देवराज चौहान और बाकी सब समझ चुके थे कि मोना चौधरी और उसके साथियों को उनकी मौजूदगी का एहसास हो चुका एकाएक उनके बारे में मालूम हो जाने का मतलब था कि उन्हें आशंका थी कि वे लोग हमला बोलने आ सकते हैं और कोई निगरानी पर बैठा हो या फिर उनके बारे में मालूम हो जाने को इत्तफाक भी कहा जा सकता है कि यूं ही उनपर नजर पड़ गई हो। 


रुस्तम राव और जगमोहन मकान के गेट के एक तरफ झुके बैठे थे।


-दूसरी तरफ देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर थे।


चारों के चेहरे सुलग रहे थे। सड़क से गुजरते एक आदमी ने यह सब देखा तो वो घबरा कर भागता चला गया। 


"भीतर से म्हारे पे गोली चलावे। अंम 'वड' के रख दयों सबो को। " बांकेलाल राठौर गुर्रा उठा।


चारों के हाथों में रिवॉल्वर दबी थी।


"बाप" रुस्तम राव देवराज चौहान से बोला- "इस वक्त तू बड़ा है आर्डर दे।"


"उन लोगों को हमारे आने का पता लग गया है। "देवराज चौहान खतरनाक स्वर में बोला— "अब हम ये नहीं सोच सकते कि मोना चौधरी और उसके साथी लापरवाह हैं। वे सब हथियारबंद हैं और अब तक सब पोजिशन ले चुके होंगे, हमारा मुकाबला करने के लिए और हमारे सामने मजबूरी है कि कदम बढ़ा लेने के बाद उसे वापसी के लिए नहीं उठाते। दीवारें फांदो और भीतर चलो। ध्यान रहे, वो हमें अपनी गोलियों का निशाना न बना सकें। हममें से एक को भी कुछ हुआ तो वो नुकसान बहुत बड़ा होगा।"  


जगमोहन की निगाहें आसपास दौड़ रही थीं। वो कह उठा।


"यह पूरी तरह रिहायशी इलाका है। जरा-सा शोर पड़ते ही पुलिस आ सकती है।"


"हां ऐसा हो सकता है। " देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा- "जब तक पुलिस नहीं आती, तब तक डटकर मुकाबला करना है। खुद को बचाते हुए, सामने वाले को खत्म करना है। हो सकता है, पुलिस न पहुंचे। अगर पुलिस आ भी जाती है तो किसी भी सूरत में पुलिस पर फायरिंग नहीं करनी है। उसका मुकाबला नहीं करना है। पुलिस एक ऐसी, संस्था है, जिससे टक्कर लेकर कभी भी जीता नहीं जा सकता।"


“थारी यो बात तो म्हारे का जंचो। "


उसके बाद उनके बीच खामोशी छा गई।


वो भीतर जाने के लिए अपने-अपने लिए रास्ता तलाश करने लगे। सबसे बड़ी दिक्कत उनके सामने यह थी कि भीतर वाले बाहर नजर रखे हुए थे।


जगमोहन ने रुस्तम राव को देखा।


"क्या करना है। "


"सोचता है बाप। "


मकान की दीवार के भीतरी तरफ लंबे-लंबे पेड़ लगे थे। लेकिन ये घने नहीं थे। पेड़ का जमीन से निकलने वाला तना पंद्रह फीट ऊपर जाकर टहनियों में बदल रहा था। जिस पर छोटे-छोटे पत्ते थे। तने की गोलाई एक-सवा फीट से ज्यादा नहीं थी। यानी कि तने की आड़ लेना बेवकूफी थी।


वे सब भीतर का जायजा ले चुके थे।


"इस तरह बैठे रहने से कोई फायदा नहीं।" जगमोहन बोला- "मैं दीवार फांदकर भीतर।"


"बाप। छोटा मुंह, बड़ी बात तो है ही। पण इस तरह कुएं में कूदने का कोई फायदा नहीं होएला।" 


"क्या मतलब?" उसने रुस्तम राव को देखा।


''मोना चौधरी और उसके आदमियों की नजर इधर ही होएला। वो तुम्हारा सीधा निशाना लेगा बाप ।"


"जरूरी तो नहीं निशाना लगे।" जगमोहन ने दांत भींचकर "मैं ज्यादा इंतजार नहीं... ।"


"इंतजार मल कर बाप। आपुन चक्कर काटकर मकान के पीछू कूं मीतर चलता है। आगे से देवराज चौहान और बांके संभाएला। चल । "


