यहां अगर मैं यह लिखूं तब भी गलत नहीं होगा कि वह भले ही चाहे जितना कहती रहे कि वह जादूगरनी नहीं है लेकिन इस वक्त कमरे में मौजूद हर शख्स उसे ऐसी ही निगाहों से देख रहा था जैसी निगाहों से दर्शक स्टेज पर जादू दिखा रहे जादूगर को मन में यह भाव लिए देख रहे होते हैं कि - - - - देखें, इस बार वह क्या दिखाता है ?
कमरे का कोना-कोना छान रही विभा करीब पंद्रह मिनट बाद बगैर किसी की परवाह किए बैड के नीचे घुस गई और फिर वहीं से उसकी आवाज आई -- -- “मेरा अनुमान बिल्कुल ठीक निकला, वो चीज यहां है । अब सारे लिंक जुड़ गए । ”
कुछ भी न समझ पाने की अवस्था में हमारे दिल 'धाड़-धाड़' करके बज रहे थे। सभी यह जानना चाहते थे कि कमरे से उसे क्या मिल रहा है और वह किस घटना के लिंक जोड़ रही है ?
फिर वह महामाया बैड के नीचे से निकली और खड़ी होती हुई हम सबको एक सुईं दिखाती बोली ---- “ये है वो मर्डर वेपन जिससे रतन बिड़ला की हत्या की गई । ”
“र... रतन बिड़ला की हत्या ? ” हम सभी चौंके ।
“यह सुंईं जहरबुझी रही होगी। लाश का फोटो बता रहा था कि वह जहर से मरा था । किसी ऐसे जहर से जिससे उसने अपना दम घुटता महसूस किया । तभी तो उसके दोनों हाथ अपनी गर्दन पर थे। आंखे और जीभ बाहर | मुंह से झाग।"
“लेकिन विभा..
"मैं से यह बात जानने के लिए परेशान थी कि रतन की हत्या हुई तो कहां और कैसे हुई, अब जाकर पता लगा है।"
“क... कहां हुई ?”
“यहां । इसी कमरे में।"
“क... क्या बात कर रही हो ?”
“जब मैं कोई बात कहती हूं तो ठोक - बजाकर कहती हूं।"
“उस स्टूल के नीचे से तुम्हें ऐसा क्या मिल गया है कि..
“ये अंगूठी देखो।” उसने डायमंड की एक अंगूठी दिखाते हुए कहा ---- “ और रतन मर्डरकेस की फाइल में लगे उसके फोटो को याद करो वेद । उसके बाएं हाथ की तर्जनी में अंगूठी का निशान था मगर अंगूठी नहीं थी। मैंने उसी वक्त कहा था ---- इसकी अंगूठी कहां गई ।”
“लेकिन क्या जरूरी है कि ये वही अंगूठी है ?”
“वही है दोस्त... वही है । इतनी नजरें तो तुम्हारी दोस्त रखती है । वो निशान उसी वक्त से मेरे दिमाग में बसा हुआ है और मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यह उसमें फिट हो जाएगी ।”
मैं विभा की योग्यता पर शक नहीं कर सकता था ।
“इसका मतलब ये हुआ कि वह जगह ये है जहां से रतन की लाश को संजय कपाड़िया की इनोवा में डालकर, चांदनी को छंगा-भूरा के पास भेजा गया । ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि वह उस लाश की बरामदगी यहां से नहीं होने देना चाहता था । बहुत खूब ! वह ऐसा चाह भी कैसे सकता था! उसका अपना आऊट-हाऊस था ये । यहां से लाश बरामद होने का मतलब था ---- उसका पुलिस के चंगुल में फंस जाना । पर ये जगह तो धीरज के आऊट-हाऊस से बहुत दूर है। वहां से यहां का आना-जाना पौने घंटे में तो नहीं हो सकता । इसका मतलब सुधा झूठ बोल रही थी! या तो रमेश उस रात धीरज के आऊट हाऊस पर था ही नहीं या कम से कम दो घंटे के लिए गायब हुआ था। सारा बखेड़ा