मारिया'ज मसाज पार्लर एक तीन मंजिला इमारत में ग्राउंड फ्लोर पर था । इमारत पुरानी और बदरंग थी । उसके दोनों ओर वाली इमारतें खाली पड़ी नजर आ रही थी ।

अजय भीतर दाखिल हुआ ।

छोटी सी लॉबी में रिसेप्शन काउंटर पर ऐनक लगाए मामूली शक्ल सूरत वाली एक करीब पच्चीस वर्षीया युवती मौजूद थी । वह अन्दर आते अजय को देख चुकी थी ।

अजय उसके सम्मुख पहुंचा ।

–'यस, सर ।' युवती ने उसके चेहरे पर निगाह जमाते हुए व्यावसायिक स्वर में पूछा–'व्हाट विल यू हैव टर्किश बाथ, बॉडी मसाज ऑर बाथ ?'

अजय ने नोट किया । युवती देखने में जितनी मामूली थी । ऐनक के पीछे से झांकती उसकी आँखें उतनी ही पैनी थी । और चेहरे पर मौजूद गंभीरता उसके होशियार और तजुर्बेकार होने का स्पष्ट संकेत दे रही थी ।

–'नथिंग, मैडम ।' वह मुस्कराकर बोला ।

–'दैन ?' युवती ने भावहीन स्वर में पूछा ।

–'आयम लुकिंग फॉर रोजी ।'

युवती ने ऐसा जाहिर किया, मानों ठीक से नहीं सुन पायी थी ।

–'हू ?'

–'रोजी ।'

–'सॉरी, सर आई डोंट नो एनी रोजी ।'

–'यू नो मारिया ?'

–'यस, सर ।'

–'दैन आई वुड लाइक टू सी हर ।'

–'प्लीज वेट ।' युवती ने सामने दीवार के साथ लगी कुर्सियों की ओर संकेत करते हुए कहा–'आई विल सी, इफ शी इज इन ।'

अजय पीछे हटकर एक कुर्सी पर बैठ गया ।

युवती सामने रखे इंटरकाम का रिसीवर उठाकर धीमी आवाज में बातें करने लगी ।

रिसीवर वापस रखकर उसने अजय की ओर देखा ।

–'शी इज कमिंग ।'

अजय सिगरेट सुलगाकर इन्तजार करने लगा ।

मुश्किल से दो मिनट बाद लॉबी के दूसरे सिरे पर बने दरवाजे से स्कर्ट ब्लाउज पहने एक औरत आती दिखाई दी । ऊँचे कद और भारी बदन की वह औरत देखने में ही बेहद चालाक नजर आती थी । उसकी उम्र करीब पचास वर्ष थी । चेहरे पर सलीके से मेकअप किया हुआ था और बॉब्ड हेअर इस ढंग से रंग हुए थे कि सामने बांयी ओर के एक खास हिस्से में सफेदी भी झलक रही थी । उसके हाथों की दो–दो उंगलियों में हीरे की अंगूठियां चमक रही थी, कानों में हीरे के जड़ाऊ टॉप्स थे और गले में सोने की चेन में क्रॉस झूल रहा था ।

वह सधे हुए कदमों से चलती हुई अजय के सामने आ रुकी ।

–'यू आर लुकिंग फॉर सम बडी ? उसने तनिक मुस्कराते हुए पूछा ।

अजय भी खड़ा हो गया ।

–'यस, आई वांट टु सी मारिया ।'

–'आयम मारिया एन्ड आई डोंट थिंक आई नो यू ।' आगंतुका ने संदिग्ध स्वर में कहा ।

अजय मुस्कराया ।

–'ग्लैड टू मीट यू, मैडम ।' मैं बद्री प्रसाद और भोलानाथ का दोस्त हूँ । उन दोनों ने इस जगह की इतनी तारीफ की है कि काम से फुरसत पाते ही दौड़ा चला आया । भोला ने तो यहाँ तक कहा है अगर मैं रोजी से नहीं मिला तो वह कभी मुझसे बात तक नहीं करेगा ।'

