वो पांच थे।


देवराज चौहान, जगमोहन, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव और कर्मपाल सिंह।


कर्मपाल सिंह कार ड्राइव कर रहा था। बांकेलाल राठौर बार-बार मूंछ के कोने को मरोड़ने लगता । रुस्तम राव शांत सा बैठा था। जगमोहन के होंठ भिंचे हुए थे और रह-रहकर वो बेचैनी से पहलू बदलने लगता। देवराज चौहान का चेहरा सपाट नज़र आ रहा था, परंतु आंखों में कठोरता थी।


इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि वो सब हथियारबंद थे। दिन के दस बज रहे थे।


कार तेज रफ्तार पर थी।


देर हो जाने की वजह कर्मपाल सिंह ही था, जिस तक बांकेलाल राठौर का मैसेज देर से पहुंचा। क्योंकि वह खास जगह व्यस्त था। उसके आते ही सब कार में बैठे और कर्मपाल सिंह ने कार को उधर की तरफ दौड़ा दिया, जिधर बंगाली के ठिकाने पर मोना चौधरी मौजूद थी।


"मोना चौधरी वहां पर न हुई। उसने ठिकाना बदल लिया हो तो?" जगमोहन ने बेचैनी से पूछा।


"वो वहीं होगी।" कर्मपाल सिंह शब्दों पर जोर देकर कह उठा- "मेरी निगाहों में अभी तक ऐसी कोई वजह पैदा नहीं हुई कि वो अपना ठिकाना बदल ले।"


जगमोहन को बात जंची। 


"वहां पर बंगाली के कितने आदमी मौजूद हो सकते हैं?" जगमोहन ने पूछा।


"कह नहीं सकता। " कर्मपाल सिंह ने जवाब दिया। 


"वहां एक दो से ज्यादा आदमी नहीं होंगे।" देवराज चौहान बोला।


"वो कैसे?"


"मोना चौधरी, बंगाली के आदमियों की फौज साथ नहीं रखेगी। " देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा।


"देवराज चौहान ठीक बोलता है बाप।" रुस्तम राव ने सिर

हिलाया। 


"ईब तो मोना चौधरी को 'वड' के रख दा गां।" बांकेलाल राठौर की आवाज में खतरनाक भाव थे।


करीब पैंतालीस मिनट के बाद कर्मपाल सिंह ने एक कालोनी के बीच सड़क के किनारे कार रोकी और ईजन बंद कर दिया।


“या काये को रुको हो कर्मे?"


"बांके। कुछ आगे वो मकान है, जहां मोना चौधरी मौजूद है।"


कर्मपाल सिंह ने गंभीर स्वर में कहा।


"तबो तो बढ़िया बात हो गयो।


सब कार से बाहर निकले। 


"बाप" रुस्तम राव ने आगे जाती मकानों की कतार को देखा-"किघर को होएला वो मकान ?"


"कुछ आगे।" कर्मपाल सिंह ने कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर को देखा "बांके, यहां से आगे मैं तुम लोगों के साथ नहीं जा सकूंगा। वो ठिकाना बंगाली के हिस्से में आया है। मैं साथ रहा और उसे मालूम पड़ गया तो उसके और मेरे बीच दुश्मनी पैदा हो जाएगी।"


"अंम को थारी जरूरत भी न हौवे। अंम पैले ही ज्यादा हौवे। वो मकान बता किधर हौवे । "


"बताता हूं। पहले उस मकान का नक्शा सुन लो। ताकि भीतर जाने में आसानी हो। " 


कहने के साथ ही कर्मपाल सिंह ने उस मकान का नक्शा समझाया जहां मोना चौधरी मौजूद थी। 


"समझो। ईब तू म्हारें को मकान के बारों में बतायो के ना?" बांकेलाल राठौर का स्वर उखड़ा । 


"मकानो की इसी लाइन में पच्चीस-तीस मकान छोड़कर पीले रंग का बझ-सा गेट नजर आएगा। वो...।" 


"मकान का नंबर भी हौवे के न हौवे?" 


