"प्यारे...।" सोनू के होंठों से निकला--- "ये सब क्या कर रहे हैं?"

"वैन के पीछे की तरफ इकट्ठे हो रहे हैं।"
"लेकिन वैन के दरवाजों के सामने तो सरदार ही है। बाकी सब तो वैन के अगल-बगल खड़े हैं। सबने रिवाल्वरें भी पकड़ रखी हैं। समझ में नहीं आता कि ये क्या करने वाले हैं।" सोनू ने उलझन भरे स्वर में कहा।
"मुझे लगता है कि वैन का ताला खोल लिया गया है।"
"ऐसा है तो उन्होंने रिवाल्वरें क्यों निकाल लीं? वैन में तो नोट होंगे। ये तो ऐसे तैयार हैं जैसे भीतर से फौज निकलने वाली हो।"
"कोई बात तो है ही...।"
"ये सरदार मुझे खतरनाक आदमी लगता है।"
"मैं भी यही सोच रहा हूँ। मुझे नहीं लगता कि यह हमें लाख-डेढ़ लाख देगा।"
"इसका बाप भी देगा। वरना हम पुलिस को खबर कर देंगे।"
"सोनू...।"
"हाँ...।"
"गिन्नी की बहुत याद आ रही है... वो।"
"ये वक्त गिन्नी को याद करने का नहीं है। अब हमें सरदार के पास जाना है, धौंस जमाकर, लाख-डेढ़ लाख ऐंठने हैं। मुझे लगता है कि वो वैन का दरवाजा खोलने वाला है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वैन का दरवाजा खोलते ही नोटों की गड्डियां बाहर गिरने लगें।"
"पता नहीं।"
"देखता रह। सब कुछ सामने आ जाएगा।"
दोनों कुछ पल खामोशी से देखते रहे।
"सोनू...।" एकाएक प्यारे बोला।
"गिन्नी नींद में होगी। तू उसकी चिंता मत कर।" सोनू कह उठा।
"मैं गिन्नी की बात नहीं कर रहा।"
"तो?"
"मुझे एक नई बात सूझी है।" प्यारे ने बगल की डाल पर बैठे सोनू को देखा।
"क्या?"
"सब वैन के पीछे की तरफ हैं। तू तो हर गाड़ी बहुत अच्छी तरह चला लेता है। वैन भी चला लेगा?"
"हाँ, चला लूँगा, लेकिन तू...।"
"हम वैन लेकर भाग जाते हैं।"
"क्या?" सोनू जोरों से चौंका।
"सब वैन के पीछे की तरफ हैं। ये बढ़िया मौका है वैन ले भागने का। जो दस-बीस लाख वैन में होंगे, वह हम आधे-आधे बांट लेंगे। क्यों, तू क्या कहता है?"
सोनू की निगाह सामने थी। चेहरे पर सोच के भाव।
"ये तो खतरे वाली बात है।" सोनू कह उठा।
"थोड़ा सा खतरा और दस-बीस लाख रुपए हाथ में। तू भी मेरी तरह ब्याह कर लेना। इकट्ठे हनीमून पर चलेंगे। सुना है हनीमून के लिए शिमला बहुत बढ़िया जगह है। जो भी शादी करता है, शिमला जरूर होकर आता है।"
"मैंने तो सुना है मनाली अच्छी जगह है।"
"दोनों जगह हो लेंगे। वैन लेकर भाग ले।"
"यह आसान बात नहीं है।"
"क्यों?"
"उन्होंने पकड़ लिया तो बहुत मारेंगे।"
"जब तू वैन लेकर भागेगा तो वो तेरे को कैसे पकड़ सकेंगे?"
"पास में तीन-चार कारें खड़ी हैं। वो पीछा करेंगे हमारा और...।"
"मैं उन सबकी कारें पंचर कर देता हूँ। हवा निकाल देता हूँ। फिर वो कैसे पीछे आएंगे?"
"यह तो तूने ठीक कहा। लेकिन वैन की चाबी भी तो होनी चाहिए।"
"वो भीतर लगी हो सकती है।"
दोनों कुछ पल चुप रहे।
"सोनू।" प्यारा गम्भीर स्वर में कह उठा--- "मैं जाऊँ, वहाँ खड़ी कारों की हवा निकालूँ?"