मारिया खुलकर मुस्कराई ।

–'इस लड़की को शक था ।' वह रिसेप्शन की ओर गरदन हिलाकर संकेत करती हुई बोली–'तुम या तो सी. आई, डी. वाले हो या फिर किसी खास मकसद से यहां आए हो । लेकिन अब मुझे यकीन हो गया तुम सही आदमी हो । क्योंकि भोला अपनी मनपसंद लड़की के पास किसी गलत आदमी को नहीं भेज सकता ।' फिर तनिक रुककर बोली–'वे दोनों कई दिन से दिखाई नहीं दिए । यह पहला मौका है रोजी से मिलने के बाद भोला इतने दिन नहीं आया । आजकल कहां है वे दोनों ?'

–'धंधे के सिलसिले में बाहर गए हैं । वापस लौटते ही सबसे पहले यहीं आएँगे ।'

–'जानती हूँ ।' मारिया ने कहा, फिर कनखियों से प्रवेश द्वार की ओर देखने के बाद धीमी आवाज में पूछा–'तुम रोजी के पास जाना चाहते हो ? वह फ्री है । आज रात उसके पास आने वाले तुम पहले आदमी हो ।'

–'ओह, दैन आयम लकी ।'

–'यस, कम अलांग ।'

अजय उसके साथ चल दिया ।

मारिया जिस दरवाजे से आई थी । उसी से गुजरने के बाद रुक गई । दाएं–बाएं अस्पष्ट रूप से प्रकाशित सीढ़ियां थी और सामने एक और बंद दरवाजा था ।

–'सामने मसाज पार्लर है ।' मारिया बंद दरवाजे की ओर गरदन हिलाकर बोली–'इस इमारत की ऊपर की दोनों मंजिलें खाली हैं ।' उसने दाँयी ओर वाली सीढ़ियों की ओर संकेत किया–'तुम इधर से ऊपर चले जाओ । दूसरी मंजिल पर गाइड मिल जाएगा ।'

–'इधर क्या है ? अजय ने दूसरी सीढ़ियों की ओर इशारा करके पूछा ।

–'लड़कियां ही हैं । लेकिन ये तुम्हारे मतलब की नहीं है ।'

–'ज्यादा बढ़िया और महँगी हैं ?'

–'नहीं, घटिया और सस्ती हैं ।'

–'ओह !' अजय ने बुरा सा मुंह बनाया और पलटकर दायीं ओर वाली सीढ़ियां चढ़ने लगा ।

मारिया ने दरवाजे की बगल में लगा एक गुप्त बटन दबा दिया ।

अजय पहली मंजिल पर पहुंचा । वहां अनुमानतः चार फ्लैट थे और चारों ही खाली पड़े नजर आ रहे थे ।

वह दूसरी मंजिल पर पहुंचा वहां की हालत भी नीचे जैसी ही थी ।

लैंडिंग पर खड़े अजय ने आस–पास देखा । लेकिन कोई गाइड उसे वहां दिखाई नहीं दिया ।

तभी दीवार में एक स्लाइडिंग पैनल खुला । लैंडिंग पर अपेक्षाकृत तेज रोशनी पड़ने लगी । अजय ने देखा–पैनल खुलने पर बने दरवाजे में गंजे सर वाला एक विशालकाय आदमी खड़ा था । बड़ी–बड़ी सुर्ख आंखों वाले उस आदमी का रंग एकदम काला था । वह मात्र टी शर्ट और जींस पहने था ।

–'इधर से आओ ।' उसने खरखराती सी आवाज़ में कहा और एक तरफ हट गया ।

अजय पल भर हिचकिचाया फिर दरवाजे में दाखिल हो गया ।

गंजे ने बटन दबाकर पैनल को यथावत् किया और छोटे से गलियारे में अजय के पीछे चल दिया ।

दरवाजे में कदम रखते ही अजय समझ गया था वह बगल वाली इमारत में आ पहुंचा था । गलियारे के दूसरे सिरे पर छोटे से डेस्क के पीछे कुर्सी में, एक धूर्त किस्म का मरियल आदमी मौजूद था ।

उसने सर से पांव तक गौर से अजय को देखा ।

–'पहले तो कभी तुम यहां नहीं आए ?'

