अखिलेश की सारी बातें सुनने के बाद रणवीर राणा मुस्कराया । बोला --- “ये सभी बातें मामूली हेर-फेर के साथ इंस्पेक्टर ठकरियाल हमें बता चुका है। कह चुका है तुम लोग यही कहानी लिये घूम रहे हो । कोर्ट को भी यही सब सुनाने वाले हो। मगर मिस्टर अखिलेश, तुम तो खुद एक सुलझे हुए जासूस हो। तुम्हें समझना चाहिए कानून कहानियों पर विश्वास नहीं करता । उसे सुबूत चाहिए । और बकौल तुम्हारे, सुबूत तुम्हारा पांचवां दोस्त ले उड़ा ।”
“जो कुछ मैंने कहा वह कानून से बचने के लिए नहीं कहा है।"
“फिर किसलिए कहा?”
“दरअसल हमें लग रहा है ठकरियाल अपने ही जाल का शिकार हो गया है। वह अब इस दुनिया में नहीं है।” उछल पड़ा रणवीर राणा --- “क्या बक रहे हो तुम ?”
“आप थाने में मालूम कर सकते हैं।" समरपाल ने कहा --- “वह बगैर इन्फारमेशन दिये चार दिन से गायब है । फ्लैट में भी ताला लगा हुआ है। उसके किसी पड़ोसी से बात कर सकते हैं।”
“यह इन्फारमेशन तो हमारे पास आ चुकी है कि वह चार
दिन से ड्यूटी पर नहीं आ रहा ---मगर इसका मतलब यह कहां हुआ वह इस दुनिया में नहीं है? बेस क्या है तुम्हारे ऐसा कहने के पीछे ?”
अखिलेश ने दिव्या, देवांश और ठकरियाल के स्टीमर पर जाने की बात ज्यों की त्यों बताने के बाद कहा - -- "बैण्ड स्टैण्ड पर हम सारी रात स्टीमर के लौटने का इंतजार करते रहे मगर वह नहीं लौटा। अगली सुबह दिव्या और देवांश विला में थे मगर ठकरियाल तभी से गायब है ।"
“क्या तुम यह कहना चाहते हो दिव्या और देवांश ने उसे मार डाला?"
“तीन दिन से देवांश भी गायब है।” वकीलचंद ने कहा ।
“इसका क्या मतलब हुआ?" रणवीर राणा भड़क सा उठा--- "तुम्हारे ख्याल से क्या उसे भी किसी ने मार डाला?”
“और आज !” भट्टाचार्य बोला--- "हमारी भरपूर होशियारी के बावजूद भी 'डॉज' देकर गायब हो गयी । ”
“ओफ्फो ! आखिर कहना क्या चाहते हो तुम लोग ?”
“विला से वह बैंक गई थी । बहुत बड़ी सी एक अटैची के
साथ | हम उसका पीछा कर रहे थे। बैंक से निकलते वक्त अटैची काफी भारी हो चुकी थी । अकेली दिव्या पर वह उठ नहीं रही थी । बैंक के गार्ड ने मदद करके गाड़ी में रखवायी । हमें पूरा डाऊट था, वह कहीं न कहीं अवतार से मिलेगी । बता ही चुके हैं --- 'इन सबको फालो ही हम अवतार तक पहुंचने के लिए कर रहे थे । इसलिए चुपचाप, पुनः दिव्या की गाड़ी का पीछा करना शुरू कर दिया। एक रेड लाइट पर, लाइट के रेड होने के बावजूद वह गाड़ी को निकाल ले गई। हम उसे किसी भी कीमत पर आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे। मने भी रेड लाइट पर नाका क्रॉस करना चाहा परन्तु हमारी गाड़ी विपरीत दिशा से आने वाले ट्रेफिक में फंस गयी। बाद में ट्रैफिक पुलिस ने भी घेर लिया । जैसे-जैसे उनसे निपटे मगर आप समझ सकते हैं, तब तक दिव्या जाने कहां से कहां पहुंच गयी होगी। हम बैंक पहुंचे। पता लगा - - - परसों दिव्या को बीमा कम्पनी से पांच करोड़ का चैक मिला था। आज ही यह क्लियर हुआ । दिव्या ढाई करोड़ कैश ले गई है । और ढाई करोड़ का उसने क्रेडिट कार्ड बनवाया है । "
“फिर?”
