मोना चौधरी बैड पर अधलेटी-सी थी। गाऊन पहना हुआ था मस्तिष्क में दिन के हालात और फकीर बाबा की बातें बार-बार आ रही थी।


पारसनाथ अगर वक्त पर वहां न पहुंचा होता तो वो वक्त उस पर भारी पड़ सकता था।


देवराज चौहन खास तौर से इस समय दिल्ली आया हुआ है, उसकी हत्या करने के लिये। ये बात अपने आप में खतरनाक थी। जबकि पेशीराम उसे पहले ही कह चुका है उसके साथ झगड़ा किया तो उसकी जान चली जायेगी। लेकिन देवराज चौहान ने इस बात की भी परवाह नहीं की।


पेशीराम की बात मानकर, वो पीछे भी नहीं हट सकती। क्योंकि देवराज चौहान के इरादे खतरनाक थे और उसके साथियों ने आज खत्म कर देने की भरपूर कोशिश की थी। उसे


इस विचारों के साथ ही मोना चौधरी को चेहरा सख्त होने लगा। ठीक इसी वक्त फोन की घंटी बजी। मोना चौधरी सोचों से बाहर निकली।


"हैलो - ।" मोना चौधरी ने रिसवीर उठाया।


“बेबी - ।" महाजन की आवाज कानों में पड़ी - “कैसी हो?” 


“तुम्हारी आवाज में कुछ परेशानी लग रही है महाजन - " मोना चौधरी के होंठों से निकला।


“हां। बात ही कुछ ऐसी है । " 


“क्या हुआ ?”


"देवराज चौहान का मामला है। "


मोना चौधरी चौंक कर सीधी उठ बैठी। 


"देवराज चौहान ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।


“हां बेबी। वात समझ में आकर भी समझ से बाहर है।" 


कहने के साथ ही महाजन सारा मामला मोना चौधरी को बताता चला गया। उसकी आवाज मोना चौधरी के कानों में पड़ती रही।


महाजन के शब्द पूरे होने से पहले ही मोना चौधरी की आंखों में खतरनाक चमक आ ठहरी थी।


- “ये मामला है बेबी। देवराज चौहान मुसीबत बना मेरे सिर पर चढ़ा बैठा है और "


“महाजन - " 


"हां - ।"


“आज दिन में जगमोहन, बांकेलाल राठौर, सोहनलाल, रुस्तम राव ने मुझे घेर कर, मेरी जान लेने की पूरी पूरी कोशिश की लेकिन पारसनाथ के वक्त पर आ जाने से मामला संभल गया।”


“ये क्या कह रही हो बेबी ?”


इस बार महाजन के आने वाले स्वर में हैरानी थी ।


“बात ये नहीं है, जितनी कि तुमने जानी या सुनी है। पेशीराम भी इस मामले में आ जुड़ा है ।” 


“पेशीराम ?”


जवाब में मोना चौधरी ने महाजन को सब कुछ बताया। महाजन की तरफ से आवाज नहीं आई। 


“सुन रहे हो ?”


"हा।" महाजन की लम्बी सांस लेने की आवाज आई - “मुझे तो आने वाला वक्त खराब लग रहा है। "


“देवराज चौहान मेरी तलाश में है। वो मेरा ठिकाना जानना चाहता है।" मोना चौधरी ने सख्त और गम्भीर स्वर में कहा- "तुम्हारे घर पर जो कुछ भी हो रहा है, वो देवराज चौहान की योजना पर ही हो रहा है। ताकि उसकी मौजूदगी के बारे में तुम मुझे खबर दो और मैं वहां आ जाऊं। तब देवराज चौहान मेरा निशाना ले लेगा। ये योजना है देवराज चौहान की। जो लड़की तुम्हारे घर पर है, वो देवराज चौहान की ही भेजी हुई है ।”


“समझ रहा हूं। तुम्हारी बात।" महाजन के आने वाले स्वर में गम्भीरता थी -- “फिर तो तुम्हारे आने की जरूरत नहीं है । " 


“मैं पहुंच रही हूं महाजन- ।" मोना चौधरी की आवाज में दरिन्दगी झलक उठी।


"नहीं बेबी। तुम्हारा आना ठीक नहीं ..... "


