“गप्प ही सही। थोड़ा सुन लीजिये। क्या पता यह गप्प सत्य के रूप में प्रमाणित हो जाये।” अभिजीत देवल ने बड़े सब्र से कहा और राजीव जयराम को अपनी बात जारी रखने के लिए इशारा किया।

“… वो आदमी कॉसमॉस टेक्नोलॉजी का मालिक फिलिप्स जेक्सन था। वह विश्वरूप रूंगटा की कंपनी ‘विस्टा टेक्नोलॉजी’ को अपने बस में करना चाहता था। लेकिन मार्केट से शेयर खरीदने की उनकी योजना अधूरी रह गयी। इतना पैसा आये कहाँ से? वह आपके पास एक प्लान लेकर आया। वह चाहता था कि विस्टा के कुछ कर्मचारियों को अगवा किया जाये। उससे विस्टा की सिक्योरिटी दाँव पर लग जाएगी। मार्केट में इस खबर से जब शेयर प्राइस गिरे तो उस मौके का फायदा उठाया जाए। और साथ में इस मामले में एक अच्छी ख़ासी रकम की फिरौती माँगी जाए। इस पैसे का इस्तेमाल विस्टा के बोर्ड मेम्बर्स को तोड़ने में और कॉसमॉस को अपना हिस्सा बेचने के लिए किया जाए।

फिलिप्स की रणनीति का दूसरा हिस्सा यह था कि जब विस्टा के कर्मचारी लापता हो जाएँ तो उसी वक्त शेयर मार्केट में विस्टा के शेयरों की शॉर्ट सेलिंग की जाए जिससे विस्टा के शेयर बाजार में औंधे मुँह गिरें। और साथ में विस्टा की ग्राहक कंपनियों को यह अफवाह फैला कर गुमराह किया जाए कि उनके प्रोजेक्ट्स की गोपनीयता खतरे में थी। इन सब की बदौलत फिलिप्स जेक्सन उन्हें विस्टा से नाता तोड़ने में राजी करके कॉसमॉस की तरफ ले आता। इस तरह विस्टा का शेयर और ज्यादा टूट जाता और जेक्सन अपने मकसद में कामयाब हो जाता।”

“अच्छा! इसके बाद मैंने अपनी कार उठाई और विस्टा के लोगों को अगवा कर अपने घर ले आया। शेयर मार्केट में उसके दाम गिर गए। मैंने उन्हें खरीदकर अपनी जेब में रख लिया। सही कहा न मैंने? ठीक है, अच्छी कहानी है। सुनाओ... आगे सुनाओ।” बसंत पवार ठहाका लगा कर हँसा।

“इस बात को लेकर फिलिप्स जेक्सन आपके पास इसलिए आया कि इसमें जो जोखिम था, उससे वह डर रहा था। उसे पता था कि आपका यहाँ के अंडरवर्ल्ड में खास दबदबा है। उससे फिलिप्स जेक्सन काम आसानी से हो भी जाता और उसका मकसद भी हल हो जाता। आपको तो सिर्फ़ एक बिचौलिये की भूमिका निभानी थी।” राजीव जयराम अपनी बात का असर बसंत पवार पर देखने के लिए रुका।

“इसमें मेरा क्या फायदा था। क्या मैं इतना ﹡﹡﹡﹡﹡ लगता हूँ कि कोई मेरे पास आएगा और मैं लोगों को किडनैप करवा लूँगा। जरा होश में रहकर बात करो, राजीव। तुम जानते नहीं हो मुझे?” बसंत पवार का चेहरा धधकने लगा था।

“हम आपकी हैसियत अच्छी तरह से जानते हैं। आपकी हैसियत से नीचे का काम था यह। आपने इसे अपनी हैसियत का बनाया। दिलावर टकला आपका खास आदमी था। आपके राजनैतिक जीवन में जिस आदमी को आप राजनैतिक छल से न हरा सके, उसे दिलावर टकला अपने बाहुबल से आपके रास्ते से हटा देता था। इस काम के लिए आपने उसे याद किया और विस्टा के कर्मचारियों में से कुछ ऐसे लोगों की लिस्ट बनाने के लिए कहा जो खुद या उनके परिवार वाले किसी सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक रुतबा रखते हों। उसने जब इस काम को अंजाम दिया तो उस लिस्ट में एक नाम चमका ‘नीलेश पासी’।