उसी बीच यहां हुआ । किसी वजह से रतन मरा। रमेश ने अपने आदमियों को फरीदाबाद फोन किया। चांदनी को मजबूर किया । पर चांदनी यहां क्या कर रही थी? रतन क्यों मरा ? बहुत से बंध खुल रहे हैं मराठा, मेरे दिमाग बहुत से बंध खुल रहे हैं लेकिन उतनी ही गांठें भी पड़ती जा रही हैं मामले में । अब जो मेरे दिमाग में सवाल घुमड़ रहे हैं उनके जवाब केवल तीन व्यक्ति दे सकते हैं । अशोक, धीरज और मंजू ।”
मैं खासतौर पर अपने जिस्म में रोमांच की तीव्र लहर को गर्दिश करता महसूस कर रहा था । जानता जो था कि विभा जिंदल यदि इतनी उत्साहित है तो कुछ न कुछ दाल-दलिया निकलने वाला है ।
अब तो हमें उन तीनों का इंतजार था जिनके उसने नाम लिए थे और फिर पता लगा ---- उनमें से दो पहुंच चुके हैं
“पौने घंटे के लिए ? ” धीरज सिंहानिया चौंका ---- “नहीं, अगर सुधा ने ऐसा कहा था तो गलत कहा था । रमेश गेट-टूगेदर से पौने घंटे के लिए नहीं बल्कि ढाई घंटे के लिए गायब हुआ था ।
“तुम्हें अच्छी तरह याद है ? "
“मैंने घड़ी देखी थी । ग्यारह बजे का गया वह, डेढ़ बजे लौटा था। इस बात पर तो हम सब नाराज भी हुए थे और सबसे ज्यादा सुधा ही नाराज हुई थी। उसने कहा था कि अगर उसे इतनी देर के लिए ही जाना था तो गेट-टूगेदर में आने की जरूरत ही क्या थी ? झगड़ा होने लगा था उनमें। मैंने, किरन ने और अशोक ने उसे शांत किया ।”
“रमेश का कहना क्या था ? "
“वह सुधा को समझाने की कोशिश कर रहा था कि फैक्ट्री में आई प्रॉब्लम बड़ी थी। माल रातों-रात तैयार होकर सुबह डिस्पेच होना था। ऐसा न होने पर लाखों का नुकसान हो जाता । वह मशीन को दोबारा चालू कराने के बाद ही आया है।"
उसे बहुत गहरी नजरों से देखती विभा ने कहा ---- “तुम्हारे कथन की पुष्टि करने के लिए किरन और सुधा तो अब हैं नहीं !”
“अशोक तो है ?”
“वह पुष्टि करेगा ?”
“क्यों नहीं?”
“सुन रहे हैं भंसाली साहब !” विभा ने वहीं खड़े भैरोसिंह भंसाली से कहा- -“मैंने सुधा पर सच बोलने के लिए कितना दबाव डाला था ! वह नहीं मानी । अब धीरज खुद कह रहा है कि उसने झूठ बोला था | क्या आप बता सकते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया?”
“अब जब हमें इस बारे में कुछ पता ही नहीं तो क्या कह सकते हैं ?” उनके लहजे से लाचारी टपक रही थी ।
“तुम?” विभा पुनः धीरज से मुखातिब हुई ।
“म... मैं |” वह बौखलाया ---- “मैं क्या कह सकता हूं?”
“ सुधा ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला ?”
“एक ही वजह हो सकती है।" धीरज सिंहानिया इस तरह बोला जैसे अनुमान बता रहा हो ---- “बाद में, घर जाकर सुधा और रमेश के बीच उसके पार्टी के गायब होने पर फिर झगड़ा हुआ क्योंकि जाते वक्त तक भी सुधा का मूड ठीक नहीं था। और तब, रमेश ने उसे अपने उस गुनाह के बारे में बता दिया हो जिसके बारे में आपका दावा है कि उसने किया था । उस अवस्था में एक पत्नी क्या करेगी ! पति से भले ही चाहे जितनी शिकायत हो लेकिन पुलिस से तो बचाने की कोशिश ही करेगी न !”