"पता नहीं क्यों... मुझे डर लग रहा है।"
"तू तो कहता था कि तुझे डर नहीं लगता।"
"वो तो मैं ठीक कहता हूँ...।"
"तो अब क्यों डर रहा है? दस-बीस लाख हाथ में आएगा। तू ऑटो के बदले टैक्सी खरीदना।"
"और तू...।"
"मैं तो दुकान डालूँगा। अच्छा, मैं जाता हूँ। कारों की हवा निकालता हूँ। तू वैन लेकर भाग जाना।"
"लेकिन जाऊँगा कहाँ?"
"आत्माराम के खेत देखे हैं?"
"हाँ, पता है।"
"उसके खेतों में गन्ने की फसल बहुत ऊँची खड़ी है। वैन वहीं ले जाना। मैं वहीं आ जाऊँगा।
"अगर वैन में चाबी ना हुई तो?"
"तो फिर वही लाख-डेढ़ लाख वाला चक्कर चलाएंगे। वैन तक चुपके से जाना कि कोई देख ना ले। वैन का दरवाजा भी धीरे से बंद करना कि आवाज ना हो। उसके बाद भगा ले जाना वैन को। मैं वहाँ खड़ी सब कारों की हवा निकाल देता हूँ। ठीक है सोनू... मामला फिट...।"
"ठीक है।" सोनू ने चिंता भरे स्वर में कहा--- "मुझे डर लग रहा है।"
"डरता क्यों है। यह मामूली-सा तो काम है। वैन में बैठना और स्टार्ट करके भाग जाना। मैं कारों की हवा निकालने जा रहा हूँ...।" कहने के साथ ही प्यारा पेड़ से नीचे उतरने लगा।
◆◆◆
देवराज चौहान के दरवाजा खोलते ही वैन के भीतर का हिस्सा रोशनी से नहा गया।
"मैं हूँ देवराज देवराज चौहान...।" देवराज चौहान ने फौरन कहा।
ये खतरे से भरा वक्त था।
भीतर मौजूद दोनों गनमैन किसी भी पल गोलियों की बरसात कर सकते थे।
एक पल बीता। दो-चार छह... दस पल बीत गए।
सब कुछ शांत रहा।
कोई गोली नहीं चली।
वैन के भीतर का हिस्सा अब देवराज चौहान के सामने था। वैन के दाएं-बाएं जगमोहन, मलिक, अम्बा, सुदेश, मल्होत्रा रिवाल्वरें थामें खड़े थे। उनके दिल की धड़कन टिक टिक बजा रही थी। कान गोली की आवाज सुनने का इंतजार कर रहे थे।
सोहनलाल चार कदम हटकर व्याकुलता से भरा खड़ा था।
वैन के फर्श पर सामने ही स्टील के बॉक्स पड़े चमक रहे थे। पीछे वो छोटी-सी तीन इंच की खिड़की भी नजर आ रही थी, जिसके द्वारा उनकी बातचीत होती थी। वैन में एक तरफ बैंच जैसी सीट बनी हुई थी। परन्तु इस वक्त जवाहर और रोमी नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने बक्से की आड़ ले रखी थी। अलबत्ता दो तरफ से गनों की नालें अवश्य झांक रही थीं। सन्नाटा-सा उभरा रहा--- उनके बीच।
सब कुछ देखने के बाद देवराज चौहान बोला---
"देख लो। मैं अकेला तुम दोनों के सामने खड़ा हूँ। कोई भी हथियार मैंने नहीं थाम रखा...।"
सब कुछ वैसे ही रहा।
पल, मिनटों में बदलने लगे।
एक बक्से के पीछे से सिर जरा सा बाहर निकला। उसने बाहर झांका। सब ठीक लगा उसे।
फिर दूसरे बक्से के पीछे से दूसरा सिर उभरा और बाहर झांकने लगा।
