‘‘कबीर, मैं तुम्हें ख़ुद से बाँधना नहीं चाहती; तुम्हारे गुरु से मैंने मुक्त होना सीखा है। मैं ख़ुद को अपनी घृणा, और माया को उसके अपराध बोध से मुक्त कर रही हूँ।’’ प्रिया ने कबीर को, मुझसे हुई बाते बताते हुए कहा।
‘‘आई एम सॉरी प्रिया, मैं तुम्हें समझ नहीं पाया।’’ कबीर को ग्लानि महसूस हो रही थी।
‘‘समझ तो तुम माया को भी नहीं पाए कबीर; औरत को सि़र्फ अपनी ओर आकर्षित कर लेना ही बहुत नहीं होता; उस आकर्षण को बनाए रखना उससे भी बड़ी चुनौती होता है। औरत अपने प्रेमी को हमेशा अपने साथ खड़े देखना चाहती है; एक कवच बनकर, एक साया बनकर। उसके प्रेम की छाँव में वह कठिन से कठिन समय भी बिताने को तैयार रहती है। माया को कभी यह मत बताना कि उसकी भलाई के लिए तुम उसके प्रेम का सौदा करने चले थे; वह तुमसे ऩफरत करने लगेगी। कबीर, अच्छे और बुरे वक्त तो जीवन में आते रहते हैं, मगर औरत और आदमी के सम्बन्ध का असली अर्थ होता है कि वे इन अच्छे और बुरे वक्त में एक दूसरे का संबल और प्रेरणा बनें। मुझसे जितना हो सकेगा, मैं माया की मदद करूँगी; मगर उसे असली ज़रूरत तुम्हारी है कबीर; जाओ और जाकर माया को सहारा दो।’’
कबीर, बेसब्री से माया से मिलने के लिए दौड़ा। प्रिया की डार्क नाइट से उसने प्रेम का असली अर्थ सीखा था। उसने प्रेम में समर्पण का अर्थ, अपने प्रेमी की दासता करना समझा था, मगर प्रेम में समर्पण का अर्थ दासता नहीं होता... प्रेम में समर्पण का अर्थ, अपना सम्मान खोना नहीं, बल्कि अपने प्रेमी का संबल और सम्मान बनना होता है... प्रेम में समर्पण, बंधन नहीं, बल्कि मुक्ति होता है; मुक्ति, जो दिव्यता की ओर ले जाती है।
‘‘कबीर, अच्छा हुआ तुम आ गए, मैं तुम्हें फ़ोन करने ही वाली थी।’’ कबीर को देखते ही माया ने कहा। माया बेहद परेशान दिख रही थी।
‘‘माया, घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा।’’ कबीर ने माया के पास बैठते हुए उसके गले में हाथ डाला, और उसके बाएँ गाल को चूमा।
‘‘कैसे ठीक हो जाएगा कबीर? सब कुछ तो डूब गया; और फिर मैं अपना लोन कैसे चुकाऊँगी?’’ माया की आँखों से निकलकर आँसू, उसके गालों पर लुढ़कने लगे थे।
‘‘माया, सब्र करो, हम कोई रास्ता निकाल लेंगे।’’ कबीर ने एक बार फिर माया का हौसला सँभालना चाहा।
अचानक ही माया के मोबाइल फ़ोन पर एक टेक्स्ट आया। माया ने टेक्स्ट पढ़ते हुए चौंककर कहा,‘‘कबीर, मेरे बैंक से मैसेज आया है कि किसी ने मेरे अकाउंट में छह लाख पौंड ट्रान्सफर किए हैं; कौन हो सकता है?’’
कबीर के होंठों पर मुस्कान बिखर गई। वह प्रिया ही होगी।
‘‘और कौन, तुम्हारी सहेली प्रिया।’’ कबीर ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘कबीर, तुमने कहा प्रिया से मुझे पैसे देने के लिए? मैं प्रिया से इतने पैसे कैसे ले सकती हूँ?’’ माया के चेहरे पर हैरत, ख़ुशी और नारा़जगी के मिले-जुले भाव थे।
‘‘उधार समझकर ले लो माया, चुका देना।’’
‘‘कबीर, उधार तो चुकाया जा सकता है, मगर अहसान... प्रिया के इतने अहसान कैसे चुकाऊँगी?’’
‘‘इमोशनल मत हो माया; तुम्हें इस वक्त इन पैसों की ज़रूरत है।’’
‘‘प्रिया से मैंने क्या-क्या नहीं लिया कबीर; उसका प्रेम छीन लिया, उसका विश्वास छीन लिया; और कितना कुछ लूँगी।’’
‘‘तो फिर क्या करोगी माया?’’ कबीर बेचैन हो उठा।
कुछ देर माया चुपचाप सोचती रही, फिर उसने प्रिया को फ़ोन लगाया।
‘‘प्रिया, कैन यू प्ली़ज कम हियर।’’
‘‘माया, मैं अभी बि़जी हूँ, शाम को तो मिलेंगे न।’’ प्रिया ने कहा।
‘‘नो प्रिया, आई वांट यू हियर राइट नाउ, प्ली़ज कम ओवर।’’
प्रिया को पहुँचने में लगभग बीस मिनट लग गए। इस बीच माया चुपचाप उसका इंत़जार करती रही। कबीर ने उससे बात करनी चाही, मगर माया खामोश रही।
‘‘कहो माया?’’ प्रिया ने पहुँचते ही कहा।
‘‘प्रिया, तुम्हें पता है कि कबीर अपनी ज़िन्दगी में क्या करना चाहता था?’'