"देवराज चौहान कहां पर मौजूद है?" मोना चौधरी ने पूर्ववतः स्वर में कहा।


महाजन की तरफ से आवाज नहीं आई।


“महाजन-।” मोना चौधरी गुर्रा उठी- “तुम्हारे घर के बाहर देवराज चौहान इस वक्त कहां माजूद है।"


"बेबी!" महाजन का व्याकुल स्वर कानों में पड़ा- "मैं नहीं चाहता कि तुम और देवराज चौहान सामने पड़ो। खास तौर से इन हालातों में कि देवराज चौहान तुम्हारी जान के पीछे हो। तुम- ।"


"देवराज चौहान की भेजी लड़की को इस बात का एहसास मत होने देना कि तुम जान गये हो कि वो जो कर रही है, महज ड्रामा है। वरना वो किसी तरह बाहर मौजूद देवराज चौहान को सावधान कर देगी।”


“तो तुम आओगी।”


“हां - ।” मोना चौधरी के दांत भिंच गये - "मैं पहुंच रही हूं महाजन- ।”


महाजन ने बता दिया कि उसके घर के बाहर देवराज चौहान है । कहां खड़ा


***


“हमारी हरकतों से देवराज चौहान को ही नुकसान पहुंचेगा।" सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।


चारों होटल के कमरे में बैठे हुए थे।


"ऐसा क्यों होएला बाप?"


“देवराज चौहान, दिल्ली में मौजूद है, मोना चौधरी को खत्म करने के लिये। देवराज चौहान, मोना चौधरी की तलाश कर रहा है। ये बात पहले मोना चौधरी नहीं जानती थी। लेकिन अब जान गई है। पहले वो इन बातों के प्रति लापरवाह थी और अब वो हद से ज्यादा सतर्क हो गई है। लेकिन देवराज चौहान को नहीं मालूम कि मोना चौधरी सारे हालातों से वाकिफ हो चुकी है। यही बात देवराज चौहान के लिये खतरनाक है।" सोहनलाल की आवाज में परेशानी थी।


बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा। बेचैनी से उसने पहलू बदला ।


“चो वक्त तो खिसेला । अब कुछ नेई होएला ।” 


"मोना चौधरी पर हमें हाथ नहीं डालना चाहिये था। अगर डाला तो फिर उसका खत्म होना जरूरी था।" जगमोहन ने होंठ भींच कर, कहा- “जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ।"


“अंम तो मोना चौधरी को 'वड' चुके होवो। वो पारसनाथ बीचो कूदो के, गड़बड़ी कर दयो।" बांकेलाल राठौर गुस्से से कह उठा- “म्हारे लिये बोल शर्मो की बात हौवो कि अंम मोना चौधरी को न ‘वड' सके हो ।”


सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर कश लिया। 


“अब अपुन के पास करने वास्ते कुछ नेई होएला बाप ।” 


"बहुत कुछ है।" सोहनलाल ने कठोर स्वर में कहा- "एक बार पैर फिसल गया तो क्या हो गया। दूसरी बार कोशिश की जा सकती है। जरूरी तो नहीं कि एक ही बार में सफलता मिल जाये।" 


“थारा मतलब कि दोबारो मोना चौधरी की गर्दनो पकड़ो हो ।” 


"हां ।”


“वो सतर्क होएला बाप कि - ।”


“कभी-कभी इन्सान की ज्यादा सतर्कता ही उसे धोखा दे देती है।” सोहनलाल ने सबको देखा- "हम उसका शिकार करने जा रहे हैं और हमें मालूम है कि वो सतर्क है। दोनों तरफ से हालात बराबर के हैं । "


“बात तो थारी जमो हो तालो वालो - "


“ये कैसे पालूम होएला कि वो किधर टिकेला है?" खामोश बैठा जगमोहन दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा । 


“मोना चौधरी के ठिकाने के बारे में पारसनाथ बतायेगा।" 


“पासरनाथ?” सोहनलाल की निगाह जगमोहन पर गई । 


“हां । मुझे यकीन है कि हम चारों मिलकर बिना किसी परेशानी के पारसनाथ को अपने काबू में कर सकते हैं। "


“लेकिन-।” सोहनलाल के माथे पर बल नजर आने लगे- “पारसनाथ किसी भी हालात में मोना चौधरी के बारे में येगा। वो सख्त जान रखता है। टॉर्चर करके भी हम उसका मुंह नहीं खुलवा सकते । ”