"यकीन करो इस वक्त मैं ही तुम लोगों के सामने हूँ। मेरे हाथ खाली हैं।"
मिनट भर और बीता।
अब दोनों के चेहरे स्पष्ट दिखने लगे।
गनों का रुख देवराज चौहान की तरफ था।
"किसी एक को तो यह खतरा उठाना ही था। तुमने रिस्क नहीं लिया तो मैंने ले लिया। मुझे इस बात का भरोसा है कि तुम दोनों मुझ पर गोली नहीं चलाओगे। हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। हम सिर्फ पैसा चाहते हैं। वो लेकर ही रहेंगे। परन्तु इस दौरान खून नहीं बनाना चाहते। मेरे इस तरह सामने आकर तुम्हें विश्वास दिलाने का यही मतलब है।"
जवाहर और रोमी अब उठ कर बैठ गए थे। गनें सतर्कता से थाम रखी थीं।
देवराज चौहान से उनकी नजरें मिलीं।
देवराज चौहान शांत भाव से मुस्कुराया। फिर बोला---
"मुझे मार दोगे तो तुम लोग भी नहीं बचोगे। वैन के दोनों तरफ हथियारों को थामें काफी लोग खड़े हैं। मेरी जान में ही तुम दोनों की जान बसी है इस वक्त। मुझ पर भरोसा करो और वैन से बाहर आ जाओ।"
"ताकि तुम लोग हमें आसानी से मार सको?" रोमी बोला।
"अगर मारना होता तो क्या मैं इस तरह सामने आता तुम लोगों के?" देवराज चौहान बोला।
"तुम कुछ भी कर सकते हो इस वक्त।"
"मैं कुछ नहीं करने जा रहा। इन बक्सों से नोट निकालने हैं हमने। तुम दोनों बाहर निकलो और वैन का स्टेयरिंग संभाल लो। हम बक्से बाहर निकाल लेते हैं, तुम लोग वैन लेकर यहाँ से चले जाना।"
जवाहर और रोमी की नजरें मिलीं।
शांति रही कुछ पल।
"ये तुम्हारा धोखा देने का भी अंदाज हो सकता है कि हमारे बाहर निकलते ही तुम लोग हमें शूट कर सको।"
"एक बार मेरा भरोसा करके तो देखो...।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"कितने लोग हो तुम सब?"
"बहुत हैं।"
"सब सामने आ जाओ रिवाल्वरें हमारे सामने उस तरफ नीचे फेंक दो और सब कुछ दूर हमारे सामने खड़े हो जाओ।" रोमी बोला।
"फिर तुम क्या करोगे?"
"हम बाहर आएंगे और बक्से वैन से नीचे गिराकर, वैन लेकर चले जाएंगे।"
"तब तुम लोग हम पर एक साथ गोलियाँ भी चला सकते हो।"
"ऐसा नहीं करेंगे हम।"
"मतलब कि तुम चाहते हो कि हम तुम्हारी बात पर भरोसा करें? तुम हमारी बात पर भरोसा ना करो।"
"हम अपने लिए सुरक्षित रास्ता निकाल रहे हैं। क्योंकि हम दो हैं और तुम ज्यादा हो।"
"ठीक है।" देवराज चौहान बोला--- "तुम्हारी बात मानी।" उसके बाद देवराज चौहान वैन के दोनों तरफ देखकर बोला--- "तुम सब अपने-अपने हथियार फेंको। सामने की तरफ--- ताकि ये दोनों देख सकें।"
पल भर की खामोशी रही, फिर मलिक उठा---
"तुम्हारी ये बात नहीं मानी जा सकती देवराज चौहान।"
"क्यों?"