अजय ने कनखियों से देखा । विशालकाय आदमी अलग खड़ा सिगरेट सुलगा रहा था ।

–'मैं इस शहर में ही पहली बार आया हूँ ।' अजय बोला–'भोलानाथ पांडे ने इस जगह की इतनी ज्यादा तारीफ की थी कि पहली फुरसत पाते ही यहां आ गया ।'

–'भोला ने इस जगह की नहीं बल्कि अपनो छोकरी रोजी की तारीफ की होगी ।'

–'हां, मैं भी उसी से मिलना चाहता हूँ ।'

–'कोई और नहीं चलेगी ?'

–'नहीं, आज नहीं ।' अजय मुस्कराता हुआ बोला–'आज तो रोजी से ही मिलूंगा । मैं देखना चाहता हूँ, जिस रोजी का नाम हर वक्त भोला की जुबान पर रहता है, वह चीज क्या है ।'

–'ठीक है । पांच सौ रुपए दे दो । बाकी रोजी से कितने में मामला पटाते हो । यह तुम्हारे अपने ऊपर है ।'

अजय जेब से नोट निकालने ही वाला था । डेस्क में लगा बजर बजने लगा । उसने चौंक कर कुर्सी पर बैठे आदमी की ओर देखा ।

–'घबराओ मत । यह मारिया का सिग्नल है । कुछ और कस्टमर्स आ रहे हैं ।' वह बोला–'ये तीनों इमारतें मारिया की अपनी हैं । पुलिस का महीना बंधा है । इसलिए यहां रेड नहीं पड़ेगी ।'

अजय ने पांच सौ रुपए निकालकर उसे दे दिए ।

–'पीछे घूमो ।' वह आदमी नोट अपनी जेब में डालकर बोला–'गलियारे में बांयी ओर चौथा कमरा रोजी का है ।'

पीछे घूमते ही अजय को लंबा गलियारा नजर आ गया । उसे अच्छी तरह याद था आते समय कोई अन्य गलियारा उसने नहीं देखा था । और इसकी वजह सिरे पर लगा स्लाइडिंग पैनल डोर था । जो कि तब बंद था और अब खुला हुआ था ।

अजय के गलियारे में पहुंचते ही स्लाइडिंग डोर पुनः बंद हो गया ।

गलियारे में दोनों ओर कमरे बने थे ।

बांयी ओर चौथे कमरे के सम्मुख पहुंचकर अजय ने हौले से दरवाजे पर दस्तक दी ।

–'आ जाइए ।' अंदर से मधुर नारी स्वर में कहा गया ।

अजय दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ ।

विलास पूर्ण ढंग से सुसज्जित कमरा शानदार था । कोने में एक मेज पर छोटी सी बार बनी हुई थी । उसके पास रेशमी गाउन पहने करीब पच्चीस वर्षीया मांसल बदन की जो युवती खड़ी थी उसे देखते ही अजय मन ही मन भोला की पसंद की दाद देने पर मजबूर हो गया । साथ ही अधेड़ लिफ्टमैन भी उसे याद आया । उसने रोजी की जो तारीफ की थी वो कम तो थी । लेकिन गलत जरा भी नहीं थी ।

–'तशरीफ रखिए ।' वह मुस्कराकर बोली ।

अजय आगे आकर पलंग के पास पड़ी इकलौती कुर्सी पर बैठ गया ।

युवती मेज के पास से हटी बड़े अंदाज से चलती हुई दरवाजा बंद करके उसके सामने आ खड़ी हुई ।

–'मेरा नाम रोजी है ।' वह बोली–'आपका नाम जान सकती हूँ ?'

–'अजय ।'

–'तुम जितने हैंडसम हो । नाम भी उतना ही प्यारा है ।'

अजय मुस्कराया ।

–'सही मायने में काबिले तारीफ तो तुम हो ।'

–'शुक्रिया, ड्रिंक लोगे ?'

–'तुम साथ दोगी ?'

