे वह अपनी कस्टडी में रखेगी। तब तक उसकी गिरफ्तारी किसी भी कीमत पर जाहिर नहीं होनी चाहिए। क्यों शाहिद?” जयराम ने कहा।

“यस सर। मैं भी उस ‘प्रोफेसर’ से मिलने को बेताब हूँ। आखिर हमें पता तो चले कि क्या छुपा है उसकी शैतानी खोपड़ी में।” शाहिद अपने ही अंदाज में बोला।

सबके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी जिसमें हाल ही में हासिल की गयी विजय का आत्मविश्वास था।

तभी कमिश्नर धनंजय रॉय के फोन की घंटी बजी। उस फोन को अटेंड करने के बाद उन्होंने मिलिंद राणे को एलईडी ऑन करने को कहा। एलईडी पर ‘करंट न्यूज़’ के स्वर्ण भास्कर का चेहरा उभरा।

“... दर्शकों के लिए अभी-अभी एक खबर आ रही है कि मुंबई की राजनीति में सबसे लम्बे समय तक अपनी मौजूदगी दर्ज करने वाले राजनेता बसंत पवार की आज मौत हो गयी। आज सुबह वे अपने कमरे में मृत पाये गए। उनके सचिव मिस्टर दामले ने इसका कारण हार्ट अटैक बताया है। उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। बसंत पवार के चले जाने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया। मैं अपने पैनलिस्ट में शामिल... ”

राजीव जयराम ने अपने सामने पड़ा पानी का गिलास उठाया और पीने लगा। उसके कानों में बसंत पवार के शब्द गूँजे।

‘जिस गुनाह में तुम मुझे फँसाना चाहते हो उससे मेरा कोई रिश्ता था... इसे तुम लोग सारी जिंदगी साबित नहीं कर पाओगे।’

“मुझे वहाँ पर जाना पड़ेगा। आलोक, कम विथ मी। सो नाइस ऑफ यू मिस्टर जयराम। फिर मिलते हैं, उम्मीद है कि तब हालात इतने टेंस नहीं होंगे।” पुलिस कमिश्नर अपनी जगह से खड़े होते हुए बोले।

कमिश्नर के जाने के बाद शाहिद, नागेश और मिलिंद राणे ‘जय इंटरनेशनल’ हॉस्पिटल की तरफ रवाना हो गए जहाँ पर सुधाकर शिंदे का इलाज चल रहा था।

अब कमरे में राजीव जयराम के साथ श्रीकांत और नैना दलवी ही रह गए।

स्वर्ण भास्कर की आवाज एक बार फिर कमरे में गूँजी।

“... आज दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक मुजरिम को फाँसी की सजा दे दी गयी। मुजरिम का नाम दीदार सिंह था जो दस लोगों की हत्या का आरोपी था। दीदार सिंह सेना से सूबेदार के पद से रिटायर हुआ था। लेकिन गाँव की जमीन के एक झगड़े में जब उसके परिवार पर हमला किया गया तो उसने हमला करने आये लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस हमले में उसकी पत्नी और बेटा भी मारे गए थे जिनकी मौत से आहत होकर उसने इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया था। उसके परिवार से कोई शव लेने नहीं आया तो जेल परिसर में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया... ”

☸☸☸

एब्बटाबाद

जावेद अब्बासी अपनी सफलता पर फूला नहीं समा रहा था। इस समय पाकिस्तान में एब्बटाबाद के पास एक जगह पर रुका हुआ था। वह आखिरकार कादिर मुस्तफा को वापस अपने मुल्क लाने में कामयाब रहा था।

आज उसने कादिर मुस्तफा के वापस लौट आने की खुशी में दावत का इंतजाम किया था। उसने आईएसआई के वे सभी एजेंट बुला रखे थे जो कश्मीर की घाटी में आईएसआई के ऑपेरेशनों को देखते थे। एक-एक कर उसके सभी एजेंट उस जगह पर आते जा रहे थे।