"उनके पास गनें हैं, वो हमें पलों में गोलियों से भून सकते हैं।"
"बैंक का पैसा बचाने के लिए, ये आठ लोगों को गोलियों से भूनने से रहे।"
"क्यों नहीं मार सकते ये? इन्हें मौका मिलेगा तो ये जरूर---।"
"हम ऐसा नहीं करने वाले।" मल्होत्रा कह उठा।
"फिर ये हमारे चेहरे भी देख लेंगे।" अम्बा ने कहा--- "कल को पुलिस को हमारे बारे में अवश्य बता देंगे।"
"अगर मैं नहीं आता तो, क्या तब तुम लोगों के चेहरे नहीं देखते?" देवराज चौहान ने कहा।
"उसके लिए हमने चेहरे ढांपने का सोच रखा था।"
"वो अब भी कर सकते हो।"
"लेकिन...।" मलिक बोला--- "हम रिवाल्वर फेंककर, गनमैनों के सामने खड़े होने का खतरा क्यों मोल लें?"
"मेरा भरोसा करो ये फायरिंग नहीं करेंगे।"
"तुम पर भरोसा करके बे-फिजूल में हम अपनी जान नहीं गंवाना चाहते।" मलिक ने दृढ़ स्वर में कहा--- "तुम जो चाहते हो वो हम नहीं करेंगे। इस तरह हम अपने को मुसीबत में नहीं डालेंगे।"
"मैं इनकी बात से सहमत हूँ...।" जगमोहन कह उठा। चेहरे पर सख्ती थी।
देवराज चौहान ने दोनों गनमैनों को देख कर कहा---
"इन लोगों की आशंका को तुम गलत नहीं कह सकते...।"
"तुम इनके बड़े हो। ये तुम्हारी बात भी नहीं मान रहे।" रोमी बोला।
"अगर मेरी कोई बात इन्हें गलत लगती है तो जरूरी नहीं कि ये मेरी बात मानें। मुझे तुम दोनों पर पूरा भरोसा है कि तुम लोग गोली नहीं चलाओगे। लेकिन ये लोग तुम पर भरोसा करने को तैयार नहीं।"
"हम यहाँ से सुरक्षित निकल जाना चाहते हैं।" जवाहर ने कहा।
"मैं जानता हूँ इस वक्त तुम लोग अपनी जान बचाने के फेर में हो। परन्तु ये नहीं समझ रहे...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "अगर तुम लोगों ने गोली चलानी होती तो अब तक चला चुके होते हैं।"
खामोशी रही उनके बीच।
"ठीक है।" रोमी कह उठा--- "अपने लोगों से कहो कि रिवॉल्वरें मत फेंके--- परन्तु सामने आ जायें।"
देवराज चौहान ने सबसे ये ही कहा।
मलिक, अम्बा, सुदेश, मल्होत्रा और जगदीश अपनी जेबों से रुमाल निकाले और चेहरों पर बांध लिए।
"सुदेश और अम्बा इस तरफ रहेंगे।" मलिक बोला--- "मैं मल्होत्रा और जगदीश सामने आएंगे। ताकि ये अगर गोलियाँ चलाएं तो सुदेश, अम्बा भी इन पर फायरिंग कर सकें।"
ऐसा ही हुआ।
जगमोहन और सोहनलाल भी सामने की तरफ आ खड़े हुए।
गनमैनों को वे सब स्पष्ट नजर आने लगे।
जो कुछ भी हो रहा था,अजीब-सा हो रहा था। वे सब चाहते थे कि गनमैन वैन से बाहर निकल जायें और गनमैन चाहते थे कि वे यहाँ से, इन लोगों से सुरक्षित बच निकलें।
दोनों पार्टियों का मन साफ था, परन्तु भरोसा किसी को भी, किसी पर नहीं था।