‘‘माया तुमने इस वक्त मुझे यह पूछने के लिए बुलाया है?’’ प्रिया ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘हाँ प्रिया, मुझे लगा कि यही सही वक्त है इस बात को करने का।’’
‘‘हूँ... तो कहो क्या करना चाहता था कबीर?’' प्रिया ने शरारत से मुस्कुराकर कबीर की ओर देखा।
‘‘आसमान में उड़ना चाहता था।’' माया ने हँसते हुए कहा, ‘‘मुझे कबीर किसी बिगड़े हुए बच्चे सा लगता था, जिसे न तो अपनी राह ही मालूम थी और न ही मंज़िल। मुझे लगता था कि मैं कबीर को सही रास्ता दिखा सकती थी; मगर कबीर को मेरे बताए रास्ते पर चलकर मिला क्या? कबीर अपनी ज़िन्दगी में रोमांच चाहता था, मगर उसे मिली नौ से पाँच की नौकरी; कबीर खुले आसमान में उड़ना चाहता था, और वह बँध गया एक डेस्क और कम्प्यूटर से। कबीर किसी महान मकसद के लिए जीना चाहता था, और उसे मिला, माया का अपार्टमेंट सजाने के लिए। कबीर कोई खज़ाना खोज निकालना चाहता था, और उसे मिली बँधी-बँधाई सैलरी। कबीर की कल्पनाओं में थी, उसका हाथ थामकर उड़ने वाली एक परी, और उसे मिली उस पर लगाम कसने वाली माया। प्रिया, कबीर का भटकाव वह नहीं था, जो वह चाहता था... कबीर को तो मैं भटका रही थी... मैं ठगिनी माया, अपने साथ बाँधकर। कबीर की मंज़िल उसकी आवारगी में ही है, और इस आवारगी में उसकी हमस़फर तुम्हीं बन सकती हो प्रिया, मैं नहीं।’'
‘‘माया, ये क्या कह रही हो?’' कबीर ने चौंकते हुए कहा।
‘‘एंड यू कबीर; तुम नीचे अपने घुटनों पर बैठो।’’ माया ने आँखें तरेरते हुए कबीर से कहा।
‘माया?’ कबीर कुछ और चौंका।
‘‘कबीर आई सेड, गेट ऑन योर नीज़ नाउ।’' माया ने हुक्म किया।
कबीर घबराते हुए अपने घुटनों पर बैठ गया।
‘‘गुड बॉय।’’ माया ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘अब प्रिया का हाथ अपने हाथों में लो, और उससे प्रॉमिस करो कि उसकी दहलीज़ के भीतर हो या बाहर; तुम्हारी आवारगी हमेशा उसके हाथों को थामे रहेगी।’’
कबीर ने मुस्कुराकर माया की ओर देखा। मोहिनी माया को वह त्याग रहा था, माया के ही आदेश से। प्रिया ने हाथ बढ़ाकर कबीर को ख़ुद में समेट लिया।
* * *
‘‘तो ये थी कबीर की कहानी।’’ मैंने कहानी खत्म करते हुए मीरा की आँखों में झाँककर देखा। उसकी आँखों में अब भी एक उलझन सी बाकी थी।
‘‘हूँ... वेरी इंटरेस्टिंग एंड इंस्पाइरिंग स्टोरी; पूरी रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला।’’ मीरा ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘मगर एक बात समझ नहीं आई।’’
‘क्या?’ मैंने पूछा।
‘‘यही, कि माया के बदन में जो आग और जलन सी उठी थी, वह क्या थी? ऐसा क्यों और कैसे हुआ था?’’
‘‘उसे समझने के लिए परेशान न हो मीरा; हर ची़ज किसी कारण से ही होती है... कहानी में उसकी भी ज़रूरत थी।’’ मैंने समझाया।
‘‘अच्छा अब चलती हूँ, मेरी फ्लाइट का समय भी हो रहा है; आपके साथ बहुत अच्छा समय बीता... मैंने आपका फ़ोन नंबर नोट कर लिया है, वी विल कीप इन टच।’’
‘‘श्योर मीरा; टेक केयर एंड हैव ए हैप्पी जर्नी।’’ मैंने हैंडशेक के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। मीरा ने मुझसे हाथ मिलाकर अपना हैंडबैग उठाया और वेटिंग लाउन्ज से बाहर निकल गयी।
थोड़ी ही देर में मेरा मोबाइल फ़ोन बजा। फ़ोन मीरा का था।
‘‘काम! मेरे बदन में जलन हो रही है... बॉटम से आग सी उठ रही है, प्ली़ज हेल्प मी।’’ मीरा फ़ोन पर चीखी।
मैंने फ़ोन को कान से हटाते हुए अपना हाथ झटका, ‘‘उ़फ, इन कमबख्त हाथों में वाकई कोई जादू है।’’ कहते हुए मैं लाउन्ज के बाहर मीरा की ओर दौड़ा।
समाप्त
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