फारूख हसन ।



ग्यारह बजने में पांच मिनट पर रमोला के पास वापस लौटा ।



–"आओ, बेबी ।" मुस्कराकर बोला–"एक नई जिंदगी तुम्हारा इन्तजार कर रही है ।"



–"कहां चलना है ?"



–"अपनी नई जिन्दगी में ।"



–"लेकिन कहां ?"



–"अपने नये फ्लेट में ! जहां दुनिया का हर एक वो सुख ओर आराम तुम्हें मिलेगा जिसका तुमने कभी सपना देखा होगा ।" वह बड़े ही कुत्सित ढंग से मुस्कराया–"सपने देखा करती थी न ऐश भरी जिंदगी के ?"



रमोला मुस्कराकर खड़ी हो गयी । आशंकाओं और दुश्चिताओं का जो सख्त गोला उसके पेट में बनता रहा था अपने आप घुलना शुरू हो गया ।



कमरे से निकलकर नीचे कार की ओर जाती सोच रही थी–कितनी अजीब बात है, भाग्य और संयोग एक ही झटके में कैसे आनन–फानन जिंदगी को बदल देते हैं । कल तक उसकी चाहत सिर्फ इतनी थी–पैराडाइज क्लब से तनख्वाह के अलावा तगड़ी टिप मिलती रहे और सतीश धवन रोजाना अपनी मजबूत बांहों में जकड़कर उसके जिस्म को रौंदता रहे…।



अब इस बारे में सोचना भी वह नहीं चाहती थी ।



* * * * * *



दिनेश ठाकुर और दो आदमियों यासीन मलिक और मंसूर मदानी के बीच हुये वार्तालाप की रिकार्डिंग का विवरण ।



स्थान गार्डन रूम रेस्टोरेंट, रायल गार्डन होटल ।



समय : ग्यारह बजकर बीस मिनट ।



दिनेश–"जगह बढिया है न ?"



यासीन–"एकदम शानदार ।"



मंसूर–"खाना भी इतना ही लजीज हो तो मजा आ जायेगा । मुझे जोर से भूख लगी है ।"



दिनेश–"सब चीजें ले आये हो ?"



यासीन–"हां, बेसमेंट में कार में हैं ।"



दिनेश–"आज रात सबकी जरूरत पड़ेगी ।"



मंसूर–"डॉन ने हरी झण्डी दे दी है ?"



दिनेश–"पूरी तरह ।"



मंसूर–"कल रात की तरह ही करना है ?"



दिनेश–"नहीं, अलग तरीके से । अब तक वे होशियार हो गये होंगे ।"



मंसूर–"नहीं, वे घमण्डी और बेवकूफ़ हैं ।"



(वेटर के आर्डर लेकर आ जाने की वजह से बातचीत रुक गयी ।)



दिनेश–"वेटर के आने से पहले हम तरीके के बारे में बातें कर रहे थे । में बताता हूं कोई ज्यादा झमेला नहीं करना है । कहीं चलकर नहीं जाना । हम घात लगाकर सीधे अपनी कार से हमला करेंगे ।"



यासीन–"पुराने फैशन से ।"



दिनेश–"हां ! काम करो और भाग जाओ । कोई चूक नहीं होनी चाहिये ।"



यासीन–"कल रात कोई चूक हुई ?"



दिनेश–"नहीं ! ऐसा ही होना चाहिये ।"



यासीन–"ऐसा ही होगा । फिक्र मत करो ।"



मंसूर–"कल रात तो मजा आ गया । प्वाइंट ब्लेंक फायर और काम खत्म ।"



यासीन–"किसी को खत्म करने के बाद मुझे औरत की जरूरत महसूस होने लगती है ।"



दिनेश–"एक मजे के बाद तुम्हें दूसरा मजा भी चाहिये...।"



(तीनों हंस पड़े)



दिनेश–"औरतों के मामले में होशियार रहना । इस शहर की तकरीबन हर बाजारू औरत हसन भाइयों की मिल्कियत है ।"



मंसूर–"हम जानते हैं । यह स्टंट कब करना है ?"



दिनेश–"आज ही रात ! मोर्चा लगाने के बाद आखिरी पहर में ।"



यासीन–"तुम भी साथ रहोगे ?"