"तुम।" रोमी बोला--- "वैन के साथ चिपक जाओ। मैं बाहर आ रहा हूँ और तुम्हें कवर करूँगा।"
देवराज चौहान ने ऐसा ही किया।
रोमी वैन में आगे बढ़ा और किनारे पर आ खड़ा हुआ। वो कुछ झुका-झुका सा था। सन्नाटा-सा छा गया हर तरफ।
"एक कदम आगे और बढ़ो।" रोमी सतर्क स्वर में बोला।
देवराज चौहान एक कदम आगे और बढ़ा।
अगले ही पल रोमी कूदकर वैन से नीचे आ गया। गन की नाल देवराज चौहान की कमर पर लगा दी।
रोमी ने वैन की साइडों में छिपे खड़े अम्बा और सुदेश को देखा।
"मैं बाहर आ गया हूँ।" रोमी ऊँचे स्वर में बोला--- "अब तो तुम लोगों को विश्वास आ गया कि हम फायरिंग नहीं करेंगे...।"
खामोशी रही।
"जवाहर!" रोमी बोला--- "बाहर आ।"
"गड़बड़ हो जायेगी।" भीतर से जवाहर बोला--- "ये गोलियाँ चला...।"
"तो हमारे हाथ में भी गन है। तेरे बाहर निकले बिना, बात नहीं बनेगी।" रोमी ने कहा।
रोमी की सतर्क निगाह हर तरफ थी। देवराज चौहान की कमर से गन लगा रखी थी।
जवाहर गन थामें बाहर आ गया।
अब जवाहर के पास पूरा मौका था फायरिंग करने का, तो अन्यों के पास भी जवाहर पर फायरिंग करने का पूरा मौका था। परन्तु किसी ने किसी पर फायरिंग नहीं की।"हम वैन के आगे वाले हिस्से पर बैठने जा रहे हैं। तब तक तुम लोग यह बक्से वैन से बाहर गिरा लो।" रोमी बोला और देवराज चौहान से कह उठा--- "चलो, स्टेयरिंग सीट की तरफ चलो।"
देवराज चौहान गन के साए में धीरे-धीरे वैन के ड्राइविंग डोर की तरफ बढ़ने लगा।
लेकिन अगले पल जो हुआ, वो धूप में किसी तूफान उठने से कम नहीं था।
उसी पल वैन स्टार्ट हो गई।
ऐसा होते ही सब चौंके।
रोमी के कदम ठिठके। देवराज चौहान की कमर में गन की नाल और भी सख्ती से सटा दी।
"कौन है वैन के भीतर?" रोमी गुर्रा उठा।
"मैं नहीं जानता।" देवराज चौहान का स्वर सामान्य था।
जवाहर भी गन थामें सतर्क हो चुका था। उसके चेहरे पर कठोरता गई थी।
परन्तु इसके आगे किसी को कहने-सुनने का मौका नहीं मिला।
कोई वैन तक पहुँचकर यह भी नहीं देख सका कि वैन स्टार्ट किसने की?
स्टार्ट होने के साथ ही एकाएक गन से निकली गोली की तरह वैन आगे बढ़ी और भाग खड़ी हुई।
सब हक्के-बक्के रह गए।
"ये क्या हो रहा है?" रोमी चीखा।
"मैं नहीं जानता।" देवराज चौहान के होंठ भी भिंच चुके थे।
हड़बड़ाए से सब सामने खड़ी कारों की तरफ भागे कि वैन के पीछे जाया जा सके।
वहाँ सिर्फ रोमी, जवाहर और देवराज चौहान रह गए थे।
"गन हटा लो...।" देवराज चौहान ने नजरें दौड़ाते कठोर स्वर में कहा।
"ये क्या हो रहा है?" रोमी गुर्राया।
"तुम्हारी तरह मैं भी नहीं जानता कि...।"
"वैन कौन ले गया है?"
