फिर तेरी कहानी याद आई -2
“बस यही थी मेरी अधूरी प्रेम कहानी, जिसमें न प्रेम जीत पाया और न ही प्रेमी।” वीर ने बाहर आसमान की तरफ़ देखकर कहा, जहाँ बारिश रूकने के बाद आसमान साफ हो गया था।
माधवी ने घड़ी की तरफ़ देखा जिसमें 05:00 बज रहे थे, माधवी ने अपने आँसू पोंछे और बिस्तर से उठकर बाथरूम में मुँह धोने के लिए चली गई। वीर ने बालकनी का दरवाज़ा खोला और वापिस कमरे में आकर सोफे पर बैठ गया। माधवी बाथरूम से बाहर आई और कमरे में टिप्सी को देखने गई, जो अभी भी सो रही थी।
“मैं चाय बनाती हूँ। तू पिएँगा या सुबह भी तेरी शराब ही चलती है?” माधवी ने कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर वीर से पूछा।
“हाँ, पी लूँगा, शराब का नशा तो वैसे भी आज चढ़ा ही नहीं।” वीर ने कहा।
माधवी किचन में चाय बनाने चली गई। कुछ देर बाद माधवी दो कप चाय लेकर वीर के पास आई और वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गई।
“यार, तेरी कहानी ने तो रूला दिया। मैं तो पहले यही सोचती थी कि सारी ग़लती माया की ही थी, लेकिन आज पता चला कि तू भी उसमें बराबर का हिस्सेदार था। मुझे तो यक़ीन ही नहीं हो रहा कि तूने माया को मारा। यार, ऐसे कैसे कर सकता है तू?” माधवी ने चाय की चुस्की लेकर कहा।
“मैंने तो पहले ही कहा था कि कुछ ग़लतियाँ मैंने की है तो कुछ ग़ुनाह माया ने भी किए हैं। हम दोनों ही ज़िम्मेदार है इस स्थिति के, लेकिन माया की वो ग़लती जो सबसे बड़ी थी और इस पूरी स्थिति की ज़िम्मेदार है वो यह कि जब उसकी Engagement हुई, तब उसने मुझसे बात छुपाई। बस, यही बात मुझे आज तक समझ नहीं आई कि उसने अपनी Engagement के समय मुझे क्यूँ नहीं बताया और क्यूँ मुझे Ignore किया? अगर वो मुझे बता देती तो क़सम से, मैं उसी समय उसके घर जाकर सब कुछ बता देता और माया को किसी और का नहीं होने देता। ख़ैर, अगर वो बात ना छुपाती और थोड़ी हिम्मत दिखाती तो आज तेरे लिए चाय माया बनाकर लाती।
ग़लती तो मेरी भी है कि मेरे उस पर हाथ उठ जाते थें। आज अपने इन हाथों को देखता हूँ तो सोचता हूँ कि माया पर हाथ उठाने से पहले यह कट क्यूँ नहीं गए? ख़ैर, जो होना था, वो तो हो ही गया।” वीर ने कहकर टेबल से चाय का कप उठाया।
“तो फिर माया कभी तुझे उसके बाद मिलने आई और तुझे फ़ोन किया?” माधवी ने सवाल किया।
“तुझे क्या लगता है?” वीर ने सवाल पर सवाल किया।
“मुझे तो लगता है कि मिलने नहीं आई, क्योंकि तूने उसे पीटा और वो इतना कि उसकी दर्द भरी चीख़ निकल गई तो फिर तो वह नहीं आई होगी, पक्का” माधवी ने कहा।
“हाँ, आना तो नहीं चाहिए था उसे, लेकिन माया ने हमेशा Unpredictable चीज़े ही की हैं। वो उसके बाद भी मुझसे मिली थी। उस घटना के दो साल बाद उसका फ़ोन आया था। उसने कहा कि वह एक बार मिलना चाहती है, तो मैंने उसे अपना पता भेज दिया और वो दिल्ली मुझसे मिलने आई थी। माया के भाई की एक हादसे में मौत हो गई थी और वो बहुत दु:खी थी। पता है, जब वो मिलने आई थी तो उसने नीले रंग की सूट भी नहीं पहना था। तब मुझे अहसास हुआ कि हमारे मिलने की खुशी से उसका दु:ख ज़्यादा बड़ा और गहरा था। वो कुछ समय के लिए यहाँ पर थी फिर मैं उसको उसके घर छोड़ आया था।