"पंद्रह नंबर। "


"ठीको। तम येई पे खड़ो रहो। अंम अभ्भी। 'वड' के आयो।" 


वे चारों आगे बढ़ गए


“रात भर मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ जागते रहे हैं। इस वक्त वो थके हुए, आराम कर रहे होंगे। "देवराज चौहान की आवाज में खतरनाक भाव थे— "इस बात का हमें फायदा होगा। वो इतने सतर्क नहीं होंगे, जितने कि अक्सर होते होंगे। "


***


पाली रात भर सोया था, इसलिए सुबह सात बजे जब उठा तो पूरी तरह फ्रेश था। हर बीतते दिन के साथ, उसके कंधे का जख्म ठीक होता जा रहा था।


पारसनाथ और महाजन गहरी नींद में डूब चुके थे। बंगाली भी वहीं सो गया था।


मोना चौधरी भी नींद के लिए बैड पर लेटी थी। परंतु दो घंटे नींद लेने के बाद आंख खुल गई थी। मस्तिष्क में एक ही नाम था देवराज चौहान। जो के हाथ आकर भी बच निकला था। यही बात जेहन में थी, इसी वजह से दो घंटे से ज्यादा नींद न ले पाई थी।


घूम रही दो घंटे की नींद लेकर, आंखों और मस्तिष्क को कुछ तो चैन मिला था। वह उठ बैठी और सोचो में सिर्फ यही बात थी कि देवराज चौहान को किस तरह इस बात का एहसास दिलाए कि वो उससे ज्यादा नहीं है दमखम वाला फिर उसे खत्म कर दे। वो जब भी उसके रास्ते में आता था, तब तब ही जीत-हार का मसला अधूरा रह जाता था। पहली बार जब 'अमित' को लेकर दोनों आमने-सामने खड़े हुए थे, तो भी अमित का मामला एक तरफ होकर, उन दोनों का जाती मामला बन गया था और अब भी कर्मपाल सिंह और बंगाली की काली फाइल की खींचातानी को उन्होंने अपना जाती मामला बना लिया था और बात अब बढ़ते-बढ़ते बढ़ गई थी। 'अमित' के बारे में जानने के लिए पढ़े पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास हमला एवं जालिम ।


मोना चौधरी, पाली के पास पहुंची।


पाली मुस्कराया। 


"रात को तुम लोगों की वापसी बहुत देर से हुई। " वो बोला।


"हां।"


"दवा लेकर मैं सोया था। इसलिए तुम लोगों के आने पर आंख नहीं खुली। " पाली ने कहा- "खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं है। नाश्ता भी नहीं मिला। "


“आज बंगाली का कोई आदमी नहीं आया, नाश्ता बनाने के लिए। " मोना चौधरी शांत थी।


"बाकी सब कहां हैं?"


"नींद ले रहे हैं। मैं चाय बनाने जा रही हूं। पीनी है तो बता दो। "


"हां। पी लूंगा। "पाली ने मोना चौधरी को देखा— "लेकिन तुम लोग लौटे कब ?"


"दिन निकलने पर। ""


"ओह, मतलब कि रात भर किसी खास काम में व्यस्त रहे।" पाली के होंठों से निकला।


"ऐसा ही समझो। "


"क्या किया रात को ?" 


'तुम्हारे जानने वाली कोई बात नहीं है। "मोना चौधरी बरबस ही मुस्कराई।


"माना। लेकिन बताने ने कोई हर्ज न हो तो बता दो। "


क्षणिक चुप्पी के बाद मोना चौधरी ने बीती रात की सारी बातें. पाली को बताई।


सुनकर पाली गंभीर हो गया।


"हालातों ने बहुत खतरनाक रुख ले लिया है। " पाली बोला- "मुझे तो मालूम ही नहीं था कि जहां तुम मुझे ले जा रही हो, वो शंकर भाई का बंगला है। मालूम होता तो तुम्हें अच्छी तरह समझा देता कि शंकर भाई कितना ज्यादा डेंजरस आदमी है। तुम उसके ढेर सारे गनमैनों को मार चुकी हो, वो ये बात भूलेगा नहीं और तुम्हें छोड़ने वाला नहीं। उसके आदमी यकीनन इस वक्त भी तुम्हें ढूंढ रहे होंगे। "


मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी। "दूसरी तरफ देवराज चौहान है जो कि अकेला होते हुए भी किसी तरफ से शंकर भाई से कम दम नहीं रखता। माना कि तुम भी हस्ती  हो, लेकिन दोनों को एक साथ दुश्मन बनाकर, पूरा सौदा नुकसान का ही है।"


मोना चौधरी के होंठों पर छाई मुस्कान, जहरीलेपन में बदल गई। 


"चिंता मत करो। मैं दोनों को संभाल लूंगी।" मोना चौधरी की आवाज में खतरनाक भाव उभरे।