देवराज चौहान ने अपनी कमर से लगी गन की नाल को हाथ से पकड़ कर कमर से हटा दिया।
रोमी कसमसाया। उसने जवाहर को देखा।
वहाँ अजीब-सी भागा-दौड़ी मच चुकी थी।
"लगता है ये भी नहीं जानते कि वैन कौन ले गया है।" जवाहर रोमी से बोला।
तभी देवराज चौहान ने मलिक को देखा जो हांफता-भागता सा इधर ही आ रहा था।
"क्या बात है?" देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर पूछा।
"उन सब कारों के एक-एक पहिए की हवा निकली पड़ी है...।" कहकर मलिक भगता चला गया। वो सामने खड़ी उस कार की तरफ गया था, जिसकी हैडलाइट जल रही थी। भीतर बैठने से पहले उसने कार के पहियों पर नजर मारी।
इस कार के भी पीछे वाले पहिए की हवा निकल पड़ी थी। यानी कि वैन का पीछा करने के लिए, कोई वाहन नहीं था।
देवराज चौहान, जवाहर, रोमी की निगाह हर तरफ घूम रही थी। तभी मलिक गला फाड़कर चीखा---"मल्होत्रा! छाबड़ा की कार उधर खड़ी है...। उसे लेकर वैन के पीछे जा।"
ये सुनते ही मल्होत्रा और सुदेश उस तरफ दौड़े।
देवराज चौहान ने रोमी और जवाहर को देखकर कहा---
"तुम दोनों अब आजाद हो। जहाँ चाहो जा सकते हो।"
"लेकिन वैन कौन ले गया?" रोमी हड़बड़ाया-सा बोला।
"तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं। वैन बचकर नहीं जाने वाली। हम जल्दी ही उसे ढूंढ लेंगे।"
"निकल रोमी...।"
उसके बाद जवाहर और रोमी गनें थामें, वहाँ से भागते चले गए।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लिया। नजरें हर तरफ फिर रही थीं। चेहरे पर गम्भीरता थी।
तभी जगमोहन पास आता कह उठा---
"वैन कौन ले भागा? टिड्डा, शेख, पव्वा, प्रतापी कहाँ हैं?"
"वो पास ही कहीं पेड़ों पर से हमें देख रहे होंगे। उन्हें ऐसा करने को ही कह आया था।"
"वो ही...।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "उनमें से कोई कमीना, वैन ले भागा है।"
देवराज चौहान खामोश रहा।
"सालों की ये हिम्मत कि...।" जगमोहन कहते-कहते ठिठका। सामने से पव्वा और शेख आ रहे थे।
"टिड्डा और प्रतापी कहाँ हैं?" जगमोहन ने उन्हें देखते ही चीखा।
"मैं यहाँ हूँ...।" टिड्डे की आवाज आई।
जगमोहन पलटा तो टिड्डे को करीब आते पाया।
"प्रतापी कहाँ है?" जगमोहन का चेहरा खतरनाक हो उठा।
"वो रहा...।" एकाएक पव्वा बोला--- "वो आ रहा है।" जगमोहन और देवराज चौहान की नजर घूमी तो प्रतापी को पास आते पाया।
जगमोहन अचकचाया-सा प्रतापी को देखता रह गया।
"क्या हुआ?" पास आकर प्रतापी बोला--- "मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो?"
"मैंने तो सोचा था कि वैन तुम में से कोई ले उड़ा है।" जगमोहन कह उठा।
"इतने कमीने तो नहीं हैं हम।" पव्वे ने तीखे स्वर में कहा।
"लेकिन वैन को ले कौन---?" शेख ने कहना चाहा।
"मैंने उसे देखा है।" टिड्डे ने कहा--- "मैंने उसे वैन का दरवाजा खोलकर भीतर बैठते देखा था। तब मैंने सोचा कि वो इन्हीं लोगों में से कोई होगा। तुम सबका ध्यान वैन के पीछे की तरफ लगा हुआ था।"
"वो दिखने में कैसा था?" जगमोहन ने पूछा।
"पीठ की तरफ से ही वो दिखा था, वो भी कुछ पलों के लिए... चेहरा नहीं देखा।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान ने गम्भीर अंदाज में कश लिया।
तभी मलिक पास आ पहुँचा।
"ये सब क्या हो गया? वैन कौन ले गया?" मलिक लुटे-पिटे स्वर में बोला।
"तुम्हारे आदमी वैन के पीछे गए हैं?"
"गए तो हैं...।" मलिक ने थके स्वर में कहा।
"वो जो भी था, देर से इस मामले पर नजर रखे हुए था।" देवराज चौहान कह उठा--- "जब उन्हें मौका ठीक लगा तो वो वैन ले गया।"
"क्या वह अकेला होगा?"
"कह नहीं सकता।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"वो दोनों गनमैन कहाँ गए?" मलिक एकाएक कह उठा।
"वो चले गए। उनके यहाँ जरूरत नहीं थी।" देवराज चौहान ने कहा।
"ओह! फिर तो पुलिस यहाँ कभी भी पहुँच सकती...।"
"जादू नहीं है पुलिस के पास कि फौरन आ पहुँचेगी। जवाहर और रोमी को खबर देने में वक्त लगेगा। कम-से-कम आधा-पौन घंटा तो हम निश्चिंत होकर यहाँ रह सकते हैं। वैन किस तरफ गई है?"