दिनेश–"मैं तुम्हारे साथ कार में चक्कर लगाकर सब समझा, दूँगा लेकिन हमले के वक्त कार में नहीं रहूँगा । अब तुम लोगों के लिये एक और खबर है ।"



दोनों–"क्या ?"



दिनेश–"डॉन आ रहा है ।"



यासीन–"यहां ?"



दिनेश–"और कहां आयेगा ? तुम्हारा क्या ख्याल है ?"



मंसूर–"लेकिन किसलिये ? यहां आकर क्या करेगा ?"



दिनेश–"तुमसे मिलने । तुम दोनों की याद सता रही है उसे ।"



यासीन–"मज़ाक मत करो ।"



दिनेश–"इन कमीने हसन भाइयों से तंग आ चुका है । इन हरामजादों ने हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया । वह अपने और आदमी लेकर आयेगा । इन हरामियों को खत्म करना है ।"



यासीन–"कब ?"



दिनेश–"यह तो पता नहीं । लेकिन जल्दी...!"



(वेटर डिनर सर्व करने आ पहुंचे और बातचीत रुक गयी)



विवरण जारी है...।



* * * * * *



रंजीत मलिक !



रजनी के ड्राइंग रूम में खड़ा फोटो को देख रहा था । ऊँचे कद की पच्चीसेक वर्षीया लड़की थी । गोरा रंग और फीगर बढ़िया । लिबास कीमती लेकिन भड़कीला नहीं । खूबसूरत चेहरा और आंखों में जबरदस्त सेक्स अपील । उसे भीड़ में भी आसानी से पहचाना जा सकता था ।



–"मैं इसे साथ ले जा सकता हूं ?" प्यालों में कॉफी डालती रजनी मोहक ढंग से मुस्करायी ।



–"बेशक ! और भी जो पसंद हो ले सकते हो ।"



स्पष्ट आमंत्रण था ।



–"मुझे तुम पसंद हो ।" रंजीत के मुंह से निकला ।



रजनी का चेहरा हजार वाट के बल्ब की तरह रोशन हो गया ।



–"मुझे पहली ही मुलाकात में तुम पसंद आ गये थे जब राकेश के फ्लैट में पता चला वह मर चुका है…तब मुझे बहुत अजीब लगा था…मन में अपनेपन की भावना–सी थी…एक प्रेमी को मरे ज्यादा देर नहीं हुई थी कि कोई दूसरा आदमी मेरे मन में समाने लगा था…।"



वह उसके पास आ गयी और गले में बांहें डाल दी ।



रंजीत के हाथ उसके कूल्हों पर जम गये ।



चेहरे करीब आये । होंठ एक–दूसरे के होठों से जुड़ गये ।



पहला चुंबन वैसा विस्फोटक नहीं रहा । जैसा उपन्यासों में बताया जाता है या फिल्मों में दिखाया जाता है । लेकिन रजनी के होंठ कांप रहे थे ।



रंजीत ने भी अपने अंदर कंपन महसूस की । रजनी को बांहों में कस लिया ।



–"मुझे इसी तरह उठाकर बेडरूम में क्यों नहीं ले जाते ?"



रजनी का हांफता–सा स्वर कामुक था ।



रंजीत की एक बाँह पीठ से अलग हो गयी । हाथ स्वयमेव वक्षों पर आकर एक–एक करके उन्हें सहलाने लगा–किसी नातजुर्बेकार किशोर की तरह जो समझ नहीं पा रहा था क्या और कैसे करे फिर अचानक उसे अपना विश्वास लौट आया प्रतीत हुआ । इस अहसास ने उसके अंदर सनसनी दौड़ा दी । समस्त शरीर का रक्त एक खास दिशा में प्रवाहित होने लगा वासना का ज्वार नस–नस में फैल गया ।



बाद में...!



उसे याद नहीं आ सका कब उसे उठाकर बेडरूम में ले गया और शुरूआत किसने की ।



दोनों ने वहशियों की तरह एक–दूसरे के कपड़े उतार फेंके ।



बिस्तर पर जाकर उनके शरीर एकाकार होकर एक–दूसरे में समा जाने की भरपूर कोशिश करने लगे ।



लेकिन रजनी की नग्नता, उभारों की पुष्ट सुडौलता सिसकारियां, जिस्मानी हरकतें, हर पल बढ़ती गयी–कामोत्तेजना, उसके जोश को दोबाला करती कामुक आवाजें और आनंदातिरेक के पलों में पीठ पर उसके नाखूनों की गड़न और उखड़ी सांसों के बीच उभरती उसकी चीखें रंजीत के दिमाग में बसकर रह गयीं ।



वासना का जबरदस्त तूफान गुजर गया ।



जोश खत्म ।



शरीर शांत !