" इस बारे में रमेश या सुधा ने तुमसे कभी कोई बात नहीं की ?”
“कभी नहीं ।”
“ रमेश और चांदनी के संबंध कैसे थे ?”
“बता ही चुका हूं ---- उनका तो परिचय ही मैंने कराया था। ”
“लेकिन उस रात, एक तरफ चांदनी अशोक से झूठ बोलकर तुम्हारे यहां नहीं पहुंची। दूसरी तरफ, रमेश ढाई घंटे के लिए गायब हो गया और फिर यह भी साबित है कि दोनों मिले। वो भी यहां ।” “जैसे संबंधों की तरफ आप इशारा कर रही हैं, मैं सोच भी नहीं सकता कि उनके बीच वैसे कोई संबंध हो सकते हैं।"
“नहीं, मैं वैसे संबंधों की तरफ इशारा नहीं कर रही । वैसे संबंध होते तो रमेश को उसे मजबूर करने के लिए उसके पिता को किडनेप कराने की जरूरत नहीं पड़ती मगर, कुछ न कुछ खिचड़ी तो जरूर पक रही थी उनके बीच । तभी तो दोनों झूठ बोलकर यहां मिले ?”
“मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता।”
“ और इस बारे में कि रतन और रमेश के बीच ऐसा क्या हुआ होगा जिस वजह से उसे रतन की हत्या करनी पड़ी ?”
“जब मुझे रमेश और रतन के संबंधों के बारे में कुछ पता ही नहीं है तो इस बारे में क्या कह सकता हूं?”
“उस कमरे में पड़े लेडीज कपड़ों के बारे में कुछ कह सकते हो ?”
“ मैं आपसे वही कहने वाला था, वे कपड़े किरन के हैं।”
“और तुम ?” एकाएक वह मंजू की तरफ मुखातिब हुई -- “तुम्हें क्या कहना है? तुम्हारे पतिदेव की लाश यहां कैसे पहुंच गई?”
“ये मायके गई हुई थी ।” उसकी बगल में खड़े धनजय कपाड़िया ने बताया ---- “मराठा का फोन जाने पर वहीं से लेकर आया हूं।"
“तो आप बता दीजिए।"
“मेरी नॉलिज के मुताबिक तो संजय अपने कमरे में सो रहा था । मराठा का फोन पहुंचा तो पता लगा कि वह वहां नहीं था।”
“ यानी नहीं पता वह रात किस वक्त से कमरे में नहीं है ?”
“नहीं।”
एकाएक विभा फिर मंजू से मुखातिब हुई ---- “क्या तुम रमेश या सुधा भंसाली से परिचित थीं?”
“न... नहीं।”
“बिल्कुल नहीं?”
“जी नहीं।”
“कभी नाम भी नहीं सुना था उनका ?”
“नहीं।”
“ अपने पति की लाश देख चुकी हो न !”
“जी।” उसकी आंखें भर आईं ।
“ अभी तो खैर वे अलग-अलग पड़ी हैं। हमने किया है वैसा । असली सीन ये था ।” कहने के साथ विभा ने उसकी आंखों के सामने वह फोटो लहराया जिसमें संजय और सुधा की लाशें एक-दूसरे की बांहों में थीं। उसे देखती हुई मंजू की आंखों से आंसू बहने लगे। उसे ध्यान से देख रही विभा ने कहा ---- “इनके संबंध यहां तक थे और तुम कह रही हो कि भंसाली का नाम तक नहीं सुना ! "
“म... मैं इस बारे में क्या कह सकती हूं?” कहने के साथ वह फफक-फफककर रो पड़ी । धनजय कपाड़िया के सीने में चेहरा छुपा लिया उसने। खुद धनजय की आंखों में भी आंसू उमड़ आए थे। वे मंजू को अपनी बांहों में समेटते बोले ---- “विभा जी, आप इस बच्ची को यह सब दिखाकर अच्छा नहीं कर रही हैं । ”
“ठीक बात है।” विभा ने कहा- -“अच्छा तो मुझे भी नहीं लग रहा। मगर सच्चाई तक पहुंचने के लिए हमें वह भी करना पड़ता है जो बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा होता । और फिर, आप उसके बाप और ये उसकी पत्नी है। उसकी करतूतों के कुछ छीटें तो आप पर पड़ेंगे ही। उनसे न आप बच सकते हैं, न ये । आपको अच्छी तरह याद होगा ---- उस दिन कितना कहा था मैंने उससे कि सच्चाई बता दे । यदि बता दी होती तो शायद आज यह दिन देखना न पड़ता | बुरा मत मानिएगा, उस दिन तो आप भी उसी का साथ देते नजर आ रहे थे ।”
“ उस दिन के सवालों का आज की घटना से क्या संबंध हुआ ?”