उसका नाम लिस्ट में देखकर आपने इस गेम को और बड़ा बनाने की सोची। आप के मन में राजनीति की नयी बिसात बिछाने का विचार आया। आपने दिलावर को नीलेश के पीछे लगा दिया। अब आपके लोग उस वक्त का इंतजार करने लगे जब नीलेश के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को अगवा कर सकें। यह बात दिलावर के खास आदमियों तक पहुँच चुकी थी जो इस प्लान को हकीकत में बदलने वाले थे। उन्हीं लोगों में एक था राहुल तात्या जो सहारनपुर के पास के एक गाँव का रहने वाला था। यह राहुल तात्या अपने इलाके में जमाल शेख के नाम से जाना जाता था। एक चोरी की वारदात में नाम आने के बाद यह सहारनपुर से गायब हो गया था। मुंबई आने के बाद एक शूटर के तौर पर दिलावर के गिरोह के लिए काम करने लगा और अपना नाम राहुल तात्या बताने लगा। यहाँ पर वह प्रोफेसर उर्फ उस्मान ख़ान के संपर्क में आया जो हिंदुस्तान में दहशतगर्दी फैलाने के लिए स्लीपर सेल का जाल बिछाता था, जिसके जरिये किसी भी आतंकवादी घटना को अंजाम दिया जा सकता था। तात्या के जरिये विस्टा के कर्मचारियों के अपहरण की स्कीम और नीलेश के योगराज के बेटा होने के बारे में उस्मान खान को पता चला।

उस्मान के जरिये यह बात आईएसआई में तैनात जावेद अब्बासी तक पहुँची। भारत सरकार के द्वारा कश्मीर घाटी को लेकर किए जा रहे फैसलों से आईएसआई के सीमांत प्रदेश में असंतोष को हवा देने के मंसूबे अब लगातार विफल हो रहे थे। जावेद अब्बासी और उस्मान को इस प्लान में केंद्रीय सरकार पर हमला करने का एक मौका दिखा।

फिलिप्स जेक्सन को बड़े ख्वाब दिखाये गए कि केंद्र में सरकार बदलने पर उसको विस्टा टेक्नोलॉजी पर कब्जा करने में कोई मुश्किल नहीं होने वाली थी और उसे इस मिशन के लिए पैसा खर्च करने के लिए मनाया गया। आपको योगराज को अपने शीशे में उतारने का जिम्मा सौंपा गया। पैसों और सत्ता में और ज्यादा भागीदारी के लालच में वह इस जाल में फँस गया। उसे आश्वासन दिया गया था कि नीलेश को कुछ नहीं होगा। उसे बाकी लोगों से अलग रखा जाएगा ताकि पुलिस के किसी एक्शन में उसे कोई नुकसान न हो। पर योगराज को आखिर तक पता नहीं चला कि उसका बेटा सीमा पार पहुँचा दिया जाएगा। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वह कभी भी आप लोगों से मुकर न सके।” जयराम एक पल के लिए रुका।

“लेकिन अभी टीवी पर देखा नहीं तुमने। वो पट्ठा मुकर भी गया है और दिल्ली में बैठा अपनी गद्दी भी गरम कर रहा है। तुम्हारी बात यहीं पर झूठी साबित हो जाती है।” बसंत पवार जयराम की तकरीर का उपहास उड़ाता हुआ बोला।

“उसमें यह हिम्मत तब आयी है जब उसे यकीन हो गया कि उसका बेटा सुरक्षित है। उसके बाद ही उसे अपने गुनाह पर पश्चाताप हुआ और वह उसका प्रायश्चित करने दिल्ली पहुँचा है।” अभिजीत देवल ने जवाब दिया।

बसंत पवार चौंका।

“आपका चौंकना जायज है। जिस तरह से वे लोग नीलेश को यहाँ से लेकर गए थे। उसी अंदाज में उसे वापस इस सरजमीं पर सुरक्षित ले आया गया है। बस फर्क सिर्फ़ इतना है कि आप लोगों ने हवा में बारूद बिछाया था और हमने पानी में आग लगा दी।” अभिजीत ने अपनी बात पूरी की।