“सोहनलाल ठीक कहेला ।” “पारसनाथ या तो मोना चौधरी के बारे में बतायेगा। या फिर अपनी जान गंवायेगा।" जगमोहन दरिन्दगी भरे स्वर में कह रहा था - “पारसनाथ और महाजन, मोना चौधरी की दो बांहों के बराबर काम करते हैं। ऐसे में पारसनाथ का मारा जाना, मोना चौधरी के लिये किसी भारी चोट से कम नहीं होगा।"


वो एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।


"सब बात तो फिट ही बोलो हो।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।


सोहनलाल ने सिग्रेट का कश लिया।


"आज ही हम पारसनाथ का अपहरण करेंगे।" जगमोहन खड़ा हुआ-"और वो मोना चौधरी के बारे में बतायेगा।" 


“आपुन तो रेडी होएला बाप - ।” 


“छोरे । अंम तो पैदा ही रेडी-रेडी हुओ था ।”


“पारसनाथ का अपहरण हम आसानी से कर लेंगे।" जगमोहन ने पूर्ववतः स्वर में कहा- “ये बात उसकी सोचों से बहुत दूर होगी कि हम उस पर हाथ डालेंगे । ”


“मेरे ख्याल से हम देवराज चौहान और मोना चौधरी के झगड़े को बढ़ा रहे हैं।” सोहनलाल ने जगमोहन को देखा। 


"मालूम नहीं बढ़ा रहे हैं या घटा रहे हैं। "


“जो होवो, वो बादो में सोचो। पैले कर्म कर लयो ।” 


“बाप! देवराज चौहान इस वक्त किधर होएला। क्या करेला वो ?” रुस्तम राव कह उठा :


इस बात का जवाब उनके पास कहां था । पारसनाथ पर हाथ डालने के लिये, वो चारों उठ खड़े हुए।


***

कुछ देर पहले ही शाम का अंधेरा फैला था। स्ट्रीट लाइटें रोशन हो चुकी थीं। सड़क पर दौड़ते वाहनों की हैडलाईट ऑन हो गई थीं। अंधेरे के सफर की शुरूआत हो गई थी। 

देवराज चौहान वहीं पेड़ के नीचे खड़ा था।

महाजन जब से अपने घर में गया था। दरवाजा बंद हुआ था। उसके बाद दरवाजा नहीं खुला। इस बात को डेढ़ घंटा बीत चुका था। उसके दिए दो घंटों में से अभी आधा घंटा बाकी था। देवराज चौहान को पूरा विश्वास था कि महाजन ने यहां की बातों की खबर मोना चौधरी को अवश्य दी होगी। अगर उसने ऐसा न किया होता तो दरवाजा अवश्य खुलता। महाजन उसके पास आकर नगीना को कुछ न कहने के लिये दबाव डालता।

देवराज चौहान सावधान था सतर्क था वो जानता था कि अगर मोना चौधरी तक उसके यहां मौजूद होने की खबर पहुंच चुकी है तो मोना चौधरी यहां अवश्य आयेगी।

कभी भी कुछ भी हो सकता है। देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाकर कश लिया। अंधेर में हर तरफ नजरें घूमी। सामने सड़क पर से वाहन हेडलाईटों की तीव्र रोशनियां फेंकते आ-जा रहे थे। वो फुटपाथ पर पेड़ के नीचे खड़ा था। कभी-कभाद फुटपाथ से गुजर जाता। परन्तु अपने काम में व्यस्त किसी ने उसकी तरफ तबज्जो नहीं दी थी। अभी देवराज चौहान ने आधी सिग्रेट ही समाप्त की थी कि सामने से एक कांस्टेबल आता दिखाई दिया। हाथ में डण्डा था। सड़क पर गुजरने वाले वाहनों में कभी-कभाद उसका चेहरा चमक उठता था। पास आकर वो ठिठका। गहरी निगाहों से उसे देखा। देवराज चौहान की शांत निगाहे उसके चेहरे पर थीं।