“स्टोरी सीधी-साधी है सर, कोशिश कीजिए समझने की । दिव्या, देवांश, ठकरियाल और अवतार सारा खेल इन्हीं पांच करोड़ की खातिर खेल रहे थे। यकीनन अवतार ने दिव्या को सब्जबाग दिखाकर अपने जाल में फंसा लिया होगा | दिव्या उसकी बातों में आ भी इसलिए गई होगी क्योंकि यहां तो कर्जदार ही उसके पास कुछ नहीं छोड़ते। हमें पूरा यकीन है --- अवतार और दिव्या ने मिलकर पहले ठकरियाल को ठिकाने लगाया । उसके बाद देवांश का काम तमाम किया और अब पूरे पांच करोड़ के साथ गायब है । "
"बड़ी भयानक कहानी सुना रहे हो तुम ।” राणा ने कहा---“मगर, सवाल ये उठता है ---सुना क्यों रहे हो? क्या चाहते हो हमसे ?”
“भले ही आपको हमारी कहानी पर विश्वास न आ रहा हो। लेकिन मेरे कहने पर केवल मेरे उस आदमी के कहने पर शहर की नाकाबंदी करा दें जिसने कई बड़े-बड़े केस हल किये हैं। रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड और खासतौर पर एयरपोर्ट पर जबरदस्त चैकिंग के आदेश बगैर देर किये जारी कर दें। मेरे ख्याल से वे मुंबई छोड़ने की कोशिश करेंगे।”
इस बार रणवीर राणा ने कुछ कहा नहीं, केवल देखता रहा अखिलेश की तरफ | जैसी बेचैनी, जैसी उत्तेजना उसके चेहरे पर नजर आ रही थी, उससे लगा--- कहीं न कहीं, कोई न कोई बात है जरूर |
ठकरियाल वाकई बगैर बताये चार दिन से गायब था ।
कहां गया वह ?
एकाएक उसने अखिलेश से पूछा- - -“तुम्हारे पास अवतार का कोई फोटो है ?”
चारों की गर्दन इंकार में हिली ।
“पूरा नाम क्या है उसका ?”
“अवतार गिल ।”
“ग - गिल?” राणा उछल पड़ा--- "अवतार गिल ? क्या तुम उसकी बात कर रहे हो?”
“क्या आप उसे जानते हैं?”
जवाब देने की जगह रणवीर राणा ने झटके से मेज की दराज खोली । कई फाइलों के नीचे से एक फाइल निकाली। उसे मेज पर डाला । खोला । चंद कागजों के ऊपर एक फोटो लगा हुआ था । सरदार का फोटो । राणा ने उत्तेजित अवस्था में पूछा--- "जरा देखो, ये तो नहीं है तुम्हारे बचपन का दोस्त ?”
“य - यही! यही तो है ।” चारों के मुंह से एक साथ हैरत मिश्रित चीख निकली।
“ओह! माई गाड!” राणा कह उठा --- “ये तो बैंक लुटेरा है । मर्डरर । ऐसा कोई जुर्म नहीं जो इसने न किया हो । नहीं ! यह किसी का सगा नहीं हो सकता। दिव्या का भी नहीं। उसे भी नहीं छोड़ेगा ये । पूरे के पूरे पांच करोड़ हथियाने की सोचेगा।”
अवतार के बारे में सुनकर चारों हैरान रह गये ।
रणवीर राणा वायरलेस पर झपट पड़ा था ।
“ये! ये रहे मेरे ढाई करोड़।" दिव्या ने उसे 'कार्ड' दिखाते हुए कहा --- “अब चाहो भी तो मेरा मर्डर नहीं कर सकते क्योंकि उससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा। मेरे हिस्से की फूटी कौड़ी तक हाथ नहीं लग सकेगी तुम्हारे । और मैंने किसी किताब में पढ़ा था --- बगैर फायदे के कोई किसी का मर्डर नहीं करता। आदमी पागल ही हो तो बात अलग है । वह तुम हो नहीं । जबकि मैं दुनिया में चाहेंजहां अपने साइन से ढाई करोड़ रुपये हासिल कर सकती हूं। एक साथ चाहूं तो एक साथ। हजार किश्तों में चाहूं तो हजार किश्तों में। बस हर बार, हर जगह मेरे साइन की जरूरत पड़ेगी ।"
अवतार मुस्कराया । बोला --- “काफी होशियारी दिखाई तुमने ।”
“हालात आदमी को होशियार बना देते हैं।"
“यानी विश्वास नहीं था मुझ पर ?”