तभी टीवी पर स्वर्ण भास्कर की चीखती हुई आवाज ने उन सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा। टीवी स्क्रीन पर योगराज पासी की पिक्चर झाँक रही थी।

“... अपने पैनल के लोगों से मैं अपनी बातचीत बीच में रोकने के लिए माफी चाहूँगा। दर्शकों, हमारे साथ ‘जन विकास पार्टी के सुप्रीमो श्री योगराज जुड़ चुके हैं जिनकी वजह से पिछले कुछ समय से भारत की राजनीति में तूफान आया हुआ है। मैं उनसे अपने दर्शकों की तरफ से कुछ सवाल पूछना चाहूँगा।

योगराज जी, आपने अपने रुख में एक बार फिर बदलाव किया है। आप पहले केंद्र सरकार और फिर महाराष्ट्र की सरकार को कोस रहे थे और आपने दोनों से समर्थन वापसी की भी घोषणा कर दी थी जिससे सरकार संकट में आ गयी थी। अब आप एक बार फिर अपना निर्णय बदल रहें हैं... यह मौकापरस्ती है या दबाव की राजनीति ?”

“यह मुद्दों की राजनीति है। हमने भारत की सुरक्षा और अखंडता पर अपना समर्थन वापस लिया था। हमारा मुद्दा था कि देश के लोगों की सुरक्षा में चूक हुई है। हमारी बात को सरकार ने गंभीरता से लिया। हमें सूचना मिली है कि विस्टा कंपनी के जो लोग अगवा हुए थे, वे लोग सकुशल छुड़वा लिए गए हैं। जो लोग इस गुनाह में शामिल थे, उन लोगों की धरपकड़ भी जारी है। हमें सरकार की इस गंभीरता का एहसास है। यही हमारी माँग थी जो सरकार ने पूरी की है... अब इसे आप मौकापरस्ती कह लें या दबाव की राजनीति।” योगराज ने कहा।

“पिछले कुछ दिनों में आपका इस प्रकार से अपना निर्णय बदलना कि पहले आप सरकार के साथ थे, फिर आप विपक्ष के साथ चले गए, अब फिर आप सरकार के साथ हैं। यह आपके अनिर्णय का प्रतीक है या आपकी नीति का अभाव?”

“देखिये स्वर्ण भास्कर जी, यह अनिर्णय की स्थिति तो बिल्कुल भी नहीं है। जब हमें लगा कि इस सरकार को जगाने के लिए एक झटके की जरूरत है, वह हमने दिया। हमारी माँग पर सरकार ने त्वरित कार्यवाही की तो हम उसका स्वागत करते हैं। तो इसमें अनिर्णय की स्थिति कहीं पर नहीं है। जहाँ तक नीति का सवाल है तो वर्तमान में केंद्रीय सत्ता के साथ हमारा पुराना संबंध रहा है। हम लोग नैचुरल एलाई हैं। तो नीतियों पर हमारा तालमेल ठीक ही रहा है लेकिन अगर कहीं पर कोई ढील होती है तो सरकार को चेताना हमारा दायित्व है और हमने उसका सफलतापूर्वक निर्वहन किया है।” योगराज ने सधा हुआ उत्तर दिया।

“क्या आप महाराष्ट्र की राज्य सरकार को भी माफ कर देंगे या इसमें आपकी कोई अतिरिक्त माँग भी शामिल है?”

“दोनों जगह हमारा समर्थन पहले की तरह सरकार को मिलता रहेगा। माँग के विषय में यही कहना चाहूँगा कि हम अपनी पार्टी की नीति के अनुसार चलते हैं और कोई मोल भाव की राजनीति नहीं करते हैं। माफ कीजिएगा, मुझे एक मीटिंग में अभी जाना है। मैं आपसे इजाज़त चाहूँगा।” इतना कहने के बाद योगराज ने अपने कुर्ते पर लगे माइक हटा दिये।

वह स्क्रीन पर दिखाई देना बंद हो गया। बसंत पवार ने भद्दी सी गाली देते हुए अपना गिलास टीवी स्क्रीन की तरफ उछाल दिया। गिलास के टूटने की आवाज सुनकर दामले भागा हुआ कमरे में दाखिल हुआ। बसंत पवार अपनी कुर्सी पर भाले बर्छियाँ बरसाता हुआ बैठा था। वह भी बाहर टीवी देख रहा था। उसने एक नौकरानी को बुलाकर तुरंत वह जगह साफ करवाई।