"पता नहीं।" मलिक, देवराज चौहान से बोला--- "मैं तो अभी तक बौखलाया हुआ हूँ। पागल हो गया लगता हूँ...।"
"वैन के पीछे कौन गया है?" जगमोहन ने पूछा।
मल्होत्रा और सुदेश...।"
"यहाँ से चलने में उन्होंने देर कर दी थी।" जगमोहन होंठ भींचकर बोला।
"सब कारों के टायरों की हवा निकली पड़ी...।"
"वो जरूर दो हैं...।" देवराज चौहान ने कहा।
"दो?" जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
"हाँ। एक ने टायरों की हवा निकाली होगी, दूसरा वैन ले भागा...।"
"शायद इस बार वैन हमें ना मिल सके।" एकाएक टिड्डा दाँत भींचे कह उठा।
"क्यों?" जगमोहन ने उसे देखा।
"उसने, जो वैन ले भागा, वैन की हैडलाइट नहीं जलाई थीं। वैन का रंग भी अंधेरे में नजर आने वाला नहीं। यहाँ से सौ फीट दूर जाते ही समझो, वैन नजरों से ओझल हो गई। यहाँ से हमारे लोगों को वैन के पीछे जाने में देर लग गई थी।"
"साली अपनी किस्मत ही खराब है...।" पव्वा दाँत किटकिटा उठा।
"हिम्मत मत हारो।" शेख विचलित स्वर में बोला--- "वैन हमें मिल जाएगी।"
"वैन ले जाने वाला चालाक था।" प्रतापी ने कहा--- "किसी को उसने हवा भी नहीं लगने दी कि...।"
"यहाँ खड़े रहने से अच्छा है कि उसे ढूंढो...।" शेख ने कहा--- "शायद वो मिल...।"
"मल्होत्रा और सुदेश पीछे गए हैं। वो खाली हाथ लौटने वाले नहीं।" मलिक ने कहा।
देवराज चौहान उन सबके पास पीछे हट गया।
सबकी हालत ऐसी थी कि उन्हें सांप सूंघ गया हो।
परेशानी-बेचैनी... वैन के हाथ से निकल जाने का डर... उनके भीतर प्रवेश कर चुका था।
जगमोहन, देवराज चौहान के पास पहुँचा और व्याकुल-सा कह उठा---
"ये सब अचानक क्या हो गया?"
देवराज चौहान के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी।
"तुम मुस्कुरा रहे हो और यहाँ...?"जगमोहन ने कहना चाहा।
"सब्र से काम लो। अब हम कुछ नहीं कर सकते।" देवराज चौहान बोला।
"क्या हमें वैन के पीछे नहीं जाना चाहिए था?"
"कैसे जाते? सब कारें तो पंचर कर रखी हैं। छाबड़ा वाली एक कार सही थी, जिसे लेकर वो दोनों गए हैं।"
"वैन मिल जाएगी हमें?"
"रात का अंधेरा होने की वजह से वैन हमारे हाथों से दूर भी जा सकती है...। देखते हैं क्या होता है।"
आधे घंटे बाद मल्होत्रा और सुदेश हारे से लौटे।
"वैन नहीं मिली।" सुदेश ने कठोर स्वर में कहा।
ये सुनते ही सबके पैरों के नीचे जमीन खिसक उठी।
"नहीं मिली?" पव्वा चीखा--- "ये कैसे हो सकता है कि इतनी बड़ी वैन नजर न आये, जबकि ये खुला इलाका है?"