“ये संबंधों का ही तो झमेला है जिनकी वजह से ये सब हो रहा है। पता नहीं क्यों ये लोग अपने संबंधों को छुपा रहे हैं। मैंने कितना पूछ कि दस दिसंबर की रात को ये लोग कहां थे ! यह बात उसके मुंह से उगलवाने की कितनी कोशिश की कि इनोवा गुलमोहर की पार्किंग से चोरी नहीं हुई मगर वह नहीं हांगा । ”
“इस बारे में तो इसका कहना भी वही है जो संजय ने कहा था।” धनजय ने लगातार सिसक रही मंजू की तरफ इशारा किया।
“मतलब?”
“ हमें भी शक हुआ था कि संजय कहीं आपसे झूठ तो नहीं बोल रहा है! इसलिए, आपके जाते ही अकेले में इससे बात की। पूछा कि उस रात ये लोग कहां-कहां गए थे। इसके जवाब भी सेम वही थे जो संजय ने आपसे कहे थे। यह कि..
“यह भी झूठ बोल रही थी ।”
“नहीं विभा जी।” एकाएक मंजू अपना आंसुओं से तर चेहरा धनजय के सीने से निकालकर उसकी तरफ देखती बोली---- “यह सच है। हमारी गाड़ी गुलमोहर से ही चोरी हुई थी।”
“तुम अब भी झूठ बोल रही हो ।” एकाएक विभा ने भैरोसिंह भंसाली की तरफ देखते हुए कहा---- “मैंने आपसे भी यही कहा था न भंसाली साहब कि आपकी बहू झूठ बोल रही है और उसका अंजाम उसे भुगतना होगा ! अंजाम उस कमरे में पड़ा है। उसकी लाश उसकी बांहों में पाई गई है जिसे बकौल अपने वह जानती तक नहीं थी । और अब वही बात मैं आपसे कह रही हूं कपाड़िया साहब, आपकी बहू भी झूठ बोल रही है। भगवान न करे इसका अंजाम भी ऐसा ही हो ।”
विभा की इस बात के बाद वहां सन्नाटा छा गया मगर विभा ने उस सन्नाटे की अवधि ज्यादा नहीं बढ़ने दी । मंजू के दिमाग पर वार किया उसने ---- “तुम सुन रही हो न मंजू? अगर तुमने सच नही बोला तो तुम्हारा अंजाम भी सुधा जैसा ही हो सकता है । मुझे लगता है कि तुम्हारे ग्रुप का हर झूठ बोलने वाला शख्स हत्यारे के निशाने पर है ।"
“म... मैं झूठ नहीं बोल रही ।”
“उफ्फ्!” मैंने पहली बार विभा को झल्लाते देखा ----“मेरी समझ में नहीं आ रहा कि वह सच आखिर कितना बड़ा है जिसके लिए तुम लोग अपनी जान तो दे सकते हो लेकिन उसे खुलने नहीं दे सकते।”
“कुछ पता तो लगे।” धीरज सिंहानिया ने कहा-----“किस सच की तरफ इशारा कर रही हैं आप?”