"क्यों उस्ताद क्या इरादे हैं?” कांस्टेबल ने पुलसिया स्वर में कहा। 

“क्या हुआ?" देवराज चौहान के होंठों पर शांत सी मुस्कान उभरी।

“तीन घंटे पहले मैं साहब के साथ मोटरसाइकिल पे सड़क से निकला तो देखा तू यहीं खड़ा था। तब तो सोचा यूं ही खड़ा होगा चला जायेगा। अब गश्त पर हूं तो पाया कि तू यही जमा-टिका पड़ा है। इतनी देर से यहां क्या कर रहा है।"

“किसी का इन्तजार कर रहा हूं।"

"इतनी देर तो किसी माशूका का ही इन्तजार किया जाता है। कांस्टेबल ने उसे घूरा । 

“ठीक कह रहे हो।"

"तेरे को मालूम है कि मैं तेरे को थाने ले जाकर पूछताछ कर सकता हूं कि इतनी देर यहां खड़ा किसके घर में चोरी करने को सोच रहा है या फिर ये भी पूछ सकता हूं कि तू किस आतंकी गिरोह से सम्बन्ध रखता है और तेरे कौन से साथी यह आने वाले हैं। जिनके इन्तजार में तू आधा दिन से खड़ा है।” कांस्टेबल ने अपना पूरा का पूरा रौब देवराज चौहान पर झाड़ दिया- “माशूका के इन्तजार वाली बात कोई नहीं मानेगा। हम पुलिस वाले हैं। " 

“मैं सच कह रहा हूं कि मैं किसी का इन्तजार-।" 

“मैंने कब कहा है कि तू झूठ कह रहा है। मैंने तो तेरे को ये बताया है कि थाने में तेरे साथ क्या हो सकता.... ।” 

देवराज चौहान ने जेब से नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ाया।

उसने तुरन्त नोट को मुट्ठी में भींच लिया। 

“एक ही नोट से काम नहीं चलेगा। कम से कम- ।" 

“पांच सौ का है। "

"फिर ठीक है। " 

नोट वाला हाथ उसने जेब में डाल लिया - "मुझे भी अपनी ड्यूटी करनी है। मेरी ड्यूटी के वक्त कोई गड़बड़ हो जाये तो, नौकरी पे बन आती है। ये पूछताछ जरूरी होती है। आज जो मेरी बीवी है। कभी-कभी तो मैं भी सारा-सारा दिन उसके आने के इन्तजार में टांगे दुखा लेता था खड़े-खड़े ।” एकाएक वो मुस्करा कर कह उठा- “लेकिन अब तो उलटा ही मामला है। सारे बदले ले रहा हूं। मेरे इन्तजार में अब वो टांगें दुखाती रहती है। शादी से पहले तो ठोक बजाकर नखरे दिखाती है। ये औरते खूंटे से बंध जाती है तो फिर पता चलता है कि आदमी क्या होता है। सिग्रेट पिलाना।"

देवराज चौहान ने उसे सिग्रेट दी ।

सिग्रेट सुलगाकर, दोबारा उसने डण्डा फुटपाथ पर मारा, फिर आगे बढ़ गया ।

देवराज चौहान ने कश लेकर सिग्रेट एक तरफ उछाली और महाजन के घर की तरफ देखा। दरवाजा बंद था। भीतर लाईट रोशन थी। दो घंटे में से सिर्फ पन्द्रह मिनट ही बाकी बचे थे। अगर महाजन उसके बारे में खबर कर चुका है तो मोना चौधरी कभी भी किसी भी वक्त यहां पहुंचने वाली होगी।

अगर महाजन ने खबर नहीं दी तो उसकी योजना बेकार चली जायेगी।

पांच मिनट और बीत गये ।

देवराज चौहान को महसूस होने लगा कि अब मोना चौधरी, नहीं आयेगी। महाजन ने उसे खबर नहीं दी।

पांच मिनट और बीत गये। वो समझ गया कि सब कुछ बेकार गया। मोना चौधरी तक पहुंचने का कोई दूसरा रास्ता ही तलाशना पड़ेगा। शायद महाजन उसकी किसी बात पर शक खाकर चुप बैठ गया है। तभी उसने मोना चौधरी को उसके बारे में खबर नहीं दी कि....।

उसी वक्त देवराज चौहान ने अपनी कमर से रिवाल्वर की नाल लगती महसूस की।

उसने पलटना चाहा। 

"हिलना मत- ।” मोना चौधरी का दबा, गुर्राहट भरा स्वर कानों में पड़ा । 

देवराज चौहान ठिठक गया। 

“तुम- ।” 

जबड़ों में कसाव भर आया था। 

“बहुत बेसब्री से मेरी तलाश हो रही है देवराज चौहान ।” मोना चौधरी की आवाज पिघले शीशे की तरह देवराज चौहान के कानों में पड़ी - "लो मैं आ गई।"

“आने का ढंग गलत है मोना चौधरी- देवराज चौहान कठोर स्वर में कह उठा-“मैं-।”

“तुम्हारे बुलाने का ढंग भी गलत है देवराज चौहान। क्या किया है मैंने ?” 