दोनों अलसाये से पसरे रहे ।



सहवास का यह अनुभव दोनों के लिये तृप्तिपूर्ण और नया था ।



अंत में रजनी बिस्तर से उतर गयी ।



–"रंजीत, मैं तुम्हारी सेवा करना चाहती हैं । तुम्हें कैसा लगेगा मैं नहीं जानती लेकिन मुझे बेहद खुशी होगी । क्योंकि सही आदमी के लिये वो सब मेरी हमेशा दिली ख़्वाहिश रही है । अभी तक कोई भी आदमी मुझे इस काबिल नहीं मिला कि वैसा कर सकूँ । लेकिन तुम बिल्कुल सही आदमी हो ।"



उसने कुछ कहने के लिये मुंह खोला तो रजनी ने उसके होठों पर नर्म हाथ रख दिया । फिर कमरे से निकल गयी ।



रंजीत पड़ा सोचता रहा अब और क्या करने वाली थी ।



बाथरूम में टब से पानी भरा जाने की आवाजें आने लगी ।



–"ओह, गॉड । अब और क्या चाहती है ?" उसने मन ही मन कहा–"मुझे वह पसंद आयी । उसने इच्छा जाहिर की...शरीर में वासना का तूफान उठा ओर वो सब होता चला गया लेकिन गुलाम की जरूरत मुझे नहीं है…!"



अगर कोई और सिचुएशन होती तो वह उठकर भाग गया होता ।



लेकिन अब…!



रजनी वापस लौट आयी थी ।



वह मात्र बैंगनी रेशमी पैंटीज पहने थी । चेहरा गुलाब की तरह खिला हुआ मानों अंदर की सारी खुशी उमड़ी पड़ रही थी ।



–"तुम्हारा बाथ तैयार है ।" उसका हाथ पकड़कर बोली ।



रंजीत बिस्तर से उतर गया ।



दोनों बाथरूम में पहुंचे ।



रंजीत बाथटब में लेट गया ।



रजनी नीचे झुककर गुनगुनाती हुई उसके शरीर पर साबुन लगाने लगी । उसके प्रत्येक अंग को प्यार से सहलाते हुये स्नान कराया मानों कोई मां अपने बच्चे को नहला रही थी ।



फिर उसे सहारा देकर टब से निकाला । उसके शरीर को नर्म तोलिय से रगड़कर सुखाने लगी ।



इस पूरे दौर में भी प्यार से फुसफुसाती रही ।



वे अल्फाज रंजीत के लिये नये नहीं थे लेकिन इस सिलसिले में उनके मायने नये और असली थे ।



वह भारी उलझन में पड़ा था ।



–"तुमने ये सब क्यों किया ?" पूछ ही बैठा ।



–"क्योंकि मेरा मानना है मनपसंद और सही आदमी के साथ औरत को इसी तरह पेश आना चाहिये । मनपसंद और सही आदमी खुशकिस्मत औरतों को ही मिलते हैं । ऐसे आदमी के लिये औरत का एक फर्ज होता है–हर एक मामले में । यह गुलामी की चाहत या घटियापन नहीं है । औरत की असली जगह आदमी के दिमाग और जिस्म में है । इसलिये उसे दोनों जगह बसना चाहिये । अगर औरत वाकई उस आदमी को चाहती है तो उसे इसी में असली और सच्ची खुशी मिलेगी ।"



–"लेकिन आज के जमाने में औरतें आदमियों से बराबरी का दर्जा और आजादी की वकालत करती हैं । इस बात को लेकर जलूस निकाले जाते हैं, मुजाहिरे होते हैं और आन्दोलन तक किये जाते है ।"



रजनी हंस पड़ी ।



–"इसलिये ऐसी औरतों को कभी पता नहीं चल पाता ज़िन्दगी की कितनी कीमती और अहम चीज से वे महरूम रह गयी हैं । वैसे भी जो मैं कह रही हूं वो मेरी जाती राय है । मेरा निजी विश्वास है । कोई और इसे माने या माने । इससे कोई फर्क मुझे नहीं पड़ता ।"



–"अपने सभी आदमियों के साथ तुम ऐसा करती हो ?"