“सच को जिस दिन तुम लोग कबूल कर लोगे उस दिन शायद ये हत्याएं होनी रुक जाएंगी मगर इस गलतफहमी में मत रहना कि तुम कबूल नहीं करोगे तो सच्चाई कभी सामने आएगी ही नहीं । मेरा नाम विभा जिंदल है । मैं जिस मामले के पीछे पड़ जाती हूं उसकी धज्जियां उड़ाकर रख देती हूं और इस मामले की धज्जियां उड़ाने में भी अब मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।”
एक बार फिर वहां सन्नाटा छा गया ।
एक बार फिर सन्नाटे को विभा जिंदल ने ही तोड़ा। उसने मराठा से कहा था- “मुझे यहां के नौकरों के बयान लेने हैं मराठा ।”
“ले चुका हूं विभा जी ।”
“क्या कहते हैं?”
गोपाल मराठा ने बताया ---- "रमेश ने यहां के सभी नौकरों को
दस दिसंबर की रात के लिए छुट्टी दे दी थी ।”
विभा की आंखें सुकड़ती चली गईं ।
‘क्यों’ ‘किवो’ ‘अ‘ठ’ 'यां' 'द' और 'ब' ।” शगुन ने ये अक्षर एक कागज पर लिखे तो मैं भी दिमाग भिड़ाने लगा जबकि विभा के होठों पर हमें वैसा करते देखकर मुस्कान दौड़ गई थी ।
बोली----“किस तिगड़म में लगे हो बाप-बेटे ?”
“आप तो कुछ बताने को तैयार हैं नहीं आंटी, सोच रहा हूं मैं ही समझने की कोशिश करूं कि इन अक्षरों का आखिर मतलब क्या है?"
“जरूर...जरूर।” उसने कहा ---- “लगे रहो । ऐसी कोशिशें करते रहना चाहिए। दिमाग पैना होता है। मेरी शुभकामनाएं ।”
“विभा प्लीज, कुछ बताओ तो यार !”
“क्या बताऊं?"
“तुमने कहा था कि अगर हत्यारा अगली हत्या करने में सफल हुआ तो वह उसके पेट पर 'ल' लिखेगा । कहा था न !”
“सोलह आने ।”
“किस बेस पर कहा था ? "
“ अब क्या बताऊं?”
“कोई सिक्वेंस बनता होगा?”
“बनता भी होगा तो तुमसे नहीं बनेगा ।”
“वो क्यों?”
“क्योंकि तुम्हारे इस राजकुमार ने वही सिक्वेंस ठीक नहीं लिखा है जो अब तक बना है। आगे की तो बात ही बहुत दूर है ।”
“क्यों? इस सिक्वेंस में क्या गड़बड़ है ?”
“ 'किवो' के बाद 'ठ' आएगा मियां, जबकि इन महाशय ने 'अ' लिख रखा है। 'अ' 'ठ' के बाद आएगा ।"
“ऐसा क्यों?”
“क्योंकि चांदनी की लाश भले ही बाद में मिली हो लेकिन तीसरे नंबर पर मरी वहीं थी और उस पर 'ठ' लिखा था । रमेश की लाश पहले मिलने के बावजूद हत्यारे के एंगिल से उसकी हत्या चौथी थी। इस लिहाज से चौथा अक्षर 'अ' हुआ।"
“ बात में दम है !”
“ मैं हमेशा ही दमदार बात कहती हूं ।”
“चल प्यारे।” मैंने शगुन से कहा - - - - "इस महामाया के कहने से 'ठ' और 'अ' का क्रम दुरुस्त कर । "
“ उससे पहले एक बात और सुन लो, वरना बाद में दुखी करोगे।”
“ उसे भी सुनाओ।”
“द' और 'ब' भी गलत क्रम पर लिखे हैं । लगे हाथों उन्हें भी ठीक कर लो । पहले 'ब' आएगा । उसके बाद 'द' ।”
“इस हेराफेरी का लॉजिक?”
“मैं समझ गया ।” शगुन तपाक से बोला ।
“लो।” विभा ने मेरी गुद्दी पर चपत-सी लगाई- “तुमसे आगे तो पुत्तर ही निकल गया तुम्हारा, अब बोलो क्या कहते हो ?”