"अँधेरे की वजह से वैन नजर नहीं आई होगी।" शेख बोला।
"ये क्या मतलब हुआ?" टिड्डा झल्लाया--- "उसमें साठ करोड़ रुपया मौजूद था, वो...।"
"हम वैन ढूंढ लेंगे।" मलिक बोला--- "सब इसी इलाके में फैल जाओ। वैन यहाँ से...।"
"यहाँ से एक किलोमीटर दूर सड़क है।" सुदेश बोला--- "अब तक वो वैन सड़क पर पहुँचकर, जाने किस तरफ भाग गई होगी।"
किसी से कुछ कहते ना बना।
"हम वैन ढूंढेंगे।" मलिक दृढ़ स्वर में बोला--- "अगर वैन सड़क तक नहीं गई तो हम उसे ढूंढ लेंगे।"
"अब यहाँ वो ही रहे, जो पुलिस के हाथों पड़ना चाहता है।" देवराज चौहान ने कहा--- "उन गनमैनों को गए पौन घंटा हो चुका है, अगले आधे घंटे में ये सारा इलाका पुलिस से भरा होगा। जो पुलिस से बचना चाहता है, वो फौरन यहाँ से दूर हो जाए।"
"लेकिन हमारे पैसे का क्या होगा?" प्रतापी परेशान-सा कह उठा।
"जो होना था, हो चुका। पैसे को अब भूल जाओ। लालच में पड़े तो, पुलिस पकड़ लेगी।" देवराज चौहान ने सबको देखते हुए गम्भीर स्वर में कहा--- "चलो जगमोहन...। आओ सोहनलाल...।"
जगमोहन का चेहरा लटक गया।
देवराज चौहान आगे बढ़ गया। जगमोहन उसके पीछे था। सोहनलाल भी चल पड़ा साथ में।
"हमारे हाथ तो कुछ भी नहीं आया।" पव्वा पीछे से चीखा।
परन्तु देवराज चौहान और जगमोहन रुके नहीं।
"कार कहाँ है?" जगमोहन ने पूछा।
"उधर, कुछ दूर खड़ी कर रखी है।"
"60 करोड़ हाथ से गया?"
"हाँ... क्योंकि यहाँ पुलिस आने वाली है। हमारे पास इतना वक्त नहीं कि वैन को ढूंढ सकें।"
"बुरा हुआ।"
मलिक की निगाह सब पर जाने लगी।
सब परेशान लग रहे थे।
"देवराज चौहान चला गया। कमीने ने ये भी नहीं पूछा कि साथ जाना है कि नहीं...।" प्रतापी झल्लाया।
"उधर उसकी कार खड़ी है।" शेख बोला--- "वो नहीं जाएगा। मैं तो जाता हूँ।"
"मैं भी साथ चलता हूँ।" प्रतापी बोला।
पव्वे और टिड्डे की नजरें मिलीं।
"अब यहाँ से निकल जाना ही ठीक है...।" टिड्डा कह उठा।
"वैन ढूंढने का चांस नहीं लेगा?" पव्वे ने बेचैनी से कहा।
"मैं फँसना नहीं चाहता।" टिड्डे ने यहाँ से निकल जाने का फैसला ले लिया था।
"तो मैं भी तुम लोगों के साथ ही चलता हूँ...।"
टिड्डा, प्रतापी, शेख और पव्वा तेजी से पेड़ों के झुरमुट से बाहर निकलते चले गए।
"हम क्या करें?" अम्बा बोला।
"यहाँ से निकल चलो।" मलिक ने होंठ भींचे कहा।
"लेकिन हमारी कारों की हवा निकली पड़ी है...।"
"पंचर कारें ही ले भागो। पुलिस को हमारे बारे में किसी तरह की हवा नहीं मिलनी चाहिए...।"
"छाबड़ा और वधवा अपनी कार में बेहोश पड़े हैं।" मल्होत्रा बोला।
"उन्हें किसने बेहोश किया?"
"जो वैन ले भागे हैं, उन्होंने ही किया होगा।"
"उनकी कार मैं ले जाता हूँ। तुम बाकी तीनों कारें पंचर-पंचर ही दौड़ा लो। निकल चलो यहाँ से...।"
"हमारा काम तो अधूरा रह गया...।" जगदीश कह उठा।
""अपने को बचाओ इस वक्त...।"
उसके बाद भी सब वहाँ से निकलने की तैयारी करने लगे।
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