मारे खुशी के पागल से हुए जा रहे थे । बार-बार जाम टकरा रहे थे । सिगरेटें सुलगा रहे थे । होश ही नहीं था कि रात आधी से ज्यादा गुजर चुकी है । ऐशट्रे सिगरेट के टोटों से भर चुकी थी। इस वक्त वे दोनों दिव्या के बैडरूम में थे। दो सोफा चेयर्स पर । आमने-सामने । बीच में सेन्टर टेबल रखी थी । सेन्टर टेबल पर 'शीवाज रीगल' की बोतल । सोडे की बोतलें, आईस बकेट, काजू-बादाम और सलाद की प्लेट ।


पीते-पीते तीन घंटे से ज्यादा हो चुके थे उन्हें ।


बोतल आधी हो चुकी थी।


जाहिर है ---सुरूर से निकलकर नशे के आगोश में पहुंच चुके थे। उसी में झूमती दिव्या ने कहा था--- “ये नींद भी कम्बख्त बड़ी जालिम चीज है । न तब आती है जब दिमाग में टेंशन हो, न तब आती है जब मारे खुशियों के फुलझड़ियां छूट रही हों । चैक बैंक में जमा हो चुका है। 'क्लेयरिंग' से 'क्लियर' होते ही, परसों हमारे पास नोट ही नोट होंगे। आंखें बंद करती हूं तो अम्बार नजर आता नोटों का। पहाड़ के पहाड़। नोटों के पहाड़। देव, क्या तुम बता सकते हो --- पांच करोड़ में पांच-पांच सौ के कितने नोट होते हैं?”


देवांश के दिमाग पर कुछ और ही धुन चढ़ी थी । बहुत ही

भावुकस्वर में बोला--- "दिव्या! मैं कुछ कहना चाहता हूं।”


“तो बोलो न ?”


“ मैंने तुम्हारे और अवतार के बीच होने वाली बातें उस दरवाजे के पीछे खड़े होकर सुनी थीं ।”


“ हेराफेरी की आदत नहीं गई तुम्हारी ?”


"मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया। सब्बरलाल के आने की खुशखबरी देने आया novers कि... ।” सबकुछ साफ-साफ बताता चला गया वह | बताने के बाद बोला--- "जब अवतार ने मेरे द्वारा रिवाल्वर तानने और तुम्हें नचाने की बात कही तो तुमने कहा--- वे जख्म आज भी मेरे दिल पर हैं। वाकई देव ने वह सब ठीक नहीं किया।”


“गलत कहा कुछ ?”


“अपने प्वाइंट ऑफ व्यू से ठीक ही कहा होगा मगर वे शब्द मुझे तभी से कचोट रहे हैं। दिल दुखी है कि तुम मेरे बारे में ऐसा सोचकर आहत हो । दिव्या, चीर सकता तो सीना चीरकर दिखा देता तुम्हें, तुम पर गोली चलाने का तो ख्याल तक नहीं था मेरे दिमाग में । अब मैं कैसे यकीन दिलाऊं तुम्हें, सचमुच अगले पल मेरा रिवाल्वर उसकी तरफ घूमने वाला था और वो ... वो उनके बीच नंगी नाचने वाली बात?... याद करो, मैंने कभी वैसा नहीं कहा। कहता तो तब, जब चाहा होता । मैंने तो केवल सोच-समझकर फैसला करने के लिए कहा था । केवल इतना कि हमारे पास टाइम है ।' मगर उस वक्त तुम ऐसी मानसिक अवस्था में थीं कि कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थीं। कहा कुछ जा रहा था, समझ में तुम्हारे कुछ और आ रहा था । डिप्लोमेसी तो ठकरियाल ने की । आखिर उसने तुमसे वह बात मनवा ही ली जो..