पाली, कई पलों तक मोना चौधरी को देखता रहा।


"उस रात, जब हमने शंकर भाई के बंगले में प्रवेश किया था पाली की आवाज में बेचैनी आ गई——"तो मेरी जेब में तब एक पर्स था, जो कि अब नहीं है। मेरा ख्याल है कि वो पर्स शंकर भाई के यहां ही गिरा है और उसमें मेरा ड्राइविंग लायसेंस है। जिसमें मेरी तस्वीर और मेरा पता है। ऐसे में शंकर भाई को मालूम हो गया होगा कि मैं भी उसके बंगले में आया था। वो मुझे भी ढूंढ रहा हो सकता है। तुम कहती हो कि दोनों को संभाल लोगी। माना, लेकिन मैं शंकर भाई जैसे इंसान से नहीं बचा रह सकता।"


"मौका लगा तो शंकर भाई को साफ करके, तुम्हारे सिर से खतरा हटा दूंगी।"


पाली ने अजीब सी निगाहों से, मोना चौधरी को देखा। "शंकर भाई को खत्म करने की सोचना भी पागलपन होगा। उसे...।"


"जब वो मेरे सामने आया तो आसानी से खत्म हो जाएगा। अगर उसके आदमियों ने बार-बार मेरा रास्ता रोकने की चेष्टा की तो मैं शंकर भाई के पास पहुंचकर उसे खत्म करने का दम रखती हूं। इस बारे में तुम फिक्र करना छोड़ दो।" मोना चौधरी की आवाज में क्रूरता आ गई— "मेरे लिए ये मसले रोज के हैं। जिंदगी भर के हैं। इन रास्तों को तय करते हुए ही मेरी जिंदगी निकल रही है। लेकिन मेरे लिए शंकर भाई से ज्यादा महत्वपूर्ण देवराज चौहान है। उसे शिकस्त देकर इस बात का एहसास कराना जरूरी है कि वो मुझसे नहीं जीत सकता और वो शिकस्त बेशक मौत के रूप में ही क्यों न हों।"


पाली, मोना चौधरी के दरिंदगी से भरे चेहरे को देखने लगा। "देवराज चौहान से तुम्हारी कोई जाती दुश्मनी है ?"


"नहीं।" 


"तो फिर उसे शिकस्त देना, तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है?" 


"इसलिए कि मेरा टकराव आज तक जिससे हुआ, हाथों हाथ हार-जीत का फैसला हो गया। लेकिन देवराज चौहान से ऐसा नहीं हो सका। या फिर यूं समझ लो कि वो मेरे हाथ के नीचे नहीं आ सका। एक बार पहले वो मेरे मुकाबले पर आया था, लेकिन हम दोनों में फैसला नहीं हो सका और अब दूसरी बार देवराज चौहान मेरे सामने है और इस वक्त का मुझे कब से इंतजार था। मुझे पूरा यकीन है कि इस बार में देवराज चौहान को पार कर जाऊंगी।" पाली की गंभीर निगाह मोना चौधरी पर थी।


“हो सकता है वो तुम्हें पार कर ले।" पाली बोला।


"कोई फर्क नहीं पड़ता।" मोना चौधरी के दांत भिंच गए—"बात तो किनारे लगेगी कि कौन दम ज्यादा रखता है।" 


पाली अजीब सी निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा।


"अगर तुम देवराज चौहान के हाथों हार गई तो तुम्हें दुख नहीं होगा कि "


'दुख क्यों होगा। एक ने तो हारना ही है और मैं चाहती हूं यह काम फौरन हो जाए। किसी काम में ज्यादा वक्त खराब करना मेरी आदत नहीं।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।


पाली हौले से मुस्करा पड़ा।


"बहुत अजीब आदत है तुम्हारी। तुम फौरन फैसला चाहती हो। बेशक वो जीत में हो या हार में।"


मोना चौधरी चाय बनाने के लिए किचन की तरफ बढ़ गई।


पाली बैंड से उठा और हाथ-मुंह धोने के लिए बाथरूम की तरफ बढ़ गया। घायल कंधे वाला हाथ गले में बंधी लटक रही पट्टी के बीच फंसा था।