जगमोहन को बात जंची।


दोनों उसी तरह नीचे बैठे-बैठे मकान की बाहरी दीवार की जद से निकले और उठते हुए तेजी से आगे बढ़ गए। कुछ मकानों के बाद मोड़ था, जो घुम कर गली के रूप में इसी मकान के पीछे से गुजर रहा था। उन्हें पूरा यकीन था कि भीतर वालों का पूरा जोर मकान के सामने की ही तरफ होगा। पीछे को अगर कोई हुआ भी तो एक आघ से ज्यादा नहीं होगा।


देवराज चौहान और बांकेलाल राठौर ने उन दोनों को जाते देखा। 


“यो तो सामने का मैदान छोड़कर भाग गए। लगो है, यो दोनों पीछो का मैदान कवर करो।" 


देवराज चौहान की आंखों में कठोरता मचल रही थी।


"बांके।" 


"हुक्म"


"तुम पोजिशन ले लो। मैं दीवार फलांग कर भीतर जा रहा हूं। कुछ देर तुम यहीं रहकर मुझे कवर करो। भीतर नजर रखो कि कहां से गोली आ रही है। उनका निशाना लो। "


"तंम तो मौत के मुंह में जायो, देवराज चौहान | "इसके अलावा और कोई रास्ता भी नहीं।"


“वो तो अंम समझो हो। पण कोई दूसरा रास्ता न हौवे का?"


"नहीं।" 


"ठीको। अंम यां ई से पोजिशन लेकर सबो को 'वडो'।" बांकेलाल राठौर की आंखों में बेचैनी के भाव थे- "पंण चारो को गोलियों लगनों के चांस हौवे। "


देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और नीचे बैठे ही बैठे सरककर दीवार के करीब पहुंच गया। बांकेलाल राठौर सरककर गेट के पास पहुंचा और सिर आगे करके एक आंख से भीतर का नजारा देखा और रिवॉल्चर वाला हाथ आगे कर लिया। भीतर का आधे से ज्यादा नजारा, उसकी एक आंख के सामने था। ज्यादा सिर आगे करना खतरनाक था। कोई भी उसका निशाना ले सकता था। चेहरे पर अब दरिंदगी के भाव आ ठहरे थे। वह जानता था कि नतीजे में उसे या उसके साथियों को जिंदगी या मौत कुछ भी मिल सकती है। क्योंकि बचाव के हिसाब से भीतर वाले ज्यादा बेहतर स्थिति में थे। तभी बांकेलाल राठौर के कानों में तेज स्वर पड़ा। 


“ये क्या हो रहा है। "


बांकेलाल राठौर ने तुरंत गर्दन घुमाकर देखा। दस कदम दूर साठ बरस का बूढ़ा व्यक्ति सड़क के किनारे खड़ा उसे देख रहा था। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे, यह देखकर कि वो गेट के पास छिपकर लेटा क्या कर रहा है।


“थारे को जानना जरूरी हौवे का। अपणें रास्ते लग " बांकेलाल राठौर ने दांत भींचकर कहा।


“मैं अभी पुलिस को खबर करता हूं कि...।" उस बूढ़े ने कहना चाहा।


बांकेलाल राठौर ने रिवॉल्वर वाला हाथ उसे दिखाया। रिवॉल्वर देखते ही बूढ़ा घबराकर भाग खड़ा हुआ। 


"सुसरा । म्हारे से बात करके भीतर वालो को म्हारी पोजिशन समझा गयो। " बांकेलाल राठौर बड़बड़ाया और देवराज चौहान की तरफ देखा।


जो उसे ही देख रहा था।


दोनों की निगाहें मिलीं। आंखों ही आंखों में इशारे हुए। अगले ही पल देवराज चौहान खड़ा हुआ और दीवार पर हाथ रखकर, ऊंची छलांग ली और दूसरे ही पल मकान के भीतर था। परंतु रुका नहीं। पंद्रह फीट के खाली हिस्से को पार करने के इरादे से फुर्ती के साथ मकान की तरफ दौड़ा।


एक साथ कई फायर हुए।


परंतु देवराज चौहान के दौड़ने का ढंग ऐसा था कि आने वाली गोलियों से भी बचाव हो।


लेकिन कई फायरों से बचाव कैसे होता। फिर भी बचाव रहा। जो गोली उसके चेहरे को उधेड़ने जा रही थी, वो गले को छीलती हुई गुजर गई।


देवराज चौहान दीवार तक पहुंच चुका था। बांकेलाल राठौर ने उन दो जगहों को पहचाना। जहां से देवराज 