“ छोड़ो देव... जो गुजर गया, सो गुजर गया।"


“नहीं दिव्या । अगर मेरे मन पर यह बोझ रहा कि तुम मेरे बारे में ऐसा सोचती हो, आहत हो मेरे किसी कृत्य पर तो मैं सारे जीवन आत्मग्लानि की आग में सुलगता रहूंगा ।"


“ शायद चढ़ गई है तुम्हें ।"


और वास्तव में, नशे की ज्यादती ने देवांश को जरूरत से ज्यादा भावुक बना दिया था ।


वह उठा ।


संभल-संभलकर चलता दिव्या के नजदीक पहुंचा। सोफा चेयर के करीब घुटनों के बल कार्पेट पर बैठ गया। दोनों हाथ बढ़ाकर दिव्या का मुखड़ा उनमें मरा । बोला---“क्या मैं तुम्हें.. अपनी इतनी प्यारी दिव्या को गोली मार सकता हूं? क्या मैं चाह सकता हूं तुम गैरों के सामने कपड़े उतारकर नाचो ?”


दिव्या की आंखों में आंसू उमड़ आये ।


होठ थरथराकर रह गये । कुछ कह नहीं सकी वह । “तुम रो रही हो?” देवांश ने कहा ।


“स - सच बोल रहे हो न?”


“बिल्कुल सच | "


“मेरी कसम ?”


“तुम्हारी कसम दिव्या । ...तुम्हारी कसम ।” कहने के साथ देवांश भी रो पड़ा ।


और।


दिव्या का तो मानो बांध ही टूट गया । अपना चेहरा देवांश की छाती में छुपाये फूट-फूटकर रो पड़ी वह । देवांश ने उसे बाहों में भर लिया । बल्कि भींच लिया।


कम से कम पांच मिनट तक दोनों में से कोई कुछ नहीं

बोला ।


केवल रोते रहे ।


पांच मिनट बाद दिव्या ने चेहरा उठाया। आंसुओं से तर था वह । बोली --- "सॉरी देव ।”


देवांश उसके मुखड़े को केवल देखता रहा।


“सॉरी ।” कहने के साथ दिव्या के होंठ देवांश के होंठों से जा चिपके । 


देवांश ने उसकी जीभ अपने मुंह में भर ली। चुसकने लगा उसे । दोनों में से किसी को नहीं मालूम उसी पोजीशन में वे कब खड़े हो गये। अमरबेल की तरह एक-दूसरे की बाहों में लिपटे हुए थे वे ।


जाने किसका पैर सेन्टर टेबल में लगा ।


सोडे की एक बोतल कार्पेट पर जा गिरी।


न किसी को होश न फिक्र ।


दोनों के हाथ एक-दूसरे के जिस्म पर गर्दिश कर रहे थे । दिव्या ने सिल्क नाइट गाऊन पहन रखा था। कुछ भी तो

नहीं था गाऊन के नीचे |


न पेंटी, न ब्रा ।


वे बहके, तो बहकते चले गये ।


बैड पर पहुंचते-पहुंचते दोनों के कपड़े जिस्म से अलग हो चुके थे।


उन्माद में डूबा दिव्या के ऊपर देवांश उस वक्त उरोज चुसक रहा था और दिव्या के ऊपर आना ही चाहता था कि एक खटका हुआ।


दोनों चौंके ।


उन्माद गायब |


एक-दूसरे से इस तरह अलग हो गये जैसे स्प्रिंग ने उछाला हो । देवांश के मुंह से निकला---“कोई है... ।”


“शायद खिड़की पर ।" दिव्या ने कहा ।


देवांश एक ही जम्प में बैड से उछलकर खिड़की के नजदीक पहुंच गया । यह वही खिड़की थी जिसके माध्यम से अवतार दो बार कमरे में आ चुका था। इस वक्त पर्दा पड़ा हुआ था उस पर ।


देवांश ने एक झटके से उसे हटाया ।


कांच के पल्ले बंद थे | चटकनी चढ़ी हुई ।


फ्रन्ट लॉन रोशनी से जगमगा रहा था।


रोशनी का इन्तजाम जानबूझकर किया था उन्होंने ।


बावजूद इसके देवांश को दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया।


खिड़की के पल्ले खोले ।


बाहर झांका |


अपने तन पर बैडशीट ढक चुकी दिव्या ने पूछा--- "कौन है ?"


“कोई नजर नहीं आ रहा।"


“ था तो जरूर कोई, आवाज हुई थी । ”


देवांश ने पल्ले बंद किये । चटकनी चढ़ाई | पर्दा खींचा। भन्नाया हुआ बोला--- "वही होगा ।”


“कौन?”