–'तुम जो कहोगे, मैं करूंगी ।'

–'सच कह रही हो ?'

रोजी हॅसी ।

–'बिल्कुल सच । चाहो तो आजमा सकते हो ।'

–'ठीक है । ड्रिंक बनाकर ले आओ । फिर देखते हैं तुम अपनी बात पर कहां तक खरी उतरती हो ।'

रोजी ने मेज के पास जाकर जानी वाकर ब्लैक लेबल की, बोतल से दो ड्रिंक बनाए ।

एक गिलास अजय को थमाकर दूसरा अपने हाथ में लिए वह पलंग पर बैठ गई । अपने कंधों को झटका देकर वह तनिक आगे झुकी तो उसके वक्ष मचलकर गाउन से बाहर आ गए ।

–'बताओ ।' वह गिलास से घूँट लेकर बोली–'क्या कराना चाहते हो ?'

–'जल्दी में हो ?' अजय ने वक्ष प्रदर्शन की उसकी हरकत को नजरअंदाज करते हुए पूछा ।'

–'नहीं ।'

–'तो फिर इत्मीनान से ड्रिंक लो ।'

रोजी ने अपनी एक टांग दूसरी पर रख ली । इस प्रयास में गाउन के दोनों सिरे खिसककर पूरी तरह अलग हो गए और उसकी सुडौल, चिकनी टांगे लगभग जाँघों के जोड़ तक नजर आने लगीं ।

अजय उसकी इस हरकत को भी अनदेखा कर गया ।

तुमने अभी तक अपनी कीमत नहीं बतायी । वह बोला ।

–'तुम किस ढ़ंग से आजमाना चाहते हो ?' रोजी ने विशुद्ध व्यापारिक ढंग से पूछा ।

–'यह बाद की बात है । सब जोड़कर बता दो ।

रोजी पल भर खामोशी रही फिर हिचकिचाती सी बोली–'दो हजार ।'

–'अजय ने अपना गिलास खाली करके नीचे रखा । जेब से गड्डी निकलकर सौ रुपये के बीस नोट गिने और उसकी गोद में डाल दिए ।

चकित बैठी रोजी ने फौरन गिलास रखकर कांपते हाथ से नोट उठाए जोर जल्दी से बिस्तर के नीचे रख दिए । मानों उसे डर था कहीं अजय वापस मांग बैठे ।

–'खुश हो ?' अजय ने पूछा ।

रोजी का चेहरा हजार वाट के बल्ब की भांति चमक रहा था । वह उठी और गाउन उतारकर फेंकने के बाद बोली–'हाँ । अब मैं तुम्हें खुश करना चाहती हूँ ।'

टाँगें फैलाए सामने खड़ी रोजी की नग्नता से अजय को अपने होश उड़ते से महसूस हो रहे थे । अपने अन्दर वासना का समुद्र ठाठें मारता सा प्रतीत हो रहा था । फौरन कपड़े उतारकर रोजी पर टूट पड़ने की अपनी इच्छा पर काबू पाने के लिए उसे भरसक प्रयत्न करना पड़ रहा था ।

–'जानती हो ।' वह फंसी सी आवाज में बोला–'सिर्फ तुम्हारी खातिर यहाँ आया हूँ ?'

–'हाँ, मारिया ने इन्टर काम पर बताया था ।' रोजी ने पूछा–'पहले कभी तो हम मिले नहीं हैं । फिर तुम मुझे कैसे जानते हो ?' और अपने वक्षों को सहलाने लगी ।

–'भोलानाथ पांडे ने तुम्हारे बारे में बताया था ।'

–'तुम भोला के दोस्त हो ?'

–'हाँ ।'

–'भोला को क्या हो गया ?'

–'क्यों ? यहां नहीं आया ?'

–'नहीं, तीन रोज हो गए हैं । तुम्हें मिला था ?

अजय ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।

रोजी अपने वक्षों को हाथों में थामे खड़ी थी ।

–'उठो, मैं तुम्हारे कपड़े उतारती हूँ ।' वह बोली–'पता नहीं, क्यों भोला का किस्सा लेकर बैठ गए ? क्या तुम उसी के बारे में बात करने यहां आए हो ?'