देवराज चौहान उसी तरह खड़ा था। 

अभी तक उसने मोना चौधरी को रु-ब-रु नहीं देखा था। मोना चौधरी उसके पीछे थी। रिवाल्वर की नाल कमर में सख्ती से धंसी हुई थी। 

“तुम कैसे कह सकती हो कि मैंने तुम्हें बुलाया है।” 

देवराज चौहान का स्वर पहले जैसा ही था ।

“शायद मैं इस मामले से अभी वाकिफ नहीं हुई होती अगर तुम्हारे साथी मुझ पर हाथ डालने की गलती न करते।"

“क्या मतलब?" देवराज चौहान ने एकाएक खुद को उलझन के चक्रव्यूह में फंसा महसूस किया- “मेरे साथी ?"

“हां। जगमोहन, सोहनलाल, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव की बात कर- ।” -

“ये सब तो मुम्बई में – ।”

“ये दिल्ली आ चुके हैं देवराज चौहान और तुम्हारी तरह ये पारसनाथ की आड़ में मुझ तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे कि मालूम होने पर मैं ही इनके पास पहुंच गई। तब इन्होंने मेरी जान लेने की कोशिश की कि मेरे मर जाने से तुम्हारी जिन्दगी बच जायेगी। पेशीराम के मुताबिक मुझसे टकराव होने पर तुम्हारी जान जा सकती है और तुम्हारे साथी मुझे खत्म करके टकराव का मसला ही खत्म कर देना चाहते थे ।”

“समझा ।” देवराज चौहान के दांत भिंच गये- “ये बातें तुम्हें पेशीराम ने बताई?"

“नहीं। तुम्हारे साथियों ने बताईं। जब वो मुझे खत्म करने जा रहे थे। बहुत अच्छा किया ये सब बताकर तभी तो महाजन का फोन आते ही, मैं समझ गई कि मेरी हत्या करने के लिये तुम मुझे ढूंढ रहे हो । महाजन के घर में जो लड़की मौजूद है, वो तुम्हारी ही भेजी हुई है ।”

"ये बात भी तुम्हें मेरे लोगों ने बताई कि मैं तुम्हारी हत्या करने आया हूं- ।”

“हां। तब वो सोच रहे थे कि वो मुझे खत्म करने जा रहे हैं। " मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा- “तुम्हारे साथियों की हरकत से मुझे ये फायदा हुआ कि मैं तुम्हारे जाल में नहीं फंसी । ” 

"जाल में तो तुम फंस गई हो मोना चौधरी ।" देवराज चौहान ने दरिन्दगी से कहा- "तुम्हारा यहां तक आ जाना ही जाल में फंस जाना है। यहां तक आने के लिये तुम्हें मैंने ही मजबूर किया है।" 

"भूल में हो। मैं यहां अपनी मर्जी से आई हूं।" मोना चौधरी ने उसी स्वर में कहा -"और पेशीराम की बात को सच करने आई हूं तुम्हें खत्म करके।”

“भूल में तुम हो मोना चौधरी ।" देवराज चौहान के स्वर में मौत थी - "तुम मेरी जान नहीं ले सकतीं-।" 

कहने के साथ ही देवराज चौहान ने दोनों हाथों से उसकी रिवाल्चर वाली कलाई पर झपट्टा मारा। उसी पल ही मोना चौधरी ने ट्रेगर दबा दिया था।

फायर की तेज आवाज गूंजी।

देवराज चैहान के द्वारा हाथ को झपट्टा मारने की वजह से रिवाल्वर की नाल कमर से जरा सी हिल गई थी। इसी वजह से मोना चौधरी की रिवाल्वर से गोली निकली वो देवराज चौहान के पेट के ऊपर मांस की परत को कुछ गहराई से काटती हुई निकल गई। गोली पेट में नहीं धंसी।

