फॉक्स-बर्न पर पिकनिक

गभग सभी हिल स्टेशनों पर, तेज़ गति से हो रहे निर्माण-कार्यों के बावजूद अब भी कुछ खंडहर पाये जाते हैं जैसे पुराने ढहते बँगले जो अब केवल चमगादड़, उल्लू, जंगली जानवरों, घुमक्कड़ साधुओं और भटकती आत्माओं का शरणस्थल हैं।

ऐसा ही एक खंडहर फॉक्स-बर्न है, लेकिन मैं आपको यहाँ पहुँचने का रास्ता नहीं बताऊँगा। मैं यहाँ ‘ध्यान’ लगाने या फिर महज़ चिन्तन करने जाता हूँ। और मैं नहीं चाहता कि कभी ऐसा हो कि मैं वहाँ पहुँचूँ और वहाँ पचास लोग पिकनिक मनाने पहुँचे हों।

लेकिन फिर भी फॉक्स-बर्न एक तरह के पिकनिक का साक्षी रहा, जब बच्चे मेरे साथ खंडहर में साथ गये। उन्होंने सुना था कि यह भुतहा है और वे भूत देखना चाहते थे।

राकेश बारह साल का है, मुकेश छह साल का है, और डॉली चार साल की है और वे भूतों से नहीं डरते हैं।

मुझे यहाँ यह उद्धृत करना है कि फॉक्स-बर्न के खंडहर बनने से पहले, 1940 में, यह एक वृद्ध महिला मिसेज विलियम्स के पास था, जिसने कुछ सालों तक इसे बोर्डिंग हाउस की तरह इस्तेमाल किया था। अन्त में, खराब स्वास्थ्य ने उनको यह काम छोड़ देने के लिए बाध्य कर दिया और अपने अन्तिम सालों के दौरान, वह इस विशाल घर में अकेली रहती थीं, सहायता के लिए बस एक चौकीदार था। उनके बच्चे, जो वहीं पर पले-बढ़े थे, दूर की जगहों पर बस चुके थे।

जब मिसेज विलियम्स मर गयीं, चौकीदार कुछ समय तक ठहरा, जब तक सम्पत्ति बेच नहीं दी गयी; लेकिन उसने वह जगह छोड़ दी जितनी जल्दी वह छोड़ सका। देर रात उसके दरवाज़े पर तेज़ खटखटाने की आवाज़ हुई, और उसने एक वृद्ध स्त्री का चिल्लाना सुना, “शमशेर सिंह, दरवाज़ा खोलो! दरवाज़ा खोलो, मैं कहती हूँ और मुझे अन्दर आने दो!”

यह कहने की ज़रूरत नहीं कि शमशेर सिंह ने दरवाज़ा मज़बूती से बन्द रखा। पहले मौके पर ही वह गाँव लौट गया। हिल-स्टेशन उस समय मंदी के दौर से गुज़र रहा था और नये मालिक ने घर गिरवा दिया और छत और खम्भे रद्दी की तरह बेच दिये।

“फॉक्स-बर्न का मतलब क्या होता है?” राकेश ने पूछा जब हम खंडहर की ओर जाने वाले उपेक्षित, जंगली पौधों से भरे हुए रास्ते पर चढ़े।

“बर्न स्कॉटिश भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ धारा या झरना है। शायद कभी वहाँ एक झरना था। अगर ऐसा है तो यह बहुत पहले सूख गया था।”

“और कभी एक लोमड़ी यहाँ रहती थी?”

“शायद एक लोमड़ी इस झरने पर पानी पीने आती थी। अब भी लोमड़ियाँ पहाड़ पर रहती हैं। कभी-कभी तुम उन्हें चाँदनी रात में नाचते देख सकते हो।”

एक दीवार के अन्तराल से गुज़रते हुए, हम घर के खंडहर में पहुँचे। गर्मी की सुबह की चमकती रोशनी में यह बिलकुल भी डरावना या निराशाजनक नहीं लग रहा था। बस यूनानी नगर डोरिस की शैली के खम्भों की पंक्ति ही उसके अवशेष के रूप में बची थी जो कभी भव्य ड्योढ़ी और बरामदा रहा होगा। उनके पार, देवदारों के बीच से हम दूर बर्फ़ देख सकते थे। यह किसी के लिए अपनी ज़िन्दगी के बेहतर दिन बिताने के लिए एक बहुत लुभावनी जगह थी। कोई शक नहीं कि मिसेज विलियम्स वापस आना चाहती थीं।

जल्द ही बच्चे घास पर धमाचौकड़ी मचाने लगे, जबकि मैंने एक विशाल अखरोट के पेड़ के नीचे शरण ली।

अखरोट के पेड़ से बढ़कर मैत्रीपूर्ण पेड़ कोई और नहीं, खासकर गर्मियों में जब यह पत्तियों से भरा होता है।

मुकेश ने एक खाली वॉटर टैंक खोज लिया और राकेश ने सुझाया कि यह पहले उस धारा का स्त्रोत हुआ करता था, जिसका अब कोई अस्तित्व नहीं। डॉली घास में खिलने वाले जंगली गुलबहार के फूलों से गुलदस्ता बनाने में व्यस्त थी।

राकेश ने अचानक ऊपर देखा। उसने खंडहर के दूसरी तरफ़ के रास्ते की ओर संकेत किया, और चिल्ला उठा—“देखो, वह क्या है? क्या वह मिसेज विलियम्स हैं?”