तभी स्वर्ण भास्कर की तेज आवाज एक बार फिर उन तीनों के कानों से टकरायी।

“अभी-अभी एक ब्रेकिंग न्यूज़ हमें मिली है। देश की जानी मानी मल्टीनेशनल कंपनी ‘कॉसमॉस टेक्नोलॉजी’ के चीफ़ फिलिप्स जेक्सन को मुंबई एयरपोर्ट पर पुलिस हिरासत में ले लिया गया है। वह लंदन जाने वाली एक फ्लाइट में सवार होने ही जा रहे थे कि तभी उन्हें रोक लिया गया है। आइये आपको मुंबई एयरपोर्ट पर लिए चलते हैं जहाँ पर हमारे संवाददाता आपको इस बारे में लाइव रिपोर्ट दें रहें है...”

इसके बाद टीवी स्क्रीन पर पुलिस के घेरे में दो बिना वर्दी के लोगों की पकड़ में जकड़ा हुआ फिलिप्स जेक्सन दिखाई दे रहा था। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी और वह पूरी तरह से पसीने में लथपथ था।

अभिजीत देवल ने बसंत पवार की तरफ देखा। उसका चेहरा अब बिल्कुल सफ़ेद दिखाई दे रहा था। वह बार-बार अपना चेहरा और गर्दन अपने रुमाल से पौंछ रहा था। अब उसके शरीर में वह पहले वाली अकड़ नहीं रही थी। दामले के जाने के बाद उसने अपने लिए व्हिस्की एक गिलास में फिर उड़ेल ली।

“फिलिप्स जेक्सन का मकसद सिर्फ़ विस्टा टेक्नोलॉजी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा कर टेक ओवर था। लेकिन आपके संपर्क में आने के बाद यह कहानी उसकी औकात से बड़ी हो गयी और आप सबका जुर्म और भी संगीन।

वह सिर्फ़ कंपनी हड़पना चाहता था और आप का मंसूबा महाराष्ट्र की गद्दी पर बैठने का था। उस्मान ख़ान कादिर मुस्तफा को हिंदुस्तान से रिहा करवाना चाहता था ताकि कश्मीर की घाटी को वह फिर से सुलगा सके। जावेद अब्बासी सीमा के उस पार बैठा हुआ उस्मान ख़ान के जरिए हिंदुस्तान की हुकूमत हिलाने की कोशिश कर रहा था क्योंकि जो कदम भारत सरकार कश्मीर में अमन बहाली के लिए एक के बाद एक उठाती जा रही थी, उससे आईएसआई की योजनाएँ एक के बाद एक धराशायी होती जा रही थी।

अब्दील राज़िक, दिलावर टकला और राहुल तात्या उर्फ जमाल शेख उसके प्यादे बने और तबरेज आलम बना उनका सहयोगी और योगराज पासी बना आपका मोहरा। आज आप लोगों की बिछाई बिसात पलट चुकी है। विस्टा के लोग रिहा हो चुके है। नीलेश वापस भारत की जमीन पर कदम रख चुका है।” अभिजीत देवल ने धीमी आवाज में कहा लेकिन उसकी आवाज की तपिश बसंत पवार ने महसूस की।

“तुम लोग बस एक कहानी सुना रहे हो। मेरा इसमें कोई रोल नहीं है। यह तुम्हारी सरकार की मुझे फँसाने की चाल है। अगर मैं इसमें फँसूँगा तो भारत की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। और जिस गुनाह में तुम मुझे फँसाना चाहते हो उससे मेरा क्या रिश्ता था... इसे तुम लोग सारी जिंदगी साबित नहीं कर पाओगे।” बसंत पवार अपना गिलास खाली करता हुआ बोला।

“वह सब भी हो जाएगा। आप इस बात की चिंता न करें। आप फिलहाल इसी घर में रहेंगे। आप यहाँ से बाहर नहीं जाएँगे। इसे इंटेलिजेंस के लोगों ने घेर लिया है। हम कल आपसे फिर मिलेंगे लेकिन पूरी तैयारी के साथ। आपका यहाँ से निकलने की किसी भी प्रकार की कोशिश करना फ़िजूल होगा।” राजीव जयराम ने कहा।