“था नहीं - -- 'है' कहो मिस्टर गिल ! है !” दिव्या स्पष्ट शब्दों में कहती चली गई ---“अभी तक भी मुझे तुम पर 'रत्ती' बराबर विश्वास नहीं है ।”
“फिर सबकुछ छोड़ छाड़कर | देवांश का मर्डर तक करके क्यों आ गई यहां? क्यों मेरे साथ इण्डिया छोड़ने को तैयार हो ?
क्यों पत्नी बनना कुबूल किया मेरी ?”
“ बात बहुत सीधी है मिस्टर गिल । जिन हालात में मैं थी, उनमें सबसे बेहतर यही कर सकती थी। एक तरह से अगर यह कहा जाये तब भी गलत नहीं होगा, इसका कोई विकल्प ही नहीं था मेरे पास । शादी रचा नहीं सकती थी देवांश से, समाज में कोई सम्मान नहीं रह जाता। यूं ही साथ रहने का कोई मतलब नहीं था । उधर, रामभाई शाह जैसे लोग नोंच-नोंच खा जाते। छोड़ना तो था ही वह सब। विकल्प बनकर तुम सामने आ खड़े हुए। हालांकि अभी मुझे मालूम नहीं तुमने झूठ या सच | मगर कहा--- तुम्हें ठहराव की जरूरत है। जीवन साथी, बच्चों और परिवार की जरूरत है। चैन और सुकून की जरूरत है। सच्ची बात ये है, जरूरत मुझे भी इसी सबकी है। शायद इसीलिए । शायद इसी उम्मीद के सहारे कि तुम सच बोल रहे हो सकते हो, मैंने तुम्हारा साथ दिया । वही किया जो तुम चाहते थे या तुमने कहा। सबसे पहले देवांश को अपने विश्वास में लिया । तुम्हारे कहने पर उसके हाथों ठकरियाल का खून कराया जबकि उधर तुम्हारे और इधरे मेरे कहे के मुताबिक अंतिम समय तक ठकरियाल समझता यही रहा कि खून देवांश का होने वाला है। उसके बाद --- ठीक उसी तरह देवांश का पत्ता साफ किया जैसे तुम चाहते थे और पूरे पांच करोड़ लेकर यहां आ गई हूं। तुम्हारे ढाई करोड़ कैश की शक्ल में तुम्हारे हवाले हैं। इससे जाहिर है --- मेरे मन में धोखा देने का कोई प्लान नहीं है। ठीक इसी तरह, मैं धोखा खाने के लिए भी तैयार नहीं हूँ । इसीलिए, यदि तुमने अपना वादा नहीं निभाया । अर्थात् शादी नहीं की मुझसे तो ये ढाई करोड़ मुझे एक नई जिन्दगी बसाने में मदद करेंगे। ये ढाई करोड़ जिन्हें तुम मेरी मर्जी के बगैर किसी हालत में हासिल नहीं कर सकते।"
“ और अगर शादी की ?” अवतार मुस्कराया।
“तो मुझे खुशी होगी। इन ढाई करोड़ पर भी तुम्हारा उतना ही हक होगा जितना कैश वाले ढाई करोड़ पर है । पति-पत्नी का कुछ भी अलग नहीं होता।"
“यानी मैं अभी गुरुद्वारे या मंदिर में जाकर तुमसे शादी कर लूं तो?”
“नहीं... | ऐसे झांसों में मैं नहीं आने वाली ।”
“फिर कब यकीन करोगी कि मैं सच्चा हूं? धोखा देने की फिराक में नहीं हूं तुम्हें ? शादी करना चाहता हूं? घर बसाना चाहता हूं तुम्हारे साथ ? ”
“तब... जब तुम्हारे बच्चे की मां बन चुकी होऊंगी।"
ठहाका लगाकर हंस पड़ा अवतार । बहुत देर तक हंसता
रहा । दिल खोलकर हंसने के बाद बोला --- “उसके लिए तो कम से कम नौ महीने इंतजार करना होगा ।”
“क्यों... नौ महीने नहीं रह सकते दूसरे ढाई करोड़ के बगैर ?”