जबसे वह कराची से निकला था उसके पास मुनीर पाशा का कोई संदेशा नहीं आया था और न ही फोन से संपर्क हो पाया था। नीलेश को भी शायद वह अभी तक ढूँढ नहीं पाया था। जरूर वह किसी काम में मशरूफ़ था। उसने चीफ़ को कादिर मुस्तफा के साथ वापस लौट आने की सूचना दी। जावेद अब्बासी अपने फोन को जेब में रखकर वापस उस हॉल में पहुँचा जहाँ पर दावत का इंतजाम था। वहाँ पर आ रहे सभी एजेंट कादिर मुस्तफा से इस तरह से मिल रहे थे जैसे आर्मी का कोई बहुत बड़ा ओहदेदार उनके बीच में मौजूद था।

उस दावत में कादिर मुस्तफा और जावेद अब्बासी की शान में कसीदे पढे गए। हिंदुस्तान को तबाह करने की तमाम साज़िशों के खुलासे किए गए। सब लोग यादगार के तौर पर अपने मोबाइल पर फोटो ले रहे थे।।

तभी जावेद अब्बासी का फोन वाइब्रेट करने लगा। उसने देखा तो मुनीर पाशा की काल आ रही थी जिसका वह बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उस शोर में फोन पर आवाज सुनना मुश्किल था। वह पाशा से बात करने के लिए हॉल से बाहर आ गया। उसके बाद पाशा ने एब्बटाबाद में हुई घटना के बारे में और नीलेश के चंगुल से निकल जाने के बारे में अब्बासी को बताया।

जावेद अब्बासी के पैरों तले जमीन खिसक गयी।

अगर नीलेश वापिस हिंदुस्तान पहुँच गया था तो हिंदुस्तानियों ने कादिर मुस्तफा को क्यों छोड़ दिया!

जब जवाब उसके दिमाग में कौंधा तो वह तूफान की तरह उस हॉल की तरफ भागा जहाँ दावत चल रही थी।

कादिर मुस्तफा सबके बीच बैठा हुआ था और एक जवान उन सबकी ग्रुप फोटो लेने वाला था। जावेद अब्बासी हाँफता हुआ हॉल में दाखिल हुआ। उसके चेहरे पर असमंजस, शक और आश्चर्य के भाव छाए हुए थे।

कादिर मुस्तफा और जावेद अब्बासी की निगाहें मिली। कादिर के चेहरे पर एक मुस्कान थी। जावेद अब्बासी तेजी से कादिर मुस्तफा की तरफ बढ़ा। कादिर मुस्तफा ने अपने हाथ की दो उँगलियों को उसकी तरफ इस तरह से उठाया जैसे उस पर निशाना साध रहा हो। जावेद अब्बासी की आँखें हैरत से फट पड़ी। तभी वहाँ भीषण धमाका हुआ। धमाका इतना जोरदार था कि जिस इमारत में दावत चल रही थी वह भरभरा कर ज़मींदोज़ हो गयी। कोई जिंदा नहीं बचा।

जावेद अब्बासी को आखिर तक शक नहीं हुआ कि जिस कादिर मुस्तफा को वह लेकर आया था वह कादिर नहीं उसकी ‘मौत’ थी और जब शक हुआ तब तक मौत उसे अपने आग़ोश में ले चुकी थी।

आखिरकार सूबेदार दीदार सिंह की तमन्ना पूरी हुई थी। उसे एक हत्यारे के रूप में फाँसी पर लटकना मंजूर नहीं था लेकिन अपनी मौत को वह एक फौजी की तरह ही हिंदुस्तान के नाम कर गया था जिसका पता सिर्फ़ दो लोगों को था। अभिजीत देवल और राजीव जयराम।