–"नहीं, पहले कभी किसी के साथ ऐसा नहीं किया । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है यह चाहत मेरे अंदर नहीं रही । जवानी में कदम रखने के साथ ही मेरे अंदर यह चाह पनपने लगी थी । बहुत–सी दूसरी औरतों की तरह मेरा भी यह सपना रहा है–सही आदमी के लिये । यह रोमांटिक जज्बात या क्षणिक प्रेमावेग नहीं है । दरअसल औरतों में प्रेम और सेवा की भावनाएं जन्मजात होती हैं और उम्र के साथ–साथ विकसित होती जाती हैं । अगर औरत मन से इन्हें करती है और जाहिर करती है तो आदमी से सब कुछ पा लेती है जो भी पाना चाहती है ।"



दोनों वापस बेडरूम में जाकर बिस्तर पर लेट गये थे ।



–"प्यार करना एक मजा है ।" रजनी ने इस ढंग से कहा जैसे इस विषय पर थीसिस लिख चुकी थी–"सेवा है ! देने का दूसरा नाम है और अगर औरत ख़ुदग़र्ज़ और बेवकूफ़ नहीं हैं तो यही देना ही पाना बन जाता है ।" वह मुस्करायी–"अगर इसके बगैर सहवास भी किया जाता है तो आनन्द और सन्तुष्टि की बजाये कड़वाहट और असंतुष्टि ही मिलती है ।"



–"तुम्हारे दौर की दूसरी आजाद ख्याल औरतें इससे हर्गिज इत्तिफाक नहीं करेंगी ।"



–"मैंने कहा न इससे कोई फर्क मुझे नहीं पड़ता । अलबत्ता मेरी निगाहों में वे बेवकूफ़ हैं । आजाद ख्याल का सही मतलब नहीं जानतीं । मैं आजाद ख्याल होते हुये भी एक ऐसी लड़की हूं जिसके मन में सही आदमी के लिये सम्मान भी है । अगर कोई औरत अपने आदमी को पसंद करती है, उसे प्यार करती है और उनकी इज़्ज़त करती है तो उसे इस तथाकथित आजादी की जरूरत ही नहीं है ।"



–"अगर इसके बावजूद आदमी औरत को वो सब न दे जिसे पाने की वह हक़दार है…।"



–"तो फिर वह सही आदमी नहीं है या फिर औरत के सहयोग में कमी है । अगर मुझे हमेशा के लिये कोई ऐसा आदमी मिल जाये जो मेरी हर एक सनक के सामने चुपचाप सर झुकाता रहे तो उसकी इज़्ज़त मैं नहीं कर पाऊंगी । औरत हमेशा मर्द की इज़्ज़त करती है किसी गुलाम या चापलूस की नहीं । मेरे तज़ुर्बे ने सिखाया है आदमियों को एनकरेजमेंट चाहिये ।" उसने पहले रंजीत के सर को सहलाया–"यहां ।" फिर यौनांगों को–"और यहां ।"



–"तुम एक्स्ट्राआर्डिनरी हो रजनी ।" रंजीत प्रभावित स्वर में प्रशंसापूर्वक बोला–"और तुम्हारी थ्योरी ग्रेट ।"



–"यह महज थ्योरी नहीं प्रेक्टिकल फैक्ट है, डार्लिंग । मेरी छोड़ो, अपनी बात करो । तुम किसे तरजीह दोगे–उस औरत को जो तुम्हारे साथ शाम को थककर काम से घर लौटे और आते ही कुर्सी में पसर जाये या फिर उस औरत को जो शाम को ताजादम दरवाजे पर खड़ी मुस्कराती इंतजार करती मिले, स्नान और मालिश से तुम्हारी थकान दूर करके, बढ़िया खाना बनाकर खिलाये और बिस्तर में पूरी खिदमत करे ताकि सुबह को तरोताजा महसूस करो ?"



–"सभी लड़कियों को अच्छा खाना बनाना और सेवा करना नहीं आता ।"



–"वो सब सीखा जा सकता है क्लास ज्वाइन करके और किताबों से । आजकल सब सिखाया जाता है । लेकिन बिस्तर में खिदमत करना खुद ही सीखना पड़ता है ।"



अचानक रंजीत के मन में विचार कौंधा और उसकी भवें सिकुड़ गयीं ।"



–"हम इस बहस में कैसे पड़ गये ?"