–'हाँ, मैं इसी काम के लिए यहाँ आया हूँ । अजय ने कहा–'जितना जल्दी हो सके, मैं उससे या बद्री से मिलना चाहता हूँ ।'

रोजी के चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित अविश्वासपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए ।

–'सच कह रहे हो ?'

–'हाँ ।'

रोजी के हाथ नीचे लटक गए । वह गौर से उसे देखने लगी ।

–'तुम पागल तो नहीं हो ?' उसने संदिग्ध स्वर में पूछा–'कौन हो तुम ? पुलिस ऑफिसर ?'

–'नहीं । यह हमारा जाती मामला है । मेरे लिए उसका पता लगाना बेहद जरूरी है । मैं तुम्हें और दो हजार रुपये दे सकता हूँ...।'

रोजी पीछे हटी और मेज पर पड़े पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली ।

–'तुम मुझे समझते क्या हो ?' वह तीव्र स्वर में बोली–'मैं किसी अनजान के हाथ अपने दोस्त को बेच दूँगी ?'

–'तीन हजार ।' अजय बोली लगाता हुआ सा बोला–'जोसफ को बुलाती हूँ । वह तुम्हें उठाकर नीचे फेंक देगा ।'

–'पाँच हजार ।'

–'मैं नहीं जानती, वह कहां है ।' रोजी ने कहा । उसका स्वर अपेक्षाकृत सामान्य था–'और अगर जानती होती तो भी तुम्हें नहीं बताना था ।'

–'सात हजार अगर उसका पता लगाकर बता दो ।'

–'मैंने बताया तो है, वह यहाँ नहीं आया ।' इस दफा रोजी के स्वर में विवशता का पुट था–'कोई मैसेज तक उसने नहीं भेजा ।'

–'वह तुम्हें कांटेक्ट करेगा ?'

रोजी सिगरेट ऐशट्रे में कुचलकर पलंग पर आ बैठी । अब उसके चेहरे पर उत्सुकतापूर्ण भाव नजर आ रहे थे ।

–'उम्मीद तो है ।' वह बोली–'वह मेरा दीवाना हो गया है । ज्यादा दिन मुझसे दूर नहीं रह सकता । मेरे पास ज़रूर आएगा ।' फिर स्वर में मिठास घोलते हुए पूछा–'सात हजार देने के बारे में तुम मजाक तो नहीं कर रहे थे ?'

–'नहीं जैसे ही वह तुम्हारे पास आए या उसका मैसेज मिले तो क्या तुम मुझे बता दोगी ?' अजय ने कहा और जेब से नोटों की गड्डी निकाल ली ।

रोजी पैसे के लिए जिस्म बेचती थी । इस पेशे को अख्तियार करने से पहले तंगहाली के बेहद तल्ख तजुर्बात के दौर से गुजरना पड़ा था । वह पैसे की अहमियत समझती थी । साथ ही न सिर्फ हकीकत पसन्द थी बल्कि उधार के तेरह और नगद के नौ का फर्क भी अच्छी तरह समझती थी । सामने बैठा आदमी उसे सात हजार रुपये दे रहा था । एक मामूली काम के लिए जिसे वह आसानी से अंजाम दे सकती थी । इसमें भी बड़ी बात यह थी । कि ये सात हजार रुपये सीधे उसी की जेब में जाने थे । मारिया का फिफ्टी–फिफ्टी का हिस्सा इस रकम में नहीं होना था । क्योंकि इसकी हवा भी उसे नहीं लगनी थी । इसके अलावा भोला जैसे घामड़ के मुकाबले में अजय लाख दर्जे बेहतर था । अगर सिलसिला चल निकला तो अजय की दोस्ती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित होनी थी ।

अजय की निगाह रोजी के चेहरे पर जमी थीं । उसकी दिमागी कशमकश का काफी हद तक आभास वह पा गया था ।

–'किस सोच में पड़ गई ?' उसने कहा–'तुमने तो कहा था जो मैं कहूंगा, तुम करोगी ।'

–'मुझे याद है ।' रोजी लालसा भरी निगाहों से नोटों को देखती हुई बोली–'लेकिन उससे मेरा मतलब सिर्फ यह था कि तुम जैसे चाहो मेरे जिस्म को इस्तेमाल कर सकते हो । मैं पूरा सहयोग दूँगी । अजय ने नोटों की गड्डी हिलाई ।

–'और मेरा मतलब उस वक्त भी यही था ।'

–'मुझे मंजूर है । लेकिन मैं तुम्हें कांटेक्ट कैसे करूंगी ?'