“क्या कहूं?” मैं चिड़ गया ---- “पुत्तर आगे नहीं निकलेगा तो क्या तुम निकलोगी? जरा-सा भाव क्या दे दिया पट्ठी उड़ने ही लगी !”
““ब' पहले इसलिए आएगा क्योंकि पहले संजय की हत्या हुई । 'ब' उसी की लाश पर लिखा था । 'द' सुधा की लाश पर था ।”
“अबे घोंचू ।” मैंने कहा---- -“तुझे क्या ख्वाब आया था कि पहले संजय की हत्या हुई ? या सुरमेदानी बनकर हत्यारे की आंखों में घुसकर उसके साथ घूम रहा था ? हमें दोनों के पार्थिव शरीर एकसाथ देखने को मिले । फिर कोई कैसे जान सकता है कि उसने पहले संजय कपाड़िया को मारा या सुधा भंसाली को ?”
“संजय के कपड़े वहीं से मिले जबकि सुधा के कपड़े गायब थे ।
जिन्हें शुरू में सुधा के समझा जा रहा था वे किरन के कपड़े थे।"
“अब ये कपड़ा संगीत कहां से बजाने लगा तू ?”
“सिक्वेंस के मुतबिक हत्यारा ताजा शिकार के कपड़े अगले शिकार के पास छोड़ता है। सुधा के कपड़े वहां नहीं थे अर्थात् उन्हें वह अगले शिकार के पास छोड़ने की मंशा से साथ ले गया है जबकि संजय के कपड़े वहीं थे। यानी उन दोनों में संजय शिकार नंबर एक था । सुधा शिकार नंबर दो । दो अगर संजय होता तो उसके कपड़े गायब होते । कपड़ों की इस हेराफेरी से सीधा-सीधा सिक्वेंस ये बनता है कि किरन के कपड़े उससे अगले शिकार संजय के पास छोड़े। संजय के कपड़े उससे अगले शिकार सुधा की लाश के पास, जो कि वहीं थी। यानी उन कपड़ों को उसे कहीं और ले जाने की जरूरत नहीं थी । ”
“जियो मेरे लाल । इसे कहते हैं बुद्धि ।” कहने के साथ विभा ने दोनों हाथों से शगुन का सिर पकड़ा और उसका माथा चूम लिया।
बात मेरी समझ में भी आ गई थी ।
“तो अब क्रम यूं बना।" कहने के बाद एक बार फिर शगुन कागज पर नए सिरे से लिखने लगा----““क्यों' 'किवो' 'ठ'अ''यां' 'ब' और 'द' ।”
“क्रम ठीक करा दिया है, अब इससे ज्यादा मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती।” कहने के साथ विभा उठकर खड़ी हो गई - - - - “ दोनों दिमाग भिड़ाते रहो। मैं चली सोने ।”
“अरे! अभी से?” मैंने रिस्टवॉच देखी----“अभी तो नौ बजे हैं ।"
“कई रातों से हत्यारे ने सोने का टाइम नहीं दिया, नींद आ रही है।" उसने अंगड़ाई - सी लेकर कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
“अरे सुनो तो यार, विभा।" मैंने उसे आवाज लगाई----“हम दोनों अकेले इस झमेले को हल नहीं कर सकेंगे ।”
“तुमसे बड़ा गधा मैंने कभी नहीं देखा। दोनों भी कहते हो और अकेले भी कहते हो। बॉय । मैं चली । ”
“चल यार, एक काम तो तू कर ही ले लगे हाथों ।” मैंने शगुन से कहा ---- “इस लाइन में अगला अक्षर 'ल' बढ़ा ले । इस जादूगरनी ने कहा है कि अगले वाले पर 'ल' लिखा होगा तो लिखा ही होगा। हो सकता है उसी से कुछ 'लय' बन जाए ।”
शगुन कागज पर 'ल' लिखने के लिए झुका ही था कि कमरे की बैल बजी। हम दोनों का ध्यान दरवाजे की तरफ गया । विभा तो तब तक हमारे सुईट के बंद दरवाजे तक पहुंच ही चुकी थी ।
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