इसके बाद अभिजीत देवल और राजीव जयराम अपने पीछे बसंत पवार को बेहद संजीदा और गमगीन हालत में छोड़कर वहाँ से विदा हुए।

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कुपवाड़ा

श्रीकांत जब पठानकोट पहुँचा तो जवानों की एक टुकड़ी उसका वहाँ पर इंतजार कर रही थी। जैसे ही वह बेस पर उतरा लेफ्टिनेंट चंदन राठौड़ ने उसको रिसीव किया।

चंदन राठौड़ की कमांड में ही आगे की कार्यवाही होनी थी। राठोड़ उसे उस जगह पर ले गया जहाँ पर कादिर मुस्तफा को रखा गया था। श्रीकांत के पहुँचने के बाद कादिर मुस्तफा को हेलीकॉप्टर में सवार करवाया गया। कुछ समय के बाद हेलीकॉप्टर उन सबको लेकर कुपवाड़ा की तरफ उड़ चला।

शाहिद रिज़्वी से उन्हें उस जगह की लोकेशन मिल चुकी थी जहाँ पर उन्हें हेलीकॉप्टर उतारना था। इस पूरे रास्ते के दौरान श्रीकांत की निगाहें कादिर मुस्तफा की तरफ टिकी रही। कादिर की नजरें भी बार-बार उससे टकराती रही। श्रीकांत की आँखों के सामने मोहन डेयरी, पर्ल रेसीडेंसी, बांद्रा रेलवे स्टेशन और मलकानी हॉस्पिटल के खूनी मंजर तैर रहे थे। फैक्टरी की विस्फोटक घटना की जानकारी भी उसे शाहीद रिज़्वी से मिल चुकी थी। उसकी आँखों के सामने सुधाकर शिंदे का धीर-गंभीर चेहरा छा गया।

“इस तरह से घूर कर क्या देख रहे हो बरखुरदार? शायद हमारी रिहाई की शक्ल में अपनी हार नहीं बर्दाश्त हो रही तुमसे।” कादिर जहरीले शब्दों में श्रीकांत को बोला।

“टेक इट ईज़ी एसीपी श्रीकांत। इस आदमी को किसी ने कोई जवाब नहीं देना है। यह सिर्फ़ उकसावा दे रहा है। इसे कुपवाड़ा में हैंड ओवर करने की ज़िम्मेदारी मेरी है और मैं इसमें कोई कॉम्प्लीकेशंस नहीं चाहता।” चंदन राठौड़ सबको सतर्कता बरतने की सलाह देता हुआ बोला।

“तुम सब कायर लोगों की जमात हो। तुम्हारा फौजी अफसर मुझे जवाब न देने की ताकीद करता है। कितने बुज़दिल हो तुम लोग! मैंने तुम्हारे फ़ौजियों की पूरी बस को अपने वफ़ादारों से काम लेकर उड़वा दिया था। पूरा दिन उनके चीथड़े मिलाते हुए घूम रहे थे तुम लोग। मुझे इसी फौजी अफसर जैसे लौंडे पकड़ने आये थे। उसमें से छह को ख़ुद अपने हाथों से मौत के घाट उतारा था मैंने। अब देखो, तुम्हारी सरकार मेरी इतनी देखभाल करने के बाद अब कितनी हिफाजत से मुझे वापस भेज रही है ताकि मैं फिर से तुम सब लोगों की मौत का सामान कर सकूँ।” श्रीकांत की तरफ देखकर कादिर ठहाका लगा कर हँसा।

श्रीकांत अब की बार अपने आप पर काबू न रख सका। उसने अपनी सीट से कादिर के ऊपर छलाँग लगा दी। इससे पहले चंदन राठौड़ कुछ समझ पाता, श्रीकांत के हाथों के वज्र प्रहार कादिर के चेहरे और बदन से टकरा चुके थे। चंदन राठौड़ और उसके साथियों ने उसे कादिर मुस्तफा से अलग किया।

“बीहेव यूअर सेल्फ़ एसीपी। अब ये सब करने का वक़्त नहीं है। लेट अस डू अवर ड्यूटी। अगर आपने दोबारा ऐसी हरकत करी तो मुझे आपको...” चंदन ने अपनी बात अधूरी छोड़ी।