“भूत!” मुकेश ने उत्तेजना से कहा।

लेकिन वह स्थानीय धोबिन निकली, जो एक बड़ा सफ़ेद बंडल सिर पर रखे, वहाँ से गुज़र रही थी।

इससे ज़्यादा शान्ति की जगह की कल्पना नहीं की जा सकती थी, जब तक कि एक बड़ा काला कुत्ता, स्पैनियल जाति का उस जगह पर न आया था। वह चाहता था कि कोई उसके साथ खेले—वास्तव में, उसने हमें खेलने पर बाध्य किया—और हमारे चारों तरफ़ गोल-गोल घूमने लगा जब तक कि हमने लकड़ियाँ नहीं फेंकीं उसके उठाकर लाने के लिए और उसे अपना आधा सैंडविच नहीं दिया।

“यह किसका कुत्ता है?” राकेश ने पूछा।

“मैं नहीं जानता।”

“क्या मिसेज विलियम्स काला कुत्ता रखती थीं?”

“क्या यह एक कुत्ते का भूत है?” मुकेश ने पूछा।

“यह मुझे वास्तविक लग रहा है,” मैंने कहा।

“और इसने मेरे सारे बिस्कुट खा लिये,” डॉली ने पूछा।

“क्या भूत को खाना चाहिए होता है?” मुकेश ने पूछा।

“मुझे नहीं पता। हमें किसी से पूछना होगा।”

“भूत होने में कोई मज़ा नहीं अगर आप खा नहीं सकते,” मुकेश ने घोषणा की।

उस काले कुत्ते ने उसी तरह अचानक हमें छोड़ दिया, जैसे वह प्रकट हुआ था, और चूँकि वहाँ मालिक का कोई चिन्ह नहीं था, मैं यह सोचकर आश्चर्य करने लगा कि वह वास्तव में कहीं एक आत्मा ही तो नहीं था।

सूरज को बादल के एक टुकड़े ने ढँक लिया और हवा में ठंड बढ़ गयी।

“आओ घर चलें,” मुकेश ने कहा।

“मैं भूखा हूँ,” राकेश ने कहा।

“आ जाओ, डॉली,” मैंने आवाज़ लगायी।

लेकिन डॉली कहीं दिखाई नहीं दी।

हमने उसे आवाज़ लगायी और पेड़ों और खम्भों के पीछे देखा, इस बात पर निश्चित होते हुए कि वह कहीं छुपी हुई थी। उसे खोजते हुए लगभग पाँच मिनट बीत गये और आशंका का एक डरावना विचार मुझे घेरने ही लगा था, जब डॉली खंडहर से निकल कर हमारी ओर भागती हुई आयी।

“तुम कहाँ रह गयी थीं?” हमने लगभग एक स्वर में उत्तर माँगा।

“मैं खेल रही थी—वहाँ—पुराने घर में। आँखमिचौली।”

“अकेले ही?”

“नहीं, वहाँ दो बच्चे थे। एक लड़का और एक लड़की। वे भी खेल रहे थे।”

“मैंने किसी बच्चे को नहीं देखा,” मैंने कहा।

“वे अब चले गये हैं।”

“अच्छा, अब हमारे भी चलने का समय है।”

हम घुमावदार रास्तों पर चले, राकेश हमारे आगे चल रहा था और फिर हमें रुकना पड़ा, क्योंकि डॉली रुक गयी थी और किसी को हाथ हिला रही थी।

“तुम किसको हाथ हिला रही हो, डॉली?”

“बच्चों को।”

“वे कहाँ हैं?”

“अखरोट के पेड़ के नीचे।”

“मुझे वे दिखाई नहीं दे रहे। तुम्हें दिखाई दे रहे हैं, राकेश? क्या तुम्हें मुकेश?”

राकेश और मुकेश ने कहा कि वे किसी बच्चे को देख नहीं पा रहे, लेकिन डॉली अब भी हाथ हिला रही थी।

“गुड बॉय,” उसने आवाज़ लगायी, “गुड बॉय!”

क्या वहाँ हवा में आवाज़ें थीं? धीमी आवाज़ें गुड बॉय कहती हुईं? क्या डॉली कुछ देख रही थी? क्या डॉली कुछ ऐसा देख रही थी, जो हम नहीं देख सके थे?”

“हमें कोई नहीं दिखाई दे रहा है।” मैंने कहा।

“नहीं,” डॉली ने कहा, “लेकिन वे मुझे देख सकते हैं!”

फिर उसने अपना खेल छोड़ दिया और हमारे साथ शामिल हो गयी और हम हँसते हुए घर की ओर भागे। मिसेज विलियम्स ने उस दिन अपने पुराने घर की यात्रा भले ही नहीं की थी लेकिन शायद उनके बच्चे वहाँ थे, अखरोट के पेड़ के नीचे खेलते हुए, जिसे वे बहुत पहले से जानते थे।