रजनी हंसी ।



–"यह बहस नहीं, मेरा सपना है । जिसे मैंने अपने सही आदमी के लिये संजो रखा था । पुरानी चाहत है जिसे पूरा करना चाहती हूँ । ऐसा सपना और चाहत लाखों औरतों के मन में होते हैं । अगर वे सही मायने में औरत हैं और सही आदमी पाना चाहती हैं । मेरा ख्याल है, तुम वाकई बढ़िया आदमी हो, रंजीत ।"



–"यह सपना नहीं तुम प्रयोग कर रही लगती हो ।"



–"हो सकता है । यह उसकी झलक भी हो सकती है जो होना है । समान अधिकार और आजादी वाली बकवास से मेरा कोई वास्ता नहीं है क्योंकि आखिरकार यह भी उन्हीं आदमियों के हक में जाता है जो औरतों को बिस्तर की चादर की तरह बदलना चाहते हैं ।"



उसने रंजीत को बाहों में भरकर चूमना शुरू कर दिया ।



रंजीत के अंदर पुनः वासना जाग गयी । वह पूरे जोश में आ गया ।



–"चुपचाप पड़े रहना ।" रजनी फुसफुसाई ।



रंजीत पीठ के बल पड़ा रहा ।



रजनी उसके शरीर के मध्यमभाग के दोनों ओर घुटने मोड़कर उठंग गयी ।



रंजीत ने स्वयं को उसके अंदर फिसलता महसूस किया...फिर रजनी का शरीर हरकत में आता चला गया ।



लगभग आधा घण्टा बाद ।



रंजीत के दिमाग में बार–बार एक ही विचार कुलबुला रहा था–उसे रजनी जैसी लड़की ही चाहिये । अगर वह किसी जुर्म में शरीक नहीं रही थी तो उसकी मंगेतर की जगह ले सकती थी ।



अचानक उसे कुछ याद आया । उसने अपनी रिस्टवाच पर नजर डाली ।



–"ओह गॉड ! एक बजने वाला है ।" वह बड़बड़ाया–"मुझे तो काफी काम करने थे ।"



–"जाना पड़ेगा ?" रजनी ने पूछा ।



–"पता नहीं । लेकिन फोन तो करना है ।"



–"पुलिसमैन ऑन ड्यूटी राउंड दी क्लॉक ।"



–"दैट्स ट्रू !"



रजनी ने टेलीफोन उपकरण की ओर इशारा कर दिया ।



रंजीत ने नम्बर डायल किया ।



सम्बन्ध स्थापित होने पर ड्यूटी ऑफिसर की आवाज़ सुनायी दी ।



–"मेरे लिये कोई मैसेज है ?" रंजीत ने अपना परिचय देकर पूछा ।



–"ओह, इंसपेक्टर मलिक !" ड्यूटी ऑफिसर राहत भरे स्वर में बोला–"हम कई घण्टे से आपको कांटेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं । एस० पी० वर्मा आपके बारे में कई बार पूछ चुके हैं ।"



–"कहां हैं ? उन्हें फोन करूँ ?"



–"नहीं, फौरन नये हैडक्वार्टर्स में पहुंच जाओ ।"



–"ओ० के० !"



उसने रिसीवर रखकर रजनी को बता दिया ।



–"वापस आ जाना, प्लीज !" रजनी का स्वर वासनापूर्ण था–"स्पेयर चाबी ले जाओ ।"



–"नहीं ।" चंदेक पल सोचकर बोला–"मेरे पास अपने फ्लैट की स्पेयर की चाबी है लेकिन...!"



–"लेकिन क्या ?"



–"इजन्ट इट आल टू फास्ट ?"



–"आई नो इट इज फास्ट बट...!"



–"खैर, छोड़ो डार्लिंग ! में दोबारा बातें करना चाहता हूँ...कल ! अभी हम दोनों जज्बाती हो रहे हैं । बस वासना का भूत सवार है ।"



–"तुम पर भी ?"



–"बेशक ! इस वक्त तुम्हें प्यार करने के अलावा कुछ और कर पाना नामुमकिन है ।"



–"ओ० के० ! कल बात करेंगे । फोन कर लेना ।"



–"जरूर !"