"तुम्हारा अपना खर्चा कहां से चलेगा ?”
“कायदे में तो तुम्हें चलाना चाहिए। अपने कैश वाले ढाई करोड़ से । ”
“मुझे?”
“कोई नई या अलग बात नहीं करोगे ऐसा करके । हर हिन्दुस्तानी पति अपनी पत्नी का खर्चा उठाता है । "
“और यदि तुम मेरे ढाई करोड़ फुर्र होते ही, अपने कार्ड के साथ फुर्र हो गयीं तो... तो किसकी मां को मां कहूंगा मैं ? जब तुम ठगी जाने को तैयार नहीं हो तो मैं ऐसा मौका क्यों दूं?”
“मैं औरत हूं। कहां जाऊंगी तुम्हें छोड़कर ? फिर किसी मर्द के पास। ऐसा ही करना है तो तुम्हें ही क्यों छोडूंगी? फिर भी अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं तो फैसला इस बात पर भी हो सकता है हम पति-पत्नी बनकर साथ रहेंगे ।
महीने भरे में तुम्हारे कैश में से जितना खर्च होगा उसका आधा मैं अपने कार्ड से कैश करके तुम्हें देती रहूंगी।"
“और अगर मैं बच्चा पैदा करने के बाद भी धोखा दे गया?”
“ आदमी बीवी को धोखा दे सकता है, अपने बच्चे को नहीं।”
“काफी माकूल सोच है तुम्हारी ।”
“अवतार ।” दिव्या का लहजा थोड़ा भावुक हो उठा--- "उम्मीद है, तुम मेरे अंदर छुपे डर और मेरी भावनाओं को समझ रहे होगे । मेरी हर सतर्कता के पीछे केवल और केवल एक ही कारण है। न मैं धोखा देने की फिराक में हूं, न धोखा खाना चाहती हूं। अगर तुम इस बात को समझ गये हो जो मैंने किया है या कह रही हूं, उसका बुरा नहीं मानोगे।”
“बुरी मानने का सवाल ही नहीं उठता दिव्या ।” अवतार का लहजा भी थोड़ा गंभीर हुआ --- “जो शख्स मैं हूं । वाकई कोई औरत उस पर विश्वास नहीं कर सकती । सतर्कता का जो जामा पहनकर तुम यहां आई हो, सच कहूं तो उससे खुशी ही हुई है मुझे । यह सोचकर अपनी पसंद पर गर्व है कि मेरी पत्नी खूबसूरत ही नहीं समझदार भी होगी।”
दिव्या चुपचाप उसकी तरफ देखती रही ।
थोड़े गैप के बाद अवतार ने पूछा--- "पर एक बात
जरूर जानना चाहूंगा।"
"क्या ?"
“तुमने मुझे केवल इसलिए चुना क्योंकि तुम्हारे पास और कोई विकल्प नहीं था या कोई और बात भी थी ?”
"सच्ची कहूं?”
“ उम्मीद तो सच की ही कर रहा हूं।”
“जिस तरह पहली नजर में तुम्हें लगा मुझे तुम्हारी पत्नी होना चाहिए, उसी तरह मुझे भी लगा था मुझे तुम्हारे बच्चे की मां होना चाहिए।"
“वाह ! ” एक बार फिर जोरदार ठहाका लगा उठा अवतार --- "सीधी बच्चे तक पहुंच गईं तुम ?”