***


मोना चौधरी चाय गिलासों में डाल कर हटी ही थी कि मात्र एक क्षण के लिए वो जड़ होकर रह गई। निगाहें किचन की खिड़की पर लगी ग्रिल में से गुजरती बाहरी गेट पर जा टिकी, जहां उसे देवराज चौहान, जगमोहन, बांकेलाल राठौर, रुस्तम राव एकाएक नजर आए।


मोना चौधरी के देखते ही देखते उन्होंने बंद गेट को धक्का दिया। जो कि भीतर से बंद था। नहीं खुला। उसके देखते ही देखते देवराज चौहान ने गेट की ग्रिल में हाथ डाला और भीतर लगी गेट की सिटकनी को तलाश करने लगा ताकि गेट खोल सके।


मोना चौधरी ने सिर पर मंडराते खतरे को फौरन महसूस किया। वो जानती थी कि अगर ये चारों भीतर आ गए तो वे भीतर बंद होकर, ज्यादा देर इनका मुकाबला नहीं कर सकेंगे। मोना चौधरी ने फुर्ती के साथ कपड़ों में से रिवॉल्वर निकाला और उसकी नाल खिड़की की ग्रिल से बाहर निकालकर ट्रेगर दबा दिया। धमाके की तीव्र आवाज गूंजी।


गोली ने गेट से टकरा कर तीव्र आवाज की।


इस फायर का नतीजा यह निकला कि गेट पर नजर आ रहे ये चारों तुरंत इधर उधर हो गए। मोना चौधरी भिंचे दांतों से गेट को ही देखती रही।


फायर की आवाज सुनकर पारसनाथ, महाजन और पाली किचन में आ पहुंचे।


"क्या हुआ?" महाजन की आंखें नींद से भरी हुई थीं। 


मोना चौधरी की निगाह एकटक खिड़की से होती बाहरी गेट पर थी।


"गेट पर देवराज चौहान, जगमोहन, बांके और रुस्तम राव है।" मोना चौधरी की आवाज में खूंखारता भरी हुई थी— "उनको मालूम हो चुका है कि हम यहां हैं।


"उनको कैसे मालूम हो सकता है। " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।


बंगाली भीतर प्रवेश करते हुए बोला।


"कर्मपाल सिंह ने बताया होगा। हम दोनों पहले साथ काम करते थे और एक-दूसरे की हरकतों से बाखूबी वाकिफ रहे हैं। उसने मालूम कर लिया होगा कि तुम लोग यहां हो। "


दो पलों के लिए वहां खतरनाक खामोशी रही।


"वो यहां तक आ गए हैं तो हर हाल में हमें घेरेंगे और हम घर के भीतर हैं। हमारे पास करने को कुछ खास नहीं होगा। जबकि वे लोग खुले में हैं और हर तरह से एक्शन में आ सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर फौरन पोजिशन ले लो।"


महाजन और पारसनाथ जल्दी से बाहर निकल गए। 


पाली का चेहरा कठोर हो चुका था। वो बंगाली से बोला


"मेरे पास रिवॉल्वर नहीं है। अभी मेरा बायां हाथ सलामत है।" 


“भीतर पड़ी है। ले लो।" बंगाली की आंखों में भी खतरनाक भाव मचल रहे थे।


पाली बाहर निकलता चला गया।


मोना चौधरी की निगाह बराबर, बाहर गेट पर थी। फायर के बाद चारों में से कोई नजर नहीं आया । 


"मोना चौधरी। " बंगाली के दांत भिंचे हुए थे—"हमें यह जगह लड़ाई के फैसले से पहले छोड़नी पड़ेगी। "


"क्यों?" 


"यह रिहायशी जगह है। मकान हैं। लोग रहते हैं। फायरिंग की आवाज शुरू होते ही पुलिस फौरन यहां आ पहुंचेगी। यह मकान तो शरीफों की तरह रहने के लिए मैंने ठिकाना बना रखा है और मैं नहीं चाहता कि पुलिस के आने पर उससे झगड़ा करना पड़े। कई पुलिस वाले जानते हैं कि यह ठिकाना मेरा है। मैं पुलिस वालों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता, क्योंकि यहां मेरे धंधे जमे जमाए हैं। " 


"तुम्हारा मतलब कि मैं देवराज चौहान को पीठ दिखाकर भाग जाऊं। " मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा।


बंगाली के दांत भिंच गए।


"मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि पुलिस के आने पर उन पर फायरिंग न की जाए। " बंगाली  बोला।


"तुम पोजिशन लो। ये बाद की बात है। " मोना चौधरी के स्वर में वहशी भाव थे।


***