“एसीपी साहब के खून में मेरी बातों को सुनकर उबाल आ गया। इसका मतलब कामयाब हूँ मैं, आज भी।” कादिर मुस्तफा ने इन शब्दों के बाद एक जोरदार कहकहा लगाया।

इसके बाद वहाँ पर शांति छाई रही। कादिर मुस्तफा श्रीकांत की तरफ देख कर बार-बार मुस्कुरा उठता था। श्रीकांत का खून उसकी कनपटियों पर बजने लगा था। वह अपनी सीट से खड़ा होकर केबिन के छौर पर जाकर खड़ा हो गया।

कुछ समय बाद ड्राइविंग केबिन से गंतव्य स्थल पर कुछ समय बाद लैंडिंग करने की सूचना आयी। टुकड़ी के सभी जवान अपने आप को मुस्तैदी से तैयार करने लगे।

जहाँ पर हेलीकॉप्टर ने लैंड किया था वहाँ से आगे जाने के लिए आर्मी का बख्तरबंद वाहन तैयार खड़ा था। हेलीकॉप्टर से उतर कर सब लोग उसमें सवार हुए और आगे बढ़ चले। वह वाहन एक ऐसी जगह पर जाकर रुका जहाँ पर दोनों देशों की सीमाएँ धुँधली हो जाती थी। वह पहाड़ों का एक दुर्गम इलाका था जहाँ पर सीमा को पार करना बड़ा दुष्कर कार्य था। सीमा पर कुछ क्रॉसिंग पॉइंट थे जहाँ पर सिर्फ़ व्यापारिक गतिविधियों के लिए ही जाने की परमिशन थी। ऐसे ही एक क्रॉसिंग पॉइंट पर आज एक मीटिंग थी जहाँ पर आधिकारिक तौर पर कादिर मुस्तफा को पाकिस्तानी टुकड़ी को सौंपा जाना था।

श्रीकांत और चंदन राठोड़ के वहाँ पर पहुँचने के बाद दूसरी तरफ से कुछ हलचल हुई। कुछ देर बाद एक शख़्स ने पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने हुए उस टेंट में कदम रखा। श्रीकांत ने उसे साफ पहचाना। वह जावेद अब्बासी था। बेड़ियों में जकड़ा कादिर मुस्तफा उससे बगल गीर होकर मिला।

“कादिर मुस्तफा को हिफाज़त से रखने और यहाँ तक पहुँचाने का बहुत बहुत शुक्रिया। वाकई बहुत बड़ा दिल है आपका। इस आदमी की वजह से आपका इतना नुकसान हुआ और आप खुद चलकर इसे यहाँ तक छोड़ने आ गए। हमारे पास ऐसा कोई होता तो वो कमबख़्त तो हमारी ही जेल में मरता।” जावेद अब्बासी ने श्रीकांत से हाथ मिलाते हुए कहा।

“मैं आपकी यह नसीहत याद रखूँगा। आगे आपकी सलाह पर हम पूरा अमल करेंगे।” श्रीकांत की पकड़ अब्बासी के हाथ पर मजबूती से कस गयी।

“अच्छा। बहुत बढ़िया करेंगे आप लेकिन इस बार तो यह मौका चूक ही गए आप।” जावेद अब्बासी अपनी मुस्कान से जहर बिखेरता हुआ बोला।

“अभी-अभी आपने एक नया मौका दिया न हमें। कादिर को तो आप अब की बार ले जाइए। प्रोफेसर उर्फ उस्मान ख़ान के लिए हम आपकी राय पर पक्का अमल करेंगे। याद तो होगा ना तुम्हें, उस्मान ख़ान उर्फ प्रोफेसर।” श्रीकांत ने आहिस्ता से जावेद अब्बासी के कान के पास जाकर कहा।

जावेद अब्बासी की मुस्कान पर तुरंत ब्रेक लगे। उसने श्रीकांत का हाथ, जो वह अब तक थामे हुए था, यूँ छोड़ा जैसे अब तक साँप पकड़े हुए था।

कागजी कार्यवाही के बाद कादिर मुस्तफा को जावेद अब्बासी के हवाले कर दिया गया। अपनी आधी-अधूरी कामयाबी पर हाथ मलता और अंगारो पर लौटता हुआ जावेद अब्बासी वहाँ से रवाना हुआ।

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