पीड़ा की तेज लहर देवराज चौहान के जिस्म में दौड़ गई। इसके साथ ही मोना चौधरी की कलाई देवराज चौहान के एक हाथ में थी और दूसरा हाथ रिवाल्वर पर जमा रखा था।

दोनों आमने-सामने आ चुके थे।

"मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगी देवराज चौहान-।" मोना चौधरी दांत किटकिटा उठी। अंधेरे में उसके चेहरे के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। परन्तु उसकी आवाज से चेहरे के भावों का अन्दाज लगाया जा सकता था।

“मोना चौधरी ।” देवराज चौहान के होंठों से वहशियाना गुरहिट निकली- “तेरा वार जितना चलना था। चल गया। अब और नहीं । अब मेरी बारी है। तुम्हें दूसरी गोली चलाने का मौका नहीं मिलेगा।" 

भूल चुका था देवराज चौहान अपनी पीड़ा को वो जानता था कि जरा सा चूका तो मोना चौधरी उसे गोलियों से भून देगी। 

तभी देवराज चौहान ने मोना चौधरी को रिवाल्वर वाले हाथ को खास ढंग से उल्टी तरफ मोड़ा तो मोना चौधरी के होंठों से हल्कीसी कराह निकली। रिवाल्वर उसके हाथ से छूटकर नीचे जा गिरी। उसी पल मोना चौधरी ने जूते की जोरदार ठोकर देवराज चौहान के पेट में मारी ।

देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा भरी कराह निकली। मोना चौधरी की कलाई छूट गई। दोनों हाथों से पेट थामे नीचे लुढ़कता चला गया। पेट से बहते खून में दोनों हाथ भीग गये। लेकिन ये वक्त मुकाबले का था। जख्मों को देखने का नहीं। नीचे गिरते ही वो संभला फुर्ती के साथ अपनी रिवाल्वर सीधी की। ट्रेगर अभी आधा ही दबा था। मात्र एक सैकण्ड का फर्क रह गया था, मौत के इस खेल में ।

देवराज चौहान को लगा जैसे उसकी सारी शक्ति किसी ने छीन ली हो। ट्रेगर पर टिकी उंगली बेजान-सी हो गई थी। जितना ट्रेगर दवा था, उंगली का दबाव कम होते ही, ट्रेगर वापस आ गया था। वो हाथ हिलाना चाहता था। हिलना चाहता था। परन्तु कुछ भी नहीं कर पा रहा था। जैसे पड़ा था, वैसे ही पड़ा रहा। उठना चाहा, परन्तु अपने शरीर को हिला भी नहीं पाया। वो समझ नहीं पाया कि क्या हो गया है। शरीर की हरकतें पूरी तरह ठप्प हो चुकी थीं। लेकिन मस्तिष्क अपनी जगह ठीक-ठाक काम कर रहा था ।

मोना चौधरी की हालत भी उससे जुदा न थी। वो नीचे से रिवाल्वर उठाकर सीधी खड़ी ही हुई थी कि उसके शरीर की सारी हरकतें एकाएक थम सी गई थीं। हाथ-पांव शरीर का कोई भी हिस्सा हिला न पा रही थी। सिर्फ आंखें ही हिल रही थीं। देवराज चौहान को देखा। जो कि रिवाल्वर थामे अधलेटा सा नीचे पड़ा था।

“पेशीराम- " मोना चौधरी के होंठों से निकला। उसकी मुद्रा में कोई फर्क नहीं आया।

“क्या मतलब ?" देवराज चौहान के होंठ हिले।

“पेशीराम ने ही हमारी ये हालत की है अपनी शक्ति के दम पर ।” मोना चौधरी के होंठ हिल रहे थे- "एक बार पहले भी उसने मुझ पर इसी तरह काबू पाया था। तब महाजन मेरे साथ था ।”

“लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा।" देवराज चौहान के होंठ हिले। जवाब में मोना चौधरी ने होंठ भींच लिए।

तभी उन्हें अपनी बीच रुई का छोटा सा गोला तैरता-सा नजर आया। वो बिल्कुल सफेद था। बहुत हद तक चांदी की तरह चमकता-सा लग रहा था। उनके देखते ही देखते वो छोटा-सा गोला धुंध की तरह फैलता चला गया। उसकी चमक गुभ हो गई। दूसरे ही पल फकीर बाबा उनके बीच मौजूद था।