चौहान पर फायर किए गए थे। एक जगह किचन की खिड़की थी और दूसरी जगह कमरे की खिड़की थी, जिसका पल्ला थोड़ा सा खुला हुआ था। दांत भींचे बांकेलाल राठौर ने हाथ में दबी रिवॉल्वर के सारे फायर दोनों जगह कर दिए। वह जानता था कि उसके फायरों से कोई घायल तक नहीं हुआ। लेकिन ये फायदा अवश्य होगा कि भीतर वाले जान जाएंगे कि, बाहर उन्हें कवर करने वाला कोई मौजूद है। ऐसे में वो कुछ सिमट जाएंगे।


बांकेलाल राठौर ने खाली मैग्जीन निकालकर रिवॉल्वर में नई मैग्जीन डाली। मन में देवराज चौहान के लिए चिंता थी कि कहीं कोई गोली उसे तो नहीं लगी?


वहां का वातावरण फायरिंग के शोर से गूंज उठा था। कई लोग अपने घरों से निकलने लगे थे कि यह शोर कैसा? कुछ समझ गए थे कि ये गोलियों की आवाजें हैं, कुछ नहीं समझ पाए थे।


बांकेलाल राठौर ने एक और फायर किचन की खिड़की की तरफ किया और फुर्ती के साथ उठकर खुद को छिपाते हुए भीतर झांका।


देवराज चौहान नजर आया।


जो कि रेन वॉटर पाइप को थामे बंदर की तरफ छत की तरफ बढ़ता जा रहा था। यह देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई। बहुत अच्छा मोर्चा संभाला गया था। देवराज चौहान छत पर पहुंचकर नीचे वालों को कवर करेगा। जगमोहन और रुस्तम राव पीछे की तरफ से और वो खुद सामने था। ऐसे में भीतर वाले खुद को हर तरफ से घिरा पाएंगे।


बांकेलाल राठौर भीतर जाने का मौका तलाश करने लगा। तभी फायरिंग की आवाज उसके कानों में पड़ी। आंखें चमक उठीं वह जानता था कि ये फायरिंग जगमोहन और रुस्तम राव द्वारा पीछे से की गई है। यानी कि अब मोना चौधरी और उसके साथी बचने वाले नहीं।


"अंम सबको 'वड' के रख दां गा।" बांकेलाल राठौर दांत मींचे बड़बड़ा उठा।


दो-तीन मिनट बीत गए। वो जानता था कि भीतर वालों का ध्यान सामने से हटकर पीछे की तरफ भी हो गया होगा।


अब रिवॉल्वर थामे सावधानी से बांकेलाल राठौर खड़ा हुआ। भीतर देखा। कोई गोली उसकी तरफ नहीं आई। उसने फुर्ती के साथ दीवार फलांगी कि तभी फायर हुआ। परंतु बीच में पेड़ का वो पतला वाला तना आ गया। गोली उस तने को टकराकर उसे बचा गई। 


जिधर से गोली आई थी। उसने उस तरफ एक साथ दो-तीन फायर किए और दौड़ता हुआ मकान की भीतरी दीवार के पास जा पहुंचा। अब सुरक्षित था वो भीतर वालों के लिए उसका निशाना लें पाना अब आसान नहीं था। निशाना लेने के लिए उन्हें बाहर निकलना पड़ता और ऐसे में वो खुद भी निशाना बन सकते थे। ऐसे में गोली लगने का खतरा फिलहाल तो बहुत कम हो गया था।


देवराज चौहान मकान की छत पर पहुंच चुका था। गोली जो गर्दन से रगड़कर निकली थी, उसकी वजह से गला और वहाँ से नीचे बहता खून छाती को सूर्ख कर रहा था। जख्म गहरा नहीं था। परंतु खून बराबर बह रहा था। उसने रिवॉल्चर को दांतों में फंसाया और जेब से रूमाल निकालकर उसे गले पर बांधा, ताकि बहता खून रुक सके। उसके बाद पुनः रिवॉल्वर हाथ में ले ली। 


गोलियां चलने की आवाज जब कानों में पड़ी तो देवराज चौहान समझ गया कि जगमोहन और रुस्तम राव ने मकान के पीछे की तरफ से ये फायरिंग की हैं। इसके साथ ही देवराज चौहान की निगाह एक तरफ नजर आ रही उन सीढ़ियों पर जा टिकी जो नीचे जा रही थी। जहां मोना चौधरी और उसके साथी मौजूद थे।


***