“वही साला अवतार | उसी ने रास्ता देख रखा है ये ।” कहने के बाद वह तेज कदमों के साथ बैड के करीब, वहां पहुंचा जहां कार्पेट पर उसकी लुंगी पड़ी थी । उठाई। उसे बांधता हुआ बड़बड़ाया---“सारा मूड चौपट कर दिया हरामजादे ने!”


दिव्या चुप रही ।


देवांश ने सेन्टर टेबल से सिगरेट का पैकिट उठाया। एक सिगरेट सुलगाई और 'धम्म' की आवाज के साथ सोफा चेयर पर बैठ गया। आधा भरा अपना गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर गया ।


मारे उत्तेजना के इस वक्त उसका चेहरा बुरी तरह भभक रहा था ।


दिव्या भी बैड से उठी।


गाउन जिस्म पर डाला।


सेन्टर टेबल के नजदीक आकर एक सिगरेट सुलगाई और सोफा चेयर पर बैठ गयी |


देवांश बड़बड़ाया--- "ठकरियाल से तो पीछा छुड़ा लिया । किसी तरह इससे भी पीछा छूट जाता तो...


“यही... मैं भी ठीक यही सोच रही थी देव ।”


“मगर नहीं... इससे पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है। बहुत ही घाघ है साला । और... सारे सुबूत कब्जाये बैठा है। भनक तक नहीं दे रहा कि ठहरा कहां है?" ।


“इसका पता तो मैं लगा सकती हूं ।”


“त- तुम | वो कैसे ?”


“भूल गये ? ... तैयार है। " मरता  मुझ पर | साथ लेकर भागने को तैयार है।


देवांश ने खिड़की की तरफ देखा ।


" कांच के पल्ले बंद हैं।" दिव्या ने कहा--- " आवाज बाहर नहीं जा सकती । ” 


“क्या कहना चाहती हो?” देवांश ने वापस उसकी तरफ देखते हुए धीमे स्वर में पूछा।


“ उसकी नजरों में, बस जरा सा पलटा खाने की जरूरत है मुझे ।” दिव्या ने कहा --- “अगर उसका ऑफर कुबूल कर लूं तो सबसे पहले मुझे अपने ठिकाने पर ही ले जायेगा। वहां, जहां सारे सुबूत भी होंगे।”


एकाएक देवांश चुटकी बजा उठा ।


अंदाज ऐसा था जैसे दिमाग में कोई बात 'क्लिक' हुई हो।


“क्या हुआ?” दिव्या ने पूछा ।


“एक तरकीब दिमाग में आई है ।”


दिव्या ने उत्सुक होकर पूछा--- "क्या?”


देवांश चुप रह गया | जैसे कुछ सोच रहा हो । 


“बोलो न !”


“छोड़ो ।” देवांश ने बोतल से एक और पैग गिलास में डालते हुए कहा - - - “तुम फिर मेरे बारे में गलत धारणा बना बैठोगी।"


“देव प्लीज ! बोलो न । आखिर तरकीब क्या आई है तुम्हारे दिमाग में?”


देवांश ने सोडे की एक बोतल खोली । उससे व्हिस्की वाला गिलास भरा | उठाया और होठों से लगाने से पहले बोला --- “सलाह को कि दूसरे ऐंगिल से न लो तो कहूं ।”


“कहो न ।”


गिलास हाथ में लिए उठा । सिर चकराया। टांगें लड़खड़ाई। गिरने से बड़ी मुश्किल से रोका खुद को ।


दिव्या ने कहा --- “संभलकर ।... और मत पियो देव ! "


“वह तुम पर मरता है। बीवी बनाना चाहता है अपनी !” कहते-कहते उसने महसूस किया, जीभ कुछ अकड़ सी रही है। फिर भी, कहता चला गया --- “हालांकि मैं समझता हूं वह दीवाना नहीं हो गया है तुम्हारा | बेवकूफ बना रहा है साला । पूरे के पूरे पांच करोड़ कर रहा है पर हाथ साफ करने के लिए ड्रामा कर रहा है तो फिर क्यों नहीं हम भी ड्रामा करें? उसकी चाल में फंसने का ड्रामा और तुम उसे उसी तरह मार डालो।”


"किस तरह ?”