“तुम दोनों को झगड़ा करते देखकर मुझे बहुत बुरा लंगा देवा और मिन्नो।” फकीर बाबा का गम्भीर स्वर उनके कानों में पड़ा- “तीन जन्म पहले के झगड़े की परछाईयां धुंधली नहीं हो पा रहीं और तुम दोनों हर जन्म में झगड़ा करके एक-दूसरे को मार कर मर जाते हो। इस अंतहीन सिलसिले का अन्त कर दो अब तो- । "

“मेरे हाथ-पांवों को बेजान तुमने किया है पेशीराम।" देवराज चौहान ने पूछा ।

"हां देवा। मैंने ही तुम दोनों की लड़ाई रोकी है।"

“लेकिन क्यों?” देवराज चौहान की आवाज में गुस्सा था- 

"तुमने कहा था कि हम दोनों के बीच कभी भी अपनी शक्ति का इस्तेमाल नहीं करोगे। लेकिन आज - " ।

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया कि तुम मुझे गलत कहो। ये लड़ाई तो तुम दोनों दो मिनट बाद भी कर सकते हो।" 

“क्या मतलब?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

फकीर बाबा ने अपना हाथ हवा में लहराया कि दोनों के बेजान शरीर ठीक हो गये हरकत में आ गये। देवराज चौहान जल्दी से उठा। मोना चौधरी ने भी खुद को संभाला।

“अपनी रिवाल्वरें वापस रख लो। जरूरत पड़े तो मेरे जाने के बाद बेशक निकाल लेना।"

देवराज चौहान और मोना चौधरी ने रिवाल्वरें जेबों में रख ली। 

“कहो पेशीराम।” देवराज चौहान बोला- “क्या कहना चाहते हो ?"

“ये दो महीने का वक्त तुम दोनों के लिये ठीक नहीं। सितारे अपना बुरा खेल-खलने की जिद्द पकड़े हुए हैं और देवा ये वक्त तो खासतौर से तुम्हारे लिये बुरा है। मैंने तुम्हें मना किया लेकिन फिर भी तुम मिन्नो के सामने पड़ गये।"

“तुम कहना क्या चाहते हो पेशीराम- ।" मोना चौधरी कह उठी। 

“मैंने तुम्हें भी पीछे हटने को कहा। लेकिन तुमने भी मेरी बात नहीं मानी मिन्नो। सच भी है। जिस इन्सान को पहले जन्मे में तुम दोनो ने पेटी उठाकर, घर-घर जाकर लोगों की शेव करते और बाल काटते देखा हो। उसकी परवाह भी क्यों करोगे।"

“ऐसी बात मत कहो पेशीराम। मैं तुम्हारी पूरी इज्जत करता हूं।" देवराज चौहान ने कहा- “उस जन्म में भी करता था।"

“ऐसा होता तो मेरे कहने पर तुम रुक जाते । मिन्नो से झगड़ा न करते ।”

“ये जुदा मामला है।” 

“बात करो पेशीराम।" मोना चौधरी कह उठी- “तुम कहना क्या चाहते हो?"

“मेरे कहने पर तुम लोग झगड़ा रोकोगे नहीं। तुममें से कोई मर गया तो श्राप और लम्बा हो जायेगा। मैं नहीं चाहता कि फिर तुम्हारे अगले जन्म का इन्तजार करूं । ये दो महीनों का बुरा वक्त मैं किसी तरह निकाल देना चाहता हूं।" फकीर बाबा ने गम्भीर स्वर में कहा- “तुम दोनों को नहीं मालूम कि गुरुवर इस वक्त भारी परेशानी से गुजर रहे हैं । "

देवराज चौहान और मोना चौधरी चौंके ।

“क्या?” देवराज चौहान के होंठों से निकला। 

“पेशीराम !” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये - "मैं गुरुवर की शक्तियों से बहुत हद तक वाकिफ हूं। उन्हें कोई परेशानी भी नहीं सकती। वो तो दूसरों की परेशानियां दूर करते हैं।" 