तब मुझे एक नई उम्मीद दिखी थी कि शायद अब वो फिर मेरे पास लौटकर आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हाँ, हमारी उसके बाद बात ज़रूर हुई और मिलने का भी तय हुआ था, लेकिन एक दिन पहले ही उसने मिलने से मना कर दिया। जब मैंने उससे कारण पूछा तो उसने बिना कारण बताए ही फ़ोन रख दिया। मैंने उसके पास दो-तीन बार वापिस फ़ोन भी किया, लेकिन उसने कोई जबाब नहीं दिया।
इसलिए मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। आज भी उसके लिए इन्तज़ार करता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि वो एक दिन फिर मेरे पास आएगी और सीने से लिपट जाएगी। उसकी आने की उम्मीद के कारण ही मैं जिन्दा हूं अब तक, नहीं तो शायद कब का मर चुका होता?” वीर ने कहा।
“वाकई, अजय ठीक ही कहता था कि कौन-से ग्रह से हो तुम लोग? ना तो एक-दूसरे के साथ बिना लड़ाई रह सकते हो और ना ही अलग होते हो। गजब का Combination है तेरा और माया का भी।” माधवी ने कहा।
“हम दोनों ने प्यार के शुरूआती दिनों में ही सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमारे इस पवित्र प्रेम को हमें हमारी आख़िरी साँस तक जिन्दा रखना है। अब लगता है कि सोचना तो आसान था, लेकिन सोचे हुए को निभाना और जीना बहुत मुश्किल है।
माया बहुत सारी मजबूरियों से घिरी हुई है, लेकिन जब भी उसे मेरी याद आती है तो वो आ जाती है क्योंकि उसे मालूम है कि वीर वहीं मिलेगा जहाँ से वो बिछड़े थे।” वीर ने कहा।
“तो ऐसे प्यार और इश्क़ का क्या, जिसके आने की उम्मीद बहुत कम और जाने की Suriety ज़्यादा है। माया तो अपने पति के साथ भी खुश है और तू सिगरेट और शराब के सहारे उसके आने की झूठी उम्मीद का बल्ब जलाँए बैठा है।” माधवी ने कहा।
“सिर्फ़ मोहब्बत ही वो खेल है जो सीख जाता है वो हार जाता है। माना कि मैं हार गया हूँ, लेकिन जीत का स्वाद भी चखा है। वैसे भी माया और मुझमें बहुत फ़र्क है। हम दोनों में उतना ही फ़र्क है जितना साफ़गोई और अदाकारा में होता हैं। मेरे अन्दर जितनी साफ़गाई से माया के लिए भावनाएं, प्यार, तड़प दिखती है, माया उतनी ही अदाकारी से अपनी भावनांए, प्यार, तड़प को छुपाती हैं, क्योंकि उसकी लाइफ़ अब अलग है। वो उस लाइफ़ में जी रही है, जो ना कभी उसने सोचा था और ना ही मैंने, लेकिन फिर भी हम दोनों को एक गंभीर बीमारी है जो एक-दूसरे का पूरक बनाती है, मुझे कुछ भी न भूल पाने की और उसे सब कुछ भूल जाने का नाटक करने की।
हमारे रिलेशनशिप की वो स्थिति है कि प्रेमी पति होना चाह रहे थे और पति प्रेमी बनना चाहता है। लगता है कि कोई स्त्री किसी पुरूष को शायद पूरी मिली ही नहीं। रही बात पति की, तो उसने माया का बदन तो चूमा होगा, लेकिन न उसकी जुल्फ़ें सँवारी होगी और न ही उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर नाखून काटे होंगे।” वीर ने कहकर एक सिगरेट जलाई।
“अजय कहता था कि वफ़ाएं तक लौटकर नहीं आती इस दुनिया में और वीर को उस बेवफ़ा के लौट कर आने की दरकार है। अब मुझे भी यही लगता है कि माया अब नहीं आने वाली, तो तू कब तक उसकी यादों के सहारे उम्मीद बांधकर जीता रहेगा? यह उम्मीद और यादें भी तुझे एक दिन धोखा दे जाएँगी। अब इस यादो के गिर्दाब से बाहर निकल और नई जिंदगी जी।” माधवी ने कहा।