“दूसरे मर्दों की तरह औरत की इस भावना को शायद तुम भी न समझ सको।” दिव्या का लहजा अत्यन्त गंभीर हो उठा - - - “ औरत चाहे जैसी हो, उसकी सबसे बड़ी इच्छा मां बनने की होती है। मेरी वह इच्छा आज तक ! शादी के इतने सालों बाद तक भी पूरी न हो सकी। राजदान ने देवांश से प्यार की खातिर नहीं की और देवांश के बच्चे की मां मैं बन नहीं सकती थी । ”
“तो फिर आओ। तुम मां बनो। मुझे बाप बनाओ।” कहने के साथ अवतार ने दिव्या का मुखड़ा अपने दोनों हाथों में भर लिया। उसकी आंखों में झांकता बोला --- “नौ महीने बाद ही सही, हमारे बीच विश्वास भी तो वही स्थापित करेगा।”
भीगी पलकों से दिव्या अवतार की तरफ केवल देखती रही।
“उधर देखो!” अवतार ने बैड के ठीक सामने वाली दीवार की तरफ इशारा किया ।
दिव्या ने उधर देखा।
वहां एक स्वस्थ और सुन्दर बच्चे की खिलखिलाती फोटो लगी थी ।
"जानती हो होटल वालों ने वहां वह फोटो क्यों लगाई है?
दिव्या ने होठों से नहीं, आंखों से सवाल किया ।
“क्योंकि यह इस होटल का 'हनीमून सुईट' है। केवल नये
जोड़े ही ठहरते हैं यहां । नींव रखते हैं अपने बच्चे की ।”
मारे लाज के दुहेरी हो गई दिव्या । मुखड़ा अवतार की छाती में छुपा लिया ।
उसे बाहों में भरते अवतार ने कहा-- - “ हनीमून की खुमारी में कहीं फ्लाइट न छूट जाये । इसलिए सात बजे हम लंदन के लिए उड़ जायेंगे।” कहने के साथ अवतार ने सुईट की लाइट ऑफ कर दी।
अलार्म की तेज आवाज ने दिव्या की नींद तोड़ी ।
हड़बड़ाकर उठी। सबसे पहले अलार्मे ऑफ किया ।
देखा --- अवतार बैड पर नहीं था ।
सोचा --- बाथरूम में होगा। नजर उधर गई --- बाथरूम का दरवाजा कमरे की तरफ से बंद था ।
फिर कहां गया वह?
थोड़ी घबराकर उठी। सीधी उस वार्डरोब की तरफ लपकी जिसमें ढाई करोड़ से भरी अटैची थी। उसे खोला ।
धक!
दिल ने मानो धड़कना बंद कर दिया ।
अटैची गायब थी ।
बौखला कर सेंटर टेबल की तरफ देखा ।
वहां जहां उसने अपना कार्ड रखा था ।
वह वहीं था ।
दिव्या ने झपटकर उसे उठा लिया । कसमसाकर मुट्ठी में भींचा उसे । अब बस यही उसका सहारा था । वह समझ गयी अवतार उसे छोड़कर जा चुका है। अंततः वही हुआ जिसका उसे डर था | नजर बच्चे की फोटो की तरफ उठी । और चीख निकल गई हलक से । वैसे, जैसे भूत देख लिया हो । । कार्ड जाने कहां जा गिरा था। दोनों हाथों से अपने खुले बाल पकड़कर वह आर्तनाद कर उठी --- “नहीं! नहीं! नहीं!!!”
***
“अखिलेश ! यह लेटर पढ़कर तुझे यकीन हो जायेगा कि मैं एक नम्बर का हरामजादा हूं।
पैसे पीटने आया था, पैसे पीटकर जा रहा हूं।
जिस सुबह ये लेटर तुझे मिलेगा उस सुबह तक मेरा मिशन पूरा हो चुका होगा। इसमें कोई शक नहीं, यहां मैं दोस्तों से मिलने या राजदान की मौत पर मातमपुर्सी करने नहीं बल्कि उसकी जायदाद पर हाथ साफ करने आया था। दोस्ती की तो बात ही छोड़ दे, दुनिया के किसी भी रिश्ते की मेरी नजरों में कोई अहमियत नहीं है। आज भी नहीं । गुजरा ही कुछ ऐसे मुकाम से हूं।
शुरू में तेरी बातें सुनकर । फिर तेरे द्वारा भट्टाचार्य के फार्म हाऊस पर राजदान के अंत की फिल्म देखकर और अंत में मेरे नाम लिखे गये राजदान के लम्बे लेटर को पढ़कर जाना राजदान अपने तीन दुश्मनों से बदला लेना चाहता था ।