“तुम ठीक कहती हो मिन्नो। लेकिन इस वक्त गुरुवर के हाथ बंधे हुए हैं। वो बहुत ही खास यज्ञ में व्यस्त हैं। ऐसे में अपनी किसी भी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते। क्योंकि यज्ञ से पहले गुरुवर ने अपनी समस्त शक्तियां समेटकर एक बाल (गेंद) के रूप में कहीं छिपा दी है। यज्ञ को भंग करने गुरुवर को हानि दे सकता है। और 'वो गुरुवर के यज्ञ के भंग करने के साथ-साथ गुरुवर की शक्तियों को भी खोज रहा है। अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो गया तो शायद गुरुवर का अस्तित्व ही समाप्त हो जाये।”

" ऐसा नहीं हो सकता पेशीराम ।” मोना चौधरी गुर्रा उठी । 

“तुम गुरुवर की सहायता क्यों नहीं करते?” देवराज चौहान कह उठा ।

"तुम दोनों अच्छी तरह जानते हो कि मैं कभी क्या था । आज. मेरे पास जो भी शक्तियां हैं। वो सब गुरुवर के बताये रास्ते पर चल कर ही हांसिल कर पाया हूं। शिक्षा देने से पहले ही गुरुवर ने मुझसे गुरु दक्षिणा ले ली थी ।”

“क्या ?”

“गुरुदक्षिणा में उन्होंने मांगा था कि उनकी इच्छा के बिना मैं कभी भी उनकी सहायता नहीं करूंगा। उनके कामों में दखल नहीं दूंगा। मैंने हां कर दी। और अब गुरुवर यज्ञ में व्यस्त है। उनकी इच्छा नहीं जान सकता। सहायता के लिये आगे नहीं आ सकता।”

“कौन गुरुवर को परेशान कर रहा है।" मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी।

“सब बातें मैं अभी नहीं बता सकता।" फकीर बाबा ने कहा- “आगे की बात आराम से होगी। मैं सिर्फ ये जानना चाहता हूं कि तुम दोनों गुरुवर की परेशानी दूर करने को तैयार हो या तुम्हारे लिये अपना झगड़ा जरूरी है । "

देवराज चौहान और मोना चौधरी की चुनौती भरी नजरें मिलीं । 

"इस काम में तुम दोनों को हार-जीत का भी मौका मिलेगा।”

फकीर बाबा ने कहा।

"कैसा मौका ?" मोना चौधरी ने पूछा। 

“इसके बारे में वक्त आने पर बताऊंगा।"

“मैं गुरुवर की परेशानी दूर करने को तैयार हूं पेशीराम।" देवराज चौहान ने कहा- “मेरे साथी भी मेरे साथ रहेंगे।"

"मुझे कोई एतराज नहीं देवा अगर तुम्हारे साथी भी साथ
चले।"

“मैं भी तैयार हूं - ।” मोना चौधरी बोली- “महाजन और पारसनाथ को मैं साथ ले जाऊंगी ।”

फकीर बाबा मुस्कराया। सहमति से उसने सिर हिला दिया। 

“पेशीराम । नगीना को वापस मुम्बई -- ।”

"देवा ।” फकीर बाबा ने टोका- “नगीना की गृहस्थति, तेरे इस बुरे वक्त में तेरा बहुत साथ देगी। नगीना बेटी के सितारे तेरे को डूबने से बचाने की पूरी कोशिश करेंगे। मेरी राय में नगीना को साथ ले चलना ठीक होगा।"

चंद पलों की सोच के पश्चात् देवराज चौहान ने गम्भीरता से सिर हिलाया।

“नगीना कौन है पेशीराम?"

फकीर बावा ने मोना चौधरी को देखा, फिर शांत स्वर में कह उठा । 

“देवा की इस जन्म की पत्नी है । "

“ओह - !” मोना चौधरी के दांत भिंचते गये- "इसका मतलब वो ही इस वक्त महाजन के घर पर मौजूद है।" 

तभी पेशीराम ने हाथ उठाकर खास अंदाज में घुमाया। उसी पल, देखते ही देखते देवराज चौहान और मोना चौधरी रुई जैसी धुंध में बदलकर लुप्त हो गये। इसके साथ ही फकीर बाबा भी धुंध के रूप में हवा में गुम होता चला गया। इत्तफाक से रात के इस वक्त कोई भी ये सब न देख पाया।

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