“उसे बेवफा मत कह। वो बेवफा नहीं है। यह कहने का हक़ सिर्फ़ मेरे को है और किसी को भी नहीं। अगर वो बेवफ़ा होती तो उसे मैं अब तक मार चुका होता। माया से जुदाई के शुरुआती दिनों में मैं उससे बहुत ज़्यादा नफ़रत करने लग गया था। एक बार तो लगा कि उसे बेवफ़ा को जीने का हक़ बिल्कुल नहीं है। अब अजय तो मेरे हर सही और ग़लत काम का साथी रहा है तो मैं अजय के साथ माया को जान से मारने के लिए निकल गया था। अजय और मैंने एक बन्दूक का भी इन्तजाम कर लिया था और फिर हम उसके घर की तरफ़ निकल पड़े थे, लेकिन रास्ते मे ही प्यार के आगे मेरे इरादों ने घुटने टेक दिए। सोचा कि वो जैसी भी निकली, आख़िर है तो मेरा प्यार ही। आख़िरकार मैंने तो उसे उतना प्यार किया जितना कि कोई भी नहीं कर सकता, तो मै उसे मारने कि कैसे सोच सकता हूं? बस, फिर मैं और अजय बीच रास्ते से ही वापिस लौट आए थें, क्योंकि अपनों को मारने का हथियार अभी तक नहीं बना है। हाँ, मान लिया कि इंसान सबसे सस्ता मोहब्बत के नाम पर बिकता है और वही मोहब्बत उस इंसान को सबसे महँगी पड़ती है। माया का प्यार मेरे लिए वही महँगी चीज़ है और उसकी यादें उससे भी क़ीमती। मेरा प्यार और माया इतनी कमज़ोर भी नहीं है कि अपने दिल की बात तक ना सुन सके। लेकिन समाज की बेडियाँ इतनी मज़बूत होती है कि उन्हें तोड़ पाना लगभग नामुमकिन होता है। इतिहास में जिन प्रेमियों की बातें बताई जाती हैं, वो भी समाज के ही शिकार थे। यह समाज प्यार और प्रेमियों की भाषा नहीं समझता है।
ऐसा नहीं है कि मैं नई दुनिया बसाना नहीं चाहता। मैं भी माया की यादों से बाहर निकलना चाहता हूँ। मैं भी माया की तरह ही इस प्यार को निभाना चाहता हूं, जैसे वो निभा रही है, लेकिन पता है, जब भी मुझे लगता है कि माया की तरह उसकी यादें भी मुझसे दूर होने की कोशिश करने लगती हैं तो अचानक ही मेरे अन्दर एक ड़र पैदा हो जाता हैं और मेरे कदम अपने आप जलमहल, एम.जी. रोड़ मैंट्रो स्टेशन, सुभाष पार्क और भी कई जगह जहाँ हम मिलते थे, वहाँ मुझे ले जाते है। वहाँ मैं माया की यादों के साथ कुछ समय बिताता हूँ और फिर माया की यादें मुझसे दूर नहीं हो पाती है। पता है, आज भी माया का लव-लैटर, तस्वीरें, टिफिन, हेयर-क्लिप, उसकी गिफ़्ट की हुई शर्ट सब कुछ मेरे पास सँभाल कर रखे है। मैंने बहुत बार इनको जलाने की भी कोशिश की है, लेकिन हर बार मेरे हाथ रूक जाते है। मैं चाहकर भी उन्हें जला नहीं पाता हूँ।” वीर ने कहा।
“वीर, मैं तुझे कैसे समझाऊँ कि इससे तुझे कुछ भी हासिल नहीं होगा? और हाँ, वो ड्रग्स अब भी लेता है क्या तू?” माधवी ने पूछा।
“ड्रग्स को छोड़ चुका हूँ। माया को भूलने के लिए मैंने ड्रग्स का सहारा लिया था, लेकिन माया को कुछ समय के लिए भूलना ही मुझे ज़्यादा तकलीफ़ देता था इसलिए अब ड्रग्स के नशे को छोड़कर प्यार के नशे में ही डूबा रहता हूँ। मुझे उम्मीद है कि माया फिर से मेरी लाइफ़ में आएगी। इसलिए ड्रग्स को अब छोड़ दिया है क्योंकि उम्मीद से बडा कोई नशा नहीं हैं।