अजय ने जेब से नोटबुक और बालपैन निकालकर एक पेज पर होटल सिद्धार्थ का टेलीफोन नम्बर और अपना रूम नम्बर लिखकर उसे दे दिया ।

–'अगर मैं न मिलू तो मैसेज छोड़ देना–रिसेप्शन पर ।'

–'ठीक है । मुझे सात हजार कब मिलेंगे ?'

–'अभी ।'

अजय ने नोट गिनकर उसे दे दिए ।

–'देखो, मैं तुम पर भरोसा कर रहा हूँ। मेरे साथ दगाबाजी मत करना । मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकता हूँ लेकिन दगाबाजी नहीं ।' उसने प्रभावपूर्ण स्वर में कहा–'एक बात और अच्छी तरह समझ लो ।' वह गोली देता हुआ बोला–'मैं कोई ऐरा–गैरा नहीं हूं । मुझसे कुछ ही महीनों में तुम इतना कमा सकती हो कि भोला पूरी जिंदगी में भी तुम्हें उतना नहीं दे पाएगा ।'

–'जानती हूँ ।' रोजी पुलकित स्वर में बोली–'मुझे भी आदमी की पहचान है ।' और टेलीफोन नम्बर वाले पेज सहित नोटों को बिस्तर के दूसरे सिरे के नीचे दबाकर खड़ी हो गई–'काम की बातें तो खत्म हुई । अब मौज–मेले के बारे में क्या ख्याल है ?'

अजय खड़ा हो गया ।

–'वो तुम पर उधार रहा । अगली बार आज की कमी भी पूरी कर लूँगा ।'

रोजी ने उसे घूरा ।

–'तुम पागल तो नहीं हो ।' वह बोली–'मुझमें कोई ख़राबी है या फिर तुम्हारे अन्दर कमी है ?'

–'न तो तुम में कोई खराबी है । और न ही मेरे अन्दर कमी है । असल बात यह है मैं तुम्हारे और तुम्हारे प्रेमी के बीच में आना नहीं चाहता ।'

–'मेरा प्रेमी ? यह क्या कह रहे हो ?'

–'भोला तुम्हारा प्रेमी नहीं है ?'

–'नाम मत लो उस सूअर के बच्चे का ।' रोजी तल्ख़ लहजे में बोली–'यह आदमी नहीं शैतान है । एक–एक पैसा गिनकर देता है लेकिन वसूल करता है पैसे की जगह रुपया ।' फिर आगे बढ़कर उसके गले में बांहें डाल दीं–'मैं रोज तुम्हारा इन्तजार किया करूंगी ।'

–'भोला का किस्सा निपटते ही में सीधा तुम्हारे पास आऊंगा ।'

–'उसकी फिक्र मत करो । मुझ पर भरोसा रखो । उसका पता लगते ही तुम्हें फोन कर दूंगी ।'

–'भूल तो नहीं जाओगी ?'

–'नहीं ।'

–'सच ?'

–'खुदा बाप की कसम ।'

अजय ने उसे बेमन से बाहों में भरकर उसके होठों पर चुम्बन अंकित कर दिया ।

–'आयम डिपेडिंग ऑन यू ।' वह बोला ।

–'यू कैन ट्रस्ट मी । आई विल नेवर बी ट्रे यू ।'

अजय ने उसके होठों पर एक और चुम्बन जड़ दिया । औरतों के मामले में अपने तजुर्बे के आधार पर वह यकीन से कह सकता था  रोजी ने उसे डबल क्रॉस नहीं करना था ।