दिव्या, देवांश और ठकरियाल ।
बदला मैंने लिया जरूर है मगर दिमाग में यह खुशफहमी भी पालने की बिल्कुल जरूरत नहीं है कि ऐसा मैंने राजदान का या तुम लोगों का दोस्त होने के नाते किया । मेरा लक्ष्य था - - - दौलत हासिल करना । संयोग से मैं लक्ष्य को इन तीनों से निपटने के बाद ही हासिल कर सकता था। सो, सोचा क्यों न उसी ढंग से निपटा जाये जैसा राजदान ने अपने लेटर में लिखा है, बहरहाल, लेटर मे बनी बनाई स्कीमें दे दी थीं मुझे । तू जानता ही है, राजदान ने लिखा था- 'ठकरियाल की समाधि वहीं बननी चाहिए जहां उसने विचित्रा और उसकी मां की बनाई थी।' वही कर दिया मैंने । किसी और ढंग से न मारा, इस ढंग से मार दिया | क्या फर्क पड़ता है मुझ पर ! राजदान ने आगे लिखा है --- 'तुम ने लोग दिव्या को इतनी मजबूर कर दोगे कि वह अपने निप्पल्स पर जहर लगाकर देवांश को चुसकाये ताकि देवांश उसी औरत के द्वारा उसी ढंग से मारा जाये जैसे उसने कभी मुझे मारने की कोशिश की थी। यह तरकीब मुझे इन्ट्रेस्टिंग लगी। मारना मेरे लिए भी जरूरी था देवांश को... | सो, इसी तरकीब से मार दिया। उस वक्त मैं ठीक उसी तरह दिव्या को बांहों में लिए खड़ा था जैसे राजदान ने अपने अंतिम क्षणों में देवांश और दिव्या को देखा था ।
इस लेटर के साथ सभी सुबूत अर्थात् राजदान के लेटर्स, पाइप पर लटके देवांश का फोटो, ऑडियो कैसिट्स और वह वीडियो फिल्म भी भेज रहा हूं जिसमें राजदान के अंत का मंजर है। एक बार फिर --- किसी खुशफहमी का शिकार होने की जरूरत नहीं है । तुम्हें या बबलू को बेकसूर साबित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है मेरी । भेज केवल इसलिए रहा हूं क्योंकि मेरे लिए ये कूड़ा हैं। कूड़ेदान में नहीं डाला, तुझे भेज दिया। बात तो एक ही हुई।
दिव्या पर आता हूं ।
वाकई बड़ी कुत्ती औरत है ।
इस अलंकार से मैं उसे इसलिए नहीं नवाज रहा क्योंकि मैंने उसे राजदान को हार्ट अटैक से मारने की कोशिश करते देखा है। बल्कि इसलिए नवाज रहा हूं क्योंकि सोचा था --- ‘फेर में तो आ ही गई मेरे । सो, पूरे के पूरे पांच करोड़ पर हाथ साफ कर दूंगा ।' मगर वो पट्ठी तो अपने हिस्से का कार्ड ले आई । किसी भी तरह मैं उसके हिस्से पर हाथ साफ नहीं कर सकता था | हुई न कुत्ती चीज ? भावुक करके ठगने की कोशिश कर रही थी मुझ हरामजादे को । जिस्म की आग बुझाने की मां बनने की ख्वाहिश के आवरण से ढांप रही थी । वरना भला हिन्दुस्तानी औरत शादी से पहले किसका बिस्तर गर्म करती है! एक बार तू फिर जानता है, उसके बारे में राजदान ने अपने लेटर में लिखा है --- 'भट्टाचार्य, तुझे दिव्या के जिस्म में इंजेक्शन द्वारा एच.आई.वी. कीटाणु प्रविष्ट करने हैं ताकि वह महसूस कर सके पल-पल मौत की तरफ सरक रहे व्यक्ति को कितनी जबरदस्त पीड़ा से गुजरना पड़ता है।' इंजेक्शन न सही, किसी और माध्यम से हो गया है ऐसा । मुझे खुद नहीं मालूम मैंने यह बीमारी कहां से पाई। जाने किस-किस वेश्या में मुंह मारा है। बैड के सामने एक बच्चे का फोटो लगा है। उस फोटो को उल्टा टांग आया हूं। फोटो की पीठ पर मोटे-मोटे हर्कों में लिखा है---“तुम्हें एड्स हो चुका है।"
***
समाप्त
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