मुझे भी पता है कि इससे मुझे कुछ भी हासिल नहीं होगा, लेकिन फिर भी मैं अभी हूँ अपने प्यार के लिए। जब मैंने कालेज में पहली बार माया को देखा था तभी मुझे ऐसा लगा था कि यही वो लड़की है, जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कभी माया के लिए मैंने सोचा था कि माया और मैं बारिश में भीग रहे है और बस मैं उसे देख रहा हूँ, कभी बाहर बारिश हो रही है और हम दोनों गाड़ी के अन्दर बैठें अपने में ही खोए हुए हैं यह सोच कर कि हमें कोई देख नहीं रहा है, लेकिन बारिश की बूंदे गाड़ी के शीशे पर बैठीं हुई हमें ही देख रही हो, कभी माया के हाथों को अपने हाथों में लेकर उस मेट्रो स्टेशन पर कुछ समय बिताए, जहाँ हम मिलते थे, हमारे खेत में पेड़ के नीचे चारपाई पर बैठकर हम अपना कुछ समय व्यतीत करे, खेत के बीच में बने मचान पर माया मेरी बाँहो में हो, लेकिन यह सब अब केवल एक प्यारा सपना ही बन कर रह गया है। लगता ही नहीं कि कभी माया इस सपने को पूरा करने के लिए कदम बढ़ाएगी। ख़ैर, माया को पहली बार देखने से आज तक प्यार का जुनून कभी कम नहीं हुआ है, और ये कभी कम होगा भी नहीं। ये तो बस राख बनेगा जब मैं मरूंगा। सच्चे प्यार का कोई अन्त नहीं होता है। अगर हमारा प्यार सच्चा है तो हम जरुर मिलेंगे। यहाँ नहीं तो वहाँ, जहाँ कोई मजबूरी, झूठ नहीं होता है, पर मिलेंगे ज़रूर।” वीर ने कहा।
“प्लीज़, ऐसा मत बोल। मुझे तो माया का सोचकर ही बुरा लगता है कि काश उसने Engagement से पहले हिम्मत दिखाई होती तो आज एक सच्चा प्यार करने वाला दिन-ब-दिन उसकी यादों में मर नहीं रहा होता, लेकिन शायद इस प्रेम कहानी का अन्जाम ऐसा ही होना था। तूने जिसे अपनी दुनिया माना, उसी ने तुझे दुनिया दिखा दी। मानेगा तो तू अपनी ही जैसे हमेशा करता है, फिर भी अब यही सही रहेगा कि तू इन सब झंझटों से बाहर निकलकर शादी करले और अपनी नई जिंदगी जी।” माधवी ने कहा।
“हाँ, अब कोशिश तो करूंगा ही, अगर तूने कहा है तो, लेकिन घड़ी में टाइम देख, तुझे जाना भी है, नहीं तो तेरी फ्लाइट मिस हो जाएगी।” वीर ने घड़ी की तरफ़ इशारा करके कहा।
सुबह के 06:00 बज गए थे। माधवी की 09:00 बजे की फ्लाइट थी। माधवी ने घड़ी की तरफ़ देखा और बिस्तर से उठकर बाहर कमरे में जाकर टिप्सी को जगाने लगी। टिप्सी उठते ही रोने लगी तो माधवी टिप्सी को वीर के पास लाई और वीर से कहा कि इसे सँभाल, मैं तब तक नहाकर आती हूँ। टिप्सी नीचे फर्श पर बैठ गई थीं। वीर टिप्सी के पास आया और कमरे में रखा एक टेडी बियर दिया और टिप्सी के पास नीचे फर्श पर बैठ गया। वीर टिप्सी के साथ खेल रहा था। माधवी नहाकर आई तब तक वीर ने ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर दिया था। माधवी ने टिप्सी के लिए दूध गर्म किया और टिप्सी को दूध बोतल में डालकर पीने को दे दिया और ख़ुद ब्रेकफास्ट करने लगी। वीर माधवी की तरफ़ देख रहा था।
“सॉरी यार, मैं तेरी शादी में नहीं आ पाया।” वीर ने कहा।
“कोई बात नहीं, ‘सॉरी’ की ज़रूरत नहीं है। मेरी शादी में ना आने के लिए मैं तुझे कभी भी माफ नहीं करूँगी।” माधवी ने जबाब दिया।
“तू खुश तो है ना?” वीर ने पूछा।