जब तिहाड़ जेल में कादिर मुस्तफा को लाया गया था तो कुछ समय के बाद जेलर ने राजीव जयराम को बताया कि उसके एक कैदी दीदार सिंह का डीलडौल कादिर मुस्तफा से बहुत मिलता जुलता था। राजीव जयराम ने उसे तभी से अपने एसेट के रूप में तैयार करना शुरू कर दिया था। जब कादिर मुस्तफा और दीदार सिंह की झड़प हुई थी तब अभिजीत देवल को इस बात की तसल्ली हुई कि दोनों में कोई खास फर्क नहीं था।

विस्टा अपहरण कांड के बाद जब अभिजीत देवल ने दीदार सिंह के सामने अपनी मंशा जाहिर की तो वह खुशी-खुशी इस मिशन के लिए तैयार हो गया। आखिर था तो वह फौजी ही।

वह काफी समय से कादिर मुस्तफा को जेल में देखता आ रहा था। उसके हाव-भाव को उसने जल्दी ही अपना लिया। अपने देश की रक्षा के लिए शहीद होना हर सैनिक का परम लक्ष्य होता है। और आखिर में दीदार सिंह ने अपनी मौत का अर्थ बदल दिया था।

☸☸☸

बनारस

जिस वक्त दीदार सिंह ने अपनी हाहाकारी मौत को गले लगाया लगभग उसी वक्त श्रीकांत और नैना बनारस में गंगा किनारे एक घाट पर मौजूद थे।

श्रीकांत ने घाट पर मौजूद एक पुजारी को कलश सौंपा।

“ये क्या? इसमें तो ‘राख़’ की बजाय ‘मिट्टी’ है श्रीमान।” पुजारी ने आश्चर्य से पूछा।

“हाँ, पंडित जी। यह मिट्टी मरने वाले ने अपने हाथों से स्पर्श करके हमें दी थी। वह अब इस गंगा के किनारे नहीं आ पाएगा। उसकी अंतिम इच्छा यही थी कि उसकी राख़ की जगह उसके हाथ से स्पर्श की गयी वतन की इस मिट्टी का गंगा में विसर्जन कर दिया जाये। आप इसे ही तर्पण में प्रयोग कर लें।” श्रीकांत ने भर्राए हुए स्वर में कहा।

“ठीक है यजमान। आप कलश लेकर घुटनों तक गंगा मैया के पानी में खड़े हो जाएँ।” पुजारी की आवाज श्रीकांत के कानों में पड़ी।

‘एसीपी साहब के खून में मेरी बातों को सुनकर उबाल आ गया। इसका मतलब कामयाब हूँ मैं, आज भी।’

श्रीकांत के कानों में दीदार सिंह के कहे ये शब्द गूँजे। श्रीकांत के चेहरे के सामने दीदार सिंह का चेहरा घूम गया मानो उसकी परछाई गंगा के पवित्र पानी में उभर आयी हो। उन शब्दों का मतलब श्रीकांत को अब समझ में आया। आज उसे पता था कि वह किस कामयाबी की बात कर रहा था।

कितनी समानता थी कादिर मुस्तफा और दीदार सिंह में। वह भी दीदार सिंह को पहचान नहीं पाया। दीदार सिंह ने इतनी खूबी से अपने आप को कादिर मुस्तफा के रूप में ढाल लिया था।

गंगा के पानी में उस मिट्टी को विसर्जित करते हुए श्रीकांत को वह पल याद आये जब वह दीदार सिंह पर प्रहार पर प्रहार किए जा रहा था और वह हँस कर उसे सहन कर रहा था। उसकी मुस्कराहट का राज उसे तब समझ में आया जब राजीव जयराम ने उसे दीदार सिंह के बारे में बताया।

श्रीकांत की आँखों से आँसू टपक कर गंगा के कल-कल बहते पानी में जा गिरे। नैना की आँखें भी इस दृश्य को देख कर नम हो आयी।

नैपथ्य में पुजारी के मंत्र वातावरण में गूँज रहे थे...

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम...

समाप्त