“अपने निप्पल्स पर जहर लगाकर ।... चुसा दो साले को!”


“वही तो किया मैंने "


“क- क्या मतलब ?” उसके एक हाथ से सिगरेट, दूसरे से गिलास छूट गया | मुंह से निकला --- “य - ये हो क्या रहा है मुझे ! नशा तो नहीं है ये । सारा जिस्म अकड़ा जा रहा है । " दिव्या ने सामान्य स्वर में कहा --- “कहा तो यही था अवतार ने कि ये जहर धीरे-धीरे असर करेगा।”


“क- कौन सा जहर?"


“वही, जो तुमने इनसे चुसका है।” कहने के साथ दिव्या ने अपने गाऊन की डोरी खोल दी ।


दोनों उरोज आवरणहीन हो गये ।


देवांश को अपनी तरफ ताकते हुए उसके निप्पल्स किसी नाग के खड़े फन जैसे लगे।


बुरी तरह लड़खड़ाते वक्त देवांश के मुंह से निकला --- “क- क्या कह रही हो दिव्या?”


“वही, जो तुमने सुना । ” दिव्या के होठों पर जहरीली मुस्कान थी।


“हरामजादी!” पूरी बात समझ में आते ही वह दहाड़ता हुआ दिव्या पर झपटा।


मगर !


दिव्या फुर्ती से सीट छोड़ चुकी थी ।


सोफा चेयर से जा टकराया वह । चेयर सहित सेन्टर टेबल

पर गिरा । सेन्टर टेबल अपने सारे सामान के साथ कार्पेट पर ।


एक तरफ खड़ी दिव्या हिंसक नागिन के से अंदाज में फुंफकार रही थी - - - गलीच कुत्ते ! स्वार्थ की नाली में रेंगता गंदा कीड़ा है तू। तू तो अब भी मुझे किसी और का बिस्तर गर्म करने की सलाह दे रहा था । उसका --- जिसने मुझे यह काम जरूर सौंपा मगर कहा --- 'दिव्या, मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं तुम राजदान की पत्नी रहीं या देवांश को चाहती रहीं। बस इतना चाहता हूं--- अब अगर मेरी हो गयीं तो मेरी बनकर रहना । केवल मेरी। देवांश का खात्मा करने के लिए मैं उसे तुम्हारे निप्पल्स चुसकने तक की इजाजत दे सकता हूं। उससे आगे बढ़ने की हरगिज नहीं। इसलिए, उसने ठीक उस वक्त खटका किया जब तुम जहर चुसक चुके ।”


सेन्टर टेबल और सोफा चेयर से उलझे देवांश ने उठने की कोशिश की मगर कामयाब न हो सका। कई बार थोड़ा उठा भी, मगर फिर गिरा | हाथ-पांव शिथिल पड़ चुके थे उसके ।


जिस्म शक्तिहीन होता चला गया ।


दिव्या ने लपककर बाथरूम का दरवाजा खोला ।


अवतार नजर आया।


उसके होठों पर सुलगी हुई सिगरेट लटक रही थी ।


अपने अंतिम क्षणों में देवांश बुरी तरह हैरान नजर आ

रहा था । मुंह से निकला - - - “व- वो सब ..


“वो सब तुम्हें सुनाना जरूरी था ।” कहने के साथ आगे बढ़कर अवतार ने दिव्या को अपनी बांहों में भर लिया । बोला --- “ताकि तुम पूरी यकीन कर सको दिव्या मेरे नहीं, तुम्हारे साथ है | वैसा न होता तो इसके निप्पल्स चुसकने का मूड कैसे बनता तुम्हारा ?” ।


कुछ कहने की कोशिश में देवांश के मुंह से झाग निकलने लगे।


एक झटका सा खाया उसने । फिर शांत पड़ गया। पलक झपकते ही आंखों से ज्योति गायब हो गयी । पथराई आंखें एक-दूसरे की बांहों में समाये दिव्या और अवतार पर जमकर रह गयी थीं ।