“हाय! काश तूने यह मुझसे शादी से पहले पूछा होता तो मैं तुझसे ही शादी कर लेती। कहाँ मिलते है ऐसे सच्चे आशिक़ जो प्यार के साथ-साथ उसकी क़ीमत भी पहचानते है। ऐसा आशिक़ जो प्रेमी के जुदा होने के बाद भी उससे इतना प्यार करता है कि उसकी यादों तक को ख़ुद से अलग नहीं होने देता। क़सम से, अगर तुम दोनों की शादी हो जाती तो ये इश्क़ एक नई ही कहानी लिख रहा होता। ख़ैर, मेरी, तेरी और माया तीनों की ही किस्मत ही फूटी है।” माधवी ने जबाब दिया।
वीर माधवी की बात सुनकर थोड़ा मुस्कुराया और टिप्सी को गोद में उठा लिया। माधवी ने ब्रेकफास्ट करने के बाद एक कैब बुक कर ली थी। कुछ मिनट बाद कैब वाले का फ़ोन आ गया था। वो बिल्डिंग के नीचे खड़ा था। माधवी ने टिप्सी को गोद में लिया और वीर से कहा कि उसका ट्रॉली बैग लेकर नीचे छोड़ने आ जाए। वीर ने माधवी का बैग उठाया और तीनों नीचे कैब के पास पहुँच गए थे। कैब ड्राइवर ने सामान गाड़ी में रखा और गाड़ी स्टार्ट कर दी। माधवी ने टिप्सी को गाड़ी मैं बैठाया और मुड़कर वीर की तरफ़ देखने लगी और करीब आकर वीर को गले लगा लिया।
“प्लीज़, बदल जा। यूं ख़ुद को बर्बाद मत कर।” माधवी ने कहा।
माधवी की बात सुनकर वीर ने नीचे ज़मीन की तरफ़ देखा और अपनी हामी भरी।
माधवी गाड़ी मैं बैठ गई थी। वीर गाड़ी के दरवाज़े के पास गया और टिप्सी को बाय कहा। गाड़ी एयरपोर्ट की तरफ़ बढ़ चुकी थी।
माधवी के जाने के बाद वीर अपने फ़्लैट पर गया। उसने जाकर आईना उठाया, जिस पर धूल जम चुकी थी। वीर ने आईने से धूल साफ़ कर अपना चेहरा देखा कि कहीं सही में अघोरी साधु तो नहीं लग रहा, लेकिन वीर को चेहरे की बजाय सबसे पहले अपनी आँखें दिखीं जो सूख चुकी थीं। वीर ने आईने से अपनी नज़रें हटाई और उसे पलट कर रख दिया। वीर की आँखें भारी हो रही थी, इसलिए वह बिस्तर तक गया और सो गया।
वीर जब शाम को उठा तो उसने देखा कि रात के लिए शराब नहीं बची थी। वीर ने कपडे पहने, नीचे जाकर ऑटो लिया और सीधा ठेके पर शराब लेने के लिए निकल गया। रास्ते में वीर के पास अजय का फ़ोन आया।
“भाई, माधवी का फ़ोन आया था क्या?” अजय ने पूछा।
“हाँ, फ़ोन आया था और वो रात को यहीं मेरे पास थी।” वीर ने कहा।
“माधवी बता रही थी कि उसकी फ्लाइट कैंसिल हो गई थीं इसलिए मैंने तेरे नम्बर दे दिए।” अजय ने कहा।
“ठीक किया। वैसे मैं बिन वजह ही उससे भाग रहा था कि वो क्या सोचेगी? लेकिन अब उससे मिलकर अच्छा लग रहा है। ऐसे लगा जैसे किसी अपने ने बरसों बाद अपनापन महसूस करवाया हो। थैंक्स, यार। चल, ठीक है, मैं तुझे बाद में कॉल करता हूँ, अभी बिज़ी हूँ।” वीर ने कहा।
“कहाँ बिजी है और यह शोर कैसा आ रहा है? कहाँ जा रहा है तू?” अजय ने पूछा।
“तबाह होने के लिए।” वीर ने जवाब दिया और फ़ोन रख दिया।
ऑटो अपनी स्पीड़ से ठेके की तरफ़ बढ़े जा रहा था।
बात उनकी अलग मेरी कहानी और है,
मैं तो आश़िक हूं, मेरे अन्दर रवानी और है।
कौन समझेगा ये तडप अबके बरस,
कह रही है कुछ जुबाँ, लेकिन कहानी और है।
तुमने अब तक दिल में झाँक कर देखा ही नही,
शब्द कुछ अलग, मगर मकसद कुछ और है।
एक बात है उसमें जो बेचैन रखती है हमें,
फूल सब अपनी जगह, गुलाब की बात और है।
कुछ किस्से कहं जाएँगे अपने अलग अंदाज से,
मै नि:शब्द हूं, क्योंकि मेरी जुबानी कुछ और है।।
समाप्त
0 Comments